घर में बनाएं परवल मुठिया

सामग्री

  • 1 कप परवल छिले,
  • बीजरहित और चौप किए,
  • 1/2 कप प्याज बारीक कटा,
  • 1/4 कप बारीक सूजी,
  • 1/4 कप मोटा बेसन,
  • 1/2 कप गेहूं का आटा,
  • 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला,
  • 2 छोटे चम्मच अदरक व हरीमिर्च पेस्ट,
  • 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर,
  • 1 बड़ा चम्मच धनिया व जीरा पाउडर,
  • 1/2 छोटा चम्मच सौंफ पाउडर,
  • 1 बड़ा चम्मच चीनी, चुटकी भर हींग पाउडर,
  • 1 बड़ा चम्मच नीबू का रस,
  • 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल,
  • 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी,
  • 1/2 छोटा चम्मच खाने वाला सोडा, नमक स्वादानुसार.

सामग्री तड़के की

1 छोटा चम्मच राई, 2 बड़े चम्मच तिल, चुटकी भर हींग पाउडर, 2 बड़े चम्मच रिफाइंड औयल.

सामग्री सजावट की

1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी, 1/4 बड़ा चम्मच नारियल ताजा कद्दूकस किया, 1 छोटा चम्मच चाटमसाला.

विधि

  • मुठिया की सारी सामग्री को मिला कर ऊपर से पानी डाल कर अच्छी तरह मिलाएं और फिर छोटेछोटे गोले बना कर भाप में 8-10 मिनट पकाएं.
  • फिर हर गोले के चाकू से 2-2 भाग करें.
  • अब एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के हींग, राई और तिल का तड़का लगाएं.
  • इस में मुठिया डाल कर धीमी आंच पर करारी होने तक सेंकें.
  • फिर सर्विंग प्लेट में डाल कर चाटमसाला बुरकें. धनियापत्ती व नारियल से सजा कर सर्व करें.

आलिया और रणबीर ने किया बेटी के नाम का ऐलान, दादी ने किया है नामकरण

बॉलीवुड की स्टार आलिया भट्ट और रणबीर कपूर हाल ही माता-पिता बने थे, आलिया ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया था, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी, इसी बीच बेटी को जन्म लिए 24 दिन बीत गए है और स्टार्स ने अपनी बेटी के नाम का ऐलान सोशल मीडिया पर किया है.

आपको बता दें. कि आलिया ने बेटी को जन्म 6 नवंबर को दिया था, जिसके नाम अब सामने आ चुका है जी हां, आलिया और रनबीर ने अपनी बेटी का नाम एक टी-शर्ट पर प्रिंट कराया है, जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर फैंस से साझा की है. आलिया की बेटी का नाम राहा कपूर रखा है. जिसको बहुत ही खूबसूरती से सोशल मीडिया पर शेयर किया है. ये नाम रणबीर की मां नीतू कपूर ने रखा है।

 

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शेयर फोटो में अपनी बेटी राहा कपूर के नाम का मतलब भी बताया है और एक लंबी पोस्ट लिख कर डाली है आलिया ने बताया है कि ये नाम उनकी दादी (नीतू कपूर) ने चुना है। राहा नाम के बहुत सारे मतलब होते है. राहा का सही मतलब दिव्य रास्ता है. स्वाहिली में इसका मतलब जॉय (खुशी) है. संस्कृत में इसका मतलब वंश है. बंगाली भाषा में इसका मतलब आराम, कंफर्ट और रिलीफ है. अरबिक में इसका मतलब शांति है. इसका मतलब खुशी, आजादी और आशीर्वाद भी होता है और सच में उसके नाम के साथ… उस पहले पल से जब हमने उसे गोद में लिया… हमने ये सब महसूस किया. शुक्रिया राहा, हमारे परिवार और हमारी जिंदगी में आने के लिए. ऐसा लगता है कि जैसे हमारी जिंदगी अभी शुरू हुई हो.

आलिया और रणबीर का बिजी शेडयूल

 

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कपल के वर्क फ्रंर्ट की बात करें, तो आलिया इन दिनों फिल्मों से ब्रेक पर है. जबकि स्टार रणबीर कपूर अपने अपकमिंग फिल्म एनिमल की शूटिंग में बीजी चल रहे है इस फिल्म को कबीर सिंह फेम निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा बना रहे है. इस फिल्म के बाद एक्टर फिल्म ब्रह्मास्र2 में बीजी नज़र आएंगे .दूसरी ओर आलिया भी ब्रह्मास्र2 की शूटिंग में बीजी नज़र आएंगी. इसके अलावा हॉलीवुड की फिल्म हार्ट ऑफ स्टोन में काम करेगी।

एक्ट्रेस नीना गुप्ता ने खोले लाइफ के कई राज, पढ़ें इंटरव्यू 

80 के दशक में वह प्रसिद्द क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स के साथ प्रेम संबंधों की वजह से चर्चा में रही और बिन ब्याहे ही माँ बनकर बेटी मसाबा को जन्म देने वाली अभिनेत्री नीना गुप्ता के इस बोल्ड स्टेप की काफी आलोचना हुई, लेकिन उसने किसी बात पर बिना ध्यान दिए ही आगे बढ़ती गयी. हालाँकि विवियन ने बेटी को अपना नाम दिया, पर नीना को पत्नी का दर्जा नहीं दिया. नीना ने सिंगल मदर बनकर बेटी को पाला, जो एक प्रसिद्ध फैशन डिज़ाइनर है. इसके बाद साल 2008 में नीना ने चार्टेड एकाउंटेंट विवेक मेहरा से शादी की और अब खुश है. नीना स्पष्टभाषी है, जिसका प्रभाव उसके कैरियर पर भी पड़ा, पर वह इससे घबराती नहीं.

नीना गुप्ता हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर अदाकारा, टीवी अभिनेत्री,निर्माता, निर्देशक के रूप में परिचित है. उन्होंने अपने हॉट फोटो शूट, प्रेम प्रसंगों और नयी सोच को लेकर हमेशा चर्चा में रही. उनकी फिल्मों की अगर बात करें तो उन्होंने हमेशा लीक से हटकर फिल्में की और कमोवेश सफल रही. वह आज भी गृहशोभा पढ़ती है और इस पत्रिका के प्रोग्रेसिव विचार से सहमत रखती है. उनकी फिल्म उंचाई की सफलता को लेकर वह बहुत खुश है और ज़ूम लिंक पर बातचीत की जिसमे उन्होंने अपने कैरियर से जुडी कई राज से पर्दा उठाया, आइये जाने उनके जीवन की कुछ ऐसी रोचक बातें. 

फिल्म की सफलता के बारें में कुछ भी कहना कम होगा, क्योंकि इस फिल्म को जिस भावना के साथ बनाई गयी है, वह उसमे पूरी तरह से उतर कर आई है. इसके अलावा इतनी बड़ी फिल्म मेकर राजश्री प्रोडक्शन और उसमे सूरज बडजात्या की सोच जुडी हुई है. फिल्म में दिखाई गयी भावना इतनी प्योर है कि उसका एहसास सभी को हो रहा है. इसलिए ये सफल हुई है, इसे युवा और वयस्क सभी खुद को जोड़ पा रहे है. मैं बहुत अधिक खुश हूँ, क्योंकि पेंडेमिक के बाद दर्शकों को हॉल तक लाना मुश्किल हो रहा था, लेकिन इस फिल्म ने वो काम कर दिखाया.

 सुनहरे दिन 

ओटीटी की वजह से आज सभी उम्र और वर्ग के कलाकारों को काम मिल रहा है, इसे नीना सबसे अच्छा समय मानती है, वह कहती है कि आज हर कोई बिजी है और काम जरुरी भी है, क्योंकि पेंडेमिक की वजह से लोगों ने 3 साल तक किसी प्रकार की काम नहीं किये है, लेकिन अब वे इसे मेहनत से कर रहे है. आर्टिस्ट्स से लेकर, निर्माता, निर्देशक, टेक्निशियन आदि सभी को आज कुछ न कुछ काम है. अच्छी-अच्छी भूमिका भी मुझे करने को मिल रही है, लेकिन अच्छाई के साथ-साथ कुछ गलत चीजे भी जीवन में आती है, मसलन कींडल, मोबाइल, लैपटॉप में कहानी लोग पढने लगे है, लेकिन किताब और बुक शॉप अभी भी है, वे बंद नहीं हुई है. वैसे ही थिएटर जाने की आदत जो लोगों में थी, जिसमे वे अपने परिवार के साथ आउटिंग पर जाना समझते है, उसकी जगह में कमी नहीं आ सकती. इसके लिए इंडस्ट्री के सभी को एक अच्छी कहानी कहने की जरुरत है.

