5 Tips: ऐसे रखें लकड़ी के फर्श को नए जैसा

आजकल घर में मार्बल या फ्लोरिंग की जगह लकड़ी के फर्श बनाने का चलन है. इसे काफी ट्रेंडी और स्‍टाइलिश भी माना जा रहा है. लेकिन इस फर्श पर होने वाले निशान और खरोंचों से लोग काफी परेशान होते नजर आ रहे हैं. अपनी फर्श की सुरक्षा और उसकी चिकनाहट बरकरार रखने के लिए पहियों वाली कुर्सियों, टेबलों और अन्य फर्नीचर से बचना चाहिए और रबर वाली पहियों की कुर्सियों का उपयोग करना चाहिए.

1. कुर्सियां

अगर घर में लकड़ी वाला फर्श डला हुआ है तो पहियों वाली कुर्सियों से बचना चाहिए, क्‍योंकि पहिये फर्श पर खरोंच करते हैं, जिससे वह बेहद गंदा और पुराना नजर आने लगता है. लकड़ी के फर्श के लिए रबर लगी पहियों वाली कुर्सियां का इस्तेमाल कर आप अपने फर्श की सुंदरता को बरकरार रख सकते हैं.

2. फुटवेयर

फर्श पर जूतों को पहनकर चलने से बचना चाहिए, क्योंकि छोटे-छोटे पत्थर और वस्तुएं जूते की तली में फंस जाते हैं और फर्श पर चलने के दौरान उनकी रगड़ से इनपर खरोंच पड़ सकती है. इसके अलावा घर में घुमते वक्‍त स्‍लीपर या जुते न पहने. इनमें लगी मिट्टी भी आपके फर्श पर निशान डाल सकती है.

3. फर्नीचर टैब्स

फर्नीचर के लिए बाजार में कई प्रकार के टैब्स (एक प्रकार का पैड) मौजूद होते हैं, जिन्हें कुर्सियों और टेबल के पहियों के तले में लगाया जाता है. इससे आप फर्श पर बगैर किसी डर के कुर्सियों और टेबलों को घुमा सकते हैं.

4. तेल और फिनिशिंग

तेल और फिनिशिंग कर फर्श के खरोंचों से छुटकारा पाया जा सकता है. बाजार में इसके लिए तेल सहित विभिन्न प्रकार की किट मौजूद हैं, जिससे धब्बों को काफी हद तक कम किया जा सकता है. इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि इस तरह के तेल और फिनिशर अच्छे ब्रांडों के ही होने चाहिए.

5. मुलायम तौलिया का उपयोग

फर्श पर पानी, धूल, कीचड़ होने या नमक आदि गिर जाने पर इसे मुलायम तौलिया से साफ करें. धूल, मिट्टी से बचाने के लिए रोजाना वैक्यूम क्लीनर या झाड़ू से साफ करें क्योंकि ऐसा नहीं करने से फर्श पर निशान पड़ सकते हैं और फर्श अपनी चमक भी खो सकता है. फर्श को साफ करने के लिए फ्लोर क्लीनर और चमक बनाए रखने के लिए अच्छी कंपनी का वैक्स पॉलिश का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

पति की एक आदत से मैं परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 27 वर्षीय विवाहिता और 2 बच्चों की मां हूं. मेरे पति हमेशा सहवास से पूर्व कुछ समय तक मुखमैथुन करते हैं. शुरूशुरू में मैं ने इस का विरोध नहीं किया, क्योंकि मुझे लगता था कि शायद यह सहवासपूर्व की एक जरूरी क्रिया होगी और सभी पति ऐसा करते होंगे. पर पिछले दिनों मैं अपनी एक अंतरंग सहेली से मिली और बातचीत के दौरान मैं ने उसे अपनी समस्या बताई. उस ने बताया कि ऐसा न तो उस ने कभी किया और न ही उस के पति ने कभी इस प्रकार की ओछी इच्छा जाहिर की. उस ने यह भी बताया कि इस से कोई बीमारी भी हो सकती है. मैं क्या करूं, मेरे पति तो मना करने पर नाराज हो जाते हैं.

जवाब-

सहवास के लिए कोई तयशुदा कायदेकानून नहीं हैं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं. कई दंपती सहवासपूर्व रति क्रीड़ा जैसे आलिंगन, चुंबन आदि करना पसंद करते हैं तो कई सीधेसीधे सहवास में प्रवृत्त हो जाते हैं. मुखमैथुन भी रतिपूर्व की क्रीड़ा है जिसे कुछ युवा करना पसंद करते हैं. यदि आप के पति भी ऐसा करते हैं तो आप को उन्हें सहयोग देना चाहिए. यौनांगों की स्वच्छता पर यदि पूरा ध्यान दिया जाए तो मुखमैथुन में कोई बुराई नहीं है. अत: सुनीसुनाई बातों पर न जाएं और न ही अपनी सैक्स लाइफ की निजी बातों को किसी के साथ शेयर करें. यह सिर्फ और सिर्फ पतिपत्नी का मामला है, जिसे गोपनीय ही रखना चाहिए.

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दिलीप ने जब रुही से यह कहा कि वह बिस्तर पर अब पहले जैसा साथ नहीं देती, तो वह यह सुन कर परेशान हो उठी. फिर रुही ने सैक्स ऐक्सपर्ट डा. चंद्रकिशोर कुंदरा से संपर्क किया.

डा. कुंदरा के मुताबिक, सैक्स सफल दांपत्य जीवन का महत्त्वपूर्ण आधार है. इस की कमी पतिपत्नी के रिश्ते को प्रभावित करती है. पतिपत्नी की एकदूसरे के प्रति चाहत, लगाव, आकर्षण खत्म होने के कई कारण होते हैं जैसे शारीरिक, मानसिक, लाइफस्टाइल. ये सैक्स ड्राइव को कमजोर बनाते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- सैक्स लाइफ में इनकी नो ऐंट्री

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं तंदूरी मसाला गोभी

शाम के नाश्ते में अगर आप नई और हेल्दी रेसिपी की तलाश कर रही हैं तो तंदूरी मसाला गोभी की ये रेसिपी ट्राय करना ना भूलें.

सामग्री

400 ग्राम गोभी 

1-2 छोटी चम्मच रिफाइंड तेल 

1/2 छोटा चम्मच जीरा 

2 बड़े चम्मच अदरक (लच्छे बनाए) 

2 बीच में से लंबी कटी हरीमिर्च 

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च 

11/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर (दरदरा पिसा)

2 चम्मच कसूरी मेथी 

3 मध्यम आकार के टमाटर 

3/4 छोटा चम्मच अमूचर पाउडर

1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला 

थोड़ा सा जायफल पाउडर 

नमक स्वादानुसार.

विधि

सब से पहले गोभी को धो कर 11/2 इंच के टुकड़ों को कोट लें. कटी हुई गोभी पर चिकनाई लगाए स्प्रे बोतल से स्प्रे भी कर सकते हैं. माइक्रो तवे में रखे. माइक्रो में कनवेक्शन मोढ पर 250 पर हीट करें, गरम होने पर 10-15 मिनट तक सुनहरा होने तक भूनें. अदरक के लच्छों को थोड़ी चिकनाई लगा कर माइक्रो मोड पर डेढ़ मिनट के लिए रखें. भुन जाने पर निकाल दें. नानस्टिक कड़ाही में 1 छोटा चम्मच तेल डालें, जीरा डालें, भुन जाने पर धनिया पाउडर, हरीमिर्च, 1 लालमिर्च, हींग डालें. टमाटरों को पीस कर उस को कड़ाही में डालें. नमक, हलदी डाल मिलाएं और उस में भुने हुए गोभी के फूल भी डाल दें और 15-20 मिनट के लिए ढक्कन ढक कर रख दें. बीचबीच में सब्जी को चलाते रहें. सब्जी बन जाने पर इस में कसूरी मेथी, अमचूर पाउडर, गरम मसाला डालें. 1-2 मिनट सब्जी को भूनें और ढक दें. सब्जी भुन कर सुनहरी हो जाएगी. इस में जायफल छिड़कें. अदरक और धनिए की पत्ती से सजाएं और गरमगरम परोसें.

अंधविश्वास पर लोग क्यों करते हैं विश्वास

अंधविश्वास की हद किसे कहते हैं, इस का उदाहरण है यह विज्ञापन जिस के छलावे में अच्छेखासे पढ़ेलिखे लोग भी आ जाते हैं. ससुराल में किसी तकलीफ या कष्टों से मुक्ति पाने के लिए करें ये उपाय- ‘‘किसी सुहागिन बहन को ससुराल में कोई तकलीफ हो तो शुक्ल पक्ष की तृतीया को उपवास रखें. उपवास यानी एक बार बिना नमक का भोजन कर के उपवास रखें. भोजन में दाल, चावल, सब्जी रोटी न खाएं. दूधरोटी खा लें. शुक्ल पक्ष की तृतीया को, अमावस्या से पूनम तक शुक्ल पक्ष में जो तृतीया आती है उस को ऐसा उपवास रखें. अगर किसी बहन से यह व्रत पूरा साल नहीं हो सकता तो केवल माघ महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया, वैशाख शुक्ल तृतीया और भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया को करें. लाभ जरूर मिलेगा.

‘‘अगर किसी सुहागिन बहन को कोई तकलीफ है तो यह व्रत जरूर करें. उस दिन गाय को चंदन से तिलक करें. कुमकुम का तिलक ख़ुद को भी करें.  उस दिन गाय को भी रोटी गुड़ खिलाएं.’’

सोचने वाली बात है कि एक महिला को ससुराल में सम्मान और प्यार उस के अपने कर्मों से मिलेगा या फिर टोनेटोटकों से. अगर वह पूरे परिवार का खयाल रखती है, पति की भावनाओं को मान देती है, सास से ले कर दूसरे परिजनों से अच्छा रिश्ता कायम करती है और उन की सुविधाओं को अहमियत देती है तो जाहिर है ससुराल वाले भी उसे पूरा प्यार और स्नेह देंगे. ये रिश्ते तो परस्पर होते हैं. आप जितना प्यार दूसरों पर लुटाओगे दूसरे भी आप का उतना ही खयाल रखेंगे.

अब अगले विज्ञापन में तथाकथित महान धर्मगुरुओं और ज्योतिषियों से जानते हैं कि एक लड़की को ससुराल में तकलीफें होती क्यों हैं?

ज्योतिष के अनुसार कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति पक्ष में न होने पर लड़की को ससुराल में बारबार अपमानित होना पड़ता है. यहां जानिए उन ग्रहों के बारे में जो परेशानी की वजह बनते हैं, साथ ही उन के प्रभाव से बचने के तरीकों के बारे में भी जानिए:

मंगल: मंगल को क्रोधी ग्रह माना जाता है. क्लेश,   झगड़ा और गुस्से का कारक मंगल को ही माना जाता है. मंगल की अशुभ स्थिति जीवन में अमंगल की वजह बनती है. यदि किसी लड़की की कुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति बनी हो तो उसे जीवन में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

उपाय: मंगलवार की अशुभ स्थिति को शुभ बनाने के लिए आप मंगलवार के दिन हनुमान बाबा की पूजा करें. हनुमान चालीसा का पाठ करें. अगर संभव हो तो हर मंगल को सुंदरकांड का पाठ करें. लाल मसूर की दाल, गुड़ आदि का दान करें.

