यों दें न्यू बौर्न को ममता का कोमल स्पर्श

बच्चा अगर छोटा है और रो रहा है तो मां के लिए यह समझ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि उसे क्या चाहिए. ऐसे में परेशान होने के बजाय मां को खुद ही यह समझना होता है कि उसे किस समय किस चीज की जरूरत होती है. आप को ही इन सब बातों के लिए पहले से ही कौन्फिडैंट होना चाहिए ताकि बच्चे की परवरिश अच्छी तरह से हो सके. बच्चे को ले कर कैसे कौन्फिडैंट बनें, आइए जानते हैं:

नहलाना

कई मांए बच्चे को पहली बार नहलाने से डरती हैं लेकिन सावधानी बरती जाए और नहलाने का सही तरीका पता हो तो यह इतना भी मुश्किल नहीं है. आइए जानें कि कैसे नहलाएं बच्चे को:

  • बच्चे को टब में नहलाना सही रहता है, बस इस के लिए ध्यान दें कि टब बहुत गहरा न हो.
  • बच्चे को हमेशा कुनकुने पानी से ही नहलाएं. पानी को चैक करने के लिए अपनी कुहनी को पानी में डालें. अगर आप को पानी गरम नहीं लगता तो बच्चे को उस से नहला सकती हैं.
  • सब से पहले पानी के छींटे डालें. एकदम उस पर पानी न डाल धीरेधीरे डालें.
  • बच्चे को खासतौर पर बनाए गए बच्चों के प्रोडक्ट्स से ही नहलाएं. ध्यान रखें कि उन में पैराबेंस, एसएलएस व एसएलईएस जैसे तत्व न हों.
  • इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे के कानों या नाक में पानी न जाए.
  • बच्चे के सिर पर पानी की सीधी धार कभी न डालें वरना इस से उसे चोट लग सकती है.
  • नहलाने के बाद बच्चे को टौवेल में लपेट कर लोशन लगाएं.

बच्चे का अत्यधिक रोना

कई बार छोटे बच्चे जब रोना शुरू करते हैं तो चुप होने का नाम ही नहीं लेते. ऐसे में कई मांएं परेशान हो जाती हैं. इधरउधर अपने रिश्तेदारों से पूछती हैं कि क्या करें बच्चा रो रहा है. बच्चा अगर 3 महीने से छोटा है, तो कई बार वह बेवजह भी रो सकता है. ऐसे में उसे गोद में ले कर घूमने से वह अच्छा महसूस करता है और चुप हो जाता है. लेकिन अगर वह चुप नहीं हो रहा तो उसे भूख लगना, डाइपर गंदा होना जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं, इसलिए उस की इन परेशानियों को दूर करें.

कई बार बच्चा भूखा होने पर रोता है. बच्चा खाना खाने के कुछ देर बाद फिर से रोने लगता है, क्योंकि उस का पेट बहुत छोटा होता है. उसे थोड़ीथोड़ी देर में भूख लग जाती है, इसलिए उस के खानेपीने का खास ध्यान रखें.

इस के अलावा इन बातों पर भी गौर करें:

  • बच्चे का डाइपर भर जाता है तो वह गीला हो जाता है. इस से बच्चे की नींद खुल जाती है और वह रोना शुरू कर देता है. गीले डाइपर में बच्चे को बहुत बेचैनी होती है, इसलिए बीचबीच में उस का डाइपर चैक कर बदलती रहें. इसे बदलने के बाद बच्चा शांत हो जाएगा.
  • कई बार गंदे डाइपर की वजह से बच्चे की त्वचा में रैशेज हो जाते हैं, जिन में दर्द होता है और इचिंग भी हो सकती है. इसलिए इसे भी चैक कर लें कि कहीं बच्चा इस वजह से तो नहीं रो रहा. बच्चे का डाइपर चैंज करने के बाद उसे जिंकआक्साइड युक्त नैपी क्रीम अवश्य लगाएं.
  • बच्चे की उम्र 6 से 8 महीने है तो वह दांत आने की समस्या से भी परेशान हो सकता है, इसलिए यह भी देख लें.
  • कई बार बच्चा थक जाता है और उसे मां की गोद की तलब लगती है. वह इसलिए भी रोने लगता है, ऐसे में बच्चे को प्यार से गोद में ले कर उस का सिर सहलाएं. वह आराम महसूस करेगा और चुप हो जाएगा.

बच्चे का रातभर जगना

नवजात अकसर दिन में सोते हैं और रात को जागते हैं. कई बार वे दिन में जागने के बावजूद रात में सोते नहीं हैं. ऐसे में मातापिता को उन के साथ जागना पड़ता है, जो बहुत परेशानी की बात होती है. बच्चे को कोई परेशानी होती है तो भी वह सो नहीं पाता है जैसे कि अगर बच्चा भूखा है या फिर उसे किसी चीज की जरूरत है तो भी उसे नींद नहीं आती.

ऐसे में इन बातों पर ध्यान दें

बच्चे को रात में उठ कर कई बार दूध पिलाना होता है, क्योंकि वह थोड़ाथोड़ा दूध ही पीता है इसलिए बच्चे को दूध पिलाती रहें. ब्रैस्टपंप की सहायता से अपना दूध निकाल कर रख लें व समयसमय पर बच्चे को पिलाती रहें ताकि आप को भी आराम मिले और बच्चा भी भूखा न रहे.

  • अगर बच्चे को किसी खास टौय या फिर चादर को ले कर सोने की आदत है, तो जब तक उसे वह चीज नहीं मिल जाती है वह जागता रहेगा. इसलिए इस बात का भी खयाल रखें.
  • बच्चे को रोजाना एक ही समय पर सुलाएं, अपने हिसाब से उस के सोने के टाइम को इधरउधर न करें वरना उसे नींद नहीं आएगी.
  • फीवर, सर्दी, पेट दर्द जैसी कोई समस्या होने पर भी वह सो नहीं पाता है, इसलिए ये सब भी चैक कर लें.

खिलौने भी हों खास

बच्चे के जन्म के बाद न सिर्फ मातापिता के द्वारा बच्चे के लिए बहुत से खिलौने खरीदे जाते हैं, बल्कि रिश्तेदारों के द्वारा भी बच्चे को उपहारस्वरूप बहुत से खिलौने दिए जाते हैं. बच्चे का पूरा कमरा खिलौनों से भर जाता है, जिस में से कुछ अच्छी क्वालिटी के होते हैं तो कुछ बेकार. लेकिन मां को पता होता है या फिर पता होना चाहिए कि उस के बच्चे के लिए कौन सा खिलौना सही है.

  • बच्चे के पालने में लटकाने वाले रैटल जिस में रंगबिरंगे भालू, हाथी, छोटेछोटे घोड़े लटके होते हैं वह अच्छा रहता है. इसे देख कर बच्चा खुश होता है. इस से बच्चा अपनी आंखों के जरीए ध्यान केंद्रित करना भी सीखता है. समझदार मांएं अपने बच्चे को वही देती हैं.
  • कई खिलौनों में घंटी लगी होती है और वह प्लास्टिक की रिंग के बीच होती है जोकि काफी नर्म भी होती है. जब यह घंटी हवा से हिलती है, तो इस में से मधुर संगीत आता है, जिसे सुन कर रोता बच्चा चुप हो जाता है.

इन के अलावा भी बहुत से खिलौने बच्चों की उम्र के हिसाब से मिलते हैं, लेकिन इस बात का खयाल रखना चाहिए कि जो भी खिलौना लें वह सौफ्ट हो, उस के कोने न निकले हों, वह मुलायम कपड़े का बना हो जिसे बच्चा ऐंजौय करे.

  • जो भी खिलौना बच्चे को दें उस से पहले एक बार उसे खुद इस्तेमाल कर के देखें. अगर सही लगे तभी बच्चे को दें.

बच्चों का खाना उगलना: जन्म के 3 महीने बाद तक बच्चों की लार निकलती रहती है. खास कर जब उन्हें कुछ खिलाया जाता है, तो वे तुरंत उलटी कर देते हैं. लेकिन इस के बाद मांओं का काम बढ़ जाता है और वे परेशान होने लगती हैं कि शिशु की इस आदत को कैसे बदलें.

इस के लिए शिशु की नहीं, बल्कि खुद की कुछ आदतों को बदलें जैसे कि दूध पिलाने के बाद एकदम से जो माएं बच्चे के साथ खेलना शुरू कर देती हैं, उन्हें गोद में ले कर उछालती है उन के बच्चे दूध ज्यादा उगलते हैं इसलिए दूध पिलाने के बाद बच्चे को पहले कंधे से लगा कर डकार दिलवाएं ताकि उस का दूध हजम हो जाए और वह उसे उगले नहीं.

  • कई बार ठंडा दूध पिलाने से भी बच्चा ऐसा करता है, क्योंकि उसे वह अच्छा नहीं लगता है.

जब बच्चे को हो जाएं घमौरियां:

गरमी के मौसम में अकसर बच्चों को घमौरियां हो जाती हैं, लेकिन अगर थोड़ी सावधानी बरती जाए तो इन से बचा जा सकता है जैसे कि:

  • इस मौसम में बच्चे को हलके लूज और सौफ्ट कौटन के कपड़े पहनाएं. चुभने वाला कोई कपड़ा बच्चे को न पहनाएं.
  • बच्चे को हर तरह का टैलकम पाउडर न लगाएं. सिर्फ राइस स्टार्च युक्त बेबी पाउडर ही लगाएं ताकि उसे रैशेज और दानों से बचाया जा सके.
  • घमौरियों वाली जगह को दिन में 2-3 बार साफ पानी से धोएं या स्पंज करें.
  • बच्चे को ज्यादा खुशबू वाले साबुन से न नहलाएं या फिर तेल न लगाएं, क्योंकि इन में कैमिकल होता है, जो बच्चे की नाजुक त्वचा के लिए सही नहीं है.

मसाज करने में हों कौन्फिडैंट:

कौन्फिडैंट मांएं बिना डरे अपने नाजुक से बच्चे की मालिश बिलकुल सही तरीके से स्टैपबाईस्टैप करती हैं जैसे कि:

  • मालिश की शुरुआत पैरों से करें. इस के लिए अपने हाथों पर तेल मल बच्चे की जांघों को मलते हुए नीचे पैरों तक आएं.
  • बच्चे की एडि़यों की भी मालिश करें. पैरों के अंगूठे को चक्राकार घुमाएं.
  • बच्चे के हाथों, छाती और पीठ की मालिश करें.
  • अगर मालिश के दौरान बच्चा रोने लगे तो उसे गले से लगा कर चुप कराएं.
  • बच्चे की मालिश दूध पीने के बाद या सोते वक्त न करें.

– चाइल्ड स्पैशलिस्ट शालू जैन से शिखा जैन द्वारा की गई बातचीत पर आधारित.