खुद की सोच बनी जर्नी में रुकावट  

नीना के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आये है, लेकिन उन्होंने उससे निकलकर आज एक मुकाम पर पहुंची है, जहां उन्हें दर्शक भी देखना पसंद करते है, लेकिन जितनी पॉपुलैरिटी उन्हें मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल पाई है, इसकी वजह के बारें में नीना बताती है कि मेरी जर्नी में मैंने जितनी मेहनत की थी, उसका श्रेय नहीं मिलने की वजह, मैं खुद को दोषी मानती हूँ, क्योंकि कई बार मेरा ध्यान काम से भटक जाता था और खुद सेटल होने की इच्छा होती थी, मेरा ध्यान उस समय एक पुरुष पर था. जैसा कि जवान होने पर अधिकतर महिला एक अच्छा घर -परिवार बसाना चाहती है. इसके अलावा मेरी दूसरी गलती थी, मुझे इस इंडस्ट्री में घुसने के लिए क्या करना चाहिए ये बताने वाला कोई नहीं था. तीसरी बात मेरा शाय नेचर, जिसमे मैं किसी से काम के बारें में कह नहीं सकी, मेरे एक दोस्त जो फिल्मे बनाता था, उससे भी मैंने कभी काम मांग नहीं पाई. फिल्म इंडस्ट्री में ‘मैं अच्छी एक्टिंग करती हूँ, मुझे काम दो’ ये कहना पड़ता है, तब मुझे लगता था कि वे गुस्सा होंगे, पर ऐसा नहीं होता, काम मिलता है. यही मेरी जर्नी में रुकावट बनी है. 

आती है सहजता अनुभव से 

नेचुरल लुक की बात करें तो नीना ने हमेशा सहजता से भूमिका निभाई है, इसे कर पाने की वजह उनका अनुभव और लगातार सीखते रहने की कोशिश है. नीना कहती है कि मैंने शुरू में अपने प्रतिभा को आगे लाने में समर्थ भले ही न रही हो, पर अब मुझे हर भूमिका अलग और नयी मिल रही है. हालाँकि मैंने शुरू में अभिनेत्री की भूमिका नही निभाई, लेकिन छोटे-छोटे बहुत काम फिल्म और टीवी में किये है, जिससे मेरे पास एक अनुभव है. मेरे अंदर ‘सबसे बेस्ट हूँ’ का गुमान कभी नहीं आया, इससे मैं नीचे नहीं गिरी और आज भी सीख रही हूँ. आज भी मैं अपने काम में 10 गलतियाँ ढूंढती हूँ. समय मिलने पर मैं दिल्ली अपने पति और उनके परिवार वालों से मिलने चली जाती हूँ. रोज की दिनचर्या की बात करें, तो सुबह उठकर मैडिटेशन करना, खाना बनाना, टहलना आदि रोज करती हूँ. साथ ही महीने के 15 दिन मैं शास्त्रीय संगीत भी सीखती हूँ.

मुश्किल दौर   

नीना गुप्ता के सबसे मुश्किल दौर के बारें में पूछने पर वह बताती है कि मेरे जीवन का सबसे मुश्किल दौर तब था, जब मसाबा पैदा हुई.  सोशल, फाइनेंसियल, पर्सनल प्रेशर आदि बहुत सारे मेरे जीवन में आ गए थे. सबकुछ करने में बहुत समस्या आई है, लेकिन हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ समस्या होती है, केवल उसका स्वरूप अलग होता है. परेशानी आने पर अगर मैं नशे की शरण में या सेल्फ पिटी करूँ, तो उसका हल निकलने वाला नहीं और उस स्थिति में आगे बढ़ना भी बहुत कठिन होता है. ऐसे में सबकुछ भूलकर आगे निकलना पड़ता है. कैसे चलू, कौन साथ होगा, पैसे का इंतजाम कैसे होगा आदि कई समस्याएं सामने खड़ी होती है, लेकिन सभी आगे बढ़ सकते है, पैसे है, तब भी पैसे न हो तब भी, केवल कुछ को एक संकल्प लेनी पड़ती है. उस वक्त मेरे पास भी पैसे नहीं थे, मैं पेइंग गेस्ट में रहती थी. मेरा एक दोस्त मुंबई के पृथ्वी थिएटर में कैफे चलाता था. उसको मेरे हाथ का बनाया बैगन का भरता बहुत पसंद था, मैं उसके लिए भरता बनाकर ले जाती थी. उस दिन मुझे फ्री में डिनर मिल जाता था. काम कोई भी छोटा नहीं होता, कल अगर मेरे पास पैसे न हो, तो मैं झाड़ू-पोछा, या खाना बनाकर भी पैसे कमा सकती हूँ. मैंने एम् फिल की पढाई की है, मैं बच्चों को पढ़कर या योगा सिखाकर भी पैसे कमा सकती हूँ. ऐसी परिस्थिति में कभी ये सोचना ठीक नहीं कि पति ने मुझे पैसे नहीं दिए, छोड़ दिया है, बच्ची है, तो मेरा क्या होगा. हर काम हमेशा काम ही होता है. 

मिला दोस्तों का सहयोग 

नीना गुप्ता को हर पढ़ाव में एक अच्छा दोस्त मिला है, जिससे उन्हें बहुत सहयोग मिला है. सबसे अधिक अच्छा दोस्त दीपक काजिर है, जिसके साथ 10 साल तक बात न भी करने पर मुझे पता है कि वह मेरा साथ हर मुसीबत में देगा. इसके अलावा मुंबई में दंगे के समय मैं आराम नगर में थी, वहां पर रहने वाले पडोसी पति-पत्नी ने भी मुझे बहुत हेल्प किया. मेरे पिता की मत्यु के बाद भी इन दोनों दम्पति ने बहुत सहयोग दिया है. अभी भी मैं सालों बाद अपने दोस्तों से मिलती हूँ और बहुत अच्छा महसूस होता है. मेरी सबसे अच्छी दोस्त मेरी बेटी मसाबा है. हम दोनों आपस में कपडे शेयर करते है, जूते की साइज़ दोनों की एक है. साथ में शौपिंग करते है, कहीं घूमने भी साथ जाते है. आज के समय में माता-पिता को बच्चों के दोस्त बनना है, उन्हें रेस्पेक्ट दें और उनकी बातें सुने. कई बार माता-पिता उन्हें छोटा समझकर उनकी बातें टाल देते है, जो ठीक नहीं.  

मैं आने वाले नए साल में सभी से ईमानदारी से काम करने का सुझाव देती हूँ, क्योंकि कई बार काम समय पर नहीं मिलता, लेकिन मेहनत जारी रखना है, ताकि एक न मिले दूसरा अवश्य मिल सकता है. 

कतरा-कतरा जीने दो – भाग 2

रागिनी का बर्थडे हो या और कोई विशेष दिन, जब भी रागिनी याद करती, उस के भइयू हाजिर हो जाते. फिर सुबह से शाम तक दोनों होस्टल से बाहर जा कर साथ घूमते, शौपिंग करते, खानावाना खा कर वापस  आते. रागिनी के पिता के अतिरिक्त  भइयू का नाम अभिवाहक के रूप  में होस्टल के रजिस्टर में दर्ज था. इसलिए उन के साथ होस्टल से बाहर जाने में किसी तरह की कोई आपत्ति न होती थी. कभीकभी रागिनी अपने  लोकल गार्जियन, अपनी रिश्ते की बूआ, के घर भी रात में ठहर जाती और दूसरे दिन उस के भइयू उसे पहुंचा दिया करते थे.

एक दिन रागिनी ने बताया, ‘मुंबई में मेरी कजिन सिस्टर सुगंधा की शादी है. सुगंधा की बैंक में नईनई नौकरी लगी है. अब  नेवी में जौब करने वाले लड़के से उस की शादी है.’ रागिनी ने मुझे अपना एक पुराना फोटो अलबम दिखाया जिस में 3 बच्चियां और  उन के मम्मी डैडी हैं. रागिनी ने कहा, ‘बड़ी वाली सुगंधा दीदी हैं  और ये घुंघराले बालों में 4 साल की मैं हूं और  दूसरी मेरी हमउम्र नंदा है.’

तसवीर देख कर मैं चौंक गई, ‘छोटी वाली नंदा तो बिलकुल तुम्हारी जुड़वां लग रही है रागिनी? और ये घुंघराले बालों वाली आंटी  बिलकुल जैसी तुम अभी हो वैसी ही दिखती हैं.’रागिनी के मुंह से अचानक निकला, ‘हां, मम्मी हैं न.’ फिर  उस ने कहा, ‘ये मेरी मौसी हैं. इन्हें मैं मौसी मम्मी कहती हूं. और ये दोनों मेरी मौसेरी बहनें हैं. छोटी वाली नंदा अभी सीए की पढ़ाई कर रही है. मौसाजी मुंबई में एक प्राइवेट कंपनी  में जौब करते हैं. जब मैं छोटी थी, तब मौसाजी छोटे पद पर थे लेकिन अब तो ये बड़ी कंपनी के बड़े अधिकारी बन गए हैं. बड़ा घर  और बड़ी गाड़ियां हैं इन के पास. घर में नौकरचाकर लगे हैं.

