चित्र अधूरा है – भाग 2 : क्या सुमित अपने सपने साकार कर पाया

कार्तिकेय चाहते थे कि उन का बेटा उन की तरह इंजीनियर बन कर देश के नवनिर्माण में सहयोग करे. 12वीं में उसे गणित और जीवविज्ञान दोनों विषय दिलवा दिए गए ताकि जिस ग्रुप में उस के अंक होंगे उसी में उसे दाखिला दिलवा दिया जाए. मगर परिवार का कोई भी सदस्य उस मासूम की इच्छा नहीं पूछ रहा था कि उसे क्या बनना है. उस की रुचि किस में है? मैं तो मूकदृष्टा थी. डर था तो केवल इतना कि वह कहीं दो नावों में सवार हो कर मंझधार में ही न गिर जाए? बस, मन ही मन यही सोचती कि जो भी अच्छा हो, क्योंकि आज प्रतियोगिताओं के दायरे में कैद बच्चे अपनी सुकुमारता, चंचलता और बचपना खो बैठे हैं. प्रतियोगिताओं में उच्च वरीयताक्रम के बच्चे ही सफल माने जाते हैं बाकी दूसरे सभी असफल. हो सकता है कि उन की तथाकथित असफलता के पीछे मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक कारण रहे हों, लेकिन आज उन की समस्याओं के समाधान के लिए समय किस के पास है? असफलता तो असफलता ही है, उन के मनमस्तिौक पर लगा एक अमिट कलंक.

घंटी बजने की आवाज सुन कर मैं ने दरवाजा खोला तो अनुज को खड़ा पाया. परीक्षाफल के बारे में पूछने पर वह बोला, ‘मालूम नहीं, ममा, बहुत भीड़ थी इसलिए देख ही नहीं पाया.’

दोपहर में कार्तिकेय उस के कालिज जा कर मार्कशीट ले कर आए. मुंह उतरा हुआ था, देख कर मन में खलबली मच गई. किसी अनहोनी की आशंका से मन कांप उठा, ‘क्या हुआ? कैसा रहा रिजल्ट?’ बेचैनी से मैं पूछ ही उठी.

‘पानी तो पिलाओ, मुंह सूखा जा रहा है,’ कार्तिकेयने पानी मांगते हुए कहा था.

पानी ले कर आई तो कार्तिकेय ने सुमित की मार्कशीट मेरे सामने रख दी. सभी विषयों में कम अंक देख कर मुंह से निकल गया, ‘यह मार्कशीट अपने सुमित की हो ही नहीं सकती. रोल नंबर उसी का है न?’ अविश्वास की मुद्रा में मुंह से निकल गया.

‘क्यों बेवकूफों जैसी बातें करती हो, मार्कशीट भी उसी की है, नाम और रोल नंबर भी,’ वह फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘अच्छा हुआ, मांपिताजी कानपुर दीदी के पास गए हैं वरना ऐसे नंबर देख उन के दिल पर क्या गुजरती?’

‘रिचैकिंग करवाएंगे,’ उन की बात अनसुनी करते हुए उमा ने कहा.

‘रिचैकिंग से क्या होगा? हर सब्जेक्ट में तो ऐसे ही हैं. गनीमत है पास हो गया, लेकिन ऐसे भी पास होने से क्या फायदा?’ कार्तिकेय, फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘तुम्हारी सोशल विजिट भी बहुत हो गई थी उन दिनों, उसी का परिणाम है यह रिजल्ट.’

कार्तिकेय का इस समय उस पर आरोप लगाना पता नहीं क्यों उमा को बेहद अनुचित लगा था किंतु स्थिति की गंभीरता को समझ कर, उस के आरोपों पर ध्यान न देते हुए उमा ने पूरे भरोसे के साथ किंतु धीमे स्वर में कहा, ‘यह रिजल्ट उस का है ही नहीं. क्या आप सोच सकते हो कि वह एकाएक इतना गिर जाएगा?’

‘तुम्हारे कहने से क्या होता है, जो सामने है वही यथार्थ है,’ कार्तिकेय ने एकएक शब्द पर बल देते हुए कहा. वह अनुज को सामने पा कर फिर बोल उठे, ‘इन को तो हीरो बनने से ही फुरसत नहीं है. एक ने तो नाक कटा दी और दूसरा शायद जान ही ले ले,’ कह कर वह आफिस चले गए.

अनुज सिर नीचा कर के अपने कमरे में चला गया. मां को गुस्से में उलटासीधा बोलते तो उस ने जबतब सुना था, किंतु पिताजी को इतना अपसेट नहीं देखा था. मां पहले कभी उन के सामने कभी कुछ कहतीं तो वह उन का पक्ष लेते हुए कहते, ‘बच्चे हैं, अभी शैतानी नहीं करेंगे तो फिर कब करेंगे, रोनेपीटने के लिए तो सारी जिंदगी पड़ी है.’

तब मां बिगड़ कर कहतीं, ‘चढ़ाओ, और चढ़ाओ अपने सिर. कभी अनहोनी हो जाए तो मुझे दोष नहीं देना.’ तो वह कहते, ‘अनहोनी कैसे होगी? मेरे बच्चे हैं, देखना नाक ऊंची ही रखेंगे.’ फिर हमारी तरफ मुखातिब हो कर कहते, ‘बेटा, कभी मुझे शर्मिंदा मत करना, मेरे विश्वास को ठेस मत पहुंचाना.’

आज वही डैडी सुमित भैया के परीक्षाफल को देख कर इतने दुखी हैं? वैसे उन के रिजल्ट पर तो उसे भी भरोसा नहीं हो रहा था. ‘कभी किसी दिन यदि कोई पेपर खराब भी होता तो उसे अवश्य बताते, कहीं कुछ गड़बड़ तो अवश्य हुई थी, कहीं कंप्यूटर में तो माव्फ़र्स फीड करने में किसी ने गड़बड़ी तो नहीं कर दी—?’ सवाल मस्तिष्क में कुलबुला तो रहे थे किंतु कोई समाधान उस के पास न था.

तभी फोन की घंटी बज उठी. फोन अमिता आंटी का था. अनुज मम्मी के कमरे में गया तो देखा, मम्मी सुबक रही हैं, उन को फोन देना उचित न समझ कर कह दिया कि वह सो रही हैं. परीक्षाफल पूछने पर कह दिया कि ‘पता नहीं’. वह जानता था कि वह कालोनी की इनफारमेशन सेंटर हैं. हर घर के समाचार उन के पास रहते हैं और पल भर में ही सब के पास पहुंच भी जाते हैं. पता नहीं उन को सब की घरेलू जिंदगी में इतनी दिलचस्पी क्यों रहती है? वैसे जब से उन की एकलौती पुत्री ने घर से भाग कर लव मैरिज की है तब से वह थोड़ा शांत जरूर हो गई हैं, लेकिन आदत तो आदत ही है, फोन रखने के बाद मम्मी ने अनुज से पूछा, ‘किस का फोन था?’

‘अमिता आंटी का.’

‘क्या कहा तू ने?’

‘कह दिया अभी पता नहीं चला है, डैडी ने किसी को भेजा है.’

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Hindi Story

झूठी शान: परेश क्या समझ गया था

सवेरेसवेरे किचन में नाश्ता बना रही निर्मला के कानों में आवाज पड़ी, ‘‘भई, आजकल तो लड़कियां क्या लड़के भी महफूज नहीं हैं. एक महीने में अपने शहर से 350 बच्चे गायब…’’ आवाज हाल में बैठ कर समाचार देख रहे निर्मला के पति परेश की थी.

निर्मला परेश को नाश्ता दे कर बाहर की ओर बढ़ गई. परेश को मालूम था कि उसे बच्चों की स्कूल की फीस जमा करवाने के लिए जाना है, फिर भी एक बार फर्ज के तौर पर ध्यान से जाने की हिदायत देते हुए नाश्ता करने में जुट गए.

इस पर निर्मला ने भी आमतौर पर दिए जाने वाला ही जवाब देते हुए कहा, ‘‘जी हां…’’ और बाहर का गरम मौसम देख कर बिना छाता लिए ही घर से निकल गई.

निर्मला आमतौर पर रिकशे से ही सफर किया करती, क्योंकि उस के पास और कोई साधन भी न था. स्कूल में सारे पेरेंट्स तहजीब से खुद ही सार्वजनिक दूरी बनाए अपनीअपनी कुरसियों पर बैठे अपना नंबर आने का इंतजार कर रहे थे.

निर्मला का नंबर सब से आखिर में था. उस के अकेलेपन की बोरियत को मिटाने के लिए न जाने कहां से उस की पुरानी सहेली मेनका भी उसी वक्त अपने बेटे की फीस जमा कराने वहां आ टपकी.

चेहरे पर मास्क की वजह से निर्मला ने उसे पहचाना नहीं, पर मेनका ने उस के पहनावे और शरीर की बनावट से उसे झट से पहचान लिया और दोनों में सामान्य हायहैलो के बाद लंबी बातचीत शुरू हो गई. दोनों सहेली एकदूसरे से दोबारा पूरे 5 महीने बाद मिल रही थीं.

यों तो दोनों का आपस में एकदूसरे से दूरदूर तक कोई संबंध नहीं था, पर दोनों के बच्चे एक ही जमात में पढ़ते थे. घर पास होने की वजह से निर्मला और मेनका की मुलाकात कई बार रास्ते में एकदूसरे से हो जाया करती.

धीरेधीरे बच्चों की दोस्ती निर्मला और मेनका तक आ गई. दोनों ही अकसर छुट्टी के समय अपने बच्चों को लेने आते, तब उन की भी मुलाकात हो जाया करती. दोनों एक ही रिकशा शेयरिंग पर लेते, जिस पर उन के बच्चे पीछे बैठ जाया करते.

निर्मला ने मेनका को देख कर खुशी से मुसकराते हुए कहा, ‘‘अरे, ये मास्क भी न, मैं तो बिलकुल ही पहचान ही नहीं पाई तुम्हें.’’

