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बिदाई- भाग 1: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘मां मैं ने ठान लिया है कि मैं अभिनेत्री ही बनूंगी. अच्छा होगा आप और पापा भी मेरे इस निर्णय में मेरा साथ दो. वैसे भी जब मैं ने निर्णय ले ही लिया है तो करूंगी तो मैं वही,’’ रूहानी का सुर सख्त था. वह शुरू से अडि़यल रही थी. बड़ा होने के साथ, जल्द से जल्द पैसा और शोहरत पाने की धुन ने उसे और भी कठोर बना दिया था. मातापिता का उस के निर्णय में साथ देने या न देने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था. जब से उस की एक सहेली ने उसे एक एजेंट से मिलवाया था और उस एजेंट ने रूहानी को टैलीविजन पर उच्च कोटि की अभिनेत्री बनवाने के सुनहरे ख्वाब दिखाए थे, तब से रूहानी लगातार वही सपना देख रही थी. वह एजेंट भी लगभग रोज ही उसे फोन करता और जल्दी नोएडा पहुंचने को कहता. रूहानी भी उसी समय अपने मातापिता से जिद करने लगती.

‘‘मैं कहती हूं जी, यदि हम रूहानी को अपने साथ, अपने पास रखना चाहते हैं, तो हमें उस का साथ देना चाहिए वरना 18 वर्ष की तो वह हो ही गई है… घर छोड़ कर चली गई तो हम क्या कर पाएंगे?’’ उस की जिद के आगे मां ने हार मान ली थी. अब वे अपनी बेटी को खोना नहीं चाहती थीं, इसलिए उस के पिता को समझाबुझा रही थीं.

‘‘क्या तुम जानती नहीं हो कि वह कैसी दुनिया है… जितनी चकाचौंध है, उतना ही तनाव भी… जितना पैसा है, उतनी ही प्रतिस्पर्धा भी. जितनी जल्दी शोहरत मिलती है, उतना ही कठिन उस शोहरत को अपने पास बनाए रखना होता है. तुम्हें लगता है कि रूहानी इतनी कठिन जिंदगी जी पाएगी? और नोएडा यहां रखा है क्या? कितनी दूर है हमारे शहर से. वहां अकेली कैसे रहेगी वह?’’ पिता अब भी राजी न थे. लेकिन वयस्क बेटी की जिद के आगे कब तक टिक पाते?

रूहानी ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा और निकल पड़ी घर से. पटरियों पर तेजी से दौड़ती ट्रेन से खिड़की से बाहर झांकते हुए, भागते हुए पेड़ों के साथ उस के मानसपटल पर अतीत के क्षण भी दौड़ने लगे…

कैसे उस एजेंट ने रूहानी को देखते ही 2-3 टीवी धारावाहिकों की बात कह डाली थी, ‘‘अरे रूहानी, तुम एक बार नोएडा आओ तो सही, औडिशन में तुम्हारा नंबर लगाना मेरा काम है… मैं दावे से कह सकता हूं कि तुम्हारा चयन हो जाएगा. फिर तुम्हें एक मैनेजर की आवश्यकता पड़ेगी… चलो, उस का इंतजाम भी कर दूंगा. अब बस, रातोंरात स्टार बनने की तैयारी कर लो, डार्लिंग.’’

ट्रेन में अकेले नोएडा जाते हुए वह सोचती जा रही थी, ‘आज मैं इस भीड़ का हिस्सा हूं. मुझे कोई नहीं जानता. मैं भी इन लोगों में, इन्हीं की तरह खो गई हूं, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब मैं इसी भीड़ की रोल मौडल होऊंगी,’ मन ही मन मुसकराती रूहानी पर किसी का ध्यान नहीं था.

आज वाकई वह इस भीड़ का हिस्सा थी. लेकिन भविष्य किस ने देखा है? शायद इसीलिए भविष्य के सपने सजानादिखाना आसान है. बहुत सी दुकानें इसी स्वप्निल भविष्य को बेच रही हैं… बहुत से लोग दूसरों के भविष्य को दिखा कर अपना वर्तमान सुधार रहे हैं.

नोएडा पहुंचते ही रूहानी ने उस एजेंट से संपर्क साधा. फिर उसी ने रूहानी को नोएडा से सटे एक सस्ते से गांव में पीजी में एक कमरा दिलवा दिया. रूहानी के साथ वहां 3 लड़कियां और रहती थीं.

कमरे की हालत देख रूहानी के सपने थोड़े चटकने लगे. बोली, ‘‘आप ने तो कहा था कि आप मुझे रातोंरात स्टार बना दोगे, पर यहां तो…’’

‘‘डोंट बी सिली रूहानी, स्टार बनने में मेहनत लगती है… पहले पेड़ उगाओ, फिर आम खाना. खैर, छोड़ो ये फुजूल की बातें, मैं ने कल तुम्हारे लिए एक औडिशन में नंबर लगाया है. ठीक 10 बजे पहुंच जाना इस पते पर,’’ वह उसे पता लिखा कागज पकड़ा गया.

सुबहसुबह तैयार हो रूहानी निश्चित समय पर निर्धारित स्थान पहुंच गई. नई जगह, नई संस्कृति. रूहानी थोड़ा असहज अनुभव कर रही थी. वहां लंबी कतार लगी थी. रूहानी का नंबर आतेआते तीसरा पहर आ गया.

भूखीप्यासी रूहानी थकान से बेहाल थी. अपना नाम पुकारे जाने पर चेहरा थोड़ा संवार कर वह अंदर पहुंची. जो लाइनें उसे दी गई थीं, उन्हें उस ने याद कर लिया था, किंतु पहली बार कैमरे के सामने बोलने के कारण उस के चेहरे पर कोई हावभाव न आ पाए. एक रोबोट की भांति उस ने लाइनें बोल दीं. जाहिर है वह उस औडिशन में नहीं चुनी गई. एक तो अनुत्तीर्ण होने का दुख, ऊपर से एजेंट से अच्छीखासी डांट सुननी पड़ी, वह अलग. एजेंट उसे अलगअलग जगह औडीशन पर भेजता, किंतु कैमरे के सामने आते ही पता नहीं रूहानी को क्या हो जाता. इसी भागदौड़ में 3 माह गुजर गए. घर से जो पैसे लाई थी, वे खत्म होने लगे थे. साथ रह रही अन्य लड़कियों का भी यही हाल था. सभी इस रुपहली दुनिया का हिस्सा बनने आई थीं, किंतु कामयाबी किसी के भी हाथ नहीं लग रही थी.

रूहानी के चेहरे का फायदा उठाने और कैमरे के प्रति उस की झिझक मिटाने हेतु एजेंट ने पहले उस से मौडलिंग करवाने की सोची. नियत समय पर रूहानी मालवीय नगर की गलियों में स्थित मौडलिंग एजेंसी पहुंच गई. वहां भी लड़कियों की लंबी कतार. वहां का एजेंट बेशर्मी से लड़कियों के बदन को छू रहा था. हर लड़की के बदन के हर हिस्से का नाप ले रहा था और जोरजोर से उसे दूसरे लड़के को बताता जा रहा था, जो उसे एक कागज पर लड़कियों के नाम के आगे लिखता जा रहा था.

हद तो तब हुई जब उस ने रूहानी के आगे खड़ी लड़की के नितंब दबा कर पूछा, ‘‘असली हैं?’’

रूहानी के लिए यह सब अप्रत्याशित था. लेकिन कहते हैं न भट्टी में तप कर ही सोना कंचन बनता है. धीरेधीरे रूहानी भी ऐसे कल्चर की आदी हो गई. उस की झिझक खुलने लगी. उस के हावभाव, उस की भावभंगिमा में खुलापन आ गया. छोटेमोटे विज्ञापन कर कुछ पैसा भी आने लगा था. इस शहर में रहना अब रूहानी के लिए संभव होता जा रहा था.

शायद रूहानी के एजेंट ने अपना लक्ष्य पाने को सही मार्ग अपनाया था. कुछ था उस की आंखों में, उस के चेहरे में जो उस एजेंट ने भांप लिया था. रूहानी को उस ने फिर एक टीवी धारावाहिक के औडिशन हेतु भेजा.

इस बार रूहानी के सपने सिर्फ हवाई नहीं थे. रूहानी को एक छोटा रोल मिल गया, लीड ऐक्ट्रैस की ननद की भूमिका निभाने का.

शुरू में रूहानी को यह काम भी और कामों जैसा ही प्रतीत हुआ जैसे दफ्तर जा रही हो. उतनी ही मेहनत, वैसी ही समयसारिणी, बल्कि छुट्टियां उस से कहीं कम. न कोई शनिवार, न कोई इतवार…चाहे बुखार ही क्यों न आ जाए. दवा फांको और चलो काम पर. किंतु जैसेजैसे उस धारावाहिक की टीआरपी बढ़ने लगी, लोग उस के किरदार को पहचानने लगे. रूहानी का मकानमालिक अब उस से तमीज से पेश आता. कभीकभार उस के बच्चे, अपने मित्रों सहित रूहानी के साथ सैल्फी लेने चले आते.

उसे अच्छा लगता जब उस का एजेंट उसे किसी भी वेशभूषा में बाजार जाने से मना करता, ‘‘अब तुम एक सैलिब्रिटी हो, डार्लिंग, यों उठ कर अब तुम मार्केट नहीं जा सकती हो… अपना सामान औनलाइन और्डर कर दिया करो.’’

धारावाहिक करतेकरते रूहानी को 1 साल होने को आ रहा था. इस बीच अपने मातापिता से उस का संपर्क बहुत ही कम रह गया था. क्या करती समय ही नहीं था उस के पास. जब कभी मिलना होता तब उस के मातापिता ही चले आते उस के पास. लेकिन तब भी वह उन के साथ बहुत ही कम समय व्यतीत कर पाती.

जीवन की डाटा एंट्री: रोहित के साथ क्या हुआ

इधरउधर नजरें घुमा कर अनंत देसाई ने आफिस का मुआयना किया. उन्होंने आज ही अखबार के आधे पृष्ठ का रंगीन विज्ञापन देखा था. डेल्टा इन्फोसिस प्राइवेट लिमिटेड का नाम इस विज्ञापन में देख कर और उस की बारीकियां पढ़ कर देसाईजी ने चैन की सांस ली थी कि चलो, बेटे रोहित का कहीं तो ठिकाना हो सकता है. नौकरियां नहीं हैं तो क्या इस एम.एन.सी. (मल्टीनेशनल कंपनी) कल्चर ने रोजीरोटी के कुछ और रास्ते निकाल ही दिए हैं. उन से बेटे का हताशनिराश चेहरा अब और नहीं देखा जा रहा था.

रोहित एम.सी.ए. करने के बाद एक कंप्यूटर कंपनी की सेल्स मार्केटिंग में लगा हुआ था. सुबह 8 बजे का निकला रात के 8 बजे ही घर आ पाता था. धूप हो, बारिश हो या तबीयत खराब हो, वह छुट्टी की बात सोच भी नहीं सकता था, उस पर वेतन 2,500 रुपए.

अपने जहीन बेटे की ज्ंिदगी को 2,500 रुपए में गिरवी पड़ी देख कर अनंत देसाई को भारी छटपटाहट होती थी. उन्होंने एक दिन गुस्से में कहा भी था, ‘‘यह नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते?’’

रोहित ने लाचारी से आंखें उठाई थीं, ‘‘यह नौकरी छोड़ भी दूं तो करूंगा क्या? आप तो देख रहे हैं कि 2 वर्ष से लिखित परीक्षा पास कर के भी साक्षात्कार में मात खा रहा हूं. नौकरी हथिया लेता है कोई सिफारिशी लड़का या लड़की.’’

‘‘उच्च तकनीकी शिक्षा ले कर भी बाजार में नौकरी के लिए मारेमारे घूमते हो यह मुझ से देखा नहीं जाता है.’’

‘‘पापा, और रास्ता भी क्या है?’’ कह कर रोहित मायूस हो गया था.

अभी उसे नौकरी करते 5 महीने ही बीते थे कि रोहित बारबार बीमार पड़ने लगा जिस का असर उस के काम पर भी पड़ रहा था. इस से पहले कि

कंपनी वाले उसे नौकरी से निकाल देते उस ने नौकरी छोड़ दी.

इस के बाद से ही रोहित ने अपने को कमरें में बंद कर लिया. न घूमने निकलता, न दोस्तों से मिलता. मम्मी कभी जबरन उसे टेलीविजन के सामने बैठा देतीं तो उस की आंखें टीवी के परदे पर स्थिर हो जातीं लेकिन ध्यान कहीं और भटकता रहता.

अनंत देसाई ने रोजगार समाचार के अलावा अन्य अखबार भी मंगाने शुरू कर दिए थे. वह रोहित के लिए नौकरियों के विज्ञापन को लाल स्याही के घेरे में तो ले लेते लेकिन एक भी नौकरी जीवन के घेरे में नहीं आ पा रही थी.

पितापुत्र दोनों डेल्टा इन्फोसिस के कार्यालय की शानोशौकत से प्रभावित बैठे थे. यू आकार के काउंटर के पीछे 2 लड़के व 1 लड़की मुस्तैदी से काम कर रहे थे. दाईं तरफ बने एक केबिन को देख कर अनंत देसाई ने सोचा इस में जरूर डायरेक्टर नीलेश याज्ञनिक बैठे होंगे.

रिसेप्शन के गुदगुदे सोफे पर पहलू बदलते हुए अनंत देसाई ने धीमे से बेटे से कहा, ‘‘आफिस तो अच्छा है.’’

रोहित ने सिर हिला कर समर्थन किया. थोड़ी देर में चपरासी ने झुक कर कहा, ‘‘आप लोगों को सर बुला रहे हैं.’’

उन के अंदर आते ही नीलेश ने बड़ी गर्मजोशी से उन का स्वागत किया और दोनों से हाथ मिलाया. अनंत देसाई ने सीधे ही बता दिया, ‘‘देखिए, डाटा एंट्री के बारे में मैं थोड़ाबहुत जानता हूं. मैं अपने बेटे के लिए कोई काम ढूंढ़ रहा हूं. आप ने जो विज्ञापन दिया था उस के बारे में विस्तार से बताइए.’’

‘‘जरूर’’ नफासत से कंधे उचकाते हुए नीलेश ने कहना शुरू किया, ‘‘आजकल विदेशों में बड़े होटलों, अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों के पास समय नहीं है इसलिए वे अपनी स्केन फाइल के दस्तावेज बनवाने के लिए हमारे पास भेजते हैं. आप ने शायद ओबलौग इ लाइब्रेरी का नाम सुना होगा?’’ नीलेश ने सीधे ही उन की आंखों में देख कर पूछा.

न जानते हुए भी उन के मुंह से ‘हां’ निकला तो नीलेश ने कहा, ‘‘बस, वही हमारे सब से बड़े क्लाइंट हैं.’’

‘‘आप का यह पहला आफिस है?’’

‘‘नहीं, हमारे मुंबई और दिल्ली में भी आफिस हैं. वहां की प्रगति देख कर मैं ने सोचा कि एक आफिस यहां भी खोला जाए.’’

‘‘मेरा बेटा डाटा एंट्री का काम करना चाहता है. इस के लिए मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘डाटा एंट्री करने वाले कंप्यूटर आपरेटर कहलाते हैं. इन से हम 2,500 रुपए सिक्योरिटी मनी के रूप में लेते हैं. वे यह काम घर बैठ कर भी कर सकते हैं.’’

‘‘जी, इस काम से आगे क्या उम्मीद की जा सकती है?’’

‘‘अजी साहब, अभीअभी तो यह काम शुरू हुआ है पर जो विदेशी कंपनियां भारत को काम दे रही हैं वे यहां के प्रतिभावान लोगों को अपने देश में भी बुला सकती हैं.’’

‘‘पहले काल सेंटर व ट्रांसक्रिप्शन का ऐसा ही शोर मचा था. कुछ काल सेंटर तो बंद भी हो गए.’’

‘‘उन के प्रबंधक नाकाबिल रहे होंगे. बड़े शहरों में तो अभी भी धड़ल्ले से काल सेंटर चल रहे हैं. मुझे कोई जल्दी नहीं है, आप सोच लीजिए. वैसे मेरे पास इतना काम है कि मैं 400 लोगों को काम दे सकता हूं.’’

अनंत देसाई ने फौरन कहा, ‘‘मैं 2,500 रुपए अभी देना चाहता हूं.’’

‘‘धन्यवाद, आप इस काम की पूरी जानकारी यहां के मैनेजर सोमी से ले लीजिए और उन्हीं के पास रुपए जमा कर दीजिए.’’

केबिन से बाहर आ कर उन्होंने देखा बाईं तरफ लकड़ी के केबिन के बाहर नेमप्लेट लगी थी ‘सोमी’.

देसाई और रोहित कुरसियां खींच कर सोमी के सामने बैठ गए. देसाई ने उन से कहा, ‘‘मैं अपने बेटे रोहित की सिक्योरिटी फीस देना चाहता हूं पर उस से पहले मैं यह शंका दूर करना चाहता हूं कि जो लोग यह काम करेंगे उन्हें पैसा किस हिसाब से मिलेगा.’’

‘‘देखिए, बहुराष्ट्रीय कंपनी हमें किसी फर्म की स्केन फाइल भेजती है. मान लीजिए उस में देख कर कोई आपरेटर 1 हजार करेक्टर यानी लैटर्स टाइप करता है तो हम उसे एक शब्द मान कर पेमेंट करेंगे. अभी यह कंपनी नई है इसलिए एक शब्द के लिए 6 रुपए देगी पर बाद में यह पैसा बढ़ा कर 20 रुपए प्रति शब्द कर देगी.’’

‘‘यह काम तो अमेरिका में भी हो सकता था.’’

‘‘हां, हो तो सकता था किंतु वहां महंगा बहुत है. वहां उन्हें प्रति शब्द 2 डालर यानी कि 90 रुपए देने होते हैं. भारत में कमीशन देने के बाद भी उन्हें यह सस्ता पड़ता है और हां, साइज के हिसाब से भी टाइपिंग पेमेंट होगी.’’

अनंत देसाई प्रभावित हो गए और तुरंत ही रोहित का सिक्योरिटी फार्म भरकर 2,500 रुपए जमा कर दिए. 10 रुपए के स्टांप पेपर पर मैनेजर ने अपने व याज्ञनिक के हस्ताक्षर करवा कर उन्हें दे दिए.

उस दिन अपने आफिस के काम में देसाई का मन नहीं लग रहा था. इस समय कंप्यूटर खरीदने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती थी क्योंकि साल के अंदर ही शिखा की शादी करनी थी लेकिन अब तो कंप्यूटर खरीदना ही है, चाहे किसी भी हालत में. रोहित के चेहरे की हताशा को किसी तरह पोंछना ही होगा. जब से उन्होंने एक बेरोजगार युवक की आत्महत्या की बात पढ़ ली थी तब से दिल में एक डर सा बैठ गया था.

घर की दशा को देखते हुए रोहित उन्हें बारबार समझा चुका था कि कोई पुराना कंप्यूप्टर ले लेना चाहिए लेकिन वह जिद पर अड़े थे कि बहुराष्ट्रीय कंपनी का मामला है, हर चीज उसी के स्तर की होनी चाहिए.

कंप्यूटर आते ही जैसे रोहित की ज्ंिदगी में पंख निकल आए थे. वह 5-6 घंटे बैठ कर टाइप करता और जैसे ही काम पूरा होता वह दस्तावेज डेल्टा इन्फोसिस प्रा.लि. को दे आता. सोमी उसे तुरंत ही भुगतान कर देते. याज्ञनिक तो अकसर टूर पर बाहर रहते थे.

2 माह में ही रोहित ने अच्छीखासी रकम कमा ली. तब घर के कोनेकोने में जैसे खुशी की तरंगें मचलने लगी थीं. रोहित की मां बेटे की टाइपिंग स्पीड देख कर निहाल थीं लेकिन पिता की नजर बहुत दूर तक देख रही थी. उन्हें सपने में भी किसी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनी का बोर्ड नजर आता रहता जिस के पारदर्शी कांच के अंदर बैठे अपने बेटे का मुसकराता चेहरा देख कर वह खिल जाते थे.

इसी सपने को पूरा करने के लिए वह याज्ञनिक से मिलना चाहते थे लेकिन अनेक शहरों में फैले काम की वजह से उन का यहां आना कम होता था. सोमी से उन्होंने कह रखा था कि जैसे ही याज्ञनिक साहब आफिस आएं उन्हें तुरंत खबर करें.

याज्ञनिक के शहर में आने की खबर पाते ही वह एक किलो मिठाई का डब्बा ले कर उन से मिलने चल दिए.

मिठाई का डब्बा थोड़ी आनाकानी के बाद लेते हुए याज्ञनिक मुसकराए, ‘‘देसाईजी, इस की क्या जरूरत थी?’’

‘‘साहब, यह मिठाई मैं नहीं एक पिता दे रहा है. आप ने मेरे बेटे के चेहरे की हंसी वापस लौटा दी है. वह आप के यहां का काम करते हुए प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है.’’

‘‘बहुत खूब, इस शहर के डाटा आपरेटरों में वही सब से होनहार है.’’

‘‘रियली,’’ कहते हुए देसाई की आंखों में सुदूर देश के किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के आफिस में लगी हुई बेटे की नेमप्लेट कौंध गई.

तभी नीलेश याज्ञनिक के मोबाइल की घंटी बज उठी. मोबाइल पर क्या बातें हुईं यह अनंत देसाई की समझ में नहीं आया लेकिन नीलेश के चेहरे की खुशी देख कर वह यह तो समझ गए कि कोई अच्छी खबर है.

मोबाइल का स्विच बंद करते ही उन्होंने बेहद गर्मजोशी से देसाई से हाथ मिलाया और उत्साह से कहा, ‘‘देसाई, आप की यह मिठाई मेरे लिए शुभ समाचार लाई है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘अभी बताता हूं,’’ यह कह कर नीलेश ने घंटी दबा दी. कुछ पल बाद ही चपरासी आ कर खड़ा हो गया तो वह बोले, ‘‘गोपीराम, भाग कर आफिस में सभी के लिए बटरस्काच आइस्क्रीम लाओ.’’

‘‘ऐसी भी क्या खुशखबरी है जी?’’ अनंत देसाई ने पूछा.

‘‘यों समझिए कि एक माह से रुका पड़ा साढ़े 12 करोड़ रुपए का भुगतान हो गया है. इस पैसे के कारण दिल्ली और मुंबई के आपरेटरों का पेमेंट रुका हुआ था. कितना बुरा लगता है जब हमारे आपरेटर काम करते हैं और हम समय से उन्हें भुगतान नहीं दे पाते. अब मैं उन्हें भुगतान दे सकता हूं.’’

तीसरे दिन ही नीलेश ने आपरेटरों की एक मीटिंग रखी, ‘‘मैं सोच रहा हूं कि काम इतना बढ़ रहा है कि हर 3 दिन बाद आप लोगों को भुगतान करने में सोमी साहब परेशान हो जाते हैं तो क्यों न आप लोगों के काम के हिसाब से 15 या 30 दिन में भुगतान कर दिया करें. अब इस कंपनी का अकाउंट यहां केलोटस बैंक में है. आप चाहें तो इस की जांच कर लें. हम अब चेक से भुगतान करेंगे. अब आप लोग निर्णय लें कि आप 15 दिन भुगतान चाहते हैं या एक माह बाद?’’

आपरेटरों ने आपस में विचार कर 15 दिन बाद भुगतान लेने की बात पर सहमति जता दी.

अगले माह के दोनों चेकों का बैंक ने भुगतान किया लेकिन उस के बाद के चेक बाउंस होने लगे. जब शोर मचने लगा तो सोमी ने समझाया, ‘‘हम इतना बड़ा आफिस ले कर बैठे हैं. कहीं भाग जाने वाले नहीं हैं? लीजिए, आप लोग याज्ञनिक सर से बात कर लीजिए.’’

सोमी ने तुरंत ही उन के मोबाइल का नंबर डायल किया और उन से बात कर के बोले, ‘‘सर, कह रहे हैं कि रोहित को फोन दो.’’

रोहित ने फोन पर कहा, ‘‘सर, हमारे चेक बाउंस हो रहे हैं.’’

‘‘देखो, एक बैंक की एल.सी. में कुछ स्पेल्ंिग की गलती है, उसे वापस भेजा है. जब दूसरी एल.सी. आएगी तब पैसा जमा होगा, तब आप लोगों का भुगतान हो जाएगा. सिक्योरिटी के लिए आप चेक लेते जाइए. एकसाथ भुगतान हो जाएगा.’’

‘‘ओ, थैंक्स, सर, आप ने हमारा संदेह दूर कर दिया.’’

रोहित ने अपने साथियों को इस बातचीत के बारे में बताया.

‘‘खैर, पेमेंट कहां जाएगा,’’ एक दादा टाइप लड़के ने कहा, ‘‘यदि पेमेंट नहीं दिया तो इस आफिस का फर्नीचर बेच कर अपना पैसा ले लेंगे.’’

इस तरह 3 महीने बीत गए. सभी आपरेटरों का गुस्सा सीमा पार करने लगा. अपने सामने मुसीबत खड़ी देख सोमी ने मोबाइल पर नीलेश और रोहित के बीच बात करा दी.

‘‘आप की एल.सी. पता नहीं कब जमा होगी. अब कोई आपरेटर इंतजार करने के लिए तैयार नहीं है,’’ रोहित जोर से चिल्लाया.

तभी दादा टाइप उस लड़के ने रोहित के हाथ से फोन छीन लिया और दहाड़ा, ‘‘सर, यदि कल तक हमें पेमेंट नहीं मिली तो हम सब आप के आफिस का सामान बेच कर अपना पैसा वसूल करेंगे.’’

‘‘ओ भाई, ऐसा मत करना,’’ नीलेश का स्वर हड़बड़ा गया, ‘‘चलो, मैं किसी भी तरह पैसे का इंतजाम कर के सुबह 10 बजे आफिस पहुंच रहा हूं. आप सब लोग भी आ जाइए.’’

दूसरे दिन सुबह का समाचारपत्र पढ़ कर 400 परिवार सन्न रह गए. हर समाचारपत्र का एक ही मजमून था कि प्रदेश के सब से बड़े डाटा एंट्री का भंडाफोड़…साथ में था पुलिस वालों के बीच मुंह लटकाए सोमी का फोटो.

अनंत देसाई ने धड़कते दिल से खबर पढ़ी, ‘‘सोमी गिरफ्तार लेकिन नीलेश याज्ञनिक तमाम आपरेटरों की जमा सिक्योरिटी ले कर और उन से मुफ्त में काम करा के 15 करोड़ रुपए का फायदा उठा कर फरार.’’

उस दादा टाइप लड़के ने अखबार पढ़ कर सोचा आफिस को फर्नीचर सहित आग लगा आए लेकिन आगे पढ़ कर वह सन्न रह गया क्योंकि आगे लिखा था कि आफिस व फर्नीचर नीलेश याज्ञनिक ने किराए पर ले रखा था.

उधर सोमी की मां बेटे की गिरफ्तारी से बेहोशी में थी. उन्हें जैसे ही होश आता चिल्लातीं, ‘‘सोमी, मैं ने पहले ही मना किया था कि तू इस कंपनी का मालिक मत बन. कोई वैसे ही लाखों रुपए का आफिस किसी के नाम नहीं करता.’’

और रोहित? वह अपने को संभालने की कोशिश कर रहा था. धीरेधीरे फिर वह अपने कमरे में बंद रहने लगा.

पहला प्यार चौथी बार

मेरा भारत महान. और भी बड़ेबड़े देश हैं जो हम से ज्यादा विकसित, धनी, सुखी और समृद्ध हैं मगर फिर भी महान नहीं हैं. महान तो सिर्फ और सिर्फ मेरा भारत है.

प्राचीनकाल में तो मेरा भारत और ज्यादा महान था. गौरवशाली साम्राज्य, ईमानदार इतिहास, सच्ची वीर परंपराएं, समृद्ध शासक, विशाल नागरिक, सोने की चिडि़या और घीदूध की नदियां… लगता है कुछ घालमेल हो गया लेकिन ऐसा ही कुछकुछ हुआ करता था. मगर आज के समय में, टूटीफूटी परंपराएं, सड़ा हुआ देश, भ्रष्ट जनता, गरीब नेता, गड़बड़ भूगोल और इतिहास का पता नहीं. कुल मिला कर जोजो अच्छा है वह पुराने जमाने में हो चुका, अभी तो जो भी नया है सब सत्यानाश.

मुझे तो सख्त अफसोस होता है कि मैं आज के समय में क्यों हूं, भूतकाल में क्यों न हुआ? बस, यही सोच कर संतोष होता है कि अभी जोजो बुरा है वह भी प्राचीन होने के बाद अच्छा हो जाएगा. ऐसे में जबकि जिंदगी जिल्लत ही जिल्लत है और हर चीज की किल्लत ही किल्लत है, एक चीज यहां ऐसी है जो पहले बड़ी दुर्लभ हुआ करती थी मगर आज उस की भरमार है और वह है प्रेम.

जी हां, आज हमारे पास प्रेम हमेशा हाजिर स्टाक में उपलब्ध रहता है. उस जमाने में कभी 100-50 साल में कोई एक मजनूं और एकाध लैला भूलेभटके ही होती थी, जो आपस में प्यार करते थे और बाकी लोग अजूबे की तरह उन्हें देखते थे कि ये लोग कर क्या रहे हैं और आखिर कब तक ऐसा करते रहेंगे? जिन की समझ में नहीं आता था वे उन्हें पत्थर उठा कर मारने लगते थे और जो अहिंसावादी थे वे बैठ कर उन के प्रेम की कहानियां लिखते थे. मगर आज गलीकूचों में प्रेम की ब्रह्मपुत्र बह रही है. यहां की हर छोरी लैला हर छोरा मजनूं. गांवगांव, शहरशहर, यहां, वहां, जहां, तहां, मत पूछो कहांकहां हीररांझा छितरे पड़े हैं. डालडाल रोमियो हैं तो पातपात जूलियट. बिजली के खंभों पर, टेलीफोन के तारों पर, जगहजगह लैला और मजनूं उलटे लटके पड़े हैं जितने जी चाहे गुलेल मार कर तोड़ लो.

किसी से भी यह सवाल पूछो कि आजकल क्या कर रहे हो? तो जवाब मिलता है, ‘‘प्यार कर रहा हूं.’’ कोई कालिज की कैंटीन में तो कोई हवाई झूले में, कोई गली के पिछवाड़े तो कोई कंप्यूटर पर ही. इंटरनेट पर तो प्यार करना बड़ा आसान है. एक मेल, फीमेल को ई मेल करता है, बदले में फीमेल भी मेल को ई मेल करती है और दोनों का मेल हो जाता है. शादियां भी इंटरनेट पर ही तय हो जाती हैं. कुछ दिनों बाद तो उन दोनों को मिलने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, कंप्यूटर पर ही डब्लूडब्लूडब्लू डाट मुन्नामुन्नी डाट काम हो जाएगा.

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पहले एक शीरीं हुआ करती थी जो एक फरहाद से प्यार किया करती थी और वह कमअक्ल मरते दम तक उसी से प्यार करती थी. मुगल साम्राज्य के पतन के बाद से ले कर जितेंद्र, श्रीदेवी की फिल्मों तक प्रेम के त्रिकोण बनने लगे थे, जिस में एक जूलियट के पीछे 2 रोमियो एकसाथ बरबाद हो जाते थे या फिर 2 महीवाल एक ही सोहणी को गलत रास्ते पर ले जाने की कोशिश किया करते थे, मगर अब तो त्रिकोण भी बीती बात हो गई, आजकल तो प्रेम के षट्कोण बनते हैं यानी 1 लैला, अकेली 5-5 मजनुओं को अपने घर के चक्कर कटवाती है और अंत में उन सब को ठेंगा दिखा कर किसी फरहाद से शादी कर लेती है.

उस जमाने में एक पहली नजर का प्यार होता था जो वाकई पहली नजर में हो जाया करता था लेकिन अब किसे उस की फिक्र है. अब तो हर नजर, प्यार की नजर है. इसी तरह एक होता था ‘पहला प्यार’, जो जीवन में किसी एक से एक ही बार होता था और भुलाए नहीं भूलता था, मगर आजकल तो पहला प्यार ही कई बार हो जाता है. राज की बात यह है कि मुझे भी यह कमबख्त ‘पहला प्यार’ 4 बार हो चुका है और पिछले सीजन में जब यह मुझे चौथी बार हुआ तभी मैं समझ गया था कि यह भी आखिरी बार नहीं है. मतलब अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है.

जिधर नजर डालो प्यार ही प्यार, नफरत का तो कहीं नामोनिशान नहीं. मुंबई की पूरी फिल्म इंडस्ट्री पिछले 100 साल से इसी प्रेम के दम पर दारूमुर्गा उड़ा रही है. हर फिल्म में और कुछ चाहे हो न हो, मगर 1 लड़का और 1 लड़की जरूर होते हैं जो अंत में कभी मिल पाते हैं कभी बिछड़ जाते हैं पर प्यार जरूर करते हैं.

100 साल से यही विचार चलता चला आ रहा है कि जिसे हम प्यार समझ रहे हैं क्या यही प्यार है? या फिर प्यार वह है जिसे हम प्यार नहीं समझ रहे हैं? जवान लड़का चाय की पत्ती लेने घर से निकला और कुत्तों के क्लीनिक में घुस गया, यह इश्क नहीं तो और क्या है? जवान लड़की, लड़के से शिकायत करती है, ‘‘दिल में दर्द रहता है, मुझे भूख नहीं लगती, प्यास नहीं लगती, सारा दिन तड़पती हूं, सारी रात जगती हूं, जाने क्या हुआ मुझ को…?’’

किसी पत्नी ने पति से कहा होता तो डाक्टर और अस्पताल के खर्च के बारे में सोच कर बेचारे का दिल बैठ जाता लेकिन प्रेमी का दिल खड़ा हो कर उछलने लगता है कि चलो, अपना जुगाड़ बैठ गया. उधर दर्शक भी समझ जाते हैं कि इसे ‘फाल इन लव’ कहते हैं. लड़का और लड़की प्यार में गिर गए, अब ये दोनों गिरी हुई हरकतें करेंगे. लड़की 16 साल और 1 दिन की हुई नहीं कि उसे मोहब्बत हो जाती है, कोईकोई तो साढ़े 15 साल में ही उंगली में दुपट्टा लपेटना शुरू कर देती है.

खुदा न खास्ता अगर किसी लड़के या लड़की की 17 साल उम्र हो जाने पर भी कोई लफड़ा नहीं हुआ तो फिल्मी मांबाप चिंतित हो जाते हैं कि ‘बच्चा’ कहीं असामान्य तो नहीं है और किसी अच्छे डाक्टर से चेकअप करवाने की जरूरत महसूस करने लगते हैं. लड़का जब अपने बाप को यह खबर सुनाता है कि उस का किसी पर दिल आ गया है तो बाप यों खुशी से उछल पड़ता है मानो उसे विदेश में पढ़ाई के लिए स्कालरशिप मिली हो. फिर वह उसे लड़की को भगाने के लिए प्रेरित करता है और जब लड़का, लड़की को ले भागता है तो वह गर्व से अपना सीना फुला कर कहता है, ‘आखिर बेटा किस का है?’

प्रेम के मामले में हो रही तरक्की के मद्देनजर आने वाले समय में हमारे घरों के अंदर के दृश्य बड़े मजेदार होंगे. आइए, जरा एकदो काल्पनिक दृश्यों का वास्तविक आनंद लें.

दृश्य : एक

कमरा वास्तुशास्त्र के अनुसार बना हुआ है. दक्षिणमुखी कमरे के बीचोबीच, वाममुखी सोफे पर चंद्रमुखी लड़की की सूरजमुखी मां और ज्वालामुखी बाप बैठे हैं. बाप परेशान है, ‘‘बात क्या है? तुम दोनों मांबेटी आखिर मुझ से क्या छिपा रही हो?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? आप ही के लाड़प्यार ने इसे बिगाड़ा है और अब पूछते हो कि हुआ क्या, जब इस ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

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‘‘पहेलियां मत बुझाओ, साफसाफ बताओ कि इस ने क्या किया है?’’

‘‘और क्या करेगी? आज जब पड़ोस वाली मिसेज भटनागर ने मुझे ताना मारा तब मुझे पता चला कि इस कलमुंही का एक भी ब्वायफ्रेंड नहीं है. नाक कटा दी इस ने हमारी. शहर के लोग क्या सोचते होंगे हमारे बारे में कि कितने बैकवर्ड हैं हम लोग.

‘‘ऊपर से मिसेज भटनागर मुझे जलाने के लिए अपनी दोनों बेटियों को ले कर आई थीं और वह इतराएं भी क्यों न, आखिर उन की दोनों बेटियां अब तक 2-2 ब्वायफ्रेंड बदल चुकी हैं और इस करमजली के कारण आज मैं 40 प्रतिशत जली हूं.’’

‘‘क्यों बेटी, जो मैं सुन रहा हूं क्या यह सच है?’’

‘‘नहीं, डैड…हां, डैड…पता नहीं, डैड.’’

‘‘देखो, मुझे हां या ना में सीधा जवाब चाहिए. क्या बात है बेटी, क्या तुम्हें कोई लाइन नहीं मारता?’’

‘‘म…म…मारता है मगर उस के पास सेलफोन और बाइक नहीं है.’’

‘‘बस, इतनी सी बात. तुम उसे लाइन देना शुरू कर दो. सेलफोन मैं उसे प्रजेंट कर दूंगा और तुम उसे प्यार से समझाना कि वह एक बाइक आसान किश्तों में खरीद ले.’’

‘‘ल…लेकिन डैड…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. मैं कोई बहाना सुनना नहीं चाहता. अगली बार जब तुम मेरे सामने आओ तो अपने ब्वायफ्रेंड के साथ ही आना, अगर ऐसा नहीं हुआ तो आइंदा तुम घर के बाहर ही रहोगी. तुम्हारा खाना, पीना और कमरे के अंदर घुसना बिलकुल बंद.’’

दृश्य : दो

कमरे की स्थिति तनावपूर्ण पर नियंत्रण में है. बाप बेटे पर गरम हो रहा है. मां दोनों में बीचबचाव कराती है, ‘‘अजी, मैं कहती हूं जब देखो आप मेरे लाडले के पीछे ही पड़े रहते हैं, अब इस ने ऐसा क्या कर दिया?’’

‘‘अरे, मुझ से क्या पूछती हो, पूछो अपने इस लाडले से, 2 साल से कालिज में है पर आज तक एक लड़की नहीं पटा सका, ऊपर से जबान लड़ाता है कि मुझे पढ़ाई से फुर्सत नहीं. सुना तुम ने? मैं ही जानता हूं कि कैसे मैं अपना पेट काट- काट कर इस के लिए फीस जुटाता हूं. इसी की उम्र के और लड़के रात में 2-2 बजे लौटते हैं अपनी ‘डेट’ के साथ और यह महाशय, इन्हें पढ़ाई से फुर्सत नहीं है.’’

‘‘हाय राम, बेटा, मैं यह क्या सुन रही हूं. देखो, तुम तो खुद समझदार हो, यह पढ़ाईवढ़ाई की जिद छोड़ दो, उस के लिए तो सारी उम्र पड़ी है. यही समय है जब तुम लड़कियों पर ध्यान दे कर अपना भविष्य संवार सकते हो.’’

‘‘इस तरह प्यार से समझाने पर यह नहीं समझने वाला. इस कमबख्त के सिर पर तो कैरियर बनाने का भूत सवार है. यह क्या समझेगा मांबाप के अरमानों को. पिछले हफ्ते जानती हो इस ने क्या किया? इसे किताबों के लिए मैं ने पैसे भेजे तो ये उन से सचमुच में किताबें खरीद लाया, किताबी कीड़ा कहीं का.’’

किताबी कीड़ा क्या करता? बेचारा चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा. प्रेम की ऐसी मारामारी, प्यार की ऐसी भरमार, इश्क, मोहब्बत का ऐसा जनून, न भूतो न भविष्यति. साल में एक पूरा दिन तो अब प्यार के नाम रिजर्व है ‘वेलेंटाइन डे’ के नाम से. अब वह रूखासूखा जमाना नहीं रहा जब प्रेम की उन्हीं घिसीपिटी 10-5 कहानियों को सारे लेखक अपनीअपनी शैली में घुमाफिरा कर लिखते थे…अब तो मैं :

‘‘सब धरती कागद करौं,

लेखनी सब बनराय,

सात समुंदर मसि करौं,

हरि गुन लिखा न जाय.’’

सारी धरती को कागज बना लूं, वन के सभी वृक्षों को कलम और सारे समुद्रों को स्याही में बदल दूं फिर भी जितनी प्रेम की कहानियां हैं पूरी नहीं लिख पाऊंगा. इस से तो बेहतर होगा कि इतना सारा कागज, कलम और स्याही बेच कर मैं करोड़पति हो जाऊं और मल्लिका शेरावत से पूछूं, ‘‘मेरे साथ डेट पर चलोगी?’’

Winter Special: सर्द मौसम में ऐसे करें अपने दिल की हिफाजत

सर्दियों का मौसम और इस मौसम की सर्द हवाएं अपने साथ साथ आलस लेकर आती हैं. आलस की वजह से लोग अपने शरीर खासतौर से अपने दिल को तंदुरुस्त रखने पर ध्यान नहीं देते. जिसकी वजह से सबसे ज्‍यादा परेशानी उन लोगों को होती है जो दिल और फेफड़ों के मरीज हैं.

डाक्टरों का कहना है कि ठंडे मौसम की वजह से दिल की धमनियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे दिल में रक्त और आक्सीजन का संचार कम होने लगता है. इससे हाइपरटेंशन और दिल के ब्लड प्रेशर के बढ़ने सम्बन्धी समस्या सामने आती है. ठंडे मौसम में ब्लड प्लेट्लेट्स ज्यादा सक्रिय और चिपचिपे होते हैं, इसलिए रक्त के थक्के जमने की आशंका भी बढ़ जाती है.

50 फीसदी तक बढ़ते हैं दिल के रोग

क्या आप जानती हैं कि सर्दियों के मौसम में सीने का दर्द और दिल के दौरे का जोखिम 50 फीसदी तक बढ़ जाता है. इस मौसम में दिन छोटे हो जाते हैं, धूप कम और हल्की निकलती है और लोग भी ज्यादा समय घर के अंदर ही रहना पसंद करते हैं. जिसकी वजह से मानव शरीर में विटामिन ‘डी’ की कमी भी हो जाती है. ऐसे में इस्केमिक हार्ट डिसीज, कंजस्टिव हार्ट फेल्योर, हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. इससे बचाव के लिए सर्दियों में उचित मात्रा में धूप सेंकना बेहद ही जरूरी है.

बढ़ता है अवसाद

इस मौमस में अक्सर बड़ी उम्र के लोगों में सर्दियों से जुड़ा अवसाद देखने को मिलता हैं. अवसाद से पीड़ित लोग ज्यादा चीनी, ट्रांसफैट और सोडियम व ज्यादा कैलोरी वाला आरामदायक भोजन खाने लगते हैं, जो मोटापे, दिल के रोगों और हाइपरटेंशन से पीड़ित लोगों के लिए यह बेहत ही खतरनाक साबित हो सकता है. इससे तनाव बढ़ता है और हाइपरटेंशन होने से, पहले से कमजोर दिल पर और दबाव पड़ जाता है. शरीर को गर्मी प्रदान करने के लिए हमारा दिल ज्यादा जोर से काम करने लगता है, रक्त धमनियां और सख्त हो जाती हैं. ये सब चीजें मिलकर हार्ट अटैक को बुलावा देती हैं.

सर्दियों में नजरअंदाज न करें सेहत

उम्रदराज और उन लोगों को, जिन्हें पहले से दिल की समस्याएं हैं, उन्हें छाती में असहजता, पसीना आना, जबड़े, कंधे, गर्दन और बाजू में दर्द के साथ ही सांस फूलने से सम्बन्धित समस्या बढ़ जाती है. जिसे नजरअंदाज करना उनके लिए और उनके दिल के लिए घातक हो सकती है. इसके बचाव के लिए नियमित रूप से व्यायाम करने के साथ ही संतुलित व पौष्टिक भोजन लेना आवश्यक है.

सर्दियों मे अपने दिल की हिफाजत के लिए अपनाएं ये उपाय

मौसम के हिसाब से अपने जीवनशैली में बदलाव लाएं, साथ ही सुबह जल्दी और देर रात तक बाहर रहने से परहेज करें.

ठंडे मौसम में वह व्यायाम करें, जो आपके शरीर को थकान का एहसास कराएं. जौगिंग, योग और एरोबिक्स करते हों, तो उसे जारी रखें.

सर्दियों में शराब और सिगरेट से दूर ही रहें तो अच्छा.

इस मौसम में अगर आपके रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) में कोई असामान्य बदलाव नजर आए, तो तुरंत अपने डाक्टर की सलाह लें.

भंवरजाल: जब टूटी रिश्तों की मर्यादा

‘‘कैसे भागभाग कर काम कर रहा है रिंटू.’’ ‘‘हां, तो क्यों नहीं करेगा, आखिर उस की बहन सोना की सगाई जो है,’’ दूसरे शहर से आए रिश्तेदार आपस में बतिया रहे थे और घर वाले काम निबटाने में व्यस्त थे. लेकिन क्यों बारबार भाई है, बहन है कह कर जताया जा रहा था? थे तो रिंटू ओर सोनालिका बुआममेरे भाईबहन, किंतु क्या कारण था कि रिश्तेदार उन के रिश्ते को यों रेखांकित कर रहे थे?

‘‘पता नहीं मामीजी को क्या हो गया है, अंधी हो गईं हैं बेटे के मोह में. और, क्या बूआजी भी नहीं देख पा रहीं कि सोना क्या गुल खिलाती फिर रही है?’’ बड़ी भाभी सुबह नाश्ता बनाते समय रसोई में बुदबुदा रही थीं. रसोई में काम के साथ चुगलियों का छौंक काम की सारी थकान मिटा देती है. साथ में सब्जी काटती छोटी मामी भी बोलीं ‘‘हां, कल रात देखा मैं ने, कैसे एक ही रजाई में रिंटू और सोना…सब के सामने. कोई उन्हें टोकता क्यों नहीं?’’

‘‘अरे मामी, जब उन दोनों को कोई आपत्ति नहीं, उन की माताओं को कुछ दिखता नहीं तो कौन अपना सिर ओखली में दे कर मूसली से कुटवाएगा?’’ बड़ी भाभी की बात में दम था. रिश्तेदार पीठ पीछे बात करते नहीं थकते परंतु सामने बोल कर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? जो हो रहा है, होने दो. मजा लो, बातें बनाओ और तमाशा देखो. जब से सोनालिका किशोरावस्था की पगडंडी पर उतरी, तभी से उस के ममेरे भाई उस से 12 वर्ष बड़े रिंटू ने उस का हाथ थाम लिया. हर पारिवारिक समारोह में उसे अपने साथ लिए फिरता. अपनी गर्लफ्रैंड्स की रोचक कहानियां सुना उसे गुदगुदाता. सोनालिका भी रिंटू भैया के आते ही और किसी की ओर नहीं देखती. उसे तो बस रिंटू भैया की रसीली बातें भातीं. बातें करते हुए रिंटू कभी सोनालिका का हाथ पकड़े रहता, कभी कमर में बांह डाल देता तो कभी उस की नर्म बांहें सहलाता, देखते ही देखते, 1-2 सालों में रिंटू और सोनालिका एकदूसरे से बहुत हिलमिल गए. सोनालिका उसे अलगअलग लड़कियों के नाम ले छेड़ती तो रिंटू उस के पीछे भागता, और इसी पकड़मपकड़ाई में रिंटू उस के बदन के भिन्न हिस्सों को अपनी बाहों में भींच लेता. कच्ची उम्र का तकाजा कहें या भावनाओं का ज्वार, रिंटू की उपस्थिति सोनालिका के कपोल लाल कर देती, उस के नयन कभी शरारत में डूबे रिंटू के साथ अठखेलियां करते तो कभी मारे हया के जमीन में गड़ जाते. हर समारोह में रिंटू उसे ले एक ही रजाई में घुस जाता. ऊपर से तो कुछ ज्यादा दिखाई नहीं देता किंतु सभी अनुभव करते कि रिंटू और सोनालिका के हाथ आपस में उलझे रहते, रजाई के नीचे कुछ शारीरिक छेड़खानी भी चलती रहती.

उस रात रिंटू अपनी नवीनतम गर्लफ्रैंड का किस्सा सुना रहा था और सोनालिका पूरे चाव से रस ले रही थी, ‘रिंटू भैया, आप ने उस का हाथ पकड़ा तो उस ने मना नहीं किया?’

