कहने को तो अलका और संदीप को कोरोना से ठीक हुए 2 महीने हो चुके थे पर अब भी अजीब सी कमजोरी थी, जो जाने का नाम ही नहीं ले रही थी. कहां तो रातदिन भागभाग कर पहली मंजिल से नीचे किचन की तरफ जाने के चक्कर कोई गिन ही नहीं सकता था पर अब तो अगर उतर जाती तो वापस ऊपर बैडरूम तक जाने में हालत पतली हो जाती थी. संदीप ने तो ऊपर ही बैडरूम में वर्क फ्रौम होम शुरू कर दिया था. थक जाते तो फिर आराम करने लगते पर अलका… वह क्या करे, हालत संभलते ही अपना चूल्हाचौका याद आने लगता.
बड़ौत के ही एक अस्पताल में 15 दिन ऐडमिट रहे थे अलका और संदीप. बेटे सुजय का विवाह रश्मि से सालभर पहले ही हुआ था. दोनों अच्छी कंपनी में थे. अब तो काफी दिनों से वर्क फ्रौम होम कर रहे थे.
सुंदर सा खूब खुलाखुला सा घर था. नीचे किचन और लिविंगरूम था. 2 कमरे थे जिन में से एक सुजय और रश्मि का बैडरूम था और दूसरा रूम अकसर आनेजाने वालों के काम आ जाता. सुजय से बड़ी सीमा जब भी परिवार के साथ आती, उसी रूम में आराम से रह लेती. सीमा दिल्ली में अपने ससुराल में जौइंट फैमिली में रहती थी और खुश थी. अब तक किचन की जिम्मेदारी पूरी तरह से अलका ने ही संभाल रखी थी. वह अभी तक स्वस्थ रहती तो उसे कोई परेशानी नहीं होती. कामवाली के साथ मिल कर सब ठीक से चल जाता. आज बहुत दिन बाद अलका किचन में आई तो आहट सुन कर जल्दी से रश्मि भागती सी आई,”अरे… मम्मी, आप क्यों नीचे उतर आईं, कल भी आप को चक्कर आ गया था, पसीनापसीना हो गई थीं. मुझे बताइए, क्या चाहिए आप को ?”
”नहीं, कुछ चाहिए नहीं. बहुत आराम कर लिया, थोड़ा काम शुरू करती हूं,’’ कहतेकहते अलका की नजरें चारों तरफ दौड़ी. उसे ऐसा लगा जैसे यह उस की रसोई नहीं, किसी और की है.
अलका के चेहरे के भाव समझ गई रश्मि. बोली, ”मम्मी, आप सब तो बहुत लंबे हो. मैं तो आप सब से लंबाई में बहुत छोटी हूं, मेरे हाथ ऊपर रखे डब्बों तक पहुंच ही नहीं पाते थे और भी जो सैटिंग थी, वह मुझे सूट नहीं कर रही थी. मैं ने अपने हिसाब से किचन नए तरीके से सैट कर ली. गलत तो नहीं किया न?”
क्या कहती अलका. एक शौक लगा था उसे किचन में बदलाव देख कर. उस की सालों की व्यवस्था जैसे किसी ने अस्तव्यस्त कर दी. जहां जीवन का लंबा समय बीत गया, वह जगह जैसे एक पल में पराई सी लगी. मुंह से बोल ही न फूटा. रश्मि ने दोबारा पूछा, ”मम्मी, क्या सोचने लगीं?”
अकबका गई अलका, बस किसी तरह इतना ही कह पाई, ”कुछ नहीं, तुम ने तो बहुत काम कर लिया सैटिंग का. तुम्हारे सिर तो खूब काम आया न…”
”आप दोनों ठीक हो गए, बस. काम का क्या है, हो ही जाता है.”
अलका थोड़ी देर जा कर सोफे पर बैठी रही. रश्मि उस के पास ही अपना लैपटौप उठा लाई थी. थोड़ी बातें भी बीचबीच में करती जा रही थी. अनमनी सी हो गई थी अलका. ”जा कर थोड़ा लेटती हूं,’’ कह कर चुपचाप धीरेधीरे चलती हुई उठ कर अपने बैडरूम में आ कर लेट गई. उस का उतरा चेहरा देख संदीप चौंके, ”क्या हुआ?”