Winter Special: ठंड में अगर हाथ-पैर सुन्न पड़ जाए तो अपनाएं ये 7 उपाय

सर्दियों में कभी-कभी हमारे हाथ-पैर और उनकी उंगलियां के सुन्न पड़ जाती है. जिससे हमें किसी भी चीज को छूने का एहसास मालूम नहीं पड़ता. इसके साथ ही हो सकता है कि आपको प्रभावित स्‍थान पर दर्द, कमजोरी या ऐठन भी महसूस होती हो. इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे लगातार हाथों और पैरों पर प्रेशर, किसी ठंडी चीज को बहुत देर तक छूते रहना, तंत्रिका चोट, बहुत अधिक शराब का सेवन, थकान, धूम्रपान, मधुमेह, विटामिन या मैग्‍नीशियम की कमी आदि. ऐसे में प्रभावित जगह पर झनझनाहट, दर्द, कमजोरी और ऐंठन के लक्षण दिखाई देते हैं.

इस समस्या का प्रमुख कारण रक्त वाहिनियों का संकुचित होना है. दरअसल सर्दियों में दिल पर काफी जोर पड़ता है जिससे रक्त वाहिनियां संकुचित हो जाती हैं और शरीर के विभिन्न अंगों में आक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है. रक्त संचार पर असर पड़ने की वजह से शरीर के विभिन्न अंग सुन्न पड़ जाते हैं.

वैसे तो सर्दियों में हाथ-पैर का सुन्न होना या उनमें झनझनाहट होना एक आम समस्या है पर अगर यह समस्या आपके शरीर के किसी अंग में लम्बे समय तक बनी रहती है तो यह एक गम्भीर बिमारी का रूप भी ले सकती है ऐसे में इसका उपचार करना बेहद जरूरी है.

तो आइये जानते हैं कि आप कैसे इस तरह की समस्या से निजात पा सकती हैं

1. मसाज करें

जब भी हाथ पैर सुन्‍न हो जाएं तो हल्के हाथों से उस पर मसाज करें. इससे ब्‍लड सर्कुलेशन बढ़ता है. मसाज करने के लिए जैतून, नारियल या फिर सरसो के तेल को गुनगुना कर प्रभावित अंगो पर लगाकर हल्के हाथों से मले. इसके अलावा आप प्रभावित जगह पर रक्त संचार बढ़ाने के लिए गर्म पानी से भी सेंक सकती हैं. इससे मांसपेशियों और नसों को काफी आराम मिलता है.

2. डाइट में शामिल करें विटामिन्स

अगर हाथ पैरों में झनझनाहट होती है तो उसे दूर करने के लिए अपने आहार में विटामिन बी, बी6 और बी12 शामिल करें. इसके अलावा ओटमील,दूध, पनीर, दही, मेवा, केला, बींस आदि को भी अपने आहार का हिस्सा बनाएं.

3. व्‍यायाम

व्‍यायाम करने से शरीर में ब्‍लड र्स्‍कुलेशन होता है और वहां पर आक्‍सीजन की मात्रा बढ़ती है. इसलिए रोजाना 15 मिनट व्‍यायाम करना चाहिये. इसके अलावा रोजाना 15 मिनट एरोबिक्‍स करें, जिससे आप हमेशा स्‍वस्‍थ बनी रहें.

4. हल्दी है फायदेमंद

हल्दी में रक्त संचार बढ़ाने वाले तत्व पाए जाते हैं. साथ ही यह सूजन और दर्द कम करने में भी लाभकारी होता है. हल्दी-दूध का सेवन करने से हाथों-पैरों की झनझनाहट दूर होती है. इसके अलावा हल्दी और पानी के पेस्ट से प्रभावित जगह की मसाज करने से भी यह समस्या दूर होती है.

5. दालचीनी

दालचीनी में कैमिकल और न्‍यूट्रियंट्स होते हैं जो हाथ और पैरों में ब्‍लड फ्लो को बढ़ाते हैं. एक्‍सपर्ट बताते हैं रोजाना 2-4 ग्राम दालचीनी पावडर को लेने से ब्‍लड सर्कुलेशन बढ़ता है. इसको लेने का अच्‍छा तरीका है कि एक गिलास गरम पानी में 1 चम्‍मच दालचीनी पाउडर मिलाएं और दिन में एक बार पियें या फिर 1 चम्‍मच दालचीनी और थोड़ा शहद मिला कर सुबह के समय कुछ दिनों तक सेवन करें.

6. धूम्रपान से रहें दूर

हाथ-पैर के सुन्न पड़ने की समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि आप लंबे समय तक ठंड में रहने से बचें. अचानक अगर हाथ व पैर सुन्न हो जाते हैं तो तुरंत रगड़कर रक्त संचार बढ़ाएं. इसके अलावा धूम्रपान से दूरी बनाए रखें. ऐसा इसलिए क्योंकि इससे पेरिफेरल आर्टरी डिसीज होता है और पैरों में रक्त का संचार ठीक तरीके से नहीं हो पाता.

7. प्रभावित हिस्‍से को ऊपर उठाएं

हाथ और पैरों के खराब ब्‍लड सर्कुलेशन से ऐसा होता है. इसलिये उस प्रभावित हिस्‍से को ऊपर की ओर उठाइये जिससे वह नार्मल हो सके. इससे सुन्‍न वाला हिस्‍सा ठीक हो जाएगा. आप अपने प्रभावित हिस्‍से को तकिये पर ऊंचा कर के भी लेट सकती हैं.

तुम्हारा गुनहगार: समीर ने क्या किया था विनीता के साथ

मैंने कभी कुछ नहीं लिखा, इसलिए नहीं कि मुझे लिखना नहीं आता, बल्कि मैं ने कभी जरूरत ही नहीं समझ. मैं ने कभी किसी बात को दिल से नहीं लगाया. लिखना मुझे व्यर्थ की बात लगती. मैं सोचता क्यों लिखूं? क्यों अपनी सोच से दूसरों को अवगत कराऊं? मेरे बाद लोग मेरे लिखे का न जाने क्याक्या अर्थ लगाएं. मैं लोगों के कहने की चिंता ज्यादा करता अपनी कम.

अकसर लोग डायरी लिखते हैं. कुछ प्रतिदिन और कुछ घटनाओं के हिसाब से. मैं अपने विषय में किसी को कुछ नहीं बताना चाहता, लेकिन पिछले 1 सप्ताह से यानी जब से डा. नीरज से मिल कर लौटा हूं अजीब सी बेचैनी से घिरा हूं. पत्नी विनीता से कुछ कहना चाहता हूं, लेकिन कह नहीं पाता. वह तो पहले ही बहुत दुखी है. बातबात पर आंखें भर लेती है. उसे और अधिक दुखी नहीं कर सकता. बेटे वसु व नकुल हर समय मेरी सेवा में लगे रहते हैं. उन्हें पढ़ने की भी फुरसत नहीं. मैं उन का दिमाग और खराब नहीं करना चाहता. यों भी मैं जिस चीज की मांग करता हूं वह मुझे तत्काल ला कर दे दी जाती है, भले ही उस के लिए फौरन बाजार ही क्यों न जाना पड़े. मैं कितना खुदगर्ज हो गया हूं. औरों के दुखदर्द को समझना ही नहीं चाहता. अपनी इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना चाहता हूं, लेकिन लगा नहीं पा रहा.

‘‘पापा, आप चिंता न करो. जल्दी ठीक हो जाओगे,’’ कहता हुआ वसु जब अपना हाथ मेरे सिर पर रखता है, तो मैं समझ नहीं पाता कि यह कह कर वह किसे तसल्ली दे रहा है मुझे या अपनेआप को? उस से क्या कहूं? अभी मोबाइल पर किसी और डाक्टर से कंसल्ट करेगा या नैट में सर्च करेगा. बच्चे जैसे 1-1 सांस का हिसाब रख रहे हैं. कहीं 1 भी कम न हो जाए और मैं बिस्तर पर पड़ा इन सब की हड़बड़ी, हताशानिराशा उन से आंखें चुराते देखता रहता हूं. उन की आंखों में भय है. भय तो अब मुझे भी है. मैं भी कहां किसी

से कुछ कह पा रहा हूं. डा. राजेश,

डा. सुनील, डा. अनंत सभी की एक ही राय है कि वायरस पूरे शरीर में फैल चुका है. लिवर डैमेज हो चुका है. जीवन के दिन गिनती के बचे हैं. डा. फाइल पलटते हैं, नुसखे पढ़ते हैं और कहते हैं कि इस दवा के अलावा और कोई दवा नहीं है.

सुन कर मेरे अंदर छन्न से कुछ टूटने लगता है यानी मेरी सांसों की डोर टूटने में कुछ ही समय बचा है. मेरे अंदर जीने की अदम्य लालसा पैदा होने लगती है. मुझे अफसोस होता है कि मेरे बाद पत्नी और बच्चों का क्या होगा? अकेली विनीता बच्चों को कैसे संभालेगी? कैसे बच्चों की पढ़ाई पूरी होगी? कैसे घर खर्च चलेगा? 2-4 लाख रुपए घर में हैं तो वे कब तक चलेंगे? वे तो डाक्टरों की फीस और मेरे अंतिम संस्कार पर ही खर्च हो जाएंगे, घर में पैसे आने का कोई तो साधन हो.

विनीता ने कितना चाहा था कि वह नौकरी करे पर मैं ने अपने

पुरुषोचित अभिमान के आगे उस की एक न चलने दी. मैं कहता कि तुम्हें क्या कमी है? मैं सभी की आवश्यकताएं आराम से पूरी कर रहा हूं. पर अब जब मैं नहीं रहूंगा तब अकेली विनीता सब कैसे संभालेगी? घर और बाहर संभालना उस के लिए कितना मुश्किल होगा. मैं अब क्या करूं? उसे कैसे समझऊं? क्या कहूं? कहीं मेरे जाने के बाद हताशानिराशा में वह आत्महत्या ही न कर ले. नहीं, वह ऐसा नहीं कर सकती. वह इतनी कमजोर नहीं है. मैं भी न जाने क्या उलटीसीधी बातें सोचने लगता हूं. पर विनीता से कुछ भी कहने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं बचे हैं.

रिश्तेदार 1-1 कर आ जा रहे हैं. कुछ मुझे तसल्ली दे रहे हैं तो कुछ स्वयं को. पत्नी विनीता और बेटा वसु गाड़ी ले कर मुझे डाक्टरों को दिखाने के लिए शहर दर शहर भटक रहे हैं. आय के सभी स्रोत लगभग बंद हैं. वे सब मुझे किसी भी कीमत पर बचाने की कोशिश में लगे हैं.

