बलात्कारियों को सजा दिलाने में डिंपल का साथ देगी Anupama, आएंगे नए ट्विस्ट

सीरियल अनुपमा (Anupama) में नए ट्विस्ट लाने में जहां मेकर्स कड़ी मेहनत कर रहे हैं. इसी बीच बीते दिनों अनुपमा और अनुज की याद्दाश्त जाने की खबर ने फैंस को परेशान कर दिया था. हालांकि शो में डिंपल और उसके पति निर्मित के ट्रैक ने फैंस को तसल्ली दी. साथ ही अपकमिंग एपिसोड्स को लेकर दिलचस्पी बढ़ा दी है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Anupama Serial Update In Hindi)…

डिंपल की मदद करेगी अनुपमा

 

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सीरियल अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड की बात करें तो पत्नी डिंपल के साथ हुए ब्लात्कार के बाद निर्मित उसका साथ देगा. वहीं उसे पुलिस केस के मामले में ना पड़ने की सलाह देगा. लेकिन अनुपमा और अनुज उसे समझाने की कोशिश करते दिखेंगे. दूसरी तरफ, पति के इस फैसले पर डिंपल अपना पक्ष लेते हुए निर्मित से भी रिश्ते तोड़ देगी, जिसके बाद अनुपमा और अनुज उसका सहारा बनते दिखेंगे. वहीं डिंपल के बलात्कारियों को सजा दिलाने में उसकी मदद करते हुए नजर आएंगे.

डिंपल को बहू बनाएगी अनुपमा!

 

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इसके अलावा खबरों की मानें तो अनुपमा, डिंपल को इंसाफ दिलाने के बाद उसे समर की वाइफ बनाने का फैसला लेगी. दरअसल, कहा जा रहा है कि सीरियल में डिंपल का नया ट्रैक आगे जाकर शाह फैमिली की बहू बनता हुआ दिखाई देगा. वहीं इसी के चलते बा और वनराज, एक बार फिर अनुपमा के खिलाफ खड़े होते हुए नजर आएंगे.

 

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पाखी बना रही है प्लान

 

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सीरियल की बात करें तो हाल ही में अनुपमा-अनुज ट्रिप पर जाते हैं. जहां रास्ते में डिंपल और निर्मित एक कपल मिलता है, जिन पर गुंडे हमला कर देते हैं. हालांकि अनुपमा और अनुज उनकी मदद करते हैं. लेकिन इस दौरान डिंपल रेप का शिकार हो जाती है, जिसकी मदद के चलते अनुपमा उन्हें कपाड़िया हाउस ले आती है. दूसरी तरफ, पाखी, अपने पिता वनराज के इमोशन का फायदा उठाकर शाह हाउस में एंट्री करने और अनुपमा को परेशान करने का प्लान बनाती दिख रही है.

चित्र अधूरा है – भाग 3 : क्या सुमित अपने सपने साकार कर पाया

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हाथों की देखभाल के लिए अपनाएं ये 7 टिप्स

क्या आप भी अपने हाथों पर पूरा-पूरा ध्यान देती हैं, फिर भी वे सुंदर नजर नहीं आते? ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्हें सही देखभाल की आवश्यकता है. अब चूंकि सर्दी पड़ रही है इसलिए भी तो हाथों का बारबार रूखा होना स्वाभाविक है. ऐसा हाथों में कम औयल ग्लैंड्स होने के कारण होता है. कपड़े और बरतन धोते-धोते हाथों की स्थिति काफी खराब नजर आने लगती है. ऐसे में जरूरत है कि हाथों को नियमित तौर पर ऐक्सफोलिएट और मौइश्चराइज किया जाए. हाथों पर लगाने के लिए बहुत से पैक आप घर पर भी तैयार कर सकती हैं.

1. लाइम सौफ्टनर

1 बड़ा चम्मच नीबू का रस, 1 छोटा चम्मच चीनी और थोड़ा पानी मिला कर पेस्ट बना लें. इस मिक्सचर को हाथों पर 5 मिनट के लिए लगा कर छोड़ दें. फिर हाथों को गरम पानी से साफ कर के सुखा लें.

2. शुगर ऐक्सफोलिएट

वैजिटेबल/सनफ्लावर/बेबी या औलिव औयल के 2 बड़े चम्मच के साथ 3 बड़े चम्मच चीनी मिला कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को अपने हाथों पर 3-4 मिनट तक रगड़ती रहें. फिर गरम पानी से धो कर सुखा लें.

3. हनी एग सौफ्टनर

एक बाउल में थोड़ा सा शहद, अंडे का सफेद हिस्सा, 1 चम्मच ग्लिसरीन और 1 चम्मच बार्ली पाउडर लें. सब को अच्छी तरह मिला कर हाथों पर लगाएं. कुछ मिनट तक हाथों पर लगा रहने के बाद पानी से साफ कर लें.

4. टोमैटो लाइम सौफ्टनर

यदि आप के हाथ बेहद रूखे हैं, तो 1 नीबू और 1 टमाटर का जूस निकाल कर अच्छी तरह मिला लें. फिर 2-3 चम्मच ग्लिसरीन मिलाएं और इस पेस्ट से हाथों का मसाज करें. 4-5 मिनट के बाद गरम पानी से साफ कर लें.

5. नेल सौफ्टनर

औलिव आयल से नाखूनों की मसाज करें. इस के बाद गरम पानी में डुबाएं. इस से रक्तसंचार भी सुचारु रहता है और नाखून भी साफ व स्वस्थ रहते हैं.

6. नरिशिंग क्रीम

1/3 कप ग्लिसरीन और 2/3 कप गुलाबजल को मिला लें. इसे बोतल में भर कर फ्रिज में रख दें. जब भी हाथ रूखे लगें तो इस से हाथों की मसाज कर लें.

7. क्यूटिकल सौफ्टनर

औलिव औयल को गरम कर के क्यूटिकल्स पर लगाएं, लेकिन स्नान के बाद. क्यूटिकल्स पर मसाज करते हुए उंगली की टिप से उन्हें पीछे धकेलें.

