बैठक के बाद, कांफ्रेंस कमरे से बाहर आ कर, मंजिशी और उन्नाकीर्ती के साथ चारों की टीम, अनिच्छा से, अपना यान देखने के लिए बढ़ चली.रास्ते में, दोरंजे ने उन्नाकीर्ती से पूछा, “अंतरिक्ष यान पर कब से काम चल रहा है?”
इस अंतरिक्ष यान को एलएलवी राकेट के अंदर फिट किया जाना था. इस अंतरिक्ष यान की संरचना चंद्रयान की संरचना से काफी भिन्न थी, क्योंकि इस में मानव जाने वाले थे, जबकि चंद्रयान मिशन इनसानरहित मिशन थे.
उन्नाकीर्ती ने जवाब दिया, “पिछले 2 सालों से. इस में सौ वैज्ञानिकों की टीम जुटी हुई है.”सतजीत बोला, “ क्या इस यान का कोई नाम रखा गया है?”उन्नाकीर्ती बोले, “भारतीय लूनर मिशन–1. लेकिन उस पर काम कर रही टीम उसे भालूमि ही कहती है.”
पद्मनाभन ने कहा, “सौ लोगों की टीम एलएलवी राकेट पर, और सौ लोगों की टीम भालूमि यान पर काम रही थी और हम लोगों को पता तक नहीं चला.”इस पर उन्नाकीर्ती बोले, “उन को सख्त आदेश थे कि अपने परिवार वालों से भी इन के बारे में चर्चा न करें. न तो एलएलवी राकेट के बारे में, न ही भालूमि यान के बारे में.”
राजेश ने मंजिशी की ओर देख कर कहा, “लेकिन, तुम को तो इन दोनों की पूरी जानकारी दिखती है.”उन्नाकीर्ती बोले, “इसीलिए तो मंजिशी इस मिशन की लीडर है. उस को एलएलवी और भालूमि, दोनों का प्रशिक्षण है.”कुछ देर में सभी ‘स्पेसक्राफ्ट इंटीग्रेशन यूनिट’ पहुंचे, जहां पर भालूमि के हिस्सों को जोड़ कर यान तैयार था और उस के अंतिम परीक्षण किए जा रहे थे.
चारों ने हैरानी से भालूमि को देखा. यान इतना बड़ा तो नहीं था, लेकिन उस में तीन कोए थे, जिस से जाहिर होता था कि यान 3 अंतरिक्ष यात्रियों को ध्यान में रख कर बनाया गया है. हर एक कोया अपनेआप में परिपूर्ण था. दिखता भी वह रेशम के कीड़े के कोए की तरह ही. फर्क सिर्फ इतना था कि अंतरिक्ष कोया खुला हुआ था, ताकि उस में अंतरिक्ष यात्री प्रवेश कर सके.
राजेश बोला, “सिर्फ 3…?”उन्नाकीर्ती ने कहा, “बीच का कोया मंजिशी का है. यान को नियंत्रित करने के प्रमुख उपकरण उस के हाथों में रहेंगे, बाकी के सबसिस्टम्स 2 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के हाथ में रहेंगे.”
निश्चित दिन, काउंटडाउन के पश्चात, एलएलवी राकेट, भालूमि में लेटे हुए 3 अंतरिक्ष यात्रियों को ले कर आकाश में उड़ चला.राजेश और सतजीत को मंजिशी के अगलबगल वाले कोए दिए गए. पद्मनाभन और दोरंजे को बैकअप मान कर धरती पर ही रखा गया.
उन्नाकीर्ती के साथ पद्मनाभन और दोरंजे ने तीनों अंतरिक्ष यात्रियों के साथ वार्तालाप करने की जिम्मेदारी उठा ली. दोनों को कोई अफसोस नहीं हुआ, क्योंकि वैसे भी शून्यकोर-1 में राजेश और सतजीत व शून्यकोर-2 में पद्मनाभन और दोरंजे को भेजना तय किया गया था.
