फुटबौल खेलने से मेरे बेटे के टखनों और मांसपेशियों में खिंचाव रहता है?

सवाल-

मेरे बेटे की उम्र 20 साल है. वह कालेज में फुटबाल खेलता है. उसे अकसर टखनों की मांसपेशियों में तनाव और दर्द की समस्या हो जाती है. ऐसा क्यों होता है और इस से बचने के लिए क्या सावधानियां बरती जानी चाहिए?

जवाब-

टखनों में होने वाली समस्याओं को स्पोर्ट्स इंजरी कहा जाता है, क्योंकि इस के 90% मामले खिलाडि़यों में ही देखे जाते हैं. यह समस्या टखनों की हड्डियों में फ्रैक्चर होने या मांसपेशियों, लिगामैंट्स और टेंडन के क्षतिग्रस्त होने से होती है. ऊंची एड़ी के फुटवियर पहनने और ऊंचीनीची सतहों पर चलने से भी यह समस्या हो जाती है. अगर समस्या लगातार बनी हुई है तो किसी और्थोपैडिक सर्जन को दिखाएं. ऐंकल ऐंथ्रोस्कोपी प्रक्रिया ने टखनों से संबंधित समस्याओं के उपचार को काफी आसान और दर्दरहित बना दिया. यह एक मिनिमली इनवेसिव सर्जिकल प्रक्रिया है, जो ऐंथ्रोस्कोप की सहायता से की जाती है.

बहन की शादी सिर पर और स्नेहा की कमर में अचानक दर्द उठ गया जिस से वह परेशान हो गई, क्योंकि एक तो वह दर्द से परेशान थी और दूसरा वह शादी जिस का उसे काफी समय से इंतजार था उसे भी ऐंजौय नहीं कर पा रही थी.

ऐसा सिर्फ स्नेहा के साथ ही नहीं बल्कि आज अधिकांश लोग बौडी पेन से परेशान हैं, क्योंकि वे आज की भागदौड़ भरी लाइफ में खुद की हैल्थ पर ध्यान जो नहीं दे रहे हैं और हलकाफुलका दर्द होने पर उसे इग्नोर कर देते हैं जिस से स्थिति और भयावह हो जाती है. ऐसी स्थिति में तुरंत रिलीफ के लिए जरूरी है हीट थेरैपी का इस्तेमाल करने की और उस के लिए डीप हीट रब पेन रिलीफ बैस्ट है.

1. जानें पेन के कारण:

आज के प्रतिस्पर्धा वाले समय में एकदूसरे से आगे निकलने की दौड़ में हम स्ट्रैस में अधिक रहने लगे हैं जिस से कम सोने के कारण हर समय थकेथके से रहते हैं जो मसल पेन का कारण बनता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जब पहनें हाई हील तो, ध्यान रखे ये बातें

आमतौर पर यह देखा गया है कि हाई हील पहनने वाली कई किशोरियों में असहनीय कमर दर्द के कई मामले सामने आते हैं.

ऊंची एडि़यों वाले सैंडलों से हर तीसरी युवती प्रभावित है और इन में से कई युवतियां तो स्थायी रूप से और्थपैडिक समस्याओं का भी शिकार हो जाती हैं. लेकिन दुखद यह कि उन्हें इस का एहसास काफी नुकसान झेलने के बाद होता है. लिहाजा, यह गलत धारणा है कि हाई हील सैंडल आप में आत्मविश्वास जगाते हैं और आप को अधिक आकर्षक बनाते हैं.

जब आप हाई हील पहनती हैं तो आप की कमर और नितंबों पर जबरदस्त दबाव पड़ता है, जो आप की रीढ़ के लिए काफी नुकसानदेह होता है.

ऐसे में कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं की जानकारी जरूरी है:

– जितनी ऊंची एडि़यों के सैंडल पहनेंगी उतना ही आप की कमर पर दबाव ज्यादा पड़ेगा. यह प्रमाणित हो चुका है कि 3 इंच ऊंची एडि़यों से 76%, 2 इंच से 57% और 1 इंच से 22% दबाव आप की एडि़यों की हडिड्यों पर पड़ता है.

– हाई हील के कारण नितंबों, कंधों, कमर और रीढ की अवस्था बिगड़ जाती है.

– यदि आप का वजन अधिक है, तो हाई हील आप का संतुलन भी बिगाड़ सकती है और आप के चोटिल होने की संभावना बढ़ा देती है.

– पैरों के अंगूठों से पहले के हिस्सों में हाई हील के कारण दर्द बढ़ जाता है.

– फीते और पंप स्टाइल ऊंची एड़ी के सैंडल पहनने से एडि़यों के पिछले हिस्से की हड्डी बढ़ सकती है.

– आगे की ओर से बेतरतीब या असहज लगने वाले हाई हील सैंडल पैरों में जकड़न पैदा करते हैं.

– यदि आप लंबे समय तक हाई हील सैंडल पहनती हैं तो इन से शिराओं और पिंडलियों की मांसपेशियों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचता है.

हाई हील और कमर दर्द के बीच ताल्लुक

लगातार ऊंची एड़ी के सैंडल आप की रीढ़ की बनावट को टेढ़ा कर देते हैं, क्योंकि आप की कमर का निचला हिस्सा दबाव कम करने के लिए हमेशा मुड़ा रहने की चेष्टा करता है. इस से आप के जोड़ों पर तनाव की स्थिति बन जाती है और शरीर के अंगों की बेढंगी अवस्था के कारण दर्द बढ़ सकता है. यदि आप पहले से कमर दर्द से परेशान हैं तो आप के और्थोपैडिक चिकित्सक आप को कभी हाई हील पहनने की सलाह नहीं देंगे.

हालांकि महिलाएं अपनी पसंदीदा फुटवियर का मोह बमुश्किल ही छोड़ पाती हैं, यहां तक कि तकलीफ सहते रहने के बाद भी. लिहाजा, आप हाई हील पहनने के दौरान दर्द और नुकसान को इन उपायों से कम कर सकती हैं:

– ड्राइविंग के दौरान फ्लैट चप्पलें पहनें.

– किसी मीटिंग में बैठने के दौरान आप अपने सैंडल ढीले कर सकती हैं और अपने पैरों को फर्श पर रख सकती हैं.

– 20-30 मिनट के अंतराल पर बे्रक लें और अपने सैंडल निकाल दें.

– जब लगे कि आप के सैंडल खराब हो रहे हैं तो अत्यधिक लगाव होने के बावजूद उन्हें तत्काल बदल लें.

– सब से जरूरी बात यह कि सैंडलों का चयन स्टाइल या उन की मोटाई से न करें, बल्कि उन्हें पहन कर आराम महसूस करने के आधार पर करें. सैंडलों से मिलने वाले आराम से कभी समझौता न करें.

– हाई हील पहन कर कभी दौड़ लगाने की कोशिश न करें.

अपने शरीर की आवाज सुनें

हमेशा अपने शरीर की आवाज सुनें कि वह क्या चाहता है और कभी बहुत ज्यादा आश्वस्त न रहें कि इस से आप को कोई नुकसान नहीं होगा. जिस दिन से हाई हील पहनने से आप का दर्द बढ़ने लगे, आप को अन्य प्रकार के जूते पहनने पर विचार करना चाहिए.

जंजाल – भाग 2 : नैना मानव को झूठे केस में क्यों फंसाना चाहती थी?