शनि: शनि अगर शुभ स्थिति में हो तो जीवन बना देता है. लेकिन शनि की अशुभ स्थिति जीवन को तहसनहस कर डालती है. अगर किसी लड़की की कुंडली में शनि की स्थिति ठीक न हो तो ससुराल में उस के साथ बरताव अच्छा नहीं होता. उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

उपाय: हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं. शनिवार के दिन सरसों का तेल, काले तिल, काली दाल, काले वस्त्र आदि का दान करें. शनि चालीसा का पाठ करें.

राहु और केतु: राहु और केतु दोनों ग्रहों को पाप ग्रहों की श्रेणी में रखा जाता है. जब ये अशुभ होते हैं तो मानसिक तनाव की वजह बनते हैं. साथ ही कई बार व्यक्ति को बेवजह कलंकित होना पड़ता है. राहु को ससुराल का कारक भी माना गया है. ऐसे में किसी लड़की की कुंडली में राहु और केतु की अशुभ स्थिति शादी के बाद उस के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करती है.

उपाय: राहु को शांत रखने के लिए माथे पर चंदन का तिलक लगाएं. महादेव का पूजन करें और घर में चांदी का ठोस हाथी रखें. वहीं केतु को शांत रखने के लिए भगवान गणेश की पूजा करें. चितकबरे कुत्ते या गाय को रोटी खिलाएं.

जरा सोचिए, अगर ग्रहनक्षत्र ही आप का जीवन चला रहे हैं तो फिर ग्रहों को शांत करने के सिवा जिंदगी में कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं. आप हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहो और ग्रहनक्षत्रों की स्थिति सही करने के उपाय करते रहो. क्या इस तरह जिंदगी चल सकती है? क्या अपने कर्तव्यों को निभाने की आवश्यकता खत्म हो जाती है?

बाबाओं के पास ससुराल की समस्याएं ही नहीं बल्कि जीवन से जुड़ी हर तरह की परेशानियों के हल करने के उपाय हैं. आइए, जानते हैं उन के द्वारा सु  झाए जाने वाले ऐसे ही कुछ उपायों के बारे में:

तनाव मुक्ति के लिए

तनाव से मुक्ति पाने के लिए दूध और पानी को मिला कर किसी बरतन में भर लें व सोते समय उसे अपने सिरहाने रख लें और अगले दिन सुबह उठ कर उसे कीकर की जड़ में डाल दें. ऐसा करने से आप मानसिक रूप से स्वस्थ महसूस करेंगे व खुद को तनावमुक्त पाएंगे.

शनि दोषों को दूर करने के लिए

शनिवार को एक कांसे की कटोरी में सरसों का तेल और सिक्का डाल कर उस में अपनी परछाईं देखें और तेल मांगने वाले को दे दें या किसी शनि मंदिर में शनिवार के दिन कटोरी सहित तेल रख कर आ जाएं. यह उपाय आप कम से कम 5 शनिवार करेंगे तो आप की शनि की पीड़ा शांत हो जाएगी और शनि की कृपा शुरू हो जाएगी.

अचानक आए कष्ट दूर करने के लिए

एक पानी वाला नारियल ले कर उस व्यक्ति के ऊपर से 21 बार वारें जिस के ऊपर संकट हो. इस के बाद उसे किसी देवस्थान पर जा कर अग्नि में जला दें. ऐसा करने से उस सदस्य पर से संकट दूर हो जाता है. यह उपाय किसी मंगलवार या शनिवार को करना चाहिए. लगातार 5 शनिवार ऐसा करने से जीवन में अचानक आए कष्ट से मुक्ति मिलती है.

आज देश को आजाद हुए 75 साल बीत चुके हैं. विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है. हमारा लाइफस्टाइल बदल चुका है. मगर इन सब के बावजूद विडंबना यह है कि समाज में अंधविश्वास भी चरम पर है. देश के बहुत से हिस्सों में आज भी   झाड़फूंक, तंत्रमंत्र, भूतप्रेत, ओ  झातांत्रिक, ज्योतिष आदि पर लोग विश्वास करते हैं और इन सब का फायदा उठा कर ओ  झा, तांत्रिक, ज्योतिषी आदि की ठगी का धंधा फूलफल रहा है. आज भी बाबामाताजी,   झाड़फूंक व तंत्रमंत्र की मदद से किसी भी बीमारी या मानवीय समस्या का समाधान करने का दावा किया जाता है.

21वीं सदी के वर्तमान दौर में भी   झारखंड समेत देश के कई राज्यों में मौजूद डायन बिसाही प्रथा एवं डायन हत्या की घटनाएं चिंता पैदा करने वाली हैं. इस की जड़ें एक ओर ओ  झा, गुनी, तांत्रिक, ज्योतिष आदि तक जाती है वहीं समाज में मौजूद पुरुष वर्चस्व वाली मानसिकता भी इस से जुड़ी है. उस पर हाल यह है कि समाज में अंधविश्वास, कुरीति, लूट एवं पाखंड फैलाने और उसे बढ़ावा देने वाले लोग अकसर कानून के शिकंजे में फंसने से बच जाते हैं या पकड़ में आने के बाद भी आसानी से छूट जाते हैं.

कैसा है अंधविश्वास का संसार

जीवन को नकारात्मक दिशा में मोड़ता है: अकसर धर्मगुरु अपनी तथाकथित विद्या के माध्यम से लोगों को भयभीत करते हैं. लोगों का जीवन अकर्मण्यता और बिखराव का शिकार हो कर अपने मार्ग से भटक जाता है. इस भटकाव के कई पहलू हैं जिन में से एक पहलू यह है कि वह खुद से ज्यादा ज्योतिषी, तांत्रिक और बाबाओं पर विश्वास करता है. ग्रहनक्षत्रों से डर कर उन की भी पूजा या प्रार्थना करने लगता है. वह अपना हर कार्य लग्न, मुहूर्त या तिथि देख कर करता है और उस कार्य के होने या नहीं होने के प्रति संदेह से भरा रहता है.

जीवनभर टोनेटोटकों में उल  झा रहता है. ऐसे में उस का वर्तमान, वास्तविक जीवन और अवसर हाथों से छूट जाता है. व्यक्ति जिंदगी भर अनिर्णय की स्थिति में रहता है क्योंकि निर्णय लेने की शक्ति उस में होती है जो अपनी सोच से ज्ञान और जानकारी का उपयोग सही और गलत को सम  झने में कर सकता है.

मनुष्य को डरपोक बनाता है: अकसर बाबा, तांत्रिक और ज्योतिषी लोगों को सम  झाते हैं कि जीवन में कुछ भी हो रहा है वह सब ग्रहनक्षत्रों या अदृश्य शक्तियों का खेल है. उदाहरण भी दिया जाता है कि खुद राम तक ग्रहनक्षत्रों के फेर से बच नहीं पाए. राम को वनवास हुआ तो ग्रहों के कारण ही. दरअसल, ज्योतिष ग्रहनक्षत्रों के जरीए लोगों को डराने वाला ज्ञान है जिस की आज के तर्कशील समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए. इसी तरह टोनेटोटके और धार्मिक युक्तियां आप को दिग्भ्रमित करने और डरा कर रखने का एक जरीया हैं.

सदियों पहले अंधकार काल में व्यक्ति मौसम और प्रकृति से डरता था. बस इसी डर ने एक तरफ ज्योतिष को जन्म दिया तो दूसरी तरफ धर्म को. जिन लोगों ने बिजली के कड़कने या गिरने को बिजली देव माना वे धर्म को गढ़

रहे थे और जिन्होंने बिजली को बिजली ही माना वे ज्योतिष के एक भाग खगोल विज्ञान को गढ़ रहे थे.

आज इसे व्यापार का रूप दे कर धन कमाने का जरीया बना लिया गया है. धार्मिक और ज्योतिषीय विश्वास के नाम पर किए जाने वाले इस व्यापार से सब परिचित हैं. टीवी चैनलों में बहुत से ज्योतिषशास्त्री तरहतरह की बातें कर के समाज में भय और भ्रम उत्पन्न करते हैं. स्थानीय जनता अपने क्षेत्र में मौजूद बाबा या ओ  झा तांत्रिक आदि के प्रभाव में रहती है. दीवारों तक पर इन बाबाओं के इश्तहार लिखे होते हैं. मध्यवर्गीय परिवारों को पंडित और मौलवी अपने नियमों और संस्कारों में बांधे रखते हैं.

बड़ेबुजुर्ग अंधविश्वास मानने के लिए दबाव बनाते हैं. हर समाज अपनी अच्छाइयों के साथ बुराइयां, संस्कारों के साथ कुरीतियां और तर्क के साथ अंधविश्वास अपनी अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करता है.

अंधविश्वास की कोई तर्कसंगत व्याख्या नहीं हो सकती और ये परिवार और समाज में बिना किसी ठोस आधार के भी सर्वमान्य बने रहते हैं. आज के तकनीकी युग में भी ये लोगों के दिमाग में जगह बनाए हुए हैं. शिक्षित और अशिक्षित दोनों तरह के परिवारों में अंधविश्वास के प्रति मान्यताएं पाई जाती हैं.

ढोंगी बाबाओं की दुकानें

इन मान्यताओं को बिना सवाल किए पालन करने की उम्मीद बच्चों से की जाती है और अगर वे सवाल करते हैं तो दबाव बना कर समाज और परिवार उन्हें इन मान्यताओं और विश्वासों को मानने की जबरदस्ती करते हैं. इन अंधविश्वासों और भय के साए में ढोंगी बाबाओं की दुकानें चलती हैं.

आज भी हमारे समाज में अंधविश्वास को अनेक लोग मानते हैं. बिल्ली द्वारा रास्ता काटने पर रुक जाना, छींकने पर काम का न बनना, उल्लू या कौए का घर की छत पर बैठने को अशुभ मानना, बाईं आंख फड़कने पर अशुभ सम  झना, नदी में सिक्का फेंकना ऐसी अनेक धारणाएं आज भी हमारे बीच मौजूद हैं. इस के शिकार अनपढ़ों के साथसाथ पढ़ेलिखे लोग भी हो जाते हैं.

32 साल की शिप्रा बताती है कि उस की एक सहेली निभा दिल्ली में रहती थी. उस ने कई वर्षों तक आईएएस की तैयारी की. जब कई दफा कोशिश करने के बावजूद सफलता नहीं मिली तो उस की मां ने किसी वास्तु के जानकार से सलाह ली. उस जानकार ने बताया कि आप की बेटी के स्टडीरूम की खिड़की सही दिशा में नहीं खुलती है इसलिए या तो खिड़की की जगह बदलो या उसे खोलना ही छोड़ दो.

निभा ने दूसरा उपाय अपनाया और खिड़की खोलनी छोड़ दी. फिर भी सफलता नहीं मिली तो किसी बाबा ने सलाह दी कि घर के सामने नीबू का पेड़ नहीं होना चाहिए. यह कांटेदार वृक्ष है सो इसे निकलवा देना चाहिए. निभा की मां ने वह पेड़ कटवा दिया. इस के बावजूद उसे सफलता नहीं मिली तो उस की मां उसे बाबा के पास ले गई. बाबा ने उस से कई तरह के व्रत और अनुष्ठान कराए, जिस का नतीजा यह हुआ कि जल्द ही वह बीमार पड़ गई.