मैं डाक्टर की बातें सुन और समझ रहा हूं, लेकिन इस प्रकार दिखावा कर रहा हूं कि डाक्टरों की बातें मेरी समझ में नहीं आ रहीं.

विनीता और वसु के सामने उन का मन रखने के लिए कहता हूं, ‘‘डाक्टर बेकार बक रहे हैं. मैं ठीक हूं. यदि लिवर खराब है या डैमेज हो चुका है तो खाना कैसे पचा रहा है? तुम सब चिंता मत करो. मैं कुछ दिनों में ठीक हो कर चलने लगूंगा. तुम डाक्टरों की बातों पर विश्वास मत करो. मैं भी नहीं करता.’’

पता नहीं मैं स्वयं को समझ रहा हूं या उन्हें. पिछले 5 सालों से यही सब हो रहा है. मैं एक भ्रम पाले हुए हूं या सब को भ्रमित कर रहा हूं. 5 साल पहले बताए गए सभी कारणों को डाक्टरों की लफ्फाजी बता कर नकारने की कोशिश करता रहा हूं. यह छल पत्नी और बच्चों से भी किया है पर स्वयं को नहीं छल पाया हूं.

एचआईवी पौजिटिव बहुत ही कम लोग होते हैं. पता नहीं

मेरी भी एचआईवी पौजिटिव रिपोर्ट क्यों कर आई.

विनीता के पूछने पर डाक्टर संक्रमित खून चढ़ना या संक्रमित सूई का प्रयोग होना बताता है, लेकिन मैं जानता हूं विनीता मन से डाक्टर की बातों पर विश्वास नहीं कर पा रही. वह तरहतरह की पत्रिकाओं और किताबों में इस बीमारी के कारण और निदान ढूंढ़ती रहती है.

मैं जानता हूं कि 7 साल पहले यह बीमारी मुझे कब और कैसे हुई? जीवन में पहली बार मित्र के कहने पर लखनऊ में एक रात रुकने पर उसी के साथ एक होटल में विदेशी महिला से संबंध बनाए. गया था रात हसीन करने, जीवन का आनंद लेने पर लौटा जानलेवा बीमारी ले कर. दोस्त ने धीरे से कंधा दबा कर सलाह भी दी थी कि सावधानी जरूर बरतना. पर मैं जोश में होश खो बैठा. मैं ने सावधानी नहीं बरती और 2 साल बाद जब तबीयत बिगड़ीबिगड़ी रहने लगी तब डाक्टर को दिखाया और ब्लड टैस्ट कराया. तभी इस बीमारी का पता चला. मेरे पांवों तले की जमीन खिसक गई. अब क्या हो सकता था, सिवा इलाज के? इलाज भी कहां है इस बीमारी का? बस धीरेधीरे मौत के मुंह में जाना है. न तो मैं दिल खोल कर हंस सकता और न ही रो. अपनी गलती किसी को बता भी नहीं सकता. बताऊं भी कैसे? मैं ने विनीता का भरोसा तोड़ा था, यह कैसे स्वीकार करता?

विनीता से कई लोगों ने कहने की कोशिश भी की, लेकिन उस का उत्तर हमेशा यही रहा कि मैं अपने से भी ज्यादा समीर पर विश्वास करती हूं. वे ऐसा कुछ कभी कर ही नहीं सकते. समीर अपनी विनीता को धोखा नहीं दे सकते. मुझे लग रहा था कि विनीता अंदर ही अंदर टूट रही है. स्वयं से लड़ रही है, पर मुखर नहीं हो रही, क्योंकि उस के पास कोई ठोस कारण नहीं है. मैं भी उस के भ्रम को तोड़ना नहीं चाहता.

पिछले 5 सालों से हमारे बीच पतिपत्नी जैसे संबंध नहीं हैं. हम अलगअलग कमरे में सोते हैं. मुझे कई बार अफसोस होता कि मेरी गलती की सजा विनीता को मिल रही है. डाक्टर ने सख्त हिदायत दी थी कि शारीरिक संबंध न बनाए जाएं. मेरी इच्छा होती तो उस का मैं कठोरता से दमन करता. विनीता भी मेरी तरह तड़पती होगी. कभी विनीता का हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लेता, लेकिन उस का सूनी आंखों में झंकने की हिम्मत न कर पाता. वह मुझे एकटक देखती तो लगता कि पूछ रही है कि तुम यह बीमारी कहां से लाए? मेरी नजरें झक जातीं. मैं मन ही मन दोहराता कि विनीता मैं तुम्हारा अपराधी हूं. तुम

से माफी मांग कर अपना अपराध भी कम नहीं कर सकता.

मैं रोज तुम्हारे कमरे में आ कर तुम्हें छाती पर तकिया रखे सोते देखता हूं. आंखें भर आती हैं. मैं इतना कठोर नहीं हूं जितना दिखता हूं. तुम्हें आगोश में भरने का मेरा भी मन है. मेरी इच्छाएं भी अतृप्त हैं. एक घर में रह कर भी हम एक नदी के 2 किनारे हैं. तुम पलपल मेरा ध्यान रखती हो. वक्त से खाना और दवा देती हो. मुझे डाक्टर के पास ले जाती हो. फिर भी मैं असंतुष्ट रहता हूं. मैं तुम्हें पाना चाहता हूं. तुम मुझ से दूर भागती हो और मैं तुम्हें पाना चाहता हूं. मैं अपनी भावनाओं को दबा नहीं पाता तो वे क्रोध में मुखर होने लगती हैं. सोच और विवेक पीछे छूट जाते हैं. मैं तो मर ही रहा हूं तुम्हें भी मृत्यु देना चाहता हूं. मैं कितना खुदगर्ज इंसान हूं विनीता.

वक्त के साथ दूरी बढ़ती ही जा रही है.

मेरा जीना सब के लिए व्यर्थ है. मैं जी कर घर

भी क्या रहा हूं सिवा सब को कष्ट देने के? मेरे रहते हुए भी मेरे बिना सब काम हो रहे हैं, मेरे बाद भी होंगे.

आज की 10 तारीख है. मुझे देख कर डाक्टर अभीअभी गया है. मैं बुझने से

पहले तेज जलने वाले दीए की तरह अपनी जीने की पूरी इच्छा से बिस्तर से उठ जाता हूं. विनीता और बच्चों की आंखें चमक उठती हैं. मैं टौयलेट तक स्वयं चल कर जाता हूं. फिर लौट कर कहता हूं कि मैं चाहता हूं विनीता कि मेरे जाने के बाद भी तुम इसी तरह रहना जैसे अब रह रही हो. मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा. तुम नहीं जानतीं कि मैं पिछले सप्ताह से बसु से अपने एटीएम कार्ड से रुपए निकलवा कर तुम्हारे खाते में जमा करा रहा हूं. ताकि मेरे बाद तुम्हें परेशानी न हो. मैं ने सब हिसाबकिताब लिख कर दिया है, समझदार हो. स्वयं और बच्चों को संभाल लेना. मुझे तुम्हें अकेला छोड़ कर जाना जरा भी अच्छा नहीं लग रहा, पर जाना तो पड़ेगा. मन में बहुत कुछ घुमड़ रहा है कि तुम से कहूं, फिर कहनेसुनने से दूर हो जाऊंगा. तुम भी मुझ से बहुत कुछ कहना चाहती होगी पर मेरी परेशानी देख कर चुप हो. न मैं तुम से कुछ कह पाऊंगा और न तुम सुन पाओगी. तुम्हें देखतेदेखते ही किसी भी पल अलविदा कह जाऊंगा. मैं जानता हूं तुम्हें हमेशा यही डर रहता है कि पता नहीं कब चल दूं. इसीलिए तुम मुझे जबतब बेबात पुकार लेती हो. हम दोनों के मन में एक ही बात चलती रहती है. मुझे अफसोस है विनीता कि मुझे अपना वादा, अपनी जिम्मेदारियां पूरी किए बगैर ही जाना पड़ेगा.

तुम सो गई हो. सोती हुई तुम कितनी सुंदर लग रही हो. चेहरे पर थकान और विषाद की रेखाएं हैं. क्या करूं विनीता आंखें तुम्हें देख रही हैं. दम घुट रहा है. कहना चाहता हूं कि मैं तुम्हारा गुनहगार हूं.

विनीता यह जीवन का अंत नहीं है, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत है. अंधेरा दूर होगा, सूरज निकलेगा. इतने दिन से जो धुंधलापन छाया था सब धुलपुंछ जाएगा. तुम्हारा कुछ भी नहीं गया है. यह मैं क्या समझ रहा हूं? क्या तुम्हें नहीं समझता? समझता हूं तभी समझ रहा हूं. अब मेरा जाना ही ठीक है. वसु को कोर्स पूरा करना है. उसे प्लेसमेंट जौब मिल गई है. एक रास्ता बंद होता है. दूसरा खुल जाता है. नकुल भी शीघ्र ही अपनी मंजिल पा लेगा.

विनीता, तुम्हारे पास मेरे सिवा सभी कुछ होगा. मैं जानता हूं मेरे बाद तुम्हें अधूरापन, खालीपन महसूस होगा. तुम अपने अंदर के एकाकीपन को किसी से बांट नहीं पाओगी. मैं भी तुम्हारा साथ देने नहीं आऊंगा. पर मेरे सपनों को तुम जरूर पूरा करोगी. मन से मुझे माफ कर देना. अब बस सांस उखड़ रही है… अलविदा विनीता अलविदा…    तुम्हारा समीर

इन 4 टिप्स से मैरिड लाइफ में हमेशा बनी रहेगी ताजगी

शादी के कई साल बाद भी एकदूसरे की बातें, स्पर्श और शरारतें उत्साहित करती रहें और साथ गुजारे पल की खूबसूरत यादें व रोमांटिक पल बासी न होने पाएं, इस के लिए आप को इन्हें सहेजना होगा ताकि रिश्तों में मिठास बनी रहे.

आप की शादी के कुछ साल हो गए. अब आप दिन में कितनी बार एकदूसरे का हाथ थामते हैं? आंखों से कितनी बार एकदूसरे को मौन निमंत्रण देते हैं? कितनी बार एकदूसरे को गले लगाते हैं? अगर आप का जवाब नकारात्मक है, तो संभल जाएं क्योंकि यह आप के रिश्तों की मिठास को कड़वाहट में बदलने की शुरुआत है. वैसे घबराने की कोई बात नहीं है, क्योंकि रिश्तों की ताजगी कहीं जाती नहीं. बस, भीड़ भरे रास्तों पर गुम हो जाती है. इसे ढूंढ़ने के लिए यहां दी गई बातों पर अमल करेंगे, तो बदलाव खुद ब खुद महसूस करेंगे.

