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टेलीफोन- भाग 2: कृष्णा के साथ गेस्ट हाउस में क्या हुआ

यह कहते हुए कृष्णा ने ताला खोला और अंदर चली गई. फिर वाशरूम से आ खिड़की बंद करती है और एक बार आईने में खुद को देख हाथों से अपना बाल ठीक कर सूटकेश उठा बाहर निकल आती है. बाहर आ कर आश्चर्य में पड़ जाती है. यह देख कि गुप्ता मैडम का पति उस से फिर कहता है, ‘‘मैडम आप बात कर लीजिए न आप कल कह रही थीं कि बहुत जरूरी है बात करना.’’

‘‘नहीं इतना जरूरी नहीं है,’’ कहते हुए कृष्णा ताला लगाती है, अब उसे थोड़ा गुस्सा भी आने लगा था. सोचती है यह आदमी तो पीछे ही पड़ गया, कैसे इस से पीछा छुड़ाऊं? ताला लगा कर जब वह पीछे मुड़ी तो उस आदमी को अजीब स्थिति में पाती है जैसे आंखें चढ़ी हों और सांसें बेतरतीब चल रही हो, कृष्णा को अब थोड़ा डर लगा और वह सूटकेश ले कर से तेजी से निकल पड़ती है. गुप्ता का पति अभी भी पीछे से पुकार रहा है.

‘‘मैडम फोन कर लीजिए.’’

कृष्णा ‘नो थैंक्स’ ‘नो थैक्स’ कहते लगभग भागते हुए सड़क तक पहुंची.

रास्ते भर कृष्णा सोच में डूबी रही कि अजीब आदमी है. कल जब फोन करनी थी तो इस ने एक बार भी फोन करने को नहीं कहा और आज पीछे पड़ गया- फोन कर लीजिए, बिलकुल सिरफिरा लगता है. थोड़ी देर में वह औफिस पहुंच गई. जैसे ही वह औफिस पहुंची गुप्ता मैडम से उस का सामना हुआ और वह उस के सूटकेश को देख अजीब नजरों से उसे ताकने लगी फिर पूछा, ‘‘क्या तुम गेस्ट हाउस गई थी’’ और उसे से पीछा छुड़ा यह सोचते हुए कि दोनों ही पतिपत्नी बड़े अजीब हैं, नर्गिस के पास पहुंची.

नर्गिस लंच ले चुकी थी. कृष्णा का बड़बड़ाते देख पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ?’’

कृष्णा ने बताया, ‘‘अरे ये गुप्ता मैडम और उस के पति दोनों बड़े अजीब लोग हैं. अभी मैं सूटकेश लेने गई थी गेस्ट हाउस में तो उस का पति कह रहा था कि मेरे लैंडलाइन से घर पर फोन कर लीजिए. अब मुझे फोन नहीं करना तो नहीं करना उसे क्या पड़ी है,’’ इस पर नर्गिस ने बताया, ‘‘मैं तुम्हें बताना भूल गई कि उस के बारे में बड़े अजीबअजीब से किस्से प्रचलित हैं, जरा बच के रहना उस से.’’ जब कृष्णा ने कोंचा तो उस ने बताया, ‘‘अस्पताल में एक बार इस आदमी ने एक नर्स को छेड़ा था. नर्स ने जब हल्ला किया तो लोग जमा हो गए. कहा जाता है ऐसे ही किसी मामले में एक बार वह सस्पेंड भी हो चुका है. अफवाह तो ऐसी ही थी पता नहीं सच क्या है और झूठ क्या? लेकिन इतना तो तय है कि इस की रैप्यूटेशन अच्छी नहीं है. तरहतरह की अफवाहें उड़ती रही हैं उस के बारे में.’’

‘‘मुझे तुम्हें पहले बताना चाहिए था,’’ कहते हुए कृष्णा के शरीर में एक झुरझुरी सी उठी लेकिन जाने की हड़बड़ी में सब भूल कर जल्दजल्दी काम निबटाने में लग गई. समय से पहले सब काम निबटा बास से छुट्टी ले वह स्टेशन के लिए रवाना हो गई.

स्टेशन पहुंची तो ट्रेन लगी हुई थी, अब फोन करने का समय नहीं था. वह जल्दी में ट्रेन में चढ़ गई. थोड़ी देर में ट्रेन खुल भी गई. खिड़की के बाहर हर पल दृश्य बदल रहा था. सांझ हो आई थी, खेतों के बीच से पशुपखेरू, लोगबाग अपनेअपने घरों को लौट रहे थे. कृष्णा को खयाल आया कि कल इस समय मैं भी अपने परिवार के साथ अपने घर में रहूंगी.

धीरेधीरे रात उतर आई और बाहर कुछ बत्तियों के सिवाय अब कुछ भी दिखाई पड़ना बंद हो गया. कृष्णा खाना खा कर कल के सपने देखती हुई सो गई. सुबहसुबह उस की नींद खुली तो उस का स्टेशन आने वाला था. जल्दीजल्दी उस ने अपना सामान समेटा. सोच रही थी पता नहीं जय स्टेशन आएगा या नहीं. वैसे जय को मालूम तो था कि वह आने वाली है पर 2 दिन से बात नहीं होने के कारण ठीक से प्रोग्राम नहीं बता पाई थी. पर उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उस ने जय को हाथों में फूलों का बुके लिए खड़े देखा. शादी के बाद शायद यह उन की सब से लंबी जुदाई का वक्त रहा था. अत: दोनों मिलने को बेकरार थे. घर आ कर वह घर की सफाई और बच्चों के साथ मिल कर दीवाली की तैयारी में जुट गई. खुशी के 2-3 दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.

अपने परिवार के साथ मस्ती भरी दीवाली बीत गई. अब उसे कावेरी से मिलना

था. जैसा कि पहले से तय था दोनों कौफी हाउस में मिले और कौफी की चुस्कियों के साथ बातों का सिलसिला चल निकला. दोनों एकदूसरे को अपनी नई पोस्टिंग और नए जगह के बारे में बताने लगे. दोनों पहली बार अपने घरपरिवार से दूर अलग रहने के अनुभव को शेयर करने लगीं. कृष्णा ने बातों ही बातों में यात्रा से तुरंत पहले की वह टेलीफोन वाली बात कावेरी को बताया. कावेरी ने जोर का ठहाका लगाया और अपने बिंदास अंदाज में उस से पूछने लगी, ‘‘तुझे क्या लगता है क्यों वह तुझे फोन करवाने को इतना आतुर था और तुझ पर इतनी मेहरबानी कर रहा था?’’

कृष्णा ने कहा, ‘‘मुझे तो वह कुछ सिरफिरा लगा, हो सकता है रिटायरमैंट के बाद सठिया गया हो.’’

कावेरी ने उसी बिंदास अंदाज में एक और ठहाका लगाया और कहा, ‘‘अरे बुद्धू तू बालबाल बच गई इंनकार कर के वरना वह तुझे लपेटने वाला था. अगर तू उस के रूम में चली जाती तो वह पीछे से दरवाजा बंद करता और तुझ पर टूट पड़ता. तू खुद कह रही है न कि औफिस का समय था और उस समय कौरिडोर में कोई नहीं था और उस की आवाज भी उखड़ीउखड़ी सी थी.’’

‘‘अरे नहीं, क्या बात करती हो तुम, मैं एक अधेड़ उम्र की महिला वह मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकता था.’’

‘‘तेरे गोरे रंग पर मर मिटा होगा ये बता तुझ से तो बड़ा था न? तू कह रही है रिटायर्ड था तो कम से कम 15 साल तो बड़ा होगा ही तुझ से.’’

‘‘ये तू क्या कह रही है कावेरी मैं ने इस ऐंगल से तो सोचा ही नहीं.’’

‘‘तो सोच, अगर वह सिर्फ तुझ पर मेहरबानी कर रहा था तो शाम में जब तुम सब साथ चाय पी रहे थे और उस की पत्नी साथ थी उस ने तुझे फोन करने को क्यों नहीं कहा?’’

‘‘हां, तेरी यह बात भी सही है.’’

‘‘जी हां, मैं हमेशा सही ही कहती हूं. दिन में जब गेस्ट हाउस में निश्चय ही सारे

लोग औफिस जा चुके थे और कारिडोर

बिलकुल सूना पड़ा था तभी वह दरियादिल क्यों बन गया था और तभी उस ने तुझ से फोन करने को क्यों कहा? इस के पीछे कुछ तो वजह रही होगी.’’

‘‘हां, यह बात भी सही है कि उस समय पूरे कौरिडोर में कोई नहीं था.’’

‘‘यस और नर्गिस ने तुझे बताया भी कि उस का रिकौर्ड ठीक नहीं.’’

‘‘हां, पर उस ने पहले नहीं बताया न.’’

‘‘अगर नर्गिस ने पहले बताया होता तो तुम्हें उसी समय माजरा समझ में आ गया होता.’’

‘‘अच्छा ये बता उस की पत्नी ने औफिस में मुझ से क्यों पूछा कि तुम गेस्ट हाउस गई थी क्या?’’

‘‘वह इसलिए कि इसे अपने पति का चालचलन मालूम था और उसे हमेशा अपने पति पर संदेह रहता होगा कि वह फिर से कोई करामात कर सकता है.’’

शायद बर्फ पिघल जाए- भाग 3

विजय के हाथ से मैँ ने मिठाई का डब्बा और कार्ड ले लिया. पल्लवी को पुकारा. वह भी भागी चली आई और दोनों को प्रणाम किया.

‘‘जीती रहो, बेटी,’’ निशा ने पल्लवी का माथा चूमा और अपने गले से माला उतार कर पल्लवी को पहना दी.

मीना ने मना किया तो निशा ने यह कहते हुए टोक दिया कि पहली बार देखा है इसे दीदी, क्या अपनी बहू को खाली हाथ देखूंगी.

मूक रह गई मीना. दीपक भी योजना के अनुसार कुछ फल और मिठाई ले कर घर चला आया, बहाना बना दिया कि किसी मित्र ने मंगाई है और वह उस के घर उत्सव पर जाने के लिए कपड़े बदलने आया है.

‘‘अब मित्र का उत्सव रहने दो बेटा,’’ विजय बोला, ‘‘चलो चाचा के घर और बहन की डोली सजाओ.’’

दीपक चाचा से लिपट फूटफूट कर रो पड़ा. एक बहन की कमी सदा खलती थी दीपक को. मुन्नी के प्रति सहज स्नेह बरसों से उस ने भी दबा रखा था. दीपक का माथा चूम लिया निशा ने.

क्याक्या दबा रखा था सब ने अपने अंदर. ढेर सारा स्नेह, ढेर सारा प्यार, मात्र मीना की जिद का फल था जिसे सब ने इतने साल भोगा था.

‘‘बहन की शादी के काम में हाथ बंटाएगा न दीपक?’’

निशा के प्रश्न पर फट पड़ी मीना, ‘‘आज जरूरत पड़ी तो मेरा बेटा और मेरा पति याद आ गए तुझे…कोई नहीं आएगा तेरे घर पर.’’

अवाक् रह गए सब. पल्लवी और दीपक आंखें फाड़फाड़ कर मेरा मुंह देखने लगे. विजय और निशा भी पत्थर से जड़ हो गए.

‘‘तुम्हारा पति और तुम्हारा बेटा क्या तुम्हारे ही सबकुछ हैं किसी और के कुछ नहीं लगते. और तुम क्या सोचती हो हम नहीं जाएंगे तो विजय का काम रुक जाएगा? भुलावे में मत रहो, मीना, जो हो गया उसे हम ने सह लिया. बस, हमारी सहनशीलता इतनी ही थी. मेरा भाई चल कर मेरे घर आया है इसलिए तुम्हें उस का सम्मान करना होगा. अगर नहीं तो अपने भाई के घर चली जाओ जिन की तुम धौंस सारी उम्र्र मुझ पर जमाती रही हो.’’

‘‘भैया, आप भाभी को ऐसा मत कहें.’’

विजय ने मुझे टोका तब न जाने कैसे मेरे भीतर का सारा लावा निकल पड़ा.

