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पापा कूल-कूल: सुगंधा को पिता ने कैसे समझाया

‘‘मु झे ‘सू’ कह कर पुकारो, पापा. कालिज में सभी मुझे इसी नाम से पुकारते  हैं.’’ ‘‘अरे, अच्छाभला नाम रखा है हम ने…सुगंधा…अब इस नाम मेें भला क्या कमी है, बता तो,’’ नरेंद्र ने हैरान हो कर कहा.

‘‘बड़ा ओल्ड फैशन है…ऐसा लगता है जैसे रामायण या महाभारत का कोई करेक्टर है,’’ सुगंधा इतराती हुई बोली.

‘‘बातें सुनो इस की…कुल जमा 19 की है और बातें ऐसी करती है जैसे बहुत बड़ी हो,’’ नरेंद्र बड़बड़ाए, ‘‘अपनी मर्जी के कपड़े पहनती है…कालिज जाने के लिए सजना शुरू करती है तो पूरा घंटा लगाती है.’’

‘‘हमारी एक ही बेटी है,’’ नरेंद्र का बड़बड़ाना सुन कर रेवती चिल्लाई, ‘‘उसे भी ढंग से जीने नहीं देते…’’

‘‘अरे…मैं कौन होता हूं जो उस के काम में टांग अड़ाऊं ,’’ नरेंद्र तल्खी से बोले.

‘‘अड़ाना भी मत…अभी तो दिन हैं उस के फैशन के…कहीं तुम्हारी तरह इसे भी ऐसा ही पति मिल गया तो सारे अरमान चूल्हे में झोंकने पड़ेंगे.’’

‘‘अच्छा, तो आप हमारे साथ रह कर अपने अरमान चूल्हे में झोंक रही हैं…’’

‘‘एक कमी हो तो कहूं…’’

‘‘बात सुगंधा की हो रही है और तुम अपनी…’’

‘‘हूं, पापा…फिर वही सुगंधा…सू कहिए न.’’

‘‘अच्छा सू बेटी…तुम्हें कितने कपड़े चाहिए…अभी 15 दिन पहले ही तुम अपनी मम्मी के साथ शापिंग करने गई थीं… मैचिंग टाप, मैचिंग इयर रिंग्स, हेयर बैंड, ब्रेसलेट…न जाने क्याक्या खरीद कर लाईं.’’

‘‘पापा…मैचिंग हैंडबैग और शूज

भी चाहिए थे…वह तो पैसे ही खत्म हो गए थे.’’

‘‘क्या…’’ नरेंद्र चिल्लाए, ‘‘हमारे जमाने में तुम्हारी बूआ केवल 2 जोड़ी चप्पलों में पूरा साल निकाल देती थीं.’’

‘‘वह आप का जमाना था…यहां तो यह सब न होने पर हम लोग आउटडेटेड फील करते हैं…’’

‘‘और पढ़ाई के लिए कब वक्त निकलता है…जरा बताओ तो.’’

‘‘पढ़ाई…हमारे इंगलिश टीचर

पैपी यानी प्रभात हैं न…उन्होंने हमें अपने नोट्स फोटोस्टेट करने के लिए दे दिए हैं.’’

‘‘तुम्हारे इस पैपी की शिकायत मैं प्रिंसिपल से करूंगा.’’

‘‘पिं्रसी क्या कर लेगा…वह तो खुद पैपी के आगे चूहा बन जाता है…आखिर, पैपी यूनियन का प्रेसी है.’’

‘‘प्रेसी…तुम्हारा मतलब प्रेसीडेंट…’’ नरेंद्र ने उस की बात समझ कर कहा, ‘‘बेटा, बात को समझो…हम मध्यवर्गीय परिवार के  सदस्य हैं…इस तरह फुजूलखर्ची हमें सूट नहीं करती.’’

‘‘बस…शुरू हो गया आप का टेपरिकार्डर,’’ रेवती चिढ़कर बोली, ‘‘हर वक्त मध्यवर्गीय…मध्यवर्गीय. अरे, कभी तो हमें उच्चवर्गीय होने दिया करो.’’

‘‘रेवती…तुम इसे बिगाड़ कर ही मानोगी…देख लेना पछताओगी,’’ नरेंद्र आपे से बाहर हो गए.

‘‘क्यों, क्या किया मैं ने? केवल उसे फैशनेबल कपड़े दिलवाने की तरफदारी मैं ने की…आप तो बिगड़ ही उठे,’’ सुगंधा की मां ने थोड़ी शांति से कहा.

‘‘मैं भी उसे कपड़े खरीदने से कब मना करता हूं…लेकिन जो भी करो सीमा में रह कर करो…जरा इसे कुछ रहनेसहने का सही सलीका समझाओ.’’

‘‘लो, अब कपड़े की बात छोड़ी तो सलीके पर आ गए…अब उस में क्या दिक्कत है, पापा,’’ सुगंधा ठुनकी.

‘‘तुम जब कालिज चली जाती हो तो तुम्हारी मां को घंटा भर लग कर तुम्हारा कमरा ठीक करना पड़ता है.’’

‘‘मैं ने कब कहा कि वह मेरे पीछे मेरा कमरा ठीक करें…मेरा कमरा जितना बेतरतीब रहे वही मुझे अच्छा लगता है…यही आजकल का फैशन है.’’

‘‘और साफसफाई रखना…सलीके से रहना?’’

‘‘ओल्ड फैशन…हर वक्त नीट- क्लीन और टाइडी जमाने के लोग रहते हैं…नए जमाने के यंगस्टर तो बस, कूल दिखना चाहते हैं…अच्छा, मैं चलती हूं…नहीं तो कालिज के लिए देर हो जाएगी.’’

अपने मोबाइल को छल्ले की तरह नचाती हुई वह चलती बनी. रेवती ने भी चिढ़ कर नाश्ते के बरतन उठाए और किचन में चली गई.

‘कहां गलती कर दी मैं ने इस बच्ची को संस्कार देने में,’ नरेंद्र अपनेआप से बोले, ‘नई पीढ़ी हमेशा फैशन के हिसाब से चलना पसंद करती है…इसे तो कुछ समझ ही नहीं है…एक बार मन में ठान ली उसे कर के ही मानती है. ऊपर से रेवती के लाड़प्यार ने इसे कामचोर और आरामतलब अलग बना दिया है. मैं रेवती को समझाता हूं कि पढ़ाई के साथ घर के कामकाज व उठनेबैठने, पहनने का सलीका तो इसे सिखाओ वरना इस की शादी में बड़ी मुश्किल होगी, तब वह तमक कर कहती है कि मेरी इतनी रूपवती बेटी को तो कोई भी पसंद कर लेगा…’

‘‘क्या बड़बड़ा रहे हैं अकेले में आप?’’ रेवती नरेंद्र से बोली.

‘‘तुम्हारी लाड़ली के बारे में सोच रहा हूं,’’ नरेंद्र ने चिढ़ कर कहा.

‘‘ओहो, अब आप शांत हो जाओ… कितना खून जलाते हो अपना…’’

‘‘सब तुम्हारे ही कारण जल रहा है…तुम उसे दिशाहीन कर रही हो.’’

‘‘आप ऐसा क्यों समझते हो जी, कि मैं उसे दिशाहीन कर रही हूं,’’ रेवती रहस्यमय ढंग से कहने लगी, ‘‘मुझे तो लगता है कि आप ने अपनी सुविधा के लिए उस से बहुत सी आशाएं लगा रखी हैं.’’

‘‘अब इकलौती संतान है तो उस से आशा करना क्या गलत है…बोलो, गलत है.’’

‘‘देखो,’’ रेवती समझाने के ढंग से बोली, ‘‘पुरानी पीढ़ी अकसर परंपरागत मान्यताओं, रूढि़यों और अपने तंग नजरिए को युवा पीढ़ी पर थोपना चाहती है जिसे युवा मन सहसा स्वीकार करने में संकोच करता है.’’