मिशन: क्यों मंजिशी से नाखुश थे सब

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स्मार्टफोन के कारण क्या आपकी सेक्स लाइफ हो रही है खराब, पढ़ें खबर

क्या आप अपने यौन जीवन सें असंतुष्ट हैं? इसके पीछे कहीं न कहीं आपका स्मार्टफोन जिम्मेदार हो सकता है. एक ताजा अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है. दुरहाम विश्वविद्यालय की ओर से किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि लोग अपने सेक्स साथी की बजाय फोन गैजेट के प्रति कहीं अधिक लगाव रखने लगे हैं.

यह अध्ययन कंडोम बनाने वाली अग्रणी कंपनी ‘ड्यूरेक्स’ की ओर से करवाया गया, जिसमें ब्रिटेन के 15 दंपति का विस्तृत साक्षात्कार लिया गया. समाचार पत्र ‘डेली मेल’ की रपट के अनुसार, 40 फीसदी प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि स्मार्टफोन या टैबलेट का इस्तेमाल करने के लिए वे यौन संबंध बनाने को टालते रहते हैं.

कुछ अन्य प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि वे यौन संबंध स्थापित करते वक्त जल्दबाजी दिखाते हैं ताकि जल्द से जल्द वे अपने स्मार्टफोन पर सोशल मीडिया के जरिए आए संदेशों को देख सकें या उनका जवाब दे सकें.

एक तिहाई प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि वे यौनक्रिया के बीच में ही आ रही कॉल उठा लेते हैं, जिससे यौनक्रिया बाधित होती है. एक चौथाई से अधिक प्रतिभागियों ने कहा कि अपने स्मार्टफोन एप का इस्तेमाल उन्होंने अपनी यौनक्रिया के फिल्मांकन के लिए किया, जबकि 40 फीसदी प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपनी यौनक्रिया के दौरान स्मार्टफोन के जरिए तस्वीरें खीचीं.

प्रतिभागियों का साक्षात्कार लेने वाले मार्क मैककॉरमैक ने कहा कि बेडरूम में स्मार्टफोन का इस्तेमाल आपके संबंध को खतरे में डाल सकता है. जब प्रतिभागियों ने जानना चाहा कि स्मार्टफोन उनकी यौन संतुष्टि को कैसे बढ़ा सकता है तो जवाब सुनकर गए और जवाब था स्मार्टफोन को ऑफ रखकर.

फैमिली के लिए ऐसे बनें फुली Insured

क्‍या आप पूरी तरह से इंश्‍योर्ड (Insured) हैं? आप में से अधिकांश लोग शायद हां में उत्‍तर दें. आपके न रहने के बाद आपके परिवार की वित्‍तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए जीवन बीमा पॉलिसी है और अस्‍पताल में भर्ती होने पर हेल्थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी मेडिकल खर्च के लिए धन उपलब्‍ध कराएगी. लेकिन क्‍या यह पर्याप्‍त है? विशेषज्ञ इसे पर्याप्‍त नहीं मानते.

दुर्घटना के कारण यदि आपके अपंग होने की वजह से आय का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई न तो जीवन बीमा पॉलिसी और न ही हेल्‍थ इंश्‍योरेंस कवर कर पाएंगे. ऐसी स्थिति में पर्सनल एक्‍सीडेंटल कवर ही आपको बचा सकेगा.

पर्सनल एक्‍सीडेंट पॉलिसी स्‍थाई और अस्‍थाई विकलांगता के कारण आय को होने वाले नुकसान की वित्‍तीय भरपाई करती है. अगर दुर्घटना में पॉलिसी होल्डर की मृत्यु हो जाती है तो ऐसे में बीमा कंपनी उसके नॉमिनी को सम एश्‍योर्ड राशि का भुगतान करती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि घर में आप अकेले कमाने वाले सदस्य हैं तो आपको अपने इंश्‍योरेंस पोर्टफोलियो में पर्सनल एक्‍सीडेंट पॉलिसी को जरूर जोड़ना चाहिए.

पर्सनल एक्‍सीडेंट पॉलिसी न केवल बड़ी दुर्घटनाओं को कवर करती है बल्कि यह छोटी दुर्घटनाओं में भी सहायता प्रदान करती है. यहां तक कि छोटे से एक्‍सीडेंट में होने वाले मामूली फ्रेक्‍चर को भी इसमें शामिल किया जाता है. इसके साथ ही यह पॉलिसी काफी किफायती होती है और इसका प्रीमियम कम होता है.

पर्सनल एक्‍सीडेंट इंश्योरेंस पॉलिसी में पर्मानेंट टोटल डिसेबिलिटी, पर्मानेंट पार्शियल डिसेबिलिटी और टेंपरेरी टोटल डिसेबिलिटी शामिल होती है. मृत्यु या पर्मानेंट टोटल डिसेबिलिटी (शरीर के किसी अंग के काम करना बंद कर देना या आंखों की रोशनी खो जाने की स्थिति में) 100 फीसदी सम एश्‍योर्ड राशि का भुगतान किया जाता है. दुर्घटना के दौरान पर्मानेंट पार्शियल डिसेबिलिटी में अंगुली कट जाए तो पॉलिसी में स्पष्ट उल्‍लेखित की गई राशि दी जाती है.

हालांकि आपको ध्यान रखना चाहिए कि पर्सनल एक्सिडेंट पॉलिसी एक तरह से बेनेफिट स्कीम होती है. यह मृत्यु या फिर विकलांगता की स्थिति में ही कवर मुहैया कराती है. अगर किसी बीमारी के कारण मृत्यु या फिर विकलांगता होती है तो यह इंश्योरेंस पॉलिसी किसी भी तरह का कवर नहीं देती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि पर्सनल एक्‍सीडेंट कवर खरीदते हुए कॉम्प्रिहेंसिव पॉलिसी का चयन करना चाहिए.