सबकुछ इसी तरह हौलेहौले चल रहा था कि कल अचानक औफिस में हलचल मच गई. सचिवालय से आई एक मेल ने स्टाफ को पंख लगा दिए. जिस ने भी इसे पढ़ा वह उड़ाउड़ा जा रहा था. दरअसल, विभाग की तरफ से अगले सप्ताह जयपुर में 5 दिन का एक ट्रेनिंग कार्यक्रम संचालित होने वाला है जिस में हरेक संभाग से3 से 4 कर्मचारियों को भाग लेने का प्रस्ताव है. स्वयं के अतिरिक्त 3 अन्य कर्मचारियों के नाम अजय को प्रस्तावित करने हैं.

अब चूंकि सारा कार्यक्रम सरकारी खर्चे पर हो रहा है तो कोई क्यों नहीं जाना चाहेगा. आम के आम और गुठलियों के दाम. 5 दिन शाही खानापीना और स्टार होटल में रहना. बचे हुए समय में जयपुर घूमना. भला ऐसे स्वर्णिम अवसर को कौन नहीं लपकना चाहेगा.मानव के लिए मंत्रीजी के यहां से फोन आ गया था, इसलिए एक नाम तो तए हो ही गया. नैना ने अपने नये होने का हवाला देते हुए काम सीखने की इच्छा जाहिर की और इमोशनल ब्लैकमेल करते हुए लिस्ट में अपना नाम जुड़वा लिया.

नैना का नाम जोड़ने में खुद अजय का भी स्वार्थ था. इस बहाने वह नैना और मानव के बीच की कैमिस्ट्री नजदीक से सम झ पाएगा. चौथे नाम के लिए अजय ने अपने चमचे मयंक का नाम चुना और लिस्ट सचिवालय मेल कर दी.चूंकि अजमेर से जयपुर की दूरी अधिक नहीं है. इसलिए चारों ने एकसाथ अजय की कार से जाना तय किया. अजय गाड़ी चला रहा था और मयंक उस के साथ आगे बैठा था. पीछे की सीट पर मानव और नैना बैठे थे. गाड़ी तेज रफ्तार से चल रही थी.

अजय का ध्यान बीचबीच में शीशे की तरफ जा रहा था जहां से वह मानव और नैना के मचलते हुए हाथ साफसाफ देख पा रहा था. उन की हरकतें उसे बेचैन कर रही थीं. उस का मन तो कर रहा था कि दोनों को वहीं हाई वे पर ही उतार दे, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता था क्योंकि नौकरी तो उस की भी अभी बहुत बाकी थी और वह नदी में रह कर मगरमच्छ से बैर मोल लेना तो अफोर्ड नहीं कर सकता था. सभी कर्मचारियों के रुकने की व्यवस्था आरटीडीसी के होटल तीज में की गई थी और ट्विन शेयरिंग के आधार पर कमरे दिए गए थे.

प्रशिक्षणार्थियों में महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत कम थी और विषम भी.संयोग से नैना को जो कमरा अलौट हुआ उस में कोई अन्य महिला नहीं थी. वे चारों सुबह लगभग 9 बजे जयपुर पहुंचे. चैकइन करने के बाद नाश्ता और फिर 10 बजे से 1 बजे तक प्रशिक्षण. 1 बजे से 2 बजे तक लंच और फिर5 बजे तक क्लास. इस बीच 11 और 4 बजे चाय की भी व्यवस्था थी. शेष 4 दिन भी यही व्यवस्था रिपीट होनी थी.शाम को 5 बजे के बाद मानव और नैना गुलाबी नगरी घूमने निकल गए. मानव उसे राजमंदिर सिनेमा में फिल्म दिखाने ले गयाऔर उस के बाद उसे स्पैशल तिवाड़ी की चाट खिलाई.

रात 10 बजे दोनों खिलखिलाते हुएट्रेनिंग सैंटर आए. हालांकि लोगों की निगाहों से बचने के लिए वे दोनों आगेपीछे अंदर घुसे थे लेकिन अजय ने उन्हें एकसाथ कैब से उतरते देख लिया था. मानव की हठधर्मी पर उस का खून उबल रहा था, लेकिन क्या करता. इस तरह एकसाथ घूमने से कुछ भी साबित नहीं होता. वह खुद भी तो जोधपुर वाली रिया मैडम के साथ शाम को कौफी पीने जीटी गया ही था.अगले 3 दिन फिर यही हुआ. कभी कनक गार्डन तो कभी हवामहल. कभी मोती डूंगरी तो कभी अजमेरी गेट. दोनों साथसाथ घूम रहे थे. आज ट्रेनिंग का अंतिम दिन था.

क्लास के बाद मानव और नैना शहर घूमने निकल गए. अजय भी मयंक के साथ छोटी चौपड़ की तरफ निकल गया. छोटी चौपड़ के बाद वे लोग जौहरी बाजार की तरफ आ गए. अजय अपनी पत्नी के लिए साड़ी पसंद करने लगा. खानेपीने के बाद जबवे लोग वापस ट्रेनिंग सैंटर पहुंचेतो नैना के कमरे की लाइट जली हुई थी.‘‘आज ये दोनों जल्दी वापस आ गए लगते हैं,’’

अजय ने कहा.‘‘कौन जाने, गए ही नहीं हों. जब मनोरंजन का साधन घर में ही मौजूद हो तो फिर बाहर क्यों जाना?’’ मयंक ने बाईं आंख दबा कर चुटकी लेते हुए कहा तो अजय की छठी इंद्री जाग उठी. वह नैना के कमरे की तरफ चल दिया. वह यह जानने के लिए जिज्ञासु हो उठा कि बंद कमरे में मानव है या नहीं और यदि है तो उन के बीच क्या चल रहा है. बिना अधिक विचार किए उस ने दरवाजा नोक कर दिया. कुछ पल की खामोशी के बाद अंदर हलचल हुई.

शायद खिड़की का पल्ला भी थोड़ा सा खुला था और उस में से किसी ने बाहर  झांका भी था. चुप्पी के बाद अचानक भीतर से अजय को कुछ आवाजें भी सुनाई दीं.‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मु झे,’’ नैना गुस्से में कह रही थी.‘‘नैना… क्या हुआ नैना. कौन है तुम्हारे साथ?’’

कहते हुए अजय जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा. तभी दरवाजा खुला और मानव फुफकारता हुआ बाहर लपका.‘‘क्या हुआ? क्या किया मानव ने,’’ अजय ने पूछा. हालांकि उसे यह भी दोनों की कोई चाल ही लग रही थी, लेकिन फिर भी वह अनभिज्ञ बना रहा. नैना सिसक रही थी.‘‘हुआ तो कुछ नहीं लेकिन हो बहुत कुछ जाता. मैं तो इसे अपना अच्छा दोस्त सम झ रही थी लेकिन यह तो,’’

नैना ने शेष शब्द आंसुओं के हवाले कर दिए.‘‘तुम फिक्र मत करो. मानव के खिलाफ अपने विभाग की विशाखा कमेटी में शिकायत दर्ज करवाओ. मैं तुम्हारे पक्ष में गवाही दूंगा,’’ कहते हुए अजय ने उसे सांत्वना दी.‘‘रहने दीजिए सर, होनाजाना तो कुछ है नहीं बेकार ही मेरी बदनामी हो जाएगी,’’  नैना ने अपनेआप को संयय करते हुए कहा.‘‘अरे, यह क्या बात हुई भला.

