कांटा- भाग 1 : क्या शिखा की चाल हुई कामयाब?

रूपापत्रिका ले कर बैठी ही थी कि तभी कालबैल की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने उस की बचपन की सहेली शिखा खड़ी थी. शिखा उस की स्कूल से ले कर कालेज तक की सहेली थी. अब सुजीत के सब से घनिष्ठ मित्र नवीन की पत्नी थी और एक टीवी चैनल में काम करती थी.

रूपा के मन में कुछ देर पहले तक शांति थी. अब उस की जगह खीज ने ले ली थी. फिर भी उसे दरवाजा खोल हंस कर स्वागत करना पड़ा, ‘‘अरे तू? कैसे याद आई? आ जल्दी से अंदर आ.’’

शिखा ने अंदर आ कर पैनी नजरों से पूरे ड्राइंगरूम को देखा. रूपा ने ड्राइंगरूम को ही नहीं, पूरे घर को सुंदर ढंग से सजा रखा था. खुद भी खूब सजीधजी थी. फिर शिखा सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘इधर एक काम से आई थी… सोचा तुम से मिलती चलूं… कैसी है तू?’’

‘‘मैं ठीक हूं, तू अपनी सुना?’’

सामने स्टैंड पर रूपा के बेटे का फ्र्रेम में लगा फोटो रखा था. उसे देखते ही शिखा ने कहा, ‘‘तेरा बेटा तो बड़ा हो गया.’’

‘‘हां, मगर बहुत शैतान है. सारा दिन परेशान किए रहता है.’’

शिखा ने देखा कि यह कहते हुए रूपा के उजले मुख पर गर्व छलक आया है.

‘‘घर तो बहुत अच्छी तरह सजा रखा है… लगता है बहुत सुघड़ गृहिणी बन गई है.’’

‘‘क्या करूं, काम कुछ है नहीं तो घर सजाना ही सही.’’

‘‘अब तो बेटा बड़ा हो गया है. नौकरी कर सकती हो.’’

‘‘मामूली ग्रैजुएशन डिग्री है मेरी. मु झे कौन नौकरी देगा? फिर सब से बड़ी यह कि इन को मेरा नौकरी करना पसंद नहीं.’’

‘‘तू सुजीत से डरती है?’’

‘‘इस में डरने की क्या बात है? पतिपत्नी को एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल तो रखना ही पड़ता है.’’

शिखा हंसी, ‘‘अगर दोनों के विचारों में जमीनआसमान का अंतर हो तो?

यह सुन कर रूपा  झुं झला गई तो वह शिखा से बोली, ‘‘अच्छा तू यह बता कि छोटा नवीन कब ला रही है?’’

शिखा ने कंधे  झटकते हुए कहा, ‘‘मैं तेरी तरह घर में आराम का

जीवन नहीं काट रही. टीवी चैनल का काम आसान नहीं. भरपूर पैसा देते हैं तो दम भी निकाल लेते हैं.’’

शिखा की यह बात रूपा को अच्छी नहीं लगी. फिर भी चुप रही, क्योंकि शिखा की बातों में ऐसी ही नीरसता होती थी. रूपा की शादी मात्र 20 वर्ष की आयु में हो गई थी. लड़का उस के पापा का सब से प्रिय स्टूडैंट था और उन के अधीन ही पी.एचडी. करते ही एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव लग गया था. मोटी तनख्वाह के साथसाथ दूसरी पूरी सुविधाएं भी और देशविदेश के दौरे भी.

लड़के के स्वभाव और परिवार की अच्छी तरह जांच कर के ही पापा ने उसे अपनी इकलौती बेटी के लिए चुना था. हां, मां को थोड़ी आपत्ति थी लेकिन सम झने पर वे मान गई थीं. पापा मशहूर अर्थशास्त्री थे. देशविदेश में नाम था.

रूपा अपने वैवाहिक जीवन से बेहद खुश थी. होती भी क्यों नहीं, इतना हैंडसम और संपन्न पति मिला था. और विवाह के कुछ अरसा बाद ही उस की गोद में एक प्यारा सा बेटा भी आ गया था. शादी को 8 वर्ष हो गए थे. कभी कोई शिकायत नहीं रही. वह भी तो बेहद सुंदर थी. उस पर कई सहपाठी मरते थे, पर उस का पहला प्यार पति सुजीत ही थे.

बेटी को सुखी देख कर उस के मातापिता भी बहुत खुश थे.

बात बदलते हुए रूपा ने कहा, ‘‘छोड़ इन बातों को… इतने दिनों बाद मिली है… चल सहेलियों की बातें करती हैं.’’

शिखा थोड़ी सहज हुई. बोली, ‘‘तू भी तो कभी मेरी खबर लेने नहीं आती.’’

‘‘देख  झगड़े की बात नहीं… सचाई बता रही हूं… कितनी बार हम लोगों ने तु झे और नवीन भैया को बुलाया. भैया तो एकाध बार आए भी पर तू नहीं… फिर तू ने तो कभी हमें बुलाया ही नहीं.. अच्छा यह सब छोड़. बोल क्या लेगी चाय या ठंडा? गरम सूप भी है.’’

‘‘सूप ही ला… घर का बना सूप बहुत दिनों से नहीं पीया.’’

थोड़ी ही देर में रूपा 2 कप गरम सूप ले आई. फिर 1 शिखा को पकड़ा और दूसरा स्वयं पकड़ कर शिखा के सामने बैठ गई. बोली, ‘‘बता कैसी चल रही है तेरी गृहस्थी?’’

जब रूपा सूप लेने गई थी तब शिखा ने घर के चारों ओर नजर डाली थी. वह सम झ गई थी कि रूपा बहुत सुखी और संतुष्ट जीवन जी रही है. उस का स्वभाव ईर्ष्यालु था ही. अत: सहेली का सुख उसे अच्छा नहीं लगा. वह रूपा का दमकता नहीं मलिन व दुखी चेहरा देखना चाहती थी.

शिखा यह भी सम झ गई थी कि उस के सुख की जड़ बहुत मजबूत है. सहज उखाड़ना संभव नहीं. आज तक वह उसे हर बात में पछाड़ती आई है. पढ़ाई, लेखन प्रतियोगिता, खेल, अभिनय, नृत्य व संगीत सब में वह आगे रहती आई है. रूपा है तो साधारण स्तर की लड़की पर कालेज का श्रेष्ठ हीरा लड़का उस के आंचल में आ गया था. फिर समय पर वह मां भी बन गई. पति प्रेम, संतान स्नेह से भरी है वह. ऊपर से मातापिता का भरपूर प्यार, संरक्षण भी है उस के पास. संपन्नता अलग से.

यह सब सोच शिखा बेचैन हो उठी कि जीवन की हर बाजी उस से जीत कर यह अंतिम बाजी उस से हार जाएगी… पर करे भी तो क्या? कैसे उस की जीत को हार में बदले? कुछ तो करना ही पड़ेगा… पर क्या करे? सोचना होगा, हां कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही होगा. रूपा में बुद्धि कम है. उसे बहकाना आसान है, तो कोई रास्ता निकालना ही पड़ेगा… जरूर कुछ सोचेगी वह.

मां से फोन पर बातें करते हुए रूपा ने शिखा के अचानक आने की बात कही तो वे शंकित

हो उठीं, ‘‘बहुत दिनों से उसे देखा नहीं… अचानक तेरे घर कैसे आ गई?’’

रूपा बेटे को दूध पिलाते हुए सहज भाव से बोली, ‘‘नवीन भैया तो आते रहते हैं… वही नहीं आती थी… उन से दूर की रिश्तेदारी भी है. सुजीत के भाई लगते हैं और दोस्त तो हैं ही. पर आज बता रही थी कि पास ही चैनल के किसी काम से आई थी तो…’’

‘‘मु झे उस पर जरा भी विश्वास नहीं. मु झे तो लगता है तेरा घर देखने आई थी,’’ मां रूपा की बात बीच ही में काटते हुए बोली.

मैं जौब करना चाहती हूं, लेकिन परिवार नहीं मान रहा?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय युवती हूं. विवाह को 4 वर्ष हो चुके हैं. एक 3 वर्ष का बेटा है. घर में सासससुर और देवर है. हमारा अपना घर है. पति का अच्छा पैतृक व्यवसाय है, अर्थात आर्थिक रूप से काफी संपन्न हैं. मैं नौकरी करना चाहती हूं, परिवार वाले यही दलील देते हैं. विवाहपूर्व मैं नौकरी करती थी. इन लोगों के कहने पर ही मैं ने नौकरी छोड़ी थी. उसी कंपनी से मुझे फिर औफर आया है पर कोई नहीं मान रहा. मैं सारा दिन चूल्हेचौके में, जहां कोई खास काम मेरे करने लायक नहीं है, नहीं बिताना चाहती.

