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अंतिम प्रहार: क्या शिवानी के जीवन में आया प्यार

family story in hindi

अमीरी का डर- भाग 2: खाई अंतर्मन की

मौडर्न, डिजाइनर लहंगाचुन्नी में वह किसी राजकुमारी जैसी लग रही थी, सब रस्में हुई थीं, गोयल दंपती ने इतने उपहार दिए थे कि वैशाली समेटतीसमेटती थक गर्ई थी, वैशाली को एक डायमंड नेकलेस दिया था, उसे अजीब लग रहा था, वह तो इतने दिन से कोर्ई खुशी महसूस नहीं कर पा रही थी, बहू की अमीरी का डर उस के दिल में बुरी तरह बैठ गया था, जो लड़की अपने घर में किचन में पैर नहीं रखती, जिस के एक बार कहने पर मातापिता ने यह रिश्ता कर लाखों रुपए आज सगाई में खर्च कर दिए, इतने लाड़प्यार में पली लड़की कैसे 4 कमरे के इस फ्लैट में उस के साथ एडजस्ट करेगी, वो तो किचन के सारे काम अपनेआप करती है, एक फुलटाइम मेड है, पर अगर मेड नहीं आती तो झाड़ूपोंछा, खाना भी खुद कर लेती है, अब अमीर बहू आएगी तो क्या होगा. वो बैठी रहेगी और वह सारे काम करती रहेगी, यह भी तो सहन नहीं होगा, फिर क्या होगा, उसे गुस्सा आएगा, घर में कलह होगा, महेश और विपिन तो औफिस चले जाएंगे, अंजलि भी तो इंजीनियर है, अभी तो कहती है, सोचा नहीं हैै क्या करेगी, मन करेगा तो अपने डैड का बिजनैस देखेगी, आज तो वह सगाई में अपने समधियों का वैभव देखती रह गई. उस के सारे परिचितों को अंजलि बहुत पसंद आई थी. अब तक विपिन भी आ चुका था, कितने ही खयालों में डूबतेउतरते उस की आंख लग गई थी.

अगले दिन से रोज के काम शुरू हो गए, साथसाथ शादी की तैयारियां भी, अंजलि अकसर वैशाली से मिलने आ जाती, वैशाली को अच्छा लगता, अपनी शौपिंग के बारे में बताती रहती. मि. गोयल ने एक फाइवस्टार होटल शादी के लिए बुक कर दिया था.

एक दिन अंजलि संडे को वैशाली से मिलने आई हुर्ई थी, कहने लगी, ‘‘आप को पता है मम्मा, मम्मी मुझे बारबार किचन में कुछ काम सीखने के लिए कह रही हैं, मैं किचन में जाती हूं, और फिर तुरंत निकल आती हूं, क्या करूं?’’ वहीं बैठे महेश और विपिन हंस पड़े, विपिन कहने लगा, ‘‘मां, आप का क्या होगा, इस के बस का तो कोई काम नहीं है.’’

वैशाली मन मार मुसकुरा दी, मन में गुस्सा तो तीनों पर आया, इसे कुछ नहीं आता तो हंसने की क्या बात है इस में.

विवाह का दिन आ गया, बहुत ही भव्य तरीके से विवाह संपन्न हुआ और अंजलि दुलहन बन कर घर आ गई, महेश और वैशाली के सारे रिश्तेदारों, पड़ोसियों, किट्टी मेंबरों को गोयल दंपती ने इतने भारी लिफाफे पकड़ाए कि महिलाएं तो कह उठी, ‘‘यह कहां की राजकुमारी आ रही है तुम्हारे घर, भई, नखरे उठाने के लिए तैयार हो जाओ.’’

सब मेहमान एकएक कर चले गए. अंजलि अपनी चीजें वैशाली को दिखा रही थी, हर चीज एक से एक महंगे ब्रांड की, अचानक अंजलि ने वैशाली के गले में बांहें डाल कर कहा, ‘‘मम्मा, आप ने मुझे जो भी चीजें दी हैं, मुझे वे सब से अच्छी लगी, थैंक्यू मम्मा.’’ वैशाली हंस पड़ी उस के भोले से चेहरे पर छाई चमक को देख कर.

अब महेश ने औफिस ज्वाइन कर लिया था, विपिन अभी छुट्टी पर था. विपिन आर अंजलि काफी देर में सो कर उठते. एक दिन महेश कहने लगे, ‘‘वैशाली, बच्चों को मत उठाना, उन के जीवन का यह अनमोल समय है, फिर तो जिम्मेदारियां आ जाती हैं, हम उन्हें डिस्टर्ब नहीं करेंगे,’’ फिर पूछा, ‘‘बच्चों का हनीमून पर जाने का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘मिसेज गोयल शायद उन्हें स्विट्जरलैंड भेजने की बात कर रही थी, पैसा है जहां चाहे भेजें बेटी को, आज दिन में पता करती हूं कि क्या प्रोग्राम है.’’

10 बजे के आसपास अंजलि और विपिन उठे. अंजलि ने ‘गुडमार्निंग मम्मा’ कहते हुए वैशाली के पैर छुए, तो वैशाली को बहुत अच्छा लगा, फिर अंजलि ने बाथरूम की तरफ जाते हुए कहा, ‘‘मम्मा, मैं नहा कर आती हूं, नाश्ते में क्या है, बड़ी भूख लगी है.’’

पीछे से विपिन की आवाज आई, ‘‘मम्मामम्मा छोड़ो, नहा कर मां के साथ किचन में देखो कि नाश्ते में क्या है,’’ लेकिन अपनी नईनई बहू का मम्मामम्मा करना वैशाली के मन को तृप्त कर रहा था, लग रहा था एक बेटी है घर में, जिस पर उस का दिल अपार स्नेह लुटाने के लिए तैयार है. बेटी पाने की कसक मन में ही रह गई थी, जो अब बहू के मुंह से मम्मामम्मा सुनने पर पूरी होती हुई लग रही थी.

वैशाली ने बहूबेटे को प्यार से नाश्ता करवाते हुए पूछा, ‘‘बेटा, कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम है क्या?’’

जवाब अंजलि ने दिया, ‘‘मम्मा, अभी आप के साथ टाइम बिताएंगे, कुछ दिन बाद शायद कहीं जाएंगे.’’

इतने में मेड लतिका भी आ गई. वैशाली घर की साफसफाई करवाने लगी. अंजलि ने न्यूजपेपर उठा लिया. विपिन ने अंजलि को मां का हाथ बंटाने का इशारा किया, जिसे वैशाली ने देख लिया. वह कहने लगी, ‘‘रहने दो बेटा, मैं कर लूंगी.’’

अंजलि चहक उठी, बोली, ‘‘आई लव यू, मम्मा.’’

वैशाली को हंसी आ गई, कितनी सरस और सहज भी है यह लड़की, जो मन में आता है बोल देती है. इतने में अंजलि ने अपनी मम्मी को फोन मिला दिया था और वैशाली की तारीफों के पुल बांध दिए थे.

मई का महीना था. इस महीने में मुंबई में अधिकतर मेड छुट्टी पर गांव चली जाती हैं, उन की जगह थोड़े दिन काम करने के लिए दूसरी मेड तैयार नहीं होती, लतिका ने भी बताया कि वह जा रही है, वैशाली परेशान हो गई. महेश भी बोले, ‘दूसरी ढूंढ़ लेते हैं,’ वैशाली ने कहा, ‘‘मिलती कहां है आजकल, एक तो शादी के घर में मैं अभी सामान समेट नहीं पार्ई हूं, कैसे करूं सब.’’

महेश हंसे, ‘‘अब तो तुम्हारी बहू भी है हाथ बंटाने के लिए.’’

