Raksha Bandhan: मां की परछाई है मेरा छोटा भाई…

वैसे तो लोग अक्सर बड़ी बहन को मां की परछाई मानते हैं. लेकिन मेरे मामले में ऐसा नहीं है बल्कि मेरे साथ तो उल्टा ही हाल है क्योंकि मेरे लिए मेरा छोटा भाई ही मां की परछाई है. जो न सिर्फ मां की तरह मेरा  ख्याल रखता है बल्कि मुझसे जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात का ख्याल रखता है. मेरी पसंद, नापसंद और मुझसे जुड़ी हर चीज के बारे में उसे पता है.

बचपन से ही समझदार…

अगर बचपन की बात करूं तो वो कभी बिगड़ैल भाई नहीं रहा बल्कि छोटे से ही अपनी हर चीज को संभालना, मेरे साथ शेयर करना और मेरी केयर करना उसके नेचर का हिस्सा था. बचपन में हम ज्यादा वक्त साथ नहीं बिता पाए क्योंकि मेरे पापा के निधन के बाद उसे होस्टल भेज दिया गया था. उसके बाद हम दोनों अपनी पढ़ाई में बिजी हो गए और हमारा मिलना कभी-कभी ही होता था. उस दौर में स्मार्ट फोन्स इतने एक्टिव नहीं थे. छुट्टियों में भी जब वो घर आता तो मां या बड़ी बहनों के साथ ही ज्यादा समय बिताता. कभी-कभी मुझे लगता था कि अब हम शायद पहले की तरह क्लोज नहीं थे लेकिन मैं कितनी गलत थी इसका एहसास मुझे बाद में हुआ.

हर मुश्किल में किया सपोर्ट…

ग्रेजुएशन के बाद मैं पढ़ने के लिए बाहर जाना चाहती थी लेकिन किसी ने मेरा सपोर्ट नहीं किया क्योंकि उस वक्त हमारे यहां लड़कियों को बाहर भेजना सही नहीं माना जाता था. उस वक्त मेरा छोटा भाई ही था जिसने मुझे पूरा सपोर्ट किया और मुझ पर भरोसा किया. मेरे दाखिले के लिए वहीं सबसे पहले मेरे कौलेज गया था. वो दौर काफी मुश्किल था पढ़ाई और करियर की टेंशन, पैसों की तंगी और डर इस बात का कि कहीं मेरा फैसला गलत न साबित हो जाए. उस वक्त भी वो मेरा सपोर्ट सिस्टम था. जब मां भी मेरे साथ नहीं थी तब मेरे भाई ने मुझे सपोर्ट किया.

अपनी जिंदगी की हर बड़ी खुशी मैंने सबसे पहले अपने भाई के साथ बांटी. क्योंकि वो भाई दोस्त भी था. दूसरे भाइयों की तरह नहीं जो हर वक्त हुक्म चलाए और बहनों को मजदूर ही समझे. जौब लगने के कई सालों बाद तक मेरा फोन वहीं रिचार्ज कराता था. पहली जौब से लेकर अपने ब्वौयफ्रेंड (जो अब पति हैं) को घरवालों से मिलवाने तक सबसे पहला राजदार वही था और आज भी है. लड़कियां अक्सर अपनी मां और अपनी बहनों के करीब होती हैं लेकिन मेरे लिए तो मेरा छोटा भाई ही मेरा पहला दोस्त था और आज भी है.

इस रक्षा बंधन पर मैं बस यहीं चाहती हूं कि तू हमेशा खुश रहे और हमेशा इस तरह मेरा दोस्त बनकर मुझे सपोर्ट करे. हर बहन को तेरे जैसा केयरिंग और सपोर्टिंग भाई मिले. तुझे लाइफ की हर खुशी मिले. लव यू बेटा…

गोलू (धनपुरी, मध्यप्रदेश)

GHKKPM: विराट की होगी बेटी सावी से मुलाकात! क्या रोक पाएगी सई

सीरियल ‘गुम हैं किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी में 8 साल का लीप देखने को मिला है, जिसके चलते जहां विराट और सई अपनी-अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए हैं. हालांकि जल्द ही सई और उसकी बेटी का सामना विराट से होने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे.