महिलाएं शिकायत नहीं करतीं तभी तो पुरुषों के हौसले बढ़ते हैं. फिर महिलाएं ही सरकार से शिकायत भी करती हैं कि सरकार कुछ करती नहीं. सरकार को क्या सपने आते हैं कि फलांफलां के साथ कहीं कुछ गलत हुआ है. तुम शिकायत करो बल्कि अभी इसी वक्त मु झे लिख कर दो, मैं मानव के खिलाफ कार्यवाही करता हूं,’’ अजय ने नैना को शिकायत करने के लिए राजी किया. क्या करती नैना. इस समय उसे अपनी इज्जत बचानी प्राथमिकता लग रही थी.चूंकि अजय के सामने यह सारी घटना घटित हुई थी, इसलिए इसे  झुठलाया भी नहीं जा सकता था. बात नैना की इज्जत पर बन आई थी. यदि अजय की बात नहीं मानती तो सीधेसीधे दोषी करार दे दी जाती. खुद की इज्जत बचाने की खातिर उसे अजय की बात माननी ही पड़ी.

जंजाल – भाग 1 : नैना मानव को झूठे केस में क्यों फंसाना चाहती थी?

अजय को मानव फूटी आंख नहीं सुहाता. आज से नहीं तभी से जब से उस ने उस के औफिस में जौइन किया था. 5 साल पहले उस की पोस्टिंग पास के कसबे में हुई थी, लेकिन मंत्रीजी की सिफारिश लगवा कर उस ने यहां मुख्यालय में बदली करवा ली थी. मंत्रीजी के नाम का नशा आज भी उस के सिर चढ़ कर बोलता है. तभी तो औफिस में अपनी मरजी चलाता है. देर से आना और जल्दी चले जाना उस की आदत बन चुकी है. लंच तो उस का 1 घंटे का होता ही है उस के अलावा चाय के बहाने भी घंटों अपनी सीट से गायब रहता है. कभी डांटफटकार दो तो तुरंत मंत्रीजी के पीए का शिकायती फोन आ जाता है और अजय की क्लास लग जाती है.

मानव अपनी कौलर ऊंची किए मस्ती मारता रहता है और मजबूरन उस की सीट का पैंडिंग काम अजय को किसी अन्य कर्मचारी से करवाना पड़ता है और ऐसा करने से स्वाभाविक रूप से शेष कर्मचारियों में असंतोष फैलता है.कंट्रोलिंग औफिसर होने के नाते सभी कर्मचारियों को समान रखना अजय की ड्यूटी भी है और विवशता भी लेकिन मानव को कार्यालय शिष्टाचार से कोई फर्क नहीं पड़ता. उसे तो अपनी मनमानी करनी होती है और वह मंत्रीजी के दम पर ऐसा करता भी है.

यहां तक तो फिर भी सहन किया जा रहा था, लेकिन जब से नैना इस औफिस में आई है तब से मानव के लिए औफिस कंपनी गार्डन की तरह हो गया है. जितनी देर औफिस में रहता है, उसी के इर्दगिर्द मंडराता रहता है. कभी चायकौफी और लस्सी के दौर तो कभी मिठाईनमकीन और केकपेस्ट्री की दावत. स्टाफरूम को पिकनिक स्पौट बना कर रख दिया है उस ने. सामने तो कोई कुछ नहीं कहता लेकिन पीठ पीछे सभी उन दोनों को ले कर तरहतरह की अनर्गल बातें करते हैं.अजय भी अंधाबहरा नहीं है,

सब सुनता और देखता है. मन तो करता है कि अनुशासनभंग करने के नाम पर मानव को तगड़ी सजा दे लेकिन न तो उस के पास कोई पुख्ता सुबूत हैं और न ही नैना ने कभी उस की शिकायत की. ऐसे में किसी के चरित्र को निशाना बनाना खुद उसे ही भारी पड़ सकता है, इसलिए वह केवल कुढ़ कर रह जाता है.‘‘नैना, तुम अभी नई हो. अत: जितना सीख सकती हो सीख लो.

आगे तुम्हें बहुत काम आएगा. बेकार इधरउधर की बातों में समय बरबाद करना तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक नहीं,’’ कह कर अजय नैना को इशारों ही इशारों मेंमानव से दूर रहने की सलाह देता था, लेकिननैना भी जैसे मानव के रंग में रंगी जा रही थी. वैसे भी सरकारी दफ्तरों में काम करना किसे सुहाता है. अधिकतर लोग अपनी हाजिरी पक्की करने की जुगाड़ में ही रहते हैं. नैना भी उसी राह चल रही थी.नैना और मानव का फ्लर्ट पूरे परवान पर था. नोक झोंक और छेड़छाड़ से ले कर रूठना और मनाना तक. कभी चोरीछिपे तो कभी खुलेआम हो रहा था.

‘कोई क्या कहेगा’ जैसी बंदिश तो आज की पीढ़ी मानती ही कहां है. औफिस में सब इस रासलीला को देख कर अपनी आंखें सेंक रहे थे. केवल अजय ही था जो ये सब अपनी आंखों के नीचे होते देख कर सहन नहीं कर पा रहा था.‘‘मानव और तुम्हें ले कर स्टाफ में तरहतरह की बातें हो रही हैं. मैं तुम्हें चेतावनी दे रहा हूं कि औफिस का डेकोरम बना कर रखो. मु झे यहां कोई तमाशा नहीं चाहिए जो करना है, औफिसके बाद करो,’’ कहते हुए एक दिन अजय ने नैना को चेताया.‘‘क्या करूं सर, मैं तो नई हूं और जूनियर भी. मु झे तो सब की सुननी पड़ती है. चाहे मानव हो या आप,’’ नैना ने मासूमियत से जवाब दिया.अजय हालांकि उस के सब इशारे और तंज सम झ रहा था, लेकिन फिलहाल उस के पास कोई पुख्ता सुबूत नहीं था, इसलिए वह भी कुछ न कर पाने के लिए मजबूर था.

कतरा-कतरा जीने दो – भाग 3

रागिनी ने अम्मा का हाथ पकड़ कर कहा, ‘हां अम्मा, हम जानते हैं. तुम चिंता न करो. तुम लोग जो कहोगे, हम वही करेंगे.’

अगले महीने सुगंधा दीदी की शादी थी. रागिनी की खुशियों को जैसे पंख लग गए. दिनरात वहां जाने की तैयारी में लग गई. भइयू के साथ जा कर उस ने न केवल  अपने लिए शादी में पहनने के लिए  खूबसूरत सा लंहगा लिया बल्कि अपनी सुगंधा दीदी और नंदा के लिए ढेर सारे गिफ्ट्स भी खरीदे. अम्मा,  बाऊजी सब के लिए कपड़े खरीदते हुए उस का उत्साह देखते ही बन रहा था. आखिर मुंबई जाना था. वहां के हिसाब से पहनावा होना चाहिए. उस ने अच्छे से पार्लर में अपना हेयरकट करवाया.