पर, असलियत तो यह थी कि वह उस के पहनावे से धोखा खा गई थी, क्योंकि जिस मेनका के लिबास पुराने से दिखने वाले और कई दिनों तक एक ही जैसे रहते. वह आज एक महंगी सी नई साड़ी और कई साजोसिंगार के सामान से लदी हुई थी. इस के चलते उसे यकीन ही नहीं हुआ कि यह मेनका हो सकती?है.

निर्मला ने उस की महंगी साड़ी को हाथ से छूने की चाह से जैसे ही उस की तरफ हाथ बढ़ाया, मेनका ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘अरे भाभी, ये क्या कर रही हो? हाथ मत लगाओ.’’

भले ही मेनका ने सार्वजनिक दूरी को जेहन में रख कर यह बात कही हो, पर उस के शब्द थोड़े कठोर थे, जिस का निर्मला ने यह मतलब निकाला कि ‘तुम्हारी औकात नहीं इस साड़ी को छूने की, इसलिए दूर ही रहो’.

निर्मला ने उस से चिढ़ते हुए पूछा, ‘‘यह साड़ी कहां से…? मेरा मतलब, इतनी महंगी साड़ी पहन कर स्कूल में आने की कोई वजह…?’’

‘‘महंगी… यह तुम्हें महंगी दिखती है. अरे, ऐसी साडि़यां तो मैं ने रोज पहनने के लिए ले रखी हैं,’’ मेनका ने बड़े घमंड में कहा.

निर्मला अंदर ही अंदर कुढ़ने लगी. उसे विश्वास नहीं हुआ कि ये वही मेनका हैं, जो अकसर मेरे कपड़ों की तारीफ करती रहती थी और खुद के ऊपर दूसरे लोगों से हमदर्दी की भावना रखती थी. ये तो कुछ महीनों पहले उम्र से ज्यादा बूढ़ी और बेकार दिखती थी, पर आज अचानक ही इस के चेहरे पर इतनी चमक और रौनक के पीछे क्या वजह है?

पहले तो अपने पति के कुछ काम न करने की मुझ से शिकायत करती थी, पर आज यह अचानक से चमकधमक कैसे? हां, हो सकता है कि विजेंदर भाई को कोई नौकरी मिल गई हो. हो सकता?है कि उन्होंने कोई धंधा शुरू किया हो, जिस में उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ हो या कोई लौटरी लग गई हो तो क्या…?

मैं इतना क्यों सोचने लगी? अब हर किसी की किस्मत एक बार जरूर चमकती है, उस में मुझे इतनी जलन क्यों हो रही है?

जिन के पास पहले पैसा नहीं, जरूरी थोड़े ही न है कि उन के पास कभी पैसा आएगा भी नहीं. भूतकाल की अपनी ही उधेड़बुन में कोई निर्मला को मेनका उस के मुंह के सामने एक चुटकी बजा कर वर्तमान में ले कर आई और कहा, ‘‘अरे भई, कहां खो गईं तुम. लाइन तो आगे भी निकल गई.’’

निर्मला और मेनका दोनों एकएक कुरसी आगे बढ़ गए.

‘‘वैसे, एक बात पूछूं मेनका, तुम्हारी कोई लौटरी वगैरह लगी है क्या?’’ निर्मला ने बड़े ही सवालिया अंदाज में पूछा, जिस का मेनका ने बड़े ही उलटे किस्म का जवाब दिया, ‘‘क्यों, लौटरी वाले ही ज्यादा पैसा कमाते हैं क्या? अब उन्होंने मेहनत के साथसाथ दिमाग लगाया है, तो पैसा तो आएगा ही न?

‘‘अब परेश भाई को ही देख लो, दिनभर अपने साहब के कहने पर कलम घिसते हैं, ऊपर से उन की खरीखोटी सुनते हैं, पूरे दिन खच्चरों की तरह दफ्तर में खटते हैं, फिर भी रहेंगे तो हमेशा कर्मचारी ही.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. मेहनत के नाम पर ये कौन सा पहाड़ तोड़ते हैं सिर्फ दिनभर पंखे के नीचे बैठ कर लिखापढ़ी का काम ही तो करना होता है. इस से ज्यादा आराम और इज्जत की नौकरी और किस की होगी.’’

निर्मला ने मेनका को और नीचा दिखाने की चाह में उस से कहा, ‘‘पढ़ेलिखे हैं. आराम की नौकरी करते हैं. यों धंधे में कितनी भी दौलत कमा लो, पर समाज में सिर्फ पढ़ेलिखे और नौकरी वाले इनसान की ही इज्जत होती?है, बाकियों को तो सब अनपढ़ और गंवार ही समझते हैं.’’

इस पर मेनका अकड़ गई और अपने पास अभीअभी आए चार पैसों की गरमी का ढिंढोरा निर्मला के आगे पीटने लगी.

काउंटर पर निर्मला का नंबर आया. काउंटर पर बैठी रिसैप्शनिस्ट ने फीस  की लंबीचौड़ी रसीद, जिस में दुनियाभर के चार्जेज जोड़ दिए गए थे, निर्मला  को पकड़ाई.

निर्मला ने घर पर पैसे जोड़ कर जो हिसाब लगाया था, उस से कहीं ज्यादा की रसीद देख कर उन की आंखों से धुआं निकल आया. इतने पैसे तो उस के पर्स में भी न थे, पर इस बात को वह सब के सामने जताना नहीं चाहती थी, खासकर उस मेनका के सामने तो बिलकुल नहीं.

मेनका ने कहा, ‘‘मैडम, आप सिर्फ 3 महीने की ही फीस जमा कीजिए, बाकी मैं बाद में दूंगी.’’

तभी निर्मला के हाथ से परची लेते हुए मेनका ने निर्मला पर एहसान करने की चाह से अपने पर्स से एक चैकबुक निकाल अपने और उस के बच्चे की फीस खुद ही जमा कर दी.

निर्मला को यह बलताव ठीक न लगा, जिस के चलते उस ने उसे बहुत मना भी किया.

इस पर मेनका ने कहा, ‘‘अरे, भाईसाहब को जब पैसे मिल जाएं, तब आराम से दे देना. मैं पैनेल्टी नहीं लूंगी,’’ और वह हंसते हुए बाहर की ओर

निकल गई.

स्कूल के बाहर निकल कर देखा, तो मालूम हुआ कि छाता न ले कर बहुत बड़ी गलती हुई. गरम मौसम की जगह तेज बारिश ने ले ली. इतनी तेज बारिश में कोई भी रिकशे वाला कहीं जाने को राजी न था.

निर्मला स्कूल के दरवाजे पर खड़ी बारिश रुकने का इंतजार कर रही थी, पर मन में यह भी डर था कि आखिर अभी तुरंत मेरे आगे निकली मेनका कहां गायब हो गई? वह भी इतनी तेज बारिश में.

‘चलो, अच्छा है, चली गई, कौन सुनता उस की ये बातें? चार पैसे क्या आ गए, अपनेआप को कहीं की महारानी समझने लगी. सारे पैसे खर्च हो जाएंगे, तब फिर वही एक रिकशा भी मेरे साथ शेयरिंग पर ले कर चला करेगी.

मन ही मन खुद को झूठी तसल्ली देती निर्मला के आगे रास्ते पर जमा पानी को चीरते हुए एक शानदार काले रंग की कार आ कर रुकी.

गाड़ी का दरवाजा खुला. अंदर बैठी मेनका ने बाहर निर्मला को देखते हुए कहा, ‘‘गाड़ी में बैठो निर्मला. इस बारिश में कोई रिकशे वाला नहीं मिलेगा.’’

निर्मला को न चाहते हुए भी गाड़ी में बैठना पड़ा, पर उस का मन अभी भी यकीन करने को तैयार नहीं था कि यह वही मेनका है, जो पैसे न होने के चलते एक रिकशा भी मुझ से शेयरिंग पर लिया करती थी?

‘‘सीट बैल्ट लगा लो निर्मला,’’ मेनका ने ऐक्सीलेटर पर पैर जमाते हुए कहा.

निर्मला ने सीट बैल्ट लगाते हुए पूछा, ‘‘कब ली? कैसे…? मेरा मतलब कितने की…?’’

‘‘कैसे ली का क्या मतलब? खरीदी है, वह भी पूरे 40 लाख रुपए की,’’ मेनका ने बड़े बनावटी लहजे में कहा.

निर्मला के अंदर ईष्या का भी अंकुर फूट पड़ा. आखिर कैसे इस ने इतनी जल्दी इतने पैसे कमाए, आखिर ऐसा कैसा दिमाग लगाया, विजेंदर भाई ने कि इतनी जल्दी इतने पैसे कमा लिए. और एक परेश हैं कि रोज 13-13 घंटे काम करने के बावजूद मुट्ठीभर पैसे ही ले कर आते हैं, वह भी जब घर के सारे खर्चे सिर पर सवार हों. एक इसी के साथ तो मेरी बनती थी, क्योंकि एक यही तो थी मुझ से नीचे. अब तो सिर्फ मैं ही रह गई, जो रिकशे से आयाजाया करूंगी. इस का भी तो कहना ठीक ही है कि किसी काम में दिमाग लगाए बिना सिर्फ मेहनत करने से जिस तरह गधे के हाथ कभी भी गाजर नहीं आती, उसी तरह हर क्षेत्र में मेहनत से ज्यादा दिमाग लगाना पड़ता है.

विजेंदर भाई ने दिमाग लगाया तो पैसा भी कमाया, वहीं परेश की जिंदगी तो सिर्फ खाने में ही निकल जाएगी, आज ये बना लेना कल वो बना लेना.

अपना घर नजदीक आता देख निर्मला ने सीट बैल्ट खोल दी और उतरने के लिए जैसे ही उस ने दरवाजा खोलना चाहा, उस से उस महंगी गाड़ी का दरवाजा न खुला. इस पर मेनका ने हंसते हुए अपने ही वहां से किसी बटन से दरवाजा अनलौक करते हुए निर्मला को अलविदा किया.

दरवाजा न खुलने वाली बात पर निर्मला को खूब शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था.

