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मिशन भाग-3: क्यों मंजिशी से नाखुश थे सब

बैठक के बाद, कांफ्रेंस कमरे से बाहर आ कर, मंजिशी और उन्नाकीर्ती के साथ चारों की टीम, अनिच्छा से, अपना यान देखने के लिए बढ़ चली.रास्ते में, दोरंजे ने उन्नाकीर्ती से पूछा, “अंतरिक्ष यान पर कब से काम चल रहा है?”

इस अंतरिक्ष यान को एलएलवी राकेट के अंदर फिट किया जाना था. इस अंतरिक्ष यान की संरचना चंद्रयान की संरचना से काफी भिन्न थी, क्योंकि इस में मानव जाने वाले थे, जबकि चंद्रयान मिशन इनसानरहित मिशन थे.

उन्नाकीर्ती ने जवाब दिया, “पिछले 2 सालों से. इस में सौ वैज्ञानिकों की टीम जुटी हुई है.”सतजीत बोला, “ क्या इस यान का कोई नाम रखा गया है?”उन्नाकीर्ती बोले, “भारतीय लूनर मिशन–1. लेकिन उस पर काम कर रही टीम उसे भालूमि ही कहती है.”

पद्मनाभन ने कहा, “सौ लोगों की टीम एलएलवी राकेट पर, और सौ लोगों की टीम भालूमि यान पर काम रही थी और हम लोगों को पता तक नहीं चला.”इस पर उन्नाकीर्ती बोले, “उन को सख्त आदेश थे कि अपने परिवार वालों से भी इन के बारे में चर्चा न करें. न तो एलएलवी राकेट के बारे में, न ही भालूमि यान के बारे में.”

राजेश ने मंजिशी की ओर देख कर कहा, “लेकिन, तुम को तो इन दोनों की पूरी जानकारी दिखती है.”उन्नाकीर्ती बोले, “इसीलिए तो मंजिशी इस मिशन की लीडर है. उस को एलएलवी और भालूमि, दोनों का प्रशिक्षण है.”कुछ देर में सभी ‘स्पेसक्राफ्ट इंटीग्रेशन यूनिट’ पहुंचे, जहां पर भालूमि के हिस्सों को जोड़ कर यान तैयार था और उस के अंतिम परीक्षण किए जा रहे थे.

चारों ने हैरानी से भालूमि को देखा. यान इतना बड़ा तो नहीं था, लेकिन उस में तीन कोए थे, जिस से जाहिर होता था कि यान 3 अंतरिक्ष यात्रियों को ध्यान में रख कर बनाया गया है. हर एक कोया अपनेआप में परिपूर्ण था. दिखता भी वह रेशम के कीड़े के कोए की तरह ही. फर्क सिर्फ इतना था कि अंतरिक्ष कोया खुला हुआ था, ताकि उस में अंतरिक्ष यात्री प्रवेश कर सके.

राजेश बोला, “सिर्फ 3…?”उन्नाकीर्ती ने कहा, “बीच का कोया मंजिशी का है. यान को नियंत्रित करने के प्रमुख उपकरण उस के हाथों में रहेंगे, बाकी के सबसिस्टम्स 2 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के हाथ में रहेंगे.”

निश्चित दिन, काउंटडाउन के पश्चात, एलएलवी राकेट, भालूमि में लेटे हुए 3 अंतरिक्ष यात्रियों को ले कर आकाश में उड़ चला.राजेश और सतजीत को मंजिशी के अगलबगल वाले कोए दिए गए. पद्मनाभन और दोरंजे को बैकअप मान कर धरती पर ही रखा गया.

उन्नाकीर्ती के साथ पद्मनाभन और दोरंजे ने तीनों अंतरिक्ष यात्रियों के साथ वार्तालाप करने की जिम्मेदारी उठा ली. दोनों को कोई अफसोस नहीं हुआ, क्योंकि वैसे भी शून्यकोर-1 में राजेश और सतजीत व शून्यकोर-2 में पद्मनाभन और दोरंजे को भेजना तय किया गया था.

एलएलवी के पहले चरण ने राकेट को धरती से लगभग 70 किलोमीटर ऊपर उठा लिया. पहले चरण में सब से शक्तिशाली इंजन थे, क्योंकि इस में ईंधन से पूरी तरह भरे हुए राकेट को जमीन से उठाने का चुनौतीपूर्ण काम था. इस के बाद यह स्टेज राकेट से अलग हो कर नीचे महासागर में गिर गई. दूसरे चरण ने राकेट को वहां से लगभग धरती की कक्षा में पहुंचा दिया. तीसरे चरण ने भालूमि अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया और इसे चंद्रमा की ओर धकेल दिया. पहले 2 चरण, राकेट से अलग होने के बाद समुद्र में गिरे. तीसरा चरण अंतरिक्ष में रह गया. भालूमि अंतरिक्ष यान को ले जा रहे एलएलवी राकेट के 3 चरण थे. प्रत्येक चरण के अपनेअपने इंजन तब तक जले, जब तक उन का ईंधन समाप्त न हो गया और ईंधन समाप्त होने के बाद वे राकेट से अलग हो गए. एक चरण के अलग होने के पश्चात अगले चरण का इंजन योजनानुसार प्रज्वलित हुआ, और राकेट की उड़ान अंतरिक्ष में जारी रही.

3 दिन और कुछ घंटों के पश्चात, बिना किसी घटना के, भालूमि अंतरिक्ष यान अपनी तीनों सवारियों को ले कर चंद्रमा तक सुरक्षित पहुंच गया. एलएलवी के तीसरे चरण द्वारा पृथ्वी की कक्षा के बाहर भेजे जाने के पश्चात, अंतरिक्ष यात्रियों ने भालूमि को तीसरे चरण से अलग कर दिया, और 3 दिन और चंद घंटों में पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की यात्रा को तय कर के चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया. चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर, भालूमि चंद्रमा के चारों ओर चक्कर खाने लगा. भालूमि के पीछे हिस्से में ‘पराक्रम’ यान था. ‘पराक्रम’, किसी ग्रह या चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए बनाया गया एक अंतरिक्ष यान था. भालूमि में स्वयं से यह काबिलीयत नहीं थी कि वह चंद्रमा की सतह पर उतर सके. चंद्रयान-2 में भी चंद्रमा की सतह पर उतरने का काम ‘विक्रम’ लैंडर ने किया था. ‘पराक्रम’ लैंडर की डिजाइन, ‘विक्रम’ लैंडर से मेल खाती थी. लेकिन चंद्रयान-2 के ‘विक्रम’ लैंडर में अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा की सतह तक ले जाने की काबिलीयत नहीं थी, जबकि भालूमि के साथ जुड़े ‘पराक्रम’ लैंडर में यह क्षमता थी. ‘पराक्रम’ लैंडर बड़ा था, जिस से अंतरिक्ष यात्री उस में बैठ कर भालूमि से निकल कर चंद्रमा की सतह पर आ सके.

भालूमि अंतरिक्ष यान के 3 भाग थे : एक कमांड मौड्यूल, जिस में 3 अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक केबिन था; एक सेवा मौड्यूल, जिस का काम कमांड मौड्यूल को संचालक शक्ति प्रदान करना था यानी विद्युत शक्ति देना था और औक्सीजन और पानी कमांड मौड्यूल तक पहुंचाना था; और एक चंद्र मौड्यूल. चंद्र मौड्यूल में 2 चरण थे- चंद्रमा पर उतरने के लिए एक अवरोही चरण और अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा से उठा कर चंद्र कक्षा में भालूमि तक वापस लाने के लिए एक आरोहण चरण. अगर मिशन कामयाब हो जाता था, तो तीनों भागों में से केवल एक भाग–अंतरिक्ष यात्रियों के केबिन वाला कमांड मौड्यूल ही वापस धरती पर लौटने वाला था. बाकी दोनों मौड्यूल, सेवा मौड्यूल और चंद्र मौड्यूल, उन का काम पूरा हो जाने पर अतिरिक्त बोझ बन जाते और उन की आवश्यकता नहीं रहती थी, इसीलिए पृथ्वी पर लौटने वाला एकमात्र भाग कमांड मौड्यूल ही होता.

जैसे ही भालूमि अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के चक्कर लगाने शुरू किए, मंजिशी और राजेश कमांड मौड्यूल से निकल कर चंद्र मौड्यूल में आ गए, क्योंकि उन के चंद्रमा पर उतरने का समय आ चुका था.

कमांड मौड्यूल का पायलट अब सतजीत था, जिस का काम राजेश और मंजिशी के चंद्रमा की सतह पर उतरने के पश्चात, अकेले ही चंद्र कक्षा में भालूमि के कमांड मौड्यूल को उड़ाना था.

मंजिशी और राजेश जब तक चंद्रमा की सतह पर रह कर अपना काम पूरा नहीं कर लेते, तब तक भालूमि का नियंत्रण सतजीत के हाथों में था.

मंजिशी और राजेश चंद्र मौड्यूल में बैठ कर नीचे चंद्रमा पर उतर कर, अपना काम कर के, वापस चंद्र मौड्यूल में आ कर, चंद्रमा से बाहर निकल कर पुन: भालूमि तक नहीं पहुंच जाते, तब तक सतजीत को भालूमि को चंद्रमा के चारों ओर चक्कर खिलाते रहना था. किसी एक को यह काम करना ही था, सतजीत को इस से कोई आपत्ति नहीं थी. चंद्रमा के इतने नजदीक पहुंचने पर भी चंद्रमा की सतह पर उतरने का मौका उसे नहीं मिल रहा था, इस का उसे कोई अफसोस नहीं था. मंजिशी और राजेश को चंद्रमा तक उतारने, और उन का काम खत्म हो जाने पर जब चंद्र मौड्यूल वापस आ जाए, तो उन दोनों को चंद्र मौड्यूल से भालूमि के भीतर वापस सुरक्षित लाने का जिम्मा सतजीत का ही था. इसीलिए, जब तक चंद्र कक्षा में चक्कर लगा रहे भालूमि यान तक मंजिशी और राजेश वापस नहीं पहुंच जाते, तब तक चंद्रमा के जटिल और अनजान गुरुत्वाकर्षण में भालूमि को सुरक्षित उड़ाते रहने के लिए वह उत्तरदायी था.

मंजिशी और राजेश ने चंद्र मौड्यूल को सावधानीपूर्वक चंद्रमा की सतह पर उतारा. चंद्र मौड्यूल उस जगह पर उतरा, जो धरती के अंटार्कटिक महाद्वीप की तरह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की ओर था. फर्क सिर्फ इतना था कि धरती के अंटार्कटिक क्षेत्र पर बर्फ ही बर्फ थी, जबकि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव वाले इलाके में चंद्र-मिट्टी के गड्ढे ही गड्ढे थे. चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव बर्फीला नहीं था. नासा के चंद्रमा तक पहुंचने वाले सभी अंतरिक्ष यात्रियों ने चंद्रमा की केवल उन्हीं सतहों का अन्वेषण किया था, जो चंद्रमा की भूमध्यरेखा के पास स्थित है, जहां पर पहुंचना सब से आसान और सुरक्षित है. इस ने, उन अंतरिक्ष यात्रियों के द्वारा लाए गए चंद्रमा के नमूनों के बारे में वैज्ञानिकों की समझ को एकतरफा कर दिया था – यह बताना मुश्किल हो गया था कि क्या चंद्रमा से लाए गए इन सभी नमूनों में कोई ऐसी विशेषता है, जो चंद्रमा की सतह में सार्वभौमिक है या केवल यह विशेषता इसलिए कि यह इसे भूमध्य क्षेत्र से लाया गया है.

मिशन भाग-6: क्यों मंजिशी से नाखुश थे सब

विक्रम लैंडर और प्रज्ञान घुमंतू का कुल मिला कर वजन 1,500 किलोग्राम था. उन के बहुत से यांत्रिक टुकड़े बहुत बड़े क्षेत्र में फैले थे. लेकिन यांत्रिक टुकड़े अलग ही दिखते थे. आज उन यांत्रिक टुकड़ों से मंजिशी और राजेश को कोई मतलब नहीं था.