‘‘देख नहीं रहे हो उसे एक हफ्ते से, मम्मामम्मा सारा दिन करती है, लेकिन काम के समय या तो सो जाती है या मोबाइल पर चिपकी रहती है या फिर अपनी मम्मी से मिलने चली जाती है. और उसे तो कोई काम मुझ से कहा भी नहीं जाता, अपने घर में उसे कोई काम नहीं करना पड़ा. अब कैसे उसे इतनी जल्दी किचन में ले जाऊं.’’

लतिका चली गई, इस के दो दिन बाद ही वैशाली बाथरूम से जैसे ही नहा कर बाहर आई, फर्श भी शायद गीला था और पैर भी, बुरी तरह फिसली और चीख निकल गई. महेश औफिस जा चुके थे, विपिन अपनी कार से उसी समय मां को डाक्टर के यहां ले गया. अंजलि घर पर ही रुकी. वैशाली को दर्द में देख उस की आंखों से आंसू बह निकले, एक्सरे हुआ, स्लिपडिस्क की वजह से डाक्टर ने वैशाली को बेडरेस्ट बता दिया, तो पहले से दर्द में परेशान वैशाली और परेशान हो गई, लतिका भी छुट्टी पर थी, क्या होगा अब, वैशाली घर पहुंची तो अंजलि वैशाली के गले में बांहें डाल कर उसे पुचकारती हुई बोली, ‘‘डोंट वरी, मम्मा, मैं हूं न.’’

यह सुन कर विपिन हंसते हुए बोला, ‘‘तुम तो रहने दो.’’

अंजलि ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘मम्मा, आप बस आराम करो, मैं सब देख लूंगी.’’

वैशाली को इस दर्द में भी मन ही मन हंसी आ गई. सोचा, इसे कुछ और आता हो या न आता हो, अच्छी बातें करना आता है. अंजलि ने वैशाली को बेड पर लिटाया और कहा, ‘‘आप लेटो, मैं नाश्ता बना कर लाती हूं, फिर आप दवाई लेना.’’

विपिन ने कहा, ‘‘लेट जाओ मां, इस के बनाए नाश्ते के लिए अपनेआप को तैयार कर लो.’’

‘‘चुप रहो,’’ विपिन को कहती हुई अंजलि किचन में चली गई. थोड़ी देर में बड़ी अच्छी तरह से ट्रे सजा कर लाई, ‘‘मम्मा, नाश्ता.’’

अमीरी का डर- भाग 1: खाई अंतर्मन की

महेश बहुत देर से पता नहीं क्या सोचती हुई अपनी उदास सी पत्नी वैशाली का चेहरा देख रहे थे, वैशाली अपने ज्वैलरी बौक्स में अपनी चीजें रख रही थी, जब महेश से रहा नहीं गया, तो पत्नी को छेड़ते हुए बोले, ‘‘कहां खोई हो? अरे, नईनई डायमंड ज्वैलरी को देख कर भी कोई स्त्री इतनी उदास होती है क्या? आज तो तुम्हारा चेहरा खुशी से चमकना चाहिए, इकलौते बेटे की सगाई की है आज तुम ने. इतनी उदासी क्यों?’’

वैशाली कुछ बोली नहीं, चुपचाप अलमारी को ताला लगाया और सोने के लिए कपड़े बदलने चली गई, बेटा विपिन दोस्तों के साथ था उसे आने में देर थी. वैशाली सोने आई, महेश ने फिर पूछा, ‘‘क्या हुआ? थक गई क्या?’’

‘‘नहीं, ठीक हूं.’’

‘‘वैशाली, बहुत अच्छा प्रोग्राम रहा न आज? मन बहुत खुश है मेरा, कितनी अच्छी जोड़ी है विपिन और अंजलि की.’’

वैशाली ने बस ‘हूं’ कहा और आंखों पर हाथ रख लिया.
“चलो, अब सो जाओ, तुम शायद थक गई हो,” कह कर महेश ने लाइट बंद कर दी और सोने लेट गए.

वैशाली ने ठंडी सांस भर कर अंधेरे में आंखों से हाथ हटाया और पिछले दिनों के घटनाक्रम पर गौर करने लगी. विपिन की ही पसंद अंजलि से उस की सगाई आज एक शानदार होटल में हुई थी, विवाह दो महीने बाद मई में था, विपिन के साथ ही पहले इंजीनियरिंग फिर एमबीए किया था. अंजलि ने, सफल, धनी, बिजनैसमैन अनिल और राधागोयल की इकलौती बेटी अंजलि को वैशाली ने देखते ही बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था. गौर वर्ण, नाजुक सी, सुशिक्षित, सुंदर, स्मार्ट अंजलि को विपिन ने मातापिता से एक कौफी शौप में मिलवाया था, वैशाली की नजर में इस सवालों की जातिउम्र का कोई महत्व नहीं था, वैशाली का परिवार ब्राह्मïण था, अंजलि वैश्य परिवार से, जो था सब ठीक था. जब गोयल दंपती पहली बार इस रिश्ते के बारे में बात करने आए थे, वैशाली तो उन के सभ्य व्यवहार और शालीनता पर मुग्ध हो गई थी, इतने बड़े बिजनैसमैन, इतने विनम्र, हाथ जोड़ कर ही बात करते रहे थे, वैशाली को तो संकोच हो आया था, उसी समय बात पक्की हो गई थी और आज का दिन सगाई का तय हो गया था, उसी दिन बात पक्की होते ही अनिल ने महेश, वैशाली और विपिन के हाथ में एकएक भारी लिफाफा पकड़ाया तो महेश और वैशाली तो मना करते ही रह गए थे, लेकिन राधा ने हाथ जोड़ कर कहा था, ‘‘मना मत कीजिए, भाई साहब, हमारी एक ही बेटी है, सब उसी का तो है. और यह तो बस आज खुशी में एक छोटा सा तोहफा है, हमारे भी तो अरमान है.’’

वेबहुत मना करने पर भी नहीं माने थे और कहा था, ‘‘अगले संडे आप हमारा घर भी देख लीजिए. लंच साथ ही करेंगे.’’

उन के जाने के बाद जब लिफाफे खोले गए तो वैशाली तो हैरान बैठी रह गई, आज तो बात ही पक्की हुई है और इतना कैश. विपिन ने कहा था, ‘‘अरे मां, बहुत ज्यादा पैसा है उन के पास और अंजलि उन की इकलौती बेटी है, आप ने मांगा थोड़े ही है, जब वे अपनी मरजी से आप को जबरदस्ती दे कर गए हैं, तो आप क्या कर सकती हैं.’’

वैशाली ने कहा, ‘‘नहीं, यह तो कुछ ज्यादा ही है, अभी सगाई, शादी सब मौके हैं. और हमें उन से कुछ नहीं चाहिए, सबकुछ है हमारे पास.’’

‘‘मां, आप नहीं जानती, वे लोग बहुत रिच हैं, उन का घर चल कर देखना, अंदाजा हो जाएगा.’’

महेश हंसे, ‘‘वाह बेटा. लगता है, तुम ने कई चक्कर लगा रखे हैं घर के.’’

विपिन भी हंस पड़ा, ‘‘हां पापा, हम सब दोस्त एकदूसरे के यहां आतेजाते तो रहते हैं.’’

अगले संडे महेश, वैशाली और विपिन, गोयल विला पहुंच गए, बहुत बड़ा और खूबसूरत घर था, घर में हर काम के लिए नौकर थे, माली, कुक, मेड, ड्राइवर सब लाइन से खड़े थे, मुंबई में इस तरह का घर होना आम बात नहीं थी.

वैशाली के परिवार की माली हालत भी बहुत अच्छी थी, महेश एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर थे, विपिन इंजीनियर था, लेकिन वैशाली ने महसूस किया कि गोयल परिवार का माली स्तर उन से बहुत ऊंचा है, बस यही होने वाली बहू की अमीरी का डर उस के दिल में ऐसा बैठा, जिस के बाद वह अब तक किसी क्षण का आनंद नहीं ले पाई थी.

