Hindi Fiction Stories: मैं हूं न – ननद की भाभी ने कैसे की मदद

Hindi Fiction Stories : लड़के वाले मेरी ननद को देख कर जा चुके थे. उन के चेहरों से हमेशा की तरह नकारात्मक प्रतिक्रिया ही देखने को मिली थी. कोई कमी नहीं थी उन में. पढ़ी लिखी, कमाऊ, अच्छी कदकाठी की. नैननक्श भी अच्छे ही कहे जाएंगे. रंग ही तो सांवला है. नकारात्मक उत्तर मिलने पर सब यही सोच कर संतोष कर लेते कि जब कुदरत चाहेगी तभी रिश्ता तय होगा. लेकिन दीदी बेचारी बुझ सी जाती थीं. उम्र भी तो कोई चीज होती है.

‘इस मई को दीदी पूरी 30 की हो चुकी हैं. ज्योंज्यों उम्र बढ़ेगी त्योंत्यों रिश्ता मिलना और कठिन हो जाएगा,’ सोचसोच कर मेरे सासससुर को रातरात भर नींद नहीं आती थी. लेकिन जिसतिस से भी तो संबंध नहीं जोड़ा जा सकता न. कम से कम मानसिक स्तर तो मिलना ही चाहिए. एक सांवले रंग के कारण उसे विवाह कर के कुएं में तो नहीं धकेल सकते, सोच कर सासससुर अपने मन को समझाते रहते.

मेरे पति रवि, दीदी से साल भर छोटे थे. लेकिन जब दीदी का रिश्ता किसी तरह भी होने में नहीं आ रहा था, तो मेरे सासससुर को बेटे रवि का विवाह करना पड़ा. था भी तो हमारा प्रेमविवाह. मेरे परिवार वाले भी मेरे विवाह को ले कर अपनेआप को असुरक्षित महसूस कर रहे थे. उन्होंने भी जोर दिया तो उन्हें मानना पड़ा. आखिर कब तक इंतजार करते.

मेरे पति रवि अपनी दीदी को बहुत प्यार करते थे. आखिर क्यों नहीं करते, थीं भी तो बहुत अच्छी, पढ़ीलिखी और इतनी ऊंची पोस्ट पर कि घर में सभी उन का बहुत सम्मान करते थे. रवि ने मुझे विवाह के तुरंत बाद ही समझा दिया था उन्हें कभी यह महसूस न होने दूं कि वे इस घर पर बोझ हैं. उन के सम्मान को कभी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए, इसलिए कोई भी निर्णय लेते समय सब से पहले उन से सलाह ली जाती थी. वे भी हमारा बहुत खयाल रखती थीं. मैं अपनी मां की इकलौती बेटी थी, इसलिए उन को पा कर मुझे लगा जैसे मुझे बड़ी बहन मिल गई हैं.

एक बार रवि औफिस टूअर पर गए थे. रात काफी हो चुकी थी. सासससुर भी गहरी नींद में सो गए थे. लेकिन दीदी अभी औफिस से नहीं लौटी थीं. चिंता के कारण मुझे नींद नहीं आ रही थी. तभी कार के हौर्न की आवाज सुनाई दी. मैं ने खिड़की से झांक कर देखा, दीदी कार से उतर रही थीं. उन की बगल में कोई पुरुष बैठा था. कुछ अजीब सा लगा कि हमेशा तो औफिस की कैब उन्हें छोड़ने आती थी, आज कैब के स्थान पर कार में उन्हें कौन छोड़ने आया है.

मुझे जागता देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘सोई नहीं अभी तक?’’

‘‘आप का इंतजार कर रही थी. आप के घर लौटने से पहले मुझे नींद कैसे आ सकती है, मेरी अच्छी दीदी?’’ मैं ने उन के गले में बांहें डालते हुए उन के चेहरे पर खोजी नजर डालते हुए कहा, ‘‘आप के लिए खाना लगा दूं?’’

‘‘नहीं, आज औफिस में ही खा लिया था. अब तू जा कर सो.’’

‘‘गुड नाइट दीदी,’’ मैं ने कहा और सोने चली गई. लेकिन आंखों में नींद कहां?

दिमाग में विचार आने लगे कि कोई तो बात है. पिछले कुछ दिनों से दीदी कुछ परेशान और खोईखोई सी रहती हैं. औफिस की समस्या होती तो वे घर में अवश्य बतातीं. कुछ तो ऐसा है, जो अपने भाई, जो भाई कम और मित्र अधिक है से साझा नहीं करती और आज इतनी रात को देर से आना, वह भी किसी पुरुष के साथ, जरूर कुछ दाल में काला है. इसी पुरुष से विवाह करना चाहतीं तो पूरा परिवार जान कर बहुत खुश होता. सब उन के सुख के लिए, उन की पसंद के किसी भी पुरुष को स्वीकार करने में तनिक भी देर नहीं लगाएंगे, इतना तो मैं अपने विवाह के बाद जान गई हूं. लेकिन बात कुछ और ही है जिसे वे बता नहीं रही हैं, लेकिन मैं इस की तह में जा कर ही रहूंगी, मैं ने मन ही मन तय किया और फिर गहरी नींद की गोद में चली गई.

सुबह 6 बजे आंख खुली तो देखा दीदी औफिस के लिए तैयार हो रही थीं. मैं ने कहा, ‘‘क्या बात है दीदी, आज जल्दी…’’

मेरी बात पूरी होने हो पहले से वे बोलीं,  ‘‘हां, आज जरूरी मीटिंग है, इसलिए जल्दी जाना है. नाश्ता भी औफिस में कर लूंगी…देर हो रही है बाय…’’

मेरे कुछ बोलने से पहले ही वे तीर की तरह घर से निकल गईं. बाहर जा कर देखा वही गाड़ी थी. इस से पहले कि ड्राइवर को पहचानूं वह फुर्र से निकल गईं. अब तो मुझे पक्का यकीन हो गया कि अवश्य दीदी किसी गलत पुरुष के चंगुल में फंस गई हैं. हो न हो वह विवाहित है. मुझे कुछ जल्दी करना होगा, लेकिन घर में बिना किसी को बताए, वरना वे अपने को बहुत अपमानित महसूस करेंगी.

रात को वही व्यक्ति दीदी को छोड़ने आया. आज उस की शक्ल की थोड़ी सी झलक

देखने को मिली थी, क्योंकि मैं पहले से ही घात लगाए बैठी थी. सासससुर ने जब देर से आने का कारण पूछा तो बिना रुके अपने कमरे की ओर जाते हुए थके स्वर में बोलीं, ‘‘औफिस में मीटिंग थी, थक गई हूं, सोने जा रही हूं.’’

‘‘आजकल क्या हो गया है इस लड़की को, बिना खाए सो जाती है. छोड़ दे ऐसी नौकरी, हमें नहीं चाहिए. न खाने का ठिकाना न सोने का,’’ मां बड़बड़ाने लगीं, तो मैं ने उन्हें शांत कराया कि चिंता न करें. मैं उन का खाना उन के कमरे में पहुंचा दूंगी. वे निश्चिंत हो कर सो जाएं.

मैं खाना ले कर उन के कमरे में गई तो देखा वे फोन पर किसी से बातें कर रही थीं. मुझे देखते ही फोन काट दिया. मेरे अनुरोध करने पर उन्होंने थोड़ा सा खाया. खाना खाते हुए मैं ने पाया कि पहले के विपरीत वे अपनी आंखें चुराते हुए खाने को जैसे निगल रही थीं. कुछ भी पूछना उचित नहीं लगा. उन के बरतन उन के लाख मना करने पर भी उठा कर लौट आई.

2 दिन बाद रवि लौटने वाले थे. मैं अपनी सास से शौपिंग का बहाना कर के घर से सीधी दीदी के औफिस पहुंच गई. मुझे अचानक आया देख कर एक बार तो वे घबरा गईं कि ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि मुझे औफिस आना पड़ा.

मैं ने उन के चेहरे के भाव भांपते हुए कहा, ‘‘अरे दीदी, कोई खास बात नहीं. यहां मैं कुछ काम से आई थी. सोचा आप से मिलती चलूं. आजकल आप घर देर से आती हैं, इसलिए आप से मिलना ही कहां हो पाता है…चलो न दीदी आज औफिस से छुट्टि ले लो. घर चलते हैं.’’

‘‘नहीं बहुत काम है, बौस छुट्टी नहीं देगा…’’

‘‘पूछ कर तो देखो, शायद मिल जाए.’’

‘‘अच्छा कोशिश करती हूं,’’ कह उन्होंने जबरदस्ती मुसकराने की कोशिश की. फिर बौस के कमरे में चली गईं.

बौस के औफिस से निकलीं तो वह भी उन के साथ था, ‘‘अरे यह तो वही आदमी

है, जो दीदी को छोड़ने आता है,’’ मेरे मुंह से बेसाख्ता निकला. मैं ने चारों ओर नजर डाली. अच्छा हुआ आसपास कोई नहीं था. दीदी को इजाजत मिल गई थी. उन का बौस उन्हें बाहर तक छोड़ने आया. इस का मुझे कोई औचित्य नहीं लगा. मैं ने उन को कुरेदने के लिए कहा, ‘‘वाह दीदी, बड़ी शान है आप की. आप का बौस आप को बाहर तक छोड़ने आया. औफिस के सभी लोगों को आप से ईर्ष्या होती होगी.’’

दीदी फीकी सी हंसी हंस दीं, कुछ बोलीं नहीं. सास भी दीदी को जल्दी आया देख कर बहुत खुश हुईं.

रात को सभी गहरी नींद सो रहे थे कि अचानक दीदी के कमरे से उलटियां करने की आवाजें आने लगीं. मैं उन के कमरे की तरफ लपकी. वे कुरसी पर निढाल पड़ी थीं. मैं ने उन के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘क्या बात है दीदी? ऐसा तो हम ने कुछ खाया नहीं कि आप को नुकसान करे फिर बदहजमी कैसे हो गई आप को?’’

फिर अचानक मेरा माथा ठकना कि कहीं दीदी…मैं ने उन के दोनों कंधे हिलाते हुए कहा, ‘‘दीदी कहीं आप का बौस… सच बताओ दीदी…इसीलिए आप इतनी सुस्त…बताओ न दीदी, मुझ से कुछ मत छिपाइए. मैं किसी को नहीं बताऊंगी. मेरा विश्वास करो.’’

मेरा प्यार भरा स्पर्श पा कर और सांत्वना भरे शब्द सुन कर वे मुझ से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगीं और सकारात्मकता में सिर हिलाने लगीं. मैं सकते में आ गई कि कहीं ऐसी स्थिति न हो गई हो कि अबौर्शन भी न करवाया जा सके. मैं ने कहा, ‘‘दीदी, आप बिलकुल न घबराएं, मैं आप की पूरी मदद करूंगी. बस आप सारी बात मुझे सुना दीजिए…जरूर उस ने आप को धोखा दिया है.’’

दीदी ने धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘ये बौस नए नए ट्रांसफर हो कर मेरे औफिस में आए थे. आते ही उन्होंने मेरे में रुचि लेनी शुरू कर दी और एक दिन बोले कि उन की पत्नी की मृत्यु 2 साल पहले ही हुई है. घर उन को खाने को दौड़ता है, अकेलेपन से घबरा गए हैं, क्या मैं उन के जीवन के खालीपन को भरना चाहूंगी? मैं ने सोचा शादी तो मुझे करनी ही है, इसलिए मैं ने उन के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी. मैं ने उन से कहा कि वे मेरे मम्मी पापा से मिल लें. उन्होंने कहा कि ठीक हूं, वे जल्दी घर आएंगे. मैं बहुत खुश थी कि चलो मेरी शादी को ले कर घर में सब बहुत परेशान हैं, सब उन से मिल कर बहुत खुश होंगे. एक दिन उन्होंने मुझे अपने घर पर आमंत्रित किया कि शादी से पहले मैं उन का घर तो देख लूं, जिस में मुझे भविष्य में रहना है. मैं उन की बातों में आ गई और उन के साथ उन के घर चली

गई. वहां उन के चेहरे से उन का बनावटी मुखौटा उतर गया. उन्होंने मेरे साथ बलात्कार किया और धमकी दी कि यदि मैं ने किसी को बताया तो उन के कैमरे में मेरे ऐसे फोटो हैं, जिन्हें देख कर मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी. होश में आने के बाद जब मैं ने पूरे कमरे में नजर दौड़ाई तो मुझे पल भर की भी देर यह समझने में न लगी कि वह शादीशुदा है. उस समय उस की पत्नी कहीं गई होगी. मैं क्या करती, बदनामी के डर से मुंह बंद कर रखा था. मैं लुट गई, अब क्या करूं?’’ कह कर फिर फूटफूट कर रोने लगीं.

तब मैं ने उन को अपने से लिपटाते हुए कहा, ‘‘आप चिंता न करें दीदी. अब देखती हूं वह कैसे आप को ब्लैकमेल करता है. सब से पहले मेरी फ्रैंड डाक्टर के पास जा कर अबौर्शन की बात करते हैं. उस के बाद आप के बौस से निबटेंगे. आप की तो कोई गलती ही नहीं है.

आप डर रही थीं, इसी का फायदा तो वह उठा रहा था. अब आप निश्चिंत हो कर सो जाइए. मैं हूं न. आज मैं आप के कमरे में ही सोती हूं,’’ और फिर मैं ने मन ही मन सोचा कि अच्छा है, पति बाहर गए हैं और सासससुर का कमरा

दूर होने के कारण आवाज से उन की नींद नहीं खुली. थोड़ी ही देर में दोनों को गहरी नींद ने आ घेरा.

अगले दिन दोनों ननदभाभी किसी फ्रैंड के घर जाने का बहाना कर के डाक्टर

के पास जाने के लिए निकलीं. डाक्टर चैकअप कर बोलीं, ‘‘यदि 1 हफ्ता और निकल जाता तो अबौर्शन करवाना खतरनाक हो जाता. आप सही समय पर आ गई हैं.’’

मैं ने भावातिरेक में अपनी डाक्टर फ्रैंड को गले से लगा लिया.

वे बोलीं, ‘‘सरिता, तुम्हें पता है ऐसे कई केस रोज मेरे पास आते हैं. भोलीभाली लड़कियों को ये दरिंदे अपने जाल में फंसा लेते हैं और वे बदनामी के डर से सब सहती रहती हैं. लेकिन तुम तो स्कूल के जमाने से ही बड़ी हिम्मत वाली रही हो. याद है वह अमित जिस ने तुम्हें तंग करने की कोशिश की थी. तब तुम ने प्रिंसिपल से शिकायत कर के उसे स्कूल से निकलवा कर ही दम लिया था.’’

‘‘अरे विनीता, तुझे अभी तक याद है. सच, वे भी क्या दिन थे,’’ और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

पारुल के चेहरे पर भी आज बहुत दिनों बाद मुसकराहट दिखाई दी थी. अबौर्शन हो गया.

घर आ कर मैं अपनी सास से बोली, ‘‘दीदी को फ्रैंड के घर में चक्कर आ गया था, इसलिए डाक्टर के पास हो कर आई हैं. उन्होंने बताया

है कि खून की कमी है, खाने का ध्यान रखें और 1 हफ्ते की बैडरैस्ट लें. चिंता की कोई बात नहीं है.’’

सास ने दुखी मन से कहा, ‘‘मैं तो कब से कह रही हूं, खाने का ध्यान रखा करो, लेकिन मेरी कोई सुने तब न.’’

