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तालमेल: आखिर अभिनव में क्या थी कमी

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पति के अफेयर को कैसे सहन करुं, कोई तरीका बताएं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 5 साल हुए हैं. एक 3 वर्ष की बेटी है. कुछ महीनों से मेरे पति घरपरिवार से काफी उदासीन रहने लगे थे. मुझे लगा कि शायद औफिस में काम का अधिक बोझ होगा. फिर जब वे अकसर घर देर से लौटने लगे और बेवजह मुझ से लड़नेझगड़ने लगे तब मुझे शक हुआ. बारबार कुरेदने पर एक दिन सचाई उन की जबान पर आ ही गई. उन का अपनी एक सहकर्मी जो कुंआरी है, से चक्कर चल रहा है. जब से इस राज का पता चला है हमारा रोज झगड़ा होने लगा है. मन करता है कि आत्महत्या कर लूं पर बेटी की वजह से ऐसा नहीं कर सकती. क्या मेरी समस्या का कोई समाधान है?

जवाब-

आप की शादी को अभी ज्यादा समय नहीं बीता है, बावजूद इस के आप के पति आप से विमुख हो किसी और युवती के चक्कर में पड़ गए हैं. लगता है बेटी हो जाने के बाद आप उस के पालनपोषण में इतनी व्यस्त हो गईं कि पति की ओर से बिलकुल उदासीन होती गईं. यह सही है कि छोटे बच्चे की परवरिश भी काफी बड़ी जिम्मेदारी होती है पर इस के चलते पति की अनदेखी करना भी गलत है. जो हुआ सो हुआ. अब आप पति से लड़ाईझगड़ा करने के बजाय उन पर ध्यान दें. उन्हें भरपूर प्यार दें ताकि उन का उस युवती से मोहभंग हो जाए और वे आप के पास लौट आएं.

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शादी के बाद पतिपत्नियों को यह जानने में जरा भी देर नहीं लगती कि उन का साथी पहले जैसा नहीं रहा. आखिर इस मनमुटाव का क्या कारण है? दरअसल, अधिकांश केसों में पतिपत्नी के बीच झगड़े का मुख्य कारण अतृप्त सैक्स संबंध हैं. सैक्स संबंधों की वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी दोनों को आवश्यकता होती है.

महिलाओं में शुरू से ही लज्जा, शर्म और संकोच होता है. वैवाहिक जीवन के बाद भी वे सैक्स संबंधों के बारे में खुल कर बात नहीं कर पातीं. यही कारण है कि स्त्री सैक्स का चरमसुख प्राप्त करने के बारे में स्वयं कुछ नहीं कहती. लेकिन सैक्स एक ऐसी आग है, जो भड़कने के बाद आसानी से शांत नहीं होती.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के साइड इफैक्ट्स

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अम्मा बनते बाबूजी: मीनू और चिंटू के साथ क्या हुआ

छोटा सा ही सही, साम्राज्य है यह घर अम्मा का, हुकूमत चलती है यहां अम्मा की. मजाल है उन की इच्छा के बगैर कोई उन के क्षेत्र में प्रवेश कर जाता. हमें भी सख्त हिदायत रहती जो चीज जहां से लो, वहीं रखनी है ताकि अंधेरे में भी खोजो तो पल में मिल जाए. बाबूजी…वे कभी रसोई में घुसने का प्रयास भी करते तो झट अम्मा कह देतीं, ‘आप तो बस रहने ही दीजिए, मेरी रसोई मुझे ही संभालने दीजिए. आप तो बस अपना दफ्तर संभालिए.’

फिर जब कभी अम्मा किसी काम में व्यस्त होतीं और बाबूजी से कहतीं, ‘सुनिए जी, जरा गैस बंद कर देंगे?’ बाबूजी झट हंसते हुए कहते, ‘न भई, तुम्हारी राज्यसीमा में भला मैं कैसे प्रवेश कर सकता हूं.’

यह बात नहीं कि अम्मा को बाबूजी के रसोई में जाने से कोई परहेज हो, यह तो बहाना था बाबूजी को घर की झंझटों से दूर रखने का, चाहे बाजार से किराना लाना हो, दूध वाले या प्रैस वाले का हिसाब ही क्यों न हो. समझदार हैं अम्मा, वे जानती हैं कि दफ्तर में सौ झंझटें होती हैं, कम से कम घर में तो इंसान सुख से रहे. बाबूजी के नहाने के पानी से ले कर बाथरूम में उन के कपड़े रखने तक की जिम्मेदारी बड़े कौशल से निभातीं अम्मा. दफ्तर से आ कर बाबूजी का काम होता अखबार पढ़ना और टीवी देखना. बाबूजी के सदा बेफिक्र चेहरे के पीछे अम्मा ही नजर आतीं.

अम्मा का प्रबंधकौशल भी अनोखा था. सब की जरूरतों का ध्यान रखना, सुबह से ले कर शाम तक किसी नटनी की भांति एक लय से नाचतीं. न कभी थकतीं अम्मा और न ही उन के चेहरे पर कभी कोई झुंझलाहट ही होती. सदा होंठों पर मुसकान लिए हमारा उत्साह बढ़ातीं. मेरे और चिंटू के स्कूल से आने से पहले वे घर के सारे काम निबटा लेतीं, फिर हमारी तीमारदारी में लग जातीं. उसी तरह शाम को बाबूजी के दफ्तर से लौटने से पहले वे रसोई में सब्जी काट कर, आटा लगा कर गैस पर कुकर तैयार रखतीं ताकि बाबूजी के आने के  बाद उन के स्वागत के लिए वे तनावमुक्त रहें. रात के खाने का हमसब मिल कर आनंद लेते. पूरे घर को अपनी ममता और प्यार की नाजुक डोर से बांध कर रखा था अम्मा ने. उन के बगैर किसी का कोई अस्तित्व नहीं था.

हालांकि ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थीं वे, फिर भी रात को जब हम पढ़ने बैठते तो वे हमारे पास बैठतीं. उन की उपस्थिति ही हमारे लिए काफी होती. वे पास बैठेबैठे कभी उधड़े कपड़ों की सीवन करतीं तो कभी स्वेटर बुनतीं. काम में उन की लगन देख कर लगता मानो रिश्तों की उधड़न को सी रही हों.

ममता का प्रभाव था कि मैं और चिंटू सदैव स्कूल में अव्वल रहते. हमारे स्कूल यूनिफौर्म से ले कर स्कूलबैग और टिफिन में अम्मा का मातृत्व झलकता था. मेरे लंबे बालों को अम्मा बड़े जतन से तेल लगा कर, दो चोटी बना, ऊपर बांध देतीं ताकि किसी की नजर न लगे मेरे बालों को. बहुत पसंद हैं बाबूजी को लंबे बाल. उन की छोटीछोटी पसंद का खयाल रखतीं अम्मा.

पिं्रसिपल मैडम ने एक बार अम्मा को बुला कर कहा भी, ‘रियली आई एप्रीशिएट यू मिसेज सुलेखाजी. आप ने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं. आप गृहिणी हैं, आप की शिक्षा काम आई, इसीलिए तो कहते हैं कि परिवार में मां का पढ़ालिखा होना बहुत जरूरी है.’

अम्मा ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया. ‘मैडम, मैं ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं हूं, न ही मैं पढ़ा पाती हूं. मीनू और चिंटू के बस पढ़ते वक्त मैं हरदम उन के साथ रहती हूं.’ सुन कर पिं्रसिपल मैडम और भी प्रभावित हो गईं अम्मा की साफगोई से.

हरी दूब पर चलते से गुजर रहे थे दिन, सारे घर में मशीन की तरह फिरती अम्मा. एक दिन अचानक उस मशीन में खराबी आ गई. सारे घर का व्यापार ही थम गया. डाक्टर ने अम्मा को आराम करने की नसीहत दी. फिर भी अम्मा से जितना बन पड़ता, उठ कर समयसमय से कुछ कर लेतीं ताकि बाबूजी को और हमें कम परेशानी हो. बाबूजी के लिए तो यह परीक्षा की घड़ी थी. उन्हें तो यह भी नहीं पता था कि कुकर में दाल कितनी सीटी में पक जाती है, आटे में कितना नमक पड़ता है, भिंडी काटने से पहले धोई जाती है या बाद में.

