इन टिप्स से घर को दें स्मार्ट लुक

अब वह जमाना गया जब डिजाइनर इंटीरियर होटलों या रेस्तराओं में ही देखने को मिलता था. अब तो घरों को भी उस के द्वारा मौडर्न लुक दिया जाने लगा है. यानी घरों के लिए भी वह आजकल ट्रैंड में है.

वी.एम. डिजाइन ग्रुप के संचालक, इंटीरियर डिजाइनर और सीनियर आर्किटैक्ट मोहन बताते हैं कि वैसे तो घर की थीम व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर करती है पर आज की बदलती जीवनशैली में हर कोई ट्रैंडी लुक ज्यादा पसंद करता है. अब बहुत से ऐसे क्रिएटिव तरीके हैं, जिन से आप अपने घर को नया लुक दे सकती हैं.

डिजाइनर दीवारें: पेंट कराने के बदलते तरीकों व अन्य कलाआें से दीवारों को बेहतरीन रूप में पेश किया जा सकता है.

मौडर्न पेंटिंग ट्रैंड्स: आजकल कौंबिनेशन कलर कराना ट्रैंड में है, जैसे डार्क रैड के साथ वाइट या ब्राउन कलर के साथ वाइट कलर का पेंट बहुत आकर्षक लगता है. कौंबिनेशन कलर में 2 दीवारें गहरे रंग की तो 2 दीवारें हलके रंग की करानी चाहिए.

ग्राफिकल पेंटिंग्स: ग्राफिकल पेंटिंग्स दीवारों को बहुत आकर्षक लुक देती हैं. इस में दीवार पर कई रंगों के पेंट के उपयोग से डौट्स, सर्क ल्स, क्यूब्स व स्ट्राइप्स को डिजाइन किया जाता है.

स्टाइलिश वौलपेपर: दीवारों पर लगने वाला वौलपेपर दीवारों की कमियों को तो छिपाता ही है, उन्हें ट्रैंडी लुक भी देता है. ऐनिमल प्रिंटेड, वुड लुकिंग, वैल्वेट फ्लोक्ड, ब्रिक्स ऐंड स्टोन वौलपेपर ट्रैंड में हैं, जिन्हें कमरों के फर्नीचर के रंग के अनुसार चुनना चाहिए. वौलपेपर लगाने से जहां दीवारों पर पेंट कराने क ी आवश्यकता नहीं रहती, वहीं इन्हें आसानी से साफ भी किया जा सकता है.

खास डिजाइनिंग:  किसी एक दीवार को स्टोन, टाइल्स, वुडवर्क से डिजाइन कराना बहुत अच्छा लुक देता है.

स्मार्ट फ्लोरिंग: फ्लोरिंग पूरे घर का लुक बदल देती है. आजकल लैमिनेटिड वुड फ्लोरिंग ट्रैंड में है. इस को साफ करना तो आसान होता ही है, इस पर स्क्रैच भी नहीं पड़ते. इस के अलावा मार्बल व टाइल्स फ्लोरिंग भी आकर्षक रंगों व शेप्स में उपलब्ध है. ऐक्रेलिक कारपेट, ऐंब्रौयडरी व स्टोन वर्क वाले कारपेट से भी फर्श को सजाया जा सकता है.

लाइटनिंग: घर को लग्जरी लुक देने के लिए हैंगिंग पेंडैंट, शैंडलेयर (छत से लटकने वाली ब्रांच्ड लाइटिंग), वौल लैंटर्न व वौल लाइट्स लगाएं, जिन्हें आमतौर पर ड्राइंगरूम में लगाया जाता है. ऐसेंट लाइटस किसी खास जगह को हाईलाइट करने के लिए लगाई जाती है. यह लिविंगरूम के लिए अच्छा औप्शन होती है.

आर्किटैक्ट और इंटीरियर डिजाइनर मोहन बताते हैं कि बैडरूम में डिम लाइट अच्छी लगती है, वहीं बैडरूम में फुट लाइट फिर से ट्रैंड में आ रही है. मोहन ईको फ्रैंडली लाइट जैसे सीएफएल इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं.

फंकी फर्नीचर: फंकी फर्नीचर की खासीयत इस का कलर कौंबिनेशन और क्रिएटिव शेप्स होती है. यह तरहतरह की स्टाइलिश शेप, जैसे राउंड, फ्लावर, लीफ शेप में बना होता है. फंकी सोफा, बैड, अलमारी, ड्रैसिंग टेबल आदि की ढेरों वैराइटी आप को मिल जाएंगी.

इंटीरियर डिजाइनर मोहन सुझाव देते हैं कि यदि फर्श हलके रंग का है, तो फर्नीचर गहरे रंग का अच्छा लगता है.

डिजाइनर हैंडलूम: आकर्षक बैडशीट, पिलो व सोफाकवर्स से घर को स्मार्ट लुक दें. आज बाजार में तरहतरह की करटेन ऐक्सैसरीज उपलब्ध हैं, जैसे टसल्स, डिजाइनर रौड्स इत्यादि. 2 कंट्रास्ट रंगों के परदे लगाना भी ट्रैंडी लुक देता है. आजकल परदों को कमरे को डिवाइड करने केलिए भी इस्तेमाल किया जाता है, जिस से कमरे का लुक बदल जाता है. परदे मौसम के अनुसार लगाएं. गरमियों में परदों का रंग लाइट होना चाहिए, जबकि सर्दियों में गहरे रंग के लगाएं. इस के अलावा सोफाकवर्स व कुशंस सोफे के रंग से कंट्रास्ट कलर में अच्छे लगते हैं.

ग्रीन लुक: घर को ग्रीन लुक देना ज्यादातर लोगों को अच्छा लगता है. इस से घर आकर्षक तो लगता ही है, ऐसा इंटीरियर तनाव को भी कम करता है.

इनसाइड प्लांट्स: कुछ पौधे ऐसे होते हैं, जिन्हें सूरज की सीधी रोशनी की जरूरत नहीं होती. वे सजावट व घर को प्राकृतिक लुक देने के लिए बहुत बढि़या औप्शन होते हैं. उन्हें बालकनी में सजाएं.

झूलते उपवन: इन्हें कलरफुल प्लास्टिक रस्सी या तार से बांध कर बालकनी या आंगन में लगाया जाता है. कुछ हैंगिंग प्लांट्स घर के अंदर भी लगाया जा सकता है. बाजार में बास्केट प्लांट्स, फ्लोटिंग कंटेनर प्लांट्स काफी रंगों व शेप्स में उपलब्ध हैं.

आधुनिक रसोई: किचन का इंटीरियर स्फूर्ति से पूर्ण होना चाहिए. तकनीक के जमाने में मौडर्न किचन ही सब की पसंद है.

मौड्यूलर किचन: आजकल मौड्यूलर किचन ट्रैंड में है. जंग व दीमक से बचाव के लिए लकड़ी के लैमिनेटिड व स्लाइडिंग तकनीक वाले दराज व कैबिनेट्स, आधुनिक स्टोव, इलैक्ट्रिक चिमनी, डिजाइनर सिंक व कंटेनर्स के साथ फ्लोरिंग और दीवारों को भी स्मार्ट लुक दिया जाता है. ये खुली व हवादार तो होती ही हैं, वहीं मैनेजेबल और ईको फ्रैंडली भी. मौड्यूलर किचन कई तरह के डिजाइंस व कलर में उपलब्ध है. इस की स्वचालित किचन ऐक्सैसरीज, जैसे ओटोमैटिक डिस्पोजल सिस्टम, गैस समाप्त होने व तापमान बढ़ने पर अलार्म की सुविधाएं इसे खास बनाती हैं.

किचन ऐक्सैसरीज: किचन में खासतौर पर इस तरह की ऐक्सैसरीज लगानी चाहिए, जो फैशनेबल होने के  साथसाथ उपयोगी भी हों.

चिमनी: चिमनी की कई वैराइटी उपलब्ध हैं. इस से धुआं इकट्ठा नहीं होता और तापमान नियंत्रित रहता है. कुछ चिमनियां औटोमैटिक क्लीनिंग करती हैं तो कुछ को स्वयं साफ करना पड़ता है.

आधुनिक बरनर: आज मल्टीपल व औटो स्पार्क बरनर का ट्रैंड है. इस में एकसाथ कई तरह की डिशेज बनाई जा सकती हैं. इसे चलाने के लिए लाइटर की भी आवश्यकता नहीं होती.

डिजाइनर क्रौकरी: बाजार में कई तरह की मेलामाइन व माइक्रोवेव क्रौकरी मिल जाएगी, जो आकर्षक डिजाइनों व कलर में उपलब्ध है. यह अनब्रेकेबल होने के कारण लंबे समय तक चलती है. इस के अलावा डिजाइनर बरतन स्टैंड, कंटेनर्स व सिंक भी उपलब्ध हैं.

दीवारें व फर्श: वैसे तो किचन की दीवारें आमतौर पर कैबिनेट से ही घिरी रहती हैं, इसलिए कैबिनेट पर औयलबेस्ड पेंट कराएं ताकि इन्हें आसानी से साफ किया जा सके. बाकी दीवारों को गंदगी से बचाने के लिए उन पर गहरे रंग की टाइल्स लगवाएं. गहरे रंग की टाइल्स से किचन का फर्श भी बड़ा लगता है. ऊपरी दीवारों पर कोई भी ब्राइट कलर करा सकती हैं, जैसे औरेंज,ग्रीन, चिली रैड आदि. स्टोन, ग्लास टाइल्स व वुड की फ्लोरिंग किचन में बहुत अच्छी लगती है. दीवारों पर ईको फ्रैंडली वशेबल पेंट कराना उचित रहता है.

स्मार्ट स्टूडियो अपार्टमैंट: छोटे परिवारों के लिए स्टूडियो अपार्टमैंट परफैक्ट रहते हैं. इन  में ड्राइंगरूम, बैडरूम को अलग से स्थान नहीं मिलता. इस में एक ही बड़ा लिविंगरूम बना होता है, जिस के साथ अलग से किचन व बाथरूम जुड़ा होता है. इसीलिए ऐसे अपार्टमैंट का इंटीरियर ऐसा होना चाहिए जो कम जगह को भी आकर्षक ढंग से पेश करे.

स्लीक फर्नीचर: वैसे तो स्लीक फर्नीचर सभी घरों में पसंद किया जाता है पर खासतौर से छोटे घरों में इसे उपयोग में लाना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि यह जगह तो कम घेरता ही है, ऐलिगैंट भी लगता है.

क्रिएटिव फर्नीचर: ऐसा फर्नीचर किसे अच्छा नहीं लगेगा, जो आप की जरूरत के अनुसार ढल जाए, जैसे सोफा कम बैड. इस के लिए आप को अलग से बैड नहीं लेना पड़ेगा. जहां दिन के समय यह सोफे का काम करेगा, वहीं रात को इसे पूरा खोल कर बैड बना लें. इसी तरह क्रिएटिव फोल्डेड टेबल, चेयर, स्टूल भी बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें जब मन करे बिछा लें बाकी समय कैबिनेट में रख दें.