पहली बार फेशियल,  ब्लीच करवा कर जब वह सामने आई तो उस की सुंदरता किसी फिल्मी हीरोइन से कम नजर नहीं आ रही थी. बातबात पर रागिनी की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी. पूरे होस्टल में रागिनी के मुंबई जाने का शोर मच गया.  टिकटें भी बन गईं. लेकिन  ऐन शादी के समय डाक्टर ने अम्मा के मोतियाबिंद के औपरेशन का समय दे दिया  और  अम्मा व बाऊजी ने अपनी टिकटें कैंसिल करवा दीं. नतीजा रागिनी चाह कर भी मुंबई सुगंधा दीदी की शादी में नहीं जा पाई. मुझे बहुत दुख हुआ. महीनों की तैयारी पर मिनटों में पानी फिर गया. मुंबई की जगह  रागिनी को अम्मा की देखभाल के लिए  घर जाना पड़ा.

अम्मा की आंखों के औपरेशन के बाद रागिनी जब होस्टल वापस  आई तो  जब भी मुंबई की बात निकलती, वह फूटफूट कर रो पड़ती. मैं ने समझाया, ‘जाने दो रागिनी, अब रोने से क्या फायदा. तुम्हारी अम्मा औपरेशन की डेट नहीं बढ़वा पाई होंगी. उन की  बहन की बेटी की शादी,   जाना तो उन्हें भी था. अफसोस तो  उन्हें भी हुआ होगा और तुम्हारी कजिन बहनों को भी.’

मैं अवाक रह गई जब रोतेरोते रागिनी ने कहा, ‘नहीं, अम्मा को अफसोस होता तो औपरेशन की डेट  बढ़ जाती. अम्मा का तो पता था,  लेकिन मौसी मम्मी और सुगंधा दीदी ने  कैसे इतनी बड़ी   खुशी में मुझे छोड़ दिया. उन्होंने मुझे बुलाने की कोई कोशिश नहीं की. अम्माबाऊजी पर फोन से दबाव नहीं डाला वरना…’ आगे के शब्द उस के आंसुओं में डूब गए.

मेरी गोदी में सिर रख कर वह घंटों सिसकती रही. उस का इस तरह रोना मेरे अंतर्मन को भिगो गया. ‘अम्मा का तो पता था…’ उस के ये शब्द मेरे मन में हलचल मचा रहे थे. क्या इस की अम्मा सचमुच नहीं चाहती थीं मुंबई जाना या उन की आंखों का  औपरेशन  अभी इतना ही जरूरी था. कितने सपने थे  रागिनी  के सुगंधा दीदी की शादी को ले कर. क्या सुगंधा दीदी और मौसी ने इस के अम्माबाऊजी को नहीं समझाया? रागिनी ने कितनी ही बार सुगंधा दीदी से फोन पर उन की  शादी को ले कर  अपने उत्साह को बताया था. रागिनी को तो कम से कम वे लोग बुलवा सकते थे. इस तरह के प्रश्न मुझे बारबार विचलित कर रहे थे, लेकिन मैं ने इस बारे में रागिनी को ज्यादा कुरेदना उचित नहीं समझा. आखिर यह उन लोगों का पारिवारिक मामला है. फिर रागिनी का जितना भलाबुरा उस के अम्माबाऊजी सोच सकते हैं,  उतना मैं नहीं.

वैसे भी, हमारे पास ये सब सोचने का अब वक्त नहीं था. हमारे फाइनल  इम्तिहान नजदीक थे. हम लोग रातदिन पढ़ाई में लगे थे. रागिनी वैसे तो पढ़ाई के प्रति बहुत  गंभीर थी, लेकिन कुछ दिनों से उस का मन पढ़ाई से कुछ उचटा हुआ लगता था. अकसर चुपचाप सामने बालकनी में बैठ कर कुछ सोचती रहती थी. कभी अपनी डायरी में कुछ लिखती, कभी पुराने अलबम निकाल कर घंटो तसवीरें देखा करती.

एक दिन रागिनी सुबह नहाधो कर बहुत सुंदर सी नई ड्रैस पहने मेरी बालकनी में आ कर बैठ गई. मैं ने उसे देखा तो चौंक कर कहा, ‘अरे रागिनी, कहां की तैयारी है? सुबहसुबह  इतनी सुंदर ड्रैस पहन कर कहां जा रही हो?  रागिनी ने मुसकरा कर कहा, ‘भइयू आने वाला है. आज  उस का बर्थडे है न. यहां से बैठ कर उसी की राह देख रही हूं.’

थोड़ी ही देर में होस्टल के मेन  गेट पर एक मोटरसाइकिल लगी और  उस पर बैठे  6 फुट के लंबे, गोरेचिट्टे और  बेहद स्मार्ट लड़के को मैं ने देखा. ‘मेरा भइयू,’  खुशी से रागिनी हाथ में गिफ्ट का पैकेट ले कर दौड़ पड़ी और वे दोनों मेरी नजरों से ओझल हो गए.

शाम तक रागिनी नहीं आई. अगले दिन सुबह हाथों में मिठाई  और कुछ पैकेट्स  लिए वह मेरे रूम में आई. उस ने बताया, ‘कल दिन में हम लोग मौल गए थे. देखो, हम ने यह ड्रैस ली है. शाम में मुझे भइयू ने  स्पैशल बर्थडे पार्टी दी. बहुत मजा आया. ‘रात 10 बजे भइयू की दिल्ली के लिए ट्रेन थी. वह किसी इंटरव्यू के  लिए जा रहा है, तो उस ने मुझे देर शाम बूआ के घर में छोड़ दिया. अभी मैं वहीं से आ रही हूं.’

Anupama शो मे आया नया ट्विस्ट, शाह परिवार को मिली धमकी

अनुपामा सीरियल टीआरपी की लिस्ट में नंबर वन पर चला रहा है.शो की कैमेस्ट्री लोगों को काफी पसंद आ रही है, टीवी एक्ट्रेस रुपाली गागुंली और गौरव खन्ना की एक्टिंग लोगों को एंटरटेन कर रही है. शो की कहानी हर दिन हिट हो रही है. इसी बीच शो में एक नया मोड़ आया है.जहां अनुपमा मौत का सामना करती हुई नज़र आएंगी.

आपको बता दे, कि बीते दिन अनुपमा में दिखाया गया कि अनुपमा और अनुज, निर्मित और डिपी को साथ घर ले आते है, लेकिन जैसे ही ये बात शाह परिवार को पता चलती है वह सब हैरान हो जाते है. शो में आगे दिखाया गया है कि निर्मित, डिंपल को छोड़कर चले जाते है. अनुपमा औरर अनुज के समझाने से भी वो नहीं मानता है उल्टा कहता है कि जब डिपंल मेरे साथ लेटी थी तो मुझे घिन आ रही थी. उसकी ये सारी बाते डिंपल सुन लेती है और वह अनुज को गिडगिड़ाने से मना कर देती है. इतने में ही डिंपस अपने सुहाग की चीज़े निर्मित के मुंह पर फेंकती है और उसे तुरंत वहा से जाने के लिए कहती है.

 

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शाह परिवार को मिली धमकी  

अनुपमा में आगे दिखाया जाएगा कि शाह परिवार को एख धमकी भरा लेटर मिलता है. शो में काव्या को घर से बाहर कोई लेटर पकाडाकर चला जाएगा। काव्या अंदर जाकर उस लेटर को पढेगी, जिसमें बडे-बडे शब्दों में लिखा होगा कि “पीछे हट जाओ, वरना पछताओगे” लेटर को पढकर काव्या डर जाएगी, लेकिन उसे कही न कही ये लगेगा कि ये किसी का मजाक था.