1. करें कुछ नया

कहा जाता है कि प्यार एक एहसास है, लेकिन सच तो यह है कि शादी के बाद प्यार सिर्फ एक एहसास नहीं होता. बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में जिन बातों को अपनाने से हमारे जीवनसाथी को खुशी, संतुष्टि, नयापन मिलता हो, वही प्यार है. पति को गिफ्ट देना, मदद करना, लैटर लिखना आम बातें हैं. अब यह परिपाटी बहुत पुरानी हो चुकी है.

आप कुछ ऐसा अलग हट कर करें, जिस में नयापन हो. जैसे, विशेष अवसरों पर अपने पति को गिफ्ट तो सभी देते हैं, लेकिन शौपिंग कांपलैक्स में जब आप उन की पसंद की चीज उन्हें रोमांटिक अंदाज में देंगी, तो उपहार का मजा दोगुना हो जाएगा.

2. बीती बातों को याद करें

रोजरोज की जाने वाली एक जैसी बातों से अकसर बोरियत होने लगती है. ऐसे में कुछ अलग हट कर करें. जैसे, अगर आप की लव मैरिज है तो पति से सवाल करें कि अगर घर वाले आसानी से शादी के लिए न माने होते, तो? अगर हमारी शादी न हुई होती, तब तुम क्या करते? क्या तुम मेरे बिना रह पाते? ऐसे सवाल करने पर वे सोच में पड़ जाएंगे, पर बातों के जवाब अच्छे मिलेंगे, जो आप की बातचीत को एक नयापन देंगे. इसी तरह दोनों एकदूसरे को अपने कुछ अच्छे पलों को याद दिलाएं. यदि आप दोनों कामकाजी हैं, तो दफ्तर में फुरसत पाते ही मौका ढूंढ़ कर एकदूसरे को फोन करें. वह भी उसी शिद्दत के साथ, जैसे शादी के शुरुआती दिनों में आप किया करते थे.

हमेशा की तरह फाइव स्टार होटल में कैंडल लाइट डिनर करने के बजाय किसी छोटे से पुराने रेस्तरां में सरप्राइज डिनर पर जाएं, जहां आप शादी से पहले भी जाया करते थे. आप दोनों कालेज के उन पुराने दोस्तों को बुला कर, जिन्होंने आप का हर पल साथ दिया हो, छोटी सी पार्टी दें. ऐसा करने से आप की पुरानी यादें ताजा होंगी. कभीकभी पति के लिए भी तैयार हो जाएं. यकीन मानिए, वे खुश हो जाएंगे आप का यह रूप देख कर.

3. छेड़छाड़ का सहारा लें

इस के साथ ही आप छोटीमोटी चुहलबाजी और छेड़खानी करना शुरू कर दें. पति से फ्लर्ट करने पर जो मजा आएगा, वह कभी कालेज में लड़कों को छेड़ने पर भी नहीं आया होगा. पति को कोई अजनबी लड़का समझ छेड़ें और परेशान करें. कभी उन के औफिस बैग में बेनाम लव लैटर और कार्ड रख दें, तो कभी एक दिन में कई बार उन के फोन पर अननोन नंबर से मिस्ड कौल दें. फिर देखिएगा, यह पता लगते ही कि यह शरारत करने वाली आप थीं, वे कैसे आप से मिलने के लिए बेचैन हो उठते हैं.

4. सजना के लिए सजना

पार्टी या शादी में जाने के लिए तो सभी सजते हैं, लेकिन क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप अपने पति के लिए तैयार हुई हों. इसे बेकार की झंझट मत समझिए. जब आप बिना किसी मौके के उन के मनपसंद रंग में सज कर उन के पास जाएंगी, जो सिर्फ उन के लिए होगा, तो यकीनन उन की नजरें आप पर से हटेंगी नहीं.

इन्हें नजरअंदाज न करें

– वे जोड़े ज्यादा खुश रहते हैं, जो शाम को अपनी शिकायतों का पिटारा नहीं खोलते. शिकायत करने पर पतिपत्नी एकदूसरे से बचने के बहाने ढूंढ़ने लगते हैं.
– वे पतिपत्नी ज्यादा खुश रहते हैं जिन का कम से कम एक शौक आपस में मिलता हो. ऐसी रुचियां उन्हें आपस में बांधे रखती हैं तथा रिश्तों में प्रगाढ़ता लाती हैं.
– कुछ शब्दों को बारबार कहना और सुनना अच्छा लगता है. जैसे, ‘आई लव यू’, ‘आई एम औलवेज विद यू’ आदि. इस से पार्टनर को एहसास होता है कि आप कितने लविंग और केयरिंग हैं.
– कुछ शारीरिक स्पर्श ऐसे होते हैं, जो पार्टनर को आप की भावना समझने में मदद करते हैं. जैसे, जातेजाते कंधा टकराते जाना, पार्टनर का हाथ दबाना या छू लेना और खाना खाते समय टेबल के नीचे से पैरों का स्पर्श या हाथ पकड़ लेना.

Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं स्प्रिंग रोल

वीकेंड पर अगर आप अपनी फैमिली के लिए स्नैक्स में कुछ परोसना चाहते हैं तो स्प्रिंग रोल में ये रेसिपी ट्राय करना ना भूलें.

सामग्री

11/2 कटोरी बेसन

1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च

1/2 छोटा चम्मच अजवाइन

1/2 छोटा चम्मच चाटमसाला

3-4 अरवी के पत्ते द्य तलने के लिए तेल

नमक स्वादानुसार.

भरावन के लिए

1/2 कप उबले सफेद चने

1/4 कप उबले मटर

1/4 कप कसी गाजर

1 प्याज बारीक कटा

1/2 छोटा चम्मच नमक

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च

1 बड़ा चम्मच इमली का रस.

विधि-

भरावन की सारी सामग्री को मिलाएं व हाथ से मसल कर दरदरा कर लें. अरवी के पत्तों को धो लें. उन के डंठल और मोटी नस निकाल कर उन्हें रूमाल जैसा काट लें. अब प्रत्येक पत्ते में बेसन के पतले घोल की एक परत लगाएं, ऊपर भरावन सामग्री रखें तथा पोटली की तरह बंद कर के टूथपिक लगा दें. फिर इन्हें कुछ देर स्टीम कर लें.बचे बेसन में तेल को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री मिलाएं व पकौड़े के घोल जैसा बना लें. एक कड़ाही में तेल गरम करें तथा प्रत्येक पोटली को बेसन में डुबो कर तल लें. गरमगरम परोसें

वीआईपी: क्या था पुरुष नौकर का सच

स्टोर पर लंबी लाइन लगी थी. अभी भी कोविड-19 का आतंक खत्म नहीं हुआ था. लोग भरभर कर खरीदारी कर रहे थे. चिलचिलाती धूप के कारण लोग पसीने से नहा रहे थे. ऐसी हालत में अगर कोई व्यक्ति किसी को अपने आगे खड़ा होने दे तो निश्चय ही आश्चर्य की बात थी. ऐसी शराफत की आशा करना इस युग में सपने की ही चीज है. किंतु उन 2 व्यक्तियों ने मुझे अपने आगे खड़े होने दिया. वे मेरे गांव के ही थे और जानते थे कि मुझे आमतौर पर जल्दी होती है.

इन दोनों के साथ मैं ने जाने कितनी रातें गुजारी हैं और ये जानते थे कि मेरी मालकिन जब चली जाती है तो फ्लैट पर बुला लेती है. और तो और कोई दूसरी लड़की को ले कर आए तो उसे भी आने देती हूं.

ऐसा नहीं कि इस युग में ये कालिदास के समान नारी को कोमलांगी समझ कर दया करते हैं. मैं ने तहेदिल से कामना की कि इन लफंगों का भला हो वरना आजकल तो मर्द बस में भी औरतों की सीट पर से उठने पर ताने देने लगे हैं कि जब औरतें मर्दों से कदम से कदम मिला कर चल रही हैं तथा हर मामले में बराबरी की होड़ कर रही हैं तो बस में खड़ी रहने से गुरेज क्यों? मैं ने आंख मार कर दोनों को धन्यवाद किया.

मैं अभी ठीक से खड़ी भी न हो पाई थी कि उन की खिलखिलाहट की आवाज सुनाई पड़ी. वे कितने मस्त और फक्कड़ हैं न गरमी की परवाह, न लंबी लाइन की. ऊपर से यह मुफ्त हंसी. उन के इसी फक्कड़पन की वजह से मैडम की सभी कविता की लाइनें याद दिला दीं.

मेरी जगह अगर मैडम वाले कवि होते तो

वे इन 2 लफंगों को लाइन में खड़े और लोगों

से अलग जान एक बहुत बड़ा निबंध लिख डालते. उनकी मस्ती निश्चय ही उन्हें कबीर

से भी रंगीली जान पड़ती. खैर, उन की हंसी

की छिपी बात जानने के लिए मैं ने अपने कान खड़े कर लिए. वैसे तो मैं उन के सारे कारण जानती थी पर कुछ बातें जो वे जल्दबाजी में

फ्लैट में नहीं कह पाते थे यहां लाइन में कह रहे हों शायद. चाहे कैसी भी हालत में ऐसे खुश रहने का गुर हमारे मालिकों को तो मालूम ही नहीं.

‘‘अरे, मेरी मालकिन तो तुम्हारी मालकिन से भी बूढ़ी है. मुझे मीठा बहुत पसंद है. घर में कुछ भी मिठाई आए, उस में अपना हिस्सा होता ही है. कारण, हम उस चीज को ऐसी निगाह से देखते हैं कि वे समझ जाती हैं कि हम को न देने से खाने वाले का पेट दुखेगा. अगर मेरे से छिपा कर खाते हैं तो भनक मिलते ही बरतन उठाने के बहाने कमरे में घुस जाता हूं, फिर तो उन को देनी ही पड़ती है. फिर भी मीठा खाने से दिल नहीं भरता. जब मालकिन मेरा खाना निकाल कर चौके से बाहर जाती हैं तो मौका देख तुरंत 2 चम्मच चीनी दाल में डाल लेता हूं. उन को कुछ पता ही नहीं चल पाता,’’ एक कह रहा था.

‘‘आखिर हो तो दरभंगा जिले के ही, तभी इतनी चीनी खाते हो. पर मैं तो मधुबनी का हूं, इसलिए ताकत की चीज अधिक खाता हूं.

चीनी से तो शुगर की बीमारी हो जाती है. मैं

जब थाली में अपने चावल डालता हूं तो पहले

2 चम्मच घी थाली में डाल ऊपर से चावल

पसार लेता हूं. दाल में डालने से तो पता चल जाता है.’’

उन दोनों की बातें सुन कर मैं ने कहा, ‘‘मैं तो मैडम का केक हजम कर जाती हूं और कह देती हूं कि उस में बास आने लगी थी.’’