‘अरे, सिर्फ हाथ नहीं पकड़ा, और भी कुछ किया…’ रिंटू ने कुछ इस तरह आंख मटकाई कि उस का किस्सा सुनने हेतु सोनालिका उस के और करीब सरक आई. ‘मैं ने उस का चेहरा अपने हाथों में यों लिया और…’ कहते हुए रिंटू ने सोनालिका का मुख अपने हाथों में ले लिया और फिर डैमो सा देते हुए अपनी जबान से झट उस के होंठ चूम लिए. अकस्मात हुई इस घटना से सोनालिका अचंभित तो हुई किंतु उस के अंदर की षोडशी ने नेत्र मूंद कर उस क्षण का आनंद कुछ इस तरह लिया कि रिंटू की हिम्मत चौगुनी हो गई. उस ने उसी पल एक चुंबन अंकित कर दिया सोनालिका के अधरों पर. उस रात जब अंताक्षरी का खेल खेला गया तो सारे रिश्तेदारों के जमावड़े के बीच सोनालिका ने गाया, ‘शर्म आती है मगर आज ये कहना होगा, अब हमें आप के कदमों ही में रहना होगा…’ उस की आंखें उस के अधरों के साथ कुछ ऐसी सांठगांठ कर बैठीं कि रिंटू की तरफ उठती उस की नजर देख सभी को शक हो गया. जो लज्जा उस का मुख ढक रही थी, उसी ने सारी पोलपट्टी खोल दी.

‘अरे सोना, यह 1968 की फिल्म ‘पड़ोसन’ का गाना तुझे कैसे याद आ गया? आजकल के बच्चे तो नएनए गाने गाते हैं,’ ताईजी ने तो कह भी दिया. जब रिंटू और सोनालिका की माताएं गपशप में व्यस्त हो जातीं, अन्य औरतें उन दोनों की रंगरेलियां देख चटकारे लेतीं. रिंटू की उम्र सोनालिका से काफी अधिक थी. सो, उस की शादी पहले हुई. रिंटू की शादी में सोनालिका ने खूब धूम मचाए रखी. किंतु जहां अन्य सभी भाईबहन ‘भाभीभाभी’ कह नईनवेली दुलहन रत्ना को घेरे रहते, वहीं सोनालिका केवल रिंटू के आसपास नजर आती. सब रिश्तेदार भी हैरान थे कि यह कैसा रिश्ता था दोनों के समक्ष – क्या अपनी शारीरिक इच्छा व इश्कबाज स्वभाव के चलते दोनों अपना रिश्ता भी भुला बैठे थे? सामाजिक मर्यादा को ताक पर रख, दोनों बिना किसी झिझक वो करते जो चाहते, वहां करते, जहां चाहते. उन्हें किसी की दृष्टि नहीं चुभती थी, उन्हें किसी का भय नहीं था.

रिंटू की शादी के बाद भी हर पारिवारिक गोष्ठी में सोनालिका ही उस के निकट बनी रहती. एक बार रिंटू की पत्नी, रत्ना ने सोनालिका और रिंटू को हाथों में हाथ लिए बैठे देखा. उसे शंका इस कारण हुई कि उसे कक्ष में प्रवेश करते देख रिंटू ने अपना हाथ वापस खींच लिया. बाद में पूछने पर रिंटू ने जोर दे कर उत्तर दिया, ‘कम औन यार, मेरी बहन है यह.’ उस बात को करीब 4 वर्ष के अंतराल के बाद आज रत्ना लगभग भुला चुकी थी. अगले दिन सोनालिका की सगाई थी. लड़का मातापिता ने ढूंढ़ा था. शादी से जुड़े उस के सुनहरे स्वप्न सिर्फ प्यारमुहब्बत तक सिमटे थे. इस का अधिकतम श्रेय रिंटू को जाता था. सालों से सोनालिका को एक प्रेमावेशपूर्ण छवि दिखा, प्रेमालाप के किस्से सुना कर उस ने सोना के मानसपटल पर बेहद रूमानी कल्पनाओं के जो चित्र उकेरे थे, उन के परे देखना उस के लिए काफी कठिन था. सगाई हुई, और शादी भी हो गई. मगर अपने ससुराल पहुंच कर सोनालिका ने अपने पति का स्वभाव काफी शुष्क पाया. ऐसा नहीं कि उस ने अपने पति के साथ समायोजन की चेष्टा नहीं की. सालभर में बिटिया भी गोद में आ गई किंतु उन के रूखे व्यवहार के आगे सोनालिका भी मुरझाने लगी. डेढ़ साल बाद जब छोटी बहन की शादी में वो मायके आई तो रिंटू से मिल कर एक बार फिर खिल उठी थी. शादी में आई सारी औरतें सोनालिका और रिंटू को एक बार फिर समीप देख अचंभित थीं.

‘‘अब तो शादी भी हो गई, बच्ची भी हो गई, तब भी? हद है भाई सोना की,’’ बड़ी भाभी बुदबुदा रही थीं कि रत्ना रसोई में आ गई.

‘‘क्या हुआ भाभी?’’ रत्ना के पूछने पर बड़ी भाभी ने मौके का फायदा उठा सरलता और बेबाकी से कह डाला, ‘‘कहना तो काफी दिनों से चाहती थी, रत्ना, पर आज बात उठी है तो बताए देती हूं – जरा ध्यान रखना रिंटू का. यह सोना है न, शुरू से ही रिंटू के पीछे लगी रहती है. अब कहने को तो भाईबहन हैं पर क्या चलता है दोनों के बीच, यह किसी से छिपा नहीं है. तुम रिंटू की पत्नी हो, इसलिए तुम्हारा कर्तव्य है अपनी गृहस्थी की रक्षा करना, सो बता रही हूं.’’ बड़ी भाभी की बात सुन रत्ना का चिंतित होना स्वाभाविक था. माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को पोंछती वह बाहर आई तो सोनालिका और रिंटू के स्वर सुन वो किवाड़ की ओट में हो ली.

‘‘कैसी चुप सी हो गई है सोना. क्या बात है? मेरी सोना तो हमेशा हंसतीखेलती रहती थी,’’ रिंटू कह रहा था और साथ ही सोनालिका के केशों में अपनी उंगलियां फिराता जा रहा था.

‘‘रिंटू, आप जैसा कोई मिल जाता तो बात ही क्या थी. क्या यार, हम भाईबहन क्यों हैं? क्या कुछ भी नहीं हो सकता?’’ कहते हुए सोनालिका रिंटू की छाती से लगी खड़ी थी कि रत्ना कमरे में प्रविष्ट हो गई. दोनों हतप्रभ हो गए और जल्दी स्वयं को व्यवस्थित करने लगे.

‘‘भाभी, आओ न. मैं रिंटू भैया से कह रही थी कि इतना सुहावना मौसम हो रहा है और ये हैं कि कमरे में घुसे हुए हैं. चलो न छत पर चल कर कुछ अच्छी सैल्फी लेते हैं,’’ कहते हुए सोनालिका, रिंटू का हाथ पकड़ खींचने लगी.

‘‘नहीं, अभी नहीं, मुझे कुछ काम है इन से,’’ रत्ना के रुखाई से बोलने के साथ ही बाहर से बूआजी का स्वर सुनाई पड़ा. ‘‘सोना, जल्दी आ, देख जमाई राजा आए हैं.’’ सोनालिका चुपचाप बाहर चली गई. उस शाम रत्ना और रिंटू का बहुत झगड़ा हुआ. बड़ी भाभी ने भले ही सारा ठीकरा सोनालिका के सिर फोड़ा था पर रत्ना की दृष्टि में उस का अपना पति भी उतना ही जिम्मेदार था. शायद कुछ अधिक क्योंकि वह सोनालिका से कई वर्ष बड़ा था. आज रिंटू का कोई भी बहाना रत्ना के गले नहीं उतर रहा था. पर अगली दोपहर फिर रत्ना ने पाया कि सोनालिका सैल्फी ले रही थी और इसी बहाने उस का व रिंटू का चेहरा एकदम चिपका हुआ था. ये कार्यकलाप भी सभी के बीच हो रहा था. सभी की आंखों में एक मखौल था लेकिन होंठों पर चुप्पी. रत्ना के अंदर कुछ चटक गया. रिंटू की ओर उस की वेदनाभरी दृष्टि भी जब बेकार हो गई तब वह अपने कमरे में आ कर निढाल हो बिस्तर पर लेट गई. पसीने से उस का पूरा बदन भीग चुका था. आंख मूंद कर कुछ क्षण यों ही पड़ी रही.

फिर अचानक ही उठ कर रिंटू की अलमारी में कुछ टटोलने लगी. और ऐसे अचानक ही उस के हाथ एक गुलाबी लिफाफा लग गया. जैसे इसे ही ढूंढ़ रही थी वह – फौरन खोल कर पढ़ने लगी : ‘रिंटू जी, (कम से कम यहां तो आप को ‘भैया’ कहने से मुक्ति मिली.)

‘मैं कैसे समझाऊं अपने मन को? यह है कि बारबार आप की ओर लपकता है. क्या करूं, भावनाएं हैं कि मेरी सुनती नहीं, और रिश्ता ऐसा है कि इन भावनाओं को अनैतिकता की श्रेणी में रख दिया है. यह कहां फंस गई मैं? जब से आप से लौ लगी है, अन्य कहीं रोशनी दिखती ही नहीं. आप ने तो पहले ही शादी कर ली, और अब मेरी होने जा रही है. कैसे स्वीकार पाऊंगी मैं किसी और को? कहीं अंतरंग पलों में आप का नाम मुख से निकल गया तो? सोच कर ही कांप उठती हूं. कुछ तो उपाय करो.

‘हर पल आप के प्रेम में सराबोर.

‘बस आप की, सोना.’

रत्ना के हाथ कांप गए, प्रेमपत्र हाथों से छूट गया. उस का सिर घूमने लगा – भाईबहन में ऐसा रिश्ता? सोचसोच कर रत्ना थक चुकी थी. लग रहा था उस का दिमाग फट जाएगा. हालांकि कमरे में सन्नाटा बिखरा था पर रत्ना के भीतर आंसुओं ने शोर मचाया हुआ था. इस मनमस्तिष्क की ऊहापोह में उस ने एक निर्णय ले लिया. वह उसी समय अपना सामान बांध मायके लौट गई. सारे घर में हलचल मच गई. सभी रिश्तेदार गुपचुप सोनालिका को इस का दोषी ठहरा रहे थे. लेकिन सोनालिका प्रसन्न थी. उस की राह का एक रोड़ा स्वयं ही हट गया था. इसी बीच शादी में शामिल होने पहुंचे सोनालिका के पति के कानों में भी सारी बातें पड़ गईं. ऐसी बातें कहां छिपती हैं भला? जब उन्होंने अपनी पत्नी सोनालिका से बात साफ करनी चाही तो उस ने उलटा उन्हें ही चार बातें सुना दीं, ‘‘आप की मुझे कुछ भी बोलने की हैसियत नहीं है. पहले रिंटू भैया जैसा बन कर दिखाइए, फिर उन पर उंगली उठाइएगा.’’ भन्नाती हुई सोनालिका कमरे से बाहर निकल गई. हैरानपरेशान से उस के पति भी बरामदे में जा रहे थे कि रत्ना के हाथों से उड़ा सोनालिका रिंटू का प्रेमपत्र उन के कदमों में आ गया. मानो सोनालिका की सारी परतें उन के समक्ष खुल कर रह गईं. उन्हें गहरी ठेस लगी. गृहस्थी की वह गाड़ी  आगे कैसे चले, जिस में पहले से ही पंचर हो. दिल कसमसा उठा, मन उचाट हो गया. किसी को पता भी नहीं चला कि वे कब घर छोड़ कर लौट चुके थे.

एक अवैध रिश्ते के कारण आज 2 घर उजड़ चुके थे. रिश्तेदारों द्वारा बात उठाने पर रिंटू ऐसी किसी भी बात से साफ मुकर गया, ‘‘कैसी बात कर रहे हैं आप लोग? शर्म नहीं आती, सोना मेरी बहन है. लेकिन प्रेमपत्र हाथ लगने से सारी रिश्तेदारी में सोनालिका का नाम बदनाम हो चुका था. इस का भी उत्तर था रिंटू के पास, ‘‘सोना छोटी थी, उस का मन बहक गया होगा. उसे समझाइए. अब वह एक बच्ची की मां है, यह सब उसे शोभा नहीं देता.’’ पुरुषप्रधान समाज में एक आदमी ने जो कह दिया, रिश्तेनातेदार उसी को मान लेते हैं. गलती केवल औरत की निकाली जाती है. प्यार किया तो क्यों किया? उस की हिम्मत कैसे हुई कोई कदम उठाने की? और फिर यहां तो रिश्ता भी ऐसा है कि हर तरफ थूथू होने लगी.