आर्टिफिशियल प्रक्रिया से मां बनना हुआ आसान

आर्टिफिशियल प्रक्रिया की मदद से गर्भधारण करना कोई नई बात नहीं है. नई बात तो यह है कि नए जमाने की नई सोच की वजह से समाज ने इसे अपना लिया है. फिर इनफर्टिलिटी के तमाम केसों और कारणों को देखते हुए आज कई तकनीकों की मदद से गर्भधारण कराया जा रहा है. जैसे इक्सी, आईवीएफ, लेजर असिस्टिड हैचिंग, ब्लास्टोसिस्ट कल्चर आदि.

47 वर्षीय जेनिफर जब 2004 में भारत आईं, तब उन का उद्देश्य ताज की खूबसूरती देखना नहीं, बल्कि यहां आ कर गर्भधारण करना था जोकि फ्रांस में नहीं कर पा रही थीं. उन्होंने भारत में डाक्टर से संपर्क किया और अपने पति के साथ यहां आ कर 10 दिन बिताए. यहां डोनर एग की सहायता से वे न सिर्फ गर्भधारण कर पाईं, बल्कि बच्चे को भी जन्म दिया.

उदयपुर स्थित इंदिरा इनफर्टिलिटी एवं टैस्ट ट्यूब बेबी सैंटर के निदेशक डा. अजय मुर्डिया के अनुसार इनफर्टिलिटी उपचार के क्षेत्र में तो भारत सब की पहली पसंद बनता जा रहा है. इस का एक बड़ा कारण है कम पैसों में अच्छी मैडिकल सुविधा का उपलब्ध होना.

अब ऐसी कोई चिकित्सा पद्धति नहीं बची है, जो विदेशों में हो रही है मगर भारत में नहीं हो सकती. दांतों की समस्या, नी कैप और हिप रिप्लेसमैंट और आईवीएफ व ओपन हार्ट सर्जरी तक के लिए पश्चिमी देशों से मरीज भारत की ओर रुख कर रहे हैं. कम खर्च में अच्छी चिकित्सा व आनेजाने की सुविधा के अलावा इंटरनैट क्रांति ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. विश्व स्तरीय चिकित्सा को मामूली खर्च पर मुहैया करने में भारत को अच्छी सफलता मिली है.

आर्टिफिशियल प्रक्रिया की मदद से गर्भधारण करना कोई नई बात नहीं है. नई बात तो यह है कि नए जमाने की नई सोच की वजह से समाज ने इसे अपना लिया है. फिर इनफर्टिलिटी के तमाम केसों और कारणों को देखते हुए आज कई तकनीकों की मदद से गर्भधारण कराया जा रहा है. जैसे इक्सी, आईवीएफ, लेजर असिस्टिड हैचिंग, ब्लास्टोसिस्ट कल्चर आदि.

47 वर्षीय जेनिफर जब 2004 में भारत आईं, तब उन का उद्देश्य ताज की खूबसूरती देखना नहीं, बल्कि यहां आ कर गर्भधारण करना था जोकि फ्रांस में नहीं कर पा रही थीं. उन्होंने भारत में डाक्टर से संपर्क किया और अपने पति के साथ यहां आ कर 10 दिन बिताए. यहां डोनर एग की सहायता से वे न सिर्फ गर्भधारण कर पाईं, बल्कि बच्चे को भी जन्म दिया.

उदयपुर स्थित इंदिरा इनफर्टिलिटी एवं टैस्ट ट्यूब बेबी सैंटर के निदेशक डा. अजय मुर्डिया के अनुसार इनफर्टिलिटी उपचार के क्षेत्र में तो भारत सब की पहली पसंद बनता जा रहा है. इस का एक बड़ा कारण है कम पैसों में अच्छी मैडिकल सुविधा का उपलब्ध होना.

अब ऐसी कोई चिकित्सा पद्धति नहीं बची है, जो विदेशों में हो रही है मगर भारत में नहीं हो सकती. दांतों की समस्या, नी कैप और हिप रिप्लेसमैंट और आईवीएफ व ओपन हार्ट सर्जरी तक के लिए पश्चिमी देशों से मरीज भारत की ओर रुख कर रहे हैं. कम खर्च में अच्छी चिकित्सा व आनेजाने की सुविधा के अलावा इंटरनैट क्रांति ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. विश्व स्तरीय चिकित्सा को मामूली खर्च पर मुहैया करने में भारत को अच्छी सफलता मिली है.

आईवीएफ तकनीक

90 के दशक में जब आईवीएफ तकनीक लौंच की गई थी, तब से ले कर अब तक इस तकनीक के माध्यम से 50 हजार से ज्यादा बच्चों का जन्म हो चुका है. आईवीएफ तकनीक में अंडाशय से अंडे को शल्य चिकित्सा के द्वारा निकाल कर शरीर के बाहर शुक्राणु द्वारा निषेचित कराया जाता है. 40 घंटे के बाद यह देखा जाता है कि शुक्राणुओं द्वारा अंडा निषेचित हुआ या नहीं और कोशिकाओं में विभाजन हो रहा है या नहीं. इस के बाद निषेचित अंडे को वापस महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है.

लगभग सभी प्रक्रियाओं में प्रयोगशाला में ही अंडे को शुक्राणु के साथ मिला कर फर्टिलाइज कराया जाता है. लेकिन यह सुनने और कहने में जितना आसान लगता है, प्रयोग के समय उतना ही जटिल होता है, क्योंकि इस प्रक्रिया के दौरान एकएक बारीकी का खासतौर पर खयाल रखना पड़ता है. इन सभी तकनीकों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि प्रयोगशाला में तैयार किए हुए भू्रण का गर्भाशय में सही ढंग से प्रत्यारोपण हुआ है या नहीं.