मैं उन को ढीला समझ रही थी पर वे

तो चतुर थे. बाप रे. उन के कपड़े देख कर ही मुझे अपनेआप पर शर्म आने लगी थी. मेरी सलवार मैली थी, मैडम के सामने तो यही

पहनना पड़ता था. उस में मेरे बदन के हिस्से दिख रहे थे. उसे उलटपुलट कर छिपाने लगी थी. तो एक बोली, ‘‘अरे क्यों छिपा रही है, हम क्या पराए हैं?’’

मैं ने कहा कि जरा देखें तो कितनी मैडमें भी लाइन में लगी हैं. समझदारी से काम लें. लाइन धीरेधीरे आगे सरक रही थी. गंजी धोती पहने मोटीमोटी मूंछों वाले एक व्यक्ति ने मेरे पीछे खड़े वाले से पूछा, ‘‘क्यों रे बंसी, क्या हाल है? कुछ पगार बढ़ी कि नहीं?’’

‘‘अरे, बढ़ेगी क्यों नहीं. 2 दिन लगातार बाहर निकला और शाम को 7-8 बजे काम पर पहुंचा. मालकिन पहले दिन तो चुप रही, दूसरे दिन बिगड़ गई. बस, फिर क्या था. मूंछों पर

ताव देते हुए मैं भी बोला, ‘‘कौन सा रोजरोज जाता हूं. चचा बीमार हो गए तो संभालने भी

नहीं जाएंगे क्या? सारा दिन बस बैल की तरह जुते रहो, जरा भी आराम मत करो. आखिर कितनी पगार देते हैं? ठीक है, हम को नहीं

काम करना.’’

तभी मालिक कमरे से निकल आए.

महीना भी बढ़ गया और चचा की काल्पनिक बीमारी के नाम पर 50 रुपए इलाज के लिए भी मिल गए.

‘‘आ न, रामेसर, तू भी हम दोनों के बीच खड़ा हो जा.’’

‘‘नहीं रे बंसी, अपन तो पीछे ही ठीक हैं. जल्दी राशन मिलेगा तो घर जा कर ज्यादा काम करना पड़ेगा.’’

‘‘पर काम चाहे अभी करो या देरी से, करना तो तुम्हीं को पड़ेगा.’’

‘‘नहीं रे मालकिन नौकरों के भरोसे काम नहीं पड़ा रहने देती. उस का सब काम समय पर होना चाहिए. वह खुद ही कर लेती है और फिर आज रविवार है. घूमने जाएगी तो साली अपनेआप जल्दी काम निबटाएगी.’’

उन लोगों की बातें सुन कर मेरा तो सिर घूमने लगा. मुझे पता चल गया कि क्यों उन दोनों ने मुझे आगे खड़े होने दिया था. पता नहीं कब मेरा नंबर आ गया.

‘‘अपना और्डर दो,’’ चिल्ला कर जब दुकानदार ने कहा, तब कहीं मुझे होश आया. मैं तो अपने को होथियार समझती थी, ये तो मेरे से भी 24 निकले.

उन दोनों की बात से दिल में इतनी उथलपुथल मची हुई थी कि घर का रास्ता नापना भी मुश्किल हो गया. थैला बरामदे में रख तुरंत फोन पड़ोस वाली श्यामा को किया और कहा, ‘‘सुनते हो, दिमाग की कसरत?’’

वह शायद रसोई में थी, ‘‘ग्रौसरी लाने में तेरे दिमाग की कसरत कैसे हो गई?’’

‘‘बात तो सुन मजाक बाद में करना पहले करने लगते हो. मैं अपने दिमाग की थोड़े कह

रही हूं, उन नालायकों के दिमाग के विषय में कह रही हूं.’’

‘‘कुछ साफ  बोल, तुम तो पहेलियां बुझ रही हो.’’

‘‘देखो, झगड़ा मत करो. मैं तुम्हें नौकरों की…’’

‘‘भई, हम नौकर तो आजकल मालकिनों से भी ज्यादा वीआईपी अति महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो गए हैं.’’

मैं ने राशन की लाइन में सुनी सब बातें उन्हें सुना दी.

‘‘जीं.’’

श्यामा ने कहा, ‘‘सही है, जब तक ये मालकिनें अपना काम खुद करना

नहीं सीखेंगी, हम लोगों का तो राज है, थोड़े ही दिनों के लिए चाहे.’’

मैं ने भी कहा, ‘‘जानती हो, बराबर वाली सोसायटी में एक बेमतलब नौकर ढूंढ़ रही थी.’’

‘‘इन दिनों कोई 4-5 नौकर जा चुके हैं. कोई सुबह आया तो शाम को चला गया. अगर शाम को आया तो उस का इस घर में सवेरा नहीं हुआ. कोई जाने के लिए अपनी मां को मार गया तो कोई बाबा को. यही नहीं, कई हजरत तो कुछ कहे बिना ही चले गए.’’

‘‘पर वह जो पहले रहता था, वह कहां गया?’’ श्यामा ने अपनी साड़ी ठीक करते हुए पूछा.

‘‘वह तो एक नंबरी चोर था. मालकिन बच्चों को चीज दिलाने के लिए पैसे देती थी. कम दाम की घटिया चीजें दिला कर बाकी पैसे खुद खा जाता था. एक तो इतनी पगार और फिर ऊपर से यह चोरी. एक दिन मालकिन ने पकड़ लिया तो सिवा उसे निकालने के कोई और चारा नहीं था. अब रोज इंटरव्यू लेती है, रोज बरतन घिसती है,’’ और दोनों जोर से हंसने लगीं.

 

आ बैल मुझे मार: मुसीबत को बुलावा देते शख्स की कहानी

मुसीबत का क्या है, आती ही रहती है. अगर हिम्मत से काम लिया जाए तो मुसीबत टल भी जाती है. लेकिन उस इनसान का क्या करें, जो मुसीबत से खुद ही अपना सिर फोड़ने को तड़प रहा हो. शायद, ऐसे ही बेवकूफ लोगों के लिए ‘आ बैल मुझे मार’ वाली कहावत बनी है.

बात शायद आप की भी समझ में नहीं आ रही है. दरअसल, हम अपनी ही बात कर रहे हैं. चलिए, आप को पूरा किस्सा सुना देते हैं.

तकरीबन 2 हफ्ते पहले हम अपनी खटारा मोटरसाइकिल पर शहर से बाहर रहने वाले एक दोस्त से मिल कर वापस लौट रहे थे. शाम हो गई थी और अंधेरा भी घिर आया था. हम जल्दी घर पहुंचने के चक्कर में खूब तेज मोटरसाइकिल चला रहे थे.

अचानक हम ने सड़क के किनारे एक आदमी को पड़े देखा. पहले तो हमें लगा कि कोई नशेड़ी है जो सरेआम नाली में पड़ा है, लेकिन नजदीक पहुंचने पर हमें उस के आसपास खून भी दिखा. लगता था कि किसी ने उस को अपनी गाड़ी से टक्कर लगने के बाद किनारे लगा दिया था.

पहले तो हम ने भी खिसकने की सोची. यह भी दिमाग में आया कि इस लफड़े में पड़ना ठीक नहीं, लेकिन ऐन वक्त पर दिमाग ने खिसकने से रोक दिया.

हम ने उस आदमी को उठा कर अच्छी तरह से किनारे कर दिया. उस के सिर में गहरी चोट लगी थी. खून रुक नहीं रहा था. शायद उस के हाथ की हड्डी भी टूट गई थी.

गनीमत यह थी कि वह आदमी जिंदा था और धीरेधीरे उस की सांसें चल रही थीं. हम ने भी उसे बचाने की ठान ली और आतीजाती गाडि़यों को रुकने के लिए हाथ देने लगे.

बहुत कोशिश की, पर कोई गाड़ी  नहीं रुकी. परेशान हो कर जैसे ही हम ने हाथ देना बंद किया, वैसे ही एक टैक्सी हमारे पास आ कर रुकी. शायद वह भी हमारी तरह अपने खालीपन से परेशान था. जो भी हो, उस ने हमें बताया कि शहर तक जाने के लिए वह दोगुना किराया लेगा और मुरदे के लिए तिगुना.

हम ने बड़े सब्र के साथ बताया कि यह मुरदा नहीं, जिंदा है और हमारी यह पूरी कोशिश होगी कि इसे बचाया जा सके. हम ने उस से यह भी कहा कि वह जख्मी को टैक्सी में ले कर चले, जबकि हम अपनी खटारा मोटरसाइकिल से पीछेपीछे आएंगे. हमारे लाख समझाने पर भी टैक्सी वाला उसे अकेले टैक्सी में ले जाने को तैयार नहीं हुआ.

अब हम ने सिर पर कफन बांध

लिया था, सो खटारा मोटरसाइकिल

को अच्छी तरह से तालों से बंद किया और टैक्सी में बैठ गए. थोड़ी देर

में जख्मी को साथ ले कर सरकारी अस्पताल पहुंच गए.

बड़ी मुश्किल से हम वहां डाक्टर ढूंढ़ पाए, पर उस ने भी जख्मी को भरती करने से साफ इनकार कर दिया. हम से कहा गया कि यह पुलिस केस है. पुलिस को बुला कर लाओ, तब देखेंगे.

हम ने फोन मांगा, तो डाक्टर ने फोन खराब होने का बहाना बना दिया. तब हम ने थाने का रास्ता पूछा.

जब हम थाने पहुंचे तो पूरा थाना खाली पड़ा था. महज एक सिपाही

कोने में खड़ा था. हम ने उसे जल्दीजल्दी पूरा हाल बताया और साथ में चलने

को कहा.

वह थोड़ी देर कुछ सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘देखिए, थोड़ी देर रुक जाइए. अभी साहब लोग अंदर वाले कमरे में बिजी हैं, क्योंकि एक मुजरिम से पूछताछ हो रही है. वे आ जाएंगे, तभी कोई फैसला लेंगे.’’

हम अभी उसे आदमी की जान की कीमत समझाने की कोशिश कर ही रहे थे कि अंदर वाले कमरे से 3-4 पुलिस वाले पसीना पोंछते हुए बाहर आए. उन के चेहरे से लग रहा था कि वे मुजरिम से अपने तरीके से पूछताछ कर के निकले हैं.

हम वरदी पर सब से ज्यादा सितारे लगाए एक पुलिस वाले के पास फुदक कर पहुंचे और अपनी बात कहने की कोशिश की. ठीक से बात शुरू होने से पहले ही उस ने एक जोर की उबासी ली और हम से कहा कि अपनी रामकहानी जा कर हवलदार को सुनाओ और रिपोर्ट भी लिखवा दो. उस के बाद देखा जाएगा कि क्या किया जा सकता है.

हम भाग कर हवलदार साहब के पास गए और जख्मी का इलाज कराने की अपील की.

हवलदार ने पूछा, ‘‘आप का क्या लगता है वह?’’