न चाहते हुए भी अम्मा का साम्राज्य अस्तव्यस्त होता जा रहा था. कमजोरी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी. अब तो डाक्टर ने उन्हें बिस्तर से न उठने की भी सख्त हिदायत दे दी. बाबूजी अम्मा का पूरा ध्यान रखते. मगर बहुत बदल गए थे वे. पहले हमारी छोटी सी गलतियों पर डांटने वाले बाबूजी अब बड़ी गलतियों पर भी चुप रहते. वे जान गए थे कि उन की डांट से बचाने वाला आंचल अब तारतार हो रहा है. दफ्तर के बाद उन का सारा समय अम्मा की तीमारदारी में बीत जाता.

बाबूजी से अपनी तीमारदारी कराते उन्हें खुशी नहीं होती थी. वे किसी मासूम बच्चे की तरह उदास हो कहतीं, ‘सुनिए जी, मैं ठीक तो हो जाऊंगी न. कितना परेशान कर दिया है मेरी बीमारी ने तुम्हें. और मेरे मासूम बच्चे, देखो, कितना उदास रहने लगे हैं.’

बाबूजी अम्मा का हाथ अपने हाथ में ले कर उन्हें हिम्मत बंधाते. मगर खुद भीतर ही भीतर कितना टूट रहे थे, वे ही जानते थे. उन्हें पता था कि अब अम्मा कभी अच्छी नहीं होने वाली. उन्हें ब्लडकैंसर हो गया था. न अम्मा इस बात को जानती थीं, न मैं, न ही चिंटू. इतना बड़ा पहाड़ बाबूजी अपने सीने पर अकेले ही झेलते रहे. अम्मा के सामने खुद को मजबूत करते. मगर अकेले में कई बार आंसू बहाते देखा था मैं ने उन्हें. अब रसोई बाबूजी के हाथों में आ गई थी. कच्चापक्का जैसे भी बनता, पकाते. कभी दालचावल तो कभी खाली खिचड़ी से हम पेट भर लेते. सब्जीरोटी कम ही बनती. अब चिंटू भी खाने को ले कर कुरकुरी भिंडी की मांग नहीं करता, न ही दूध के लिए अम्मा को सारे घर में दौड़ाता. अम्मा के हाथ से खाने की जिद भी नहीं करता, जानता था, अम्मा बहुत कमजोर हो गई हैं. जो बनता, हमसब चुपचाप खा लेते. घर में हमेशा गहरी उदासी छाई रहती. यह सब देख अम्मा कहतीं कुछ नहीं, बस, उन की आंखों की कोर से आंसू ढुलक जाते. शायद वे समझ गई थीं कि वे कभी ठीक नहीं हो पाएंगी.

बाबूजी अम्मा का पूरा खयाल रखते. उन के  नहाने, खाने, बाल बनाने तक, समयसमय पर जूस ला कर अम्मा के हाथ में देते. अपने और हमारे नहाने की बालटी से ले कर तौलिया और कपड़े तक बाबूजी ही रखते बाथरूम में. सुबह दूध, टिफिन दे कर हमें स्कूल की बस तक पहुंचाना… हां, अब मेरे लंबे बाल कटवा दिए गए क्योंकि बाबूजी के काम जो बहुत बढ़ गए थे. बहुत रोई थीं अम्मा उस रोज. उन की हालत दिनबदिन  खराब होती जा रही थी. अब तो उन्हें आंखों से भी कम दिखाई देने लगा था. बाबूजी ने उन्हें खुश रखने की हर संभव कोशिश की. मगर एक दिन अम्मा हमेशाहमेशा के लिए हम सब को छोड़ कर चली गईं. आधे रह गए थे बाबूजी अपनी अर्द्धांगिनी के चले जाने पर. एकांत में बैठे, छत निहारते रहते, मानो अम्मा से शिकायत कर रहे हों मझधार में छोड़ कर क्यों चली गईं?

कितना बदल जाता है वक्त और अपने साथ बदल देता है इंसान को. जो बाबूजी बैडटी के बगैर बिस्तर से नीचे कदम नहीं रखते थे, अब उठते ही हमारी देखभाल में व्यस्त हो जाते. हमें स्कूल भेज कर ही खुद चाय बनाते और पीते.

वक्त अपने तरीके से कट रहा था. इस महीने हमारे स्कूल का परीक्षा परिणाम आ गया. कल पेरैंट्स मीटिंग थी. बाबूजी नहीं जानते क्या होता है पेरैंट्स मीटिंग में. कई बार अम्मा ने कहा संग चलने को, मगर बाबूजी ने यह कह कर टाल दिया कि बच्चों की ट्यूटर तुम हो, जवाब तो तुम्हें ही देना है. फिर शरारत करते हुए कहते, ‘भई, मैं ने तो अपने हिस्से का स्कूल कर लिया, तुम रह गईं, सो तुम्हीं जाओ. मुझे बख्शो.’ वही हुआ जिस की संभावना थी, हमेशा अव्वल आने वाले हम पिछड़ गए थे. इस बार मैं 2 विषयों और चिंटू 4 विषयों में फेल हो गया. यह बात नहीं कि हम ने पढ़ने की कोशिश नहीं की, पुस्तकें खोल कर बैठते, पास में गुमसुम बाबूजी भी होते मगर पास अम्मा जो नहीं होतीं.

जैसे ही बाबूजी हमें ले कर क्लास में दाखिल हुए, दूसरे पेरैंट्स की कानाफूसी न चाहते हुए भी कानों में पड़ गई. अब तक मां थी, अब मां नहीं है न. कितना फर्क पड़ता है मां से. ये शब्द बाबूजी के भीतर किसी तेजाब सरीखे उतरते चले गए. अम्मा की कमी का एहसास उन से ज्यादा और किसे होगा. मगर लोगों के शब्द मानो उन्हें मुंह चिढ़ा रहे हों कि वे अम्मा की जगह नहीं ले सकते या फिर वे हमारी परवरिश में सफल नहीं हो पाए.

आज उन्हीं पिं्रसिपल ने बाबूजी को बुला कर कहा, ‘‘मिस्टर विकास, मैं आप की स्थिति समझ सकती हूं. मैं यह भी जानती हूं आप को इस परिस्थिति से उबरने में अभी वक्त लगेगा. किंतु बच्चों की भलाई के लिए यह कहने को विवश हूं कि अब आप को उन की ओर ज्यादा गंभीरता से ध्यान देना होगा. इस बार का परिणाम तो हम समझ सकते हैं लेकिन मैं समझती हूं आप भी नहीं चाहेंगे कि सुलेखाजी ने जिस मेहनत से बच्चों को तैयार किया है, वह जाया हो.

‘‘इस में कोई शक नहीं मीनू और चिंटू बहुत इंटैलिजैंट हैं. किंतु पिछले दिनों दोनों के सलवट भरी यूनिफौर्म और बिखरे बालों को ले कर बच्चे क्लास में उन का मजाक बना रहे थे. कल तो चिंटू की पैंट भी नीचे से उधड़ी हुई थी. मिस्टर विकास, आप समझ रहे हैं न. इस से बच्चे हतोत्साहित हो जाएंगे. एक बार उन का आत्मविश्वास कमजोर हो गया तो बड़ी मुश्किल होगी उन्हें संभालने में. सो, प्लीज, आप उन का खयाल रखिए.’’ बाबूजी चुपचाप सुनते रहे. कुछ नहीं बोले. वैसे भी, आजकल वे बोलते कम ही हैं. छोटीछोटी बातों में शरारत कर अम्मा से मजे लेने की आदत तो उन की अम्मा के साथ ही चली गई. उन्हें रेशारेशा टूटते, खुद को बदलते मैं ने देखा है

मानो उन्होंने अम्मा बनने की मुहिम चला रखी हो. भीतर ही भीतर ठान लिया हो कि वे अम्मा की मेहनत को जाया नहीं होने देंगे. उस दिन रविवार था. उन्होंने शाम को मुझे और चिंटू को तैयार किया. दूध और ब्रैड हाथ में थमाते हुए बोले, ‘‘मीनू बेटा, चिंटू को सामने पार्क में घुमा ला. तब तक मैं रसोई का काम निबटा लूं. फिर हम पढ़ाई करेंगे.’’

मैं कुछ ही देर में पार्क से लौट आई, मन नहीं लग रहा था. लौटी तो देखा रसोई में गैस पर रखे कुकर में सीटी आ रही थी, पास ही भिंडी तल कर रखी हुई थी. थाली में आटा लगा हुआ था, ठीक जैसे अम्मा रखती थीं. मगर बाबूजी, बाबूजी तो रसोई में नहीं हैं? कमरे में जा कर देखा तो सुईधागा लिए बाबूजी चिंटू की उधड़ी पैंट सिलने की कोशिश कर रहे थे. पैंट नहीं…उधड़े रिश्ते सी रहे थे… जैसे अम्मा सीया करती थीं. आज ऐसा लग रहा था अम्मा पूरी की पूरी बाबूजी में उतर आई हों.