इस तरह के हजारों उदाहरण हम रोजमर्रा की जिंदगी में देखते हैं. आश्चर्य यह है कि इस प्रकार के अंधविश्वासों को न केवल अनपढ़ व ग्रामीण लोग मानते हैं बल्कि पढ़ेलिखे शिक्षित युवा व शहरी लोग भी इन की चपेट में आ जाते हैं.

सुकून और पैसे की बरबादी

कुछ साल पहले दिल्ली में एक ही परिवार के 11 लोगों ने इसी अंधविश्वास के चलते बाबाओं के बहकावे में मोक्ष के लिए सामूहिक आत्महत्या कर ली थी. यह अकेला मामला नहीं था. ऐसे बहुत से उदाहरण आए दिन दिखते रहते हैं जब लोगों ने अंधविश्वास के बहकावे में आ कर अपने परिवार बरबाद कर लिए या प्रियजनों को खो दिया. अंधविश्वासों के चक्कर में पड़ कर बच्चों की बलि तक दे दी जाती है. आज भी लोग कष्ट पड़ने पर विज्ञान से ज्यादा अंधविश्वासों और बाबाओं पर विश्वास करते हैं और उन के जाल में फंस कर अपना बचाखुचा सुकून और पैसा भी गंवा देते हैं.

देश में कितने सारे ठग बाबा आएदिन पकड़े जाते हैं, कितनों के सच उजागर होते हैं इस के बावजूद बाबाओं और उन के भक्तों की संख्या में कमी न आना इस बात का प्रतीक है कि लोगों की मानसिकता के स्तर में बहुत फर्क नहीं पड़ता है. दरअसल, इन ढोंगियों को मीडिया का सहयोग हासिल है. अखबारों और चैनलों में तांत्रिकों, बाबाओं के विज्ञापन आते हैं. क्लेश दूर करने के ताबीज व लौकेट से ले कर घरेलू कलह दूर करने, ससुराल में सम्मान प्राप्ति बेटा पैदा करने, मनचाहा प्यार पाने और नौकरी दिलाने जैसे   झूठे दावे कर ये जालसाज लोगों को अपने जाल में फांस रहे हैं. दुनिया में किसी व्यक्ति के पास कोई भी समस्या हो उन के पास हर परेशानी का इलाज तैयार रखा होता है.

लोगों का विश्वास जीतने के लिए ये लोगों से पहली बार में ज्यादा रुपयों की मांग नहीं करते. पहले उन्हें तकलीफों से मुक्ति पाने का ख्वाब दिखाते हैं और जब इंसान अंधविश्वास में धीरेधीरे फंसने लगता है तब बहानेबहाने से बड़ी रकम ऐंठना शुरू की जाती है. तभी तो अंधविश्वास का यह कारोबार बिना कोई लागत लगाए दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है. धोखे और   झूठ की नींव पर रखी गई अंधविश्वास की दुकानों में आम जनता के मन में छिपे भय और खौफ का फायदा उठा कर खूब मुनाफा कमाया जा रहा है.

क्या कहता है कानून

चमत्कार से इलाज करना कानूनन अपराध है. भारतीय कानून में ताबीज, ग्रहनक्षत्र, तंत्रमंत्र,   झाड़फूंक, चमत्कार, दैवी औषधी आदि द्वारा किसी भी समस्या या बीमारी से छुटकारा दिलवाने का   झूठा दावा करना जुर्म है. तंत्रमंत्र, चमत्कार के नाम पर आम जनता को लूटने वाले ज्योतिषी, ओ  झा, तांत्रिक जैसे पाखंडियों को कानून की मदद से जेल की हवा तक खिलाई जा सकती है. विडंबना यह है कि आज भी अनेक लोगों को कानून के बारे में सही जानकारी नहीं है. कुछ जरूरी कानूनों की जानकारी पेश है:

औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940: औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 औषधियों तथा प्रसाधनों के निर्माण और बिक्री को नियंत्रित करता है. इस के अनुसार कोई भी व्यक्ति या फर्म राज्य सरकार द्वारा जारी उपयुक्त लाइसैंस के बिना औषधियों का स्टौक, बिक्री या वितरण नहीं कर सकता. ग्राहक को बेची गई प्रत्येक दवा का कैश मेमो देना अनिवार्य कानून है. बिना लाइसैंस के औषधि के निर्माण और बिक्री को जुर्म माना जाएगा.

औषधी एवं चमत्कारी (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954: औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के तहत तंत्रमंत्र, गंडे, ताबीज आदि तरीकों के उपयोग, चमत्कारिक रूप से

रोगों के उपचार या निदान आदि का दावा करने वाले विज्ञापन निषेधित हैं. इस के अनुसार ऐसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भ्रमित करने वाले विज्ञापन दंडनीय अपराध हैं जिन के प्रकाशन के लिए विज्ञापन प्रकाशित व प्रसारित करने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त समाचारपत्र या पत्रिका आदि का प्रकाशक व मुद्रक भी दोषी माना जाता है.

इस अधिनियम के अनुसार पहली बार ऐसा अपराध किए जाने पर 6 माह के कारावास अथवा जुरमाने या दोनों प्रकार से दंडित किए जाने का प्रावधान है जबकि इस की पुनरावृत्ति करने पर 1 वर्ष के कारावास अथवा जुरमाना या फिर दोनों से दंडित किए जाने का प्रावधान है.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिए कोई भी सामान अथवा सेवाएं खरीदता है वह उपभोक्ता यानी क्रेता है. जब आप किसी ज्योतिषी, तांत्रिक या बाबा से कोई गंडा, ताबीज, ग्रहनक्षत्र खरीदते हैं तो इस से यदि आप को कोई लाभ नहीं मिलता है तो आप एक उपभोक्ता के रूप में विक्रेता ज्योतिषी, तांत्रिक या बाबा के खिलाफ उपभोक्ता अदालत में मामला दायर कर सकता है. इस के अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुए जीवन तथा सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो भी आप शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.

भारतीय दंड संहिता की धारा 420: भारतीय दंड संहिता की धारा 420 में किसी भी व्यक्ति को कपट पूर्वक या बेईमानी से आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, संपत्ति या ख्याति संबंधी क्षति पहुंचाना शामिल है. यह एक

दंडनीय अपराध है. इस के तहत 7 साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है. धर्म, आस्था, ईश्वर के नाम पर अकसर कुछ पाखंडी अंधविश्वास के दलदल में डूबे लोगों को कपट से लूटते हैं.

सैक्स लाइफ का रीचार्ज है जरूरी

मायके आई अपनी ननद अभिलाषा का लटका चेहरा देख उस की भाभी ने पूछ ही लिया, ‘‘कुछ प्रौब्लम है क्या पवन के साथ?’’ अभिलाषा कुछ नहीं बोली. मगर अनुभवी भाभी ने जरा सा कुरेदा, उस की पलकें भीग गईं. अभिलाषा खुद को रोक नहीं पाई. फिर उस ने वही बताया जिस का भाभी को शक था. अभिलाषा बोली, ‘‘अभी तो शादी को 2 ही साल हुए हैं… पवन को मेरे में जैसे कोई दिलचस्पी ही नहीं…बस कभी इच्छा हुई, तो मशीनी तरीके से सब निबटा कर सो जाता है… न रोमांस, न हंसीठिठोली.’’

पत्नियों की यह आम शिकायत है कि शादी के 2-3 साल तक तो पति उन पर डोरे डालते रहते हैं, लेकिन बाद में उन में दिलचस्पी लेना बंद कर देते हैं. ऐसे में पत्नियां खुद को उपेक्षित सा महसूस करने लगती हैं.

अलगअलग शिकायतें

सैकड़ों दंपतियों पर किए गए अध्ययन में पत्नियों की इस शिकायत की पुष्टि भी हुई है. अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि हनीमून फेज, जोकि इस अध्ययन के मुताबिक 3 साल 6 महीने का होता है, के समाप्त होते ही पति और पत्नी दोनों ही एकदूसरे को लुभाने की कोशिश छोड़ देते हैं. दोनों ही आकर्षक दिखने, एकदूसरे का खयाल रखने की अतिरिक्त कोशिशें छोड़ देते हैं. प्यार को नौर्मल बात समझते हैं. एक ओर पत्नियां शिकायत करती हैं कि पति उन्हें पहले की तरह प्यार नहीं करते और उन के साथ सैक्स में भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते, तो दूसरी ओर पति भी ऐसी ही शिकायत करते हैं.

उन का मानना है कि पत्नियां भी शादी के बाद एकाध साल तो बड़ा ध्यान रखती हैं, मृदुभाषी रहती हैं, अपनी साजसज्जा, पहनावे पर खूब ध्यान देती हैं, छेड़छाड़ और ठिठोली वाली हरकतें करती हैं, लेकिन बाद में गंभीरता का लबादा ओढ़ लेती हैं. बातबात में मुंह फुलाती हैं. हर वक्त थकान, बीमारी, व्यस्तता के बहाने बनाती हैं. सैक्स में भी सहयोग न कर आनाकानी करती हैं. पतियों की इस शिकायत को हलके में नहीं लिया जा सकता. अभिलाषा जैसी पत्नियों को समझना होगा कि हमेशा पति ही पत्नी में दिलचस्पी क्यों ले? पति ही सैक्स के लिए मनुहार या पहल क्यों करें? पति पत्नी से ऐक्टिव होने की उम्मीद क्यों न करें?

अगर आप अपने सैक्स संबंधों में पहले जैसी ऊष्मा बरकरार रखना चाहती हैं, तो गौर फरमाएं इन टिप्स पर:

खुद को करें पैंपर:

याद है पहले आप अपनी आईब्रोज, नेल्स, लिप्स, अंडरआर्म्स, पीठ, स्किन, बालों और चेहरे का कितना ध्यान रखती थीं. हर सुबह कपड़े पहनने से पहले उन के चयन में कितनी देर लगाती थीं और अब लाल ब्लाउज के साथ हरी साड़ी, लिप्स पर जमी पपड़ी, अंडरआर्म्स से पसीने की बदबू और बिकिनी एरिया से हेयर रिमूव करने की फुरसत तक नहीं.

जरा सोच कर देखिए कमर पर जमी चरबी, पेट का तोंद बन जाना क्या सारी गलती पति की ही है? नहीं न? फिर देर किस बात की है. पैडीक्योर, मैनीक्योर, स्पा, फेशियल ये सब कब काम आएंगे? जिम, ऐक्सरसाइज आदि से खुद को फिर से तराशिए, हंसिए, मुसकराइए फिर देखिए कमाल.

लौंजरी मेकओवर है जरूरी:

सैक्स लाइफ में बोरियत की सब से बड़ी वजह होती है आकर्षण में कमी. कई पत्नियां तो शादी के 2-4 साल बाद पैंटी तक पहनना छोड़ देती हैं. कुछ पहनती भी हैं, तो घिसीपिटी, बेरंग हो चुकी या मैली सी, जिसे देख कर शायद उबकाई भी आ जाए.

ऐसी पत्नियों की सोच यह होती है कि इसे कौन देखेगा. वे भूल क्यों जाती हैं कि जिसे दिखानी है उसी को तो इंप्रैस करना है. रोमांस में सराबोर हसबैंड जब आप पर लट्टू हो कर आगे बढ़ता है और अंतर्वस्त्रों की ऐसी हालत देखता है, तो यकीन मानिए उस का आधा रोमांस हवा हो जाता है. बेहतर होगा कि थोड़े से पैसे खर्च कर के कुछ सैक्सी लौंजरी ले आएं. इस मेकओवर का क्या फर्क पड़ता है, यह फिर आप को अपनेआप समझ में आ जाएगा.