‘‘क्या मैं पेड़ पर उगा था और मीना ने मुझे तोड़ लिया था जो मेरामेरा करती रही सारी उम्र. कोई भी इनसान सिर्फ किसी एक का ही कैसे हो सकता है. क्या पल्लवी ने कभी कहा कि दीपक सिर्फ उस का है, तुम्हारा कुछ नहीं लगता? यह निशा कैसे विजय का हाथ पकड़ कर हमें बुलाने चली आई? क्या इस ने सोचा, विजय सिर्फ इस का पति है, मेरा भाई नहीं लगता.’’

मीना ने क्रोध में मुंह खोला मगर मैं ने टोक दिया, ‘‘बस, मीना, मेरे भाई और मेरी भाभी का अपमान मेरे घर पर मत करना, समझीं. मेरी भतीजी की शादी है और मेरा बेटा, मेरी बहू उस में अवश्य शामिल होंगे, सुना तुम ने. तुम राजीखुशी चलोगी तो हम सभी को खुशी होगी, अगर नहीं तो तुम्हारी इच्छा…तुम रहना अकेली, समझीं न.’’

चीखचीख कर रोने लगी मीना. सभी अवाक् थे. यह उस का सदा का नाटक था. मैं ने उसे सुनाने के लिए जोर से कहा, ‘‘विजय, तुम खुशीखुशी जाओ और शादी के काम करो. दीपक 3 दिन की छुट्टी ले लेगा. हम तुम्हारे साथ हैं. यहां की चिंता मत करना.’’

‘‘लेकिन भाभी?’’

‘‘भाभी नहीं होगी तो क्या हमें भी नहीं आने दोगे?’’

चुप था विजय. निशा के साथ चुपचाप लौट गया. शाम तक पल्लवी भी वहां चली गई. मैं भी 3-4 चक्कर लगा आया. शादी का दिन भी आ गया और दूल्हादुलहन आशीर्वाद पाने के लिए अपनीअपनी कुरसी पर भी सज गए.

मीना अपने कोपभवन से बाहर नहीं आई. पल्लवी, दीपक और मैं विदाई तक उस का रास्ता देखते रहे. आधीअधूरी ही सही मुझे बेटी के ब्याह की खुशी तो मिली. विजय बेटी की विदाई के बाद बेहाल सा हो गया. इकलौती संतान की विदाई के बाद उभरा खालीपन आंखों से टपकने लगा. तब दीपक ने यह कह कर उबार लिया, ‘‘चाचा, आंसू पोंछ लें. मुन्नी को तो जाना ही था अपने घर… हम हैं न आप के पास, यह पल्लवी है न.’’

मैं विजय की चौखट पर बैठा सोचता रहा कि मुझ से तो दीपक ही अच्छा है जिसे अपने को अपना बनाना आता है. कितने अधिकार से उस ने चाचा से कह दिया था, ‘हम हैं न आप के पास.’ और बरसों से जमी बर्फ पिघल गई थी. बस, एक ही शिला थी जिस तक अभी स्नेह की ऊष्मा नहीं पहुंच पाई थी. आधीअधूरी ही सही, एक आस है मन में, शायद एक दिन वह भी पिघल जाए.

मंगेतर की पहली शादी पर Hansika Motwani ने लगाए थे ठुमके, वीडियो वायरल

साउथ से लेकर बौलीवुड फिल्मों में नजर आ चुकी एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी (Hansika Motwani) इन दिनों अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में हैं. जहां बीते दिनों एक्ट्रेस की शादी की खबर और प्रपोजल की फोटोज सोशलमीडिया पर छाई हुई थीं तो वहीं अब हंसिका के होने वाले पति की पहली शादी की वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें खास बात यह है कि एक्ट्रेस खुद उस शादी में ठुमके लगा रही हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

मंगेत्तर की पहली शादी में दिखीं हंसिका

एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी जल्द ही अपने बिजनेस पार्ट्नर और मंगेत्तर सोहेल खतुरिया (Sohael Khaturiya) संग शादी करने वाली हैं. इसी बीच सोशलमीडिया पर खबरें और वीडियो वायरल हो रही हैं कि हंसिका मोटवानी के मंगेतर सोहेल खतुरिया उनकी दोस्त रिंकी के एक्स हसबैंड हैं. इतना ही नहीं दोनों की शादी की वीडियो में एक्ट्रेस हिस्सा बनते हुए और ठुमके लगाते हुए नजर आई थीं, जिसकी वीडियो तेजी से वायरल हो रही है.

ठुमके लगाती दिखीं हंसिका

 

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वीडियो की बात करें तो हंसिका मोटवानी अपनी दोस्त रिंकी और उनके एक्स हसबैंड सोहेल खतुरिया की संगीत सेरेमनी में डांस करते हुए नजर आ रही हैं. इसके अलावा वह शादी के हर फंक्शन का हिस्सा बनती हुई दिखीं थीं. वहीं खबरें हैं कि रिंकी और सोहेल की शादी साल 2016 में ही हुई थी, जो शादी के कुछ समय बाद ही अलग हो गए थे.

बता दें, हाल ही में एक्ट्रेस हंसिका मोटवानी के मंगेत्तर ने उन्हें आईफिल टॉवर प्रपोज किया था, जिसके बाद उनके दिसंबर में जयपुर के मुंदोता फोर्ट में शादी की खबरें सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. हालांकि इस खबर पर एक्ट्रेस का कोई रिएक्शन सामने नही आया है.

REVIEW: बौडी शेमिंग जैसे संवेदनशील मुद्दे का मजाक बनाती ‘डबल एक्स एल’

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः साकिब सलीम , टीसीरीज

लेखकः मुदस्सर अजीज

निर्देशकः सतराम रमानी

कलाकारः सोनाक्षी सिन्हा, हुमा कुरेशी, शोभा खोटे, कंवलजीत सिंह,  जहीर इकबाल, महत राघवेंद्र,  डौली सिंह व अन्य

अवधिः दो घंटे 12 मिनट

युवा पीढ़ी में बौडी शेमिंग बहुत बड़ी समस्या है. इसी मुद्दे पर बोल्ड फिल्म ‘हेलमेट’ फेम निर्देशक सतराम रमानी फिल्म ‘‘डबल एक्सएल’’ लेकर आए हैं, जिसका निर्माण फिल्म की एक नायिका हुमा कुरेशी के भाई व अभिनेता साकिब सलीम ने किया है. फिल्मकार इस फिल्म के माध्यम से दर्शकों को बताना चाहते हैं कि सपनों को पूरा करने के लिए शरीर की साइज मायने नही रखता. लेकिन अफसोस उन्होने इतनी बुरी फिल्म बनायी है कि उनका संदेश दर्शकों तक पहुंच ही नही पाता.  इतना ही नही फिल्म देखकर एक सवाल उठता है कि क्या साकिब सलीम व हुमा कुरेशी ने अपने पैतृक रेस्टारेंट ‘‘सलीम किचन’’ के प्रचार के लिए यह फिल्म बनायी है. पूरी फिल्म ‘स्वस्थ रहने‘ की आड़ में मोटे होने का महिमामंडन करती है. खासकर चिकन कबाब खाने का प्रचार.

कहानीः

फिल्म की कहानी शुरूआत उस दृश्य से होती है, जब राजश्री त्रिवेदी (हुमा कुरैशी) गहरी नींद में क्रिकेटर शिखर धवन के साथ डांस करने का मीठा सपना देख ही रही होती है कि मां( अलका कौशल )  हल्ला करके बेटी को जगा देती है. मां बेटी की शादी की चिंता में आधी हुई जा रही है. बेटी 30 पार कर चुकी है,  मगर उसकी शादी नहीं हो रही और मां इसकी वजह बेटी का मोटापा मानती है, जबकि दादी( शुभा खोटे) और पिता(कंवलजीत)की नजर में बेटी हष्ट-पुष्ट है. उधर राजश्री को शादी का कोई शौक नहीं. राजश्री त्रिवेदी का सपना एक टीवी स्पोर्ट्स प्रेजेंटर बनना है. अपने सपने को पूरा करने के लिए राजश्री त्रिवेदी अपने पिता,  मां और दादी की इच्छा के खिलाफ जाने पर आमादा हैं. राजश्री के माता पिता चाहते है कि वह शादी करके अपना घर बसा ले, लेकिन यह बात राजश्री को मान्य नही है. उधर दिल्ली निवासी सायरा खन्ना (सोनाक्षी सिन्हा) एक जिम वाले को डेट कर रही है,  लेकिन उनका दिल अपना खुद का डिजाइनर लेबल बनाने को बेताब है. एक चैनल में इंटरव्यू देने के लिए राजश्री त्रिवेदी दिल्ली जाती है, जहंा रिजेक्ट हो जाने के बाद वाशरूम में रोेते हुए उनकी मुलाकात  सायरा खन्ना से हो जाती है. दोनों वॉशरूम में रोते हुए अपने जीवन में गड़बड़ी के लिए अपने ‘डबल एक्सएल‘ शरीर को दोष देते हैं. सायरा खन्ना को लंदन जाकर कुछ निवेशकों के लिए एक फैशन यात्रा वृत्तांत का वीडियो बनाना है, मगर उनके पास निर्देशक नही है. तो राजश्री त्रिवेदी निर्देशक बन जाती हैं. क्योकि उन्होेने कुछ इंस्टाग्राम रील्स बनायी हैं. कैमरामैन के रूप में श्रीकांत (महत राघवेंद्र) आ जाते हैं. यह तीनों लंदन रवाना होते हैं. एअरपोर्ट पर जोई (जहीर इकबाल) इन्हे लेने आता है. जो कि इन दोनों को अपने सपनों को पूरा करने में मदद करता है. कपिल देव से जोई झूठ बोलकर राजश्री त्रिवेदी को कपिल देव से इंटरव्यू करने का अवसर दिलाता है. जिसे देखकर राजश्री त्रिवेदी को नौकरी मिल जाती है.  सायरा खन्ना का अपना फैशन लेबल शुरू हो जाता है.

लेखन व निर्देशनः

बौलीवुड में बौडी शेमिंग पर ‘फन्ने खां और ‘दम लगा के हईशा’ जैसी बेहतरीन फिल्में पहले भी बन चुकी हैं. तो वहीं बंगला अभिनेत्री रिताभरी चक्रवर्ती ने भी इसी मुद्दे पर एक बंगला फिल्म ‘‘फटाफटी’’ बना रखा है. कम से कम फिल्मकार को इन पर गौर कर लेना चाहिए था. लेकिन फिल्म देखकर अहसास होता है कि फिल्मकार ने कंगना रानौट की सफल फिल्म ‘क्वीन’ सहित कई फिल्मों का कचूमर परोसते हुए केवल ‘सलीम किचन’ के प्रचार पर ही पूरा ध्यान रखा. इसी के चलते मोटापा बढ़ने पर शरीर को होने वाले नुकसान का जिक्र तक नही किया गया है. ‘‘हैप्पी भाग जाएगी’’ फेम मुदस्सर अजीज से ऐसी उम्मीद नही थी. फिल्म में किसी भी किरदार को ‘फैट फोबिया’ भी नही है. लेखक मुदस्सर अजीज व निर्देशक सतराम रमानी बौडी शेमिंग जैसे जरूरी मुद्दे वाले विषय की परतों को पूरी तरह से उकेरने में असफल रहे हैं. इतना ही नही पूरी फिल्म नारी स्वतंत्रता व आत्मनिर्भर नारी के खिलाफ गढ़ी गयी है. राजश्री त्रिवेदी इतनी आत्मनिर्भर है कि उसे लड़कियों या औरतों से किस तरह बात की जानी चाहिए, इसकी समझ नही है. तो वहीं सायरा पूरी तरह से पुरूष पर निर्भर नजर आती है.

इंटरवल से पहले फिल्म काफी धीमी गति से चलती है. इंटरवल पर अहसास होता है कि अब फिल्म में कोई रोचकता आएगी. मगर ऐसा नही होता. इंटरवल के बाद फिल्म पूरी तरह से विखर जाती है. बौडी शेमिंग के मुद्दे को जिस तरह की  संवेदन शीलता की उम्मीद थी, उस पर भी लेखक व निर्देशक दोेनों खरे नही उतरे.