एलएलवी के पहले चरण ने राकेट को धरती से लगभग 70 किलोमीटर ऊपर उठा लिया. पहले चरण में सब से शक्तिशाली इंजन थे, क्योंकि इस में ईंधन से पूरी तरह भरे हुए राकेट को जमीन से उठाने का चुनौतीपूर्ण काम था. इस के बाद यह स्टेज राकेट से अलग हो कर नीचे महासागर में गिर गई. दूसरे चरण ने राकेट को वहां से लगभग धरती की कक्षा में पहुंचा दिया. तीसरे चरण ने भालूमि अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया और इसे चंद्रमा की ओर धकेल दिया. पहले 2 चरण, राकेट से अलग होने के बाद समुद्र में गिरे. तीसरा चरण अंतरिक्ष में रह गया. भालूमि अंतरिक्ष यान को ले जा रहे एलएलवी राकेट के 3 चरण थे. प्रत्येक चरण के अपनेअपने इंजन तब तक जले, जब तक उन का ईंधन समाप्त न हो गया और ईंधन समाप्त होने के बाद वे राकेट से अलग हो गए. एक चरण के अलग होने के पश्चात अगले चरण का इंजन योजनानुसार प्रज्वलित हुआ, और राकेट की उड़ान अंतरिक्ष में जारी रही.
3 दिन और कुछ घंटों के पश्चात, बिना किसी घटना के, भालूमि अंतरिक्ष यान अपनी तीनों सवारियों को ले कर चंद्रमा तक सुरक्षित पहुंच गया. एलएलवी के तीसरे चरण द्वारा पृथ्वी की कक्षा के बाहर भेजे जाने के पश्चात, अंतरिक्ष यात्रियों ने भालूमि को तीसरे चरण से अलग कर दिया, और 3 दिन और चंद घंटों में पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की यात्रा को तय कर के चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया. चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर, भालूमि चंद्रमा के चारों ओर चक्कर खाने लगा. भालूमि के पीछे हिस्से में ‘पराक्रम’ यान था. ‘पराक्रम’, किसी ग्रह या चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए बनाया गया एक अंतरिक्ष यान था. भालूमि में स्वयं से यह काबिलीयत नहीं थी कि वह चंद्रमा की सतह पर उतर सके. चंद्रयान-2 में भी चंद्रमा की सतह पर उतरने का काम ‘विक्रम’ लैंडर ने किया था. ‘पराक्रम’ लैंडर की डिजाइन, ‘विक्रम’ लैंडर से मेल खाती थी. लेकिन चंद्रयान-2 के ‘विक्रम’ लैंडर में अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा की सतह तक ले जाने की काबिलीयत नहीं थी, जबकि भालूमि के साथ जुड़े ‘पराक्रम’ लैंडर में यह क्षमता थी. ‘पराक्रम’ लैंडर बड़ा था, जिस से अंतरिक्ष यात्री उस में बैठ कर भालूमि से निकल कर चंद्रमा की सतह पर आ सके.
भालूमि अंतरिक्ष यान के 3 भाग थे : एक कमांड मौड्यूल, जिस में 3 अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक केबिन था; एक सेवा मौड्यूल, जिस का काम कमांड मौड्यूल को संचालक शक्ति प्रदान करना था यानी विद्युत शक्ति देना था और औक्सीजन और पानी कमांड मौड्यूल तक पहुंचाना था; और एक चंद्र मौड्यूल. चंद्र मौड्यूल में 2 चरण थे- चंद्रमा पर उतरने के लिए एक अवरोही चरण और अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा से उठा कर चंद्र कक्षा में भालूमि तक वापस लाने के लिए एक आरोहण चरण. अगर मिशन कामयाब हो जाता था, तो तीनों भागों में से केवल एक भाग–अंतरिक्ष यात्रियों के केबिन वाला कमांड मौड्यूल ही वापस धरती पर लौटने वाला था. बाकी दोनों मौड्यूल, सेवा मौड्यूल और चंद्र मौड्यूल, उन का काम पूरा हो जाने पर अतिरिक्त बोझ बन जाते और उन की आवश्यकता नहीं रहती थी, इसीलिए पृथ्वी पर लौटने वाला एकमात्र भाग कमांड मौड्यूल ही होता.