रोमांस का दें चांस:

रोज वही बैडरूम, वही माहौल… इस एकरसता से सैक्स भी बोरिंग होने लगता है. पति के साथ साल में 1-2 बार घूमनेफिरने जाएं. कारोबारी व्यस्तता या बच्चों की पढ़ाई आदि की वजह से बाहर जाना संभव न हो तो शहर में ही वीकैंड पर घूमने जाएं. पार्क में घूमने जाएं, मल्टीप्लैक्स में मूवी देखने या किसी शौपिंग मौल में विंडो शौपिंग करने जाएं तो जरा सी फ्लर्टी बन जाएं. आप का पति से चुहलबाजी करना, छेड़छाड़ और रोमांटिक इशारेबाजी करना पति को उत्तेजित करने के साथसाथ आप के आमंत्रण का इशारा भी देगा. फिर देखिए पति खुद पर नियंत्रण खो कर कैसे आप की बाहों में आने को बेताब हो उठेगा.

गैजेट्स से गुदगुदाएं:

आजकल मोबाइल फोन या टैब बड़े काम के साबित हो रहे हैं.कभी इन का भी फायदा उठा कर देखें. छिप कर पति की किसी खास मुद्रा या बेपरवाह ढंग से बिस्तर पर पड़े हुए की तसवीर ले लें. फिर रात को दिखाएं. पति घर के बाहर हो तो रोमांटिक एसएमएस या वहाट्सऐप पोस्ट भेजें. आप की इन गुदगुदाने वाली हरकतों से पति आप के साथ रोमांस करने के लिए व्याकुल हो जाएगा. रोमांस के क्षणों को जादुई टच देने के लिए बैडरूम में कोई सैक्सी या रोमांटिक गाना धीमी आवाज में लगा दें और फिर एकदूसरे में खो जाएं.

नैटवर्क ही नहीं मिलता: क्या हुआ था नंदिनी के साथ

फोन की घंटी बज रही थी. नंदिनी ने नहीं उठाया. यह सोच कर कि बाऊजी का फोन तो होगा नहीं. दूसरी, तीसरी, चौथी बार भी घंटी बजी तो विराज हाथ में किताब लिए हड़बड़ाए से आए.

‘‘नंदू, फोन बज रहा है भई?’’

विराज ने उसे देखते हुए फोन उठाया पर समझ न पाए कि नंदिनी ने कुछ सुना या नहीं? फोन किस का है, पूछे बिना नंदिनी गैलरी में आ गई. वह जानती है कि बाऊजी का फोन तो नहीं होगा.

मायके से लौटे महीनाभर हो चला है. वह फ्लैट से बाहर नहीं निकली है. शाम को धुंधलका होते ही गैलरी में आ खड़ी होती है. अंधेरा गहराते ही बत्तियां जगमगा उठती हैं मानो महानगर में होड़ शुरू हो जाती है भागदौड़ की. वह हंसतेबतियाते लोगों को ताकते हुए और भी उदास हो जाती है.

विराज उस की मनोस्थिति समझ कर भी बेबस थे. वे जानते हैं बाऊजी के एकाएक चले जाने से नंदिनी के जीवन में आए खालीपन को. बाऊजी नंदिनी के पिता तो बाद में थे, पिता से ज्यादा वे नंदिनी के भरोसेमंद मित्र एवं मां भी थे. मां से ही मन की बातें करती हैं बेटियां. नंदिनी की मां भी बाऊजी ही थे और पिता भी. मां को तो उस ने देखा ही नहीं. हमेशा बाऊजी से सुना कि ‘मां मिट्टी से नहीं, बल्कि फूलों से बनी थीं, बेहद नाजुक. गरम हवा के एक थपेड़े से ही पंखुरीपंखुरी हो बिखर गईं.’

अस्पताल के झूले में गुलाबी गोरी बिटिया को देखते ही बाऊजी ने सीने पर पत्थर रख लिया और अपनी बिटिया के लिए खुद फौलाद बन गए. उन्हें जीना होगा बिटिया के लिए.

विराज ने विवाह के बाद नंदिनी के रिश्तेदारों से पितापुत्री के प्रगाढ़ संबंध, बाऊजी की करुण संघर्ष गाथा को इतनी बार सुना है कि उन्हें रट गई हैं सब बातें. उन्हें भी बाऊजी की कमी खलती है. नंदिनी ने तो बाऊजी की गोद में आंखें खोली थीं. वे समझ रहे हैं उस की मनोस्थिति. नंदिनी को समय देना ही होगा.

नंदिनी कंधे पर स्पर्श पा कर चौंक गई, कैसी जानीपहचानी ममता से भरी कोमल छुअन है. गरदन घुमा कर देखा, विराज हैं.

‘‘क्या सोच रही हो नंदू?’’

‘‘आकाश देख रही हूं, तारे कम नहीं नजर आ रहे?’’

‘‘दिन के ज्यादा उजाले में चौंधिया रहा है पूरा शहर, जमीन से आसमान तक. ऐसे में तारे कम ही नजर आते हैं. चांदतारों का असल सौंदर्य व प्रकाश तो अंधेरे में दिखता है,’’ यह तर्क देतेदेते रुक गए विराज.

नंदू ने बात सिरे से नकार दी, ‘‘नहीं तो, बल्कि मुझे तो एक तारा ज्यादा नजर आ रहा है. वह देखो, वह वाला, एकदम अपनी गैलरी के ऊपर चमकदार.’’

‘‘तुम्हें देख रहा है प्यार से मुसकराते हुए बाऊजी की तरह.’’

यह सुनते ही नंदिनी को करंट सा लगा. विराज का हाथ झटक कर गुमसुम अंदर चली गई. विराज बातबात पर प्रयत्न करते हैं कि किसी तरह नंदिनी का दुखदर्द बाहर निकले किंतु आंसू तो दूर, उस की आंखें नम तक नहीं हो रहीं, मानो सारे आंसू ही सूख चुके हों. न सिर्फ बाऊजी की बातें और यादें, मानो पूरे के पूरे बाऊजी सिर्फ उसी के थे. यादोंबातों तक में किसी की हिस्सेदारी उसे मंजूर नहीं.

नंदिनी सीधे बैडरूम में आ गई. बैडरूम में अकसर पिता की तसवीरें नहीं होतीं पर नंदिनी की तो बात ही अलहदा है. उस के बैडरूम की दाईं दीवार पर सिर्फ तसवीरें ही तसवीरें हैं. बाऊजी के साथ वह या उस के संग बाऊजी. विदाई वेला की तसवीरें. वह तसवीरों पर उंगलियां फेर रही थी कि ड्राइंगरूम में रखा फोन फिर बज उठा. उस का जी धक से रह गया.

घड़ी देखी, 8 बज रहे हैं. उसी ने तो बाऊजी को समय बताए थे – सुबह

10 बजे के बाद और शाम को 7 के बाद.

वरना वे तो उठते ही फोन लगा देते थे. ‘बेटा, तू ठीक तो है? नींद अच्छी आई? नाश्ता जरूर करना? खाना क्याक्या बनाएगी? बढि़या कपड़े पहनना. तमाम सवाल.’

और शाम होते ही ‘विराज औफिस से आ गए? नवेली ने तुझे तंग तो नहीं किया? शाम को घूमने जाते हो न?’ आदि.

सवाल अकसर वही होने के बावजूद उन में इतनी परवा, फिक्र होती कि नंदिनी का मन गुलाबगुलाब हो जाता. कई बार वह सुबह बिस्तर या बाथरूम में होती या शाम को विराज औफिस से ही नहीं लौटते होते, तब पितापुत्री के मध्य समय तय हुआ था. हड़बड़ी में वह बाऊजी से मन की बातें ही नहीं कर पाती थी.

अकसर बेटियां मन की बातें मां से करती हैं, इसी हिसाब से बाऊजी उस के मातापिता दोनों ही थे. उस का तो मायका ही खत्म हो गया. कहने को तमाम नातेरिश्ते हैं, पर सब कहनेभर के. महीने दो महीने में औपचारिक बातें ही होती हैं.

फिर फोन बजा. विचारशृंखला में बाधा पड़ते ही नंदिनी पैर पटकती ड्राइंगरूम में पहुंची ही कि देखा, विराज फोन को डिस्कनैक्ट कर रहे थे. एक हाथ में फोन का प्लग और दूसरे में नवेली को थामे वे ठगे से खड़े रह गए.

नवेली, नाना की प्यारी नातिन, बाऊजी का नन्हा सा खिलौना. इसे तो समझ भी नहीं होगी कि नाना अब कभी नहीं नजर आएंगे. नंदिनी एकटक अपनी बिटिया को देखने लगी.

और विराज…नंदिनी को. वे द्रवित हो उठे उस के दुख से. क्या बीती होगी नंदू के हृदय पर पिता की निश्चल देह देख कर, क्या गुजरी होगी पिता की अस्थियों से भरा कलश देख कर, इतना हाहाकार, ऐसा झंझावात कि अश्रु तक उड़ा ले गए.

उन्होंने बढ़ कर नवेली को नंदिनी की गोद में दे कर अपने पास बैठा लिया. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था, कैसे सांत्वना दें कि नंदिनी इस सदमे से उबर आए. धीमे से प्रस्ताव रखा.

‘‘नंदू, कितने दिन हो गए तुम्हें घूमने निकले, आज चलें?’’

‘‘नहीं, मन नहीं होता.’’

ललित की लतिका: क्या वापस लौटा प्यार का एहसास

एहसासकब सम झते हैं कि उम्र ढलने को है. उम्र काया की कोमलता तो ढाल सकती है पर एहसास को ढलने नहीं देती. आईना देख एक बिखरी लट को कान के पीछे अटकाते हुए लतिका आज भी शरमा सी जाती है. आज भी हर बात, हर सपना, हर उम्मीद वैसे की वैसे कायम है. उम्र ढलने

को है पर जज्बातों को कहां एहसास होता है इस का. वही गीत आज भी गुनगुनाते हैं लब, वही सपने आज भी नम कर जाते हैं पलकों को.

अपनी ही धुन में जीतेजीते न जाने कब ढल गए इतने बरस.

25 साल होने को आए पर लतिका आज भी उस एक नजर को तरसती है, आज भी हर सुबह एक नई किरण ले कर आती है, आज भी हवा का एक  झोंका उस के नजदीक होने का एहसास दिलाता है, जो नजदीक हो कर भी नजदीक नहीं है कहीं.

‘‘लतिका, लतिका… कहां हो?’’

लतिका को सपनों की दुनिया से हककीत में ले आने वाली यह आवाज थी उस के पति के बौस की बीवी की.

‘‘मैं यहां हूं, आई… बहुत दिनों में आईं आप, आप तो इधर आती ही नहीं,’’ लतिका आशा जीजी को देख हैरान हो बोली.

‘‘लतिका, चलो मेरे साथ, जल्दी चलो,’’ आशा जीजी लतिका का हाथ पकड़ खींचते

हुए बोली.

‘‘पर कहां जाना है जीजी, कुछ बताओ

तो? हवा के घोड़े पर सवार हो कर आई हो, बैठो तो… मैं शरबत लाती हूं, फिर बातें करते हैं,’’ लतिका बोली.