डा. अजय मुर्डिया के अनुसार दरअसल, प्रयोगशाला में जब शुक्राणु और अंडे को मिलाया जाता है, तो फर्टिलाइज अंडे की ऊपरी परत जिसे जोना पेलुसिडा कहते हैं, कई बार कठोर हो जाती है जिस से भू्रण को प्रत्यारोपित करने में परेशानी होती है. लेकिन इस समस्या का समाधान अब लेजर तकनीक के द्वारा ढूंढ़ लिया गया है जिसे लेजर असिस्टिड हैचिंग अथवा लेजर तकनीक कहते हैं. यह प्रयोगशाला में ही की जाने वाली एक तकनीक है. जोना पेलुसिडा परत एक बार में एक ही शुक्राणु को अंडे के भीतर प्रवेश करने देती है. साथ ही यह भू्रण को इम्यून सिस्टम के सेलों के अटैक से भी बचाती है. यह परत भू्रण को तब तक संरक्षित करती है जब तक वह ब्लास्टोसिस्ट की अवस्था तक नहीं पहुंच जाता है.

लेजर असिस्टिड हैचिंग तकनीक में एक बारीक लेजर की मदद से जोना पेलुसिडा को थोड़ा सा खोल दिया जाता है ताकि भू्रण की ऊपरी सतह कुछ कमजोर हो जाए. इस से भू्रण को जोना पेलुसिडा से निकलने और सही तरह से प्रत्यारोपित होने में मदद मिलती है. इस में भू्रण को माइक्रोस्कोप के भीतर रखा जाता है जिस का जोना यानी सतह आसानी से देखी जा सकती है. इसे लेजर की मदद से खोला जाता है. यह लेजर नौन कौंटैक्ट होता है यानी भू्रण का लेजर से सीधे तौर पर कोई कौंटैक्ट नहीं होता है. लेजर से भू्रण की ओपनिंग के आकार को बढ़ाया जाता है. यह बेहद बारीकी और विशिष्टता से किया जाता है.

लेजर को दोबारा फायर किया जाता है ताकि पूरा जोना खुल जाए, जिस से प्रत्यारोपण के दौरान भू्रण आसानी से जोना से निकल सके. लेकिन लेजर को इतनी दूर से इस्तेमाल किया जाता है ताकि भू्रण नष्ट न होने पाए. ऐसा करने के बाद प्रत्यारोपण की सफलता के आसार बढ़ जाते हैं. हालांकि यह हैचिंग की प्रक्रिया पहले भी की जाती थी, लेकिन इसे ऐसिड से किया जाता था, जिस से भू्रण के नष्ट होने का खतरा बना रहता था. लेकिन आज लेजर की मदद से भू्रण को बिना नुकसान पहुंचाए हैचिंग की जा सकती है.

यह तकनीक उन केसों में अपनाई जाती है जहां आईवीएफ या इक्सी द्वारा असफलता हाथ लगी हो. इस के अलावा जिन मरीजों में कम भू्रण बने हों तथा अधिक उम्र की औरतों में व कुछ बीमारियों में, जिन में भू्रण की बाहरी परत कठोर पाई जाती है. उन में यह तकनीक करने से सफलता की संभावना काफी बढ़ जाती है.

इनफर्टिलिटी की समस्या

इन्फर्टिलिटी कई प्रकार की होती है. विशेष तौर पर जन्म से ही होने वाली और कुछ केसों में गर्भ ठहरने में समस्या आती है. कई केसों में पहला बच्चा ठीक से हो जाता है, लेकिन दूसरा बच्चा होने में दिक्कत आती है. आज के समय में 20% शादीशुदा दंपतियों को इनफर्टिलिटी की समस्या है. जिस में 40% औरतें हैं और 30% पुरुष हैं. ऐसे में हमारा उद्देश्य है कि अधिक से अधिक दंपती इस आधुनिक तकनीक एवं नवीनतम उपकरणों की सहायता से संतान प्राप्ति कर पाएं.

अब इंस्ट्रा साइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (इक्सी) की तकनीक से जिन पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या न के बराबर है, उन का भी पिता बनना संभव हो गया है. इस में मरीज की पत्नी को विशेष दवाएं दी जाती हैं, जिस से वह बहुत सारे अंडे पैदा कर सके. फिर वैजाइनल सोनोग्राफी की बहुत ही सरल तकनीक से उन अंडों को उस महिला के शरीर से अलग कर लिया जाता है. इस दर्दविहीन प्रक्रिया से मरीज को जनरल ऐनेस्थीसिया के साथ पूरा किया जाता है.

एक बार अंडों को अलग करने के बाद पति से अपने वीर्य का नमूना जमा करने को कहा जाता है. फिर माइक्रोमैनियूलेटर नाम की एक विकसित विशेष मशीन की सहायता से हर अंडे को पति द्वारा जमा किए गए अकेले शुक्राणु से इंजैक्ट किया जाता है. इस के बाद अंडों को 2 दिनों तक अंडा सेने की मशीन में रखा जाता है. 2 दिनों के बाद भू्रण (अविकसित बच्चा) तैयार हो जाता है तो उसे एक पतली नलिका में डाल कर गर्भाशय में रख दिया जाता है.

90 के दशक में जब आईवीएफ तकनीक लौंच की गई थी, तब से ले कर अब तक इस तकनीक के माध्यम से 50 हजार से ज्यादा बच्चों का जन्म हो चुका है. आईवीएफ तकनीक में अंडाशय से अंडे को शल्य चिकित्सा के द्वारा निकाल कर शरीर के बाहर शुक्राणु द्वारा निषेचित कराया जाता है. 40 घंटे के बाद यह देखा जाता है कि शुक्राणुओं द्वारा अंडा निषेचित हुआ या नहीं और कोशिकाओं में विभाजन हो रहा है या नहीं. इस के बाद निषेचित अंडे को वापस महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है.

लगभग सभी प्रक्रियाओं में प्रयोगशाला में ही अंडे को शुक्राणु के साथ मिला कर फर्टिलाइज कराया जाता है. लेकिन यह सुनने और कहने में जितना आसान लगता है, प्रयोग के समय उतना ही जटिल होता है, क्योंकि इस प्रक्रिया के दौरान एकएक बारीकी का खासतौर पर खयाल रखना पड़ता है. इन सभी तकनीकों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि प्रयोगशाला में तैयार किए हुए भू्रण का गर्भाशय में सही ढंग से प्रत्यारोपण हुआ है या नहीं.