अलका ने गरदन हिला कर बस ‘कुछ नहीं’ का इशारा कर दिया पर अलका के चेहरे के भाव देख संदीप उस के पास आ कर बैठे, ”थकान हो रही है न ऊपरनीचे करने में? अभी यह कमजोरी रहेगी कुछ दिन. किसी काम के चक्कर में अभी मत पड़ो. पहले पूरी तरह से ठीक हो जाओ. काम तो उम्रभर होते ही रहेंगे.”
अलका ने कुछ नहीं कहा, बस आंखें बंद कर चुपचाप लेट गई.लड़ाईझगड़ा, चिल्लाना, गुस्सा करना उस का स्वभाव न था. उस ने खुद संयुक्त परिवार में बहू बन कर सारे दायित्व खुशीखुशी संभाले थे और सब से निभाया था. पर एक ही झटके में किचन का पूरी तरह बदल जाना उसे हिला गया था.
कोरोना के शिकार होने के दिन तक जिस किचन का सामान वह अंधेरे में भी ढूंढ़ सकती थी, वहां तो आज कुछ भी पहचाना हुआ नहीं था. कैसे चलेगा…
उस समय तो संदीप और उस की तबीयत बहुत गंभीर थी. दोनों को लग रहा था कि बचना मुश्किल है. सुजय और रश्मि ने रातदिन एक कर दिए थे. जब से अस्पताल से घर आए हैं, दोनों रातदिन सेवा कर रहे हैं. संदीप को तो कपड़े पहनने में भी कमजोरी लग रही थी. सुजय ही हैल्प करता है उन की. शरीर का दर्द दोनों को कितना तोड़ गया, वही जानते हैं.
अस्पताल में बैड पर लेटेलेटे भी अलका को घरगृहस्थी की चिंता सता रही थी कि क्या होगा, कैसे होगा, रश्मि को तो कुछ आता भी नहीं. यह सच था कि रश्मि को कुकिंग ठीक से आती नहीं थी, पर इन दिनों गूगल पर, यूट्यूब पर देखदेख कर उस ने सब कुछ बनाया था. उन की बीमारी में उन की डाइट का बहुत ज्यादा ध्यान रखा था. अलका की पसंद का खाना सीमा को फोन करकर के पूछपूछ कर बनाया था. सीमा इस समय आ नहीं पाई थी. वह परेशान होती तो रश्मि ही उसे तसल्ली देती, वीडियो कौल करवा देती.
अचानक विचारों ने एक करवट सी ली. आज किचन में जो बदलाव देख कर मन टूटा था, अब जुड़ता सा लगा. जब ध्यान आया कि रश्मि बहू बन कर आई तो उसे अलका ने और बाकी सब लोगों ने यही तो कहा था कि यह तुम्हारा घर है, इसे अपना घर समझ कर आराम से बिना संकोच के रहो तो वह तो अपना घर समझ कर ही तो पूरे मन से हर चीज कर रही है. यह जो किचन में उस ने सारे बदलाव कर दिए, अपना घर ही तो समझा होगा न. किसी दूसरे की किचन में कोई इस तरह से अधिकार नहीं जमा सकता न. बहू को सिर्फ यह कहने से थोड़े ही काम चलता है कि यह तुम्हारा घर है, जो चाहे करो, उसे करने देने से रोकना नहीं है. यह उस का भी तो घर है.
अलका सोच रही थी कि उसे कुछ परेशानी होगी, वह प्यार से अपनी परेशानी बता देगी, नहीं तो सब ऐसे ही चलने देगी जैसे रश्मि घर चला रही है. सिर्फ कहना नहीं है, उसे पूरा हक देना है अपनी मरजी से जीने का, घर को अपनी सहूलियतों के साथ चलाने का.
अचानक अलका के मन में न जाने कैसी ताकत सी महसूस हुई और वह फिर नीचे जाने के लिए खड़ी हो गई कि जा कर अब आराम से देखती हूं कि कहां क्या सामान रख दिया है बहूरानी ने. नए हाथों में नई सी व्यवस्था देखने के लिए अब की बार वह मुसकराते हुए सीढ़ियां उतर रही थी.