‘‘जी, कुछ नहीं.’’

‘‘तो मरे क्यों जा रहे हैं आप? देखते नहीं, हम कितना थक कर आ रहे हैं.

2 मिनट का हमारा आराम भी आप से बरदाश्त नहीं होता क्या?’’

‘‘देखिए हवलदार साहब, आप का यह आराम उस बेचारे की जान भी ले सकता?है. आप समझते क्यों नहीं…’’

‘‘आप क्यों नहीं समझते. मरनाजीना तो लगा रहता है. जिस को जितनी सांसें मिली हैं, उतनी ही ले पाएगा.

‘‘और आप से किस ने कहा था कि मौका ए वारदात से उसे हिलाने के लिए. बड़े समझदार बने फिरते हैं, सारा सुबूत मिटा दिया. गाड़ी का नंबर भी नोट नहीं किया. अब कैसे पता चलेगा कि उसे कौन साइड मार कर गया था. पता लग जाता तो केस बनाते.’’

हम भी तैश में आ गए, ‘‘आप को सुबूतों की पड़ी है, जबकि यहां किसी भले आदमी की जान पर बनी है. आप की ड्यूटी यह है कि पहले उसे बचाएं. सारे कानून आम आदमी की सहूलियत के लिए बनाए गए हैं, न कि उसे तंग करने के लिए.’’

‘‘अच्छा, तो अब आप ही हम पर तोहमत लगा रहे हैं कि हम आप को तंग कर रहे हैं.’’

‘‘जी नहीं, हमारी ऐसी मजाल कहां कि हम आप को…’’

‘‘अच्छाअच्छा चलेंगे. जहां आप ले चलिएगा, वहां भी चलेंगे. बस, जरा यहां साहब का राउंड आने वाला है, उस को थोड़ा निबटा लें. उस के बाद चलते हैं. तब तक आप हमें कहानी सुनाइए कि क्या हुआ था और आप उसे कहां से ले कर आए हैं?’’

‘‘जी, हम उसे हाईवे पर सुलतानपुर चौक के पास से ले कर आए हैं और…’’

‘‘रुकिएरुकिए, क्या कहा आप ने? सुलतानपुर चौक. अरे, तो आप यहां हमारा टाइम क्यों खराब कर रहे हैं? वह इलाका तो सुलतानपुर थाने में आता है. आप को वहीं जाना चाहिए था.’’

‘‘लेकिन, वह यहां के अस्पताल में भरती होने जा रहा है. आप एफआईआर तो लिखिए.’’

‘‘अरे साहब, आप भी न… देखिए तो, कितनी मेहनत से आज कई एफआईआर की किताबें कवर लगा कर तैयार की हैं, राउंड के लिए. आप इसे खराब क्यों करना चाहते हैं?’’ इतना कह कर हवलदार एक सिपाही की ओर मुंह कर के फिर चिल्लाया, ‘‘अबे गोपाल, आज रमुआ नहीं आया था क्या रे? देख तो ठीक से झाड़ू तक नहीं लगी दिखती है. डीसीपी साहब देखेंगे तो क्या सोचेंगे कि हम लोग कितने गंदे रहते हैं.’’

हमें खीज तो बहुत आ रही थी, मगर क्या कर सकते थे? मन मार कर सब्र किए उन की अपनी वरदी के लिए वफादारी को देखते रहे. हम भी कुछ देर तक कोशिश करते रहे शांत रहने की, लेकिन उन के रवैए से हमारा खून खौलने लगा और हम भड़क उठे, ‘‘आप का यह राउंड किसी की जान से ज्यादा जरूरी है क्या?

‘‘अगर राउंड के समय डीसीपी साहब को सैल्यूट मारने वाले 2 आदमी कम हो जाएंगे तो क्या भूकंप आ जाएगा? आप भी कामचोर हैं. जनता के पैसे से तनख्वाह ले कर भी काम करने में लापरवाही करते हैं.’’

दारोगा बाबू को इस पर गुस्सा आ गया और वे चिल्ला कर बोले, ‘‘अबे धनीराम, बंद कर इसे हवालात के अंदर. इतनी देर से चबरचबर किए जा रहा है. डाल दे इस पर सुबूत मिटाने का इलजाम. और अगर गाड़ी ठोंकने वाला न पकड़ा जाए, तो बाद में वह इलजाम भी इसी पर डाल देना. हमें हमारा काम सिखाता है. 2 दिन अंदर रहेगा, तो सारी हेकड़ी हवा हो जाएगी.’’

सचमुच हमारी हेकड़ी इतने में ही हवा होने लगी. कहां तो किसी की जान बचाने के लिए मैडल मिलने की उम्मीद कर रहे थे और कहां हथकड़ी पहनने की नौबत आ गई.

हम ने घिघियाते हुए कहा, ‘‘हेंहेंहें… आप भी साहब, बस यों ही नाराज हो जाते हैं. हम लोग तो सेवक हैं आप के. गुस्सा थूक दीजिए और जब मरजी आए चलिए, न मरजी आए तो न चलिए. रिपोर्ट भी मत लिखिए, मरने दीजिए उस को यों ही… हम चलते हैं, नमस्ते.’’

हम जान बचा कर भागने की फिराक में थे कि अगर अपनी जान बची, तभी तो दूसरों को बचाने की कोशिश कर सकेंगे. इतने में डीसीपी साहब थाने में दाखिल हो गए.

हुआ यह कि डीसीपी साहब ने हम से आने की वजह पूछ ली. खुन्नस तो खाए हुए थे ही, सो हम ने झटपट पूरी कहानी सुना दी.

उन्होंने पूरे थाने को जम कर लताड़ा और दारोगा बाबू को हमारे साथ जाने को कहा. सुलतानपुर थाने को भी खबर कर अस्पताल पहुंचने का निर्देश देने को कहा. अभी उन का जनता और पुलिस के संबंधों पर लैक्चर चल ही रहा था कि हम चुपके से सरक गए.

हम दारोगा बाबू और हवलदारजी के साथ अस्पताल पहुंचे, जहां वह घायल बेचारा एक कोने में बेहोश पड़ा था.

हम चलने लगे तो दारोगा ने कहा, ‘‘कहां चल दिए आप? अभी तो आप ने मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाला है. उस का डंक नहीं भुगतेंगे?

‘‘अब यह मामला कानून के लंबे हाथों में पहुंच गया है, तो सरकारी हो गया. आप का काम तो अभी शुरू ही हुआ है.

‘‘आप बैठिए इधर ही, इसे होश में आने के बाद इस का बयान लिया जाएगा. तब तक आप अपना बयान लिखवा कर टाइम पास कीजिए. उस के बाद ही हम मिल कर सोचेंगे कि आप का क्या करना है.

‘‘अगर गाड़ी वाला गलती से पकड़ा गया, तो समझिए कि आप को कोर्ट में हर पेशी पर गवाही के लिए आना होगा. आज की दुनिया में भलाई करना इतना आसान थोड़े ही रह गया है.’’

‘‘मेरे बाप की तोबा हवलदार साहब, अगर मैं ने दोबारा कभी ऐसी गलती की तो… अभी तो मुझे यहां से जाने दीजिए, बालबच्चों वाला आदमी हूं. बाद में जब बुलाइएगा, तभी मैं हाजिर हो जाऊंगा,’’ कहते हुए हमारा दिमाग चकराने लगा.

इतनी देर में ही डाक्टर साहब बाहर निकल आए और आते ही उन्होंने ऐलान किया कि मरीज को होश आ गया है. कोई एक पुलिस वाला जा कर उस का बयान ले सकता है.

दारोगा बाबू हवलदार साहब को हमारे ऊपर निगाह रखने की हिदायत दे कर अंदर चले गए.

उस आदमी का अंदर बयान चल रहा था और बाहर बैठे हम सोच रहे थे कि वह अपनी जान बचाने के लिए किस तरह से हमारा शुक्रगुजार होगा. कहीं लखपति या करोड़पति हुआ, तो अपने वारेन्यारे हो जाएंगे.

20-25 मिनट बाद दारोगा बाबू वापस आए और हमें घूरते हुए हवलदार से बोले, ‘‘धनीराम, हथकड़ी डाल इसे और घसीटते हुए थाने ले चल. वहां इस के हलक में डंडा डाल कर उगलवाएंगे कि इस जख्मी के 50,000 रुपए इस ने कहां छिपा रखे हैं.

‘‘उस ने बयान दिया है कि किसी ने उसे पीछे से गाड़ी ठोंक दी थी और उस के पैसे भी गायब हैं.

‘‘मैं ने इस का हुलिया बताया, तो उस ने कहा कि ऐसा ही कोई आदमी टक्कर के बाद सड़क पर उसे टटोल रहा था. खुद को बहुत चालाक समझता है.

‘‘यह सोचता है कि इसे बचाने

की इतनी ऐक्टिंग करने से हम पुलिस वाले इस पर शक नहीं करेंगे. बेवकूफ समझता है यह हम को. ले चल इसे, करते हैं खातिरदारी इस की.’’

देखते ही देखते हमारे हाथों में हथकड़ी पड़ गई और हम अपने सदाचार का मातम मनाते हुए पुलिस वालों के पीछे चल पड़े.

कौल सैंटर: विवाहित महिलाओं का बढ़ता दबदबा

कौल सैंटर का जिक्र आते ही जेहन में कौंध जाते हैं हैडफोन लगाए, धाराप्रवाह अंगरेजी बोलते, खास शैली व अंदाज में ग्राहकों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए, उन्हें उत्पाद की खूबियों का यकीन दिलाने में माहिर युवा लड़केलड़कियों के चेहरे.

कौल सैंटर को ले कर हमेशा मन में एक ही धारणा व्याप्त रहती है कि कालेज से निकले छात्रों को पैसा कमाने के लिए पार्टटाइम नौकरी करने की चाह यहां खींच लाती है. कौल सैंटरों में मिलने वाली सुविधाएं व पैसा दोनों उन्हें चकाचौंध करते हैं. यही वजह है कि नियमित काम के घंटे न होने पर भी युवाओं की एक बड़ी जमात को वहां काम करते देखा जा सकता है.

मगर अब कौल सैंटर का स्वरूप बदलने लगा है. किसी भी कौल सैंटर में अब आसानी से विवाहित महिलाओं को भी कंप्यूटर के आगे कान पर हैडफोन लगाए ग्राहकों से बातचीत करते देखा जा सकता है. विवाहित महिलाओं द्वारा कौल सैंटर में काम कराने का ट्रैंड मार्च, 2004 से शुरू हुआ था.