अभिनयः

फिल्म के किसी भी कलाकार का अभिनय प्रभावशाली नही है. दोनो नायिकाओं, हुमा कुरेशी और सोनाक्षी सिन्हा ने महज अपना वजन 15 किलो बढ़ाकर किरदार में फिट होने की इतिश्री कर ली. हुमा कुरेशी और सोनाक्षी सिन्हा की केमिस्ट्री भी नही जमी. श्रीकांत के किरदार में महत राघवेंद्र अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. जहीर इकबाल को बेहतर अभिनेता बनने के लिए अभी काफी मेहनत करनी पड़ेगी. अलका कौशल 30 पार कर चुकी अनब्याही बेटी की मां के दर्द को बखूबी बयान करती हैं.  छोटे किरदार में शुभा खोटे याद रह जाती है.  कंवलजीत के हिस्से करने को कुछ आया ही नही.

प्लस साइज औरतों के सपनों की बात करती है ‘डबल एक्स एल’- सतराम रमानी

हमारे यहां हर लड़की औरत आए दिन बौडीशेमिंग के चलते ट्रोलिंग का शिकार होती रहती है. इसी के चलते लड़कियों को अपना मोटापा अपने सपनो को पूरा करने में बाधक लगने लगता है.  जबकि मोटापे यानी कि बौडी शेमिंग का सपनों से या इंसान की प्रतिभा व कार्यक्षमता से कोई संबंध नहीं है. इसी बात को रेखंाकित करने के लिए फिल्मकार सतराम रमानी फिल्म ‘‘डबल एक्स एल’’ लेकर आ रहे हैं. जिसमें सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरेशी की अहम भूमिकाएं हैं. सतराम रमानी इससे पहले ‘सुरक्षित सेक्स’ और ‘कंडोम’ जैसे टैबू वाले विषय पर ‘‘हेलमेट’’ जैसी फिल्म बनाकर शोहरत बटोर चुके हैं.

प्रस्तुत है सतराम रमानी से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

आपको फिल्मों का चस्का कैसे लगा?

-मेरे घर का कोई भी सदस्य फिल्म इंडस्ट्री से नहीं जुड़ा हुआ है. मैं सिंधी समुदाय से हॅूं. मेरे पिता का बिजनेस है. लेकिन मेरे पिता जी का थिएटर की तरफ काफी झुकाव रहा है. तो वह मुझे बचपन से ही मराठी थिएटर देखने के लिए ले जाया करते थे. जिसके चलते मेरे अंदर थिएटर यानी नाटक देखने और कुछ सीखने की इच्छा बलवती होती रही है. मुझे हर नाटक में एक नया क्रिएशन देखकर अच्छा लगता था. तो मेरा प्रेरणास्रोत कहीं न कहीं थिएटर ही रहा.

क्या आपने फिल्म निर्देशन की कोई ट्रेनिंग भी हासिल की?

-जी हॉ!. . जलगांव से मैं पुणे पहुंचा,  जहां एमआई टी कालेज हैं. इस कालेज में फिल्म मेकिंग का कोर्स भी होता है. जलगांव में तो फिल्म मेकिंग का जिक्र भी भी नही होता था. उस वक्त तक तो लोगो को यह भी नहीं पात था कि फिल्म मेंकिंग भी एक प्रोफेशन हो सकता है. पर अब धीरे धीरे हालात बदल रहे हैं. उन दिनों सोशल मीडिया भी नही था. जब मैने कुछ रिसर्च किया तो मेरी समझ में आया कि मैं एमआई टी ज्वाइन कर लॅूं, तो शायद मेरा कुछ हो सकता है.

जब आपने अपने पिता जी को बताया होगा कि आप फिल्म मेकिंग सीखने के लिए पुणे जाना चाहते हैं, तो उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?

-देखिए, फिल्म मेकिंग का कोर्स होता है, यह बात ही उनके लिए नई थी. कहां होता है, कौन सिखाता है? कैसे होगा? सहित उनके कई सवाल थे. कोई गाइड करने वाला है?कई सवालों के जवाब किसी के पास नही थे. मैने अपने पिता जी से साफ साफ कहा कि आपके सवालों के जवाब मेरे पास नहीं है. मैं सिर्फ इतना जानता हॅूं कि मुझे पुणे जाकर एमआईटी कालेज से फिल्म मेंकिंग का कोर्स करना है. उसके बाद मेरे पिता ने कहा-अगर कुछ नही हुआ और तुम खाली हाथ वापस आए, तो मायूस तो नही हो जाओगे?’इस पर मैने कहा कि मैं कोशिश करना चाहता हॅूं. मेरे पास आपके इस सवाल का भी जवाब नही है. जब तक मैं करीब से उस चीज को, हालात को देखॅूंगा नहीं, तब तक कैसे कुछ कह सकता हॅूं. मेरे एक चाचा इंदौर में युनिवर्सिटी के निदेशक थे. तो मेरे पापा ने उनसे राय ली. मेरे चाचा ने कहा कि यदि सतराम का मन कर रहा है, तो उसे करने देना चाहिए. सही होगा तो कुछ बन जाएगा, यदि गलत होगा, तो उसे एक अनुभव मिल जाएगा.

पुणे के एमआईटी से फिल्म मेकिंग का कोर्स करने के बाद कैरियर कैसे शुरू हुआ?

-पुणे में फिल्म मेकिंग का कोर्स करने के बाद मुंबई पहुंचा. जहां एक नए संघर्ष की शुरूआत हुई. मंुबई में हमारा कोई दोस्त वगैरह नही था. इसलिए भी वक्त लगा.  मुझे सबसे पहले टीसीरीज  की एक फिल्म में बतौर सहायक निर्देशक काम करने का मौका मिला. लेकिन इस फिल्म की शुरूआत मे देरी होती जा रही थी. तभी मुझे पोस्ट प्रोडक्शन करने का अवसर मिल गया. जिसे करते हुए मैने काफी कुछ सीखा. मेरी सोच यह रही है कि एक निर्देशक को प्री प्रोडक्शन,  प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन सहित हर काम की जानकारी होनी चाहिए. पोस्ट प्रोडक्शन करते हुए बहुत अच्छा लगा. मैने एडीटिंग सहित हर विभाग के बारे मंे जाना. पोस्ट प्रोडक्शन में मैने कई फिल्में की और इससे मेरा ज्ञान काफी बढ़ गया. और कहीं न कहीं मेरी कल्पनाओं में एडीटिंग भी आने लगी. पोस्ट प्रोडक्शन के बाद मैने कुछ फिल्में बतौर सहायक निर्देशक की. फिर वह वक्त आया जब मैने तय किया कि अब मुझे अपनी कहानी खुद कहनी है. और मैंने बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘हेलमेट’ बनायी. इस फिल्म के बनाने मे मुझे चार पांच वर्ष लग गए. काफी रिजेक्शन सहे. पर अंततः कामयाब हो ही गया. अंततः मैने अपने मन पसंद विषय पर फिल्म बनायी.

जब रिजेक्शन मिलते हैं, उस वक्त अपना हौसला किस तरह से बरकरार रखते हैं?

-इसके लिए सकारात्मक माइंड सेट ही काम आता है. मुझे लगता है कि इंसान के अंदर का धैर्य ही उसका काम करवाता है. यदि आपके अंदर पैशंस नही है, तो आप किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल नहीं कर सकते. हर काम के पूरा होने में वक्त लगता है. आपने आज प्लॉट खरीदा और आप सोचेंगें कि कल इमारत खड़ी हो जाए, तो यह संभव नही है. फर्क इतना है कि इमारत बनाने का प्रोसेस दिखता है, मगर हमारे यहां का प्रोसेस नजर नहीं आता. प्लॉट खरीदने पर आपको पता होता है कि अब इसकी नींव की खुदायी होगी, फिर नींव भरी जाएगी. . . वगैरह वगैरह. .  तकनीकी काम संपन्न होने के बाद लोग रहने आएंगे. इसी तरह जब लेखक के दिमाग में कोई विचार आता है, तो उस विचार पर कहानी व पटकथा गढ़ने से उसके परदे पर आने तक का एक लंबा प्रोसेस हैं, जिसमें न दिखाई देने वाला वक्त लगता है. बीच बीच में कई पड़ाव होते हैं, जहां कई बार रिजेक्शन का भी सामना करना पड़ता है. इस बीच सही तरह के लोग जुड़ेंगें.  आपको उनके साथ काम करना है, उनको आपके साथ काम करना है या नहीं करना है. . उस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है. उसके बाद उस कहानी को परदे @स्क्रीन्स तक आने का एक अलग तकनीकी प्रोसेस शुरू होता है.

बतौर लेखक व निर्देशक पहली फिल्म ‘‘हेलमेट’’ के प्रदर्शन के बाद आपके प्रति फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के रवैए में क्या बदलाव आया था?

-सच यह है कि जब मैने ‘सुरक्षित सेक्स’ के मुद्दे पर फिल्म ‘हेलमेट’ बनाने का निर्णय लिया था, तभी मेरे कुछ दोस्तों ने, जो कि फिल्मकार हैं, ने कहा था कि यह बहुत रिस्की विषय है. फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कुछ लोगों ने फिल्म देखने के बाद मेरी प्रशंसा की कि मैंने इस तरह के विषय को अपनी फिल्म में उठाकर मनोरंजन प्रधान फिल्म बनायी. कई बार एक ही चीज को कुछ लोग गलत तरह से ले लेते हैं, तो वहीं कुछ लोग समझ जाते हैं. पर मैने दोनो तरह के लोगो के प्रतिशत पर गौर नही किया. मुझे लगा कि मैं अपने दिल व दिमाग की सुनकर एक फिल्म बनायी है, जिसे लोगों ने पसंद भी किया. मुझे जो सही लगा, वह मैने अपनी फिल्म में पेश किया. काफी लोगों को लगा कि शायद मैं वह इस तरह की फिल्म नही बना सकते.

‘हेलमेट’ तो सुरक्षित सेक्स व कंडोम पर आधारित फिल्म थी,  जिस पर बात करना ‘टैबू’ है. ऐसे में आपको भी लगा होगा कि आपने रिस्क उठायी है?

-सर, असल में इस तरह से मैने सोचा ही नहीं था. मुझे लगा कि हमें कुछ अलग तरह के विषय पर फिल्म बनानी चाहिए, तो मैने कहानी लिखी और फिल्म बनायी. मैने इस बात पर विचार ही नही किया था कि इस फिल्म को बनाने के क्या परिणाम होंगे?

मगर इस तरह के विषय पर काम करने लिए संजीदगी और एक अलग तरह की समझ होनी चाहिए, वह समझ कहां से आयी थी?

-देखिए, फिल्म लिखते समय मेरे दिमाग में एक ही बात थी कि मुझे ज्ञान नहीं बांटना है. हमें किसी को कुछ भी सिखाना नही है. उस वक्त  यह साफ था कि मुझे सनसनी नही फैलाना है. कोई गलत बात नही करनी है. इसी तरह हमने नई फिल्म ‘‘डबल एक्स एल’ में भी यह ध्यान रखना है कि मुझे किसी को मोटापे को लेकर कुछ सिखाना नहीं है. मुझे ओबीसिटी या अनहेल्दीनेस को भी प्रमोट नही करना है. हम सिर्फ यह बताना चाहते हैं कि आपके सपने आपके शरीर के किसी भी साइज का मोहताज नही है.

फिल्म ‘‘डबल  एक्सएल’ की कहानी का बीज कहां से आया था?