‘सुगंधा दीदी और नंदा सब आजादी से रहते हैं. उन पर किसी तरह की  कोई बंदिश नहीं. सुगंधा दीदी ने अपनी मरजी से पहले अपनी पढ़ाई पूरी की, अपने पैरों पर खड़ी हुईं और  अब  उन की ही पसंद के लड़के से मौसामौसी उन की शादी कर रहे हैं. महानगर में रहने से  उन के रहनसहन का स्तर हम से ऊंचा है और सोच भी खुली है.’ मैं ने देखा यह कहती हुई रागिनी थोड़ी भावुक हो गई. उस की आंखों मे हलकी सी नमी आ गई. मैं ने पूछा, ‘और तुम इन के पास जाती हो?’

उस ने कहा, ‘हां, बचपन में गई थी, अब नहीं जा पाती. अम्माबाउजी मेरे ऊपर ही आश्रित हैं न,  इसलिए. मैं ही उन की देखभाल करती हूं. बीए तक की पढ़ाई तो मैं ने अपने शहर में की, इसलिए  उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन पीजी की पढ़ाई मेरे शहर में संभव नहीं थी,  इसलिए मुझे यहां होस्टल आना पड़ा. अम्मा की उम्र हो गई है, अब वे घर के काम बिलकुल नहीं कर सकतीं लेकिन  भइयू और गुड्डन ने कहा है कि मैं वहां की चिंता न करूं. वे लोग मेरे न रहने पर उन लोगों का ख़याल रखेंगे.

यहां  आ कर पढ़ना ही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. मुंबई जाना या सुगंधा दीदी की तरह अपने निर्णय लेना मेरे लिए संभव नहीं है.’मुझे महसूस हुआ  रागिनी अपनी कजिन बहनों के जीवनस्तर  और स्थिति से कहीं न कहीं स्वयं की तुलना कर के दुखी हो रही है. स्वाभाविक ही तो है. कहां रागिनी की अम्माबाबूजी और कहां ये लोग.

मुझे रागिनी की अम्मा याद  आ गईं…ठेठ गांव की बुजुर्ग महिला जो रागिनी की मां से ज्यादा दादीमां नजर आती थीं और धोतीकुरता पहने सीधेसादे  बाऊजी जो पिता से ज्यादा दादाजी. कभीकभी वे लोग डाक्टर, दवाई या किसी काम से इस शहर में आते  तो  रागिनी से मिलने होस्टल आया करते थे. तब  ज्यादा समय रागिनी के घर पर न रहने से होने वाली दिक्कतों की बात वे किया करते थे. रागिनी खुद को  अपराधी सा मानते हुए बारबार समझाती रहती- ‘छुट्टी होते ही आ जाएंगे अम्मा, कुछ दिनों की बात है. हम भइयू से कहेंगे, तुम लोगों को कोई परेशानी न होने पाए.’

उस की अम्मा दिल से आशीर्वाद की झड़ी लगा देतीं…‘प्रकृति उसे सदा बनाए रखे. कोई जन्म का लड़का है मेरातुम्हारा भइयू. वह न रहता, तो कब की हमारी  जान निकल जाती.  घरबाहर एक किए रहता है. कभी अपनी मां से  हमारे लिए खाना बनवा कर ले आता है, कभी गुड्डन, बिट्टन को भेज देता है, जाओ, अम्मा की मदद कर दो. तुम्हारे बाउजी का बाहर का सारा काम बेचारा वही तो देखता है.

‘इसलिए तो मैं और तुम्हारे बाऊजी चाहते हैं, तुम्हारी शादी जल्दी से जल्दी आनंद के साथ हो जाए. हम लोगों की अब उम्र हो गई. पता नहीं कब बुलावा आ जाए. अपनी आंखों के सामने तुम्हारी शादी देख लूं, तो चैन से मर पाऊंगी. आनंद के पिता से मैं ने कह दिया है, हमारा बेटाबेटी सबकुछ रागिनी ही है. जब तक जिंदा हैं हम लोग, रागिनी और  आनंद हमारी आंखों के सामने रहें, बस. हमारा क्या, अब  चार दिन की हमारी जिंदगी है, फिर गांव की जमीन, खेत, घर सब हमारे बाद रागिनी  और  आनंद को ही संभालना है.  सुगंधा की शादी हो जाए, तो तुम्हारी शादी कर के मैं और तुम्हारे बाऊजी  तीरथ पर निकलना चाहते  हैं.’

रागिनी ने धीरे से कहा, ‘अम्मा, काहे हड़बड़ा रही हो? मुझे पढ़ाई तो पूरी करने दो. मैं भी पहले सुगंधा दीदी की तरह  अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं.’ बाबूजी ने रागिनी को देख कर  थोड़े कड़े शब्दों में कहा,  ‘देख  बउवा, तुम्हारी यहां आ कर पढ़ाई करने की जिद मैं ने मान ली. लेकिन  आगे अब शादी के बाद जो मरजी आए, करना. हम नहीं रोकेंगे. लेकिन सुगंधा की बराबरी में तुम्हें हम 30 साल की उम्र तक कुंआरी नहीं रख सकते. वह बड़े शहर में रहती है. उस की बात  और है.

‘यहां गांव, समाज में लोग दस तरह की बातें करते हैं. मेरी समाज में प्रतिष्ठा है.  प्रतिष्ठा के लिए हम ठाकुर लोग जान दे भी देते हैं और जान ले भी लेते हैं. इसलिए कुछ ऊंचनीच हो, उस के पहले जरूरी है  तुम्हारी शादी हो जाए. तुम्हारे ससुराल वाले चाहें तो करना नौकरीचाकरी.’ रागिनी ने बेबसी से बाऊजी की तरफ देखा. उस की आंखें छलक आईं, तो  अम्मा ने रागिनी को दुलारते हुए कहा, ‘मन से पढ़ाई करो, बउवा और परीक्षा दे कर घर आ जाओ. पैसारुपया, सुखसाधन  सब है घर पे, लेकिन तुम्हारे बिना कुछ अच्छा  नहीं लगता. हमारा सहारा तू ही है बउवा.’

चित्र अधूरा है – भाग 4 : क्या सुमित अपने सपने साकार कर पाया

कार्तिकेय की बात सुन कर सुमित दरवाजा खोल कर उन से लिपट कर रोने लगा, विश्वास कीजिए पापा, मेरे सारे पेपर अच्छे हुए थे— पता नहीं अंक क्यों इतने कम आए?

कोई बात नहीं, बेटा, जीवन में कभीकभी अप्रत्याशित घट जाता है. उस के लिए इतना निराश होने की आवश्यकता नहीं है. अब हमें आगे के लिए सोचना है. क्या करना चाहते हो, अगले वर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठना चाहोगे या किसी कालिज में दाखिला ले कर पढ़ना चाहोगे? कार्तिकेय ने पूछा.

पापा, मैं कालिज में दाखिला ले कर पढ़ने के बजाय प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो कर अपनी योग्यता सिद्ध करना चाहूंगा, लेकिन अब मैं यहां नहीं पढ़ना चाहूंगा बल्कि दिल्ली में मौसीजी के पास रह कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करूंगा, सुमित ने कहा.

ठीक है, जैसी तेरी इच्छा. वैसे भी तेरे मौसाजी तो इसी वर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने के लिए कह रहे थे. किंतु हम सोच रहे थे कि तुम्हारा काम यहीं हो जाएगा, लेकिन तब उन की बात पर हम ने यान ही नहीं दिया था. दिल्ली में अच्छे कोंचिंग इंस्टीट्यूट भी हैं, कार्तिकेय बोले.

उमा की सुमित को दिल्ली भेजने की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी. अनुज भी भैया के दूर होने की सोच कर उदास हो गया था, इसलिए दोनों ही चाहते थे कि वह यहीं रह कर कुछ करे. यहां भी तो सुविधाओं की कमी नहीं है, यहां रह कर भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की जा सकती है.

कल सुमित की कुशलक्षेम पूछने के लिए दिवाकर और अनिला का फोन आया था, उस के खराब रिजल्ट की बात सुन कर उन्होंने फिर अपनी बात दोहराई तो उमा को भी लगने लगा कि शायद दिल्ली भेजना ही उस के लिए अच्छा हो. कभीकभी स्थान परिवर्तन भी सुखद रहता है और फिर जब स्वयं सुमित की भी यही इच्छा है…

वैसे भी जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है. बच्चों को सदा बांध कर तो नहीं रखा जा सकता. संतोष इतना था कि दिल्ली जैसे महानगर में वह अकेला नहीं बल्कि दिवाकर और अनिला की छत्रछाया और मार्गदर्शन में रहेगा.

दिवाकर दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे, सुमित को सदा प्रथम आते देख कर उन्होंने कई बार कहा था कि उसे दिल्ली भेज दिया जाए जिस से वह प्रतियोगी परीक्षाओं की उचित तैयारी कर किसी अच्छे इंस्टीट्यूट से इंजीनियंरिंग या मेडिकल की डिगरी ले तो भविष्य के लिए अच्छा होगा.