लीप के बाद सई और विराट हुए अलग


अब तक आपने देखा कि सई और सावी अपनी जिंदगी में खुश नजर आते हैं हालांकि सवी अपने पिता को ढूंढने के लिए पेड़ों पर लिखती है कि बाबा आप कब आओगे. लेकिन सई अपनी बेटी को विराट के बारे में राजी नहीं होती. दूसरी तरफ विराट अपने बेटे से बात करता हुआ दिखता है. वहीं अपना मिशन खत्म होने के बाद वह अपने बेटे से मिलने उसके कैंप में जाएगा.

 

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कैंप का हिस्सा बनेगी सई


अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सावी अपने पिता का नाम जानने के लिए सई से नाराज होती नजर आएगी. हालांकि सई उसे मना लेगी. वहीं उसे एक कैंप में मेडिकल एडवाइजर बनने का मौका मिलेगा. हालांकि उसे पता चलेगा कि नागपुर से कुछ बच्चे भी वहां पहुंचेंगे, जिसे सुनकर वह परेशान दिखेगी. दूसरी तरफ सई, विनायक वाला हादसा याद करेगी और ऊषा से दोबारा पति के बारे में बात करने के लिए मना करेगी और कहेगी कि केवल सावी और उषा ही उनके परिवार हैं क्योंकि विराट एक पुलिस अधिकारी होने के बावजूद उसकी तलाश नहीं कर पाए. इसीलिए अब कभी वह उस जिंदगी में दोबारा नहीं लौटेगी.

विराट की होगी मुलाकात

इसके अलावा आप देखेंगे कि सावी के पेड़ पर लिखे मैसेज को विराट पढ़ेगा और जवाब में उस बच्चे के पिता से मिलने की प्रार्थना करता है, जिसे सावी छिपकर देखेगी. वहीं उषा, सई से कहेगी कि उसे एक दिन साईं के पिता का नाम बताना पड़ेगा. लेकिन सई कहेगी कि वह नहीं चाहती कि सावी को उसके पिता के बारे में पता चले और इसलिए वह गढ़चिरौली से कंकोली आ गई है. हालांकि देखना होगा कि क्या सई अपनी बेटी सावी को विराट से दूर रख पाएगी और क्या कैंप में सई और विराट का आमना सामना होगा.

ट्विस्ट लाने के चक्कर में Anupama के मेकर्स से हुई बड़ी गलती! पढ़ें खबर

रुपाली गांगुली स्टारर सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है, जिसके चलते सीरियल में कई नए ट्विस्ट लाने के लिए मेकर्स (Anupama Makers)  कड़ी मेहनत कर रहे हैं. हालांकि हाल ही के एपिसोड में अनुपमा के मेकर्स से बड़ी चूक होते हुए नजर आई है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

किंजल की प्रैग्नेंसी पर उठे सवाल

 

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हाल ही में सीरियल अनुपमा में अनुज के एक्सीडेंट के बाद 7 महीने का लीप देखने को मिला था, जिसके चलते जहां वनराज अस्पताल से ठीक होकर शाह हाउस गया था तो वहीं अनुज को अनुपमा कपाड़िया हाउस लाती हुई नजर आई थीं. हालांकि इसी बीच किंजल की प्रैग्नेंसी जहां लीप से पहले लास्ट मंथ में थी तो वहीं 7 महीने के लीप के बावजूद वह प्रेग्नेंट नजर आई थी, जिसे देखकर फैंस हैरान हैं. हालांकि अभी तक इस खबर को लेकर कोई औफिशियल जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन देखना होगा कि मेकर्स सीरियल की कहानी में कौनसा नया मोड़ लाते हुए दिखेंगे.

