लेकिन अखिल ने उस रिश्ते के लिए मना कर दिया, यह कह कर कि वह मुझ से प्यार करता है और शादी भी मुझ से ही करेगा. अखिल की बातें सुन कर पहले तो उस के मातापिता उखड़ गए, लेकिन फिर समझाते हुए बोले कि एक शानदार जीवन जीने के लिए प्यार से ज्यादा पैसों की जरूरत होती है और उस का जो सपना है कि खुद अपना एक पैट्रोल पंप हो, वह इस शादी से पूरा हो सकता है.
पैसों की चकाचौंध और उस के पूरे होते सपने उसे मुझ से बेमुख करने लगे. अब वह मुझ से कन्नी काटने लगा. जब भी मैं उसे फोन करती, वह मेरा फोन नहीं उठाता और अगर उठाता भी, तो एकदो बातें कर के तुरंत ही रख देता. मुझे तो तब भी यही लग रहा था कि अखिल मुझ से बहुत प्यार करता है.
अखिल के संग शादी को ले कर मेरे सपने बलवती होते जा रहे थे और उस ने ही कहा था कि वह अपने मांपापा को हमारी शादी के लिए मना ही लेगा, किसी न किसी तरह से, इसलिए मैं चिंता न करूं. वह सब तो ठीक है पर मैं अखिल को अपने आने वाले बच्चे के बारे में बताना चाह रही थी. खुशखबरी देना चाहती थी उसे. लेकिन वह तो मेरा फोन ही नहीं उठा रहा था. सो, मैं एक दिन खुद ही उस से मिलने चली गई. जब मैं ने उसे अपने होने वाले बच्चे के बारे में हंसते हुए बताया और कहा कि अब वह जल्द से जल्द अपने मातापिता से हमारी शादी की बात कर ले. तो वह बोला कि वह मुझ से शादी नहीं कर सकता क्योंकि उस की शादी कहीं और तय हो चुकी है.
पहले तो उस की बातें मुझे मजाक ही लगीं, लेकिन जब फिर उस ने वही बात दोहराई और कहा कि वह मजबूर है, क्योंकि वह अपने मातापिता के खिलाफ नहीं जा सकता, तो मैं दंग रह गई. ‘यह क्या बोल रहे हो, अखिल? पागल हो गए हो क्या? कुछ भी बक रहे हो,’ मैं ने घबराते हुए कहा.
‘बक नहीं रहा हूं, शिखा. सही कह रहा हूं. मैं अपने मांपापा के खिलाफ नहीं जा सकता. इसलिए हमारा अब एकदूसरे को भूल जाना ही सही होगा.’
उस की उलूलजलूल बातें अब मेरा दिमाग खराब करने लगी थीं. मैं बोली, ‘जब तुम अपने मातापिता के खिलाफ नहीं जा सकते थे, तो क्यों मुझे झांसे में रखा आज तक? क्यों करते रहे मुझ से शादी के वादे? और क्यों भोगते रहे मेरे शरीर को अब तक? अब तुम बताओ क्या करूं मैं इस बच्चे का? क्या जवाब दूं दुनिया वालों को? और मेरे मातापिता, उन्हें मैं क्या समझाऊं?’
लेकिन अखिल मेरी बात समझने के बजाय अपने नग्न रूप में प्रकट हो गया और अत्यंत कठोर स्वर में कहने लगा, ‘देखो शिखा, जो सच है मैं ने तुम्हें बता दिया और यह तुम क्या बोल रही हो कि मैं ने तुम्हारे शरीर को भोगा, क्या उस में तुम्हारी मरजी शामिल नहीं थी? अगर नहीं, तो तुम ने मुझे रोका क्यों नहीं, क्यों खुद को बारबार मेरे करीब आने दिया. बोलो न? और इस में कौन सी बड़ी बात है, अस्पताल जा कर बच्चा गिरवा दो और छुट्टी पाओ. जितने पैसे चाहिए, मैं तुम्हें दे दूंगा.’
‘बच्चा गिरा दूं,’ अपने पेट पर हाथ रख कर बुदबुदाई मैं.