‘‘ठीक है, मेरा तंग नजरिया है… तुम लोगों का आधुनिक, तो आधुनिक ही सही,’’ नरेंद्र के बोलने में उन का निश्चय झलकने लगा था, ‘‘जब सारे समाज में ही परिवर्तन हो रहा है तो मेरा इस तरह से पिछड़ापन दिखाना तुम दोनों को गलत ही महसूस होगा.’’

‘‘ये हुई न समझदारी वाली बात,’’ रेवती ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आप की और सू की लड़ाइयों से आजकल घर भी महाभारत बना हुआ है…आप उसे और उस की पीढ़ी को दोष देते हो…वह आप को और आप की पुरानी पीढ़ी को दोष देती है…’’

‘‘तुम ही बताओ, रेवती,’’ नरेंद्र ने अब हथियार डाल दिए, ‘‘क्या सुगंधा और उस की पीढ़ी के बच्चे दिशाहीन नहीं हैं?’’

रेवती चिढ़ कर बोली, ‘‘आप को  तो एक ही रट लग गई है…अरे भई, दिशाहीनता के लिए युवा वर्ग दोषी नहीं है…दोषी समाज, शिक्षा, समय और राजनीति है.’’

नरेंद्र फिर चुप हो गए. लेकिन गहन चिंता में खो गए. ‘जैसे भी हो आज इस समस्या का हल ढूंढ़ना ही होगा,’ वह बड़बड़ाए, ‘सच ही है, हमारा भी समय था. मुझे भी पिताजी बहुत टोकते थे, ढंग के कपड़े पहनो…करीने से बाल बनाओ…समय पर खाना खाओ…रेडियो ज्यादा मत सुनो…बड़ों से अदब से बोलो…पैसा इतना खर्च मत करो. सही भाषा बोलो…ओह, कितनी वर्जनाएं होती थीं उन की, किंतु मैं और छुटकी उन की बातें मान जाते थे…यहां तो सुगंधा हमारी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं.

‘उस से यही सुनने को मिलता है कि ओहो पापा, आप कुछ नहीं जानते. लेकिन मैं भी उसे क्यों दोष दे रहा हूं… जरूर मेरे समझाने का ढंग कुछ अलग है तभी उसे समझ नहीं आ रहा…उस की फुजूलखर्ची और फैशनपरस्ती से ध्यान हटाने के लिए मुझे कुछ न कुछ करना ही होगा.’

नरेंद्र अब उठ कर कमरे में चहलकदमी करने लगे. रेवती ने उन्हें कमरे में टहलते देखा तो चुपचाप दूसरे कमरे में चली गईं. अचानक नरेंद्र की आवाज आई, ‘‘रेवती, दरवाजा बंद कर लो. मैं अभी आता हूं.’’

रेवती दौड़ कर बाहर आई. दरवाजे से झांक कर देखा तो नरेंद्र कालोनी के छोर पर लंबेलंबे डग भरते नजर आए… उस ने गहरी सांस भर कर दरवाजा बंद किया.

अब उन्हें दुख तो होना ही है जब सुगंधा ने उन के द्वारा रखे अच्छेखासे नाम को बदल कर सू रख दिया.

वह भी घर में शांति चाहती है इसलिए विभिन्न तर्क दे दे कर दोनों को

चुप कराती रहती है…यह सही है

कि बेटी के लिए उस के मन में बहुत ज्यादा ममता है…वह नरेंद्र की

कही बात पर कांप उठती है, ‘रेवती, तुम्हारी अंधी ममता सुगंधा को कहीं बिगाड़ न दे.’

‘कहीं सचमुच सुगंधा दिशाहीन हो गई तो वह क्या करेगी…’ रेवती स्वयं से सवाल कर उठी, ‘सुगंधा जिस उम्र में पहुंची है वहां तो हमारा प्यार और धैर्य ही उसे काबू में रख सकता है. सुगंधा को उस की गलती का एहसास बुद्धिमानी से करवाना होगा…जिस से वह सोचने पर मजबूर हो कि वह गलत है, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए.’ सुगंधा का बिखरा कमरा समेटते हुए रेवती सोचती जा रही थी.

शाम घिर आई थी…सुबह 11 बजे के निकले नरेंद्र अभी तक नहीं लौटे थे… अचानक बजी कालबेल ने उस का ध्यान खींचा. दरवाजा खोला तो नरेंद्र थे…हाथों में 4 बडे़बडे़ पैकेट लिए.

‘‘सुगंधा आ गई क्या?’’ नरेंद्र ने बेसब्री से पूछा.

‘‘नहीं…’’

‘‘आप कहां रह गए थे?’’

उस के प्रश्न को अनसुना कर के नरेंद्र बोले, ‘‘रेवती, जरा पानी ले आओ… बड़ी प्यास लगी है.’’

गिलास में पानी भरते समय उस के मन में कई प्रश्न घुमड़ रहे थे.

‘‘क्या है इन पैकेटों में?’’ गिलास पकड़ाते हुए उस ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तुम खुद देख लो,’’ नरेंद्र ने संक्षिप्त उत्तर दिया, ‘‘और सुनो, मेरा सामान दे दो…मैं जरा उन्हें ट्राई कर लूं… फिर तुम भी अपना सामान ट्राई कर लेना.’’

रेवती की हंसी कमरे में गूंज गई, ‘‘ये क्या, अपने लिए आसमानी रंग की पीले फूलों वाली शर्ट लाए हो क्या?’’ वह हंसती हुई बोली.

नरेंद्र ने उस के हाथ से शर्र्ट खींच कर कहा, ‘‘हां भई, हमारी लाड़ली फैशनपरस्त है. अब तो उस के पापा भी फैशनपरस्त बनेंगे तभी काम चलेगा.’’

‘‘और यह मजेंटा कलर का बरमूडा…यह भी आप का है?’’ रेवती के पेट में हंसतेहंसते बल पड़ रहे थे.

‘‘यह हंसी तुम संभाल कर रखो… अभी कहीं और न हंसना पडे़…ये देखो… तुम अपनी डे्रस देखो.’’

‘‘ये…ये क्या?’’ रेवती चौंक कर बोली, ‘‘आप का दिमाग खराब तो नहीं हो गया…खुद तो चटकीले ऊलजलूल कपडे़ ले आए, अब मुझे ये मिडी पहनाओगे….’’

‘‘क्यों भई, फैशनपरस्त बेटी की फैशनपरस्ती को तो खूब सराहती हो. अब मैं भी तो तुम्हें सराह लूं. चलो, जरा ये मिडी पहन कर दिखाओ.’’

‘‘आप का दिमाग तो सही है…इस उम्र में मैं मिडी पहनूंगी…मुझे नहीं पहननी,’’ रेवती भुनभुनाई.

‘‘चलो, जैसी तुम्हारी मर्जी. तुम्हें नहीं पहननी, न पहनो. मैं तो पहन रहा हूं,’’ कहते हुए नरेंद्र कपड़ों को हाथ में लिए बाथरूम में घुस गए.

‘‘अब समझ आया,’’ रेवती बोली, ‘‘देखें, आज पितापुत्री का युद्ध कहां तक खिंचता है…’’ वह मुसकराई किंतु साथ ही उस के दिमाग में विचार आया…उस ने फटाफट सामान समेटा और किचन में घुस गई.

‘‘ममा…ममा…’’ सुगंधा के चीखने की आवाज उसे सुनाई दी.

‘‘आ गई मेरी लाडली…’’ वह मुसकराती हुई कमरे में आई. सुगंधा की पीठ उस की ओर थी, ‘‘ममा, मेरा पिंक टाप नहीं दिखाई दे रहा. आप ने देखा… और आज आप ने मेरा रूम भी ठीक नहीं किया,’’ कहतेकहते सुगंधा मुड़ी तो हैरानी से उस का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘ममा, आप मिडी में…वह भी स्लीवलेस मिडी में.’’