सोनालिका एक कमरे में बंद, अपना चेहरा हाथों से ढांपे, सिर घुटनों में टिकाए जाने कब तक बैठी रही. रात कैसे बीती, पता नहीं. सुबह जब महरी साफसफाई करने गई तो देखा सोनालिका का कोई सामान घर में नहीं था. वह रात को 2 अटैचियों में सारा सामान, जेवर, पैसे ले कर चली गई थी, महीनों तक पता नहीं चला कि रिंटू और सोनालिका कहां हैं. दोनों घरों ने कोई पुलिस रिपोर्ट नहीं कराई क्योंकि दोनों घर जानते थे कि सचाई क्या है. फिर उड़तीउड़ती खबर आई कि मनाली के रिजौर्ट में दोनों ने नौकरी कर ली है और साथसाथ रह रहे हैं, पतिपत्नी की तरह या वैसे ही, कौन जानता है.

बालों के झड़ने से परेशान हैं तो अपनाइए 6 आसान टिप्स

महिलायें कभी-कभी नोटिस करती हैं कि कई विभिन्न कारणों से उनके बाल दिन पर दिन पतले होते जा रहे हैं. उम्र के साथ, मीनोपाज, प्रेगनेंसी, जेनेटिक्स, बीमारी और अन्य कई कारण ऐसे हैं जो बाल झड़ने में अपनी अहम भूमिका अदा करते हैं. ऐसे बहुत से नेचुरल तरीके हैं जिसे अपनाकर आप इस समस्या से छुटकारा पा सकती हैं. तो आइए आपको बताते हैं कि रसोई घर में मौजूद कुछ चुनिंदा सामग्री के इस्तेमाल से आप कैसे अपने बालों को झड़ने से रोक सकती हैं.

1. प्याज का रस

प्याज के रस में सल्फर की मात्रा होती है. ये टिशू में मौजूद कोलेजन के उत्पादन को बढ़ावा देते हुए बालों के विकास में मदद करती है. प्याज को पीस कर उसका रस निकाल लें. आप इसे कद्दूकस भी कर सकते हैं. रस को 10-15 मिनट के लिए स्कैल्प पर लगाकर छोड़ दें. इसके बाद बालों को हल्के शैंपू से धोएं. प्याज के रस के अलावा आप आलू का रस भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

2. सेब का सिरका

सिरका स्कैल्प को साफ कर पी.एच. संतुलन को बनाए रखती है. लंबे घने बालों के लिए एक लीटर पानी में सेब के सिरके को 75 मि.ली. मिलाएं. बालों को शैंपू करने के बाद सेब के सिरके को सबसे आखिर में पानी में डालकर धोएं. इससे बालों में चमक तो आएगी ही, साथ ही लंबाई में भी असर दिखाई देगा.

3. ग्रीन-टी

सेहत को तंदरूस्‍त रखने के लिए आप रोज अपने आहार में ग्रीन-टी का इस्तेमाल करते हैं और बाद में उसके टी बैग को कूड़े में फेंक देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही ग्रीन-टी आपके बालों के लिए कितनी लाभकारी होती है? ग्रीन-टी एक बहुत ही अच्छी एंटीआक्सिडेंट होती है, जो बालों को टूटने से रोकने के साथ ही उसके विकास में भी मदद करती है. हल्की गर्म ग्रीन-टी को अपनी स्कैल्प पर लगाएं. करीब एक घंटे के लिए लगाकर छोड़ दें. ठंडे पानी से बालों को धो लें.

4. आंवला

पोषक तत्वों से भरे इस लाभकारी फल में विटामिन सी का मात्रा काफी होती है, जो बालों के विकास के लिए काफी अच्छा होता है. दो छोटे चम्मच आंवला पाउडर या रस में दो छोटे चम्मच नींबू का रस मिलाएं. हल्का सूखने के लिए रख दें. जब यह सूख जाए, तो गुनगुने पानी में मिलाकर बालों को धोएं.

5. अंडा

इसमें प्रोटीन की मात्रा के साथ सल्फर, आयरन, जिंक, सेलेनियम, आयोडीन और फास्फोरस होता है, जो अच्छे घने बालों के विकास में मदद करता है. अंडे का कवच बनाने के लिए इसके सफेद भाग को एक कटोरी में डालकर फेंट लें. इसके बाद इसमें एक छोटा चम्मच जैतून का तेल और एक छोटा चम्मच शहद डालकर मिलाएं. तैयार किए पेस्ट को अपने बालों और स्कैल्प पर 20 मिनट के लिए लगाकर छोड़ दें. शैंपू और ठंडे पानी की मदद से बालों को धो लें.

6. मेथी

बालों के प्राकृतिक रंग को बनाए रखने के लिए काफी लोग परेशान रहते हैं. मेथी में प्रोटीन और निकोटीनिक एसिड होता है, जो बालों के लिए काफी फायदेमंद है. इस पेस्ट को बनाने के लिए मेथी पीस लें. इसमें थोड़ा सा नारियल का तेल डालकर इसे करीब आधे घंटे के लिए अपने बालों और स्कैल्प पर लगाएं. हल्के शैंपू के इस्तेमाल से धो लें.

ये उपाय आपके बालों को झड़ने से रोकने के साथ ही उसे लम्बे और चमकदार बनाने में आपकी मदद करेंगे.

लव या लस्ट, क्या है पहली नजर का प्यार

फिल्म ‘शुद्ध देसी रोमांस’, ‘बेफिक्रे’, ‘ओके जानू’, ‘वजह तुम हो’ आदि फिल्मों को देखने के बाद प्यार के नाम पर परोसा जाने वाला मसाला, लव, इमोशंस, इज्जत से परे केवल ‘लस्ट’ यानी सैक्स या कामुकता के आसपास दिखाया जाता है. युवकयुवती की मुलाकात हुई, थोड़ी बातचीत हुई और बैडरूम तक पहुंच गए. आज की सारी लव स्टोरी फिल्मों से ले कर दैनिक जीवन में भी ऐसी ही कुछ देखने को मिलती है. यह सही है कि फिल्में समाज का आईना हैं और निर्मातानिर्देशक मानते हैं कि आज की जनरेशन इसे ही स्वीकारती है.

आज यूथ के लिए प्यार की परिभाषा बदल चुकी है. प्यार का अर्थ जो आज से कुछ साल पहले तक एहसास हुआ करता था, उसे आज गलत और पुरानी मानसिकता कहा जाता है. ऐसे में सामंजस्य न बनने की स्थिति में ऐसे रिश्ते को तोड़ना आज आसान हो चुका है और यूथ लिव इन रिलेशनशिप को बेहतर मानने लगा है, क्योंकि शादी के बाद अगर कोई समस्या आती है, तो कानूनी तौर पर अलग होना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन यह सही है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, कुछ अच्छा तो कुछ बुरा अवश्य होता है.

दरअसल, असल जीवन में जब युवकयुवती मिलते हैं तो उन्हें यह समझना मुश्किल होता है कि वे लव में जी रहे हैं या लस्ट में. कभीकभार वे समझते हैं कि लव में जी रहे हैं, जबकि वह लव नहीं, लस्ट होता है. जब तक वे इसे समझ पाते हैं कि उन का रिश्ता किधर जा रहा है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और रिश्ता टूट जाता है.

जानकारों की मानें तो जब आप पहली बार किसी से मिलते हैं तो पहली नजर में प्यार नहीं लस्ट होता है, जो बाद में प्यार का रूप लेता है. फिर एकदूसरे को आप पसंद कर अपने में शामिल कर लेते हैं.

एमएनसी में काम करने वाली मधु बताती है कि पहले मैं राजेश से बहुत प्यार करती थी. हम दोनों एक फैमिली फंक्शन में मिले थे. करीब एक साल बाद उस ने मुझे घर बुलाया और उस दिन हम दोनों ने सारी हदें पार कर दीं. इस तरह जब भी समय मिलता हम मिलते रहते, लेकिन जब मैं ने उस से शादी की बात कही, तो वह यह कह कर टाल गया कि थोड़े दिन में वह अपने मातापिता को बता कर फिर शादी करेगा. जब घर गया तो वहां से उस ने न तो फोन किया और न ही कोई जवाब दिया. जब मुंबई वापस आया तो उस के साथ उस की पत्नी थी.

मैं चौंक गई, वजह पूछी तो बोला कि उस के मातापिता ने जबरदस्ती शादी करवा दी है. मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. मैं क्या कर सकती थी. उस ने कहा कि वह अब भी मुझ से प्यार करता है और उसे तलाक दे कर मुझ से शादी करेगा, लेकिन आज तक कुछ समाधान नहीं निकला. अब मुझे समझ में आया कि यह उस का लव नहीं लस्ट था, क्योंकि अगर वह असल में प्यार करता तो किसी भी प्रकार के दबाव में शादी नहीं करता.

इस बारे में मैरिज काउंसलर डा. संजय मुखर्जी कहते हैं कि युवकयुवती का रिश्ता तभी तक कायम रहता है जब तक वह एकदूसरे को खुशी दें. प्यार में पैसा जरूरी है जो केवल 10त्न तक ही खुशी दे सकता है, इस से अधिक नहीं. प्यार भी कई प्रकार का होता है, रोमांटिक प्यार जो सब से ऊपर होता है, जिस का उदाहरण रोमियोजूलिएट, हीररांझा, लैलामजनूं आदि की कहानियों में दिखाई पड़ता है. महिलाएं अधिकतर लव को महत्त्व देती हैं जबकि पुरुषों के लिए लव अधिकतर लस्ट ही होता है. तकरीबन 75 से 80त्न महिलाएं लव और लस्ट को इंटरलिंक्ड मानती हैं. महिलाएं मोनोगेमिक नेचर की होती हैं, जबकि पुरुष का नेचर पोल्य्गामिक होता है. एक स्त्री एक साल में एक ही बच्चा पैदा कर सकती है, जबकि पुरुष 100 बच्चों को जन्म दे सकता है. आकर्षण के बाद भी लव हो सकता है और जब आकर्षण होता है, तो उस में शारीरिक आकर्षण अधिक होता है. ये सारी प्रक्रियाएं हमारे मस्तिष्क द्वारा कंट्रोल की जाती हैं.

इस के आगे वे कहते हैं कि सबकुछ हर व्यक्ति में अलगअलग होता है. ऐसा देखा गया है कि शादी के बाद भी कुछ युवतियों में शारीरिक संबंधों को ले कर कुछकुछ गलत धारणाएं होती हैं, जिन्हें ले कर भी वे अपने रिश्ते खराब कर लेती हैं और तलाक ले लेती हैं.

लव मन की भावनाओं के साथ जुड़ता है जिस के साथ लस्ट जुड़ा होता है. लव एक मानसिक जरूरत को दर्शाता है तो दूसरा शारीरिक जरूरत को बयां करता है.

कई बार महिलाएं केवल लस्ट का अनुभव करती हैं, लव का नहीं, जिस से वे रियल प्यार की खोज में विवाहेत्तर संबंध बनाती हैं. किसी एक की कमी आप के रिश्ते को खराब करती है.

लव में सैक्सुअल कंपैटिबिलिटी होना बहुत जरूरी है. रिलेशनशिप में रहना गलत नहीं, लेकिन इस में एक तरह की सोच रखने वाले ही सफल जीवनसाथी बन पाते हैं.

लव और लस्ट के बारे में चर्चा सालों से चली आ रही है. क्या पहली नजर में प्यार होता है या वह लस्ट ही होता है? क्या अच्छा है, लव या लस्ट? हमारे आर्टिस्ट जो इन्हीं विषयों पर धारावाहिक और फिल्में बनाते हैं. आइए जानें इस बारे में उन की अपनी सोच क्या है :

अदा खान : लस्ट पूरा शारीरिक आकर्षण है. प्यार पहली नजर में हो सकता है पर इसे पनपने में समय लगता है. दोनों ही नैचुरल हैं, पर लव की परवरिश करनी पड़ती है. जब आप किसी से प्यार करते हैं तो आप का दिल जोरजोर से धड़कता है, लेकिन मेरे हिसाब से ‘रियल सोलमेट’ के मिलने से आप शांत अनुभव करते हैं. लव और लस्ट में काफी अंतर है. लस्ट आप के सिर के ऊपर से चला जाता है, लेकिन प्यार का नशा हमेशा जारी रहता है. प्यार आप एक बार ही कर सकते हैं, लेकिन लस्ट आप बारबार कहीं भी कर सकते हैं.

अंजना सुखानी : अभिनेत्री अंजना सुखानी कहती हैं कि लव और लस्ट दोनों ही हमारी जरूरत हैं. एक मानसिक तो दूसरा शारीरिक है, लेकिन दोनों में सामंजस्य अवश्य होना चाहिए. प्यार आप को सुरक्षा, सम्मान, खुशी, चाहत आदि सबकुछ देता है, जबकि लस्ट क्षणिक होता है. लस्ट प्यार को अधिक दिन तक आगे नहीं ले जा सकता.