हालांकि पहले भी विवाहित महिलाएं काम कर रही थीं पर उन की तादाद ज्यादा नहीं थी. गृहिणियों को ले कर इस तरह का प्रयोग पहली बार विप्रो कंपनी ने किया. इस क्षेत्र में महिलाओं का दखल अभी सिर्फ 5 फीसदी तक ही है, लेकिन इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि इस में अप्रत्याशित वृद्धि होने की संभावना है.

एक अनोखा प्रयोग

अभी तक कौल सैंटर में कार्य करने वालों की उम्र 18 से 25 साल के बीच निर्धारित होती थी. विकसित उम्र के इस दौर में काम सीखने के बाद कंपनी बदलने का औसत इन के बीच पिछले वर्ष तक 33 फीसदी तय था. इस साल यह बढ़ कर 40 फीसदी पहुंच गया है. एक से दूसरी कंपनी में पलायन के बढ़ते इस औसत पर लगाम लगाने के लिए अब विवाहित महिलाओं को हैडफोन पहनाया जा रहा है खासकर 5 आईटी कंपनियों- विप्रो, आईगेट, सौफ्टवेयर पार्क, जी कैपिटल, और ई फंड्स ने एक और नया प्रयोग इस में किया है कि वे उन महिलाओं को अधिक प्रमुखता देंगे जिन के बच्चे स्कूल जाने लायक हों तथा उन का संयुक्त परिवार हो.

उत्पादन के तौर पर कौग्निजैंट कंपनी विवाहित महिलाओं को जो दिन या रात में कभी भी अपना समय दे सकती हैं नौकरी दे रही है जिस में बोलना आना ज्यादा जरूरी है. 12 से 15 हजार की सैलरी का वादा किया जा रहा है जो बाद में कार्यकुशलता को देख कर बढ़ाया जा सकता है.

विप्रो स्थित कौल सैंटर में कार्यरत केरल की 29 वर्षीय शशिकला कंपनी के इस नए रवैए से काफी खुश है क्योंकि शादी के बाद उसे एक अच्छी नौकरी मिली है. उस की एक 4 साल की बेटी है. वह कहती है कि कंपनियों द्वारा विवाहिताओं को नौकरी देने के चलन में 30 से 40 वर्ष के बीच की महिलाओं में कैरियर बनाने की आस दोबारा जगाई है. बेशक मेरे साथ मेरे सासससुर नहीं करते हैं, लेकिन कंपनी ने मु  झे सुविधानुसार जौब टाइमिंग दिया हुआ है. विवाह के बाद नौकरी करने का यह अद्भुत अनुभव है.

अद्भुत क्षमता

विवाहित महिलाओं की उम्र 27 से 40 वर्ष तय की गई है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस उम्र की कामकाजी विवाहित महिलाओं में इस रखाव की अद्भुत क्षमता होती है. वे हर काम जिम्मेदारी से निभाने में सक्षम होती हैं जबकि इस के विपरीत फ्रैशर्स में चाहत की लालसा अधिक होती है, इसलिए टिकते नहीं हैं. उन में अनुभव की कमी तो होती ही है, साथ ही काम के प्रति जिम्मेदारी की भावना भी काम होती है. अधिक पैसा मिलते ही वे दूसरी कंपनियों में चले जाते हैं जिन में अधिक नुकसान के साथसाथ प्रशिक्षण के लिए कंपनियों को रोज नए कर्मियों को ढूंढ़ना पड़ता है.

काम के प्रति ज्यादा समर्पित

नोएडा स्थित एक कंपनी से कौल सैंटर में टीम लीडर के रूम में कार्यरत पुष्पांजलि का कहना है कि मैं 3 साल से इस कौल सैंटर में काम कर रही हूं. मु  झे कभी यहां काम करना इसलिए मुश्किल नहीं लगा क्योंकि मैं विवाहित हूं. पहले मैं यूएस शिफ्ट में काम करती थी जो रात की थी पर अब यूके शिफ्ट में हूं जो दिन के ढाई बजे से रात साढ़े बारह तक होती है. आराम से परिवार भी संभाल लेती हूं.

मु  झे लगता है कि युवाओं की अपेक्षा परिपक्व औरतें काम के प्रति ज्यादा समर्पित होती हैं क्योंकि वे एक जगह टिक कर काम करती हैं और प्रलोभन उन्हें लुभाते नहीं हैं. इतवार के अलावा सप्ताह में एक दिन और छुट्टी मिलती है, इसलिए परिवार में तालमेल बैठाने में भी कोई दिक्कत नहीं आती है.

मेरे पति बिजनैसमैन हैं और मु  झे पूरा सहयोग देते हैं. रात की शिफ्ट में काम करने वाला औरतों को ले कर जो नजरिया है, वह बदल रहा है. गंदगी फैलाने वाले हर जगह होते हैं.

इस से हर औरत खराब नहीं हो जाती.

यहां अच्छा वेतन है, ड्रौप और पिक की सुविधा है, खाना मिलता है और इस के अलावा अन्य इंसैटिव भी मिलते हैं. मु  झे लगता है कि कौल सैंटर में काम कर के कैरियर बनाने के

विवाहित महिलाओं के संभावनाओं के नए

द्वार खुल गए हैं.

भारत में आज विदेशी कंपनियां कौल सैंटर खोल रही हैं. इस के पीछे मुख्य वजह बेरोजगारी और वहां के हिसाब से कम वेतन में लोग मिल जाते हैं. विवाहित महिलाओं के लिए जिस उन्मुकता के साथ कौल सैंटरों ने दरवाजे खोले हैं, वे सराहनीय कदम तो है ही, साथ ही इस से काम में भी वृद्धि होगी.

कौल सैंटर में जरूरत होती है ऐसे लोगों की जिनकी आवाज तो अच्छी हो, लेकिन इस के साथ ही वे ग्राहकों के साथ संवाद स्थापित करने में भी कुशल हों, धाराप्रवाह और स्पष्ट अंगरेजी, सही दृष्टिकोण व सीखने की अद्भुत क्षमता का समन्वय भी आवश्यक होता है. यह कैरियर जो अब तक युवाओं के लिए सीमित था, गृहिणियों के लिए भी खुल गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि फ्लैक्सी टाइम होने की वजह से विवाहित महिलाएं अब कौल सैंटरों में काम करना पसंद करने लगी हैं.

अचानक कौल सैंटरों में गृहिणियों की

वृद्धि हुई है क्योंकि अब परिवार ज्यादा सुल  झे व खुले विचारों के हो गए हैं और रात को काम करना भी टैबू नहीं रहा है. अच्छा वेतन तथा पिक ऐंड ड्रौप की सुविधा ने काम करना आसान बना दिया है.

समस्याओं को सुलझाने की क्षमता

कौल सैंटर कंपनियां अब ऐसी औरतों को प्राथमिकता दे रही हैं जो परिपक्व व निष्ठावान हों, विवाहित महिलाएं परिपक्व होती हैं और

उन्हें निरंतर पारिवारिक दबावों से गुजरते रहना होता है. इस वजह से उन में घंटों के साथ समस्याओं को सुल  झाने की क्षमता अविवाहिताओं से बेहतर होती है.

कई लोगों का मानना है कि कौल सैंटर की नौकरी बहुत ही उबाऊ और बोरियत भरी होती है और इस में विकास के विकल्प कम होते हैं पर यह बात अब गलत साबित हो चुकी है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण नौकरी होती है.

5-10 वर्ष पहले कौल सैंटर उद्योग बिलकुल शिशु अवस्था में था. कालेज से निकले फ्रैशर इस की ओर आकर्षित होते थे. पढ़ने के साथसाथ वे अपना कैरियर बनाने को भी इच्छुक रहते थे, पर चूंकि वह उन की शुरुआत होती थी इसलिए उस के प्रति गंभीर नहीं रहते थे. इस से कंपनियों को उन के चले जाने से फिर नए सिरे से नए लोगों को प्रशिक्षण देना पड़ता था.

विश्वास व दूरदृष्टि

हालांकि काबिलीयत इस बात पर निर्भर नहीं करती कि महिला विवाहित है या अविवाहित पर यह जरूर है कि विवाहित महिलाएं एक जगह टिक कर काम करना पसंद करती हैं. ज्यादातर युवा औफिस के माहौल में कालेज का वातावरण उत्पन्न करने की कोशिश करते हैं, पर विवाहित महिलाएं निष्ठा, विश्वास व एक दूरदृष्टि रखते हुए काम करती हैं.

उन के लिए नौकरी पार्टटाइम नहीं होती वरन घर चलाने के लिए जरूरत होती है. एक सही कैरियर के साथ वे इस का चुनाव करती हैं. अनुभवी होने के कारण काम के दबाव को आसानी से बरदाश्त कर लेती हैं.

घर में चकलाबेलन चलाने वाले हाथ, अब दिनरात तेजी से कंप्यूटर पर ऊंगलियां चलाते हैं. पति, सासससुर व बच्चों की शिकायतें और मांगें सुनने वाले कान अब हैडफोन लगा ग्राहकों के अंदर उत्पाद के प्रति विश्वसनीयता पैदा करते हैं. नतीजा उत्पाद की बेहतर बिक्री के रूप में सामने आता है. गृहिणियां विदेशी बाजार की मार्केटिंग क्षमता का विस्तार करने में जुट गई हैं. वे जानती हैं कि उन के पास अपार क्षमता है और विभिन्न आईटी कंपनियों ने उन की क्षमताओं को पहचान भी लिया है.

वर्क फ्रौम होम और नई मोबाइल टैक्नोलौजी के कारण अब डिस्टैंड कौल सैंटर भी चल सकते हैं जिन में घरेलू महिलाएं घर बैठे कंप्यूटर और फोन की सहायता से काम कर रही हैं. कोविड-19 का एक लाभ यह हुआ है कि लोगों को अब फेस टू फेस काम कराने की आदत कम होने लगी है और वे घर बैठे काम करना चाहते हैं. जूम मीटिंगों की तरह दसियों तरह के प्लेटफौर्म इन औरतों को ट्रेन भी कर सकते हैं.

TV एक्टर सिद्धांत वीर सूर्यवंशी का 46 साल की उम्र में निधन, वर्कआउट के दौरान आया हार्ट अटैक

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से आए दिन बुरी खबरें सामने आ रही हैं. जहां बीते दिनों भाभी जी घर पर हैं एक्टर का अचानक निधन हो गया था तो वहीं अब एक और पौपुलर टीवी एक्टर का कम उम्र में निधन हो गया है. दरअसल, खबरे हैं कि एक्टर सिद्धांत वीर सूर्यवंशी (Siddhaanth Vir Surryavanshi Died) का अचानक निधन हो गया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

जिम में आया हार्ट अटैक

खबरों की मानें तो कसौटी जिंदगी फेम एक्टर सिद्धांत (Siddhaanth Vir Surryavanshi Passed Away) का जिम में वर्कआउट के दौरान निधन हो गया है. बताया जा रहा है कि 46 साल के एक्टर को हार्ट अटैक आया, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया था. हालांकि डॉक्टरों ने करीब 45 मिनट तक उनका इलाज करने की कोशिश की. लेकिन आखिर में उन्हें बचा नहीं सके. खबर मिलने के बाद से फैंस हैरान हैं और सोशलमीडिया के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.