1 हफ्ते में ही दीदी भलीचंगी हो गईं. उन्होंने मुझे गले लगाते हुए कहा, ‘‘तुम कितनी अच्छी हो भाभी. मुझे मुसीबत से छुटकारा दिला दिया. तुम ने मां से भी बढ़ कर मेरा ध्यान रखा. मुझे तुम पर बहुत गर्व है…ऐसी भाभी सब को मिले.’’

‘‘अरे दीदी, पिक्चर अभी बाकी है. अभी तो उस दरिंदे से निबटना है.’’

1 हफ्ते बाद हम योजनानुसार बौस की पत्नी से मिलने के लिए गए. उन को उन के पति का सारा कच्चाचिट्ठा बयान किया, तो वे हैरान होते हुए बोलीं, ‘‘इन्होंने यहां भी नाटक शुरू कर दिया…लखनऊ से तो किसी तरह ट्रांसफर करवा कर यहां आए हैं कि शायद शहर बदलने से ये कुछ सुधर जाएं, लेकिन कोई…’’ कहते हुए वे रोआंसी हो गईं.

हम उन की बात सुन कर अवाक रह गए. सोचने लगे कि इस से पहले न जाने

कितनी लड़कियों को उस ने बरबाद किया होगा. उस की पत्नी ने फिर कहना शुरू

किया, ‘‘अब मैं इन्हें माफ नहीं करूंगी. सजा दिलवा कर ही रहूंगी. चलो पुलिस

स्टेशन चलते हैं. इन को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप जैसी पत्नियां हों तो अपराध को बढ़ावा मिले ही नहीं. हमें आप पर गर्व है,’’ और फिर हम दोनों ननदभाभी उस की पत्नी के साथ पुलिस को ले कर बौस के पास उन के औफिस पहुंच गए.

पुलिस को और हम सब को देख कर वह हक्काबक्का रह गया. औफिस के सहकर्मी भी सकते में आ गए. उन में से एक लड़की भी आ कर हमारे साथ खड़ी हो गई. उस ने भी कहा कि उन्होंने उस के साथ भी दुर्व्यवहार किया है. पुलिस ने उन्हें अरैस्ट कर लिया. दीदी भावातिरेक में मेरे गले लग कर सिसकने लगीं. उन के आंसुओं ने सब कुछ कह डाला.

घर आ कर मैं ने सासससुर को कुछ नहीं बताया. पति से भी अबौर्शन वाली बात तो छिपा ली, मगर यह बता दिया कि वह दीदी को बहुत परेशान करता था.

सुनते ही उन्होंने मेरा माथा चूम लिया और बोले, ‘‘वाह, मुझे तुम पर गर्व है. तुम ने मेरी बहन को किसी के चंगुल में फंसने से बचा लिया. बीवी हो तो ऐसी.,’’

उन की बात सुन कर हम ननदभाभी दोनों एकदूसरे को देख मुसकरा दीं. Hindi Fiction Stories

Smoking Kills: हर फ्रिक को धुएं में उड़ाती चली गई…महिलाओं में लंग कैसर मर्दों से ज्यादा

Smoking Kills : पुरुषों की स्मोकिंग नाम की बुराई और नुकसानदेह लत की नकल कर बराबरी का सपना देख रही महिलाएं दरअसल में उनसे और नीचे चली जाती हैं. सवाल कतई धर्म द्वारा उनकी गढ़ी गई परम्परागत इमेज का नहीं बल्कि उस इमेज का ज्यादा है जो खुद उन्होंने बाते 7 दशकों में गढ़ी है. यह इमेज है कामयाबी की शिक्षा और नौकरी की और उससे भी ज्यादा तमाम दबावों से उबरते मुख्यधारा में अपनी जगह बना लेने की.

किसी पब्लिक प्लेस पर या फिर कहीं भी बेफिक्री से सिगरेट का धुआं उड़ाती मौडर्न युवती को देखकर पुरुषों के मन में जो जो ख्याल आते हैं उनकी गिनती एक से आगे नहीं बढ़ती यह इकलौता ख्याल यह होता है कि अच्छा… औरत होकर हम मर्दों की बराबरी करने की कोशिश कर रही है… देखते हैं कैसे मिलती है यह और इसे देता कौन है. यह पुरुषोचित अहम है जो बराबरी के दर्जे के ख्याल और सवाल से अब चिढ़ने, जलने और भुनने के साथ साथ खौफ भी खाने लगा है.

खौफ इसलिए कि वाकई महिलाओं ने खुद को साबित कर दिखाया है. शिक्षा में, कैरियर में घर से लेकर अंतरिक्ष तक में और राजनीति में भी, कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जहां महिला पुरुष के लिए चुनौती बनकर न उभरी हो सिवाय धर्म के जो यह कहता रहा है कि औरत पांव की जूती दासी और शूद्र समान है. दिक्कत तो यह है कि पुरुषों और कुछ महिलाओं ने भी इस बकवास को इतना आत्मसात कर लिया है कि दोनों इसके आगे कुछ सोचना ही नहीं चाहते.

कहीं भी देख लें खासतौर से स्मोकिंग एरिया में युवतियां सिगरेट पीती दिख जाएंगी. मुंह से धुआं उड़ाते वक्त उनके चेहरे पर विकट का आत्मविश्वास दिखेगा जबकि पुरुष देखना चाहता है गिल्ट, डर और लिहाज जो नहीं दिखता तो वह खीझ उठता है और खुद को तसल्ली यह सोचते दे लेता है कि कभी 70 – 80 के दशक में मर्दों सरीखे कपडे पहनकर भी इन्होंने बराबरी का ख्बाव देखा था.

इसके बाद ड्राइविंग करते वक्त भी, ओलम्पिक में मैडल हासिल करते वक्त भी और कम्पनियों से लेकर देश के ऊंचे ऊंचे ओहदों की जिम्मेदारी संभालते भी इन्हें यह खुशफहमी हो आई थी कि बस अब हमने पुरुषों की न केवल बराबरी कर ली बल्कि उन्हें पछाड़ भी दिया.

यह गलतफहमी जल्द दूर हो जाती है जब उन्हें यह समझ आता है कि एक दफा पुरुषों की बराबरी तो की जा सकती है लेकिन उसका सर्टिफिकेट हासिल नहीं किया जा सकता. सिगरेट के धुएं के छल्ले बनाना भी ऐसा ही काम है. लेकिन दरअसल में बात या मुद्दा बराबरी का नहीं बल्कि चिंता का ज्यादा है. जिस तेजी से युवतियां स्मोकिंग की तरफ आकर्षित हो रही हैं उससे उनके स्त्रीत्व पर फर्क पड़े न पड़े पर मातृत्व पर जरूर पड़ता है.

स्मोकिंग की तरफ लत की हद तक झुकाव सिर्फ पुरुषों के बराबर दिखना है या इसकी कुछ और वजहें भी हैं मसलन कार्पोरेट के इस दौर में काम का दबाब, फेशनेबुल व स्टाइलिश दिखने की चाहत और स्ट्रेस से राहत, पीजी और होस्टल्स में रह रही छात्राओं को पढ़ाई का टेंशन, घर और दफ्तर की परेशानियां वगैरह सब कुछ इस मानसिकता में काउंट होता है.

भोपाल के एक दैनिक में कार्यरत एक पत्रकार की मानें तो अहम वजह तो पुरुषों के बराबर दिखना ही है क्योंकि स्मोकिंग को मर्दानगी का दर्जा मिला हुआ है. महिलाओं के लिए यह वर्जित ही है और वर्जनाएं तोड़कर ही पुरुषों को चुनौती दी जा सकती है फिर यह एब है या टेलेंट यह देखा जाना जरुरी नहीं.

दुनिया हमें सिगरेट पीते हुए देखते क्या सोचती है या क्या राय हमारे बारे में कायम करती है हम इस झंझट में नहीं पड़तीं क्योंकि हम कुछ भी हासिल कर लें हमे वास्तविक रूप से एप्रिशिएट दुनिया नहीं करती. यह पुरुषों का पूर्वाग्रह है हमारा नहीं. इन पत्रकार महोदया के मुताबिक सेहत से ताल्लुक रखते खतरे हैं लेकिन वे भी बराबरी से हैं और ये खतरे हैं क्या … हमें डर दिखाया जाता है कि स्मोकिंग से प्रिगनेंसी में दिक्कत पेश आएगी, अबार्शन हो सकता है, टीबी हो सकता है, कैंसर हो सकता है वगैरह. लेकिन हकीकत यह है कि हमसे हमेशा बहन जी छाप इमेज की उम्मीद की जाती है जो हमे गवारा नहीं.

तो क्या सिगरेट पीने से यह इमेज ध्वस्त हो जाती है या पुरुषों को तो छोडिए खुद महिलाएं भी इससे सहमत हैं. इस सवाल का जवाव भले ही एक खास अंदाज में कंधे उचकते वी डोंट केयर की स्टाइल में मिले लेकिन जब यही सवाल मध्यप्रदेश के गृहशोभा के व्हाट्स एप ग्रुप में शामिल महिलाओं से किया गया तो उन्होंने असहमति ही जताई उलटे कुछ ने तो सनातनी मानसिकता वाली बातें और उपदेश भी दिए मसलन नारी जननी है, संस्कृति की ध्वजवाहक है और यह आदत औरत की धार्मिक और परंपरागत इमेज से मेल खाती नहीं.

इनमें से कुछ चुनिंदा जवाब प्रकाशित किए जा रहे हैं लेकिन कुछ महिलाओं के इन तर्कों जो दुराज्ञान की देन हैं से सहमत नहीं हुआ जा सकता कि महिलाओं को सिर्फ इसलिए सिगरेट नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे उसकी स्त्रीवादी इमेज और साख पर बट्टा लगता है.

सपना साहू `स्वप्निल इंदौर की सपना साहू `स्वप्निल  का कहना है कि सिगरेट पीना कभी भी सफलता का सूचक नहीं हो सकता नारी समानता का अर्थ स्वास्थ को नुकसान पहुंचाने वाली आदते अपनाना नहीं बल्कि स्त्रियों के लिए अवसरों की समानता सम्मान और अधिकारों की बराबरी से है . महिलाओं का सिगरेट पीना सामाजिक स्तर में गिरावट व पश्चिमी संस्कृति का अन्धानुकरण है जो उन्हें पुरुषों के बराबर खड़ा नहीं कर सकता.

यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं कि इस वर्ग या मानसिकता की महिलाओं ने बिना किसी हिचक या झिझक के यह मान लिया है कि औरत गुलाम है और मर्द उसका मालिक है. महिलाओं के इस वर्ग का प्रहार सिगरेट पर कम औरतों की आजादी पर ज्यादा है क्योंकि सिर्फ धर्म ही यह निर्देश देता रहता है कि धार्मिक आयोजनों में कलश ढो, बाबाजी के दरबारों में जाओ, सत्संगों में शिरकत करो और इफरात से व्रत उपवास करो यही नारी जीवन की सार्थकता है.

यहां मकसद धूम्रपान को बढ़ावा या प्रोत्साहन देना कतई नहीं है. दिल्ली प्रेस पत्रिकाओं का तो दशकों पुराना प्रयास या अभियान कुछ भी कह लें इसे हर स्तर पर हतोत्साहित करने का रहा है जो आज भी जारी है. इसलिए इन पत्रिकाओं में कभी तंबाकू, सिगरेट, पानगुटखा और शराब वगैरह के विज्ञापन प्रकाशित न कर करोड़ों के रेवन्यू को ठोकर मार एक मिसाल कायम की है जिसकी तारीफ पत्रिकाओं की विचारधारा के विरोधी भी न केवल करते हैं बल्कि लोहा भी मानते हैं.

स्त्रीपुरुष बराबरी के पैमाने क्या हों इस पर सटीक बहस की तमाम गुंजाइशें मौजूद है. स्मोकिंग तो किसी के लिए भी लाभप्रद नहीं उलटे इसके नुकसानों से हर कोई वाकिफ है. वे युवतियां भी जिन्होंने सिगरेट पीने को आधुनिकता और बराबरी का पैमाना मान लिया है. चिंता की नई बात स्मोकिंग करने वाली महिलाओं की बढ़ती तादाद है. इंदौर की किंशुल्क श्रीवास्तव कहती हैं कि मेरे हिसाब से तो महिला और पुरुष की बराबरी नहीं हो सकती दोनों की अपनी अलग अलग जिम्मेदारियां हैं एक महिला का ओहदा हमेशा पुरुष से ऊंचा ही है सिगरेट पीने से बराबरी की बात बिलकुल ही गलत है आज की जनरेशन में लड़कियां कह रही हैं कि जब लड़के पी रहे हैं तो हम क्यों नहीं पी सकते वजह कोई भी हो कूल दिखने की या स्टाइलिश दिखने की बराबरी के लिए यह बिलकुल भी जायज नहीं है .

महिलाओं के सिगरेट पीने का रोग और उसका विरोध दोनों अमेरिका से शुरू हुए थे. 1960 के दशक में वहां महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर पाए जाने लगे थे जो स्तन कैंसर से ज्यादा थे. तब अमेरिका की एक तिहाई महिलाएं सिगरेट का सेवन करती थीं.

1986 की एक रिपोर्ट से यह साबित हुआ था कि महिलाओं में फेफड़ों का कैंसर पुरुषों से ज्यादा होने लगा है तो अमेरिका में महिलाओं के धुम्रपान का विरोध भी हुआ था लेकिन यह एक ऐसी लत है जिसके बारे में यही कहा जा सकता है कि लागी छूटे न . अमेरिका के कुछ राज्यों में महिलाओं की स्मोकिंग की लत पर काबू करने कानून भी बने थे लेकिन ये भी बेअसर साबित हुए थे . तब झल्लाकर 1979 में तत्कालीन स्वास्थ मंत्री ए  कैलीफानो जूनियर ने महिलाओं को दुर्वासा की तरह श्राप सा देते कहा था कि जो महिलाएं पुरुषों की तरह स्मोकिंग करती हैं , वे स्मोकिंग करने वाले पुरुषों की तरह ही मरती हैं .

भारत में यह चलन 1930 के लगभग सामने आने लगा थे जो अब भीषण होता जा रहा है .   विश्व स्वास्थ संगठन की 2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 15 साल से ज्यादा उम्र के कोई 25.3 करोड़ लोग किसी न किसी तम्बाकू का सेवन करते हैं इनमे महिलाओं की संख्या 5.3 करोड़ है.

भोपाल की मंजू गुप्ता का मानना है कि महिलाओं और पुरुषों में किसी भी पैमाने पर बराबरी का कोई हिसाब नहीं है. नैतिक मूल्य और सामाजिक व  पारिवारिक स्तर पर पुरुष कभी महिलाओं की बराबरी नहीं कर सकते आजकल शराब व स्मोकिंग जैसी आदतों को महिलाएं अपना शौक बना रहीं हैं तो यह सिर्फ पश्चिमी सभ्यता को अपनाने की होड़ है और स्वतंत्रता और आधुनिकता का घिनोना रूप है. भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता में नारी के लिए इन बुरी आदतों का कोई स्थान मान्य नहीं है.

एक संस्था सूपनूप की 2023 की एक रिपोर्ट की माने तो भारत में 13 फीसदी महिलाएं सिगरेट पीती हैं. स्वास्थ मंत्रालय की इंडिया टोबेको कंट्रोल रिपोर्ट नाम की 2024 की एक रिपोर्ट बताती है कि टीनएज लड़कियों में सिगरेट पीने की दर 2019 में 6.2 फीसदी तक हो गई थी जो कि 2009 में 2.4 फीसदी थी. अब यह और बढ़ी होगी ऐसा न कहने की कोई वजह नहीं.