राजेश ने 2 छोटे गड्ढों के बीच परछाईं से ढके एक हिस्से पर गौर किया. एक डब्बी जैसी चीज उसे नजर आई. राजेश ने उसे उठा लिया. उस ने मंजिशी को दिखाया. मंजिशी के शरीर में जैसे खुशी की लहर दौड़ पड़ी. उस ने जोर से हामी भरी.

दुर्भाग्यवश, तब तक चीनी अंतरिक्ष यात्री भी उन के पास आ पहुंचा था. दोनों को खुश देख वह मामला समझ गया. मनुष्यता के सामान्य शिष्टाचार छोड़ कर वह क्रुद्ध हो कर राजेश की तरफ लपका और उस से ह-3 की डब्बी छीनने का प्रयास करने लगा.

मंजिशी ने जैसे ही दोनों में हाथापाई होते देखी, वह तुरंत चीनी अंतरिक्ष यात्री के पास आई और अपनी पूरी शक्ति से उसे जोर से धक्का दिया. चीनी यात्री नीचे गिर गया. चीनी यात्री व्यायाम करने वाले हट्टेकट्टे दिखने वाले 6 फुट का इनसान था. वह तुरंत उठ खड़ा हुआ.मंजिशी ने बात बिगड़ते देखी, तो जोर से राजेश से चिल्ला कर कहा, “राजेश, तुम चंद्र मौड्यूल पर वापस जाओ और उस के इंजन शुरू करो. मैं पहले इस से निबटती हूं.”

राजेश को कुछ भी नहीं सूझा. ह-3 डब्बी की रक्षा करना उस का प्राथमिक उद्देश्य था. वह डब्बी को ले कर अपने चंद्र मौड्यूल की ओर भागा. चीनी यात्री उस के पीछे दौड़ा, लेकिन मंजिशी ने छलांग लगा कर उस के पैर पकड़ कर उसे गिरा दिया. चीनी यात्री के गिरने से राजेश को मौका मिल गया और वह काफी दूर निकल गया.

अपने रास्ते का रोड़ा बनी इस भारतीय नारी को चीनी यात्री ने आगबबूला हो कर निहारा. उसे समझ आ गया कि जब तक इस स्त्री से वह पीछा नहीं छुड़ा लेता, तब तक ह-3 यंत्र उस के हाथ नहीं लगेगा.उस चीनी यात्री ने एक बार फिर राजेश के पीछे जाने की कोशिश की, लेकिन मंजिशी ने लपक कर उसे फिर जोर से पकड़ लिया.

चीनी यात्री ने अपनेआप को छुड़ाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन मंजिशी ने अपना पूरा जोर लगा कर उसे पकड़े ही रखा.राजेश चंद्र-मौड्यूल तक पहुंच चुका था. उस ने पीछे मुड़ कर देखा. मंजिशी और चीनी यात्री दूर आपस में भिड़े हुए थे.

राजेश ने मौड्यूल में प्रवेश कर उस के इंजन शुरू किए. चंद्र मौड्यूल वापस अपनी उड़ान भरने के लिए तैयार था.चंद्रमा के चक्कर लगा रहे सतजीत के भालूमि यान से मिलने के लिए तैयार था. बस मंजिशी के वापस आने की देर थी.

चंद्र मौड्यूल के इंजन से निकलती आग को देख कर चीनी यात्री को ज्ञात हो गया कि ह-3 की डब्बी भारतीयों के हाथों लग गई है और अब उसे प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल काम होगा.अपने मिशन को असफल होते देख बेहद क्रोध में चीनी यात्री ने मंजिशी पर वार करने की कोशिश की. इस गुत्थमगुत्था में दोनों के हेलमेट आपस में टकराए, और दोनों के ही हेलमेट से तड़कने की आवाज आई.

यह देख चीनी यात्री घबरा गया. उसे पता था कि हेलमेट में दरार पड़ना यानी चंद सेकंड के भीतर ही मौत. वह तनिक पीछे हटा. मंजिशी को मौका मिला. मंजिशी ने चीनी यात्री के हेलमेट पर अपने हाथों से जबरदस्त मुक्का मारा. चीनी यात्री का हेलमेट मंजिशी के मुक्के की मार को सहन न कर सका और कड़कदार आवाज के साथ उस के हेलमेट की दरारें तेजी से बढ़ने लगीं. चंद सेकंड में ही चंद्रमा के निष्ठुर वातावरण में सीधे संपर्क में आने से चीनी यात्री के शरीर की त्वचा का पानी और शरीर का खून वाष्पीकृत हो गया और वह वहीं गिर गया. लेकिन मौत की नींद में जाने से पहले उस ने मंजिशी के अंतरिक्ष सूट को कस कर पकड़ लिया, जिस से मंजिशी का सूट एकदो जगहों से फट गया.

मंजिशी ने अपने फटे हुए सूट को देखा और हेलमेट में दरार को महसूस किया और डूबती हुई सांसों से अपने हेलमेट के अंदर के ट्रांसमीटर से राजेश से कहा, “राजेश, तुम निकल जाओ… मेरा हेलमेट… टूट चुका है… सूट भी फट गया है …” मंजिशी की सांसें अचानक तेज हो गईं.

दूसरे छोर पर राजेश को यह सुन कर विश्वास ही नहीं हुआ. धरती पर उन्नाकीर्ती, रामादुंडी और टीम के बाकी सदस्यों ने भी मंजिशी के ये शब्द सुने.मंजिशी ने उखड़ती सांसों महसूस किया और शक्तिपीठ पर मौजूद विक्रम लैंडर के उस टुकड़े को हाथ में लिया, जिस पर भारतीय तिरंगा झंडा था. झंडे को अपनी आंखों के सामने रखते हुए उस ने अपने आखिरी शब्द कहे, “जय हिंद …” और वहीं मौत की आगोश में सो गई.

कुछ देर के बाद हतप्रभ राजेश ने चंद्र मौड्यूल की उड़ान भरी. कुछ ही देर में चंद्र मौड्यूल सफलतापूर्वक ऊपर चक्कर लगा रहे भालूमि यान से जा मिला. चंद्र मौड्यूल से निकल कर जब राजेश, भालूमि में अपने कोए में वापस आया तो उस ने अपने और सतजीत के बीच के कोए को बेहद खाली महसूस किया और जोर से फूटफूट कर रोने लगा.

मिशन भाग-5: क्यों मंजिशी से नाखुश थे सब

चीनी यान चंद्रमा पर उतर चुका था. काफी दूरी पर था. किसी भी वक्त अब उस में से चीनी अंतरिक्ष यात्री निकल सकते थे. मंजिशी ने अपनी तलाश जारी रखते हुए राजेश से कहा, “ह-3, चंद्रमा पर मौजूद हीलियम-3 के स्त्रोतों का पता लगाने वाला उपकरण है.”

राजेश ने एक पल के लिए सिर उठा कर मंजिशी को देखा, “हीलियम-3…?” फिर अपने ज्ञान को खंगोला और सोचते हुए कहा, “चंद्रमा की सतह की ऊपरी परत में अंतर्निहित है, प्रचुर मात्रा में है. पृथ्वी को उस का चुम्बकीय क्षेत्र सुरक्षित रखता है, लेकिन चंद्रमा पर ऐसा नहीं होने से सौर्य हवा ने बड़ी मात्रा में हीलियम-3 की बमबारी चंद्रमा पर कर दी है.”

मंजिशी ने चीनी यान को देखा. अभी तक उस में से कोई नहीं निकला था, “और तुम को तो पता ही होगा कि चुटकीभर हीलियम-3 से हमारे पूरे देश की ऊर्जा की समस्या का समाधान हो सकता है.” राजेश ने एक गड्ढे से निकल कर दूसरे गड्ढे में तलाशते हुए कहा, “वह तो मुझे पता ही है. लेकिन मुझे नहीं पता था कि ह-3 खोजने वाला उपकरण भी चंद्रयान-2 मिशन पर लगा हुआ है.”

मंजिशी बोली, “नहीं. हमारी तरफ से यह कभी घोषित ही नहीं किया गया. किसी को इस की जानकारी नहीं दी गई थी. सिर्फ ह-3 की डब्बी बनाने वाले वैज्ञानिक को इस की जानकारी थी.” राजेश ने गौर से मंजिशी को देखा, “और तुम्हें भी…”

मंजिशी ने हामी भरी और स्वीकार किया, “और मुझे भी. हमारे इस चंद्र मिशन का यही उद्देश्य है. उस ह-3 उपकरण को वापस सुरक्षित भारत लाना.” दूसरे यान में से एक अंतरिक्ष यात्री अपना अंतरिक्ष सूट पहने यान से उतरता नजर आया.

मंजिशी और राजेश ने दूर से उसे उतरते हुए देखा. राजेश ने मंजिशी से कहा, “तुम चिंता मत करो. मैं उन लोगों को समझा दूंगा. हमारा उपकरण है, तो हम ही रखेंगे.”इस पर मंजिशी हंस दी और बोली, “तुम ने उन लोगों को बेवकूफ समझा है क्या? यही लेने के लिए तो वे यहां आए हैं. तुम को लगता है कि तुम्हारे तर्कवितर्क से तुम्हारी बात मान कर वो बिना वह चीज लिए वापस चले जाएंगे. जिस चीज को लेने के लिए उन्होंने भी अरबों की राशि खर्च की है? वो यहां पर हम से बात करने या बहस करने नहीं आए हैं, हमारा ह-3 उपकरण लेने के लिए आए हैं.”

राजेश ने अविश्वास से पूछा, “जब किसी को भी नहीं पता था, तो उन को कैसे पता चल गया कि चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर के उपकरणों में ह-3 की खोज करने वाला उपकरण भी था?”मंजिशी ने अपनी तलाश में तेजी ला दी थी, “क्योंकि विक्रम लैंडर के टूट कर यहां गिर जाने के बाद ‘शक्तिपीठ’ के ऊपर से न केवल अमरीकी यान ‘मून रीकौन और्बिटर’ गुजरा है, बल्कि इजरायली यान ‘बेरेशीट’ और चीनी यान ‘छांग-ई-5’ भी गुजरे हैं. जाहिर है कि उन्होंने ‘शक्तिपीठ’ की जो तसवीरें खींची हैं, उस में उन्हें कुछ संदिग्ध नजर आया है.”

चंद्रमा के ऊपर से अंतरिक्ष से खींची हुई तसवीरों में से जानकारी प्राप्त करना बेहद मुश्किल काम था. चंद ही देशों को यह महारत हासिल थी.दूसरे यान का अंतरिक्ष यात्री अब कंगारुओं की तरह उछलता हुआ पास आता दिखाई दिया.

राजेश ने उत्सुकता से पूछा, “चीनियों के पास नहीं है क्या हीलियम-3 उपकरण?”मंजिशी कुंठित हो गई, “मुझे नहीं मालूम… मेरा मिशन सिर्फ इतना है कि हमारा उपकरण चीनियों के हाथों में नहीं लगना चाहिए. वैसे भी अगर उन के पास यह उपकरण होता, तो हमारा लेने के लिए वे लोग अरबों रुपए खर्च कर के यहां क्यों आते?”

चीनी अंतरिक्ष यात्री अब बेहद करीब आ गया था.राजेश ने कुछकुछ याद करते हुए कहा, “अब मुझे सबकुछ अच्छी तरह समझ में आ रहा है.”मंजिशी ने पलभर के लिए उस की ओर देखा, “क्या…?”

राजेश बोला, “यही कि हमारा यह मिशन इतना गोपनीयता भरा क्यों था कि किसी को भी भनक तक नहीं पड़ी. और इतनी तेजी से सबकुछ क्यों किया गया कि बिना प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की नौबत आ गई.”