सुमित को दिल्ली भेज दिया था. वह बीचबीच में छुट्टियों में घर आता रहता था. एक बार सुमित और अनुज किसी बात पर झगड़ रहे थे. बेकार ही उमा कह बैठी, पता नहीं, कब तुम दोनों को अक्ल आएगी? दूर रहते हो तब यह हालत है. यह नहीं कि बैठ कर परीक्षा की तैयारी करो. पड़ोस के नंदा साहब के लड़के को देखो, प्रथम बार में ही मेडिकल में सेलेक्शन हो गया. कितनी प्रशंसा करती है वह अपने बेटे की- मैं किस मुंह से तुम्हारी तारीफ करूं- यही हाल रहा तो जिंदगी में कुछ भी नहीं कर पाओगे— जब तक हम हैं, दालरोटी तो मिल ही जाएगी, उस के बाद भूखों मरना.

सुमित तो सिर झुका कर बैठ गया किंतु अनुज बोल उठा, ममा, आप ने कभी अधूरे चित्र को देखा है, कितना अनाकर्षक लगता है…

मुझे असमंजस में पड़ा देख कर वह फिर बोला, ममा, अभी हम अधूरे चित्र के समान ही हैं— कभी कोई चित्र शीघ्र पूर्णता प्राप्त कर लेता है और कभीकभी पूर्ण होने में समय लगता है.

मैं उस की बात का आशय समझ कर कह उठी, बेटा, पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं.

कार्तिकेय, जो पीछे खड़े सारा वार्तालाप सुन रहे थे, भी कह उठे, बातें बनाना तो बहुत आसान है बेटा, किंतु कुछ कर पाना—कुछ बन पाना बहुत ही कठिन है. जब तक परिश्रम और लगन से येय की प्राप्ति की ओर अग्रसर नहीं होगे तब तक सफल नहीं हो पाओगे.

सुमित के 2 बार प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल हो जाने से हम सब निराश हो गए थे. कार्तिकेय ने तो सुमित से बातें करना ही छोड़ दिया था. वह बीचबीच में घर आता भी तो अपने कमरे में ही बंद पड़ा किताबों में सिर छिपाए रहता, मेरे मुंह से ही जबतब न चाहते हुए भी अनचाहे शब्द निकल जाते. तब दादाजी ही उस का पक्ष लेते हुए कहते, बेटा, ऐसा कह कर उस का मनोबल मत तोड़ा कर— सब डाक्टर और इंजीनियर ही बन जाएं तो अन्य क्षेत्रें का काम कैसे चलेगा? धैर्य रखो— एक दिन अवश्य वह सफल होगा.

पिताजी, न जाने वह शुभ घड़ी कब आएगी—? मांजी तो पोते से इलाज करवाने की अधूरी इच्छा लिए ही चली गईं. अब और न जाने क्या देखना बाकी है—?

बेटा, इच्छा तो इच्छा ही है, कभी पूरी हो पाती है कभी नहीं. वैसे भी क्या आज तक किसी मनुष्य की समस्त इच्छाएं पूर्ण हुई हैं, लिहाजा उस के लिए किसी को दोष देना और अपमानित करना उचित नहीं है, वह उतने ही संयम से उक्कार देते, तब लगता कि मुझ में और कार्तिकेय में पिताजी के समान सूझबूझ क्यों नहीं है. सुमित की परीक्षा की इन घडि़यों में अपने मधुर वचनों से और उस के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का पता लगा कर उस का मनोबल बढ़ाने का प्रयास क्यों नहीं करते?

वैसे भी सुमित को बचपन से ही मुझ से ज्यादा अपने पापा से लगाव था, अतः उन की बेरुखी से वह बुरी तरह घायल हो गया था. तभी, इस बार सुमित जो गया, आया ही नहीं.

अनिला लिखती, ‘दीदी, सुमित ने स्वयं को पढ़ाई में डुबो लिया है, लेकिन पता नहीं क्यों वह सफल नहीं हो पा रहा है…? जबजब वह घर से लौटता है तबतब वह और भी ज्यादा निराश हो जाता है. शायद अपनी उपेक्षा और अवहेलना के कारण.’

अब उमा को भी महसूस होने लगा था कि शायद अभी तक का हमारा व्यवहार ही उस के प्रति गलत रहा है. तभी उस में आत्मविश्वास की कमी आती जा रही है, और हो सकता है वह पढ़ने का प्रयत्न करता हो, लेकिन अति दबाव में आ कर वह पूरी तरह यान केंद्रित न कर पा रहा हो.

प्रारंभ से ही बच्चों को हम अपनी आकांक्षाओं, आशाओं के इतने बड़े जाल में फांस देते हैं कि वह बेचारे अपना अस्तित्व ही खो बैठते हैं, समझ नहीं पाते कि उन की स्वयं की रुचि किस में है, उन्हें कौन से विषय चुनने चाहिए. वैसे भी हमारी आज की शिक्षा प्रणाली बच्चों के सर्वांगीण विकास में बाधक है. वह उन्हें सिर्फ परीक्षा में सफल होने हेतु विभिन्न प्रकार के तरीके उपलब्ध कराती है न कि जीवन के रणसंग्राम में विपरीत परिस्थितियों से जूझने के. बच्चे की सफलता, असफलता और योग्यता का मापदंड केवल विभिन्न अवसरों पर होने वाली परीक्षाएं ही हैं. चाहे उसे देते समय बच्चे की शारीरिक, मानसिक स्थिति कैसी भी क्यों न हो?

सुमित के न आने के कारण उमा ही बीचबीच में जा कर मिल आती. उसे अकेला ही आया देख कर वह निराश हो जाता था. वह जानती थी कि उस की आंखें पिता के प्यार के लिए तरस रही हैं, लेकिन कार्तिकेय ने भी स्वयं को एक कवच में छिपा रखा था, जहां बेटे की अवहेलना से उपजी आह पहुंच ही नहीं पाती थी. शायद पुरुष बच्चों की सफलता को ही ग्रहण कर गर्व से कह सकता है— ‘आखिर बेटा किस का है?’ लेकिन एक नारी—एक मां ही बच्चों की सफलताअसफलता से उत्पन्न सुखदुख में बराबर का साथ दे कर उन्हें सदैव अपने आंचल की छाया प्रदान करती रहती है.

सुमित की ऐसी दशा देख कर उमा काफी विचलित हो गई थी, लेकिन अब कुछ भी कर पाने में स्वयं को विवश पा रही थी. पितापुत्र के शीत युœ ने पूरे घर के माहौल को बदल दिया था. अब तो हंसमुख अनुज के व्यक्तित्व में भी परिवर्तन आ गया था. वह भी धीरेधीरे गंभीर होता जा रहा था. सिर्फ काम की बातें ही करता था. पूरे दिन अपने कमरे में कैद किताबों में ही उलझा रहता— शायद पापा की खामोशी ने उसे बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था.

अनिला से ही पता चला कि सुमित ने बी-एससी- प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर सिविल सर्विसेस की कोचिंग करनी प्रारंभ कर दी है और उसी में रातदिन लगा रहता है-पिताजी के हंसमुख स्वभाव के कारण ही घर में थोड़ी रौनक थी वरना अजीब सी खामोशी छाती जा रहा थी— मां की मृत्यु के पश्चात वह दोपहर का समय अनाथाश्रम जा कर बच्चों और प्रौढ़ों को शिक्षादान करने में व्यतीत करते थे. इस नेक काम की दीप्ति से ही आलोकित उन का तनमन मरुस्थल हो आए. घर में थोड़ी शीतल बयार का झोंका दे कर प्रसन्नता देने का प्रयास करता रहता था.

उमा बेटा, एक कप चाय मिलेगी? सुबह की सैर से लौट कर आए पिताजी ने किचन में आ कर दूध से भरा जग रखते हुए कहा.

बस, एक मिनट, पिताजी—

वास्तव में उन की सैर और भैंस का ताजा दूध लाने का काम दोनों साथसाथ हो जाते थे. कभीकभी सब्जी, फल इत्यादि यदि उचित दाम में मिल जाते तो वह भी ले आते थे.

चाय का कप टेबुल पर रखते हुए उमा ने कहा, पिताजी, आप का स्वप्न पूरा हो गया.

स्वप्न— कैसा स्वप्न—? क्या सुमित सिविल सर्विसेज में आ गया? पिताजी ने चौंकते हुए पूछा.

हां, पिताजी, आज ही उस का फोन आया था, उमा ने कहा.

मुझे मालूम था, आखिर पोता किस का है? वह हर्षातिरेक से बोल उठे थे, साथ ही उन की आंखों में खुशी के आंसू भी छलक आए थे.

सब आप के आशीर्वाद के कारण ही हुआ है. बेटा, बड़ों का आशीर्वाद तो सदा बच्चों के साथ रहता है, लेकिन उस की इस सफलता का मुख्य श्रेय दिवाकर और अनिला को है जिन्होंने उसे पलपल सहयोग और मार्गदर्शन दिया वरना जैसा व्यवहार उसे तुम दोनों से मिला उस स्थिति में वह पथभ्रष्ट हो कर या तो चोरउचक्का बन जाता या बेरोजगारों की संख्या में एक वृद्धि और हो जाती.