भोपाल के ही 6 नवंबर स्थित हाकर्स कार्नर पर खुलेआम सिगरेट पीती एक नामी इंजीनियरिंग कालेज की कुछ छात्राओं से इस प्रतिनिधि ने जब चर्चा की तो उन्होंने बताया शुरशुरू में दुकान या गुमटी से सिगरेट खरीदने में हिचक होती थी. तब साथ पढ़ रहे लड़के लाकर देते थे लेकिन अब डर खत्म हो जाने के चलते हम खुद खरीद लेती हैं. इन 4 छात्राओं में से 3 भोपाल के बाहर की थीं और एमपी नगर के एक गर्ल्स होस्टल में रहती हैं .

इनमे से एक के मुताबिक सिगरेट पीने से रिलेक्स लगता है और लगातार पढ़ाई में मन लगा रहता है . हम लोग होस्टल में भी सिगरेट पीती हैं, इसमें कोई हर्ज महसूस नहीं होता. जब लडके पी सकते तो हम क्यों नहीं पी सकते .

इस बातचीत में दिलचस्प बात यह हकीकत उजागर होना रही कि लड़कियों को सिगरेट की लत लगाने में लड़कों का रोल अहम रहता है और घर से बाहर रहकर पढ़ रही लड़कियां और नौकरी कर रही युवतियां इस लत की ज्यादा शिकार होती हैं क्योंकि उन पर कोई बंदिश नहीं रह जाती. इंदौर की डॉ ज्योति गुप्ता का विचार है कि मैं मानती हूं कि स्त्री पुरुष की बराबरी नहीं हो सकती. सिगरेट या शराब पीने से क्या हासिल होता है बराबरी करने की होड़ में स्त्री ने अपनी नारी सुलभ कोमलता ही खो दी है. विडंवना यह है कि नारी खुद को सम्पूर्ण बनाने के लिए पुरुषोचित गुण भी ले रही है जो अनुचित है. समाज ने सुदृढ़ परिवार के लिए मापदंड बनाये हैं उसमे नारी और पुरुष के अलग अलग कार्य निर्धारित किये हैं उन पर अमल होना चाहिए.

मेट्रो सिटीज में मुमकिन है नये दौर के कपल्स भी लंच और डिनर की तरह सिगरेट भी साथ बैठकर पीते हों क्योंकि इनकी वीकैंड पार्टियों में शराब बेहद आम होती है और शराब और सिगरेट का साथ चोली दामन सरीखा होता है. इस अनुमान की पुष्टि करते मूलतय धनबाद के रहने वाले बेंगलुरु में जॉब कर रहे एक 32 वर्षीय साफ्टवेयर इंजीनियर सुबोध सिन्हा ( बदला नाम ) ने टेलीफोन पर बातचीत के दौरान बताया, हां यह वाकई बेहद आम बात हो चली है कि पति पत्नी और लिव इन में रहने वाले सिगरेट पीते हैं और यह भी सच है कि लड़कियों को यह आदत आमतौर पर लड़कों के जरिये ही लगती है.

हालांकि स्मोकिंग की आदी हो चुकी युवतियां भी इसकी जिम्मेदार हैं. युवकों को ऐसी बिंदास माडर्न लड़कियां ज्यादा पसंद आती हैं जो इसमें भी उनका साथ दे सकें. महिलाओं में स्मोकिंग को लेकर इंदौर की डॉ. पूजा महेश्वरी का मानना है कि सिगरेट पीना हो या एल्कोहल का सेवन हो यह सब करने से महिलाएं खुद को कमजोर ही साबित करती हैं दरअसल में वे पुरुषों से ज्यादा सहनशील होती हैं. असल में महिलाएं पुरुषों से एक कदम आगे ही हैं वे एक साथ पांच काम कर सकती हैं जबकि पुरुष दो काम भी एकसाथ नहीं कर सकते. सिगरेट वगैरह से महिलाओं की सहनशक्ति कम हो रही है उन्हें इससे बचना चाहिए.

अब सोशल मीडिया पर बिखरा कचरा और गंद भी महिलाओं को सिगरेट पीने उकसा रहा है जिसमें सिगरेट निर्माताओं की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता. बिना किसी सार्वजनिक प्रचार के यह धारणा स्थापित हो गई कि महिलाओं के ब्रांड थोडा अलग होते हैं. इनकी सिगरेटें स्लिम और खुशबूदार होती हैं जिनका फिल्टर भी तगड़ा होता है.

मसलन वर्जिनिया स्लिम्स, डनहिल फाइन कट , मेन्थाल मिस्ट बगैरह यह प्रचार ठीक वैसा ही था जैसे 70 के दशक में हुआ करता था कि असली मर्दों के सिगरेट ब्रांड्स कैमल, केवेंडर, पनामा और चारमीनार हैं . फिर दौर शुरू हुआ बिल्स ब्रिस्टल वगैरह का जो अब शबाब पर है .

इसके पहले टीवी धारावाहिकों ने भी यह साबित करने की कोशिश की थी कि सिगरेट पीती महिला ज्यादा आकर्षक और स्मार्ट होती है. इसके और पीछे चलें तो हौलीवुड से प्रभावित हिंदी फिल्मों में भी नायिकाओं ने सिगरेट के चलन को बढ़ावा दिया. कम ही ऐक्ट्रेस होगी जिन्होंने परदे पर सिगरेट न फूंकी हो.

प्रियंका चौपडा ( फेशन -2008 ) , करीना कपूर ( चमेली – 2004 ) , विद्या बालन   ( द डर्टी पिक्चर – 2011 )और एश्वर्या राय ( गुजारिश -2010 ) की पीढ़ी से पहले रेखा , जीनत अमान ( हरे रामा हरे कृष्णा -1971 ) मुमताज ( रोटी -1974 ) और शर्मिला टेगोर ( मौसम – 1975 ) शबाना आजमी ( गाड़ मदर – 1999 ) की पीढ़ी भी सिगरेट का धुआ उड़ाती नजर आई थी.

खलनायक तो हर फिल्म में सिगरेट पीता ही था  इसी तर्ज पर नादिरा , अरुणा ईरानी , बिंदु और हेलेन का तो वैम्प होने के नाते सिगरेट पीना कहानी की मांग कही जा सकती है लेकिन यह सिलसिला 30 के दशक से ही शुरू हो गया था जब देविका रानी को भी प्रतीकात्मक तौर पर ही सही सिगरेट पीते देख दर्शको को हैरत हुई थी क्योंकि उस दौर में औरतों की सामाजिक और पारिवारिक हालत वाकई गुलामों सरीखी थी.

1937 में पृथ्वीराज कपूर अभिनीत प्रदर्शित फिल्म मिलाप में हिंदी फिल्मो की पहली वैम्प कही जाने वाली अभिनेत्री रांप्यारी को सिगरेट पीते देख खासी प्रतिक्रिया हुई थी लेकिन इसके बाद ये दृश्य बेहद आम होते गये. 1957 में प्रदर्शित फिल्म नो दो ग्यारह में शशिकला को सिगरेट पीते दिखाया गया था . 1961 में आई फिल्म प्यार का सागर में मीना कुमारी ने सिगरेट पी थी हालांकि अपनी जाती जिन्दगी में भी वे शराब और सिगरेट पीने को लेकर कुख्यात थीं और सुर्ख़ियों में रहती थीं.

अमिताभ बच्चन और रेखा अभिनीत फिल्म दो अनजाने 70 के दशक की चर्चित फिल्म थी जिसमे रेखा को सिगरेट पीने के जरिये यह दिखाने की कोशिश की गई थी कि महत्वकांक्षी महिला सिगरेट पीती है .

जिन फिल्मों ने महिलाओं को सिगरेट पीने उकसाया उनमे सबसे चर्चित दीवार थी जिसमे अमिताभ बच्चन की रखैल की भूमिका निभा रहीं परवीन बाबी के मुंह में पूरी फिल्म में  सिगरेट दबी ही रहती है .आज जो दलीलें स्मोकर महिलाएं देती हैं खासतौर से बराबरी की उनमे फिल्मों का असर  साफ़ झलकता है कि जब देवानंद और राजकुमार से लेकर अमिताभ बच्चन की कामयाबी में सिगरेट का रोल अहम रहा है और इसी के चलते यह नायिकाओं को भी पिलाई गई तो हम क्यों पुरुषों की नकल कर सकते .

लेकिन किसी बुराई की नकल कर न तो कामयाब हुआ जा सकता और न ही मर्द बना जा सकता . महिलाओं को सिगरेट निर्माताओं और पुरुषों के प्रोत्साहन की साजिश समझते इस एब से दूर ही रहना चाहिए . वैसे भी सिगरेट क्या कोई भी नशा हर लिहाज से नुकसानदेह हो होता है यह बात जानते बूझते हुए भी धुएं की लत में फसना बुद्धिमानी की बात तो कतई नहीं . smoking kills

 

 

 

 

 

 

Cross Cultural Duet: श्रेया-नोरा का ड्यूट, म्यूजिकल प्रोजेक्ट में साथ गाएंगी

Cross Cultural Duet: पेपीटा, डर्टी लिटिल सीक्रेट और जेसन डेरुलो के साथ वायरल वोकल ट्रैक स्नेक जैसे ग्लोबल हिट देने के बाद इंटरनेशनल आइकन नोरा फतेही अब अपने संगीत सफर के नए अध्याय में कदम रख रही हैं. इस बार, वह केवल परफॉर्म ही नहीं कर रहीं बल्कि सुरों की रानी श्रेया घोषाल के साथ गा भी रही हैं. टी-सीरीज के बैनर तले बना यह रोमांचक वोकल सहयोग पहले से ही दुनियाभर में चर्चा में है.

परफौरमेंस के दौरान नोरा अपनी आवाज के साथ माइक पर नजर आती हैं और श्रेया घोषाल के दिल छू लेने वाले सुरों के साथ जुड़ती हैं. अपनी करिश्माई ऑनस्क्रीन मौजूदगी के लिए जानी जाने वाली नोरा यह साबित कर रही हैं कि वह माइक के पीछे रह कर भी वह अपना जादू दिखा सकती हैं और श्रेया घोषाल जैसी सिंगर के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हो सकती हैं.

स्वरों की मलिका श्रेया घोषाल की सदाबहार आवाज के सभी दीवाने रहे हैं, इस गाने में भी वह भावनात्मक गहराई और तकनीकी कौशल जोड़ती हैं . विभिन्न शैलियों में सहजता से गाने की उनकी क्षमता अब बॉलीवुड की हॉट सेंसेशन नोरा फतेही के आधुनिक, बोल्ड साउंड के साथ मिलकर एक नई वैश्विक पहचान हासिल कर रही है. दोनों का गायन डुएट कल्चर और म्युजिक की दुनिया को साथ लाता है.

इसका नतीजा है एक जेनर-ब्लेंडिंग एंथम, जिसमें भावनाएं, ताकत और अंतरराष्ट्रीय अपील है. नोरा और श्रेया, दोनों की आवाजोा के मेल से बना यह गीत सिर्फ एक सहयोग नहीं बल्कि एक कलात्मक समन्वय का रूप है. शानदार विज़ुअल्स और साउंड ने इसमें चार चांद लगाने का काम किया है. Cross Cultural Duet

Vidya Balan: ‘पियू बोले जिया डोले’, 20 साल बाद लौट रही है ‘परिणीता’

Vidya Balan: विधु विनोद चोपड़ा फिल्म्स और पीवीआर आईनॉक्स मिलकर 29 अगस्त 2025 को क्लासिक फिल्म ‘परिणीता’ को दोबारा रिलीज करने जा रहे हैं. ये सिर्फ ‘परिणीता’ के 20 साल पूरे होने का ही नहीं, बल्कि फिल्म के निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा के हिंदी सिनेमा में 50 साल पूरे होने का जश्न साबित होगा.

नए रूप में आएगी नजर ‘परिणीता’

आपको बता दें ‘परिणीता’ फिल्म अब 8K क्वालिटी में और 5.1 सराउंड साउंड के साथ नए रूप में देखी जा सकेगी. 10 जून 2005 को रिलीज हुई यह फिल्म करीब 16 करोड़ की लागत में बनी थी. इस फिल्म का इंडिया नेट कलेक्शन लगभग 16.62 करोड़ रुपये था. वहीं वर्ल्डवाइड कमाई 30.29 करोड़ रुपये रही! अब इस मूवी के 20 साल पूरे होने के मौके पर इस फिल्म को री-रिलीज किया जा रहा हैं.

म्यूजिकल रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘परिणीता’

यह मूवी बंगाल के मशहूर लेखक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के लिखे गए एक लोकप्रिय बंगाली उपन्यास ‘परिणीता’ पर आधारित है. यह एक म्यूजिकल रोमांटिक ड्रामा है! इसका निर्देशन प्रदीप सरकार ने किया है. यह कहानी लोलिता और शेखर की प्रेम कहानी है. शेखर एक अमीर घर का लड़का है और लोलिता गरीब घर की लड़की है. इन्ही के आस पास फिल्म की पूरी कहानी घूमती है.

रीस्टोरिंग में लगे चार साल

विद्या बालन के अलावा सैफ अली खान और संजय दत्त ने मूवी में अहम भूमिकाओं को अदा किया है. इसे दर्शकों और आलोचकों से भरपूर सराहना मिली थी. फिल्म की रीस्टोरिंग में 4 साल लगे और इसका एक हिस्सा इटली की मशहूर प्रयोगशाला L’Immagine Ritrovata में किया गया.

फिल्म के बारे में कलाकारों के विचार

विद्या बालन ने कहा, “परिणीता मेरे करियर की शुरुआत थी और यह फिल्म मेरे दिल के बेहद करीब है.”
सैफ अली खान ने इसे अपने अभिनय जीवन का एक खास मोड़ बताया, वहीं संजय दत्त ने फिल्म को बेहद ईमानदारी से बना हुआ एक खूबसूरत अनुभव कहा. पीवीआर आईनॉक्स की निहारिका बिजली ने कहा, “आज की पीढ़ी को क्लासिक फिल्मों को बड़े पर्दे पर देखने का जो मौका मिलेगा, वह खास होगा.”

सिनेमा प्रेमियों के लिए एक अच्छी विरासत

कुछ फिल्म अपने संदेश और कहानी के जरिए लोगों के जेहन में सालों याद रहती है जिसे जितनी बार देखा जाए वो हर बार नए अर्थ दे जाती है. फिल्म ‘परिणीता’ भारतीय सिनेमा और सिनेमा प्रेमियों के लिए एक अच्छी विरासत है, जिसके जरिये वह आने वाली पीढ़ियों को सिनेमा की अच्छी संस्कृति से रूबरू कराने के लिए कर सकते हैं. अब ये दोबारा 29 अगस्त 2025 से भारत के चुनिंदा सिनेमाघरों में एक हफ्ते के लिए दिखाई जाएगी. Vidya Balan

Sunscreen Benefits: सनस्क्रीन लेने से पहले जानें कौन सा SPF लेना सही

Sunscreen Benefits: अपनी त्वचा को सूरज की हानिकारक किरणों से बचाना बहुत जरूरी है. इसके लिए धूप में निकलने से पहले सनस्क्रीन क्रीम का उपयोग करना चाहिए . दरअसल, सनस्क्रीन वह क्रीम है जो त्वचा की ऊपरी परत पर लगाई जाती है और जिसका काम हानिकारक यूवी किरणों से त्वचा की रक्षा करना है.