-इस फिल्म की कहानी का बीज वास्तविक घटनाक्रम से आया था. सोनाक्षी सिन्हा व हुमा कुरेशी एक सोशल गैदरिंग में खाना खा रही थी. वहीं पर मुदस्सर अजीज भी मौजूद थे. उसी वक्त उन्हे ख्याल आया कि मोटे लोग किस तरह से सेलीब्रेट करते हैं. और हुमा ने कहा कि प्लस साइज औरतों के सपनों की कहानी पर फिल्म बनानी चाहिए.  किस तरह प्लस साइज की औरतों के सपनों में रूकावट आती है. दोनों बहुत एक्साइटेड थे. दोनों ने कहा कि इस कहानी पर फिल्म बनेगी, तो हम अभिनय करना चाहेंगे. उसी वक्त मुदस्सर अजीज ने कह दिया कि वह कहानी लिखते हैं. फिर यह कहानी मेरे पास आयी, तो मैने कहा कि मैं निर्देशन करने के लिए तैयार हॅूं. उसके बाद पटकथा लिखी गयी औरशूटिंग हुई.

‘डबल एक्स एल’ की कहानी में निर्देशक के तौर पर किस बात ने आपको इंस्पायर किया?

-मैने सोचा है कि मैं हमेशा वास्तविक मुद्दों को ही अपनी फिल्म में उकेरता रहॅूं. और वह मुद्दे जिन्हे पहले किसी ने न छुए हों. प्लस सइज यानी कि मोटापे को लेकर हम सभी जागरूक हैं, लेकिन इन चीजों पर हमारा फोकश नही है. और न ही हम इन पर अटैंशन देना चाहते हैं. हमारे आस पास यह चीजें रोज हो रही हैं, पर वह सब आदत में आ चुकी हैं. यह गलत आदत है. मै देखता हॅूं कि मेरी पत्नी किसी फंक्शन मे जाने के लिए तैयार होते समय आइने के सामने खड़े होकर मुझसे पूछती हैं ‘मैं मोटी हो गयी हॅूं?’. तो अब मेरी समझ में आता है कि उन्हे मोटापे को लेकर कितना असुरक्षित पना महसूस होता है.  क्योंकि किसी भी समारोह में पहुंचते ही लोग कमेंट करते हैं, ‘अरे, आपने वेट पुट ऑन किया है. ’तो उसके बाद पूरा समारोह कैसे बीतता होगा, इसे समझा जा सकता है. वास्तव में यह फिल्म मेरे पास तब आयी थी, जब यह विचार के स्तर पर ही थी. यह ऐसा विचार था जिसे बतौर निर्देशक मैं अपने दृष्टिकोण से बताना चाहता था.

क्या आपने इस मुद्दे को फिल्म में उठाया है?

-हमारी फिल्म यह कहने का प्रयास करती है कि आप जिस भी साइज या शेप में हैं, उससे आपके सपनों को पूरा होने में कोई रूकावट नही आती. हमारी फिल्म कहती है कि खुद को नॉर्मल महसूस करें. खुद को असुरक्षित महसूस न करें.  हमारी फिल्म का संदेश है कि आपके सपने, आपकी प्रतिभा, आपकी क्षमताएं और सपने किसी ओर चीज से ज्यादा मायने रखती हैं.

आपकी फिल्म के किरदार छोटे शहरों से हैं. पर आप उन्हे लंदन तक ले जाते हैं. क्या सपनों को पूरा करने के  लिए विदेश जाना जरुरी था?

-कहानी की मांग के कारण किरदार विदेश जाते हैं. विदेश जाने पर ही किरदारों के बीच जो कुछ बातें थीं, वह साफ होती हैं. खुद का खुद से वाकिफ होकर वापस आना जरुरी था.

इसी विषय पर बंगला में फिल्म ‘फटाफटी’बनी है?

-जी हॉ! मुझे इसकी जानकारी है. दक्षिण भारत व मराठी में भी इस विषय पर फिल्में बनी हैं.  पर हमारी फिल्म इन सभी फिल्मों से काफी अलहदा है. हमारी फिल्म मूलतः प्लस साइज औरतों के सपनों की बात करती है. आपकी महत्वाकांक्षा व आपके टैलेंट की तुलना अपने शरीर के वजन से मत कीजिए. न ही समाज को इस तरह की तुलना करना चाहिए. अन्यथा हम प्लस साइज को ड्लि नही करना चाहते.

आपकी फिल्म ‘डबल एक्स एल’ के ट्रेलर से अहसास होता है कि आपकी फिल्म का कुछ हिस्सा फिल्म ‘क्वीन’ से प्रेरित है?

-लोगों को टैम्पलेट लग सकता है. मगर लिखते वक्त ऐसी कोई प्रेरणा नही ली गयी. हम सभी के दिमाग में ऐसा कुछ नहीं था कि ‘क्वीन’ से कुछ लेना है. ‘क्वीन’ तो एक अच्छी फिल्म थी और मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक है. पर हमने अपनी कहानी की जरुरत के अनुसार ही दृश्य रखे हैं.

फिल्म ‘‘डबल एक्स एल’’ के प्रदर्शन के बाद किस तरह के बदलाव आएंगे?

-मुझे लगता है कि इस फिल्म को देखने के बाद लोग आपस में शरीर के साइज को लेकर यानी कि मोटापे आदि को लेकर बात करना शुरू कर देंगे. हर किसी को किसी ने कभी न कभी बौडीशेम किया है.  फिल्म देखकर लोग समझेंगे कि हमने भी ऐसा किया है. तो कहीं न कहीं इसका अंदरूनी असर अवश्य होगा.

बौडीशेमिंग को लेकर जो ट्रोलिंग होती है. क्या उन ट्रोलरों को भी यह फिल्म जवाब देती है?

-सर, मुझे लगता है कि ट्रोलिंग तो कभी बंद नही हो सकती. यह तो हमारी जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है. मुझे नहीं पता कि हमारी फिल्म के प्रदर्शन के बाद ट्रोलिंग बंद होगी या नहीं या यह बढ़ेगा. जो लोग ट्रोलिंग कर रहे हैं, शायद उन्हे उसका मजा आता है. ऐसे लोग जब फिल्म देखेंगें, तो एक बार उनके मन में विचार तो आएगा ही. भले ही वह इस बार बात न करें.

स्क्रिप्ट की सभी तारीफ करते हैं, पर फिल्म बनने के बाद मामला कुछ और हो जाता है. यह कैसे हो जाता है?

-देखिए, कुछ बदलाव तो निर्देशक के स्तर पर आता ही है. देखिए, स्क्रिप्ट तो अलग बात है. जबकि फिल्म विज्युअल माध्यम है. स्क्रिप्ट की लैंगवेज अलग है. जिससे आप कहानी व दुनिया को समझाते हैं. पर वह कलाकार की परफार्मेंस व विज्युअल्स से दुनिया बदलने लगती है. यदि स्क्रिप्ट राइटर को खुश रखना है, तो निर्देशक की जिम्मेदारी बनती है कि वह स्क्रिप्ट से बेहतर फिल्म बनाए. यदि फिल्म अच्छी बनती है, तो पटकथा लेखक कहता है कि आपने हमारी पटकथा के साथ जस्टिस किया. इसके लिए निर्देशक अपनी तरफ से उसमें कुछ तो जोड़ता है. वैसे भी मेरा मानना है कि फिल्म मेकिंग मंे सभीका योगदान होता है. यह टीम वर्क है. फिर चाहे वह निर्माता का वीजन हो. यदि निर्देशक के अंदर क्षमता नहीं है कि वह पटकथा को परदे पर जीवंत रूप दे सके, तो सब बेकार है. इसमें एडीटर का भी योगदान होता है. कई बार एडीटर को लगता है कि यह दृश्य फिल्म की कहानी के साथ न्याय नहीं कर पा रहा है, तो उस वक्त निर्देशक या तो अपनी बात समझाए या फिर एडीटर की बात माने, यही दो रास्ते होते हैं. क्योंकि वह भी टीम का हिस्सा होता है. उसका मकसद भी फिल्म को बेहतर बनाना होता है. वह गलत नहीं बोल सकता.

आपने पोस्ट प्रोडक्शन करते हुए एडीटिंग सीखी है, इसका कितना फायदा निर्देशक के तौर पर मिलता है?

-बहुत ज्यादा मदद मिलती है. सबसे ज्यादा खुश निर्माता होता है. क्यांेकि हम उसका समय व पैसा दोनों बचाते हैं. निर्देशक के तौर पर हमारे दिमाग में क्लीयरिटी रहती है. हमें पता होता है कि कौन सा दृश्य रहेगा?, कौन सा दृश्य नही रहेगा?या कितनी अवधि का दृश्य रहेगा, यह वीजन साफ तौर पर आने लगा. इससे फायदा यह हुआ कि निर्माता को फायदा होने लगा. उसके समय व धन दोनों की बचत होने लगी.

कोविड महामारी के बाद सिनेमा में आ रहे बदलाव को आप किस तरह से देख रहे हैं?

-काफी बदलाव आ गया है. पिछले दो वर्षो में लोगों ने विश्व सिनेमा को काफी देखा है. लोगों केा बेहतरीन सिनेमा का एक्सपोजर मिला है. जिसके चलते लोगों ने ढेर सारी कहानियां लिखी हैं. अलग अलग तरह की कहानियां व स्टोरी टेलर सामने आ रहे हैं. अब भारतीय सिनेमा का स्टैंडर्ड उंचा हो रहा है. अब वह दौर गया, जहां मनोरंजन करने के लिए कुछ भी बना देते थे. अब कहानी में दम होना जरुरी हो गया है.

ओटीटी प्लेटफार्म के चलते सिनेमा को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?

-अब बेहतर कंटेंट बेहतर तरीके से पेश करना अनिवार्य हो गया है. निर्देशक के तौर हमें अपना क्राफ्ट उपर ले जाना है.

‘‘डबल एक्स एल’’ के बाद क्या योजनाएं हैं?

-दो स्क्रिप्ट लगभग तैयार हैं. बहुत जल्द कुछ अच्छी खबरें आएंगी.

सही राह: क्या अवनि के सर से उतरा प्यार का भूत

अवनि को कालेज के लिए तैयार होते देख मां ने पूछा, “क्या बात है अवनि, आजकल कुछ उदास सी रहती हो? और यह क्या, आज फिर वही कुरता पहन लिया?” अवनि रोंआसी हो कर बोली, “अभी क्लासेज तो हो नहीं रहीं, सिर्फ गाइड ढूंढने की मशक्कत कर रही हूं.”

मम्मी ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, “फिर भी सलीके से तैयार होना जरूरी है. मैं चेहरे पर मेकअप की परतें चढ़ाने को थोड़ी कह रही हूं.”

अवनि ने कहा, “ठीक है मम्मी, आगे से ध्यान रखूंगी.” मम्मी अवनि को जाते हुए देखती रही.डिपार्टमेंट में अवनि को उस की खास सहेली ईशा मिल गई जो पीएचडी की 2 साल की प्रोग्रैस रिपोर्ट सब्मिट कराने आई थी. ईशा ने अवनि से कहा, “हम दोनों ने एकसाथ गाइड ढूंढना शुरू किया था, देख मुझे 2 साल हो गए रजिस्ट्रेशन करवाए हुए, तेरी गाड़ी कहां अटक रही है?” अवनि का जवाब सुने बिना ही उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए ईशा आगे बोली, “यह क्या हाल बना रखा है…ढीला सा कुरता, तेल से चिपके बाल… यहां सारे लैक्चरर्स पुरुष हैं, मैडम. ऐसे ही नहीं मिल जाएंगे गाइड तुम्हें.” अवनि रोंआसी हो कर बोली, “सुबह मम्मी भी मुझे सलीके से रहने को कह रही थीं और अब तुम भी.”

ईशा ने उसे समझाते हुए कहा, “मैं तुम्हें 50 वर्ष की उम्र पार किए प्रोफैसर्स पर लाइन मारने को नहीं कह रही, लेकिन पुरुष चाहे 18 का हो या 80 का, सुंदरता उसे आकर्षित करती ही है.”

अवनि ईशा की बात समझने की कोशिश कर रही थी, फिर सोचने लगी, ‘सही ही तो कह रही है ईशा… मुझे अपने पहनावे और लुक्स पर ध्यान देना ही होगा. कल को जौब के लिए और शादी के लिए भी मेरे लुक्स को ही देखा जाएगा.’