पिताजी ज्यादा ही भावुक हो चले थे, वरना इतने कठोर शब्द वह कभी नहीं बोलते. वह सच ही कह रहे थे, वास्तव में दिवाकर और अनिला ने उसे उस समय सहारा दिया जब वह हमारी ओर से निराश हो गया था. मैं पीछे मुड़ी तो देखा कार्तिकेय खड़े थे. एक बार फिर उन का चेहरा दमक उठा था शायद आत्माभिमान के कारण— योग्य पिता के योग्य पुत्र होने के कारण, लेकिन वह जानती थी कि वह अपने मुंह से प्रशंसा का एक शब्द भी नहीं कहेंगे. मैं कुछ कहने को हुई कि वह अपने कमरे में चले गए.

आज सुमित के कारण हमारी नाक ऊंची हो गई थी. कल तक जो बेटा नालायक था, आज वह लायक हो गया. संतान योग्य है तो मातापिता भी योग्य हो जाते हैं वरना पता नहीं कैसे परवरिश की बच्चों की कि वे ऐसे निकल गए कि ताने सुनसुन कर जीना दुश्वार हो जाता है. यह दुनिया का कैसा दस्तूर है?

आज का मानव, जीवन में आए तनिक से झंझावातों से स्वयं को इतना असुरक्षित क्यों महसूस करने लगता है कि अपने भी उसे पराए लगने लगते हैं? अनुज का कथन याद हो आया था— ‘एक अधूरा चित्र तो पूर्णता की ओर अग्रसर हो रहा है दूसरा भी समय आने पर रंग बिखेरेगा ही,’ इस आशा ने मन में नई उमंग जगा दी थी.

डेली लुक में स्कार्फ कैरी करने के ये है 6 टिप्स

आजकल डिफरैंट लुक और अलगअलग रंगों के स्कार्फ महिलाओं को खूब भा रहे हैं. इन में मिक्स कलर ऐंड डिजाइनर स्कार्फ की सब से ज्यादा डिमांड है. स्कार्फ कैरी करने से जहां एक ओर तो आप चेहरे को कवर कर धूप से बच सकती हैं वहीं दूसरी ओर अपनी पर्सनैलिटी में भी निखार ला सकती हैं. तभी तो आज हर आयुवर्ग की महिलाओं को स्कार्फ कैरी करना खूब भा रहा है. आइए, जानें कि मार्केट में किसकिस तरह के स्कार्फ उपलब्ध हैं. इन के बारे में मार्केट सर्वे और फैशन डिजाइनर अनुभूति जैन से बातचीत कर जाना गया है.

1.मोती वर्क वाला: आप यह स्कार्फ कौटन, सिल्क, जौर्जेट, वैल्वेट आदि किसी भी फैब्रिक में अपनी ड्रैस से मैच करता ले सकती हैं. इस के किनारों पर मोतियों से सजी हुई फ्रिल बहुत सुंदर दिखती है. इस पूरे स्कार्फ पर फूलपत्तियों आदि की डिजाइनें उभारी होती हैं और उन पर शीशे और मोती का वर्क होता है. यह आप को 200 से 700 तक में मिल जाएगा.

2.फूलों से सजा स्कार्फ: इस स्कार्फ पर विभिन्न रंगों में छोटेबड़े फूल बने होते हैं. अगर आप को फूलों की डिजाइन वाला टौप या फिर कुरती पहनना पसंद है, तो यह आप के लिए परफैक्ट है. इस स्कार्फ को आप अपनी ड्रैस के साथ मिक्स ऐंड मैच कर के पहन सकती हैं. इस के किनारे पर बेस कलर की लैस और जरी मिलेगी. यह 2 तरह की रेंज में उपलब्ध है. अगर आप को कम कीमत में चाहिए तो यह 200 में भी मिल जाएगा. लेकिन अगर पार्टीवियर स्कार्फ चाहिए जिस पर जरी आदि की लैस लगी हो तो उस की कीमत 800 से शुरू होती है.

3.ऐनिमल प्रिंट: ऐनिमल प्रिंट एक बार फिर फैशन में आ गया है. ऐनिमल स्किन, ऐनिमल स्कैचेज, ऐनिमल पैचेज आदि वैराइटी आप को इन स्कार्फों में मिल जाएगी. ये ब्राउन, पिंक, स्किन आदि खूबसूरत कलर्स में उपलब्ध हैं. वैसे तो यह प्रिंट सभी फैब्रिक्स में मिलता है, लेकिन इस का सब से अच्छा लुक जौर्जेट पर आता है. जौर्जेट में मिलने वाले ऐनिमल प्रिंट वाले स्कार्फ की कीमत 500 से शुरू होती है और अन्य फैब्रिक वाले 200 से मिलने शुरू हो जाते हैं.

4.आर्टिस्टिक स्कार्फ: जैसाकि इस के नाम से ही पता चलता है कि यह स्कार्फ आर्ट से भरपूर होता है. इस पर पेंटिंग की गई होती है. यह स्कार्फ देखने में किसी कैनवास पर उभरी किसी तसवीर जैसा लगता है. इस में बहुत से रंगों का प्रयोग कर के कोई न कोई कलाकृति उकेरी गई होती है. नियमित पहने जाने वाले आउटफिट में कलर्स भरने का काम ये प्रिंट करते हैं, क्योंकि ये काफी मिक्स किए हुए कलर्स में मिलते हैं. इसलिए इन के रंग काफी खिले हुए लगते हैं. हर ड्रैस के साथ मैच करने वाले इस स्कार्फ की रेंज 400 से शुरू होती है.

5.ज्योमैट्रिक स्कार्फ: जिगजैग प्रिंट्स, लाइंस, सर्कल्स, ब्राइट प्रिंट्स ये डिजाइनें चलन में हैं. इन के अलावा पिकासु और पोल्का डौट्स वाले स्कार्फ भी काफी पसंद किए जाते हैं. कालेजगोइंग गर्ल्स इन्हें लेना ज्यादा पसंद करती हैं. इन की कीमत भी ज्यादा नहीं है. ये स्कार्फ डेलीवियर होते हैं, इसलिए 150 से 300 तक की रेंज में मिल जाते हैं.

6.शिफौन स्कार्फ: यह स्कार्फ काफी मुलायम होता है. अगर आप की ड्रैस काफी भरे प्रिंट की है तो आप इस तरह का स्कार्फ पसंद कर सकती हैं, क्योंकि यह स्कार्फ विभिन्न रंगों में और प्लेन भी मिलता है जिसे आप दुपट्टे की जगह अपने कुरते के साथ मैच कर सकती हैं या फिर वैस्टर्न आउटफिट के साथ भी ले सकती हैं. इस का फैब्रिक काफी अच्छा होता है, इसलिए यह स्कार्फ थोड़ा महंगा होता है. यह 800 से शुरू हो कर 2-3 हजार की रेंज में भी मिलता है. यह स्कार्फ इंटरनैशनल ब्रैंड जैसे जारा, ऐपल आदि द्वारा भी बनाया जाता है.

स्कार्फ बांधने के स्टाइलिश तरीके

1.रैट्रो हेयर ऐक्सैसरीज स्टाइल: इस में स्कार्फ को हेयरबैंड की तरह बांधा जाता है और स्कार्फ के दोनों छोर की नौट बो का आकार लिए सिर के किनारों पर रहती है या फिर स्कार्फ को हेयरबैंड की तरह पहनने के बाद स्कार्फ के दोनों छोरों को गरदन के पीछे की तरफ हेयरपिन से बांध लिया जाता है.

2.ट्राइएंगल शेप: इस शेप के लिए स्क्वायर शेप का स्कार्फ यूज करें. स्कार्फ को इस तरह फोल्ड करें कि ट्राएंगल शेप आ जाए. गरदन में इस तरह लपेटें कि इस का एक कोना सामने की तरफ लटके. इसे जींस और टीशर्ट के साथ पहनें.

3.क्लासिक नौट: इस के लिए स्कार्फ को लंबाई में फोल्ड करें. इसे गरदन में लपेटें. नौट बनाएं तथा इस में दोनों सिरों को नौट में डाल कर आगे की तरफ लटकने के लिए छोड़ दें. क्लासिक नौट को वैस्टर्न के साथसाथ इंडियन ड्रैसेज के साथ भी कैरी कर सकती हैं.

4.सारंग स्कार्फ स्टाइल: इस स्कार्फ को कमर पर इस तरह बांधा जाता है कि स्कार्फ के दोनों छोरों से नौट कमर की तरफ रहती है. यह स्टाइल वैस्टर्न व इंडोवैस्टर्न स्टाइल पर खूब फबता है. इसे आप लोवेस्ट जींस, लोवेस्ट कैपरी, शौर्ट ड्रैस के साथ पहन कर स्टाइलिश बन सकती हैं.