इन सीरियल्स में कर चुके हैं काम

सिद्धांत ने हाल ही में अपना नाम बदला था. लेकिन वह कई हिट टीवी सीरियल्स में काम करके घर-घर में अपनी पहचान बना चुके हैं. ‘सूफियाना इश्क मेरा’ कसौटी जिंदगी के जैसे शोज में काम कर चुके एक्टर सिद्धांत को आखिरी बार ‘क्यू रिश्तों में कट्टी बत्ती’ में देखा गया था. हालांकि वह सीरियल में नजर आने के अलावा सोशलमीडिया पर भी काफी एक्टिव रहते थे, जिसके चलते फैंस काफी हैरान हैं.

एक्ट्रेस सारिका के लिए क्या तकलीफदायक है? पढ़ें इंटरव्यू 

सारिका अपने समय की सबसे तरक्कीपसंद अभिनेत्रियों में रही हैं. उन्होंने कमल हासन के साथ करीब 16 साल बिताए. दोनों ने पहली बेटी श्रुति के जन्म के बाद साल 1988 में विवाह किया और उनकी दूसरी बेटी अक्षरा का जन्म वर्ष 1991 में हुआ, लेकिन 2004 में सारिका ने कमल हासन से अलग हो जाने का फैसला किया.

सारिका का बचपन कई समस्याओं से घिरा हुआ था, जब वह बहुत छोटी थी, तब उसके पिता ने परिवार छोड़ दिया था और इसलिए वह स्कूल नहीं जा पा रही थी, उसे परिवार का मुखिया और पैसा कमाने वाला सदस्य बनना था. यही वजह थी कि उन्होंने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 4 साल की उम्र में एक बाल एक्ट्रेस के रूप में की थी.बाद में, उन्होंने राजश्री प्रोडक्शंस के साथ और प्रसिद्ध अभिनेता सचिन के साथ कई हिंदी और मराठी फिल्मों में अभिनय किया.जब वह करियर की ऊंचाई पर थी, तब उन्होंने शादी के बाद अभिनय करियर को छोड़कर अपने पति के साथ चेन्नई चली गईं

वर्ष 2000 में, उन्होंने फिल्म ‘हे राम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ ड्रेस डिजाइन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्म परजानिया में उनके प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ एक्ट्रेस का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता. सारिका की खूबसूरती और अभिनय ने हर निर्माता निर्देशक को उनका पसंदीदा बनाया था.

इतनी सफल एक्ट्रेस के निजी जीवन में कई उतार-चढ़ाव आये, लेकिन उन्होंने इसे हिम्मत  से सामना किया. कोविड और कुछ अच्छी प्रोजेक्ट हाथ न लग पाने की वजह से उन्हें कई साल तक इंतज़ार करना पड़ा, लॉकडाउन के समय उनके पास पैसे की तंगी होने की वजह से उन्होंने थिएटर में काम किया और अपना घर चलाया, वह एक खुद्दार और हंसमुख स्वभाव की है. अब उनकी फिल्म ‘ऊंचाई’ रिलीज पर है, जिसे राजश्री प्रोडक्शन ने बनाया है. ये फिल्म अत्यंत भावुक और एक गहरी दोस्ती को बयान करती है. एक बार फिर से राजश्री के साथ जुड़ना उनके लिये अच्छी बात है, उन्होंने गृहशोभा के लिए खास बात की, आइये जाने उनकी कहानी उनकी जुबानी.

जुड़ना होता है आसान

राजश्री प्रोडक्शन के साथ सालों बाद फिर से जुड़ना सारिका के लिए एक अच्छी बात रही, वह कहती है कि पहले जब मैं काम करती थी, तो हर प्रोडक्शन हाउस के साथ एक जुड़ाव रहता था,लेकिन राजश्री से जुड़ना एक अलग अनुभव रहा. निर्देशक सूरज बडजात्या का निर्देशन और एक अच्छी कहानी में भाग लेना मेरे लिए सबसे ख़ुशी की बात है. इसमें मैं माला त्रिवेदी, जो एक स्वतंत्र महिला की भूमिका निभा रही हूं, जो परिवार के साथ व्यवसाय करती है और एक खास पल में दोस्तों से जुडती है.

सही कहानी सही इमोशन

इतनी ऊंचाई पर जाकर इतनी ठण्ड में शूट करना सारिका के लिए आसान नहीं था. फिल्म की शूटिंग नेपाल में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर शूट की गई है, जिसे करने में बहुत मजा आया. वह कहती है कि एक महीने का शिड्यूल था, जिसमे ऊपर-नीचे चलना, चलते-चलते काम करना, करीब 300 लोगों की यूनिट के साथ शारीरिक रूप से बहुत कठिन था, लेकिन दिल में ऐसा नहीं लगा कि जल्दी ख़त्म हो और घर जाएँ. ऐसी फीलिंग यहाँ नहीं आने की वजह मजे हुए कलाकार के साथ काम करना है, बदन थक जाता था, लेकिन इमोशन में कभी कमी नहीं आई.

नया काम नई चुनौती

सारिका आगे कहती है कि इतने सालों तक काम करने के बाद भी मुझे हमेशा नया कुछ करने की इच्छा रहती है. मैंने पहले जो काम किया है वो अब भूलकर हमेशा नया करने की इच्छा होती है. पुरानी चीजों को याद मैं कभी नहीं करना चाहती, क्योंकि इससे आप नए जेनरेशन के साथ जुड़ नहीं पाते, इसके लिए मुझे काम करते रहना है ताकि आज के नए बच्चे जाने, एक्ट्रेस सारिका भी एक अदाकारा है जो अच्छा अभिनय करती है और वही मेरी उपलब्धि है.

आजादी फिल्म मेकिंग में

इंडस्ट्री की परिवर्तन के बारें में एक्ट्रेस सारिका का कहना है कि परिवर्तन को देखे तो आज कहानी कहने का ढंग बहुत बदल गया है, अभी फिल्म मेकिंग में एक फ्रीडम आ गयी है, जो पहले नहीं था,स्ट्रक्चर में बदलाव आ गया है. फिल्म से लेकर वेबसीरीज, टीवी शो सभी में एक आज़ादी होने की वजह वर्ल्ड सिनेमा का एक्स्पोजर बहुत अधिक हो गया है. पहले कुछ निर्देशक बाहर जाकर विदेशी फिल्में फेस्टिवल में देखते थे, अब वो बात नहीं रही. वर्ल्ड सिनेमा से अब सभी परिचित है. फिल्ममेकर आज लगातार कोशिश कर रहे है कि अच्छी से अच्छी फिल्मे दर्शकों को दी जाय. समाज भी बहुत बदल चुका है. उसकी रिफ्लेक्शन भी फिल्मों में आती है. हालाँकि फिल्मे काल्पनिक होती है, लेकिन वह भी आसपास की सच्चाई से ही ली जाती है. उसकी क्रिएशन भी इन्ही के आधार पर की जाती है. इसके अलावा तकनीक का भी प्रयोग आज बहुत होने लगा है. क्रिएटिविटी बहुत बढ़ी है, सभी को एक ओपनिंग मिल गई है. सभी को अपनी हुनर दिखाने का चांस मिल रहा है. एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की ये सबसे बेहतर समय है.

प्रतिभावान कलाकार को मिला मौका

पुराने और लीजेंड एक्टर अभी पहले से अधिक अच्छा काम कर पा रहे है, क्योंकि ओटीटी ने इन्हें कुछ अलग करने या जो भूमिका वे आज तक नहीं निभा पाए थे, उन्हें निभाने का मौका मिला है. पुराने दिनों को याद करती हुई सारिका कहती है कि शुरू में जब कलर टीवी आई थी, तब सभी दर्शकों को कुछ अच्छा देखने की इच्छा था, जिसमे गोविन्द निहलानी की तमस, सत्यजित रे की फिल्म आएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और टीवी किसी दूसरी दिशा में चला गया. ओटीटी आने के बाद बॉक्स ऑफिस कलेक्शन या थिएटर भरने का प्रेशर निर्माता,निर्देशक पर नहीं था. ऐसे में निर्माता, निर्देशक ने उन्ही कलाकारों को कास्ट किया, जो सही थे, दिल से काम निकला और बहुत सारें ऐसे कलाकार की कला बाहर निकली, जिन्हें कोई नहीं जानता था. अब सिनेमा की क्वालिटी में किसी भी प्रकार का कोई फर्क नहीं दिखता.

नए कलाकारों के साथ काम करना हुआ आसान

नए कलाकारों के साथ काम करने के अनुभव के बारें में पूछने परसारिका हंसती हुई कहती है कि नये कलाकार के साथ काम करना अच्छा होता है, क्योंकि नई चीजें सीखने के साथ- साथ उनका रेस्पेक्ट बहुत मिलता है, क्योंकि कई बार पुराने कलाकारों के साथ काम करना तकलीफदायक होता है. असल में सच्चे आर्टिस्ट के साथ काम करना चाहिए, वो मुझे अच्छा लगता है, सामने अगर आर्टिस्ट काम कर रहा हो, तो काम का नशा ही कुछ और होता है. मेरी ट्रेकअमिताभ बच्चन, अनुपम खेर और बोमन ईरानी के साथ है, मुझे बहुत मजा आया. मुझे हमेशा अपने को स्टार के साथ इंटरेक्ट करने में बहुत अच्छा लगता है. सीन ठक-ठककर एक के बाद एक आती रहती है, ऐसी अभिनय मुझे बहुत पसंद है. ये तीनों बहुत ही मजेदार है.

फिटनेस मंत्र

खूबसूरत सारिका की डेली रूटीन में दो अच्छे लोगों से मुलाकात करना चाहती है, जिससे उनका मन खुश रहे. खान-पान पर खास ध्यान रखने के अलावा नियमित फिटनेस रिजीम का पालन करती है. बच्चों की अच्छी परवरिश के बारें में सारिका बताती  है कि बच्चे जब छोटे होते है, उन्हें उनके संस्कारों और सीख दिया जाता है, लेकिन जब वे बड़े होते है, तो उनकी अपनी शख्सियत निकलने लगती है. ये हर व्यक्ति की अलग होती है और ये हमारे जैसा होनी भी नहीं चाहिए. अगर आज मेरी दोनों बेटियां, श्रुति हसन और अक्षरा हसन अच्छा काम कर रही है, तो उनका क्रेडिट है. मेहनत करती है, स्ट्रोंग है. आगे भी वे अच्छा करें यही मैं चाहती हूं.

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