चीनी अंतरिक्ष यात्री अब कुछ ही मीटर के फासले पर था. नजदीक आते ही उसे यह बात समझ आ गई कि भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को हीलियम-3 उपकरण नहीं मिला है. उस ने अपने भारीभरकम जूतों से पास ही के गड्ढों में से मिट्टी को रौंदना शुरू कर दिया और उपकरण की तलाश करने लगा. अचानक ही वह जैसे खुशी से उछल पड़ा. उस ने अपने पैरों से हटाई मिट्टी में दबे एक इलेक्ट्रौनिक सी दिखनी वाली चीज को अपने हाथ में दबाया और वापस अपने यान की ओर दौड़ पडा.

राजेश ने डूबते ह्रदय से उसे विक्रम लैंडर का एक हिस्सा ले जाते हुए देखा.मंजिशी ने राजेश को राहत दिलाई, “चिंता मत करो. ढूंढ़ते रहो. जो इलेक्ट्रौनिक सर्किट बोर्ड वह ले कर गया है, वह स्पेक्ट्रोमीटर का सर्किट बोर्ड है. शायद उसे परख नहीं है या उन लोगों को पता नहीं है कि हीलियम 3 उपकरण कैसा दिखता है.”

विक्रम लैंडर के साथ प्रज्ञान घुमंतू भी चंद्रयान-2 का हिस्सा था. स्पेक्ट्रोमीटर, प्रज्ञान घुमंतू पर मौजूद 2 उपकरणों में से एक था. स्पेक्ट्रोमीटर के सर्किट बोर्ड चीनी अंतरिक्ष यात्री के हाथ पड़ने से यह साफ हो गया था कि न केवल विक्रम लैंडर के टुकड़े हो चुके हैं, बल्कि प्रज्ञान घुमंतू भी चंद्र-सतह पर तेजी से गिरने से टूट चुका है और उस के टुकड़े भी इसी इलाके में बिखरे पड़े हैं.

कुछ ही देर में चीनी अंतरिक्ष यात्री वापस आता दिखाई दिया. उस के स्पेस हेलमेट के अंदर से उस का गुस्से से  तमतमाता चेहरा दिख रहा था. पास आते ही उस ने अपने काम में तेजी ला दी. कुछ ही देर में उसे एक और उपकरण मिला. यह उपकरण ले कर वह फिर से अपने यान की ओर गया.

मंजिशी बोली, “उसे प्रज्ञान घुमंतू के हिस्से मिल रहे हैं. जो दूसरा उपकरण वह ले कर गया है, वह प्रज्ञान घुमंतू का दूसरा उपकरण है.”राजेश बोला, “वह उपकरण लेले कर अपने यान की ओर क्यों जा रहा है?”

मंजिशी बोली, “शायद, वह अकेला ही है. उन की कल्पना में भारत की ओर से इतने जल्दी किसी अंतरिक्ष यात्री को चंद्रमा पर भेजने की संभावना शून्य है. इसीलिए वह यान के अंदर लगे अपने कैमरे से धरती पर मौजूद चीनी टीम के सदस्यों को उपकरण दिखा कर उन की राय ले रहा है. हम लोग अपनी खोज जारी रखते हैं.”

मिशन भाग-4:क्यों मंजिशी से नाखुश थे सब

भारतीय अंतरिक्ष संस्थान के वैज्ञानिकों को पता था कि चंद्रमा के भूविज्ञान की पूरी तसवीर बनाने के लिए विभिन्न चंद्र लैंडिंग साइटों का चयन करना महत्वपूर्ण है. दक्षिणी ध्रुव में विशेष रूप से उन की दिलचस्पी इसीलिए थी कि यहीं पर चंद्रयान-2 मिशन के पूर्ववर्ती, चंद्रयान -1 के और्बिटर पर लगे उपकरणों ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास हमेशा छायादार बने संघात गड्ढों में दबे पानी की बर्फ के स्लैब का पता लगाया था. चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर जहां उतरने वाला था, वहां हुडप्रभा और त्रिजोनी नामक दो संघात गड्ढे थे. चंद्रमा की सतह पर लाखों संघात गड्ढे थे, जो धरती से भी दिखाई देते थे. मंजिशी और राजेश ने अपने चंद्र मौड्यूल को हुडप्रभा और त्रिजोनी से तकरीबन एक किलोमीटर की दूरी पर, ‘शक्तिपीठ’ नामक जगह पर उतारा.

राजेश को भी नहीं बताया गया था कि चंद्र मौड्यूल कहां उतरने वाला था. सिर्फ मंजिशी को ही इस बात की जानकारी थी कि चंद्रमा की सतह पर चंद्र मौड्यूल को कहां उतारा जाएगा.

चंद्र मौड्यूल के चंद्रमा पर बराबर ढंग से स्थापित हो जाने पर सब से पहले मंजिशी ने उस में से बाहर निकल कर चंद्रमा की सतह पर कदम रखा. मंजिशी के पीछेपीछे राजेश ने चंद्र मौड्यूल से निकल कर चंद्रमा को छुआ.

राजेश ने आश्चर्य से चंद्रमा की इस कुछकुछ अंतराल पर गड्ढों से भरी सतह को देखा और मंजिशी से अनायास ही पूछा, “यह जगह क्यों चुनी है हम ने उतरने के लिए?”

मंजिशी ने अपने स्पेस हेलमेट के भीतर से ही जवाब दिया, “यहीं से एक किलोमीटर की दूरी पर, विक्रम लैंडर, हुडप्रभा और त्रिजोनी संघात गड्ढों के नजदीक उतरने वाला था. लेकिन, मंजिशी ने अपने पैरों के नीचे की जमीन की तरफ इशारा कर के कहा, “यहां पर आ गिरा. इसे ‘शक्तिपीठ’ कहते हैं. यहां पर विक्रम लैंडर के अनेकानेक टुकड़े गिरे पड़े हैं.”

विक्रम लैंडर, चंद्रमा पर भारत के चंद्रयान-2 मिशन का हिस्सा था, जिसे जुलाई 2019 में लौंच किया गया था. यदि चंद्रयान-2 सहीसलामत चंद्रमा की सतह पर पहुंच गया होता, तो भारत चंद्रमा पर सफलतापूर्वक लैंडर लगाने वाला चौथा देश होता. लेकिन सतह से 3 किलोमीटर से भी कम ऊंचाई पर, विक्रम, नियोजित अवरोही पथ से भटक गया और रेडियो संपर्क से बाहर हो गया. चंद्रमा की सतह पर, जहां उसे लैंड करना चाहिए था, वहां से एक किलोमीटर की दूरी पर गिर कर उस के टुकड़ेटुकड़े हो गए और सतह पर बिखर गए.

भगवान शंकर की पत्नी, और दक्ष की पुत्री, सती, पिता दक्ष द्वारा न बुलाए जाने पर और भोलेनाथ शंकर के रोकने पर भी अपने पिता के द्वारा किए जा रहे ‘बृहस्पति सर्व’ नामक यज्ञ में भाग लेने चली गई थीं.यज्ञस्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से अपने पति को न आमंत्रित करने का कारण पूछा और उन का विरोध किया.

इस पर सती के पिता ने महादेव को अपशब्द कहे. इस अपमान से पीड़ित हो कर सती ने यज्ञ के अग्निकुंड में कूद कर अपनी प्राणाहुति दे दी थी. तत्पश्चात, संपूर्ण विश्व को शिवजी के क्रोध से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई टुकड़ों में काट दिया. वे टुकड़े जिन जगहों पर गिरे, वे स्थान ‘शक्तिपीठ’ कहलाए.

विक्रम लैंडर के टूटने की कहानी भी यही थी. इसीलिए विक्रम लैंडर जहां टूट कर गिरा, उस स्थान को ‘शक्तिपीठ’ नाम दे दिया गया.मंजिशी ने चंद्र मौड्यूल को ‘शक्तिपीठ’ पर ही उतारा था, और राजेश को इस बात का पता यहां पहुंच कर ही चला.

राजेश के आश्चर्य की सीमा नहीं थी. सबकुछ गोपनीय रखा गया था. न तो उसे, न ही सतजीत को इस मिशन की अधिक जानकारी थी. प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री होने की वजह से उन्हें मंजिशी के साथ भेजा गया था. अगर मंजिशी को अकेले ही चंद्रमा तक भेज पाना संभव होता, तो शायद रामादुंडी और उन्नाकीर्ती ऐसा ही करते. लेकिन इतने बड़े और दूरस्थ मिशन में बहुत सारी अभियांत्रिक प्रणालियों को नियंत्रित रखना एक व्यक्ति के बस की बात नहीं होती है.

मंजिशी और राजेश के स्पेस हेलमेट के अंदर फिट रिसीवर में धरती पर उन से संपर्क बनाए हुए उन्नाकीर्ती की उत्साहित आवाज आई, “आप लोग चंद्रमा पर उतर गए?”मंजिशी ने राहत भरी आवाज में उत्तर दिया, “जी …”, लेकिन मंजिशी के उत्तर देने की देर थी कि दूर कहीं किसी अन्य यान के उतरने की आवाजें आनी शुरू हो गईं.

मंजिशी ने उन्नाकीर्ती से जल्दीजल्दी कहा, “सर, समय बहुत कम है. वे लोग पहुंच चुके हैं. हम लोग अपना काम शुरू कर देते हैं.”राजेश ने हैरतअंगेज निगाहों से उस ओर देखा, जहां पर दूसरा अंतरिक्ष यान लैंड करने वाला था. दूर कहीं उसे चंद्रमा की मिट्टी उड़ती हुई दिखाई दी. उतरता हुआ दूसरा यान, अपने नीचे की चंद्रमा की मिट्टी को उड़ा रहा था.

राजेश हक्काबक्का हो गया, “दूसरा यान…? ये किस का हो सकता है?”मंजिशी ने राजेश से शीघ्रता से कहा, “राजेश, हमारे पास समय बहुत ही कम है. विक्रम लैंडर के इन टुकड़ों में एक छोटा सा उपकरण है. उस के ऊपर ह-3 लिखा हुआ है. बिलकुल माचिस की डब्बी जितना है. उसे फटाफट खोजो.”

राजेश की उलझनें बढ़ गई थीं. उस ने तुरंत यहांवहां देखते हुए मंजिशी से पूछा, “ये दूसरा यान क्या हमारा ही है? ऐसे कैसे दोदो यान एक ही समय पर चंद्रमा की एक ही जगह पर आ गए हैं? ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं है.”मंजिशी ने ह-3 की डब्बी खोजते हुए उतावलेपन से कहा, “यह यान चीन का है. जैसे ही यह सफलतापूर्वक चंद्रमा पर उतरेगा, उस में से चीनी अंतरिक्ष यात्री निकलेंगे. वे भी इसी डब्बी को लेने आए हैं.”

राजेश ने नीचे झुक कर चंद्रमा की मिट्टी को यहांवहां धकेला और तलाश जारी रखते हुए दृढ़ता से कहा, “लेकिन डब्बी तो हमारी है. वे क्यों इसे लेने आए हैं?”मंजिशी ने खीझते हुए कहा, “दूसरों की चीजें कोई बलपूर्वक या छल से क्यों लेता है?”

राजेश की समझ में आ गया कि चीनी अंतरिक्ष यात्रियों के इरादे नेक नहीं थे. वे विक्रम लैंडर से निकले हिंदुस्तान के उपकरण को हथियाने आए थे. इस से पहले कि वे अपने नापाक इरादों में कामयाब होते, राजेश और मंजिशी को वह डब्बीरूपी उपकरण ढूंढ़ लेना था.

राजेश ने एक छोटे गड्ढे में मिट्टी को अव्यवस्थित करते हुए तलाशा और तलाशते हुए पूछा, “इस छोटी डब्बी की ऐसी क्या विशेषता है कि उस को लेने के लिए अरबों रुपयों का मिशन हम को खड़ा कर देना पड़ा? इस को तो हम दोबारा से अपने अनुसंधान केंद्रों में भी बना सकते थे.”

मंजिशी को पता था कि इस प्रश्न का उत्तर तो उसे राजेश को कभी न कभी देना ही पड़ेगा. अब वह वक्त आ गया था, जब राजेश को उस के प्रश्नों के उत्तर दिए जाएं. पूरे समय तक राजेश और उस की पूरी टीम को अंधेरे में रखा गया था.

मिशन भाग-2: क्यों मंजिशी से नाखुश थे सब

लूनर मिशन का मतलब था चंद्रमा तक जाने का मिशन. राजेश बोला, “और सर, जहां तक मेरी जानकारी है, एलएलवी की डिजाइन सिर्फ कागजी है. उस के सभी सिस्टम्स की पूरी तरह से टेस्टिंग नहीं हुई है. अभी तो कम से कम एक साल और लगेगा एलएलवी को पूरी तरह से आपरेशनल होने में.”

सतजीत ने हामी भरी, “बिलकुल सही कहा. एलएलवी तो अभी लांच के लिए कतई तैयार नहीं है.”कांफ्रेंस में, कोने में, जहां अंधेरा था, वहां कुरसी लगा कर टाईकोट पहने हुए एक व्यक्ति बैठा था. उस ने हस्तक्षेप किया, “आप लोग भूल रहे हो कि हम लोग चंद्रयान मिशन द्वारा चंद्रमा तक जा चुके हैं.”

राजेश ने तुरंत कहा, “लेकिन, हमारे सभी चंद्रयान मिशन बिना किसी अंतरिक्ष यात्री को ले कर चंद्रमा तक गए हैं. इस बार हम अंतरिक्ष यात्री वाले मिशन की बात कर रहे हैं, जो हिंदुस्तान का सब से पहला ऐसा मिशन होगा. इस के लिए हम उसी राकेट का इस्तेमाल नहीं कर सकते, जो बिना किसी इनसान के मिशनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है.”

टाईकोट वाले व्यक्ति ने सरलता से कहा, “बिलकुल कर सकते हैं. उसी राकेट में बहुत सारे परिवर्तन कर के,” फिर एक क्षण रुक कर वे बोले, “लेकिन, एलएलवी तो पूरी तरह से नया डिजाइन है. उस के लिए आप लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है.”

पद्मनाभन और भी परेशान था, “लेकिन सर, धरती से सिर्फ 300 किलोमीटर ऊपर जाने के लिए हम इतने भारी एलएलवी का इस्तेमाल क्यों करना चाहते हैं? एलएलवी तो चंद्रमा तक जाने के लिए है, जो धरती से 4 लाख किलोमीटर की दूरी पर है. हमारे 300 किलोमीटर की दूरी के लिए लोअर्थ राकेट ही उपयुक्त है. 4 लाख किलोमीटर वाली शक्ति वाला राकेट तो वैसे भी हमारे लिए बहुत बड़ा और वजनी हो जाएगा.”

निदेशक रामादुंडी ने सकुचाते हुए कहा, “हमारा मिशन चंद्रमा तक जाने का ही है…”राजेश चिढ़ कर खड़ा हो गया, “सर, कैसी बात कर रहे हैं आप? हमारा मिशन तो शून्यकोर मिशन है, जो धरती से सिर्फ 300 किलोमीटर ऊपर जा कर वापस आने वाला मिशन है. हम लोग तो सब से पहले सिर्फ यही देखना चाहते हैं न कि हिंदुस्तान में, और भारतीय अंतरिक्ष संस्था में, स्वयं से ही बनाए गए उपकरणों द्वारा हम सिर्फ धरती के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकल कर इनसानों को वापस ला सकते हैं या नहीं. इस में चंद्रमा तक जाने की बात कहां आ गई?”

मंजिशी, जो अब तक शांत रह कर सब सुन रही थी, ने कहा, “जिस तकनीक का इस्तेमाल हम शून्यकोर मिशन के लिए कर रहे थे, वही सबसिस्टम्स चंद्रमा के मानव मिशन में भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं और सभी सुचारु रूप से काम कर रहे हैं. मैं ने खुद भी उन का निरीक्षण कर लिया है.”

राजेश का मानो सैलाब फूट पड़ा, “आप ने क्या खाक निरीक्षण कर लिया है. किसी रेलगाड़ी से 300 किलोमीटर सफर करना और 4 लाख किलोमीटर की दूरी तय करना, क्या ये दोनों बातें आप को एकजैसी लगती हैं…?”अगर दोनों बातें आप को एकजैसी लगती हैं, तो आप के जैसे इनसान को अंतरिक्ष वैज्ञानिक तो क्या, साधारण वैज्ञानिक भी नहीं होना चाहिए.”

मंजिशी ने बिना रोष प्रकट किए हुए कहा, “लेकिन, एक पैसेंजर रेलगाड़ी और एक सुपरफास्ट एक्सप्रेस, दोनों के अंजरपंजर एक ही समान रहते हैं, और दोनों की तकनीक व बनने की विधि भी एक ही रहती है.”राजेश ने गुस्से से अपने हाथ हिला दिए, “मुझे आप से बहस नहीं करनी. 300 किलोमीटर के शून्यकोर मिशन में अंतरिक्ष यात्रा कुछ घंटों में ही समाप्त हो जाएगी, जबकि चंद्रमा तक जाने में ही 4 दिन लग जाएंगे, और वापस आने में भी 4 दिन. इस के अलावा वहां पर बिताया गया समय. इस पूरी अवधि के लिए पता नहीं कितनी और किसकिस प्रकार की सामग्री लगेगी. इस की पूरी स्टडी करनी पड़ेगी. अमेरिका के चंद्रमा तक अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने वाले अपोलो मिशन का गहराई से अध्ययन करना पड़ेगा. उन से तकनीकी सहायता मांगनी पड़ेगी. शून्यकोर मिशन से काफी अलग मिशन होगा यह.”

टाईकोट वाला व्यक्ति उठ खड़ा हुआ. उस ने मुसकरा कर राजेश को संबोधित किया, “तुम उस की चिंता मत करो. पिछले एक साल से तकरीबन सौ वैज्ञानिकों की टीम दिनरात एक कर के इसी पर काम कर रही है, मजिशी के नेतृत्व में. मंजिशी को इस टीम और उन के कामों के बारे में समस्त जानकारी है.”

दोरंजे ने हिम्मत से टाईकोट पहने महत्वपूर्ण से दिखने वाले व्यक्ति से कहा, “सर, लेकिन मास्को के गागरिन अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र में हमारा प्रशिक्षण सिर्फ चंद घंटों की अंतरिक्ष यात्रा के लिए हुआ है. हम 4 लोगों की यह टीम, 10 दिन की अंतरिक्ष यात्रा तो क्या, 24 घंटे की अंतरिक्ष यात्रा तक करने में बिलकुल असक्षम है.”

टाईकोट वाले व्यक्ति ने कहा, “मंजिशी के नेतृत्व में सब सफल हो जाएगा. रास्ते में क्या कैसे करना है, सब मंजिशी समझा देगी. उस को पूरा प्रशिक्षण है.”पद्मनाभन ने मजाक उड़ाने के लहजे में कहा, “सर, जब हिंदुस्तान में रह कर ही चंद्रमा तक जाने का अंतरिक्ष प्रशिक्षण मिल सकता है, तो मात्र 300 किलोमीटर के अंतरिक्ष प्रशिक्षण के लिए हमें रूस भेजने की क्या आवश्यकता थी?”

दोरंजे को भी यह बात गलत लगी, “हिंदुस्तान में ऐसी कौन सी जगह है, जहां गागरिन अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र जैसा कोई प्रशिक्षण केंद्र है? मेरी नजर में तो ऐसा प्रशिक्षण केंद्र पूरे देश में कहीं नहीं है.”

प्रोजैक्ट लीडर उन्नाकीर्ती ने चारों का गुस्सा होना जायज समझा और शांत किंतु दृढ़ आवाज में कहा, “मंजिशी का चंद्रमा तक जाने का प्रशिक्षण अनुकारी पर हुआ है.”

अनुकारी प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले वाहन, विमान और अन्य जटिल प्रणाली के संचालन की यथार्थवादी नकल प्रदान करने के लिए डिजाइन किए गए नियंत्रणों के समान सेट वाली एक मशीन थी.

राजेश ने उपहास किया, “वाह, मशीन पर प्रशिक्षण प्राप्त अनुकारी अंतरिक्ष यात्री के नेतृत्व में हम चंद्रमा तक जाएंगे.”राजेश ने अपने तीनों साथियों को संबोधित करते हुए कहा, “लो भई, अब तो वाकई पहुंच गए हम चंद्रमा तक.”

उन्नाकीर्ती ने बात बिगड़ते देख तुरंत कहा, “अनुकारी पर जितने प्रकार की परिस्थितियों को हल करने का प्रशिक्षण मंजिशी ने प्राप्त किया है, आप चारों ने कुल मिला कर उस का एक प्रतिशत भी नहीं किया है.”

मंजिशी ने हंस कर कहा, “किस बात का डर है तुम चारों को? ज्यादा से ज्यादा क्या होगा?”टाईकोट वाले व्यक्ति ने देशभक्ति की भावना से राजेश और उस की टीम के सदस्यों से पूछा, “सिर्फ प्रश्न यह है कि क्या तुम हिंदुस्तान के अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे सकते हो?”

मिशन भाग 1: क्यों मंजिशी से नाखुश थे सब

राजेश ने अपकेंद्रित्र यानी सेंट्रीफ्यूज से बाहर कदम रखा और एक गहरी सांस भर कर उसे देखा. गागरिन अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र में अंतरिक्ष यात्रा का प्रशिक्षण ले रहे चार सदस्यों के भारतीय दल का कप्तान था वह. बाकी के लोग उसे कप्तान राजेश कह कर संबोधित करते थे.

आज प्रशिक्षण का अंतिम दिन था. रूस के प्रशिक्षकों के मुताबिक चारों ने सफलतापूर्वक प्रशिक्षण पूरा कर लिया था और वापस भारत लौटने के लिए वे चारों तैयार थे.

भारतीय अंतरिक्ष संस्था के अगले मिशन में बारीबारी से दोदो की टीमों में इन चारों को भेजा जाने वाला था. राजेश ने तीनों को इकट्ठा किया और उन से अपनी वापस भारत यात्रा की तैयारी के बारे में पूछा. सभी तैयार थे.कुछ घंटों बाद, अपने सामान सहित, चारों अंतरिक्ष यात्रियों के इस दल ने मोस्को से बेंगलुरु की उड़ान भरी और हिंदुस्तान पहुंचे.

उस दिन आराम करने के बाद, अगले दिन प्रारंभिक पूछताछ के पश्चात अंतरिक्ष यात्रा विभाग के निदेशक रामादुंडी ने उन्हें अपने कमरे में बुलाया.निदेशक रामादुंडी को इसी संस्था में काम करते हुए 30 से भी अधिक वर्ष हो गए थे.

निदेशक रामादुंडी ने चारों को बिठाया और यहांवहां की दोचार बातें करने के बाद कहा, “मिशन की तारीख आ चुकी है.”चारों मानो खुशी से उछल गए. उन्होंने कभी सपने में भी इस बात की उम्मीद नहीं की थी.निदेशक रामादुंडी ने चारों को गंभीर निगाहों से देख कर कहा, “सिर्फ एक बात मैं तुम को बताना चाहता हूं”, फिर कुछ रुक कर उन्होंने संकोच से कहा, “इस मिशन का नेतृत्व मंजिशी जोबला करेंगी.”

यह सुन कर चारों भौंचक्के से रह गए. कप्तान राजेश को मानो काटो तो खून नहीं.राजेश ने हैरानी से कहा, “सर, लेकिन उस ने तो अंतरिक्ष यात्रा का हमारे साथ कोई प्रशिक्षण भी नहीं लिया है.”इस पर निदेशक रामादुंडी बोले, “मंजिशी पूरी तरह से प्रशिक्षित है.”

राजेश को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था, “लेकिन, हम में से किसी ने भी यह नाम कभी सुना नहीं है. किसी मंजिशी जोबला ने कभी लड़ाकू विमान का पायलट बनने का भी प्रशिक्षण लिया है क्या?”

निदेशक रामादुंडी ने उन्हें शांतिपूर्वक समझाया, “उसे अलग से प्रशिक्षण दिया जा रहा था.”थोड़ी देर बाद, बैठक के समाप्त होने पर चारों कैंटीन  में आ गए. सतजीत, दल के दूसरे सदस्य, ने गरम हो कर कहा, “ऐसे कैसे किसी को भी उठा कर टीम के नेतृत्व का जिम्मा उसे सौंप दिया?”

पद्मनाभन, तीसरे सदस्य ने जोर दे कर कहा, “अब एक महिला से आदेश लेने पड़ेंगे हमें?”दोरंजे, चौथे सदस्य ने भी चिंता व्यक्त की, “मैं तो सारे शून्यकोर मिशन पर काम करने वाले अभियांत्रिकों को जानता हूं. ऐसा कोई नाम तो मैं ने पहले कभी नहीं सुना.”

शून्यकोर, अंतरिक्ष में भेजा जाने वाला अगला मिशन था, जिस में दोदो की टीमों में इन चारों को भेजा जाने वाला था. ‘शून्यक की ओर’ अर्थात, ‘शून्यकोर’, भारत के अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष के शून्यक में भेजा जाने वाला यान था.

शून्यकोर-1 में राजेश व सतजीत और शून्यकोर-2 में पद्मनाभन और दोरंजे को भेजना तय था. लेकिन अब मंजिशी का नाम बीच में आ गया था. चारों के मन में यह भी आशंका बैठ गई कि हो सकता है कि मंजिशी उन चारों में से किसी एक का स्थान ले ले, और किसी एक को अंतरिक्ष में जाने का मौका ही न मिले.

राजेश ने गंभीरता से कहा, “उस को टीम का सदस्य बनाना एक बात थी. लेकिन सीधे कप्तान बना दे रहे हैं उस को?”जाहिर है कि रूस प्रशिक्षित इस माहिर टीम का नेतृत्व सिर्फ वही व्यक्ति कर सकता था, जो खुद इन लोगों से ज्यादा निपुण हो.

पद्मनाभन बोला, “हमारी सारी ट्रेनिंग इस बात को ध्यान में रख कर दी गई थी कि राजेश इस टीम की अगुआई करेंगे. अब पूरी टीम की डायनामिक्स ही परिवर्तित हो जाएगी.”2 दिन बाद एग्जीक्यूटिव कांफ्रेंस रूम में इस 4 सदस्यीय दल की मुलाकात मंजिशी जोबला से हुई.

मंजिशी, साढ़े 5 फुट ऊंची, किसी कुश्ती खेलने वाली महिला खिलाड़ी की तरह दिखती थी. दिखने में वह साधारण थी, लेकिन ऐसा लगता था कि वह कुछ करने के लिए तत्पर है.

कांफ्रेंस में मौजूद निदेशक रामादुंडी ने अपने साथ आए हुए व्यक्ति का परिचय देते हुए सभी लोगों को बताया, “ये मिस्टर उन्नाकीर्ती हैं. ये प्रोजैक्ट लीडर हैं. धरती पर आप का संपर्क इन्हीं से रहेगा.”

मिस्टर उन्नाकीर्ती, छोटे, नाटे कद का वैज्ञानिक था, जिस ने स्पेस कम्यूनिकेशन में महारत हासिल कर ली थी. इसी वजह से उसे प्रोजैक्ट लीडर बना दिया गया था.उन्नाकीर्ती ने समय न जाया करते हुए कहा, “लांच की सारी तैयारियां अणकोल के लांच सेंटर में जोरों से हैं. काउंटडाउन शुरू हो चुका है. एक हफ्ते बाद ही एलएलवी की लांच तारीख तय कर दी गई है.”

मंजिशी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन राजेश और उस के साथी मानो अपनी कुरसियों से ही गिर पड़े. दोरंजे ने हैरानी से कहा, “सर, इतनी जल्दी लांच…? सिर्फ एक हफ्ते बाद?”

सतजीत और भी भौंचक्का था, “सर, हमारा एलएलवी तो लूनर लांच व्हीकल है… हमारा प्रशिक्षण तो धरती से मात्र 300 किलोमीटर ऊपर के अंतरिक्ष तक ही सीमित है. उस के लिए हम अपने साधारण राकेट, लोअर्थ राकेट का इस्तेमाल करने वाले थे. लूनर लांच व्हीकल तो लूनर मिशन के लिए डिजाइन किया गया है.”

Winter Special: शाम के नाश्ते में बनाएं चटपटे पौप्स

शाम के नाश्ते के लिए अगर आप चटपटी रेसिपी ढूंढ रहे हैं तो चटपटे पौप्स की ये हैल्दी रेसिपी ट्राय करें.

सामग्री

–  10-15 मशरूम

–  1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन का पाउडर

–  1 छोटा चम्मच प्याज का पाउडर

–  1 कप बै्रडक्रंब्स

–  1 छोटा चम्मच लहसुन बारीक कटा

–  1 नीबू

–  1 बड़ा चम्मच कौर्नफ्लोर

–  तेल आवश्यकतानुसार

–  1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर

–  1 बड़ा चम्मच शहद

विधि

मशरूम को आधाआधा काट लें. ब्रैडक्रंब्स एक प्लेट में निकाल लें. बाकी सारी सामग्री को एक बड़े बरतन में डालें. थोड़ा सा पानी डाल कर मैरिनेशन तैयार कर लें. इस तैयार मैरिनेशन में मशरूम मिला कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. अब 1-1 मशरूम उठा कर ब्रैड क्रंब्स में लपेट लें. सारे तैयार मशरूम एक ट्रे में रख कर 1-2 घंटों के लिए फ्रिज में रख दें. तेल में तल कर चटनी के साथ परोसें.

बिदाई- भाग 1: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘मां मैं ने ठान लिया है कि मैं अभिनेत्री ही बनूंगी. अच्छा होगा आप और पापा भी मेरे इस निर्णय में मेरा साथ दो. वैसे भी जब मैं ने निर्णय ले ही लिया है तो करूंगी तो मैं वही,’’ रूहानी का सुर सख्त था. वह शुरू से अडि़यल रही थी. बड़ा होने के साथ, जल्द से जल्द पैसा और शोहरत पाने की धुन ने उसे और भी कठोर बना दिया था. मातापिता का उस के निर्णय में साथ देने या न देने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था. जब से उस की एक सहेली ने उसे एक एजेंट से मिलवाया था और उस एजेंट ने रूहानी को टैलीविजन पर उच्च कोटि की अभिनेत्री बनवाने के सुनहरे ख्वाब दिखाए थे, तब से रूहानी लगातार वही सपना देख रही थी. वह एजेंट भी लगभग रोज ही उसे फोन करता और जल्दी नोएडा पहुंचने को कहता. रूहानी भी उसी समय अपने मातापिता से जिद करने लगती.

‘‘मैं कहती हूं जी, यदि हम रूहानी को अपने साथ, अपने पास रखना चाहते हैं, तो हमें उस का साथ देना चाहिए वरना 18 वर्ष की तो वह हो ही गई है… घर छोड़ कर चली गई तो हम क्या कर पाएंगे?’’ उस की जिद के आगे मां ने हार मान ली थी. अब वे अपनी बेटी को खोना नहीं चाहती थीं, इसलिए उस के पिता को समझाबुझा रही थीं.

‘‘क्या तुम जानती नहीं हो कि वह कैसी दुनिया है… जितनी चकाचौंध है, उतना ही तनाव भी… जितना पैसा है, उतनी ही प्रतिस्पर्धा भी. जितनी जल्दी शोहरत मिलती है, उतना ही कठिन उस शोहरत को अपने पास बनाए रखना होता है. तुम्हें लगता है कि रूहानी इतनी कठिन जिंदगी जी पाएगी? और नोएडा यहां रखा है क्या? कितनी दूर है हमारे शहर से. वहां अकेली कैसे रहेगी वह?’’ पिता अब भी राजी न थे. लेकिन वयस्क बेटी की जिद के आगे कब तक टिक पाते?

रूहानी ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा और निकल पड़ी घर से. पटरियों पर तेजी से दौड़ती ट्रेन से खिड़की से बाहर झांकते हुए, भागते हुए पेड़ों के साथ उस के मानसपटल पर अतीत के क्षण भी दौड़ने लगे…

कैसे उस एजेंट ने रूहानी को देखते ही 2-3 टीवी धारावाहिकों की बात कह डाली थी, ‘‘अरे रूहानी, तुम एक बार नोएडा आओ तो सही, औडिशन में तुम्हारा नंबर लगाना मेरा काम है… मैं दावे से कह सकता हूं कि तुम्हारा चयन हो जाएगा. फिर तुम्हें एक मैनेजर की आवश्यकता पड़ेगी… चलो, उस का इंतजाम भी कर दूंगा. अब बस, रातोंरात स्टार बनने की तैयारी कर लो, डार्लिंग.’’

ट्रेन में अकेले नोएडा जाते हुए वह सोचती जा रही थी, ‘आज मैं इस भीड़ का हिस्सा हूं. मुझे कोई नहीं जानता. मैं भी इन लोगों में, इन्हीं की तरह खो गई हूं, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब मैं इसी भीड़ की रोल मौडल होऊंगी,’ मन ही मन मुसकराती रूहानी पर किसी का ध्यान नहीं था.

आज वाकई वह इस भीड़ का हिस्सा थी. लेकिन भविष्य किस ने देखा है? शायद इसीलिए भविष्य के सपने सजानादिखाना आसान है. बहुत सी दुकानें इसी स्वप्निल भविष्य को बेच रही हैं… बहुत से लोग दूसरों के भविष्य को दिखा कर अपना वर्तमान सुधार रहे हैं.

नोएडा पहुंचते ही रूहानी ने उस एजेंट से संपर्क साधा. फिर उसी ने रूहानी को नोएडा से सटे एक सस्ते से गांव में पीजी में एक कमरा दिलवा दिया. रूहानी के साथ वहां 3 लड़कियां और रहती थीं.

कमरे की हालत देख रूहानी के सपने थोड़े चटकने लगे. बोली, ‘‘आप ने तो कहा था कि आप मुझे रातोंरात स्टार बना दोगे, पर यहां तो…’’

‘‘डोंट बी सिली रूहानी, स्टार बनने में मेहनत लगती है… पहले पेड़ उगाओ, फिर आम खाना. खैर, छोड़ो ये फुजूल की बातें, मैं ने कल तुम्हारे लिए एक औडिशन में नंबर लगाया है. ठीक 10 बजे पहुंच जाना इस पते पर,’’ वह उसे पता लिखा कागज पकड़ा गया.

सुबहसुबह तैयार हो रूहानी निश्चित समय पर निर्धारित स्थान पहुंच गई. नई जगह, नई संस्कृति. रूहानी थोड़ा असहज अनुभव कर रही थी. वहां लंबी कतार लगी थी. रूहानी का नंबर आतेआते तीसरा पहर आ गया.

भूखीप्यासी रूहानी थकान से बेहाल थी. अपना नाम पुकारे जाने पर चेहरा थोड़ा संवार कर वह अंदर पहुंची. जो लाइनें उसे दी गई थीं, उन्हें उस ने याद कर लिया था, किंतु पहली बार कैमरे के सामने बोलने के कारण उस के चेहरे पर कोई हावभाव न आ पाए. एक रोबोट की भांति उस ने लाइनें बोल दीं. जाहिर है वह उस औडिशन में नहीं चुनी गई. एक तो अनुत्तीर्ण होने का दुख, ऊपर से एजेंट से अच्छीखासी डांट सुननी पड़ी, वह अलग. एजेंट उसे अलगअलग जगह औडीशन पर भेजता, किंतु कैमरे के सामने आते ही पता नहीं रूहानी को क्या हो जाता. इसी भागदौड़ में 3 माह गुजर गए. घर से जो पैसे लाई थी, वे खत्म होने लगे थे. साथ रह रही अन्य लड़कियों का भी यही हाल था. सभी इस रुपहली दुनिया का हिस्सा बनने आई थीं, किंतु कामयाबी किसी के भी हाथ नहीं लग रही थी.

रूहानी के चेहरे का फायदा उठाने और कैमरे के प्रति उस की झिझक मिटाने हेतु एजेंट ने पहले उस से मौडलिंग करवाने की सोची. नियत समय पर रूहानी मालवीय नगर की गलियों में स्थित मौडलिंग एजेंसी पहुंच गई. वहां भी लड़कियों की लंबी कतार. वहां का एजेंट बेशर्मी से लड़कियों के बदन को छू रहा था. हर लड़की के बदन के हर हिस्से का नाप ले रहा था और जोरजोर से उसे दूसरे लड़के को बताता जा रहा था, जो उसे एक कागज पर लड़कियों के नाम के आगे लिखता जा रहा था.

हद तो तब हुई जब उस ने रूहानी के आगे खड़ी लड़की के नितंब दबा कर पूछा, ‘‘असली हैं?’’

रूहानी के लिए यह सब अप्रत्याशित था. लेकिन कहते हैं न भट्टी में तप कर ही सोना कंचन बनता है. धीरेधीरे रूहानी भी ऐसे कल्चर की आदी हो गई. उस की झिझक खुलने लगी. उस के हावभाव, उस की भावभंगिमा में खुलापन आ गया. छोटेमोटे विज्ञापन कर कुछ पैसा भी आने लगा था. इस शहर में रहना अब रूहानी के लिए संभव होता जा रहा था.

शायद रूहानी के एजेंट ने अपना लक्ष्य पाने को सही मार्ग अपनाया था. कुछ था उस की आंखों में, उस के चेहरे में जो उस एजेंट ने भांप लिया था. रूहानी को उस ने फिर एक टीवी धारावाहिक के औडिशन हेतु भेजा.

इस बार रूहानी के सपने सिर्फ हवाई नहीं थे. रूहानी को एक छोटा रोल मिल गया, लीड ऐक्ट्रैस की ननद की भूमिका निभाने का.

शुरू में रूहानी को यह काम भी और कामों जैसा ही प्रतीत हुआ जैसे दफ्तर जा रही हो. उतनी ही मेहनत, वैसी ही समयसारिणी, बल्कि छुट्टियां उस से कहीं कम. न कोई शनिवार, न कोई इतवार…चाहे बुखार ही क्यों न आ जाए. दवा फांको और चलो काम पर. किंतु जैसेजैसे उस धारावाहिक की टीआरपी बढ़ने लगी, लोग उस के किरदार को पहचानने लगे. रूहानी का मकानमालिक अब उस से तमीज से पेश आता. कभीकभार उस के बच्चे, अपने मित्रों सहित रूहानी के साथ सैल्फी लेने चले आते.

उसे अच्छा लगता जब उस का एजेंट उसे किसी भी वेशभूषा में बाजार जाने से मना करता, ‘‘अब तुम एक सैलिब्रिटी हो, डार्लिंग, यों उठ कर अब तुम मार्केट नहीं जा सकती हो… अपना सामान औनलाइन और्डर कर दिया करो.’’

धारावाहिक करतेकरते रूहानी को 1 साल होने को आ रहा था. इस बीच अपने मातापिता से उस का संपर्क बहुत ही कम रह गया था. क्या करती समय ही नहीं था उस के पास. जब कभी मिलना होता तब उस के मातापिता ही चले आते उस के पास. लेकिन तब भी वह उन के साथ बहुत ही कम समय व्यतीत कर पाती.

जीवन की डाटा एंट्री: रोहित के साथ क्या हुआ

इधरउधर नजरें घुमा कर अनंत देसाई ने आफिस का मुआयना किया. उन्होंने आज ही अखबार के आधे पृष्ठ का रंगीन विज्ञापन देखा था. डेल्टा इन्फोसिस प्राइवेट लिमिटेड का नाम इस विज्ञापन में देख कर और उस की बारीकियां पढ़ कर देसाईजी ने चैन की सांस ली थी कि चलो, बेटे रोहित का कहीं तो ठिकाना हो सकता है. नौकरियां नहीं हैं तो क्या इस एम.एन.सी. (मल्टीनेशनल कंपनी) कल्चर ने रोजीरोटी के कुछ और रास्ते निकाल ही दिए हैं. उन से बेटे का हताशनिराश चेहरा अब और नहीं देखा जा रहा था.

रोहित एम.सी.ए. करने के बाद एक कंप्यूटर कंपनी की सेल्स मार्केटिंग में लगा हुआ था. सुबह 8 बजे का निकला रात के 8 बजे ही घर आ पाता था. धूप हो, बारिश हो या तबीयत खराब हो, वह छुट्टी की बात सोच भी नहीं सकता था, उस पर वेतन 2,500 रुपए.

अपने जहीन बेटे की ज्ंिदगी को 2,500 रुपए में गिरवी पड़ी देख कर अनंत देसाई को भारी छटपटाहट होती थी. उन्होंने एक दिन गुस्से में कहा भी था, ‘‘यह नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते?’’

रोहित ने लाचारी से आंखें उठाई थीं, ‘‘यह नौकरी छोड़ भी दूं तो करूंगा क्या? आप तो देख रहे हैं कि 2 वर्ष से लिखित परीक्षा पास कर के भी साक्षात्कार में मात खा रहा हूं. नौकरी हथिया लेता है कोई सिफारिशी लड़का या लड़की.’’

‘‘उच्च तकनीकी शिक्षा ले कर भी बाजार में नौकरी के लिए मारेमारे घूमते हो यह मुझ से देखा नहीं जाता है.’’

‘‘पापा, और रास्ता भी क्या है?’’ कह कर रोहित मायूस हो गया था.

अभी उसे नौकरी करते 5 महीने ही बीते थे कि रोहित बारबार बीमार पड़ने लगा जिस का असर उस के काम पर भी पड़ रहा था. इस से पहले कि

कंपनी वाले उसे नौकरी से निकाल देते उस ने नौकरी छोड़ दी.

इस के बाद से ही रोहित ने अपने को कमरें में बंद कर लिया. न घूमने निकलता, न दोस्तों से मिलता. मम्मी कभी जबरन उसे टेलीविजन के सामने बैठा देतीं तो उस की आंखें टीवी के परदे पर स्थिर हो जातीं लेकिन ध्यान कहीं और भटकता रहता.

अनंत देसाई ने रोजगार समाचार के अलावा अन्य अखबार भी मंगाने शुरू कर दिए थे. वह रोहित के लिए नौकरियों के विज्ञापन को लाल स्याही के घेरे में तो ले लेते लेकिन एक भी नौकरी जीवन के घेरे में नहीं आ पा रही थी.

पितापुत्र दोनों डेल्टा इन्फोसिस के कार्यालय की शानोशौकत से प्रभावित बैठे थे. यू आकार के काउंटर के पीछे 2 लड़के व 1 लड़की मुस्तैदी से काम कर रहे थे. दाईं तरफ बने एक केबिन को देख कर अनंत देसाई ने सोचा इस में जरूर डायरेक्टर नीलेश याज्ञनिक बैठे होंगे.

रिसेप्शन के गुदगुदे सोफे पर पहलू बदलते हुए अनंत देसाई ने धीमे से बेटे से कहा, ‘‘आफिस तो अच्छा है.’’

रोहित ने सिर हिला कर समर्थन किया. थोड़ी देर में चपरासी ने झुक कर कहा, ‘‘आप लोगों को सर बुला रहे हैं.’’

उन के अंदर आते ही नीलेश ने बड़ी गर्मजोशी से उन का स्वागत किया और दोनों से हाथ मिलाया. अनंत देसाई ने सीधे ही बता दिया, ‘‘देखिए, डाटा एंट्री के बारे में मैं थोड़ाबहुत जानता हूं. मैं अपने बेटे के लिए कोई काम ढूंढ़ रहा हूं. आप ने जो विज्ञापन दिया था उस के बारे में विस्तार से बताइए.’’

‘‘जरूर’’ नफासत से कंधे उचकाते हुए नीलेश ने कहना शुरू किया, ‘‘आजकल विदेशों में बड़े होटलों, अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों के पास समय नहीं है इसलिए वे अपनी स्केन फाइल के दस्तावेज बनवाने के लिए हमारे पास भेजते हैं. आप ने शायद ओबलौग इ लाइब्रेरी का नाम सुना होगा?’’ नीलेश ने सीधे ही उन की आंखों में देख कर पूछा.

न जानते हुए भी उन के मुंह से ‘हां’ निकला तो नीलेश ने कहा, ‘‘बस, वही हमारे सब से बड़े क्लाइंट हैं.’’

‘‘आप का यह पहला आफिस है?’’

‘‘नहीं, हमारे मुंबई और दिल्ली में भी आफिस हैं. वहां की प्रगति देख कर मैं ने सोचा कि एक आफिस यहां भी खोला जाए.’’

‘‘मेरा बेटा डाटा एंट्री का काम करना चाहता है. इस के लिए मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘डाटा एंट्री करने वाले कंप्यूटर आपरेटर कहलाते हैं. इन से हम 2,500 रुपए सिक्योरिटी मनी के रूप में लेते हैं. वे यह काम घर बैठ कर भी कर सकते हैं.’’

‘‘जी, इस काम से आगे क्या उम्मीद की जा सकती है?’’

‘‘अजी साहब, अभीअभी तो यह काम शुरू हुआ है पर जो विदेशी कंपनियां भारत को काम दे रही हैं वे यहां के प्रतिभावान लोगों को अपने देश में भी बुला सकती हैं.’’

‘‘पहले काल सेंटर व ट्रांसक्रिप्शन का ऐसा ही शोर मचा था. कुछ काल सेंटर तो बंद भी हो गए.’’

‘‘उन के प्रबंधक नाकाबिल रहे होंगे. बड़े शहरों में तो अभी भी धड़ल्ले से काल सेंटर चल रहे हैं. मुझे कोई जल्दी नहीं है, आप सोच लीजिए. वैसे मेरे पास इतना काम है कि मैं 400 लोगों को काम दे सकता हूं.’’

अनंत देसाई ने फौरन कहा, ‘‘मैं 2,500 रुपए अभी देना चाहता हूं.’’

‘‘धन्यवाद, आप इस काम की पूरी जानकारी यहां के मैनेजर सोमी से ले लीजिए और उन्हीं के पास रुपए जमा कर दीजिए.’’

केबिन से बाहर आ कर उन्होंने देखा बाईं तरफ लकड़ी के केबिन के बाहर नेमप्लेट लगी थी ‘सोमी’.

देसाई और रोहित कुरसियां खींच कर सोमी के सामने बैठ गए. देसाई ने उन से कहा, ‘‘मैं अपने बेटे रोहित की सिक्योरिटी फीस देना चाहता हूं पर उस से पहले मैं यह शंका दूर करना चाहता हूं कि जो लोग यह काम करेंगे उन्हें पैसा किस हिसाब से मिलेगा.’’

‘‘देखिए, बहुराष्ट्रीय कंपनी हमें किसी फर्म की स्केन फाइल भेजती है. मान लीजिए उस में देख कर कोई आपरेटर 1 हजार करेक्टर यानी लैटर्स टाइप करता है तो हम उसे एक शब्द मान कर पेमेंट करेंगे. अभी यह कंपनी नई है इसलिए एक शब्द के लिए 6 रुपए देगी पर बाद में यह पैसा बढ़ा कर 20 रुपए प्रति शब्द कर देगी.’’

‘‘यह काम तो अमेरिका में भी हो सकता था.’’