क्यों, ‘‘क्या हुआ…क्या तुम ही फैशन कर सकती हो…हम नहीं,’’ नरेंद्र ने पीछे से आ कर कहा.

‘‘ऐं…पापा, आप बरमूडा में…क्या चक्कर है. पापा, आप तो ये ड्रेस चेंज कीजिए. कैसे अजीब लग रहे हैं…और मम्मी आप भी…कोई देखेगा तो क्या कहेगा.’’

‘‘क्यों, क्या कहेगा…यही कि हम 21वीं सदी के पेरेंट्स हैं…तुम्हें इन ड्रेसेस में क्या खराबी नजर आ रही है?’’

‘‘इन ड्रेसेस में कोई खराबी नहीं है,’’ सुगंधा ने सिर झटका, ‘‘कैसे दिख रहे हैं इन ड्रेसेस को पहन कर आप लोग.’’

‘‘मुझे पापा मत कहो, डैड कहो,’’ नरेंद्र बोले.

‘‘ऐं, डैड…’’ सुगंधा चौंकी, ‘‘क्या हो गया है आप को…ममा, पानी ले कर आओ…पापा की तबीयत वाकई खराब है.’’

तब तक रेवती कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर पहुंच गई…सुगंधा ने कोल्डडिं्रक देख कर कहा, ‘‘हां, ममा, ये मुझे दो…आप पापा के लिए पानी ले कर आओ.’’

‘‘अरी हट….ये कोल्डडिं्रक तेरे पापा के लिए ही है…कह रहे हैं पानीवानी सब बंद, ओल्ड फैशन है…पीऊंगा तो केवल कोल्डडिं्रक या हार्डडिं्रक…’’

‘‘ऐं… ममा,’’ सुगंधा रोंआसी हो गई, ‘‘यह पापा को क्या हो गया है…’’

‘‘पापा नहीं, डैड…’’ नरेंद्र ने फिर बीच में टोका.

‘‘अरे, छोड़ अपने पापा को,’’  रेवती बोली, ‘‘बोल, आज डिनर में क्या बनाऊं? पिज्जा, बर्गर, सैंडविच, मैगी…या…’’

‘‘ममा, सचमुच आज आप यह सब बनाओगी…’’ सुगंधा खुश हो कर बोली.

‘‘आज ही नहीं, हमेशा ही बनाऊंगी,’’ रेवती ने पलंग पर बैठते हुए कहा.

‘‘क्या मतलब ?’’ सुगंधा फिर चौंकी.

‘‘मतलब यह कि आज से मैं ने  और तेरे पापा ने निर्णय लिया है कि जो तुझे पसंद है वही इस घर में होगा…तुझे अपने पापा से शिकायत रहती है न कि वे तुझे टोकते रहते हैं.’’

‘‘ममा, आज क्या हो गया है आप लोगों को.’’

‘‘हमें कुछ नहीं हुआ है, बेटा,’’ नरेंद्र ने प्यार से कहा, ‘‘हम तो अपनी बेटी के रंग में रंगना चाहते हैं ताकि घर में शांति बनी रहे.’’

‘‘हां, हां…ये बरमूडा और मिडी पहन कर आप लोग घर में शांति जरूर करवा दोगे लेकिन बाहर अशांति छा जाएगी…लोग क्या कहेंगे कि…’’

‘‘यही तो मैं कहता हूं…आज तुम्हें भी समझ आ गई, सू…’’

‘‘हां, आप लोगों को देख कर मुझे यह बात समझ आ रही है कि फैशन उतना ही अच्छा लगता है जो दूसरों की निगाह में न खटके.’’

‘‘मेरी समझदार बच्ची,’’ रेवती भावविह्वल हो कर बोली.

‘‘बेटा…क्या हमारे पास एकमात्र यही रास्ता रह गया है कि बदलते हुए परिवेश से समझौता कर लें या पुराणपंथी दकियानूसी लकीर के फकीर कहलाएं…’’

सुगंधा अवाक् अपने पिता को देख रही थी.

नरेंद्र कह रहे थे, ‘‘तुम लोगों के पास जोश तो है बेटा लेकिन होश नहीं…तुम्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि तुम्हारी पीढ़ी भी कल पुरानी हो जाएगी…तुम्हें भी नई पीढ़ी से ऐसा ही व्यवहार मिलेगा तब तुम्हारी बात कोई सुनने को तैयार नहीं होगा…’’

‘‘ठीक कहते हैं आप…युवा वर्ग और बुजुर्ग आपस में एकदूसरे के पूरक हैं…केवल दृष्टिकोण और कार्यों में दोनों  एकदूसरे से बिलकुल विपरीत हैं,’’  सुगंधा ने कहते हुए सिर हिलाया.

‘‘और इन दोनों में जब आपसी समझदारी हो तो दोनों वर्गों के कार्यों और परिणामों में सफलता मिलनी ही निश्चित  है.’’

‘‘आज से मेरा उलटीसीधी बातों पर जिद करना बंद. मुझे पता होता

कि आप मुझे इतना प्यार करते हैं तो मैं आप को कभी दुखी नहीं करती, पापा.’’

‘‘पापा नहीं, डैड…’’ नरेंद्र की इस बात पर तीनों खुल कर हंस पडे़ और हंसतेहंसते रेवती की आंखें बरस पड़ी यह सोच कर कि उस के समझदार पति ने उसे और उस की बेटी को दिशाहीन होने से बचा लिया.

और मान बह गया: क्या दोबारा जुड़ पाया यशोधरा और गौतम का रिश्ता

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एक्सीडेंट के कई साल बाद कूल्हे में लगातार दर्द रहने लगा है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी माताजी की उम्र 52 साल है. उन का युवावस्था में ऐक्सीडैंट हो गया था, जिस से उन के कूल्हे के सौकेट में फ्रैक्चर हो गया था. उस समय औपरेशन नहीं किया गया था. इतने सालों तक उन्हें कोई समस्या नहीं थी, लेकिन अब उन्हें कूल्हे में लगातार दर्द रहने लगा है और चलनेफिरने में भी परेशानी हो रही है. बताएं क्या करें?

जवाब-

लगता है आप की माताजी कूल्हे के जोड़ के पोस्ट ट्रौमैटिक आर्थ्राइटिस की शिकार हैं. उन के कूल्हे का एक्सरे कराएं. बेहतर डायग्नोसिस के लिए एमआरआई और सीटी स्कैन भी कराएं. अगर समस्या गंभीर है तो हिप रिप्लेसमैंट सब से बेहतर समाधान है.

हिप रिप्लेसमैंट सर्जरी में हिप जौइंट के क्षतिग्रस्त भाग को सर्जरी के द्वारा निकाल कर धातु या बहुत ही कड़े प्लास्टिक के इंप्लांट से बदल दिया जाता है. इस सर्जरी का परिणाम भी बहुत बेहतर आता है और औपरेशन के बाद ठीक होने में अधिक समय भी नहीं लगता है.

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शरीर के मजबूत जोड़ हमें सक्रिय रखते हैं और चलने-फिरने में मदद करते हैं. जोड़ों को मजबूत और स्वस्थ बनाए रखने के लिए क्या जरूरी है, इस बारे में सटीक जानकारी जरूरी है. जोड़ों की देखभाल और मांसपेशियों तथा हड्डियों को मजबूत रखने के लिए सबसे अच्छा तरीका है, स्थिर रहें. जोड़ों को स्वस्थ रखने के लिए यहां कुछ ऐसे सुझाव दिए गए हैं, जिन्हें आजमा कर आप अपनी सर्दियां बिना किसी दर्द के काट सकते हैं…

• जोड़ों को स्वस्थ रखने के लिए सबसे जरूरी है शरीर के वजन को नियंत्रण में रखना. शरीर का अतिरिक्त वजन हमारे जोड़ों, विशेषकर घुटने के जोड़ों पर दबाव बनाता है.

