Download Grihshobha App

Winter Special: लंच में परोसें दलिया पुलाव

वीकेंड के बाद अगर आप हेल्दी डिश अपनी फैमिली के लिए बनाना चाहते हैं तो दलिया पुलाव की ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

सामग्री

1/2 कप दलिया,

2 छोटी गाजरें छोटे टुकड़ों में कटी हुई,

1 आलू छोटे टुकड़ों में कटा हुआ,

4-5 फ्रैंचबींस कटी हुई,

1 प्याज मध्यम आकार का कटा हुआ,

1/4 कप हरे मटर,

1/4 कप कौर्न, 3-4 लौंग,

7-8 साबूत कालीमिर्चें,

1 तेजपत्ता,

1 इंच दालचीनी का टुकड़ा,

2-3 हरीमिर्चें कटी हुई,

1 छोटा चम्मच जीरा,

1 बड़ा चम्मच औयल,

1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर.

विधि

दलिए को दोगुने पानी में भिगोने के लिए रखें. 1 घंटे बाद प्रैशर कुकर में 2 सीटियां लगा कर अलग रख लें. अब कड़ाही में तेल गरम करें. इस में तेजपत्ता, साबूत जीरा, कालीमिर्च, दालचीनी और लौंग डालें. अब इस में हरीमिर्च मिला कर सुनहरा होने तक भूनें. अब गाजर, फ्रैंच बींस, आलू, कौर्न, नमक और हलदी मिला कर पकाएं. फिर इस में दलिया डाल कर अच्छी तरह मिलाएं और गरमगरम परोसें.

कर लो दुनिया मुट्ठी में: श्यामली ने क्या ज्ञान दिया

गुरुदेव ने रात को भास्करानंद को एक लंबा भाषण पिला दिया था. ‘‘नहीं, भास्कर नहीं, तुम संन्यासी हो, युवाचार्य हो, यह तुम्हें क्या हो गया है. तुम संध्या को भी आरती के समय नहीं थे. रात को ध्यान कक्ष में भी नहीं आए? आखिर कहां रहे? आगे आश्रम का सारा कार्यभार तुम्हें ही संभालना है.’’

भास्करानंद बस चुप रह गए.

रात को लेटते ही श्यामली का चेहरा उन की आंखों के सामने आ गया तो वे बेचैन हो उठे.

आंख बंद किए स्वामी भास्करानंद सोने का अथक प्रयास करते रहे पर आंखों में बराबर श्यामली का चेहरा उभर आता.

खीझ कर भास्करानंद बिस्तर से उठ खड़े हुए. दवा के डब्बे से नींद की गोली निकाली. पानी के साथ निगली और लेट गए. नींद कब आई पता नहीं. जब आश्रम के घंटेघडि़याल बज उठे, तब चौंक कर उठे.

‘लगता है आज फिर देर हो गई है,’ वे बड़- बड़ाए.

पूजा के समय भास्करानंद मंदिर में पहुंचे तो गुरुदेव मुक्तानंद की तेज आंखें उन के ऊपर ठहर गईं, ‘‘क्यों, रात सो नहीं पाए?’’

भास्करानंद चुप थे.

‘‘रात को भोजन कम किया करो,’’ गुरुदेव बोले, ‘‘संन्यासी को चाहिए कि सोते समय वह टीवी से दूर रहे. तुम रात को भी उधर अतिथिगृह में घूमते रहते हो, क्यों?’’

भास्करानंद चुप रहे. वे गुरुदेव को क्या बताते कि श्यामली का रूपसौंदर्य उन्हें इतना विचलित किए हुए है कि उन्हें नींद ही नहीं आती.

गुरुदेव से बिना कुछ कहे भास्करानंद मंदिर से बाहर आ गए.

तभी उन्हें आश्रम में श्यामली आती हुई दिखाई दी. उस की थाली में गुड़हल के लाल फूल रखे थे. उस ने अपने घने काले बालों को जूड़े में बांध कर चमेली की माला के साथ गूंथा था. एक भीनीभीनी खुशबू उन के पास से होती हुई चली जा रही थी. उन्हें लगा कि वे अभी, यहीं बेसुध हो जाएंगे.

‘‘स्वामीजी प्रणाम,’’ श्यामली ने भास्करानंद के चरणों में झुक कर प्रणाम किया तो उस के वक्ष पर आया उभार अचानक भास्करानंद की आंखों को स्फरित करता चला गया और वे आंखें फाड़ कर उसे देखते रह गए.

श्यामली तो प्रणाम कर चली गई लेकिन भास्करानंद सर्प में रस्सी को या रस्सी में सर्प के आभास की गुत्थी में उलझे रहे.

विवेक चूड़ामणि समझाते हुए गुरुदेव कह रहे थे कि यह संसार मात्र मिथ्या है, निरंतर परिवर्तनशील, मात्र दुख ही दुख है. विवेक, वैराग्य और अभ्यास, यही साधन है. इस विष से बचने में ही कल्याण है.

पर भास्करानंद का चित्त अशांत ही रहा.

उस रात भास्करानंद ने गुरुजी से अचानक पूछा था.

‘‘गुरुजी, आचार्य कहते हैं, यह संसार विवर्त है, जो है ही नहीं. पर व्यवहार में तो मच्छर भी काट लेता है, तो तकलीफ होती है.’’

‘‘हूं,’’ गुरुजी चुप थे. फिर वे बोले, ‘‘सुनो भास्कर, तुम विवेकानंद को पढ़ो, वे तुम्हारी ही आयु के थे जब शिकागो गए थे. गुरु के प्रति उन जैसी निष्ठा ही अपरिहार्य है.’’

‘‘जी,’’ कह कर भास्कर चुप हो गए.

घर याद आया. जहां खानेपीने का अभाव था. भास्कर आगे पढ़ना चाह रहा था, पर कहीं कोई सुविधा नहीं. तभी गांव में गुरुजी का आना हुआ. उन से भास्कर की मुलाकात हुई. उन्होेंने भास्कर को अपनी किताब पढ़ने को दी. उस के आगे पढ़ने की इच्छा जान कर, उसे आश्रम में बुला लिया. अब वह ब्रह्मचारी हो गया था.

भास्कर का कसा हुआ बदन व गोरा रंग, आश्रम के सुस्वादु भोजन व फलाहार से उस की देह भी भरने लग गई.

एक दिन गुरुजी ने कहा, ‘‘देखो भास्कर, यह इतना बड़ा आश्रम है, इस के नाम खेती की जमीन भी है. यहां मंत्री भी आते हैं, संतरी भी. यह सब इस आश्रम की देन है. यह समाज अनुकरण पर खड़ा है. मैं आज पैंटशर्ट पहन कर सड़क पर चलूं तो कोई मुझे नमस्ते भी नहीं करेगा. यहां भेष पूजा जाता है.’’

भास्कर चुप रह जाता. वेदांत सूत्र पढ़ने लगता. वह लघु सिद्धांत कौमुदी तो बहुत जल्दी पढ़ गया. संस्कृत के अध्यापक कहते कि अच्छे संन्यासी के लिए अच्छा वक्ता होना आवश्यक है और अच्छे वक्ता के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है.

कर्नाटक की तेलंगपीठ के स्वामी दिव्यानंद भी आए थे. वे कह रहे थे, ‘‘तुम अंगरेजी का ज्ञान भी लो. दुनिया में नाम कमाना है तो अंगरेजी व संस्कृत दोनों का ज्ञान आवश्यक है. धाराप्रवाह बोलना सीखो. यहां भी ब्रांड ही बिकता है. जो बड़े सपने देखते हैं वे ही बड़े होते हैं.’’

भास्कर अवाक् था. स्वामीजी की बड़ी इनोवा गाड़ी पर लाल बत्ती लगी हुई थी. पुलिस की गाड़ी भी साथ थी. उन्होंने बहुत पहले अपने ऊपर हमला करवा लिया था, जिस में उन की पुरानी एंबैसेडर टूट गई थी. सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया था. उन के भक्तों ने सरकार पर दबाव बनाया, उन्हें सुरक्षा मिल गई थी. इस से 2 लाभ, आगे पुलिस की गाड़ी चलती थी तो रास्ते में रुकावट नहीं, दूसरे, इस से आमजन पर प्रभाव पड़ता है. भेंट जो 100 रुपए देते थे, वे 500 देने लग गए.

भास्कर समझ रहा था, जितना सीखना चाहता था, उतना ही उलझता जाता था. स्वामीजी के हाथ में हमेशा अंगरेजी के उपन्यास रहते या मोटीमोटी किताबें. वे पढ़ते तो कम थे पर रखते हमेशा साथ थे.