‘‘हां, हो तो सकता था किंतु वहां महंगा बहुत है. वहां उन्हें प्रति शब्द 2 डालर यानी कि 90 रुपए देने होते हैं. भारत में कमीशन देने के बाद भी उन्हें यह सस्ता पड़ता है और हां, साइज के हिसाब से भी टाइपिंग पेमेंट होगी.’’

अनंत देसाई प्रभावित हो गए और तुरंत ही रोहित का सिक्योरिटी फार्म भरकर 2,500 रुपए जमा कर दिए. 10 रुपए के स्टांप पेपर पर मैनेजर ने अपने व याज्ञनिक के हस्ताक्षर करवा कर उन्हें दे दिए.

उस दिन अपने आफिस के काम में देसाई का मन नहीं लग रहा था. इस समय कंप्यूटर खरीदने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती थी क्योंकि साल के अंदर ही शिखा की शादी करनी थी लेकिन अब तो कंप्यूटर खरीदना ही है, चाहे किसी भी हालत में. रोहित के चेहरे की हताशा को किसी तरह पोंछना ही होगा. जब से उन्होंने एक बेरोजगार युवक की आत्महत्या की बात पढ़ ली थी तब से दिल में एक डर सा बैठ गया था.

घर की दशा को देखते हुए रोहित उन्हें बारबार समझा चुका था कि कोई पुराना कंप्यूप्टर ले लेना चाहिए लेकिन वह जिद पर अड़े थे कि बहुराष्ट्रीय कंपनी का मामला है, हर चीज उसी के स्तर की होनी चाहिए.

कंप्यूटर आते ही जैसे रोहित की ज्ंिदगी में पंख निकल आए थे. वह 5-6 घंटे बैठ कर टाइप करता और जैसे ही काम पूरा होता वह दस्तावेज डेल्टा इन्फोसिस प्रा.लि. को दे आता. सोमी उसे तुरंत ही भुगतान कर देते. याज्ञनिक तो अकसर टूर पर बाहर रहते थे.

2 माह में ही रोहित ने अच्छीखासी रकम कमा ली. तब घर के कोनेकोने में जैसे खुशी की तरंगें मचलने लगी थीं. रोहित की मां बेटे की टाइपिंग स्पीड देख कर निहाल थीं लेकिन पिता की नजर बहुत दूर तक देख रही थी. उन्हें सपने में भी किसी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनी का बोर्ड नजर आता रहता जिस के पारदर्शी कांच के अंदर बैठे अपने बेटे का मुसकराता चेहरा देख कर वह खिल जाते थे.

इसी सपने को पूरा करने के लिए वह याज्ञनिक से मिलना चाहते थे लेकिन अनेक शहरों में फैले काम की वजह से उन का यहां आना कम होता था. सोमी से उन्होंने कह रखा था कि जैसे ही याज्ञनिक साहब आफिस आएं उन्हें तुरंत खबर करें.

याज्ञनिक के शहर में आने की खबर पाते ही वह एक किलो मिठाई का डब्बा ले कर उन से मिलने चल दिए.

मिठाई का डब्बा थोड़ी आनाकानी के बाद लेते हुए याज्ञनिक मुसकराए, ‘‘देसाईजी, इस की क्या जरूरत थी?’’

‘‘साहब, यह मिठाई मैं नहीं एक पिता दे रहा है. आप ने मेरे बेटे के चेहरे की हंसी वापस लौटा दी है. वह आप के यहां का काम करते हुए प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है.’’

‘‘बहुत खूब, इस शहर के डाटा आपरेटरों में वही सब से होनहार है.’’

‘‘रियली,’’ कहते हुए देसाई की आंखों में सुदूर देश के किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के आफिस में लगी हुई बेटे की नेमप्लेट कौंध गई.

तभी नीलेश याज्ञनिक के मोबाइल की घंटी बज उठी. मोबाइल पर क्या बातें हुईं यह अनंत देसाई की समझ में नहीं आया लेकिन नीलेश के चेहरे की खुशी देख कर वह यह तो समझ गए कि कोई अच्छी खबर है.

मोबाइल का स्विच बंद करते ही उन्होंने बेहद गर्मजोशी से देसाई से हाथ मिलाया और उत्साह से कहा, ‘‘देसाई, आप की यह मिठाई मेरे लिए शुभ समाचार लाई है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘अभी बताता हूं,’’ यह कह कर नीलेश ने घंटी दबा दी. कुछ पल बाद ही चपरासी आ कर खड़ा हो गया तो वह बोले, ‘‘गोपीराम, भाग कर आफिस में सभी के लिए बटरस्काच आइस्क्रीम लाओ.’’

‘‘ऐसी भी क्या खुशखबरी है जी?’’ अनंत देसाई ने पूछा.

‘‘यों समझिए कि एक माह से रुका पड़ा साढ़े 12 करोड़ रुपए का भुगतान हो गया है. इस पैसे के कारण दिल्ली और मुंबई के आपरेटरों का पेमेंट रुका हुआ था. कितना बुरा लगता है जब हमारे आपरेटर काम करते हैं और हम समय से उन्हें भुगतान नहीं दे पाते. अब मैं उन्हें भुगतान दे सकता हूं.’’

तीसरे दिन ही नीलेश ने आपरेटरों की एक मीटिंग रखी, ‘‘मैं सोच रहा हूं कि काम इतना बढ़ रहा है कि हर 3 दिन बाद आप लोगों को भुगतान करने में सोमी साहब परेशान हो जाते हैं तो क्यों न आप लोगों के काम के हिसाब से 15 या 30 दिन में भुगतान कर दिया करें. अब इस कंपनी का अकाउंट यहां केलोटस बैंक में है. आप चाहें तो इस की जांच कर लें. हम अब चेक से भुगतान करेंगे. अब आप लोग निर्णय लें कि आप 15 दिन भुगतान चाहते हैं या एक माह बाद?’’

आपरेटरों ने आपस में विचार कर 15 दिन बाद भुगतान लेने की बात पर सहमति जता दी.

अगले माह के दोनों चेकों का बैंक ने भुगतान किया लेकिन उस के बाद के चेक बाउंस होने लगे. जब शोर मचने लगा तो सोमी ने समझाया, ‘‘हम इतना बड़ा आफिस ले कर बैठे हैं. कहीं भाग जाने वाले नहीं हैं? लीजिए, आप लोग याज्ञनिक सर से बात कर लीजिए.’’

सोमी ने तुरंत ही उन के मोबाइल का नंबर डायल किया और उन से बात कर के बोले, ‘‘सर, कह रहे हैं कि रोहित को फोन दो.’’

रोहित ने फोन पर कहा, ‘‘सर, हमारे चेक बाउंस हो रहे हैं.’’

‘‘देखो, एक बैंक की एल.सी. में कुछ स्पेल्ंिग की गलती है, उसे वापस भेजा है. जब दूसरी एल.सी. आएगी तब पैसा जमा होगा, तब आप लोगों का भुगतान हो जाएगा. सिक्योरिटी के लिए आप चेक लेते जाइए. एकसाथ भुगतान हो जाएगा.’’

‘‘ओ, थैंक्स, सर, आप ने हमारा संदेह दूर कर दिया.’’

रोहित ने अपने साथियों को इस बातचीत के बारे में बताया.

‘‘खैर, पेमेंट कहां जाएगा,’’ एक दादा टाइप लड़के ने कहा, ‘‘यदि पेमेंट नहीं दिया तो इस आफिस का फर्नीचर बेच कर अपना पैसा ले लेंगे.’’

इस तरह 3 महीने बीत गए. सभी आपरेटरों का गुस्सा सीमा पार करने लगा. अपने सामने मुसीबत खड़ी देख सोमी ने मोबाइल पर नीलेश और रोहित के बीच बात करा दी.

‘‘आप की एल.सी. पता नहीं कब जमा होगी. अब कोई आपरेटर इंतजार करने के लिए तैयार नहीं है,’’ रोहित जोर से चिल्लाया.

तभी दादा टाइप उस लड़के ने रोहित के हाथ से फोन छीन लिया और दहाड़ा, ‘‘सर, यदि कल तक हमें पेमेंट नहीं मिली तो हम सब आप के आफिस का सामान बेच कर अपना पैसा वसूल करेंगे.’’

‘‘ओ भाई, ऐसा मत करना,’’ नीलेश का स्वर हड़बड़ा गया, ‘‘चलो, मैं किसी भी तरह पैसे का इंतजाम कर के सुबह 10 बजे आफिस पहुंच रहा हूं. आप सब लोग भी आ जाइए.’’

दूसरे दिन सुबह का समाचारपत्र पढ़ कर 400 परिवार सन्न रह गए. हर समाचारपत्र का एक ही मजमून था कि प्रदेश के सब से बड़े डाटा एंट्री का भंडाफोड़…साथ में था पुलिस वालों के बीच मुंह लटकाए सोमी का फोटो.

अनंत देसाई ने धड़कते दिल से खबर पढ़ी, ‘‘सोमी गिरफ्तार लेकिन नीलेश याज्ञनिक तमाम आपरेटरों की जमा सिक्योरिटी ले कर और उन से मुफ्त में काम करा के 15 करोड़ रुपए का फायदा उठा कर फरार.’’

उस दादा टाइप लड़के ने अखबार पढ़ कर सोचा आफिस को फर्नीचर सहित आग लगा आए लेकिन आगे पढ़ कर वह सन्न रह गया क्योंकि आगे लिखा था कि आफिस व फर्नीचर नीलेश याज्ञनिक ने किराए पर ले रखा था.

उधर सोमी की मां बेटे की गिरफ्तारी से बेहोशी में थी. उन्हें जैसे ही होश आता चिल्लातीं, ‘‘सोमी, मैं ने पहले ही मना किया था कि तू इस कंपनी का मालिक मत बन. कोई वैसे ही लाखों रुपए का आफिस किसी के नाम नहीं करता.’’

और रोहित? वह अपने को संभालने की कोशिश कर रहा था. धीरेधीरे फिर वह अपने कमरे में बंद रहने लगा.

पहला प्यार चौथी बार

मेरा भारत महान. और भी बड़ेबड़े देश हैं जो हम से ज्यादा विकसित, धनी, सुखी और समृद्ध हैं मगर फिर भी महान नहीं हैं. महान तो सिर्फ और सिर्फ मेरा भारत है.

प्राचीनकाल में तो मेरा भारत और ज्यादा महान था. गौरवशाली साम्राज्य, ईमानदार इतिहास, सच्ची वीर परंपराएं, समृद्ध शासक, विशाल नागरिक, सोने की चिडि़या और घीदूध की नदियां… लगता है कुछ घालमेल हो गया लेकिन ऐसा ही कुछकुछ हुआ करता था. मगर आज के समय में, टूटीफूटी परंपराएं, सड़ा हुआ देश, भ्रष्ट जनता, गरीब नेता, गड़बड़ भूगोल और इतिहास का पता नहीं. कुल मिला कर जोजो अच्छा है वह पुराने जमाने में हो चुका, अभी तो जो भी नया है सब सत्यानाश.

मुझे तो सख्त अफसोस होता है कि मैं आज के समय में क्यों हूं, भूतकाल में क्यों न हुआ? बस, यही सोच कर संतोष होता है कि अभी जोजो बुरा है वह भी प्राचीन होने के बाद अच्छा हो जाएगा. ऐसे में जबकि जिंदगी जिल्लत ही जिल्लत है और हर चीज की किल्लत ही किल्लत है, एक चीज यहां ऐसी है जो पहले बड़ी दुर्लभ हुआ करती थी मगर आज उस की भरमार है और वह है प्रेम.