डा. अजय मुर्डिया के अनुसार दरअसल, प्रयोगशाला में जब शुक्राणु और अंडे को मिलाया जाता है, तो फर्टिलाइज अंडे की ऊपरी परत जिसे जोना पेलुसिडा कहते हैं, कई बार कठोर हो जाती है जिस से भू्रण को प्रत्यारोपित करने में परेशानी होती है. लेकिन इस समस्या का समाधान अब लेजर तकनीक के द्वारा ढूंढ़ लिया गया है जिसे लेजर असिस्टिड हैचिंग अथवा लेजर तकनीक कहते हैं. यह प्रयोगशाला में ही की जाने वाली एक तकनीक है. जोना पेलुसिडा परत एक बार में एक ही शुक्राणु को अंडे के भीतर प्रवेश करने देती है. साथ ही यह भू्रण को इम्यून सिस्टम के सेलों के अटैक से भी बचाती है. यह परत भू्रण को तब तक संरक्षित करती है जब तक वह ब्लास्टोसिस्ट की अवस्था तक नहीं पहुंच जाता है.

लेजर असिस्टिड हैचिंग तकनीक में एक बारीक लेजर की मदद से जोना पेलुसिडा को थोड़ा सा खोल दिया जाता है ताकि भू्रण की ऊपरी सतह कुछ कमजोर हो जाए. इस से भू्रण को जोना पेलुसिडा से निकलने और सही तरह से प्रत्यारोपित होने में मदद मिलती है. इस में भू्रण को माइक्रोस्कोप के भीतर रखा जाता है जिस का जोना यानी सतह आसानी से देखी जा सकती है. इसे लेजर की मदद से खोला जाता है. यह लेजर नौन कौंटैक्ट होता है यानी भू्रण का लेजर से सीधे तौर पर कोई कौंटैक्ट नहीं होता है. लेजर से भू्रण की ओपनिंग के आकार को बढ़ाया जाता है. यह बेहद बारीकी और विशिष्टता से किया जाता है.

लेजर को दोबारा फायर किया जाता है ताकि पूरा जोना खुल जाए, जिस से प्रत्यारोपण के दौरान भू्रण आसानी से जोना से निकल सके. लेकिन लेजर को इतनी दूर से इस्तेमाल किया जाता है ताकि भू्रण नष्ट न होने पाए. ऐसा करने के बाद प्रत्यारोपण की सफलता के आसार बढ़ जाते हैं. हालांकि यह हैचिंग की प्रक्रिया पहले भी की जाती थी, लेकिन इसे ऐसिड से किया जाता था, जिस से भू्रण के नष्ट होने का खतरा बना रहता था. लेकिन आज लेजर की मदद से भू्रण को बिना नुकसान पहुंचाए हैचिंग की जा सकती है.

यह तकनीक उन केसों में अपनाई जाती है जहां आईवीएफ या इक्सी द्वारा असफलता हाथ लगी हो. इस के अलावा जिन मरीजों में कम भू्रण बने हों तथा अधिक उम्र की औरतों में व कुछ बीमारियों में, जिन में भू्रण की बाहरी परत कठोर पाई जाती है. उन में यह तकनीक करने से सफलता की संभावना काफी बढ़ जाती है.

इनफर्टिलिटी की समस्या

इन्फर्टिलिटी कई प्रकार की होती है. विशेष तौर पर जन्म से ही होने वाली और कुछ केसों में गर्भ ठहरने में समस्या आती है. कई केसों मे पहला बच्चा ठीक से हो जाता है, लेकिन दूसरा बच्चा होने में दिक्कत आती है. आज के समय में 20% शादीशुदा दंपतियों को इनफर्टिलिटी की समस्या है. जिस में 40% औरतें हैं और 30% पुरुष हैं. ऐसे में हमारा उद्देश्य है कि अधिक से अधिक दंपती इस आधुनिक तकनीक एवं नवीनतम उपकरणों की सहायता से संतान प्राप्ति कर पाएं.

अब इंस्ट्रा साइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (इक्सी) की तकनीक से जिन पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या न के बराबर है, उन का भी पिता बनना संभव हो गया है. इस में मरीज की पत्नी को विशेष दवाएं दी जाती हैं, जिस से वह बहुत सारे अंडे पैदा कर सके. फिर वैजाइनल सोनोग्राफी की बहुत ही सरल तकनीक से उन अंडों को उस महिला के शरीर से अलग कर लिया जाता है. इस दर्दविहीन प्रक्रिया से मरीज को जनरल ऐनेस्थीसिया के साथ पूरा किया जाता है.

एक बार अंडों को अलग करने के बाद पति से अपने वीर्य का नमूना जमा करने को कहा जाता है. फिर माइक्रोमैनियूलेटर नाम की एक विकसित विशेष मशीन की सहायता से हर अंडे को पति द्वारा जमा किए गए अकेले शुक्राणु से इंजैक्ट किया जाता है. इस के बाद अंडों को 2 दिनों तक अंडा सेने की मशीन में रखा जाता है. 2 दिनों के बाद भू्रण (अविकसित बच्चा) तैयार हो जाता है तो उसे एक पतली नलिका में डाल कर गर्भाशय में रख दिया जाता है.

चौथापन- भाग 3 : मुन्ना के साथ क्या हुआ

मुन्ना के पहले उन की 2 बेटियां और थीं. वह सोचते थे कि बेटियां तो पराया धन होती हैं. दूसरे घर चली जाएंगी. उन का बेटा मुन्ना ही बुढ़ापे में उन की सेवा करेगा. उस की बहू आ जाएगी तो वह उन की सेवा करेगी. फिर नातीनातिन हो जाएंगे तो वे बाबाबाबा कहते हुए उन के आगेपीछे घूमेंगे. मुन्ना बचपन में आए- दिन बीमार पड़ जाता था. उन्होंने उस की बड़ी सेवा की थी और धन भी खूब लुटाया था. न जाने कितने दवाखानों की धूल छानी थी. न जाने कितनी मनौतियां मानी थीं. न जाने कितनी रातें जागते हुए गुजार दी थीं. अब उस का रवैया देख कर लगता था कि उन्होंने कितना बड़ा भ्रम पाल लिया था. वह भी कैसे पागल थे.