उस दिन उन से पूछा तो बोले, ‘‘बेटा, ये सरकारी अफसर, कालेज के प्रोफेसर, सब इसी अंगरेजी भाषा को जानते हैं. जो संन्यासी अंगरेजी जानता है उस के ये तुरंत गुलाम बन जाते हैं. समझो, विवेकानंद अगर बंगला भाषा बोलते और अमेरिका जाते तो चार आदमी भी उन्हें नहीं मिलते. अंगरेजी भाषा ने ही उन्हें दुनिया में पूजनीय बनाया. तुम्हारे ओशो भी इन्हीं भक्तों की कृपा से दुनिया में पहुंचे. योग साधना से नहीं. किताबें तो वे पतंजलि पर भी लिख गए. खूब बोले भी पर खुद दुनिया भर की सारी बीमारियों से मरे. कभी किसी ने उन से पूछा कि आप ने जिस योग साधना की बातें बताईं, उन्हें आप ने क्यों नहीं अपनाया और आप का शरीर स्वस्थ क्यों नहीं रहा?

‘‘बातें हमेशा बात करने के लिए होती हैं. दूसरों को चलाओ, तुम चलने लगे तो तकलीफ होगी. इस जनता पर अंगरेजी का प्रभाव पड़ता है. तुम सीखो, तुम्हारी उम्र है.’’

भास्कर पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक गांव से आया था. गुरुजी उसे योग विद्या सिखा रहे थे. ब्रह्मसूत्र पढ़वा रहे थे. स्वामी दिव्यानंद उसे अंगरेजी भाषा में दक्ष करना चाह रहे थे.

बनारस में उस के मित्र जो देहात से आए थे उन्होंने एम.बी.ए. में दाखिला लिया था. दाखिला लेते ही रात को सोते समय भी वे मुश्किल से टाई उतारते थे. वे कहते थे, हमारी पहचान ड्रेसकोड से होती है.

स्वामीजी कह रहे थे, ‘‘संन्यासी की पहचान उस की मुद्रा है. उस का ड्रेसकोड है. उत्तरीय कैसे डाला जाए, सीखो. शाल कैसे ओढ़ते हैं, सीखो. रहस्य ही संन्यासी का धन है. जो भी मिलने आए उसे बाहर बैठाओ. जब पूरी तरह व्यवस्थित हो जाओ तब उसे पास बुलाओ. उसे लगे कि तुम गहरे ध्यान में थे, व्यस्त थे. उसे बस देखो, उसे बोलने दो, वह बोलताबोलता अपनी समस्या पर आ जाएगा. उसे वहीं पकड़ लो. देखो, हर व्यक्ति सफलता चाहता है. उसी के लिए उस का सबकुछ दांव पर लगा होता है. तुम्हें क्या करना है, उस से अच्छा- अच्छा बोलो. यहां 20 आते हैं, 5 का सोचा हो जाता है. 5 का नहीं होता. जिन 5 का हो जाता है, वे अगले 25 से कहते हैं. फिर यहां 30 आते हैं. जिन का नहीं हुआ वे नहीं आएं तो क्या फर्क पड़ता है. सफलता की बात याद रखो, बाकी भूल जाओ.’’

भास्कर यह सब सुन कर अवाक् था.

स्वामी विद्यानंद यहां आए थे. गुरुजी ने उन के प्रवचन करवाए. शहर में बड़ेबड़े विज्ञापनों के बैनर लगे. उन के कटआउट लगे. काफी भक्तजन आए. भास्कर का काम था कि वह सब से पहले 200 व 500 रुपए के कुछ नोट उन के सामने चुपचाप रख आता था. वहां इतने रुपयों को देख कर, जो भी उन से मिलने आता, वह भी 200 व 500 रुपए से कम भेंट नहीं देता था.

भास्कर समझ गया था कि ग्लैमर और करिश्मा क्या होता है. ‘ग्लैमर’ दूसरे की आंख में आकर्षण पैदा करना है. स्वामीजी के कासमैटिक बौक्स में तरहतरह की क्रीम रखी थीं. वे खुशबू भी पसंद करते थे. दक्षिणी सिल्क का परिधान था. आने वाला उन के सामने झुक जाता था.

पर भास्कर का मन स्वामी दिव्यानंद समझ नहीं पाए.

श्यामली के सामने आते ही भास्कर ब्रह्मसूत्र भूल जाता. वह शंकराचार्य के स्थान पर वात्स्यायन को याद करने लग जाता.

‘नहीं, भास्कर नहीं,’ वह अपने को समझाता. क्या मिलेगा वहां. समाज की गालियां अलग. कोई नमस्कार भी नहीं करेगा. 4-5 हजार की नौकरी. तब क्या श्यामली इस तरह झुक कर प्रणाम करेगी. इसीलिए भास्कर श्यामली को देखते ही आश्रम के पिछवाड़े के बगीचे में चला जाता. वह श्यामली की छाया से भी बचना चाह रहा था.

श्यामली अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. संस्कृत में उस ने एम.ए. किया था. रामानुजाचार्य के श्रीभाष्य पर उस ने पीएच.डी. की है तथा शासकीय महाविद्यालय में प्राध्यापिका थी. मातापिता दोनों शिक्षण जगत में रहे थे. धन की कोई कमी नहीं. पिता ने आश्रम के पास के गांव में 20 बीघा कृषि योग्य भूमि ले रखी थी. वहां वे अपने फार्म पर रहा करते थे. श्यामली के विवाह को ले कर मां चिंतित थीं. न जाने कितने प्रस्ताव वे लातीं, पर श्यामली सब को मना कर देती. श्यामली तो भास्कर को ही अपने समीप पाती थी.

भास्कर मानो सूर्य हो, जिस का सान्निध्य पाते ही श्यामली कुमुदिनी सी खिल जाती थी. मां ने बहुत समझाया पर श्यामली तो मानो जिद पर अड़ी थी. वह दिन में एक बार आश्रम जरूर जाती थी.

उस दिन भास्कर दिन भर बगीचे में रहा था. वह मंदिर न जा कर पंचवटी के नीचे दरी बिछा कर पढ़ता रहा. ध्यान की अवस्था में भास्कर को लगा कि उस के पास कोई बैठा है.

‘‘कौन?’’ वह बोला.

पहले कोई आवाज नहीं, फिर अचानक तेज हंसी की बौछार के साथ श्यामली बोली, ‘‘मुझ से बच कर यहां आ गए हो संन्यासी?’’

‘‘श्यामली, मैं संन्यासी हूं.’’

‘‘मैं ने कब कहा, नहीं हो. पर मैं

ने श्रीभाष्य पर पीएच.डी. की है. रामानुजाचार्य गृहस्थ थे. वल्लभाचार्य भी गृहस्थ थे. उन के 7 पुत्र थे. उन की पीढ़ी में आज भी सभी महंत हैं. कहीं कोई कमी नहीं है. पुजापा पाते हैं. कोठियां हैं, जो महल कहलाती हैं. क्या वे संत नहीं हैं?’’

‘‘तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘तुम्हें,’’ श्यामली बोली, ‘‘भास्कर, तुम मेरे लिए ही यहां आए हो. तुम जिस परंपरा में जा रहे हो वहां वीतरागता है, पलायन है. देखो, अध्यात्म का संन्यास से कोई संबंध नहीं है. यह पतंजलि की बनाई हुई रूढि़ है, जिसे बहुत पहले इसलाम ने तोड़ दिया था. हमारे यहां रामानुज और वल्लभाचार्य तोड़ चुके थे. गृहस्थ भी संन्यासी है अगर वह दूसरे पर आश्रित नहीं है. अध्यात्म अपने को समझने का मार्ग है. आज का मनोविज्ञान भी यही कहता है पर तुम्हारे जैसे संन्यासी तो पहले दिन से ही दूसरे पर आश्रित होते हैं.’’

‘‘तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘जो तुम चाहते हो पर कह नहीं पाते हो, तभी तो मना कर रहे हो. यहां छिप कर बैठे हो?’’

भास्कर चुप सोचता रहा कि गुरुजी कह रहे थे कि इस साधना पथ पर विकारों को प्रश्रय नहीं देना है.

‘‘मैं तुम्हें किसी दूसरे की नौकरी नहीं करने दूंगी,’’ श्यामली बोली, ‘‘हमारा 20 बीघे का फार्म है. वहां योगपीठ बनेगा. तुम प्रवचन दो, किताबें लिखो, जड़ीबूटी का पार्क बनेगा. वृद्धाश्रम भी होगा, मंदिर भी होगा, एक अच्छा स्कूल भी होगा. हमारी परंपरा होगी. एक सुखी, स्वस्थ परिवार.