जी हां, आज हमारे पास प्रेम हमेशा हाजिर स्टाक में उपलब्ध रहता है. उस जमाने में कभी 100-50 साल में कोई एक मजनूं और एकाध लैला भूलेभटके ही होती थी, जो आपस में प्यार करते थे और बाकी लोग अजूबे की तरह उन्हें देखते थे कि ये लोग कर क्या रहे हैं और आखिर कब तक ऐसा करते रहेंगे? जिन की समझ में नहीं आता था वे उन्हें पत्थर उठा कर मारने लगते थे और जो अहिंसावादी थे वे बैठ कर उन के प्रेम की कहानियां लिखते थे. मगर आज गलीकूचों में प्रेम की ब्रह्मपुत्र बह रही है. यहां की हर छोरी लैला हर छोरा मजनूं. गांवगांव, शहरशहर, यहां, वहां, जहां, तहां, मत पूछो कहांकहां हीररांझा छितरे पड़े हैं. डालडाल रोमियो हैं तो पातपात जूलियट. बिजली के खंभों पर, टेलीफोन के तारों पर, जगहजगह लैला और मजनूं उलटे लटके पड़े हैं जितने जी चाहे गुलेल मार कर तोड़ लो.

किसी से भी यह सवाल पूछो कि आजकल क्या कर रहे हो? तो जवाब मिलता है, ‘‘प्यार कर रहा हूं.’’ कोई कालिज की कैंटीन में तो कोई हवाई झूले में, कोई गली के पिछवाड़े तो कोई कंप्यूटर पर ही. इंटरनेट पर तो प्यार करना बड़ा आसान है. एक मेल, फीमेल को ई मेल करता है, बदले में फीमेल भी मेल को ई मेल करती है और दोनों का मेल हो जाता है. शादियां भी इंटरनेट पर ही तय हो जाती हैं. कुछ दिनों बाद तो उन दोनों को मिलने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, कंप्यूटर पर ही डब्लूडब्लूडब्लू डाट मुन्नामुन्नी डाट काम हो जाएगा.

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पहले एक शीरीं हुआ करती थी जो एक फरहाद से प्यार किया करती थी और वह कमअक्ल मरते दम तक उसी से प्यार करती थी. मुगल साम्राज्य के पतन के बाद से ले कर जितेंद्र, श्रीदेवी की फिल्मों तक प्रेम के त्रिकोण बनने लगे थे, जिस में एक जूलियट के पीछे 2 रोमियो एकसाथ बरबाद हो जाते थे या फिर 2 महीवाल एक ही सोहणी को गलत रास्ते पर ले जाने की कोशिश किया करते थे, मगर अब तो त्रिकोण भी बीती बात हो गई, आजकल तो प्रेम के षट्कोण बनते हैं यानी 1 लैला, अकेली 5-5 मजनुओं को अपने घर के चक्कर कटवाती है और अंत में उन सब को ठेंगा दिखा कर किसी फरहाद से शादी कर लेती है.

उस जमाने में एक पहली नजर का प्यार होता था जो वाकई पहली नजर में हो जाया करता था लेकिन अब किसे उस की फिक्र है. अब तो हर नजर, प्यार की नजर है. इसी तरह एक होता था ‘पहला प्यार’, जो जीवन में किसी एक से एक ही बार होता था और भुलाए नहीं भूलता था, मगर आजकल तो पहला प्यार ही कई बार हो जाता है. राज की बात यह है कि मुझे भी यह कमबख्त ‘पहला प्यार’ 4 बार हो चुका है और पिछले सीजन में जब यह मुझे चौथी बार हुआ तभी मैं समझ गया था कि यह भी आखिरी बार नहीं है. मतलब अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है.

जिधर नजर डालो प्यार ही प्यार, नफरत का तो कहीं नामोनिशान नहीं. मुंबई की पूरी फिल्म इंडस्ट्री पिछले 100 साल से इसी प्रेम के दम पर दारूमुर्गा उड़ा रही है. हर फिल्म में और कुछ चाहे हो न हो, मगर 1 लड़का और 1 लड़की जरूर होते हैं जो अंत में कभी मिल पाते हैं कभी बिछड़ जाते हैं पर प्यार जरूर करते हैं.

100 साल से यही विचार चलता चला आ रहा है कि जिसे हम प्यार समझ रहे हैं क्या यही प्यार है? या फिर प्यार वह है जिसे हम प्यार नहीं समझ रहे हैं? जवान लड़का चाय की पत्ती लेने घर से निकला और कुत्तों के क्लीनिक में घुस गया, यह इश्क नहीं तो और क्या है? जवान लड़की, लड़के से शिकायत करती है, ‘‘दिल में दर्द रहता है, मुझे भूख नहीं लगती, प्यास नहीं लगती, सारा दिन तड़पती हूं, सारी रात जगती हूं, जाने क्या हुआ मुझ को…?’’

किसी पत्नी ने पति से कहा होता तो डाक्टर और अस्पताल के खर्च के बारे में सोच कर बेचारे का दिल बैठ जाता लेकिन प्रेमी का दिल खड़ा हो कर उछलने लगता है कि चलो, अपना जुगाड़ बैठ गया. उधर दर्शक भी समझ जाते हैं कि इसे ‘फाल इन लव’ कहते हैं. लड़का और लड़की प्यार में गिर गए, अब ये दोनों गिरी हुई हरकतें करेंगे. लड़की 16 साल और 1 दिन की हुई नहीं कि उसे मोहब्बत हो जाती है, कोईकोई तो साढ़े 15 साल में ही उंगली में दुपट्टा लपेटना शुरू कर देती है.

खुदा न खास्ता अगर किसी लड़के या लड़की की 17 साल उम्र हो जाने पर भी कोई लफड़ा नहीं हुआ तो फिल्मी मांबाप चिंतित हो जाते हैं कि ‘बच्चा’ कहीं असामान्य तो नहीं है और किसी अच्छे डाक्टर से चेकअप करवाने की जरूरत महसूस करने लगते हैं. लड़का जब अपने बाप को यह खबर सुनाता है कि उस का किसी पर दिल आ गया है तो बाप यों खुशी से उछल पड़ता है मानो उसे विदेश में पढ़ाई के लिए स्कालरशिप मिली हो. फिर वह उसे लड़की को भगाने के लिए प्रेरित करता है और जब लड़का, लड़की को ले भागता है तो वह गर्व से अपना सीना फुला कर कहता है, ‘आखिर बेटा किस का है?’

प्रेम के मामले में हो रही तरक्की के मद्देनजर आने वाले समय में हमारे घरों के अंदर के दृश्य बड़े मजेदार होंगे. आइए, जरा एकदो काल्पनिक दृश्यों का वास्तविक आनंद लें.

दृश्य : एक

कमरा वास्तुशास्त्र के अनुसार बना हुआ है. दक्षिणमुखी कमरे के बीचोबीच, वाममुखी सोफे पर चंद्रमुखी लड़की की सूरजमुखी मां और ज्वालामुखी बाप बैठे हैं. बाप परेशान है, ‘‘बात क्या है? तुम दोनों मांबेटी आखिर मुझ से क्या छिपा रही हो?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? आप ही के लाड़प्यार ने इसे बिगाड़ा है और अब पूछते हो कि हुआ क्या, जब इस ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

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‘‘पहेलियां मत बुझाओ, साफसाफ बताओ कि इस ने क्या किया है?’’

‘‘और क्या करेगी? आज जब पड़ोस वाली मिसेज भटनागर ने मुझे ताना मारा तब मुझे पता चला कि इस कलमुंही का एक भी ब्वायफ्रेंड नहीं है. नाक कटा दी इस ने हमारी. शहर के लोग क्या सोचते होंगे हमारे बारे में कि कितने बैकवर्ड हैं हम लोग.

‘‘ऊपर से मिसेज भटनागर मुझे जलाने के लिए अपनी दोनों बेटियों को ले कर आई थीं और वह इतराएं भी क्यों न, आखिर उन की दोनों बेटियां अब तक 2-2 ब्वायफ्रेंड बदल चुकी हैं और इस करमजली के कारण आज मैं 40 प्रतिशत जली हूं.’’

‘‘क्यों बेटी, जो मैं सुन रहा हूं क्या यह सच है?’’

‘‘नहीं, डैड…हां, डैड…पता नहीं, डैड.’’

‘‘देखो, मुझे हां या ना में सीधा जवाब चाहिए. क्या बात है बेटी, क्या तुम्हें कोई लाइन नहीं मारता?’’

‘‘म…म…मारता है मगर उस के पास सेलफोन और बाइक नहीं है.’’

‘‘बस, इतनी सी बात. तुम उसे लाइन देना शुरू कर दो. सेलफोन मैं उसे प्रजेंट कर दूंगा और तुम उसे प्यार से समझाना कि वह एक बाइक आसान किश्तों में खरीद ले.’’

‘‘ल…लेकिन डैड…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. मैं कोई बहाना सुनना नहीं चाहता. अगली बार जब तुम मेरे सामने आओ तो अपने ब्वायफ्रेंड के साथ ही आना, अगर ऐसा नहीं हुआ तो आइंदा तुम घर के बाहर ही रहोगी. तुम्हारा खाना, पीना और कमरे के अंदर घुसना बिलकुल बंद.’’

दृश्य : दो

कमरे की स्थिति तनावपूर्ण पर नियंत्रण में है. बाप बेटे पर गरम हो रहा है. मां दोनों में बीचबचाव कराती है, ‘‘अजी, मैं कहती हूं जब देखो आप मेरे लाडले के पीछे ही पड़े रहते हैं, अब इस ने ऐसा क्या कर दिया?’’

‘‘अरे, मुझ से क्या पूछती हो, पूछो अपने इस लाडले से, 2 साल से कालिज में है पर आज तक एक लड़की नहीं पटा सका, ऊपर से जबान लड़ाता है कि मुझे पढ़ाई से फुर्सत नहीं. सुना तुम ने? मैं ही जानता हूं कि कैसे मैं अपना पेट काट- काट कर इस के लिए फीस जुटाता हूं. इसी की उम्र के और लड़के रात में 2-2 बजे लौटते हैं अपनी ‘डेट’ के साथ और यह महाशय, इन्हें पढ़ाई से फुर्सत नहीं है.’’

‘‘हाय राम, बेटा, मैं यह क्या सुन रही हूं. देखो, तुम तो खुद समझदार हो, यह पढ़ाईवढ़ाई की जिद छोड़ दो, उस के लिए तो सारी उम्र पड़ी है. यही समय है जब तुम लड़कियों पर ध्यान दे कर अपना भविष्य संवार सकते हो.’’

‘‘इस तरह प्यार से समझाने पर यह नहीं समझने वाला. इस कमबख्त के सिर पर तो कैरियर बनाने का भूत सवार है. यह क्या समझेगा मांबाप के अरमानों को. पिछले हफ्ते जानती हो इस ने क्या किया? इसे किताबों के लिए मैं ने पैसे भेजे तो ये उन से सचमुच में किताबें खरीद लाया, किताबी कीड़ा कहीं का.’’

किताबी कीड़ा क्या करता? बेचारा चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा. प्रेम की ऐसी मारामारी, प्यार की ऐसी भरमार, इश्क, मोहब्बत का ऐसा जनून, न भूतो न भविष्यति. साल में एक पूरा दिन तो अब प्यार के नाम रिजर्व है ‘वेलेंटाइन डे’ के नाम से. अब वह रूखासूखा जमाना नहीं रहा जब प्रेम की उन्हीं घिसीपिटी 10-5 कहानियों को सारे लेखक अपनीअपनी शैली में घुमाफिरा कर लिखते थे…अब तो मैं :

‘‘सब धरती कागद करौं,

लेखनी सब बनराय,

सात समुंदर मसि करौं,

हरि गुन लिखा न जाय.’’

सारी धरती को कागज बना लूं, वन के सभी वृक्षों को कलम और सारे समुद्रों को स्याही में बदल दूं फिर भी जितनी प्रेम की कहानियां हैं पूरी नहीं लिख पाऊंगा. इस से तो बेहतर होगा कि इतना सारा कागज, कलम और स्याही बेच कर मैं करोड़पति हो जाऊं और मल्लिका शेरावत से पूछूं, ‘‘मेरे साथ डेट पर चलोगी?’’

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