उस दिन अवनि डिपार्टमैंट से सीधे पार्लर गई. वहीं हेयरवौश के बाद हेयरकट कराया और फिर थ्रेडिंग और फेशियल भी. बाल सैट कराने के बाद उस ने जब खुद को शीशे में देखा तो हैरान रह गई…वह सोच रही थी कि अगर स्टाइल से रहने लगूं तो किसी की नज़र मुझ पर से हटेगी ही नहीं.

घर पर मम्मी ने भी उस के हेयरकट की तारीफ की. धीरेधीरे अवनि अपनेआप को बदलती ही जा रही थी. इस ट्रांसफौर्मेशन में उसे मज़ा आ रहा था. एक दिन फिर से उस ने डिपार्टमैंट जा कर पीएचडी के लिए किसी गाइड से बात करने के बारे में सोचा. डिपार्टमैंट में सब से पहला औफिस अभिनव सर का था. अवनि ने कभी उन से बात नहीं की थी पीएचडी के बारे में. उन के बारे में अवनि ने सुना था कि वे एक बार में सिर्फ 4 स्टूडैंट्स को ही पीएचडी कराते हैं, वह भी जनरली बौयज को. आज अवनि न जाने क्यों उन के औफिस के सामने रुक गई थी और फिर झटके से दरवाजा खोल कर पूछ बैठी, “मे आई कम इन, सर?”

अभिनव सर डिपार्टमैंट के सब से वरिष्ठ प्रोफैसर थे, उम्र पचास के आसपास, लेकिन अवनि को वे किसी यंग, स्मार्ट युवक की तरह नज़र आ रहे थे. चमकता चेहरा, विशाल भुजाओं वाला कसरती शरीर. वे कोई सिनौप्सिस देखने में व्यस्त थे और अवनि उन्हें एकटक निहारे जा रही थी. पहले ऐसी नहीं थी अवनि. जब से खुद को बदला है, अब सब को ध्यान से देखने लगी थी. तभी अचानक सर का ध्यान अवनि की ओर गया. वे भूल ही गए थे कि कोई स्टूडैंट सामने बैठी है.

सर ने उस से आने का कारण पूछा. अवनि ने बिना कुछ कहे सिनौप्सिस थमा दी उन्हें. सर ने जवाब दिया, “मेरे पास कल ही एक सीट खाली हुई है लेकिन तुम से पहले 15 स्टूडैंट्स सिनौप्सिस दे कर जा चुके हैं. इतने स्टूडैंट्स में से एक को चुनना मुश्किल है.” अवनि का चेहरा उतर गया था. वह उठ कर जाने लगी तो सर ने उसे रोकते हुए कहा, “तुम बैठो, मैं पहले आओ, पहले पाओ के सिद्धांत पर काम नहीं करता. यदि तुम्हारा विषय और सिनौप्सिस मुझे पसंद आया तो मैं तुम्हें भी पीएचडी करा सकता हूं. तुम अगले सोमवार को मुझ से मिल लेना.”

सर की नजरें अवनि के चेहरे पर थीं. सर को अपनी ओर देखता पा कर अवनि की नजरें झुक गई थीं. सर ही सही, पर पहली बार कोई उसे यों गौर से देख रहा था. अवनि ने लाइट पिंक कलर का टाइटफिटिंग वाला सूट पहन रखा था जिस में से झांकते उस के उभार सुबह से कइयों की नज़र का निशाना बन चुके थे. पारदर्शी दुपट्टा जो बारबार कांधे से सरक रहा था वह किसी को भी अपने मोहपाश में बांधने को काफी था. सुर्ख गुलाबी गालों पर लहराते काले बाल कोई जादूटोना सा कर रहे थे. कभी लड़कों की तरह लंबेलंबे कदम बढ़ाने वाली अवनि धीरे से उठ कर नजाकत के साथ दरवाज़े की ओर बढ़ रही थी. उसे पूरा भरोसा था कि 16 स्टूडैंट्स में सर पीएचडी के लिए उसे ही सेलैक्ट करेंगे.

अगले सोमवार वह पहुंच गई थी अभिनव सर के औफिस में. सर औफिस में नहीं थे. सर ने फोन भी पिक नहीं किया. अवनि को अब यही डर था कि सीट हाथ से फिसल न गई हो. करीब एक घंटे के इंतज़ार के बाद अवनि बुझेमन से बाहर आने को उठी ही थी कि सामने सर को देख कर ठिठक गई. लाइट ब्लू कलर की शर्ट और ब्लैक ट्राउज़र पहने हुए सर बहुत स्मार्ट और हैंडसम लग रहे थे. सर ने उसे बैठने को कहा और फिर अवनि की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए बोले, “तुम्हारा सिनौप्सिस मुझे पसंद आया. कुछ करैक्शन के बाद इसे फाइनल कर लेते हैं. तुम मेरे अंडर में पीएचडी कर रही हो.” अवनि की खुशी का ठिकाना न था. अवनि ने थैंक्स कहा तो सर मुसकराते हुए बोले, “तुम्हें पता चल ही गया होगा कि मैं लड़कियों को पीएचडी नहीं कराता, फिर तुम्हें क्यों करा रहा हूं…”

अवनि ने प्रश्नवाचक दृष्टि सर के चेहरे पर डाली. सर ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “…क्योंकि तुम मुझे बाकी लड़कियों से अलग लगीं.”

अवनि को सर की बातों का अर्थ कुछकुछ समझ आ रहा था. घर आ कर उस ने बहुत देर तक खुद को शीशे में निहारा और फिर नज़रें झुका ली थीं. अवनि जल्दी से जल्दी पीएचडी पूरी कर लेना चाहती थी. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी जौब लग जाए. मम्मीपापा ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया था.

अवनि रोज़ डिपार्टमैंट जाती थी और लाइब्रेरी से बुक्स इशू करवाने के बाद अभिनव सर के औफिस में ही बैठती थी. थोड़ी देर के लिए ही सही, सर औफिस जरूर आते थे. मुसकरा कर अवनि के अभिवादन का जवाब भी देते थे. किसी दिन सर डिपार्टमैंट आने में लेट हो जाते थे, तो अवनि बेचैन हो उठती थी. अवनि खुद इस बेचैनी का कारण नहीं समझ पा रही थी. कहीं इसी को प्यार तो नहीं कहते…अब तक अवनि ने अपनी जो छवि बना रखी थी, लड़के उस के आसपास भी न फटकते थे लेकिन अब तो वह हर नज़र की गरमाहट और गहराई को महसूस कर रही थी.

रोज़ की तरह अवनि अभिनव सर के औफिस आ गई थी. सर के औफिस में एक वौशरूम था जिसे अवनि अकसर यूज़ करती थी. अवनि को यही लगता था कि सर ने इस औफिस में सिर्फ उसे एंट्री दी है और वौशरूम तो उस के अलावा कोई रेयर ही यूज़ करता होगा. यही सोच कर कई बार वह डोर क्लोज़ करने में लापरवाही कर जाती थी. उस दिन भी उस ने ऐसी ही लापरवाही की.

हैंडवौश करते समय उस ने महसूस किया कि उस की ब्रा के हुक खुल गए हैं और स्टैप्स कुरते की स्लीव से बाहर की ओर आ रही हैं. उस ने ब्रा के हुक बंद करने के लिए कुरता उतारा और हुक बंद करने की कोशिश करने लगी. तभी सामने शीशे पर नज़र पड़ी तो उस ने देखा अभिनव सर खड़े हैं. वह सकपका गई. न जाने क्या सोच कर उस ने कुरता पहनने की कोशिश ही नहीं की. उसे लगा कि सर पास आ कर अवनि की ब्रा के हुक बंद कर रहे हैं, वह उन के कांपते हाथों के स्पर्श को महसूस कर रही थी और उस पर मदहोशी सी छा रही थी. तभी तेजी से दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ से उस की तंद्रा टूटी. सर वहां नहीं थे…तो क्या सर बाहर से ही चले गए थे…अवनि समझ नहीं पा रही थी कि उसे क्या हो रहा था. अवनि ने बड़ी मुश्किल से कुरता पहना और बाहर आ गई. सर अपनी चेयर पर बैठे थे.

अवनि ने नज़रें झुकाए हुए सर से कहा, “सिनौप्सिस और लिटरेचर रिव्यू आप के बताए अनुसार तैयार कर लिए हैं.” अवनि के सुर्ख चेहरे पर पसीने की बूंदें गुलाब पर ओस का एहसास करा रही थीं.

सर ने उस की ओर बिना देखे ही कहा, “अगले सप्ताह डिपार्टमैंटल रिसर्च कमेटी की मीटिंग है लेकिन यह मीटिंग डिपार्टमैंट में न हो पाएगी. पास ही के कसबे के एक कालेज में मीटिंग रखी गई है क्योंकि मीटिंग के तुरंत बाद वहां एक सैमिनार होगा. यहां से 2 घंटे का रास्ता है. तुम मंडे को 11 बजे वहां पहुंच जाना. मैं भी वहीं मिलूंगा.”

अवनि के दिलोदिमाग में हलचल मची हुई थी. वह सर की ओर खिंची चली जा रही थी, जबकि सर ने ऐसा कोई इंडिकेशन उसे नहीं दिया था. उस ने सोच लिया था कि वह सर को अपनी फीलिंग्स के बारे में ज़रूर बताएगी…कहने की हिम्मत न हो तो लिख कर अपने प्यार का इज़हार करेगी. उस ने एक लैटर भी लिख लिया था.

अब डीआरसी की मीटिंग वाला सोमवार भी आ गया था. अवनि अपनी एक्टिवा से सर के बताए हुए टाउन के लिए रवाना हो गई थी. शहर से बाहर निकली ही थी कि तेज बारिश शुरू हो गई. अवनि ने एक पेड़ के नीचे खड़े हो कर खुद को भीगने से बचाने की कोशिश की लेकिन पानी ने उस के कौटन सूट को भिगो ही दिया था. आसपास खड़े लोग उसे कनखियों से देख रहे थे. अवनि बिलकुल असहज हो गई थी. तभी एक चमचमाती हुई सफेद गाड़ी अवनि के सामने आ कर रुकी.

सर ही थे, हलके गुलाबी रंग की शर्ट में, बोले, “आओ, जल्दी बैठो. मीटिंग का टाइम हो रहा है.” सर ने आगे की सीट की ओर इशारा किया. अवनि झिझकती हुई गाड़ी में बैठ गई थी. उस का कुरता गीला हो गया था, उसे ठंड लग रही थी. सर ने हीटर औन कर दिया था. उस दिन की बाथरूम वाली घटना याद कर के अवनि सकुचा गई थी. फिर भी वह चाह रही थी कि सर उसे देखें. एक अलग ही तरह का रोमांच वह महसूस कर रही थी.

अभिनव सर ने उसे नौर्मल करने की कोशिश करते हुए कहा, “आराम से बैठो, रिलैक्स रहो. डीआरसी के लिए खुद को तैयार कर लो.” तभी एक झटके के साथ गाड़ी रुकी थी. गाड़ी में कोई खराबी आ गई थी. दूरदूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था. फोन का नैटवर्क भी गायब था. अवनि को परेशान देख सर ने कहा, “अभी 10 बजे हैं, कोई साधन मिल जाए तो 15 मिनट में पहुंच जाएंगे.” तभी एक लड़की एक्टिवा से आती दिखी जो उसी टाउन की ओर जा रही थी.

सर ने अवनि को उस लड़की के साथ भेज दिया और उस से यही कहा, “तुम पहुंचो, मैं मैनेज कर के आता हूं.”अवनि समय पर पहुंच गई थी. सर 15 मिनट बाद पहुंचे थे. उन की शर्ट पसीने में पूरी तरह भीगी हुई थी जिस से अवनि को यह अंदाजा हो गया था कि सर ने यह दूरी पैदल या दौड़ कर पूरी की है. डीआरसी की मीटिंग बढ़िया हो गई थी और अवनि का पीएचडी में रजिस्ट्रेशन भी हो गया था. सर को फाइनल डीआरसी रिपोर्ट वाली फ़ाइल देते समय उस ने वह लव-लैटर भी उसी में रख दिया था.