जवाब-

यदि पति और परिवार वाले आप के नौकरी करने के हक में नहीं हैं तो आप को इस की जिद नहीं करनी चाहिए. घर के कामकाज के साथसाथ आप पति के काम में मदद कर सकती हैं, बच्चे की देखभाल भलीभांति कर सकती हैं और अपनी कोई रुचि विकसित कर सकती हैं, किसी समाजसेवी संस्था में अपनी सेवाएं दे सकती हैं. इन के अलावा और भी कई काम हैं जिन्हें आप अपनी योग्यता और सुविधा के अनुसार घर पर रह कर कर सकती हैं.

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जून का महीना था. सुबह के साढ़े 8 ही बजे थे, परंतु धूप शरीर को चुभने लगी थी. दिल्ली महानगर की सड़कों पर भीड़ का सिलसिला जैसे उमड़ता ही चला आ रहा था. बसें, मोटरें, तिपहिए, स्कूटर सब एकदूसरे के पीछे भागे चले जा रहे थे. आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए वान्या तेज कदमों से चली आ रही थी. उसे घर से निकलने में देर हो गई थी. वह मन ही मन आशंकित थी कि कहीं उस की बस न निकल जाए. ‘अब तो मुझे यह बस किसी भी तरह नहीं मिल सकती,’ अपनी आंखों के सामने से गुजरती हुई बस को देख कर वान्या ने एक लंबी सांस खींची. अचानक लाल बत्ती जल उठी और वान्या की बस सड़क की क्रौसिंग पर जा कर रुक गई.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- चक्रव्यूह भेदन : वान्या क्यों सोचती थी कि उसकी नौकरी से घर में बरकत थी

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

संपेरन: क्या था विधवा शासिका यशोवती का वार

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4 Tips: ऐसे सिखाएं बच्चों को सेविंग करना

मोबाइल, इंटरनेट व शौपिंग क्रेज से बच्चों में खर्च करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. बच्चों की खर्चीली आदतों को देखते हुए हाल ही में कुछ बैंकों के ब्रांच मैनेजरों ने एक गोष्ठी का आयोजन किया. यहां बैंकर्स ने ‘बच्चों को सेविंग के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए?’ जैसे विचारों से लोगों को अवगत कराया तथा अपनी कई स्कीमें समझाईं. कई बैंक तो बच्चों के लिए डिफरेंट सेविंग स्कीम्स भी ला रहे हैं. बैंक अब बच्चों के लिए एटीएम कार्ड भी जारी कर रहे हैं. आज मातापिता के लिए बच्चों को पाकेटमनी देना तो स्टेटस सिंबल बन चुका है. वे यह नहीं समझते कि जानेअनजाने में वे अपने बच्चों के अंदर एक ऐसी आदत को जन्म दे रहे हैं, जो भविष्य में उन्हीं के लिए नुकसानदायक साबित होगी.

आज टीनएजर्स स्कूल की छुट्टी के बाद पान की दुकान पर सिगरेट, गुटखा इत्यादि खरीदते आसानी से दिख जाते हैं. कहींकहीं ये बच्चे शराब की दुकान पर बीयर खरीदते दिख जाते हैं. हो सकता है उस समय इन की माताएं किटी पार्टी और पिता व्यवसाय में व्यस्त हों. जेब में पैसा जरूरत को जन्म देता है, इसलिए अगर बच्चे को पैसे देना बहुत जरूरी है तो उस का उपयोग सिखाना उस से भी ज्यादा जरूरी है.

1. जरूरत पड़ने पर ही दें पैसा

अधिक पाकेटमनी देने से बच्चे अनावश्यक खर्च करते हैं. इसलिए बच्चों को जरूरत के मुताबिक ही पैसे देने चाहिए. आप बच्चों को उत्साहित करें कि वे पैसा बचाएं. यदि आप अपनी बेटी की पाकेटमनी में से कुछ पैसा उस के अकाउंट में जमा करा दें तो वह पैसा उसी के किसी काम आएगा.

2. मोबाइल और शौपिंग पर खर्च

खर्चीली लाइफस्टाइल के चलते बच्चों की पाकेटमनी का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है. छात्रा जेसिका का कहना है कि उस की पाकेटमनी का अधिकांश हिस्सा मोबाइल और शौपिंग पर खर्च होता है. पैसा बचने पर वह मम्मी के पास जमा करा देती है. छात्रा चारु का कहना है कि उस ने पेरेंट्स के साथ ज्वाइंट अकाउंट खुलवा रखा है. अपनी जरूरत पर खर्च करने के बाद बचने वाले पैसों को उस में जमा करा देती है. विनीत गोयल ने बताया कि अधिकांश खर्च क्रिकेट या दूसरे खेल के सामान खरीदने पर ही होता है. मनीष भारद्वाज का कहना है कि वह गेम्स खेलने और दोस्तों के साथ खानेपीने पर अपना पैसा खर्च करता है.

3. बचत है जरूरी

बच्चों के लिए पाकेटमनी को जरूरी मानने वाले मातापिता का कहना है कि अब बच्चे मोबाइल, गेम्स और फास्ट फूड पर खूब खर्च करते हैं. अत्यधिक खर्च करने से बच्चों की आदतें बिगड़ रही हैं. इसलिए बच्चों में बचत की आदत डालनी चाहिए.

4. जीरो बैलेंस पर अकाउंट

भारतीय स्टेट बैंक के ब्रांच मैनेजर डी.के. तनेजा का कहना है कि 10 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को सेविंग के लिए प्रमोट करने के लिए एसबीआई ने जीरो बैलेंस पर अकाउंट खोलने की योजना बनाई है. बच्चे का अकाउंट और एटीएम कार्ड भी जीरो बैलेंस पर देते हैं. सहकार मार्ग स्थित राजस्थान स्टेट कोपरेटिव बैंक के ब्रांच मैनेजर सुनील दत्त आर्य के अनुसार, इस तरह के अकाउंट खुलवाने में अब मातापिता अधिक रुचि ले रहे हैं.

क्यों कठपुतली बन रही हैं महिलाएं

लगता है कि इंग्लैंड के बुरे दिन बुरी तरह आ गए है. लिज इस कंजर्वेटिव पार्टी का चुनाव बड़ी शिद्दोशहत से जीता था, केवल कुछ सप्ताहों में रिजाइन करने को मजबूर हो गई क्योंकि उस ने ब्रिटेन की ब्रैकिएट के बाद फसी दलदल में से निकालने के जो भी कदम उठाए वे आलू उबालने के लिए 5 पेज की रैसिपी की तरह के थे. उस से एक बहुत ही सीधासादा काम नहीं हुआ और उस ने नाहक महिला नेताओं के अगले कई सालों के लिए दरबाजे बंद कर दिए हैं.

इटली की जिर्योरियो मेलोनी, अमेरिका की हेनरी क्लिंटन और कमला हैरिस, भारत की मायावती, सुषमा स्वराज, प्रतिभा पाटिल, म्यांमार की आंग सान सू की तेजी से उभरी पर फिर गीले बारूद की तरह फुस्स हो गई. इंग्लैंड की मार्गरेट थैचर को आयरन लेडी कहा जाता था पर उन्हें भी बड़ी बेमुख्वती से निकाला गया. पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो बड़ी उम्मीदों से प्रधानमंत्री बनी पर थोड़े दिनों में अपनी चमक को खो बैठी थी. और हत्या नहीं हुई होती तो चुनावों में हार ही जातीं.

लिज ट्रस का कुछ ही दिनों में रिजाइन करना साबित करता हैै कि सत्ता के कैरीडोरों को संभालना किचन शैल्फ से कहीं ज्यादा उलझा हुआ है. सदियों से औरतों को इस तरह थोड़े से काम दिए गए हैं कि वे अंदर तक उतनी मजबूत नहीं बन पातीं जो एक शासक को होना चाहिए.

इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, जर्मनी की एंजेला मार्केल, न्यूजीलैंड जेङ्क्षसडा आर्डन, बांग्लादेश की शेख हसीना कुछ ऐसी हैं जिन्होंने अपनी जमीन बनाई पर इन में से कई को पद विरासत में मिला, अपनेआप उन्होंने जमीन से लड़ कर नहीं पाया.

ब्रिटेन आज आर्थिक संवाद में तो है ही, अब पौलिटिक उलझन में भी फंसा रहेगा क्योंकि जो भी प्रधानमंत्री बनेगा उसे अगले साल चुनाव लडऩे पड़ेंगे और इतने से दिनों में वह अपना काम कर पाएगा, उस का भरोसा नहीं है. अब ब्रिटेन के पौसीबल प्राइम मिनिस्टर पद के कैंडीडैटों में काफी सालों तक औरतों का नाम नहीं होगा, यह पक्का है.