‘‘भास्कर, रामानुज कहते हैं चित, अचित, ब्रह्म तीनों ही सत्य हैं, फिर पलायन क्यों? हम दोनों मिल कर जो काम करेंगे, वह यह मठ नहीं कर सकता. यहां बंधन है. हर संन्यासी के बारे में सहीगलत सुना जाता है. तुम खुद जानते हो. भास्कर, मैं तुम से प्यार करती हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. मैं तुम्हारा बंधन नहीं बनूंगी. तुम्हें ऊंचे आकाश में जहां तक उड़ सको, उड़ने की स्वतंत्रता दूंगी,’’ इतना कह श्यामली भास्कर से लिपट गई थी. वृक्ष और लता दोनों परस्पर एक हो गए थे. उस पंचवटी के घने वृक्षों की छाया में, जैसे समय भी आ कर ठहर गया हो. श्यामली ने भास्करानंद को अपनी बांहों के घेरे में ले लिया था.

दोनों की सांसें टकराईं तो भास्कर सोचने लगा कि स्त्री के बिना पुरुष अधूरा है.

पंचवटी के घने वृक्षों की छाया में दोनों शरीर सुख के अलौकिक आनंद से सराबोर हो रहे थे. गहरी सांसों के साथ वे हर बार एक नई ऊर्जा में तरंगित हो रहे थे.

थोड़ी देर बाद श्यामली बोली, ‘‘भास्कर, तुम नहीं जानते, इस मठ के पूर्व गुरु की प्रेमिका की बेटी ही करुणामयी मां हैं?’’

‘‘नहीं?’’

‘‘यही सच है.’’

‘‘नहीं, यह सुनीसुनाई बात है.’’

‘‘तभी तो पूर्व महंतजी ने गद्दी छोड़ी थी और अपनी संपत्ति इन को दे गए, अपनी बेटी को…’’

भास्कर चुप रह गया था. यह उस के सामने नया ज्ञान था. क्या श्यामली सही कह रही है?

‘‘भास्कर, यह हमारी जमीन है, हम यहां पांचसितारा आश्रम बनाएंगे. जानते हो मेरी दादी कहा करती थीं, ‘रोटी खानी शक्कर से, दुनिया ठगनी मक्कर से’ दुनिया तो नाचने को तैयार बैठी है, इसे नचाने वाला चाहिए. आश्रम ऐसा हो जहां युवक आने को तरसें और बूढ़े जिन के पास पैसा है वे यहां आ कर बस जाएं. मैं जानती हूं कि सारी उम्र प्राध्यापकी करने से कितना मिलेगा? तुम योग सिखाना, वेदांत पर प्रवचन देना, लोगों की कुंडलिनी जगाना, मैं आश्रम का कार्यभार संभाल लूंगी, हम दोनों मिल कर जो दुनिया बसाएंगे, उसे पाने के लिए बड़ेबड़े महंत भी तरसेंगे.’’

श्यामली की गोद में सिर रख कर भास्कर उन सपनों में खो गया था जो आने वाले कल की वास्तविकता थी.

घरेलू प्रदूषण से छुटकारा दिलाएंगे ये 8 उपाय

घर हो या बाहर प्रदूषण आज हर जगह है. बाहर के प्रदूषण पर तो हमारा उतना बस नहीं है, लेकिन घर के प्रदूषण को हम अपनी थोड़ी सी कोशिश और सजगता से जरूर कम कर सकते हैं. ठंड में तो हमें और भी सचेत हो जाना चाहिए. इस की वजह यह है कि ठंड के मौसम में धूलधुआं ऊपर नहीं उठ पाता और सारा प्रदूषण हमारे इर्दगिर्द जमा होता रहता है. ठंड के मौसम में कुहरा होने के कारण कार्बन डाईऔक्साइड, मिथेन और नाइट्रस औक्साइड जैसी खतरनाक गैसों का प्रकोप और अधिक बढ़ जाता है.

वैसे कुहरा नुकसानदेह नहीं होता है, लेकिन जब इस में धूल, धुआं मिलता है तो यह खतरनाक हो जाता है. इसलिए ठंड के मौसम में प्रदूषण और बढ़ जाता है. तभी तो इस मौसम में आंखों में जलन, नाक में खुजली, गले में खराश, खांसी जैसी परेशानियां होती हैं. इन के अलावा फेफड़ों में संक्रमण की भी शिकायत हो जाती है. कारण, इस मौसम में वातावरण में तरहतरह के वायरस सक्रिय हो जाते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि हर साल 43 लाख लोग घर के प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं. अत: घर के प्रदूषण से बचना भी चुनौती ही है. फिर भी थोड़ी सी जागरूकता बरत कर घर को प्रदूषण से बचाया जा सकता है. आइए, जानते हैं कैसे.

1. धूम्रपान सेहत के लिए खतरनाक है, फिर भी लोग धूम्रपान करते हैं. जो इस के आदी हैं, उन के लिए तो यह जानलेवा है ही, उन के लिए भी खतरनाक है, जो धूम्रपान नहीं करते. ऐक्टिव स्मोकिंग से ज्यादा खतरनाक पैसिव स्मोकिंग होती है. इसीलिए सब से पहले तो परिवार के जो सदस्य धूम्रपान के आदी हैं वे घर में इस का धुआं न फैलाएं. धूम्रपान का सब से बुरा असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है. इस के अलावा अगर घर का कोई सदस्य दिल की बीमारी या फेफड़ों के संक्रमण से ग्रस्त है, तो उस के लिए पैसिव स्मोकिंग जानलेवा हो सकती है.

2. कीटनाशक के प्रयोग में सावधानी बरतें. घर की मक्खियों, मच्छरों, तिलचट्टों आदि से छुटकारा पाने के लिए बाजार में तरहतरह के रिपेलैंट अगरबत्ती या लिक्विड दोनों ही रूपों में उपलब्ध हैं. ये तमाम तरह के रिपेलैंट कीड़ेमकोड़ों को भगाने के साथसाथ घर में प्रदूषण फैलाने का भी काम करते हैं. दोनों ही तरह के रिपेलैंट से हानिकारक रसायन और जहरीले धुएं से सेहत को नुकसान पहुंचता है. बच्चों और बुजुर्गों को सांस की परेशानी, खांसी और ऐलर्जी की शिकायत हो जाती है.

3. घर में कीड़ेमकोड़े होने से भी घर का प्रदूषण बढ़ता है. घर में चींटियां, मकडि़यां गंदगी फैलाती हैं. इन के अलावा चूहों, तिलचट्टों और छिपकलियों की बीट से भी प्रदूषण फैलता है. अत: घर की नियमित साफसफाई बेहद जरूरी है. परदों और गलीचों में खूब धूल जम जाती है, इसलिए इन की भी समयसमय पर सफाई करते रहें. रसोई और बाथरूम की नालियों की सफाई का भी खासतौर पर ध्यान रखें. कई बार नाली या पानी का पाइप फट जाता है. पर चूंकि नालियां और पानी के पाइप लाइन दीवार में काउंसलिंग सिस्टम से लगाए जाते हैं, इसलिए इन में आई खराबी का तब तक पता नहीं चलता जब तक दीवार में सीलन नजर नहीं आती. इस से रसोई और बाथरूम में तिलचट्टों और सीलन की समस्या बढ़ती है. अत: नाली या पानी के पाइप में कहीं कोई गड़बड़ी आती है, तो उस की तुरंत मरम्मत करवाएं.

4. घर की दीवारों में इस्तेमाल होने वाले रंग में कम से कम मात्रा में सीसा और वीओसी (वाष्पशील कार्बनिक यौगिक) हो, इस का ध्यान रखें. ऐसी कंपनी के रंग का चुनाव करें, जिस में सीसा और वीओसी हो ही न. इस का कारण यह है कि वीओसी में फौर्मैलडिहाइड और ऐसिटैलडिहाइड जैसे खतरनाक रसायन होते हैं, जो स्नायुतंत्र को प्रभावित करते हैं. बच्चों पर इन का असर और भी खतरनाक होता है. सीसा बच्चों के दिमागी विकास में रुकावट डालता है, इसलिए ऐसे रंगों का चुनाव करें, जिन में कम से कम मात्रा में सीसा और वीओसी हो.