• व्यायाम से अतिरिक्त वजन को कम करने और वजन को सामान्य बनाए रखने में मदद मिल सकती है. कम प्रभाव वाले व्यायाम जैसे तैराकी या साइकिल चलाने का अभ्यास करें.

• वैसे लोग जो अधिक समय तक कंप्यूटर पर बैठे रहते हैं, उनके जोड़ों में दर्द होने की संभावना अधिक रहती है. जोड़ों को मजबूत बनाने के लिए अपनी स्थिति को लगातार बदलते रहिए.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं हनी चिली इडली

नाश्ते में अगर आप साउथ इंडियन फूड को चाइनीज तड़का देना चाहते हैं तो हनी चिली इडली की ये रेसिपी ट्राय करना ना भूलें.

सामग्री

5-6 इडली

2 छोटे चम्मच विनेगर

1 छोटा चम्मच तेल

1 छोटा चम्मच सोया सौस

2 प्याज

7-8 कलियां लहसुन

1 हरीमिर्च

1 टमाटर कद्दूकस किया

1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर

1 छोटा चम्मच रैड चिली सौस

1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस

2 छोटे चम्मच शहद

2 छोटे चम्मच तिल

नमक स्वादानुसार.

विधि

इडली को फिंगर्स शेप में काट लें. एक कड़ाही में तेल डाल कर थोड़ा गरम करें. अब इस में लंबा कटा प्याज डाल कर तेज आंच पर 1 मिनट स्टर करें. लहसुन व हरीमिर्च को इकट्ठा कूट लें और कड़ाही में मिला कर कुछ सैकंड स्टर करें. अब टमाटर, नमक, कालीमिर्च और सारी सौस भी मिला दें. इडली मिलाएं और अच्छी तरह मिक्स कर लें. आंच बंद कर के विनेगर मिलाएं. प्लेटर में निकाल कर शहद ड्रिजलर करें. तिल डाल कर गरमगरम सर्व करें.

ज्यादा टीवी देखती हैं तो हो सकता है ये बड़ा नुकसान

वजन बढ़ने के लिए सबसे ज्‍यादा जिम्‍मेदार लाइफस्‍टाइल होती है. यदि आप अपनी लाइफस्‍टाइल में एक्टिव नहीं हैं तो मोटापे के शिकार हो सकती हैं. बढ़ते वजन को लेकर बहुत शोध हुए हैं और इससे बचाव के लिए तरीके भी ईजाद किये जा रहे हैं, क्‍योंकि मोटापा के कारण कई प्रकार की बीमारियां होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

जो लोग टीवी अधिक देखते हैं, उनका वजन बढ़ने का खतरा अधिक होता है. एक शोध में यह बात सामने आयी है कि हफ्ते में 5 घंटे टीवी देखने वालों की अपेक्षा 21 घंटे देखने वालों में मोटापा का खतरा दो गुना ज्यादा होता है. आइए हम आपको इसके बारे में विस्‍तार से जानकारी देते हैं.

क्‍या कहता है शोध

ज्यादा टीवी देखने को आंखों के लिए नुकसानदेह बताया जाता रहा है. लेकिन यह मोटापा भी बढ़ाता है. एक हालिया शोध में ज्यादा टीवी देखने को सुस्ती और मोटापा बढ़ाने के लिए जिम्मेदार बताया गया है. ‘सीडेंटरी बिहेवियर एंड ओबेसिटी’ (सुस्त व्यवहार और मोटापा) नामक शोध में मोटापे की समस्या को टीवी के सामने ज्यादा घंटे गुजारने का परिणाम बताया गया है.
इसके लिए विदेशों में 20 से 64 साल तक के 42,600 लोगों पर किए गए शोध में ज्यादा टीवी देखने वाले स्त्री-पुरुषों के मोटापे में वृद्धि देखी गई. शोध के मुताबिक हफ्ते में 5 घंटे या उससे कम टीवी देखने वाले लोगों की अपेक्षा 21 घंटे या उससे ज्यादा टीवी देखने वाले लोगों के मोटापे में दोगुनी वृद्धि पाई गई. साथ ही हफ्ते में औसतन 5 घंटे कंप्यूटर पर काम करने वाले लोगों की अपेक्षा 11 घंटे या उससे ज्यादा काम करने वाले लोगों में भी मोटापे का स्तर बढ़ा पाया गया.

मोटापे के अन्‍य कारण…

1. आजकल लोग शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होते हैं, खासकर बच्चे, जो बाहर खेलने-कूदने के बजाय कंप्यू्टर, मोबाइल और वीडियो गेम खेलना अधिक पसंद करते हैं. जिससे कारण वे मोटापे का शिकार हो रहे हैं. सिर्फ बच्चे ही नहीं, ऑफिस जाने वाले युवा भी आज निष्क्रिय जीवनशैली जी रहे हैं, जिससे मोटापे की समस्‍या बढ़ रही है.

2. फास्‍ट फूड और जंक फूड के सेवन के कारण भी वजन बढ रहा है. आजकल लोग घर के स्वादिष्ट  व्यंजन और पौष्टिक खाना खाने के बजाय जंकफूड खाना पसंद करते हैं जो कि मोटापे के प्रमुख कारणों में से एक हैं. जंकफूड से ना सिर्फ मोटापा बढ़ता है बल्कि कई बीमारियां होने का खतरा भी रहता है.

3. आजकल लोग व्‍यस्‍त दिनचर्या के कारण व्‍यायाम के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं, यह भी मोटापे की प्रमुख वजहों में से एक है. यदि नियमित व्‍यायाम न किया जाये तो शरीर ऊर्जावान भी नहीं रहता और वजन भी बढ़ता है.

4. कुछ लोग फिट होने के लिए डायटिंग जैसी आदतों को अपनाते हैं, नतीजन वे डायटिंग ठीक तरह से नहीं कर पाते जिससे उनका मोटापा कम होने के बजाय बढ़ जाता हैं.

5. कुछ लोगों को हर समय खाने की आदत होती है फिर चाहे उन्होंने थोड़ी देर पहले ही खाना क्यों ना खाया हो. ऐसे में हर समय खाने की आदत भी मोटापे का कारण बनती हैं.

6. कई बार मोटापे के कारणों में आनुवांशिकता भी छिपी होती हैं यानी घर का कोई सदस्य या माता-पिता में से कोई मोटापे का शिकार है तो बच्चे को भी मोटापे की शिकायत होती है.

7. तनाव लेने से भी वजन बढ़ता है. कई बार लोग जरूरत से ज्यादा तनाव ले लेते हैं. तनाव, डिप्रेशन और अवसाद जैसी चीजें मोटापे को जन्म देती हैं.

8. दवाइयों और अन्‍य बीमारियों के कारण भी वजन बढ़ सकता है. किसी बीमारी के चलते लंबे समय तक दवाईयों का सेवन भी मोटापे का कारण बन सकता है. दरअसल दवाओं का साइड-इफेक्ट भी मोटापे के कारणों में से एक हैं.

9. मोटापे से बचने के लिए जरूरी है स्‍वस्‍थ दिनचर्या का पालन करना, पौष्टिक आहार के सेवन के साथ-साथ नियमित व्‍यायाम के द्वारा वजन को बढ़ने से रोका जा सकता है.

इन 9 टिप्स से अपने और बच्चों के रूम को दें नया लुक

घर को नया लुक देने के लिए जरूरी नहीं है कि आप इंटीरियर डिजाइनर की ही सलाह लें. अपने बजट के हिसाब से थोड़ी सी एक्सेसरीज खरीदें. इनके प्रयोग से आप अपने और बच्चों के कमरों को नया लुक दे सकती हैं.