उन का शरीर बुखार से तप रहा था. कुछ देर तक मुन्ना के कमरे से डिस्को संगीत का शोर और बच्चों के हंगामे की कर्णभेदी आवाजें आती रहीं और उन का सिर दर्द से फटता रहा. फिर खामोशी छा गई. कमरे के सन्नाटे में छत के पंखे की खड़खड़ाहट गूंजती रही. उन्हें लेटेलेटे बारबार यह खयाल सताता रहा कि बहू बेटे को उन से कोई हमदर्दी नहीं है. बहू ने तो एक बार भी आ कर नहीं पूछा उन की तबीयत के विषय में.

एकाएक उन्हें अपना गला सूखता सा महसूस हुआ. लो, कमरे में पानी रखवाना तो वह भूल ही गए थे. अब क्या करें? वह उस बुखार में उठ कर रसोई तक कैसे जा सकेंगे? अचानक उन की नजर शाम को पानी से भर कर खिड़की पर रखे गिलास पर गई. उन्होंने उठ कर वही पानी पी लिया.

वह मन की घबराहट को दूर करने के लिए खिड़की के पास ही खड़े हो गए और सूनी सड़क पर चल रहे इक्कादुक्का लोगों को देखने लगे. काश, वह उन्हें आवाज दे पाते, ‘‘आओ, भाई, मेरे पास बैठो थोड़ी देर के लिए. मेरा मन बहुत घबरा रहा है. कुछ अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो.’’

सहसा वह पागलों की तरह हंस पड़े अपने पर. ‘अरे, जिसे छोटे से बड़ा किया, पढ़ायालिखाया, अपने जीवन भर की कमाई सौंप दी, वह बेटा तो चैन की नींद सो रहा है. भला ये अपरिचित लोग अपना काम- धंधा छोड़ कर मेरे पास क्यों बैठने लगे? वह फिर से पलंग पर आ कर लेट गए.’

उन्हें याद आया कि कैसे दिनरात मेहनत कर के उन्होंने कारखाना खड़ा किया था, किस तरह मशीनें खरीदी थीं, किस तरह कारखाने की नई इमारत तैयार की थी, धूप में घूमघूम कर, भूखेप्यासे रहरह कर, देर रात तक जागजाग कर वह किस तरह काम में लगे रहते थे. किस के लिए? मुन्ना के लिए ही तो. अपने परिवार के सुख के लिए ही तो? जिस में वह खुद भी शामिल थे.

अब कहां गया वह सुख? उन के परिवार ने क्या कीमत रखी है उन की या उन के सुख की? वह सब के सामने इतने दीनहीन क्यों बन जाते हैं? क्या वह मुन्ना की कमाई पर पल रहे हैं? क्यों खो दी उन्होंने अपनी शक्ति? नहीं, बहुत हो चुका, वह अब और नहीं सहेंगे.

वह आवेश में उठ कर बैठ गए. क्षण भर में ही उन का शरीर पसीने से लथपथ हो गया. दूसरे दिन सुबह मुन्ना सपरिवार नाश्ता कर रहा था, तभी गोपाल ने आ कर सूचना दी, ‘‘भैयाजी, नाश्ते के बाद आप को दादाजी ने अपने कमरे में बुलाया है.’’

मुन्ना ने नाश्ते के बाद उन के कमरे में जा कर देखा कि वह पलंग पर बैठे कोई किताब पढ़ रहे हैं.

‘‘आओ, मुन्ना बैठो,’’ उन्होंने सामने पड़ी कुरसी की ओर संकेत किया. जाने कितने वर्षों के बाद उन्होंने उसे ‘मुन्ना’ कह कर एकदम सीधे संबोधित किया था.

‘‘कैसी तबीयत है आप की?’’

‘‘तबीयत तो ठीक है. मैं ने एक दूसरी ही चर्चा के लिए तुम्हें बुलवाया था.’’

‘‘कहिए.’’

‘‘यहां इस घर में पड़ेपड़े अब मेरा मन नहीं लगता. स्वास्थ्य भी बिगड़ता रहता है. बेकार पड़ेपडे़ तो लोहा भी जंग खा जाता है, फिर मैं तो हाड़मांस का आदमी हूं. मैं चाहता हूं कि घर से निकलूं और…’’

‘‘इन दिनों मैं भी यही सोच रहा था, बाबूजी,’’ मुन्ना ने उन की बात पूरी होने से पहले ही उचक ली और बड़े निर्विकार भाव से बोला, ‘‘आप का चौथापन है. इस उम्र में लोग वानप्रस्थी हो जाते हैं, घरसंसार को तिलांजलि दे देते हैं. आप भी हरिद्वार चले जाइए और वहां किसी आश्रम में रह कर भगवान की याद में बाकी जीवन बिता दीजिए.’’

सुनते ही उन्हें जोरों का गुस्सा आ गया. वह क्रुद्ध शेर की तरह गरज उठे, ‘‘मुन्ना, क्या तू ने मुझे उन नाकारा और निकम्मे लोगों में से समझ लिया है, जिन के आगे अपने जीवन का कोई महत्त्व ही नहीं है. अभी मेरे हाथपांव चलते हैं. दुनिया में बहुत से अच्छे काम हैं करने के लिए. मैं घर में निठल्ला नहीं पड़ा रहना चाहता. घर से बाहर निकल कर समाज- सेवा करना चाहता हूं.’’

‘‘तो फिर कीजिए समाजसेवा. किस ने रोका है?’’

‘‘हाथपैरों से तो करूंगा ही समाज- सेवा, मगर उस के लिए कुछ धन भी चाहिए, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम कम से कम 1 हजार रुपए महीना मुझे जेब- खर्च के तौर पर देते रहो.’’