सनस्क्रीन लोशन का चुनाव करते समय उसमें मौज़ूद सन प्रोटेक्शन फैक्टर यानी एसपीएफ की मात्रा की सही जानकारी होना ज़रूरी है. एक एसपीएफ़ 50 सनस्क्रीन 93% यूवीबी किरणों को फ़िल्टर कर सकता है। हालाँकि, आपकी त्वचा को अतिरिक्त सुरक्षा की आवश्यकता हो सकती है, यह सूर्य की किरणों के संपर्क पर निर्भर करता है।

क्या है SPF

‘एसपीएफ’ का मतलब है सन प्रोटेक्शन फैक्टर. सनस्क्रीन कितना बेहतर और इफेक्टिव है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें मौजूद सन प्रोटेक्टिंग फैक्टर (SPF) कितना है. एसपीएफ नंबर पराबैंगनी (यूवी) बी किरणों से सुरक्षा के स्तर को दर्शाता है. माना जाता है कि सनस्क्रीन में एसपीएफ की मात्रा जितनी ज्यादा होगी, उतनी ही आपकी स्किन धूप की अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचाएगी.

अगर धूप हलकी है तो 15 एसपीएफ से भी काम चल जायेगा क्योंकि वह भी 93 फीसदी तक त्वचा की रक्षा करता है लेकिन गर्मियों के सीजन में कई बार टैम्प्रेचर बढ़कर 40-45 डिग्री तक पहुंच जाता है तो इतनी तेज धूप से त्वचा को बचाने के लिए कम से कम 30 या 50 एसपीएफ का सनस्क्रीन ही काम करता है. 50 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन 98 फीसदी तक सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से त्वचा की रक्षा करता है. आप अपनी उपयोगिता के हिसाब से सनस्क्रीन का चयन करें.

सनस्क्रीन की जरुरत क्यों है?

सनस्क्रीन में त्वचा को सूरज की हानिकारक किरणों से बचाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण चीजें होती है. जैसे जिंक ऑक्साइड, टाइटेनियम ऑक्साइड. ये हमारी त्वचा को एजिंग इफेक्ट यानी असमय बुढ़ापे और सनबर्न से बचाती है. इसलिए सनस्क्रीन के ज्यादा फायदा लेने के लिए आप इसे बाहर जाने से कम से कम 10 मिनट पहले ही लगा लें और हर 2 घंटे में इसको लगाएं.

इसके फायदे क्या हैं ?

सनबर्न से बचता है सनस्क्रीन

सनबर्न ‘ब्लेमिशेज’ यानि झाइयों का बहुत बड़ा कारण होता है तो तेज धूप में रोजाना बाहर निकलने से पहले सनस्क्रीन लगाएं. खासकर आंखों के नीचे सनस्क्रीन लगाकर बाहर निकलने से ‘आई बैग्स’ नहीं बनते हैं.

स्किन कैंसर से बचाता है सनस्क्रीन

त्वचा कैंसर का मुख्य कारण यूवी किरणों का अत्यधिक संपर्क है. सनस्क्रीन रोजाना अप्लाई करने से यह त्वचा की क्षति को रोकता है और त्वचा कैंसर के खतरे को कम करता है.

मेलास्मा से बचाता है सनस्क्रीन

कई बार हमारे चेहरे की त्वचा पर भूरे या काले रंग के धब्बे हो जाते हैं.ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अत्यधिक धूप में रहने से मेलास्मा बढ़ जाता है. इस स्थिति में सनस्क्रीन का प्रयोग करके त्वचा की इस स्थिति को बिगड़ने से रोका जा सकता है.

टैनिंग को रोकता है सनस्क्रीन

हमारे शरीर का वो खुला हिस्सा जो सूर्य के संपर्क में ज्यादा देर रहने की वजह से काला पड़ जाता है, उसे टैनिंग कहते हैं. इस टैनिंग का इलाज यह है कि एक तो आप बाहर निकले तो शरीर को ज्यादा से ज्यादा ढक कर रखें। दूसरा, 30 या उससे ऊपर 50 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन इस्तेमाल करें.

एजिंग से बचाव करता है

सूरज की तेज रौशनी से त्वचा पर झाइयां, फाइन लाइन्स हो जाती हैं. लेकिन सनस्क्रीन आपकी त्वचा पर एक तरह की रक्षा परत बना लेता है जिससे सूरज की किरणें सीधे आपकी स्किन को नुकसान नहीं पहुंचा पाती हैं.

डार्क पैचेस को रोकता है सनस्क्रीन

रोजाना धूप के संपर्क में आने से त्वचा पर डार्क पैच बन जाते हैं जोकि देखने में बहुत ख़राब लगते हैं. लेकिन सनस्क्रीन अप्लाई करने से इस तरह समस्या देखने को नहीं मिलती है.

SRK: 35 साल के करियर में किंग खान को मिला पहला नेशनल फिल्म अवॉर्ड

SRK: शाहरुख़ खान वाकई भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सुपरस्टार हैं, जिन्होंने अपने करियर में एक से बढ़कर एक मेगा ब्लॉकबस्टर दी हैं. ‘किंग खान’ और ‘बादशाह ऑफ बॉलीवुड’ के नाम से मशहूर SRK की स्टारडम पूरी दुनिया में फैली हुई है.राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बड़े सम्मान और अवॉर्ड जीतने वाले शाहरुख़ खान को अब ‘जवान’ मूवी के लिए अपना पहला नेशनल अवॉर्ड मिला है.

पिछले 35 सालों से शाहरुख अपनी करिश्माई अंदाज की बेहतरीन अदाकारी से दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं. अब इस नेशनल अवॉर्ड ने उनके ट्रौफी, अवार्ड्स से भरे अलमीरा की रही सही कमी पूरी कर दी है. दुनियाभर से जो प्यार उन्हें मिलता है, वह साबित करता है कि वह भारतीय सिनेमा के अब तक के सबसे बड़े सुपरस्टार्स में से एक हैं.

‘जवान’ के लिए नेशनल अवॉर्ड जीतने के साथ ही ये सही वक्त है शाहरुख खान की इस फिल्म में प्रस्तुत की गई मस्ती और धमाल को याद करने का. एक्शन, रोमांस और ड्रामा को मिलाकर SRK ने एक बेहतरीन ब्लॉकबस्टर दी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर खूब कमाई की और छा गई.

इसके साथ ही, शाहरुख़ खान ने नेशनल अवॉर्ड जीतकर अपने नाम एक और बड़ा सम्मान जोड़ लिया है.लेकिन इससे पहले भी उन्हें दुनिया के कई बड़े और खास अवॉर्ड मिले हैं. भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है और फ्रांस सरकार ने उन्हें ऑर्डर दे आर्ट्स एट लेटर्स और लीजन ऑफ ऑनर जैसे बड़े सम्मान दिए हैं. SRK

Hindi Story : रीता ने अपने ड्राइवर के साथ क्यों बनाए शारीरिक संबंध?

Hindi Story : रीता और मीना का आज आखिरी पेपर था. दोपहर घर पहुंचीं तो उन की खुशी देखते ही बनती थी. 2 महीनों से पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई में व्यस्त थीं. 12वीं कक्षा की पढ़ाई छात्रों के लिए बेहद अहम होती है. इसी कक्षा के नंबरों पर आगे की पढ़ाई निर्भर करती है. अगर नंबर थोडे़ भी कम हुए तो किसी भी अच्छे कालेज में दाखिला नहीं मिल सकता. इसीलिए 2 महीनों से रीता और मीना ने पढ़ाई के लिए दिनरात एक कर दिए थे. आज एक बड़ा बोझ उन के सिर से उतर गया था. आज दोनों का पिक्चर देखने जाने का प्रोग्राम था. रीता और मीना ऐडल्ट मूवी देखने गईं, जिस की उन की सहेलियों में बहुत चर्चा थी. वे दोनों भी खुद को वयस्क मानने लगी थीं. शरीर में होते हारमोनल बदलाव को वे महसूस करने लगी थीं.

पिक्चरहौल में जा कर देखा तो आधे से अधिक दर्शक 12वीं कक्षा के छात्र थे. पिक्चर शुरू होते ही हौल में सन्नाटा छा गया. सब का ध्यान स्क्रीन पर था. हीरो और हीरोइन का रोमांस करना, एकदूसरे को चूमना जवान दिलों की धड़कनों को बढ़ाने के लिए काफी था. पहली बार सब ऐसे दृश्य देख रहे थे. सब की धड़कनें बेकाबू होती जा रही थीं. सभी अलग ही दुनिया में विचरण कर रहे थे. मूवी खत्म हुई तो बाहर आने वाले सब छात्रों के चेहरे देखने लायक थे. कुछ के चेहरे रोमांच से लाल थे तो कुछ मुंह नीचा किए जा रहे थे मानों उन से कोई अपराध हो गया हो. रीता और मीना भी कुछ इसी भाव से भरी हुई थीं. आज रात में दोनों एकसाथ ही रहने वाली थीं. दोनों सीधे घर आईं और मूवी के डायलौग दोहराने लगीं. दोनों का हंसहंस कर बुरा हाल था.

रात को खाने की मेज पर रीता के मम्मीपापा भी खाना खाने के लिए साथ बैठे. दोनों ही डाक्टर थे और एक ही अस्पताल में काम करते थे. रीता की मां स्त्रीरोग विशेषज्ञा थीं.

वे बोलीं, ‘‘आज दोनों के चेहरों पर खुशी नजर आ रही है. अब डेढ़ महीना मजे में बिताओ. जब रिजल्ट आएगा तो फिर चिंता शुरू होगी कि दाखिला कहां मिले.’’

‘‘आज तुम दोनों कौन सी मूवी देख कर आईं?’’ रीता के पिता उमेश ने पूछा.

दोनों ने एकदूसरे की ओर देखा और फिर तुरंत किसी दूसरी मूवी का नाम ले दिया. उन का झूठ वे नहीं पकड़ पाए. रीता के मम्मीपापा दोनों ही अपनेअपने काम में इतना व्यस्त रहते थे कि अपनी बेटी की हरकतों की ओर उन का ध्यान नहीं जाता था. इसलिए रीता और मीना की छिपी मुसकराहट को वे नहीं देख पाए. रात को मीना की मां का फोन आया. मीना की मां शहर के एक बहुत बड़े बुटीक की मालकिन थीं और बहुत व्यस्त रहती थीं. मीना को अच्छी से अच्छी चीजें देना ही उन का काम था. मीना भी अपनी कक्षा की वैल ड्रैस्ड गर्ल के रूप में जानी जाती थी. मीना के साथ बैठ कर उन्होंने कभी बात नहीं की.

रात को जब रीता और मीना सोने लगीं तो उन की बातों का केंद्र वही मूवी थी. रीता गुनगुना उठी, ‘‘बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए…’’

सुन कर मीना ने चुटकी ली, ‘‘तो फिर एक हसीन सनम ढूंढ़ा जाए.’’

‘‘हां जरूर पर सपनों में ही. अगर सच में ढूंढ़ लिया तो मम्मीडैडी घर से निकाल देंगे.’’

‘‘उन्हें कौन बताएगा. उन्हें तो अपने काम से ही फुरसत नहीं मिलती है. हम थोड़ीबहुत शैतानी कर ही सकते हैं.’’

‘‘अगर शैतानी भारी पड़ गई तो?’’

‘‘पहले से ही गलत सोचना शुरू कर दिया तो फिर हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’

‘‘अगर तुझे डर नहीं लगता है तो तू ही शुरू कर ले. मैं दूर बैठी ही मजा लूंगी.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा, डूबेंगे तो एकसाथ समझी?’’

‘‘हां, समझ गई मेरी सखी,’’ फिर आगे बोली, ‘‘अरे, सखी सुनते ही मुझे ध्यान आ रहा है कि पेपर शुरू होने से पहले एक डाक्टर स्कूल में आई थीं. उन्होंने सखी नाम की ओरल कौंट्रासैप्टिव पिल के बार में बताया था. तब तो पढ़ाई का भूत सवार था, इसलिए उस ओर ध्यान नहीं दिया. अब वह पैंफ्लेट ला कर पढ़ते हैं. मैं ने अपनी हिंदी की किताब में रखा था,’’ कह कर रीता झट से उसे निकाल लाई.

‘‘ज्यादा उड़ने की कोशिश मत कर. वे सब तो शादी के बाद की बातें हैं… अभी वैसा सोचा तो बहुत मार पड़ेगी.’’

‘‘तू तो बस डरती ही रहती है. जिंदगी का मजा क्या बुढ़ापे में उठाएगी?’’ कह वह सखी का विज्ञापन पढ़ने लगी. उस में लिखा था- जब तक चाहें बच्चा न पाएं और 2 बच्चों में अंतर रखने का सरल उपाय.

‘‘हमें तो बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए… इस आशिकी में सखी ही काम आएगी समझी मेरी सखी?’’ वह गुनगुनाते हुए बोली.

‘‘बस कर… बस कर… तेरी मम्मी को पता चल गया तो गजब हो जाएगा… तू ने आरुषि वाली खबर तो पेपर में जरूर पढ़ी होगी कि मांबाप ने ही आशिकमिजाज बेटी की हत्या कर दी.’’

‘‘अपना उपदेश अपने पास रख. मुझे तो एक अदद सनम चाहिए.’’

दोनों बातें करतीकरती नींद के आगोश में चली गईं. दूसरे दिन जब सुबह उठीं तो भी उन के दिमाग में वही मूवी घूम रही थी. दोनों की आपस में छेड़छाड़ जारी थी.

रीता बोली, ‘‘तुझे कैसा सनम चाहिए?’’

‘‘पहले तू बता?’’

‘‘अक्षय कुमार जैसा.’’

‘‘मुझे तो संजीव कुमार जैसा चाहिए.’’

‘‘तुझे सनम चाहिए या पापा?’’

‘‘सनम ऐसा हो जिस के साथ मैं सुरक्षित महसूस करूं. एक से दूसरे फूल पर उड़ने वाला नहीं चाहिए.’’

‘‘तू तो बहुत दूरदर्शिता की बातें करती है?’’

‘‘मैं तो हमेशा से ही होशियार हूं… तू ने मुझे समझ क्या रखा है? और सुन तुझे भी कोई गलत काम नहीं करने दूंगी.’’

‘‘अच्छा मेरी सखी,’’ और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

दोनों ही हंसी की आवाज सुन कर रीता के पिता डा. उमेश अंदर आए और बोले, ‘‘1 दिन और छुट्टी मना लो. कल सुबह से तुम्हारी ड्राइविंग क्लास शुरू हो जाएगी. मैं ने एक ड्राइवर को फिक्स कर दिया है. वह रोज सुबह 7 बजे आ कर तम्हें ड्राइविंग सिखाने ले जाया करेगा.’’

‘‘सच डैडी, आप मुझे कार चलाने देंगे? आप कितने अच्छे हैं… थैंक्यू डैडी.’’

‘‘और तुम्हारी मां ने दोपहर में तुम्हारा नाम कुकिंग क्लास के लिए भी लिखवा दिया है. दोपहर में 1 घंटा तुम वहां जाओगी. शाम को 1 घंटा जिम में कसरत करोगी.’’

‘‘वाह, आप ने तो पूरे दिन का प्रोग्राम बना दिया. अब बोर होने के लिए समय ही नहीं होगा.’’

मीना दोपहर को अपने घर चली गई. दूसरे दिन जब ड्राइवर आया और रीता ड्राइविंग सीखने निकली तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. 1 हफ्ता बीततेबीतते वह कार चलाना सीख गई. अब उस का ध्यान ड्राइवर की ओर गया. वह बहुत ही स्मार्ट लड़का था. देखने में अक्षय कुमार से कम नहीं था. अतिरिक्त पैसा कमाने के लिए वह पार्टटाइम में ड्राइविंग सिखाता था. अब अचानक ही उस का हाथ उस के हाथ को छूने लगा और तिरछी नजरों से एकदूसरे को देखना शुरू हो गया. रीता अब उठतेबैठते उस ड्राइवर मनु के बारे में ही सोचती. उस ने मीना को भी फोन पर बताया कि एक अदद आशिक मिल गया है. अब बस आशिकी करने की देर है.