राधा की देखरेख में बना कुक का बनाया बहुत स्वादिष्ठ लंच कर के जब उन के चलने का समय आया, तो गोयल दंपती ने फिर उन्हें अनगिनत महंगे उपहारों से लाद दिया था, जिसे उन के नौकर ने उन की कार में रख दिया था.

अनिल ने हाथ जोड़ कर कहा था, ‘‘रिश्ता पक्का होने के बाद आज आप पहली बार हमारे यहां आए हैं, खाली हाथ कैसे जाने देंगे आपको.’’ महेश और वैशाली का मना करना कोई काम नहीं आया था.

अब अंजलि वैशाली से मिलने आती रहती थी, हंसमुख, मिलनसार, अंजलि. ऐसी ही बहू की इच्छा थी वैशाली की, लेकिन इतनी अमीरी में पली लड़की शादी के बाद एडजस्ट कर पाएगी या नहीं, यह चिंता वैशाली को हर पल घेरे रहती.

सगाई की तैयारियां करनी थीं, फंक्शन बड़ा था और यह फंक्शन लड़के वालों की तरफ से होना था, वैशाली तैयारियों में व्यस्त हो गई थी, सगाई में पहनने वाली अंजलि की ड्रेस वैशाली को ही देनी थी, उस के होश उड़े हुए थे, मन ही मन सकुचाते हुए उस ने एक दिन अंजलि को फोन किया, ‘‘बेटा, आओ, मेरे साथ चल कर अपनी सगाई की ड्रेस खरीद लो.’’

अंजलि ने कहा था, ‘‘मम्मा, मैं दिल्ली जा रही हूं, वहीं बूआजी के साथ जा कर डिजाइनर ड्रेस खरीद लूंगी.’’

वैशाली ने अपना सिर पकड़ लिया था, मन में सोचा, अपनी बूआ के साथ जाएगी. वह बूआ जो दिल्ली में रहती है, करोड़पति है, ओह, उस का तो बजट सगाई में ही बिगाड़ देती ये लोग लेकिन प्रत्यक्षत: वह इतना ही कह पाई थी, ‘‘ठीक है बेटा, ले लेना.’’

तीन दिन बाद अंजलि ने दिल्ली से फोन किया था, ‘‘मम्मा, मैं बुटीक के बाहर खड़ी हूं, मैं आप का बजट पूछना तो भूल ही गर्ई थी.’’

वैशाली को कुछ अजीब सा लगा, बोली, ‘‘जो पसंद हो ले लो, बजट की क्या बात है.’’

अंधेरे में करवटें बदलती हुई वैशाली को आज याद आ रहा था कि कैसे वह परेशान घूमती रहती थी उस दिन जब तक अंजलि का फोन आ नहीं गया था, ‘‘मम्मा, ड्रेस ढाई लाख की है, आप कहें तो ले लूं.’’

यह सुन कर वैशाली को पसीने आ गए थे, ढाई लाख की ड्रेस मम्मा, व्हाट्सएप खो लो और देख लो. लेकिन मना भी कैसे करती, इस समय होने वाली बहू अपने अमीर रिश्तेदारों के साथ बुटीक में खड़ी है. कैसे नीचा देखे, अपने स्वर को सामान्य करती हुई बोली थी, ‘‘ मैं देख कर क्या करूंगी, जो पसंद हो ले लो.’’

“थैंक्यू मम्मा,” कहते हुए अंजलि ने फोन रखा था, वैशाली का मूड खराब हो गया था. शाम को जब महेश आए थे तो उस का चेहरा ही सब बता रहा था, पता चलने पर उन्होंने वैशाली को ही समझाया था, ‘‘दिल छोटा न करो, शादी का मौका है, बजट तो बनतेबिगड़ते रहते हैं, क्या हम अपनी बहू को उस की पसंद की ड्रेस नहीं दिलवा सकते, हमें भी तो कमी नहीं है किसी चीज की.’’

‘‘लेकिन, यह फिजूलखर्ची नहीं है? और भी तो खर्चे हैं.’’

‘‘तो क्या कर सकते हैं, तुम चिंता मत करो, सब खुशीखुशी हो जाने दो.’’

और आज सगाई के दिन जब अंजलि उस ड्रेस में तैयार हो कर आई तो सब देखते रह गए थे.

बरखा के भड़काने पर Anupama पर बरसेगी पाखी, प्रोमो वायरल

TRP चार्ट्स में पहले नबंर पर रहने वाला सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) टीवी के पॉपुलर शोज में एक हैं. हालांकि बीते दिनों पाखी की शादी के ड्रामे के कारण सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ को लोग पसंद करते दिखे. लेकिन अब मेकर्स ने पाखी के ड्रामे को नया ट्विस्ट देते हुए नया प्रोमो रिलीज कर दिया है, जिसके चलते शो में एक बार पाखी, अनुपमा की बेइज्जती करती नजर आएगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगी अनुपमा की आगे की कहानी…

बरखा के भड़काने पर पाखी करेगी ये काम

 

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हाल ही में मेकर्स ने शो का अपकमिंग प्रोमो रिलीज कर दिया है, जिसमें बरखा के भड़काने पर पाखी एक बार फिर अपनी मां को भला बुरा कहती दिख रही है. दरअसल, प्रोमो में बरखा, मां और बेटी के बीच फूट डालने के लिए पाखी को महंगा हार गिफ्ट करते हुए कहती है कि यह हार उसने अधिक की दुल्हन के लिए बनवाया था, लेकिन अब क्योंकि वह कपाड़िया एम्पायर की बहू होने के बावजूद उसकी शादी शाह हाउस में हो रही है तो वह कुछ नहीं कर सकती. बरखा की ये बात सुनकर पाखी, अनुपमा के पास जाएगी और कहती है कि जब अनुज उसकी ग्रैंड वेडिंग कराने के लिए राजी हैं तो उन्हें क्यों पेट में दर्द हो रहा है. वहीं खुद को कपाड़िया की बहू मानने की बात कहती दिख रही है, जिसे सुनकर अनुपमा हैरान रह जाती है.

 

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पाखी को मना करेगी अनुपमा

 

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सीरियल के लेटेस्ट एपिसोड की बात करें तो अनुपमा, अनुज को गैंड वेन्यु के लिए मना कर देती है, जिसपर पाखी का गुस्सा बढ़ जाता है और वह फिर अनुपमा से जबान लड़ाने लग जाती है. हालांकि अनुपमा उसे करारा जवाब देकर चुप करा देती है. दूसरी तरफ, बरखा, पाखी की बेइज्जती करने के लिए अधिक के दोस्तों का घर पर बुलाती है ताकि पाखी को नीचा दिखा सके.

शादी के 7 महीने में पेरेंट्स बने आलिया-रणबीर, शेयर किया पोस्ट

प्रैग्नेंसी को लेकर सुर्खियों में रहने वाली एक्ट्रेस आलिया भट्ट और एक्टर रणबीर कपूर पेरेंट्स बन गए हैं. मां बनने का इंतजार करने वाले फैंस को एक्ट्रेस के सोशलमीडिया पर एक पोस्ट के जरिए बेटी के पैदा होने की जानकारी दी है. इसके अलावा पोती के जन्म की खुशी जाहिर करते हुए एक्ट्रेस नीतू सिंह का रिएक्शन सामने आया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

बेटी के पेरेंट्स बनें आलिया-रणबीर

 

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फैंस के लिए पोस्ट शेयर करते हुए एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने लिखा, “और हमारी लाइफ की बेस्ट न्यूज कि हमारी बेटी आ गई है… वह एक मैजिकल बच्ची की तरह है. हम ऑफिशियली तौर पर प्यार मिल रहा है…ब्लेस्ड और ऑबसेस्ड पैरेंट्स…लव लव लव…आलिया और रणबीर”. एक्ट्रेस के इस पोस्ट पर बौलीवुड से लेकर टीवी सेलेब्स और फैंस अपना प्यार लुटाते हुए दिख रहे हैं. इसके अलावा दोनों के स्वस्थ रहने की शुभकामनाएं भी दे रहे हैं.