मुन्ना के कान खड़े हो गए, ‘‘1 हजार रुपए, किसे लुटाएंगे इतने पैसे आप?’’

हमेशा की तरह वह कमजोर नहीं पड़े, झुके भी नहीं, बल्कि वह मुन्ना से आंखें मिला कर बोले, ‘‘इस से तुम्हें क्या? त्रिवेणी को भी मैं अपने साथ रखना चाहता हूं. दे सकोगे न तुम मुझे मेरा खर्च?’’

‘‘कैसे दे पाऊंगा, बाबूजी, इतना पैसा? अभी जो मुंबई से नई मशीन मंगवाई हैं, उस का पैसा भी भेजना बाकी है.’’

‘‘तुम खुद मुझे इन झगड़ों से दूर कर चुके हो. यह देखना तुम्हारा काम है. मैं भी कोई मतलब नहीं रखना चाहता कारोबारी बखेड़ों से. मैं इतना जानता हूं कि यह कारखाना मेरा है और मैं चाहूं तो इसे बेच भी सकता हूं या किसी के भी सुपुर्द कर सकता हूं, लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता. मेरा तो इतना ही कहना है कि जब तुम लोगों के खर्च के लिए हजारों रुपए महीना निकल सकते हैं तो क्या मेरे लिए 1 हजार रुपए महीना भी आसानी से नहीं निकल सकते? आखिर मैं ने भी बरसों कारखाना चलाया है और अभी भी चलाने की हिम्मत रखता हूं. तुम से नहीं संभलता तो मुझे सौंप दो फिर से.’’

मुन्ना कोई उत्तर नहीं दे सका. वह सिर झुकाए बैठा रहा. कमरे का वातावरण बोझिल हो चला था. फिर मुन्ना ने ही धीरे से कहा, ‘‘अच्छा होता, बाबूजी, आप हरिद्वार…’’

‘‘नहीं, बेटा, मैं जिंदा इनसान हूं. कोई मुरदा नहीं कि हरिद्वार जा कर किसी आश्रम की कब्र में दफन हो जाऊं या घर में समाधि ले कर बैठा रहूं. तुम अपने ढंग से जीना चाहते हो, तो मैं अपने ढंग से.’’

‘‘अच्छा,’’ मुन्ना उठ कर बाहर जाने लगा. उन्होंने उन्नत मस्तक को उठा कर देखा कि वह अब भी सिर नीचा किए कमरे से बाहर जा रहा था.

GHKKPM: जगताप संग शादी करेगी सई! एक्टर ने कही ये बात

स्टार प्लस शो के सीरियल “गुम है किसी के प्यार में” ने दर्शकों को काफी एंटरटेन किया है, जिसकी वजह से शो हिट चल रहा है शो में सवि की कहानी दर्शकों को काफी पसंद आ रही है. दरअसल, कहानी में ये पता चल गया है कि सवि ही विराट की बेटी है, जिसकी वजह से विराट सई के भी नज़दिक आ  रहा है. बता दें, कि शो में ऐसे अनुमान लगाए जा रहे है कि सई और जगताप शादी करेंगे. जिस पर एक्टर सिद्धार्थ ने चुप्पी तोड़ी है। उन्होनें बताया है कि शो में सई और जगताप शादी करेंगे की नहीं, आईए बताते है पूरी कहानी…..

आपको बता दें, कि कि सिद्धार्थ बोडके ने कई सवालों पर चुप्पी तोड़ी है। उन्होनें ने बताया है कि क्या कभी जगताप और सई शादी करेंगे की नहीं! उनका मानना है कि ये “शो का स्तर अलग ही है. आपको अंदाजा नहीं कि सई और जगताप शादी भी करेगेंय़ अभी जगताप अपनी दोस्ती पर ध्यान दे रहे है वह सई से प्यार तो करता है लेकिन उसे कोई उम्मीद नहीं रखता है. लेकिन भविष्य में क्या हो सकता है इस पर अभी कहना मुश्किल है ये कहानी आगे और भी खूबसूरत मोड़ लेगी  

 

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सिद्धार्थ बोडके ने आयशा संग काम करने का शेयर किया अनुभव

एक इंटरव्यू के दौरान सिद्धार्थ ने बताया कि आयशा के साथ काम करना और टीम बनाना बहुत ही खुशनुमा अनुभव रहा है इतना ही नहीं, फैंस कई बार कह चुके है कि वह शो जगताप को देखने के लिए देखते है. और एक्टर आयशा को बेशुमार प्यार देते है.

सिद्धार्थ बोडके के वर्क फ्रंट की बात करें तो “सिद्धार्थ गुमं है किसी के प्यार में” में काफा पॉपुलर हो चुके है साथ ही उन्होंने दृश्यम 2 में भी अजय देवगन और एक्ट्रेस तबु के साथ काम किया है. फिल्म में उनके किरदार को खूब पसंद किया गया था.

चित्र अधूरा है – भाग 2 : क्या सुमित अपने सपने साकार कर पाया

कार्तिकेय चाहते थे कि उन का बेटा उन की तरह इंजीनियर बन कर देश के नवनिर्माण में सहयोग करे. 12वीं में उसे गणित और जीवविज्ञान दोनों विषय दिलवा दिए गए ताकि जिस ग्रुप में उस के अंक होंगे उसी में उसे दाखिला दिलवा दिया जाए. मगर परिवार का कोई भी सदस्य उस मासूम की इच्छा नहीं पूछ रहा था कि उसे क्या बनना है. उस की रुचि किस में है? मैं तो मूकदृष्टा थी. डर था तो केवल इतना कि वह कहीं दो नावों में सवार हो कर मंझधार में ही न गिर जाए? बस, मन ही मन यही सोचती कि जो भी अच्छा हो, क्योंकि आज प्रतियोगिताओं के दायरे में कैद बच्चे अपनी सुकुमारता, चंचलता और बचपना खो बैठे हैं. प्रतियोगिताओं में उच्च वरीयताक्रम के बच्चे ही सफल माने जाते हैं बाकी दूसरे सभी असफल. हो सकता है कि उन की तथाकथित असफलता के पीछे मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक कारण रहे हों, लेकिन आज उन की समस्याओं के समाधान के लिए समय किस के पास है? असफलता तो असफलता ही है, उन के मनमस्तिौक पर लगा एक अमिट कलंक.