1. खिड़कियों के लिए कढ़ाई वाले सिल्क फैब्रिक के पर्दों का इस्तेमाल करें. आजकल बाजार में सिल्क फैब्रिक पर आकर्षक एम्ब्रॉयडरी किए हुए पर्दे आसानी से मिल जाते हैं.

2. सजावटी सामानों को सजाने के लिए एक बड़ा शो पीस तो अपनी एक जगह बना लेता है, लेकिन छोटे सजावटी सामान सजाते समय इस बात का ध्यान रखें कि उन्हें एक साथ रखें.

3. प्लेन दीवार पर हाथ से सुंदर मोटिफ बना सकती हैं, जैसे सुंदर सी कोई बेल या खूबसूरत रंगीन फूल. यह कमरे को बेहतरीन बना देता है.

4. सर्दियों के मौसम में वॉर्म कलर वाले कुशन, बेडशीट और पर्दों का चयन करें. जैसे रेड, ऑरेंज, कॉफी, मैरून, यलो, डार्क चॉकलेट, डार्क ग्रीन.

5. कलर्ड ग्लासेज और स्टोन का प्रयोग कमरे की खूबसूरती बढ़ाने के लिए किया जा सकता है.

6. मॉडर्न वर्जन को ओल्ड क्लासिक के साथ मिलाने से घबराएं नहीं. ऐसा प्रयोग अच्छा भी लगता है अगर वह ढंग से किया गया हो.

7. बेडरूम को इस तरह सजाएं कि अनुपयोगी कोने का इस्तेमाल बेहतर तरीके से कर सकें. ऐसे कोनों पर आप लकड़ी की खूबसूरत अलमारी बनवा सकती हैं, जहां आप अपनी जरूरत का अतिरिक्त सामान या बड़े सामान भी व्यवस्थित रूप से रख सकती हैं, जो सुरक्षित भी रहेगा.

8. अगर घर में फ्लोरल प्रिंट्स का इस्तेमाल करना नहीं चाहती हैं तो थोड़ी सी जगह पर इनका प्रयोग कर सकती हैं. प्लेन सोफे के साथ एक फ्लोरल फैब्रिक वाली कुर्सी भी बहुत अच्छी लगेगी.

9. लेदर का सोफा कमरे की शान को बढ़ा देता है. आप इसे अपने ड्रॉइंग रूम में सेंटर दीवार के पास सजा सकती हैं. साथ में केन की दो कुर्सियां भी रंगीन कुशन के साथ सजा सकती हैं.

टेलीफोन- भाग 3: कृष्णा के साथ गेस्ट हाउस में क्या हुआ

अब कृष्णा के मुंह से निकला.

‘‘औफ…’’

‘‘तू बालबाल बच गई कृष्णा, लगता है वह बुड्ढा कुछ ज्यादा ही रंगीनमिजाज था.’’

‘‘कावेरी तुझे लगता है कि अगर वह बूड्ढा मेरे साथ जबरदस्ती करता तो मैं उसे छोड़ देती, कस के एक झापड़ नहीं रसीद करती उस के गाल पे. ऊंह, ये मुंह और मसूर की दाल.’’

‘‘कृष्णा तू जो भी करती पर एक कांड तो हो जाता न?’’ अब तो तू मान ले कि मैं जो कहती थी वो 100% सही था कि पुरुषों पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए भले ही वे बूढ़े ही क्यों न हों.’’

‘‘नहीं सारे पुरुष एक से नहीं होते मेरे पति तो मुझे छोड़ किसी की तरफ ताकते तक नहीं.’’

‘‘कृष्णा तेरी बात सही है कि सारे पुरुष एक से नहीं होते पर कुछ मर्द तो ऐसे होते ही हैं जो अकेली औरत देखी नहीं कि बस लगे लार टपकाने. उन के लिए औरत की उम्र भी कोई माने नहीं रखती. ऐसे मर्दों से हमेशा सावधान रहना चाहिए.’’

‘‘कावेरी तेरी बात मानने को दिल तो नहीं करता पर तू ने इस घटना का विश्लेषण इस तरह किया है कि तेरी बातों में दम नजर आने लगा है. अब तो मुझे भी लगने लगा है कि उस दिन एक हादसा होतेहोते रह गया. पर मुझे अब भी बड़ा अजीब लग रहा है कि मेरे साथ भी इस उम्र में ऐसा कुछ कैसे हो सकता है.’’

‘‘कृष्णा चल अब मैं तुझे अपनी बात बताती हूं. इस बार दीवाली छुट्टी के लिए जब मैं आ रही थी स्टेशन पर मेरे साथ भी एक मजेदार वाकेआ हुआ. मैं स्टेशन समय से पहुंच गई थी पर ट्रेन

2 घंटे लेट हो गई थी. जिस प्लेटफार्म पर ट्रेन आने वाली थी मैं वहीं एक बेंच पर बैठ ट्रेन का इंतजार कर रही थी. मन नहीं लग रहा था अकेले और तू तो जानती ही है मैं अधिक देर चुप नहीं रह सकती. अत: पास बैठे आदमी से बात करने लगी. वह 30-35 साल का सांवले रंग का दुबलापतला सा, औसत कद का आदमी था जो बारबार अपना मोबाइल फोन निकाल कर कुछ बटन दबा रहा था. ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी से उस पर बात करना उस का मकसद नहीं वरन उस मोबाइल को लोगों को दिखाना ही उस का मुख्य मकसद हो. मैं ने सोचा अभी ट्रेन आने में देर है तब तक क्यों न इस नमूने से ही बात की जाए. उस की हिंदी अच्छी नहीं थी शायद दक्षिण भारतीय था और उसी शहर में किसी फैक्टरी में नौकरी करता था.

‘‘टूटीफूटी हिंदी और इंग्लिश में वह बातें करने लगा. बात ट्रेन से शुरू हो कर डैस्टिनेशन पर खत्म हो जानी थी पर मुझे समय पास करना था. अत: मैं ने उस के मोबाइल के बारे में पूछा कि कहां से खरीदी, कितने में खरीदी? वह खुशीखुशी मुझे बताने लगा जैसे उसे दिखाते हुए उसे गर्व महसूस हो रहा हो. वैसे भी आज के समय में मोबाइल एक नई चीज तो है ही. वह बता रहा कि मैं ने इसे खरीद तो लिया पर अधिकतर समय इस पर बात नहीं हो पाती क्योंकि टावर नहीं रहता हर जगह. फिर वह मेरे बारे में पूछने लगा कि कहां रहती हैं, कहां जा रही हैं? फिर मैं ने देखा कि जैसे ही उसे पता चला कि मैं इस शहर में अकेली रहती हूं वह मुझे से बात करने में रुचि लेने लगा.

‘‘उस ने बताया कि वह उसी शहर में किसी फैक्टरी में नौकरी करता है और अकेले रहता है. वह मुझे कहने लगा कि आप मेरा फोन नंबर ले लीजिए. मैं ने कहा मेरे पास मोबाइल है नहीं मैं नंबर ले कर क्या करूंगी. पर वह बारबार मुझे नंबर रख लेने के लिए यह कह कर जिद करने लगा कि शायद मैं कभी आप के काम आ सकूं. अब उस से पीछा छुड़ाने के लिए मैं ने मैगजीन खरीदने के बहाने वहां से उठना ही ठीक समझा. मैगजीन खरीद कर मैं दूसरे बेंच पर बैठ गई.

‘‘थोड़ी देर में वह इंसान फिर वहां पहुंच गया और एक बार फिर से मुझ से अनुरोध करने लगा कि मेरा नंबर ले लीजिए. अब मुझे उस पर गुस्सा आने लगा था. शायद मैं उसे झिड़क देती लेकिन तभी ट्रेन आ गई और मेरे जान में जान आई. उस व्यक्ति ने मेरे मना करने के बावजूद मेरा सामान उठा लिया और मेरे सीट तक गया मुझे पहुंचाने के लिए. जब मैं बैठ गई तो उस ने अपना नंबर लिख कर एक बार फिर मुझे देने की कोशिश की. अब मैं ने सोचा इस से पीछा छुड़ाने का सब से अच्छा रास्ता यही है कि नंबर रख लूं ताकि वह चला जाए.