दूसरे देशों में भी लिज इस का इस तरह की इंसल्ट के बाद पद छोडऩे का असर पड़ेगा और मीडिया नेताओं के रास्ते मुश्किल हो जाएंगे. जहां भी महिलाओं को चुना जाएगा अपने पिता, पति या रिश्तेदारों की वजह से या फिर एक कठपुतली की तरह. दुनिया में जो थोड़ेबहुत देशों में औरतें राजनीति में दबदबा बनाए रख रही हैं, उन में ज्यादातर सरोगैंट डाटर इनला या मदर इनला की तरह हैं जिन का रौब उन के चिकचिक करते  और हर काम में कमी निकालने और कोई एक स्ट्रीम व्यू रखने पर है. लिज ट्रस ने भी अपनी इकोनोमिक पौलिसी को एकदम एक्स्ट्रीय बिना सोचेसमझे बनाया था जो उन्हें ले डूबी.

Winter Special: सर्दियों में ऐसे करें पैरों की देखभाल

पैरों की सुंदरता के लिए जरूरी है कि चेहरे व हाथों की तरह पैरों पर भी विशेष ध्यान दिया जाए. पैरों की त्वचा मौसम से काफी हद तक प्रभावित होती है. इसलिए सर्दी के मौसम में हमारे पैरों को भी कुछ खास देखभाल की जरूरत होती है. स्नान से पहले पैरों पर तेल लगा कर त्वचा की मालिश करने से त्वचा मुलायम होती है. इस के लिए तिल का तेल या वेजीटेबल आयल इस्तेमाल किया जा सकता है. नहाने के तुरंत बाद त्वचा पर बौडी लोशन या क्रीम लगाने से त्वचा को नमी मिलती है. आयुर्वेद के अनुसार सर्दी के मौसम में मालिश के लिए सरसों का तेल अच्छा होता है लेकिन तिल का तेल पूरे साल इस्तेमाल किया जा सकता है. इस्तेमाल करने से पहले तेल को हलका गरम (कुनकुना) कर लें. ब्यूटी एक्सपर्ट शहनाज हुसैन प्री बाथ ट्रीटमैंट के रूप में लैमन टरमरिक क्रीम लगाने की सलाह देती हैं. यह क्रीम केवल त्वचा को मुलायम ही नहीं बनाती बल्कि इस के नियमित प्रयोग से त्वचा का रंग भी साफ होने लगता है. यह पानी में घुले क्लोरीन व साबुन के दुष्प्रभाव से त्वचा को शुष्क होने से बचाती है. हलदी में ऐंटीसैप्टिक होने का गुण भी है, जिस से यह इन्फैक्शन से भी बचाव करती है.

अगर पारंपरिक घरेलू प्री बाथ ट्रीटमैंट चाहें, तो बेसन के साथ थोड़ा सा दूध या दही और चुटकी भर हलदी मिला कर पेस्ट तैयार किया जा सकता है. इस पेस्ट को नहाने से पहले पैरों पर 20 मिनट तक लगा रहने दें. 20 मिनट के बाद पैरों पर पानी डाल कर इसे रगड़ते हुए छुड़ा लें. यह इतनी अच्छी तरह पैरों की सफाई करता है कि आप को साबुन लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

एडि़यों में दरारें

पैरों की शुष्क त्वचा के लिए 1 छोटा चम्मच शुद्ध ग्लिसरीन 50 मि.ली. गुलाबजल में डालें. इसे पैरों पर आधा घंटा लगाए रखने के बाद साफ पानी से धो कर पैर साफ कर लें. सर्दी में पैरों की एडि़यां सख्त होने या फटने की समस्या आम है. यह ठंडा और शुष्क मौसम सिर्फ त्वचा से नमी खत्म करने का ही कारण नहीं बनता, बल्कि यह रक्तसंचार में भी बाधा डालता है. परिणामस्वरूप पैरों की त्वचा खराब होती जाती है. शरीर के दूसरे हिस्सों के बजाय एडि़यों की त्वचा ज्यादा सख्त होती है. मोइश्चराइजर की कमी के कारण जीवित कोशिकाएं मृत कोशिकाओं में बदल जाती हैं जिस से डैड स्किन की परत बनती जाती है. यदि मोइश्चराइजर की कमी को दूर न किया जाए, तो एडि़यों में दरारें पड़ने लगती हैं और ये धीरेधीरे गहरी होने पर दर्द का कारण बन जाती हैं. एडि़यों की क्रीम द्वारा मालिश कर व ठंडी और शुष्क हवा से सुरक्षा कर पैरों की नियमित रूप से देखभाल कर के एडि़यों को फटने से रोका जा सकता है.

नियमित सफाई

रात को सोने से पहले हलके गरम (कुनकुने) पानी में थोड़ा नमक व शैंपू डाल कर पैरों को 20 मिनट तक डुबोए रखें. कुनकुना पानी एडि़यों की मृत त्वचा को मुलायम बनाता है. अब प्यूमिस स्टोन या हील स्क्रबर से एडि़यों को अच्छी तरह रगड़ें. मैटल स्क्रबर का इस्तेमाल न करें. पैरों को धोने के बाद क्रीम से त्वचा की मालिश करें. अब एडि़यों पर काफी मात्रा में क्रीम लगाएं. फिर एडि़यों पर साफ कौटन का कपड़ा, रुई या पट्टी बांधें. फिर सूती जुराबें पहन कर सो जाएं. इस से क्रीम एडि़यों पर लगी रहेगी व बिस्तर पर नहीं लगेगी. इस तरह सारी रात एडि़यों पर लगी हुई क्रीम एडि़यों की त्वचा को मुलायम बनाती है व मोइश्चराइजर की कमी भी पूरी करती है. इसे 1 सप्ताह तक दोहराएं. इस के अलावा बाजार में उपलब्ध फुट क्रीम लगा कर भी एडि़यों को किसी भी तरह के इन्फैक्शन से बचाया जा सकता है. यदि एडि़यों में दर्द हो या खून आता हो, तो डाक्टर से परामर्श करें.

इन टिप्स से घर को दें स्मार्ट लुक

अब वह जमाना गया जब डिजाइनर इंटीरियर होटलों या रेस्तराओं में ही देखने को मिलता था. अब तो घरों को भी उस के द्वारा मौडर्न लुक दिया जाने लगा है. यानी घरों के लिए भी वह आजकल ट्रैंड में है.

वी.एम. डिजाइन ग्रुप के संचालक, इंटीरियर डिजाइनर और सीनियर आर्किटैक्ट मोहन बताते हैं कि वैसे तो घर की थीम व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर करती है पर आज की बदलती जीवनशैली में हर कोई ट्रैंडी लुक ज्यादा पसंद करता है. अब बहुत से ऐसे क्रिएटिव तरीके हैं, जिन से आप अपने घर को नया लुक दे सकती हैं.

डिजाइनर दीवारें: पेंट कराने के बदलते तरीकों व अन्य कलाआें से दीवारों को बेहतरीन रूप में पेश किया जा सकता है.

मौडर्न पेंटिंग ट्रैंड्स: आजकल कौंबिनेशन कलर कराना ट्रैंड में है, जैसे डार्क रैड के साथ वाइट या ब्राउन कलर के साथ वाइट कलर का पेंट बहुत आकर्षक लगता है. कौंबिनेशन कलर में 2 दीवारें गहरे रंग की तो 2 दीवारें हलके रंग की करानी चाहिए.

ग्राफिकल पेंटिंग्स: ग्राफिकल पेंटिंग्स दीवारों को बहुत आकर्षक लुक देती हैं. इस में दीवार पर कई रंगों के पेंट के उपयोग से डौट्स, सर्क ल्स, क्यूब्स व स्ट्राइप्स को डिजाइन किया जाता है.

स्टाइलिश वौलपेपर: दीवारों पर लगने वाला वौलपेपर दीवारों की कमियों को तो छिपाता ही है, उन्हें ट्रैंडी लुक भी देता है. ऐनिमल प्रिंटेड, वुड लुकिंग, वैल्वेट फ्लोक्ड, ब्रिक्स ऐंड स्टोन वौलपेपर ट्रैंड में हैं, जिन्हें कमरों के फर्नीचर के रंग के अनुसार चुनना चाहिए. वौलपेपर लगाने से जहां दीवारों पर पेंट कराने क ी आवश्यकता नहीं रहती, वहीं इन्हें आसानी से साफ भी किया जा सकता है.

खास डिजाइनिंग:  किसी एक दीवार को स्टोन, टाइल्स, वुडवर्क से डिजाइन कराना बहुत अच्छा लुक देता है.