बेबी की ऐसे करें कोमल देखभाल

शिशु का जन्म घरआंगन में खुशियों के साथसाथ जिम्मेदारी भी ले कर आता है. जिम्मेदारी नवजात की सही परवरिश और उस की कोमल देखभाल की. ऐसे में नई मांओं के सामने यह जिम्मेदारी किसी चुनौती से कम नहीं होती, क्योंकि शिशु की देखभाल से संबंधित कई अहम बातों की जानकारी उन्हें नहीं होती.

स्तनपान के जरीए नवजात के शरीर  का आंतरिक विकास तो सही ढंग से होता  रहता है, मगर उस की त्वचा को सेहतमंद व सुरक्षित रखने के लिए ज्यादा देखभाल की  जरूरत पड़ती है.

पेश हैं, कुछ सुझाव जो शिशु की त्वचा की कोमल देखभाल में आप के बेहद काम आएंगे:

बेबी बाथ

शिशु को नहलाते समय व नहलाने के बाद यहां बताई गई बातों का ध्यान रखें:

  1. शिशु के नहाने का पानी या तो साधारण तापमान पर या फिर कुनकुना होना चाहिए. उस के शरीर को हाथों की सहायता से धीरेधीरे पानी डालते हुए साफ करें.
  2. शिशु को नहलाने के लिए सौम्य बेबी सोप या लोशन का ही इस्तेमाल करें. किसी अन्य साबुन या लोशन का इस्तेमाल उस की नाजुक त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है.
  3. शिशु के बालों को साफसुथरा रखने के लिए बेबी शैंपू का ही इस्तेमाल करें. शैंपू को हथेलियों पर हलका सा रगड़ने के बाद शिशु के बालों में लगाएं. पानी से साफ करने के लिए शिशु को अपनी गोद में बैठा कर हथेलियों में पानी ले कर धीरेधीरे सिर के आगे से पीछे की तरफ शैंपू साफ करें. ऐसा करने से शैंपू शिशु की आंखों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा.
  4. नहलाने के बाद नरम तौलिए से थपथपा कर शिशु के शरीर को सुखाएं

बेबी मसाज

बच्चे के संपूर्ण विकास में उस की मालिश का सब से ज्यादा महत्त्व है. मालिश बच्चे की त्वचा के साथसाथ उस की हड्डियों को भी मजबूती व पोषण देती है. शिशु की मालिश के दौरान इन बातों का ध्यान रखें:

  1. शिशु की मालिश के लिए पोषणयुक्त, कैमिकलरहित बेबी मसाज औयल का ही इस्तेमाल करें.
  2. मालिश शुरू करने से पहले शिशु को आरामदायक स्थिति में लिटा लें. फिर हथेलियों पर तेल ले कर सब से पहले शिशु के पैरों की मालिश करें. इस के बाद हाथों व अन्य हिस्सों जैसे छाती व पीठ की मालिश करें.
  3. मालिश करते समय शिशु के शरीर पर दबाव न डालें.
  4. शिशु की मालिश हमेशा स्तनपान कराने से पहले ही करें.
  5. शिशु की हथेलियों और तलवों पर भी मसाज औयल जरूर लगाएं. इस के साथसाथ उस के हाथों और पैरों की अंगुलियों की भी हलके हाथों से मालिश करें.

बेबी स्किन केयर ऐंड हाइजीन

  1. शिशु की त्वचा की कोमलता बनाए रखने में इन बातों की भी बड़ी भूमिका है:
  2. शिशु के नाजुक अंगों की साफसफाई के लिए तौलिया इस्तेमाल करने के बजाय सौफ्ट बेबी वाइप्स का प्रयोग करें. तौलिया या अन्य किसी कपड़े का इस्तेमाल करने से शिशु की त्वचा पर रैशेज पड़ने का खतरा रहता है.
  3. नहलाने के बाद शिशु को कपड़े पहनाने से पहले उस के शरीर पर सौम्य बेबी पाउडर लगाएं. बेबी पाउडर की सुगंध बच्चे को ताजगी का एहसास देती है.
  4. बच्चे की नैपी को समयसमय पर चैक करती रहें ताकि गीलेपन की वजह से बच्चे के नाजुक अंगों को नुकसान न पहुंचे.
  5. बच्चे को नहलाने के बाद बेबी इयरबड्स की सहायता से उस के कानों में जमा शैंपू का पानी साफ करना न भूलें.

इन बातों का ध्यान रखने के साथसाथ शिशु के सही शारीरिक विकास के लिए हमेशा सौम्य बेबी प्रोडक्ट्स का ही चुनाव करें. शिशु की कोमल देखभाल का यह दौर आप के जीवन का सब से यादगार दौर होता है. इसलिए उस की कोमलता का ध्यान रखें.

7 Tips: ट्राय करें बालों की लंबाई बढ़ाने के आसान उपाय

बालों को एकदम से लम्‍बा करने का कोई तरीका नहीं होता है. अगर आपका हेयरकट बुरा हो जाता है तब यह स्थिति और ज्‍यादा बद से बदतर लगती है कि आपके बाल जल्‍दी क्‍यूं नहीं लम्‍बे हो जाते हैं.

आमतौर पर, एक महीने में सिर्फ आधा इंच बाल ही बढ़ते हैं, और अगर आपके बाल स्‍वस्‍थ हैं तो वो कभी दोमुंहें नहीं होंगे. एक प्‍वाइंट के बाद बालों का लम्‍बा होना रूक जाता है. ऐसे में हमें लगता है कि अभी तक ठीक से बढ़ रहे थे, अचानक से इनकी लम्‍बाई बढ़ना थम क्‍यूं गई है.

अगर आपको अपने बालों को लम्‍बे करने का शौक है तो निम्‍नलिखित ट्रिक्‍स और टिप्‍स को ध्‍यान में रखें, ये आपके लिए काफी उपयोगी साबित होगी.

1. नियमित ट्रिम करवाइये:

हर 2-4 सप्‍ताह में अपने बालों को हल्‍का सा ट्रिम करवा लें. यह आपको अजीब लग सकता है लेकिन वाकई में इससे बालों की ग्रोथ फास्‍ट हो जाती है और इनमें चमक भी बनी रहती है. साथ ही दोमुँहें बाल भी निकल जाते हैं.

2. कंडीशनर

जब भी अपने बालों को वॉश करें, तो कंडीशनर अवश्‍य लगाएं. इससे बालों को पर्याप्‍त पोषण और मॉश्‍इचर मिलता है. साथ ही अगर शैम्‍पू का कोई हार्मफुल इफेक्‍ट होता है तो ये उसे भी सही कर देता है.

3. हेयर मास्‍क:

हर सप्‍ताह, बालों में हेयर मास्‍क अवश्‍य लगाएं. आप हेयरमास्‍क को घर पर भी बना सकते हैं. अगर आपको हेयरमास्‍क का कोई आईडिया नहीं है तो आप ऑयल ट्रीटमेंट भी बालों को दे सकती हैं. इससे बालों को नमी मिलती है और वो मुलायम हो जाते हैं.

4. सॉटिन तकिया प्रयोग करें:

बालों को स्‍वस्‍थ बनाना है तो सॉटिन का तकिया लगाएं, इससे हेयरफॉल कम होगा और बालों की नमी भी तकिए के द्वारा नहीं सोखी जाएगी.

5. सिर की मसाज:

सिर की मसाज करने से रक्‍त का संचार अच्‍छा हो जाता है, इससे बालों की ग्रोथ बढ़ जाती है. सिर की मसाज करने से नए बाल भी उगते हैं. खोपड़ी की मृत त्‍वचा भी निकल जाती है.

6. नियमित धुलें:

अगर आपके बाल रूखे रहते हैं तो उन्‍हें ऑयलिंग करके किसी अच्‍छे शैम्‍पू से धुलें. बाल ज्‍यादा रूखे होने पर सप्‍ताह में दो बार अवश्‍य धुलें. इससे बाल हेल्‍दी हो जाते हैं और बालों में पाया जाने वाला ऑयल, बालों को अधिक शाइनी बना देता है.

7. बालों को ब्रश करें:

बालों को दिन में कम से कम तीन बाल ब्रश जरूर करें. सोने से पहले बालों को खुला रखें और अच्‍छे से कंघी करके ही सोएं. जब बाल गीले हों, तो उन्‍हें कभी ब्रश न करें, इससे वह टूट जाते हैं. बालों को प्‍यार से सुलझाएं, वरना वो कमजोर पड़ जाते हैं.