5. घर के प्रदूषण से छुटकारा पाने के लिए ऐरोगार्ड या एअरप्यूरिफायर का इस्तेमाल करें.

6. घर के प्रदूषण में सब से बड़ी भूमिका रसोई की होती है. खाना बनाते वक्त निकलने वाला धुआं प्रदूषण फैलाता है. यह धुआं दमे के मरीज के लिए बहुत ही तकलीफदायक होता है. स्वस्थ व्यक्ति को भी छींक और खांसी की तकलीफ होती है. इसलिए रसोई के प्रदूषण से निबटने के लिए चिमनी या ऐग्जौस्ट फैन का इस्तेमाल करें. ये धुएं को घर में फैलने से रोकते हैं. कुछ होम ऐप्लायंस भी प्रदूषण फैलाते हैं खासतौर पर एअरकंडीशनर. इसलिए समयसमय पर भी इन की भी साफसफाई करती रहें. अगर एअरकंडीशनर के फिल्टर को नियमित रूप से साफ न किया जाए, तो यह सेहत के लिए नुकसानदेह होता है. इस के फिल्टर पर जमने वाली धूल की परत सांस की तकलीफ बढ़ाती है. इतना ही नहीं यह ऐलर्जी का भी कारण बनती है. इस से फेफड़ों में संक्रमण से खांसी की शिकायत भी हो सकती है.

7. घर की दीवार में दरार भी प्रदूषण के लिहाज से नुकसानदेह हो सकती है. छत या दीवार में दरार से कमरों में सीलन आती है. सीलन से सर्दी, खांसी ओर सांस से संबंधित तमाम बीमारियां परिवार के सदस्यों को हो सकती हैं. इसलिए घर की दीवार या छत में कहीं कोई दरार दिखाई दे तो उस की तुरंत मरम्मत करा लें.

8. घर में वैंटिलेशन का पूरा इंतजाम हो. सुबह के समय घर की सभी खिड़कियां और दरवाजे खोल दें. परदों को भी हटा दें ताकि घर में ताजा हवा आ सके. ताजा हवा घर के भीतर की प्रदूषित हवा का असर कम कर देती है.

हैप्पी मैरिड लाइफ के लिए 7 फेरों से पहले लें ये 4 संकल्प

पिछले साल एक समाचार ने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया जब बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने लालू यादव (अब चारा घोटाले में कैद) के बेटे तेजप्रताप के लिए दुलहन ढूंढ़ने हेतु 3 शर्तें रख डालीं.

पहली शर्त यह कि वे अपनी शादी में दहेज नहीं लेंगे, दूसरी वे अंगदान करने का संकल्प लें और तीसरी यह कि भविष्य में किसी की भी शादी में तोड़फोड़ करने की धमकी नहीं देंगे.

गौरतलब है कि गत वर्ष के आखिर में सुशील मोदी के बेटे उत्कर्ष तथागत की शादी संपन्न हुई थी. दूसरे नेताओं और अन्य नामचीन लोगों के मुकाबले शादी सादगी से निबटाई गई. बिना बैंडबाजे और भोज वाली इस शादी में मेहमानों को ई निमंत्रण कार्ड से आमंत्रित किया गया था. मेहमानों से अपील की गई थी कि वे कोई गिफ्ट या लिफाफा ले कर न आएं. समारोह स्थल पर केवल चाय और पानी के स्टौल लगाए गए थे. यद्यपि तेजप्रताप ने पहले इस शादी में घुस कर तोड़फोड़ की धमकी दी थी पर बाद में उस ने पासा पलटा और दुलहन खोजने की बात कर दी.

तेजप्रताप की दुलहन खोजने हेतु सुशील मोदी द्वारा रखी गई शर्तें काबिलेगौर होने के बावजूद अधूरी हैं. कई और ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें भी हैं, जिन के लिए शादी से पूर्व युवा लड़केलड़कियों और उन के परिवार वालों को राजी करवाना जरूरी होना चाहिए.

शादी में फुजूलखर्ची क्यों

हम शादियों में सजावट, बैंडबाजे, डीजे, रीतिरिवाजों और मेहमानों के स्वागतसत्कार में लाखों रुपए खर्च कर देते हैं. कईकई दिनों तक रीतिरिवाज चलते रहते हैं. पंडित और धर्म के तथाकथित ठेकेदारों की चांदी हो जाती है. वे मोटी रकम ऐंठते हैं. सजावट में लाखों रुपए बरबाद कर दिए जाते हैं. मेहमानों को तरहतरह के गिफ्ट दिए जाते हैं और कईकई दिनों तक उन के ठहरने के इंतजाम पर भी काफी रुपए बहा दिए जाते हैं. सीमित आय वाले परिवार बेटी की शादी में अच्छेखासे कर्ज में डूब जाते हैं. जहां तक संपन्न वर्ग, बड़े बिजनैसमैन्स और राजनेताओं का सवाल है, तो उन में दूसरों से बेहतर करने की होड़ लगी रहती है.

बीजेपी के पूर्व नेता जनार्दन रेड्डी (जिन्होंने गैरकानूनी माइनिंग के एक मामले में करीब 40 महीने जेल की सजा काटी) ने अपनी बेटी की शादी में कई सौ करोड़ रुपए खर्च कर दिए.

नवंबर, 2016 में संपन्न इस शादी में 40-50 हजार लोगों को आमंत्रित किया गया था. पांचसितारा होटलों में 1,500 कमरे बुक हुए. हैलिकौप्टर उतरने के लिए 15 हैलीपैड बनाए गए. विवाहस्थल की सुरक्षा हेतु 3 हजार सुरक्षा गार्ड लगाए गए. बौलीवुड के आर्ट डाइरैक्टर्स ने विजयनगर स्टाइल के मंदिरों के कई भव्य सैट तैयार किए. दुलहन ने क्व17 करोड़ की साड़ी पहनी.

खास बात यह थी कि जिस वक्त बैंगलुरु में रेड्डी 5 दिनों तक भव्य समारोह कर रहे थे उस समय देश की आम जनता नोटबंदी की वजह से एटीएम और बैंकों के बाहर लंबीलंबी कतारों से जूझ रही थी.

शादियों में बेहिसाब खर्च किसी एक नेता ने किया हो, ऐसा नहीं है. ज्यादातर नेताओं, अमीर बिजनैसमैन्स व सैलिब्रिटीज के घरों की शादियां यों ही संपन्न होती हैं.

मगर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के लासूर में एक व्यापारी ने लोगों के लिए मिसाल कायम की. उन्होंने फुजूलखर्ची करने के बजाए उन रुपयों से गरीबों के लिए घर बनवा दिए.

महाराष्ट्र के अजय भुनोत की बेटी श्रेया की शादी 16 दिसंबर, 2016 को बिजनैसमैन मनोज जैन के बेटे के साथ तय हुई. दोनों परिवार आर्थिक रूप से संपन्न थे पर इस शादी को यादगार बनाने के लिए उन्होंने शोशेबाजी करने के बजाय गरीबों की मदद का मार्ग चुना.

शादी का खर्च बचा कर उन्होंने डेढ़ करोड़ रुपए में 2 एकड़ जमीन पर 90 मकान बनवाए और फिर शादी वाले दिन उन मकानों को आसपास के गरीब परिवारों को तोहफे के रूप में बांट कर अपनी खुशियों में उन्हें भी शरीक कर लिया.

जो लोग आर्थिक रूप से संपन्न हैं वे वाकई इस तरह अपने साथ दूसरों की जिंदगी में भी खुशियां भर सकते हैं. मगर आम जनता जिस के पास बहुत रुपए नहीं वह भी दिखावे के चक्कर में फुजूलखर्ची करने से बाज नहीं आती.

क्यों न इस तरह रुपए बरबाद करने के बजाय उन रुपयों की एफडी बना कर लड़के/लड़की के नाम जमा कर दी जाए जो उन के सुरक्षित भविष्य की वजह बने. जिंदगी में ऊंचनीच होने पर आप की यह समझदारी उन्हें हौसला देगी.

कुंडलियां नहीं हैल्थ रिपोर्ट मिलाएं

शादी में अमूमन लोग कुंडलियों और ग्रहनक्षत्रों का मिलान करते हैं. लड़केलड़की के 36 में से कम से कम 30-32 गुण भी मिल रहे हैं या नहीं, लड़की पर राहू या शनि की दशा तो नहीं चल रही, लड़की मंगली तो नहीं जैसे बेमतलब की बातों में उलझ कर पंडितों की जेबें गरम करते रहते हैं. पंडित अपनी मरजी से ग्रहनक्षत्रों के फेर बता कर लोगों से भरपूर माल लूटते रहते हैं.