अवनि पीएचडी में रजिस्ट्रेशन के बाद बहुत खुश थी और सर के जवाब का भी इंतज़ार कर रही थी. अगले दिन अवनि मिठाई का डब्बा ले कर डिपार्टमैंट पहुंची तो पियून ने बताया कि सर की तबीयत खराब है. अवनि इस के लिए खुद को जिम्मेदार समझ रही थी. वह तुरंत सर के घर पहुंच गई थी. वह सर के घर पहली बार आई थी. दोतीन बार डोरबैल बजाने के बाद दरवाजा खुला. अवनि ने देखा कि दरवाजा खोलने वाले सर ही थे. सर ने उसे अंदर आने को कहा.

अवनि ने पूछा, “आप अकेले रहते हैं यहां?” सर ने जवाब दिया, “नहीं, मेरी पत्नी भी है. अभी वह कुछ दिन के लिए बेटे के पास यूएस गई हुई है.” अवनि को जैसे बिच्छु ने डंक मारा हो. वह सर को ले कर जाने क्याक्या सोचने लगी थी.

मिठाई का डब्बा वहीं टेबल पर रख कर अवनि ने पूछा था, “आप के लिए कुछ बना दूं सर?” सर ने कहा, “नहीं, मैं ठीक हूं. थोड़ी थकान है, जो आराम करने से ठीक हो जाएगी.” अवनि वापस लौटने के लिए पीछे मुड़ी तो सर ने कहा, “रुको अवनि.” अवनि चौंक गई थी. सर ने कुछ सोचते हुए कहा, “तुम बहुत अच्छी लड़की हो, तुम अपनी पीएचडी पूरी कर के अपने कैरियर पर ध्यान दो. मैं एक गाइड के रूप में हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा. तुम अपने वर्तमान और भविष्य को खुद ही आकार दे सकती हो. याद रखना, बहक कर पछताने से बेहतर है हम अपनेआप को मर्यादित रखें.”

अवनि सर का इशारा समझ रही थी. उस की आंखों पर पड़ा प्यार का चश्मा उतर गया था. सर के घर से लौटते हुए अवनि यही सोच रही थी कि अब वह किसी भी तरह के भटकाव से बच कर पूरे मनोयोग से पीएचडी पूरी करेगी. सर ने उसे मंजिल को पाने की सही राह दिखा दी थी.

पहाड़ों पर क्यों हो रहे हैं हादसे

केदारनाथ के दर्शन करने गए हेलीकौप्टर से 7 यात्री स्वर्ग दर्शन के लिए पहुंच गए क्योंकि धुंध में हैलीकौप्टर एक पहाड़ी से टकरा गया और जल कर गिर गया. जब से चार धामों में हैलीकौप्टरों की सेवाएं शुरू हुई हैं हैलीकौप्टर सडक़ पर आटो  की तरह चलने लगे हैं और उन अंधविश्वासी भक्तों को ढो रहे हैं जो पुण्य कमाने तो जाना चाहते हैं पर पैदल चलता नहीं चाहते.

हिमाचल की पहाडिय़ों पर तो धर्म प्रसिद्ध इसलिए रहे हैं क्योंकि पहले इन तक पहुंचना कठिन था और न रास्ते बने हुए थे, न कोई सुविधाएं थीं. पुराणों में इन का महत्व और मनमोहक निय……..बारबार किया गया है और इसलिए भक्त सदियों से इन छात्रों में रहने वाले पंडितों की तब खूब सेवा करते थे जब वे भीहड़ जंगलों से होते हुए सर्दियों में मैदानी इलाको में आते थे.

अब महंत वहीं रहते हैं क्योंकि बिजली, पानी, हीटरों, एयर कंडीशनरों, खाने की सुविधा उन सडक़ों के द्वारा पहुंचने लगी है जो पहाड़ों को काट कर इस धर्म के व्यापार को चमकाने के लिए बनी हैं. यात्रा को आसान करने के लिए अंतिम खंड जहां चढ़ाई बहुत अधिक होती है हैलीकौप्टर चलने लगे जो दुर्गम पहाडिय़ों के बीच में से धामों में भक्तों को पहुंचाते हैं. मई से ले कर अक्तूबर तक हर रोज कई दर्जन उड़ानें भरी जाने लगी है और एक्एिशन कंपनियां भरपूर कमाई कर रही हैं. चूंकि यात्रा कुछ मिनटों की होती है. मंडगा टिकट भी यात्रियों को अखरता नहीं है. 18 अक्तूबर को हुई दुर्घटना में 20 वर्ष की पूर्वा, 30 वर्ष की कृति, 25 वर्ष का उॢव भी थीं जो 2 प्रौढ़ो के साथ थीं, सवाल उठता है कि  युवावस्था में जब एडवेंचर खून में होता है और शरीर में दम होता है तो हैलीकौप्टर लेने की जरूरत क्या थी. जब अंधविश्वास इतना है कि केदारनाथ जाना ही हैं तो क्यों न पैदल पूरा रास्ता तय किया जाए.

पैदल चलना मुश्किल नहीं है, यह राहुल गांधी सिद्ध कर रहे हैं जो शहरी, ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों से होते हुए इन शब्दों के लिखे जाने तक……….किलोमीटर चल चुके हैं एक अच्छा आदर्श पेश कर रहे हैं कि  पैदल चलने से घबराएं नहीं. ट्रैकिंग आज के युवाओं का फेवरिट पैशन है तो 30, 26 और 25 साल की लड़कियों को क्या हुआ कि उन्होंने हैलीकौप्टर लिया.

शायद यह बढ़ते पैसे की वजह से हुआ है जो कुछ हाथों में सिमट रहा है और वे लोग हर तरह की सुविधा बिना हाथ पैर हिला लाना चाह रहे हैं. ट्रैकिंग में धर्म से पर हैलीकौप्टर से जाने से ज्यादा मजा है, ज्यादा रिस्क है, ज्यादा देखने को मिलता है, ज्यादा अच्छा एक्सीपीरियंस होता है. क्या यंग जेनरेशन इस एक्साइटमैंट को आपने मांबाप के पैसों के बल पर गंगा में वहा रही है.

इन 10 टिप्स से वर्किंग कपल का प्यार न होगा कम

लड़कियां भी लड़कों के समान ही उच्च शिक्षा हासिल कर सरकारी और प्राइवेट दोनों ही क्षेत्रों में उच्च पदों पर आसीन हैं. आजकल लड़के भी कामकाजी पत्नी को ही प्राथमिकता देते हैं ताकि एक की व्यस्तता में दूसरे को अकेलेपन का एहसास न हो. लड़कियां भी अपनी उच्च शिक्षा को घर बैठ कर जाया नहीं करना चाहतीं. यदि आज पतिपत्नी दोनों नौकरी न करें तो उन के लिए महंगाई के इस दौर में जीवन को भलीभांति चलाना मुश्किल हो जाएगा.

कामकाजी दंपतियों की जिंदगी एक मशीनी ढर्रे पर चलती है. उन के बीच का प्यार शादी के कुछ समय बाद ही हवा हो जाता है. रीता और रमन ने 2 साल के लंबे अफेयर के बाद काफी मशक्कत कर के अपने घर वालों को मना कर अंतर्जातीय विवाह किया था. 1 साल के बाद जब उन के घर में एक बेटी ने जन्म लिया तो दोनों के बीच प्यार की जगह रोज छोटीछोटी बातों पर होने वाली तकरार ने ले ली और शीघ्र ही उन का रिश्ता टूटने के कगार पर आ गया.

वास्तव में पतिपत्नी के रिश्ते में प्यार एक ऐसी भावना है जिसे जीवंत बनाए रखने के लिए दोनों को बस थोड़ा सा प्रयास करना होता है. इस के विद्यमान रहते यह रिश्ता एक खूबसूरत एहसास की अनुभूति बन जाता है जबकि इस की अनुपस्थिति में यह रिश्ता बोझिल, एकदूसरे को नीचा दिखाने और परस्पर ताना मारने में परिवर्तित हो जाता है. कैसे काम करतेकरते इस रिश्ते में प्यार के एहसास को बरकरार रखा जाए, आइए जानें:

1. परस्पर सहयोग और समझदारी:

ऋचा औैर सौरभ एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर काम करते हैं, परंतु सौरभ ऋचा से 2 घंटे पूर्व घर आ जाता है. वह औफिस से आते समय अपनी 2 साल की बेटी को प्ले स्कूल से ला कर कपड़े बदलवा कर खाना खिला देता है. ऋचा के आने पर दोनों एकसाथ चायनाश्ता करते हैं. ऋचा के रात के खाना बनाते समय सौरभ बेटी के साथ खेलतेखेलते घर भी व्यवस्थित कर देता है. साथसाथ खाना खा कर तीनों सोसाइटी के गार्डन में घूमते हैं.

सौरभ के इस व्यवहार पर ऋचा कहती है, ‘‘सौरभ का इतना सहयोग मुझे पूरा दिन ऊर्जावान बनाए रखता है. मैं पूरा दिन उस के प्यार से सराबोर रहती हूं.’’

आप कहां और कैसे एकदूसरे के मददगार साबित हो सकते हैं, इसे समझें और अपने पार्टनर को यथोचित सहयोग दे कर अपनी जीवनरूपी गाड़ी को प्यार की डोर से बांध कर आगे पढ़ाएं.

2. कार्यों का विभाजन:

घर औैर बाहर के अनेक कार्य होते हैं. ऐसे में एक दूसरे पर काम थोपने के बजाय जो जिस कार्य को करने में दक्ष है वह उसे करे. इस के लिए आपस में कार्यों का विभाजन कर लें. इस में बच्चों को भी शामिल करें. इस से आप का कार्य शीघ्र होगा और समय भी बचेगा. घर के प्रत्येक व्यक्ति को उस की उम्र औैर रुचि के अनुसार कार्य करने को कहें. बचे समय को आप अपने परिवार के साथ ऐंजौय करें.

3. ईगो न आने दें:

पतिपत्नी के मध्य अहं जैसा कोई भाव नहीं होना चाहिए. हालात चाहे कैसे भी हों, आप चाहे कितने भी क्रोध में हों परंतु एकदूसरे के प्रति सम्मान की भावना लुप्त न होने दें. अपने परिवार वालों के सामने भी इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आप की किसी भी बात या व्यवहार से आप के साथी को चोट न पहुंचे. किसी बात पर मतभेद या तकरार हो जाने पर उसे ईगो पौइंट न बना कर सोने से पहले मसले को हल कर लें. सदैव रात गई बात गई का सिद्घांत अपनाएं.

4. औफिस को घर न लाएं:

हमेशा दोनों यह कोशिश करें कि औफिस के काम को घर पर न ले कर आएं ताकि घर पर आप एकदूसरे को पर्याप्त समय दे सकें. औफिस से निकलते समय सारा तनाव या काम का बोझ वहीं छोड़ कर आएं. यदि कभी दोनों में से एक औफिस के किसी कार्य या किसी सहयोगी को ले कर परेशान है तो दूसरा उस की भावनाओं को समझे न कि उसे किसी प्रकार का ताना मारे. कई बार एक पार्टनर पर काम का इतना अधिक दबाव होता है कि उसे मजबूरी में घर पर काम करना पड़ता है ऐसे में दूसरे को पर्याप्त और समुचित सहयोग करें.

5. तकनीक का प्रयोग करें दुरुपयोग नहीं:

आज तकनीक का युग है. आप बिजली, टैलीफोन के बिल भरने जैसे अनेक कार्यों को औनलाइन करें ताकि आप का समय बचे परंतु घर में फेसबुक, व्हाटसऐप जैसी सोशल मीडिया वैबसाइट्स पर अधिक समय देने में तकनीक का दुरुपयोग न करें. इस के लिए आप दोनों मिल कर एक समय निर्धारित करें औैर उस समय लैपटौप और मोबाइल को हाथ न लगाएं.