‘‘नहीं, बैठो मत चलो मेरे साथ, जल्दी है, गाड़ी में बैठो,’’ जीजी बोली.

‘‘पर क्या हुआ है? कहां जाना है? जीजी तुम तो मु झे डरा रही हो?’’ लतिका  झुं झलाते

हुए बोली.

‘‘लतिका, सिटी हौस्पिटल जाना है, चलो,’’ जीजी बोली.

‘‘सब ठीक है न?’’ लतिका कुछ सम झ नहीं पा रही थी.

‘‘लतिका जल्दी चलो, वे लोग ललित को सिटी हौस्पिटल ले गए हैं… उस का ऐक्सीडैंट हो गया है, बहुत चोट आई है.’’

‘‘क्या हुआ ललित को, जीजी? ऐक्सीडैंट कैसे हुआ, कब हुआ?’’

लतिका के सवालों के जवाब नहीं मिले, बस वह जीजी के साथ हौस्पिटल कब पहुंच गई पता ही न चला.

डाक्टर आईसीयू से बहार आया तो सब

उसे देख खड़े हो गए, लतिका चेहरा नीचे कर एक ओर बैठी थी और सोच नहीं पा रही थी कि क्या सोचे.

डाक्टर बोला, ‘‘लतिकाजी, ललित को बहुत चोट आई है, पर घबराने की कोई बात नहीं है. बस कुछ महीनों का आराम और सब ठीक हो जाएगा, पर उस के चेहरे पर बहुत घाव आएं हैं… ठीक तो हो जाएंगे पर समय लगेगा. तब तक वह बोल भी नहीं पाएगा. आप को उस का बहुत ध्यान रखना होगा. आप चाहें तो मैं नर्स का बंदोबस्त कर देता हूं.’’

लतिका सम झ नहीं पा रही थी कि क्या प्रतिक्रिया दे. फिर बोली, ‘‘नहीं, नर्स नहीं चाहिए, मैं हूं न.’’

ललित पूरे एक हफ्ते बाद घर वापस आ कर आराम कर रहा था. लतिका वहीं उस के पास बैठी बस उसे ही देखे जा रही थी.

‘तुम ने कितनी कोशिश की मु झ से दूर भागने की, पर आखिर आज तुम मेरे पास हो और अगले कई दिनों तक तुम मेरे ही रहोगे… 25 साल मैं ने वही किया जो तुम ने चाहा या कहा पर अब कुछ दिन तुम मेरे हो बस मेरे ही हो,’ सोचतेसोचते कब आंख लग गई लतिका को याद नहीं रहा.

कब सुबह हुई पता ही न चला. लतिका आज कुछ सजधज कर ललित के लिए चाय और नाश्ता बना लाई. ललित आंखें खोले बस लतिका को ही देख रहा था.

‘‘सुनो जानते हो आज से बस मैं बोलूंगी और तुम सुनोगे, बस सुनोगे,’’ हलकी सी हंसी लब पर लाते हुए लतिका ललित को सहलाने लगी, ‘‘क्या तुम्हें पता है जब पहली बार तुम देखा था तो लगा कि बस जिंदगी प्रेम और प्यार में बीत जाएगी. पर तुम्हें तो बड़े खड़ूस निकले. कभी प्यार भरी नजर भी नहीं डाली.’’

ललित नाश्ता करते हुए बस लतिका को ही देखे जा रहा था. नाश्ते के बाद लतिका ललित के चेहरे को साफ करते हुए सहलाने लगी. न जाने क्यों आज उसे ललित वही ललित लगा जो उसे देखने आया था और लतिका को अनगिनत सपने दे कर चला गया था. लतिका के लब न जाने कब ललित की ओर बढ़ गए और लतिका ने वही किया जो वह कब से करना चाहती थी… ललित के चेहरे की हर चोट को वह अपने लबों से पोंछ देना चाहती थी.

हलकी सी हंसी और थोड़ी सी शर्म चेहरे पर लिए लतिका गुनगुनाने लगी, ‘‘क्या तुम को गाना पसंद नहीं है क्या?’’

ललित आंखें  झपकते हुए दूसरी ओर देखने लग गया.

‘‘देखो, अब मुंह न फेरो, अब यहां बस मैं और तुम हैं. मेरी तरफ देखो, प्यार से न सही, पर मुंह न फेरो. अच्छा, यह बतातो खाओगे क्या?’’

लतिका ने देखा ललित की आंखें में पानी भरा हुआ था. लतिका ने अपनी साड़ी के पल्लू से ललित के चेहरा साफ करा और फिर गुनगुनाती वहां से चली गई.

दोपहर ढलने को थी. बाहर हलकीहलकी बारिश हो रही थी. ललित की न

जाने कब आंख लग गईर् थी, बरसात की आवाज से उस की नींद खुल गई, आंखें खोलीं तो लतिका उस के पास बैठी उसे ही देखे जा रही थी.

‘‘सुनो, यह जो तुम्हारे चेहरे पर हलकी सी हंसी होती है सोते हुए वह जागने पर कहां चली जाती है? चलो खाने का वक्त हो गया है, फिर दवा भी तो लेनी है. ठीक होना है न… जल्दी से ठीक हो जाओ, एक ही दिन में तुम्हारे न बोलने की कमी सी महसूस होने लगी है.’’

न जाने दिन कब बीत गए. लतिका रोज नएनए कपड़े पहन ललित का और सारे घर का काम करती रहती और बाकी वक्त बस ललित से बातें करती और गुनगुनाती रहती.

‘‘लतिका, ओ लतिका, कहां हो? लतिका.’’

आशा जीजी की आवाज सुन लतिका ने किवाड़ खोल दिए.

‘‘चलो बई, डाक्टर के पास जाना है. ललित उठ गया क्या. अब कैसा महसूस करता है?’’

‘आज डाक्टर के पास जाना है,’ इसी सोच से लतिका का दिल बहुत घबरा रहा था. अब ललित ठीक हो गया तो, तो वह उस से फिर दूर हो जाएगा. बस इसी सोच से लतिका का मन बहुत घबरा रहा था.

‘‘अरे बहुत बढि़या, तुम अब बहुत बेहतर लग रहे हो, लतिका ने कोई कमी नहीं छोड़ी देखभाल में,’’ डाक्टर ने जांच के बाद लतिका और बाकी सब को बताया कि ललित की सेहत बहुत बेहतर लग रही है. फिर डाक्टर ने कहा कि वह हैरान हैं कि अब तक ललित ने बात करना क्यों नहीं शुरू किया.

लतिका घर लौटते ही सब के लिए चाय बनाने चली गई. वह आज ललित के सामने भी नहीं गई. सुबह कपड़े बदलते और नाश्ते के समय भी उस ने ललित की ओर एक बार भी न देखा. ललिता के दिमाग में बस वही ललित आ रहा था, जो खड़ूस सा था. चायनाश्ता दे वह बिना किसी से बात किए खाना बनाने चली गई.

‘फिर वही दिन आ जाएंगे क्या,’ सोच लतिका का मन बहुत घबरा रहा था.

‘ये सब हंसी पल वह कभी भुला नहीं पाएगी. ललित और वह, वह और ललित, कितने खुशी के पल थे, ललित को गले लगाना, उसे सहलाना, कितने बरस उस ने इन पलों के बारे में बस सोचा या कहानियों में ही पढ़ा था. हसीन पलों में जीना एक ख्बाब है और ख्बाब बस आंखें खुलते ही हवा हो जाते हैं. लतिका की आंखों के आसूं रुकने को ही नहीं आ रहे थे. बस कुछ और दिन मिल जाते तो वह सारी उम्र जी लेती और आने वाले पलों के लिए बहुत सी यादें बटोर लेती.’

‘बस एक और दिन मिल जाए तो वह ललित को ठीक से देख ले, एकदम करीब से, अपनी निगाहों में बस, उस की हर अदा बसा ले. बस एक दिन और मिल जाए, तो वह ललित को करीब से देख ले, इतने करीब से ही हर सांस उस की बस ललित के बदन की महक से भर जाए, उस का हर एहसास ललित की महक से भर जाए. एक बार बस, एक और मौका मिल जाए तो वह हमेशा के लिए ललित की छवि को मन में बसा उस की बांहों में दम तोड़ दे.’

‘‘ललिता, ललिता, ओ ललिता,’’ आशा जीजी जोरजोर से आवाज लगा रही थी.

आशा जीजी की आवाज ने लतिका के सपनों और सोच की दुनिया से निकले पर मजबूर कर दिया. लतिका भागती हुई बैठक में पहुंच गई.

‘‘लतिका, ललित तुम्हें बुला रहा है,’’ ललित चाय पिलाने को कह रहा है, लो.’’

लतिका ने आशा जीजी के हाथ से चाय की प्याली ले ली और ललित की ओर बढ़ने लगी. ललित मंद सी आवाज में अभी भी लतिका को बुला रहा था.

लतिका भरी हुई आंखों से ललित को चाय पिलाने लग गई. दोनों की निगाहें बस एकदूसरे पर ही टिकीं. चाय खत्म होने पर जैसे ही लतिका प्याली रखने के लिए उठने लगी तो उसे एहसास हुआ कि ललित की उंगलियां उस की उंगलियों को जकड़े हुई हैं. लतिका की आंखों का पानी जमाने को अपनी हस्ती का एहसास दिलाना चाहता था, पर लतिका हर एहसास को अपना ही रहने देना चाहती थी, हर एहसास को जमाने के साथ सा झा करने से, एहसास अपना नहीं रहता.

‘‘चलो भई सब ठीक हो गया, अब हम चलते हैं, तुम लोग भी आराम करो. लतिका, कोई जरूरत हो तो बता देना, चलो फिर मिलते हैं.’’

लतिका आशा जीजी को रुख्सत करने उन के पीछे चल दी.

आशा जीजी ने लतिका को गले से लगा लिया और बोलीं, ‘‘बस आज इन

आंसुओं को रोकना मत, पर आज के बाद इन्हें भूल जाना बस, और अपना और ललित का खयाल रखना लतिका… वक्त ही नहीं कभीकभी लोग भी बदलते हैं.’’

आशा जीजी तो चली गईं, पर अब वह क्या करे… धरती अपना सीना खोल दे और वह बस उस की गोद में समा जाए, पर वह सीता नहीं है, लतिका है लतिका, बस लतिका है.

लतिका को लगा जैसे हवा का हर  झोंका लतिका, लतिका बोल रहा हैं,

धीमीधीमी हवा लतिकालतिका कर रही हो, पर स्टील का गिलास गिरने की आवाज ने बताया कि हवा नहीं, बल्कि ललित उसे बुला रहा था.

लतिका वहां से भाग जाना चाहती थी,

पर कैसे जाए, ललित बारबार उस का नाम ले

रहा था. लतिका घबराती हुई ललित के कमरे

में दाखिल हुई तो देखा ललिल पलंग से उठने

की कोशिश कर रहा था. लतिका ने भाग कर

उसे सहारा दिया और ललित वहीं पलंग पर

बैठ गया.

‘‘देखो डाक्टर ने कहा है अभी कुछ वक्त लगेगा, कुछ दिन और बस, फिर जहां जाना हो चले जाना,’’ लतिका में बिना ललित की ओर देखे सब एक सांस में बोल दिया.

‘‘क्या तुम मु झ से दूर जा पाओगी?’’