पर क्या आप ने सोचा है कि आए दिन बीमारियां, कलह, संतानप्राप्ति में बाधा, तलाक जैसी परेशानियों से जूझ रहे युगल कुंडलियां मिलाने के बावजूद सुखशांति से क्यों नहीं जी पा रहे?

दरअसल, इस की वजह यह है कि हम धर्म के नाम पर ठगने वाले मौलवियों और पंडेपुजारियों के झांसे में तो आ जाते हैं पर स्वस्थ, सुखी और तनावरहित जिंदगी के लिए वास्तव में जो जरूरी है उसे नहीं समझ पाते. शादी के बंधन में बंधने से पहले कुछ मैडिकल टैस्ट आप को और आप के होने वाले बच्चे को कई स्वास्थ्य समस्याओं से बचा सकते हैं.relationship marriage

इस संदर्भ में 3 एच केयर डौट इन की फाउंडर ऐंड सीईओ डा. रूचि गुप्ता ने कुछ जरूरी मैडिकल टैस्ट के बारे में बताया:

आरएच इनकमपैटिबिलिटी (आरएच असंगति): अधिकतर लोग आरएच पौजिटिव होते हैं, लेकिन जनसंख्या का एक छोटा सा हिस्सा (करीब 15%) आरएच नैगेटिव होता है. आरएच फैक्टर लाल रक्त कणिकाओं पर लगा एक प्रोटीन होता है. अगर आप में आरएच फैक्टर है तो आप आरएच पौजिटिव हैं. अगर नहीं है तो आरएच नैगेटिव हैं. वैसे आरएच फैक्टर हमारे सामान्य स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करता है. लेकिन अगर मां और बच्चे का आरएच फैक्टर अलगअलग होगा तो यह मां और बच्चे दोनों के लिए समस्याएं पैदा कर सकता है. यह घातक भी हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि शादी से पहले आरएच फैक्टर की जांच करा ली जाए. अलगअलग आरएच फैक्टर्स वालों को आपस में शादी न करने की सलाह दी जाती है.

थैलेसीमिया की जांच: शादी से पहले थैलेसीमिया ट्रेट की जांच भी करा लें. भारत में करीब 6 करोड़ लोगों के थैलेसीमिया ट्रेट हैं. चूंकि इस ट्रेट का उन पर प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ता है, इसलिए अधिकतर लोग इस के बारे में नहीं जानते. यदि वे 2 लोग जिन में थैलेसीमिया ट्रेट है विवाह कर लेते हैं तो उन के बच्चों में खतरनाक थैलेसीमिया मेजर डिसीज होने की आशंका 25% तक होती है. इस की जांच साधारण ब्लड टैस्ट से हो जाती है और यह सुनिश्चित हो जाता है कि आप थैलेसीमिया ट्रेट के वाहक तो नहीं हैं?

एचआईवी ऐंड अदर सैक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीजेज टैस्ट: एचआईवी, हैपेटाइटिस बी और सी ऐसी स्वास्थ्य समस्याएं हैं जो जीवन भर चलती हैं. अगर सही इलाज न हो तो वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण हो सकता है. आप को अपने जीवनसाथी के मैडिकल स्टेटस के बारे में शादी से पहले ही पता चल जाएगा तो आप के लिए यह निर्णय लेना आसान होगा कि आप विवाहबंधन में बंधना चाहते हैं या नहीं.

ओवेरियन सिस्ट: अगर लड़की को पेट के निचले हिस्से में दर्द हो या पीरियड्स अनियमित हों तो वह ओवेरियन सिस्ट का टैस्ट जरूर करा ले. अगर सामान्य पेल्विक परीक्षण के दौरान सिस्ट का पता चलता है तो सिस्ट के बारे में डिटेल पता लगाने के लिए एबडोमिनल अल्ट्रासाउंड किया जाता है. सिस्ट की वजह से गर्भधारण में भी कठिनाई आ सकती है.

क्रोनिक डिसऔर्डर टेस्ट: इन जांचों के द्वारा जल्द ही विवाह बंधन में बंधने वाले युगल अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को गंभीर होने और अपने वैवाहिक जीवन को तनावपूर्ण होने से बचा सकते हैं.

साइकोलौजिकल टैस्ट: आज के हालात देखते हुए साइकोलौजिकल टैस्ट भी बहुत जरूरी हो गए हैं. इन में सिजोफ्रैनिया, डिप्रैशन, पर्सनैलिटी डिसऔर्डर, बाई पोलर डिसऔर्डर आदि की जांच की जाती है.relationship marriage

कोई राज न हो दरमियां

शादी एक ऐसा बंधन है, जिस में किसी भी तरह के राज या दुरावछिपाव के लिए कोई जगह नहीं होती. 2 व्यक्ति एकदूसरे के पूरक और राजदार बन जाते हैं. मगर जब भी इन के बीच कोई राज सामने आता है तो रिश्तों में कड़वाहट पैदा होनी शुरू हो जाती है. पतिपत्नी के अवैध सबंध, कोई गंभीर बीमारी, शारीरिक अक्षमता या जौब के बारे में दी गई गलत जानकारी इस तरह के विवादों की जड़ बनती है और बात मरनेमारने तक पहुंच जाती है.

क्या यह बेहतर नहीं कि लड़केलड़कियां शादी से पहले ही यह संकल्प ले लें कि वे कभी अपने जीवनसाथी से कोई राज छिपा कर नहीं रखेंगे.

शादी करते वक्त सामान्य रूप से लड़के वाले इस बात का ध्यान जरूर रखते हैं कि जिस परिवार से उन का रिश्ता जुड़ रहा है वह समृद्ध हो, उन की टक्कर का हो. लड़की में किसी तरह का दोष न हो वगैरह.

लड़की भले ही दलित वर्ग की हो, अपंग हो या उस के साथ कोई हादसा हो चुका हो उस के अंदर यदि एक योग्य जीवनसाथी बनने की क्षमता है, जीने का जज्बा है तो क्या वह सहज स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए?

दुलहन ढूंढ़ते वक्त क्या लड़के से यह संकल्प नहीं कराना चाहिए कि वह लड़की की फिजीक, सुंदरता, रंग, जाति या आकर्षण देखने के बजाए उस की भीतरी खूबसूरती देखेगा.

सोच मिलनी जरूरी

शादी के बाद अकसर रिश्ते टूटते हैं, क्योंकि पतिपत्नी का नजरिया आपस में नहीं मिलता. शादी से पहले ही एकदूसरे को पूरी तरह समझने और अपने सपनों को डिसकस करने का प्रयास जरूर करें. लड़कों को यह संकल्प दिलाना भी जरूरी है कि वे आने वाले समय में अपनी बीवी के सपनों को भी तरजीह देंगे, पत्नी की भावनाओ को समझेंगे. जब भी मौका मिले पत्नी के कैरियर, सपनों के लिए स्वयं कुरबानी देने से भी हिचकेंगे नहीं. दोनों समान रूप से घरपरिवार और आपसी रिश्तों को संभालने के लिए जिम्मेदार होंगे.

सही शेप में नहीं आते आपके नाखून?

क्या आपके साथ भी ऐसा होता है कि आपके नाखून जैसे ही शेप में आते हैं और आप यह सोचती हैं कि अब आप अपना फेवरिट नेल-पॉलिश लगाएंगी तभी ये टूट जाते हैं? अगर हां तो इसमें ज्यादा टेंशन वाली बात नहीं है. ज्यादातर महिलाओं को इस समस्या से दो-चार होना पड़ता है.

पर क्या आप जानती हैं कि ऐसा क्यों होता है? कम लोगों को ही पता होता है कि हमारे नाखूनों को भी पर्याप्त पोषण की जरूरत होती है और जब उन्हें यह नहीं मिल पाता है तो वे रूखे होकर टूटने लगते हैं. हालांकि अगर आप नीचे बताए गए उपायों को अपनाती हैं तो आपके नाखून स्वस्थ और मजबूत बने रहेंगे :

1. विटामिन सी की मसाज

अगर आप अपनी डाइट में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम ले रहे हैं तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है और साथ ही आपके नाखूनों के लिए भी. पर आपको अलग से भी अपने नाखूनों पर ध्यान देने की जरूरत है. विटामिन सी से मसाज करने पर नाखून मजबूत बनते हैं. संतरे के छिलके में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है. एक संतरे को छीलकर उसे धूप में सुखा लीजिए. बाद में इसे अच्छी तरह पीस लीजिए. इस पाउडर में कुछ मात्रा गुलाब जल की मिलाकर एक पेस्ट बनाएं और इससे सप्ताह में दो बार अपने नाखूनों पर मसाज करें. इस उपाय से नाखूनों में चमक आने के साथ ही ये मजबूत भी बनेंगे

2. तेल से करें मसाज

नारियल के तेल और बादाम के तेल से मसाज करने से नाखून मजबूत होते हैं. आप चाहें तो इनमें से किसी भी एक तेल से नाखूनों की मसाज कर सकती हैं. ये नाखूनों को अंदर से पोषित करने का काम करते हैं.