श्रद्धा कपूर : श्रद्धा कपूर बताती हैं कि लव में लस्ट होता है, लेकिन इसे सहेजना पड़ता है. मुझे कोई पहली नजर में अच्छा लग सकता है, पर प्यार हो जाए यह जरूरी नहीं. उस के लिए मुझे सोचना पड़ेगा. मैं परिवार के अलावा हर निर्णय सोचसमझ कर लेती हूं. इतना सही है कि अगर प्यार मिले तो उस में लस्ट अवश्य होगा. इस के लिए सही जांचपरख भी होगी.

पूनम पांडेय : पूनम के अनुसार लव में 60% लस्ट का होना जरूरी होता है. तभी उस का मजा आता है, लेकिन इस के लिए दोनों को ही सही तालमेल बनाए रखना जरूरी है. मैं यह मानती हूं कि पहली नजर में प्यार होता है और उस के बाद लस्ट आता है.

करण वाही : क्रिकेटर से मौडल और ऐक्टर बने करण वाही कहते हैं कि पहली नजर में अगर किसी से प्यार हो जाए तो इस से बढ़ कर और अच्छी बात कोई नहीं है. जब आप किसी से मिलते हैं तो एक अजीब तरह का आकर्षण महसूस करते हैं. हालांकि लव की परिभाषा गहन है, लेकिन यही आकर्षण लव में परिवर्तित हो सकता है. जब आप किसी से प्यार करते हैं, तो उस की हर बात आप को अच्छी लगने लगती है. लस्ट पूरा शारीरिक आकर्षण है. इस में फीलिंग्स की गुंजाइश कम होती है.

ज्योत्स्ना चंदोला : ‘ससुराल सिमर का’ धारावाहिक में नकारात्मक भूमिका निभा कर चर्चित हुई ज्योत्स्ना चंदोला कहती हैं कि लव मेरे लिए लौंग टर्म रिलेशनशिप है, जहां आप किसी से इतना जुड़ जाते हैं कि आप को उस के लिए कुछ भी करना अच्छा लगता है. लस्ट शौर्टटर्म और शारीरिक संबंध है. लव पहली नजर में नहीं हो सकता लेकिन लस्ट पहली नजर में हो जाता है. मैं अभी लव में हूं तो मुझ से बेहतर इसे कोई और समझ नहीं सकता.

कृतिका सेंगर धीर : टीवी अभिनेत्री कृतिका कहती हैं कि लस्ट खोखला इमोशन है, जो थोड़े दिन बाद खत्म हो जाता है, जबकि लव मजबूत, शक्तिशाली और जीवन को बदलने वाला होता है. लव से आप को खुशी मिलती है. इस से सकारात्मक सोच बनती है. मुझे इस का बहुत अच्छा अनुभव है, क्योंकि काम के दौरान मुझे सच्चा प्यार मेरे पति के रूप में निकितिन धीर से मिला.

सुदीपा सिंह : धारावाहिक ‘नागार्जुन’ में मोहिनी की भूिमका निभा रहीं सुदीपा सिंह कहती हैं कि आजकल रिश्तों के माने बदल चुके हैं. ऐसे में सही प्यार का मिलना मुश्किल है, अधिकतर लस्ट ही हावी होता है. लस्ट हर जगह आसानी से मिल जाता है. एक  सही प्यार आप की जिंदगी बदल देता है और लस्ट आप को अधूरा कर सकता है. पहली नजर में प्यार कभी नहीं होता, लेकिन आप को एक एहसास जरूर होता है, जो समय के साथ प्रगाढ़ होता है. मुझे इस का अनुभव है. मैं युवाओं से कहना चाहती हूं कि किसी को भी अगर कोई ‘सोलमेट’ मिले तो उसे संभाल कर रखें.

लव और लस्ट में अंतर

– लव एक प्रकार का आंतरिक एहसास है, जबकि लस्ट प्यार के साथसाथ एक शारीरिक खिंचाव भी है.

–  लव में एकदूसरे के प्रति मानसम्मान, इज्जत, ईमानदारी, विश्वसनीयता, आपसी सामंजस्य अधिक होता है, लेकिन लस्ट में चाहत, पैशन और गहरे इमोशंस होते हैं.

– लव में एक व्यक्ति दूसरे की खुशी को अधिक प्राथमिकता देता है जबकि लस्ट थोड़े समय की खुशी देता है.

– लव कुछ देने में विश्वास रखता है, जिस में व्यक्ति सुरक्षा का अनुभव करता है, जबकि लस्ट में अर्जनशीलता अधिक हावी रहती है, इस से असुरक्षा अधिक होती है.

– लव समय के साथसाथ मजबूत होता है, जबकि लस्ट का प्रभाव धीरेधीरे कम होने लगता है.

–  लव का एहसास सालोंसाल रहता है जबकि लस्ट पूरा हो जाने पर भुलाया भी जा सकता है.

– लव अनकंडीशनल होता है, जबकि लस्ट में व्यक्ति अपनी खुशी देखता है, कई बार लस्ट, लव में भी बदल जाता है पर वह लस्ट के साथसाथ ही चलता है. बाद में उस की अहमियत नहीं रहती.

Winter Special: बुनाई करते समय ध्यान रखें ये 7 टिप्स

मौसम की फिज़ा में अब ठंडक घुलने लगी है  कुछ समय पूर्व तक इस मौसम में महिलाओं के हाथ में ऊन और सलाइयां ही दिखतीं थीं. आजकल भले ही हाथ से बने स्वेटरों की अपेक्षा रेडीमेड स्वेटर का चलन अधिक है परन्तु स्वेटर बुनने की शौकीन महिलाओं के हाथ आज भी खुद को बुनाई करने से रोक नहीं पाते. रेडीमेड की अपेक्षा हाथ से बने स्वेटर अधिक गर्म और सुंदर होते हैं साथ ही इनमें जो अपनत्व और प्यार का भाव होता है वह रेडीमेड स्वेटर में कदापि नहीं मिलता परन्तु कई बार स्वेटर बनाने के बाद ढीला पड़ जाता है अथवा फिट नहीं हो पाता या फिर धुलने के बाद रोएं छोड़ देता है. इन्हीं छोटी छोटी समस्याओं से मुक्ति के लिए आज हम आपको स्वेटर बनाने के लिए कुछ टिप्स बता रहे हैं-

1. ऊन

लोकल या सस्ती ऊन की अपेक्षा स्वेटर बनाने के लिए सदैव वर्धमान या ओसवाल कम्पनी की 3 प्लाई की उत्तम क्वालिटी की ऊन ही  खरीदें. यदि आप छोटे बच्चों के लिए स्वेटर बना रही हैं तो सामान्य की अपेक्षा छोटे बच्चों के लिए विशेष रूप से बनाई जाने वाली बिना रोएं की बेबी वूल का ही प्रयोग करें.

2. सलाई

ऊन के साथ साथ सलाई भी अच्छी क्वालिटी की होना अत्यंत आवश्यक है. सस्ती सलाई अक्सर ऊन पर अपना रंग छोड़ देती है जिससे कई बार स्वेटर का वास्तविक रंग ही खराब हो जाता है. मोटी ऊन के लिए 5-6 नम्बर की मोटी और पतली ऊन के लिए 10-12 नम्बर की पतली सलाई लेना उपयुक्त रहता है

3. फंदे

मोटी प्लाई की ऊन में कम फंदे और पतली ऊन में अधिक फंदे डालें. फंदे दोहरी ऊन से टाइट करके डालें, फंदे ढीले रहने पर स्वेटर बॉर्डर से ढीला हो जाने की संभावना रहती है.

4. बॉर्डर

आम तौर पर एक उल्टा और एक सीधे फंदे से बॉर्डर बनाया जाता है. यदि आप स्वेटर 10 न की सलाई से बना रहीं हैं तो बॉर्डर 2 न अधिक अर्थात 12 न की सलाई से बनाएं इससे स्वेटर की नीचे और बाहों से फिटिंग सही रहती है.

5. बुनाई

आप स्वेटर में जो भी डिजाइन डालना चाहतीं हैं उसे पहले एक नमूने में डालकर देख लें ताकि स्वेटर बनाते समय आपको कोई कन्फ्यूजन न रहे. छोटे बच्चों के स्वेटर में बहुत बड़ी और दो रंगों की डिजाइन की अपेक्षा सेल्फ  में ही डिजाइन डालें क्योंकि 2-3 रंग की डिजाइन में स्वेटर के उल्टी तरफ  ऊन निकली रहती है जो बच्चों के हाथ में उलझ जाती है. हर हाथ की बुनाई में फर्क होता है इसलिए स्वेटर को एक ही हाथ से बुनना चाहिए. हल्के रंग के स्वेटर को बुनते समय बॉल्स को एक पॉलीथिन में डालकर रखें इससे स्वेटर गन्दा नहीं होगा.

6. गला

आमतौर पर स्वेटरों में वी, गोल, चौकोर और कॉलर वाले गले बनाये जाते हैं. गोल गले को बाजार में गोल गले के लिए विशेष रूप से बनाई जाने वाली  चार सलाइयों से ही बनाएं और बंद करते समय फंदों को सुई की मदद से बंद करें. छोटे बच्चों के लिए किसी विशेष गले का स्वेटर बनाने के स्थान पर सामने से खुला स्वेटर बनाएं जिससे उन्हें पहनाने में आसानी रहे.

7. सिलाई

पूरा स्वेटर बन जाने के बाद स्वेटर की सिलाई की जाती है. सिलाई स्वेटर के रंग की ऊन से ही करें. यदि ऊन बिल्कुल ही समाप्त हो गयी है तो आप सेम रंग के धागे का भी प्रयोग कर सकतीं हैं.  सिलाई करते समय सभी गांठो को सुई की मदद से स्वेटर के पीछे की तरफ कर दें साथ ही ऊन के लंबे धागों को भी आसानी से काट दे.

जिंदगी ब्लैक ऐंड व्हाइट नहीं होती- भाग 2: आशिक मिजाज बॉस की कहानी

इधर रमला सोच रही है कि कितना अच्छा इंसान था रूपेश? जो कुछ उस के पति ने उस के बारे में बताया उस से मिल कर उस पर विश्वास नहीं होता. घर में कड़ा अनुशासन था. दोनों छिपछिप कर मिलते थे. रूपेश आदर्श और सचाई की मूर्ति था. लड़कियों की तरफ तो कभी आंख उठा कर भी नहीं देखता था. मैं उसे किताबी कीड़ा कह कर चिढ़ाती थी तो वह कहता था देखना ये किताबें ही मुझे जीवन में कुछ बनाएंगी.

‘‘और पेंटिंग…?’’ मैं पूछती.

‘‘वह तो मेरी जान है… घर आओ किसी दिन. मेरा कमरा पेंटिंग्स से भरा पड़ा है. रमला जीवन में सबकुछ छोड़ दूंगा पर चित्रकारी कभी नहीं.’’

तब रमला को उस की हर बात में सचाई लगती थी.

‘‘अरे सर,’’ मौल तो पीछे रह गया. हम काफी आगे आ गए हैं.

रमला की तंद्रा टूटी थी. सोच को अचानक ब्रेक लगा.

‘‘ओह, मिहिर हम यहीं उतरते हैं. तुम गाड़ी को पार्क कर के आओ तब तक हम मौल तक पहुंचते हैं,’’ रूपेश ने गाड़ी रोकी और चाबी मिहिर को दे कर रमला के साथ मौल की ओर चल पड़ा.

पता नहीं औफिस में आए गैस्ट पहुंच गए होंगे या नहीं, रूपेश सोच रहा था.

तभी रूपेश का मोबाइल बजा. बात खत्म कर के रमला से बोला, ‘‘हमारे गैस्ट शौपिंग के लिए नहीं आ रहे हैं… चलो सामने बैंच पर बैठते हैं.’’

बैंच पर बैठ कर पता नहीं क्यों उस का मन बेचैन था.

‘‘रमला आज मैं तुम्हें अपने जीवन का सच बताना चाहता हूं.’’

‘‘सच? कैसा सच…? मेरे पति आने वाले हैं,’’ वह घबरा गई थी कि रूपेश पता नहीं क्या कहने जा रहा है.

‘‘अभी मिहिर का फोन आया है कि उसे कुछ काम है. तब तक हम लोग शौपिंग करते हैं… मैं जानता हूं इस दुनिया में तुम से ज्यादा मुझे कोई नहीं जानता. इसीलिए जीवन का सच तुम्हारे सामने रख रहा हूं. शायद फिर कभी मौका न मिले… घबराना नहीं.