5.बैग स्टाइल: इस स्कार्फ को पहनने के बजाय इस की बैग के हैंडल पर नौट बांधें. यह स्कार्फ आप की ड्रैस और बैग से मैचिंग होना चाहिए तभी यह आप की खूबसूरती बढ़ाएगा.

6.चोकर स्टाइल: स्कार्फ को नैक पर फ्रंट नौट बांध कर आप वैस्टर्न ड्रैसेज में ऐलिगैंट लग सकती हैं.

हैल्दी रिलेशनशिप के लिए फायदेमंद हो सकती है Kiss

भारत में किस सिर्फ रील लाइफ में ही देखने को मिलता है, रियल लाइफ में नहीं. इस किस सीन को परदे पर देख कर हम खुश तो होते हैं, लेकिन जब इस पर अमल की बात आती है तो खुलेपन की बात तो छोडि़ए, बैडरूम में भी ज्यादातर दंपती एकदूसरे को सपोर्ट नहीं करते हैं. जबकि किस पर हुए कई सर्वे बता चुके हैं कि इस से कोई नुकसान नहीं, बल्कि फायदा ही होता है.

कई महिलाएं और पुरुष अकसर यह बहाने बनाते देखे जा सकते हैं कि सुनो न, आज मन नहीं है बहुत थक गया हूं/गई हूं. कल करेंगे प्लीज. जब आप अपने पार्टनर के साथ चंद प्यार भरे लमहे गुजारना चाहें और ऐसे में आप का पार्टनर कल कह कर बात टाल दे तो आप को बुरा लगना स्वाभाविक है. लेकिन क्या आप ने कभी यह सोचा है कि ऐसा कह कर आप अपना रिश्ता तो खराब नहीं कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो सावधान हो जाएं. बहुत से ऐसे शादीशुदा जोड़े हैं, जो एकदूसरे की फीलिंग्स को इसी तरह हर्ट कर अपना रिश्ता बिगाड़ लेते हैं. सभी को प्यार को ऐक्सप्रैस करने का हक है. ऐसे में पार्टनर जब इस तरह से संबंध को रोकेगाटोकेगा तो इस से न सिर्फ आप का रिश्ता प्रभावित होगा वरन मन में भी खटास आएगी. इतना ही नहीं, ऐसा करना आप के शारीरिक व मानसिक संतुलन पर भी बुरा असर डालेगा. आप को मालूम होना चाहिए कि किस थेरैपी दे कर आप का पार्टनर पल भर में आप की सारी थकान को गायब कर सकता है. इसलिए इसे मना करने से पहले थोड़ा सोच लें. आइए, अब जानें किस की खूबियों को:

रिश्ता मजबूत बनाता है किस: यह तो हम सभी जानते हैं कि लिपलौक करने से रिश्ता अधिक मजबूत बनता है. एकदूसरे के साथ लिपलौक करने से एकदूसरे के प्रति ऐक्स्ट्रा प्यार का एहसास मिलता है. ऐसा लगता है कि मेरा पार्टनर मुझ से बेहद प्यार करता है. किस करने से औक्सीटौसिन हारमोन बनता है, जो रिश्तों को ज्यादा मजबूत बनाता है. सैक्सुअल प्लैजर को बढ़ाता है: सैक्स करने से जहां दिनभर की थकान या किसी भी तरह का तनाव तो कम होता ही है, आप का रिश्ता भी ज्यादा स्ट्रौंग बनता है. लेकिन किसी भी किस के बिना आप की सैक्स ड्राइव अधूरी रहती है. सैक्स से पहले किस आप का सैक्सुअल प्लैजर बढ़ाता है. आसान शब्दों में कहें तो सैक्स करने से पहले अपने पार्टनर के साथ एक किस सैशन जरूर करें. ऐसा करना आप के प्लैजर को न सिर्फ बढ़ावा देगा, बल्कि आप के पार्टनर को भी पूरी तरह से संतुष्ट करेगा.

स्पिट स्वैपिंग भगाए बीमारी: चुंबन करते समय जब तक स्पिट स्वैपिंग न हो तब तक किस करना बेमानी सा है. किस या लिपलौक करते समय अपने पार्टनर के साथ बेझिझक हो पूरा मजा लें और स्पिट यानी थूक आने पर पोंछें नहीं, बल्कि उस की स्वैपिंग करें, क्योंकि यह कई संक्रमणों को दूर करता है. सैक्स के दौरान किए जाने वाले किस से इम्यूनिटी भी बढ़ती है.

मिलती हैं जहां की खुशियां: एकदूसरे को बारबार किस करने से पार्टनर की आप के प्रति सैक्स के प्रति इच्छा कितनी है, का भी पता चलता है. ज्यादातर केसेज में अधिकतर महिलाएं सैक्स के प्रति बड़ी रिजर्व रहती हैं. वे पार्टनर क्या सोचेगा सोच कर सैक्स में खुल कर सपोर्ट नहीं कर पातीं. ऐसा करना न सिर्फ आप को सैक्स के प्रति रूखा दिखाएगा, बल्कि आप के पार्टनर को भी जिस्मानी तौर पर संतुष्ट नहीं कराएगा. किस करते वक्त एंडोफिंस नाम का तत्त्व निकलता है जो आप को खुश रखने में मदद करता है. अगर आप टैंशन में हैं या गहन सोचविचार में तो पार्टनर को किस करना आप के लिए दवा का काम करेगा.

दवा का काम करे किसिंग सैशन: हौट किसिंग सैशन के दौरान आप का शरीर एक ऐड्रेनलीन हारमोन रिलीज करता है, जो किसी भी तरह के दर्द को कम करने में मददगार होता है. अब दर्द को कम करने के लिए भी आप यह सैशन कई बार ट्राई कर सकते हैं. अगर आप के सिर में दर्द है तो लिपलौक जरूर ट्राई करें और इस का असर देखें और फिर इस का कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता है.

तनाव भगाए किस: दिन के ढलतेढलते इंसान भी काफी थकाथका सा महसूस करने लगता है, इसलिए सिर्फ अपने काम का दबाव या अपने हारमोनल बदलावों को ब्लेम करना गलत होगा. थके होने पर आप घर जा कर बस अपने पार्टनर के साथ एक किस थेरैपी लीजिए. यकीन मानिए, आप की थकान पलक झपकते छूमंतर हो जाएगी और आप फ्रैश महसूस करेंगे. दरअसल, किसिंग करने से कार्टिसोल नामक हारमोन लैवल कम होता है और आप के इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है. एंडोक्राइन सिस्टम से दिमाग भी स्वस्थ रहता है.

ऐक्स्ट्रा कैलोरीज करता है कम: अपनी हैल्थ के प्रति सचेत लोग अपनी अति कैलोरी को कम करने के लिए या तो ट्रेडमिल पर रनिंग करते हैं या फिर डाइट पार्ट फौलो करते हैं. अगर आप कभी जिम जाना भूल जाएं या पार्टी का मौका देख डाइट चार्ट को एक दिन के लिए फौलो न कर पाएं तब भी आप अपने पार्टनर के साथ किसिंग सैशन कर के अपनी कैलोरी बर्न कर सकते हैं. जी हां, जितनी कैलोरी आप की जिम सैशन में कम नहीं होगी उतनी आप की किसिंग सैशन में हो जाएगी. इतना ही नहीं, कैलोरी बर्न करने के अलावा किस करने से आप के चेहरे की भी ऐक्सरसाइज होती है. किस आप की स्किन मसल्स को भी टाइट करता है, जिस से आप दिखेंगे जवांजवां.

ऐलर्जी से छुटकारा: किस न सिर्फ तनावग्रस्त लोगों को सहज करता है, बल्कि कई बार ऐलर्जी जैसे खुजली आदि होने को भी दूर करता है.

डैंटिस्ट को भी रखे दूर: किस मुंह, दांतों और मसूड़ों की बीमारी से भी आप को दूर रखता है. मुंह में लार कम बने तो भी किसिंग फायदेमंद हो सकता है

प्रीमेच्योर बेबी बर्थ्स से जुड़े मिथ्स और फैक्टस

वैश्विक स्तर पर पैदा होने वाले 15मिलियन बच्चों में से 1/5 भारत में जन्म लेते है  और पूरी दुनिया में 5साल से कम उम्र में बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण समय से पहले बच्चों का पैदा होना है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में इन नवजातों की गहन चिकित्सा और देखभाल की काफी जरूरत है,जो हमारे देश में समय पर संभव नहीं होता.