घंटी बजने की आवाज सुन कर मैं ने दरवाजा खोला तो अनुज को खड़ा पाया. परीक्षाफल के बारे में पूछने पर वह बोला, ‘मालूम नहीं, ममा, बहुत भीड़ थी इसलिए देख ही नहीं पाया.’

दोपहर में कार्तिकेय उस के कालिज जा कर मार्कशीट ले कर आए. मुंह उतरा हुआ था, देख कर मन में खलबली मच गई. किसी अनहोनी की आशंका से मन कांप उठा, ‘क्या हुआ? कैसा रहा रिजल्ट?’ बेचैनी से मैं पूछ ही उठी.

‘पानी तो पिलाओ, मुंह सूखा जा रहा है,’ कार्तिकेयने पानी मांगते हुए कहा था.

पानी ले कर आई तो कार्तिकेय ने सुमित की मार्कशीट मेरे सामने रख दी. सभी विषयों में कम अंक देख कर मुंह से निकल गया, ‘यह मार्कशीट अपने सुमित की हो ही नहीं सकती. रोल नंबर उसी का है न?’ अविश्वास की मुद्रा में मुंह से निकल गया.

‘क्यों बेवकूफों जैसी बातें करती हो, मार्कशीट भी उसी की है, नाम और रोल नंबर भी,’ वह फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘अच्छा हुआ, मांपिताजी कानपुर दीदी के पास गए हैं वरना ऐसे नंबर देख उन के दिल पर क्या गुजरती?’

‘रिचैकिंग करवाएंगे,’ उन की बात अनसुनी करते हुए उमा ने कहा.

‘रिचैकिंग से क्या होगा? हर सब्जेक्ट में तो ऐसे ही हैं. गनीमत है पास हो गया, लेकिन ऐसे भी पास होने से क्या फायदा?’ कार्तिकेय, फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘तुम्हारी सोशल विजिट भी बहुत हो गई थी उन दिनों, उसी का परिणाम है यह रिजल्ट.’

कार्तिकेय का इस समय उस पर आरोप लगाना पता नहीं क्यों उमा को बेहद अनुचित लगा था किंतु स्थिति की गंभीरता को समझ कर, उस के आरोपों पर ध्यान न देते हुए उमा ने पूरे भरोसे के साथ किंतु धीमे स्वर में कहा, ‘यह रिजल्ट उस का है ही नहीं. क्या आप सोच सकते हो कि वह एकाएक इतना गिर जाएगा?’

‘तुम्हारे कहने से क्या होता है, जो सामने है वही यथार्थ है,’ कार्तिकेय ने एकएक शब्द पर बल देते हुए कहा. वह अनुज को सामने पा कर फिर बोल उठे, ‘इन को तो हीरो बनने से ही फुरसत नहीं है. एक ने तो नाक कटा दी और दूसरा शायद जान ही ले ले,’ कह कर वह आफिस चले गए.

अनुज सिर नीचा कर के अपने कमरे में चला गया. मां को गुस्से में उलटासीधा बोलते तो उस ने जबतब सुना था, किंतु पिताजी को इतना अपसेट नहीं देखा था. मां पहले कभी उन के सामने कभी कुछ कहतीं तो वह उन का पक्ष लेते हुए कहते, ‘बच्चे हैं, अभी शैतानी नहीं करेंगे तो फिर कब करेंगे, रोनेपीटने के लिए तो सारी जिंदगी पड़ी है.’

तब मां बिगड़ कर कहतीं, ‘चढ़ाओ, और चढ़ाओ अपने सिर. कभी अनहोनी हो जाए तो मुझे दोष नहीं देना.’ तो वह कहते, ‘अनहोनी कैसे होगी? मेरे बच्चे हैं, देखना नाक ऊंची ही रखेंगे.’ फिर हमारी तरफ मुखातिब हो कर कहते, ‘बेटा, कभी मुझे शर्मिंदा मत करना, मेरे विश्वास को ठेस मत पहुंचाना.’

आज वही डैडी सुमित भैया के परीक्षाफल को देख कर इतने दुखी हैं? वैसे उन के रिजल्ट पर तो उसे भी भरोसा नहीं हो रहा था. ‘कभी किसी दिन यदि कोई पेपर खराब भी होता तो उसे अवश्य बताते, कहीं कुछ गड़बड़ तो अवश्य हुई थी, कहीं कंप्यूटर में तो माव्फ़र्स फीड करने में किसी ने गड़बड़ी तो नहीं कर दी—?’ सवाल मस्तिष्क में कुलबुला तो रहे थे किंतु कोई समाधान उस के पास न था.

तभी फोन की घंटी बज उठी. फोन अमिता आंटी का था. अनुज मम्मी के कमरे में गया तो देखा, मम्मी सुबक रही हैं, उन को फोन देना उचित न समझ कर कह दिया कि वह सो रही हैं. परीक्षाफल पूछने पर कह दिया कि ‘पता नहीं’. वह जानता था कि वह कालोनी की इनफारमेशन सेंटर हैं. हर घर के समाचार उन के पास रहते हैं और पल भर में ही सब के पास पहुंच भी जाते हैं. पता नहीं उन को सब की घरेलू जिंदगी में इतनी दिलचस्पी क्यों रहती है? वैसे जब से उन की एकलौती पुत्री ने घर से भाग कर लव मैरिज की है तब से वह थोड़ा शांत जरूर हो गई हैं, लेकिन आदत तो आदत ही है, फोन रखने के बाद मम्मी ने अनुज से पूछा, ‘किस का फोन था?’

‘अमिता आंटी का.’

‘क्या कहा तू ने?’

‘कह दिया अभी पता नहीं चला है, डैडी ने किसी को भेजा है.’

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