जैसे ही भालूमि अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के चक्कर लगाने शुरू किए, मंजिशी और राजेश कमांड मौड्यूल से निकल कर चंद्र मौड्यूल में आ गए, क्योंकि उन के चंद्रमा पर उतरने का समय आ चुका था.
कमांड मौड्यूल का पायलट अब सतजीत था, जिस का काम राजेश और मंजिशी के चंद्रमा की सतह पर उतरने के पश्चात, अकेले ही चंद्र कक्षा में भालूमि के कमांड मौड्यूल को उड़ाना था.
मंजिशी और राजेश जब तक चंद्रमा की सतह पर रह कर अपना काम पूरा नहीं कर लेते, तब तक भालूमि का नियंत्रण सतजीत के हाथों में था.
मंजिशी और राजेश चंद्र मौड्यूल में बैठ कर नीचे चंद्रमा पर उतर कर, अपना काम कर के, वापस चंद्र मौड्यूल में आ कर, चंद्रमा से बाहर निकल कर पुन: भालूमि तक नहीं पहुंच जाते, तब तक सतजीत को भालूमि को चंद्रमा के चारों ओर चक्कर खिलाते रहना था. किसी एक को यह काम करना ही था, सतजीत को इस से कोई आपत्ति नहीं थी. चंद्रमा के इतने नजदीक पहुंचने पर भी चंद्रमा की सतह पर उतरने का मौका उसे नहीं मिल रहा था, इस का उसे कोई अफसोस नहीं था. मंजिशी और राजेश को चंद्रमा तक उतारने, और उन का काम खत्म हो जाने पर जब चंद्र मौड्यूल वापस आ जाए, तो उन दोनों को चंद्र मौड्यूल से भालूमि के भीतर वापस सुरक्षित लाने का जिम्मा सतजीत का ही था. इसीलिए, जब तक चंद्र कक्षा में चक्कर लगा रहे भालूमि यान तक मंजिशी और राजेश वापस नहीं पहुंच जाते, तब तक चंद्रमा के जटिल और अनजान गुरुत्वाकर्षण में भालूमि को सुरक्षित उड़ाते रहने के लिए वह उत्तरदायी था.
मंजिशी और राजेश ने चंद्र मौड्यूल को सावधानीपूर्वक चंद्रमा की सतह पर उतारा. चंद्र मौड्यूल उस जगह पर उतरा, जो धरती के अंटार्कटिक महाद्वीप की तरह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की ओर था. फर्क सिर्फ इतना था कि धरती के अंटार्कटिक क्षेत्र पर बर्फ ही बर्फ थी, जबकि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव वाले इलाके में चंद्र-मिट्टी के गड्ढे ही गड्ढे थे. चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव बर्फीला नहीं था. नासा के चंद्रमा तक पहुंचने वाले सभी अंतरिक्ष यात्रियों ने चंद्रमा की केवल उन्हीं सतहों का अन्वेषण किया था, जो चंद्रमा की भूमध्यरेखा के पास स्थित है, जहां पर पहुंचना सब से आसान और सुरक्षित है. इस ने, उन अंतरिक्ष यात्रियों के द्वारा लाए गए चंद्रमा के नमूनों के बारे में वैज्ञानिकों की समझ को एकतरफा कर दिया था – यह बताना मुश्किल हो गया था कि क्या चंद्रमा से लाए गए इन सभी नमूनों में कोई ऐसी विशेषता है, जो चंद्रमा की सतह में सार्वभौमिक है या केवल यह विशेषता इसलिए कि यह इसे भूमध्य क्षेत्र से लाया गया है.