मीना बोली, ‘‘पागल मत बन. एक ड्राइवर को आशिक बनाएगी?’’

‘‘क्यों नहीं? एक ड्राइवर आशिक क्यों नहीं बन सकता? मैं पूरे जीवन की बात नहीं कर रही हूं. मैं तो पार्टटाइम आशिक की बात कर रही हूं.’’

‘‘तू पागल हो गई है. हद में रह तेरी मम्मी को पता चला तो मार डालेगी तुझे… एक और आरुषि मर्डर केस बन जाएगा.’’

‘‘मैं इतनी भोली नहीं हूं. मेरे कारनामे की खबर मम्मी को पता नहीं लगेगी.’’

दूसरे दिन जब तक मीना उस के घर पहुंची तब तक रीता मनमानी कर चुकी थी. उस ने अपनी मम्मी के पर्स से ही सखी पिल निकाल कर खा ली थी. पिल खाने के बाद उस के हौसले बुलंद थे. आशिक के सामने जब रीता ने स्वयं समर्पण कर दिया तो फिर उसे क्यों एतराज होने लगा था और फिर कार की पिछली सीट पर ही सब घटित हो गया. मीना जब रीता के पास पहुंची तो उसे देखते ही वह सब कुछ समझ गई.

अब उस ने रीता को डांटना शुरू किया. बोली, ‘‘यह तू ने क्या किया? अगर पिल ने काम नहीं किया और कुछ गड़बड़ हो गई तो? हमें वह ऐडल्ट मूवी देखनी ही नहीं चाहिए थी.’’

‘‘अच्छा अपना भाषण बंद कर. अब तू भी जल्दी से एक आशिक ढूंढ़ ले.’’

‘‘अपनी सलाह अपने पास रख. अब दोबारा तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जिसे छिपाना पड़े.’’

‘‘अच्छा, ऐसी बात है तो मैं तुझे कुछ भी नहीं बताऊंगी. सतिसावित्री तू ही बन. मुझे तो जिंदगी के मजे लेने हैं.’’

मीना ने चुप रहने में ही भलाई समझी. चूंकि रीता के सिर पर आशिकी का भूत सवार था, इसलिए किसी भी सलाह का असर उस पर होने वाला नहीं था. रीता ने मजे लेले कर मीना को सब कुछ बताया. वह सोच रही थी कि उस ने दुनिया की सब से बड़ी नियामत पा ली है. पर उस की इन बातों ने मीना पर कोई असर नहीं किया. वह अपनी हद में रहना जानती थी. रीता की ड्राइविंग तो पूरी हो गई थी, पर उस का मनु ड्राइवर से मिलनाजुलना चलता रहा. धीरेधीरे नए अनुभव पुराने होने लगे. अब वह मनु से पीछा छुड़ाना चाहती थी. रिजल्ट निकलने का समय भी नजदीक आ रहा था. उधर उस ने महसूस किया कि शरीर में कुछ गड़बड़ हो रही है. इस महीने उसे नियत समय पर पीरियड भी नहीं आया. उस ने 1 हफ्ता और इंतजार किया. फिर तो उस की जान सूखनी शुरू हो गई.

उस ने मीना को घर बुलाया और अपनी परेशानी बताई.

मीना उस पर टूट पड़ी. बोली, ‘‘अब भुगत अपनी करनी का फल. बेवकूफ लड़की अब ले आशिकी का मजा. सखी ने भी धोखा दे दिया न? अब क्या करेगी? आंटी को पता चला तो उन्हें कितना दुख होगा.’’

‘‘लैक्चरबाजी बंद कर और मुझे बता अब मैं क्या करूं?’’

‘‘सखी पिल रोज नहीं खाई थी क्या?’’

‘‘छोड़ इन सब बातों को अब मुझे तू इस मुसीबत से निकाल.’’

‘‘अपनी मम्मी को सब कुछ सचसच बता दे. वे डाक्टर हैं. उन्हें ही पता होगा कि अब क्या करना है.’’

‘‘मम्मी को बता दे, वाह क्या अच्छी सलाह दे रही है. क्या और कोई डाक्टर नहीं है?’’

‘‘डाक्टर तो बहुत हैं पर कुछ गड़बड़ हो गई तो आंटी को पता तो चलेगा ही.’’

‘‘क्या गड़बड़ होगी? सुना है कि 10-15 मिनट में सब खत्म हो जाता है और किसी को भी पता नहीं लगता है. ’’

‘‘सुना है कई बार केस बिगड़ जाता है. तब लेने के देने पड़ जाते हैं. देख एक गलती तो कर चुकी है अब दूसरी बड़ी गलती मत कर. अपनी मम्मी को सब बता दे और वे ही तुझे इस बड़ी मुसीबत से निकाल सकती हैं.’’

‘‘मेरी इतनी हिम्मत नहीं है… मैं मम्मी को कुछ भी नहीं बता सकती हूं.’’

‘‘तो फिर लिख कर सब बता दे. तुझे डांट तो जरूर पड़ेगी पर तू सुरक्षित हाथों में रहेगी.’’

रीता अब कुछ भी करने को तैयार थी. उस ने सारी घटना कागज पर लिखी और मां के पर्स में डाल दी. मां ने जब पढ़ा तो उन के पांवों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उन की बेटी ने इतनी बड़ी गलती कैसे कर ली? उन का दिमाग ही जैसे थम सा गया. पति को बताएं या छिपाएं… वे जल्दी घर आ गईं और फिर खुद को कमरे में बंद कर लिया. 1-2 घंटे बीत जाने पर वे शांत हुईं और फिर रीता को बुलाया.

‘‘मौम मैं ने आप के पर्स में से ही सखी पिल्स निकाल कर खाई थीं.’’

‘‘उन पर ऐक्सपायरी डेट पढ़ी थी क्या?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘अब चुप रहो और अपनी नादानी की सजा भुगतो. मैं ने कितनी ही बेवकूफ लड़कियों के अबौर्शन किए हैं पर नहीं जानती थी कि एक दिन मेरी ही बेटी इस तरह मेरे सामने आएगी. तुम्हारे अधकचरे ज्ञान ने तुम्हें मार दिया. मुझे कभी इतनी फुरसत ही नहीं मिली कि तुम्हें सब कुछ समझाऊं. मेरे घर में मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई है, इस का मुझे भान तक नहीं हुआ. मैं तो अपने ही काम में व्यस्त रही. हम दोनों से ही चूक हो गई. अब दोनों को ही सजा मिलेगी. मैं भी सारी उम्र अपने को माफ नहीं कर पाऊंगी. चलो, आज शाम को ही काम कर दिया जाए. आज तेरे डैडी भी घर में नहीं हैं. उन को भी खबर नहीं होनी चाहिए. तेरे पल भर के मजे ने तुझे डुबो दिया.’’

‘‘मां, मुझे माफ कर दो.’’

फिर उसी शाम घर में बने क्लीनिक में एक मां ने अपनी बेटी की गलती का निशान साफ कर दिया. शारीरिक बोझ तो चला गया था, पर इस घटना के मानसिक घाव कभी जाने वाले नहीं थे. बिना उचित जानकारी के अच्छी औषधि भी जहर बन सकती है. वे तो विवाहित महिलाओं को ही समझाती थीं कि जब तक न चाहो संतान न पाओ या बच्चों की आयु में अंतर कैसे रखें. स्कूलकालेज की छात्राएं इस का दुरुपयोग करेंगी, ऐसा तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था.

बंदर के हाथ में उस्तरे जैसा काम उन की बेटी के जीवन में इन पिल्स ने किया था. उन की बेटी जैसी उन्मुक्त और न जाने कितनी लड़कियों ने इन पिल्स का दुरुपयोग किया होगा. जीवन में ज्ञान के साथसाथ विवेक की भी जरूरत होती है. विवेक को केवल मातापिता ही सिखा सकते हैं.

वे तो अच्छी मां साबित नहीं हुईं. उन्होंने काम की अधिकता के कारण कभी बेटी के पास बैठ कर उसे उचितअनुचित का ज्ञान नहीं दिया. आज बेटी की गलती में वे भी अपनेआप को बराबर का भागीदार मान रही थीं, इसीलिए वे रीता को डांट भी नहीं पाईं. बस मनमसोस कर रह गईं.

Family Drama Story: बोझ- ससुरजी की मन की पीड़ा

Family Drama Story: उस  रात अंजु और मनोज बुरी तरह झगड़े. मनोज अपने दोस्त के घर से पी कर आया था और अंजु ने अपनी सास के साथ झड़प हो जाने के बाद कुछ देर पहले ही तय किया था कि वह अपनी ससुराल में किसी से डरेगीदबेगी नहीं. इन दोनों कारणों से उन के बीच झगड़ा बढ़ता ही चला गया.

‘‘तुम्हें इस घर में रहना है, तो काम में मां का पूरा हाथ बंटाओ. तुम मटरगस्ती करती फिरो और मां रसोई में घुसी रहे, यह मैं बिलकुल बरदाश्त नहीं करूंगा,’’ मनोज की गुस्से से कांपती आवाज पूरे घर में गूंज उठी.

‘‘आज औफिस में ज्यादा काम था, इसलिए देर से आई थी. फिर भी मैं ने उन के साथ थोड़ा सा काम कराया… अपनी मां की हर बात सच मानोगे, तो हमारी रोज लड़ाई होगी,’’ अंजु भी जोर से चिल्लाई.

‘‘उन की रोज की शिकायत है कि जिस दिन तुम वक्त से घर आ जाती हो, उस दिन भी तुम उन के साथ कोई काम नहीं कराती हो.’’

‘‘यह झठ बात है.’’

‘‘झठी तुम हो, मेरी मां नहीं.’’

‘‘नहीं, झठी तुम्हारी मां है.’’

उस रात मनोज ने अपनी दूसरी पत्नी पर पहली बार हाथ उठा दिया. उन की शादी को अभी 2 महीने ही बीते थे.

‘‘तुम्हारी मुझ पर हाथ उठाने की जुर्रत कैसे हुई? अब दोबारा हाथ उठा कर देखो… मैं अभी पुलिस बुला लूंगी.’’

उस की चिल्ला कर दी गई इस धमकी को सुन कर राजनाथ और आरती अपने बेटेबहू को शांत कराने के लिए उन के कमरे में आए.

गुस्से से कांप रही अंजु ने अपनी सास को जलीकटी बातें सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जवाब में आरती कुछ देर ही चुप रही. फिर वह भी ईंट का जवाब पत्थर से देते हुए उस से भिड़ गई.

‘‘मुझे नहीं रहना है इस नर्क में. मैं कल सुबह ही अपने मायके जा रही हूं. तुम्हारे मांबाप का बोझ मुझे नहीं ढोना है,’’ धमकी देने के बाद अंजु ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

‘‘ये मुझे कैसे दिन देखने पड़ रहे हैं… पहली बीवी चरित्रहीन थी, सो मुझे छोड़ कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई. अब यह दूसरी जो पल्ले पड़ी है, बहुत ही बदतमीज है,’’ अपने को कोसता मनोज उस रात सोफे पर ही सोया.

अगले दिन रविवार था. आंखों में गुस्सा भरी जब 10 बजे के करीब अंजु अपने कमरे से बाहर आई, तो उस ने मनोज को ड्राइंगरूम में मुंह लटकाए बैठे पाया.

उस के पूछे बिना मनोज ने उसे दुखी लहजे में बताया, ‘‘मम्मीपापा सुबह की गाड़ी से मामाजी के पास मेरठ चले गए हैं.’’

‘‘क्यों?’’ चाय बनाने रसोई में जा रही अंजु ने ठिठक कर पूछा.

‘‘ उन के जाने का कारण समझना क्या मुश्किल है?’’

‘‘मुझे जबरदस्ती कुसूरवार मत ठहराओ, प्लीज. तुम्हारी माताजी ने मुझे एक की चार सुनाई थीं.’’

‘‘वे दोनों बीमार रहते हैं. घर से दूर जा कर उन की कैसी भी दुर्गति हो, तुम्हारी बला से.’’

‘‘जब आज मैं ही घर छोड़ कर जाने वाली थी, तो तुम ने उन्हें रोका क्या नहीं?’’

‘‘मैं ने बहुत कोशिश करी, पर पापा नहीं माने.’’

‘‘वे कब तक लौटेंगे?’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गए हैं,’’ मनोज ने थकेहारे अंदाज में अपना चेहरा हथेलियों से रगड़ा तो अंजु भी कुछ उदास सी हो गई.

दोनों दिनभर सुस्त ही रहे, पर शाम को उन का बाजार घूम आने का कार्यक्रम बन गया. पहले उन्होंने कुछ खरीदारी करी और फिर खाना भी बाहर ही खाया.

उस रात अंजु को जीभर के प्यार करते हुए मनोज को एक बार भी अपने मातापिता का ध्यान नहीं आया.

अगले 2-3 दिन उन के बीच झगड़ा नहीं हुआ. फिर एक दिन औफिस से अंजु देर से लौटी तो मनोज उस से उलझ पड़ा. दोनों के बीच काफी तूतू, मैंमैं हुई पर फिर जल्द ही सुलह भी हो गई. तब दोनों के मन में यह विचार एकसाथ उभरा कि अगर आरती घर में मौजूद होती, तो यकीनन झगड़ा लंबा खिंचता.

मनोज लगभग रोज ही अपने मातापिता से फोन पर बात कर लेता. अंजु ने उन से पूरा हफ्ता बीत जाने के बाद बात करी थी. उस ने उन दोनों का हालचाल तो पूछ लिया, पर उन के वापस घर लौट आने की चर्चा नहीं छेड़ी.

‘‘देखो, शायद अगले हफ्ते वापस आएं,’’ मनोज जब भी उन के घर लौटने की बात उठाता, तो राजनाथ उसे यही जवाब देते.

जब उन्हें मेरठ गए 1 महीना बीत गया तो अंजु और मनोज के मन की बेचैनी बढ़ने लगी. पड़ोसी और रिश्तेदार जब भी मिलते, तो आरती और राजनाथ के लौटने के बारे में ढेर सारे सवाल पूछते. तब उन्हें कोई झठा कारण बताना पड़ता और यह बात उन्हें अजीब से अपराधबोध का शिकार बना देती.

लोगों के परेशान करने वाले सवालों से बचने के लिए तब दोनों ने मेरेठ जा कर उन्हे वापस लाने का फैसला कर लिया.

‘‘अब वहां पहुंच कर उन से बहस में मत उलझना. उन्हें मनाने को अगर ‘सौरी’ बोलना पडे़, तो बोल देंगे. उन को साथ रखना हमारी जिम्मेदारी है, मामाजी या किसी और की नहीं,’’ मनोज सारे रास्ते अंजू को ऐसी बातें समझता रहा.

मामामामी के यहां 2 दिन बिताने के लिए शुक्रवार की रात को करीब 9 बजे उन के घर पहुंच गए.

उन दोनों से मामामामी बड़े प्यार से मिले. उन की नजरो में अपने लिए नाराजगी के भाव न देख कर अंजु मन ही मन हैरान हुई.

‘‘दीदी और जीजाजी खाना खाने के बाद पार्क में घूमने गए हैं,’’ अपने मामा की यह बात सुन कर मनोज हैरान रह गया.

‘‘पापामम्मी घूमने गए हैं? उन्होंने यह आदत कब से पाल ली?’’ मनोज की आंखों में अविश्वास के भाव पैदा हुए.