अनुपमा से बेइज्जती का बदला लेंगे बरखा-अंकुश

अब तक आपने देखा कि अनुपमा के कारण बरखा और अंकुश का गुस्सा बढ़ता हुआ नजर आ रहा है, जिसके चलते वह अनुपमा को घर से निकालने की साजिश करते दिख रहे हैं. इसी कारण उन्होंने कुछ कागजात बनवाए हैं, जिसके कारण अंकुश के नाम बिजनेस कर दिया है. वहीं बरखा इन कागजात को दिखाकर अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा को कपाड़िया हाउस से घर से बाहर का रास्ता दिखाती हुई नजर आने वाली हैं.

 

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बता दें, सीरियल अनुपमा में अनुज की हालत देखकर फैंस नाखुश नजर आ रहे हैं और उसे दोबारा ठीक होने की बात कहते दिख रहे हैं. वहीं मेकर्स से अनुज की बहन मालविका को दोबारा शो में एंट्री करवाने की मांग कर रहे हैं. हालांकि देखना होगा कि मेकर्स सीरियल में और कौनसे नए ट्विस्ट लाते हुए दिखने वाले हैं.

जानें क्या है बीबी और सीसी क्रीम

बीबी और सीसी क्रीम का एक हिस्सा स्किन केयर प्रोडक्ट्स जैसे मौइश्चराइजर, सनस्क्रीन, ऐंटीऐजिंग क्रीम से बना होता है, तो दूसरे हिस्से में मेकअप प्रोडक्ट्स जैसे फाउंडेशन, कंसीलर, प्राइमर आदि होता है. इसलिए इसका इस्तेमाल करने के बाद चेहरे पर स्किन केयर या मेकअप प्रोडक्ट्स की अलग अलग परत चढ़ानी नहीं पड़ती है. आइए, बीबी और सीसी क्रीम की खूबियां और दोनों के अंतर के बारे में जानते हैं.

क्या है बीबी क्रीम

बीबी क्रीम को ब्लेमिश बेस और ब्यूटी बाम के नाम से जाना जाता है. यह एक मल्टीटास्किंग स्किन केयर प्रोडक्ट है, जो न सिर्फ स्किन केयर प्रोडक्ट्स, बल्कि मेकअप प्रोडक्ट्स का भी काम करता है. इस में मौइश्चराइजर, सीरम, सनस्क्रीन, प्राइमर, फाउंडेशन आदि के गुण होते हैं इसलिए इसे लगाने के बाद अलग से फाउंडेशन, सनस्क्रीन आदि लगाने की जरूरत नहीं होती.

बीबी क्रीम के ब्यूटी बैनिफिट्स

चूंकि इस में सनस्क्रीन के भी गुण होते हैं, इसलिए यह तेज धूप में सूरज की हानिकारक किरणों से त्वचा की हिफाजत करती है. इस में पाए जाने वाले ऐंटीऔक्सीडैंट उम्र से पहले त्वचा में फाइन लाइंस और झुर्रियों को उभरने से रोकते हैं. बीबी क्रीम में निहित मौइश्चराइजर त्वचा को कोमल बनाता है और फाउंडेशन की मौजूदगी चेहरे को मेकअप सा लुक देती है.

किसके लिए है बैस्ट बीबी क्रीम

बीबी क्रीम यंग स्किन के लिए ज्यादा असरदार होती है. इसका इस्तेमाल हर स्किन टाइप यानी नौर्मल, औयली और ड्राई स्किन टाइप की महिलाएं कर सकती हैं. बाजार में फाउंडेशन की तरह स्किनटोन के हिसाब से भी बीबी क्रीम उपलब्ध है. ऐसे में आप अपनी स्किनटोन को ध्यान में रख कर अपने लिए बैस्ट बीबी क्रीम चुन सकती हैं.

क्या है सीसी क्रीम

सीसी क्रीम में बीबी क्रीम के सारे गुण होते हैं जैसे बीबी क्रीम की तरह सीसी क्रीम का इस्तेमाल करने से त्वचा मुलायम बनती है, स्किन डैमेज का डर नहीं होता और चेहरे को मेकअप सा लुक भी मिलता है. लेकिन इस में कुछ खूबियां ऐसी भी होती हैं, जो बीबी क्रीम में नहीं होतीं जैसे सीसी क्रीम स्किनटोन को निखारती है यानी सांवली रंगत को उजली रंगत प्रदान करती है. इसलिए इसे कलर करैक्टर या कौंप्लैक्शन करैक्टर भी कहा जाता है.

सीसी क्रीम के ब्यूटी बैनिफिट्स

सीसी क्रीम डस्की स्किन कौंप्लैक्शन को फेयर इफैक्ट देती है. सन प्रोटैक्शन के साथ ही यह स्किन रिलेटेड प्रौब्लम्स जैसे पिंपल्स, डार्क स्पौट से भी छुटकारा दिलाती है. यह मुंहासों से चेहरे पर पड़े दागों को भी हलका करती है.

कुछ महिलाओं की त्वचा बहुत जल्दी लाल पड़ जाती है. अत: यह क्रीम उन के लिए भी फायदेमंद है.

किस के लिए है बैस्ट सीसी क्रीम

बीबी क्रीम की तरह सीसी क्रीम भी यंग स्किन के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है. साथ ही यह हर स्किनटोन पर सूट करती है. लेकिन अगर आप के चेहरे पर अकसर मुंहासे उभर आते हैं, आपकी त्वचा मुरझाई सी नजर आती है या फिर आपके चेहरे पर डार्क स्पौट, अनचाही लालिमा है, तो समझ लीजिए कि सीसी क्रीम खास आप के लिए बनाई गई है.

कैसे लगाएं बीबी या सीसी क्रीम

माना कि बीबी और सीसी क्रीम में कंसीलर के साथ साथ सनस्क्रीन की भी क्वालिटी होती है, लेकिन इन्हें न तो कंसीलर की तरह थोड़ी मात्रा में लगाया जाता है और न ही सनस्क्रीन की तरह भरपूर मात्रा में. इन का इस्तेमाल फाउंडेशन की तरह किया जाना चाहिए यानी पहले उंगली से चेहरे पर कुछ डौट बना लें, फिर हलके से उन्हें पूरे चेहरे पर फैला लें. इस से नैचुरल लुक मिलेगा, जबकि मेकअप ब्रश या स्पंज का इस्तेमाल आप को आर्टिफिशियल लुक दे सकता है.

क्या है डीडी क्रीम

बीबी और सीसी क्रीम के बाद डीडी क्रीम इन दिनों कौस्मैटिक बाजार में अपनी जगह बनाने में जुटी है. ऐक्सपर्ट की मानें तो डीडी क्रीम में बीबी और सीसी दोनों की सारी खूबियां होती हैं. लेकिन निहित ऐंटीऐजिंग के गुण इसे बीबी और सीसी क्रीम से अलग पहचान दिलाते हैं. ऐक्सपर्ट के अनुसार, डीडी क्रीम में पाई जानी वाली ऐंटीऐजिंग क्रीम चेहरे पर फाइन लाइंस और रिंकल्स उभरने नहीं देती, साथ ही चेहरे पर उभर आए बढ़ती उम्र के निशानों को भी हलका करती है. मैच्योर स्किन के लिए डीडी क्रीम एक बैस्ट क्रीम है.

मेकअप आर्टिस्ट मनीष केरकर के अनुसार, ‘‘बीबी क्रीम कहने को एक क्रीम है, लेकिन इस में सीरम, मौइश्चराइजर, प्राइमर, कंसीलर, फाउंडेशन, सनस्क्रीन आदि के भी गुण होते हैं, इसलिए इसे आल इन वन फेशियल कौस्मैटिक भी कहा जाता है.’’

सीसी क्रीम के विषय में मनीष कहते हैं, ‘‘सीसी क्रीम को बीबी क्रीम का लाइट वर्जन कहा जा सकता है, जिस में बीबी क्रीम के सारे गुण होने के साथसाथ स्किनटोन को निखारने की भी खूबी होती है.’’

स्मार्ट टिप्स

1. अगर आप बीबी क्रीम लगा रही हैं, तो सीसी क्रीम न लगाएं. खूबसूरती को निखारने के लिए दोनों में से किसी एक का चुनाव करें.