लतिका के आंसू अब अपनी हर हद को तोड़ देना चाहते थे और उस की आंखों को छोड़ कर ललित के सीने को भिगो देना चाहते थे और वह इस पल में समा जाना चाहती थी.

‘‘बोलो, क्या तुम मु झे अपने से दूर कर

देना चाहती हो? इतना प्यार और ये सब एहसास कैसे छिपा लेती थी? बोलो ललिता क्या है. ये सब, बोलो,’’ और अगले ही पल ललित ने ललिता को अपनी बांहों में भर लिया. ललिता अपने आंसुओं से ललित को अपने हर एहसास का एहसास दिला देना चाहती थी.

दूर कहीं फिर वही गीत बजने लगा, ‘तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं… और फिर वही एहसास दिल पर दस्तक देने लगे.

गांठें: सरला ने मां को क्या सीख दी

सरला ने चहकते हुए घर में प्रवेश किया. सब से पहले वह अपनी नई आई भाभी दिव्या से मिली.

‘‘हैलो भाभी, कैसी हो.’’

‘‘अच्छी हूं, दीदी,’’ एक फीकी सी मुसकान फेंक कर दिव्या ने कहा और सरला के हाथ की अटैची अपने हाथ में लेते हुए धीरे से बोली, ‘‘आप सफर में थक गई होंगी. पहले चल कर थोड़ा आराम कर लें. तब तक मैं आप के लिए चायनाश्ता ले कर आती हूं.’’

सरला को बड़ा अटपटा सा लगा. 2 ही महीने तो शादी को हुए हैं. दिव्या का चमकता चेहरा बुझ सा गया है.

सरला अपनी मां से मिली तो मां उसे गले से लिपटाते हुए बोलीं, ‘‘अरी, इतनी बड़ी अटैची लाने की क्या जरूरत थी. मैं ने तुझ से कहा था कि अब यहां साडि़यों की कोई कमी नहीं है.’’

‘‘लेकिन मां, साडि़यां तो मिल जाएंगी, ब्लाउज कहां से लाऊंगी? कहां पतलीदुबली भाभी और कहां बुलडोजर जैसी मैं,’’ सरला ने कहा.

‘‘केवल काला और सफेद ब्लाउज ले आती तो काम चल जाता.’’

‘‘अरे, ऐसे भी कहीं काम चल पाता है,’’ बाथरूम में साबुन- तौलिया रखते हुए दिव्या ने  कटाक्ष किया था.

सरला के मन में कुछ गढ़ा जरूर, लेकिन उस समय वह हंस कर टाल गई.

हाथमुंह धो कर थोड़ा आराम मिला. दिव्या ने नाश्ता लगा दिया. सरला बारबार अनुभव कर रही थी कि दिव्या जो कुछ भी कर रही है महज औपचारिकता ही है. उस में कहीं भी अपनापन नहीं है. तभी सरला को कुछ याद आया. बोली, ‘‘देखो तो भाभी, तुम्हारे लिए क्या लाई हूं.’’

सरला ने एक खूबसूरत सा बैग दिव्या को थमा दिया. दिव्या ने उचटती नजर से उसे देखा और मां की ओर बढ़ा दिया.

‘‘क्यों भाभी, तुम्हें पसंद नहीं आया?’’

‘‘पसंद तो बहुत है, दीदी, पर…’’

‘‘पर क्या, भाभी? तुम्हारे लिए लाई हूं. अपने पास रखो.’’

दिव्या असमंजस की स्थिति में उसे लिए खड़ी रही. मांजी चुपचाप दोनों को देख रही थीं.

‘‘क्या बात है, मां? भाभी इतना संकोच क्यों कर रही हैं?’’

‘‘अरी, अब नखरे ही करती रहेगी या उठा कर रखेगी भी. पता नहीं कैसी पढ़ीलिखी है. दूसरे का मन रखना जरा भी नहीं जानती. नखरे तो हर वक्त नाक पर रखे रहते हैं,’’ मां ने तीखे स्वर में कहा.

‘‘मां, भाभी से ऐसे क्यों कह रही हो? नईनई हैं, आप की आज्ञा के बिना कुछ लेते संकोच होता होगा.’’

सरला का अपनापन पा कर दिव्या के अंदर कुछ पिघलने लगा. उस की नम हो आई आंखें सरला से छिपी न रह सकीं.

सरला सभी के लिए कोई न कोई उपहार लाई थी. छोटी बहन उर्मिला के लिए सलवार सूट, उमेश के लिए नेकटाई और दिवाकर के लिए शर्ट पीस. उस ने सारे उपहार निकाल कर सामने रख दिए. सब अपनेअपने उपहार ले कर बड़े प्रसन्न थे.

दिव्या चुप बैठी सब देख रही थी.

‘‘भाभी, आप कश्मीर घूमने गई थीं. हमारे लिए क्या लाईं?’’ सरला ने टोका.

दिव्या एक फीकी सी मुसकान के साथ जमीन देखने लगी. भला क्या उत्तर दे? तभी दिवाकर ने कहा, ‘‘दीदी, भाभी जो उपहार लाई थीं वे तो मां के पास हैैं. अब मां ही आप को दिखाएंगी.’’

‘‘दिवाकर, तू बहुत बोलने लगा है,’’ मां ने झिड़का.

‘‘इस में डांटने की क्या बात है, मां? दिवाकर ठीक ही तो कह रहा है,’’ उमेश ने समर्थन किया.

‘‘अब तू भी बहू का पक्ष लेने लगा,’’ मां की जुबान में कड़वाहट घुल गई.

‘‘सरला, तुम्हीं बताओ कि इस में पक्ष लेने की बात कहां से आ गई. एक छोटी सी बात सीधे शब्दों में कही है. पता नहीं मां को क्या हो गया है. जब से शादी हुई है, जरा भी बोलता हूं तो कहती हैं कि मैं दिव्या का पक्ष लेता हूं.’’

स्थिति विस्फोटक हो इस से पहले ही दिव्या उठ कर अपने कमरे में चली गई. आंसू बहें इस से पहले ही उस ने आंचल से आंखें पोंछ डालीं. मन ही मन दिव्या सोचने लगी कि अभी तो गृहस्थ जीवन शुरू हुआ है. अभी से यह हाल है तो आगे क्या होगा?

जिस तरह सरला अपने भाईबहनों के लिए उपहार लाई है उसी तरह दिव्या भी सब के लिए उपहार लाई थी. अपने इकलौते भाई मनीष के लिए टीशर्र्ट और अपनी मम्मी के लिए शाल कितने मन से खरीदी थी. पापा का सिगरेट केस कितना खूबसूरत था. चलते समय पापा ने 2 हजार रुपए चुपचाप पर्स में डाल दिए थे, उन की लाड़ली घूमने जो जा रही थी. मम्मीपापा और मनीष उपहार देख कर कितने खुश होंगे, इस की कल्पना से वह बेहद खुश थी.

सरला, उर्मिला, मांजी तथा दिवाकर के लिए भी दिव्या कितने अच्छे उपहार लाई थी. उमेश ने स्वयं उस के लिए सच्चे मोतियों की माला खरीदी थी और वह कश्मीरी कुरता जिसे पहन कर उस ने फोटो खिंचवाई थी.

कश्मीर से कितने खुशखुश लौटे थे वे और एकएक सामान निकाल कर दिखा रहे थे. मांजी के लिए कश्मीरी सिल्क की साड़ी, पापाजी के लिए गरम गाउन, उर्मिला के लिए कश्मीरी कुरता, दिवाकर के लिए घड़ी और सरला के लिए गरम शाल. मांजी एकएक सामान देखती गईं और फिर सारा सामान उठा कर अलमारी में रखवा दिया. तभी मांजी  की नजर दिव्या के गले में पड़ी मोतियों की माला पर पड़ी.

उर्मिला ने कहा, ‘भाभी, क्या यह माला भी वहीं से ली थी? बड़ी प्यारी है.’

और दिव्या ने वह माला गले में से उतार कर उर्मिला को दे दी थी. उर्मिला ने पहन कर देखी. मांजी एकदम बोल उठीं, ‘तुझ पर बड़ी जम रही है. चल, उतार कर रख दे. कहीं आनेजाने में पहनना. रोज पहनने से चमक खराब हो जाएगी.’

उमेश और दिव्या हतप्रभ से रह गए. उमेश द्वारा दिव्या को दिया गया प्रथम प्रेमोपहार उर्मिला और मांजी ने इस तरह झटक लिया, इस का दुख दिव्या से अधिक उमेश को था. उमेश कुछ कहना चाहता था कि दिव्या ने आंख के इशारे से मना कर दिया.

2 दिन बाद दिव्या का इकलौता भाई मनीष उसे लेने आ पहुंचा. आते ही उस ने भी सवाल दागा, ‘दीदी, यात्रा कैसी रही? मेरे लिए क्या लाईं?’

‘अभी दिखाती हूं,’ कह कर दिव्या मांजी के पास जा कर बोली, ‘मांजी, मनीष और मम्मीपापा के लिए जो उपहार लाई थी जरा वे दे दीजिए.’

‘तुम भी कैसी बातें करती हो, बहू? क्या तुम्हारे लाए उपहार तुम्हारे मम्मीपापा स्वीकार करेंगे? उन से कहने की जरूरत क्या है. फिर कल उर्मिला का विवाह करना है. उस के लिए भी तो जरूरत पड़ेगी. घर देख कर चलना अभी से सीखो.’

सुन कर दिव्या का मन धुआंधुआं हो उठा. अब भला मनीष को वह क्या उत्तर दे. जब मन टूटता है तो बुद्धि भी साथ नहीं देती. किसी प्रकार स्वयं को संभाल कर मुसकराती हुई लौट कर वह  मनीष से बोली, ‘तुम्हारे जीजाजी आ जाएं तभी दिखाऊंगी. अलमारी की चाबी उन्हीं के साथ चली गई है.’

उस समय तो बात बन गई लेकिन उमेश के लौटने पर दिव्या ने उसे एकांत में सारी बात बता दी. मां से मिन्नत कर के किसी प्रकार उमेश केवल मनीष की टीशर्ट ही निकलवा पाया, लेकिन इस के लिए उसे क्या कुछ सुनना नहीं पड़ा.

मायके से मिले सारे उपहार मांजी ने पहले ही उठा कर अपनी अलमारी में रख दिए थे. दिव्या को अब पूरा यकीन हो गया था कि वह दोबारा उन उपहारों की झलक भी नहीं देख पाएगी.

शादी के बाद दिव्या के रिश्तेदारों से जो साडि़यां मिलीं वे सब मांजी ने उठा कर रख लीं  और अब स्वयं कहीं पड़ोस में भी जातीं तो दिव्या की ही साड़ी पहन कर जातीं. उर्मिला ने अपनी पुरानी घड़ी छोड़ कर दिव्या की नई घड़ी बांधनी शुरू कर दी थी. दिव्या का मन बड़ा दुखता, लेकिन वह मौन रह जाती. कितने मन से उस ने सारा सामान खरीदा था. समझता उमेश भी था, पर मां और बहन से कैसे कुछ कह सकता था.

‘‘क्या हो रहा है, भाभी?’’ सरला की आवाज सुन दिव्या वर्तमान में लौट आई.

‘‘कुछ नहीं. आओ बैठो, दीदी.’’

‘‘भाभी, तुम्हारा कमरा तुम्हारी ही तरह उखड़ाउखड़ा लग रहा है. रौनक नहीं लगती. देखो यहां साइड लैंप रखो, इस जगह टू इन वन और यहां पर मोर वाली पेंटिंग टांगना. अच्छा बताओ, तुम्हारा सामान कहां है? कमरा मैं ठीक कर दूं. उमेश को तो कुछ होश रहता नहीं और उर्मिला को तमीज नहीं,’’ सरला ने कमरे का जायजा लेते हुए कहा.

‘‘आप ने बता दिया. मैं सब बाद में ठीक कर लूंगी, दीदी. अभी तो शाम के खाने की व्यवस्था कर लूं,’’ दिव्या ने उठते हुए कहा.

‘‘शाम का खाना हम सब बाहर खाएंगे. मैं ने मां से कह दिया है. मां अपना और बाबूजी का खाना बना लेंगी.’’

‘‘नहीं, नहीं, यह तो गलत होगा कि मांजी अपने लिए खाना बनाएंगी. मैं बना देती हूं.’’

‘‘नहीं, भाभी, कुछ भी गलत नहीं होगा. तुम नहीं जानतीं कि कितनी मुश्किल से एक दिन के लिए आई हूं, मैं तुम से बातें करना चाहती हूं. और तुम भाग जाना चाहती हो. सही बताओ, क्या बात है? मुंह क्यों उतरा रहता है? मैं जब से आई हूं कुछ गड़बड़ अनुभव कर रही हूं. उमेश भी उखड़ाउखड़ा लग रहा है. आखिर बात क्या है, समझ नहीं पा रही.’’

‘‘कुछ भी तो नहीं, दीदी. आप को वहम हुआ है. सभी कुछ तो ठीक है.’’

‘‘मुझ से झूठ मत बोलो, भाभी. तुम्हारा चेहरा बहुत कुछ कह रहा है. अच्छा दिखाओ भैया ने तुम्हें कश्मीर से क्या दिलाया?’’

दिव्या एक बार फिर संकोच से गढ़ गई. सरला को क्या जवाब दे? यदि कुछ कहा तो समझेगी कि मैं उन की मां की बुराई कर रही हूं. दिव्या ने फिर एक बार झूठ बोलने की कोशिश की, ‘‘दिलाते क्या? बस घूम आए.’’

‘‘मैं नहीं मानती. ऐसा कैसे हो सकता है? अच्छा चलो, अपनी एलबम दिखाओ.’’

और दिव्या ने एलबम सरला को थमा दी. चित्र देखतेदेखते सरला एकदम चिहुंक उठी, ‘‘देखो भाभी, तुम्हारी चोरी पकड़ी गई. यही माला दिलाई थी न भैया ने?’’

अब तो दिव्या के लिए झूठ बोलना मुश्किल हो गया. उस ने धीरेधीरे मन की गांठें सरला के सामने खोल दीं. सरला गंभीरता से सब सुनती रही. फिर दिव्या की पीठ थपथपाती हुई बोली, ‘‘चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा. अब तुम बाहर चलने के लिए तैयार हो जाओ. उमेश भी आता ही होगा.’’

दिव्या मन ही मन डर रही थी कि हाय, क्या होगा. वह सोचने लगी कि सरला से सब कह कर उस ने ठीक किया या गलत.

बाहर वह सब के साथ गई जरूर, लेकिन उस का मन जरा भी नहीं लगा. सभी चहक रहे थे पर दिव्या सब के बीच हो कर भी अकेली बनी रही. लौटने के बाद सारी रात अजीब कशमकश में बीती. उमेश भी दिव्या को परेशान देख रहा था. बारबार पूछने पर दिव्या ने सिरदर्द का बहाना बना दिया.

दूसरे दिन सुबह नाश्ते के बाद सरला ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘भैया, आज आप के दफ्तर की छुट्टी. मैटिनी शो देखने चलेंगे. उर्वशी में अच्छी फिल्म लगी है.’’

सब जल्दीजल्दी काम से निबटे. दिव्या भी पिक्चर जाने के  लिए तैयार होने लगी. तभी उर्मिला ने आ कर कहा, ‘‘भाभी, मां ने कहा है, आप यह माला पहन कर जाएंगी.’’

और माला के साथ ही उर्मिला ने घड़ी भी ड्रेसिंग टेबिल पर रख दी. दिव्या को बड़ा आश्चर्य हुआ. उमेश भी कुछ नहीं समझ पा रहा था. आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ?

सब पिक्चर देखने गए, लेकिन उर्मिला और मांजी घर पर रह गए. दिव्या और उमेश पिक्चर देख कर लौटे तो जैसे उन्हें अपनी ही आंखों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था. यह कमरा तो उन का अपना नहीं था. सभी कुछ एकदम बदलाबदला सा था. दिव्या ने देखा, सरला पीछे खड़ी मुसकरा रही है. दिव्या को समझते देर न लगी कि यह सारा चमत्कार सरला दीदी की वजह से हुआ है.

उमेश कुछ समझा, कुछ नहीं. शाम की ट्रेन से सरला को जाना था. सब तैयारियां हो चुकी थीं. दिव्या सरला के लिए चाय ले कर मांजी के कमरे में जा रही थी, तभी उस ने  सुना, सरला दीदी कह रही थीं, ‘‘मां, दिव्या के साथ जो सलूक तुम करोगी वही सुलूक वह तुम्हारे साथ करेगी तो तुम्हें बुरा लगेगा. वह अभी नई है. उसे अपना बनाने के लिए उस का कुछ छीनो मत, बल्कि उसे दो. और उर्मिला तू भी भाभी की कोई चीज अपनी अलमारी में नहीं रखेगी. बातबात पर ताना दे कर तुम भैया को भी खोना चाहती हो. जितनी गांठें तुम ने लगाई हैं एकएक कर खोल दो. याद रहे फिर कोई गांठ न लगे.’’

और दिव्या चाय की ट्रे हाथ में लिए दरवाजे पर खड़ी आंसू बहा रही थी.

‘‘दीदी, आप जैसी ननद सब को मिले,’’ चाय की ट्रे मेज पर रख कर दिव्या ने सरला के पांव छूने को हाथ बढ़ाए तो सरला ने उसे गले से लगा लिया.

बेटा मेरा है तुम्हारा नही- भाग 1: क्या थी संजना की गलती

मोबाइल चलाते रहने से किताबें पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है मुझे. प्रणय आउट औफ स्टेशन थे और किताबें पढ़पढ़ कर मैं ऊब चुकी थी. तो यों ही मोबाइल पर फेसबुक खोल कर बैठ गई. कुछ लेखिकाओं की कविताएं और गजलें पढ़ कर मन खिल उठा. लेकिन जैसे ही आगे बढ़ी, मन खिन्न हो गया कि कैसेकैसे लोग हैं दुनिया में.

मूर्ति टाइप फोटो डाल कर लिखते हैं कि तुरंत लाइक करो. जय श्रीराम लिखो, तो तुम्हारे बिगड़े काम बन जाएंगे या फिर कोई अच्छी खबर सुनने को जरूर मिलेगी. कोरा झूठ. ऐसा भी कभी होता है क्या? फोन बंद करने ही लगी थी कि सोचा, चलो जरा अपना फेसबुक अकाउंट खोल कर देखती हूं. बहुत समय हो गया देखे. सच में पुराने कुछ फोटोज देख कर मन चिहुंक उठा और मुंह से निकल गया, ‘‘अरे, मेरे बिट्टू के बचपन की तसवीरें.’’ कुछ ही पलों में मैं पुरानी यादों में खो गई.

जब मेरा बिट्टू ढाई साल का था तब मैं ने उस के कई फोटोज यों ही निकाल लिए थे. कहा भी था प्रणय ने कि क्यों इतने गंदेसंदे चेहरे का फोटो ले रही हो? जरा तैयार तो कर दो पहले. तो मैं ने कहा था, ‘यही तो खुशनुमा यादें बनेंगी.’ अब सच में, इन्हें देख कर और भी कई यादें ताजा हो गईं. इस फोटो को देखो, कितना पाउडर पोत लिया था उस ने अपने चेहरे पर तभी. एकदम जोकर लग रहा था और मैं ने झट से उस की फोटो क्लिक कर ली थी. और यह उस का नीबू खाते हुए, कैसा बंदर सा मुंह बना लिया था और हम हंसहंस कर लोटपोट हो गए थे. मजाल थी जो ड्रैसिंग टेबल पर मेरा कोई भी मेकअप का सामान सहीसलामत रहे. इसलिए सबकुछ छिपा कर रखना पड़ता था मुझे उस के डर से.

आज भी याद है मुझे उस का वह प्याराप्यारा मुखड़ा. पतलेपतले लाललाल अधर, तीव्र चितवन, कालेकाले भ्रमर के समान बाल और उस पर उस की प्यारीप्यारी तोतली बातें, खूब पटरपटर बोलता था और अब देखो, कितना शर्मीला हो गया है. उस के फोटो पर कितने सारे कमैंट्स और लाइक्स आए तभी. दिखाऊंगी प्रणय को, फिर देखना कैसे उन का भी चेहरा खिल उठेगा. मन हुआ क्यों न ये सारे फोटोज फिर से फेसबुक पर अपलोड कर दूं.

कुछ ही देर में बिट्टू दनदनाता हुआ मेरे पास आ कर कहने लगा कि क्यों मैं ने उस की ऐसी बकवास फोटोज फेसबुक पर अपलोड कर दीं. उस के सारे दोस्त ‘अले ले बिट्टू बाबू, शोना, बच्चा,’ कहकह कर उस का मजाक बना कर हंसे जा रहे हैं. उस की बातें सुन कर मुझे भी हंसी आ गई.

मैं बोली, ‘‘हां, तो क्या हो गया. हंसने दे न. वैसे तू लग ही रहा नन्हा सा, छोटा सा बाबू तो.’’ मेरी बात पर वह और बिदक उठा और ‘‘आप भी न मां’’ कह कर वहां से चला गया. वैसे तो उस का नाम रुद्र है पर अभी भी वह मेरे लिए मेरा छोटा सा बिट्टू ही है. 12 साल का हो गया है, पर अभी भी उस का बचपन गया नहीं.

जब भी स्कूल से आता है, मेरे गले से झूल जाता है और कहता है, ‘‘मां, मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा.’’

‘‘अच्छा, सच कह रहा है तू या मम्मी को मस्का लगा रहा है? पैसे चाहिए न?’’ हंसते हुए मैं कहती तो वह ठुनक उठता और कहता, ‘‘जाओ, मैं आप से बात नहीं करता.’’ कभीकभी यह सोच कर उदास हो जाती हूं कि जब वह बाहर पढ़ने चला जाएगा तब कैसे रहूंगी मैं? कभी लगता है बच्चा बड़ा ही क्यों होता है? बच्चा ही रहता तो कितना अच्छा होता न. लेकिन ऐसा संभव नहीं.

यह लो, शैतान का नाम लिया और शैतान हाजिर. आ गया स्कूल से. अब अपना बैग एक तरफ फेंकेगा, ड्रैस दूसरी तरफ और बेचारा मोजा कहां जा कर अटकेगा, पता नहीं, और फिर शुरू हो जाएगा अपने दोस्तों की कहानी ले कर. उस की आंखों में देख कर उस की बातें सुननी पड़ती हैं मुझे, नहीं तो कहेगा, ‘‘नहीं सुन रही हो न आप मेरी बात? कहीं और ध्यान है न आप का? जाओ नहीं बोलना मुझे कुछ भी.’’

‘‘अरे, मैं सुन रही हूं बाबा, बोल न,’’ अपना सारा काम छोड़छाड़ कर लग जाती हूं उस की बातें सुनने में. चाहे कितनी भी बोरिंग बातें क्यों न हों, सुननी पड़ती हैं, नहीं तो फिर घंटों लग जाते हैं उसे मनाने में. इस से अच्छा है उस की बात सुन ली ही जाए. परसों की ही बात है, कहने लगा, ‘मां, आप को पता है, मोहित से मेरी लड़ाई हो गई. अब मैं उस से बात नहीं करता.’’

‘‘अरे, नहीं बेटा, दोस्ती में तो यह सब चलता रहता है. इस का यह मतलब नहीं कि एकदूसरे से बात करना ही बंद कर दें. गलत बात, चल, आगे बढ़ कर तू ही सौरी बोल देना और हैंडशेक भी कर लेना. दोस्तों से ज्यादा देर गुस्सा नहीं होते.’’

मेरी बात पर पहले तो वह झुंझला गया, फिर ‘‘ओके मां’’ कह कर मेरी बात मान भी गया. छोटी से छोटी बातें वह मुझ से शेयर करता है. जैसे कि मैं उस की दोस्त हूं. वैसे, मुझे भी अच्छा लगता है उस की हर बात सुनना, क्योंकि मां व बेटे के अलावा हम अच्छे दोस्त भी तो हैं.

अगले दिन मेरे फोन पर किसी अनजान नंबर से फोन आया. न चाहते हुए भी मैं ने फोन उठा लिया ‘‘हैलो, कौन?’’ मैं ने पूछा.

‘‘तुम शिखा बोल रही हो न?’’ उधर से उस अनजान शख्स ने मुझ से पूछा.

‘‘हां, मैं शिखा बोल रही हूं, लेकिन आप कौन?’’ मैं ने पूछा तो वह चुप हो गया. पता नहीं क्यों. मुझे उस की आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी पर कुछ याद नहीं आ रहा था और यह भी लगा कि उसे मेरा नाम कैसे मालूम? लेकिन फिर जब मैं ने ‘हैलो’ कहा तो वह कुछ नहीं बोला. मैं फोन रखने ही लगी कि वह, ‘‘शिखा, मैं अखिल’’ कह कर चुप हो गया. अखिल, उस का नाम सुनते ही मैं सन्न रह गई. एकदम से मेरी आंखों के सामने वह सारा दृश्य नाच गया जो सालों पहले मुझ पर बीता था. खून खौल उठा मेरा. दांत भींच लिए मैं ने गुस्से से.

‘‘तुम? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे फोन करने की? जरा भी शर्म है तो फिर फोन मत करना,’’ कह कर मैं फोन काटने ही लगी कि वह कहने लगा, ‘‘प्लीज, प्लीज, शिखा, फोन मत काटना. बस, एक बार, एक  बार मेरी बात सुन लो. वो बिट्टू, मेरा मतलब है तुम्हारे बेटे की फोटो फेसबुक पर देखी, तो रहा नहीं गया. इसलिए फोन कर दिया. बहुत ही प्यारा बच्चा है. अब तो वह काफी बड़ा हो गया होगा न?’’

बेटा मेरा है तुम्हारा नही- भाग 2: क्या थी संजना की गलती

‘‘हां, हो गया, तो तुम्हें क्या? तुम क्यों इतनी जानकारी ले रहे हो?’’ मैं ने गुस्से से भर कर कहा तो वह क्षणभर के लिए चुप हो गया, फिर कहने लगा कि वह किसी गलत इरादे से नहीं पूछ रहा है. फिर खुद ही बताने लगा कि अब वह दिल्ली में रहता है अपने पिता के साथ. मुझ से पूछा कि मैं कहां हूं अभी? तो मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘यहीं दिल्ली में ही.’’ कहने लगा वह मुझ से मिलना चाहता है. जब मैं ने मिलने से मना कर दिया तो कहने लगा कि वह मुझे अपने बारे में कुछ बताना चाहता है.

‘‘पर मुझे तुम्हारे बारे में कुछ सुननाजानना नहीं है और वैसे भी, मैं अभी कहीं बाहर हूं,’’ कह कर मैं ने उस का जवाब सुने बिना ही फोन काट दिया. और वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई. पिछली बातें चलचित्र की तरह मेरी आंखों के सामने चलने लगीं.

उस साल मैं ने भी उसी कालेज में नयानया ऐडिमिशन लिया था जिस में अखिल था. लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह मेरी ही सोसायटी में रहता है, क्योंकि पहले कभी मैं ने उसे देखा नहीं था. एक दिन औटो के इंतजार में मैं कालेज के बाहर खड़ी थी कि सामने से आ कर वह कहने लगा कि अगर मैं चाहूं तो वह मुझे मेरे घर तक छोड़ सकता है. जब मैं ने उसे घूरा, तो कहने लगा. ‘डरो मत, मैं तुम्हारी ही सोसायटी में रहता हूं. तुम वर्मा अंकल की बेटी हो न?’ फिर वह अपने बारे में बताने लगा कि वह उदयपुर में अपने चाचा के घर में रह कर पढ़ाई करता था. लेकिन अब वह यहां आ गया.

इस तरह एकदो बार मैं उस के साथ आईगई. लेकिन मैं ने कभी उस के बारे में ज्यादा जानना नहीं चाहा. वही अपने और अपने परिवार के बारे में कुछ न कुछ बताता रहता था. उस ने ही बताया था कि उस के चाचाचाची का कोई बच्चा नहीं है, इसलिए वह उन के साथ रहता था. लेकिन उस की चाची बड़ी खड़ूस औरत है, इसलिए अब वह हमेशा के लिए अपने मांपापा के पास आ गया. खैर, अब हम अच्छे दोस्त बन गए थे. एक बार मैं उस के घर भी गई थी नोट्स के लिए तब उस के परिवार से भी मिली थी. अखिल के अलावा उस के घर में उस के मांपापा और एक छोटी बहन थी जिस का नाम रीनल था.

एक ही कालेज में पढ़ने के कारण अकसर हम पढ़ाई को ले कर मिलने लगे. इसी मिलनेमिलाने में कब हम दोनों के बीच प्यार का अंकुर फूट पड़ा, हमें पता ही नहीं चला. अब हम रोज किसी न किसी बहाने मिलने लगे. और इस तरह से हमारा प्यार 3 वर्षों तक निर्बाध रूप से चलता रहा. लेकिन कहते हैं न, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते कभी.

एक दिन मेरी अंचला दीदी को हमारे प्यार की खबर लग ही गई और मजबूरन मुझे उन्हें सबकुछ बताना पड़ा. पहले तो उन्होंने मुझे कस कर डांट लगाई, कहा कि मैं कालेज में पढ़ने जाती हूं या इश्क फरमाने? फिर वे पूछने लगीं कि क्या हम शादी करना चाहते हैं या यों ही टाइम पास? ‘नहीं दीदी, हम प्यार करते हैं और शादी भी करना चाहते हैं’ मैं ने कहा, दीदी बोलीं, ‘पर क्या उस के मातापिता इस रिश्ते को मानेंगे?’

‘भले ही उस के मातापिता न मानें, पर हम तो एकदूसरे से प्यार करते हैं न, दीदी’, दीदी का हाथ अपने हाथों में ले कर बड़े विश्वास के साथ मैं ने कहा था, ‘दीदी, अखिल मुझ से बहुत प्यार करता है, कहता है, अगर मैं उसे न मिली तो वह मर जाएगा. इसलिए हम ने चुपकेचुपके सगाई भी कर ली, दीदी.’ सगाई की बात सुन कर दीदी चुप हो गईं. लेकिन फिर इतना ही कहा कि बता तो देती हमें. लेकिन यह बात मैं उन्हें बता नहीं पाई कि हमारे बीच शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं. जब भी अखिल मेरे समीप आता, मैं खुद को उसे समर्पित करने से रोक नहीं पाती थी. क्योंकि मैं जानती थी हम एकनएक दिन एक होंगे ही और अखिल भी तो यही कहता था. अब जब भी मुझे अखिल से मिलने जाना होता, दीदी साथ देतीं. पूछने पर बता देतीं मांपापा को कि उन के घर पर ही हूं. इस तरह हमारा मिलना और भी आसान हो गया.

इधर कुछ दिनों से मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. कुछ खातीपीती तो उलटी जैसा मन करता. कमजोरी भी बहुत महसूस हो रही थी. शंका हुई कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है? मेरी शंका जायज थी. रिपोर्ट पौजिटिव आई और मैं नैगेटिविटी से घिर गई. मन में अजीबअजीब तरह के विचार आने लगे. कभी लगता दीदी को बता दूं, कभी लगता नहीं और फिर दीदी तो मां को बता ही देंगी. इतनी बड़ी बात छिपाएंगी नहीं. और मां तो मुझे मार ही डालेंगी. लेकिन अब चारा भी क्या था.

सुनते ही दीदी तिलमिला उठीं, गरजते हुए बोलीं, ‘शादी के पहले यह सब? और अब बता रही है तू मुझे?’

‘पर दीदी, मैं आप को बताने ही वाली थी, लेकिन प्लीज दीदी, प्लीज, आप को मांपापा से हमारी शादी की बात करनी होगी और राजी भी करना होगा उन्हें, नहीं तो…’ कह कर मैं सिसक पड़ी.

‘नहीं तो क्या, जान दे देगी अपनी? ठीक है, मैं देखती हूं’, कह कर वे वहां से चली गईं और मैं फिक्र में पड़ गई कि पता नहीं अब मांपापा कैसे रिऐक्ट करेंगे?

मैं और अखिल एकदूसरे से प्यार करते हैं और हम शादी भी करना चाहते हैं, यह सुन कर मांपापा का हृदय अकस्मात क्रोध से भर उठा. पर जब दीदी ने समझाया उन्हें कि लड़का देखाभाला है और ये एकदूसरे से प्यार करते हैं, तो क्या हर्ज है शादी करवाने में? और सब से बड़ी बात कि शादी के बाद उन की बेटी उन की आंखों के सामने ही रहेगी, तो और क्या चाहिए उन्हें? पहले तो मांपापा ने मौन धारण कर लिया, लेकिन फिर उन्होंने हमारी शादी के लिए अपनी पूर्ण सहमति दे दी. लेकिन दीदी ने उन्हें यह नहीं बताया कि मैं मां बनने वाली हूं. वैसे मैं ने ही मना किया था दीदी को बताने के लिए. नहीं तो मांपापा का मुझ पर से विश्वास उठ जाता और मैं ऐसा नहीं चाहती थी.

लेकिन उधर अखिल के मांपापा अपने बेटे के लिए मुझ जैसी कोई साधारण परिवार की लड़की नहीं, बल्कि कोई पैसे वाले परिवार की बेटी की खोज में थे, जो उन का घर धनदौलत से भर दे. और एक  दिन उन्हें ऐसा परिवार मिल भी गया. उसी शहर के एक बड़े बिजनैसमैन

जब अपनी एकलौती बेटी का रिश्ता ले कर उन के घर आए, तो बिना कुछ सोचेविचारे ही अखिल के मातापिता ने उस रिश्ते के लिए हां कर दी.

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