‘‘मैं ने नंबर ले लिया और कहा कि आप के टे्रन का समय हो रहा है आप जाइए वरना आप की ट्रेन छूट जाएगी. आखिर में वह ट्रेन से उतरा पर फिर खिड़की के पास आ कर कहने लगा कि मैडम फोन करोगी न? प्लीज जरूर फोन कीजिएगा. अब मेरा धैर्य जवाब देने लगा था पर ट्रेन ने सीटी दे दी थी और मैं कोई सीन क्रिएट नहीं करना चाहिए थी. अत: उस से जान छुड़ाने के लिए कह दिया कि करूंगी. उस के जाते ही मैं ने वह कागज का टुकड़ा फाड़ कर फेंक दिया.’’

कृष्णा के मुंह से अनायास निकल पड़ा, ‘‘यानी वह तुम से मिलने का ख्वाब

देखने लगा था?’’

‘‘हां, कृष्णा मैं समझ रही थी और मेरा अगला कदम उसे डपट कर ट्रेन से उतारने का था लेकिन वह खुद चला गया.’’

‘‘यानी टेलीफोन के चक्कर में तू भी पड़ी थी.’’

‘‘हां कृष्णा मैं भी, अब बता पुरुष को क्या कहोगी? वह उम्र में मुझ से काफी छोटा लग रहा फिर भी पीछे पड़ गया फोन के बहाने. पता नहीं उस के आगे क्या मंसूबे थे?’’

‘‘ओए कावेरी, कहने का अर्थ यह हुआ कि पुरुष किसी भी उम्र का हो उस से सावधान रहो और दूसरी बात यह भी अभी हम बूढ़े नहीं हुए हैं,’’ इतना कह कर कृष्णा ने एक जोरदार ठहाका लगाया. दोनों गले मिले, अगली बार फिर मिलने का वादा किया और एकदूसरे को सावधान रहने की हिदायत दे कर विदा हो गए.

कृष्णा छुट्टी खत्म कर के वापस गई तो सब से पहले उस ने औफिस में क्वार्टर के लिए आवेदन किया और अपने पति को बता दिया कि उस की बेटी आराधना जब तक यहां आएगी तब तक उसे क्वार्टर अलाट हो जाएगा.

शायद बर्फ पिघल जाए- भाग 2

सहसा माली ने अपनी समस्या से चौंका दिया, ‘‘अगले माह भतीजी का ब्याह है. आप की थोड़ी मदद चाहिए होगी साहब, ज्यादा नहीं तो एक जेवर देना तो मेरा फर्ज बनता ही है न. आखिर मेरे छोटे भाई की बेटी है.’’

ऐसा लगा  जैसे किसी ने मुझे आसमान से जमीन पर फेंका हो. कुछ नहीं है माली के पास फिर भी वह अपनी भतीजी को कुछ देना चाहता है. बावजूद इस के कि उस की भी अपने भाई से अनबन है. और एक मैं हूं जो सर्वसंपन्न होते हुए भी अपनी भतीजी को कुछ भी उपहार देने की भावना और स्नेह से शून्य हूं. माली तो मुझ से कहीं ज्यादा धनवान है.

पुश्तैनी जायदाद के बंटवारे से ले कर मां के मरने और कार दुर्घटना में अपने शरीर पर आए निशानों के झंझावात में फंसा मैं कितनी देर तक बैठा सोचता रहा, समय का पता ही नहीं चला. चौंका तो तब जब पल्लवी ने आ कर पूछा, ‘‘क्या बात है, पापा…आप इतनी रात गए यहां बैठे हैं?’’ धीमे स्वर में पल्लवी बोली, ‘‘आप कुछ दिन से ढंग से खापी नहीं रहे हैं, आप परेशान हैं न पापा, मुझ से बात करें पापा, क्या हुआ…?’’

जरा सी बच्ची को मेरी पीड़ा की चिंता है यही मेरे लिए एक सुखद एहसास था. अपनी ही उम्र भर की कुछ समस्याएं हैं जिन्हें समय पर मैं सुलझा नहीं पाया था और अब बुढ़ापे में कोई आसान रास्ता चाह रहा था कि चुटकी बजाते ही सब सुलझ जाए. संबंधों में इतनी उलझनें चली आई हैं कि सिरा ढूंढ़ने जाऊं तो सिरा ही न मिले. कहां से शुरू करूं जिस का भविष्य में अंत भी सुखद हो? खुद से सवाल कर खुद ही खामोश हो लिया.

‘‘बेटा, वह…विजय को ले कर परेशान हूं.’’

‘‘क्यों, पापा, चाचाजी की वजह से क्या परेशानी है?’’

‘‘उस ने हमें शादी में बुलाया तक नहीं.’’

‘‘बरसों से आप एकदूसरे से मिले ही नहीं, बात भी नहीं की, फिर वह आप को क्यों बुलाते?’’ इतना कहने के बाद पल्लवी एक पल को रुकी फिर बोली, ‘‘आप बड़े हैं पापा, आप ही पहल क्यों नहीं करते…मैं और दीपक आप के साथ हैं. हम चाचाजी के घर की चौखट पार कर जाएंगे तो वह भी खुश ही होंगे…और फिर अपनों के बीच कैसा मानअपमान, उन्होंने कड़वे बोल बोल कर अगर झगड़ा बढ़ाया होगा तो आप ने भी तो जरूर बराबरी की होगी…दोनों ने ही आग में घी डाला होगा न, क्या अब उसी आग को पानी की छींट डाल कर बुझा नहीं सकते?…अब तो झगड़े की वजह भी नहीं रही, न आप की मां की संपत्ति रही और न ही वह रुपयापैसा रहा.’’

पल्लवी के कहे शब्दों पर मैं हैरान रह गया. कैसी गहरी खोज की है. फिर सोचा, मीना उठतीबैठती विजय के परिवार को कोसती रहती है शायद उसी से एक निष्पक्ष धारणा बना ली होगी.

‘‘बेटी, वहां जाने के लिए मैं तैयार हूं…’’

‘‘तो चलिए सुबह चाचाजी के घर,’’ इतना कह कर पल्लवी अपने कमरे में चली गई और जब लौटी तो उस के हाथ में एक लाल रंग का डब्बा था.

‘‘आप मेरी ननद को उपहार में यह दे देना.’’

‘‘यह तो तुम्हारा हार है, पल्लवी?’’

‘‘आप ने ही दिया था न पापा, समय नहीं है न नया हार बनवाने का. मेरे लिए तो बाद में भी बन सकता है. अभी तो आप यह ले लीजिए.’’

कितनी आसानी से पल्लवी ने सब सुलझा दिया. सच है एक औरत ही अपनी सूझबूझ से घर को सुचारु रूप से चला सकती है. यह सोच कर मैं रो पड़ा. मैं ने स्नेह से पल्लवी का माथा सहला दिया.

‘‘जीती रहो बेटी.’’

अगले दिन पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार पल्लवी और मैं अलगअलग घर से निकले और जौहरी की दुकान पर पहुंच गए, दीपक भी अपने आफिस से वहीं आ गया. हम ने एक सुंदर हार खरीदा और उसे ले कर विजय के घर की ओर चल पड़े. रास्ते में चलते समय लगा मानो समस्त आशाएं उसी में समाहित हो गईं.

‘‘आप कुछ मत कहना, पापा,’’ पल्लवी बोली, ‘‘बस, प्यार से यह हार मेरी ननद को थमा देना. चाचा नाराज होंगे तो भी हंस कर टाल देना…बिगड़े रिश्तों को संवारने में कई बार अनचाहा भी सहना पड़े तो सह लेना चाहिए.’’