2. माना कि बीबी और सीसी क्रीम में मौइश्चराइजर की मात्रा अधिक होती है, लेकिन आप की स्किन अगर ड्राई है, तो त्वचा पर बीबी या सीसी क्रीम लगाने से पहले मौइश्चराइजर जरूर लगाएं.

3. अच्छे परिणाम के लिए चेहरे पर पहले बीबी या सीसी क्रीम लगाएं. जब यह अच्छी तरह सूख जाए तो ऊपर से सैटिंग पाउडर लगा लें. इस से बीबी या सीसी क्रीम लंबे समय तक टिकी रहेगी.

Food Special: फैमिली के लिए बनाएं राजस्थानी कांजी वड़ा

कांजी वड़ा राजस्थानी रेसिपी है, जो मुख्य रूप से त्यौहारों पर बनाया जाता है. तो फिर देर किस बात की, आप भी कांजी वड़ा बनाने की विधि जरूर ट्राय करें तो आइए बताते हैं.

हमें चाहिए

कांजी के लिए-

– लाल मिर्च पाउडर  (1/2 छोटा चम्मच)

– पिसी राई (02 बड़े चम्मच)

– हल्दी पाउडर (01 छोटा चम्मच)

– हींग ( 02 चुटकी)

– पानी (02 लीटर)

– काला नमक ( 1/2 छोटा चम्मच)

– नमक (स्वादानुसार)

वड़ों के लिए-

– मूंग दाल (100 ग्राम)

– नमक (1/4 छोटा चम्मच)

– तेल ( तलने के लिए)

कांजी वडा बनाने की विधि :

– एक बड़े बाउल में हल्दी, लाल मिर्च, पिसी राई, हींग, काला नमक और नमक लेकर उसमें 1/2 बाउल पानी डालें और सारी चीजों को अच्छी तरह से मिला लें.

– अब इसमें 2 लीटर पानी मिला लें और उसमें वड़े डाल कर कर अच्छी तरह से चलाएं.

– अब वड़ों को किसी गर्म जगह पर 2 दिनों के लिए रख दें.

– गर्म मौसम में इसमें दो दिन में एक सोंधी सी खटास आ जाएगी.

– पानी में डाले गये मसाले नीचे की ओर बैठ जाते हैं, इसलिए दिन में 1-2 बार इसे चला दें, जिससे कांजी अच्छी तरह से तैयार हो जाए.

– 2 दिन बाद आपके कांजी वड़ा तैयार हो जाएंगे. वैसे अगर मौसम में ठंडक हो, तो इन्हें तैयार होने में ज्यादा वक्त लग सकता है.

– जब कांजी का पानी आपके मुताबिक खट्टा हो जाए, तो उसे फ्रिज में रख दें और 1 सप्ताह तक इस्तेमाल करें.

क्या मल्टीविटामिन लेने से मुझे एनर्जी मिलेगी?

सवाल-

मैं 46 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले कुछ दिनों से मैं खुद में ऊर्जा की बहुत कमी महसूस कर रही हूं. क्या मल्टीविटामिन लेने से मैं बेहतर महसूस करूंगी?

जवाब-

आज मल्टीविटामिन लेना बहुत सामान्य प्रचलन है. लोग शरीर में कमजोरी महसूस होने या खुद को फिट रखने के लिए बिना डाक्टर की सलाह के ही विटामिन या मिनरल के सप्लिमैंट्स लेना शुरू कर देते हैं. विटामिंस के अधिक सेवन से विटामिन पौइजनिंग हो जाता है. इसलिए डाक्टर की सलाह के बिना इन का सेवन करना आप की सेहत के लिए खतरा बढ़ा सकता है. आप किसी डाक्टर को दिखाएं. जरूरी जांच करने पर ही पता चलेगा कि आप को ऊर्जा की कमी क्यों महसूस हो रही है और आप को किस विटामिन की कितनी मात्रा में जरूरत है.