 

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आलिया भट्ट के मां बनने और नीतू कपूर (Neetu Kapoor Video) ने दादी बनने की खुशी मीडिया के सामने जाहिर की है. हाल ही में सोशमलीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें एक्ट्रेस से जब पूछा गया कि बिटिया आलिया या रणबीर में से किस पर गई है, तो उन्होंने बड़े प्यार से  कहा कि अभी तो वह बहुत छोटी है. इसलिए अभी तो कह नहीं सकती. वहीं आलिया की तबीयत के बारे में उन्होंने अपडेट देते हुए उन्होंने कहा कि वह एक दम फर्स्ट क्लास है.

 

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बता दें, एक्ट्रेस आलिया भट्ट और रणबीर कपूर की शादी इसी साल यानी अप्रेल 2022 में हुई थी, जिसके कुछ ही महीने बाद एक्ट्रेस ने प्रैग्नेंसी की खबर फैंस को दी थी. वहीं शादी के अब 7 महीने बाद ही एक्ट्रेस ने बेटी को जन्म दिया है, जिसे लेकर लोग हैरान हैं और कह रहे हैं कि एक्ट्रेस आलिया भट्ट शादी से पहले प्रैग्नेंट थी. हालांकि इस पर एक्ट्रेस का कोई रिएक्शन सामने नहीं आया है.

रिश्ते: क्यूं हर बार टूट जाती थी स्नेहा की शादी- भाग 2

‘‘हां मम्मी मैं तंग आ गया हूं बचपन से गरीबी में रहकर. अब मैं खुली हवा में सांस लेना चाहता हूं. दीदी की शादी की उम्र अब वैसे भी गुजर चुकी है. उनके लिए तुम्हें कहां रिश्ता मिलने वाला है? जो जैसा है उसे वैसा ही रहने दो. ‘‘अरे हां, ध्यान से सुनो, हम दोनों शादी के बाद सीधे अपने नए घर में चले जाएंगे. हमने अपने लिए घर भी देख रखा है, मु?ासे किसी बात की उम्मीद मत रखना. अब हम चलते हैं. सीमा को उसके घर छोड़ कर मु?ो किसी काम से जाना है,’’ बात खत्म करते भाई अपनी मंगेतर सीमा के साथ वहां से चलने को हुआ.

वे दोनों कमरे से बाहर आए तो स्नेहा को वहां खड़ी देख कर आंखें चुरा कर निकल गए. भाई को इस तरह से जाते देख कर स्नेहा निढाल सी सोफे पर गिर पड़ी. उसे जिंदगी की सारी खुशियां हाथों से छूटती नजर आईं. अपने लोगों का इस तरह रंग बदलना उसके मन में एक सवालिया निशान छोड़ गया.

जिस दिन भाई घर से निकला, उस रात कोई भी नहीं सो सका. मम्मी पापा से कह रही थीं, ‘‘कैसे रहेंगे अब? बेटे ने तो पल्ला ?ाड़ लिया, वह हमारे बुढ़ापे का सहारा था. बेटी की शादी कैसे करेंगे अब. हमारे पास तो पैसा भी नहीं ंहै…’’

‘‘हमारे यहां खाने के लाले पड़े हैं, नौकरी है नहीं और तुम्हें बेटी की शादी की पड़ी है. भूल जाओ अब उसकी शादी. जिंदगी जिस रफ्तार से चल रही है उसे वैसे ही चलने दो… उम्र गुजर गई है स्नेहा की शादी की. ‘‘हर बार लड़का ही सहारा हो यह जरूरी तो नहीं. लड़की भी तो घर का सहारा बन सकती है, बेटी को पालना अगर हमारा फर्ज है तो उसका भी फर्ज है कि हमारा सहारा बने…’’ कह कर उन्होंने करवट बदली पर सामने स्नेहा को देख कर वे चौंक गए, ‘‘अरे मैं तो बस यों ही गुस्से में कह रहा था- आज बेटे ने साथ छोड़ा है तो जरा सा मायूस हूं. लेकिन तू फिक्र मत कर सब ठीक ही होगा. एक दिन तुम्हें भी विदा करूंगा, मैं कुछ न कुछ सोचता हूं…’’ पापा ने बात संभाल तो ली पर उनके कौन से रूप पर भरोसा करें, स्नेहा सम?ा नहीं पाई. घर के खर्चे अब काफी कम हो गए थे. स्नेहा की तनख्वाह बढ़ गई थी. मम्मी थोड़े-थोड़े पैसे जमा करती रहीं. पिता को हो न हो पर मां को अपनी बेटी की जरूर फिक्र थी. एक दिन लड़के वाले स्नेहा को देखने आए. लड़के-लड़की ने एक-दूसरे को पसंद किया, बात आगे बढ़ती गई. शादी की तारीख भी तय हो गई. पर अचानक एक दिन लड़के वालों ने शादी तोड़ने का संदेश भेज दिया. ‘‘आखिर बात क्या है? आप उनके पास जाकर मिल आइए न,’’ मां ने बेचैन होकर पापा से कहा.

‘‘रिश्ता तोड़ते समय ही उन्होंने मिलने से मना कर दिया था. खैर, जाने दो हमारी बेटी को इससे भी अच्छा लड़का मिलेगा…’’ पापा ने उन दोनों को सम?ाते हुए कहा. इसके बाद दो बार स्नेहा का रिश्ता जुड़ा और फिर टूट गया. मन का बो?ा बढ़ गया था. उसकी जिंदगी जैसे एक ही ढर्रे पर चल रही थी, जिसमें कोई रोमांचक मोड़ नहीं था. सालभर तक तो यही सब चलता रहा और तभी अचानक कंपनी ने स्नेहा का उसी शहर की दूसरी ब्रांच में ट्रांसफर कर दिया. स्नेहा एक ही जगह काम कर के ऊब गई थी सो वह भी खुशी-खुशी दूसरी ब्रांच में चली गई.

नई ब्रांच में आना जैसे स्नेहा के लिए फायदेमंद साबित हुआ. यहां की आबोहवा उसे अच्छे से रास आई. कंपनी का ऑफिस घर से दूर था, लेकिन बस सेवा उपलब्ध थी, इसलिए स्नेहा को कोई परेशानी नहीं थी.

एक दिन अचानक स्नेहा की स्वनिल से मुलाकात हो गई, जो वहां मैनेजर था. पहले उन दोनों की दोस्ती हुई और फिर दोस्ती चाहत में बदल गई. स्नेहा अपने ही खयालों में खोई थी कि अचानक ड्राइवर ने बस को जोर से ब्रेक लगाया और वह हकीकत में लौट आई.

स्नेहा घर पहुंची, तो मम्मी चाय बना रही थीं और पापा टेलीविजन देख रहे थे. स्नेहा कपड़े बदल कर आई और मम्मी का हाथ बंटाने लगी. चाह कर भी वह मम्मी से शादी की बात नहीं कर पाई. इसी ऊहापोह में अगला दिन भी निकल गया. स्वनिल के आने से पहले उसका घर में बात करना जरूरी था. स्नेहा जब शाम को ऑफिस से घर पहुंची, तो पापा तैयार बैठे थे और मां अच्छी सी साड़ी पहने आईने के सामने शृंगार कर रही थी.

‘‘सुनो अब बेटी के लिए चाय बनाने मत बैठ जाना, देर हो रही है. जल्दी करो भई,’’ पापा ने मम्मी को आवाज लगाई. ‘‘सुनो बेटा, मैं और तुम्हारे पापा फिल्म देखने जा रहे हैं. तुम चाय बनाकर पी लेना और हां रात के लिए रोटी भी सेंक लेना. हम 10 बजे तक वापस आ जाएंगे,’’ कहते हुए मम्मी ने चप्पल पहनी और बाहर निकल गईं.