प्यार पर पूर्णविराम- भाग 3: जब लौटा पूर्णिमा का अतीत

अजय शायद उस की असहजता को समझ गया था. अत: वह दूसरे सोफे पर बैठ गया. फिर शुरू हुआ बीती बातों का लंबा सिलसिला… कितनी ही पुरानी यादें झरोखों से झांक गईं… कितने ही पल स्मृतियों में आए और चले गए… कभी दोनों खुल कर हंसे तो कभी आंखें नम हुईं… थोड़ी ही देर में दोनों सहज हो गए.

2 बार कौफी पीने के बाद पूर्णिमा ने कहा, ‘‘भूख लगी है… लंच नहीं करवाओगे?’’

‘‘यहीं रूम में करोगी या डाइनिंग हौल में चलें?’’ अजय ने पूछा और फिर पूर्णिमा की इच्छा पर वहीं रूम में खाना और्डर कर दिया. लंच के बाद फिर से बातें… बातें… और बहुत सी बातें…

‘‘अच्छा अजय, अब मैं चलती हूं… बहुत अच्छा लगा तुम से मिल कर. आई होप कि अब तुम अपनेआप को मेरे लिए परेशान नहीं करोगे,’’ पूर्णिमा ने टाइम देखा. शाम होने को थी.

‘‘एक बार गले नहीं मिलोगी,’’ अजय ने याचक दृष्टि से उस की तरफ देखा. न जाने क्या था उन आंखों में कि पूर्णिमा सम्मोहित सी उस की बांहों में समा गई.

अजय ने उसे अपने बाहुपाश में कस लिया और धीरे से अपने गरम होंठ उस के कान के नीचे गरदन पर लगा दिए. फिर उस का मुंह घुमा कर बेताबी से होंठ चूमने लगा. पूर्णिमा पिघलती जा रही थी. अजय ने उसे बांहों में उठाया और बिस्तर पर ले आया. पूर्णिमा चाह कर भी कोई विरोध नहीं कर पा रही थी. अजय के हाथ उस के ब्लाउज के बटनों से खेलने लगे.

तभी उस का मोबाइल बज उठा. पूर्णिमा जैसे नींद से जागी. अजय ने उसे फिर से अपनी ओर खींचना चाहा, मगर अब तक पूर्णिमा का सम्मोहन टूट चुका था. उस ने लपक कर फोन उठाया. फोन रवि का था. पूर्णिमा ने अपनी उखड़ी सांसों पर काबू पाते हुए रवि से बात की और उसे अपनी कुशलता के लिए आश्वस्त किया.

‘‘अजय, मैं ने तुम्हारी जिद पूरी कर दी. अब प्लीज तुम मुझ से संपर्क करने की कोशिश मत करना. मानोगे न मेरी बात?’’ पूर्णिमा ने अजय का हाथ अपने हाथ में ले कर उस से वादा लिया और कैंप की तरफ लौट गई.

लगभग 2 महीने हो गए… अजय की तरफ से कोई पहल नहीं हुई तो पूर्णिमा ने राहत की सांस ली. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं. अजय ने फिर से अपनी वही हरकतें शुरू कर दीं. कभी पूर्णिमा के रास्ते में खड़े रहना… तो कभी कालेज के गेट पर… कभी एसएमएस तो कभी व्हाट्सऐप मैसेज करना… मगर अब पूर्णिमा उसे पूरी तरफ इग्नोर करने लगी थी. हां, इस बीच उस ने पूर्णिमा को कोई फोन नहीं किया. फिर भी वह मन ही मन अजय की दीवानगी से डरने लगी थी, क्योंकि घर पहुंचने के बाद अकसर बच्चे उस के मोबाइल पर गेम खेलने लगते हैं. ऐसे में कहीं अजय का कोई मैसेज किसी ने पढ़ लिया तो मुसीबत हो जाएगी.

कुछ तो करना ही पड़ेगा… मगर क्या? क्या रवि को सब सच बता दूं? नहींनहीं पति चाहे कितना भी प्यार करने वाला हो पत्नी को कोई और चाहे यह कतई बरदाश्त नहीं कर सकता… तो क्या करूं? क्या अजय की पत्नी से मिलूं और उस से मदद मांगूं? नहीं, इस से तो अजय विभा की नजरों में गिर जाएगा… तो आखिर करूं तो क्या करूं? पूर्णिमा जितना सोचती उतना ही उलझती जाती.

अगले महीने पूर्णिमा का जन्मदिन आने वाला था. अजय फिर से एक आखिरी बार मिलने की जिद करने लगा. हालांकि अब पूर्णिमा उसे कोई रिस्पौंस नहीं देती. मगर अजय को उस के इस रवैए से कोई फर्क नहीं पड़ा. वह बदस्तूर जारी रहा. कभीकभी उस के संदेशों में अधिकारपूर्वक दी गई धमकी भी होती थी कि पूर्णिमा चाहे या न चाहे… वह उस के जन्मदिन पर उस से मिलेगा भी और सैलिब्रेट भी करेगा. बहुत सोच कर आखिर पूर्णिमा ने उसे मिलने की इजाजत दे दी.

तय समय पर पूर्णिमा अजय से मिलने पहुंची. यह अजय के सहकर्मी का घर था, जिसे

वह किराए पर दिया करता है. इन दिनों यह मकान खाली था और अजय ने उस से किसी जानकार को घर दिखाने के बहाने चाबी ले ली थी.

जैसाकि पूर्णिमा का अनुमान था, अजय ने केक, फूल और चौकलेट की व्यवस्था कर रखी थी. टेबल पर खूबसूरती से पैक किया गया एक गिफ्ट भी रखा था. पूर्णिमा ने हर चीज को नजरअंदाज कर दिया.

आज वह पूरी तरह से सतर्क थी. उस ने एक बार भी अजय को भावनात्मक रूप से खुद पर हावी नहीं होने दिया. कुछ देर औपचारिक बातें करने के बाद पूर्णिमा ने केक काटने की औपचारिकता पूरी की और फिर एक पीस अजय के मुंह में डाल दिया. इस के तुरंत बाद अजय ने उस की तरफ अपनी बांहें फैला दीं. मगर पूर्णिमा ने कोई रिस्पौंस नहीं दिया.

थोड़ी देर बाद उस ने अजय के परिवार का जिक्र छेड़ दिया, ‘‘विभा तुम्हें बहुत प्यार करती है न अजय?’’

‘‘हां, करती है,’’ अजय के चेहरे पर एक हलकी मुसकान आई.

‘‘कभी तुम ने उस से पूछा कि शादी से पहले वह किसी और से प्यार करती थी या नहीं?’’ पूर्णिमा ने आगे कहा.

‘‘नहीं… नहीं पूछा… और मैं जानना भी नहीं चाहता, क्योंकि उस समय मैं उस की जिंदगी का हिस्सा नहीं था,’’ अजय ने बहुत ही संयत स्वर में जवाब दिया.

‘‘अगर विभा ने अब भी अपने अतीत से रिश्ता जोड़ रखा हो तो?’’ पूर्णिमा ने एक जलता प्रश्न उछाला.

‘‘नहीं, विभा चरित्रहीन नहीं हो सकती… वह मुझ से कभी बेवफाई नहीं कर सकती,’’ अजय गुस्से से लाल हो उठा.

‘‘वाह अजय अगर विभा अपना अतीत याद रखे तो चरित्रहीन और तुम मुझ से रिश्ता रखो तो प्रेम… क्या दोहरी मानसिकता है… भई मान गए तुम्हारे मानदंड,’’ पूर्णिमा ने व्यंग्य से कहा.

अजय को कोई जवाब नहीं सूझा. वह सोच में डूब गया.

‘‘अजय, जैसा तुम सोचते हो लगभग वैसी ही सोच हर भारतीय पति अपनी पत्नी के लिए रखता है… शायद रवि भी… क्या तुम चाहते हो कि वह मुझे चरित्रहीन समझे?’’ पूर्णिमा उस के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली.

‘‘नहीं, कभी नहीं. मुझे माफ कर दो पुन्नू… मैं तुम्हें खोने को अपनी हार समझ बैठा था और उसे जीत में बदलने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गया था. मैं सिर्फ अपना ही पक्ष देख रहा था… मैं भूल गया था कि 3 दूसरे लोग भी इस से प्र्रभावित होंगे,’’ अजय के स्वर में पश्चात्ताप झलक रहा था.

‘‘तो प्लीज, अगर तुम ने कभी सच्चे दिल से मुझे चाहा हो तो तुम्हें उसी प्यार का वास्ता… अब कभी मुझ से कोई उम्मीद मत रखना… इस रिश्ते को अब यहीं पूर्णविराम दे दो,’’ पूर्णिमा ने वादा लेने के लिए अजय के सामने हाथ फैला दिया, जिसे अजय ने कस कर थाम लिया.

