हौबी : पति की आदतों से वह क्यों परेशान थी

मेरे पति को सदा ही किसी न किसी हौबी ने पकड़े रखा. कभी बैडमिंटन खेलना, कभी शतरंज खेलना, कभी बिजली का सामान बनाना, जो कभी काम नहीं कर सका. बागबानी में सैकड़ों लगा कर गुलाब जितनी गोभी के फूल उगाए. कभी टिकट जमा करना, कभी सिक्के जमा करना. तांबे के सिक्के सैकड़ों साल पुराने वे भी सैकड़ों रुपए में लिए जाते जो अगर तांबे के मोल भी बिक जाएं तो बड़ी बात. ये उन्हें खजाने की तरह संजोए रहते हैं. जब ये किसी हौबी में जकड़े होते हैं, तो इन को घर, बच्चे, मैं कुछ दिखाई नहीं देता. सारा समय उसी में लगे रहते हैं. खानेपीने तक की सुध नहीं रहती. औफिस जाना तो मजबूरी होती थी. अब ये रिटायर हो गए हैं तो सारा समय हौबी को ही समर्पित हैं. लगता अगर मुख्य हौबी से कुछ समय बच जाए तो ये पार्टटाइम हौबी भी शुरू कर दें.

आजकल सिक्कों की मुख्य हौबी है, जिस में सिक्कों के बारे में पढ़नालिखना और दूसरों को सिक्कों की जानकारी देना कि यह सिक्का कौन सा है, कब का है आदि. इंटरनैट पर सिक्काप्रेमियों को बताते रहते हैं. सारा दिन इंटरनैट पर लगे रहते हैं. कुछ समय बचा तो सुडोकू भरना. यहां तक कि सुडोकू टौयलेट में भी भरा जाता है और मैं टौयलेट के बाहर इंतजार करती रहती हूं कि मेरा नंबर कब आएगा. आजकल सुडोकू कुछ शांत है. अब ये एक नई हौबी की पकड़ में आ गए हैं. इन को खाना पकाने का शौक हो गया है. जीवन में पहली बार कुछ काम की हौबी ने इन को पकड़ा है. मैं ने सोचा कुछ तो लाभ होगा. बैठेबैठे पकापकाया स्वादिष्ठ भोजन मिलेगा.

इन्होंने पूरे मनोयोग से खाना पकाना शुरू किया. पहले इंटरनैट से रैसिपी पढ़ते, फिर उसे नोट करते. बाद में ढेरों कटोरियों में मसाले व अन्य सामग्री निकालते. नापतोल में कोई गड़बड़ नहीं. जैसे लिखा है सब वैसे ही होना चाहिए. हम लोगों की तरह नहीं कि यदि कोई मसाला नहीं मिला तो भी काम चला लिया. ये ठहरे परफैक्शनिस्ट अर्थात सब कुछ ठीक होना चाहिए. सो यदि डिश में इलायची डालनी है और घर में नहीं है तो तुरंत कार से इलायची लाने चले जाएंगे. 10 रुपए की इलायची और 50 रुपए का पैट्रोल.

जब सारा सामान इकट्ठा हो जाता तो बनाने की प्रक्रिया शुरू होती. शुरूशुरू में तो गरम तेल में सूखा मसाला डाल कर भूनते तो वह जल जाता. फिर उस जले मसाले की सब्जी पकती. फिर डिश सजाई जाती. फिर फोटो खींच कर फेसबुक पर डाला जाता. फेसबुक पर फोटो देख कर लोग वाहवाह करते, पर जले मसाले की सब्जी खानी तो मुझे पड़ती. मैं क्या कहूं? सोचा बुरा कहा तो इन का दिल टूट जाएगा. सो पानी से गटक कर ‘बढि़या है’ कह देती. इन का हौसला बढ़ जाता. ये और मेहनत से नएनए व्यंजन पकाते. कभी सब्जी में मिर्च इतनी कि 2 गिलास पानी से भी कम न होती. कभी साग में नमक इतना कि बराबर करने के लिए मुझे उस में चावल डाल कर सगभत्ता बनाना पड़ता. किचन ऐसा बिखेर देते कि समेटतेसमेटते मैं थक जाती. बरतन इतने गंदे करते कि कामवाली धोतेधोते थक जाती. डर लगता कहीं काम न छोड़ दे.

मेरी सहनशीलता तो देखिए, सब नुकसान सह कर भी इन की तारीफ करती रही. इस आशा में कि कभी तो ये सीख जाएंगे और मेरे अच्छे दिन आएंगे. सच ही इन की पाककला निखरने लगी और हमारी किचन भी संवरने लगी. विभिन्न प्रकार के उपयोग में आने वाले बरतन, कलछियां, प्याज काटने वाला, आलू छीलने वाला, आलू मसलने वाला सारे औजारहथियार आ गए. चाकुओं में धार कराई गई. पहले इन सब चीजों की ओर कभी ये ध्यान ही नहीं देते थे. अब ये इतने परफैक्ट हो गए कि नैट पर विभिन्न रैसिपियां देखते, फिर अपने हिसाब से उन में सब मसाले डालते और स्वादिष्ठ व्यंजन बनाते.

अब देखिए मजा. कभी कुम्हड़े का हलवा बनता तो कभी गाजर का, जिस में खूब घी, मावा और सारे महीने का मेवा झोंक दिया जाता. हम दोनों कोलैस्ट्रौल के रोगी और घर में खाने वाले भी हम दोनों ही. अब इतना मेवामसाला पड़ा हलवा कोई फेंक तो देगा नहीं. सो खूब चाटचाट कर खाया. अब उन सब्जियों को भी खाने लगे, जिन्हें पहले कभी मुंह नहीं लगाते थे. एक से एक स्वादिष्ठ व्यंजन खूब घी, तेल, मेवा, चीनी में लिपटे व्यंजन. मेरे भाग्य ही खुल गए. इन की इस हौबी से बैठेबैठे एक से एक व्यंजन खाने को मिलने लगे. इतना अच्छा खाना खाने के बाद तबीयत कुछ भारी रहने लगी. डाक्टर को दिखाया तो पता चला कोलैस्ट्रौल लैबल बहुत बढ़ गया है. डाक्टर की फीस, खून जांच, दवा सब मिला कर कई हजार की चपत बैठी. घीतेल, अच्छा खाना सब बंद हो गया. अब उबला खाना खाना पड़ रहा है. अब बताइए इन की हौबी मेरे लिए मजा है या सजा?

दो राहें : किस रास्ते पर चल पड़ा था वो

वसन्त खाडिलकर पटेल रोड पर चला जा रहा था. एक ही विचार उसके मस्तिष्क में कौंध रहा था कि किसी भी तरह से उसे इस अपमान का बदला लेना है, परंन्तु क्यो? एका एक उसके मस्तिष्क में यह प्रश्न कौंध गया.वह ठिठक गया , अरे ये क्या सोचने लगा वह , पूनम का करता कसूर ?”नहीं आखिर पूनम ने ही तो उसे बुलाया,उसका ही अपराध है “, लेकिन वह इतना नीचे क्यो गिरा ,; वह फिर से सोचने लगा.इस तरह सभी घटनाएं उसके सामने स्पष्ट होने लगी. एलीट पार्क में बैठे हुए वह फिर सिगरेट के छल्ले बना रहा था; आज से दो वर्ष पहले वह इसी स्थान पर पूनम से मिला था.

“आजकल तुम इतना खोए क्यो रहते हो ”

” ‌‌‌  कुछ नही ” ‌‌‌वह बुदबुदाता

” पर मुझसे ‌‌‌क्या छिपाना ”

” नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ”

वह मुस्कराई और दोनों पटेल रोड पर चल पड़े. फिर एक कैफे में बैठ कर दोनों ने काफी पी. और हंसते हुए उठकर चलने लगे, पर फिर एक बार मौन दोनों ‌‌‌के बीच था.तभी एकाएक रमेश, पूनम का पुराना मित्र दिखा “हेलो पूनम ”

“हेलो रमेश”

“अरे भाई तुम तो दूज की चांद हो गयी हो पूनम , दिखाई ही नहीं देती ”

“नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं है मेरी तबियत ठीक नहीं रहती” पूनम ने कहा

“अरे तो मुझे खबर क्यो नही दिया ” रमेश बोला “अरे नहीं अब ठीक हूं ” पूनम ने बात को खत्म करने ‌की कोशिश की.

“अच्छा तो यही है आपके——–“रमेश ने बसन्त की ओर इशारा करते हुए कहा”अरे नहीं ये तो मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं ” पूनम ने बसन्त की ओर कनखियो से देखते हुए कहा.

“चलो ठीक है वरना मैं भी सोचूं इतना बेमेल तो नहीं ही होना चाहिए “रमेश ने हंसते हुए कहा.

“और———–” आगे बसन्त सुन न पाया क्योंकि वह पूनम से अलग हो कर दूसरी तरफ़ चला गया था.उसका मन विद्वेष ‌‌‌से भर गया” ये पूनम भी ‌‌‌क्याहै; जहरीली फूल,—तो क्या‌उसे मुझसे प्रेम नहीं है,मात्र दिखावा करती है, उसे सिर्फ धन से प्यार है” इसी तरह सोचते हुए वह चलता रहा, कि फिर उसे ऐसा लगने लगा कि शायद वह कुछ ग़लत सोच रहा है, आखिर इसमें पूनम का करता कसूर, उसने अपने आप से प्रश्न किया.”नहीं नहीं, पूनम तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझसे ही ‌‌‌प्रेम करती है ,—तब दोष किसका? उसका –”

” हां यही ठीक है ‌‌‌इसी तरह से उधेड़बुन में सोचते हुए ‌‌‌कब घर आगया पता ही नहीं चला. तभी नौकर ने खाना लगा दिया उसे खाने में तनिक भी स्वाद नहीं आ रहा ‌था , उसके दिमाग में रह रह कर रमेश केकहे शब्द गूंज रहे थे.इसके लिए वह खुद को जिम्मेदार मान रहा था.तनाव से उसके मस्तिष्क की शिराओं में दर्द होने लगा था. उसे लगा कि अब वह आगे कुछ भी सोचने की स्थति में नहीं है अब वह सोने की तैयारी कर रहा था तभी अचानक दरवाजे की ‌‌‌‌‌‌‌‌‌घंटी बज उठी उसने सोचा कि इतनी रात में कौन हो सकता है फिर भी उसने दरवाजा खोला तो देखा कि पूनम ‌‌‌सामने खड़ी थी. “तुम !”आश्चर्य से उसने कहा

“हां मैं “पूनम ने कहा ” तुम इतनी ‌‌‌रात में, लौट जाओ मेरे जख्मों पर नमक न लगाओ “” नहीं मैं तुमसे क्षमा मांगने आती हूं” पूनम ने विनम्रता से कहा ” नहीं, नहीं पूनम , तुम मुझे माफ़ कर दो ‌‌‌मेरी औकात ही नहीं मेरी वजह से तुम्हें नीचा दिखाना पड़ा “उसने कातर स्वर में कहा ‌

“ऐसा क्यो ,क्या तुम नहीं चाहते कि समाज में मेरा कोई स्थान न हो ?””ऐसा नहीं है पूनम ,तुम एक ऐसे पिता की‌ बेटी हो जो सिर्फ पैसे वाले ही‌नही है उनका समाज में बहुत बड़ा स्थान है और मैं एक बिन बाप मां का अनाथ कोई भी

कुछ कह सकता है।”बसन्त ने कटाक्षपूर्ण तरीके से कहा”अच्छा,तो क्या मुझे इस रात में थोड़ी सी जगह भी न दोगे .जगह तो मेरा सब कुछ है लेकिन मेरा समाज मुझे इसकी इजाजत नहीं देता है और मैं अनाथ हूं मुझे अपनी हैसियत का अंदाजा हो चुका है.”बसन्त ने बेबसी में कहा

” कुछ लोग कहें कहते रहे, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ” पूनम ने चेयर पर‌बैठते हुए कहा.”हो सकता है कि तुम्हें कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं हो पर मेरे साथ ऐसा नहीं है “बसन्त ने लगभग हारकर कहा

“ठीक है, मैं जा रही हूं पर एक बात याद रखना ,मैं निर्दोष हूं और तुमने मुझे समझने में बहुत भूल की है” पूनम चली आती ,बसन्त अवाक सा तकता रहता रह गया.

न जाने कब तक वह सोया रहता अगर नौकर उसे न जगाता ,आंख खुली तो उसनेे पाया कि नौकर उसे जगा रहा था”, मालिक अभी अभी एक आदमी यह ख़त दे गया है.

बसन्तअवाक सा ख़त पढ़ने लगा, “मेरे देवता, मेरे सर्वस्व,

आशा है आपको रात भर सुख की नींद आती होगी,मैं कल कुछ आपसे कहने आती थी, क्योंकि मुझे ‌‌‌‌कल ऐसा लगा‌कि प्यार दुनियाका वह  अनमोल सच है जिसके लिए कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता. नारी समाज के लिए एक खिलौना है जिसके बारे में पुरुषों ने कभी यह सोचा ही नहीं कि नारी के अंदर भावनाओं का एक सागर होता है लेकिन हया और बहुत कुछ ऐसा भी होता है कि वह खुद को जाहिर नही‌कर‌पाती संवेदनाओं को भी भीतर ही भीतर मरना पड़ता है.मैं सारी दुनियां छोड़ कर आयीथी यह बताने‌ की कोशिश कर रही थी कि‌रमेश एक‌गुन्डा किस्म आदमी है उसने मेरे पिता को ब्लेकमेल कर के मुझसे जबरदस्ती शादी करना चाहता है मैं इस जीवन में सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करती हूं लेकिन आपने मुझे ठुकराया अब मेरे जीवित रहने का कोई मतलब‌ही नहीं है.मैं जा रही हूं यह पत्र जब तक आप तक पहुंचेगा तब तक मैं जा चुकी होगी अनन्त की ओर

आपकी पूनम

पत्र आंसुओं से भीग चुका था. बसन्त पागलों की तरह पूनम के घर की ओर भागा जैसे उड़ते हुए पक्षी को पकड़ने की कोशिश कर रहा हो.

“बेटा बड़ी देर कर दी आने में, पूनम ने तुम्हारा बहुत इंतजार किया अब तो सब खत्म हो गया.” पूनम के पिता ने रोते हुए कहा ।बसन्त की पथराई आंखें अनन्त मे‌ पूनम को ढूंढ रही थी.

एक ट्रेन जहां चलती हैं लेडी डौन की

‘‘अरे हटोहटो मु?ो अंदर आने दो… नहीं उतरो आंटी, क्या यही एक ट्रेन है, जो अंतिम है, उतरो, उतर जाओ जगह नहीं है, दूसरी में चढ़ जाना 3 से 4 मिनट में एक लोकल ट्रेन आती है, फिर भी घर जाने की जल्दी में इसी में चढ़ना है…’’ ऐसी कहे जा रही थी, मुंबई की विरार लेडीज स्पैशल में एक युवा महिला, चढ़ने वाली 45 वर्षीय महिला को, जिसे हर रोज इसे सुनना पड़ता है, लेकिन घर का बजट न बिगड़े, इसलिए इतनी मुश्किलों के बाद भी वह जौब कर रही है, हालांकि कोविड के बाद उसे केवल 3 दिन ही औफिस आना पड़ता है, लेकिन इन 3 दिनों में औफिस आना भारी पड़ता है. कई महिलाएं भी उस दबंग महिला की हां में हां मिला रही थीं और उस महिला को उतरने के लिए कह रही थीं.

अबला नहीं सबला है यहां

यहां यह बता दें कि विरार लेडीज स्पैशल रोज चर्चगेट से चल कर हर स्टेशन पर रुकती हुई विरार पहुंचती है, लेकिन उतरने वालों से चढ़ने वालों की संख्या हमेशा अधिक रहती है. गेट के एक कोने में खड़ी महिला गोरेगांव उतरने का इंतजार कर रही थी, लेकिन वह मन ही मन सोच रही थी कि क्या वह उतर पाएगी क्योंकि इस विरार लेडीज स्पैशल में बोरीवली तक की किसी महिला यात्री को चढ़ने या उतरने नहीं दिया जाता क्योंकि बोरीवली लेडीज स्पैशल है, इसलिए विरार महिलाओं के कई गैंग, जो इस बात का इतमिनान करते हैं कि बोरीवली तक उतरने वाली कोई महिला इस ट्रेन में चढ़ी है या नहीं.

4-5 महिला गैंग, जिन में 7-8 महिलाएं हर 1 गैंग में होती हैं. अगर गलती से भी कोई महिला इस लोकल में चढ़ जाती है तो उसे ट्रेन के गैंग विरार तक ले जाते हैं. यहां यह सम?ाना मुश्किल होता है कि अबला कही जाने वाली महिला इतनी सबला कैसे हो गई.

कठिन सफर

असल में मुंबई की लोकल ट्रेन यात्रा के उस एक घंटे में एक महिला ही दूसरी महिला की शत्रु बन जाती है. मायानगरी की भागदौड़ में घरपरिवार के साथ कैरियर को भी संवारने का दबाव महिलाओं पर होता है. सुबह कार्यालय पहुंचने की जल्दी और शाम को घर लौटने की, इस के लिए महिलाएं बहुत कुछ ?ोलती हैं.

इस में सब से दुखदायी है औफिस से घर पहुंचने के लिए मुंबई से विरार की ट्रेन यात्रा, जहां महिला डब्बे में महिलाएं ही दूसरी महिलाओं की शत्रु बन जाती हैं. मुंबई से विरार के बीच की इस ट्रेन यात्रा में महिलाओं के गैंग का बोलबाला रहता है.

ऐसे में कई बार कई महिलाओं ने अपनी नासम?ा से जान तक गवां दी. सुबह निकली महिला चल कर नहीं, स्ट्रेचर पर मृत अवस्था में घर पहुंचती है. यहां सीट भी उन्हीं महिलाओं को मिलती है, जो उस महिला गैंग की सदस्य होती हैं अन्यथा कुछ भी कर लें, आप को मारपीट से ले कर अपनी जान भी गवानी पड़ सकती है.

दमदम मारपीट

ऐसी ही एक घटना घटी पिछले दिनों ठाणे पनवेल लोकल ट्रेन के महिला कोच में. तुर्भे स्टेशन पर सीट खाली होने पर एक महिला यात्री ने दूसरी महिला यात्री को सीट देने की कोशिश की, ऐसे में तीसरी महिला ने उस सीट को कब्जा करने की कोशिश की, पहले तीनों में बहस हुई, बाद में बात इतनी बढ़ी कि वे आपस में मारपीट करने लगीं. कुछ देर बाद मामला इस कदर बढ़ गया कि महिलाओं में बाल खींचना, घूंसा, थप्पड़ तक शुरू हो गए. इस मारपीट में महिला पुलिस आ गई. इस मामले में दोनों महिलाओं ने एकदूसरे के खिलाफ मामला दर्ज कराया. महिला पुलिस सहित करीब 3 महिलाएं इस विवाद में घायल हुईं.

वाशी रेलवे स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक एस कटारे ने जानकारी देते हुए बताया कि सीट को ले कर शुरू हुए विवाद में कुछ महिलाओं ने आपस में मारपीट की थी. इस मारपीट में एक महिला पुलिसकर्मी भी घायल हो गई. उस का इलाज कराया गया. इस के अलावा सरकारी कर्मचारी से मारपीट करने की वजह से एक महिला को गिरफ्तार भी किया गया.

शिकायत नहीं मुंबई लोकल के ट्रेन के इस सफर में बहस, मारपीट, कपडे़ फाड़ना, धक्के देना आदि होते रहते हैं, लेकिन सही तरह से वही महिला इन लोकल्स में सफर कर पाती है, जो झगडे़ से अलग किसी कोने में खड़ी रह कर अपने पसंद के गाने हैड फोन के द्वारा सुनते हुए खुश रहे. इन लोकल्स में सीट मिलना संभव नहीं और कोई आप को सीट छोड़ देने को कहे, तो हंसती हुई तुरंत सीट छोड़ कर खड़ा हो जाना ही ठीक रहता है ताकि आप सही सलामत अपनी जान ले कर घर पहुंच

Winter Special: शादी से पहले बनाएं अपनी फिटनैस

शादी का दिन दुलहन के लिए सब से खास दिन होता है. इस दिन खूबसूरत और फिट दिखना उस का हक है. सही डाइट और ऐक्सपर्ट की मदद से आप इस दिन को और भी खूबसूरत बना सकती हैं.

दिल्ली के लोकनायक अस्पताल की सीनियर डाइटिशियन डा. किरण का कहना है, ‘‘लोगों के लाइफस्टाइल और फूड हैबिट अलगअलग होने की वजह से सब की शारीरिक जरूरत भी एकदूसरे से अलग होती है. इसलिए अपनी फिटनैस को बरकरार रखने के लिए हैल्थ विशेषज्ञों की मदद जरूर लें और अपनी नई जिंदगी की शुरुआत फिटनैस के साथ करें.’’

डाइट

नाश्ते में ब्रैड, 1 अंडा व फ्रैश जूस लें. अखरोट व बादाम भी जरूर शामिल करें. इन में पाए जाने वाले प्रोटीन, फाइबर, फाइरोकैमिकल आप के दिल को स्वस्थ रखने के साथसाथ आप की बौडी की वेस्ट लाइन को भी बढ़ने से रोकते हैं.

दिन में एक बार दही जरूर खाएं, क्योंकि दही में जिंक, कैल्सियम और विटामिन बी होता है, जिस से आप की त्वचा कोमल बनी रहेगी.

शाम के वक्त पनीर से बनी चीजें ही खाएं. पनीर में प्रोटीन और कैल्सियम होता है, जो आप को पेट की बीमारियों से दूर रखता है. इस के सेवन से आप के शरीर की हड्डियां भी मजबूत होती हैं.

अगर आप मांसाहारी हैं, तो मछली का सेवन जरूर करें. इस में पाए जाने वाले प्रोटीन केशों के लिए लाभकारी होते हैं, जिस से उन में चमक आती है.

शाकाहारी हैं, तो हरी सब्जियों को उबाल कर खाएं. इस से आप की सेहत सही रहेगी. और पिंपल्स की परेशानी भी नहीं होगी.

ब्यूटी

चेहरे पर हर दिन सीटीएम यानी क्लींजिंग, टोनिंग व मौइश्चराइजिंग जरूर करें. इस से सारी मृत त्वचा निकल जाएगी है और चेहरा खिल उठेगा.

अगर आप के केश रफ हैं, तो उन की शादी से 4 महीने पहले ही मसाज शुरू कर दें और हेयर मास्क लगाएं. इस से केशों में चमक आने के साथसाथ उन की ग्रोथ भी सही होने लगेगी. इस से आप शादी वाले दिन मनचाहा हेयरस्टाइल बना सकती हैं.

2 महीने पहले से ही पैडिक्योर और मैनिक्योर करवाना शुरू कर दें ताकि हाथपैरों से सारी मृत त्वचा हट जाए और डैमेज नेल्स भी शेप में आ जाएं. आप मेहंदी वाले दिन मैनिक्योर से अपने हाथों की खूबसूरती में चार चांद लगा सकती हैं.

अपनी बौडी को स्पा टच जरूर दें. स्पा से आप की बौडी की सारी थकान दूर हो जाएगी और आप फ्रैश महसूस करने लगेंगी. बौडी मसाज, हैड मसाज,

फुट मसाज, हौट मसाज कई तरह के स्पा होते हैं, लेकिन दुलहन के लिए ब्राइडल मसाज सही होती है. शादी से 3 महीने पहले ही स्पा करवाना शुरू कर दें.

शादी के दिन अपनी त्वचा से मैच करता वाटरप्रूफ मेकअप ही करें ताकि आप लंबे समय तक फ्रैश महसूस कर सकें और खूबसूरत दिख सकें.

स्ट्रैस पर कंट्रोल

शादी के कामों में घर वालों की मदद करें.

अपनी शादी के लहंगे को खुद डिजाइन करें.

खुद प्लानिंग करें कि शादी में घर की डैकोरेशन कैसी होनी चाहिए.

परिवार वालों व दोस्तों से बातचीत करें.

डार्क चौकलेट खाएं. इस से भी स्ट्रैस काफी कंट्रोल में रहता है.

स्लिमट्रिम दिखने के लिए

लहंगे को नाभि के नीचे ही पहनें. इस से आप लंबी लगेंगी और आप का फिगर परफैक्ट दिखेगा.

अपनी स्किन से मैच करता कलर चुन कर भी आप स्लिम लग सकती हैं. स्लिम दिखने के लिए आप ऐक्सपर्ट की मदद जरूर लें.

अगर आप के शरीर का ऊपरी हिस्सा चौड़ा है, तो आप फुलस्लीव ड्रैस ही पहनें.

हैवी मेकअप करने के बजाय चेहरे के किसी एक भाग को फोकस करें.

यह भी ध्यान रखें

यदि आप चश्मा लगाती हैं और लेजर सर्जरी करवाने की सोच रही हैं, तो बेझिझक डाक्टर से बातचीत कर के सर्जरी करवाएं या फिर शादी के दिन लैंस लगाना चाहती हैं, तो  2 महीने पहले ही लैंस लगाना शुरू कर दें ताकि शादी के दिन लैंस में आप सहज महसूस कर सकें.

पैरों का विशेष ध्यान रखें. कई बार हील वाली चप्पलें ज्यादा पहनने की वजह से पैरों में सूजन आ जाती है. इसलिए आरामदायक चप्पलों का ही प्रयोग करें.

अधिकांश लड़कियां शादी के 1 सप्ताह पहले नाक में छेद करवाती हैं. लेकिन आप ऐसा बिलकुल भी न करें, बल्कि शादी से महीना भर पहले छेद करवा लें ताकि शादी नजदीक आने पर किसी तरह की तकलीफ न हो.

दांतों में सड़न की समस्या हो तो जल्द ही इस का इलाज करवाएं और फिर शादी के दिन खुल कर हंसें.

ठुड्डी के पास मेरा चेहरा आकार खोता जा रहा है, इसे रोकने के लिए मैं क्या कर करूं? 

सवाल 

मेरी उम्र 50 वर्ष है. मैं ने नोट करना शुरू किया कि ठुड्डी के पास मेरा चेहरा आकार खोता जा रहा है. इस प्रक्रिया को रोकने के लिए मैं क्या कर करूंबढ़ती उम्र में आंखों के आसपास की त्वचा का कैसे खयाल रखूं कृपया मार्गदर्शन करें?

जवाब

इस उम्र में आप को ऐंटीएजिंग फेशियल जैसे कोलाजनट्रिप्पल आर ष्शश्चश्चद्गह्म् श्चद्गश्चह्लद्बस्रद्ग जैसे फेशियल करवाने चाहिए. बढ़ती उम्र के कारण या किसी भी वजह से त्वचा लूज हो कर लटकना शुरू हो गई है या त्वचा में इलास्टिसिटी की कमी हो गई है तो इन सभी स्थितियों में ये फेशियल काफी कारगर व फायदेमंद हैं. इन फेशियल में शामिल प्रोडक्ट्स त्वचा को साइन्स औफ ऐजिंग से प्रोटैक्ट करते हैं. घर पर भी आप कुछ चीजें कर सकती हैं जैसे अंडे की सफेदी अपने फेस पर लगाएं. 20 मिनट बाद धो लें. इस से कुछ फर्क पड़ेगासाथ में हर आमंड औयल या देशी घी से मसाज करें. इस से भी स्किन को नरिशमैंट मिलती है और वह टाइट होनी शुरू हो जाती है. यह मैंटेनैंस के लिए सही उपाय हैमगर स्किन को ट्रीट कर के ?ार्रियों को कम करने के लिए क्लीनिक में ही जाना पड़ेगा. बाद में उसे मैंटेन करती रहें.

खुशियों के फूल – भाग 1 : किस बात से डर गई अम्बा

मिस्टर निनाद, आप और आपकी वाइफ कोरोना पोजिटिव आए हैं, लेकिन आपके सिम्टम्स बहुत माइल्ड हैं. इसलिए आप दोनों को अपने घर पर ही सेल्फ क्वॉरेंटाइन में रहना होगा. यह रही शहर की कोरोनावायरस हैल्प लाइन का नंबर. अगर आपकी तबीयत खराब लगे तो आप इस नंबर पर फोन करिएगा.आपको हॉस्पिल ले जाने का पूरा इंतजाम हो जाएगा. अभी आपको हौस्पिटलाइजेशन की कोई जरूरत नहीं. अब आप घर जा सकते हैं. गुड लक.”

निनाद और अम्बा  डॉक्टर की बातें सुनकर सदमे  में थे.कोरोना और उनको? दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी. करोना के खौफ से दोनों के चेहरों से मानो रक्त निचुड़ सा गया था.उन्हें लग रहा था, मानो उनके पांव तले जमीन न रही थी.

हॉस्पिटल से बाहर निकल कर निनाद ने अपनी पत्नी अम्बा  से कहा ,”प्लीज़ अम्बा, घर  चलो, तुम्हारी भी तबीयत ठीक नहीं है. कोरोना का नाम सुन कर मैं हिल गया हूं. कोरोना से मौत की इतनी कहानियाँ सुन सुन कर मुझे दहशत सी हो रही है. बहुत  घबराहट हो रही है. तुम साथ होगी तो मेरी हिम्मत बनी रहेगी. प्लीज अम्बा, ना मत करना. फिर घर जाओगी तो मां को भी तुमसे बीमारी लगने का डर होगा.”

निनाद के मुंह से  प्लीज और  घर जाने की रिक्वेस्ट सुन अम्बा  बुरी तरह से चौंक गई थी. वह मन ही मन सोच रही थी, “इस बदज़ुबान और हेकड़ निनाद  को क्या हुआ? शायद तीन  महीने मुझसे अलग रहकर आटे दाल का भाव पता चल गया है इन्हें. इस बीमारी की स्थिति में किसी और परिचित या रिश्तेदार के घर जाना भी ठीक नहीं. कोई घर ऐसा नहीं जहां मैं इस मर्ज के साथ एकांत में रह सकूं. इस बीमारी में माँ के पास भी जा सकती. फिर निनाद की उसे अपने घर ले जाने की रट देख कर मन में कौतुहल जगा था, देखूं, आखिर माजरा क्या है जो ज़नाब इतनी मिन्नतें कर रहें हैं मुझे घर ले जाने के लिए. मन में दुविधा का भाव था, निनाद के घर जाये या नहीं. उससे तलाक की बात भी चल रही है. कि तभी हॉस्पिटल की ऐम्बुलेंस आगई और निनाद ने ऐम्बुलेंस का दरवाज़ा उसके लिए खोलते हुए उसे कंधों से उसकी ओर लगभग धकेलते से हुए उससे कहा, “बैठो अम्बा, क्या सोच रही हो,’’ और वह विवश ऐम्बुलेंस में बैठ गई.’’

घर पहुंचकर निनाद अम्बा  से बोला, “मैं पास  की दुकान को दूध सब्जी की होम डिलीवरी के लिए फोन करता हूं.”

“ओके.”

दुकान को फोन कर निनाद  नहा धोकर अपने बेडरूम में लेट गया और अम्बा  घर के दूसरे बेडरूम में. अम्बा  को तनिक थकान हो  आई थी और उसने आंखें बंद कर लीं. उसकी बंद पलकों में बरबस निनाद के साथ गुज़रा समय मानो सिनेमाई रील की मानिंद ठिठकते ठहरते चलने लगा  और वह बीते दिनों की भूल भुलैया में अटकती भटकती खो गई.

वह सोच रही थी, जीवन कितना अनिश्चित होता है. निनाद  से विवाह कर वह कितनी खुश थी, मानो सातवें आसमान में हो. लेकिन उसे क्या पता था, निनाद  से शादी उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल होगी.

एक सरकारी प्रतिष्ठान में वैज्ञानिक अम्बा  और एक बहुराष्ट्रीय प्रतिष्ठान में वैज्ञानिक निनाद  का तीन वर्षों पहले विवाह हुआ था. निनाद ने उस दिन  अपने शहर की किसी कॉन्फ्रेंस में अपूर्व  लावण्यमयी अम्बा  को बेहद आत्मविश्वास  से एक प्रेजेंटेशन  देते सुना था, और वह उसका मुरीद हो गया. शुष्क, स्वाभाव के निनाद को अम्बा  को देखकर शायद पहली बार प्यार जैसे रेशमी, मुलायम जज़्बे का एहसास हुआ था. कॉन्फ्रेंस से घर लौट कर भी अम्बा  और उसका ओजस्वी धाराप्रवाह भाषण उसके चेतना मंडल पर अनवरत छाया रहा. उसके कशिश भरे, धीर गंभीर सौंदर्य ने सीधे उसके हृदय पर दस्तक दी थी और उसने लिंकडिन पर उसका प्रोफाइल ढूंढ उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की थी. उसके माता पिता की बहुत पहले मृत्यु हो चुकी थी.इसलिए उसने स्वयं  उसे फोन कर और फ़िर उससे मिलकर उसे विवाह का प्रस्ताव दिया था.

अम्बा  की विवाह योग्य उम्र हो आई थी. सो मित्रों परिचितों से निनाद  की नौकरी, घर परिवार और चाल चलन की तहकीकात कर उसने निनाद  से विवाह करने की हामी भर दी.

अम्बा  की मात्र मां जीवित थी. वह  बेहद गरीब परिवार से थी. पिता एक पोस्टमैन थे. उनकी मृत्यु उसके बचपन में ही हो गई थी. तो प्रतिष्ठित पदधारी निनाद  का विवाह प्रस्ताव अम्बा  और उसकी मां को बेहद पसंद आया.शुभ मुहूर्त में दोनों का परिणय  संस्कार संपन्न हुआ .

विवाह  के उपरांत सुर्ख लाल जोड़े में सजी, पायल छनकाती अम्बा  निनाद के घर आ गई, लेकिन यह विवाह उसके जीवन में खुशियों के फूल कतई न खिला सका. निनाद एक बेहद कठोर स्वाभाव  का कलह  प्रिय इंसान था. बात-बात पर क्लेश  करना उसका मानो  जन्म सिद्ध अधिकार था. फूल सी कोमल तन्वंगी अम्बा  महीने भर में ही समझ गई  कि यह विवाह कर उसने जीवन की सबसे गुरुतर  भूल की है. दिनों दिन पति के क्लेश से उसका  खिलती कली सा मासूम मन और सौंदर्य कुम्हलाने  लगा.

निनाद  बात बात पर उसे अपने से कम हैसियत के परिवार का तायना देता.गाहे बगाहे  वह मां से मिलने जाती तो उस से लड़ता. मामूली बातों पर उससे उलझ पड़ता. बात बात पर उसे झिड़कता.

अम्बा  एक बेहद सुलझी हुई, समझदार और मैच्योर युवती  थी. वह भरसक निनाद को अपनी ओर से कोई मौका नहीं देती कि वह क्रुद्ध  हो लेकिन दुष्ट निनाद  किसी न किसी बात पर उससे रार  कर ही बैठता.

निनाद अम्बा  के विवाह को तीन  वर्ष बीत  चले.पति के खुराफ़ाती स्वभाव से त्रस्त अम्बा  कभी-कभी सोचती, पति से अलग होकर उसे इस यातना से मुक्ति मिल जाएगी.जिस दिन गले तक निनाद के दुर्व्यवहार से भर जाती, मां से अपनी व्यथा कथा साझा  करती.उससे अलग होने की मंशा जताती. लेकिन पुरातनपंथी मां हर बार उसे धीरज रखने की सलाह देकर चुप करा कर वापस अपने घर भेज देती.

महुए की खुशबू – भाग 3

तड़के चारों तरफ की हलचल ने मेरी आंख खोल दी. साढे 5 बजे थे, पर लग रहा था जैसे पूरा गांव काम पर लग गया था. गाय भैंसों के तबेले में काफ़ी काम चल रहा था. महिलाएं भी चूल्हेचौके की तैयारी में थीं. कहीं हैंडपंप चल रहा था तो कहीं कुओं से पानी खींचा जा रहा था. कोई कपड़े धो रहा था तो कोई मिट्टी से पीतल के बरतन रगड़ रहा था. गांव जाग चुका था.

मैं भी लोटा ले कर खेत हो आया. आदत नहीं थी आड़ देख कर खुले में बैठने की. अपने घर, कसबे और गांव का अंतर मुझे दिखने लगा और पहली बार मुझे लगा कि इस वातावरण में खुद को ढालने के लिए खासी मेहनत ही नहीं, बहुत सारा त्याग भी करना पड़ेगा. उस पुस्तक वाले चित्रकार के चित्र में लोटा, आड़ थोड़ी न दिखाया गया था.

कुंए पर पहली बार पानी ख़ुद खींच कर स्नान कर के कपड़े पहन कर रेडी होते ही चाय की तलब ने अपना काम करना शुरू कर दिया था. जीभ चाय का जुगाड़ ढूंढने लगी थी. पर गांव में कोई होटल नहीं था. इधरउधर देखा, बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

तभी वही कल वाले बुजुर्ग आते दिखाई दिए और अभिवादन कर आत्मीयता से निकट आ बैठे, “’और सुनाओ  माटसाब, कैसी रही रात, कौनो दिक्कत?” के साथ ही उन्होंने किसी राधे को आवाज़ दी जो कुंए पर कपड़े पटक रहा था. राधे कपड़े वैसे ही छोड़ कर पास आ गया.

बुजुर्ग उस से बोले, “जल्दी से नहा लेयो और दिनभर माटसाब के साथ रहो काहे से कि आज इन का पहला दिन है. अब जे गांव में रहेंगे, यहीं. कौनो दिक्कत न होय के चाही समझे, जाओ चाय ले आओ पहले.” राधे तुरंत बोला, “आप बैठा, हम गुड़ की चाय बनाये लात.”

बुजुर्ग ने मेरा चार्ज जवान राधे को सौंप दिया था. बुजुर्ग कुछ देर उसे अलग ले जा कर समझाते रहे और मुझ से विदा लेते हुए बोले. “हम इसे सहेज दिए हैं आप को. जो चाहिए, इसे बता दीजिए. अपना आदमी है.”  मैं ने झुक कर बुजुर्ग का आभार माना. वे हंसते हुए खेतों की तरफ़ चले गए.

मुझे कुछ रिलैक्स फील हुआ कि चलो, मैं अकेला नही हूं और लोग जुड़ते जा रहे हैं. राधे कुछ ही देर में आ गया और हम दोनों खेतों की तरफ़ निकल पड़े. अभी 8 ही बजे थे. स्कूल तो 10 बजे खुलना था.

ज़ाहिर था कि ये खेत बुजुर्ग के ही थे. राधे सब बताता चल रहा था- कौन तिकड़मी है, कौन सज्जन, कौन नेता है और कौन सरपंच. प्रधानजी, पटवारीजी, पेशकारजी, पुलिस चौकी के मुंशी जी, दारोगा जी, वक़ील साहब, फौजदारी-दीवानी तहसील, ब्लौक दफ़्तर, नहर दफ़्तर, बिजली औफिस, मंडी, आढ़त और पता नहीं क्याक्या…राधे की बातें चलती ही जा रही थीं.

गांव का वह बाल पुस्तक चित्र अब स्वच्छता छोड़ छींटदार होता जा रहा था और अचानक चित्र के रंग मुझे उतने चटक नहीं लग रहे थे. अब मुझे यह भी लगा कि गांव शब्द चित्र को शहरी बच्चों के मन में अतिशुद्ध रूप में ही दिखाया गया था.

हम दोनों बात करते हुए एक खाद की दुकान के सामने आ खड़े हुए, जिस के  बाहर एक टप्पर में चाय बनती दिखाई दी. चाय में शक्कर डलते देख मेरी जान में जान आई क्योंकि सवेरे वाली गुड़ की चाय से मेरा मूड और मुंह कसैले हो गए थे. सुनी तो थी पर गुड़ की चाय आज पी पहली बार. पर 2 कुल्हड़ शक्कर  वाली चाय पीने से लगा जैसे जीभ पर चीनी चिपक गई हो. कुल्ला कर के जब  हैंडपंप का खारा पानी पिया तब जा कर राहत महसूस हुई.

अचानक खाद की दुकान का शटर उठने की घड़घड़ाहट ने मेरा ध्यान खींचा. एक सज्जन दुकान खोल कर अंदर जाने की तैयारी कर रहे थे. उन्हें देखते ही लगा कि इन्हें अभीअभी कहीं देखा है. राधे ने ‘प्रसाद बाबू’ आवाज़ दे कर उन्हें बुलाया. प्रसाद बाबू ने राधे के साथ मुझ अजनबी को देख हम दोनों को दुकान में आने का इशारा किया.

“आप तो कल ही बस से उतरे थे न तिगाला पर?” ओहहो, तो मेरे आने की ख़बर फैल चुकी थी. गांव का सूचनातंत्र इतना चुस्त होता है, आज आंखों से देख लिया. बातचीत में अनोखी बातें पता चलीं. ये सज्जन मेरे स्कूल में ही सहायक शिक्षक थे. बगल के गांव में रहते थे. ख़ुशी हुई अपने एक सहकर्मी से मिल कर, पर इस वक़्त तो उन्हें स्कूल के लिए तैयार होना था, हालांकि, वे खाद भंडार खोल रहे थे…

दुसरी खबर जो उन्होंने दी, उस ने मुझे चौंका दिया. मेरे कल सवेरे बस से उतरने की ख़बर उन्हें कल दोपहर को मिली थी सुधा बहनजी से. ये बहनजी के गांव के ही थे जो आधे कोस पर था. सुधा बहनजी को खबर लग चुकी होगी, कल ही मुझे बताया गया था, यह बात सही निकली. कौन हैं ये सुधा बहनजी? मैं उत्सुक हो चला.

“आप नाश्ता कर लीजिए, मिलते हैं स्कूल में,”  बोल कर वे दुकान की गद्दी सहेजने लगे और मैं व राधे सड़क पर निकल गां की तरफ चल पड़े. मुझे यह समझते देर न लगी कि स्कूल की नौकरी यहां साइड बिजनैस था. स्कूल की नौकरी पर गए, नहीं गए, सब चलता है. घर की दुकान छोड़ कर कोई नौकरी करता है क्या?

राधे मुझे स्कूल में छोड़ कर चला गया और मैं स्कूल का चक्कर मार कर एक क्लासरूम में आ गया. ज़मीन पर बिछी बेतरतीब दरियों को झटक कर उन पर जमीं धूल उड़ाई और आलों में रखी अगड़मबगड़म चीजों की साफसफाई में जुट गया. दीवारों पर मकड़ी के जाले लगे पड़े लटक रहे थे और पूरे फर्श पर किताबकौपियों के पन्ने, टूटी पैंसिल, चाक,  और बकरी व कुत्ते की लीद भी बिखरी पड़ी थी. गंदगी देख कर मुझे जनून सा चढ़ गया कि क्लासरूम को आज साफ कर के ही रहूंगा. मेरे स्कूल में आने का असर कम से कम यह ख़ाली कक्षा ही देख ले.

“नमस्ते जी, मैं सुधा.” मेरे पीछे एक महिला की आवाज़ सुनाई दी और मैं मुड़ कर देखने लगा. औसत ऊंचाई और मध्यम कदकाठी की महिला दरवाज़े पर हाथ जोड़े खड़ी थी.  मेरे हाथ में झाड़ू देख वह मुसकरा उठी और मैं थोड़ा झेंप कर उस के सामने आ कर खड़ा हो गया. अभिवादन के बाद परिचय हुआ और अचानक मुझे ध्यान आया कि महिला तो वही थी जो कल बस से उतरते ही दिखी थी और मेरे बारे में किसी को कुछ बता रही थी.

वह भी मुझ से यही बोली कि कल देखते ही वह समझ गई थी कि यह परदेसी व्यक्ति गांव के स्कूल का नया टीचर ही होना चाहिए. हम दोनों के बीच वातावरण सहज हो चला था. उस ने मेरी पूरी जानकारी ली और अपना बताना शुरू किया.

वह पड़ोस के गांव में ही रहती थी और ख़ुद से ही गांव की महिलाओं की भलाई के लिए कुछ अच्छा करने के विचार से उन्हें संगठित करने का प्रयास कर रही थी.

गरीब और अनपढ़ महिलाओं के समूह बनाने का कार्य उस ने लगभग 2 वर्ष पूर्व शुरू किया था. धीरे-धीरे  गांव की महिलाओं का आनाजाना शुरू हुआ और समूह एक मनोरंजन व मिलनेजुलने का केंद्र बन चला जहां चूल्हेचौके, सिलाईबुनाई की बातों के अलावा नियमित अति लघु बचत की बात भी सुधा जी क़रतीं.

हर महीने एक बैठक होती, जिस में हर महिला 5 या 10 रुपए एक टिन के डब्बे वाली गुल्लक में डालती और सुधा जी एक कौपी में सब का हिसाबखाता लिखती जातीं. गुल्लक में अब तक दोएक हज़ार रुपए जमा हो चुके थे जिसे महिलाओं को अतिलघु ऋण राशि यानी सौपचास रुपए के रूप में दिया जा रहा था जिस से वे कभी डलिया, बरतन खरीदतीं तो कभी झोपड़ी ठीक करवातीं.

सुधा जी का यह महिला समूह, लघुतम बैंक, आसपास काफ़ी लोकप्रिय हो चला था. उन के पति आयुर्वेद के डाक्टर थे. घर में ही दवाखाना था. सस्ती व कारगर दवाइयां देने की वजह से उन का भी इलाके में नाम था. घर की खेतीबाड़ी थी, सो, कोई आर्थिक दिक्कत नहीं थी.

उन के दोनों बच्चों के नाम मेरे ही स्कूल में लिखे थे. पर पढ़ाईलिखाई ख़ास न होने से सुधा जी दुखी थीं. मुझे समझते देर न लगी कि एक मां अपने बच्चों की शिक्षा की आशा लिए भी मेरे पास आई थी. उन्होंने बताया कि उन के 2 वर्षों के ज़मीनी  कार्य के अब अच्छे सकारात्मक परिणाम मिलने लगे थे और अब उन के लिए 2 मुख्य कार्य करने ज़रूरी थे. पहला कार्य, महिला समूह शक्ति के द्वारा गांव में लगी महुआ शराब की भट्टियों को हटाना और दूसरा, गांव के बच्चों को नियमित स्कूल भेजना ही नहीं बल्कि उन्हें वहां तीनचार घंटे बैठाना ताकि वे क़ायदे से पढ़ने की आदत डाल सकें.

ध्यान से देखने पर पता चल ही गया था कि दोनों बातों का आपस में गहरा संबंध था. सुधा जी के साथ हुई लंबी वार्त्ता ने मेरे अंदर उत्साह का संचार किया. मैं समझ गया कि अब आने वाले समय में हम दोनों को मिल कर कार्य करना होगा ताकि इस विद्यालय की शक्ल-सूरत ही नहीं, बल्कि सीरत भी बदल सके.

महुए की भट्टियां सिर्फ नशा ही नहीं बेच रही थीं बल्कि घरगांव में लड़ाईझगड़े, मारपीट, रोनाधोना मचाए रहने का भी कारण थीं. मजदूरीमेहनत का एक बड़ा हिस्सा निहोरे की जेब में जा रहा था जिस की वजह से गांव के  बच्चों पर विपरीत असर पड़ रहा था.

सच तो यह भी था कि कुछ बच्चे भी महुए का  नशा करने लगे थे. यह सब तुरंत रोकने की ज़रूरत सभी को लग रही थी पर बिल्ली के गले में घंटा बांधे कौन वाली बात थी. गांव मे फैली महुए की नशीली खुशबू को खत्म करने के लिए स्थानीय महिलाओं का लामबंद होना ज़रूरी था और यह कार्य सुधा जी ने बख़ूबी अपने हाथों में ले लिया था.

कसर थी तो बस विद्यालय से मदद मिलने की जो उन्हें अब तक मिल नहीं पाई थी क्योंकि यहां के वातावरण में भी स्थानीय महुआ घुलमिल चुका था. मेरा परदेसी होना सुधा जी को और उन का स्थानीय होना मुझे, इस मिशन के लिए वरदान ही लगा. महुए की क्यारी को हटा कर ज्ञान के केसर की पौध लगाने के लिए उचित मौसम की ज़रूरत थी जो अब बदलने वाला था.

समय बीत चला और मैं गांव के रहनसहन में ढल चला था. धीरेधीरे मेरी संगत बढ़ने लगी और मेरे दोनों सहकर्मी भी हमारे साथ जुड़ गए. सरकारी बजट का धन सही दिशा में लगने लगा. स्कूल के प्रांगण अब गुलज़ार हो चले थे और बच्चों की आमद में भारी इज़ाफ़ा हुआ. स्कूल में घंटा भी लग गया और तिपायी पर बड़ा सा मटका भी आ टिका और स्कूल का नाम भी नए पेंट से रंग दिया गया.

कुछ ही महीनों बाद स्कूल के मैदान में झूले भी लग गए. बचपन के उस कलाकार ने गांव के स्कूल का जो चित्र मनमस्तिष्क में चिपका दिया था, अब आंखों के सामने साकार हो चला था. सुधा जी की जीवटता के कारण स्थानीय प्रशासन भी साथ आया और महुए की भट्टियां जमींदोज हो गईं.

सुधा जी के कानों में मैं ने एक मंत्र और फूंक दिया, मुफ़्त प्रौढ़ शिक्षा का, जिसे सुनते ही उन्होंने महिला समूहों को इस का आधार बनाने की बात कर के मेरे मन की बात कर दी.

बच्चे हों या बड़ेबुजुर्ग, सभी को  जातिधर्म, अगड़ेपिछड़े की दुर्गंध वाली महुए की भट्टी से निकाल कर शिक्षा व ज्ञान की ताज़ी हवा में लाने की इच्छा अब हक़ीक़त बनती नज़र आने लगी थी. नन्हें बच्चों की फ़ितरत तो केसर के फ़ूलों की तरह खिलने और सुगंधित होने की थी, महुए के फूल की शराब बन गंधाने की नहीं.

टीना दत्ता और अर्चना गौतम के बीच छिड़ी जंग, घर वालों ने किया ट्रोल

सलमान खान का विवादित शो bigg boss16 हर साल की तरह टीआरपी रेस में शामिल है और टॉप चल रहा है. वही शो में कंटेस्टेंट की नोकं-झोंक फैंस को काफी पसंद आ रही है. फैंस बिग बॉस 16 के शो पर जमकर कमेंट बरसा रहे है. हर दिन नए मोड़ शो को ओर बेहतर बना रहा है. हालिया एपिसोड़ में एक बार फिर प्रिंयका चाहर चौधरी और अंकिचा गुप्ता एक दूसरे से लड़ते नज़र आए.

आपको बता दें, कि बिग बॉस ने घरवालों को एक टास्क दिया था, जिसमें सभी कंटेस्टेंट को एक दूसरे के बारे में खुलासा करना था.इस कार्य के दौरान अंकित और प्रिंयका के बीच भी जमकर लड़ाई हुई. इस बीच अंकित के चक्कर में प्रिंयका और सौंदर्या भी आपस में लड़ने लगे. वही, टास्क के दौरान एक और वाक्या सामने आया है. इस दौरान टीना दत्ता और अर्चना गौतम के बीच जंग छिड़ गई.

 

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टीना दत्त ने अर्चना को लगाई फटकार

बिग बॉस में टास्क के दौरान उन्हे बताया गया कि जो स्टेंटमेंट पढ़ी है उस बात को उनके लिए किसने कहा है. इस दौरान टीना दत्ता को एक स्टेटमेंट पढ़ने के लिए जब कहा गया तो उसमे लिखा था, कि “तुम्हारे केक के भूखे थोड़ी ना है हम और उसके बाद तुम ऐसी बात बोल रही हो, कि मेरा कुत्ता मर गया है अरे यार क्या हो गया उम्र हो गई थी तो मरेगा ही ना.तुम्हारे बर्थडे वाले दिन थोड़ी मरा है हद हो गई यार” यह बयान अर्चना टीना से कहती है. जिससे सुनते ही टीना का पारा हाई हो जाता है और वो समझ जाती है कि ये बात अर्चना गौतम ने बोली है. और अपने गुस्से को शांत करने के लिए वो उनके मुंह पर कीचड़ फेंक देती है.

 

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ये सब अर्चना के बोलने पर साजिद खान अर्चना को गलत ठहराते है और अर्चना के बयान की निंदा करते हुए टीना के प्रति दुख जताते है. उन्होनें कहा कि अर्चना को ये सब बातें नहीं बोलनी चाहिए. इसी बीच निमृत भी कहती है कि वो सही बोल रहे है अर्चना ने गलत कहा है.