3. मॉइश्चराइजर से पोषित करें

रात को सोने से पहले किसी अच्छे मॉइश्चराइजर या फिर लोशन से अपने नाखूनों की मसाज करके सोएं. ऐसा करने से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और नाखून मजबूत होते हैं.

4. हरी सब्ज‍ियों के सेवन से

पालक और ब्रोकली जैसी हरी सब्जि‍यों में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है. इन सब्जि‍यों में पाए जाने वाले तत्व नाखूनों की ग्रोथ और उनकी मजबूती के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं.

फ्रांसीसी औरतें और रूस

रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के फ्रांसीसी औरतें कर्स कर रही हैं क्योंकि अब वे स्विमिंग पूल में अपनी सुंदर काया नहीं दिखा पाएंगी. दोनों का आपस में क्या रिलेशन है भई. असल में जब से भारत के प्रेसिडेंट ने अपनी पौवर दिखाने के लिए बिना बात के यूक्रेन पर अटैक किया है, यूरोप और अमेरिका ने रूस से ट्रेड पर पूरी सेंकशनें लगा दी हैं. बदले में रूस ने अपनी गैस यूरोप को बेचने पर रोक लगा दी है और धीरेधीरे यूरोप के घर ठंडे होते जा रहे हैं और इन सर्दियों में उन के ठिठुरने की नौबत आने वाली है.

इसी चक्कर में फ्रांस ने डिवाटड किया है कि पब्लिक स्वीङ्क्षमग पूलों में अब बहुत गर्भ पानी नहीं मिलेगा और यंग, स्लिम को मोटा, फुलबौडी स्विमिंग सूट पहनना होगा.

यह प्यार टौर्चर है. लड़कियां खाने में भरपूर डाइटिंग करती हैं, जौङ्क्षगग करती हैं, जिम जाती है. वर्क आउट करती हैं पर अब उन की स्लिम ट्रिस बौडी को कोई देख न सके तो सब करने का फायदा क्या.

हमारे यहां खातेपीते घरों की औरतें मोटी होती ही इसलिए हैं कि साड़ी और सलवारकमीज सूट में फैट लेयर काफी छिप जाती है और फिर बदन के बारे में लापरवाह हो जाती हैं. जहां बदन दिखाने की छूट होती है वहां लड़कियां अवेयर रहती हैं कि वे कैसी लग रही हैं.

पब्लिक गार्डन की तरह पब्लिक स्वीङ्क्षमग पूल सब से बड़े इंसैंटिव हो सकते हैं लड़कियों के फिट रखने के. यूरोप अमेरिका की लड़कियां इसीलिए ज्यादा फिट होती है क्योंकि वहां स्विमिंग पूल की भरमार है. हमारे यहां यह सिर्फ 5 स्टार कल्चर का हिस्सा है. होना तो यह चाहिए कि औरतों को केवल उस पार्टी को वोट देना चाहिए जो अपने मैनिफैस्टों में जौब्स दे या न दे, बहुत से स्विमिंग पुल जरूर दे. यह तो बेसिक वुमन राइट है न.

सीख: क्यों चिढ़ गई थी सक्कू

डोर बैल की आवाज सुनते ही मुझे झुंझलाहट हुई. लो फिर आ गया कोई. लेकिन इस समय कौन हो सकता है? शायद प्रेस वाला या फिर दूध वाला होगा.

5-10 मिनट फिर जाएंगे. आज सुबह से ही काम में अनेक व्यवधान पड़ रहे हैं. संदीप को औफिस जाना है. 9 बज कर 5 मिनट हो गए हैं. 25 मिनट में आलू के परांठे, टमाटर की खट्टी चटनी तथा अंकुरित मूंग का सलाद बनाना ज्यादा काम तो नहीं है, लेकिन इसी तरह डोरबैल बजती रही तो मैं शायद ही बना पाऊं. मेरे हाथ आटे में सने थे, इसलिए दरवाजा खोलने में देरी हो गई. डोरबैल एक बार फिर बज उठी. मैं हाथ धो कर दरवाजे के पास पहुंची और दरवाजा खोल कर देखा तो सामने काम वाली बाई खड़ी थी. मिसेज शर्मा से मैं ने चर्चा की थी. उन्होंने ही उसे भेजा था. मैं उसे थोड़ी देर बैठने को बोल कर अपने काम में लग गई. जल्दीजल्दी संदीप को नाश्ता दिया, संदीप औफिस गए, फिर मैं उस काम वाली बाई की तरफ मुखातिब हुई.

गहरा काला रंग, सामान्य कदकाठी, आंखें काली लेकिन छोटी, मुंह में सुपारीतंबाकू का बीड़ा, माथे पर गहरे लाल रंग का बड़ा सा टीका, कपड़े साधारण लेकिन सलीके से पहने हुए. कुल मिला कर सफाई पसंद लग रही थी. मैं मन ही मन खुश थी कि अगर काम में लग जाएगी तो अपने काम के अलावा सब्जी वगैरह काट दिया करेगी या फिर कभी जरूरत पड़ने पर किचन में भी मदद ले सकूंगी. फूहड़ तरीके से रहने वाली बाइयों से तो किचन का काम कराने का मन ही नहीं करता.

फिर मैं किचन का काम निबटाती रही और वह हौल में ही एक कोने में बैठी रही. उस ने शायद मेरे पूरे हौल का निरीक्षण कर डाला था. तभी तो जब मैं किचन से हौल में आई तो वह बोली, ‘‘मैडम, घर तो आप ने बहुत अच्छे से सजाया है.’’

मैं हलके से मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा तो अब यह बोलो बाई कि मेरे घर का काम करोगी?’’

‘‘क्यों नहीं मैडम, अपुन का तो काम ही यही है. उसी के वास्ते तो आई हूं मैं. बस तुम काम बता दो.’’

‘‘बरतन, झाड़ूपोंछा और कपड़ा.’’

‘‘करूंगी मैडम.’’

‘‘क्या लोगी और किस टाइम आओगी यह सब पहले तय हो जाना चाहिए.’’

‘‘लेने का क्या मैडम, जो रेट चल रहा है वह तुम भी दे देना और रही बात टाइम की तो अगर तुम्हें बहुत जल्दी होगी तो सवेरे सब से पहले तुम्हारे घर आ जाऊंगी.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा होगा. मुझे सुबह जल्दी ही काम चाहिए. 7 बजे आ सकोगी क्या?’’ मैं ने खुश होते हुए पूछा.

‘‘आ जाऊंगी मैडम, बस 1 कप चाय तम को पिलानी पड़ेगी.’’

‘‘कोई बात नहीं, चाय का क्या है मैं 2 कप पिला दूंगी. लेकिन काम अच्छा करना पड़ेगा. अगर तुम्हारा काम साफ और सलीके का रहा तो कुछ देने में मैं भी पीछे नहीं रहूंगी.’’

‘‘तुम फिकर मत करो मैडम, मेरे काम में कोई कमी नहीं रहेगी. मैं अगर पैसा लेऊंगी तो काम में क्यों पीछे होऊंगी? पूरी कालोनी में पूछ के देखो मैडम, एक भी शिकायत नहीं मिलेगी. अरे, बंगले वाले तो इंतजार करते हैं कि सक्कू बाई मेरे घर लग जाए पर अपुन को जास्ती काम पसंद नहीं. अपुन को तो बस प्रेम की भूख है. तुम्हारा दिल हमारे लिए तो हमारी जान तुम्हारे लिए.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है बाई.’’

अब तक मैं उस के बातूनी स्वभाव को समझ चुकी थी. कोई और समय होता तो मैं इतनी बड़बड़ करने की वजह से ही उसे लौटा देती, लेकिन पिछले 15 दिनों से घर में कोई काम वाली बाई नहीं थी इसलिए मैं चुप रही.