घर पहुंचते ही परेश ने एक पत्रिका में छपी डिश की तसवीर सामने रखते हुए वही डिश बनाने का आदेश दे डाला, जिस पर निर्मला ने परेश पर बिफरते हुए कहा, ‘‘पूरी जिंदगी तुम ने और किया ही क्या है, पूरे दिन गधों की तरह मेहनत करते हो और ऊपर से दफ्तर में बैठेबैठे फरमाइश और कर डालते हो कि आज यह बनाना और कल यह…

‘‘खाने के अलावा कभी सोचा है कि बाकी लोग तुम से कम मेहनत करते हैं, फिर भी किस चीज की कमी है उन्हें. घूमने को फोरव्हीलर हैं, पहनने को ब्रांडेड कपड़े हैं, कुछ नहीं तो कम से कम बच्चों की फीस का तो खयाल रखना चाहिए.

‘‘आज अगर मेनका न होती, तो फीस भी आधी ही जमा करानी पड़ती और बारिश में भीग कर आना पड़ता  सो अलग.’’

परेश समझ गया कि यह सारी भड़ास उस मेनका को देख कर निकाली जा रही है. परेश ने बात को और आगे न बढ़ाना चाहा, जिस के चलते उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा.

दोपहर को गुस्से के कारण निर्मला ने कुछ खास न बनाया, सिर्फ खिचड़ी बना कर परेश और बेटे पारस के आगे रख दी.

परेश चुपचाप जो मिला, खा कर रह गया. उस ने कुछ बोलना लाजिमी न समझा.

रात तक निर्मला ने परेश से कोई बात नहीं की. उस के मन में तो सिर्फ मेनका और उस के ठाटबाट के नजारे ही रहरह कर याद आ जाया करते और परेश की काबिलीयत पर उंगली उठा जाते.

डिनर का वक्त हुआ. परेश ने न तो खाना मांगा और न ही निर्मला ने पूछा. देर तक दोनों के अंदर गुस्से का जो गुबार पनपता रहा, मानो सिर्फ इंतजार कर रहा हो कि सामने वाला कुछ बोले और मैं फट पडं़ू.

दोनों को ज्यादा इंतजार न कराते  हुए ठीक उसी वक्त भूख से बेहाल  बेटा पारस निर्मला से खाने की मांग करने लगा.

पारस को डिनर के रूप में हलका नाश्ता दे कर निर्मला ने परेश पर तंज कसते हुए कहा, ‘‘बेटा, आज घर में कुछ था ही नहीं बनाने को, इसीलिए कुछ नहीं बनाया. तू आज यही खा ले, कल देखती हूं कुछ.’’

परेश ने हैरानी से पूछा, ‘‘घर में कुछ था नहीं और तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं? आखिर किस बात पर तुम ने दोपहर से अपना मुंह सिल रखा है और सुबह क्या देखोगी तुम?’’

‘‘मैं ने नहीं बताया और तुम ने क्या सिर्फ खाने का ठेका ले रखा है? सब से ज्यादा जीभ तुम्हारी ही चलती है, तो इंतजाम देखना भी तो तुम्हारा ही फर्ज बनता है न? और वैसे भी मालूम नहीं हर महीने राशन आता है, तो इस महीने कौन लाएगा?’’

परेश बेइज्जती के ये शब्द बरदाश्त न कर सका. इस वजह से वह उस रात भूखा ही सोया रहा मगर निर्मला से कुछ बोला नहीं.

सवेरे होते ही राशन के सामान से भरा हुआ एक थैला जमीन पर पटक कर उस में से जरूरी सामान निकाल कर परेश खुद ही अपने और बेटे पारस के लिए चायनाश्ता बनाने में जुट गया.

रसोई के कामों से फारिग हो कर दोनों बापबेटे सोफे पर बैठ कर नाश्ता करने में मगन हो गए.

परेश रोज की तरह समाचार चैनल लगा कर बैठ गया. आज सब से बड़ी खबर की हैडलाइन देख कर उस के होश उड़ गए और उस से भी ज्यादा उस के पीछे से गुजर रही निर्मला के.

सब से बड़ी खबर की हैडलाइन में लिखा था, ‘शहर में पिछले महीनों से गायब हो रहे बच्चों के केस का आरोपी शिकंजे में, जिस का नाम विजेंदर बताया जा रहा है. कल ही चौक से एक बच्चे को बहला कर अगुआ करते हुए वह पकड़ा गया.’

मुंह काले कपड़े से ढका हुआ था, पर इतनी पुरानी पहचान के चलते परेश और निर्मला को आरोपी को पहचानते देर न लगी.

निर्मला को अपनी गलती का एहसास हो चुका था. वह जान चुकी थी कि जल्दी से जल्दी ज्यादा ऐशोआराम पाने के चक्कर में लोगों को कोई शौर्टकट ही अपनाना पड़ता है, जिस काम की वारंटी वाकई में काफी शौर्ट होती है.

आज अपनी मरजी से ही निर्मला ने दोपहर का खाना परेश की पसंद का बनाया था, जिस की उसे कल तसवीर दिखाई गई थी.

Winter Special: फटी एड़ियों को मुलायम बनाएं

सर्दियों में हमारी त्वचा को खास देखभाल की जरूरत होती है. त्वचा के लिए तो हम एकबार फिर भी मॉइश्चराइजर, कोल्ड क्रीम खरीद लेते हैं लेकिन एड़ियों की हिफाजत का ख्याल भी बहुत कम लोगों को ही आता है. नतीजा यह होता है कि सर्दियां बढ़ने के साथ ही एड़ियों की दरारें भी बढ़ने लग जाती हैं और एक समय ऐसा आता है कि चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाता है.

ऐसे में बेहतर यही है कि समय रहते एड़ियों की देखभाल शुरू कर दी जाए ताकि आगे जाकर यह तकलीफ बढ़े नहीं. एड़ियों की देखभाल से पहले यह जानना जरूरी है कि एड़ियां फटती क्यों हैं.

क्यों फटती हैं एड़ियां

सही देखभाल न मिल पाना और गंदगी तो एक वजह है ही साथ ही अनियमित खानपान भी इसका एक मुख्य कारण है.

बनाएं एड़ियों को खूबसूरत और मुलायम

1. नारियल का तेल

रात को सोने से पहले पैरों को अच्छी तरह से साफ कर लें. इसके बाद साफ तौलिए से सुखाकर तेल लगाएं. इसके बाद मोजे पहन लें. इससे पैरों को गर्माहट मिलेगी और मॉइश्चर उड़ेगा भी नहीं. इस उपाय को सिर्फ 10 दिन करके देखें, फायदा होगा.

2. शहद

शहद एक बहुत अच्छा मॉइश्चराइजर है. एक बर्तन में इतना पानी ले लें कि उसमें आपके पैर डूब जाएं. इसमें आधा कप शहद मिलाकर पैर डुबोकर बैठ जाएं. कुछ देर बाद पैर धो लें. कुछ बार के ही इस्तेमाल से आपके पैर सॉफ्ट हो जाएंगे.

3. ग्लिसरीन

गुलाब जल और ग्लिसरीन का एक मिश्रण तैयार कर लें. इसे एड़ियों पर लगाकर कुछ देर के लिए छोड़ दें. इसके बाद पैरों को पानी से धो लें. कुछ दिनों में ही आपको असर नजर आने लगेगा.

4. पेट्रोलियम जेली

इसके अलावा पेट्रोलियम जेली का इस्तेमाल करके भी फटी एड़ियों की तकलीफ से राहत पायी जा सकती है. सिर्फ एक बात का ख्याल रखें कि गंदे पैर न रहें और अच्छी क्वालिटी के ही जूते-चप्पल पहनें.

Winter Special: नाश्ते में बनाएं पेरिपेरी पालक बड़ी

सर्दियां प्रारम्भ हो चुकीं हैं इन दिनों पालक, मैथी, सरसों का साग और धनिया जैसी हरी सब्जियां भी अच्छी खासी मात्रा में उपलब्ध रहतीं हैं. नाश्ता अक्सर हर गृहिणी के लिए बहुत बड़ी समस्या रहती है क्योंकि हर दिन नया नाश्ता बनाना सच में बहुत बड़ी चुनौती होता है. आपकी इसी समस्या को आज हमने हल किया है हरी पालक से बनाई जाने वाली तीखी और चटपटे स्वाद वाली अपनी इस रेसिपी के साथ, आप इसे नाश्ते में घर में उपलब्ध सामग्री से बड़ी आसानी से बना सकतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए                   4

बनने में लगने वाला समय             20 मिनट

मील टाइप                                वेज

सामग्री

हरी पालक                             250 ग्राम

बेसन                                     1 कप

चावल का आटा                      1/4 कप

पानी                                      ढाई कप

नमक                                    स्वादानुसार

अदरक, हरी मिर्च पेस्ट             1 टीस्पून

हींग                                     चुटकी भर

जीरा                                   1/4 टीस्पून

हल्दी पाउडर                        1/4 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर                 1/4 टीस्पून

नीबू का रस                         1 टीस्पून

शकर                                 1 टेबलस्पून

तिल                                  1 टीस्पून

मूंगफली दाना                      2 टीस्पून

घी                                    1 टेबलस्पून

राई के दाने                         1/4 टीस्पून

तेल                                    तलने के लिए

पेरी पेरी मसाला                 1 टीस्पून

विधि

पालक को साफ करके धोकर बारीक काट लें. एक कटोरे में बेसन और चावल के आटे को एक साथ मिलाएं. अब इसमें 1 कप पानी धीरे धीरे पानी मिलाकर गाढ़ा घोल तैयार कर लें. तैयार घोल में तेल, तिल, राई और मूंगफली दाने  को छोड़कर कटी पालक व अन्य समस्त सामग्री को एक साथ अच्छी तरह मिलाएं. अंत में बचा डेढ़ कप पानी भी मिला दें. अब एक पैन में 1 टीस्पून तेल गरम करके राई तड़काकर तिल और मूंगफली को अच्छी तरह भून कर तैयार बेसन का घोल डालकर लगातार चलाते हुए तेज आंच पर गाढ़ा होने तक पकाएं. जब मिश्रण एकदम गाढ़ा हो जाये तो गैस बंद कर दें और मिश्रण को चिकनाई लगी ट्रे में आधे इंच की मोटाई में फैलाएं. आधे घण्टे तक ठंडा होने के लिये छोड़ दें. आधे घण्टे के बाद 1 इंच के चौकोर टुकड़ों में काट लें. अब इन्हें गर्म तेल में तेज आंच पर सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें. गर्म में ही बड़ी में  पेरी पेरी मसाला अच्छी तरह मिलाएं और हरे धनिये की चटनी के साथ सर्व करें.

क्या करें लिव इन रिलेशन में रहने से पहले

करीब 4 साल तक लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद स्मृति ने जब देखा कि उस के बौयफ्रैंड सूरज ने किसी और लड़की से शादी कर ली है, तो उस के पैरों तले धरती खिसक गई.

पिछले कुछ दिनों से वह सूरज के हावभाव में बदलाव देख रही थी. पूछने पर वह अलगअलग बहाने बना देता था. कभी कहता कि औफिस में समस्या है, तो कभी कहता कि तबीयत ठीक नहीं है. एक दिन जब उस ने जोर दिया तो उस ने बताया कि जब वह अपने शहर गया, तो मातापिता ने उस की जबरदस्ती शादी करवा दी. वह अपनी और स्मृति की बात उन्हें इसलिए नहीं बता पाया, क्योंकि वे दोनों के अलगअलग जाति के होने की वजह से इस रिश्ते को मंजूरी नहीं देते.

स्मृति उस की सहजता से कह गई इस बात से हैरान हो गई. फिर उसी दिन वहां से अपनी मां के पास चली गई. फिर वह एक सामाजिक संस्था से मिली और कोशिश कर रही है कि सूरज उसे अपना ले. वह कोर्ट नहीं गई, क्योंकि उसे लगा कि इस से उस की बदनामी होगी. उस का कहना है कि सूरज कोशिश कर रहा है. वह अपनी पत्नी को तलाक दे कर उसे अपनाएगा, क्योंकि यह शादी उस ने अपने मातापिता की जिद से की है.

यहां सवाल यह उठता है कि अब तक सूरज अगर अपने रिश्ते को परिवार की नहीं बता पाया है, तो आगे कैसे बता कर स्मृति के साथ रहेगा? और अपनी पत्नी को छोड़ेगा कैसे? उस के लिए वजह क्या बनाएगा?

लिव इन रिलेशनशिप आज के समय में तेजी से बढ़ रहा है. एक समय ऐसा था जब ऐसे संबंध होने पर लोग खुल कर बात करना पसंद नहीं करते थे. लेकिन आजकल लोग खुल कर इस रिलेशनशिप में रहते हैं खासकर युवा इस रिश्ते को अपनाने में सहजता का अनुभव करते हैं, क्योंकि इस में दायित्व कम होता है.

सैक्स की आजादी

इस बारे में मुंबई की सोशल ऐक्टिविस्ट नीलम गोरहे कहती हैं, ‘‘यह रिश्ता तब तक ठीक रहता है जब तक महिलाओं को कोई समस्या नहीं आती. महिलाएं मेरे पास तब आती हैं जब उन का बौयफ्रैंड उन्हें छोड़ कर चला गया हो या चोरीछिपे शादी कर ली हो. ऐसे में हरेक महिला यही चाहती है कि रिश्ते को मैं ठीक कर दूं. उस लड़के से कहूं कि उसे अपना ले.

‘‘असल में इस रिश्ते के लिए अधिकतर लड़के ही आगे आते हैं, क्योंकि प्यार से अधिक इस में सैक्स की आजादी होती है. यह रिश्ता जितनी आजादी देता है, उतना ही खतरनाक भी होता है. मेरे पास एक मातापिता ऐसे आए जिन की लड़की का मर्डर हो चुका था पर कोई पू्रफ नहीं था. उसे मारने वाला उस का बौयफ्रैंड ही था.

3-4 साल से वह लड़की उस लड़के के साथ लिव इन रिलेशनशिप में थी, जिस का पता उस के मातापिता को नहीं था. जब पता चला तो मातापिता ने लड़की से उस से शादी करने के लिए कहा. लेकिन वह लड़का तब आनाकानी करने लगा, जिसे देख लड़की ने उस रिश्ते से बाहर निकलना चाहा. यह बात लड़के को जब पता चली तो उस ने उस का मर्डर कर दिया. उस का शव बाथरूम में मिला.

‘‘दरअसल, लड़के को यह लगा था कि अलग होने के बाद लड़की कोर्ट जा सकती है, क्योंकि वह पढ़ीलिखी थी. पू्रफ के अभाव में लड़का अभी बाहर है.’’

लिव इन रिलेशनशिप के अधिकतर मामले महानगरों में पाए जाते हैं, जहां काम या पढ़ाई के लिए युवा घर से दूर रहते हैं. उन के बीच अकसर इस तरह के रिश्ते हो जाते हैं. दरअसल, फ्लैट कल्चर में घर शेयर करने यानी साथ रहने में इन्हें फायदा भी नजर आता है.

इन रिश्तों को लड़के ही अधिकतर तोड़ते हैं, लेकिन रिश्ता टूटने पर भावनात्मक से सहज हो जाना कई बार लड़कियों के लिए मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इस में लड़की के परिवार की भूमिका न के बराबर होती है.

नीलम कहती हैं, ‘‘इस तरह के रिश्ते को बढ़ावा देने में धर्म भी कम नहीं. अधिकतर लोग विपरीत धर्म या जाति में शादी करने के लिए इजाजत नहीं देते, इसलिए रिश्ते को छिपाना पड़ता है. कई बार तो लोग दोहरी जिंदगी भी जीते हैं, जो डिप्रैशन, मर्डर, आत्महत्या जैसी कई घटनाओं को जन्म देती है.

‘‘इस रिश्ते को शादी का नाम देने के लिए मातापिता, परिवार व समाज के सहयोग की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर नहीं मिलता. इस रिश्ते में बड़ी समस्या तब आती है जब दोनों के बीच में बच्चा आ जाता है. बच्चा जब स्कूल जाने लगता है तब उत्तरदायित्व समझ में आता है. हालांकि आजकल डी.एन.ए. टैस्ट का प्रावधान हो चुका है, जिस से महिला को काफी राहत मिल रही है.

‘‘शादी करना आजकल काफी खर्चीला भी होता है. इस के लिए समय और संसाधन की भी जरूरत होती है. वहीं अगर शादी असफल हो जाए तो तलाक के लिए कानूनी झंझट से गुजरना पड़ता है. लिव इन रिलेशन दरअसल शादी का प्रिव्यू है जिस से व्यक्ति यह अंदाजा लगा सकता है कि शादी सफल होगी या नहीं.

ठगी की शिकार महिलाएं

सीनियर ऐडवोकेट आभा सिंह कहती हैं कि लिव इन रिलेशनशिप बड़े शहरों में अधिक है और इसे सामाजिक कलंक अभी भी हमारे समाज में माना जाता है. बहुत कम महिलाएं हिम्मत कर अपना कानूनी अधिकार पाती हैं, क्योंकि कोर्ट, वकील की बातें बहुत कठोर होती हैं. उन्हें सह पाना आसान नहीं होता.

बहुत सारी ऐसी घटनाएं हैं जिस में महिलाएं ठगी गईं पर उन्होंने रिपोर्ट नहीं लिखवाई. बौलीवुड के सुपरस्टार राजेश खन्ना की मौत के बाद उन के बंगले का विवाद सामने आया. उन के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली अनिता आडवाणी को परिवार के लोगों ने धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दिया. जबकि वे 8 साल से राजेश खन्ना के साथ रह रही थीं. जब वे मेरे पास आईं, तो मैं ने पहली बात यही पूछी कि आप इतने दिनों तक कहां थीं? पहले क्यों नहीं आईं जब राजेश खन्ना जीवित थे? दरअसल, उन के पास ऐसा कोई पू्रफ यानी सुबूत नहीं था कि वे उन के साथ रह रही थीं, ऐसे केस में पू्रफ के लिए निम्न जगहों पर साथ रहने वाली का नाम होना चाहिए:

– जौइंट अकाउंट में.

– बिजली या मोबाइल बिल में.

– राशन कार्ड में.

ऐसा होने पर ही आप सिद्ध कर सकती हैं कि आप उस व्यक्ति से कुछ पाने की हकदार हैं.

अनिता आडवाणी को 200 करोड़ की प्रौपर्टी में से कुछ भी नहीं मिला. हाई कोर्ट में भी उन की अर्जी खारिज कर दी गई. अब वे सुप्रीम कोर्ट जा रही हैं.

इन शर्तों को जानें

गुजारा भत्ता पाने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि लिव इन रिलेशन में निम्न 4 शर्तें पूरी होना जरूरी हैं:

– ऐसे युगल समाज के सामने पतिपत्नी के तौर पर आएं.

– वे शादी की कानूनी उम्र पूरी कर चुके हों.

– उन के रिश्ते कानूनी रूप से शादी करने के लिए वर्जित न हों.

– दोनों स्वेच्छा से लंबे वक्त तक यानी कम से कम 6 साल साथ रहे हों.

रिश्ता खराब नहीं

26 नवंबर 2013 को एक अदालती आदेश में रिलेशनशिप को क्राइम नहीं माना गया. इस से इस रिश्ते को अपनाने वाले युवाओं को काफी राहत मिली. मैरिज काउंसलर संजय मुखर्जी कहते हैं कि ऐसे केसेज में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है. यह रिश्ता खराब नहीं है. कई बार शादी के बाद पतिपत्नी में अनबन हो जाती है, इसलिए बहुत से यूथ इसे अपनाते हैं. अधिकतर आत्मनिर्भर महिलाएं ही इस रिश्ते को पसंद करती हैं, क्योंकि इस में सासससुर, ननद, देवर आदि का झंझट नहीं रहता.

यह रिश्ता एक तरह से ऐक्सपैरिमैंटल होता है, जिस में 3-4 महीने तो ठीक ही चल जाते हैं. समस्या 1 साल बाद आती है. मेरे हिसाब से 1 साल तक इस रिश्ते में रहने के बाद महिलाओं को शादी करने के बारे में सोचना चाहिए. इस के अलावा कुछ बातों पर उन्हें खास ध्यान देना चाहिए:

– अगर लड़का शादी न करना चाहे, तो वजह पता करें.

– दोनों अपनी कमाई जौइंट अकाउंट में साथसाथ डालें और दोनों उसी से खर्च करें.

– अगर शादी नहीं करनी है, तो पहले ही वकील से परामर्श कर स्टैंप पेपर पर अपने हिस्से को सुनिश्चित करवा लें.

इस के अलावा संजय कहते हैं कि लिव इन रिलेशन में बच्चे की प्लानिंग न करें ताकि आगे चल कर आने वाले बच्चे को अपराधबोध न हो.

वैसे हर रिश्ते की अपनी अलग अहमियत होती है. लेकिन जहां शादी एक महिला को सुरक्षित जीवन देती है, वहीं लिव इन रिलेशनशिप में असुरक्षा अधिक रहती है. सही यही होगा कि आप अपने रिश्ते को समझने की कोशिश करें और अपने भविष्य में आने वाली परेशानियों से अपनेआप को बचाएं.

सोच समझकर इस्तमाल करें क्रेडिट कार्ड

क्रेडिट कार्ड से शॉपिंग सुविधाजनक है और कैश हाथ में न होने पर भी जरूरत का सामान आसानी से लिया जा सकता है. लेकिन समझदारी से इसका यूज नहीं करने पर आप बहुत बड़ी परेशानी में फंस सकती हैं. 500-1000 के नोट बैन के बाद तो क्रेडिट कार्ड और भी महत्वपूर्ण हो गया है.

हालांकि यह भी सच है कि क्रेडिट कार्ड से खरीदारी के दौरान थोड़ा लालच बढ़ जाता है और तब खुद पर कंट्रोल करना मुश्किल होता है. ऐसे में थोड़ी समझदारी दिखाना जरूरी है. ऐसा न हो कि आप एक ही बार में क्रेडिट कार्ड की सारी लिमिट खत्म कर दें और फिर बाद में इंस्टॉलमेंट देने पर आपको परेशानी हो या जरूरी खर्चे तक रोकने की नौबत आ जाए.

क्रेडिट कार्ड फायदे की चीज है. तो जानते हैं ऐसे 5 टिप्स, जो अच्छी खरीदारी के साथ ही क्रेडिट कार्ड को समझदारी से इस्तेमाल करने का तरीका भी बताएंगे.

1. क्रेडिट कार्ड से शॉपिंग करते समय हर बार आप रिवार्ड पॉइंट्स कमाते हैं. अक्सर 100-250 की खरीद पर आपको 1 पॉइंट मिलता है. हालांकि यह अलग-अलग कार्ड और बैंक पर डिपेंड करता हैं. समझदारी इसी में है कि आप अपने जुटाए हुए पॉइंट्स से अपडेट रहें और शॉपिंग की पेमेंट करने के दौरान इनको भी यूज कर लें. इस तरह आपको खासी बचत मिल सकती है.

2.  क्रेडिट कार्ड से खरीदारी के बाद अपने मोबाइल में सारी पेमेंट डीटेल और इंस्टालमेंट के रिमाइंडर लगा लें, जिससे आपको याद रहे कि ड्यू डेट से पहले ही आपको इसे क्लीयर कर देना है ताकि बाद में ब्याज का ज्यादा बोझ न पड़ें. कोशिश करें कि जब तक आप पहले वाली पेमेंट न कर दें, तब तक और शॉपिंग न करें.

3. फालतू के खर्च से बचने की कोशिश करें. कभी भी बंपर ऑफर्स या सेल को देखकर यह न सोचें कि सारा फायदा अभी ही उठा लें. हमेशा ध्यान रखें कि कंपनियां और ब्रांड्स अक्सर कोई न कोई ऑफर लेकर आते ही रहते हैं. ऐसे में लालच में न पड़े. वरना बाद में ब्याज समेत इसका ज्यादा बोझ आपकी जेब पर पड़ सकता है.

4. बजट से थोड़ा कम ही खर्च करने का टारगेट बनाएं. अगर आपके क्रेडिट कार्ड की लिमिट 1 लाख है तो कोशिश करें कि आप 80 हजार में ही अपनी शॉपिंग निपटा लें. ऐसा करने से जरूरत के समय आप इस बचाए हुए क्रेडिट का इस्तेमाल कर पाएंगे.

5. हर महीने अपने क्रेडिट कार्ड की स्टेटमेंट सावधानी से चेक करने की आदत डालें. एक अच्छा तरीका यह भी है कि आप क्रेडिट कार्ड के जरिए खरीदे गए सामान का बिल हमेशा पेमेंट क्लीयर होने तक संभाल कर रखें. इससे आप आसानी से स्टेटमेंट के साथ बिल को वैरिफाई कर पाएंगे कि कहीं कोई एक्सट्रा चार्ज तो नहीं लगा या कोई और गड़बड़ी तो नहीं है.

इसके अलावा साइबर सिक्योरिटी भी एक बड़ा मुद्दा है. कभी भी अपने क्रेडिट कार्ड का पिन नंबर और सिक्योरिटी कोड किसी को न दें. इसमें आपके पैसे की ही सुरक्षा है.

चौथापन- भाग 2 : मुन्ना के साथ क्या हुआ

वह अपने हालात से परेशान हो कर कई बार सोचते थे कि त्रिवेणी उन के पास रहती तो बड़ा सुविधाजनक होता. वह उन के खानेपीने का कितना खयाल करती थी. भैयाभैया कहते उस की जबान नहीं थकती थी.

सच  पूछो तो अपनी पत्नी इंदू की मौत का आघात वह उसी के सहारे सहन कर गए थे. त्रिवेणी के रहते उन्हें कभी एकाकीपन का एहसास नहीं सालता था.

सब से बड़ी बात यह थी कि तब मुन्ना के उपेक्षित रूखेपन, बहू की अपमानजनक तेजमिजाजी और नाती- नातिनों की बदतमीजियों की ओर उन का ध्यान ही नहीं जाता था. वह तो त्रिवेणी को भेजना ही नहीं चाहते थे, लेकिन बहू ने मुन्ना के ऐसे कान भरे कि उस का घर में रहना असंभव कर दिया.

एक दिन वह शाम की सैर को पार्क की दिशा में जा रहे थे कि मुन्ना ने कार उन के सामने रोक दी, ‘‘आइए, बाबूजी, मैं छोड़ दूं आप को पार्क तक.’’

वह कहना चाहते थे, ‘भाई, पार्क है ही कितनी दूर? मैं घूमने ही तो निकला हूं. खुद चला जाऊंगा,’ पर चाह कर भी कुछ न बोल सके और चुपचाप कार में बैठ गए.

मुन्ना ने जोर से कार का दरवाजा बंद किया. फिर कार चल दी. मुन्ना ने अचानक पूछ लिया, ‘‘बाबूजी, बूआ यहां कब तक रहेंगी?’’

वह चौंके, ‘‘क्यों बेटा? उस से तुम्हें क्या तकलीफ है?’’

‘‘तकलीफ की बात नहीं है, बाबूजी. मां के मरने पर बूआजी आईं तो फिर वापस गईं ही नहीं.’’

‘‘वह तो मैं ही उसे रोके हुए हूं बेटा. फिर उस पर ऐसी कोई बड़ी जिम्मेदारी अभी नहीं है. सो वह हमारे यहां ही रह लेगी.’’

‘‘लेकिन हम उन की जिम्मेदारी कब तक उठाएंगे? उन के अपने बेटाबहू हैं. उन्हें उन के पास ही रहना चाहिए. फिर वह यहां तरीके से रहतीं तो कोई बात नहीं थी पर वह तो हमेशा आप की बहू ममता पर रोब गांठती रहती हैं.’’

मुन्ना के शब्दों ने ही नहीं उस के स्वर ने भी उन्हें आहत कर दिया था. वह जानते थे कि त्रिवेणी पर लगाया गया आरोप झूठा है. आखिर त्रिवेणी उन की एकमात्र बहन है. वह उसे बचपन से जानते हैं. ममता उस के विषय में ऐसी बात कह ही नहीं सकती थी. लेकिन वह चाह कर भी मुन्ना से अपना विरोध प्रकट नहीं कर सके थे. वह जानते थे कि मुन्ना और बहू अब त्रिवेणी को घर में शांति से नहीं रहने देंगे. उसी को ले कर हर समय कलह मची रहेगी. बातबात पर त्रिवेणी को अपमानित किया जाता रहेगा. वह यह ज्यादती सहन नहीं कर सकेंगे. इसीलिए उन्होंने त्रिवेणी को भेज दिया था.

त्रिवेणी चली गई थी. जिस दिन वह गई, उस दिन उन्हें ऐसा लगा मानो इंदू की मौत अभीअभी हुई हो. कितने ही दिनों तक वह अनमने से रहे थे. अब उन्हें पूछने वाला कोई न था. सुबह की चाय के लिए भी तरस जाते थे. वह बारबार बच्चों द्वारा बहू के पास संदेश भेजते रहते, पर वह संदेश अकसर बीच में ही गुम हो जाता था. थक कर वह खुद रसोईघर के द्वार पर जा कर दस्तक देते. जवाब में बहू का तीखा स्वर सुनाई देता, ‘‘आप को चाय नहीं मिली? अंजू से कहा तो था मैं ने. ये बच्चे ऐसे बेहूदे हो गए हैं कि बस… अकेला आदमी आखिर क्याक्या करे? मैं तो काम करकर के मर जाऊंगी, तब ही शांति मिलेगी सब को.’’

वह अपराधी की तरह मुंह लटकाए अपने कमरे में लौट आते थे.

भोजन के समय भी अकसर ऐसा ही तमाशा होता था. कई बार उन के मुंह का कौर विष बन जाता था. पर उस जहर को निगल लेने की मजबूरी उन की जिंदगी की विडंबना बन गई थी.

सुबह के समय वह कितनी ही देर तक गरम पानी के अभाव में बिना नहाए बैठे रहते थे. अब त्रिवेणी तो घर में थी नहीं कि सुबह जल्दी उठ कर गीजर चला देगी. बहू उठती थी पूरे 7 बजे के बाद और नौकर 8 बजे तक आता था.