‘‘वे दोनों अब नियम से सुबह भी घूमने जाते हैं. तुम उन की फिटनैस में आए बदलाव को देखोगे, तो चकित रह जाओगे.’’

‘‘मम्मी की कमर का दर्द उन्हें घूमने की इजाजत देता है?’’

‘‘दर्द अब पहले से काफी कम है. जीजाजी दीदी का हौसला बढ़ा कर उन्हें सुस्त नहीं पड़ने देते हैं.’’

‘‘क्या मम्मी का किसी नए डाक्टर से इलाज चल रहा है?’’

‘‘हां, डाक्टर राजनाथ के इलाज में है दीदी,’’ अपने इस मजाक पर मामाजी ने जोरदार ठहाका लगाया, तो मनोज और अंजु जबरदस्त उलझन का शिकार बन गए.

जब वे सब चाय पी रहे थे, तब राजनाथ और आरती ने घर में प्रवेश किया. उन पर नजर पड़ते ही मनोज उछल कर खड़ा हो गया और प्रसन्न लहजे में बोला, ‘‘वाह, पापामम्मी. इन स्पोर्ट्स शूज में तो आप दोनों बड़े जंच रहे हो.’’

‘‘तुम्हारे मामाजी ने दिलाए हैं. अच्छे हैं न?’’ राजनाथ पहले किसी बच्चे की तरह खुश हुए और फिर उन्होंने मनोज को गले से लगा लिया.

अपनी मां के पैर छूते हुए मनोज ने उन की तारीफ करी, ‘‘ये बड़ी खुशी की बात है कि कमर का दर्द कम हो जाने से अब तुम्हे चलने में ज्यादा दिक्कत नहीं आ रही है. चेहरे पर भी चमक है. मामाजी के यहां लगता है खूब माल उड़ा रहे हैं.’’

‘‘मेरी यह शुगर की बीमारी कहां मुझे माल खाने देती है. तुम दोनों कैसे हो? आने की खबर क्यों नहीं दी?’’ अपने बेटेबहू को आशीर्वाद देते हुए आरती की पलकें नम हो उठीं.

‘‘तुम दोनों को भूख लग रही होगी. बोलो, क्या खाओगे?’’ बड़े उत्साहित अंदाज में अपनी हथेलियां आपस में रगड़ते हुए राजनाथ ने अपने बेटेबहू से पूछा.

‘‘ज्यादा भूख नहीं है, इसलिए बाजार से कुछ हलकाफुलका ले आते हैं,’’ कह मनोज अपने पिता के साथ जाने को उठ खड़ा हुआ.

‘‘बाजार से क्यों कुछ लाना है? आलूमटर की सब्जी रखी है. मैं फटाफट परांठे तैयार कर देती हूं,’’ कह मामी रसोई में जाने को उठ खड़ी हुई.

‘‘भाभी, आज आप अपने इस शिष्य को काम करने की आज्ञा दो,’’ रहस्यमयी अंदाज में मुसकरा रहे राजनाथ ने अपनी सलहज का हाथ पकड़ कर वापस सोफे पर बैठा दिया.

‘‘क्या परांठे आप बनाएंगे?’’ मनोज का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया.

‘‘पिछले दिनों तुम्हारी मामी से कुछ कुकिंग सीखी है मैं ने. बस 15 मिनट से ज्यादा समय नहीं लगेगा खाना लगाने में. तुम दोनों तब तक फ्रैश हो जाओ,’’ अपने बेटे का गाल प्यार से थपथपाने के बाद राजनाथ सीटी बजाते हुए रसोई की तरफ चले गए.

राजनाथ ने क्याक्या बनाना सीख लिया है, इस की जानकारी उन दोनों को देते हुए आरती और मामामामी की आंखें खुशी से चमक रही. ‘‘मटरपनीर, कोफ्ते, बैगन का भरता, भरवां भिंडी. पापा ये सब बना सकते हैं. मुझे विश्वास नहीं हो रहा है. कैसे हुआ यह चमत्कार?’’ मनोज सचमुच बहुत हैरान नजर आ रहा था, क्योंकि राजनाथ को तो पहले चाय भी ढंग से बनानी नहीं आती थी.

‘‘अरे, जीजाजी आजकल बड़े मौडर्न हो गए हैं. कहते हैं कि आज के समय में हर इंसान को घर और बाहर के सारे काम करने आने चाहिए. किसी पर आश्रित हो कर बोझ बन जाना नर्क में जीने जैसा है… अपने इस नए आदर्श वाक्य को वे दिन में कई बार हम सब को सुनाते हैं. इस उम्र में कोई इतना ज्यादा बदल सकता है, यह सचमुच हैरान करने वाली बात है,’’ मामाजी की इस बात का पूरा अर्थ मनोज को अगले 2 दिनों में समझ आया.

राजनाथजी ने उन्हें उस रात खस्ता परांठे बना कर खिलाए. फिर रेत गरम कर के उसे एक पोटली में भरा और आरती की कमर की सिंकाई करी. वे पहले बहुत कम बोलत थे, पर अब उन की हंसी से कमरा बारबार गूंज उठता था.

अगले दिन सब को बैड टी उन्होंने ही पिलाई. इस से पहले वे और आरती घंटाभर पास के पार्क में घूम आए थे. नाश्ते में ब्रैडपकौड़े मामीजी ने बनाए पर सब को गरमगरम पकौड़े खिलाने का काम उन्होंने बड़े उत्साह से किया.

आरती ने पूरे घर में झड़ू लगाया और डस्टिंग का काम राजनाथजी ने किया. फिर नहाधो कर वे लाइब्रेरी में अखबार पढ़ने चले गए.

मनोज और अंजु उन की चुस्तीफुरती देख कर बारबार हैरान हो उठते. ऐसा प्रतीत होता जैसे उन में जीने का उत्साह कूटकूट कर भर गया हो.

शाम को वे सब बाजार घूमने गए. चाट खाने की शौकीन अंजु को राजनाथजी ने एक मशहूर दुकान से चाट खिलाई. बाद में आइसक्रीम भी खाई.

वापस आने पर किसी को ज्यादा भूख नहीं थी, इसलिए पुलाव बनाने का कार्यक्रम बना. आरती और मामीजी यह काम करना चाहती थीं, लेकिन राजनाथजी ने किसी की न चलने दी और रसोई में अकेले घुस गए.

उन्होंने बहुत स्वादिष्ठ पुलाव बनाया. सब के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर वे फूले नहीं समाए.

काफी थके होने के बावजूद उन्होंने सोने से पहले आरती की कमर की सिंकाई करने के बाद मूव लगाने में कोई आलस नहीं किया.

रविवार की सुबह मामीजी ने सब को सांभरडोसे का नाश्ता कराया. राजनाथजी उन की बगल में खड़े हो कर डोसा बनाने की विधि बड़े ध्यान से देखते रहे.

सब ने इतना ज्यादा खाया कि लंच करने की जरूरत ही न रहे. कुछ देर आराम करने के बाद मनोज ने दिल्ली लौटने की तैयारी शुरू कर दी.

‘‘पापा, मम्मी, आप दोनों भी अपना सामान पैक करना शुरू कर दो. यहां से 2 बजे तक निकलना ठीक रहेगा. लेट हो गए तो शाम के ट्रैफिक में फंस जाएंगे,’’ मनोज की यह बात सुन कर राजनाथजी एकदम गंभीर हो गए तो आरती बेचैन अंदाज में उन की शक्ल ताकने लगी.

‘‘इन्हें अभी कुछ और दिन यहीं रहने दो, मनोज बेटा,’’ मामाजी भी सहज नजर नहीं आ रहे थे.

‘‘मामाजी, ये दोनों 1 महीना तो रह लिए हैं यहां. इन का अगला चक्कर मैं जल्दी लगवा दूंगा,’’  मनोज ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

राजनाथ ने एक बार अपना गला साफ करने के बाद मनोज से कहा, ‘‘हम अभी नहीं चल रहे हैं मनोज.’’

‘‘क्यों? क्या आप अब भी हम से नाराज हो?’’ मनोज एकदम से चिड़ उठा.

‘‘मेरी बात समझ बेटे. हमारे कारण तेरे घर में क्लेश हो, यह हम बिलकुल नहीं चाहते हैं,’’ राजनाथ असहज नजर आने लगे.

‘‘इस तरह के झगड़े घर में चलते रहते हैं, पापा. इन के कारण आप दोनों का घर छोड़ देना समझदारी की बात नहीं है.’’

‘‘तेरी मां की बहू से नहीं बनती है. किसी दिन लड़झगड़ कर अंजु घर छोड़े, इस से बेहतर है कि हम तुम दोनों को अकेले रहने दें.’’

‘‘हमे अकेले नहीं, बल्कि आप दोनों के साथ रहना है. अब आप पिछली बातें भुला कर सामान बांधना शुरू कर दो. अंजु, तुम क्यों नहीं कुछ बोल रही हो?’’ मनोज ने उन दोनों पर दबाव बनाने के लिए अपनी पत्नी से सहायता मांगी.

‘‘आप दोनों हमारे साथ चलिए, प्लीज,’’ अंजु ने धीमी आवाज में अपने ससुर से प्रार्थना करी.

राजनाथजी कुछ पलों की खामोशी के बाद बोले, ‘‘तुम दोनों जोर डालोगे, तो हम वापस चल पड़ेंगे, पर पहले मैं कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या यह कहनासुनना घर पहुंच कर नहीं हो सकता है, पापा?’’

‘‘अभी मैं ने तुम्हारे साथ वापस चलने का फैसला नहीं किया है, मनोज.’’

‘‘वापस तो मैं आप दोनों को ले ही जाऊंगा. हम से क्या कहना चाहते हो आप?’’

तब राजनाथजी ने भावुक स्वर में बोलना शुरू किया, ‘‘बहू, तुम भी मेरी बात ध्यान से सुनो. उस रात मनोज से लड़ते हुए गुस्से में तुम ने हमें बोझ बताया था. तुम्हारी उस शिकायत को दूर करने के लिए मैं ने खाना बनाना, घर साफ रखना और मशीन से कपड़े धोना सीख लिया है. तुम्हारी सास से ज्यादा काम नहीं होता, पर मैं तुम्हारा हाथ बंटाने लायक हो गया हूं.

‘‘तुम्हारी सास का भी गुस्सा तेज है. मैं ने यहां आ कर इसे बहुत समझया है… इस ने मुझ से वादा किया है कि यह तुम्हारे साथ अपना व्यवहार बदल लेगी.

‘‘उस रात मनोज से झगड़ते हुए जब तुम ने घर छोड़ कर मायके चले जाने की धमकी दी, तो मैं अंदर तक कांप उठा था. उसी रात मैं ने ये फैसला कर लिया था कि घर में सुखशांति बनाए रखने को अगर कोई घर छोड़ेगा, तो वे तुम्हारी सास और मैं, तुम नहीं.

‘‘बहू, मनोज को अपनी पहली पत्नी से तलाक आसानी से नहीं मिला था. जिन दिनों केस चल रहा था, हम शर्मिंदगी के मारे लोगों से नजर नहीं मिला पाते थे. उन के सवालों के जवाब देने से बचने के लिए हम ने घर से निकलना बिलकुल कम कर दिया था. वकीलों और पुलिस वालों ने हमें बहुत सताया था.

‘‘वैसा खराब वक्त मेरी जिंदगी में फिर से आ सकता है, ऐसी कल्पना भी मेरी रूह कंपा देती है. तभी मैं कह रहा हूं कि तुम दोनों हमें साथ ले जाने की जिद न करो. अगर तुम दोनों के बीच कभी अलगाव हुआ और मुझे वैसी शर्मिंदगी का बोझ एक बार फिर से ढोना पड़ा, तो मैं जीतेजी मर जाऊंगा.’’

‘‘पापा, आप अपने आंसू पोंछ लो, प्लीज… मैं वादा करती हूं कि घर छोड़ कर जाने की बात मेरे मुंह से कभी नहीं निकलेगी.’’ अपने ससुर के मन की पीड़ा को दूर करने के लिए अंजु ने भरे गले से तुरंत उन्हें  विश्वास दिलाया.

‘‘और मैं ने आज से शराब छोड़ दी,’’ मनोज के इस फैसले को सुन राजनाथजी ने भावविभोर हो कर उसे गले से लगा लिया.

‘‘आरती, तुम पैकिंग शुरू करो और मैं इस खुशी के मौके पर सब का मुंह हलवे से मीठा कराता हूं,’’ बहुत खुश नजर आ रहे राजनाथजी ने अपने बहूबेटे के सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और फिर रसोई की तरफ चले गए. Family Drama Story

Emotional Story: पहला पहला प्यार

Emotional Story: Pehla Pehla Pyar

‘‘दा,तुम मेरी बात मान लो और आज खाने की मेज पर मम्मीपापा को सारी बातें साफसाफ बता दो. आखिर कब तक यों परेशान बैठे रहोगे?’’

बच्चों की बातें कानों में पड़ीं तो मैं रुक गई. ऐसी कौन सी गलती विकी से हुई जो वह हम से छिपा रहा है और उस का छोटा भाई उसे सलाह दे रहा है. मैं ‘बात क्या है’ यह जानने की गरज से छिप कर उन की बातें सुनने लगी.

‘‘इतना आसान नहीं है सबकुछ साफसाफ बता देना जितना तू समझ रहा है,’’ विकी की आवाज सुनाई पड़ी.

‘‘दा, यह इतना मुश्किल भी तो नहीं है. आप की जगह मैं होता तो देखते कितनी स्टाइल से मम्मीपापा को सारी बातें बता भी देता और उन्हें मना भी लेता,’’ इस बार विनी की आवाज आई.

‘‘तेरी बात और है पर मुझ से किसी को ऐसी उम्मीद नहीं होगी,’’ यह आवाज मेरे बड़े बेटे विकी की थी.

‘‘दा, आप ने कोई अपराध तो किया नहीं जो इतना डर रहे हैं. सच कहूं तो मुझे ऐसा लगता है कि मम्मीपापा आप की बात सुन कर गले लगा लेंगे,’’ विनी की आवाज खुशी और उत्साह दोनों से भरी हुई थी.

‘बात क्या है’ मेरी समझ में कुछ नहीं आया. थोड़ी देर और खड़ी रह कर उन की आगे की बातें सुनती तो शायद कुछ समझ में आ भी जाता पर तभी प्रेस वाले ने डोर बेल बजा दी तो मैं दबे पांव वहां से खिसक ली.

बच्चों की आधीअधूरी बातें सुनने के बाद तो और किसी काम में मन ही नहीं लगा. बारबार मन में यही प्रश्न उठते कि मेरा वह पुत्र जो अपनी हर छोटीबड़ी बात मुझे बताए बिना मुंह में कौर तक नहीं डालता है, आज ऐसा क्या कर बैठा जो हम से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. सोचा, चल कर साफसाफ पूछ लूं पर फिर लगा कि बच्चे क्या सोचेंगे कि मम्मी छिपछिप कर उन की बातें सुनती हैं.

जैसेतैसे दोपहर का खाना तैयार कर के मेज पर लगा दिया और विकीविनी को खाने के लिए आवाज दी. खाना परोसते समय खयाल आया कि यह मैं ने क्या कर दिया, लौकी की सब्जी बना दी. अभी दोनों अपनीअपनी कटोरी मेरी ओर बढ़ा देंगे और कहेंगे कि रामदेव की प्रबल अनुयायी माताजी, यह लौकी की सब्जी आप को ही सादर समर्पित हो. कृपया आप ही इसे ग्रहण करें. पर मैं आश्चर्यचकित रह गई यह देख कर कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. उलटा दोनों इतने मन से सब्जी खाने में जुटे थे मानो उस से ज्यादा प्रिय उन्हें कोई दूसरी सब्जी है ही नहीं.