Hansika Motwani ने पति के साथ मनाई हल्दी सेरेमनी, सूफी नाइट में की ड्रीम एंट्री

इन दिनों मशहूर एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी की शादी मीडियो की सुर्खियों में बनी हुई. जी हां, हंसिका अपने बॉयफ्रेंड और बिजनेस पार्टनर सोहेल खतुरिया के साथ शादी करने जा रही है जिसकी तैयारियां भी जोर-शोर से शुरु हो चुकी है. एक्ट्रेस 4 दिसंबर को सोहेल के साथ सात फेरे लेंगी और शादी के बंधन में बंध जाएगी.

आपको बता दे, कि सोशल मीडिया दोनों का हल्दी और महंदी का वीडियो शेयर किया गया है. जिसमें दोनों हल्दी सेरेमनी एन्जॉए करते दिख रहे है. दोनों की वीडियो के साथ कुछ तस्वीरें भी मीडिया की लाइलाइट में बनी हुई है. बीते शुक्रवार की रात हंसिका मोटवानी और सोहेल खतुरिया का संगीत सेरेमनी मनाई थी.जिसमें कपल ने सूफी नाइट का आयोजन करवाया था. इससे जुड़ा वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है. सूफी नाइट में दोनों शानदार एंट्री करते दिख रहे है. वीडियो में हंसिका मोटवानी का लुक देखने लायक है.

 

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संगीत सेरेमनी से जुडे वीडियो इंस्टाग्राम पर शेयर किया है जिसमें हंसिका मोटवानी पति का हाथ पकड़कर वहां एट्री करती दिख रही है. इस खास मौके पर हंसिका ने गोल्ड़न शरारा कैरी किया है साथ ही माथे पर टीके के साथ एक झूमर भी पहना हुआ है. जिसमें एक्ट्रेस बेहद खूबसूरत लग रही है. दूसरी ओर सोहेल खतुरिया का लुक भी देखने लायक है जिसकी तारीफें फैंस जमकर कर रहे है. इस वीडियो के साथ कैप्शन में सोहेल ने “ड्रीम एंट्री” लिखा है

वेडिंग प्लानिंग

 

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बता दें, कि शादी से पहले और हेल्दी, मंहदी , संगीत सेरेमनी के आलावा दोनों कपल ने शनिवार की रात एक कोकटेल पार्टी रखी थी. जिस को दोनों काफी एन्ज़ॉय किया. वहीं दोनों की शादी भी बेहद ही ग्रैंड होनें वाली है हालांकि हंसिका और सोहेल की शादी में परिवार और खास दोस्त ही शामिल होंगे. इसके अलावा मुंबई में ग्रैंड वेडिंग रिसेप्शन को भी आयोजन किया जाएगा, जिस पार्टी में तमाम हस्तियां शामिल होगी.

इश्क का भूत : सर पर चढ़ा प्यार का खुमार

जब इश्क का भूत सिर चढ़ कर बोलता है तब दुनिया में कुछ नजर ही नहीं आता. न मानप्रतिष्ठा की परवा न कैरियर की चिंता. शेफाली भी ऐसी ही सिरफिरी लड़की थी, उसे जब जीत नजर आया, तो वह उस पर जीजान से फिदा हो गई. बेशक जीत को भी उस का साथ अच्छा लगा, लेकिन जीत को पहले अपनी बहन सुमन के विवाह की चिंता थी. शेफाली रईस बाप की औलाद थी, जिस ने न गरीबी देखी थी और न ही भूख. वह अपने मन की करना जानती थी. वह गर्ल्स होस्टल में रहती व मौजमस्ती करती. उस के पिता की पेपरमिल थी. वे एक जानेमाने उद्योगपति थे, सो शेफाली के पास एक से बढ़ कर एक ड्रैसेस का अंबार लगा रहता. हमेशा सजीसंवरी, ज्वैलरी से लकदक, हाथ में पर्स लिए बाहर घूमने के अवसर तलाशती शेफाली की पढ़ने में कोई रुचि नहीं थी. कालेज में ऐडमिशन तो उस ने समय बिताने के लिए ले रखा था. उसे तलाश थी ऐसे युवक की जो दिखने में हैंडसम हो और उस के आगेपीछे घूमे.

जीत से उस की नजरें कालेज के फंक्शन में मिलीं और उसे उस में सारी बातें नजर आईं जिन की उसे तलाश थी. वह हौलेहौले बोलता और किसी फिल्मी नायक सा उस के ईदगिर्द डोलता. अंधा क्या चाहे, दो आंखें. शेफाली खर्च करने के लिए तैयार रहती, दोनों खूब घूमते. महानगरों में वैसे भी कौन किसे जानता है या कौन किस की परवा करता है. पौश इलाके के होस्टल में रह रही शेफाली के पास जीत बाइक ले कर आता. वह अदा से इतरातीलहराती उस के संग चली जाती.

जब लौटती तो सहेलियों को अपने रोमांस के किस्से बता कर इंप्रैस करती. चूंकि उस की सहेलियां स्टडी में व्यस्त थीं, उन्हें तो अपने रिजल्ट की अधिक फिक्र रहती. वे उस की कहानी सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं लेती थीं.

इधर जीत भी पढ़ाई में पिछड़ता चला गया. उस का सारा वक्त शेफाली के बारे में ही सोचसोच कर निकल जाता. शेफाली के दिए गिफ्ट उसे भारी तोहफे नजर आते. वह उसे कभी टीशर्ट देती, कभी ब्रेसलेट तो कभी गौगल्स. वह खुद को हीरो से कम नहीं समझता. वह यही समझता कि शेफाली उस से विवाह करेगी और वह एक उद्योगपति का दामाद बन कर मालामाल हो जाएगा.

इधर शेफाली जीत संग आउटिंग पर थी, उधर उस के पापा अशोक ने प्राइवेट डिटैक्टिव से सारी जानकारी इकट्ठी करवा ली थी कि वह कहां जाती है, क्या करती है.

शेफाली के पापा अशोकजी ने जमाना देखा था. वे पल भर में सारा माजरा समझ गए थे. उन्हें समझ आ गया कि उन की लाडली महज दिलबहलाव कर रही है. पढ़ाई में उस का मन नहीं लग रहा.

जीत जिस तरह से बेझिझक शेफाली से तोहफे ले रहा था, इस से अशोकजी को यह भी समझ में आ गया कि इस लड़के में कोई स्वाभिमान नहीं है वरना वह इस तरह शेफाली की दी वस्तुएं न स्वीकारता. जीत का फंडा समझने में अशोकजी को ज्यादा समय नहीं लगा, क्योंकि वे तो खुद व्यवसायी थे और जीत के प्रोफैशनल प्रेम को पहचान गए थे.

शेफाली के लिए उन्होंने विदेश से पढ़ाई कर के लौटा एमबीए लड़का विजय तलाश लिया था. शेफाली ने जब विजय को देखा तो देखती ही रह गई. वह स्टाइलिश और अमेरिकन अंगरेजी बोल रहा था. उसे जीत को भुला देने में एक मिनट भी नहीं लगा.

जीत देखता रह गया और शेफाली विजय के साथ शादी कर हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड चली गई.

इश्क का भूत तो धन की चमक के आगे एक पल भी नहीं ठहर पाया. वे आज के युवा ही क्या जो इश्क के लिए जिंदगी बरबाद करें. अलबत्ता जीत को संभलने में एक साल लगा, पर जबकि वह दिल से नहीं मतलब की खातिर शेफाली से जुड़ा था. अब उस के सामने अपनी युवा बहन की जिम्मेदारी थी. वह नहीं चाहता था कि कोई उस के चालचलन का हवाला दे कर उस की बहन के रिश्ते को मना करे. जीत की मां को यही तसल्ली थी कि उस का बेटा एक बेवफा के प्यार में ज्यादा नहीं भटका.

 

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