जब तक पानी गरम होता था, स्नानघर में पहले ही कोई दूसरा व्यक्ति स्नान के लिए घुस जाता था. भला उन्हें कौन सा काम था? उन के जरा देर से नहाने से कौन सा अंतर पड़ जाता. बहू, बच्चे, मुन्ना सब को जल्दी थी, सब कामकाजी आदमी थे. बस, वही बेकार थे.

वह इंतजार में इधरउधर टहलते हुए बारबार नौकर से पूछते रहते थे, ‘‘गोपाल, क्या स्नानघर खाली हो गया?’’

‘‘स्नानघर खाली हो जाएगा तो मैं खुद बता दूंगा आप को, दादाजी,’’ नौकर भी मानो बारबार एक ही प्रश्न पूछे जाने पर उकता कर कह देता था.

और केवल नहानेखाने की ही तो बात नहीं थी. घर की हर गतिविधि में उन्हें पंक्ति के सब से आखिर में खड़ा कर दिया जाता था. घर में उन के दुखसुख का साथी कोई नहीं था.

एक दिन अचानक उन के सिर में भयंकर पीड़ा होने लगी. बड़ा नाती मुकेश कमरे में अपना बल्ला रखने आया. उन्होंने उसे पकड़ कर चापलूसी की, ‘‘बेटे, जरा मेरा सिर तो दबाना. बड़ा दर्द हो रहा है.’’

मुकेश ने अनिच्छा से 2-4 हाथ सिर पर मारे और तत्काल उठ खड़ा हुआ. वह घबरा कर कराहे, ‘‘अरे बस, जरा और दबा दे.’’

‘‘मेरे हाथ दुखते हैं, दादाजी.’’

वह दंग रह गए. फिर दूसरे ही क्षण तमक कर बोले, ‘‘बूढ़े दादा की सेवा करने में तुम्हारे हाथ टूटते हैं? आने दे मुन्ना को.’’

मुकेश ढिठाई से मुसकराता हुआ चला गया. वह पड़ेपड़े मन ही मन कुढ़ते रहे थे. उन्हें अपना बचपन याद आने लगा था. वह कितनी सेवा करते थे अपने बाबा की. रोजाना रात को नियम से उन के हाथपैर दबाया करते थे. बाबा उन्हें अच्छीअच्छी कहानियां सुनाया करते थे.

बाबा की याद आई तो उन्हें एहसास हुआ कि आज जमाना कितना बदल गया है. मजाल थी तब परिवार के किसी सदस्य की कि बाबा की बात को यों टाल देता.

भोजन के बाद मुन्ना उन के कमरे में आया. पूछा, ‘‘बाबूजी, सुना है, आप ने खाना नहीं खाया है आज?’’

‘‘इच्छा नहीं थी, बेटा. सिर अभी तक बहुत पीड़ा कर रहा है. शायद बुखार आ कर ही रहेगा.’’

वह मुकेश की गुस्ताखी की चर्चा करना चाहते थे, लेकिन कुछ सोच कर चुप रह गए थे. वह जानते थे कि मुन्ना सब कुछ सुन कर तपाक से कहेगा, ‘‘अरे बाबूजी, क्यों बच्चों के मुंह लगते हैं? नौकर से कह दिया होता. वह दबा देता आप का सिर.’’

लेकिन प्रश्न यह था कि क्या नौकर खाली बैठा रहता था उन के लिए? दूध लाओ, सब्जी लाओ, बच्चों को ट्यूशन पढ़ने के लिए छोड़ कर आओ, बहू और बच्चों के कमरे साफ करो, रसोई धोओ. हजार काम थे उस के लिए. वह भला उन का काम कैसे करता?

‘‘दर्द निवारक टिकिया मंगवाई थी न आप ने? 2 गोलियां एकसाथ खा लीजिए. तुरंत आराम आ जाएगा. मैं सुबह डाक्टर को बुलवा कर दिखवा दूंगा. अच्छा, मैं चलता हूं. अगर रात में ज्यादा तकलीफ हो तो हमें आवाज दे दीजिएगा,’’ कह कर मुन्ना चल दिया था.

Sonam Kapoor ने दिखाई बेटे वायु की पहली झलक, शेयर किया क्यूट वीडियो

बॉलीवुड की फेशन क्वीन कही जाने वाली एक्ट्रेस हाल ही मां बनी थी. जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड में थी. बता दें, हम बात कर रहे है सोनम कपूर अहूजा की, जो कि मां बनने के बाद बेहद ही खुश है और उनसे जुड़ी कुछ सोशल मीडिया पर फोटो शेयर हुई है.

शादी के चार साल बाद मां बनी सोनम कूपर

आपको बता दे, कि सोनम कपूर और आंनद अहूजा की शादी साल 2018 में हुई थी, कपल की शादी काफी धूमधाम से हुई थी. शादी के चार साल बाद 30 अगस्त 2022 को सोनम कपूर अहूजा को एक बेटा हुआ था. जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पहले कभी नहीं देखी गई, लेकिन अब तीन महीने बीत जाने के बाद, पहली बार सोशल मीडिया बेटे वायु की फोटो वायरल हो रही है. जी हां, कपल ने पहली बार अपने बेटे वायु की वीडियो शेयर की है. एक्ट्रेस ने बेटे की सोशल मीडिया पर पहली झलक दिख लाई है.

 

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सोनम ने ये वीडियो इंस्टाग्राम पर शेयर की है. जिसमे वो अपने पति आनंद कपूर आहूजा के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करती दिखाई दे रही है. वीडियो को शेयर करते हुए अपने पिता अनिल कपूर और मां सुनीता कपूर को भी टैग किया है. उन्हे वायु के पैरेंट्स बताया गया है. 

मुंबई में हुआ था, बेटा वायु

 

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सोनम कपूर और आंनद अहूजा काफी समय से मुंबई में रह रहे थे. फिल्म स्टार ने अपनी डिलीवरी भी मुंबई मे की थी. कपल माता-पिता मुबंई में ही बना थे और बेटे का वेलकम किया था. बता दें, कि बेटे के जन्म के करीब दो महीने बाद एक्ट्रेस वापस अपने पति आंनद अहूजा के साथ लंदन के लिए रावाना हो गई. वर्क फ्रंट की बात करें तो सोनम अपने काम से छुट्टी ले चुकी है और बेटे के साथ टाइम स्पेंड कर रही है.

दूसरों की नकल करके मेकअप करने का प्रयास कभी न करें- आकांक्षा रंजन कपूर

लगभग हर बच्चा बड़ा होकर उसी पेश को अपना कैरियर बनाता है, जिस माहौल व परिवेश में उसकी परवरिश होती है. यही वजह है कि फिल्मी माहौल में पली बढ़ी सभी संताने फिल्म उद्योग में ही सक्रिय हैं. ऐसी ही संतानों में से एक आकांक्षा रंजन कपूर हैं, जो कि इन दिनों ‘नेटफ्लिक्स’ पर स्ट्रीम हो रही फिल्म ‘‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’’ में राज कुमार राव, राधिका आप्टे व हुमा कुरेशी के संग निक्की अधिकारी के किरदार में नजर आ रही हैं. आकांक्षा रजन कपूर के पिता अपने समय के अभिनेता व टीवी सीरियल निर्माता व निर्देशक शशि रंजन हैं. उनकी मां अनु रंजन एक पत्रिका की संपादक व प्रकाशक रही हैं. आकांक्षा रंजन कपूर की बड़ी बहन अनुश्का रंजन भी अभिनेत्री हैं. वैसे आकांक्षा रंजन कपूर का कहना है कि उन्हे तो नर्सरी कक्षा से ही अभिनय का चस्का रहा है, तब तक उन्हे इस बात का अहसास ही नहीं था कि उनके माता पिता क्या करते हैं.

प्रस्तुत है आकांक्षा रंजन कपूर से हुई बातचीत के अंश. . .

आपकी परवरिश फिल्मी महौल मे हुई. इसके अलावा जब आपकी बड़ी बहन अनुश्का ने अभिनय में कैरियर बना लिया, तो इससे आपका हौसला बढ़ा होगा?

-जी हॉ!ऐसा आप कह सकते हैं. पर उस वक्त मैं इतनी समझदार भी नही थी. मैं तो करिश्मा कपूर को ेदेखकर सोचती थी कि मुझे भी यही करना है. मै तो यही कहती थी कि यदि करिश्मा कपूर कर सकती है, तो मैं भी कर सकती हूं. इतना ही नही मुझे जिस अभिनेत्री का काम पसंद आ जाता, मैं उसी की तरह बनने की बात करने लगती थी. तो आप मान लीजिए, कि मुझे बचपन से ही अभिनय का चस्का था. मैने नर्सरी में भी नाटकों में अभिनय किया था.

आपको अभिनय का प्रशिक्षण लेने की जरुरत पड़ी या नहीं?

-मेेरे अंदर अभिनय के गुण थे. लेकिन उन्हे पॉलिश करने के मकसद से मैने स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद अभिनय व फिल्म विधा को समझने के लिए मंुबई के गोरेगांव स्थित ‘व्हिशलिंग वूड स्कूल’ से दो साल का कोर्स किया. फिर परफार्मिंग आर्ट्स के आईटीए स्कूल से भी चार माह का कोर्स किया. मैने बौलीवुड डांस के साथ ही कत्थक नृत्य भी सीखा. मैने विकास सर से डिक्शन क्लासेस ली. पूरे तीन साल तक मैंने खुद को इस तरह से तैयार किया.

आपने म्यूजिक वीडियो ‘हम ही हम थे’ से कैरियर शुरू किया था. इसकी कोई खास वजह थी?

-अभिनय व नृत्य का प्रशिक्षण पूरा होने के बाद मैने संघर्ष शुरू किया. लंबे संघर्ष के बाद मुझे फिल्म ‘गिल्टी’ मिली. मैने इस फिल्म के लिए आवश्यक तैयारी शुरू की. लेकिन फिल्म ‘गिल्टी’ की शूटिंग शुरू होने से एक माह पहले ही मुझे इस गाने के म्यूजिक वीडियो के लिए बुलाया गया. मुझे गाना बहुत पसंद आया. गाना इतना संुदर था कि मैने सोचा कि इसे कर लेती हूं, इससे कैमरे के सामने काम करने की प्रैक्टिस हो जाएगी. क्योंकि तब तक मैं कैमरे के सामने गयी नहीं थी. इसके अलावा इसमें आपरशक्ति खुराना भी थे.  इस म्यूजिक वीडियो में काम करके मुझे काफी कुछ सीखने को मिला. कैमरा एंगल की समझ बढ़ी.

हर कलाकार की तमन्ना होती है कि उसकी प्रतिभा बड़े परदे पर नजर आए. पर आपकी पहली फिल्म ‘गिल्टी’ तो ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर आयी. इससे कुछ मायूसी हुई होगी?

-बिलकुल नही. मैं कई वर्षों से अभिनय में कैरियर शुरू करने के लिए कोशिशें कर रही थी. कोई बात नही बन रही थी. मेरी तमन्ना हीरोईन बनना और खुद को बड़े परदे पर देखने की थी. पर शुरूआत नहीं हो पा रही थी. ऐसे में जब मेरे पास ‘गिल्टी’ का आफर आया, तो मैने लपक लिया. आखिर मुझे अभिनय करने का अवसर जो मिल रहा था. मैं चाहती थी कि फिल्म इंडस्ट्री को अहसास हो कि मैं लोगो के सामने अभिनय कर सकती हूं. इसलिए बुरा नही लगा था. बल्कि खुशी हुई थी कि आखिरकार मुझे अभिनय करने का अवसर मिला. पर इच्छा है कि मेरा काम बड़े परदे पर नजर आए. मुझे उम्मीद है कि वक्त आने पर ऐसा भी होगा. ‘गिल्टी’ के बाद मैने ओटीटी पर वेब सीरीज ‘रे’ की.  अब ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर ही मेरी फिल्म ‘मोनिका ओ माई डार्लिंग’ स्ट्रीम हो रही है.

‘गिल्टी’ के स्ट्रीम होने के बाद किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली थीं?

-नेटफ्लिक्स ने इसके स्ट्रीम होने से एक दिन पहले  पत्रकारों को यह फिल्म दिखायी थी, उस वक्त हम सभी कलाकार वहां पर थे. तब जिस तरह से पत्रकारों के अलावा अन्य कलाकारों व क्रिएटिब लोगो ने मेरे काम की तारीफ की थी, उससे मैं  अंदर ही अंदर अति उत्साहित हो गयी थी. मेरे लिए वह पहला मौका था, जब मैं अपने काम की तारीफ सुन रही थी. मेरी समझ मेंे नही आ रहा था कि मैं क्या कहूं.  पर मुझे अच्छा लग रहा था कि पहली बार में ही मेरे काम को पसंद किया जा रहा है.

हालिया फिल्म ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’’ करने की क्या वजह रही?

-मैने निर्देशक वासन बाला के साथ वेब सीरीज ‘रे’ की थी. फिर एक दिन उनका फोन आया कि एक मल्टीस्टारर फिल्म है, क्या मैं करना चाहूंगी? जब उन्होने मुझे राजकुमार राव, राधिका आप्टे व हुमा कुरेशी के नाम बताए, तो मैं उत्साहित हो गयी. तो मैने तुरंत कह दिया कि सोचने वाली क्या बात है. जब ऐसे बेहतरीन कलाकार हैं. फिर श्रीराम राघवन सर हों, तो मैं मना नही कर सकती. और जब पटकथा सुनायी, तो वह भी कूल और बहुत ही अलग तरह की थी. मेरे दिमाग में आया कि अगर मैं अच्छा काम कर पायी, तो लोग जरुर पसंद करेंगें. मैने इससे पहले डार्क व गंभीर किरदार निभाए थे और पहली बार मुझे इसमें कॉमेडी करने को मिला. कॉमेडी करना कठिन होता है. इतना ही नही अब लोग देख रहे हैं, और उन्हे भी अहसास हो रहा है कि इसमें मेरे किरदार का कोई एक डायमेंशन नही है. कुछ ग्रे है. कुछ कन्फ्यूजन है. मतलब इसमें मुझे अपने अंदर की प्रतिभा को निखारने के पूरे अवसर मुझे नजर आए थे. वही हुआ.

फिल्म ‘‘मोनिका ओ माय डार्लिंग ’’ में आपके अभिनय के संदर्भ किस तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं?

-देखिए, मैं फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों, अपने पारिवारिक सदस्यों और अपने दोस्तों की प्रतिक्रियाओं पर ज्यादा ध्यान नही देती. मैं यह मानकर चलती हूं कि यह लोग तो मेरा हौसला बढ़ाने के लिए मेरे काम की प्रशंसा ही करेंगें. मुझे उम्मीद कम थी कि फिल्म आलोचक मेरे बारे में कुछ लिखेंगें. मुझे लग रहा था कि आलोचक केवल राज कुमार राव, राधिका आप्टे और हुमा कुरेशी के बारे में ही लिखेंगे. पर हर किसी को हमारी फिल्म पसंद आयी. बड़े से बड़े फिल्म आलोचक ने मेरे बारे में लिखा और सोशल मीडिया पर पोस्ट भी डाली. कई आलोचकों ने मेरे अभिनय को स्पेशल मेंशन किया. यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. मैं इसें अधिक पाने की उम्मीद भी नही कर सकती थी. कई फिल्म निर्देशक,  जिनके साथ काम करने का मैं सपना देख रही हूं, वह भी मेरे अभिनय की प्रशंसा करते हुए ट्वीट कर रहे हैं. इससे मैं अति उत्साहित हूं. मैने हर किसी की पोस्ट के जवाब में उनका शुक्रिया अदा करने के साथ ही उनके साथ काम करने की ख्वाहिश व्यक्त की.  देखिए, इतने वर्षों से मैं कह रही थी कि मैं काबिल हूं. . मैं काबिल हूं, पर उसकी सुनवाई नहीं थी. लेकिन अब मेरा काम देखकर लोगों को अहसास हो रहा है कि मैं काबिल हूं. यह बात मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाती है.

आपने वासन बाला के निर्देशन में फिल्म ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग ’के अलावा वेब सीरीज ‘रे’ की है. उनमें आपको क्या खासियत नजर आयी?

-वासन बाला मास्टर माइंड और जीनियस निर्देशक हैं. उनके काम करने का तरीका बहुत अलग है. उन्हे सिनेमा बहुत पसंद है. उनके सिनेमा में अनचाहे ही दर्शकों के लिए कुछ न कुछ नयापन आ ही जाता है.

आपने कत्थक नृत्य का प्रशिक्षण हासिल किया है. यह आपको अभिनय में किस तरह से मदद करता है?

-जब मेरे पापा ने मुझे कत्थक नृत्य सीखने की सलाह दी थी. तो मुझे उनकी बात समझ में नहीं आयी थी. मैने उनसे कहा था कि मुझे बौलीवुड में काम करना है. इसलिए मैं बौलीवुड डांस सीखती हूं. पर उन्होंने मुझ पर कत्थक नृत्य सीखने का दबाव डाला. और मैने सीखा. पर इस नृत्य को सीखने के बाद मुझे अहसास हुआ कि इस नृत्य की वजह से मेरे अभिनय व डांस में जो ‘ग्रेस’ आता है, वह बौलीवुड डांस से नहीं आ सकता. हमारे हाथ के हाव भाव, आंखे सभी अभिनय में मदद करते हैं. कत्थक नृत्य के प्रशिक्षण के चलते हम बहुत ठहराव के साथ अभिनय करते हैं. हम हाथ भी स्टाइल में हिलाते हैं. कत्थक नृत्य ने मुझे आंखों से बात करना सिखाया. अब मुझे लगता है कि कत्थक के चलते अभिनय में मुझे बड़ी मदद मिल रही है.

क्या आपने व्हिश्लिंग वुड एक्टिंग स्कूल में ट्रेनिंग के दौरान स्टूडेंट जो फिल्में बनाते हैं, उनमें अभिनय किया था?

-जी हॉ! किया था. मगर कई वर्ष हो गए, उन फिल्मों को देखा नहीं है. वहां पर निर्देशन का प्रशिक्षण ले रहे स्टूडेंट को हर दह माह में फिल्म बनानी होती थी. म्यूजिक वीडियो निर्देशित करने होते थे. मैने कई लघु फिल्में की हैं. जिनमें से एक यूट्यूब पर मौजूद है. जिसमें में सिगरेट पीने की एक्टिंग करती हूं.

जब आपने स्टूडेंट की फिल्मों में अभिनय किया था, उस वक्त आपने किस तरह की फिल्में करने का सपना देखा था?

-सच कहूं तो उस वक्त ज्ञान कम था. उन दिनों जिस तरह की फिल्में बन रही थी और मै जिस तरह की फिल्में में देख रही थी, उसी तरह की फिल्में करने के बारे में सोच रही थी. लेकिन तब से अब तो सिनेमा काफी बदल गया है. उन दिनों ‘गिल्टी’ या ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’ जैसी फिल्में करने के बारे में सोच ही नहीं सकती थी. उन दिनों इस तरह का सिनेमा बनता ही नहीं था. उन दिनों बौलीवुड मसाला फिल्में बन रही थीं, जिनमें बौलीवुड डांस का बोलबाला था.

आपको लगता है कि ओटीटी के आने से सिनेमा बदल गया है?

-जी हॉ! सौ प्रतिशत. . . अन्यथा हम ‘गिल्टी’ या ‘ रे ’ या ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’ जैसी फिल्मों की बात सोच नही सकते थे. ओटीटी के आने से पहले तो वही डांस युक्त बौलीवुड मसाला फिल्में ही बन रही थीं. अब तो हर प्रतिभाशाली कलाकार,  निर्देशक,  लेखक व संगीतकार को काम मिल रहा है.

पर सुना है कि ओटीटी पर कलाकार को काम उसके सोशल मीडिया के फालोवअर्स के आधार पर मिलता है?

-मुझे लगता है कि आज कल यह हर जगह लागू हो गया है. फिर चाहे हम किसी ब्रांड को साइन करे या ओटीटी या फिल्म साइन करें. मुझे फालोवअर्स का गेम समझ में नहीं आता, मगर यह है. फिर भी ओटीटी पर टैंलेंट की कद्र ज्यादा हो रही है. ओटीटी पर हम छोटे और बड़े कलाकार के साथ काम कर सकते हैं. वहां पर छोटे बड़े का कोई अंतर नही है. मेरा कहना है कि अब लोगों के सामने अवसर काफी हो गए हैं.

लेकिन आपको नही लगता कि फालोवअर्स के आधार पर जब काम दिया जाता है, तो कई बार टैलेंट की अनदेखी भी हो जाती है?

-आपने एकदम सही कहा. एक प्रतिभाशाली कलाकार को कई वजहों से काम नहीं मिलता. इनमें से फालोवअर्स की संख्या भी एक मुद्दा है. फालोवअर्स की वजह से मेरी दीदी को भी एक फिल्म नहीं मिली थी. तब हम सभी कान्फ्यूज थे कि ऐसा भी होने लगा है. महज इंस्टाग्राम के फालोवर्स की वजह से काम नही मिला? यहां हर इंसान की किस्मत अलग है. इसके बावजूद मैं कहती हूं कि ओटीटी पर काम करने के अवसर ज्यादा हैं. यदि ओटीटी न होता तो मेरे कैरियर की शुरूआत न हो पाती. मैं तो उसके पहले से फिल्मों के लिए कोशिश कर रही थी. पर काम मिला तो ओटीटी पर ही.

कहते है कि एक किरदार को निभाते समय कलाकार को दो चीजों की जरुरत पड़ती है. पहला उसके अपने जीवन के अनुभव और दूसरा उसकी अपनी कल्पना शक्ति. आप किसे कितना महत्व देती हैं?

-मैं तो हर किरदार को निभाते समय दोनों का उपयोग करती हूं. फिल्म‘ गिल्टी’ के किरदार को निभाने के लिए मेरे अपने जीवन के अनुभव नही थे. वहां मैने कल्पना शक्ति का उपयोग ज्यादा किया. किरदार को समझने के बाद मेरे अपने जीवन के जो अनुभव थे,  उनके बीच मैंने उस किरदार को निभाया, तो कल्पना श्क्ति उसमें ज्यादा थी. वैसे भी मै हर किरदार को निभाते समय किरदार को समझने के बाद अपने जीवन के अनुभवों को याद कर फिर दोनों के बीच उस किरदार को रखकर निभाती हूं. शायद यही वजह है कि एक ही किरदार को हर कलाकार अलग अलग ढंग से निभाता है. क्योंकि हर किसी का अनुभव अलग होता है. लेकिन मैं बीच मे पटकथा में लिखे किरदार के अनुभव को भी लाना पसंद करती हूं.

इंसान जितना अधिक पढ़ता है, उतना ही अधिक वह कलपना शील होता है. आप कितना पढ़ती हैं?

-मैं बहुत ज्यादा पढ़ती हूं. मुझे लोगो की बायोग्राफी पढ़ना पसंद है. मैं फिक्शन बिलकुल नही पढ़ती. सेल्फहेल्प वाली किताबें पढ़ती हूं. इंसान अपने जीवन में, अपने आस पास जो कुछ देखता है, उससे भी उसकी कल्पनाशक्ति बढ़ती है. इतना ही नहीं मेरी समस्या यह है कि मैंजो कुछ करती हूं,  उस पर भी नजर रखती हूं. जब कभी मेरी दोस्त किसी तकलीफ में हो या रो रही हो तो मैं उसे आब्जर्व करती हूं कि वह रोेते समय चेहरा कैसा बना रही है. उसकी नाक बह रही है या नहीं. . . वह अपने हाथ किस तरह से चला रही है या नही चला रही है. वगैरह वगैरह. . . इस तरह का आब्जर्वेशन भी कल्पना शक्ति को बढ़ाने में मदद ही करता है. इसके लिए पढ़ना,  आब्जर्वेशन, फिल्में देखना, लोगों से मिलना, उनसे बातें करना फायदा ही देता है.

आपका फिटनेस मंत्रा क्या है?

-मेरा मानना है कि अभिनय करने के लिए कलाकार का फिट रहना बहुत जरुरी है. इसलिए मैं फिट रहने के लिए सब कुछ करती हूं. फिटनेस को लेरक में बहुम पैशिनेट हूं. मैं बचपन से ही बहुत ज्यादा स्पोर्टस खेलती आयी हूं. मैं बैडमिंटन बहुत अच्छा खेलती हूं. टेनिस खेलती हूं. हर दिन योगा करती हूं. मैं जिम जाती हूं. रनिंग करती हूं.

आपके लिए दोस्ती के क्या मायने हैं?

-मेरे लिए मेरे दोस्त बहुत मायने रखते हैं. मेरे दोस्त बहुत हैं. मेरे सभी दोस्त मुझसे पूछते है कि तुम सबसे इतनी अच्छी दोस्ती कैसे निभाती हैं?पर मुझे लोग पसंद हैं. मुझे मेरी गर्लफ्रेंड पसंद हैं. गर्लफेंड बनाना भी मेरा शौक है. मेरी कुछ बचपन की दोस्त आज भी मेरी दोस्त हैं. मेरी पहली कक्षा की दोस्त आज भी मेरे साथ जुड़ी हुई है. मैं अपनी नई दोस्तों से भी जुड़ी हुई हूं. मेरे लिए दोस्ती को बरकरार रखना बहुत जरुरी है. मेरे दोस्त मेरे लिए परिवार की तरह हैं. मैं उनसे फोन पर बात करती हूं. या फेशटाइम करती हूं.  अपनी दोस्तो के लिए समय निकालती हूं.

दोस्ती को मेनटेन करने के लिए क्या जरुरी है?

-पहली जरुरत होती है दोस्त के लिए समय देना. मगर मेरे ज्यादातर दोस्त काफी व्यस्त रहते हैं. दूसरी बात दोस्ती में लॉयालिटी बहुत जरुरी है. हमें इतना यकीन होना चाहिए कि हमें कोई समस्या आएगी, तो मेरे साथ मेरी यह दोस्त खड़ी नजर आएगी. दोस्ती में विश्वास बहुत जरुरी है. हम हर दिन भले न मिले, हर दिन भले न बात कर पाएं, पर तीन चार माह बाद भी मिलने पर बात करने पर यह अहसास नही होता कि हमने इतने समय से बात नही की है.

निजी जिंदगी में अभिनय के अलावा कुछ करने की इच्छा है?

-अभिनय कैरियर शुरू करने से पहले मैं एक पी आर कंपनी में काम कर रही थी. कुछ समय मैंने ईवेंट भी किया. अभिनय में जब मेरे दिल की भड़ास पूरी तरह से निकल जाए, तब पुनः पी आर में या मेकअप के क्षेत्र मंे कुछ करने के बारे में सोचूं. मेकअप में भी मेरी काफी रूचि है.

मेकअप के संदर्भ में आप क्या कहना चाहेंगी? दूसरी लड़कियों को मेकअप टिप्स देना चाहेंगी?

-जब इंस्टाग्राम बड़ा होने लगा, तभी मेरा मेकअप के प्रति झुकाव बढा. उन दिनों इंस्टाग्राम पर कई मेकअप इंफ्यूलांसर थे , जिन्हे में फालो करती थी. मेकअप के साथ मेरा इंस्टेंट कनेक्शन था. मैं कई तरह के मेकअप के प्रोडक्ट खरीदती थी और उनका अपने उपर इस्तेमाल कर नए न प्रयोग किया करती थी. मैं हर ईवेंट पर खुद ही अपना और अपने दोस्तों का मेकअप किया करती थी. मेकअप करना मुझे काफी रोचक लगात है. मैं हर लड़की को यही सलाह देना चाहूंगी कि आप दूसरों की नकलकर वैसा ही मेकअप करने का प्रयास कभी न करें. आप हमेशा वैसा मेकअप करें, जो आपके उपर शूट करता हो. ऐसा मेकअप जो आपकी स्किन के लिए उपयुक्त हो. मसलन , भारतीय लड़कियों को पता नही है कि उन्हे अपनी आंखों के नीचे के धब्बे ढंकने के लिए आरेंज मेकअप करना चाहिए. क्योंकि लगभग हर भारतीय की स्किन डार्क है. इसी तरह मेकअप के कई नुस्खे हैं. हर लड़की को सबसे पहले अपनी स्किन के बारे में बेहतर ढंग से जानना चाहिए, फिर उसके अनुरूप ही मेकअप करना चाहिए. अक्सर होता यह है कि लड़कियों देखती हैं कि इस मेकअप इंफ्यूलेंसर ने ऐसा किया है, तो हम भी करते हैं. पर हम भूल जाते हैं कि उनकी स्किन अलग है. वह अपनी फोटो को ‘फोटो शॉप’ करके इंस्टाग्राम या फेशबुक पर डालती हैं. उनकी स्किन अलग प्रकार की होती है. सभी को समझना होगा कि हर स्किन, हर चेहरा अलग है, और उसी के अनुरूप मेकअप करना चाहिए.

क्या आप मानती हैं कि उम्र के अनुसार भी मेकअप में बदलाव होता है?

-जी हॉं! पहले मैं बहुत डार्क काला मेकअप करती थी. उस वक्त चेहरे पर मेकअप ढोंपना अच्छा लगता था. लेकिन मैच्योर होने के साथ ही स्टाइल बदल जाती है. वैसे मेकअप की स्टाइलें समय के साथ बदलती रहती है. फैशन भी मेकअप को डिक्टेट करता है. इन दिनों बहुत नेच्युरल चेहरा, बिना मेकअप या कम मेकअप वाला लुक ज्यादा लोकप्रिय है.  पहले हर लड़की काजल बहुत लगाती थीं. ओठों पर भी डार्क लिपस्टिक उपयोग करती थी. अब हल्के रंग की लिपस्टिक का चलन है.

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