‘हां, गिरा दो. यही सही होगा, शिखा. पैसे की चिंता मत करो. एक क्लीनिक का पता मैं तुम्हें देता हूं. चली जाओ वहां, किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा.’
उस की बातें सुन कर आश्चर्य से मेरी आंखें फैल गईं? लगा एक बाप अपने ही बच्चे के लिए ऐसे शब्द कैसे इस्तेमाल कर सकता है? कैसे अपने ही बच्चे को मरने की बात कह सकता है?
‘मार दूं इस नन्ही सी जान को जो अभी इस दुनिया में आई भी नहीं है? लेकिन इस का कुसूर क्या है, अखिल?’ अप्रत्याशित नजरों से अखिल की तरफ देखते हुए मैं बोली, पर वह कोई जवाब न दे कर वहां से चला गया और मैं धम्म से वहीं जमीन पर बैठ गई.
मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. किसी तरह लड़खड़ाते कदमों से मैं अपने घर तक पहुंची और बिस्तर पर पड़ गई. मेरी आंखों से झरझर आंसू बहे जा रहे थे. समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करूं? कैसे बताऊं अपने परिवार वालों को कि अखिल ने मुझ से शादी करने से मना कर दिया? किसी तरह हिम्मत कर मैं ने दीदी को यह बात बताई कि अखिल ने मुझ से शादी करने से मना कर दिया. ‘लेकिन अब इस बच्चे का क्या करूं मैं, दीदी? अगर मांपापा जान गए कि मैं अखिल के बच्चे की मां बनने वाली हूं, तब क्या होगा, दीदी?’ बिलखते हुए मैं ने कहा. लेकिन मुझे नहीं पता था कि बाहर खड़ी मां हमारी सारी बातें सुन रही हैं.
अपना सिर पीटपीट कर रोते हुए वे कहने लगीं कि ऐसी बेटी पैदा होने से पहले मर क्यों नहीं गई? अब क्या जवाब देंगी वे दुनिया वालों को जब कोई पूछेगा कि मेरे पेट में पल रहे पाप का बाप कौन है? सुन कर पापा भी घोर चिंता में डूब गए. चिंता की लकीरें उन के माथे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थीं मुझे. किसी ने रात में खाना भी नहीं खाया. सब चुप थे. मनहूसियत सी छा गई थी घर में और उस की जिम्मेदार थी सिर्फ मैं.
अब मेरा मर जाना ही सही रहेगा. क्या होगा? लोग चार बातें करेंगे, फिर चुप हो जाएंगे. मगर मांपापा को इस दुख से छुटकारा तो मिल जाएगा न. यह सोच कर मैं घर से निकल पड़ी. अभी मैं उस पुल से छलांग लगाने ही वाली थी कि किसी ने मुझे पीछे खींच लिया. देखा तो प्रणय था. ‘क्यों बचाया आप ने मुझे? छोडि़ए, मेरा मर जाना ही सही है क्योंकि इस के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचा मेरे पास,’ कह कर मैं झटके से भागने ही वाली थी कि उस ने एक जोर का तमाचा मेरे गाल पर दे मारा और कहने लगा कि क्या मेरे मर जाने से सारी समस्या खत्म हो जाएगी? नहीं, लोग तब भी मांपापा का जीना हराम कर देंगे. ‘तो क्या करूं मैं?’ बोल कर बिलख पड़ी मैं. उस
ने कस कर मुझे अपने सीने से यह कह कर लगा लिया कि सब ठीक हो जाएगा.
प्रणय, मेरी दीदी का देवर, जो मन ही मन मुझे चाहता था, पर कभी बता नहीं पाया, सबकुछ जानतेबूझते हुए भी उस ने न सिर्फ मुझे अपनाया, बल्कि मेरे बेटे रुद्र को भी. रुद्र उस का अपना खून नहीं है, फिर भी प्रणय के प्यार और अपनेपन ने मुझे अखिल के धोखेफरेब को भूलने पर मजबूर कर दिया.