प्रीमेच्योर चाइल्ड बर्थ एंड केयर वीक पर समय से पहले  शिशुओं के जन्म के बारे में नवी मुंबई, कोकिलाबेन, धीरुभाई अंबानी हॉस्पिटल की कंसलटेंट, ऑब्सटेरिक्स और गायनेकोलॉजी डॉक्टर बंदिता सिन्हा कहती है कि आम तौर पर गर्भावस्था का पूरा समय 40 हफ़्तों का होता है, लेकिन कुछ मामलों में अचानक से ऐसी जटिलताएं हो जाती हैं कि 37 हफ़्तों की गर्भावस्था पूरी होने से पहले ही शिशु का जन्म हो जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस स्थिति को प्री-टर्म या समय से पहले जन्म कहा है और इसकी तीन उप-श्रेणियां बताई हैं:

  • अत्यधिक अपरिपक्व (28 हफ़्तों से कम)
  • बहुत अपरिपक्व (28 से 32 हफ़्तों के बीच पैदा होने वाले शिशु)
  • मध्यम से देर से अपरिपक्वता (32 से 37 हफ़्तों के बीच पैदा होने वाले शिशु)

पहली बार माता-पिता बन रहे दंपति पर समय से पहले जन्म का प्रभाव

शिशु का समय से पहले जन्म, खासकर अगर शिशु गंभीर रूप से अस्वस्थ हो, तो पूरे परिवार के लिए बेहद तनावपूर्ण हो सकता है. इस समस्या के बारे में जानकारी या पूर्व अनुभव न होने की वजह से निओनेटल यूनिट में शिशु के माता-पिता को बड़े संकट से गुज़रने की भावना महसूस होती है. सी-सेक्शन या सिजेरियन सेक्शन के ज़रिए कराए गए समय से पहले जन्म में, माताओं का जन्म के बाद पहले कुछ दिनों तक अपने नवजात शिशु के साथ बहुत कम या कोई संपर्क नहीं होता है. इससे माता-पिता पर तनाव और भी ज़्यादा बिगड़ जाता है. चिंता, डिप्रेशन, पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), और कुल स्वास्थ्य पर असर पड़ने का खतरा रहता है. सिंगल साइट्स या अस्पतालों में किए गए अध्ययनों में पाया गया है कि यह नकारात्मक प्रभाव, खासकर गर्भावस्था पूरी होने के बहुत पहले जन्म के बाद पैदा होने वाले तनाव, लंबे समय तक बने रह सकते है.

समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों के बारे में मिथ एंड फैक्स

मिथ

माता-पिता को अक्सर यह लगता है कि प्रसव के पहले की देखभाल ठीक से न की जाने की वजह से उनके शिशु का जन्म समय से पहले हुआ है.

फैक्ट्स

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि समय से पहले होने वाली प्रसूतियों में लगभग आधी प्रसूतियों के कारण अज्ञात रह जाते हैं.करीबन 30 प्रतिशत मामलों में मेमब्रेन्स का समय से पहले टूटना (PPROM) कारण होता है, जबकि 15-20 प्रतिशत मामलों में प्रीक्लेम्पसिया, प्लेसेंटल एब्रप्शन, गर्भाशय के भीतर विकास को प्रतिबंध (IUGR), और इलेक्टिव प्रीटर्म बर्थ आदि कारण होते हैं. 

मिथ

समय से पहले पैदा हुए बच्चों का माता-पिता के साथ जुड़ाव नहीं हो पाता है जो आगे की ज़िन्दगी को प्रभावित करता है.

फैक्ट्स

शिशु के साथ जुड़ाव बनाने के कई तरीकें हैं। एनआईसीयू दिनचर्या में शिशु के साथ जुड़ाव बनाने के नए रास्तें माता-पिता को खोजने चाहिए. कंगारू केयर यानी त्वचा से त्वचा का संपर्क करें, डायपर बदलें, शिशु का टेम्परेचर जांचें और अगर संभव है तो स्तनपान कराएं.

मिथ

दो साल की आयु तक शिशु अपने विकास के पड़ाव पार करेगा. 

फैक्ट्स

भाषा विकास, संतुलन और समन्वय जैसे मोटर कौशल और फाइन मोटर कौशल मसलन पेंसिल पकड़ पाना, पज़ल के टुकड़ें जोड़ना आदि विकसित होने में देरी हो सकती है. करीबन 40 प्रतिशत प्रीमैच्योर शिशुओं में मोटर कौशलों में ज़रा सी कमी देखी जा सकती है और माताओं को इन शिशुओं के साथ व्यवहार में कुछ कठिनाइयां महसूस हो सकती हैं.

गर्भावस्था पूरी होने के पहले पैदा हुए बच्चों की देखभाल कैसे करें

अपने प्रीमैच्योर शिशु के साथ एक ही बिस्तर पर ना सोएं.

सोफे, कुर्सी या बिस्तर पर शिशु को पकड़ें हुए कभी न सोएं, अगर आप थके हुए हैं या आपकी कोई दवा चल रही है तो ऐसा कभी न करें. अगर आप थक गए हैं, तो शिशु को उनके बिस्तर में या मोसेस बास्केट में सुरक्षित रूप से लिटा दें.

गर्भावस्था पूरी होने पर पैदा हुए शिशुओं की अपेक्षा समय से पहले पैदा हुए शिशुओं का अपने शरीर के तापमान पर नियंत्रण कम होता है. अपने शिशु के शरीर को ज़्यादा गर्म या ज़्यादा ठंडा न होने दें. बच्चे के पलंग को सीधी धूप से और हीटर और रेडिएटर से दूर रखें. कमरे का तापमान 16-20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए. 

योनि प्रसूति के फायदे

योनि प्रसूति होने से आप बड़ी सर्जरी या सी-सेक्शन से जुड़े जोखिमों से बच जाते हैं, जैसे कि गंभीर रक्तस्राव, निशान रह जाना, संक्रमण, एनेस्थीसिया के प्रभाव और सर्जरी के बाद का दर्द आदि। योनि प्रसूति के मामलों में जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी स्तनपान शुरू किया जा सकता है।

  • माता को ठीक होने में कम समय लगता है
  • स्तनपान जल्दी शुरू हो जाता है
  • सांस की बिमारियों का खतरा कम रहता है
  • शरीर की रोग प्रतिरोध प्रणाली अच्छे से काम कर पाती है
  • स्तनपान कराने की अधिक प्रवृत्ति अधिक होती है

हालांकि, जब अनिवार्य हो, तब सी-सेक्शन की सलाह दी जाती है.

प्राथमिक सिजेरियन (सी-सेक्शन) डिलीवरी के लिए सबसे आम संकेत इस प्रकार हैं:

  • आईवीएफ प्रेगनेंसी
  • एल्डरली प्राइमिग्रेविडा
  • प्रसव पीड़ा
  • भ्रूण की हृदय गति का पता न लगाना, फीटल मालप्रेजेंटेशन
  • एक से ज़्यादा गर्भधारण
  • सस्पेक्टेड मैक्रोसोमिया

कतरा-कतरा जीने दो – भाग 1

वह जनवरी की सर्द सुबह थी जब मैं ने पहली बार पीजी गर्ल्स होस्टल में प्रवेश किया था. वहां का मनोहारी वातावरण देख मन प्रफुल्लित हो गया. होस्टल के मुख्यद्वार के बाहर  एक तरफ  आम का बगीचा, खजूर और जामुन  के पेड़ थे तो दूसरी तरफ बड़ेबड़े कैंपस  वाले प्रोफैसर्स क्वार्टर. बीच में फूलों के खूबसूरत गार्डन के बीच 2 गर्ल्स होस्टल थे. एक तरफ साइंस होस्टल और दूसरी  तरफ आर्ट्स होस्टल. गेट के अंदर पांव रखते ही लाल-लाल गुलाब, गेंदे, सूरजमुखी के फूलों की महक और रंगत  ने मेरा इस तरह स्वागत किया कि पहली बार नए  होस्टल में आने  की मेरी  सारी घबराहट  उड़नछू हो गई.

सुबह के 11बज रहे  थे लेकिन कुहासे  की वजह से ऐसा लग रहा था मानो सूरज की किरणें अभीअभी बादलों की रजाई से निकल कर  अलसाई नजरों से हौलेहौले धरती पर उतर रही हों. ओस की बूंदों से नहाई हरीभरी, नर्म, मखमली दूब पर चलते हुए मैं ने  आर्ट्स होस्टल की तरफ  अपना रुख किया. सामने गार्डन में 2 लड़कियां बैठी चाय पी रही थीं. एक बिलकुल दूधिया गोरीचिट्टी, लंबे वालों वाली बहुत सुंदर सी लड़की और दूसरी हलकी सांवली, छोटेछोटे घुंघराले बालों वाली लंबी, दुबलीपतली व  बहुत आकर्षक सी लड़की.

मैं ने उन दोनों के करीब जा कर पूछा, ‘रागिनी सिंह,  साइकोलौजी  डिपार्टमैंट, फिफ्थ ईयर किस तरफ रहती हैं?’ गोरी वाली लड़की ने इशारा किया, इधर और घुंघराले बालों वाली लड़की ने  कहा, ‘मैं ही हूं. कहो, क्या बात है?’