 

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धमकी मिलने के बाद दिखाया जाएगा कि बा पूरे परिवार के साथ कपाडिया हाउस पहुंचेगें और अपनी एक्स -बहू को पीछे हटने की सलाह देंगी. वह अनुपमा को वॉर्निंग देंगी कि कही इस लड़ाई की आग में उनका पूर परिवार न बर्बाद हो जाएं.

अनुपमा पहुंची जंगल

शो के आखिरी में दिखाया जाएगा कि अनुपमा ऑटो रिक्शा से कहीं जा रही होती है तभी अनुपमा पर कुछ घुंडे हमला कर देते है. शो को लेकर ये भी अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि गुड़ो के कारण अनुपमा जंगल में पंहुच जाती है और वही फस जाती है.

 

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शो ‘अनुपमा’ (Anupama) में आगे दिखाया जाएगा कि अनुपमा ऑटो रिक्शा से कहीं जा रही होती है और इसी बीच गुंडे उसपर हमला कर देते हैं. शो को लेकर यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि अनुपमा गुंडों के कारण जंगल में फंस जाएगी.

सिल्क के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य

रेशम के कीड़ों द्वारा उत्पादित सिल्क एक प्राकृतिक फाइबर है. अपने कई अद्भुत गुणों के कारण इसे क्वीन ऑफ़ टेक्सटाइल्सभी कहा जाता है.

सिल्क की बात करें तो यह एक हाइपोएलर्जेनिक है – मतलब कि यह एक प्राकृतिक प्रोटीन फाइबर है और इसलिए सेंसिटिव स्किन वाले लोगों को इससे कोई तकलीफ नहीं होती है जिससे इसे रोज़ पहना जा सकता है.

सिल्क के इस्तेमाल से इंसानों में झुर्रियों की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इसीलिए यह मान्य है कि सिल्क के तकिए पर सोने से सिल्क प्रोटीन में मौजूद आवश्यक अमीनो एसिड के कारण व्यक्ति को झुर्रियां देरी से आती है.

सिल्क अत्यधिक नमी को अवशोषित कर सकता है और अपने वजन का एक तिहाई नमी अवशोषित कर सकता है वह भी बिना नमी का एहसास दिए.

इसके अलावा सिल्क के रेशे स्वभावतः लाइट को अपवर्तित या रिफ्रैक्ट करते हैं. यही कारण है कि सिल्क आमतौर पर जगमगाहट, आभा और चमक के लिए जाना जाता है.

सिल्क में कीड़ों के लिए प्रवेश करना मुश्किल होता है और इसलिए यह मच्छरों से रक्षा कर सकता है. इसलिए सिल्क कीट सुरक्षात्मक कपड़ों और मच्छरदानी के लिए एक आदर्श है.

सिल्क सबसे मजबूत प्राकृतिक फाइबरों में से एक है, जिसका इस्तेमाल कपड़ों से लेकर पैराशूट तक, कम्बलों से लेकर मछली पकड़ने के जाल तक, डॉक्टर के द्वारा लगाए जाने वाले टांके से लेकर प्रोस्थेटिक्स तक के लिए किया जाता है.

सिल्क में थर्मोस्टेटिक गुण होते हैं, जिसके कारण यह तापमान परिवर्तन के अनुसार प्रतिक्रिया करता है. इससे किसी भी व्यक्ति को सर्दियों में गर्म और आरामदायक और गर्मियों में ठंडा और कंफरटेबल महसूस होता है.

सिल्क में रोगाणुरोधी गुण होते हैं इसलिए यह बैक्टीरिया, कवक, वायरस आदि जैसे विभिन्न रोगाणुओं से रक्षा करता है.

सिल्क के कीट के पाउडर में मांस की तुलना में 3 गुना ज्यादा प्रोटीन होता है और इसलिए इसका सेवन हेल्थ सप्लीमेंट के रुप में किया जाता है.

सिल्क की पट्टियां अपने प्रोटीन प्रोफाइल के कारण घावों को तेजी से भरने में मदद करती हैं.

सिल्क का कीट एक महीने में अपने वजन को लगभग 10000 गुना बढ़ा सकता है.

सिल्क कीट लगभग 600 से 1500 मीटर लंबे निरंतर धागा कोकून के रूप में बुनता है.

बेंगलुरु के पास रामनगर कोकून मार्केट दुनिया का सबसे बड़ा कोकून बाज़ार है जहाँ हर दिन लगभग 40,000 से 50,000 किलोग्राम कोकून बेचा जाता है.

शहतूत की पत्ती की चाय में कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं, जो ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और अन्य लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों जैसे हाइ ब्लड प्रेशर और वजन घटाने को नियंत्रित करने में मदद करता है.

यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि हम हमेशा सिल्क मार्क लेबल के साथ 100% शुद्ध रेशम ही खरीदें और रेशम उद्योग में शामिल देश भर के लगभग एक करोड़ किसानों, धागाकारों, बुनकरों और शिल्पकारों की आजीविका का समर्थन करें और हमारे इतिहास के इस सुनहरे रेशमी उपहार को संरक्षित करे।

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जहां पर सवेरा हो : उसे क्यों छोड़ना पड़ा अपना ही देश

Story in hindi

सिर्फ कहना नहीं : क्या हुआ था अलका के साथ

कहने को तो अलका और संदीप को कोरोना से ठीक हुए 2 महीने हो चुके थे पर अब भी अजीब सी कमजोरी थी, जो जाने का नाम ही नहीं ले रही थी. कहां तो रातदिन भागभाग कर पहली मंजिल से नीचे किचन की तरफ जाने के चक्कर कोई गिन ही नहीं सकता था पर अब तो अगर उतर जाती तो वापस ऊपर बैडरूम तक जाने में हालत पतली हो जाती थी. संदीप ने तो ऊपर ही बैडरूम में वर्क फ्रौम होम शुरू कर दिया था. थक जाते तो फिर आराम करने लगते पर अलका… वह क्या करे, हालत संभलते ही अपना चूल्हाचौका याद आने लगता.

बड़ौत के ही एक अस्पताल में 15 दिन ऐडमिट रहे थे अलका और संदीप. बेटे सुजय का विवाह रश्मि से सालभर पहले ही हुआ था. दोनों अच्छी कंपनी में थे. अब तो काफी दिनों से वर्क फ्रौम होम कर रहे थे.

सुंदर सा खूब खुलाखुला सा घर था. नीचे किचन और लिविंगरूम था. 2 कमरे थे जिन में से एक सुजय और रश्मि का बैडरूम था और दूसरा रूम अकसर आनेजाने वालों के काम आ जाता. सुजय से बड़ी सीमा जब भी परिवार के साथ आती, उसी रूम में आराम से रह लेती. सीमा दिल्ली में अपने ससुराल में जौइंट फैमिली में रहती थी और खुश थी. अब तक किचन की जिम्मेदारी पूरी तरह से अलका ने ही संभाल रखी थी. वह अभी तक स्वस्थ रहती तो उसे कोई परेशानी नहीं होती. कामवाली के साथ मिल कर सब ठीक से चल जाता. आज बहुत दिन बाद अलका किचन में आई तो आहट सुन कर जल्दी से रश्मि भागती सी आई,”अरे… मम्मी, आप क्यों नीचे उतर आईं, कल भी आप को चक्कर आ गया था, पसीनापसीना हो गई थीं. मुझे बताइए, क्या चाहिए आप को ?”