स्मार्ट फ्लोरिंग: फ्लोरिंग पूरे घर का लुक बदल देती है. आजकल लैमिनेटिड वुड फ्लोरिंग ट्रैंड में है. इस को साफ करना तो आसान होता ही है, इस पर स्क्रैच भी नहीं पड़ते. इस के अलावा मार्बल व टाइल्स फ्लोरिंग भी आकर्षक रंगों व शेप्स में उपलब्ध है. ऐक्रेलिक कारपेट, ऐंब्रौयडरी व स्टोन वर्क वाले कारपेट से भी फर्श को सजाया जा सकता है.

लाइटनिंग: घर को लग्जरी लुक देने के लिए हैंगिंग पेंडैंट, शैंडलेयर (छत से लटकने वाली ब्रांच्ड लाइटिंग), वौल लैंटर्न व वौल लाइट्स लगाएं, जिन्हें आमतौर पर ड्राइंगरूम में लगाया जाता है. ऐसेंट लाइटस किसी खास जगह को हाईलाइट करने के लिए लगाई जाती है. यह लिविंगरूम के लिए अच्छा औप्शन होती है.

आर्किटैक्ट और इंटीरियर डिजाइनर मोहन बताते हैं कि बैडरूम में डिम लाइट अच्छी लगती है, वहीं बैडरूम में फुट लाइट फिर से ट्रैंड में आ रही है. मोहन ईको फ्रैंडली लाइट जैसे सीएफएल इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं.

फंकी फर्नीचर: फंकी फर्नीचर की खासीयत इस का कलर कौंबिनेशन और क्रिएटिव शेप्स होती है. यह तरहतरह की स्टाइलिश शेप, जैसे राउंड, फ्लावर, लीफ शेप में बना होता है. फंकी सोफा, बैड, अलमारी, ड्रैसिंग टेबल आदि की ढेरों वैराइटी आप को मिल जाएंगी.

इंटीरियर डिजाइनर मोहन सुझाव देते हैं कि यदि फर्श हलके रंग का है, तो फर्नीचर गहरे रंग का अच्छा लगता है.

डिजाइनर हैंडलूम: आकर्षक बैडशीट, पिलो व सोफाकवर्स से घर को स्मार्ट लुक दें. आज बाजार में तरहतरह की करटेन ऐक्सैसरीज उपलब्ध हैं, जैसे टसल्स, डिजाइनर रौड्स इत्यादि. 2 कंट्रास्ट रंगों के परदे लगाना भी ट्रैंडी लुक देता है. आजकल परदों को कमरे को डिवाइड करने केलिए भी इस्तेमाल किया जाता है, जिस से कमरे का लुक बदल जाता है. परदे मौसम के अनुसार लगाएं. गरमियों में परदों का रंग लाइट होना चाहिए, जबकि सर्दियों में गहरे रंग के लगाएं. इस के अलावा सोफाकवर्स व कुशंस सोफे के रंग से कंट्रास्ट कलर में अच्छे लगते हैं.

ग्रीन लुक: घर को ग्रीन लुक देना ज्यादातर लोगों को अच्छा लगता है. इस से घर आकर्षक तो लगता ही है, ऐसा इंटीरियर तनाव को भी कम करता है.

इनसाइड प्लांट्स: कुछ पौधे ऐसे होते हैं, जिन्हें सूरज की सीधी रोशनी की जरूरत नहीं होती. वे सजावट व घर को प्राकृतिक लुक देने के लिए बहुत बढि़या औप्शन होते हैं. उन्हें बालकनी में सजाएं.

झूलते उपवन: इन्हें कलरफुल प्लास्टिक रस्सी या तार से बांध कर बालकनी या आंगन में लगाया जाता है. कुछ हैंगिंग प्लांट्स घर के अंदर भी लगाया जा सकता है. बाजार में बास्केट प्लांट्स, फ्लोटिंग कंटेनर प्लांट्स काफी रंगों व शेप्स में उपलब्ध हैं.

आधुनिक रसोई: किचन का इंटीरियर स्फूर्ति से पूर्ण होना चाहिए. तकनीक के जमाने में मौडर्न किचन ही सब की पसंद है.

मौड्यूलर किचन: आजकल मौड्यूलर किचन ट्रैंड में है. जंग व दीमक से बचाव के लिए लकड़ी के लैमिनेटिड व स्लाइडिंग तकनीक वाले दराज व कैबिनेट्स, आधुनिक स्टोव, इलैक्ट्रिक चिमनी, डिजाइनर सिंक व कंटेनर्स के साथ फ्लोरिंग और दीवारों को भी स्मार्ट लुक दिया जाता है. ये खुली व हवादार तो होती ही हैं, वहीं मैनेजेबल और ईको फ्रैंडली भी. मौड्यूलर किचन कई तरह के डिजाइंस व कलर में उपलब्ध है. इस की स्वचालित किचन ऐक्सैसरीज, जैसे ओटोमैटिक डिस्पोजल सिस्टम, गैस समाप्त होने व तापमान बढ़ने पर अलार्म की सुविधाएं इसे खास बनाती हैं.

किचन ऐक्सैसरीज: किचन में खासतौर पर इस तरह की ऐक्सैसरीज लगानी चाहिए, जो फैशनेबल होने के  साथसाथ उपयोगी भी हों.

चिमनी: चिमनी की कई वैराइटी उपलब्ध हैं. इस से धुआं इकट्ठा नहीं होता और तापमान नियंत्रित रहता है. कुछ चिमनियां औटोमैटिक क्लीनिंग करती हैं तो कुछ को स्वयं साफ करना पड़ता है.

आधुनिक बरनर: आज मल्टीपल व औटो स्पार्क बरनर का ट्रैंड है. इस में एकसाथ कई तरह की डिशेज बनाई जा सकती हैं. इसे चलाने के लिए लाइटर की भी आवश्यकता नहीं होती.

डिजाइनर क्रौकरी: बाजार में कई तरह की मेलामाइन व माइक्रोवेव क्रौकरी मिल जाएगी, जो आकर्षक डिजाइनों व कलर में उपलब्ध है. यह अनब्रेकेबल होने के कारण लंबे समय तक चलती है. इस के अलावा डिजाइनर बरतन स्टैंड, कंटेनर्स व सिंक भी उपलब्ध हैं.

दीवारें व फर्श: वैसे तो किचन की दीवारें आमतौर पर कैबिनेट से ही घिरी रहती हैं, इसलिए कैबिनेट पर औयलबेस्ड पेंट कराएं ताकि इन्हें आसानी से साफ किया जा सके. बाकी दीवारों को गंदगी से बचाने के लिए उन पर गहरे रंग की टाइल्स लगवाएं. गहरे रंग की टाइल्स से किचन का फर्श भी बड़ा लगता है. ऊपरी दीवारों पर कोई भी ब्राइट कलर करा सकती हैं, जैसे औरेंज,ग्रीन, चिली रैड आदि. स्टोन, ग्लास टाइल्स व वुड की फ्लोरिंग किचन में बहुत अच्छी लगती है. दीवारों पर ईको फ्रैंडली वशेबल पेंट कराना उचित रहता है.

स्मार्ट स्टूडियो अपार्टमैंट: छोटे परिवारों के लिए स्टूडियो अपार्टमैंट परफैक्ट रहते हैं. इन  में ड्राइंगरूम, बैडरूम को अलग से स्थान नहीं मिलता. इस में एक ही बड़ा लिविंगरूम बना होता है, जिस के साथ अलग से किचन व बाथरूम जुड़ा होता है. इसीलिए ऐसे अपार्टमैंट का इंटीरियर ऐसा होना चाहिए जो कम जगह को भी आकर्षक ढंग से पेश करे.

स्लीक फर्नीचर: वैसे तो स्लीक फर्नीचर सभी घरों में पसंद किया जाता है पर खासतौर से छोटे घरों में इसे उपयोग में लाना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि यह जगह तो कम घेरता ही है, ऐलिगैंट भी लगता है.

क्रिएटिव फर्नीचर: ऐसा फर्नीचर किसे अच्छा नहीं लगेगा, जो आप की जरूरत के अनुसार ढल जाए, जैसे सोफा कम बैड. इस के लिए आप को अलग से बैड नहीं लेना पड़ेगा. जहां दिन के समय यह सोफे का काम करेगा, वहीं रात को इसे पूरा खोल कर बैड बना लें. इसी तरह क्रिएटिव फोल्डेड टेबल, चेयर, स्टूल भी बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें जब मन करे बिछा लें बाकी समय कैबिनेट में रख दें.