थकान और कमजोरी से बचने के लिए अपने खानेपीने का भी ध्यान रखें. अपनी डाइट में सूखे मेवे, दूध व दुग्ध उत्पादों, मौसमी फलों और सब्जियों को ज्यादा मात्रा में शामिल करें. हर 2-3 घंटे में कुछ खाती रहें. अगर आप अपने खानेपीने का ध्यान रखेंगी तो आप को गोलियां खाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

ये भी पढ़ें- 

वीगन डाइट जिसे वीगानिज़्म भी कहा जाता है, एक ऐसी डाइट है, जिसमें मांस, अंडा, दूध, दही या पशु से बनने मिलने वाले उत्पादों को नहीं खाया जाता. बल्कि वीगन डाइट में सबसे अधिक पेड़पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों को खाया जाता है.  इस डाइट में कच्चे ऑर्गेनिक आहार का अधिक सेवन किया जाता है. साबुत फल, सब्जियां और अनाज इस डाइट की विशेषता हैं.  इसे शुद्ध शाकाहारी आहार या प्लांट बेस्ड डाइट भी कहा जाता है.

अब ऐसे में सवाल उठता है कि वीगन डाइट में मांस, अंडा, दूध, दही जैसे खाद्य पदार्थ न होने की वजह से प्रोटीन की कमी को कैसे पूरा किया जाए? इस संबंध में पल्लवबिहानी बोल्डफ़िट के फाउंडर ऐसे सुपरफूड्स के बारे में बताएंगे, जिनके सेवन से आप वीगन डाइट को फॉलो करते हुए प्रोटीन का भरपूर सेवन कर सकते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- Vegan Diet को हेल्दी बनाएंगे प्रोटीन से भरपूर ये 5 Food

क्या कीमती गहने मामूली नजर आने लगे हैं?

अगर आपको गहनों का शौक है तो आपके पास हो न हो सोने, चांदी और मोती के गहने तो होंगे ही. कई बार ऐसा होता है कि हम गहने खरीद तो लेते हैं लेकिन सही से नहीं रखने की वजह से कुछ ही दिनों में या तो उनका रंग फीका पड़ जाता है या फि‍र वो पुराने और नकली नजर आने लगते हैं.

ऐसे में अगर आप चाहती हैं कि आपकी ज्वैलरी हमेशा नई और चमकदार बनी रहें तो कुछ बातों को गांठ बांध लें. कोशि‍श कीजिए कि घर का काम करते समय, झाड़ू-पोंछा करते समय, बर्तन धोते समय या फिर बर्तन साफ करते समय इन्हें उतार दें. इससे उन पर धूल नहीं जमेगी और उनकी चमक फीकी नहीं पड़ेगी.

इन टिप्स को अपनाकर आप भी अपने गहनों को लंबे समय तक सुरक्षि‍त और चमकदार रख सकती हैं.

1. हीरे की ज्वैलरी:

हीरे के गहनों को ड्रॉयर या ड्रेसर के ऊपर नहीं रखना चाहिए क्योंकि इससे उनपर निशान पड़ सकते हैं और उनकी कटिंग खराब हो सकती है. इन्हें साफ करने के लिए बाजार में मिलने वाले क्लीनिंग सॉल्यूशन का इस्तेमाल करना चाहिए. आप घर में अमोनिया और पानी को मिलाकर भी हीरे के गहनों को साफ कर सकती हैं.

2. सोने के गहने:

अगर सोने के गहनों की उचित देखभाल न की जाए तो इनकी चमक फीकी पड़ सकती है. इन्हें हमेशा सॉफ्ट डिटर्जेट, हल्के गुनगुने पानी और मुलायम कपड़े से साफ करना चाहिए.

सोने की चेन और कंगन को अलग-अलग रखना चाहिए क्योंकि एकसाथ रखने से ये उलझ सकते है. स्वीमिंग के दौरान इन्हें हटा देना चाहिए, क्योंकि स्वीमिंग पुल के पानी में मौजूद क्लोरीन से सोने के गहनों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. यह केमि‍कल इन्हें कमजोर कर सकता है.

3. मोती के गहने:

जैसे सूरज की हानिकारक किरणें हमारी त्वचा को नुकसान पहुंचाती है, उसी तरह तेज रोशनी और गर्मी कीमती स्टोन्स और मोती को भी समय से पहले बेकार और रंगहीन बना देती है. वक्त बीतने के साथ ये फीके और धुंधले पड़ने लग जाते हैं, इसलिए इन्हें तेज रोशनी से बचाना चाहिए.