बात जरूर कुछ गंभीर है. मैं ने मन में सोचा क्योंकि मेरी बनाई नापसंद सब्जी या और भी किसी चीज को ये चुपचाप तभी खा लेते हैं जब या तो कुछ देर पहले उन्हें किसी बात पर जबरदस्त डांट पड़ी हो या फिर अपनी कोई इच्छा पूरी करवानी हो.

खाना खा कर विकी और विनी फिर अपने कमरे में चले गए. ऐसा लग रहा था कि किसी खास मसले पर मीटिंग अटेंड करने की बहुत जल्दी हो उन्हें.

विकी सी.ए. है. कानपुर में उस ने अपना शानदार आफिस बना लिया है. ज्यादातर शनिवार को ही आता है और सोमवार को चला जाता है. विनी एम.बी.ए. की तैयारी कर रहा है. बचपन से दोनों भाइयों के स्वभाव में जबरदस्त अंतर होते हुए भी दोनों पल भर को भी अलग नहीं होते हैं. विकी बेहद शांत स्वभाव का आज्ञाकारी लड़का रहा है तो विनी इस के ठीक उलट अत्यंत चंचल और अपनी बातों को मनवा कर ही दम लेने वाला रहा है. इस के बावजूद इन दोनों भाइयों का प्यार देख हम दोनों पतिपत्नी मन ही मन मुसकराते रहते हैं.

अपना काम निबटा कर मैं बच्चों के कमरे में चली गई. संडे की दोपहर हमारी बच्चों के कमरे में ही गुजरती है और बच्चे हम से सारी बातें भी कह डालते हैं, जबकि ऐसा करने में दूसरे बच्चे मांबाप से डरते हैं. आज मुझे राजीव का बाहर होना बहुत खलने लगा. वह रहते तो माहौल ही कुछ और होता और वह किसी न किसी तरह बच्चों के मन की थाह ले ही लेते.

मेरे कमरे में पहुंचते ही विनी अपनी कुरसी से उछलते हुए चिल्लाया, ‘‘मम्मा, एक बात आप को बताऊं, विकी दा ने…’’

उस की बात विकी की घूरती निगाहों की वजह से वहीं की वहीं रुक गई. मैं ने 1-2 बार कहा भी कि ऐसी कौन सी बात है जो आज तुम लोग मुझ से छिपा रहे हो, पर विकी ने यह कह कर टाल दिया कि कुछ खास नहीं मम्मा, थोड़ी आफिस से संबंधित समस्या है. मैं आप को बता कर परेशान नहीं करना चाहता पर विनी के पेट में कोई बात पचती ही नहीं है.

हालांकि मैं मन ही मन बहुत परेशान थी फिर भी न जाने कैसे झपकी लग गई और मैं वहीं लेट गई. अचानक ‘मम्मा’ शब्द कानों में पड़ने से एक झटके से मेरी नींद खुल गई पर मैं आंखें मूंदे पड़ी रही. मुझे सोता देख कर उन की बातें फिर से चालू हो गई थीं और इस बार उसी कमरे में होने की वजह से मुझे सबकुछ साफसाफ सुनाई दे रहा था.

विकी ने विनी को डांटा, ‘‘तुझे मना किया था फिर भी तू मम्मा को क्या बताने जा रहा था?’’

‘‘क्या करता, तुम्हारे पास हिम्मत जो नहीं है. दा, अब मुझ से नहीं रहा जाता, अब तो मुझे जल्दी से भाभी को घर लाना है. बस, चाहे कैसे भी.’’

विकी ने एक बार फिर विनी को चुप रहने का इशारा किया. उसे डर था कि कहीं मैं जाग न जाऊं या उन की बातें मेरे कानों में न पड़ जाएं.

अब तक तो नींद मुझ से कोसों दूर जा चुकी थी. ‘तो क्या विकी ने शादी कर ली है,’ यह सोच कर लगा मानो मेरे शरीर से सारा खून किसी ने निचोड़ लिया. कहां कमी रह गई थी हमारे प्यार में और कैसे हम अपने बच्चों में यह विश्वास उत्पन्न करने में असफल रह गए कि जीवन के हर निर्णय में हम उन के साथ हैं.

आज पलपल की बातें शेयर करने वाले मेरे बेटे ने मुझे इस योग्य भी न समझा कि अपने शादी जैसे महत्त्वपूर्ण फैसले में शामिल करे. शामिल करना तो दूर उस ने तो बताने तक की भी जरूरत नहीं समझी. मेरे व्यथित और तड़पते दिल से एक आवाज निकली, ‘विकी, सिर्फ एक बार कह कर तो देखा होता बेटे तुम ने, फिर देखते कैसे मैं तुम्हारी पसंद को अपने अरमानों का जोड़ा पहना कर इस घर में लाती. पर तुम ने तो मुझे जीतेजी मार डाला.’

पल भर के अंदर ही विकी के पिछले 25 बरस आंखों के सामने से गुजर गए और उन 25 सालों में कहीं भी विकी मेरा दिल दुखाता हुआ नहीं दिखा. टेबल पर रखे फल उठा कर खाने से पहले भी वह जहां होता वहीं से चिल्ला कर मुझे बताता था कि मम्मा, मैं यह सेब खाने जा रहा हूं. और आज…एक पल में ही पराया बना दिया बेटे ने.

कलेजे को चीरता हुआ आंसुओं का सैलाब बंद पलकों के छोर से बूंद बन कर टपकने ही वाला था कि अचानक विकी की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी, ‘‘तुम ने देखा नहीं है मम्मीपापा के कितने अरमान हैं अपनी बहुओं को ले कर और बस, मैं इसी बात से डरता हूं कि कहीं बरखा मम्मीपापा की कल्पनाओं के अनुरूप नहीं उतरी तो क्या होगा? अगर मैं पहले ही इन्हें बता दूंगा कि मैं बरखा को पसंद करता हूं तो फिर कोई प्रश्न ही नहीं उठता कि मम्मीपापा उसे नापसंद करें, वे हर हाल में मेरी शादी उस से कर देंगे और मैं यही नहीं चाहता हूं. मम्मीपापा के शौक और अरमान पूरे होने चाहिए, उन की बहू उन्हें पसंद होनी चाहिए. बस, मैं इतना ही चाहता हूं.’’

‘‘और अगर वह उन्हें पसंद नहीं आई तो?’’

‘‘नहीं आई तो देखेंगे, पर मैं ने इतना तो तय कर लिया है कि मैं पहले से यह बिलकुल नहीं कह सकता कि मैं किसी को पसंद करता हूं.’’

तो विकी ने शादी नहीं की है, वह केवल किसी बरखा नाम की लड़की को पसंद करता है और उस की समस्या यह है कि बरखा के बारे में हमें बताए कैसे? इस बात का एहसास होते ही लगा जैसे मेरे बेजान शरीर में जान वापस आ गई. एक बार फिर से मेरे सामने वही विकी आ खड़ा हुआ जो अपनी कोई बात कहने से पहले मेरे चारों ओर चक्कर लगाता रहता, मेरा मूड देखता फिर शरमातेझिझकते हुए अपनी बात कहता. उस का कहना कुछ ऐसा होता कि मना करने का मैं साहस ही नहीं कर पाती. ‘बुद्धू, कहीं का,’ मन ही मन मैं बुदबुदाई. जानता है कि मम्मा किसी बात के लिए मना नहीं करतीं फिर भी इतनी जरूरी बात कहने से डर रहा है.

सो कर उठी तो सिर बहुत हलका लग रहा था. मन में चिंता का स्थान एक चुलबुले उत्साह ने ले लिया था. मेरे बेटे को प्यार हो गया है यह सोचसोच कर मुझे गुदगुदी सी होने लगी. अब मुझे समझ में आने लगा कि विनी को भाभी घर में लाने की इतनी जल्दी क्यों मच रही थी. ऐसा लगने लगा कि विनी का उतावलापन मेरे अंदर भी आ कर समा गया है. मन होने लगा कि अभी चलूं विकी के पास और बोलूं कि ले चल मुझे मेरी बहू के पास, मैं अभी उसे अपने घर में लाना चाहती हूं पर मां होने की मर्यादा और खुद विकी के मुंह से सुनने की एक चाह ने मुझे रोक दिया.

रात को खाने की मेज पर मेरा मूड तो खुश था ही, दिन भर के बाद बच्चों से मिलने के कारण राजीव भी बहुत खुश दिख रहे थे. मैं ने देखा कि विनी कई बार विकी को इशारा कर रहा था कि वह हम से बात करे पर विकी हर बार कुछ कहतेकहते रुक सा जाता था. अपने बेटे का यह हाल मुझ से और न देखा गया और मैं पूछ ही बैठी, ‘‘तुम कुछ कहना चाह रहे हो, विकी?’’

‘‘नहीं…हां, मैं यह कहना चाहता था मम्मा कि जब से कानपुर गया हूं दोस्तों से मुलाकात नहीं हो पाती है. अगर आप कहें तो अगले संडे को घर पर दोस्तों की एक पार्टी रख लूं. वैसे भी जब से काम शुरू किया है सारे दोस्त पार्टी मांग रहे हैं.’’

‘‘तो इस में पूछने की क्या बात है. कहा होता तो आज ही इंतजाम कर दिया होता,’’ मैं ने कहा, ‘‘वैसे कुल कितने दोस्तों को बुलाने की सोच रहे हो, सारे पुराने दोस्त ही हैं या कोई नया भी है?’’

‘‘हां, 2-4 नए भी हैं. अच्छा रहेगा, आप सब से भी मुलाकात हो जाएगी. क्यों विनी, अच्छा रहेगा न?’’ कह कर विकी ने विनी को संकेत कर के राहत की सांस ली.

मैं समझ गई थी कि पार्टी की योजना दोनों ने मिल कर बरखा को हम से मिलाने के लिए ही बनाई है और विकी के ‘नए दोस्तों’ में बरखा भी शामिल होगी.

अब बच्चों के साथसाथ मेरे लिए भी पार्टी की अहमियत बहुत बढ़ गई थी. अगले संडे की सुबह से ही विकी बहुत नर्वस दिख रहा था. कई बार मन में आया कि उसे पास बुला कर बता दूं कि वह सारी चिंता छोड़ दे क्योंकि हमें सबकुछ मालूम हो चुका है, और बरखा जैसी भी होगी मुझे पसंद होगी. पर एक बार फिर विकी के भविष्य को ले कर आशंकित मेरे मन ने मुझे चुप करा दिया कि कहीं बरखा विकी के योग्य न निकली तो? जब तक बात सामने नहीं आई है तब तक तो ठीक है, उस के बारे में कुछ भी राय दे सकती हूं, पर अगर एक बार सामने बात हो गई तो विकी का दिल टूट जाएगा.

4 बजतेबजते विकी के दोस्त एकएक कर के आने लगे. सच कहूं तो उस समय मैं खुद काफी नर्वस होने लगी थी कि आने वालों में बरखा नाम की लड़की न मालूम कैसी होगी. सचमुच वह मेरे विकी के लायक होगी या नहीं. मेरी भावनाओं को राजीव अच्छी तरह समझ रहे थे और आंखों के इशारे से मुझे धैर्य रखने को कह रहे थे. हमें देख कर आश्चर्य हो रहा था कि सदैव हंगामा करते रहने वाला विनी भी बिलकुल शांति  से मेरी मदद में लगा था और बीचबीच में जा कर विकी की बगल में कुछ इस अंदाज से खड़ा होता मानो उस से कह रहा हो, ‘दा, दुखी न हो, मैं तुम्हारे साथ हूं.’

ठीक साढ़े 4 बजे बरखा ने अपनी एक सहेली के साथ ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. उस के घुसते ही विकी की नजरें विनी से और मेरी नजरें इन से जा टकराईं. विकी अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और उन्हें हमारे पास ला कर उन से हमारा परिचय करवाया, ‘‘बरखा, यह मेरे मम्मीपापा हैं और मम्मीपापा, यह मेरी नई दोस्त बरखा और यह बरखा की दोस्त मालविका है. ये दोनों एम.सी.ए. कर रही हैं. पिछले 7 महीने से हमारी दोस्ती है पर आप लोगों से मुलाकात न करवा सका था.’’

हम ने महसूस किया कि बरखा से हमारे परिचय के दौरान पूरे कमरे का शोर थम गया था. इस का मतलब था कि विकी के सारे दोस्तों को पहले से बरखा के बारे में मालूम था. सच है, प्यार एक ऐसा मामला है जिस के बारे में बच्चों के मांबाप को ही सब से बाद में पता चलता है. बच्चे अपना यह राज दूसरों से तो खुल कर शेयर कर लेते हैं पर अपनों से बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं.

बरखा को देख लेने और उस से बातचीत कर लेने के बाद मेरे मन में उसे बहू बना लेने का फैसला पूर्णतया पक्का हो गया. विकी बरखा के ही साथ बातें कर रहा था पर उस से ज्यादा विनी उस का खयाल रख रहा था. पार्टी लगभग समाप्ति की ओर अग्रसर थी. यों तो हमारा फैसला पक्का हो चुका था पर फिर भी मैं ने एक बार बरखा को चेक करने की कोशिश की कि शादी के बाद घरगृहस्थी संभालने के उस में कुछ गुण हैं या नहीं.

मेरा मानना है कि लड़की कितने ही उच्च पद पर आसीन हो पर घरपरिवार को उस के मार्गदर्शन की आवश्यकता सदैव एक बच्चे की तरह होती है. वह चूल्हेचौके में अपना दिन भले ही न गुजारे पर चौके में क्या कैसे होता है, इस की जानकारी उसे अवश्य होनी चाहिए ताकि वह अच्छा बना कर खिलाने का वक्त न रखते हुए भी कम से कम अच्छा बनवाने का हुनर तो अवश्य रखती हो.

मैं शादी से पहले घरगृहस्थी में निपुण होना आवश्यक नहीं मानती पर उस का ‘क ख ग’ मालूम रहने पर ही उस जिम्मेदारी को निभा पाने की विश्वसनीयता होती है. बहुत से रिश्तों को इन्हीं बुनियादी जिम्मेदारियों के अभाव में बिखरते देखा था मैं ने, इसलिए विकी के जीवन के लिए मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

मैं ने बरखा को अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटा, सुबह से पार्टी की तैयारी में लगे होने की वजह से इस वक्त सिर बहुत दुखने लगा है. मैं ने गैस पर तुम सब के लिए चाय का पानी चढ़ा दिया है, अगर तुम्हें चाय बनानी आती हो तो प्लीज, तुम बना लो.’’

‘‘जी, आंटी, अभी बना लाती हूं,’’ कह कर वह विकी की तरफ पलटी, ‘‘किचन कहां है?’’

‘‘उस तरफ,’’ हाथ से किचन की तरफ इशारा करते हुए विकी ने कहा, ‘‘चलो, मैं तुम्हें चीनी और चायपत्ती बता देता हूं,’’ कहते हुए वह बरखा के साथ ही चल पड़ा.

‘‘बरखाजी को अदरक कूट कर दे आता हूं,’’ कहता हुआ विनी भी उन के पीछे हो लिया.

चाय चाहे सब के सहयोग से बनी हो या अकेले पर बनी ठीक थी. किचन में जा कर मैं देख आई कि चीनी और चायपत्ती के डब्बे यथास्थान रखे थे, दूध ढक कर फ्रिज में रखा था और गैस के आसपास कहीं भी चाय गिरी, फैली नहीं थी. मैं निश्चिंत हो आ कर बैठ गई. मुझे मेरी बहू मिल गई थी.