उस के जाने के बाद मैं ने एक नजर पूरे घर पर डाली. सोफे के कुशन नीचे गिरे थे, पेपर दीवान पर बिखरा पड़ा था, सैंट्रल टेबल पर चाय के 2 कप अभी तक रखे थे. कोकिला और संदीप के स्लीपर हौल में इधरउधर उलटीसीधी अवस्था में पड़े थे. मुझे हंसी आई कि इतने बिखरे कमरे को देख कर सक्कू बाई बोल रही थी कि घर तो बड़े अच्छे से सजाया है. एक बार लगा कि शायद सक्कू बाई मेरी हंसी उड़ा रही थी कि मैडम तुम कितनी लापरवाह हो. वैसे बिखरा सामान, मुड़ीतुड़ी चादर, गिरे हुए कुशन मुझे पसंद नहीं हैं. लेकिन आज सुबह से कोई न कोई ऐसा काम आता गया कि मैं घर को व्यवस्थित करने का समय ही न निकाल पाई. जल्दीजल्दी हौल को ठीक कर मैं अंदर के कमरों में गई. वहां भी फैलाव का वैसा ही आलम. कोकिला की किताबें इधरउधर फैली हुईं, गीला तौलिया बिस्तर पर पड़ा हुआ. कितना समझाती हूं कि कम से कम गीला तौलिया तो बाहर डाल दिया करो और अगर बाहर न डाल सको तो दरवाजे पर ही लटका दो, लेकिन बापबेटी दोनों में से किसी को इस की फिक्र नहीं रहती. मैं तो हूं ही बाद में सब समेटने के लिए.

तौलिया बाहर अलगनी पर डाल ड्रैसिंग टेबल की तरफ देखा तो वहां भी क्रीम, पाउडर, कंघी, सब कुछ फैला हुआ. पूरा घर समेटने के बाद अचानक मेरी नजर घड़ी पर गई. बाप रे, 11 बज गए. 1 बजे तक लंच भी तैयार कर लेना है. कोकिला डेढ़ बजे तक स्कूल से आ जाती है. संदीप भी उसी के आसपास दोपहर का भोजन करने घर आ जाते हैं. मैं फुरती से बाकी के काम निबटा लंच की तैयारी में जुट गई.

दूसरे दिन सुबह 7 बजे सक्कू बाई अपने को समय की सख्त पाबंद तथा दी गई जबान को पूरी तत्परता से निभाने वाली साबित करते हुए आ पहुंची. मुझे आश्चर्यमिश्रित खुशी हुई. खुशी इस बात की कि चलो आज से बरतन, कपड़े का काम कम हुआ. आश्चर्य इस बात का कि आज तक मुझे कोई ऐसी काम वाली नहीं मिली थी, जो वादे के अनुरूप समय पर आती.

दिन बीतते गए. सक्कू बाई नियमित समय पर आती रही. मुझे बड़ा सुकून मिला. कोकिला तो उस से बहुत हिलमिल गई थी. सवेरे कोकिला से उस की मुलाकात नहीं होती थी, लेकिन दोपहर को वह कोकिला को कहानी सुनाती, कभीकभी उस के बाल ठीक कर देती. जब मैं कोकिला को पढ़ने के लिए डांटती तो वह ढाल बन कर सामने आ जाती, ‘‘क्या मैडम क्यों इत्ता डांटती हो तुम? अभी उम्र ही क्या है बेबी की. तुम देखना कोकिला बेबी खूब पढ़ेगी, बहुत बड़ी अफसर बनेगी. अभी तो उस को खेलने दो. तुम चौथी कक्षा की बेबी को हर समय पढ़ने को कहती हो.’’

एक दिन मैं ने कहा, ‘‘सक्कू बाई तुम नहीं समझती हो. अभी से पढ़ने की आदत नहीं पड़ेगी तो बाद में कुछ नहीं होगा. इतना कंपीटिशन है कि अगर कुछ करना है तो समय के साथ चलना पड़ेगा, नहीं तो बहुत पिछड़ जाएगी.’’

‘‘मेरे को सब समझ में आता है मैडम. तुम अपनी जगह ठीक हो पर मेरे को ये बताओ कि तुम अपने बचपन में खुद कितना पढ़ती थीं? क्या कमी है तुम को, सब सुख तो भोग रही हो न? ऐसे ही कोकिला बेबी भी बहुत सुखी होगी. और मैडम, आगे कितना सुख है कितना दुख है ये नहीं पता. कम से कम उस के बचपन का सुख तो उस से मत छीनो.’’

सक्कू बाई की यह बात मेरे दिल को छू गई. सच तो है. आगे का क्या पता. अभी तो हंसखेल ले. वैसे भी सक्कू बाई की बातों के आगे चुप ही रह जाना पड़ता था. उसे समझाना कठिन था क्योंकि उस की सोच में उस से अधिक समझदार कोई क्या होगा. मेरे यह कहते ही कि सक्कू बाई तुम नहीं समझ रही हो वह तपाक से जवाब देती कि मेरे को सब समझ में आता है मैडम. मैं कोई अनपढ़ नहीं. मेरी समझ पढ़ेलिखे लोगों से आगे है. मैं हार कर चुप हो जाती.

धीरेधीरे सक्कू बाई मेरे परिवार का हिस्सा बनती गई. पहले दिन से ले कर आज तक काम में कोई लापरवाही नहीं, बेवजह कोई छुट्टी नहीं. दूसरों के यहां भले ही न जाए, पर मेरे यहां काम करने जरूर आती. न जाने कैसा लगाव हो गया था उस को मुझ से. जरूरत पड़ने पर मैं भी उस की पूरी मदद करती. धीरेधीरे सक्कू बाई काम वाली की निश्चित सीमा को तोड़ कर मेरे साथ समभाव से बात करने लगी. वह मुझे मेरे सादे ढंग से रहने की वजह से अकसर टोकती, ‘‘क्या मैडम, थोड़ा सा सजसंवर कर रहना चाहिए. मैं तुम्हारे वास्ते रोज गजरा लाती हूं, तुम उसे कोकिला बेबी को लगा देती हो.’’

मैं हंस कर पूछती, ‘‘क्या मैं ऐसे अच्छी नहीं लगती हूं?’’

‘‘वह बात नहीं मैडम, अच्छी तो लगती हो, पर थोड़ा सा मेकअप करने से ज्यादा अच्छी लगोगी. अब तुम्हीं देखो न, मेहरा मेम साब कितना सजती हैं. एकदम हीरोइन के माफिक लगती हैं.’’

‘‘उन के पास समय है सक्कू बाई, वे कर लेती हैं, मुझ से नहीं होता.’’

‘‘समय की बात छोड़ो, वे तो टीवी देखतेदेखते नेलपौलिश लगा लेती हैं, बाल बना लेती हैं, हाथपैर साफ कर लेती हैं. तुम तो टीवी देखती नहीं. पता नहीं क्या पढ़पढ़ कर समय बरबाद करती हो. टीवी से बहुत मनोरंजन होता है मैडम और फायदा यह कि टीवी देखतेदेखते दूसरा काम हो सकता है. किताबों में या फिर तुम्हारे अखबार में क्या है? रोज वही समाचार… इस नेता का उस नेता से मनमुटाव, महंगाई और बढ़ी, पैट्रोल और किरोसिन महंगा. फलां की बीवी फलां के साथ भाग गई. जमीन के लिए भाई ने भाई की हत्या की. रोज वही काहे को पढ़ना? अरे, थोड़ा समय अपने लिए भी निकालना चाहिए.’’

सक्कू बाई रोज मुझे कोई न कोई सीख दे जाती. अब मैं उसे कैसे समझाती कि पढ़ने से मुझे सुकून मिलता है, इसलिए पढ़ती हूं.

एक दिन सक्कू बाई काम पर आई तो उस ने अपनी थैली में से मोगरे के 2 गजरे निकाले और बोली, ‘‘लो मैडम, आज मैं तुम्हारे लिए अलग और कोकिला बेबी के लिए अलग गजरा लाई हूं. आज तुम को भी लगाना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है सक्कू बाई, मैं जरूर लगाऊंगी.’’

‘‘मैडम, अगर तुम बुरा न मानो तो आज मैं तुम को अपने हाथों से तैयार कर देती हूं,’’ कुछ संकोच और लज्जा से बोली वह.

‘‘अरे नहीं, इस में बुरा मानने जैसी क्या बात है. पर क्या करोगी मेरे लिए?’’ मैं ने हंस कर पूछा.

‘‘बस मैडम, तुम देखती रहो,’’ कह कर वह जुट गई. मैं ने भी आज उस का मन रखने का निश्चय कर लिया.