पूर्णिमा ने आखिरी बार अजय को प्यार से गले लगाया और फिर अपने इस प्यार को पूर्णविराम दे कर आत्मविश्वास के साथ मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ गई.

प्यार पर पूर्णविराम- भाग 2: जब लौटा पूर्णिमा का अतीत

अजय की बातों में वह कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाती थी. बस हांहूं कर के फोन काट देती थी. अजय ने ही बातोंबातों में उसे बताया कि जिस दिन पूर्णिमा की डोली उठी उसी दिन उस ने नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. 2 साल वह गहरे अवसाद में रहा. फिर किसी तरह अपनेआप को संभाल सका था. मांपापा के जोर देने पर उस ने विभा से शादी तो कर ली, मगर पूर्णिमा को एक पल के लिए भी नहीं भूल सका. विभा उस का बहुत खयाल रखती है. अब अजय भी 2 बच्चों का पिता है. कुछ महीने पहले ही उस का ट्रांसफर इस शहर में हुआ है आदिआदि…

अजय की इस शहर में उपस्थिति पूर्णिमा के लिए परेशानी का कारण बनने

लगी थी. अकसर जब पूर्णिमा कालेज के लिए निकलती तो अजय को किसी मोड़ पर बेताब आशिक की तरह खड़ा पाती. 1-2 बार तो उस का पीछा करतेकरते वह कालेज तक आ गया था. पूर्णिमा इसी फिक्र में घुली जा रही थी कि अजय कोई ऐसी बचकानी हरकत न कर बैठे जो उस के लिए शर्मिंदगी का कारण बन जाए. सोचसोच कर हमेशा खिलाखिला रहने वाला उस का चेहरा मुरझा कर पीला पड़ने लगा था.

‘‘पुन्नू, तुम्हें 20 अप्रैल याद है?’’ अजय ने उत्साहित होते हुए पूर्णिमा को फोन कर बताया.

‘‘याद तो नहीं था, मगर अब तुम ने याद दिला दिया,’’ पूर्णिमा ने ठंडा सा जवाब दिया.

‘‘सुनो, 20 अप्रैल आने वाली है… मैं तुम से मिलना चाहता हूं अकेले में… प्लीज, मना मत करना…’’ अजय के स्वर में विनती थी.

‘‘अजय यह मेरे लिए संभव नहीं है… यह शहर बहुत छोटा है… कोई हम दोनों को एकसाथ देख लेगा तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी,’’ पूर्णिमा ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘यहां नहीं तो कहीं और चलो, मगर मिलना जरूर पुन्नू. तुम चाहो तो कुछ भी असंभव नहीं है… अगर तुम नहीं आओगी तो मैं दिनभर तुम्हारे कालेज के सामने खड़ा रहूंगा,’’ अजय अपनी जिद पर अड़ा रहा.

‘‘अजय 20 अप्रैल अभी दूर है… मैं पहले से कोई वादा नहीं कर सकती… अगर संभव हुआ तो सोचेंगे,’’ कह उसे टाल दिया.

मगर अजय आसानी से कहां टलने वाला था. वह हर तीसरे दिन कभी फोन तो कभी मैसेज के जरीए पूर्णिमा पर 20 तारीख को मिलने के लिए मानसिक दबाव बनाता रहा.

15 अप्रैल को अचानक पूर्णिमा को कालेज प्रशासन की तरफ से सूचना मिली कि उसे कालेज के एनसीसी कैडेट्स को ले कर ट्रेनिंग कैंप में जाना है. 19 से 25 अप्रैल तक दिल्ली में होने वाले इस कैंप में उसे कालेज की लड़कियों को ले कर 18 अप्रैल को दिल्ली के लिए रवाना होना था. पूर्णिमा ने मन ही मन अजय से मिलने की अनचाही मुसीबत से छुटकारा दिलाने के लिए कुदरत को धन्यवाद दिया और फिर गुनगुनाती हुई दिल्ली जाने की तैयारी करने लगी.

‘‘तो हम मिल रहे हैं न 20 को?’’ अजय ने 17 तारीख को उसे व्हाट्सऐप पर मैसेज किया.

‘‘मैं 20 को शहर से बाहर रहूंगी,’’ पूर्णिमा ने पहली बार अजय के मैसेज का जवाब दिया.

‘‘प्लीज, मेरे साथ इतनी कठोर मत बनो… किसी भी तरह अपना जाना कैंसिल कर दो… सिर्फ एक आखिरी बार मेरी बात मान लो… फिर कभी जिद नहीं करूंगा,’’ अजय ने रोने वाली इमोजी के साथ टैक्स्ट किया.

पूर्णिमा ने इस बार कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘कहां जा रही हो इतना तो बता ही सकती हो?’’ अजय ने आगे लिखा.

‘‘दिल्ली.’’

‘‘मैं भी आ जाऊं?’’ अजय ने फिर लिखा.

‘‘तुम्हारी मरजी… इस देश का कोई भी नागरिक कहीं भी आनेजाने के लिए आजाद है,’’ टैक्स्ट के साथ 2 स्माइली जोड़ते हुए पूर्णिमा ने मैसेज किया. अब वह मजाक के मूड में आ गई थी, क्योंकि 20 अप्रैल को अजय से सामना नहीं होने की बात सोच कर वह अपनेआप को काफी हलका महसूस कर रही थी.

‘‘तो फिर 20 को मैं भी दिल्ली आ रहा हूं,’’ अजय ने लिखा.

पूर्णिमा ने मन ही मन सोचा कि अलबत्ता यह दिल्ली आएगा नहीं और अगर आ भी गया तो अच्छा ही होगा… शायद वहां एकांत में मैं इसे सच का आईना दिखा कर वर्तमान में ला सकूं… बावला. आज भी 10 साल पीछे ही अटका हुआ है.

पूर्णिमा अपने गु्रप के साथ 19 को सुबह दिल्ली पहुंच गई. कैंप में लड़कियों के ठहरने की व्यवस्था सामूहिक रूप से और ग्रुप के साथ आने वाले लीडर्स की व्यवस्था अलग से की गई थी. चायनाश्ते और खाने के लिए एक ही डाइनिंग हौल था जहां तय टाइमटेबल के अनुसार सब को पहुंचना था.

नाश्ते के बाद लड़कियां कैंप में व्यस्त हो गईं तो पूर्णिमा अपने कमरे में आ कर लेट गई. आज एक लंबे समय के बाद उस ने अपनेआप को फुरसत में पाया था. उस की आंख लग गई. उठी तो शाम हो रही थी. वह चाय के लिए हौल की तरफ चल दी.

तभी उस का फोन बजा, ‘‘मैं यहां आ गया हूं… तुम कहां ठहरी हो दिल्ली में?’’

‘‘अजय, तुम्हारा यहां आना संभव नहीं… तुम बेकार परेशान हो रहे

हो,’’ पूर्णिमा ने एक बार फिर उसे टालने की कोशिश की.

‘‘मेरा तुम्हारे पास आना संभव न सही… तुम तो मेरे पास आ सकती हो न… मैं अपना पता भेज रहा हूं… कल तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ कह कर अजय ने फोन काट दिया और कुछ ही देर बाद पूर्णिमा के मोबाइल पर अजय के होटल का पता आ गया.

24 को सुबह जब लड़कियां कैंप ऐक्टिविटीज में व्यस्त हो गईं तो पूर्णिमा कैब कर अजय के बताए पते पर चल दी. होटल की रिसैप्शन पर उस ने अजय का रूम पता किया और उसे मैसेज भिजवाया. अजय ने उसे रूम में ही बुलवा लिया.

रूम का दरवाजा खुला ही था, मगर भीतर काफी अंधेरा सा था. जैसे ही पूर्णिमा ने अंदर कदम रखा, सारी लाइटें एकसाथ जल उठीं और अजय उस के सामने लाल गुलाबों का गुलदस्ता लिए खड़ा था.

‘‘हैपी ऐनिवर्सरी,’’ कहते हुए अजय ने उसे प्यार से गुलदस्ता भेंट किया.

पूर्णिमा तय नहीं कर पाई कि वह इसे स्वीकारे या नहीं. फिर भी सामान्य शिष्टाचार के नाते उस ने उसे हाथ में ले कर वहां रखी टेबल पर रख दिया और सोफे पर बैठ गई. कुछ देर कमरे में सन्नाटा सा रहा.

‘‘कहते हैं कि किसी को शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात आप को उस से मिलाने की कोशिशों में जुट जाती हैं,’’ हिंदी फिल्म का डायलौग दोहराते हुए अजय ने सन्नाटा भंग किया.

‘‘अजय, क्या चाहते हो तुम? क्यों ठहरे पानी में कंकड़ मारने की कोशिश कर रहे हो? अगर तूफान उठा तो बहुत कुछ बरबाद हो जाएगा,’’ पूर्णिमा ने फिर उसे समझाना चाहा.

‘‘प्लीज, आज कोई उपदेश नहीं… न जाने कितनी तपस्या के बाद तुम्हें इतने पास से देखनेमहसूस करने का मौका मिला है… मुझे इसे सैलिब्रेट करने दो,’’ अजय उस के बेहद पास खिसक आया था.

उस की बेताब सांसें पूर्णिमा अपने गालों पर महसूस कर रही थी.  वह थोड़ा और सिमट कर कोने में खिसक गई.

प्यार पर पूर्णविराम- भाग 1: जब लौटा पूर्णिमा का अतीत

‘‘कैसीहो पुन्नू?’’ मोबाइल पर आए एसएमएस को पढ़ कर पूर्णिमा के माथे पर सोच की लकीरें खिंच गईं.

‘मुझे इस नाम से संबोधित करने वाला यह कौन हो सकता है? कहीं अजय तो नहीं? मगर उस के पास मेरा यह नंबर कैसे हो सकता है और फिर यों 10 साल के लंबे अंतराल के बाद उसे अचानक क्या जरूरत पड़ गई मुझे याद करने की? हमारे बीच तो सबकुछ खत्म हो चुका है,’ मन में उठती आशंकाओं को नकारती पूर्णिमा ने वह अनजान नंबर ट्रू कौलर पर सर्च किया तो उस का शक यकीन में बदल गया. यह अजय ही था. पूर्णिमा ने एसएमएस का कोई जवाब नहीं दिया और डिलीट कर दिया.

अजय उस का अतीत था… कालेज के दिनों उन का प्यार पूरे परवान पर था. दोनों शादी करने के लिए प्रतिबद्ध थे. अजय उसे बहुत प्यार करता था, मगर उस के प्यार में एकाधिकार की भावना हद से ज्यादा थी. अजय के प्यार को देख कर शुरूशुरू में पूर्णिमा को अपनेआप पर बहुत नाज होता था. इतना प्यार करने वाला प्रेमी पा कर उस के पांव जमीन पर नहीं टिकते थे. मगर धीरेधीरे अजय के प्यार का यह बंधन बेडि़यों में तबदील होने लगा. अजय के प्रेमपाश में जकड़ी पूर्णिमा का दम घुटने लगा.

दरअसल, अजय किसी अन्य व्यक्ति को पूर्णिमा के पास खड़ा हुआ भी नहीं देख सकता  था. किसी के भी साथ पूर्णिमा का हंसनाबोलना या उठनाबैठना अजय की बरदाश्त से बाहर होता था और फिर शुरू होता था रूठनेमनाने का लंबा सिलसिला. कईकई दिनों तक अजय का मुंह फूला रहता.

पूर्णिमा उस के आगेपीछे घूमती. मनुहार करती… अपनी वफाओं की दुहाई देती… बिना अपनी गलती के माफी मांगती. तब कहीं जा कर अजय नौर्मल हो पाता था और पूर्णिमा राहत की सांस लेती थी. मगर कुछ ही दिनों में फिर वही ढाक के तीन पात.

कालेज में इतने सारे दोस्त होते थे, साथ ही कई तरह की ऐक्टिविटीज भी. ऐसे में एकदूसरे से बोलनाबतियाना लाजिम होता था. बस वह यह देख पूर्णिमा से बात करना बंद कर देता था. पूर्णिमा एक बार फिर अपनी सारी ऊर्जा इकट्ठा कर उसे मनाने में जुट जाती थी.

धीरेधीरे पूर्णिमा के मन में अजय को ले कर डर घर करने लगा. अब वह किसी से बात करते समय नौर्मल नहीं रह पाती थी. उस का सारा ध्यान यही सोचने में लगा रहता कि कहीं अजय देख तो नहीं रहा… अगर अजय ने देख लिया तो मैं क्या जवाब दूंगी… कैसे उसे मनाऊंगी… उसे कुछ भी कह दूं वह संतुष्ट तो होगा नहीं… क्या सुबूत दूंगी उसे अपने पाकसाफ होने का आदिआदि.

कालेज खत्म होतेहोते आखिर पूर्णिमा ने अजय से ब्रेकअप करने का निश्चय कर ही लिया. वह भलीभांति जानती थी कि उस का यह फैसला अजय को तोड़ देगा, मगर यह भी तय था कि अगर आज वह भावनाओं में बह गई तो फिर हमेशा के लिए उस की जिंदगी की नाव अजय के शंकालु प्रेम के भंवर में फंस कर डूब जाएगी और यह स्थिति किसी के लिए भी सुखद नहीं होगी. न अजय के लिए और न ही खुद पूर्णिमा के लिए.

पूर्णिमा ने दिल पर पत्थर रख कर अपने पापा की पसंद के लड़के रवि से शादी कर ली. पुराने शहर से उस का नाता अब छुट्टियों में पीहर आने तक ही रह गया. अपने पुराने दोस्तों से ही उसे पता चला था कि अजय भी अपनी नौकरी के सिलसिले में यह शहर छोड़ कर चला गया.

इन बीते 10 सालों में जिंदगी ने एक भरपूर करवट ली थी. पूर्णिमा 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. अब प्राइवेट कालेज में पढ़ाने लगी है. रवि, घरपरिवार और बच्चों में उलझी पूर्णिमा को पता ही नहीं चला कि कब समय पंख लगा कर उड़ गया. मगर आज अचानक अजय के इस एसएमएस ने पूर्णिमा को चौंका दिया. उसे महसूस हो रहा था कि वक्त की जिस राख को वह ठंडा हुआ समझ रही थी उस में अभी भी कोई चिनगारी सुलग रही है. उस की जरा सी लापरवाही उस चिनगारी को शोलों में बदल सकती है और इन शोलों की चपेट में आ कर न जाने किसकिस के अरमान स्वाहा होंगे.

अगले 3-4 दिन तक अजय की तरफ से कोई रिस्पौंस नहीं आया, मगर

पूर्णिमा इस बात को आईगई नहीं समझ सकती थी. वह अजय के सनकी स्वभाव को अच्छी तरह जानती थी कि जरूर उस के दिमाग में कोई खिचड़ी पक रही है. अजय यों शांत बैठने वालों में बिलकुल नहीं है.

और आज वही हुआ, जिस का पूर्णिमा को डर था. वह अपना लैक्चर खत्म कर के कौमनरूम में बैठी थी तभी उस का मोबाइल बज उठा. फोन अजय का था. उस ने धड़कते दिल से कौल रिसीव की.

‘‘कैसी हो पुन्नू?’’ अजय का स्वर कांप

रहा था.

‘‘माफ कीजिए, मैं ने आप को पहचाना नहीं,’’ पूर्णिमा ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘मैं तो तुम्हें एक पल को भी नहीं भूला… तुम मुझे कैसे भूल सकती हो पुन्नू?’’ अजय ने  भावुकता से कहा.

पूर्णिमा मौन रही.

‘‘मैं अजय बोल रहा हूं… 10 साल बीत गए… कोई ऐसा दिन नहीं गुजरा जब तुम याद न आई हो… और तुम मुझे भूल गईं? मगर हां एक बात तो है… तुम आज भी वैसी की वैसी ही लगती हो… बिलकुल कालेज गर्ल… क्या करूं फेसबुक पर तुम्हें देखदेख कर अपने दिल को तसल्ली देता हूं…’’

अजय अपनी रौ में कहता जा रहा था पर पूर्णिमा की तो जैसे सोचनेसमझने की शक्ति ही समाप्त हो गई थी. उसे अपने खुशहाल भविष्य पर खतरे के काले बादल मंडराते साफ नजर आ रहे थे.

‘‘अभी फोन रखती हूं… मेरी क्लास का टाइम हो रहा है,’’ कहते हुए पूर्णिमा ने फोन काट दिया और सिर पकड़ कर बैठ गई. चपरासी से

1 कप कौफी लाने को कह कर वह इस अनचाही मुसीबत से निबटने का उपाय सोचने लगी. मगर यह आसान न था.

अजय की फोन कौल्स और एसएमएस की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. कभीकभार व्हाट्सऐप पर भी मैसेज आने लगे थे. पूर्णिमा चाहती तो उसे ब्लौक कर सकती थी, मगर वह जानती थी कि टूटा हुआ आशिक चोट खाए सांप जैसा होता है… अगर वह सख्ती से पेश आई तो गुस्साया अजय न जाने कौन सा ऐसा कदम उठा ले जो उस के लिए घातक हो. हां, वह उस के किसी भी मैसेज का कोई जवाब नहीं देती थी. खुद उसे कभी फोन भी नहीं करती थी. मगर अजय के फोन वह रिसीव अवश्य करती थी ताकि उस का मेल ईगो संतुष्ट रहे.

अछूत- भाग 3: जब एक फैसला बना बेटे के लिए मुसीबत

यानी यह डर कि जाति के आधार पर भेदभाव किया तो आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है. पर विवाह संस्था आपराधिक मुकदमों के दायरे से बाहर रही. इसलिए अगर कुछ नहीं बदला तो वह है अंतर्जातीय विवाह पर सामाजिक प्रतिबंध. एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि तमाम सर्वेक्षणों में जिन लोगों ने अंतर्जातीय विवाह के संबंध में सकारात्मक उत्तर दिए हैं, वे भी समय आने पर अपने जीवन में जातिगत विवाह को ही प्राथमिकता देते हैं. यहां तक कि अमेरिका में लंबे समय से बसे भारतीय भी विवाह अपनी जाति में ही करना पसंद करते हैं.”

“पापा, बहुसंख्यक वर्ग का कहा सत्य नहीं हो जाता. जाति और विवाह के नियम समाज द्वारा बनाए गए हैं. समाज जिसे बना सकता है, उसे मिटा भी सकता है. पर क्या ऐसा होगा? निकट भविष्य में यह संभव होता नहीं दिखाई देता क्योंकि वर्चस्व की लालसा कोई भी समाज त्यागने को आसानी से तैयार नहीं होता. ऐसे में कथित ऊंची जातियां अपना यह मोह भला क्यों त्यागना चाहेंगी? लेकिन, मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि जातिगत भेदभाव को मिटाने का अचूक उपाय एक ही है और वह है अंतर्जातीय विवाह. मेरे जैसे युवा यह परिवर्तन लाएंगे.”

“तो तुम समाज परिवर्तन करने निकले हो?”

“पापा, मैं कोई विद्यासागर तो हूं नहीं. लेकिन, इतना जरूर कह सकता हूं कि यदि हर व्यक्ति स्वयं को सुधार ले, तो समाज स्वयं ही सुधर जाएगा!”

“शिशिर, मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं, लेकिन यह सुधार का काम तुम मेरे घर से बाहर निकल कर करो. इस शादी के बाद मेरा तुम से कोई संबंध नहीं रहेगा.”

“पापा.”

“सोच लो. अभी समय है तुम्हारे पास. लौकडाउन समाप्त होने तक तो भोपाल नहीं लौट पाओगे.”

समय न तो रुकता है और न किसी के कहे अनुसार चलता है. संसार का यह चक्र कितना नियमित है, कितना समय का पाबंद है. कौन सा पल हमारे लिए क्या ले कर आने वाला है, मनुष्य कहां जानता है? फिर भी झूठे दंभ और स्वार्थ और में लगा रहता है.

उस शाम बलराज क्रोध में घर से निकल आया था. कालिंदी ने समझाया भी था कि शिशिर दवा औनलाइन मंगा देगा. लेकिन क्रोध और अहंकार मनुष्य का विवेक खत्म कर देता है. घर के दरवाजे पर वह उस का अंतिम स्पर्श था. वह घर से निकला तो था अपनी ब्लड प्रैशर की दवा खरीदने, लेकिन साथ ले आया था महामारी.

दवा की दुकान पर उसे पिछली गली में रहने वाले एक जानकार मिल गए थे. उन का बेटा कुछ दिन पहले ही कनाडा से लौटा था. उसके लिए ही सर्दीजुकाम की दवाई खरीदने आए थे. अभी वे बात कर ही रहे थे कि उन के सामने से पुलिस की 3 गाड़ियों के साथ एक ऐंबुलैंस भी गुजरी.

वह उन से कुछ पूछता, उस से पहले ही एक पुलिसकर्मी सामने आ कर बोला,”मनोहर शर्मा आप ही हैं ना?”

घबराहट के मारे परिचित के हाथ से दवा वाला थैला गिर गया था. बलराज को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था.

उस ने पूछा था,”क्या बात है?”

उस के प्रश्न का उत्तर परिचित के स्थान पर पुलिसकर्मी ने दिया,”आप के मोहल्ले में कोरोना वायरस विस्फोट हो सकता है, क्योंकि आप के पड़ोस में एक पढ़ालिखा गैरजिम्मेदार मूर्ख परिवार है.”

उस ने आगे कहा,”इन के बेटे को एअरपोर्ट पर समझाया गया था. लेकिन न तो उस ने सैल्फ आइसोलेशन किया और न ही उस का परिवार घर के अंदर रहा. इन पर कोरोनोवायरस की सलाह की उपेक्षा करने, सुरक्षा जांच से भागने और बहुत कुछ करने के लिए कई आरोप लगाए गए हैं. हम लोग कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए दिनरात एक कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग हैं जो नियमों का पालन नहीं कर रहे और सभी के जीवन को खतरे में डाल रहे हैं. अब देखिए इन के कारण पूरा मोहल्ला परेशान होगा और आप भी.”

बलराज चौंक पड़ा,”मैं…मैं क्यों?”

उस ने सहानुभूति से उस के कंधे पर हाथ रखा और बोला,”भाई साहब, आप तो डाइरैक्ट कौंटैक्ट में आ गए ना इन के…”

उस के बाद घटनाक्रम तेजी जे बदलता चला गया. वह घर जा नहीं सकते थे, शिशिर और कालिंदी को संक्रमण का खतरा था. शिशिर ही बैग लेकर होस्पिटल आया था. अगले 20 दिन उस ने मृत्यु के पहले मृत्यु को देखा.

लैटिन भाषा में कोरोना का अर्थ ‘मुकुट’ होता है और इस वायरस के कणों के इर्दगिर्द उभरे हुए कांटे जैसे ढांचों से माइक्रोस्कोप में मुकुट जैसा आकार दिखता है, जिस पर इस का नाम रखा गया. बलराज तो सदा से स्वयं को राजा माना करता था, तो यह मुकुट तो उस के सिर पर सजना ही था.

उस दौरान बलराज ने जाना कि मृत्यु से अधिक डर मृत्यु के इंतजार में होता है. ब्लड प्रैशर के मरीज के लिए यह बीमारी घातक थी. यह मुकुट वे अपने सिर से कभी उतार ही नहीं पाए और इसे सिर पर धारण किए हुए ही इस संसार को विदा कह दिया. देह भी घर नहीं लौट पाई थी.

ऐंबुलैंस में बलराज की मृत शरीर को को डालषकर शिशिर उसे होस्पिटल से यहां इलैक्ट्रिक क्रिमेटोरियम में ले आया था. नियमों के अनुसार कोरोना पौजिटिव मरीज के शव का संस्कार मुखाग्नि से नहीं किया जा सकता था.

महामारी ने उस की शरीर को अछूत बना दिया था. कोई भी उस के मृत शरीर के अंतिम संस्कार में आने को तैयार नहीं था. यहां तक कि श्मशान के स्टाफ ने भी शव का अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया था. पिछले 1 घंटे से शिशिर फोन पर लोगों को समझाने में ही व्यस्त था.

श्मशान वह स्थान है जहा पर मुरदे जलाए जाते हैं, लेकिन श्मशान तो किसी मंदिर अथवा मसजिद से भी अधिक पवित्र स्थान है. यहां मनुष्य को अपनी वास्तविक हैसियत का पता चलता है. देखा जाए तो केवल जन्म के पलों में और मौत के पलों में ही कुछ सार्थक घटित होता है. प्रसूतिगृह और श्मशान घाट ये 2 ही समझदारी भरी जगहें हैं. इन दोनों स्थान पर मनुष्य वास्तविक जीवन को समझता है.

अभीअभी नगर निगम की टीम पहुंच गई. उन के कहने पर सिक्योर बौडी बैग में पैक बलराज के शरीर को बाहर निकाला गया. उस के बेटे को मेरे शव को छूने की भी अनुमति नहीं थी. मोर्चरी स्टाफ ने भी उस के शरीर को छूने से पूर्व पर्सनल प्रोटैक्टिव इक्विपमैंट ले लिया था. उस की अंतिम यात्रा को उस पीपीई स्टाफ ने पूरा कराया, जिस की जाति अज्ञात थी.

उस के शरीर को अंदर डाल कर स्विच औन कर दिया गया. अब उस का शरीर जल कर मिनटों में राख हो जाएगा.