6. हौलीडे फन:

छुट्टी के दिन एक पर काम का बोझ डाल कर दूसरा आराम करने की जगह दोनों मिल कर गृहकार्य निबटाएं और कहीं साथ घूमने जाएं. भोपाल की मीनू शर्मा कहती हैं, ‘‘ मुझे वीकैंड का बेसब्री से इंतजार रहता है. 2 दिन की छुट्टी में हम दोनों एक दिन घर के सारे कार्य निबटा कर दूसरे दिन घूमने पर चले जाते हैं. संडे इज फन डे फौर अस.’’

7. प्यार जताएं:

शादी से पूर्व या प्रारंभिक दिनों में पतिपत्नी एकदूसरे को गिफ्ट देते हैं, साथी की पसंदनापसंद का ध्यान रखते हैं. फिर शादी के बाद क्यों नहीं? इस के लिए आप अचानक साथी के लिए वह करें जो वह बहुत दिनों से करना चाहती हैं. बच्चों के सामने भी मर्यादित प्यार जताने में संकोच न करें. प्यार जता कर अपने साथी को प्यार की उष्मा से सराबोर रखें. राजीव औैर रीना दोनों बैंक में काम करते हैं. राजीव कहते हैं, ‘‘मेरे जन्मदिन पर रीना ने मुझे मेरी वह मनपसंद घड़ी ला कर दी जिसे मैं 1 साल से लेने की सोच रहा था. मैं तो उस की प्यार जताने की इस अदा पर बिछ गया.’’

8. परिवार के सदस्यों का सम्मान करें:

एकदूसरे के परिवार के सदस्यों को भरपूर प्यार और सम्मान दें. जहां आप एकदूसरे के परिवार के प्रति अनुचित व्यवहार करते हैं, वहीं से आपसी रिश्ते में कड़वाहट शुरू हो जाती है. रेलवे में कार्यरत निशा कहती हैं, ‘‘मेरे पति नमन मेरे परिवार वालों का भी उतना ही ध्यान रखते हैं जितना कि अपने परिवार वालों का. इस से मैं सदैव उन के प्रति प्यार अभिभूत रहती हूं, क्योंकि मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान हूं.’’

9. विश्वास का दामन न छोड़ें:

पतिपत्नी का रिश्ता विश्वास पर टिका होता है. अपने काम के दौरान महिला को पुरुषों से भी बातचीत करनी होती है. कई बार उसे बौस के साथ टूअर पर भी जाना पड़ता है. ऐसी स्थिति पुरुष के समक्ष भी आती है. ऐसे में परस्पर विश्वास की जड़ें इतनी मजबूत रखें कि वहां शक का बीज पनपने की गुंजाइश ही न रहे. यदि कभी कोई बात मन में खटकती भी है तो उसे बातचीत के द्वारा सुलझाएं.

10. आर्थिक पारदर्शिता बनाए रखें:

आपसी खर्चे, वेतन आदि के बारे में साथी के साथ पूर्ण पारदर्शिता बनाए रखें. इस के अतिरिक्त किसी एक की सैलरी कम या ज्यादा होने की स्थिति में कभी ताना न मारें. घरेलू खर्चों औैर बचत आदि के बारे में दोनों मिल कर निर्णय लें.

पापा कूल-कूल: सुगंधा को पिता ने कैसे समझाया

‘‘मु झे ‘सू’ कह कर पुकारो, पापा. कालिज में सभी मुझे इसी नाम से पुकारते  हैं.’’ ‘‘अरे, अच्छाभला नाम रखा है हम ने…सुगंधा…अब इस नाम मेें भला क्या कमी है, बता तो,’’ नरेंद्र ने हैरान हो कर कहा.

‘‘बड़ा ओल्ड फैशन है…ऐसा लगता है जैसे रामायण या महाभारत का कोई करेक्टर है,’’ सुगंधा इतराती हुई बोली.

‘‘बातें सुनो इस की…कुल जमा 19 की है और बातें ऐसी करती है जैसे बहुत बड़ी हो,’’ नरेंद्र बड़बड़ाए, ‘‘अपनी मर्जी के कपड़े पहनती है…कालिज जाने के लिए सजना शुरू करती है तो पूरा घंटा लगाती है.’’

‘‘हमारी एक ही बेटी है,’’ नरेंद्र का बड़बड़ाना सुन कर रेवती चिल्लाई, ‘‘उसे भी ढंग से जीने नहीं देते…’’

‘‘अरे…मैं कौन होता हूं जो उस के काम में टांग अड़ाऊं ,’’ नरेंद्र तल्खी से बोले.

‘‘अड़ाना भी मत…अभी तो दिन हैं उस के फैशन के…कहीं तुम्हारी तरह इसे भी ऐसा ही पति मिल गया तो सारे अरमान चूल्हे में झोंकने पड़ेंगे.’’

‘‘अच्छा, तो आप हमारे साथ रह कर अपने अरमान चूल्हे में झोंक रही हैं…’’

‘‘एक कमी हो तो कहूं…’’

‘‘बात सुगंधा की हो रही है और तुम अपनी…’’

‘‘हूं, पापा…फिर वही सुगंधा…सू कहिए न.’’

‘‘अच्छा सू बेटी…तुम्हें कितने कपड़े चाहिए…अभी 15 दिन पहले ही तुम अपनी मम्मी के साथ शापिंग करने गई थीं… मैचिंग टाप, मैचिंग इयर रिंग्स, हेयर बैंड, ब्रेसलेट…न जाने क्याक्या खरीद कर लाईं.’’

‘‘पापा…मैचिंग हैंडबैग और शूज

भी चाहिए थे…वह तो पैसे ही खत्म हो गए थे.’’

‘‘क्या…’’ नरेंद्र चिल्लाए, ‘‘हमारे जमाने में तुम्हारी बूआ केवल 2 जोड़ी चप्पलों में पूरा साल निकाल देती थीं.’’

‘‘वह आप का जमाना था…यहां तो यह सब न होने पर हम लोग आउटडेटेड फील करते हैं…’’

‘‘और पढ़ाई के लिए कब वक्त निकलता है…जरा बताओ तो.’’

‘‘पढ़ाई…हमारे इंगलिश टीचर

पैपी यानी प्रभात हैं न…उन्होंने हमें अपने नोट्स फोटोस्टेट करने के लिए दे दिए हैं.’’

‘‘तुम्हारे इस पैपी की शिकायत मैं प्रिंसिपल से करूंगा.’’

‘‘पिं्रसी क्या कर लेगा…वह तो खुद पैपी के आगे चूहा बन जाता है…आखिर, पैपी यूनियन का प्रेसी है.’’

‘‘प्रेसी…तुम्हारा मतलब प्रेसीडेंट…’’ नरेंद्र ने उस की बात समझ कर कहा, ‘‘बेटा, बात को समझो…हम मध्यवर्गीय परिवार के  सदस्य हैं…इस तरह फुजूलखर्ची हमें सूट नहीं करती.’’

‘‘बस…शुरू हो गया आप का टेपरिकार्डर,’’ रेवती चिढ़कर बोली, ‘‘हर वक्त मध्यवर्गीय…मध्यवर्गीय. अरे, कभी तो हमें उच्चवर्गीय होने दिया करो.’’

‘‘रेवती…तुम इसे बिगाड़ कर ही मानोगी…देख लेना पछताओगी,’’ नरेंद्र आपे से बाहर हो गए.

‘‘क्यों, क्या किया मैं ने? केवल उसे फैशनेबल कपड़े दिलवाने की तरफदारी मैं ने की…आप तो बिगड़ ही उठे,’’ सुगंधा की मां ने थोड़ी शांति से कहा.

‘‘मैं भी उसे कपड़े खरीदने से कब मना करता हूं…लेकिन जो भी करो सीमा में रह कर करो…जरा इसे कुछ रहनेसहने का सही सलीका समझाओ.’’

‘‘लो, अब कपड़े की बात छोड़ी तो सलीके पर आ गए…अब उस में क्या दिक्कत है, पापा,’’ सुगंधा ठुनकी.

‘‘तुम जब कालिज चली जाती हो तो तुम्हारी मां को घंटा भर लग कर तुम्हारा कमरा ठीक करना पड़ता है.’’

‘‘मैं ने कब कहा कि वह मेरे पीछे मेरा कमरा ठीक करें…मेरा कमरा जितना बेतरतीब रहे वही मुझे अच्छा लगता है…यही आजकल का फैशन है.’’

‘‘और साफसफाई रखना…सलीके से रहना?’’

‘‘ओल्ड फैशन…हर वक्त नीट- क्लीन और टाइडी जमाने के लोग रहते हैं…नए जमाने के यंगस्टर तो बस, कूल दिखना चाहते हैं…अच्छा, मैं चलती हूं…नहीं तो कालिज के लिए देर हो जाएगी.’’

अपने मोबाइल को छल्ले की तरह नचाती हुई वह चलती बनी. रेवती ने भी चिढ़ कर नाश्ते के बरतन उठाए और किचन में चली गई.

‘कहां गलती कर दी मैं ने इस बच्ची को संस्कार देने में,’ नरेंद्र अपनेआप से बोले, ‘नई पीढ़ी हमेशा फैशन के हिसाब से चलना पसंद करती है…इसे तो कुछ समझ ही नहीं है…एक बार मन में ठान ली उसे कर के ही मानती है. ऊपर से रेवती के लाड़प्यार ने इसे कामचोर और आरामतलब अलग बना दिया है. मैं रेवती को समझाता हूं कि पढ़ाई के साथ घर के कामकाज व उठनेबैठने, पहनने का सलीका तो इसे सिखाओ वरना इस की शादी में बड़ी मुश्किल होगी, तब वह तमक कर कहती है कि मेरी इतनी रूपवती बेटी को तो कोई भी पसंद कर लेगा…’

‘‘क्या बड़बड़ा रहे हैं अकेले में आप?’’ रेवती नरेंद्र से बोली.

‘‘तुम्हारी लाड़ली के बारे में सोच रहा हूं,’’ नरेंद्र ने चिढ़ कर कहा.

‘‘ओहो, अब आप शांत हो जाओ… कितना खून जलाते हो अपना…’’

‘‘सब तुम्हारे ही कारण जल रहा है…तुम उसे दिशाहीन कर रही हो.’’

‘‘आप ऐसा क्यों समझते हो जी, कि मैं उसे दिशाहीन कर रही हूं,’’ रेवती रहस्यमय ढंग से कहने लगी, ‘‘मुझे तो लगता है कि आप ने अपनी सुविधा के लिए उस से बहुत सी आशाएं लगा रखी हैं.’’

‘‘अब इकलौती संतान है तो उस से आशा करना क्या गलत है…बोलो, गलत है.’’

‘‘देखो,’’ रेवती समझाने के ढंग से बोली, ‘‘पुरानी पीढ़ी अकसर परंपरागत मान्यताओं, रूढि़यों और अपने तंग नजरिए को युवा पीढ़ी पर थोपना चाहती है जिसे युवा मन सहसा स्वीकार करने में संकोच करता है.’’

‘‘ठीक है, मेरा तंग नजरिया है… तुम लोगों का आधुनिक, तो आधुनिक ही सही,’’ नरेंद्र के बोलने में उन का निश्चय झलकने लगा था, ‘‘जब सारे समाज में ही परिवर्तन हो रहा है तो मेरा इस तरह से पिछड़ापन दिखाना तुम दोनों को गलत ही महसूस होगा.’’

‘‘ये हुई न समझदारी वाली बात,’’ रेवती ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आप की और सू की लड़ाइयों से आजकल घर भी महाभारत बना हुआ है…आप उसे और उस की पीढ़ी को दोष देते हो…वह आप को और आप की पुरानी पीढ़ी को दोष देती है…’’

‘‘तुम ही बताओ, रेवती,’’ नरेंद्र ने अब हथियार डाल दिए, ‘‘क्या सुगंधा और उस की पीढ़ी के बच्चे दिशाहीन नहीं हैं?’’

रेवती चिढ़ कर बोली, ‘‘आप को  तो एक ही रट लग गई है…अरे भई, दिशाहीनता के लिए युवा वर्ग दोषी नहीं है…दोषी समाज, शिक्षा, समय और राजनीति है.’’