मैं ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘मैं, अनामिका शर्मा,  इतिहास डिपार्टमैंट से हूं. मैं ने यहां ऐडमिशन लिया है.   जब तक सीनियर्स रूम खाली नहीं कर देतीं, तब तक मुझ से होस्टल वार्डन ने इंतजार करने को कहा था. लेकिन मुझे रोज 40 किलोमीटर दूर से  आ कर क्लास करने में तकलीफ होती थी, इसलिए  मुझे मेरे क्लासमेट और  आप के पड़ोसी संजीव सिंह ने आप के पास भेजा है. उस की बड़ी बहन फाइनल ईयर में हैं, लेकिन वे इस साल  इम्तिहान नहीं दे पाएंगी और होस्टल छोड़ रही हैं. इसलिए रूम न. 101 की चाबी उस ने मुझे दी है और कहा है कि मैं  उस की बहन का जरूरी सामान आप के हवाले कर के इस रूम में  शिफ्ट हो जाऊं.’ मैं ने एक ही सांस में अपनी बात पूरी की.

रागिनी ने चौंक कर कहा, ‘रूम न. 101? अरे वाह भाई  संजीव, मुझे नहीं दिलवाया. होस्टल का सब से शानदार कमरा तुम्हें दिलवा दिया.’ रागिनी का चेहरा थोड़ी देर को बुझ गया लेकिन अगले ही पल वह मेरा सामान पकड़ कर मुझे मेरे कमरे में शिफ्ट करवाने में उत्साह से लग गई.

दरअसल, होस्टल में फिफ्थ ईयर वाले स्टूडैंट्स के लिए  डबलबैड के कमरे नीचे के फ्लोर में थे और  सिक्स ईयर में ऊपर के फ्लोर में सिंगलबैड रूम था. मेरा कमरा ऊपर के फ्लोर में बालकनी के बिलकुल सामने था जहां बैठ कर होस्टल में आनेजाने वाले सभी लोग दिखाई देते थे. साथ ही, होस्टल के गार्डन का नजारा,  फूलों की खुश्बू, तलाब और आम के पेड़ से आती  ठंडी हवा व कोयल की कूक का खूब आनंद  मिलता था. इसलिए अपनेअपने डिपार्टमैंट से आने के बाद  ज्यादातर लड़कियां शाम ढलते ही मेरे कमरे के बाहर बनी विशाल बालकनी में कुरसी डाल कर बैठ जातीं व खूब मजाकमस्ती किया करती थीं. रागिनी और उस की सहेलियों के झुंड का हिस्सा बनने में मुझे देर नहीं लगी.

जल्दी ही रागिनी से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. एक तो संजीव मेरा क्लासमेट  था,  और  दूसरे, रागिनी से उस के घरेलू संबंध थे. इस वजह से हमारा परिचय प्रगाढ़ हो गया था. इस के अतिरिक्त  उसे मेरे रूम के सामने की बालकनी बहुत पसंद थी और  मेरी  चाय पीने की आदत. चाय रागिनी को भी बहुत पसंद थी लेकिन हमारे होस्टल के मैस में चाय मिलने का कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए यह तय हुआ कि मेरे रूम में सुबहशाम की चाय बना करेगी और हम दोनों साथ पिया करेंगी. सुबह की चाय हमेशा वह ही बनाया करती थी और शाम की मैं.

दरअसल,  मेरी सुबह देर से उठने की आदत थी. मैं 8-9 बजे तक  सोया करती थी  और इतनी देर में  रागिनी नहाधो कर तैयार हो कर मेरे साथ चाय पीने को चली आया करती. पूरे अधिकार व बड़े प्यार से मेरे कमरे में आ कर मेरे बालों को कभी झकझोर कर, कभी सहला कर मुझे उठाती, और मां की तरह कहती, ‘चलो उठो, सुबह हो गई. जाओ तो जल्दी से ब्रश कर के आओ, तब तक मैं  तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’

मेरे फ्रैश हो कर आने तक वह बड़ी तरतीब से मेरा बिस्तर, मेरी किताबें सही करती, स्टोव जला कर बढ़िया चाय बनाती और बाहर बालकनी में चेयर निकाल कर मेरे आने का इंतजार करती. मुझे उस के इस अपनत्व और  परवा पर बड़ा आश्चर्य होता. 2 दिनों के परिचय में भला किसी अजनबी का कोई  इस हद तक कैसे ख़याल रख सकता है. मैं ने एकाध बार  उस से कहा- ‘रागिनी, मुझे लगता है जैसे  तुम पिछले जन्म की मेरी मां हो. क्यों करती हो मेरी इतनी परवा?’

रागिनी अपने माथे पर झूलती  घुंघराले बालों की लटों को झटक कर कहती- ‘क्योंकि  तुम  एकदम मेरे भइयू की तरह हो. वैसे ही सिर पर तकिया रख कर सोती हो. मेरी एकएक बात ध्यान से सुनती हो. एकदम  वैसे ही  बात करती हो जैसे मेरा भइयू कहता है.’

‘बउवा, तू तो मेरी मां से भी ज्यादा मां है रे. रोज सुबह से शाम तक मेरा इतना ख़याल तो मेरी मां भी नहीं रखती.’ ‘घर पर भी मैं बहुत सवेरे उठती हूं. अम्माबाऊजी को सुबह का चायनाश्ता दे कर भइयू को उठाना और चाय बना कर पिलाना मेरी आदत है. वह अपना बिस्तर  और किताबें तुम्हारी ही तरह  कभी सही नहीं करता. सब मैं करती हूं.’

मैं ने एक बार पूछा… ‘भइयू तुम्हारा भैया है, रागिनी?  रागिनी ने उदास हो कर कहा- ‘नहीं, मेरा कोई भाई नहीं. अम्मा, बाऊजी और मैं घर के पुराने वाले  हिस्से में रहते हैं. बाहर नए 4 कमरे बाऊजी ने बनवाए थे,  उसी में किराए में भइयू, उस की बहनें गुड्डन, बिट्टन और  आंटीअंकल रहते हैं. वे लोग मेरे बचपन के समय से हमारे  घर में रह रहे हैं और हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं. गुड्डन, बिट्टन मेरी सहेलियां हैं, वे लोग अपने बड़े भाई  आशीष भैया को भइयू कहती हैं, तो मेरा भी वह भइयू बन गया. अम्मा, बाऊजी मुझे बउवा कहते हैं तो भइयू की मैं बउवा बन गई.’

रागिनी की हर बात में भइयू का जिक्र रहता. वह पढ़ाई में बहुत ही होशियार थी. जब भी कोई उस के अच्छे मार्क्स या सुंदर हैंडराइटिंग की बात करता, वह झट से कहती- ‘यह तो भइयू की वजह से है. बचपन से मुझे भइयू ने पढ़ाया है. मेरे नोट्स वही तैयार करता है और मेरी राइटिंग उन की राइटिंग देखदेख कर  ऐसी बनी है.’

Bigg Boss 16 : घर में पहुंचे फहमान खान तो फूट-फूट कर रोई सुंबुल  

हर साल की तरह इस साल भी बिग बॉस16 हिट शो की तरह फैंस को खूब एंटरटेन कर रहा है  एक तरफ कंटेस्टे  की लड़ाईयो को लुभा रही है वही, दूसरी तरफ शो में सुंबुल तौकीर खान, शालीन भनोट और टीना दत्ता का मामला अलग ही स्तर पर चल रहा है। इनकी कैमेस्ट्री लोगों को बेहद पसंद आ रही है। बता दे, कि इन दिनों बिग बॉस के घर एक नया मेहमान आया है जिनका नाम है फहमान खान.

जी हां, घर में फहमान खान की एंट्री हुई है हालांकि यह कहा जा रहा है कि ये वाइल्ड कार्ड एंट्री नहीं है बल्कि वह अपना सीरियल धर्मपत्नी को प्रमोट करने शो पहुंचे है.

 

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बता दें, कि वायरल वीडियो में देखा गया है कि जैसे ही फहमान खान घर में एंट्री लेते है सुंबुल उन्हे देख कर भावुक हो जाती है और फूट-फूट कर रोने लगती है उन्हे गले लगा लेती है. इसके बाद सुंबुल फहमान से कहती है कि “तू तो नहीं आने वाला था” इसी के जवाब फहमान कहते है कि “मुझे लगा की शो में तुझे मेरी ज़रुरत है” फिर सुंबुल फहमान खान को “आई लव यू” कहती है और कहा कि “शो में अब तू आ गया है मुझे अब किसी की भी ज़रुरत नहीं है”

 

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बता दे, कि बिग बॉस 16 के प्रोमो वीडियो में दिखया गया था कि शालीन भनोट. सुंबुल पर भड़कते हुए नज़र आते है इतना ही नहीं. उन्होंने सुंबुल के सामने हिसंक व्यवहार भी किया. इतना ही प्रोमो में ये भी दिखाया गया कि टीना दत्ता भी चीखते हुए कमरे में जाती है और जोर-जोर से कहती है कि मेरे करियर पर सवाल उठाया जा रहा है. दोनो के वर्क फ्रंट की बात करे तो, सुंबुल और फहमान खान शो ईमली में एक साथ नज़र आ चुके है.

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