”नहीं, कुछ चाहिए नहीं. बहुत आराम कर लिया, थोड़ा काम शुरू करती हूं,’’ कहतेकहते अलका की नजरें चारों तरफ दौड़ी. उसे ऐसा लगा जैसे यह उस की रसोई नहीं, किसी और की है.

अलका के चेहरे के भाव समझ गई रश्मि. बोली, ”मम्मी, आप सब तो बहुत लंबे हो. मैं तो आप सब से लंबाई में बहुत छोटी हूं, मेरे हाथ ऊपर रखे डब्बों तक पहुंच ही नहीं पाते थे और भी जो सैटिंग थी, वह मुझे सूट नहीं कर रही थी. मैं ने अपने हिसाब से किचन नए तरीके से सैट कर ली. गलत तो नहीं किया न?”

क्या कहती अलका. एक शौक लगा था उसे किचन में बदलाव देख कर. उस की सालों की व्यवस्था जैसे किसी ने अस्तव्यस्त कर दी. जहां जीवन का लंबा समय बीत गया, वह जगह जैसे एक पल में पराई सी लगी. मुंह से बोल ही न फूटा. रश्मि ने दोबारा पूछा, ”मम्मी, क्या सोचने लगीं?”

अकबका गई अलका, बस किसी तरह इतना ही कह पाई, ”कुछ नहीं, तुम ने तो बहुत काम कर लिया सैटिंग का. तुम्हारे सिर तो खूब काम आया न…”

”आप दोनों ठीक हो गए, बस. काम का क्या है, हो ही जाता है.”

अलका थोड़ी देर जा कर सोफे पर बैठी रही. रश्मि उस के पास ही अपना लैपटौप उठा लाई थी. थोड़ी बातें भी बीचबीच में करती जा रही थी. अनमनी सी हो गई थी अलका. ”जा कर थोड़ा लेटती हूं,’’ कह कर चुपचाप धीरेधीरे चलती हुई उठ कर अपने बैडरूम में आ कर लेट गई. उस का उतरा चेहरा देख संदीप चौंके, ”क्या हुआ?”

अलका ने गरदन हिला कर बस ‘कुछ नहीं’ का इशारा कर दिया पर अलका के चेहरे के भाव देख संदीप उस के पास आ कर बैठे, ”थकान हो रही है न ऊपरनीचे करने में? अभी यह कमजोरी रहेगी कुछ दिन. किसी काम के चक्कर में अभी मत पड़ो. पहले पूरी तरह से ठीक हो जाओ. काम तो उम्रभर होते ही रहेंगे.”

अलका ने कुछ नहीं कहा, बस आंखें बंद कर चुपचाप लेट गई.लड़ाईझगड़ा, चिल्लाना, गुस्सा करना उस का स्वभाव न था. उस ने खुद संयुक्त परिवार में बहू बन कर सारे दायित्व खुशीखुशी संभाले थे और सब से निभाया था. पर एक ही झटके में किचन का पूरी तरह बदल जाना उसे हिला गया था.

कोरोना के शिकार होने के दिन तक जिस किचन का सामान वह अंधेरे में भी ढूंढ़ सकती थी, वहां तो आज कुछ भी पहचाना हुआ नहीं था. कैसे चलेगा…

उस समय तो संदीप और उस की तबीयत बहुत गंभीर थी. दोनों को लग रहा था कि बचना मुश्किल है. सुजय और रश्मि ने रातदिन एक कर दिए थे. जब से अस्पताल से घर आए हैं, दोनों रातदिन सेवा कर रहे हैं. संदीप को तो कपड़े पहनने में भी कमजोरी लग रही थी. सुजय ही हैल्प करता है उन की. शरीर का दर्द दोनों को कितना तोड़ गया, वही जानते हैं.

अस्पताल में बैड पर लेटेलेटे भी अलका को घरगृहस्थी की चिंता सता रही थी कि क्या होगा, कैसे होगा, रश्मि को तो कुछ आता भी नहीं. यह सच था कि रश्मि को कुकिंग ठीक से आती नहीं थी, पर इन दिनों गूगल पर, यूट्यूब पर देखदेख कर उस ने सब कुछ बनाया था. उन की बीमारी में उन की डाइट का बहुत ज्यादा ध्यान रखा था. अलका की पसंद का खाना सीमा को फोन करकर के पूछपूछ कर बनाया था. सीमा इस समय आ नहीं पाई थी. वह परेशान होती तो रश्मि ही उसे तसल्ली देती, वीडियो कौल करवा देती.

अचानक विचारों ने एक करवट सी ली. आज किचन में जो बदलाव देख कर मन टूटा था, अब जुड़ता सा लगा. जब ध्यान आया कि रश्मि बहू बन कर आई तो उसे अलका ने और बाकी सब लोगों ने यही तो कहा था कि यह तुम्हारा घर है, इसे अपना घर समझ कर आराम से बिना संकोच के रहो तो वह तो अपना घर समझ कर ही तो पूरे मन से हर चीज कर रही है. यह जो किचन में उस ने सारे बदलाव कर दिए, अपना घर ही तो समझा होगा न. किसी दूसरे की किचन में कोई इस तरह से अधिकार नहीं जमा सकता न. बहू को सिर्फ यह कहने से थोड़े ही काम चलता है कि यह तुम्हारा घर है, जो चाहे करो, उसे करने देने से रोकना नहीं है. यह उस का भी तो घर है.

अलका सोच रही थी कि उसे कुछ परेशानी होगी, वह प्यार से अपनी परेशानी बता देगी, नहीं तो सब ऐसे ही चलने देगी जैसे रश्मि घर चला रही है. सिर्फ कहना नहीं है, उसे पूरा हक देना है अपनी मरजी से जीने का, घर को अपनी सहूलियतों के साथ चलाने का.

अचानक अलका के मन में न जाने कैसी ताकत सी महसूस हुई और वह फिर नीचे जाने के लिए खड़ी हो गई कि जा कर अब आराम से देखती हूं कि कहां क्या सामान रख दिया है बहूरानी ने. नए हाथों में नई सी व्यवस्था देखने के लिए अब की बार वह मुसकराते हुए सीढ़ियां उतर रही थी.

कहने को तो अलका और संदीप को कोरोना से ठीक हुए 2 महीने हो चुके थे पर अब भी अजीब सी कमजोरी थी, जो जाने का नाम ही नहीं ले रही थी. कहां तो रातदिन भागभाग कर पहली मंजिल से नीचे किचन की तरफ जाने के चक्कर कोई गिन ही नहीं सकता था पर अब तो अगर उतर जाती तो वापस ऊपर बैडरूम तक जाने में हालत पतली हो जाती थी. संदीप ने तो ऊपर ही बैडरूम में वर्क फ्रौम होम शुरू कर दिया था. थक जाते तो फिर आराम करने लगते पर अलका… वह क्या करे, हालत संभलते ही अपना चूल्हाचौका याद आने लगता.

बड़ौत के ही एक अस्पताल में 15 दिन ऐडमिट रहे थे अलका और संदीप. बेटे सुजय का विवाह रश्मि से सालभर पहले ही हुआ था. दोनों अच्छी कंपनी में थे. अब तो काफी दिनों से वर्क फ्रौम होम कर रहे थे.

सुंदर सा खूब खुलाखुला सा घर था. नीचे किचन और लिविंगरूम था. 2 कमरे थे जिन में से एक सुजय और रश्मि का बैडरूम था और दूसरा रूम अकसर आनेजाने वालों के काम आ जाता. सुजय से बड़ी सीमा जब भी परिवार के साथ आती, उसी रूम में आराम से रह लेती. सीमा दिल्ली में अपने ससुराल में जौइंट फैमिली में रहती थी और खुश थी. अब तक किचन की जिम्मेदारी पूरी तरह से अलका ने ही संभाल रखी थी. वह अभी तक स्वस्थ रहती तो उसे कोई परेशानी नहीं होती. कामवाली के साथ मिल कर सब ठीक से चल जाता. आज बहुत दिन बाद अलका किचन में आई तो आहट सुन कर जल्दी से रश्मि भागती सी आई,”अरे… मम्मी, आप क्यों नीचे उतर आईं, कल भी आप को चक्कर आ गया था, पसीनापसीना हो गई थीं. मुझे बताइए, क्या चाहिए आप को ?”

”नहीं, कुछ चाहिए नहीं. बहुत आराम कर लिया, थोड़ा काम शुरू करती हूं,’’ कहतेकहते अलका की नजरें चारों तरफ दौड़ी. उसे ऐसा लगा जैसे यह उस की रसोई नहीं, किसी और की है.

अलका के चेहरे के भाव समझ गई रश्मि. बोली, ”मम्मी, आप सब तो बहुत लंबे हो. मैं तो आप सब से लंबाई में बहुत छोटी हूं, मेरे हाथ ऊपर रखे डब्बों तक पहुंच ही नहीं पाते थे और भी जो सैटिंग थी, वह मुझे सूट नहीं कर रही थी. मैं ने अपने हिसाब से किचन नए तरीके से सैट कर ली. गलत तो नहीं किया न?”

क्या कहती अलका. एक शौक लगा था उसे किचन में बदलाव देख कर. उस की सालों की व्यवस्था जैसे किसी ने अस्तव्यस्त कर दी. जहां जीवन का लंबा समय बीत गया, वह जगह जैसे एक पल में पराई सी लगी. मुंह से बोल ही न फूटा. रश्मि ने दोबारा पूछा, ”मम्मी, क्या सोचने लगीं?”

अकबका गई अलका, बस किसी तरह इतना ही कह पाई, ”कुछ नहीं, तुम ने तो बहुत काम कर लिया सैटिंग का. तुम्हारे सिर तो खूब काम आया न…”

”आप दोनों ठीक हो गए, बस. काम का क्या है, हो ही जाता है.”

अलका थोड़ी देर जा कर सोफे पर बैठी रही. रश्मि उस के पास ही अपना लैपटौप उठा लाई थी. थोड़ी बातें भी बीचबीच में करती जा रही थी. अनमनी सी हो गई थी अलका. ”जा कर थोड़ा लेटती हूं,’’ कह कर चुपचाप धीरेधीरे चलती हुई उठ कर अपने बैडरूम में आ कर लेट गई. उस का उतरा चेहरा देख संदीप चौंके, ”क्या हुआ?”

अलका ने गरदन हिला कर बस ‘कुछ नहीं’ का इशारा कर दिया पर अलका के चेहरे के भाव देख संदीप उस के पास आ कर बैठे, ”थकान हो रही है न ऊपरनीचे करने में? अभी यह कमजोरी रहेगी कुछ दिन. किसी काम के चक्कर में अभी मत पड़ो. पहले पूरी तरह से ठीक हो जाओ. काम तो उम्रभर होते ही रहेंगे.”

अलका ने कुछ नहीं कहा, बस आंखें बंद कर चुपचाप लेट गई.लड़ाईझगड़ा, चिल्लाना, गुस्सा करना उस का स्वभाव न था. उस ने खुद संयुक्त परिवार में बहू बन कर सारे दायित्व खुशीखुशी संभाले थे और सब से निभाया था. पर एक ही झटके में किचन का पूरी तरह बदल जाना उसे हिला गया था.

कोरोना के शिकार होने के दिन तक जिस किचन का सामान वह अंधेरे में भी ढूंढ़ सकती थी, वहां तो आज कुछ भी पहचाना हुआ नहीं था. कैसे चलेगा…

उस समय तो संदीप और उस की तबीयत बहुत गंभीर थी. दोनों को लग रहा था कि बचना मुश्किल है. सुजय और रश्मि ने रातदिन एक कर दिए थे. जब से अस्पताल से घर आए हैं, दोनों रातदिन सेवा कर रहे हैं. संदीप को तो कपड़े पहनने में भी कमजोरी लग रही थी. सुजय ही हैल्प करता है उन की. शरीर का दर्द दोनों को कितना तोड़ गया, वही जानते हैं.

अस्पताल में बैड पर लेटेलेटे भी अलका को घरगृहस्थी की चिंता सता रही थी कि क्या होगा, कैसे होगा, रश्मि को तो कुछ आता भी नहीं. यह सच था कि रश्मि को कुकिंग ठीक से आती नहीं थी, पर इन दिनों गूगल पर, यूट्यूब पर देखदेख कर उस ने सब कुछ बनाया था. उन की बीमारी में उन की डाइट का बहुत ज्यादा ध्यान रखा था. अलका की पसंद का खाना सीमा को फोन करकर के पूछपूछ कर बनाया था. सीमा इस समय आ नहीं पाई थी. वह परेशान होती तो रश्मि ही उसे तसल्ली देती, वीडियो कौल करवा देती.

अचानक विचारों ने एक करवट सी ली. आज किचन में जो बदलाव देख कर मन टूटा था, अब जुड़ता सा लगा. जब ध्यान आया कि रश्मि बहू बन कर आई तो उसे अलका ने और बाकी सब लोगों ने यही तो कहा था कि यह तुम्हारा घर है, इसे अपना घर समझ कर आराम से बिना संकोच के रहो तो वह तो अपना घर समझ कर ही तो पूरे मन से हर चीज कर रही है. यह जो किचन में उस ने सारे बदलाव कर दिए, अपना घर ही तो समझा होगा न. किसी दूसरे की किचन में कोई इस तरह से अधिकार नहीं जमा सकता न. बहू को सिर्फ यह कहने से थोड़े ही काम चलता है कि यह तुम्हारा घर है, जो चाहे करो, उसे करने देने से रोकना नहीं है. यह उस का भी तो घर है.

अलका सोच रही थी कि उसे कुछ परेशानी होगी, वह प्यार से अपनी परेशानी बता देगी, नहीं तो सब ऐसे ही चलने देगी जैसे रश्मि घर चला रही है. सिर्फ कहना नहीं है, उसे पूरा हक देना है अपनी मरजी से जीने का, घर को अपनी सहूलियतों के साथ चलाने का.

अचानक अलका के मन में न जाने कैसी ताकत सी महसूस हुई और वह फिर नीचे जाने के लिए खड़ी हो गई कि जा कर अब आराम से देखती हूं कि कहां क्या सामान रख दिया है बहूरानी ने. नए हाथों में नई सी व्यवस्था देखने के लिए अब की बार वह मुसकराते हुए सीढ़ियां उतर रही थी.