जान न पहचान ये मेरे मेहमान

मेरा शहर एक जानामाना पर्यटन स्थल है. इस वजह से मेरे सारे रिश्तेदार, जिन्हें मैं नहीं जानता वे भी जाने कहांकहां के रिश्ते निकाल कर मेरे घर तशरीफ का टोकरा निहायत ही बेशर्मी से उठा लाते हैं. फिर बड़े मजे से सैरसपाटा करते हैं. और हम अपनी सारी, यानी गरमी, दीवाली व क्रिसमस की छुट्टियां इन रिश्तेदारों की सेवा में होम कर देते हैं.

एक दिन मेरे बाप के नाना के बेटे के साले का खत आया कि वे इस बार छुट्टियां मनाने हमारे शहर आ रहे हैं और अगर हमारे रहते वे होटल में ठहरें तो हमें अच्छा नहीं लगेगा. लिहाजा, वे हमारे ही घर में ठहरेंगे.

मैं अपने बाल नोचते हुए सोच रहा था कि ये महाशय कौन हैं और मुझ से कब मिले. इस चक्कर में मैं ने अपने कई खूबसूरत बालों का नुकसान कर डाला. पर याद नहीं आया कि मैं उन से कभी मिला था. मेरी परेशानी भांपते हुए पत्नी ने सुझाव दिया, ‘‘इन की चाकरी से बचने के लिए घर को ताला लगा कर अपन ही कहीं चलते हैं. कभी कोई पूछेगा तो कह देंगे कि पत्र ही नहीं मिला.’’

‘‘वाहवाह, क्या आइडिया है,’’ खुशी के अतिरेक में मैं ने श्रीमती को बांहों में भर कर एक चुम्मा ले लिया. फिर तुरतफुरत ट्रैवल एजेंसी को फोन कर के एक बढि़या पहाड़ी स्टेशन के टिकट बुक करवा लिए.

हमारी दूसरे दिन सुबह 10 बजे की बस थी. हम ने जल्दीजल्दी तैयारी की. सब सामान पैक कर लिया कि सुबह नाश्ता कर के चल देंगे, यह सोच कर सारी रात चैन की नींद भी सोए. मैं सपने में पहाड़ों पर घूमने का मजा ले रहा था कि घंटी की कर्कश ध्वनि से नींद खुल गई. घड़ी देखी, सुबह के 6 बजे थे.

‘सुबहसुबह कौन आ मरा,’ सोचते हुए दरवाजा खोला तो बड़ीबड़ी मूंछों वाले श्रीमानजी, टुनटुन को मात करती श्रीमतीजी और चेहरे से बदमाश नजर आते 5 बच्चे मय सामान के सामने खड़े थे. मेरे दिमाग में खतरे की घंटी बजी कि जरूर चिट्ठी वाले बिन बुलाए मेहमान ही होंगे. फिर भी पूछा, ‘‘कौन हैं आप?’’

‘‘अरे, कमाल करते हैं,’’ मूंछ वाले ने अपनी मूंछों पर ताव देते हुए कहा, ‘‘हम ने चिट्ठी लिखी तो थी…बताया तो था कि हम कौन हैं.’’

‘‘लेकिन मैं तो आप को जानता ही नहीं, आप से कभी मिला ही नहीं. कैसे विश्वास कर लूं कि आप उन के साले ही हैं, कोई धोखेबाज नहीं.’’

‘‘ओए,’’ उन्होंने कड़क कर कहा, ‘‘हम को धोखेबाज कहता है. वह तो आप के बाप के नाना के बेटे यानी मेरी बहन के ससुर ने जोर दे कर कहा था कि उन्हीं के यहां ठहरना, इसलिए हम यहां आए हैं वरना इस शहर में होटलों की कमी नहीं है. रही बात मिलने की, पहले नहीं मिले तो अब मिल लो,’’ उस ने जबरदस्ती मेरा हाथ उठाया और जोरजोर से हिला कर बोला, ‘‘हैलो, मैं हूं गजेंद्र प्रताप. कैसे हैं आप? लो, हो गई जानपहचान,’’ कह कर उस ने मेरा हाथ छोड़ दिया.

मैं अपने दुखते हाथ को सहला ही रहा था कि उस गज जैसे गजेंद्र प्रताप ने बच्चों को आदेश दिया, ‘‘चलो बच्चो, अंदर चलो, यहां खड़ेखड़े तो पैर दुखने लगे हैं.’’

इतना सुनते ही बच्चों ने वानर सेना की तरह मुझे लगभग दरवाजे से धक्का दे कर हटाते हुए अंदर प्रवेश किया और जूतों समेत सोफे व दीवान पर चढ़ कर शोर मचाने लगे. मेरी पत्नी और बच्चे हैरानी से यह नजारा देख रहे थे. सोफों और दीवान की दुर्दशा देख कर श्रीमती का मुंह गुस्से से तमतमा रहा था, पर मैं ने इशारे से उन्हें शांत रहने को कहा और गजेंद्र प्रताप व उन के परिवार से उस का परिचय करवाया. परिचय के बाद वह टुनटुन की बहन इतनी जोर से सोफे पर बैठी कि मेरी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गई. सोचा, ‘आज जरूर इस सोफे का अंतिम संस्कार हो जाएगा.’

पर मेरी हालत की परवा किए बगैर वह बेफिक्री से मेरी पत्नी को और्डर दे रही थी, ‘‘भई, अब जरा कुछ बढि़या सी चायवाय हो जाए तो हम फ्रैश हो कर घूमने निकलें. और हां, जरा हमारा सामान भी हमारे कमरे में पहुंचा देना. हमारे लिए एक कमरा तो आप ने तैयार किया ही होगा?’’

हम ने बच्चों के साथ मिल कर उन का सामान बच्चों के कमरे में रखवाया.

उधर कुढ़ते हुए पत्नी ने रसोई में प्रवेश किया. पीछेपीछे हम भी पहुंचे. शयनकक्ष में अपने पैक पड़े सूटकेसों पर नजर पड़ते ही मुंह से आह निकल गई. मेहमानों को मन ही मन कोसते सूटकेसों को ऐसा का ऐसा वापस ऊपर चढ़ाया. ट्रैवल एजेंसी को फोन कर के टिकट रद्द करवाए. आधा नुकसान तो यही हो गया.

श्रीमती चाय ले कर पहुंची तो चाय देखते ही बच्चे इस तरह प्यालों पर झपटे कि 2 प्याले तो वहीं शहीद हो गए. अपने टी सैट की बरबादी पर हमारी श्रीमती अपने आंसू नहीं रोक पाई तो व्यंग्य सुनाई पड़ा, ‘‘अरे, 2 प्याले टूटने पर इतना हंगामा…हमारे घर में तो कोई चीज साबुत ही नहीं मिलती. इस तरह तो यहां बातबात पर हमारा अपमान होता रहेगा,’’ उठने का उपक्रम किए बिना उस ने आगे कहा, ‘‘चलो जी, चलो, इस से तो अच्छा है कि हम किसी होटल में ही रह लेंगे.’’

मुझ में आशा की किरण जागी, लेकिन फिर बुझ गई क्योंकि वह अब बाथरूम का पता पूछ रही थीं. साबुन, पानी और बाथरूम का सत्यानाश कर के जब वे नाश्ते की मेज पर आए तो पत्नी के साथ मेरा भी दिल धकधक कर रहा था. नाश्ते की मेज पर डबलरोटी और मक्खन देख कर श्रीमतीजी ने नौकभौं चढ़ाई, ‘‘अरे, सिर्फ सूखी डबलरोटी और मक्खन? मेरे बच्चे यह सब तो खाते ही नहीं हैं. पप्पू को तो नाश्ते में उबला अंडा चाहिए, सोनू को आलू की सब्जी और पूरी, मोनू को समोसा, चिंटू को कचौरी और टोनी को परांठा. और हम दोनों तो इन के नाश्ते में से ही अपना हिस्सा निकाल लेते हैं.’’

फिर जैसे मेहरबानी करते हुए बोले, ‘‘आज तो आप रहने दें, हम लोग बाहर ही कुछ खा लेंगे और आप लोग भी घूमने के लिए जल्दी से तैयार हो जाइए, आप भी हमारे साथ ही घूम लीजिएगा. अनजान जगह पर हमें भी आराम रहेगा.’’

हम ने सोचा कि ये लोग घुमाने ले जा रहे हैं तो चलने में कोई हरज नहीं. झटपट हम सब तैयार हो गए.

बाहर निकलते ही उन्होंने बड़ी शान से टैक्सी रोकी, सब को उस में लादा और चल पड़े. पहले दर्शनीय स्थल तक पहुंचने पर ही टैक्सी का मीटर 108 रुपए तक पहुंच चुका था. उन्होंने शान से पर्स खोला, 500-500 रुपए के नोट निकाले और मेरी तरफ मुखातिब हुए. ‘‘भई, मेरे पास छुट्टे नहीं हैं, जरा आप ही इस का भाड़ा दे देना.’’

भुनभुनाते हुए हम ने किराया चुकाया. टैक्सी से उतरते ही उन्हें चाय की तलब लगी, कहने लगे, ‘‘अब पहले चाय, नाश्ता किया जाए, फिर आराम से घूमेंगे.’’

बढि़या सा रैस्तरां देख कर सब ने उस में प्रवेश किया. हर बच्चे ने पसंद के अनुसार और्डर दिया. उन का लिहाज करते हुए हम ने कहा कि हम कुछ नहीं खाएंगे. उन्होंने भी बेफिक्री से कहा, ‘‘मत खाइए.’’

वे लोग समोसा, कचौरी, बर्गर, औमलेट ठूंसठूंस कर खाते रहे और हम खिसियाए से इधरउधर देखते रहे. बिल देने की बारी आई तो बेशर्मी से हमारी तरफ बढ़ा दिया, ‘‘जरा आप दे देना, मेरे पास 500-500 रुपए के नोट हैं.’’

200 रुपए का बिल देख कर मेरा मुंह खुला का खुला रह गया और सोचा कि अभी नाश्ते में यह हाल है तो दोपहर के खाने, शाम की चाय और रात के खाने में क्या होगा?

फिर वही हुआ, दोपहर के खाने का बिल 700 रुपए, शाम की चाय का 150 रुपए आया. रात का भोजन करने के बाद मेरी बांछें खिल गईं. ‘‘यह तो पूरे 500 रुपए का बिल है और आप के पास भी 500 रुपए का नोट है. सो, यह बिल तो आप ही चुका दीजिए.’’

उन का जवाब था, ‘‘अरे, आप के होते हुए यदि हम बिल चुकाएंगे तो आप को बुरा नहीं लगेगा? और आप को बुरा लगे, भला ऐसा काम हम कैसे कर सकते हैं.’’

दूसरे दिन वे लोग जबरदस्ती खरीदारी करने हमें भी साथ ले गए. हम ने सोचा कि अपने लिए खरीदेंगे तो पैसा भी अपना ही लगाएंगे और लगेहाथ उन के साथ हम भी बच्चों के लिए कपड़े खरीद लेंगे. पर वह मेहमान ही क्या जो मेजबान के रहते अपनी गांठ ढीली करे.

सर्वप्रथम हमारे शहर की कुछ सजावटी वस्तुएं खरीदी गईं, जिन का बिल 840 रुपए हुआ. वे बिल चुकाते  समय कहने लगे, ‘‘मेरे पास सिर्फ

500-500 रुपए के 2 ही नोट हैं. अभी आप दे दीजिए, मैं आप को घर चल कर दे दूंगा.’’

फिर कपड़ाबाजार गए, वहां भी मुझ से ही पैसे दिलवाए गए. मैं ने कहा भी कि मुझे भी बच्चों के लिए कपड़े खरीदने हैं, तो कहने लगे, ‘‘आप का तो शहर ही है, फिर कभी खरीद सकते हैं. फिर ये बच्चे भी तो आप के ही हैं, इस बार इन्हें ही सही. फिर घर चल कर तो मैं पैसे दे ही दूंगा.’’

3 हजार रुपए वहां निकल गए. अब वे खरीदारी करते थक चुके थे. दोबारा 700 रुपए का चूना लगाया. इस तरह सारी रकम वापस आने की उम्मीद लगाए हम घर पहुंचे.

घर पहुंचते ही उन्होंने घोषणा की कि वे कल  जा रहे हैं. खुशी के मारे हमारा हार्टफेल होतेहोते बचा कि अब वे मेरे पैसे चुकाएंगे, लेकिन उन्होंने पैसे देने की कोई खास बात नहीं की.

दूसरे दिन भी वे लोग सामान वगैरह बांध कर निश्ंिचतता से बैठे थे और चिंता यह कर रहे थे कि उन का कुछ सामान तो नहीं रह गया. तब हम ने भी बेशर्म हो कर कह दिया, ‘‘भाईसाहब, कम से कम अपनी खरीदारी के रुपए तो लौटा दीजिए.’’

उन्होंने निश्ंिचतता से कहा, ‘‘लेकिन मेरे पास अभी पैसे नहीं हैं.’’

आश्चर्य से मेरा मुंह खुला रह गया, ‘‘पर आप तो कह रहे थे कि घर पहुंच कर दे दूंगा.’’

‘‘हां, तो क्या गलत कहा था. अपने घर पहुंच भिजवा दूंगा,’’ आराम से चाय पीते हुए उन्होंने जवाब दिया.

‘‘उफ…और वे आप के 500-500 रुपए के नोट?’’ मैं ने उन्हें याद दिलाया.

‘‘अब वही तो बचे हैं मेरे पास और जाने के लिए सफर के दौरान भी कुछ चाहिए कि नहीं?’’

हमारा इस तरह रुपए मांगना उन्हें बड़ा नागवार गुजरा. वे रुखाई से कहते हुए रुखसत हुए, ‘‘अजीब भिखमंगे लोग हैं. 4 हजार रुपल्ली के लिए इतनी जिरह कर रहे हैं. अरे, जाते ही लौटा देंगे, कोई खा तो नहीं जाएंगे. हमें क्या बिलकुल ही गयागुजरा समझा है. हम तो पहले ही होटल में ठहरना चाहते थे, पर हमारी बहन के ससुर के कहने पर हम यहां आ गए, अगर पहले से मालूम होता तो यहां हमारी जूती भी न आती…’’

वह दिन और आज का दिन, न उन की कोई खैरखबर आई, न हमारे रुपए. हम मन मसोस कर चुप बैठे श्रीमती के ताने सुनते रहते हैं, ‘‘अजीब रिश्तेदार हैं, चोर कहीं के. इतने पैसों में तो बच्चों के कपड़ों के साथ मेरी 2 बढि़या साडि़यां भी आ जातीं. ऊपर से एहसानफरामोश. घर की जो हालत बिगाड़ कर गए, सो अलग. किसी होटल के कमरे की ऐसी हालत करते तो इस के भी अलग से पैसे देने पड़ते. यहां लेना तो दूर, उलटे अपनी जेब खाली कर के बैठे हैं.’’

इन सब बातों से क्षुब्ध हो कर मैं ने भी संकल्प किया कि अब चाहे कोई भी आए, अपने घर पर किसी को नहीं रहने दूंगा. देखता हूं, मेरा यह संकल्प कब तक मेरा साथ देता है.

Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं करेला विद चना दाल

करेले की कई तरह की रेसिपी आपने ट्राय की होंगी. लेकिन क्या आपने कभी करेला विद चना दाल की ये रेसिपी फैमिली के लिए बनाई है. ये हेल्दी और टेस्टी रेसिपी है, जिसे आसानी से फैमिली के लिए बना सकते हैं.