कहने को तो अलका और संदीप को कोरोना से ठीक हुए 2 महीने हो चुके थे पर अब भी अजीब सी कमजोरी थी, जो जाने का नाम ही नहीं ले रही थी. कहां तो रातदिन भागभाग कर पहली मंजिल से नीचे किचन की तरफ जाने के चक्कर कोई गिन ही नहीं सकता था पर अब तो अगर उतर जाती तो वापस ऊपर बैडरूम तक जाने में हालत पतली हो जाती थी. संदीप ने तो ऊपर ही बैडरूम में वर्क फ्रौम होम शुरू कर दिया था. थक जाते तो फिर आराम करने लगते पर अलका… वह क्या करे, हालत संभलते ही अपना चूल्हाचौका याद आने लगता.
बड़ौत के ही एक अस्पताल में 15 दिन ऐडमिट रहे थे अलका और संदीप. बेटे सुजय का विवाह रश्मि से सालभर पहले ही हुआ था. दोनों अच्छी कंपनी में थे. अब तो काफी दिनों से वर्क फ्रौम होम कर रहे थे.
सुंदर सा खूब खुलाखुला सा घर था. नीचे किचन और लिविंगरूम था. 2 कमरे थे जिन में से एक सुजय और रश्मि का बैडरूम था और दूसरा रूम अकसर आनेजाने वालों के काम आ जाता. सुजय से बड़ी सीमा जब भी परिवार के साथ आती, उसी रूम में आराम से रह लेती. सीमा दिल्ली में अपने ससुराल में जौइंट फैमिली में रहती थी और खुश थी. अब तक किचन की जिम्मेदारी पूरी तरह से अलका ने ही संभाल रखी थी. वह अभी तक स्वस्थ रहती तो उसे कोई परेशानी नहीं होती. कामवाली के साथ मिल कर सब ठीक से चल जाता. आज बहुत दिन बाद अलका किचन में आई तो आहट सुन कर जल्दी से रश्मि भागती सी आई,”अरे… मम्मी, आप क्यों नीचे उतर आईं, कल भी आप को चक्कर आ गया था, पसीनापसीना हो गई थीं. मुझे बताइए, क्या चाहिए आप को ?”
”नहीं, कुछ चाहिए नहीं. बहुत आराम कर लिया, थोड़ा काम शुरू करती हूं,’’ कहतेकहते अलका की नजरें चारों तरफ दौड़ी. उसे ऐसा लगा जैसे यह उस की रसोई नहीं, किसी और की है.
अलका के चेहरे के भाव समझ गई रश्मि. बोली, ”मम्मी, आप सब तो बहुत लंबे हो. मैं तो आप सब से लंबाई में बहुत छोटी हूं, मेरे हाथ ऊपर रखे डब्बों तक पहुंच ही नहीं पाते थे और भी जो सैटिंग थी, वह मुझे सूट नहीं कर रही थी. मैं ने अपने हिसाब से किचन नए तरीके से सैट कर ली. गलत तो नहीं किया न?”
क्या कहती अलका. एक शौक लगा था उसे किचन में बदलाव देख कर. उस की सालों की व्यवस्था जैसे किसी ने अस्तव्यस्त कर दी. जहां जीवन का लंबा समय बीत गया, वह जगह जैसे एक पल में पराई सी लगी. मुंह से बोल ही न फूटा. रश्मि ने दोबारा पूछा, ”मम्मी, क्या सोचने लगीं?”
अकबका गई अलका, बस किसी तरह इतना ही कह पाई, ”कुछ नहीं, तुम ने तो बहुत काम कर लिया सैटिंग का. तुम्हारे सिर तो खूब काम आया न…”
”आप दोनों ठीक हो गए, बस. काम का क्या है, हो ही जाता है.”
अलका थोड़ी देर जा कर सोफे पर बैठी रही. रश्मि उस के पास ही अपना लैपटौप उठा लाई थी. थोड़ी बातें भी बीचबीच में करती जा रही थी. अनमनी सी हो गई थी अलका. ”जा कर थोड़ा लेटती हूं,’’ कह कर चुपचाप धीरेधीरे चलती हुई उठ कर अपने बैडरूम में आ कर लेट गई. उस का उतरा चेहरा देख संदीप चौंके, ”क्या हुआ?”