मैं सोचने लगा, दीपक कितना भाग्यवान है कि उसे पल्लवी जैसी पत्नी मिली है जिसे जोड़ने का सलीका आता है.

विजय के घर की दहलीज पार की तो ऐसा लगा मानो मेरा हलक आवेग से अटक गया है. पूरा परिवार बरामदे में बैठा शादी का सामान सहेज रहा था. शादी वाली लड़की चाय टे्र में सजा कर रसोई से बाहर आ रही थी. उस ने मुझे देखा तो उस के पैर दहलीज से ही चिपक गए. मेरे हाथ अपनेआप ही फैल गए. हैरान थी मुन्नी हमें देख कर.

‘‘आ जा मुन्नी,’’ मेरे कहे इस शब्द के साथ मानो सारी दूरियां मिट गईं.

मुन्नी ने हाथ की टे्र पास की मेज पर रखी और भाग कर मेरी बांहों में आ समाई.

एक पल में ही सबकुछ बदल गया. निशा ने लपक कर मेरे पैर छुए और विजय मिठाई के डब्बे छोड़ पास सिमट आया. बरसों बाद भाई गले से मिला तो सारी जलन जाती रही. पल्लवी ने सुंदर हार मुन्नी के गले में पहना दिया.

किसी ने भी मेरे इस प्रयास का विरोध नहीं किया.

‘‘भाभी नहीं आईं,’’ विजय बोला, ‘‘लगता है मेरी भाभी को मनाने की  जरूरत पड़ेगी…कोई बात नहीं. चलो निशा, भाभी को बुला लाएं.’’

‘‘रुको, विजय,’’ मैं ने विजय को यह कह कर रोक दिया कि मीना नहीं जानती कि हम यहां आए हैं. बेहतर होगा तुम कुछ देर बाद घर आओ. शादी का निमंत्रण देना. हम मीना के सामने अनजान होेने का बहाना करेंगे. उस के बाद हम मान जाएंगे. मेरे इस प्रयास से हो सकता है मीना भी आ जाए.’’

‘‘चाचा, मैं तो बस आप से यह कहने आया हूं कि हम सब आप के साथ हैं. बस, एक बार बुलाने चले आइए, हम आ जाएंगे,’’ इतना कह कर दीपक ने मुन्नी का माथा चूम लिया था.

‘‘अगर भाभी न मानी तो? मैं जानती हूं वह बहुत जिद्दी हैं…’’ निशा ने संदेह जाहिर किया.

‘‘न मानी तो न सही,’’ मैं ने विद्रोही स्वर में कहा, ‘‘घर पर रहेगी, हम तीनों आ जाएंगे.’’

‘‘इस उम्र में क्या आप भाभी का मन दुखाएंगे,’’ विजय बोला, ‘‘30 साल से आप उन की हर जिद मानते चले आ रहे हैं…आज एक झटके से सब नकार देना उचित नहीं होगा. इस उम्र में तो पति को पत्नी की ज्यादा जरूरत होती है… वह कितना गलत सोचती हैं यह उन्हें पहले ही दिन समझाया होता, इस उम्र में वह क्या बदलेंगी…और मैं नहीं चाहता वह टूट जाएं.’’

विजय के शब्दों पर मेरा मन भीगभीग गया.

‘‘हम ताईजी से पहले मिल तो लें. यह हार भी मैं उन से ही लूंगी,’’ मुन्नी ने सुझाव दिया.

‘‘एक रास्ता है, पापा,’’ पल्लवी ने धीरे से कहा, ‘‘यह हार यहीं रहेगा. अगर मम्मीजी यहां आ गईं तो मैं चुपके से यह हार ला कर आप को थमा दूंगी और आप दोनों मिल कर दीदी को पहना देना. अगर मम्मीजी न आईं तो यह हार तो दीदी के पास है ही.’’

इस तरह सबकुछ तय हो गया. हम अलगअलग घर वापस चले आए. दीपक अपने आफिस चला गया.

मीना ने जैसे ही पल्लवी को देखा सहसा उबल पड़ी,  ‘‘सुबहसुबह ही कौन सी जरूरी खरीदारी करनी थी जो सारा काम छोड़ कर घर से निकल गई थी. पता है न दीपक ने कहा था कि उस की नीली कमीज धो देना.’’

‘‘दीपक उस का पति है. तुम से ज्यादा उसे अपने पति की चिंता है. क्या तुम्हें मेरी चिंता नहीं?’’

‘‘आप चुप रहिए,’’ मीना ने लगभग डांटते हुए कहा.

‘‘अपना दायरा समेटो, मीना, बस तुम ही तुम होना चाहती हो सब के जीवन में. मेरी मां का जीवन भी तुम ने समेट लिया था और अब बहू का भी तुम ही जिओगी…कितनी स्वार्थी हो तुम.’’

‘‘आजकल आप बहुत बोलने लगे हैं…प्रतिउत्तर में मैं कुछ बोलता उस से पहले ही पल्लवी ने इशारे से मुझे रोक दिया. संभवत: विजय के आने से पहले वह सब शांत रखना चाहती थी.

निशा और विजय ने अचानक आ कर मीना के पैर छुए तब सांस रुक गई मेरी. पल्लवी दरवाजे की ओट से देखने लगी.

‘‘भाभी, आप की मुन्नी की शादी है,’’ विजय विनम्र स्वर में बोला, ‘‘कृपया, आप सपरिवार आ कर उसे आशीर्वाद दें. पल्लवी हमारे घर की बहू है, उसे भी साथ ले कर आइए.’’

‘‘आज सुध आई भाभी की, सारे शहर में न्योता बांट दिया और हमारी याद अब आई…’’

मैं ने मीना की बात को बीच में काटते हुए कहा, ‘‘तुम से डरता जो है विजय, इसीलिए हिम्मत नहीं पड़ी होगी… आओ विजय, कैसी हो निशा?’’

अपने एक्टिंग करियर को लेकर क्या कहती हैं ‘जामतारा 2’ की ‘गुड़िया’, पढ़ें इंटरव्यू

मॉडल और अभिनेत्री मोनिका पंवार, मुख्य रूप से हिंदी वेब सीरीज और फिल्म इंडस्ट्री में काम करती हैं. वह नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज़ जामतारा – सबका नंबर आएगा में ‘गुड़िया’ की भूमिका निभाने के लिए जानी जाती हैं. उनकी जामतारा 2 भी ओटीटी पर रिलीज हो चुकी है, जो साइबर क्राइम पर आधारित थी, जिसे करने में मोनिका कोबहुत सारे वर्कशॉप में भाग लेने पड़े. उन्हें इस तरह की बहुत काम्प्लेक्स और लेयर्ड करैक्टर करना पसंद है.उन्हें बचपन से अभिनय की इच्छा थी, लेकिन नए चेहरे को कितना काम मिलेगा, इस पर उन्हें थोड़ी चिंता थी, इसलिए उन्होंने थिएटर से अभिनय शुरू किया और धीरे-धीरे ओटीटी पर अपनी साख फैलाई. हंसमुख और विनम्र मोनिका से उनके कैरियर को लेकर बात हुई, पेश है कुछ खास अंश.