रिश्तों को नकारात्मकता में न लें, ये है 8 टिप्स

जिंदगी बहुत छोटी है उसे खुल कर जिएं. कभीकभी हम स्वयं ही अपनी जिंदगी को उदासीन बना लेते हैं, इस की वजह है हमारी नकारात्मक सोच. यह सोच हमें चैन से जीने नहीं देती. पतिपत्नी के रिश्ते की बात की जाए तो यह एक बेहद खूबसूरत रिश्ता होता है, जिसे हम अकसर अपनी नकारात्मक सोच के कारण दांव पर लगा देते हैं. रिश्ते को बरकरार रखने के लिए व उसे खूबसूरती से जीने के लिए अपने मन से नकारात्मक विचारों को निकाल फेंकें, साथ ही सकारात्मक सोच के साथ खुशहाल जीवन जिएं.

स्वयं को बदलें

हमें हमेशा दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलने के बारे में सोचना चाहिए. दूसरों की सोच के बजाय पहले खुद  की सोच को सकारात्मक बनाना होगा. सकारात्मक सोच परिस्थितियों में ही नहीं, दृष्टिकोण में भी बदलाव लाती है.  नकारात्मक सोच कई घरों को बरबाद कर चुकी है. नकारात्मक सोच के कारण हंसतेखेलते वैवाहिक जीवन में दरार पैदा हो जाती है. जब कहीं पर भी कोई भी कुछ भी घटता हो तो उसे अपने साथ जोड़ कर न सोचें, कि आप के परिवार के सदस्य भी ऐसा ही करते हैं.

तनाव दूर रखें

कई बार जिंदगी में बहुतकुछ ऐसा घटित होता है जिस पर हमारा बस नहीं चलता. ऐसे में अपने और अपने जीवनसाथी को नकारात्मक दिशा में सोचने से रोकने के लिए प्रयास करें. यदि आप के पार्टनर का समय सही नहीं चल रहा, तो उसे अपना पूरा सहयोग दें, न कि उसे नकारात्मक बातें बोल कर उस का मनोबल गिराएं.

आरोपप्रत्यारोप से बचें

हमेशा किसी कार्य के सफलतापूर्वक नहीं हो पाने पर पार्टनर पर आरोप न लगाएं कि उस की वजह से कार्य सफलतापूर्वक नहीं हो पाया या हमेशा यह कोसते रहना कि जब से तुम मेरी जिंदगी में आए हो, तभी से ऐसा हो रहा है. ऐसा वही बोलता है जो नकारात्मक सोच रखता है. तो जरूरी है कि एकदूसरे पर आरोप लगाने से बचें. आरोप लगाने से रिश्तों में तनाव के साथ कड़वाहट घुलती जाती है और फिर वे एक समय पर आ कर कमजोर पड़ जाते हैं.

तुरंत प्रतिक्रिया ठीक नहीं

अकसर पतिपत्नी में लड़ाई इसी बात पर होती है कि वे बिना सोचेसमझे किसी बात पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर देते हैं. यह एक तरह की नकारात्मक क्रिया है जिस में आप ने बिना सोचेसमझे अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर दी. इस से तनाव बढ़ता है. ऐसे में जरूरी है कि आप सही से अपने पार्टनर की बात सुन कर और समझ कर ही प्रतिक्रिया दें.

रोकटोक से चिढ़ें नहीं

कई बार ऐसा होता है कि हमारा पार्टनर ज्यादा फिक्र करने की वजह से आप से बारबार सवाल करता है या फोन करता है या पूरे दिन का जायजा लेता है कि  तुम ने पूरे दिन क्या किया, तो उसे नकारात्मकता में न लें.  ऐसे में जरूरी है कि आप उस का सम्मान करें. उस की फिक्र को रोकटोक न समझें. अगर वह आप से कुछ पूछे तो आप के प्रति उस की चिंता को समझें.

निजता भी जरूरी

पतिपत्नी के बीच थोड़े स्पेस की बेहद आवश्यकता होती है. कई बार आप की नकारात्मक सोच आप पर हावी हो जाती है. आप रिश्ते में निजता देने के बजाय जरूरत से ज्यादा रोकटोक करते हैं. इस से रिश्ते में दरारें पैदा हो सकती हैं. खासतौर से, शादीशुदा जिंदगी में इस का होना बहुत जरूरी होता है. एकदूसरे की पसंद, नापसंद और खासकर निजी स्वतंत्रता का खयाल रखना बहुत माने रखता है.

मांगें पूरी न होना

पति और पत्नी के जीवन में नकारात्मकता तब घर करने लगती है जब पत्नी को लगता है कि मेरा पति मेरी खुशियों के बारे में नहीं सोचता है. वहीं, पत्नी का हमेशा नाजायज मांगों के लिए लड़ना पति के मन में नकारात्मक भाव को पनपने देता है जिस के कारण मन में एकदूसरे के प्रति खटास बढ़ती जाती है. ऐसे में जरूरी है कि पत्नी को सकारात्मक सोच रखते हुए कि आज नहीं तो कल सब सही हो जाएगा, पति की सीमित आय में रहना सीखना चाहिए और सुखमय जीवन व्यतीत करना चािहए.

हमेशा शक करना

पतिपत्नी का रिश्ता विश्वास की बुनियाद पर टिका होता है. लेकिन पार्टनर पर शक करना आप की नकारात्मक सोच का परिणाम होता है. अकसर महिलाएं अपने पति पर बेवजह शक करती रहती हैं. इसी तरह कई बार पति, जिन की पत्नियां कामकाजी हैं, पर शक करते  हुए नजर आते हैं. जरूरी है कि हमेशा नकारात्मक सोचने के बजाय अपनी सोच में सकारात्मकता लाएं. तभी आप अपनी जिंदगी खुशहाल तरीके से गुजार पाएंगे.

यों बचें नकारात्मकता से

  1. अकसर देखने में आता है कि आप पुरानी बातों को ले कर घर में कलेश करते रहते हैं, ऐसे में जरूरी है कि पुरानी बातों को छोड़ कर आज में जिएं.
  2. जब आप को लगे कि आप के और आप के पार्टनर के बीच नकारात्मकता घर करती जा रही है तो विषयों को साथ में बैठ कर सुलझाएं जिस से बात और अधिक न बढ़े.
  3. औफिस या घर का काम उतना ही करें जितना आप से किया जाए. ज्यादा कार्य न कर पाने पर आप में नकारात्मकता पनपने लगती है, साथ ही कोई भी काम सहीरूप से पूरा नहीं हो पाता है.
  4. ऐसे लोगों से दूर रहें जो नकारात्मक सोच रखते हैं, बल्कि हमेशा सकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों को अपना दोस्त बनाएं.
  5. आप और आप का पार्टनर रोज साथ में सैर पर जाएं, इस से स्ट्रैस कम होता है, साथ ही मन को शांति मिलती है.
  6. अपनेआप को किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखें. इस से आप सकारात्मक सोच रख सकेंगे.
  7. हमेशा एकदूसरे के बीच विश्वास को बनाए रखने के लिए हर वह कोशिश करें जो एक सफल दांपत्य के लिए जरूरी है.
  8. एकदूसरे की पसंद या नापसंद को ध्यान में रखते हुए उन चीजों को नकारात्मक न ले कर, उन पर सकारात्मक तरीके से सोचें.

 

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