फैशनेबल डिवाइडर:  आजकल बड़े हौल को पार्टीशन के जरिए डिजाइनर लुक दिया जाता है. स्टूडियो अपार्टमैंट में तो फैशनेबल डिवाइडर काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं, क्योंकि इस से प्राइवेसी भी मैंटेन होती है और एक कमरे को आसानी से 2 भागों में भी बांटा जा सकता है. आजकल  स्लाइडिंग ग्लास या फिर डिजाइनर वुड वौल के जरिए पार्टीशन करना ट्रैंड में है.

मिनिमल आर्ट ऐक्सैसरीज: मिनिमल आर्ट 1950 में प्रचलित हुआ था. तब यह सिर्फ मूर्तियों व पेंटिंग्स के संदर्भ में बाजार में आया था. यह आर्ट जापान के पारंपरिक डिजाइन व आर्किटैक्ट से प्रभावित है. ?बाजार में मिनिमल आर्ट वाले शोपीस, पेंटिंग्स, ऐंटिक्स के  साथसाथ फर्नीचर की भी काफी वैराइटी हैं. इन की खासीयत है कि ये स्लीक, स्टाइलिश व उत्तम गुणवत्ता वाले होते हैं. घर को सिंप्लिसिटी के साथ क्लासी लुक देते हैं. ऐसी ऐक्सैसरीज घर को ओवरलोड होने से बचाती हैं. कमरा भी देखने में बड़ा लगता है और क्रिएटिव भी. खासतौर से छोटे घरों को डिजाइन करने के लिए मिनिमल आर्ट ऐक्सैसरीज और भी सराहनीय हैं.

इन नई तकनीकों से आप डिजाइन कर सकती हैं एक स्मार्ट, यंगर लुकिंग व यूथफुल होम.

सूखा पत्ता: संगीता की कौनसी गलती बनी सजा

6 महीने पहले ही रवि की शादी पड़ोस के एक गांव में रहने वाले रघुवर की बेटी संगीता से हुई थी. उस के पिता मास्टर दयाराम ने खुशी के इस मौके पर पूरे गांव को भोज दिया था. अब से पहले गांव में इतनी धूमधाम से किसी की शादी नहीं हुई थी. मास्टर दयाराम दहेज के लोभी नहीं थे, तभी तो उन्होंने रघुवर जैसे रोज कमानेखाने वाले की बेटी से अपने एकलौते बेटे की शादी की थी. उन्हें तो लड़की से मतलब था और संगीता में वे सारे गुण थे, जो मास्टरजी चाहते थे. ढ़ाई के बाद जब रवि की कहीं नौकरी नहीं लगी, तो मास्टर दयाराम ने उस के लिए शहर में मोबाइल फोन की दुकान खुलवा दी. शहर गांव से ज्यादा दूर नहीं था. रवि मोटरसाइकिल से शहर आनाजाना करता था.

शादी से पहले संगीता का अपने गांव के एक लड़के मनोज के साथ जिस्मानी रिश्ता था. गांव वालों ने उन दोनों को एक बार रात के समय रामदयाल के खलिहान में सैक्स संबंध बनाते हुए रंगे हाथों पकड़ा था. गांव में बैठक हुई थी. दोनों को आइंदा ऐसी गलती न करने की सलाह दे कर छोड़ दिया गया था. संगीता के मांबाप गरीब थे. 2 बड़ी लड़कियों की शादी कर के उन की कमर पहले ही टूट हुई थी. उन की जिंदगी की गाड़ी किसी तरह चल रही थी. ऐसे में जब मास्टर दयाराम के बेटे रवि का संगीता के लिए रिश्ता आया, तो उन्हें अपनी बेटी की किस्मत पर यकीन ही नहीं हुआ था. उन्हें डर था कि कहीं गांव वाले मनोज वाली बात मास्टर दयाराम को न बता दें, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

वही बहू अब मनोज के साथ घर से भाग गई थी. रवि को फोन कर के बुलाया गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस की बीवी किसी गैर मर्द के साथ भाग सकती है, उस की नाक कटवा सकती है.

‘‘थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाए,’’ बिरादरी के मुखिया ने सलाह दी.

‘‘नहीं मुखियाजी…’’ मास्टर दयाराम ने कहा, ‘‘मैं रिपोर्ट दर्ज कराने के हक में नहीं हूं. रिपोर्ट दर्ज कराने से क्या होगा? अगर पुलिस उसे ढूंढ़ कर ले भी आई, तो मैं उसे स्वीकार कैसे कर पाऊंगा.

‘‘गलती शायद हमारी भी रही होगी. मेरे घर में उसे किसी चीज की कमी रही होगी, तभी तो वह सबकुछ ठुकरा कर चली गई. वह जिस के साथ भागी है, उसी के साथ रहे. मुझे अब उस से कोई मतलब नहीं है.’’

‘‘रवि से एक बार पूछ लो.’’

‘‘नहीं मुखियाजी, मेरा फैसला ही रवि का फैसला है.’’

शहर आ कर संगीता और मनोज किराए का मकान ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे. संगीता पैसे और गहने ले कर भागी थी, इसलिए उन्हें खर्चे की चिंता न थी. वे खूब घूमते, खूब खाते और रातभर खूब मस्ती करते. सुबह के तकरीबन 9 बज रहे थे. मनोज खाट पर लेटा हुआ था… तभी संगीता नहा कर लौटी. उस के बाल खुले हुए थे. उस ने छाती तक लहंगा बांध रखा था. मनोज उसे ध्यान से देख रहा था. साड़ी पहनने के लिए संगीता ने जैसे ही नाड़ा खोला, लहंगा हाथ से फिसल कर नीचे गिर गया. संगीता का बदन मनोज को बेचैन कर गया. उस ने तुरंत संगीता को अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बौछार कर दी. वह उसे खाट पर ले आया. ‘‘अरे… छोड़ो न. क्या करते हो? रातभर मस्ती की है, फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा,’’ संगीता कसमसाई.

‘‘तुम चीज ही ऐसी हो जानेमन कि जितना प्यार करो, उतना ही कम लगता है,’’ मनोज ने लाड़ में कहा.

संगीता समझ गई कि विरोध करना बेकार है, खुद को सौंपने में ही समझदारी है. वह बोली, ‘‘अरे, दरवाजा तो बंद कर लो. कोई आ जाएगा.’’ ‘‘इस वक्त कोई नहीं आएगा जानेमन. मकान मालकिन लक्ष्मी सेठजी के घर बरतन मांजने गई है. रही बात उस के पति कुंदन की, तो वह 10 बजे से पहले कभी घर आता नहीं. बैठा होगा किसी पान के ठेले पर. अब बेकार में वक्त बरबाद मत कर,’’ कह कर मनोज ने फिर एक सैकंड की देर नहीं की. वे प्रेमलीला में इतने मगन थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि बाहर आंगन से कुंदन की प्यासी निगाहें उन्हें देख रही थीं. दूसरे दिन कुंदन समय से पहले ही घर आ गया. जब से उस ने संगीता को मनोज के साथ बिस्तर पर मस्ती करते देखा था, तभी से उस की लार टपक रही थी. उस की बीवी लक्ष्मी मोटी और बदसूरत औरत थी. ‘‘मनोज नहीं है क्या भाभीजी?’’ मौका देख कर कुंदन संगीता के पास आ कर बोला.

‘‘नहीं, वह काम ढूंढ़ने गया है.’’

‘‘एक बात बोलूं भाभीजी… तुम बड़ी खूबसूरत हो.’’

संगीता कुछ नहीं बोली.

‘‘तुम जितनी खूबसूरत हो, तुम्हारी प्यार करने की अदा भी उतनी ही खूबसूरत है. कल मैं ने तुम्हें देखा, जब तुम खुल कर मनोज भैया को प्यार दे रही थीं…’’ कह कर उस ने संगीता का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मुझे भी एक बार खुश कर दो. कसम तुम्हारी जवानी की, किराए का एक पैसा नहीं लूंगा.’’

‘‘पागल हो गए हो क्या?’’ संगीता ने अपना हाथ छुड़ाया, पर पूरी तरह नहीं.

‘‘पागल तो नहीं हुआ हूं, लेकिन अगर तुम ने खुश नहीं किया तो पागल जरूर हो जाऊंगा,’’ कह कर उस ने संगीता को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘छोड़ो मुझे, नहीं तो शोर मचा दूंगी,’’ संगीता ने नकली विरोध किया.

‘‘शोर मचाओगी, तो तुम्हारा ही नुकसान होगा. शादीशुदा हो कर पराए मर्द के साथ भागी हो. पुलिस तुम्हें ढूंढ़ रही है. बस, खबर देने की देर है.’’ संगीता तैयार होने वाली ही थी कि अचानक किसी के आने की आहट हुई. शायद मनोज था. कुंदन बौखला कर चला गया. मनोज को शक हुआ, पर कुंदन को कुछ कहने के बजाय उस ने उस का मकान ही खाली कर दिया. उन के पैसे खत्म हो रहे थे. महंगा मकान लेना अब उन के बस में नहीं था. इस बार उन्हें छोटी सी खोली मिली. वह गंगाबाई की खोली थी. गंगाबाई चावल की मिल में काम करने जाती थी. उस का पति एक नंबर का शराबी था. उस के कोई बच्चा नहीं था.