मिली प्रेरणा

मोनिका पवार कहती है कि मैं बहुत ही हम्बल बैकग्राउंड से हूं, जहाँ एक्टिंग बहुत दूर की बात होती है. उनके लिए पर्दे, टीवी या हाल में फिल्म देखना तक काफी रहा. पढाई के अलावा एक्स्ट्रा करीकुलर में भाग लेना भी जरुरी नहीं था. मुझे पढाई में रूचि नहीं थी, लेकिन सभी मेरी हाइट देखकर कहते थे कि मैं मॉडल या एक्ट्रेस बन सकती हूं. चंडीगढ़ में पढ़ते हुए मुझे थिएटर के बारें में थोड़ा पता चला. जब एनएसडी के बारें में जानकारी मिली, तो पता चला, इरफ़ान खान, ओमपुरी नसीरुद्दीन शाह आदि कई-कई बड़ी हस्तियों ने वही से पढ़कर एक्टिंग के क्षेत्र में नाम कमाया है. मुझे भी उस क्षेत्र में जाने की इच्छा होने लगी. मैं हिंदी फिल्में देखती थी, लेकिन तब एक्टिंग के बारें में नहीं सोची थी. अंग्रेजी फिल्म ‘गॉडफादर’ देखने पर मैंने महसूस किया कि इस फिल्म में कुछ अलग हो रहा है, जो मुझे बहुत अधिक समझ में नहीं आ रही थी. इसके बाद मैंने कई विदेशी कई फिल्में देख ली. इससे मुझे मुंबई आकर ऐसी ही गहरी अभिनय वाली फिल्म करने की इच्छा पैदा हुई. तब मैंने सही तरीके से अभिनय सीखकर परिपक्वता के साथ मुंबई आई थी.

पहला ब्रेक

मैं उत्तराखंड की टिहरी गढ़वाल से हूं,पंजाब युनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद मुझे नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में चुनी गयी और तीन साल एक्टिंग की कोर्स करने के बाद 2018 में मुंबई आ गई और एक अलग तरह की भूमिका हमेशा निभाने की इच्छा रखती थी. वर्ष 2018 में मैं आई और 7 महीने तक लगातार ऑडिशन देने के बाद भी मुझे जामतारा के लिए ऑफर मिला और गुडिया की भूमिका के लिए चुन ली गई.

एक्टिंग प्रतिभा को जाने

मोनिका कहती है कि केवल एक सुंदर चेहरा और महंगे कपडे पहनकर लेकर मुंबई आना ठीक नहीं, बल्कि कुछ सीखकर मुंबई एक्टिंग के लिए आना पड़ता है, क्योंकि यहाँ हुनर की कद्र भले ही देर से हो, लेकिन होती अवश्य है. जिनके पास अभिनय की प्रतिभा नहीं है, उन्हें मुंबई कभी नहीं आनी चाहिए, क्योंकि उनकी जिंदगी ख़राब हो जाती है, इसलिए पूरी ट्रेनिंग के बाद ही अभिनय के बारें में सोचें.

संघर्ष रहता है

मोनिका ने अभिनय में आने के लिए बहुत संघर्ष किये, मसलन 30 सेकंड की एक क्लिप या बहुत छोटी रोल जो भी मिला करती गयी. वह कहती है कि मुंबई आने पर आपको पता होता है कि क्या करना है, लेकिन सही दिशा पता नहीं होता. वहां पर बड़े और नामचीन प्रोडक्शन हाउस में जाना मुमकिन नहीं होता, क्योंकि मैंने कई बार देखा है कि बड़ी रोल की बात कहकर बुलाया जाता है और एक छोटी सी भूमिका जो मुश्किल से 2 दिन की होती है, उसे थमा दिया जाता है. मैंने उसे भी एन्जॉय किया, क्योंकि यह मेरे जर्नी की एक पार्ट थी. छोटी होने पर भी मैंने उस बड़ी कहानी में भाग लिया है. हर क्षेत्र में ऐसे अनुभव कमोवेश नए लोगों के लिए रहते है. अभी जो मुझे अभिनय मिल रहे है उसमे मुझे एक्टिंग करने का बहुत मौका मिल रहा है और मैं बहुत खुश हूं.

सही नेटवर्किंग जरुरी

मोनिका आगे कहती है कि शुरू में एक्टिंग फुल टाइम जॉब नहीं होता है, इसलिए शुरू में मुझे जो भी मिला मैं करती गयी, ताकि मेरी नेटवर्किंग अच्छी हो. जब मैंने अपनी एक फ्रेंड के साथ गॉडफादर फिल्म देखी, तो मेरी सोच बदल गयी. इसके बाद मैंने एक्टिंग सीखी और मेरी एक्टिंग की जर्नी शुरू हुई. ओटीटी ने मेरे अभिनय की प्रतिभा को एक मंच दिया है. ओटीटी की वजह से नए कलाकारों को अपनी प्रतिभा को आगे लाने में बहुत मदद मिली है. इसे मैं एंटरटेनमेंट का गोल्डन ऐज कहना पसंद करुँगी. इसके अलावा मुझे जितना भी काम मिलता है उसे करते रहने से मुझे खुद को बड़े पर्दे पर देखने और उसे जीने का मौका मिलता है. जामतारा में अभिनय के बाद मैंने ये महसूस किया कि जो भी अभिनय मैंने उसमे किया है और अच्छा कर सकती थी. मैं हमेशा खुद की आलोचक रही हूं, लेकिन इस वेब सीरीज के बाद मुझे और अधिक सुधार और नए स्तर पर काम को ले जाने की इच्छा है. अभी मुझे नयी-नयी भूमिका मिल रही है, इसलिए अब मैं छोटी भूमिका नहीं करती. आगे मुझे ड्रामा और कॉमेडी फिल्में करने की इच्छा है,जिसकी मैं तलाश कर रही हूं. इसके अलावा हॉरर और क्राइम फिल्मे भी पसंद करती हूं, पर ड्रामा फिल्मों से खुद को रिलेट करना आसान होता है.

बेटी की धूमधाम से शादी करेगी Anupama, फिर बदलेंगे पाखी के तेवर!

Anupama Latest Update In Hindi: टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ की टीआरपी पहले नंबर पर बनी हुई है. वहीं मेकर्स शो में नए-नए ट्विस्ट लाते दिख रहे हैं. हालांकि इन ट्विस्ट में अनुपमा की जिंदगी में परेशानियां बढ़ती हुई नजर आने वाली है. दरअसल, बेटी को बहू बनाकर कपाड़िया हाउस में लाने वाली अनुपमा अब नई परेशानियों का सामना करने वाली है, जिसमें सबसे बड़ी मुसीबत बनेगा पाखी का तेवर. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अनुज को ब्लैकमेल करेगी पाखी

हाल ही में सीरियल अनुपमा का अपकमिंग एपिसोड का प्रोमो सामने आया है, जिसमें बड़े घर की बहू बनने के बाद पाखी के तेवर बदलते दिखने वाले हैं. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड के प्रीकैप में कपाड़िया और शाह फैमिली अधिक और पाखी की दोबारा शादी करवाने के लिए राजी हो जाएगी. वहीं अनुपमा कहेगी कि बापूजी चाहते हैं कि उनकी पोती की शादी शाह हाउस से होगी. लेकिन पाखी एक बार फिर अपने तेवर दिखाते हुए शादी के लिए एक ग्रैंड वेन्यू की डिमांड करेगी, जिसपर अनुपमा उसे ताना मारती है, “भागने से पहले यह नहीं सोचा था?”. मां का ये जवाब सुनकर पाखी, अनुज को ब्लैकमेल करने की कोशिश करेगी. लेकिन अनुपमा उसे रोक लेगी.

 

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बरखा सच सामने लाने की करेगी कोशिश

 

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अब तक आपने देखा कि अनुपमा (Anupama) बापूजी के कहने पर पाखी और अधिक को कपाड़िया हाउस में रहने की इजाजत देती है, जिससे बरखा गुस्से में नजर आती है. हालांकि अनुपमा दोनों को माफ नहीं करती. वहीं पाखी, अनुपमा को इमोशनल ब्लैकमेल करते हुए उसे गले लगाने की बात कहती है, जिससे अनुपमा पिघल जाती है. दूसरी तरफ, अधिक के प्लान को एक्सपोज करने के लिए बरखा उससे सच उगलवाने की कोशिश करती है और रिकॉर्डिंग करने का प्लान बनाती है. लेकिन अधिक उसकी चालाकी समझ जाता है और उसे कुछ ना करने की सलाह देता है. साथ ही पाखी से सच में प्यार करने की बात कहता है.

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