अछूत- भाग 2: जब एक फैसला बना बेटे के लिए मुसीबत

बलराज शिशिर के मन में भी कटुता के बीज को रोपना चाहता था. लेकिन उस की हर बात का एक मौन के साथ  समर्थन करने वाली उस की पत्नी कालिंदी ने यहां उस की नहीं सुनी. उस ने अपने बेटे के मस्तिष्क की कोमल धरती पर प्रश्न का बीज अंकुरित कर दिया. शिशिर ने प्रश्न करना आरंभ कर दिया और जहां प्रश्न अंकुरित होने लगते हैं, वह धरती बंजर अथवा विषैली नहीं रह जाती.

शिशिर अलग था. जो विशेषाधिकार बलराज को प्रफुल्लित किया करते थे, उन से उस का दम घुटता था.

वह कहता,”यह ब्राह्मणवादी विशेषाधिकार, मेरे उन विशेषाधिकारों का हनन करती है, जो एक मनुष्य होने के नाते मुझे मिलने चाहिए. जैसे, खुल कर जीने की इच्छा, अपनी उन आदिम व सभी भावनाओं को प्रगट करने की इच्छा, जो मनुष्य होने का प्रमाण है. मगर समाज को इस सब की फिक्र कहां, उसे तो अपनी उस सड़ीगली, बदबूदार व्यवस्था को बचाए रखने की चिंता है, जो सारे सांस्कृतिक विकास पर एक बदनुमा दाग है. आज न तो देश, न सरकार और न ही युवा, ऐसी सड़ीगली व्यवस्था को मानते हैं.”

जब इंजीनियरिंग कालेज में उस ने एक दलित मित्र को अपना रूमपार्टनर बनाया, तब बलराज ने उसे खूब कोसा, फब्तियां कसी, चुटकियां ली, पर वह डटा रहा.

बलराज कुढ़ता रहता, लेकिन शिशिर मुसकराता और कहता,”अस्वीकार्य को अधिक दिनों तक लादा नहीं जा सकता. जाति का जहर मेरे शरीर में हमेशा चुभता रहा है.”

बलराज कहता,”तुम्हारा भाग्य है कि तुम्हें इतने महान कुल में जन्म प्राप्त हुआ है. तनिक सोचो, क्या होता यदि तुम्हारा जन्म एक निम्न जाति में हुआ होता? मनुष्य को जो आसानी से मिल जाता है, वह उस का मूल्य ही नहीं जान पाता.”

“पापा, मैं भी तो यही कह रहा हूं. उस जाति अथवा समाज पर क्या अभिमान करना जिस का प्राप्त होना, महज हेड ऐंड टैल का खेलमात्र हो. ब्राह्मण बन कर जन्म लेने में मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि क्या है? अभिमान के स्थान पर मुझे तो शर्म आती है, जब मात्र मेरी जाति के कारण मुझे सम्मान दिया जाता है. मुझे मेरे व्यक्तित्व के लिए सम्मान चाहिए, न कि किसी विशेष सरनेम के कारण. जन्म के लिए जिस कुल को चुनने पर आप का कोई अधिकार ही नहीं, उस कारण जब आप का अपमान किया जाता है, तो जरा सोचिए कि कितनी पीड़ा होती होगी?”

बलराज अहंकार के साथ कहता,”तो आरक्षण तो मिल गया ना उन्हें. यह उचित है क्या?”

“बिलकुल. वैसे आरक्षण कोई एहसान नहीं, उन का अधिकार है. एक समय था जब उच्च पदों पर तथाकथित उच्च जातियों का आधिपत्य था. आज वहां उन की मोनोपोली कम हो रही है. यह बात दूसरी है कि वर्तमान समय में आरक्षण राजनीतिक पार्टियों का एक हथियार भी बन गई है.”

बलराज कहता,”अरे सभी को अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व होता है! सभी स्वयं को अन्य से बेहतर साबित करते हैं. तुम मात्र ब्राह्मणों को दोष नहीं दे सकते.”

शिशिर कहता,”मुझे ब्राह्मणों से नहीं, उस सोच से दिक्कत है, जो स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ आँकती है. ऐसी सोच रखने वाला जिस धर्म, जाति, देश अथवा क्षेत्र से संबंध रखता हो, वह गलत ही है.”

थोड़ी देर विराम ले कर वह फिर कहता,”आप को पता है पापा, मेरी प्रगतिशील दलित मित्रों की मंडली भी ‘ब्राह्मण’ कह कर मेरा उपहास करती है, मानो मैं ब्राह्मणशाही का प्रतिनिधि करता हूं और ब्राह्मण परिवार में पैदा हो जाने के कारण ब्राह्मणशाही का सारा गुनाह मेरे सिर पर है. मैं जानता हूं कि वे मेरे मित्र हैं, और यह उन का मजाक है, मगर यह भी सच है कि आज घृणा और क्रोध दोनों तरफ है. लेकिन हमें इस घृणा का अंत करना है, उसे बढ़ाने का कारण नहीं बनना.”

धीरेधीरे उन के बीच बातचीत कम होती चली गई. शिशिर मेधावी था, अतः जीवन के सोपान पर आगे बढ़ने में उसे अधिक कठिनाई नहीं हुई. मध्य प्रदेश सरकार के बिजली विभाग में अभियंता के पद पर चयनित हो कर शिशिर भोपाल चला गया और दोनों पतिपत्नी इंदौर में अकेले रह गए. मांऔर बेटे की बातचीत लगभग प्रतिदिन हो जाया करती पर बलराज और शिशिर के बीच अबोला बढ़ता ही चला गया.

बलराज यह सोच कर संतोष कर लेता कि समय के साथ उस की सोच बदल जाएगी. वैसे भी वह अपने आसपास यह सब होता हुआ देख रहा था. आजकल की पीढ़ी दोहरी मानसिकता के साथ जी रही थी. सोशल नेटवर्किंग साइट पर जिस प्रथा और मान्यता का विरोध करते, लंबेलंबे आलेख शेयर किया करते, उसी प्रथा का अपने जीवन में निस्संकोच पालन किया करते थे.

इस समाज को अधिक खतरा उन से नहीं है जो गलत सोच रखते हैं, बल्कि उन से हैं जो अच्छी सोच होने का ढोंग करते हैं.

वैसे संख्या में कम, लेकिन सोच में अधिक एक वर्ग ऐसा भी है, जिस की कथनी और करनी अलग नहीं है. उस का बेटा शिशिर भी ऐसा ही था. अपने जीवनकाल में वह यह जान तो पाया, लेकिन समझ नहीं पाया.

शिशिर अपनी एक सहकर्मी के साथ विवाह करने का प्रस्ताव लेषकर उन के पास आया था. बलराज का संस्कारी मन इस प्रेम विवाह को समय की मांग सोच कर मान भी लेता यदि लड़की किसी उच्च जाति की होती. लेकिन साक्षी एक दलित परिवार की लड़की थी और एक दलित परिवार की लड़की को पुत्रवधू बना कर लाना उसे स्वीकार्य नहीं था. उस दिन वर्षों बाद पितापुत्र के बीच बात हुई थी.

बलराज ने ही बात को शुरू किया,”दलित और मुसलमान छोड़ कर तुम अपनी मरजी से किसी भी जाति में शादी कर सकते हो.”

एक मुसकान के साथ शिशिर बोला,”हम दोनों ने ही कभी यह नहीं सोचा कि हमारी जाति क्या है? हम उस विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं, जहां इंसान जाति और धर्म की पहचान से बहुत ऊपर उठ जाता है. यह भी सच है कि प्रेम इंटरव्यू ले कर नहीं होते.”

उस दिन कालिंदी ने भी शिशिर को समझाया,”बेटा, पापा को भी तो समझो, हम जिस समाज में रहते हैं, वहां एक दलित से विवाह सही नहीं है.”

शिशिर चौंक गया था,”मां, जब दलित से मित्रता सही है, फिर विवाह गलत कैसे हो गया? वैसे भी समाज बदल गया है.”

इस बार बलराज मुसकराया था,”बेटा, सच यही है कि जाति एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में भारत में सिर्फ अपना रूप बदल रही है. जाति की शुद्धता बनाए रखने के लिए समाज में उस की खास जगह, खानपान और सामाजिक व्यवहार पर प्रतिबंध, व्यवसाय के स्वतंत्र चुनाव का अभाव और अंतर्जातीय विवाह पर रोक जरूरी माने गए हैं. आज इन लक्षणों में परिवर्तन आया है, जिस का सब से बड़ा कारण कानूनी बाध्यता है.

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