फैशनेबल डिवाइडर:  आजकल बड़े हौल को पार्टीशन के जरिए डिजाइनर लुक दिया जाता है. स्टूडियो अपार्टमैंट में तो फैशनेबल डिवाइडर काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं, क्योंकि इस से प्राइवेसी भी मैंटेन होती है और एक कमरे को आसानी से 2 भागों में भी बांटा जा सकता है. आजकल  स्लाइडिंग ग्लास या फिर डिजाइनर वुड वौल के जरिए पार्टीशन करना ट्रैंड में है.

मिनिमल आर्ट ऐक्सैसरीज: मिनिमल आर्ट 1950 में प्रचलित हुआ था. तब यह सिर्फ मूर्तियों व पेंटिंग्स के संदर्भ में बाजार में आया था. यह आर्ट जापान के पारंपरिक डिजाइन व आर्किटैक्ट से प्रभावित है. ?बाजार में मिनिमल आर्ट वाले शोपीस, पेंटिंग्स, ऐंटिक्स के  साथसाथ फर्नीचर की भी काफी वैराइटी हैं. इन की खासीयत है कि ये स्लीक, स्टाइलिश व उत्तम गुणवत्ता वाले होते हैं. घर को सिंप्लिसिटी के साथ क्लासी लुक देते हैं. ऐसी ऐक्सैसरीज घर को ओवरलोड होने से बचाती हैं. कमरा भी देखने में बड़ा लगता है और क्रिएटिव भी. खासतौर से छोटे घरों को डिजाइन करने के लिए मिनिमल आर्ट ऐक्सैसरीज और भी सराहनीय हैं.

इन नई तकनीकों से आप डिजाइन कर सकती हैं एक स्मार्ट, यंगर लुकिंग व यूथफुल होम.

सूखा पत्ता: संगीता की कौनसी गलती बनी सजा

6 महीने पहले ही रवि की शादी पड़ोस के एक गांव में रहने वाले रघुवर की बेटी संगीता से हुई थी. उस के पिता मास्टर दयाराम ने खुशी के इस मौके पर पूरे गांव को भोज दिया था. अब से पहले गांव में इतनी धूमधाम से किसी की शादी नहीं हुई थी. मास्टर दयाराम दहेज के लोभी नहीं थे, तभी तो उन्होंने रघुवर जैसे रोज कमानेखाने वाले की बेटी से अपने एकलौते बेटे की शादी की थी. उन्हें तो लड़की से मतलब था और संगीता में वे सारे गुण थे, जो मास्टरजी चाहते थे. ढ़ाई के बाद जब रवि की कहीं नौकरी नहीं लगी, तो मास्टर दयाराम ने उस के लिए शहर में मोबाइल फोन की दुकान खुलवा दी. शहर गांव से ज्यादा दूर नहीं था. रवि मोटरसाइकिल से शहर आनाजाना करता था.

शादी से पहले संगीता का अपने गांव के एक लड़के मनोज के साथ जिस्मानी रिश्ता था. गांव वालों ने उन दोनों को एक बार रात के समय रामदयाल के खलिहान में सैक्स संबंध बनाते हुए रंगे हाथों पकड़ा था. गांव में बैठक हुई थी. दोनों को आइंदा ऐसी गलती न करने की सलाह दे कर छोड़ दिया गया था. संगीता के मांबाप गरीब थे. 2 बड़ी लड़कियों की शादी कर के उन की कमर पहले ही टूट हुई थी. उन की जिंदगी की गाड़ी किसी तरह चल रही थी. ऐसे में जब मास्टर दयाराम के बेटे रवि का संगीता के लिए रिश्ता आया, तो उन्हें अपनी बेटी की किस्मत पर यकीन ही नहीं हुआ था. उन्हें डर था कि कहीं गांव वाले मनोज वाली बात मास्टर दयाराम को न बता दें, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

वही बहू अब मनोज के साथ घर से भाग गई थी. रवि को फोन कर के बुलाया गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस की बीवी किसी गैर मर्द के साथ भाग सकती है, उस की नाक कटवा सकती है.

‘‘थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाए,’’ बिरादरी के मुखिया ने सलाह दी.

‘‘नहीं मुखियाजी…’’ मास्टर दयाराम ने कहा, ‘‘मैं रिपोर्ट दर्ज कराने के हक में नहीं हूं. रिपोर्ट दर्ज कराने से क्या होगा? अगर पुलिस उसे ढूंढ़ कर ले भी आई, तो मैं उसे स्वीकार कैसे कर पाऊंगा.

‘‘गलती शायद हमारी भी रही होगी. मेरे घर में उसे किसी चीज की कमी रही होगी, तभी तो वह सबकुछ ठुकरा कर चली गई. वह जिस के साथ भागी है, उसी के साथ रहे. मुझे अब उस से कोई मतलब नहीं है.’’

‘‘रवि से एक बार पूछ लो.’’

‘‘नहीं मुखियाजी, मेरा फैसला ही रवि का फैसला है.’’

शहर आ कर संगीता और मनोज किराए का मकान ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे. संगीता पैसे और गहने ले कर भागी थी, इसलिए उन्हें खर्चे की चिंता न थी. वे खूब घूमते, खूब खाते और रातभर खूब मस्ती करते. सुबह के तकरीबन 9 बज रहे थे. मनोज खाट पर लेटा हुआ था… तभी संगीता नहा कर लौटी. उस के बाल खुले हुए थे. उस ने छाती तक लहंगा बांध रखा था. मनोज उसे ध्यान से देख रहा था. साड़ी पहनने के लिए संगीता ने जैसे ही नाड़ा खोला, लहंगा हाथ से फिसल कर नीचे गिर गया. संगीता का बदन मनोज को बेचैन कर गया. उस ने तुरंत संगीता को अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बौछार कर दी. वह उसे खाट पर ले आया. ‘‘अरे… छोड़ो न. क्या करते हो? रातभर मस्ती की है, फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा,’’ संगीता कसमसाई.

‘‘तुम चीज ही ऐसी हो जानेमन कि जितना प्यार करो, उतना ही कम लगता है,’’ मनोज ने लाड़ में कहा.

संगीता समझ गई कि विरोध करना बेकार है, खुद को सौंपने में ही समझदारी है. वह बोली, ‘‘अरे, दरवाजा तो बंद कर लो. कोई आ जाएगा.’’ ‘‘इस वक्त कोई नहीं आएगा जानेमन. मकान मालकिन लक्ष्मी सेठजी के घर बरतन मांजने गई है. रही बात उस के पति कुंदन की, तो वह 10 बजे से पहले कभी घर आता नहीं. बैठा होगा किसी पान के ठेले पर. अब बेकार में वक्त बरबाद मत कर,’’ कह कर मनोज ने फिर एक सैकंड की देर नहीं की. वे प्रेमलीला में इतने मगन थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि बाहर आंगन से कुंदन की प्यासी निगाहें उन्हें देख रही थीं. दूसरे दिन कुंदन समय से पहले ही घर आ गया. जब से उस ने संगीता को मनोज के साथ बिस्तर पर मस्ती करते देखा था, तभी से उस की लार टपक रही थी. उस की बीवी लक्ष्मी मोटी और बदसूरत औरत थी. ‘‘मनोज नहीं है क्या भाभीजी?’’ मौका देख कर कुंदन संगीता के पास आ कर बोला.

‘‘नहीं, वह काम ढूंढ़ने गया है.’’

‘‘एक बात बोलूं भाभीजी… तुम बड़ी खूबसूरत हो.’’

संगीता कुछ नहीं बोली.

‘‘तुम जितनी खूबसूरत हो, तुम्हारी प्यार करने की अदा भी उतनी ही खूबसूरत है. कल मैं ने तुम्हें देखा, जब तुम खुल कर मनोज भैया को प्यार दे रही थीं…’’ कह कर उस ने संगीता का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मुझे भी एक बार खुश कर दो. कसम तुम्हारी जवानी की, किराए का एक पैसा नहीं लूंगा.’’

‘‘पागल हो गए हो क्या?’’ संगीता ने अपना हाथ छुड़ाया, पर पूरी तरह नहीं.

‘‘पागल तो नहीं हुआ हूं, लेकिन अगर तुम ने खुश नहीं किया तो पागल जरूर हो जाऊंगा,’’ कह कर उस ने संगीता को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘छोड़ो मुझे, नहीं तो शोर मचा दूंगी,’’ संगीता ने नकली विरोध किया.

‘‘शोर मचाओगी, तो तुम्हारा ही नुकसान होगा. शादीशुदा हो कर पराए मर्द के साथ भागी हो. पुलिस तुम्हें ढूंढ़ रही है. बस, खबर देने की देर है.’’ संगीता तैयार होने वाली ही थी कि अचानक किसी के आने की आहट हुई. शायद मनोज था. कुंदन बौखला कर चला गया. मनोज को शक हुआ, पर कुंदन को कुछ कहने के बजाय उस ने उस का मकान ही खाली कर दिया. उन के पैसे खत्म हो रहे थे. महंगा मकान लेना अब उन के बस में नहीं था. इस बार उन्हें छोटी सी खोली मिली. वह गंगाबाई की खोली थी. गंगाबाई चावल की मिल में काम करने जाती थी. उस का पति एक नंबर का शराबी था. उस के कोई बच्चा नहीं था.

मनोज और संगीता जवानी के खूब मजे तो ले रहे थे, पर इस बीच मनोज ने यह खयाल जरूर रखा कि संगीता पेट से न होने पाए. पैसे खत्म हो गए थे. अब गहने बेचने की जरूरत थी. सुनार ने औनेपौने भाव में उस के गहने खरीद लिए. मनोज को कपड़े की दुकान में काम मिला था, पर किसी बात को ले कर सेठजी के साथ उस का झगड़ा हो गया और उन्होंने उसे दुकान से निकाल दिया. उस के बाद तो जैसे उस ने काम पर न जाने की कसम ही खा ली थी. संगीता काम करने को कहती, तो वह भड़क जाता था. संगीता गंगाबाई के कहने पर उस के साथ चावल की मिल में जाने लगी. सेठजी संगीता से खूब काम लेते, पर गंगाबाई को आराम ही आराम था. वजह पूछने पर गंगाबाई ने बताया कि उस का सेठ एक नंबर का औरतखोर है. जो भी नई औरत काम पर आती है, वह उसे परेशान करता है. अगर तुम्हें भी आराम चाहिए, तो तुम भी सेठजी को खुश कर दो.

‘‘इस का मतलब गंगाबाई तुम भी…’’ संगीता ने हैरानी से कहा.

‘‘पैसों के लिए इनसान को समझौता करना पड़ता है. वैसे भी मेरा पति ठहरा एक नंबर का शराबी. उसे तो खुद का होश नहीं रहता, मेरा क्या खयाल करेगा. उस से न सही, सेठ से सही…’’

संगीता को गंगाबाई की बात में दम नजर आया. वह पराए मर्द के प्यार के चक्कर में भागी थी, तो किसी के भी साथ सोने में क्या हर्ज? अब सेठ किसी भी बहाने से संगीता को अपने कमरे में बुलाता और अपनी बांहों में भर कर उस के गालों को चूम लेता. संगीता को यह सब अच्छा न लगता. उस के दिलोदिमाग पर मनोज का नशा छाया हुआ था. वह सोचती कि काश, सेठ की जगह मनोज होता. पर अब तो वह लाचार थी. उस ने समझौता कर लिया था. कई बार वह और गंगाबाई दोनों सेठ को मिल कर खुश करती थीं. फिर भी उन्हें पैसे थोड़े ही मिलते. सेठ ऐयाश था, पर कंजूस भी. एक दिन मनोज बिना बताए कहीं चला गया. संगीता उस का इंतजार करती रही, पर वह नहीं आया. जिस के लिए उस ने ऐशोआराम की दुनिया ठुकराई, जिस के लिए उस ने बदनामी झेली, वही मनोज उसे छोड़ कर चला गया था.

संगीता पुरानी यादों में खो गई. मनोज संगीता के भैया नोहर का जिगरी दोस्त था. उस का ज्यादातर समय नोहर के घर पर ही बीतता था. वे दोनों राजमिस्त्री का काम करते थे. छुट्टी के दिन जीभर कर शराब पीते और संगीता के घर मुरगे की दावत चलती. मनोज की बातबात में खिलखिला कर हंसने की आदत थी. उस की इसी हंसी ने संगीता पर जादू कर दिया था. दोनों के दिल में कब प्यार पनपा, पता ही नहीं चला. संगीता 12वीं जमात तक पढ़ चुकी थी. उस के मांबाप तो उस की पढ़ाई 8वीं जमात के बाद छुड़ाना चाहते थे, पर संगीता के मामा ने जोर दे कर कहा था कि भांजी बड़ी खूबसूरत है. 12वीं जमात तक पढ़ लेगी, तो किसी अच्छे घर से रिश्ता आ जाएगा. पढ़ाई के बाद संगीता दिनभर घर में रहती थी. उस का काम घर का खाना बनाना, साफसफाई करना और बरतन मांजना था. मांबाप और भैया काम पर चले जाते थे. नोहर से बड़ी 2 और बहनें थीं, जो ब्याह कर ससुराल चली गई थीं.

एक दिन मनोज नशे की हालत में नोहर के घर पहुंच गया. दोपहर का समय था. संगीता घर पर अकेली थी. मनोज को इस तरह घर में आया देख संगीता के दिल की धड़कन तेज हो गई. उन्होंने इस मौके को गंवाना ठीक नहीं समझा और एकदूसरे के हो गए. इस के बाद उन्हें जब भी समय मिलता, एक हो जाते. एक दिन नोहर ने उन दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया. घर में खूब हंगामा हुआ, लेकिन इज्जत जाने के डर से संगीता के मांबाप ने चुप रहने में ही भलाई समझी, पर मनोज और नोहर की दोस्ती टूट गई  संगीता और मनोज मिलने के बहाने ढूंढ़ने लगे, पर मिलना इतना आसान नहीं था. एक दिन उन्हें मौका मिल ही गया और वे दोनों रामदयाल के खलिहान में पहुंच गए. वे दोनों अभी दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में समाए हुए थे कि गांव के कुछ लड़कों ने उन्हें पकड़ लिया.

समय गुजरा और एक दिन मास्टर दयाराम ने अपने बेटे रवि के लिए संगीता का हाथ मांग लिया. दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से हो गई. संगीता ससुराल आ गई, पर उस का मन अभी भी मनोज के लिए बेचैन था. पति के घर की सुखसुविधाएं उसे रास नहीं आती थीं. दोनों के बीच मोबाइल फोन से बातचीत होने लगी. संगीता की सास जब अपने गांव गईं, तो उस ने मनोज को फोन कर के बुला लिया और वे दोनों चुपके से निकल भागे. अब संगीता पछतावे की आग में झुलस रही थी. उसे अपनी करनी पर गुस्सा आ रहा था. गरमी का मौसम था. रात के तकरीबन 10 बज रहे थे. उसे ससुराल की याद आ गई. ससुराल में होती, तो वह कूलर की हवा में चैन की नींद सो रही होती. पर उस ने तो अपने लिए गड्ढा खोद लिया था.

उसे रवि की याद आ गई. कितना अच्छा था उस का पति. किसी चीज की कमी नहीं होने दी उसे. पर बदले में क्या दिया… दुखदर्द, बेवफाई. संगीता सोचने लगी कि क्या रवि उसे माफ कर देगा? हांहां, जरूर माफ कर देगा. उस का दिल बहुत बड़ा है. वह पैर पकड़ कर माफी मांग लेगी. बहुत दयालु है वह. संगीता ने अपनी पुरानी दुनिया में लौटने का मन बना लिया. ‘‘गंगाबाई, मैं अपने घर वापस जा रही हूं. किराए का कितना पैसा हुआ है, बता दो?’’ संगीता ने कहा.

‘‘संगीता, मैं ने तुम्हें हमेशा छोटी बहन की तरह माना है. मैं तेरी परेशानी जानती हूं. ऐसे में मैं तुम से पैसे कैसे ले सकती हूं. मैं भी चाहती हूं कि तू अपनी पुरानी दुनिया में लौट जा. मेरा आशीर्वाद है कि तू हमेशा सुखी रहे.’’ मन में विश्वास और दिल के एक कोने में डर ले कर जब संगीता बस से उतरी, तो उस का दिल जोर से धड़क रहा था. वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे पहचाने, इसलिए उस ने साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढक लिया था. जैसे ही वह घर के पास पहुंची, उस के पांव ठिठक गए. रवि ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया तो… उस ने उस दोमंजिला पक्के मकान पर एक नजर डाली. लगा जैसे अभीअभी रंगरोगन किया गया हो. जरूर कोई मांगलिक कार्यक्रम वगैरह हुआ होगा.

‘‘बहू…’’ तभी संगीता के कान में किसी औरत की आवाज गूंजी. वह आवाज उस की सास की थी. उस का दिल उछला. सासू मां ने उसे घूंघट में भी पहचान लिया था. वह दौड़ कर सासू मां के पैरों में गिरने को हुई, लेकिन इस से पहले ही उस की सारी खुशियां पलभर में गम में बदल गईं.

‘‘बहू, रवि को ठीक से पकड़ कर बैठो, नहीं तो गिर जाओगी.’’

संगीता ने देखा, रवि मोटरसाइकिल पर सवार था और पीछे एक औरत बैठी हुई थी. संगीता को यह देख कर धक्का लगा. इस का मतलब रवि ने दूसरी शादी कर ली. उस का इंतजार भी नहीं किया. इस से पहले कि वह कुछ सोच पाती, मोटरसाइकिल फर्राटे से उस के बगल से हो कर निकल गई. संगीता ने उन्हें देखा. वे दोनों बहुत खुश नजर आ रहे थे. तभी वहां एक साइकिल सवार गुजरा. संगीता ने उसे रोका, ‘‘चाचा, अभी रवि के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर गई वह औरत कौन है?’’

‘‘अरे, उसे नहीं जानती बेटी? लगता है कि इस गांव में पहली बार आई हो. वह तो रवि बाबू की नईनवेली दुलहन है.’’

‘‘नईनवेली दुलहन?’’

‘‘हां बेटी, वह रवि बाबू की दूसरी पत्नी है. पहली पत्नी बड़ी चरित्रहीन निकली. अपने पुराने प्रेमी के साथ भाग गई. वह बड़ी बेहया थी. इतने अच्छे परिवार को ठोकर मार कर भागी है. कभी सुखी नहीं रह पाएगी,’’ इतना कह कर वह साइकिल सवार आगे बढ़ गया. संगीता को लगा, उस के पैर तले की जमीन खिसक रही है और वह उस में धंसती चली जा रही है. अब उस से एक पल भी वहां रहा नहीं गया. जिस दुनिया में लौटी थी, वहां का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो चुका था. उसे चारों तरफ अंधेरा नजर आने लगा था. तभी संगीता को अंधेरे में उम्मीद की किरण नजर आने लगी… अपना मायका. सारी दुनिया भले ही उसे ठुकरा दे, पर मायका कभी नहीं ठुकरा सकता. भारी मन लिए वह मायके के लिए निकल पड़ी. किवाड़ बंद था. संगीता ने दस्तक दी. मां ने किवाड़ खोला.

‘‘मां…’’ वह जैसे ही दौड़ कर मां से लिपटने को हुई, पर मां के इन शब्दों ने उसे रोक दिया, ‘‘अब यहां क्या लेने आई है?’’

‘‘मां, मैं यहां हमेशा के लिए रहने आई हूं.’’

‘‘हमारी नाक कटा कर भी तुझे चैन नहीं मिला, जो बची इज्जत भी नीलाम करने आई है. यह दरवाजा अब तेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो चुका है.’’

‘‘नहीं मां….’’ वह रोने लगी, ‘‘ऐसा मत कहो.’’

‘‘तू हम सब के लिए मर चुकी है. अच्छा यह है कि तू कहीं और चली जा,’’ कह कर मां ने तुरंत किवाड़ बंद कर दिया.

संगीता किवाड़ पीटने लगी और बोली, ‘‘दरवाजा खोलो मां… दरवाजा खोलो मां…’’ पर मां ने दरवाजा नहीं खोला. भीतर मां रो रही थी और बाहर बेटी. संगीता को लगा, जैसे उस का वजूद ही खत्म हो चुका है. उस की हालत पेड़ से गिरे सूखे पत्ते जैसी हो गई है, जिसे बरबादी की तेज हवा उड़ा ले जा रही है. दूर, बहुत दूर. इस सब के लिए वह खुद ही जिम्मेदार थी. उस से अब और आगे बढ़ा नहीं गया. वह दरवाजे के सामने सिर पकड़ कर बैठ गई और सिसकने लगी. अब गंगाबाई के पास लौटने और सेठ को खुश रखने के अलावा कोई चारा नहीं था… पर कब तक?

इस हाथ ले, उस हाथ दे: क्या अपनी गलती समझ पाया वरुण

वरुण और अनुज के पिता ने जीवन भर की भागदौड़ के बाद एक बड़ा कारखाना लगाया था. उन की रेडीमेड कपड़ों की फैक्टरी तिरुपुर में थी, जहां मुंबई से रेल में जाने पर काफी समय लगता था. हवाई जहाज से जाने पर पहले कोयंबटूर जाना पड़ता था. उन दिनों मुंबई से कोयंबटूर के लिए हफ्ते में केवल एक उड़ान थी, अत: वरुण प्राय: वहां महीने में एक बार जाता था. वरुण  को कपड़ों के एक्सपोर्ट के सिलसिले में आस्टे्रलिया व अमेरिका भी साल में 2-3 बार जाना पड़ता. पिता मुंबई आफिस व ऊपर का सारा काम देखते, वरुण फैक्टरी व भागदौड़ का काम देखता था. अनुज अपने बड़े भाई वरुण से करीब 10 साल छोटा था और अब कालिज में दाखिल हो चुका था.

वरुण का विवाह काफी साल पहले साधना से हो चुका था. उस के 1 लड़का व 2 लड़कियां यानी कुल 3 बच्चे थे. तीसरे बच्चे के होने तक साधना पूजापाठ, व्रतउपवास व तीर्थयात्रा आदि में अधिक समय बिताने लगी, धार्मिक मनोवृत्ति उस की शुरू से ही थी. पतिपत्नी की रुचियों में भारी अंतर होने के चलते ही दोनों में काफी तनातनी रहने लगी.

वरुण का धंधा एक्सपोर्ट का था और चेंबर औफ कौमर्स की सभाओंपार्टियों में उसे हफ्ते में एक बार तो जाना ही पड़ता था. ऐसी पार्टियों में शराब व डांस आदि का सिलसिला जोर से चलता था. इस वातावरण में धार्मिक प्रवृत्ति की साधना का दम घुटता था. यह देख कर कि कोई मर्द दूसरी औरत को छाती से चिपका कर नाचता. चूंकि यह सब आम दस्तूर की बातें थीं, जो उसे कतई रास न आतीं.

शुरुआत में तो साधना अकेली टेबल पर बैठी रहती और वरुण दूसरी औरतों के साथ नाचता रहता. साधना न तो इतनी देर रात की कायल थी, न ही वह ससुर व बच्चों को अकेले छोड़ना चाहती थी. अब तो उस ने ऐसी पार्टियों में जाना ही बंद कर दिया तो वरुण पहले से और भी अधिक खुल गया और 1-2 महिलाओं से उस का संबंध भी हो गया, जिस के लिए उसे छोटे होटलों में जाना पड़ता. धंधे के नाम पर सब ढका रहता.

अनुज अब एम.बी.ए. कर चुका था. शादी के बाद वह घर के धंधे में ही हाथ बटाना चाहता था. वरुण ने शुरूशुरू में तो उसे ऊपर का काम बताया, पर बाद में उसे फैक्टरी को संभालने के काम से तिरुपुर भेजने लगा. अनुज का विवाह चंदा से हुआ, जो ग्वालियर के एक व्यापारी की लड़की थी.

चंदा साधना से ठीक उलटे स्वभाव की निकली. उसे आएदिन पार्टियों में जाने, नए फैशन व गहनों का बेहद शौक था. उस की उलझन सामने आने लगी क्योंकि अनुज अब ज्यादातर कंपनी के काम से बाहर रहने लगा. एकाध बार बेहद आवश्यक पार्टी में वरुण साधना के न जाने पर चंदा को ले गया. साथ में 1-2 बार दोनों ने डांस भी किया जिस से चंदा की झिझक जाती रही.

शेर जब खून चख लेता है तो फिर उस के पीछे पड़ जाता है. पिता के साथ दोनों भाई एक ही मकान में रहते थे. दोनों भाइयों के रहने के हिस्से अलगअलग थे, पर सभी कमरे ड्राइंगरूम में खुलते थे. वरुण ऊपर से तो शालीन नजर आता, पर एकांत में चंदा से थोड़ाबहुत मजाक कर बैठता. चंदा को इस प्रकार की छेड़खानी अच्छी लगती थी, उस से आगे दोनों ने ही कुछ सोचाविचारा न था.

एक दिन शाम को क्लब में दोनों ही एकाएक स्वीमिंग पूल में साथ हो लिए. वरुण वैसे तो अकसर सुबह क्लब जाता था और चंदा कभीकभी शाम को. साधना यथावत शाम को कहीं न कहीं भजनकीर्तन में जाती थी और भोजन के वक्त आ जाती. उसे इस मामले में कुछ भी सुराग न था, वह अपने नित्यकर्म में मस्त रहती.

स्वीमिंग देर शाम को हो रही थी, अत: पानी के नीचे क्या हो रहा है, दिखाई नहीं देता. पहले तो दोनों साधारण गपशप करते रहे, फिर खेलखेल में तैरने व दोनों के बीच अठखेलियां होने लगीं. वरुण ने पानी में ही उस के वक्ष पर इस तरह हाथ लगाया, जैसे अनजाने में लगा हो. इस पर चंदा मुसकरा कर और तेजी से तैरने लगी. इस प्रकार दोनों तैर कर बगल में बने हुए गरम पानी के जकूजी में गए, जहां तैरने के  बाद नहाने से पहले जा कर तैरने वाले रिलैक्स होते थे.

वरुण चंदा के पांव धीरेधीरे सहलाने लगा, मानो उस की थकावट मिटा रहा हो. बाद में वह चंदा का हाथ ले कर अपने शरीर पर फिरवाने लगा. उत्तेजना में दोनों काफी देर तक एकदूसरे के साथ अंगीकरण के बाद जब शांत हुए तो चुपचाप अपनाअपना टावल ले कर चल दिए. दोनों अलगअलग गाडि़यों में जैसे वहां आए थे, वैसे ही आगेपीछे घर पहुंचे. अब तो दोनों का हौसला बढ़ गया. देर रात को सब के सोने के बाद वरुण अपना डे्रसिंग गाउन पहन कर इस तरह कमरे से निकलता मानो ड्राइंगरूम में जा रहा हो. घंटे आधघंटे मस्ती व आलिंगन के बाद वह वापस आ कर सो जाता.

साधना को पहले तो काफी अरसे तक कुछ पता नहीं चला. इन दिनों वरुण का ब्लड प्रेशर भी हाई रहने लगा था और उस की शराब व जिंदगी के तौरतरीके से डाक्टर ने वार्षिक टेस्ट होने पर उसे चेतावनी दी कि उसे अब उत्तेजनात्मक व भागदौड़ की टेंशन से बचना होगा. दवा लेने के बावजूद वरुण का ब्लड प्रेशर 180/120 पर रहने लगा, पर जीवन को नियंत्रित करना कोई सहज खेल नहीं है. यू टर्न के लिए बहुत धीमी गति व काफी फासले की जरूरत रहती है, पर इस के लिए मन में आभास होने पर दृढ़ निश्चय करना होता है जोकि उस के बस की बात नहीं थी.

एक रात को सहसा पलंग सूना देख साधना देखने गई कि कहीं वरुण की तबीयत तो नहीं खराब हो गई. थोड़ी देर में वह चंदा के कमरे से निकला तो साधना को मानो सांप ही सूंघ गया. वह गश खा कर बेहोश हो गिर गई. ललाट फटने से खून बह निकला. बड़ी मुश्किल से अस्पताल में टांके व मरहमपट्टी करवा कर वरुण उसे खिसियाए मुंह घर ले आया. उस ने साधना से वादा भी किया कि यह भूल अब कभी नहीं होगी, वह तो केवल 5 मिनट के लिए चंदा के कमरे से कुछ आवाज आने पर उसे देखने गया था. और वह कहता भी क्या?

साधना गंभीर व समझदार तो थी ही, बात को बढ़ाने में उस ने कोई लाभ नहीं समझा. वरुण अब चंदा से कतरा कर आफिस की एक लड़की के साथ किसी होटल में जाता. एक बार उसे इसी क्रिया में जबरदस्त हार्टअटैक आया और बेहोशी की हालत में लड़की ने उसे अस्पताल में भरती करा कर घर वालों को फोन किया कि दफ्तर में वरुण का जी घबराने से वह उसे डाक्टर के पास ले जा रही थी कि रास्ते में ही हालत खराब हो गई.

वरुण को हार्टअटैक बहुत जोर का पड़ा था, साथ ही ब्लड प्रेशर की मार से दाएं अंग में लकवा आ गया. 52 साल की उम्र में ही उस के जीवन में उल्कापात हुआ, करीब 6 महीने की साधना व फिजियोथेरैपी से वह बच तो गया, पर चलनेफिरने व यात्रा करने से मजबूर हो गया. अब वह घर पर ही पड़ा रहता और साधना उस की मन से सेवा करती. रात के लिए एक नर्स अलग से रखी गई थी, ताकि 24 घंटे वरुण की देखभाल हो सके.

पिता ने अनुज को कंपनी का चार्ज दे दिया. साधना ने एक दिन भी पति को खरीखोटी नहीं सुनाई, बल्कि धीरज व धैर्य से उसे रहने की हिदायत देती रहती और मदद करती रहती. वरुण अब देखने में 65-70 साल का दिखने लगा है. वापस पुरानी ऊर्जा व स्फूर्ति अब उसे कभी नहीं मिलेगी, ऐसा सभी डाक्टरों ने कह दिया.

जानें नवजात की देखभाल से जुड़े मिथक

किसी भी महिला के जीवन में मातृत्व दुनिया का सब से अद्भुत अनुभव होता है. जब कोईर् महिला पहली बार मां बनती है, तो अपनी इस अनमोल खुशी का ध्यान रखने के बारे में उसे अपने करीबियों से ढेरों सलाहें मिलना स्वाभाविक है. मगर एक समझदार मां होने के नाते यह जरूरी है कि वह विशेषज्ञ की राय के अनुसार ही चले, क्योंकि एक छोटा सा निर्णय भी बच्चे के बढ़ने की उम्र पर असर डाल सकता है.  मांओं में नवजातों की देखभाल को ले कर निम्न मिथक पाए जाते हैं:

नवजात की दिनचर्या तय करना अच्छा होता है:

हर मां का अपने बच्चे के जीवन में थोड़ा अनुशासन लाने की कोशिश करना स्वाभाविक है. हालांकि बच्चे को दिनचर्या के लिए दबाव डालना आसान नहीं है. बड़ों से सलाह लेने और किताबें पढ़ने के बावजूद आमतौर पर शिशु के सोने का पैटर्न मांओं के लिए सब से अधिक परेशानी का सबब बनता है.  ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कुछकुछ घंटों के अंतराल पर सोने के कारण हर 3-4 घंटे में स्तनपान कराना होता है. बच्चे के बड़े होने के साथसाथ इस में धीरेधीरे बदलाव आने लगता है.

दांत आने पर बुखार होता है:

हर मां को यह गलतफहमी होती है कि जब भी नवजात को बुखार आता है, तो वह दांत आने की वजह से हो रहा होता है, लेकिन सामान्यतौर पर दांत 6 से 24 महीने के बीच निकलते हैं. यह एक ऐसा समय होता है जब बच्चों में भी संक्रमण होने की आशंका होती है. इसलिए मांओं के लिए यही बेहतर है कि अनुमान लगाने के बजाय कुछ दिन शिशु पर निगरानी रखें और यदि लक्षण बने रहते हैं, तो फिर डाक्टर को दिखाएं.  बहुत अधिक स्तनपान कराना अच्छा नहीं होता: एक नवजात शिशु की मां को हर डाक्टर की ओर से सब से पहली सलाह यही होती है कि वह अपने नवजात को स्तनपान कराए. स्तनपान करवाना प्राकृतिक रूप से सब से बुनियादी चीज होती है, जो नवजातों की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. मां का दूध सिर्फ शिशु का पेट भरने के लिए भोजन ही नहीं है, बल्कि इस में बढ़ने और विकास करने के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्त्व भी मौजूद होते हैं. स्तनपान कराने के कई फायदे हैं, जिन में से कुछ इस प्रकार हैं- यह बच्चों में बारबार बीमार पड़ने को कम करता है, इस से मांओं को गर्भावस्था के बाद रिकवर, वजन कम करने, ब्रैस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर के खतरे को कम करने में मदद मिलती है.

मां का दूध बच्चों की प्यास नहीं  बुझाता :

नवजातों को ले कर सब से बड़े मिथकों में से एक यह है कि खासकर गरमी के मौसम में यह जरूरी है कि बच्चों को हाइड्रेट बनाए रखने के लिए सही मात्रा में पानी दिया जाए. बहुत  कम लोगों को पता है कि मां के दूध में 88% तक पानी होता है और बच्चों के स्वास्थ्य के हित  में यह जरूरी है कि जब तक बच्चा 6 महीने  का न हो जाए, उसे सिर्फ मां का दूध ही दिया जाना चाहिए.  आमतौर पर नवजातों को शहद पिलाने की आदत होती है, यह माना जाता है कि मां के दूध की तुलना में यह पोषक तत्त्वों का बेहतर स्रोत होता है. यह पूरी तरह से आधारहीन है. ऐसा साबित हुआ है कि शिशुओं के लिए यह अधिक नुकसानदायक होता है, क्योंकि इस से कई गंभीर संक्रमण हो सकते हैं.

शिशु के 6 माह का होने तक उसे सिर्फ मां का दूध ही पिलाया जाना चाहिए. 6 महीनों के बाद उसे कुछ सेहतमंद पूरक आहार देने की शुरुआत की जा सकती है जैसेकि पकी रागी, चावल, उबली सब्जियां, अंडे, अनाज आदि.

– डा. लीना एन. श्रीधर, अपोलो क्रैडल

Bigg Boss 16: इस वजह से टूटेगी शालीन-Sumbul की दोस्ती! प्रोमो वायरल

कलर्स के पौपुलर रिएलिटी शो ‘बिग बॉस 16’ (Bigg Boss 16) में आए दिन रिश्तों में बदलाव देखने को मिलते हैं, जिसमें नई दोस्ती बनती और पुरानी टूटती नजर आती हैं. वहीं इस बार सुंबुल तौकीर खान (Sumbul Tauqeer Khan) और शालीन भानोट की दोस्ती टूटती दिखने वाली है. दरअसल, शो का नया प्रोमो सामने आया है, जिसमें टीना दत्ता के कारण सुंबुल और शालीन की दोस्ती टूटते हुए नजर आ रही है. आइए आपको दिखाते हैं शो का नया प्रोमो (Bigg Boss 16 Nomination Promo)…

नॉमिनेशन में शालीन चुनेंगे किस की दोस्ती

 

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शो के मेकर्स ने अपकमिंग एपिसोड का प्रोमो रिलीज कर दिया है, जिसमें नॉमिनेशन की प्रक्रिया में एक बार फिर नया बवाल देखने को मिल रहा है. दरअसल, प्रोमो में नॉमिनेशन का टास्क होता हुआ दिख रहा है, जिसमें सुम्बुल तौकीर खान, टीना दत्ता और गौतम सिंह विज एक मंच पर खड़े हुए दिख रहे हैं. वहीं बाकी घरवाले ‘फूलों की दुकान’ से उन्हें फूल दे रहे हैं. इस टास्क में शालीन जहां सारे फूल टीना को दे रहे हैं, तो वहीं साजिद के कहने पर शालीन, सुंबुल को एक गुलाब दे देते हैं. वहीं शालीन का बिहेवियर देख सुंबुल फूल को डस्टबिन में डाल देती हैं, जिसके कारण दोनों के बीच काफी बहस होती नजर आ रही है और दोस्ती टूटने की कगार पर पहुंचती दिख रही है.

राशन के कारण मचेगा बवाल

https://www.youtube.com/watch?v=Z_WPN0b1X88

अब तक आपने शो में देखा कि राशन के कारण एक बार फिर बवाल शुरु हो गया है. दरअसल, राशन डिलीवरी के टास्क में जहां एमसी स्टैन, गोरी की बजाय शिव को चुनते दिखे तो वहीं सुंबुल ने टीना को हुकुम चलाने की बात कहते हुए साजिद को राशन देने के लिए चुना था, जिसके बाद टीना और सुंबुल के बीच बहस होती है. वहीं शालीन भी सुंबुल पर चिल्लाते हुए नजर आते हैं. वहीं अपकमिंग एपिसोड में ये बहस जारी रहने वाली है, जिसके चलते निमृत जहां शिव को धोखा देती दिखेंगी तो वहीं अंकित गुप्ता कशमकश में फंसते नजर आएंगे.

GHKKPM: सई को जेल भेजना विराट को पड़ा भारी, फैंस ने लगाई क्लास

सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी  (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin Latest Episode) इन दिनों विराट का गुस्सा देखने को मिल रहा है. दरअसल, जगताप ने विराट को सवि के बेटी होने का सच बता दिया है, जिसके बाद वह सई से अपनी बेटी को छीनने की कोशिश करता नजर आ रहा है. वहीं अपने औदे का गलत इस्तेमाल कर रहा है, जिसके चलते सई के फैंस गुस्से में हैं और मेकर्स और विराट के रोल में नजर आने वाले एक्टर नील भट्ट (Neil Bhatt) को सोशलमीडिया पर ट्रोल करते दिख रहे हैं.

ट्रोल करते हुए कही ये बात

लीप के बाद सीरियल में पाखी की खराब इमेज को बदलने में जहां मेकर्स कामयाब हो गए हैं तो वहीं विराट के बिहेवियर ने फैंस को गुस्सा दिला दिया है. दरअसल, लीप के बाद से विराट का सई के लिए गुस्सा बढ़ता जा रहा है. वहीं हाल ही में सवि के पिता होने की बात जानने के बाद विराट का सई को गिरफ्तार करवाना फैंस को बिल्कुल रास नहीं आ रहा है, जिसके चलते वह सोशलमीडिया पर विराट की क्लास लगाते दिख रहे हैं. दरअसल, सीरियल में जहां फैंस विराट को बेवकूफ का टैग देते हुए विलेन बता रहे हैं तो वहीं विराट के रोल में नजर आने वाले एक्टर नील भट्ट को शो छोड़ने के लिए कह रहे हैं क्योंकि इस रोल से उनकी एक्टिंग पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.

जगताप की हो रही तारीफ

 

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एक तरफ जहां विराट के रोल की सोशलमीडिया पर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं तो वहीं जगताप के बदले बिहेवियर की लोग तारीफ कर रहे हैं. फैंस का कहना है कि विराट से ज्यादा सई के लिए जगताप है क्योंकि वह उसके बारे में सोच रहा है. इसी के साथ जगताप के रोल में एक्टर सिद्धार्थ बोडके की एक्टिंग भी फैंस को काफी पसंद आ रही है, जिसके चलते फैंस सई और जगताप की लव लाइन शुरु करने की बात कहते दिख रहे हैं.

आग और धुआं- भाग 3: क्या दूर हो पाई प्रिया की गलतफहमी

अमित कहते कि मैं अपने शक को छोड़ दूं, तो वे फौरन लेने आ जाएंगे. मैं चाहती थी कि वे निशा से संबंध तोड़ लें. हम दोनों अपनी जिद पर अड़े रहे, तो इस विषय पर हमारा वार्तालाप होना ही बंद हो गया. बड़े औपचारिक रूप में हम फोन पर एकदूसरे से सतही सा वार्तालाप करते. वे रात को कभी रुकने आते,

तो भी हमारे बीच खिंचाव सा बना रहता. बैडरूम में भी इस का प्रभाव नजर आता. दिल से एकदूसरे को प्रेम किए हमें महीनों बीत गए थे. मैं उन से खूब लड़झगड़ कर समस्या नहीं सुलझा पाई. मौन नाराजगी का फिर लंबा दौर चला, पर निशा का मामला हल नहीं हुआ. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी इस उलझन का अंत कैसे करूं. अमित से दूर रह कर मैं दुखी थी और निशा के कारण उन के पास जाने को भी मन नहीं करता था.

एक दिन मैं ने वर्माजी के घर के पिछले हिस्से से धुआं उठते देखा. उन का घर हमारे घर के बिलकुल सामने है. यह घटना रात के साढ़े 11 बजे के करीब घटी.

‘‘आग, आग… मम्मीपापा, सामने वाले वर्माजी के घर में आग लग गई है,’’ मैं ने बालकनी में से कदमों कर अपने छोटे भाई, मम्मीपापा व अमित को अपने पास बुला लिया.

गहरे काले धुएं को आकाश की तरफ उठता देख वे एकदम से घबरा उठे. अमित और मेरे भाई भी तेज चाल से उस तरफ चल पड़े.

चंद मिनटों में 8-10 पड़ोसी वर्माजी के गेट के सामने इकट्ठे हो गए. सभी उन्हें आग लगने की चेतावनी देते हुए बहुत ऊंची आवाज में पुकार रहे थे. एक के बाद एक महल्ले के घरों में रोशनी होती चली गई.

जब तक वर्माजी बदहवास सी हालत में बाहर आए तब तक 15-20 पड़ोसी उन के गेट के सामने मौजूद थे. उन्होंने लोगों की आकाश की तरफ उठी उंगलियों की दिशा में देखा और काले धुएं पर नजर पड़ते ही बुरी तरह चौंक पड़े.

अपनी पत्नी, बेटे और बहू को पुकारते हुए वर्माजी घर में भागते हुए वापस घुसे. उन के पीछेपीछे जो कई लोग अंदर घुसे उन में अमित और मेरा भाई सब से आगे थे.

बाकी लोग गेट के पास खड़े रह कर आग लगने के कारण और स्थान के बारे में चिंतित घबराए अंदाज में चर्चा करने लगे. जो वहां मौजूद नहीं थे, वे अपने घर की बालकनी से घटनास्थल पर नजर रखे थे.

घर के भीतरी भाग से सब से पहले मेरा भाई बाहर आया. उसे मुसकराता देख हम सभी की जान में जान आई.

‘‘सब कुछ ठीक है अंदर,’’ उस ने ऊंची अवाज में सब से कहा, ‘‘पिछले बरामदे में रखी अखबारों की रद्दी पर एक चिनगारी से आग लग गई थी. धुआं घर के अंदर नहीं, बल्कि बाहर बरामदे में लगी आग से उठ रहा था.’’

लोग जाग गए थे, इसलिए जल्दी से वापस घरों में नहीं घुसे. बाहर सड़क पर खड़े हो कर उन के बीच दुनिया भर के विषयों पर बातें चलती रही.

अमित करीब डेढ़ घंटे बाद शयनकक्ष में आया. मुझे पलंग पर सीधा बैठा देख

उस ने कहा, ‘‘अब जल्दी उत्तेजना के कारण नींद नहीं आएगी. बेकार ही सब परेशान हुए.’’

‘‘काले, गाढ़े धुएं को देख कर मैं ने यही अंदाजा लगाया था कि आग घर में लगी होगी. कितना गलता निकला मेरा अंदाजा,’’ बोलते हुए मुझे ऐसा लगा मानो मैं खुद से बात कर ही रही हूं.

कुछ देर सोच में डूबे रहने के बाद अमित ने पूछा, ‘‘असलियत में क्या इस वक्त तुम कुछ और कहना चाह रही हो, प्रिया?’’

‘‘हां, मेरे मन में कुछ देर पहले अचानक दिलोदिमाग को झटका देने वाला एक विचार उभरा था. तब से मैं उसी के बारे में सोच रही हूं.’’

‘‘अपनी मन की बात मुझ से भी कहो.’’

‘‘अमित, अगर हम तुम्हारे व निशा के अवैध प्रेम संबंध…’’

‘‘उस के और मेरे बीच कोई अवैध संबंध नहीं है,’’ अमित ने नाराजगी भरे अंदाज में मुझे टोका.

‘‘मेरी पूरी बात जरा धीरज से सुनो, प्लीज.’’

‘‘अच्छा, कहो.’’

‘‘अमित, कहीं से उठता हुआ धुआं देख कर यह अंदाजा लगाना क्या गलत होता है कि वहां आग का केंद्र जरूर होगा?’’

‘‘अरे, आग होगी, तभी तो धुआं पैदा होगा.’’

‘‘लेकिन मानवीय संबंधों में, खासकर स्त्रीपुरुष के प्रेम संबंधों में… उस में भी अवैध प्रेम संबंध की अगर बात करें, तो धुआं आग के बिना और आग के कारण दोनों तरह से पैदा हो सकता है.’’

‘‘मुझे तुम्हारी बात समझ में नहीं आई’’ अमित उलझन का शिकार बने नजर आए.

‘‘देखो, निशा और तुम्हारे बीच अगर अवैध प्रेम संबंध हैं तो वह आग का केंद्र हुआ. लोग तुम्हारे अवैध प्रेम संबंध की जो चर्चा करते हैं, उसे हम उस आग से उठता धुआं कहेंगे.’’

‘‘अब तक मैं अच्छी तरह समझ रहा हूं तुम्हारी बात,’’ अमित का पूरा ध्यान मुझ पर केंद्रित था.

‘‘तुम कहते हो, तुम्हारा निशा से गलत संबंध नहीं है और दुनिया इस बारे में भिन्न राय रखती है. इस मामले में धुआं तो मौजूद है, पर आग के बारे में मतभेद है.’’

‘‘मैं कहता हूं कि आग मौजूद नहीं है,’’ अमित ने एकदम शब्द पर जोर दिया.

‘‘आज मैं तुम्हारे कहे पर पूरी तरह विश्वास करूंगी, अमित, क्योंकि मैं ने अपनी आंखों से कभी ऐसा कुछ नहीं देखा जिसे मैं आग की लपट कहूं… और न ही मुझे कोई व्यक्ति ऐसा मिला है जो कहे कि उस ने आग को… यानी निशा और तुम्हें गलत ढंग से कुछ कहतेकरते अपनी आंखों से देखा या कानों से सुना हो. सब धुएं की चर्चा करते हैं और…’’

‘‘और क्या?’’ अमित मेरे पास आ कर बैठ गए.

‘‘और मुझे धुएं पर विश्वास कर के आग की मौजूदगी नहीं मान लेनी चाहिए थी. मैं ने ख्वाहमख्वाह अपनी आंखों से धुएं के कारण आंसू बहाए. मैं अपनी गलती मानती हूं,’’

मैं ने झुक कर अमित के हाथों को कई बार चूम लिया.

‘‘निशा सदा मेरी बहुत अच्छी दोस्त रही है और इस संबंध की पवित्रता व ताजगी को नष्ट करने की मेरे दिल में कोई चाह नहीं है. मेरे दिल में सिर्फ तुम्हारा राज था, है और रहेगा, प्रिया,’’ अमित ने बारीबारी से मेरी आंखों को चूमा, तो मेरे पूरे जिस्म में सुखद करंट सा दौड़ गया.

‘‘देखो, कभी किसी दूसरी स्त्री के साथ आग का केंद्र पैदा न होने देना, नहीं तो हमारी खुशियों और सुखशांति को जला डालेगी. धुएं की चिंता मैं आगे कभी नहीं करूंगी, पर आग का केंद्र मुझे दिखा तो मैं अपनी जान…’’

‘‘ऐसा कभी नहीं होगा पगली,’’ अमित ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया.

निशा को ले कर मेरे दिलोदिमाग पर महीनों से बना भारी बोझ एकदम उतर गया था. अमित की मजबूत बांहों के घेरे में कैद हो कर मुझे उतना ही आनंद मिला जितना जब मैं नईनेवली दुलहन बनी थी, तब मिला था.

Winter Special: लंच में परोसें दलिया पुलाव

वीकेंड के बाद अगर आप हेल्दी डिश अपनी फैमिली के लिए बनाना चाहते हैं तो दलिया पुलाव की ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

सामग्री

1/2 कप दलिया,

2 छोटी गाजरें छोटे टुकड़ों में कटी हुई,

1 आलू छोटे टुकड़ों में कटा हुआ,

4-5 फ्रैंचबींस कटी हुई,

1 प्याज मध्यम आकार का कटा हुआ,

1/4 कप हरे मटर,

1/4 कप कौर्न, 3-4 लौंग,

7-8 साबूत कालीमिर्चें,

1 तेजपत्ता,

1 इंच दालचीनी का टुकड़ा,

2-3 हरीमिर्चें कटी हुई,

1 छोटा चम्मच जीरा,

1 बड़ा चम्मच औयल,

1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर.

विधि

दलिए को दोगुने पानी में भिगोने के लिए रखें. 1 घंटे बाद प्रैशर कुकर में 2 सीटियां लगा कर अलग रख लें. अब कड़ाही में तेल गरम करें. इस में तेजपत्ता, साबूत जीरा, कालीमिर्च, दालचीनी और लौंग डालें. अब इस में हरीमिर्च मिला कर सुनहरा होने तक भूनें. अब गाजर, फ्रैंच बींस, आलू, कौर्न, नमक और हलदी मिला कर पकाएं. फिर इस में दलिया डाल कर अच्छी तरह मिलाएं और गरमगरम परोसें.

कर लो दुनिया मुट्ठी में: श्यामली ने क्या ज्ञान दिया

गुरुदेव ने रात को भास्करानंद को एक लंबा भाषण पिला दिया था. ‘‘नहीं, भास्कर नहीं, तुम संन्यासी हो, युवाचार्य हो, यह तुम्हें क्या हो गया है. तुम संध्या को भी आरती के समय नहीं थे. रात को ध्यान कक्ष में भी नहीं आए? आखिर कहां रहे? आगे आश्रम का सारा कार्यभार तुम्हें ही संभालना है.’’

भास्करानंद बस चुप रह गए.

रात को लेटते ही श्यामली का चेहरा उन की आंखों के सामने आ गया तो वे बेचैन हो उठे.

आंख बंद किए स्वामी भास्करानंद सोने का अथक प्रयास करते रहे पर आंखों में बराबर श्यामली का चेहरा उभर आता.

खीझ कर भास्करानंद बिस्तर से उठ खड़े हुए. दवा के डब्बे से नींद की गोली निकाली. पानी के साथ निगली और लेट गए. नींद कब आई पता नहीं. जब आश्रम के घंटेघडि़याल बज उठे, तब चौंक कर उठे.

‘लगता है आज फिर देर हो गई है,’ वे बड़- बड़ाए.

पूजा के समय भास्करानंद मंदिर में पहुंचे तो गुरुदेव मुक्तानंद की तेज आंखें उन के ऊपर ठहर गईं, ‘‘क्यों, रात सो नहीं पाए?’’

भास्करानंद चुप थे.

‘‘रात को भोजन कम किया करो,’’ गुरुदेव बोले, ‘‘संन्यासी को चाहिए कि सोते समय वह टीवी से दूर रहे. तुम रात को भी उधर अतिथिगृह में घूमते रहते हो, क्यों?’’

भास्करानंद चुप रहे. वे गुरुदेव को क्या बताते कि श्यामली का रूपसौंदर्य उन्हें इतना विचलित किए हुए है कि उन्हें नींद ही नहीं आती.

गुरुदेव से बिना कुछ कहे भास्करानंद मंदिर से बाहर आ गए.

तभी उन्हें आश्रम में श्यामली आती हुई दिखाई दी. उस की थाली में गुड़हल के लाल फूल रखे थे. उस ने अपने घने काले बालों को जूड़े में बांध कर चमेली की माला के साथ गूंथा था. एक भीनीभीनी खुशबू उन के पास से होती हुई चली जा रही थी. उन्हें लगा कि वे अभी, यहीं बेसुध हो जाएंगे.

‘‘स्वामीजी प्रणाम,’’ श्यामली ने भास्करानंद के चरणों में झुक कर प्रणाम किया तो उस के वक्ष पर आया उभार अचानक भास्करानंद की आंखों को स्फरित करता चला गया और वे आंखें फाड़ कर उसे देखते रह गए.

श्यामली तो प्रणाम कर चली गई लेकिन भास्करानंद सर्प में रस्सी को या रस्सी में सर्प के आभास की गुत्थी में उलझे रहे.

विवेक चूड़ामणि समझाते हुए गुरुदेव कह रहे थे कि यह संसार मात्र मिथ्या है, निरंतर परिवर्तनशील, मात्र दुख ही दुख है. विवेक, वैराग्य और अभ्यास, यही साधन है. इस विष से बचने में ही कल्याण है.

पर भास्करानंद का चित्त अशांत ही रहा.

उस रात भास्करानंद ने गुरुजी से अचानक पूछा था.

‘‘गुरुजी, आचार्य कहते हैं, यह संसार विवर्त है, जो है ही नहीं. पर व्यवहार में तो मच्छर भी काट लेता है, तो तकलीफ होती है.’’

‘‘हूं,’’ गुरुजी चुप थे. फिर वे बोले, ‘‘सुनो भास्कर, तुम विवेकानंद को पढ़ो, वे तुम्हारी ही आयु के थे जब शिकागो गए थे. गुरु के प्रति उन जैसी निष्ठा ही अपरिहार्य है.’’

‘‘जी,’’ कह कर भास्कर चुप हो गए.

घर याद आया. जहां खानेपीने का अभाव था. भास्कर आगे पढ़ना चाह रहा था, पर कहीं कोई सुविधा नहीं. तभी गांव में गुरुजी का आना हुआ. उन से भास्कर की मुलाकात हुई. उन्होेंने भास्कर को अपनी किताब पढ़ने को दी. उस के आगे पढ़ने की इच्छा जान कर, उसे आश्रम में बुला लिया. अब वह ब्रह्मचारी हो गया था.

भास्कर का कसा हुआ बदन व गोरा रंग, आश्रम के सुस्वादु भोजन व फलाहार से उस की देह भी भरने लग गई.

एक दिन गुरुजी ने कहा, ‘‘देखो भास्कर, यह इतना बड़ा आश्रम है, इस के नाम खेती की जमीन भी है. यहां मंत्री भी आते हैं, संतरी भी. यह सब इस आश्रम की देन है. यह समाज अनुकरण पर खड़ा है. मैं आज पैंटशर्ट पहन कर सड़क पर चलूं तो कोई मुझे नमस्ते भी नहीं करेगा. यहां भेष पूजा जाता है.’’

भास्कर चुप रह जाता. वेदांत सूत्र पढ़ने लगता. वह लघु सिद्धांत कौमुदी तो बहुत जल्दी पढ़ गया. संस्कृत के अध्यापक कहते कि अच्छे संन्यासी के लिए अच्छा वक्ता होना आवश्यक है और अच्छे वक्ता के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है.

कर्नाटक की तेलंगपीठ के स्वामी दिव्यानंद भी आए थे. वे कह रहे थे, ‘‘तुम अंगरेजी का ज्ञान भी लो. दुनिया में नाम कमाना है तो अंगरेजी व संस्कृत दोनों का ज्ञान आवश्यक है. धाराप्रवाह बोलना सीखो. यहां भी ब्रांड ही बिकता है. जो बड़े सपने देखते हैं वे ही बड़े होते हैं.’’

भास्कर अवाक् था. स्वामीजी की बड़ी इनोवा गाड़ी पर लाल बत्ती लगी हुई थी. पुलिस की गाड़ी भी साथ थी. उन्होंने बहुत पहले अपने ऊपर हमला करवा लिया था, जिस में उन की पुरानी एंबैसेडर टूट गई थी. सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया था. उन के भक्तों ने सरकार पर दबाव बनाया, उन्हें सुरक्षा मिल गई थी. इस से 2 लाभ, आगे पुलिस की गाड़ी चलती थी तो रास्ते में रुकावट नहीं, दूसरे, इस से आमजन पर प्रभाव पड़ता है. भेंट जो 100 रुपए देते थे, वे 500 देने लग गए.

भास्कर समझ रहा था, जितना सीखना चाहता था, उतना ही उलझता जाता था. स्वामीजी के हाथ में हमेशा अंगरेजी के उपन्यास रहते या मोटीमोटी किताबें. वे पढ़ते तो कम थे पर रखते हमेशा साथ थे.

उस दिन उन से पूछा तो बोले, ‘‘बेटा, ये सरकारी अफसर, कालेज के प्रोफेसर, सब इसी अंगरेजी भाषा को जानते हैं. जो संन्यासी अंगरेजी जानता है उस के ये तुरंत गुलाम बन जाते हैं. समझो, विवेकानंद अगर बंगला भाषा बोलते और अमेरिका जाते तो चार आदमी भी उन्हें नहीं मिलते. अंगरेजी भाषा ने ही उन्हें दुनिया में पूजनीय बनाया. तुम्हारे ओशो भी इन्हीं भक्तों की कृपा से दुनिया में पहुंचे. योग साधना से नहीं. किताबें तो वे पतंजलि पर भी लिख गए. खूब बोले भी पर खुद दुनिया भर की सारी बीमारियों से मरे. कभी किसी ने उन से पूछा कि आप ने जिस योग साधना की बातें बताईं, उन्हें आप ने क्यों नहीं अपनाया और आप का शरीर स्वस्थ क्यों नहीं रहा?

‘‘बातें हमेशा बात करने के लिए होती हैं. दूसरों को चलाओ, तुम चलने लगे तो तकलीफ होगी. इस जनता पर अंगरेजी का प्रभाव पड़ता है. तुम सीखो, तुम्हारी उम्र है.’’

भास्कर पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक गांव से आया था. गुरुजी उसे योग विद्या सिखा रहे थे. ब्रह्मसूत्र पढ़वा रहे थे. स्वामी दिव्यानंद उसे अंगरेजी भाषा में दक्ष करना चाह रहे थे.

बनारस में उस के मित्र जो देहात से आए थे उन्होंने एम.बी.ए. में दाखिला लिया था. दाखिला लेते ही रात को सोते समय भी वे मुश्किल से टाई उतारते थे. वे कहते थे, हमारी पहचान ड्रेसकोड से होती है.

स्वामीजी कह रहे थे, ‘‘संन्यासी की पहचान उस की मुद्रा है. उस का ड्रेसकोड है. उत्तरीय कैसे डाला जाए, सीखो. शाल कैसे ओढ़ते हैं, सीखो. रहस्य ही संन्यासी का धन है. जो भी मिलने आए उसे बाहर बैठाओ. जब पूरी तरह व्यवस्थित हो जाओ तब उसे पास बुलाओ. उसे लगे कि तुम गहरे ध्यान में थे, व्यस्त थे. उसे बस देखो, उसे बोलने दो, वह बोलताबोलता अपनी समस्या पर आ जाएगा. उसे वहीं पकड़ लो. देखो, हर व्यक्ति सफलता चाहता है. उसी के लिए उस का सबकुछ दांव पर लगा होता है. तुम्हें क्या करना है, उस से अच्छा- अच्छा बोलो. यहां 20 आते हैं, 5 का सोचा हो जाता है. 5 का नहीं होता. जिन 5 का हो जाता है, वे अगले 25 से कहते हैं. फिर यहां 30 आते हैं. जिन का नहीं हुआ वे नहीं आएं तो क्या फर्क पड़ता है. सफलता की बात याद रखो, बाकी भूल जाओ.’’

भास्कर यह सब सुन कर अवाक् था.

स्वामी विद्यानंद यहां आए थे. गुरुजी ने उन के प्रवचन करवाए. शहर में बड़ेबड़े विज्ञापनों के बैनर लगे. उन के कटआउट लगे. काफी भक्तजन आए. भास्कर का काम था कि वह सब से पहले 200 व 500 रुपए के कुछ नोट उन के सामने चुपचाप रख आता था. वहां इतने रुपयों को देख कर, जो भी उन से मिलने आता, वह भी 200 व 500 रुपए से कम भेंट नहीं देता था.

भास्कर समझ गया था कि ग्लैमर और करिश्मा क्या होता है. ‘ग्लैमर’ दूसरे की आंख में आकर्षण पैदा करना है. स्वामीजी के कासमैटिक बौक्स में तरहतरह की क्रीम रखी थीं. वे खुशबू भी पसंद करते थे. दक्षिणी सिल्क का परिधान था. आने वाला उन के सामने झुक जाता था.

पर भास्कर का मन स्वामी दिव्यानंद समझ नहीं पाए.

श्यामली के सामने आते ही भास्कर ब्रह्मसूत्र भूल जाता. वह शंकराचार्य के स्थान पर वात्स्यायन को याद करने लग जाता.

‘नहीं, भास्कर नहीं,’ वह अपने को समझाता. क्या मिलेगा वहां. समाज की गालियां अलग. कोई नमस्कार भी नहीं करेगा. 4-5 हजार की नौकरी. तब क्या श्यामली इस तरह झुक कर प्रणाम करेगी. इसीलिए भास्कर श्यामली को देखते ही आश्रम के पिछवाड़े के बगीचे में चला जाता. वह श्यामली की छाया से भी बचना चाह रहा था.

श्यामली अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. संस्कृत में उस ने एम.ए. किया था. रामानुजाचार्य के श्रीभाष्य पर उस ने पीएच.डी. की है तथा शासकीय महाविद्यालय में प्राध्यापिका थी. मातापिता दोनों शिक्षण जगत में रहे थे. धन की कोई कमी नहीं. पिता ने आश्रम के पास के गांव में 20 बीघा कृषि योग्य भूमि ले रखी थी. वहां वे अपने फार्म पर रहा करते थे. श्यामली के विवाह को ले कर मां चिंतित थीं. न जाने कितने प्रस्ताव वे लातीं, पर श्यामली सब को मना कर देती. श्यामली तो भास्कर को ही अपने समीप पाती थी.

भास्कर मानो सूर्य हो, जिस का सान्निध्य पाते ही श्यामली कुमुदिनी सी खिल जाती थी. मां ने बहुत समझाया पर श्यामली तो मानो जिद पर अड़ी थी. वह दिन में एक बार आश्रम जरूर जाती थी.

उस दिन भास्कर दिन भर बगीचे में रहा था. वह मंदिर न जा कर पंचवटी के नीचे दरी बिछा कर पढ़ता रहा. ध्यान की अवस्था में भास्कर को लगा कि उस के पास कोई बैठा है.

‘‘कौन?’’ वह बोला.

पहले कोई आवाज नहीं, फिर अचानक तेज हंसी की बौछार के साथ श्यामली बोली, ‘‘मुझ से बच कर यहां आ गए हो संन्यासी?’’

‘‘श्यामली, मैं संन्यासी हूं.’’

‘‘मैं ने कब कहा, नहीं हो. पर मैं

ने श्रीभाष्य पर पीएच.डी. की है. रामानुजाचार्य गृहस्थ थे. वल्लभाचार्य भी गृहस्थ थे. उन के 7 पुत्र थे. उन की पीढ़ी में आज भी सभी महंत हैं. कहीं कोई कमी नहीं है. पुजापा पाते हैं. कोठियां हैं, जो महल कहलाती हैं. क्या वे संत नहीं हैं?’’

‘‘तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘तुम्हें,’’ श्यामली बोली, ‘‘भास्कर, तुम मेरे लिए ही यहां आए हो. तुम जिस परंपरा में जा रहे हो वहां वीतरागता है, पलायन है. देखो, अध्यात्म का संन्यास से कोई संबंध नहीं है. यह पतंजलि की बनाई हुई रूढि़ है, जिसे बहुत पहले इसलाम ने तोड़ दिया था. हमारे यहां रामानुज और वल्लभाचार्य तोड़ चुके थे. गृहस्थ भी संन्यासी है अगर वह दूसरे पर आश्रित नहीं है. अध्यात्म अपने को समझने का मार्ग है. आज का मनोविज्ञान भी यही कहता है पर तुम्हारे जैसे संन्यासी तो पहले दिन से ही दूसरे पर आश्रित होते हैं.’’

‘‘तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘जो तुम चाहते हो पर कह नहीं पाते हो, तभी तो मना कर रहे हो. यहां छिप कर बैठे हो?’’

भास्कर चुप सोचता रहा कि गुरुजी कह रहे थे कि इस साधना पथ पर विकारों को प्रश्रय नहीं देना है.

‘‘मैं तुम्हें किसी दूसरे की नौकरी नहीं करने दूंगी,’’ श्यामली बोली, ‘‘हमारा 20 बीघे का फार्म है. वहां योगपीठ बनेगा. तुम प्रवचन दो, किताबें लिखो, जड़ीबूटी का पार्क बनेगा. वृद्धाश्रम भी होगा, मंदिर भी होगा, एक अच्छा स्कूल भी होगा. हमारी परंपरा होगी. एक सुखी, स्वस्थ परिवार.

‘‘भास्कर, रामानुज कहते हैं चित, अचित, ब्रह्म तीनों ही सत्य हैं, फिर पलायन क्यों? हम दोनों मिल कर जो काम करेंगे, वह यह मठ नहीं कर सकता. यहां बंधन है. हर संन्यासी के बारे में सहीगलत सुना जाता है. तुम खुद जानते हो. भास्कर, मैं तुम से प्यार करती हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. मैं तुम्हारा बंधन नहीं बनूंगी. तुम्हें ऊंचे आकाश में जहां तक उड़ सको, उड़ने की स्वतंत्रता दूंगी,’’ इतना कह श्यामली भास्कर से लिपट गई थी. वृक्ष और लता दोनों परस्पर एक हो गए थे. उस पंचवटी के घने वृक्षों की छाया में, जैसे समय भी आ कर ठहर गया हो. श्यामली ने भास्करानंद को अपनी बांहों के घेरे में ले लिया था.

दोनों की सांसें टकराईं तो भास्कर सोचने लगा कि स्त्री के बिना पुरुष अधूरा है.

पंचवटी के घने वृक्षों की छाया में दोनों शरीर सुख के अलौकिक आनंद से सराबोर हो रहे थे. गहरी सांसों के साथ वे हर बार एक नई ऊर्जा में तरंगित हो रहे थे.

थोड़ी देर बाद श्यामली बोली, ‘‘भास्कर, तुम नहीं जानते, इस मठ के पूर्व गुरु की प्रेमिका की बेटी ही करुणामयी मां हैं?’’

‘‘नहीं?’’

‘‘यही सच है.’’

‘‘नहीं, यह सुनीसुनाई बात है.’’

‘‘तभी तो पूर्व महंतजी ने गद्दी छोड़ी थी और अपनी संपत्ति इन को दे गए, अपनी बेटी को…’’

भास्कर चुप रह गया था. यह उस के सामने नया ज्ञान था. क्या श्यामली सही कह रही है?

‘‘भास्कर, यह हमारी जमीन है, हम यहां पांचसितारा आश्रम बनाएंगे. जानते हो मेरी दादी कहा करती थीं, ‘रोटी खानी शक्कर से, दुनिया ठगनी मक्कर से’ दुनिया तो नाचने को तैयार बैठी है, इसे नचाने वाला चाहिए. आश्रम ऐसा हो जहां युवक आने को तरसें और बूढ़े जिन के पास पैसा है वे यहां आ कर बस जाएं. मैं जानती हूं कि सारी उम्र प्राध्यापकी करने से कितना मिलेगा? तुम योग सिखाना, वेदांत पर प्रवचन देना, लोगों की कुंडलिनी जगाना, मैं आश्रम का कार्यभार संभाल लूंगी, हम दोनों मिल कर जो दुनिया बसाएंगे, उसे पाने के लिए बड़ेबड़े महंत भी तरसेंगे.’’

श्यामली की गोद में सिर रख कर भास्कर उन सपनों में खो गया था जो आने वाले कल की वास्तविकता थी.

घरेलू प्रदूषण से छुटकारा दिलाएंगे ये 8 उपाय

घर हो या बाहर प्रदूषण आज हर जगह है. बाहर के प्रदूषण पर तो हमारा उतना बस नहीं है, लेकिन घर के प्रदूषण को हम अपनी थोड़ी सी कोशिश और सजगता से जरूर कम कर सकते हैं. ठंड में तो हमें और भी सचेत हो जाना चाहिए. इस की वजह यह है कि ठंड के मौसम में धूलधुआं ऊपर नहीं उठ पाता और सारा प्रदूषण हमारे इर्दगिर्द जमा होता रहता है. ठंड के मौसम में कुहरा होने के कारण कार्बन डाईऔक्साइड, मिथेन और नाइट्रस औक्साइड जैसी खतरनाक गैसों का प्रकोप और अधिक बढ़ जाता है.

वैसे कुहरा नुकसानदेह नहीं होता है, लेकिन जब इस में धूल, धुआं मिलता है तो यह खतरनाक हो जाता है. इसलिए ठंड के मौसम में प्रदूषण और बढ़ जाता है. तभी तो इस मौसम में आंखों में जलन, नाक में खुजली, गले में खराश, खांसी जैसी परेशानियां होती हैं. इन के अलावा फेफड़ों में संक्रमण की भी शिकायत हो जाती है. कारण, इस मौसम में वातावरण में तरहतरह के वायरस सक्रिय हो जाते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि हर साल 43 लाख लोग घर के प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं. अत: घर के प्रदूषण से बचना भी चुनौती ही है. फिर भी थोड़ी सी जागरूकता बरत कर घर को प्रदूषण से बचाया जा सकता है. आइए, जानते हैं कैसे.

1. धूम्रपान सेहत के लिए खतरनाक है, फिर भी लोग धूम्रपान करते हैं. जो इस के आदी हैं, उन के लिए तो यह जानलेवा है ही, उन के लिए भी खतरनाक है, जो धूम्रपान नहीं करते. ऐक्टिव स्मोकिंग से ज्यादा खतरनाक पैसिव स्मोकिंग होती है. इसीलिए सब से पहले तो परिवार के जो सदस्य धूम्रपान के आदी हैं वे घर में इस का धुआं न फैलाएं. धूम्रपान का सब से बुरा असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है. इस के अलावा अगर घर का कोई सदस्य दिल की बीमारी या फेफड़ों के संक्रमण से ग्रस्त है, तो उस के लिए पैसिव स्मोकिंग जानलेवा हो सकती है.

2. कीटनाशक के प्रयोग में सावधानी बरतें. घर की मक्खियों, मच्छरों, तिलचट्टों आदि से छुटकारा पाने के लिए बाजार में तरहतरह के रिपेलैंट अगरबत्ती या लिक्विड दोनों ही रूपों में उपलब्ध हैं. ये तमाम तरह के रिपेलैंट कीड़ेमकोड़ों को भगाने के साथसाथ घर में प्रदूषण फैलाने का भी काम करते हैं. दोनों ही तरह के रिपेलैंट से हानिकारक रसायन और जहरीले धुएं से सेहत को नुकसान पहुंचता है. बच्चों और बुजुर्गों को सांस की परेशानी, खांसी और ऐलर्जी की शिकायत हो जाती है.

3. घर में कीड़ेमकोड़े होने से भी घर का प्रदूषण बढ़ता है. घर में चींटियां, मकडि़यां गंदगी फैलाती हैं. इन के अलावा चूहों, तिलचट्टों और छिपकलियों की बीट से भी प्रदूषण फैलता है. अत: घर की नियमित साफसफाई बेहद जरूरी है. परदों और गलीचों में खूब धूल जम जाती है, इसलिए इन की भी समयसमय पर सफाई करते रहें. रसोई और बाथरूम की नालियों की सफाई का भी खासतौर पर ध्यान रखें. कई बार नाली या पानी का पाइप फट जाता है. पर चूंकि नालियां और पानी के पाइप लाइन दीवार में काउंसलिंग सिस्टम से लगाए जाते हैं, इसलिए इन में आई खराबी का तब तक पता नहीं चलता जब तक दीवार में सीलन नजर नहीं आती. इस से रसोई और बाथरूम में तिलचट्टों और सीलन की समस्या बढ़ती है. अत: नाली या पानी के पाइप में कहीं कोई गड़बड़ी आती है, तो उस की तुरंत मरम्मत करवाएं.

4. घर की दीवारों में इस्तेमाल होने वाले रंग में कम से कम मात्रा में सीसा और वीओसी (वाष्पशील कार्बनिक यौगिक) हो, इस का ध्यान रखें. ऐसी कंपनी के रंग का चुनाव करें, जिस में सीसा और वीओसी हो ही न. इस का कारण यह है कि वीओसी में फौर्मैलडिहाइड और ऐसिटैलडिहाइड जैसे खतरनाक रसायन होते हैं, जो स्नायुतंत्र को प्रभावित करते हैं. बच्चों पर इन का असर और भी खतरनाक होता है. सीसा बच्चों के दिमागी विकास में रुकावट डालता है, इसलिए ऐसे रंगों का चुनाव करें, जिन में कम से कम मात्रा में सीसा और वीओसी हो.

5. घर के प्रदूषण से छुटकारा पाने के लिए ऐरोगार्ड या एअरप्यूरिफायर का इस्तेमाल करें.

6. घर के प्रदूषण में सब से बड़ी भूमिका रसोई की होती है. खाना बनाते वक्त निकलने वाला धुआं प्रदूषण फैलाता है. यह धुआं दमे के मरीज के लिए बहुत ही तकलीफदायक होता है. स्वस्थ व्यक्ति को भी छींक और खांसी की तकलीफ होती है. इसलिए रसोई के प्रदूषण से निबटने के लिए चिमनी या ऐग्जौस्ट फैन का इस्तेमाल करें. ये धुएं को घर में फैलने से रोकते हैं. कुछ होम ऐप्लायंस भी प्रदूषण फैलाते हैं खासतौर पर एअरकंडीशनर. इसलिए समयसमय पर भी इन की भी साफसफाई करती रहें. अगर एअरकंडीशनर के फिल्टर को नियमित रूप से साफ न किया जाए, तो यह सेहत के लिए नुकसानदेह होता है. इस के फिल्टर पर जमने वाली धूल की परत सांस की तकलीफ बढ़ाती है. इतना ही नहीं यह ऐलर्जी का भी कारण बनती है. इस से फेफड़ों में संक्रमण से खांसी की शिकायत भी हो सकती है.

7. घर की दीवार में दरार भी प्रदूषण के लिहाज से नुकसानदेह हो सकती है. छत या दीवार में दरार से कमरों में सीलन आती है. सीलन से सर्दी, खांसी ओर सांस से संबंधित तमाम बीमारियां परिवार के सदस्यों को हो सकती हैं. इसलिए घर की दीवार या छत में कहीं कोई दरार दिखाई दे तो उस की तुरंत मरम्मत करा लें.

8. घर में वैंटिलेशन का पूरा इंतजाम हो. सुबह के समय घर की सभी खिड़कियां और दरवाजे खोल दें. परदों को भी हटा दें ताकि घर में ताजा हवा आ सके. ताजा हवा घर के भीतर की प्रदूषित हवा का असर कम कर देती है.

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