मनोज और संगीता जवानी के खूब मजे तो ले रहे थे, पर इस बीच मनोज ने यह खयाल जरूर रखा कि संगीता पेट से न होने पाए. पैसे खत्म हो गए थे. अब गहने बेचने की जरूरत थी. सुनार ने औनेपौने भाव में उस के गहने खरीद लिए. मनोज को कपड़े की दुकान में काम मिला था, पर किसी बात को ले कर सेठजी के साथ उस का झगड़ा हो गया और उन्होंने उसे दुकान से निकाल दिया. उस के बाद तो जैसे उस ने काम पर न जाने की कसम ही खा ली थी. संगीता काम करने को कहती, तो वह भड़क जाता था. संगीता गंगाबाई के कहने पर उस के साथ चावल की मिल में जाने लगी. सेठजी संगीता से खूब काम लेते, पर गंगाबाई को आराम ही आराम था. वजह पूछने पर गंगाबाई ने बताया कि उस का सेठ एक नंबर का औरतखोर है. जो भी नई औरत काम पर आती है, वह उसे परेशान करता है. अगर तुम्हें भी आराम चाहिए, तो तुम भी सेठजी को खुश कर दो.

‘‘इस का मतलब गंगाबाई तुम भी…’’ संगीता ने हैरानी से कहा.

‘‘पैसों के लिए इनसान को समझौता करना पड़ता है. वैसे भी मेरा पति ठहरा एक नंबर का शराबी. उसे तो खुद का होश नहीं रहता, मेरा क्या खयाल करेगा. उस से न सही, सेठ से सही…’’

संगीता को गंगाबाई की बात में दम नजर आया. वह पराए मर्द के प्यार के चक्कर में भागी थी, तो किसी के भी साथ सोने में क्या हर्ज? अब सेठ किसी भी बहाने से संगीता को अपने कमरे में बुलाता और अपनी बांहों में भर कर उस के गालों को चूम लेता. संगीता को यह सब अच्छा न लगता. उस के दिलोदिमाग पर मनोज का नशा छाया हुआ था. वह सोचती कि काश, सेठ की जगह मनोज होता. पर अब तो वह लाचार थी. उस ने समझौता कर लिया था. कई बार वह और गंगाबाई दोनों सेठ को मिल कर खुश करती थीं. फिर भी उन्हें पैसे थोड़े ही मिलते. सेठ ऐयाश था, पर कंजूस भी. एक दिन मनोज बिना बताए कहीं चला गया. संगीता उस का इंतजार करती रही, पर वह नहीं आया. जिस के लिए उस ने ऐशोआराम की दुनिया ठुकराई, जिस के लिए उस ने बदनामी झेली, वही मनोज उसे छोड़ कर चला गया था.

संगीता पुरानी यादों में खो गई. मनोज संगीता के भैया नोहर का जिगरी दोस्त था. उस का ज्यादातर समय नोहर के घर पर ही बीतता था. वे दोनों राजमिस्त्री का काम करते थे. छुट्टी के दिन जीभर कर शराब पीते और संगीता के घर मुरगे की दावत चलती. मनोज की बातबात में खिलखिला कर हंसने की आदत थी. उस की इसी हंसी ने संगीता पर जादू कर दिया था. दोनों के दिल में कब प्यार पनपा, पता ही नहीं चला. संगीता 12वीं जमात तक पढ़ चुकी थी. उस के मांबाप तो उस की पढ़ाई 8वीं जमात के बाद छुड़ाना चाहते थे, पर संगीता के मामा ने जोर दे कर कहा था कि भांजी बड़ी खूबसूरत है. 12वीं जमात तक पढ़ लेगी, तो किसी अच्छे घर से रिश्ता आ जाएगा. पढ़ाई के बाद संगीता दिनभर घर में रहती थी. उस का काम घर का खाना बनाना, साफसफाई करना और बरतन मांजना था. मांबाप और भैया काम पर चले जाते थे. नोहर से बड़ी 2 और बहनें थीं, जो ब्याह कर ससुराल चली गई थीं.

एक दिन मनोज नशे की हालत में नोहर के घर पहुंच गया. दोपहर का समय था. संगीता घर पर अकेली थी. मनोज को इस तरह घर में आया देख संगीता के दिल की धड़कन तेज हो गई. उन्होंने इस मौके को गंवाना ठीक नहीं समझा और एकदूसरे के हो गए. इस के बाद उन्हें जब भी समय मिलता, एक हो जाते. एक दिन नोहर ने उन दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया. घर में खूब हंगामा हुआ, लेकिन इज्जत जाने के डर से संगीता के मांबाप ने चुप रहने में ही भलाई समझी, पर मनोज और नोहर की दोस्ती टूट गई  संगीता और मनोज मिलने के बहाने ढूंढ़ने लगे, पर मिलना इतना आसान नहीं था. एक दिन उन्हें मौका मिल ही गया और वे दोनों रामदयाल के खलिहान में पहुंच गए. वे दोनों अभी दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में समाए हुए थे कि गांव के कुछ लड़कों ने उन्हें पकड़ लिया.

समय गुजरा और एक दिन मास्टर दयाराम ने अपने बेटे रवि के लिए संगीता का हाथ मांग लिया. दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से हो गई. संगीता ससुराल आ गई, पर उस का मन अभी भी मनोज के लिए बेचैन था. पति के घर की सुखसुविधाएं उसे रास नहीं आती थीं. दोनों के बीच मोबाइल फोन से बातचीत होने लगी. संगीता की सास जब अपने गांव गईं, तो उस ने मनोज को फोन कर के बुला लिया और वे दोनों चुपके से निकल भागे. अब संगीता पछतावे की आग में झुलस रही थी. उसे अपनी करनी पर गुस्सा आ रहा था. गरमी का मौसम था. रात के तकरीबन 10 बज रहे थे. उसे ससुराल की याद आ गई. ससुराल में होती, तो वह कूलर की हवा में चैन की नींद सो रही होती. पर उस ने तो अपने लिए गड्ढा खोद लिया था.

उसे रवि की याद आ गई. कितना अच्छा था उस का पति. किसी चीज की कमी नहीं होने दी उसे. पर बदले में क्या दिया… दुखदर्द, बेवफाई. संगीता सोचने लगी कि क्या रवि उसे माफ कर देगा? हांहां, जरूर माफ कर देगा. उस का दिल बहुत बड़ा है. वह पैर पकड़ कर माफी मांग लेगी. बहुत दयालु है वह. संगीता ने अपनी पुरानी दुनिया में लौटने का मन बना लिया. ‘‘गंगाबाई, मैं अपने घर वापस जा रही हूं. किराए का कितना पैसा हुआ है, बता दो?’’ संगीता ने कहा.

‘‘संगीता, मैं ने तुम्हें हमेशा छोटी बहन की तरह माना है. मैं तेरी परेशानी जानती हूं. ऐसे में मैं तुम से पैसे कैसे ले सकती हूं. मैं भी चाहती हूं कि तू अपनी पुरानी दुनिया में लौट जा. मेरा आशीर्वाद है कि तू हमेशा सुखी रहे.’’ मन में विश्वास और दिल के एक कोने में डर ले कर जब संगीता बस से उतरी, तो उस का दिल जोर से धड़क रहा था. वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे पहचाने, इसलिए उस ने साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढक लिया था. जैसे ही वह घर के पास पहुंची, उस के पांव ठिठक गए. रवि ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया तो… उस ने उस दोमंजिला पक्के मकान पर एक नजर डाली. लगा जैसे अभीअभी रंगरोगन किया गया हो. जरूर कोई मांगलिक कार्यक्रम वगैरह हुआ होगा.

‘‘बहू…’’ तभी संगीता के कान में किसी औरत की आवाज गूंजी. वह आवाज उस की सास की थी. उस का दिल उछला. सासू मां ने उसे घूंघट में भी पहचान लिया था. वह दौड़ कर सासू मां के पैरों में गिरने को हुई, लेकिन इस से पहले ही उस की सारी खुशियां पलभर में गम में बदल गईं.

‘‘बहू, रवि को ठीक से पकड़ कर बैठो, नहीं तो गिर जाओगी.’’

संगीता ने देखा, रवि मोटरसाइकिल पर सवार था और पीछे एक औरत बैठी हुई थी. संगीता को यह देख कर धक्का लगा. इस का मतलब रवि ने दूसरी शादी कर ली. उस का इंतजार भी नहीं किया. इस से पहले कि वह कुछ सोच पाती, मोटरसाइकिल फर्राटे से उस के बगल से हो कर निकल गई. संगीता ने उन्हें देखा. वे दोनों बहुत खुश नजर आ रहे थे. तभी वहां एक साइकिल सवार गुजरा. संगीता ने उसे रोका, ‘‘चाचा, अभी रवि के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर गई वह औरत कौन है?’’

‘‘अरे, उसे नहीं जानती बेटी? लगता है कि इस गांव में पहली बार आई हो. वह तो रवि बाबू की नईनवेली दुलहन है.’’

‘‘नईनवेली दुलहन?’’

‘‘हां बेटी, वह रवि बाबू की दूसरी पत्नी है. पहली पत्नी बड़ी चरित्रहीन निकली. अपने पुराने प्रेमी के साथ भाग गई. वह बड़ी बेहया थी. इतने अच्छे परिवार को ठोकर मार कर भागी है. कभी सुखी नहीं रह पाएगी,’’ इतना कह कर वह साइकिल सवार आगे बढ़ गया. संगीता को लगा, उस के पैर तले की जमीन खिसक रही है और वह उस में धंसती चली जा रही है. अब उस से एक पल भी वहां रहा नहीं गया. जिस दुनिया में लौटी थी, वहां का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो चुका था. उसे चारों तरफ अंधेरा नजर आने लगा था. तभी संगीता को अंधेरे में उम्मीद की किरण नजर आने लगी… अपना मायका. सारी दुनिया भले ही उसे ठुकरा दे, पर मायका कभी नहीं ठुकरा सकता. भारी मन लिए वह मायके के लिए निकल पड़ी. किवाड़ बंद था. संगीता ने दस्तक दी. मां ने किवाड़ खोला.

‘‘मां…’’ वह जैसे ही दौड़ कर मां से लिपटने को हुई, पर मां के इन शब्दों ने उसे रोक दिया, ‘‘अब यहां क्या लेने आई है?’’

‘‘मां, मैं यहां हमेशा के लिए रहने आई हूं.’’

‘‘हमारी नाक कटा कर भी तुझे चैन नहीं मिला, जो बची इज्जत भी नीलाम करने आई है. यह दरवाजा अब तेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो चुका है.’’

‘‘नहीं मां….’’ वह रोने लगी, ‘‘ऐसा मत कहो.’’

‘‘तू हम सब के लिए मर चुकी है. अच्छा यह है कि तू कहीं और चली जा,’’ कह कर मां ने तुरंत किवाड़ बंद कर दिया.

संगीता किवाड़ पीटने लगी और बोली, ‘‘दरवाजा खोलो मां… दरवाजा खोलो मां…’’ पर मां ने दरवाजा नहीं खोला. भीतर मां रो रही थी और बाहर बेटी. संगीता को लगा, जैसे उस का वजूद ही खत्म हो चुका है. उस की हालत पेड़ से गिरे सूखे पत्ते जैसी हो गई है, जिसे बरबादी की तेज हवा उड़ा ले जा रही है. दूर, बहुत दूर. इस सब के लिए वह खुद ही जिम्मेदार थी. उस से अब और आगे बढ़ा नहीं गया. वह दरवाजे के सामने सिर पकड़ कर बैठ गई और सिसकने लगी. अब गंगाबाई के पास लौटने और सेठ को खुश रखने के अलावा कोई चारा नहीं था… पर कब तक?

इस हाथ ले, उस हाथ दे: क्या अपनी गलती समझ पाया वरुण

वरुण और अनुज के पिता ने जीवन भर की भागदौड़ के बाद एक बड़ा कारखाना लगाया था. उन की रेडीमेड कपड़ों की फैक्टरी तिरुपुर में थी, जहां मुंबई से रेल में जाने पर काफी समय लगता था. हवाई जहाज से जाने पर पहले कोयंबटूर जाना पड़ता था. उन दिनों मुंबई से कोयंबटूर के लिए हफ्ते में केवल एक उड़ान थी, अत: वरुण प्राय: वहां महीने में एक बार जाता था. वरुण  को कपड़ों के एक्सपोर्ट के सिलसिले में आस्टे्रलिया व अमेरिका भी साल में 2-3 बार जाना पड़ता. पिता मुंबई आफिस व ऊपर का सारा काम देखते, वरुण फैक्टरी व भागदौड़ का काम देखता था. अनुज अपने बड़े भाई वरुण से करीब 10 साल छोटा था और अब कालिज में दाखिल हो चुका था.

वरुण का विवाह काफी साल पहले साधना से हो चुका था. उस के 1 लड़का व 2 लड़कियां यानी कुल 3 बच्चे थे. तीसरे बच्चे के होने तक साधना पूजापाठ, व्रतउपवास व तीर्थयात्रा आदि में अधिक समय बिताने लगी, धार्मिक मनोवृत्ति उस की शुरू से ही थी. पतिपत्नी की रुचियों में भारी अंतर होने के चलते ही दोनों में काफी तनातनी रहने लगी.

वरुण का धंधा एक्सपोर्ट का था और चेंबर औफ कौमर्स की सभाओंपार्टियों में उसे हफ्ते में एक बार तो जाना ही पड़ता था. ऐसी पार्टियों में शराब व डांस आदि का सिलसिला जोर से चलता था. इस वातावरण में धार्मिक प्रवृत्ति की साधना का दम घुटता था. यह देख कर कि कोई मर्द दूसरी औरत को छाती से चिपका कर नाचता. चूंकि यह सब आम दस्तूर की बातें थीं, जो उसे कतई रास न आतीं.

शुरुआत में तो साधना अकेली टेबल पर बैठी रहती और वरुण दूसरी औरतों के साथ नाचता रहता. साधना न तो इतनी देर रात की कायल थी, न ही वह ससुर व बच्चों को अकेले छोड़ना चाहती थी. अब तो उस ने ऐसी पार्टियों में जाना ही बंद कर दिया तो वरुण पहले से और भी अधिक खुल गया और 1-2 महिलाओं से उस का संबंध भी हो गया, जिस के लिए उसे छोटे होटलों में जाना पड़ता. धंधे के नाम पर सब ढका रहता.

अनुज अब एम.बी.ए. कर चुका था. शादी के बाद वह घर के धंधे में ही हाथ बटाना चाहता था. वरुण ने शुरूशुरू में तो उसे ऊपर का काम बताया, पर बाद में उसे फैक्टरी को संभालने के काम से तिरुपुर भेजने लगा. अनुज का विवाह चंदा से हुआ, जो ग्वालियर के एक व्यापारी की लड़की थी.

चंदा साधना से ठीक उलटे स्वभाव की निकली. उसे आएदिन पार्टियों में जाने, नए फैशन व गहनों का बेहद शौक था. उस की उलझन सामने आने लगी क्योंकि अनुज अब ज्यादातर कंपनी के काम से बाहर रहने लगा. एकाध बार बेहद आवश्यक पार्टी में वरुण साधना के न जाने पर चंदा को ले गया. साथ में 1-2 बार दोनों ने डांस भी किया जिस से चंदा की झिझक जाती रही.

शेर जब खून चख लेता है तो फिर उस के पीछे पड़ जाता है. पिता के साथ दोनों भाई एक ही मकान में रहते थे. दोनों भाइयों के रहने के हिस्से अलगअलग थे, पर सभी कमरे ड्राइंगरूम में खुलते थे. वरुण ऊपर से तो शालीन नजर आता, पर एकांत में चंदा से थोड़ाबहुत मजाक कर बैठता. चंदा को इस प्रकार की छेड़खानी अच्छी लगती थी, उस से आगे दोनों ने ही कुछ सोचाविचारा न था.

एक दिन शाम को क्लब में दोनों ही एकाएक स्वीमिंग पूल में साथ हो लिए. वरुण वैसे तो अकसर सुबह क्लब जाता था और चंदा कभीकभी शाम को. साधना यथावत शाम को कहीं न कहीं भजनकीर्तन में जाती थी और भोजन के वक्त आ जाती. उसे इस मामले में कुछ भी सुराग न था, वह अपने नित्यकर्म में मस्त रहती.

स्वीमिंग देर शाम को हो रही थी, अत: पानी के नीचे क्या हो रहा है, दिखाई नहीं देता. पहले तो दोनों साधारण गपशप करते रहे, फिर खेलखेल में तैरने व दोनों के बीच अठखेलियां होने लगीं. वरुण ने पानी में ही उस के वक्ष पर इस तरह हाथ लगाया, जैसे अनजाने में लगा हो. इस पर चंदा मुसकरा कर और तेजी से तैरने लगी. इस प्रकार दोनों तैर कर बगल में बने हुए गरम पानी के जकूजी में गए, जहां तैरने के  बाद नहाने से पहले जा कर तैरने वाले रिलैक्स होते थे.