एकएक कर के दोस्तों का जाना शुरू हो गया. सब से अंत में बरखा और मालविका हमारे पास आईं और नमस्ते कर के हम से जाने की अनुमति मांगने लगीं. अब हमारी बारी थी, विकी ने अपनी मर्यादा निभाई थी. पिछले न जाने कितने दिनों से असमंजस की स्थिति गुजरने के बाद उस ने हमारे सामने अपनी पसंद जाहिर नहीं की बल्कि उसे हमारे सामने ला कर हमारी राय जाननेसमझने का प्रयत्न करता रहा. और हम दोनों को अच्छी तरह पता है कि अभी भी अपनी बात कहने से पहले वह बरखा के बारे में हमारी राय जानने की कोशिश अवश्य करेगा, चाहे इस के लिए उसे कितना ही इंतजार क्यों न करना पड़े.

मैं अपने बेटे को और असमंजस में नहीं देख सकती थी, अगर वह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा है तो उस की बात को मैं ही कह कर उसे कशमकश से उबार लूंगी.

बरखा के दोबारा अनुमति मांगने पर मैं ने कहा, ‘‘घर की बहू क्या घर से खाली हाथ और अकेली जाएगी?’’

मेरी बात का अर्थ जैसे पहली बार किसी की समझ में नहीं आया. मैं ने विकी का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तेरी पसंद हमें पसंद है. चल, गाड़ी निकाल, हम सब बरखा को उस के घर पहुंचाने जाएंगे. वहीं इस के मम्मीडैडी से रिश्ते की बात भी करनी है. अब अपनी बहू को घर में लाने की हमें भी बहुत जल्दी है.’’

मेरी बात का अर्थ समझ में आते ही पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. मम्मीपापा को यह सब कैसे पता चला, इस सवाल में उलझाअटका विकी पहले तो जहां का तहां खड़ा रह गया फिर अपने पापा की पहल पर बढ़ कर उन के सीने से लग गया.

इन सब बातों में समय गंवाए बिना विनी गैरेज से गाड़ी निकाल कर जोरजोर से हार्न बजाने लगा. उस की बेताबी देख कर मैं दौड़ते हुए अपनी खानदानी अंगूठी लेने के लिए अंदर चली गई, जिसे मैं बरखा के मातापिता की सहमति ले कर उसे वहीं पहनाने वाली थी. Emotional Story

Crime Story: हवस का नतीजा- राज ने भाभी के साथ क्या किया

Crime Story: मुग्धा का बदन बुखार से तप रहा था. ऊपर से रसोई की जिम्मेदारी. किसी तरह सब्जी चलाए जा रही थी तभी उस का देवर राज वहां पानी पीने आया. उस ने मुग्धा के हावभाव देखे तो उस के माथे पर हाथ रखा और बोला, ‘‘भाभी, आप को तो तेज बुखार है.’’

‘‘हां…’’ मुग्धा ने कमजोर आवाज में कहा, ‘‘सुबह कुछ नहीं था. दोपहर से अचानक…’’

‘‘भैया को बताया?’’

‘‘नहीं, वे तो परसों आने ही वाले हैं वैसे भी… बेकार परेशान होंगे. आज तो रात हो ही गई… बस कल की बात है.’’

‘‘अरे, लेकिन…’’ राज की फिक्र कम नहीं हुई थी. मगर मुग्धा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं. मामूली बुखार ही तो है. तुम जा कर पढ़ाई करो, खाना बनते ही बुला लूंगी.’’

‘‘खाना बनते ही बुला लूंगी…’’ मुग्धा की नकल उतार कर चिढ़ाते हुए राज ने उस के हाथ से बेलन छीना और बोला, ‘‘लाइए, मैं बना देता हूं. आप जा कर आराम कीजिए.’’

‘‘न… न… लेट गई तो मैं और बीमार हो जाऊंगी,’’ मुग्धा बैठने वालियों में से नहीं थी. वह बोली, ‘‘हम दोनों मिल कर बना लेते हैं,’’ और वे दोनों मिल कर खाना बनाने लगे.

मुग्धा का पति विनय कंपनी के किसी काम से 3 दिनों के लिए बाहर गया हुआ था. वह कर्मचारी तो कोई बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन बौस का भरोसेमंद था. सो, किसी भी काम के लिए वे उसे ही भेजते थे.

मुग्धा का 21 साल का देवर राज प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. विनय जैसा प्यार करने वाला पति पा कर मुग्धा भी खुश रहती थी. कुछ पति की तनख्वाह और कुछ वह खुद जो निजी स्कूल में पढ़ाती, दोनों से मिला कर घर का खर्च अच्छे से निकल आता. सासससुर गांव में रहते थे. देवर राज अपनी पढ़ाई के चलते उन के साथ ही रहता था.

जिंदगी में कमी थी तो बस यही कि खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 10 सालों के बाद भी उन के कोई औलाद नहीं थी. अब मुग्धा 35 साल की हो चुकी थी. अपनी हमउम्र बाकी टीचरों को उन के बच्चों के साथ देखती तो न चाहते हुए भी उसे रोना आ ही जाता. वह अपनी डायरी के पन्ने इसी पीड़ा से रंगती जाती.

रोटियां बन चुकी थीं. राज ने उसे कुरसी पर बैठने को बोला और सामान समेटने लगा. मुग्धा ने सिर पीछे की ओर टिकाया और आंखें बंद कर लीं. वातावरण एकदम शांत था. तभी वहां वही तूफान फिर से गरजने लगा जिस का शोर मुग्धा आज तक नहीं भांप पाई थी.

राज की गरदन धीरे से मुग्धा की ओर घूम चुकी थी. वह कनखियों से मुग्धा की फिटिंग वाली समीज में कैद उस के उभारों को देखने लगा था. मुग्धा की सांसों के साथ जैसेजैसे वे ऊपरनीचे होते, वैसेवैसे राज के अंदर का शैतान जागता जाता.

‘‘हो गया सब काम…?’’ बरतनों की आवाज बंद जान कर मुग्धा ने अचानक पूछते हुए अपनी आंखें खोल दीं.

राज हकबका गया और बोला, ‘‘हां भाभी, बस हो ही गया…’’ कह कर राज ने जल्दीजल्दी बाकी काम निबटाया और खाने की चीजों को उठा कर मेज पर ले गया.

मुग्धा ने मुश्किल से 2 रोटियां खाईं, वह भी राज की जिद पर. वह जबरदस्ती सब्जी उस की प्लेट में डाल दे रहा था. खाने के बाद मुग्धा सोने जाने लगी तो राज बोला, ‘‘भाभी, 15 मिनट के लिए आगे वाले कमरे में बैठिए न… मैं आप के लिए दवा ले आता हूं.’’

‘‘अरे नहीं, रातभर में उतर जाएगा…’’ मुग्धा ने मना किया लेकिन राज कहां मानने वाला था.

‘‘मैं पास वाले कैमिस्ट से ही दवा ले कर आ रहा हूं भाभी… जहां से आप मंगाती हैं हमेशा… दरवाजा बंद कर लीजिए… मैं अभी आया…’’ कहता हुआ वह निकल गया.

मुग्धा ने दरवाजा बंद किया और सोफे पर पैर ऊपर कर के बैठ गई.

राज ने तय कर लिया था कि आज तो वह अपने मन की कर के ही रहेगा. इस बीच कैमिस्ट की दुकान आ गई.

‘‘क्या बात है राज बाबू?’’ कैमिस्ट ने राज को खोया सा देखा तो पूछा. राज का ध्यान वापस दुकान पर आया.

‘‘दवा चाहिए थी,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अबे तो यहां क्या मिठाई मिलती है?’’ कैमिस्ट उसे छेड़ते हुए बोला. वह उस का पुराना दोस्त था.

राज मुसकरा उठा और कहा, ‘‘अरे, जल्दी दे न…’’

‘‘जल्दी दे न…’’ बड़बड़ाते हुए कैमिस्ट ने हैरत से उस की ओर देखा, ‘‘कौन सी दवा चाहिए, यह तो बता?’’

राज को याद आया कि उस ने तो सचमुच कोई दवा मांगी ही नहीं है. उस ने ऐसे ही बोल दिया, ‘‘भाभी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें बुखार है. जरा नींद की गोली देना.’’

‘नींद की गोली बुखार के लिए…’ सोचते हुए कैमिस्ट ने उसे देखा. वह खुद भी मुग्धा के हुस्न का दीवाना था. हमेशा उस के बारे में चटकारे लेले कर बातें किया करता था. उस ने राज के मन की बात ताड़ ली. ऐसी बातों का उसे बहुत अनुभव जो था. उस ने नींद की गोली के साथ बुखार की भी दवा दे दी.

राज ने लिफाफा जेब में रखा और तेजी से वापस चलने को हुआ कि तभी कैमिस्ट चिल्लाया, ‘‘अरे भाई, खुराक तो सुन ले.’’

राज को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह काउंटर पर आया. कैमिस्ट ने उसे डोज बताई और आंख मारते हुए बोला, ‘‘यह नींद वाली एक से ज्यादा मत देना… टाइट चीज है…’’

‘‘अबे, क्या बकवास कर रहा है,’’ राज के मन का डर उस की जबान से बोल पड़ा. उस की तो चोर की दाढ़ी में तिनका वाली हालत हो गई. वह जाने लगा.

कैमिस्ट पीछे से कह रहा था, ‘‘अगली बार हम को भी याद रखना दोस्त…’’

राज उस को अनसुना करता हुआ आगे बढ़ गया. घर लौटने पर डोर बैल बजाते ही मुग्धा ने दरवाजा खोल दिया और बोली, ‘‘यहीं बैठी थी लगातार…’’

‘‘जी भाभी, आइए अंदर चलिए…’’ राज ने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा.

मुग्धा अपने कमरे में आ कर लेट गई. राज ने उसे पहले बुखार की दवा दी. मुग्धा दवा ले कर सोने के लिए लेटने लगी तो राज ने उसे रोका, ‘‘भाभी, अभी एक दवा बाकी है…’’

‘‘कितनी सारी ले आए भैया?’’ मुग्धा ने थकी आवाज में बोला और बाम ले कर माथे पर लगाने लगी.

‘‘भाभी दीजिए, मैं लगा देता हूं,’’ कह कर राज ने उस से बाम की डब्बी ले ली और उस के माथे पर मलने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने मुग्धा को नींद वाली गोली भी खिला दी और लिटा दिया.

राज उस का माथा दबाता रहा. थोड़ी देर बाद उस ने पुष्टि करने के लिए मुग्धा को आवाज दी. ‘‘भाभी सो गईं क्या?’’

कोई जवाब नहीं मिला. राज ने उस के चेहरे को हिलाडुला कर भी देख लिया. कोई प्रतिक्रिया न पा कर वह समझ गया कि रास्ता साफ हो चुका है.

राज की कनपटियों में खून तेजी से दौड़ने लगा. वह बत्ती जलती ही छोड़ मुग्धा के ऊपर आ गया. मर्यादा के आवरण प्याज के छिलकों की तरह उतरते चले गए. कमरे में आए भूचाल से मेज पर रखी विनयमुग्धा की तसवीर गिर कर टूट गई.

सबकुछ शांत होने पर राज थक कर चूरचूर हो कर मुग्धा के बगल में लेट गया.

‘‘बस अब बुखार उतर जाएगा भाभीजी… इतना पसीना जो निकलवा दिया मैं ने आप का,’’ राज बेशर्मी से बड़बड़ाया और मुग्धा की कुछ तसवीरें खींचने के बाद उसे कपड़े पहना दिए.

मुग्धा अब तक धीमेधीमे कराह रही थी. राज पलंग से उतरा और खुद भी कपड़े पहनने लगा. तभी उस की नजर आधी खुली दराज पर गई. भूल से मुग्धा अपनी डायरी उसी में छोड़ी हुई थी. राज ने उसे निकाला और कपड़े पहनतेपहनते उस के पन्ने पलटने लगा.

अचानक एक पेज पर जा कर उस की आंखें अटक गईं. वह अभी अपनी कमीज के सारे बटन भी बंद नहीं कर पाया था लेकिन उस को इस बात की परवाह नहीं रही. वह अपलक उस पन्ने में लिखे शब्दों को पढ़ने लगा. उस में मुग्धा ने लिखा था, ‘बस अब बहुत रो लिया, बहुत दुख मना लिया औलाद के लिए. मेरा बेटा मेरे पास था और मैं उसे पहचान ही नहीं पाई. जब से मैं यहां आई, उसे बच्चे के रूप में देखा तो आज अपनी कोख के बच्चे के लिए इतनी चिंता क्यों? मैं बहुत जल्दी राज को कानूनी रूप से गोद लूंगी.’

राज की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया और जोरजोर से रोने लगा, फिर भाग कर मुग्धा के पैरों को पकड़ कर अपना माथा उस से रगड़ते हुए रोने लगा, ‘‘भाभी, मुझे माफ कर दो… यह क्या हो गया मुझ से.’’

अचानक राज का ध्यान मुग्धा के बिखरे बालों पर गया. उस ने जल्दी से जमीन पर गिरी उस की हेयर क्लिप उठाई और मुग्धा का सिर अपनी गोद में रख कर बालों को संवारने लगा. वह किसी मशीन की तरह सबकुछ कर रहा था. हेयर क्लिप अच्छे से उस के बालों में लगा कर राज उठा और घर से निकल गया.

अगली सुबह तकरीबन 8 बजे मुग्धा की आंखें खुलीं. उस का सिर अभी तक भारी था. घर में भीड़ लग चुकी थी.

एक आदमी ने आखिरकार बोल ही दिया, ‘‘देवरभाभी के रिश्ते पर भरोसा करना ही पागलपन है…’’

मुग्धा के सिर में जैसे करंट लगा. वह सवालिया नजरों से उसे देखने लगी. तभी इलाके के पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रवेश किया और बताया, ‘‘आप के देवर राज की लाश पास वाली नदी से मिली है. उस ने रात को खुदकुशी कर ली…’’

मुग्धा का कलेजा मुंह को आने लगा. वह हड़बड़ा कर पलंग से उठी लेकिन लड़खड़ा कर गिर गई.

एक महिला सिपाही ने राज के मोबाइल फोन में कैद मुग्धा की कल रात वाली तसवीरें उसे दिखाईं और कड़क कर पूछा, ‘‘कल रंगरलियां मनातेमनाते ऐसा क्या कह दिया लड़के से तू ने जो उस ने अपनी जान दे दी?’’

तसवीरें देख कर मुग्धा हैरान रह गई. अपनी शारीरिक हालत से उसे ऐसी ही किसी घटना का शक तो हो रहा था लेकिन दिल अब तक मानने को तैयार नहीं था. वह फूटफूट कर रोने लगी.

इंस्पैक्टर ने उस महिला सिपाही को अभी कुछ न पूछने का इशारा किया और बाकी औपचारिकताएं पूरी कर वहां से चला गया. धीरेधीरे औरतों की भीड़ भी छंटती गई.

विनय का फोन आया था कि वह आ रहा है, घबराए नहीं, लेकिन मुग्धा बस सुनती रही. उस की सूनी आंखों के सामने राज का बचपन चल रहा था. जब वह नईनई इस घर में आई थी.

दोपहर तक विनय लौट आया और भागते हुए मुग्धा के पास कमरे में पहुंचा. वह जड़वत अभी भी पलंग पर बैठी शून्य में ताक रही थी. विनय ने उसके कंधे पर हाथ रखा लेकिन मुग्धा का शरीर एक ओर लुढ़क गया.

‘‘मुग्धा… मुग्धा…’’ चीखता हुआ विनय उसे झकझोरे जा रहा था, पर मुग्धा कभी न जागने वाली नींद में सो चुकी थी. Crime Story

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