अलका ने गरदन हिला कर बस ‘कुछ नहीं’ का इशारा कर दिया पर अलका के चेहरे के भाव देख संदीप उस के पास आ कर बैठे, ”थकान हो रही है न ऊपरनीचे करने में? अभी यह कमजोरी रहेगी कुछ दिन. किसी काम के चक्कर में अभी मत पड़ो. पहले पूरी तरह से ठीक हो जाओ. काम तो उम्रभर होते ही रहेंगे.”
अलका ने कुछ नहीं कहा, बस आंखें बंद कर चुपचाप लेट गई.लड़ाईझगड़ा, चिल्लाना, गुस्सा करना उस का स्वभाव न था. उस ने खुद संयुक्त परिवार में बहू बन कर सारे दायित्व खुशीखुशी संभाले थे और सब से निभाया था. पर एक ही झटके में किचन का पूरी तरह बदल जाना उसे हिला गया था.
कोरोना के शिकार होने के दिन तक जिस किचन का सामान वह अंधेरे में भी ढूंढ़ सकती थी, वहां तो आज कुछ भी पहचाना हुआ नहीं था. कैसे चलेगा…
उस समय तो संदीप और उस की तबीयत बहुत गंभीर थी. दोनों को लग रहा था कि बचना मुश्किल है. सुजय और रश्मि ने रातदिन एक कर दिए थे. जब से अस्पताल से घर आए हैं, दोनों रातदिन सेवा कर रहे हैं. संदीप को तो कपड़े पहनने में भी कमजोरी लग रही थी. सुजय ही हैल्प करता है उन की. शरीर का दर्द दोनों को कितना तोड़ गया, वही जानते हैं.
अस्पताल में बैड पर लेटेलेटे भी अलका को घरगृहस्थी की चिंता सता रही थी कि क्या होगा, कैसे होगा, रश्मि को तो कुछ आता भी नहीं. यह सच था कि रश्मि को कुकिंग ठीक से आती नहीं थी, पर इन दिनों गूगल पर, यूट्यूब पर देखदेख कर उस ने सब कुछ बनाया था. उन की बीमारी में उन की डाइट का बहुत ज्यादा ध्यान रखा था. अलका की पसंद का खाना सीमा को फोन करकर के पूछपूछ कर बनाया था. सीमा इस समय आ नहीं पाई थी. वह परेशान होती तो रश्मि ही उसे तसल्ली देती, वीडियो कौल करवा देती.
अचानक विचारों ने एक करवट सी ली. आज किचन में जो बदलाव देख कर मन टूटा था, अब जुड़ता सा लगा. जब ध्यान आया कि रश्मि बहू बन कर आई तो उसे अलका ने और बाकी सब लोगों ने यही तो कहा था कि यह तुम्हारा घर है, इसे अपना घर समझ कर आराम से बिना संकोच के रहो तो वह तो अपना घर समझ कर ही तो पूरे मन से हर चीज कर रही है. यह जो किचन में उस ने सारे बदलाव कर दिए, अपना घर ही तो समझा होगा न. किसी दूसरे की किचन में कोई इस तरह से अधिकार नहीं जमा सकता न. बहू को सिर्फ यह कहने से थोड़े ही काम चलता है कि यह तुम्हारा घर है, जो चाहे करो, उसे करने देने से रोकना नहीं है. यह उस का भी तो घर है.
अलका सोच रही थी कि उसे कुछ परेशानी होगी, वह प्यार से अपनी परेशानी बता देगी, नहीं तो सब ऐसे ही चलने देगी जैसे रश्मि घर चला रही है. सिर्फ कहना नहीं है, उसे पूरा हक देना है अपनी मरजी से जीने का, घर को अपनी सहूलियतों के साथ चलाने का.
अचानक अलका के मन में न जाने कैसी ताकत सी महसूस हुई और वह फिर नीचे जाने के लिए खड़ी हो गई कि जा कर अब आराम से देखती हूं कि कहां क्या सामान रख दिया है बहूरानी ने. नए हाथों में नई सी व्यवस्था देखने के लिए अब की बार वह मुसकराते हुए सीढ़ियां उतर रही थी.