‘‘दरअसल, मैं ने 8 वर्ष पहले शादी की थी. लड़की का नाम भावना था. वह बेहद खूबसूरत और आकर्षक थी. इस से पहले मैं ने इतनी खूबसूरत लड़की न देखी थी. सच तो यह था कि भावना को दीवानों जैसा प्यार करता था.

‘‘वह अकेली थी. मांबाप नहीं थे. उस ने बताया था कि मांबाप बचपन में मर गए थे. ट्यूशन कर के खुद पढ़ी और अब भाईबहनों को पढ़ा रही हूं. अभी कुछ दिन पहले यह नौकरी मिली है. रूपेश, आई लव यू फ्रौम कोर औफ माई हार्ट. यदि हम दोनों एक हो जाएं तो मेरा जीवन सुधर जाएगा. काम कर के मैं थक गई हूं. तब मैं ने झट से शादी के लिए हां कर दी. फिर हम ने शादी कर ली.

‘‘लोगों, मित्रों और जानकारों ने मुझे बहुत समझाया कि इस से शादी कर के पछताओगे पर मैं तो उस के प्यार में पागल था. सो झटपट शादी कर ली. बहुत खुश था. जल्द ही असलियत खुल गई. वह सारीसारी रात यारदोस्तों के साथ घूमती. मैं ने उसे बहुत बार प्यार से समझाया पर उस ने यही कहा कि यह मेरी पर्सनल लाइफ है. मुझे आदमियों के साथ शराब पीना और डांस करना अच्छा लगता है. शराब पी कर आधी रात घर आती. मैं चिढ़ता तो मुझ से मारपीट करती.

‘‘उस की उपेक्षा और दुर्व्यवहार से मैं टूटने लगा था. शादी को 6 महीने बीते थे. एक दिन बोली कि रूपेश मुझे तलाक चाहिए. क्यों? मेरे पूछने पर बोली कि मेरे देर से आने पर तुम्हें एतराज है. मैं आजाद पंछी हूं. यहां मेरा दम घुटता है. मुझे छोड़ दो.
‘‘मैं फिर भी उस के प्यार में डूबा रहा. उसे छोड़ना नहीं चाहता था. मेरे मित्रों ने कहा कि इस ने कइयों के साथ ऐसा ही किया है. तुम्हारे साथ इस की तीसरी शादी
है. इस ने सभी को ऐसे ही अपने जाल में फंसाया. सभी से शादी
तोड़ कर पैसा ऐंठा है. हमारा तलाक हो गया. पैसा तो देना
पड़ा. वह पैसा पा कर खुश थी
और मैं दुनिया का सब से दुखी पति था.
‘‘मैं ने अपनेआप को शराब में डुबो दिया. सारा दिन घर में
बरामदे में कुरसी पर बैठा सिगरेटें फूंकता और आसमान ताकता रहता. लगता सारा आसमान खाली है ठीक मेरे मन की तरह. मेरे जीवन में बहुत कुछ बदल गया था जिस के लिए मैं तैयार न था पर न जाने क्यों इस बदलाव को रोकने का कोई तरीका समझ नहीं आता था. जीवन नर्क बन गया था.
‘‘सब यों ही चलता रहा. औरतों से मुझे नफरत हो गई थी. हर लड़की को देख भावना का चेहरा याद आता. ‘मुझे उस से बदला लेना है,’ यही दिमाग में रहता. आज भी यही हाल है. हर शाम एक औरत मेरे साथ होती है. मैं क्लब में जाता हूं, उस के साथ शराब पीता हूं और घर आ कर सो जाता हूं. औरत को बढि़या सा गिफ्ट जरूर देता हूं. हां, स्त्री को ‘टच’ नहीं करता हूं. न जाने क्यों छूने का मन नहीं करता.
‘‘मेरे जीवन में अब स्त्री के लिए कोई जगह नहीं है. आज तुम्हें देख कर न जाने क्यों मन खुश हो गया. मिहिर कितना खुशहाल है जिसे तुम्हारे जैसा जीवनसाथी मिला है.
‘‘एक मैं हूं… एकदम अकेला. खाली घर की सिमटी दीवारों के बीच कैद हो कर रोता हूं… रमला मैं जीवन से हार गया हूं.’’
रमला ने देखा वह फूटफूट कर रो रहा था. उस का मन उद्विग्न था. उस का मन किया रूपेश को कंधे से लगा ले. किंतु वह ऐसा नहीं कर सकी. पति कभी भी आ सकता है. इस हालत में देख कर कहीं गलत न समझे. फिर भी उस ने धीरे से कंधा थपथपाया, ‘‘तुम्हारे साथ जो हुआ वह गलत हुआ.’’
‘‘मैं क्या कर रहा हूं, क्यों कर रहा हूं नहीं जानता.’’
‘‘हां, उस समय तुम्हें किसी अपने सगे का सहारा चाहिए था,’’ रमला बहुत सोच कर बोली.
‘‘कौन था जो, मुझे सहारा देता? कोई भी तो नहीं था. एक बूढ़ी मां ही तो हैं जो अब लखनऊ में रहती हैं. आज तुम्हें ये सब सुना कर दिल तो हलका हुआ. गाड़ी में बैठा रास्ते भर मैं यही सोचता रहा कि अतीत को तुम्हारे साथ शेयर करूं या न करूं. पता नहीं मिहिर ने तुम्हारे सामने मेरी कैसी पिक्चर पेश की होगी. परंतु जो कुछ मैं ने तुम्हारे सामने कहा वही सच है. अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम किसे और कितना सच मानती हो. वैसे अब मैं जीना नहीं चाहता और वह फिर रो पड़ा.
‘‘अरे, तुम लोग यहीं बैठे हो शौपिंग कर ली क्या? औफिस वालों का क्या हुआ?’’ अचानक मिहिर आ गया.
‘‘नहीं शौपिंग नहीं की. औफिस वालों का वेट कर रहे थे. उन का फोन आया कि वे लोग नहीं आ रहे हैं… रूपेश ने बताया, ‘‘हम तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.’’
मिहिर को रूपेश के चेहरे
से लग रहा था वह टैंशन में है पर चुप रहा.
रमला के लिए यह जानना जरूरी हो गया था कि रूपेश के अतीत को पूरी तरह जाने. जो कुछ आज उस ने बताया है, वह तो बड़ी ही दुखद स्थिति है… जीवन लड़खड़ा गया है. कितनी बेसुरी जिंदगी जी रहा है वह. धोखा वह भी उस से मिला जिसे वह जान से ज्यादा चाहता था.

विकल्प- भाग 3 : क्या दूसरी शादी वैष्णवी के लिए विकल्प थी?

प्रकृति ने फूलों के साथ कांटे उगा कर हम स्त्रियों को पूरी तरह से आगाह करने का प्रयास किया है. अब हम ही नासमझ बने रहें तो फिर दोष किसी और को क्यों? हमें अपने कांटों का इस्तेमाल अपने बचाव में अवश्य ही करना चाहिए. वैष्णवी का अवचेतन मष्तिष्क इन दिनों बहुत गहराई से सोचनेविचारने लगा था. उस ने भी अपने कांटों का इस्तेमाल करने का फैसला कर लिया अपने प्रोफैसर के खिलाफ.

‘सर, मेरी थीसिस कंपलीट हो गई, मेरा वायवा करवा दीजिए ताकि मुझे डिग्री मिल जाए,’ एक दिन वैष्णवी ने अपने गाइड से आग्रह किया.

‘डिग्री के लिए केवल थीसिस और वायवा ही काफी नहीं होता, कुछ दूसरी फौर्मेलिटीज भी होती हैं,’ प्रोफैसर कुटिलता से मुसकराया.

वैष्णवी उस का मतलब बखूबी समझ रही थी. ‘हो जाएगा सर. मैं तो नई स्कौलर हूं, आप तो बरसों से पीएचडी करवा रहे हैं. आप इस लाइन के नियम मुझ से बेहतर जानते हैं. आप जैसा कहेंगे, वैसा हो जाएगा.’ वैष्णवी ने उन्हें आश्वासन दिया तो प्रोफैसर की बांछें खिल गईं. वैष्णवी को लगा मानो उन के मुंह से लार टपकने ही वाली थी जिसे उन्होंने बहुत सतर्कता से रूमाल में लपेट लिया था.

वैष्णवी के फाइनल वायवा का दिन और समय निश्चित हो गया. कुल 3 लोग पैनल में शामिल हो रहे थे. 2 बाहर से तथा 1 स्वयं उस के गाइड प्रोफैसर थे. अलिखित नियमों के अनुसार, सभी के रहनेखाने और आनेजाने की व्यवस्था वैष्णवी को ही करनी थी. जाते समय 2 लिफाफे भी परीक्षकों को थमाने थे. वैष्णवी के गाइड ने अपना मेहनताना बाद के लिए रिजर्व रख लिया.

सबकुछ बहुत अच्छे से निबट गया. वैष्णवी का वायवा भी बहुत अच्छा हुआ था. दोनों परीक्षक उस की मेहमाननवाजी से भी संतुष्ट थे. वैष्णवी ने यह पड़ाव कुशलता से पार कर लिया था. अब उसे केवल अपने गाइड से निबटना शेष था.

कहा जाता है कि खाना खाने के बाद हाथ धोना ही शेष बचता है. वैष्णवी ने भी अपने गाइड के सामने फिंगर बाउल रख दिया. वायवा होने और थीसिस जमा होने की औपचारिकता पूरी होने के बाद अब गाइड के हाथ में कुछ भी शेष नहीं था. प्रोफैसर को वैष्णवी से ऐसा कुछ भी हासिल नहीं हो सका जिस की वह उस कमसिन देह से उम्मीद कर रहा था. एकदो बार प्रोफैसर ने उसे बहाने से अकेले में बुलाया भी लेकिन हर बार वैष्णवी अपनी किसी न किसी सहेली के साथ ही उस से मिली. वैष्णवी अपनी इस सफलता पर बहुत खुश थी. शायद वह पुरुषों की इस दुनिया में अपने तरीके से जीना सीखने लगी थी.

पीएचडी करने के बाद वैष्णवी को एक विश्वविद्यालय में नौकरी मिल गई. ब्यूटी विद ब्रेन… और दोनों ही मामलों में इक्कीस… ऐसा संगम कम ही देखने को मिलता है. वैष्णवी के लिए रिश्तों का सैलाब उमड़ने लगा. इतने रिश्ते तो तब भी नहीं आए थे जब वह कुंआरी थी.

थर्ड ग्रेड से ले कर राजपत्रित अधिकारी तक वैष्णवी से विवाह करने के लिए कतार में लगे थे. वैष्णवी को हैरानी तो तब हुई जब एक रिश्तेदार ने चतुर्थ श्रेणी तकनीकी सहायक का रिश्ता उस के लिए सुझाया. प्रस्ताव सुनते ही वैष्णवी उखड़ गई.

‘आप ऐसा सोच भी कैसे सकते हो… एक प्रोफैसर के लिए यह रिश्ता? कुछ तो मेरे स्तर का खयाल किया होता,’ वैष्णवी ने गुस्से से कहा.

‘दूसरी शादी है तुम्हारी. ऐसे ब्याहों में विकल्प नहीं होते. तीस पार को वर मिल रहा है, यही क्या कम है,’ रिश्तेदार ने मुंह मरोड़ते हुए कहा तो वैष्णवी तिलमिला गई. क्षोभ और क्रोध से आंखें भर आईं. मन में विद्रोह का संचार हुआ.

‘जब लोग मुझे विकल्प के रूप में देख रहे हैं तो मैं भी ऐसा ही क्यों न करूं? मेरे सामने तो ढेरों विकल्प हैं. क्यों मैं अपने विधवापन को बेचारगी से देखूं? नियति ने जो किया सो किया लेकिन उस की भरपाई भी तो करने की कोशिश की है. व्योम के रहते शायद मुझे यह सब न मिलता जो उस के नहीं होने से मिला है. जो चला गया उस के लिए मैं क्यों शोक मनाऊं? क्यों न जो मिला है उस का स्वागत करूं?’ ऐसे विचार मन में आते ही कवि हरिवंश राय बच्चन जी की कविता ‘जो बीत गई सो बात गई…’ वैष्णवी के जेहन में कौंध गई. वह एक नए उत्साह से भर उठी. उस ने मां से उन सभी लड़कों के प्रोफाइल मांग लिए जो उस से विवाह करने के लिए लालायित थे.

अब वह किसी के लिए विकल्प नहीं थी बल्कि स्वयं अपने लिए बेहतर विकल्प की तलाश करने के लिए कृतसंकल्प थी.

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