मोती के गहनों को मुलायम कपड़े से साफ करके एयरटाइट डिब्बे में रखना चाहिए. मेकअप करने के बाद ही इन्हें पहनना चाहिए. इन्हें परफ्यूम, मेकअप, हेयरस्प्रे से ये फीके पड़ सकते हैं. इन्हें साफ करने के लिए बेकिंग सोडा या ब्लीच का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

4. चांदी के आभूषण:

चांदी के आभूषणों को भी खतरनाक केमिकल्स से बचाना चाहिए क्योंकि केमिकल्स के प्रभाव से ये कमजोर हो सकते हैं. इन्हें स्वीमिंग के दौरान और घरेलू काम करते समय कभी नहीं पहनना चाहिए. चांदी को किसी दूसरे धातु के साथ रखने से ये जल्दी काले हो जाते हैं.

गाइनेकोलौजिस्ट को ऐसे बताएं अपनी समस्या

सफल स्त्रीरोग विशेषज्ञा वह है जिस के मरीज उस से अपनी पारिवारिक समस्याएं, जीवनसाथी के साथ अपनी यौन समस्या व पतिपत्नी संबंधों आदि विषयों पर भी बातचीत कर सकें.

सैक्सुअल ऐजुकेशन ऐंड पेरैंटहुड के लिए ‘वर्ल्ड एसोसिएशन औफ हैल्थ ऐंड काउंसिल’ भी बनी हुई है क्योंकि यह यौनविज्ञान की समस्या हर जगह, हर नर्सिंगहोम में एक ही छत के नीचे यौन और प्रजनन दोनों की जानकारी मिलनी चाहिए.

सैक्सुअल मैडिसिन में यौन समस्याओं के साथ सभी निजी समस्याओं पर बातचीत जरूरी है. लोगों को बिना झिझक अपनी निजी समस्याओं पर बात करने का मौका मिलना चाहिए ताकि वे जानें कि उन की यौन समस्याएं भी दूसरी बीमारियों की ही तरह हैं जो शरीर से जुड़ी होने के कारण कष्ट देती हैं. यौन समस्याओं को प्राइवेट या गंदा समझना गलत है.

जांचें व उपचार

आजकल प्रसूति में नएनए आविष्कार हो रहे हैं और इन के बहुत लाभ हैं. अन्य सभी क्षेत्रों की तरह अब प्रसूति विज्ञान और स्त्रीरोग विज्ञान में भी तकनीकी उन्नति देखी जा सकती है. उत्तम दवाएं, नई मैडिकल मशीनें जांच करने व लैबोरटरी इनवैस्टीगेशंस में मददगार हैं. गर्भावस्था की नाजुक स्थितियों जैसे मधुमेह ब्लड प्रैशर आदि में तकनीक में नई उन्नति की सहायता से बच्चे को बचा सकते हैं.

न्यू बौर्न इंटैंसिव केयर यूनिट हर नर्सिंगहोम में होनी जरूरी है. 800, 900 ग्राम वजन वाले जन्मे बच्चों को भी बचाना अब संभव है.

कुछ कारणों से कई दंपतियों को बच्चा नहीं हो पाता. मगर अब नए मैडिकल आविष्कारों के द्वारा उन की सहायता करने के कई मौके मिलते हैं. अब कई तरह की जांचें व उपचार किए जा सकते हैं.

यदि नए साधनों से भी उन की प्रैगनैंसी न हो पाए या चांस कम नजर आएं तो डोनर सीमन, डोनर अंडे देने वालों और सैरोगेट मदर के द्वारा सहायता कराई जा सकती है.

अच्छी सलाह क्यों जरूरी

डाक्टर कुछ दंपतियों की मदद नहीं कर पाते तो उन के मन से बच्चा गोद लेने के प्रति गलत धारणा को निकाल कर उन्हें बच्चा गोद लेने की सलाह दी जाती है.