वरुण चंदा के पांव धीरेधीरे सहलाने लगा, मानो उस की थकावट मिटा रहा हो. बाद में वह चंदा का हाथ ले कर अपने शरीर पर फिरवाने लगा. उत्तेजना में दोनों काफी देर तक एकदूसरे के साथ अंगीकरण के बाद जब शांत हुए तो चुपचाप अपनाअपना टावल ले कर चल दिए. दोनों अलगअलग गाडि़यों में जैसे वहां आए थे, वैसे ही आगेपीछे घर पहुंचे. अब तो दोनों का हौसला बढ़ गया. देर रात को सब के सोने के बाद वरुण अपना डे्रसिंग गाउन पहन कर इस तरह कमरे से निकलता मानो ड्राइंगरूम में जा रहा हो. घंटे आधघंटे मस्ती व आलिंगन के बाद वह वापस आ कर सो जाता.

साधना को पहले तो काफी अरसे तक कुछ पता नहीं चला. इन दिनों वरुण का ब्लड प्रेशर भी हाई रहने लगा था और उस की शराब व जिंदगी के तौरतरीके से डाक्टर ने वार्षिक टेस्ट होने पर उसे चेतावनी दी कि उसे अब उत्तेजनात्मक व भागदौड़ की टेंशन से बचना होगा. दवा लेने के बावजूद वरुण का ब्लड प्रेशर 180/120 पर रहने लगा, पर जीवन को नियंत्रित करना कोई सहज खेल नहीं है. यू टर्न के लिए बहुत धीमी गति व काफी फासले की जरूरत रहती है, पर इस के लिए मन में आभास होने पर दृढ़ निश्चय करना होता है जोकि उस के बस की बात नहीं थी.

एक रात को सहसा पलंग सूना देख साधना देखने गई कि कहीं वरुण की तबीयत तो नहीं खराब हो गई. थोड़ी देर में वह चंदा के कमरे से निकला तो साधना को मानो सांप ही सूंघ गया. वह गश खा कर बेहोश हो गिर गई. ललाट फटने से खून बह निकला. बड़ी मुश्किल से अस्पताल में टांके व मरहमपट्टी करवा कर वरुण उसे खिसियाए मुंह घर ले आया. उस ने साधना से वादा भी किया कि यह भूल अब कभी नहीं होगी, वह तो केवल 5 मिनट के लिए चंदा के कमरे से कुछ आवाज आने पर उसे देखने गया था. और वह कहता भी क्या?

साधना गंभीर व समझदार तो थी ही, बात को बढ़ाने में उस ने कोई लाभ नहीं समझा. वरुण अब चंदा से कतरा कर आफिस की एक लड़की के साथ किसी होटल में जाता. एक बार उसे इसी क्रिया में जबरदस्त हार्टअटैक आया और बेहोशी की हालत में लड़की ने उसे अस्पताल में भरती करा कर घर वालों को फोन किया कि दफ्तर में वरुण का जी घबराने से वह उसे डाक्टर के पास ले जा रही थी कि रास्ते में ही हालत खराब हो गई.

वरुण को हार्टअटैक बहुत जोर का पड़ा था, साथ ही ब्लड प्रेशर की मार से दाएं अंग में लकवा आ गया. 52 साल की उम्र में ही उस के जीवन में उल्कापात हुआ, करीब 6 महीने की साधना व फिजियोथेरैपी से वह बच तो गया, पर चलनेफिरने व यात्रा करने से मजबूर हो गया. अब वह घर पर ही पड़ा रहता और साधना उस की मन से सेवा करती. रात के लिए एक नर्स अलग से रखी गई थी, ताकि 24 घंटे वरुण की देखभाल हो सके.

पिता ने अनुज को कंपनी का चार्ज दे दिया. साधना ने एक दिन भी पति को खरीखोटी नहीं सुनाई, बल्कि धीरज व धैर्य से उसे रहने की हिदायत देती रहती और मदद करती रहती. वरुण अब देखने में 65-70 साल का दिखने लगा है. वापस पुरानी ऊर्जा व स्फूर्ति अब उसे कभी नहीं मिलेगी, ऐसा सभी डाक्टरों ने कह दिया.

जानें नवजात की देखभाल से जुड़े मिथक

किसी भी महिला के जीवन में मातृत्व दुनिया का सब से अद्भुत अनुभव होता है. जब कोईर् महिला पहली बार मां बनती है, तो अपनी इस अनमोल खुशी का ध्यान रखने के बारे में उसे अपने करीबियों से ढेरों सलाहें मिलना स्वाभाविक है. मगर एक समझदार मां होने के नाते यह जरूरी है कि वह विशेषज्ञ की राय के अनुसार ही चले, क्योंकि एक छोटा सा निर्णय भी बच्चे के बढ़ने की उम्र पर असर डाल सकता है.  मांओं में नवजातों की देखभाल को ले कर निम्न मिथक पाए जाते हैं:

नवजात की दिनचर्या तय करना अच्छा होता है:

हर मां का अपने बच्चे के जीवन में थोड़ा अनुशासन लाने की कोशिश करना स्वाभाविक है. हालांकि बच्चे को दिनचर्या के लिए दबाव डालना आसान नहीं है. बड़ों से सलाह लेने और किताबें पढ़ने के बावजूद आमतौर पर शिशु के सोने का पैटर्न मांओं के लिए सब से अधिक परेशानी का सबब बनता है.  ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कुछकुछ घंटों के अंतराल पर सोने के कारण हर 3-4 घंटे में स्तनपान कराना होता है. बच्चे के बड़े होने के साथसाथ इस में धीरेधीरे बदलाव आने लगता है.

दांत आने पर बुखार होता है:

हर मां को यह गलतफहमी होती है कि जब भी नवजात को बुखार आता है, तो वह दांत आने की वजह से हो रहा होता है, लेकिन सामान्यतौर पर दांत 6 से 24 महीने के बीच निकलते हैं. यह एक ऐसा समय होता है जब बच्चों में भी संक्रमण होने की आशंका होती है. इसलिए मांओं के लिए यही बेहतर है कि अनुमान लगाने के बजाय कुछ दिन शिशु पर निगरानी रखें और यदि लक्षण बने रहते हैं, तो फिर डाक्टर को दिखाएं.  बहुत अधिक स्तनपान कराना अच्छा नहीं होता: एक नवजात शिशु की मां को हर डाक्टर की ओर से सब से पहली सलाह यही होती है कि वह अपने नवजात को स्तनपान कराए. स्तनपान करवाना प्राकृतिक रूप से सब से बुनियादी चीज होती है, जो नवजातों की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. मां का दूध सिर्फ शिशु का पेट भरने के लिए भोजन ही नहीं है, बल्कि इस में बढ़ने और विकास करने के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्त्व भी मौजूद होते हैं. स्तनपान कराने के कई फायदे हैं, जिन में से कुछ इस प्रकार हैं- यह बच्चों में बारबार बीमार पड़ने को कम करता है, इस से मांओं को गर्भावस्था के बाद रिकवर, वजन कम करने, ब्रैस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर के खतरे को कम करने में मदद मिलती है.

मां का दूध बच्चों की प्यास नहीं  बुझाता :

नवजातों को ले कर सब से बड़े मिथकों में से एक यह है कि खासकर गरमी के मौसम में यह जरूरी है कि बच्चों को हाइड्रेट बनाए रखने के लिए सही मात्रा में पानी दिया जाए. बहुत  कम लोगों को पता है कि मां के दूध में 88% तक पानी होता है और बच्चों के स्वास्थ्य के हित  में यह जरूरी है कि जब तक बच्चा 6 महीने  का न हो जाए, उसे सिर्फ मां का दूध ही दिया जाना चाहिए.  आमतौर पर नवजातों को शहद पिलाने की आदत होती है, यह माना जाता है कि मां के दूध की तुलना में यह पोषक तत्त्वों का बेहतर स्रोत होता है. यह पूरी तरह से आधारहीन है. ऐसा साबित हुआ है कि शिशुओं के लिए यह अधिक नुकसानदायक होता है, क्योंकि इस से कई गंभीर संक्रमण हो सकते हैं.

शिशु के 6 माह का होने तक उसे सिर्फ मां का दूध ही पिलाया जाना चाहिए. 6 महीनों के बाद उसे कुछ सेहतमंद पूरक आहार देने की शुरुआत की जा सकती है जैसेकि पकी रागी, चावल, उबली सब्जियां, अंडे, अनाज आदि.

– डा. लीना एन. श्रीधर, अपोलो क्रैडल

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