सब से पहले उस ने मेरे हाथ देखे और अपनी बहुमुखी प्रतिभा व्यक्त करते हुए नेलपौलिश लगाना शुरू कर दिया. नेलपौलिश लगाने के बाद खुद ही मुग्ध हो कर मेरे हाथों को देखने लगी ओर बोली, ‘‘देखा मैडम, हाथ कित्ता अच्छा लग रहा है. आज साहबजी आप का हाथ देखते रह जाएंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘सक्कू बाई, साहब का ध्यान माथे की बिंदिया पर तो जाता नहीं, भला वे नाखून क्या देखेंगे? तुम्हारे साहब बहुत सादगी पसंद हैं.’’

मेरे इतना कहने पर वह बोली, ‘‘मैं ऐसा नहीं कहती मैडम कि साहबजी का ध्यान मेकअप पर ही रहता है. अरे, अपने साहबजी तो पूरे देवता हैं. इतने सालों से मैं काम में लगी पर साहबजी जैसा भला मानुस मैं कहीं नहीं देखी. मेरा कहना तो बस इतना था कि सजनासंवरना आदमी को बहुत भाता है. वह दिन भर थक कर घर आए और घर वाली मुचड़ी हुई साड़ी और बिखरे हुए बालों से उस का स्वागत करे तो उस की थकान और बढ़ जाती है. लेकिन यदि घर वाली तैयार हो कर उस के सामने आए तो दिन भर की सारी थकान दूर हो जाती है.’’

मैं अधिक बहस न करते हुए चुप हो कर उस का व्याख्यान सुन रही थी, क्योंकि मुझे मालूम था कि मेरे कुछ कहने पर वह तुरंत बोल देगी कि मैं कोई अनपढ़ नहीं मैडम…

इस बीच उस ने मेरी चूडि़यां बदलीं, कंघी की, गजरा लगाया, अच्छी सी बिंदी लगाई. जब वह पूरी तरह संतुष्ट हो गई तब उस ने मुझे छोड़ा. फिर अपना काम निबटा कर वह घर चली गई. मैं भी अपने कामों में लग गई और यह भूल गई कि आज मैं गजरा वगैरह लगा कर कुछ स्पैशल तैयार हुई हूं.

दरवाजे की घंटी बजी. संदीप आ गए थे. मैं उन से चाय के लिए पूछने गई तो वे बड़े गौर से मुझे देखने लगे. मैं ने उन से पूछा कि चाय बना कर लाऊं क्या? तो वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘थोड़ी देर यहीं बैठो. आज तो तुम्हारे चेहरे पर इतनी ताजगी झलक रही है कि थकान दूर करने के लिए यही काफी है. इस के सामने चाय की क्या जरूरत?’’ मैं अवाक हो उन्हें देखती रह गई. मुझे लगा कि सक्कू बाई चिढ़ाचिढ़ा कर कह रही है, ‘‘देखा मैडम, मैं कहती थी न कि मैं कोई अनपढ़ नहीं.’’

Winter Special: थोड़ी सी लापरवाही दे सकती है बीमारियों को न्यौता

बरसात जाने और फिर ठंड के आने के बीच मौसम में जिस तरह का बदलाव होता है, वह कई तरह की बीमारियों को न्यौता देने का सबसे बड़ा कारण होता है. इस बदलते मौसम में स्वास्थ्य के प्रति थोड़ी सी भी लापरवाही हमें बीमार करने के लिए काफी है. इस मौसम में मच्छरों का प्रकोप काफी बढ़ जाता है. ऐसे में डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी घातक बीमारियां आपके घर दस्तक देने को तैयार रहती हैं. इनसे बचाव के लिए आपको काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता होता है. आज हम ऐसी ही कुछ बीमारियों तथा उनसे बचाव के बारे में आपको बताने जा रहे हैं-

डायरिया

शरीर में पानी की कमी से डायरिया रोग होता है. इसमें दस्त, पेशाब न आना, पेट में ऐंठन या तेजदर्द, बुखार और उल्टी आना जैसे लक्षण प्रदर्शित होते हैं. इससे सर्वाधिक खतरा बच्चों को होता है. समय पर इलाज न करने पर यह बीमारी आपके लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है. इससे राहत मिलने पर भी एक हफ्ते तक उपचार करते रहना बेहद जरूरी है.

इससे बचने के लिए जरूरी है कि शरीर में पानी की कमी न होने दें. इलेक्ट्राल व ओआरएस घोल डायरिया का सबसे सस्ता व कारगर उपचार है. इसके अलावा फलों का रस नियमित रूप से लेते रहे. यह घरेलू उपचार करने के बाद भी यदि समस्या बढ़ती दिखे तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.

वायरल फीवर

यह वायरस के इंफेक्शन से होता है इसलिए इसे इन्फ्लूएंजा वायरस भी कहते हैं. जब शरीर में 100 डिग्री से ज्यादा बुखार और सर्दी-जुकाम, गले में दर्द के साथ बदन दर्द के लक्षण महसूस हों तो यह वायरल फीवर का संकेत होता है.

बचाव के लिए हमेशा भोजन करने से पहले व बाद में हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं. घर में और आसपास साफ-सफाई रखें. बीमार व्यक्ति से ज्यादा संपर्क न बनाएं क्योंकि यह वायरस से फैलने वाला रोग है. इसके अलावा छींकते समय मुंह पर रुमाल जरूर रखें.

डेंगू

एडीज नामक मच्छर के काटने से डेंगू रोग होता है. डेंगू होने पर ठंड के साथ तेज बुखार महसूस होता है. इसके अलावा सिर, हाथ, पैर व बदन में तेज दर्द, उल्टी, जोड़ों में दर्द, दस्त व प्लेटलेट्स का अनियंत्रित रूप से घटना आदि समस्याएं देखने को मिलती हैं.

डेगू से बचाव के लिए मच्छरदानी में सोएं. अपने घर के आसपास पानी जमा न होनें दें. खाली गमले, कूलर आदि को साफ रखें. जहां भी पानी जमा है वहां किरोसिन डाल दें या फिर कीटनाशक छिड़काव करें.

मैं अपनी नाराज दोस्त से दोबारा कैसे मिलूं?

सवाल-

कुछ महीनों पहले एक युवक से इंटरनैट के माध्यम से मेरी दोस्ती हुई. नैट पर चैटिंग के अलावा फोन पर भी हम दिन में कई बार बात करते हैं. अब तक वह मुझे काफी शरीफ और संजीदा युवक लगा पर एक दिन उस ने अचानक मुझे डिनर के लिए एक होटल में आमंत्रित किया तो मैं सन्न रह गई. मैं ने कहा कि दिन में कहीं मिल सकती हूं पर रात में और वह भी किसी होटल में नहीं. मेरे घर वाले इस की इजाजत नहीं देंगे. इस पर उस ने मुझे काफी भलाबुरा कहा कि मैं किस जमाने में जी रही हूं. ऐसी छोटी सोच रखने वाली लड़की से वह दोस्ती नहीं रख सकता वगैरहवगैरह. उस दिन से हमारी बात नहीं हुई है. मुझे उस की बहुत याद आती है. क्या उस की बात मान लूं? 

जवाब-

दोस्ती के बीच किसी प्रकार की शर्त या जिद नहीं आनी चाहिए. यदि आप के दोस्त को आप से मिलना था तो वह अपनी सुविधा को देखते हुए दिन में भी मिल सकता था. यदि वह इतनी सी बात के लिए आप से दोस्ती खत्म कर रहा है तो आप को इस अध्याय को यहीं बंद कर देना चाहिए. उस के आगे झुकने की जरूरत नहीं है. जहां तक उस की याद आने की बात है, तो वह समय के साथ धूमिल पड़ जाएगी.

ये भी पढ़ें-

सोनिका सुबह औफिस के लिए तैयार हो गई तो मैं ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटी, आराम से नाश्ता कर लो, गुस्सा नहीं करते, मन शांत रखो वरना औफिस में सारा दिन अपना खून जलाती रहोगी. मैनेजर कुछ कहती है तो चुपचाप सुन लिया करो, बहस मत किया करो. वह तुम्हारी सीनियर है. उसे तुम से ज्यादा अनुभव तो होगा ही. क्यों रोज अपना मूड खराब कर के निकलती हो?’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- जूनियर, सीनियर और सैंडविच: क्यों नाराज थी सोनिका

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अंतिम प्रहार: क्या शिवानी के जीवन में आया प्यार

family story in hindi

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें