ऐसे संभालें रिश्तों की डोर

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य की जिंदगी आत्मकेंद्रित हो कर रह गई है, संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है, कामकाजी दंपती अवकाश में नातेरिश्तेदारों के यहां जाने के बजाय घूमने जाना अधिक पसंद करते हैं. इस का दुष्परिणाम यह होता है कि उन के बच्चे नानानानी, दादादादी, चाचा, ताऊ, बूआ जैसे महत्त्वपूर्ण और निजी रिश्तों से अपरिचित ही रह जाते हैं. यह कटु सत्य है कि इंसान कितना ही पैसा कमा ले, कितना ही घूम ले परिवार और मित्रों के बिना हर खुशी अधूरी है. मातापिता, भाईबहन, दोस्तों की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता. इसीलिए रिश्तों को सहेज कर रखना बेहद आवश्यक है.

जिस प्रकार अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हम धन का इन्वैस्टमैंट करते हैं उसी प्रकार रिश्तेनातों की जीवंतता बनाए रखने के लिए भी समय, प्यार, परस्पर आवागमन और मेलमिलाप का इन्वैस्टमैंट करना बहुत आवश्यक है. इन के अभाव में कितने ही करीबी रिश्ते क्यों न हों एक न एक दिन अपनी अंतिम सांसें गिनने ही लगते हैं, क्योंकि निर्जीव से चाकू का ही यदि लंबे समय तक प्रयोग न किया जाए तो वह अपनी धार का पैनापन खो देता है. फिर रिश्ते तो जीवित लोगों से होते हैं. यदि उन का पैनापन बनाए रखना है तो सहेजने का प्रयास तो करना ही होगा.

परस्पर आवागमन बेहद जरूरी

रेणु और उस की इकलौती बहन ने तय कर रखा है कि कैसी भी स्थिति हो वे साल में कम से कम 1 बार अवश्य मिलेंगी. इस का सब से अच्छा उपाय उन्होंने निकाला साल में एक बार साथसाथ घूमने जाना. इस से उन के आपसी संबंध बहुत अधिक गहरे हैं. इस के विपरीत रीता और उस की बहन पिछले 5 वर्षों से आपस में नहीं मिली हैं. नतीजा उनके बच्चे आपस में एकदूसरे को जानते तक नहीं.

वास्तव में रिश्तों में प्यार की गर्मजोशी बनाए रखने के लिए एकदूसरे से मिलनाजुलना बहुत आवश्यक है. जब भी किसी नातेरिश्तेदार से मिलने जाएं छोटामोटा उपहार अवश्य ले जाएं. उपहार ले जाने का यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि उन्हें आप के उपहार की आवश्यकता है, बल्कि यह तो परस्पर प्यार और अपनत्व से भरी भावनाओं का लेनदेन मात्र है.

संतुलित भाषा का करें प्रयोग

कहावत है आप जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे. यदि आप दूसरों से कटु भाषा का प्रयोग करेंगे तो दूसरा भी वैसा ही करेगा. मिसेज गुप्ता जब भी मिलती हैं हमेशा यही कहती हैं कि अरे रीमा तुम्हें तो कभी फुरसत ही नहीं मिलती. जरा हमारे घर की तरफ भी नजर कर लिया करो. इसी प्रकार मेरी एक सहेली को जब भी फोन करो तुरंत ताना मारती है कि अरे, आज हमारी याद कैसे आ गई?’’

एक दिन मैं अपनी एक आंटी के यहां मिलने गई. जैसे ही आंटी ने गेट खोला तुरंत तेज स्वर में बोलीं कि अरे प्रतिभा आज आंटी के घर का रास्ता कैसे भूल गईं. उन का ताना सुन कर मेरे आने का सारा जोश हवा हो गया. जबकि मेरे घर के नजदीक ही रहने के बाद भी वे स्वयं न कभी फोन करतीं और न ही आने की जहमत उठाती है. आपसी संबंधों में इस प्रकार के कटाक्ष और व्यंग्ययुक्त भाषा की जगह सदैव प्यार, अपनत्व और विनम्रतायुक्त मीठी वाणी का प्रयोग करें. सदैव प्रयास करें कि आप की वाणी या व्यवहार से किसी की भावनाएं आहत न हों.

संबंध निभाएं

गुप्ता दंपती को यदि कोई बुलाता है तो वे भले ही 10 मिनट को जाएं पर जाते जरूर हैं. कई बार नातेरिश्तेदारों या परिचितों के यहां कोई प्रोग्राम होने पर हम अकसर बहाना बना देते हैं या मूड न होने पर नहीं जाते. यह सही है कि आप के जाने या न जाने से उस प्रोगाम पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, परंतु आप का न जाना संबंधों के प्रति आप की उदासीनता अवश्य प्रदर्शित करता है. यदि किसी परिस्थितिवश आप उस समय नहीं जा पा रहे हैं तो बाद में अवश्य जाएं. किसी भी शुभ अवसर पर जाने का सब से बड़ा लाभ यह होता है कि आप अपने सभी प्रमुख नातेरिश्तेदारों और परिचितों से मिल लेते हैं, जिस से रिश्तों में जीवंतता बनी रहती है.

करें नई तकनीक का प्रयोग

मेरे एक अंकल जो कभी हमारे मकानमालिक हुआ करते थे, उन की आदत है कि वे देश में हों या विदेश में हमारे पूरे परिवार के बर्थडे और हमारी मैरिज ऐनिवर्सरी विश करना कभी नहीं भूलते. उस का ही परिणाम है कि हमें उन से दूर हुए 6 साल हो गए हैं, परंतु हमारे संबंधों में आज भी मिठास है. आज का युग तकनीक का युग है. व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, वीडियो कौलिंग आदि के माध्यम से आप मीलों दूर विदेश में बसे अपने मित्रों और रिश्तेदारों से संपर्क में रह सकते हैं. सभी का प्रयोग कर के अपने रिश्ते को सुदृढ़ बनाएं. कई बार कार्य की व्यस्तता के कारण लंबे समय तक परिवार में जाना नहीं हो पाता. ऐसे में आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर के आप अपने रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का प्रयास अवश्य करें.

करें गर्मजोशी से स्वागत

घर आने वाले मेहमानों का गर्मजोशी से स्वागत करें ताकि उन्हें एहसास हो कि आप को उन के आने से खुशी हुई है. शोभना के घर जब भी जाओ हमेशा पहुंच कर ऐसा लगता है कि हम यहां क्यों आ गए? न मुसकान से स्वागत, न खुश हो कर बातचीत, बस उदासीन भाव से चायनाश्ता ला कर टेबल पर रख देती हैं, आप करो या न करो उन की बला से. इस के विपरीत हम जब भी अनिमेशजी के यहां जाते हैं उन पतिपत्नी की खुशी देखते ही बनती है. घर में प्रवेश करते ही खुश हो कर मिलना, गर्मजोशी से स्वागत करना, उन के हावभाव को देख कर ही लगता है कि हां हमारे आने से इन्हें खुशी हुई है.

आप के द्वारा किए गए व्यवहार को देख कर ही आगंतुक दोबारा आने का साहस करेगा.

छोटीछोटी बातों का रखें ध्यान

नमिता के चचिया ससुर आए थे. उसे याद था कि चाचाजी शुगर के पेशैंट हैं. अत: जब वह उन के लिए बिना शकर की चाय ले कर आई तो उस की इस छोटी सी बात पर ही चाचाजी गद्गद हो उठे. रीता की जेठानी आर्थ्राइटिस की मरीज है. अत: उन्हें बाथरूम में ऊंचा पटड़ा चाहिए होता है. उन के आने से पूर्व उस ने उतना ही ऊंचा पटड़ा बाजार से ला कर बाथरूम में रख दिया. जेठानी ने जब देखा तो खुश हो गई.

अर्चना के यहां जब भी कोई आता है वह प्रत्येक सदस्य की पसंद का पूरापूरा ध्यान रखती है. उस के यहां जो भी आता है उस की कोशिश होती है कि उन्हीं की पसंद का भोजन, नाश्ता आदि बनाया जाए.

समय दें

किसी भी मेहमान के आने पर उसे भरपूर समय दें, क्योंकि सामने वाला भी तो अपना कीमती वक्त निकाल कर आप से मिलने पैसे खर्च कर के ही आया है. अनीता जब परिवार सहित अपने भाई के यहां 2-4 दिनों के लिए गई तो भाई अपने औफिस चला गया और भाभी किचन और इकलौते बेटे में ही व्यस्त रही. बस समय पर खाना, नाश्ता टेबल पर लगा दिया मानो किसी होटल में रुके हों. अगले दिन भाई ने औफिस से अवकाश तो लिया पर अपने घर के काम ही निबटाता रहा. अनीता और उस के परिवार के पास बैठ कर 2 बातें करने का किसी के पास वक्त ही नहीं था. 2 दिन एक ही कमरे में बंद रहने के बाद वे अपने घर वापस आ गए, इस कसम के साथ कि अब कभी भी भाई के घर नहीं जाना. इस प्रकार का व्यवहार आपसी संबंधों में कटुता घोलता है. संबंध सदा के लिए खराब हो जाते हैं.

कई बार अपने सब से करीबी का ही जानेअनजाने में किया गया कठोर व्यवहार हमें अंदर तक आहत कर जाता है. अपने साथ किए गए लोगों के अच्छे व्यवहार का सदैव ध्यान रखें और मन को दुखी करने वाले व्यवहार को एक क्षणिक आवेश मान कर भूलना सीखें, क्योंकि जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है.

जैसी स्किन वैसी देखभाल

मौसम बदलने लगा है और आने वाले फुहारों के मौसम यानि मौनसून के दौरान हवा में ज्यादा नमी से आपको परेशानी हो सकती है. विशेषरूप से उन्हें जिन की त्वचा तैलीय या मिश्रित होती है. पसीने और तेलस्राव के कारण तैलीय त्वचा और अधिक तैलीय व सुस्त लगने लगती है. जब मौसम गरम और नमीयुक्त होता है तब लाल चकत्ते, फुंसियां, खुले रोमकूप जैसी समस्याएं पैदा होती हैं और गंदगी त्वचा पर जमने लगती है.

तरोताजा त्वचा के लिए

पसीने और तेल से मुक्त होने के लिए मौनसून में त्वचा को साफ और तरोताजा करना बहुत जरूरी होता है. स्क्रब की सहायता से रोमकूपों की गहरी सफाई करने से त्वचा अवरुद्ध नहीं होती और मुंहासों से भी बचाव होता है. टोनिंग के जरिए भी त्वचा को तरोताजा बनाने और रोमकूपों को बंद करने में मदद मिलती है.

फेशियल स्क्रब का प्रयोग सप्ताह में 2 बार करें. इसे चेहरे पर लगाएं और धीरेधीरे गोलाई में त्वचा पर रगड़ें. फिर साफ पानी से धो लें. आप चाहें तो दही में चावल का आटा या पिसे बादाम मिला कर घर में ही फेशियल स्क्रब तैयार कर सकती हैं. स्क्रब में सूखे नीबू का चूर्ण या फिर संतरे के छिलकों का चूर्ण भी मिला सकती हैं.

– ध्यान रखें कि मुंहासे और संवेदनशील त्वचा होने पर स्क्रब का प्रयोग न करें. मुंहासों से छुटकारा पाने के लिए ओट्स और अंडे की सफेदी के मिश्रण का सप्ताह में 2 बार प्रयोग करें.

– इस मौसम में फूलों से बने किसी त्वचा टौनिक या फ्रैशनर का इस्तेमाल उपयोगी साबित होता है. गुलाबजल एक नैसर्गिक टोनर है. रुई पैड को गुलाबजल में भिगो कर या त्वचा टौनिक को फ्रिज में रखें. त्वचा को स्वच्छ और तरोताजा बनाने के लिए इससे चेहरे को साफ करें. घर से बाहर निकलते समय नम टिशू साथ ले जाएं. नम टिशू से चेहरा साफ करने के बाद कौंपैक्ट पाउडर लगाएं. इस से त्वचा की ताजगी बढ़ेगी और वह तैलीय भी नजर नहीं आएगी.

– अगर लाल चकत्ते, मुंहासे या फुंसियां हों तो सुबह और रात रोज 2 बार औषधीय साबुन या क्लींजर से चेहरा धोएं. एक कसैला लोशन खरीदें और उस में बराबर मात्रा में गुलाबजल मिला लें. रुई की सहायता से इस से दिन में 4-5 बार चेहरा साफ करें. फुंसियों पर चंदन का पेस्ट लगाएं.

– बारिश के मौसम में चेहरे को सादे पानी से कई बार धोएं. दिन भर त्वचा पर जो मैल एकत्रित हो जाती है उस की सफाई रात में जरूर करें. मौनसून के दिनों में शरीर से पानी पसीने के रूप में बाहर निकलता है. इसलिए शरीर में पर्याप्त पानी मौजूद रहे, इस के लिए अधिक मात्रा में पानी पीएं.

– गरम चाय की जगह आइस टी में नीबू रस और शहद मिला कर पीएं.

– त्वचा सामान्य हो या तैलीय, ऐसे फेसवाश का प्रयोग करें, जिस में नीम और तुलसी जैसे तत्त्व हों.

सही निखार पाना है, तो अपनी त्वचा के प्रकार के अनुसार ही उस की साफसफाई का ध्यान भी रखना होगा.

तैलीय त्वचा

त्वचा के तैलीय होने से अकसर मुंहासों, फुंसियों और लाल चकत्तों की समस्या हो

जाती है.

त्वचा की सफाई : बेसन और दही का पेस्ट तैयार कर चेहरे पर लगाएं. 20 मिनट के बाद चेहरे को धो लें. सूखी पुदीनापत्ती का चूर्ण भी इस पेस्ट में मिला सकती हैं.

तैलीय त्वचा के लिए टोनर : गुलाबजल और खीरे का रस बराबर मात्रा में ले कर चेहरे पर लगाएं. 20 मिनट बाद चेहरा पानी से धो लें.

सामान्य त्वचा

बादाम का चूर्ण दही में मिला कर चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट बाद पानी से इसे गोलाकार मलें. फिर चेहरा पानी से धो लें.

– 2 चम्मच शहद, थोड़ाथोड़ा दूध, गुलाबजल और सूखे नीबू के चूर्ण का पेस्ट बनाएं. इसे हफ्ते में 2 या 3 बार चेहरे और गरदन पर लगाएं. 20 मिनट के बाद धो लें.

शुष्क त्वचा

2 चम्मच बादाम चूर्ण में 1 चम्मच शहद मिला कर चेहरे पर लगाएं और 5 मिनट बाद हलके हाथ से रगड़ने के बाद चेहरे को पानी से धो लें.

सामान्य एवं शुष्क त्वचा के लिए टोनर : 100 एमएल गुलाबजल में 1/2 चम्मच ग्लिसरीन मिला कर कांच की बोतल में भर कर अच्छी तरह हिला लें. फिर फ्रिज में रख दें. रोज इस्तेमाल करें.

शुष्क त्वचा के लिए मास्क : 3 चम्मच चोकर, 1 चम्मच बादाम चूर्ण और 1 अंडे की सफेदी को मिला कर उस में 1-1 चम्मच शहद और दही डाल कर पेस्ट तैयार करें. इसे सप्ताह में 1 या 2 बार चेहरे पर लगाएं. आधे घंटे के बाद चेहरा धो लें.

मुंहासों वाली त्वचा

अगर त्वचा तैलीय है और जल्दीजल्दी मुंहासे निकलते हैं, तो तैलीय क्रीम और मौइश्चराइजर का इस्तेमाल न करें. अगर त्वचा सूखी महसूस होती है तो अकसर यह ऊपरी परत की कृत्रिम शुष्कता होती है. इस से छुटकारा पाने के लिए निम्न तरीके अपनाएं :

– औषधीय क्लींजर या फेसवाश से सफाई करें. मुंहासे पर चंदन का पेस्ट लगाएं या चंदन के पेस्ट को गुलाबजल के साथ मिला कर पूरे चेहरे पर लगाएं. 20-30 मिनट के बाद चेहरे को पानी से धो लें.

– नीम के कुछ पत्तों को 4 कप पानी में हलकी आंच पर 1 घंटे तक उबालें. रात भर उसे छोड़ दें. सुबह छान कर पानी से चेहरा धोएं और पत्तियों का पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाएं.

क्या करें

दिन में ठंडे पानी से चेहरे को कई बार धोएं.

– रोमकूपों को बंद करने के लिए शीतल त्वचा टौनिक या गुलाबजल से टोन करें.

– सप्ताह में एक फेशियल स्क्रब का 2 बार प्रयोग करें.

. मेकअप, पसीने और तेल को हटाने के लिए रात में त्वचा की सफाई करें.

. त्वचा को ताजगी प्रदान करने के लिए कई बार चेहरे को नम टिशू से पोंछें.

क्या न करें

– भुना या भारी स्टार्च युक्त आहार लेने से बचें.

– तैलीय और मुंहासों वाली त्वचा के लिए क्रीम या मौइश्चराइजर का प्रयोग न करें.

– साबुन और पानी से दिन में 3 बार से अधिक मुंह न धोएं.

– हाथों को धोए बिना चेहरा न छुएं और न ही मुंहासों या फुंसियों को कुरेदने की कोशिश करें.

मौनसून फेस पैक

– मुलतानी मिट्टी चेहरे को ठंडक पहुंचाती है और तेल को सोखती है. 1 चम्मच मुलतानी मिट्टी को गुलाबजल में मिला कर चेहरे पर लगाएं. 15-20 मिनट बाद चेहरा धो लें.

– खीरे के रस या गूदे में 2 चम्मच मिल्क पाउडर और 1 अंडे की सफेदी मिलाएं. फिर ब्लैंडर में पेस्ट बनाएं. चेहरे और गरदन पर लगाएं. आधे घंटे के बाद चेहरा धो लें.

– नीबू के रस को पानी में मिला कर आइस क्यूब ट्रे में रख कर फ्रीज करें. जब भी ताजगी की जरूरत महसूस हो, एक क्यूब को चेहरे पर हलके से फिराएं और फिर रुई से पोछ लें. इस से तैलीय पदार्थ कम होता है और त्वचा को ताजगी मिलती है.

– अंडे की सफेदी, नीबू रस और शहद को मिला कर चेहरे पर मास्क की तरह लगाएं. 20 मिनट बाद चेहरा धो लें.

– 1 चम्मच शहद, 15 बूंदें संतरे का रस, 1 चम्मच ओट्स और 1 चम्मच गुलाबजल को मिलाएं. इसे चेहरे पर लगाएं और 15 मिनट के बाद चेहरा धो लें. इससे तैलीय पदार्थ दूर होते हैं और चमक बढ़ती है.

– सेब, पपीता, संतरा जैसे फलों को मिला कर चेहरे पर लगाया जा सकता है. 20-30 मिनट के बाद चेहरा पानी से धो लें.

फैस्टिव सीजन में ऐसे करें ज्वैलरी की देखभाल

सोने के गहने आमतौर पर त्योहारों या खास अवसरों पर ही पहने जाते रहे हैं, लेकिन अब महिलाओं में उन्हें रोजाना पहनने का चलन भी बढ़ता जा रहा है. इसी को देखते हुए ज्वैलरी मेकर्स द्वारा ग्राहकों की पसंद को ध्यान में रख कर सोने के शानदार गहने बनाने का चलन बढ़ा है.

सोने के गहने आमतौर पर टूटते नहीं हैं और उन की चमक भी फीकी नहीं पड़ती. लेकिन रोजाना इस्तेमाल करने पर वे तेल, धूल और ग्रीस के संपर्क में तो आते ही हैं. इस बात को ध्यान में रख कर सोने के गहनों की उचित तरीके से देखभाल करनी चाहिए, जिस में समयसमय पर सफाई भी शामिल है. ऐसा करने से आप के गहने जीवन भर आप का साथ देंगे और अपना गौरव बनाए रखेंगे.

गहनों की देखभाल के लिए इन बातों पर ध्यान दें:

1. नहाने से पहले सोने के गहनों को उतार देना चाहिए, क्योंकि साबुन और कैमिकल्स के संपर्क में आने से सोने की चमक फीकी पड़ जाती है और इस से आभूषणों को जल्दीजल्दी साफ करने की जरूरत पड़ती है.

2. क्लोरीन से सोने का रंग स्थायी रूप से फीका पड़ जाता है, इसलिए हौट टब या स्विमिंग पूल में जाने से पहले गहने उतार दें.

3. यदि सोने के गहनों की चमक फीकी पड़ रही हो तो उन्हें सांभर के नरम कपड़े से रगड़ें. इस से गहने चमक उठेंगे और अधिक सफाई की जरूरत नहीं पड़ेगी.

4. एक छोटी कटोरी में गरम पानी लें और उस में सौम्य डिश वाशिंग डिटर्जैंट की कुछ बूंदें डालें. कुछ ज्वैलरी स्टोर्स सोने के गहनों को साफ करने के लिए पानी में अमोनिया की कुछ बूंदें भी मिलाने का सुझाव देते हैं, लेकिन कुछ स्टोर्स अमोनिया के इस्तेमाल को अनुचित बताते हैं. लेकिन सोने के गहनों की सफाई के लिए सौम्य डिश डिटर्जैंट का उपयोग दुनिया भर में किया जाता है और यह एक स्वीकार्य विकल्प है.

5. सोने के सभी गहनों को एकसाथ कटोरी में न डालें. इस से उन में खरोंच पड़ सकती है.

6. टूथब्रश से गहनों को साफ करने से भी उन पर खरोंच पड़ सकती है. यदि आप के पास कोई भारी आभूषण है, जिस में कई दरारें और छिद्र हैं, तो बच्चों के मुलायम ब्रिसल्स वाले टूथब्रश का इस्तेमाल गहने साफ करने के लिए किया जा सकता है.

7. सोने के गहनों को हलके हाथों से गरम पानी से तब तक धोएं जब तक कि झाग के सारे निशान चले नहीं जाते और पानी साफ नहीं आने लगता.

8. यदि आप को लगता है कि आप गहनों की अच्छी तरह सफाई नहीं कर सकती हैं, तो ज्वैलर के पास जाएं. वह उन्हें पेशेवर तरीके से साफ कर देगा.

सोने के गहनों की देखभाल भी उसी तरह से महत्त्वपूर्ण है, जैसे नियमित तौर पर उन की साफसफाई करना. खरोंच या रगड़ लगने से गहनों को सब से अधिक नुकसान पहुंचता है, इसलिए प्रत्येक आभूषण को मुलायम कपड़े के बक्से में एकदूसरे से अलग कर संभाल कर रखें. यदि आप सभी गहनों को एकसाथ रखना चाहती हैं, तो हरेक को टिशू पेपर या मुलायम कपड़े में लपेट कर सुरक्षित तरीके से रखें.

गहने खरीदते समय

आइए अब जानें कि गहने खरीदते वक्त आप किन बातों पर ध्यान दें, जिस से नकली गहनों से बचें:

गहने खरीदते समय 5 निशानों/स्टैंप्स की जांच करनी चाहिए जोकि गहनों पर अंकित होते हैं:

1. शुद्धता का निशान या नंबर, जैसे कि 24 कैरेट, 22 कैरेट आदि.

2. हौलमार्किंग सैंटर का लोगो.

3. ज्वैलर का लोगो.

4. निर्माण का वर्ष.

5. बीएसआई ट्राईएंगल, जोकि हौलमार्किंग सैंटर द्वारा उकेरा जाता है.

सोने का परीक्षण कैरैटमीटर में भी किया जा सकता है, जिस में सोने की शुद्धता और सोने का मैटल कैरेट शामिल है.

टच स्टोन टैस्ट: सोने का कोई भी आभूषण लें और उसे ब्लैक टच स्टोन पर रगड़ें. फिर ग्लास स्टिक से टच स्टोन पर नाइट्रिक ऐसिड डालें और ग्लास स्टिक से ही इस पर नमक का पानी डालें. यदि टच स्टोन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है, तो सोने की गुणवत्ता अच्छी है. यदि उस का रंग हरा हो जाता है, जो उस की शुद्धता कम है. यदि कुछ नजर नहीं आता, तो सोने का आभूषण संदिग्ध है.

-प्रेरणा मखारिया

मैनेजर, प्रोडक्ट डैवलपर, तारा ज्वैलर्स

REVIEW: जानें कैसी है Akshay Kumar की फिल्म Rakshabandhan

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताःजी स्टूडियो, कलर येलो प्रोडक्शन और अलका हीरानंदानी

निर्देशकः आनंद एल राय

लेखकः कनिका ढिल्लों और हिमांशु शर्मा

कलाकारः अक्षय कुमार, भूमि पेडणेकर, सहजमीन कौर, साहिल मेहता, दीपिका खन्ना, सदिया खतीब,  स्मृति श्रीकांत, सीमा पाहवा, नीरज सूद व अन्य.

अवधिः एक घंटा पचास मिनट

बौलीवुड में आनंद एल राय की गिनती सुलझे हुए, बेहतरीन व समझदार निर्देशक के रूप में होती है.  ‘तनु वेड्स मनु’,  ‘रांझणा’, ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’जैसी सफलतम फिल्मों के निर्देशन के बाद वह फिल्म निर्माण में व्यस्त हो गए. आनंद एल राय ने ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘हैप्पी भाग जएगी’’,  ‘शुभ मंगल सावधान’ व तुम्बाड़’जैसी बेहतारीन व सफल फिल्मों का निर्माण किया. इसके बाद उनके अंदर अजीबोगरीग परिवर्तन नजर आने लगा. और पूरे तीन वर्ष बाद जब बतौर निर्माता व निर्देशक ‘जीरो’ लेकर आए, तो यह फिल्म बाक्स आफिस पर भी ‘जीरो’ ही साबित हुई. इसके बाद फिल्मकार के तौर पर उनका पतन ही नजर आता रहा है. बतौर निर्देशक उनकी पिछली फिल्म ‘अतरंगी रे’’ भी नही चली थी. अब बतौर निर्माता व निर्देशक उनकी उनकी नई फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ 11 अगस्त को सिनेमाघरों में पहुंची है. इस फिल्म से भी अच्छी उम्मीद करना बेकार ही है. सच यही है कि ‘तनु वेड्स मनु’ या ‘रांझणा’ का फिल्मकार कहीं गायब हो चुका है. मजेदार बात यह है कि फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ के ट्ेलर को दिल्ली में आधिारिक रूप से रिलीज करने से एक दिन पहले मुंबई में ट्ेलर दिखाकर अनौपचारिक रूप से जब अनंद एल राय ने हमसे बातें की थी, तो उस दिन उन्होने काफी समझदारी वाली बातें की थी. हमें लगा था कि उनके अंदर सुधार आ गया है. मगर दिल्ली में ट्रेलर रिलीज कर वापस आते ही वह एकदम बदल चुके थे. फिर उन्होने  अपनी फिल्म को लंदन व दुबई में जाकर प्रमोट किया. दिल्ली,  इंदौर,  लखनउ,  चंडीगढ़,  जयपुर, कलकत्ता,  पुणे,  अहमदाबाद,  वडोदरा सहित भारत के कई शहरों में ‘रक्षाबंधन’’ के प्रमोशन के लिए सभी कलाकारांे के साथ घूमते रहे. कलाकारों के लिए बंधानी साड़ी से जेवर तक खरीदते रहे. हर इंवेंअ पर लाखों लोगों का जुड़ा देख खुश होेते रहे. पर अब उन्हे ख्ुाद सोचना होगा कि हर शहर में जितनी भीड़ उन्हे देखने आ रही थी, उसमें से कितने प्रतिशत लोगों ने उनकी फिल्म देखने की जहमत उठायी. लोग सिनेमाघर मे अपनी गाढ़ी व मेहनत की कमाई से टिकट खरीदने के बेहतरीन कहानी देखते हुए मनोरंजन के लिए जाता है. जिसे ‘रक्षाबध्ंान’ पूरा नहीं करती. फिल्म का नाम ‘रक्षाबंध्न’ है, मगर इसमें न तो भाई बहन का प्यार उभर कर आया और न ही दहेज जैसी कुप्रथा पर कुठाराघाट ही हुआ.

कहानीः     

कहानी का केंद्र दिल्ली के चंादनी चैक में गोल गप्पे@ पानी पूरी यानी कि चाट बेचने वाले लाला केदारनाथ(अक्षय कुमार) और उनकी चार अति शरारती बहनों के इर्द गिर्द घूमती है. जिन्होने मृत्यू शैय्या पर पहुंची अपनी मां को वचन दिया था कि वह अपनी चारों छोटी बहनों की उचित शादी करवाने के बाद ही अपनी प्रेमिका सपना(  भूमि पेडणेकर) संग विवाह रचाएंगे. यह चारों बहने भी अपने आप में विलक्षण हैं. एक बहन दुर्गा (दीपिका खन्ना), जरुरत से ज्यादा मोटी हैं. एक बहन सांवली ( स्मृति श्रीकांत  ) , जबकि एक बचकाने लुक (सहजमीन कौर ) हैं. चैथी बहन गायत्री(सादिया खतीब) खूबसूरत व सुशील है. लाला केदारनाथ जिस चाट की दुकान पर बैठते हैं, वह उनके पिता ने शुरू किया था, जिस पर लिखा है ‘गर्भवती औरतें बेटे की मां बनने के लिए उनकी दुकान के गोल गप्पे खाएं. अब अपने पारिवारिक मूल्यों को कायम रखते हुए अपनी बहनों की शादी कराने के लाला केदारनाथ के सारे प्रयास विफल साबित हो रहे हैं. उधर सपना के पिता हरिशंकर(नीरज सूद) सरकारी नौकर हैं और उनके रिटायरमेंट में महज आठ माह बचे हैं. वह रिटायरमेंट से पहले ही अपनी बेटी सपना की शादी करवाने के लिए लाला केदारनाथ पर बीच बीच में दबाव डालते रहते हैं.

लाला केदारनाथ अपनी बहनों की शादी नही करवा पा रहे हैं. क्योंकि वह उस कर्ज की हर माह लंबी किश्त चुका रहे हैं, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के समय उनके पिता ने लिया था. इसके अलावा हर बहन की शादी में दहेज देने के लिए बीस बीस लाख रूपए नही हैं. किसी तरह जुगाड़कर 18 लाख रूपए दहेज में देकर वह मैरिज ब्यूरो चलाने वाली शानू (सीमा पाहवा ) की मदद से एक बहन गायत्री की शादी करवा देते हैं. उसके बाद अचानक हरीशंकर रहस्य खोलते हैं कि उन चारों बहनों के लाला केदारनाथ सगे भाई नही है. लाला केदारनाथ के पिता ने एक बंगले के सामने से उठाकर अपने रूार में नौक के रूप में काम करने के लिए लेकर आए थे, पर केदारनाथ मालिक ही बन बैठे. यहीं पर इंटरवल हो जाता है.

इंटरवल के बाद कहानी आगे बढ़ती है. अन्य बहनों की शादी के लिए लाला केदारनाथ अपनी एक किडनी बेचकर घर उसी दिन पहुंचते हैं, जिस दिन रक्षाबंधन है. तभी खबर आती है कि गायत्री ने आत्महत्या कर ली. और सब कुछ अचानक बदल जाता है. उसके बाद लाला केदारनाथ दूसरी बहनों की शादी करा पाते हैं या नही. . आखिर सपना व केदारनाथ की शादी होती है या नही. . इसके लिए तो फिल्म देखनी पड़ेगी. ?

लेखन व निर्देशनः

फिल्म ‘रक्षाबंधन’’ देखकर यह अहसास नही होता कि यह फिल्म ‘तनु वेड्स मनु ’ और ‘रांझणा’ जैसे फिल्मसर्जक की है. फिल्म की पटकथा अति कमजोर, भटकी हुई और गफलत पैदा करने वाली है. जब हरीशंकर को पता है कि लाला केदारनाथ तो भिखारी था, जिसे नौकर बनाकर लाया गया था, तो ऐसे इंसान के साथ हरीश्ंाकर अपनी बेटी सपना का विवाह क्यों करना चाहते हैं? फिल्म में इस सच को ‘जोक्स’ की तरह कह दिया जाता है. इसके बाद इस पर फिल्म में कुछ खास बात ही नही होती. इंटरवल तक फिल्म लाला केदारनाथ यानी कि अक्षय कुमार की झिझोरेपन वाली उझलकूद, मस्ती व स्तरहीन जोक्स के साथ स्टैंडअप कॉमेडी के अलावा कुछ नही है. इंटरवल से पहले एक दृश्य है. चांदनी चैक की व्यस्त गली में एक बेटे का पिता खुले आम कहता है,  ‘‘हमने अपनी बेटी की शादी के दौरान दहेज दिया था,  इसलिए हम अपने बेटे की शादी के लिए दहेज की मांग कर सकते हैं. ‘‘ कुछ दश्यों के बाद जब एक सामाजिक कार्यकर्ता जनता से दहेज को हतोत्साहित करने का आग्रह करती है,  तो लाला केदारनाथ ( अक्षय कुमार ) गर्व से उस महिला से कहते हैं कि दहेज की निंदा करना आसान है. जब आपकी दो लड़कियां हैंं,  लेकिन अगर दो बेटे होंते, तो आप निंदा न करती. चांदनी चैक के हर इंसान का समर्थन लाला केदारनाथ को मिलता है.

लेकिन जब गायत्री दहेज के चलते मारी जाती है, तब शराब के नशे में केदारनाथ दहेज का विरोध करते हुए अपनी बहनों की शादी में दहेज न देने का ऐलान करते हैं. अब इसे क्या कहा जाए?? कुल मिलाकर यह फिल्म ‘‘दहेज ’’की कुप्रथा पर भी कुठाराघाटनही कर पाती.  हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश मंे शराब के नशे में इंसान जो कुछ कहता है, उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता. आनंद एल राय ने शायद 21 वीं सदी में भी साठ के दशक की फिल्म बनायी है, जहां जमींदार व साहूकारों का अस्तित्व है, तभी तो द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त अपने पिता द्वारा लिए गए कर्ज को केदारनाथ चुका रहे हैं. कुल मिलाकर कमजोर व भटकी हुई पटकथा तथा औसत दर्जे के निर्देशन के चलते ‘दहेज विरोधी’ संदेश प्रभावी बनकर नहीं उभरता. इसके अलावा इस विषय पर अब तक सुनील दत्त की फिल्म ‘यह आग कब बुझेगी’ व ‘वी.  शांताराम’ की ‘दहेज’ सहित सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं.   पर दहेज प्रथा का उन्मूलन 21 वीं सदी में भी नही हुआ है.

गायत्री की मौत पर पुलिस बल की मौजूदगी में गायत्री की ससुराल के पड़ोसी चिल्ला चिल्लाकर आरोप लगाते हैं कि महज एक फ्रिज की वजह से गायत्री की हत्या की गयी है. मगर पुलिस मूक दर्शक ही बनी रहती है. बहनांे के लिए कुछ भी करने का दावा करने वाला भाई लाला केदारनाथ सिर्फ शराब पीकर आगे दहेज न देने का ऐलान करने के अलावा कुछ नही करता. फिल्म न तो न्याय की लड़ाई लड़ती है और न ही दहेज विरोधी कोई सशक्त संदेश ही देती है. यह लेखकद्वय और निर्देशक की ही कमजोरी है.

फिल्म के निर्देशक आनंद एल राय कभी टीवी से जुड़े रहे हैं. उनके बड़े भाई रवि राय ‘सैलाब’ सहित कई उम्दा व अति बेहतरीन सीरियल बना चुके हैं, उनके साथ आनंद एल राय बतौर सहायक काम कर चुके हैं. उन्ह दिनों जीटीवी पर एक सीरियल ‘अमानत’आया करता था. जिसमें लाला लाहौरी राम अपनी सात बेटियों की शादी के लिए चिंता में रहते हैं, मगर सभी की शादी हो जाती है. इसमें फिल्म ‘लगान’ फेम ग्रेसी सिंह, पूजा मदान, स्मिता बंसल, सुधीर पांडे, श्रेयश तलपड़े और रवि गोसांई जैसे कलाकार थे. काश आनंद एल राय और लेखकद्वय ने इस सीरियल की एक पिता औसात लड़कियों के किरदारों से कुछ सीखकर अपनी फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ के किरदारों को गढ़ा होता?इतना ही नही लेखक व निर्देशक ने बॉडी शेमिंग के अलावा हकलाने वाले पुरुष जैसे घिसे पिटे तत्व भी इस फिल्म में पिरो दिए हैं. कहानी में कुछ तो नया लेकर आते.

लेखकद्वय के दिमागी दिवालिएपन का नमूना यह भी है कि  हरीशंकर, लाला केदारनाथ को बहुत कुछ सुनाकर उन्हे अपनी बेटी सपना से दूर रहने के लिए कहकर सपना की न सिर्फ शादी तय करते हैं, बल्कि बारात आ गयी है. शादी की रश्मंे शुरू हो चुकी हैं. अचानक हरीशंकर का हृदय परिवर्तन हो जाता है और पांचवे फेरे के बाद हरीशंकर अपनी बेटी से शादी को तोड़ने की बात कहते हैं और बारात की नाराजगी को अकेले ही झेले लेने की बात करते हैं. सपना फेरे लेने के की बजाय दूल्हे का साथ छोड़कर लाला केदारनाथ के पास पहुंच जाती है.  इस तरह तो विवाह संस्था का मजाक उड़ाने के साथ ही उसे कमजोर करने का प्रयास लेखकद्वय ले किया है. लेकिन हिंदू धर्मावलंबियो को खुश करने का कोई अवसर नही छोडा गया. जितने मंदिर दिखा सकते थे, वह सब दिखा दिया.

जी हॉ! गर्भवती औरतों को गोल गप्पा खिलाकर उन्हें बेटे की मां बनाने का दावा करना भी तांत्रिको या बंगाली बाबाओं की तरह 21वीं सदी में अंधविश्वास फैलाना ही है.

फिल्म के संवाद भी अजीबो गरीब हैं. एक जगह जब गायत्री को देखने लड़के वाले आते हैं, तो दुकान वाला कुछ सामान देने के बाद लाला केदारनाथ से कहता है कि दूध भी लेते जाएं. इस पर अक्षय कुमार कहते हैं-‘‘आज नागपंचमी नही है. ’

लेखकद्वय ने कहानी को फैला दिया, चार बहन के किरदार भी गढ़ दिए, पर क्लायमेक्स में उन्हे समझ में नही आया कि किस तरह खत्म करे, तो आनन फानन में कुछ दिखा दिया, जो दर्शक के गले नही उतरता.

वहीं गायत्री की मौत के बाद तीनो बने कुछ बनने का फैसला लेते हुए कहती हैं-‘‘अब हम कुत्ते की तरह प़ढ़ाई करेंगे. ’’. . . अब लेखकद्वय से कौन पूछेगा कि कुत्ते की तरह पढ़ाई कैसी होती है?

पिछले कुछ दिनों से कनिका ढिल्लों पर ‘अति-राष्ट्रवादी’ होने का आराप लगाकर हमला करने वाले भी निराश होंगे, क्योंकि इस फिल्म में लेखिका कनिका ढिल्लों ने चांदनी चैक में कुछ मुस्लिम व सिख चेहरे भी खड़े कर दिए हैं.

फिल्म का गीत संगीत घटिया ही कहा जाएगा. एक गीत चर्चा में आया था-‘‘तेरे साथ हूं मैं. . ’’ यह गाना तो फिल्म का हिस्सा ही नही है.

अभिनयः

लाला केदारनाथ के किरदार में अक्षय कुमार का अभिनय भी इस फिल्म की कमजोर कड़ी है. बौलीवुड में इतने लंबे वर्षों से कार्य करते आ रहे अक्षय कुमार आज भी इमोशनल सीन्स ठीक से नही कर पाते हैं. वह हर किरदार में सीधा तानकर चलते नजर आते हैं. इसके अलावा उन्होने अपने अभिनय की एक शैली बना ली है, जिसमें छिछोरापन, उछलकूद, निचले स्तर के जोक्स व मस्ती करते हैं. कुछ लोग तो उन्हे स्टैंडअप कमेडियन ही मानते हैं. एक दो फिल्मों में उनके ेइस अंदाज को पसंद किया गया, तो अब वह हर जगह इसी तह नजर आते हैं. पर यह लंबी सफलता देने से रहा. कई दृश्यों मंे वह बहुत ज्यादा लाउड नजर आते हैं. चांदनी चैक के दुकानदार, खासकर चाट बेचने वाला डिजायनर कपड़े पहनने लगा है, यह एक सुखद अहसास है. अक्षय कुमार का बचपन चांदनी चैक की गलियों में ही बीता,  इसका फायदा जरुर उन्हें मिला. अक्षय कुमार का बहनों का किरदार निभा रही अभिनेत्रियो संग केमिस्ट्री नही जमी.  सपना के किरदार मे भूमि पेडणेकर के हिस्से करने को कुछ खास रहा नही. सच कहें तो भूमि पेडणेकर के कैरियर की जो शुरूआत थी, उससे उनका कैरियर नीचे की ओर जा रहा है. इसकी मूल वजह फिल्मों के चयन को लेकर उनका सतर्क न होना ही है. 2020 में प्रदर्शित विधू विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘‘शिकारा’’से  अभिनय में कदम रखने वाली अभिनेत्री सादिया खिताब जरुर गायत्री के छोटे किरदार में अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं. हरीशंकर के किरदार में नीरज सूद का अभिनय ठीक ठाक ही है. दीपिका खन्ना,  सहजमीन कौर और स्मृति श्रीकांत को अभी काफी मेहनत करने की जरुरत है. लाला केदारनाथ के सहायक के किरदार में साहिल मेहता जरुर अपने अभिनय की छाप छोड़ते हैं. उनके अंदर बेहतरीन कलाकार के रूप में खुद को स्थापित करने की संभावनाएं हैं, अब वह उनका किस तरह उपयोग करते हैं, यह तो उन पर निर्भर करता है.

यदि बौलीवुड इसी तरह से फिल्में बनाता रहा, तो बौलीवुड को डूबने से कोई नहीं बचा सकता. दक्षिण के सिनेमा के नाम आंसू बहाना भी काम नहीं आ सकता.

वनराज पर बरसेगी Anupama, पूरा होगा ‘अनुज की भाभी’ का प्लान

मेकर्स के नए ट्विस्ट के बाद सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी दिलचस्प मोड़ लेती दिख रही है. जहां हाल ही में अनुज के एक्सीडेंट के बाद रातोंरात अनुपमा की जिंदगी बदल गई है तो वहीं अनुज की भाभी ने उसके खिलाफ बोलना शुरु कर दिया है. हालांकि अब अनुपमा उनकी साजिशों का करारा जवाब देते हुए नजर आने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा आगे (Anupama Written Update) …

वनराज को जेल भेजने पर अड़ेगी बरखा

 

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अब तक आपने देखा कि अंकुश, बरखा से एक्सीडेंट को लेकर सवाल करता है. वहीं वनराज को सबक सिखाने के लिए बरखा पुलिस बुलाने की बात कहती है. वहीं शाह परिवार पर सवाल उठाती है. दरअसल, बरखा सवाल करती है कि एक बड़े बिजनेस टाइकून के साथ दुर्घटना होने के बावजूद पुलिस जांच क्यों नहीं हो रही है और इसे साजिश का नाम देती है. हालांकि काव्या उसके खिलाफ खड़ी होती है.

अनुपमा के कैरेक्टर पर सवाल उठाएगी बरखा

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा, बरखा की बातें सुनेगी और अस्पताल में झगड़ा करने के लिए मना करेगी. लेकिन बरखा चुप नहीं रहेगी और कहेगी कि अनुज को मारने के प्रयास के लिए वनराज को सजा दिलाकर रहेगी. हालांकि अनुपमा उसे रुकने के लिए कहेगी पर बरखा उसे भी बेइज्जत करेगी और कहेगी कि  तलाक के बाद भी वह अपने पूर्व पति को छोड़ना नहीं चाहती है और अभी भी शाह का बचाव कर रही है, भले ही कोई उसे कितना भी परेशान करे. बरखा की ये बात सुनकर अनुपमा गुस्से में नजर आएगी और कहेगी कि उसे भगवान का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह अस्पताल में खड़ी है न कि घर में वरना वह उसे करारा जवाब देती.

अनुज को आएगा होश

 

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बरखा के हंगामे के बीच आप देखेंगे कि डौक्टर अनुपमा को खुशखबरी देंगे और बताएंगे कि अनुज को होश आ गया है और पूरा परिवार खुश हो जाएगा. हालांकि बरखा और अधिक परेशान नजर आएंगे. दूसरी तरफ होश में आते ही अनुज, वनराज के बारे में पूछेगा, जिसे सुनकर पूरा परिवार हैरान रह जाएगा. इसी के चलते वनराज, अनुपमा से माफी मांगने आएगा. लेकिन अनुपमा, वनराज से कहेगी कि कि जो कुछ भी हुआ उसके लिए वह जिम्मेदार है. वहीं बरखा इस बात से खुश नजर आएगी.

 

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Delhi High Court ने लगाई ‘Shamshera‘ की ओटीटी रिलीज पर रोक, जानें कारण

हमने कुछ दिन पहले ही लिखा था कि ‘‘यशराज फिल्मस’’ से जुड़े कुछ लोग इसे डुबाने पर आमादा हैं और ‘‘यशराज फिल्मस’’ के कर्ताधर्ता आदित्य चोपड़ा इस बात को सम-हजय ही नहीं पा रहे हैं. हालात यह है कि ‘यशराज फिल्मस’ से जुड़ी खबरें तक छिपाने के प्रयास किए जा रहे हैं.‘‘यशराज फिल्सम’’ की रणबीर कपूर,वाणी कपूर और संजय दत्त के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘शमशेरा’’ 22 जुलाई 2022 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी और इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा था. अब पता चला कि फिल्म का यह प्रदर्शन भी नाटकीय तरीके से हुआ था.खबरों के मुताबिक जब फिल्म ‘‘शमशेरा’’ का पहला पोस्टर बाजार में आया था,तभी से यह फिल्म विवादों से घिर गयी थी.इतना ही नही फिल्म के साथ जो विवाद थे,उन्हे देखते हुए ‘यशराज फिल्मस’ ने सिनेमाघरों मंे फिल्म के प्रर्दशन के छह सप्ताह बाद ओटीटी प्लेटफार्म को देने के नियम की धज्जियां उड़ाते हुए फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म ‘अमेजॉन प्राइम’ पर 21 अगस्त को प्रदर्शित करने के लिए बेच दिया.लेकिन ‘यशराज फिल्मस’ का यह दांव काम न आया और अब ताजा खबरों के अनुसार दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुनवायी पूरी होन तक ‘शमशेरा’ के ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रदर्शन @ स्ट्ीम होने पर रोक लगा दी है.

वास्तव में लेखक बिक्रमजीत सिंह भुल्लर ने ‘‘यशराज फिल्मस’ और फिल्म ‘‘शमशेरा’’ से जुड़े अन्य लोगो पर अपनी कहानी चुराने का आरोप लागते हुए 16 जुलाई 2022 को दिल्ली उच्च न्यायालय याचिका दायर कर पांच करोड़ रूपए की क्षतिपूर्ति का दावा करने के साथ ही फिल्म के सिनेमाघर व ओटीटी पर रिलीज पर रोक लगाने की याचिका दायर की थी.जिस पर अब तक पांच बार सुनवायी हो चुकी है. और अदालत ने फिलहाल अंतिम निर्णय होने तक फिल्म के रिलीज पर रोक लगा दी है.इसकी अगली सुनवायी 16 अगस्त 2022 को होनी है.

2006 से लेखक,निर्माता व निर्देशक के रूप में कार्यरत विक्रमजीत सिंह भुल्लर ने अपनी याचिका में दावा किया है कि उन्होने 18 वीं सदी पर आधारित पीरियड ड्रामा  वाली कहानी व पटकथा ‘‘कबहू ना छांड़े खेत’’ को लिखकर 2009 में ‘‘ द फिल्म राइटर्स एसोसिएशन’’ में 2009 में ही रजिस्टर्ड कराया था. लेखक का दावा है कि उन्होने यह कहानी व पटकथा 2008 में ही लिखी थी और इस पर एक दस मिनट की लघु फिल्म बनायी थी,जो कि 2008 में ही ‘स्पिनिंग व्हील फिल्म फेस्टिवल’ टोरटों मंें दस से बारह अक्टूबर 2008 के बीच दिखायी गयी थी.2015 में जुगल हंसराज और करण मल्होत्रा ,जो कि उस वक्त धर्मा प्रोडक्शन’ में कार्यरत थेे,को कहानी सुनायी गयी.फिर उनसे ईमेल पर पटकथा भी ेशेअर की गयी और ईमेल पर बातचीत होती रही.बाद मंे यह दोनो ‘यशराज फिल्म’ से जुड़ गए और अब उसी पर फिल्म ‘शमशेरा’ बनायी है. लेखक बिक्रमजीत सिंह भुल्लर ने अदालत में दायर अपनी याचिका में अपनी पटकथा व फिल्म के दृश्यों की तुलनात्मक रपट के अलावा करण मल्होत्रा व जुगल हंसराज के साथ हुई ईमेल,व्हाटसअप पर बातचीत के सारे सबूत भी दिए हैं.मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने ही ‘शमशेरा’ के ओटीटी रिलीज पर अंतिम सुनवायी तक रोक लगाने का आदेश जारी कर सभी पक्षों से जवाब तलब किया है.अब देखना है कि अदालत का अंतिम निर्णय क्या आता है? मगर इससे ‘यशराज फिल्मस’ की साख पर बट्टा जरुर लगा है.

फ़िल्म बंधु को भारत सम्मान 2022

उत्तर प्रदेश फ़िल्म बंधु की चर्चा अब फ़िल्म नगरी में तेजी से हो रही और उसकी सराहना भी हो रही है. दिल्ली में बॉलीवुड गायक उदित नारायण, संगीत निर्देशक अनु मलिक, पार्श्व गायिका और अभिनेत्री सलमा आगा और माननीया सांसद सुनीता दुग्गल द्वारा फिल्म बंधु, उत्तर प्रदेश सरकार को, फिल्म निर्माताओं को राज्य में फिल्म निर्माण के प्रोत्साहन एवं संबंधित सुविधाएं प्रदान किए जाने हेतु, बुद्धा क्रिएशन्स ऑफ़ इंडियन सिनेमा और बुद्धांजलि रिसर्च फाउंडेशन द्वारा आयोजित अवार्ड समारोह में ‘‘भारत सम्मान 2022’’ पुरस्कार फ़िल्म बंधु के उप निदेशक श्री दिनेश सहगल को प्रदान किया गया.

प्रायश्चित्त: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

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इन 7 टिप्स से बढ़ाएं बच्चों का आत्मविश्वास

राहुल ने घेरे में से गेंद उठाने की बहुत कोशिश की पर नाकाम रहा और फिर हताशा में रोने लगा. उसे रोते देख मां भाग कर आईं और उसे उठा कर गले से लगा लिया. फिर कहा कि लगातार कोशिश करते रहो. जरूर गेंद उठाने में कामयाब होगे. उन्होंने राहुल को उन दिनों की भी याद दिलाई जब वह अपना नाम तक नहीं लिख पाता था. यह उस के ही प्रयासों का नतीजा था कि वह अपना नाम लिखने में कामयाब रहा.

इस तरह का प्रोत्साहन और सकारात्मकता एक बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए अहम है. बच्चे की अपने और दुनिया के प्रति धारणा कम उम्र में ही विकसित होती है. एक बच्चा कैसे सोचता है, वह क्या देखता है, वह क्या सुनता है, वह अपने आसपास के हालात पर कैसे प्रतिक्रिया देता है आदि बातें उस की पूरी छवि का निर्माण करती हैं. यदि एक बच्चे में चिंता, तनाव, असंतोष और भय की भावना आने लगती है, तो वह चिड़चिड़ा रहने लगता है. उस का आत्मविश्वास भी कमजोर हो जाता है.

कई शोध अध्ययनों से पता चला है कि बड़ी संख्या में बच्चे कम उम्र में ही तनाव और चिंता का शिकार हो जाते हैं. बचपन के नकारात्मक अनुभवों के चलते उन की सेहत पर जीवन भर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है.

बच्चे के तनाव और चिंता ग्रस्त होने की कई वजहें हो सकती हैं, जिन में किसी मुश्किल कार्य को करने के दौरान विपरीत स्थितियों का सामना करना भी शामिल है. बच्चा जब अपने स्कूल और ट्यूशन का काम समझने या पूरा करने में नाकाम रहता है तब भी उस में तनाव पैदा होने लगता है. वह प्रदर्शन करने व बेहतर बनने में खुद को असफल पाता है, क्योंकि उस की तुलना में उस के साथियों के लिए ऐसा करना आसान होता है. इस से वह आत्मविश्वास खोने लगता है.

बच्चे के कमजोर आत्मविश्वास को उस की शर्म या चुप्पी से समझा जा सकता है. ऐसे में मातापिता को ऐसे संकेतों को पहचानने की जरूरत होती है. ऐसी रणनीतियां अपनानी होती हैं, जिन से बच्चे को अपनी समस्याओं का सामना करने में मदद मिले और उस का आत्मविश्वास बढ़े. मातापिता की भूमिका यह सुनिश्चित करने के लिहाज से भी अहम है कि घर का माहौल दोस्ताना रहे ताकि बच्चा सुरक्षित महसूस करे और उसे बिना डांट के डर के अपनी बात को खुल कर रखने का मौका मिले.

1. संवाद कायम करें:

बच्चे में अपने परिवार के सदस्यों के साथ जुड़ाव और संवाद के साथ बचपन से ही सामाजिक कौशल विकसित होने लगते हैं. इसलिए बच्चे के साथ प्रभावी संवाद स्थापित करें. सहयोगी, सहज और स्नेहशील बनें. इस से संबंध विकसित करने में मदद मिलेगी और बच्चे में खुल कर बोलने का आत्मविश्वास बढ़ेगा.

2. अपनी पसंद चुनने का मौका दें:

अपनी पसंद चुनने, विकल्प और हालात पेश करने में बच्चे की मदद करने में अभिभावकों की भूमिका खासी अहम है, लेकिन अपनी पसंद उसे खुद चुनने दें. यह आत्मविश्वास विकसित करने का सब से अच्छा तरीका है, क्योंकि इस से फैसले लेने और ऐसी पसंद के बारे में समझने में वह ज्यादा सक्षम होता है, जिस से उसे खुशी मिल सकती है.

3. तारीफ और पुरस्कार:

अपने बच्चे को बताएं कि आप उसे प्यार करते हैं. मातापिता को बच्चे को बताना चाहिए कि हर कोई अपनेआप में खास है और हरेक की अपनी विशेष क्षमता और प्रतिभा होती है. बच्चे के लिए सकारात्मक यादों का निर्माण करें और छोटेछोटे संकेतों के माध्यम से उस की सफलता की तारीफ करें. प्रोत्साहित करने के लिए स्टिकर, कुकी या छोटी वस्तुओं के माध्यम से उन्हें पुरस्कृत करें. उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने की स्थिति में डांटने से परहेज करें. बच्चे को अगली बार अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करें.

4. तुलना कभी न करें:

अपने बच्चे की क्षमताओं की तुलना दूसरे बच्चों के साथ कभी नहीं करनी चाहिए. सभी बच्चों के मन के भाव अलगअलग होते हैं. बच्चे की उस के साथियों से तुलना से उस में हीनभावना पैदा होती है. तुलना से बच्चे में प्रतिद्वंद्विता की भावना पैदा होती है, जिस के चलते उस में ईर्ष्या हो सकती है और यह बच्चे की सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

5. काम करने के प्रति दृढ़ होना:

बच्चा जब किसी दिए गए काम को पूरा करता है तो उसे अपने भीतर आत्मविश्वास महसूस होता है. उसे प्रोत्साहन मिलता है. उदाहरण के लिए जब विवेक ने अपने जूतों के फीते बांधने की कोशिश तो वह लगातार नाकाम हो रहा था. वह निराश होने लगा. ऐसे में उस के मातापिता

ने उसे कोशिश जारी रखने और हार न मानने का सुझाव दिया कि वह जरूर कामयाब होगा और वह सच में कामयाब रहा. बच्चे को इस तरह के उदाहरण देने की जरूरत होती है, जिन से उसे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिले.

6. शिक्षकों से बात करें:

मातापिता के लिए अपने बच्चे का अपने साथियों और शिक्षकों के प्रति व्यवहार को समझना काफी अहम है, जिस से उन्हें बच्चे के सामाजिक जीवन को समझने में मदद मिले. यह जानना भी जरूरी है कि उन का बच्चा बाहरी वातावरण में कैसा व्यवहार कर रहा है, जैसे यदि वह घर पर अश्वस्त है, तो क्या वह ऐसा स्कूल में भी करने में सक्षम है?

इस से मातापिता को यह समझने में मदद मिलती है कि क्या बच्चे को कुछ सीखने में समस्या आ रही है या उस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. बच्चे के शिक्षकों और दोस्तों से बात करें ताकि उस की दिलचस्पी जानने में मदद मिले.

7. काल्पनिक खेल का इस्तेमाल करें:

काल्पनिक खेलों के माध्यम से बच्चे आसपास के लोगों और वस्तुओं से काल्पनिक हालात तैयार करते हैं और उस में अपनी भूमिका निभाते हैं. ऐसे खेलों से उन्हें बड़ा सोचने में मदद मिलती है और वे जैसा बनना चाहते हैं, जैसी दुनिया चाहते हैं, उस के बारे में पता चलता है. ऐसे खेलों में भाग लेने से मातापिता को बच्चे की कल्पनाओं में झांकने और उन्हें आत्मविश्वासपूर्वक प्रेरित करने का मौका मिलता है.

सब से अहम बात यह है कि बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए संबंधों में भरोसा होना चाहिए. अपने बच्चे से प्यार करें, एक मजबूत संबंध का निर्माण करें और उसे विकसित करें. बच्चे को मालूम होना चाहिए कि जब भी उस का आत्मविश्वास कम होगा, आप उस की मदद करने के लिए मौजूद हैं.

बच्चे के साथ भरोसेमंद और सहज संबंध विकसित करें ताकि जब भी उसे कोई समस्या हो तो वह आप के पास आए. इस से बच्चा आप की बात को सुनेगा और आप की सलाह का सम्मान करेगा. प्रमाण दे कर उसे अपनी राय विकसित करने में मदद करें. उस का आत्मविश्वास और समझ का दायरा बढ़ेगा. इस से उसे अपने साथियों के सामने अपनी बात रखने, उन की बातों को सुनने और दूसरों की राय को सम्मान देने में मदद मिलेगी. उस के लिए विभिन्न लोगों के बीच एक पहचान और आवाज हासिल करने के लिहाज से यह अहम है.

– ऋचा शुक्ला, सीसेम वर्कशौप इंडिया

डाइट के नए फंडे

वजन घटाने और स्लिमट्रिम बने रहने के लिए न सिर्फ महिलाएं बल्कि पुरुष भी इन दिनों तरहतरह के प्रयोग कर रहे हैं. दुनिया भर के पोषण विशेषज्ञ एवं डाइटिशियन इस के लिए तरहतरह के डाइट फौर्मूलों का प्रयोग कर रहे हैं. यहां हम आप को कुछ ऐसी ही डाइट्स के बारे में बता रहे हैं.

अल्कलाइन डाइट

अल्कलाइन डाइट में वेट लौस प्रोग्राम के तहत मुख्य रूप से क्षारीय प्रकृति के भोज्यपदार्थ खाने पर जोर दिया जाता है. इस से बौडी का पीएच बैलेंस 7.35 से 7.45 के बीच बरकरार रखने की कोशिश की जाती है.

फायदे: अल्कलाइन डाइट के पैरोकारों का कहना है कि इस से न सिर्फ वजन घटाने में मदद मिलती है, बल्कि आर्थ्राइटिस, डायबिटीज और कैंसर सरीखी कई बीमारियों में भी राहत मिलती है. इतना ही नहीं यह डाइट ऐजिंग की प्रक्रिया को धीमा रखने में मददगार होती है.

थ्योरी क्या है: अल्कलाइन डाइट के समर्थकों के मुताबिक हमारा रक्त कुछ हद तक क्षारीय प्रकृति का होता है, जिस का पीएच लैवल 7.35 से 7.45 के बीच होता है. हमारी डाइट भी इसी पीएच लैवल को मैंटेन करने वाली होनी चाहिए. अम्ल उत्पादक भोजन जैसे अनाज, मछली, मांस, डेयरी प्रोडक्ट्स आदि खाने से यह संतुलन गड़बड़ा जाता है जिस से जरूरी खनिज जैसे पोटैशियम, मैग्नीशियम, सोडियम आदि का नुकसान हो जाता है. इस असंतुलन से शरीर में बीमारियों का रिस्क बढ़ जाता है और वजन बढ़ने लगता है. इसलिए जरूरी है कि 70% अल्कलाइन फूड खाया जाए और 30% ऐसिड फूड.

सैकंड ओपिनियन: ब्रिटिश डाईटेटिक ऐसोसिएशन के रिक मिलर कहते हैं, ‘‘अल्कलाइन डाइट का सिद्धांत है कि खास भोज्यपदार्थ खाने से शरीर का पीएच बैलेंस मैंटेन रहेगा, लेकिन सही यह है कि शरीर अपना पीएच बैलेंस मैंटेन रखने के लिए डाइट पर निर्भर नहीं है.’’

माना कि अल्कलाइन डाइट से कैल्सियम, किडनी स्टोन, औस्टियोपोरोसिस एवं ऐजिंग की समस्याओं में काफी राहत मिलती है, लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि ऐसिड प्रोड्यूसिंग डाइट क्रोनिक बीमारी की वजह है.

मोनो मील डाइट

इस के तहत सुबह या शाम के भोजन में सिर्फ एक खाद्यसामग्री (वह भी फल या सब्जी) रहती है. हमारे प्रचलित भोजन की तरह इस में दालचावल या रोटीसब्जी का तालमेल नहीं रहता. जब कोई मोनो मील पर अमल कर रहा हो, तो वह लंच में सिर्फ केले और डिनर में सिर्फ गाजर या सेब ही खाएगा, दूसरी कोई भी खाद्यसामग्री नहीं. इस डाइट को कोई हफ्ता भर तो कोई 6 महीने तक भी आजमाता है.

फायदे: इस डाइट को अपनाना बेहद आसान है. इस में किसी प्रकार की कृत्रिम खाद्यसामग्री का इस्तेमाल न होने की वजह से इसे हैल्दी भी माना जाता है. एक ही प्रकार का भोजन और वह भी कुदरती होने की वजह से शरीर की पाचन प्रणाली को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती.

नुकसान: भोजन में महीने भर से ज्यादा समय तक सिर्फ एक फल या सब्जी पर निर्भर रहना सेहत पर प्रतिकूल असर डाल सकता है. इस से शरीर में ऊर्जा का स्तर भी गिरने लगता है.

ग्लूटेन फ्री डाइट

डाइट की दुनिया में इन दिनों एक ताजा ट्रैंड आया है- ग्लूटेन फ्री डाइट का. इस के पक्षधर अपनी थाली से गेहूं से बने उत्पाद दूर रखते हैं. उन के मुताबिक गेहूंरहित भोजन उन्हें कई बीमारियां से बचाने के साथसाथ उन का ऐनर्जी लैवल भी इंपू्रव करता है.

ग्लूटेन फ्री डाइट के पैरोकारों का मानना है कि ग्लूटेन पोषक तत्त्वों के शरीर में अवशोषण की प्रक्रिया में बाधक होता है. आजकल कई लोग सैलिएक डिजीज से परेशान हैं. यह ग्लूटेन की वजह से होने वाला औटोइम्यून डिसऔर्डर है, जिस की वजह से डायरिया, वजन घटने और औस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

जेन डाइट

वेट मैनेजमैंट और गुड हैल्थ के लिए आप ने कई तरह की डाइट्स का नाम सुना होगा, लेकिन जापानी सिद्धांत काइजेन पर आधारित जेन डाइट के बारे में नहीं जानते होंगे. काइजेन का अर्थ है, इंप्रूवमैंट. यह वेट लौस प्लान लाइफस्टाइल की लौंग टर्म ओवरहौलिंग है, जिस में आप अपना भोजन बहुत समझदारी से चुनते और खाते हैं.

अपनी खानपान की आदतों में महत्त्वपूर्ण और स्थायी बदलाव ला कर जैसे, चीनी, प्रोसैस्ड फूड और तैलीय भोजन के त्याग या न्यूनतम सेवन से आप न सिर्फ अपना वजन घटाने में कामयाब हो सकते हैं, बल्कि स्वस्थ जीवन की नीव भी डाल सकते हैं.

शरीर का आदर करें: जेन डाइट में धीरेधीरे अपने भोजन को आनंदपूर्वक खाने की सलाह दी जाती है. आप को प्रेरित किया जाता है कि आप क्या खा रहे हैं उसे देखें, अच्छी नींद लें और आराम भी करें.

धीमी मगर प्रभावशाली: अपनी हैल्थ इंपू्रव करने की चाहत रखने वालों के लिए यह डाइट काफी प्रभावशाली है. इसे अपनाने से वेट लौस स्थायी होता है, लेकिन इस की गति धीमी होती है.

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