सामग्री

– 250 ग्राम मुलायम छोटे करेले

– 1/2 कप चना दाल

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– 2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच मिर्च पाउडर

– 1 छोटा चम्मच सौंफ पाउडर

– 1 छोटा चम्मच गरममसाला

– 1 तेजपत्ता

– 2 बड़ी इलायची

– 2 लौंग

– 4 कालीमिर्च

– 1 बड़ा चम्मच टोमैटो प्यूरी

– 1 छोटा चम्मच जीरा

– 1/4 कप प्याज बारीक कटा

– 1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

– रिफाइंड औयल

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– नमक स्वादानुसार.

विधि

करेलों को खुरच कर गोलगोल काट कर थोड़ा सा नमक व हलदी पाउडर लगा कर 1/2 घंटा रखें. दाल को भी 1/2 घंटा भिगो दें. करेलों को 1/2 घंटे बाद साफ पानी से धो कर तौलिए पर थपथपा लें. गरम तेल में डीप फ्राई कर लें. एक प्रैशर पैन में 1 बड़ा चम्मच तेल गरम कर सभी खड़े मसालों का तड़का लगा कर दाल छौंक दें. हल्दी पाउडर व नमक डालें. पानी दाल के बराबर ही डालें. 1 सीटी आने तक पकाएं. जब भाप निकल जाए तो प्रैशर पैन खोलें. दाल कम गली हो तो फिर गला लें. सभी मसाले व टोमैटो प्यूरी भी डाल दें. जब दाल गल जाए तब उस में फ्राई किए करेले के टुकड़े मिला दें. 1 मिनट और आंच पर रखें. फिर गरमगरम करेला दाल सर्विंग बाउल में पलटें. धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

Winter Special: क्या आपको भी आता है बार बार बुखार

कई बार बदलता मौसम और आपकी जीवनशैली में होने वाली कमी की वजह से आपको वायरल फीवर या बार-बार बुखार आता है. इसके कई कारण होते हैं. बदलते मौसम में तापमान के उतार-चढ़ाव से शरीर को कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर थोड़ सा फर्क तो पड़ता ही है.

बार-बार आने वाले इस बुखार से बचने के लिए आपको दवाआयों की दुकानों पर कई सारी अलग-अलग प्रकार की दवाईयां मिल जाऐंगी. लेकिन हम आपको ये बताना चाहते हैं कि अगर आप बुखार के लिए कुछ घरेलू उपाय भी अपनाएंगे तो इस बुखार से जल्दी राहत पा सकेंगे.

तो यहां हम आपको कुछ घरेलू उपाय बता रहे हैं, इन चीजों की मदद से आपको शीघ्र बुखार से निजात पाने में मदद मिल सकती है..

सूखे अदरक का मिश्रण

अदरक अनगिनत गुणों से भरपूर होता है. स्वास्थ्य संबंधी दोषों में अदरख बेहद लाभकारी होता है. अदरक में एन्टी- इन्फ्लैमटोरी और एन्टी-ऑक्सिडेंट सर्वाधिक मात्रा में होते हैं और ये दोनों ही तत्व आपको बुखार के लक्षणों से राहत दिलाते हैं.

आप सूखा अदरक, थोड़ा सा हल्दी और एक छोटा चम्मच काली मिर्च का पाउडर बना लें. अब इस पाउडर में थोड़ा-सा चीनी और एक कप पानी डालकर उबालें. इस मिश्रण को तब तक उबालें जब तक ये सूखकर आपके पास आधा बचे. अब इस मिश्रण को दिन में चार बार पीएं. ऐसा 3-4 दिनों तक लगातार करें. ये उपाय आपको बुखार से तुरंत राहत देगा.

मेथी

आपके वायरल फीवर के लिए रामबाण होता है मेथी. मेथी अधिकांश औषधिय गुणों से भरपूर होता है. जब भी आरको बुखार की समस्या होती है, तब एक कप पानी में, एक बड़ा चम्मच मेथी के दाने भिगोकर रख दें और रात भर उसे ऐसे ही रखे रहने दे. अब अगले दिन सुबह इसको छानकर थोड़े-थोड़े समय में पीते रहें.

इसके अलावा सुबह-सुबह मेथी के दाने में नींबू का रस और शहद मिलाकर, इसका सेवन करने से बुखार कुछ हद तक ठीक हो जाता है.

धनिया चाय

धनिया, फाइटोनूट्रीअन्ट और विटामिन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है. धनिया वाली चाय अपने आप बार-बार आने वाले बुखार से प्राकृतिक तरीके से लड़ने में मदद करता है. इसको रोजाना खाया जाए तो इससे प्रतिरक्षी या प्रतिरोधी तंत्र भी ठीक रहता है.

इसका इस्तेमाल करने के लिए, एक गिलास पानी में एक बड़ा चम्मच धनिए के दाने डालकर थोड़ा उबाल लें अब उसके बाद इसे कप में छानकर, अपने स्वादानुसार थोड़ा दूध और चीनी डालकर पी लीने से आपको बुखार से राहत मिलेगी.

राइस स्टार्च

फीवर से बचने के लिए आप राइस स्टार्च का भी सेवन कर सकते हैं. ये चावल आपके शरीर से दूषित पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल देता है, जिसके कारण प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जो आपको विभिन्न वायरसों से लड़ने की शक्ति देती है. पूरी तरह पौष्टिक पदार्थों से भरपूर राइस स्टार्च को रोज खाने से रोगों से बचने की शक्ति मिलती है.

तुलसी

बुखार पर तुरंत असरकारी तुलसी में स्वाद के साथ-साथ कई गुण भी होते हैं. जब भी आपको बुखार आए, अठारह से बीस ताजा तुलसी के पत्तों को लेकर लगभग एक लीटर पानी के साथ, एक चम्मच लौंग पावडर मिलाकर उबालें. इन तीनों को तब तक उबालें जब तक ये उबलकर आधा न हो जाये. अब इसके बाद इसे छानकर हल्का ठण्डा कर दिन में हर दो घंटे में पाते रहें. एक हफ्ते लगातार ऐसा करने से बुखार से बचा जा सकता है.

तुलसी में एन्टी बायोटीक और एन्टी बैक्टिरीअल गुण होते हैं जो कि वायरल फीवर या मौसम के बदलने पर आने वाले बुखार के लक्षणों से राहत दिलाता है.

निसंतान दंपती बच्चे को कैसे लें गोद, कानूनी प्रक्रिया भी समझें

शादी के बाद हर दंपती की चाहत संतानप्राप्ति की होती है. कुछ दंपती ऐसे होते हैं जिन की यह चाहत पूरी नहीं हो सकती. ऐसे में उन के पास एक विकल्प यह रहता है कि वे किसी बच्चे को गोद ले कर उसे अपने बच्चे के रूप में पालेंपोसें. किसी बच्चे को गोद लेने की एक कानूनी प्रक्रिया है. आइए, जानते हैं इस के विभिन्न पहलुओं को :

गोद लेने की प्रक्रिया के तहत कोई व्यक्ति किसी बच्चे को तभी गोद ले सकता है जबकि उस की अपनी जीवित संतान न हो, फिर भले ही वह संतान लड़का हो या लड़की. हां, किसी भी बच्चे को गोद लेने के लिए पतिपत्नी दोनों की सहमति आवश्यक है. यदि महिला या पुरुष अविवाहित, तलाकशुदा, विधवा है तो उस की अकेले की ही सहमति पर्याप्त है.

वैधानिक कार्यवाही

गोद लेने की प्रक्रिया आसान है. इस के लिए गोद लेने वाले और गोद देने वाले की सहमति ही पर्याप्त है. हां, यदि बच्चा किसी अनाथाश्रम से गोद लेना हो तो कुछ वैधानिक कार्यवाही अवश्य करनी पड़ती है. एक बार यदि आप ने किसी बच्चे को गोद ले लिया तो वैधानिक रूप से आप ही उस के मातापिता माने जाएंगे और पिता के रूप में गोद लेने वाले व्यक्ति का ही नाम मान्य होगा. लेकिन हां, उसे अपने मूल मातापिता और गोद लेने वाले मातापिता दोनों की संपत्ति में अधिकार मिलता है.