नरेंद्र फिर चुप हो गए. लेकिन गहन चिंता में खो गए. ‘जैसे भी हो आज इस समस्या का हल ढूंढ़ना ही होगा,’ वह बड़बड़ाए, ‘सच ही है, हमारा भी समय था. मुझे भी पिताजी बहुत टोकते थे, ढंग के कपड़े पहनो…करीने से बाल बनाओ…समय पर खाना खाओ…रेडियो ज्यादा मत सुनो…बड़ों से अदब से बोलो…पैसा इतना खर्च मत करो. सही भाषा बोलो…ओह, कितनी वर्जनाएं होती थीं उन की, किंतु मैं और छुटकी उन की बातें मान जाते थे…यहां तो सुगंधा हमारी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं.

‘उस से यही सुनने को मिलता है कि ओहो पापा, आप कुछ नहीं जानते. लेकिन मैं भी उसे क्यों दोष दे रहा हूं… जरूर मेरे समझाने का ढंग कुछ अलग है तभी उसे समझ नहीं आ रहा…उस की फुजूलखर्ची और फैशनपरस्ती से ध्यान हटाने के लिए मुझे कुछ न कुछ करना ही होगा.’

नरेंद्र अब उठ कर कमरे में चहलकदमी करने लगे. रेवती ने उन्हें कमरे में टहलते देखा तो चुपचाप दूसरे कमरे में चली गईं. अचानक नरेंद्र की आवाज आई, ‘‘रेवती, दरवाजा बंद कर लो. मैं अभी आता हूं.’’

रेवती दौड़ कर बाहर आई. दरवाजे से झांक कर देखा तो नरेंद्र कालोनी के छोर पर लंबेलंबे डग भरते नजर आए… उस ने गहरी सांस भर कर दरवाजा बंद किया.

अब उन्हें दुख तो होना ही है जब सुगंधा ने उन के द्वारा रखे अच्छेखासे नाम को बदल कर सू रख दिया.

वह भी घर में शांति चाहती है इसलिए विभिन्न तर्क दे दे कर दोनों को

चुप कराती रहती है…यह सही है

कि बेटी के लिए उस के मन में बहुत ज्यादा ममता है…वह नरेंद्र की

कही बात पर कांप उठती है, ‘रेवती, तुम्हारी अंधी ममता सुगंधा को कहीं बिगाड़ न दे.’

‘कहीं सचमुच सुगंधा दिशाहीन हो गई तो वह क्या करेगी…’ रेवती स्वयं से सवाल कर उठी, ‘सुगंधा जिस उम्र में पहुंची है वहां तो हमारा प्यार और धैर्य ही उसे काबू में रख सकता है. सुगंधा को उस की गलती का एहसास बुद्धिमानी से करवाना होगा…जिस से वह सोचने पर मजबूर हो कि वह गलत है, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए.’ सुगंधा का बिखरा कमरा समेटते हुए रेवती सोचती जा रही थी.

शाम घिर आई थी…सुबह 11 बजे के निकले नरेंद्र अभी तक नहीं लौटे थे… अचानक बजी कालबेल ने उस का ध्यान खींचा. दरवाजा खोला तो नरेंद्र थे…हाथों में 4 बडे़बडे़ पैकेट लिए.

‘‘सुगंधा आ गई क्या?’’ नरेंद्र ने बेसब्री से पूछा.

‘‘नहीं…’’

‘‘आप कहां रह गए थे?’’

उस के प्रश्न को अनसुना कर के नरेंद्र बोले, ‘‘रेवती, जरा पानी ले आओ… बड़ी प्यास लगी है.’’

गिलास में पानी भरते समय उस के मन में कई प्रश्न घुमड़ रहे थे.

‘‘क्या है इन पैकेटों में?’’ गिलास पकड़ाते हुए उस ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तुम खुद देख लो,’’ नरेंद्र ने संक्षिप्त उत्तर दिया, ‘‘और सुनो, मेरा सामान दे दो…मैं जरा उन्हें ट्राई कर लूं… फिर तुम भी अपना सामान ट्राई कर लेना.’’

रेवती की हंसी कमरे में गूंज गई, ‘‘ये क्या, अपने लिए आसमानी रंग की पीले फूलों वाली शर्ट लाए हो क्या?’’ वह हंसती हुई बोली.

नरेंद्र ने उस के हाथ से शर्र्ट खींच कर कहा, ‘‘हां भई, हमारी लाड़ली फैशनपरस्त है. अब तो उस के पापा भी फैशनपरस्त बनेंगे तभी काम चलेगा.’’

‘‘और यह मजेंटा कलर का बरमूडा…यह भी आप का है?’’ रेवती के पेट में हंसतेहंसते बल पड़ रहे थे.

‘‘यह हंसी तुम संभाल कर रखो… अभी कहीं और न हंसना पडे़…ये देखो… तुम अपनी डे्रस देखो.’’

‘‘ये…ये क्या?’’ रेवती चौंक कर बोली, ‘‘आप का दिमाग खराब तो नहीं हो गया…खुद तो चटकीले ऊलजलूल कपडे़ ले आए, अब मुझे ये मिडी पहनाओगे….’’

‘‘क्यों भई, फैशनपरस्त बेटी की फैशनपरस्ती को तो खूब सराहती हो. अब मैं भी तो तुम्हें सराह लूं. चलो, जरा ये मिडी पहन कर दिखाओ.’’

‘‘आप का दिमाग तो सही है…इस उम्र में मैं मिडी पहनूंगी…मुझे नहीं पहननी,’’ रेवती भुनभुनाई.

‘‘चलो, जैसी तुम्हारी मर्जी. तुम्हें नहीं पहननी, न पहनो. मैं तो पहन रहा हूं,’’ कहते हुए नरेंद्र कपड़ों को हाथ में लिए बाथरूम में घुस गए.

‘‘अब समझ आया,’’ रेवती बोली, ‘‘देखें, आज पितापुत्री का युद्ध कहां तक खिंचता है…’’ वह मुसकराई किंतु साथ ही उस के दिमाग में विचार आया…उस ने फटाफट सामान समेटा और किचन में घुस गई.

‘‘ममा…ममा…’’ सुगंधा के चीखने की आवाज उसे सुनाई दी.

‘‘आ गई मेरी लाडली…’’ वह मुसकराती हुई कमरे में आई. सुगंधा की पीठ उस की ओर थी, ‘‘ममा, मेरा पिंक टाप नहीं दिखाई दे रहा. आप ने देखा… और आज आप ने मेरा रूम भी ठीक नहीं किया,’’ कहतेकहते सुगंधा मुड़ी तो हैरानी से उस का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘ममा, आप मिडी में…वह भी स्लीवलेस मिडी में.’’

क्यों, ‘‘क्या हुआ…क्या तुम ही फैशन कर सकती हो…हम नहीं,’’ नरेंद्र ने पीछे से आ कर कहा.

‘‘ऐं…पापा, आप बरमूडा में…क्या चक्कर है. पापा, आप तो ये ड्रेस चेंज कीजिए. कैसे अजीब लग रहे हैं…और मम्मी आप भी…कोई देखेगा तो क्या कहेगा.’’

‘‘क्यों, क्या कहेगा…यही कि हम 21वीं सदी के पेरेंट्स हैं…तुम्हें इन ड्रेसेस में क्या खराबी नजर आ रही है?’’

‘‘इन ड्रेसेस में कोई खराबी नहीं है,’’ सुगंधा ने सिर झटका, ‘‘कैसे दिख रहे हैं इन ड्रेसेस को पहन कर आप लोग.’’

‘‘मुझे पापा मत कहो, डैड कहो,’’ नरेंद्र बोले.

‘‘ऐं, डैड…’’ सुगंधा चौंकी, ‘‘क्या हो गया है आप को…ममा, पानी ले कर आओ…पापा की तबीयत वाकई खराब है.’’

तब तक रेवती कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर पहुंच गई…सुगंधा ने कोल्डडिं्रक देख कर कहा, ‘‘हां, ममा, ये मुझे दो…आप पापा के लिए पानी ले कर आओ.’’

‘‘अरी हट….ये कोल्डडिं्रक तेरे पापा के लिए ही है…कह रहे हैं पानीवानी सब बंद, ओल्ड फैशन है…पीऊंगा तो केवल कोल्डडिं्रक या हार्डडिं्रक…’’

‘‘ऐं… ममा,’’ सुगंधा रोंआसी हो गई, ‘‘यह पापा को क्या हो गया है…’’

‘‘पापा नहीं, डैड…’’ नरेंद्र ने फिर बीच में टोका.

‘‘अरे, छोड़ अपने पापा को,’’  रेवती बोली, ‘‘बोल, आज डिनर में क्या बनाऊं? पिज्जा, बर्गर, सैंडविच, मैगी…या…’’

‘‘ममा, सचमुच आज आप यह सब बनाओगी…’’ सुगंधा खुश हो कर बोली.

‘‘आज ही नहीं, हमेशा ही बनाऊंगी,’’ रेवती ने पलंग पर बैठते हुए कहा.

‘‘क्या मतलब ?’’ सुगंधा फिर चौंकी.

‘‘मतलब यह कि आज से मैं ने  और तेरे पापा ने निर्णय लिया है कि जो तुझे पसंद है वही इस घर में होगा…तुझे अपने पापा से शिकायत रहती है न कि वे तुझे टोकते रहते हैं.’’

‘‘ममा, आज क्या हो गया है आप लोगों को.’’

‘‘हमें कुछ नहीं हुआ है, बेटा,’’ नरेंद्र ने प्यार से कहा, ‘‘हम तो अपनी बेटी के रंग में रंगना चाहते हैं ताकि घर में शांति बनी रहे.’’

‘‘हां, हां…ये बरमूडा और मिडी पहन कर आप लोग घर में शांति जरूर करवा दोगे लेकिन बाहर अशांति छा जाएगी…लोग क्या कहेंगे कि…’’

‘‘यही तो मैं कहता हूं…आज तुम्हें भी समझ आ गई, सू…’’

‘‘हां, आप लोगों को देख कर मुझे यह बात समझ आ रही है कि फैशन उतना ही अच्छा लगता है जो दूसरों की निगाह में न खटके.’’

‘‘मेरी समझदार बच्ची,’’ रेवती भावविह्वल हो कर बोली.

‘‘बेटा…क्या हमारे पास एकमात्र यही रास्ता रह गया है कि बदलते हुए परिवेश से समझौता कर लें या पुराणपंथी दकियानूसी लकीर के फकीर कहलाएं…’’

सुगंधा अवाक् अपने पिता को देख रही थी.

नरेंद्र कह रहे थे, ‘‘तुम लोगों के पास जोश तो है बेटा लेकिन होश नहीं…तुम्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि तुम्हारी पीढ़ी भी कल पुरानी हो जाएगी…तुम्हें भी नई पीढ़ी से ऐसा ही व्यवहार मिलेगा तब तुम्हारी बात कोई सुनने को तैयार नहीं होगा…’’

‘‘ठीक कहते हैं आप…युवा वर्ग और बुजुर्ग आपस में एकदूसरे के पूरक हैं…केवल दृष्टिकोण और कार्यों में दोनों  एकदूसरे से बिलकुल विपरीत हैं,’’  सुगंधा ने कहते हुए सिर हिलाया.

‘‘और इन दोनों में जब आपसी समझदारी हो तो दोनों वर्गों के कार्यों और परिणामों में सफलता मिलनी ही निश्चित  है.’’

‘‘आज से मेरा उलटीसीधी बातों पर जिद करना बंद. मुझे पता होता

कि आप मुझे इतना प्यार करते हैं तो मैं आप को कभी दुखी नहीं करती, पापा.’’

‘‘पापा नहीं, डैड…’’ नरेंद्र की इस बात पर तीनों खुल कर हंस पडे़ और हंसतेहंसते रेवती की आंखें बरस पड़ी यह सोच कर कि उस के समझदार पति ने उसे और उस की बेटी को दिशाहीन होने से बचा लिया.

और मान बह गया: क्या दोबारा जुड़ पाया यशोधरा और गौतम का रिश्ता

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