किसी भी निसंतान दंपती को बच्चा गोद ले का फैसला जल्दबाजी में नहीं, बल्कि धैर्यपूर्वक सोचसमझ कर लेना चाहिए. किसी भी बच्चे को गोद लेने के फैसले से पूर्व मनोवैज्ञानिक रूप से दंपती को तैयार होना चाहिए, न कि किसी के दबाव में आ कर यह निर्णय लेना चाहिए.

बच्चा गोद लेने से पूर्व दंपती को इस बात पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए कि उन्हें लड़का चाहिए या लड़की? जिस पर दोनों सहमत हों, उसे ही गोद लें.

इस बात पर भी विचार कर लेना जरूरी है कि बच्चा किसी निकट के रिश्तेदार से गोद लेना है या अनाथाश्रम से. यदि आप जाति, धर्म, वंश आदि में विश्वास रखते हैं तो बेहतर होगा कि उसी हिसाब से बच्चे को चुनें. यदि आप अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेने का निर्णय लेते हैं तो इस के पीछे लावारिस बच्चे के लिए दयाभाव नहीं होना चाहिए और न ही यह सोचें कि आप किसी अनाथ बच्चे का उद्धार कर रहे हैं.

केंद्र सरकार देश में बच्चों को गोद लेने को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उस की प्रक्रिया को ज्यादा आसान बनाएगी, ऐसे संकेत हैं. इस के लिए इंतजार अवधि को एक साल से घटा कर कुछ माह करने तथा अनाथालयों के पंजीकरण को अनिवार्य किए जाने जैसे बड़े सुधार किए जाएंगे.

गोद लेना होगा आसान

भारत में करीब 50 हजार बच्चे अनाथ हैं. हर साल महज 800 से एक हजार बच्चे ही गोद लिए जाते हैं. इसे बढ़ावा देने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय बड़े सुधार करने की योजना बना रहा है. महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के अनुसार, ‘सभी अनाथालयों के पंजीकरण को अनिवार्य किया जाएगा और गोद लेने की प्रक्रिया सरल बनाई जाएगी.’

सुधारों का मकसद गोद लेने की प्रक्रिया की बाधाओं और भावी अभिभावकों की शंकाओं को दूर करना है. नए दिशार्निदेशों की रूपरेखा का प्रारूप तैयार किया जा रहा है. इस से गोद लेने के लिए इंतजार की अवधि महज कुछ महीने हो जाएगी. फिलहाल इस में एक साल तक का वक्त लगता है. मंत्रालय इसे किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक में विशेषतौर पर पेश करने की दिशा में काम कर रहा है.

इस विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी  मिलने का इंतजार है. सुधार के तहत फोस्टर केयर (पालनपोषण) व्यवस्था की एक नई शुरुआत करने का विचार है. इस के तहत 6 या 7 साल की उम्र से ज्यादा के बच्चे को लोग बिना गोद लिए अपने घर ले जा सकेंगे. मंत्रालय का कहना है, ‘‘लोग गोद लेना भले नहीं चाहते हों, लेकिन ऐसे लोग हैं जो चाहते हैं कि घर में बच्चे हों और उन्हें स्कूल भेजा जाए. सरकार उन बच्चों का खर्च वहन करेगी.’’

देश में बेटों से ज्यादा बेटियां गोद ली जा रही हैं. सैंट्रल एडौप्शन रिसोर्स अथौरिटी यानी कारा की ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. कारा के मुताबिक, 2014-15 में 2,300 लड़कियां गोद ली गईं. जबकि लड़कों का आंकड़ा 1,688 रहा. यानी लोगों ने बेटों के मुकाबले करीब 36 प्रतिशत ज्यादा बेटियों को चुना. और यह तब है जबकि बेटियों को गोद लेने के कानून ज्यादा सख्त हैं. मसलन, सिंगल फादर है तो बेटी नहीं मिलेगी.

गोद लेने वाले ज्यादातर लोग कहते हैं कि उम्रदराज होने पर बेटियों के साथ रहना ज्यादा सुरक्षित है. बेटे छोड़ देते हैं, पर बेटियां हमेशा साथ देती हैं.

अभिभावक बनी मां

देश में अब मां कानूनीरूप से बच्चे की अभिभावक बनने की अधिकारी हो गई है. महिलाएं अब बच्चे को गोद भी ले सकेंगी. अब तक सिर्फ पुरुषों को ही गोद लेने व संतान का अभिभावक होने का हक था. संसद ने निजी कानून (संशोधन) बिल 2010 पारित किया था. इस के तहत गार्जियंस ऐंड वार्ड्स एक्ट 1890 तथा हिंदू गोद प्रथा तथा मेंटिनैंस कानून 1956 में संशोधन किया गया है. राष्ट्रपति ने निजी कानून (संशोधन) बिल 2010 को मंजूरी दे दी. यह गजट में प्रकाशित हो चुका है.

हिंदू गोद प्रथा तथा मेंटिनैंस कानून 1956 में संशोधन किया गया. यह कानून हिंदू, जैन, बौद्ध व सिख पर प्रभावी होता है. संशोधन का मकसद विवाहित महिलाओं के लिए गोद लेने की राह से बाधाएं हटाना है.

अब तक अविवाहित, तलाकशुदा तथा विधवा महिलाओं को बच्चे को गोद लेने का हक था लेकिन जो महिलाएं अपने पति से अलग रहते हुए तलाक के लिए कानूनी लड़ाई में उलझती थीं, वे किसी बच्चे को गोद नहीं ले सकती थीं. नए संशोधन के बाद पति से अलग रह रही विवाहित महिला को भी अपने पति की रजामंदी से बच्चे को गोद लेने का हक होगा. यह इजाजत तलाक की प्रक्रिया में भी मांगी जा सकती है. यदि पति अपना धर्म बदल लेता है या विक्षिप्त घोषित कर दिया जाए, तो उस की इजाजत जरूरी नहीं होगी.

भारत में हिंदू दत्तक व भरणपोषण अधिनियम लागू किया गया है. यह हिंदुओं के अलावा जैन, सिख और बौद्ध धर्मावलंबियों पर लागू होता है. मुसलिमों में अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार गोद लिया जा सकता है जबकि ईसाई व पारसी समुदायों में इस के लिए कोई धार्मिक कानून नहीं है, पर वे भी बच्चे गोद ले सकते हैं.

कौन गोद ले किस को

यदि कोई पुरुष किसी लड़की को गोद ले चाहता है तो उस का उस लड़की से उम्र में 21 साल बड़ा होना आवश्यक है. इसी प्रकार यदि कोई महिला किसी लड़के को गोद लेना चाहती है तो उस का उस लड़के से 21 वर्ष बड़ा होना जरूरी है.

आप उसी बच्चे को गोद ले सकते हैं जो पहले से किसी के यहां गोद न गया हो अथवा जिस का अभी तक विवाह न हुआ हो. आमतौर पर 15 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे को गोद नहीं लिया जा सकता. हां, यदि उस समाज में ऐसी प्रथा हो तो बात अलग है.

यदि आप अनाथाश्रम के बजाय किसी अन्य माध्यम या रिश्तेदारी से बच्चा गोद लेना चाहते हैं तो उस के मूल पिता की अनुमति आवश्यक है. हां, यदि पिता जीवित न हो, पागल हो या विधर्मी हो तो अकेली मां की अनुमति चल सकती है. यदि मांबाप दोनों मर गए हों या बच्चे को लावारिस हालत में छोड़ गए हों तो अदालती कार्यवाही के माध्यम से बच्चा गोद ले सकते हैं.

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