हालांकि हमारे कानून बहुत सख्त हैं जिस  वजह से बच्चा गोद लेने सालों तक इंतजार करते हैं. कई तो अब खरीदते तक हैं. इस से वे मातृत्व व पितृत्व का सुखद एहसास पाते हैं और बच्चे को भी अच्छा जीवन मिल जाता है.

तनावभरी जिंदगी, पर्यावरण, प्रदूषण, कैमिकल स्प्रे की हुई सब्जियां अनाज, फल आदि शारीरिक असंतुलन लाते हैं. हारमोंस की समस्या, अंडाणुओं के निकलने की समस्या, व्यावसायिक तनाव, पैसे की कमी इन सब कारणों से सीमन प्रभावित होता है. इस से बांझपन की दर बढ़ रही है.

सैरोगेट मदर की जरूरत तब पड़ती है जब यूटरस की सही ग्रोथ न हो. गर्भाशय के निष्कासन, स्त्री को तोड़ देने वाली बीमारियां जैसे कैंसर, हृदय रोग आदि में दंपती के अंडाणु और वीर्य को अन्य स्त्री के भ्रूण में विकसित कराया जाता है. यह कार्य करने वाली महिला ‘सैरोगेट मदर’ कहलाती है. उस की जिम्मेदारी गर्भधारण करने से ले कर डिलिवरी तक होती है और डिलिवरी हो जाने के बाद उसे वह बच्चा दंपती को देना पड़ता है. इस तरह ‘सैरोगेट मदर’ दंपती के जीन को विकसित करने में उन की मदद करती है. इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ हद तक यह व्यापारीकरण का नेतृत्व भी कर रहा है. भारत में अब तक इस के लिए जो नियमकानून बना है वह उसे ब्लैक मार्केट में धकेल रहा है.

समस्या आने के कम चांस

यह मैडिकल टूरिज्म में बहुत सहायक है. विदेशों मेें सैरोगेट मदर का बंदोबस्त करना महंगा पड़ता है, इसलिए विदेशी यहां भी आते हैं और गरीब लोग जो आर्थिक समस्या का सामना कर रहे होते हैं उन में से महिलाएं ‘सैरोगेट मदर’ बनने के लिए तैयार हो जाती हैं. विदेशियों के बच्चा साथ ले जाने में बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं. देशी मांओं को भी बर्थ सर्टिफिकेट मुश्किल से मिलता है. रिश्तेदार, दोस्त भी कटाक्ष करने से नहीं चूकते.

अब सीमन बैंक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. इन बैंकों में अच्छे नमूने उपलब्ध हैं. सीमनदाताओं का सीमन इन बैंकों में प्रिजर्व कर रखा जाता है और यह उन पुरुषों के लिए उपयोगी होता है जो सीमन की समस्या का सामना करते हैं. यह कृत्रिम गर्भाधान में भी सहायक है. सीमन बैंक इन नमूनों की जांच करते हैं इसलिए समस्या आने के बहुत कम चांस होते हैं.

दूसरी तरफ हमारे यहां कम जानकारी होने के बावजूद परिवार नियोजन में बहुत सुधार हुआ है. कौंट्रासैप्टिव पिल्स ने अपने 50 वर्ष पूरे कर लिए हैं. आज बाजार में कम हारमोंस और कम साइड इफैक्ट वाली दवाएं मौजूद हैं इसलिए इस के असफल होने की दर बहुत कम है. अब बचाव का नया रास्ता है इमरजैंसी कौंट्रासैप्टिव स्त्री कंडोम भी हैं.

शादी के बाद की दिक्कतें

साधारण बीमारियों में स्त्रीरोग विशेषज्ञों को महिलाओं में यूरिन इन्फैक्शन की सामान्य से बहुत जूझना पड़ता है. यूरिन इंफैक्शन होने की संभावना पुरुषों से ज्यादा महिलाओं में होती है क्योंकि औरत का गर्भाशय जननांग के बहुत पास होता है. इसलिए उन में मासिकधर्म, डिलिवरी या गर्भधारण के समय इन्फैक्शन होने का डर रहता है. महिलाओं में शादी के बाद उन के पहले सैक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान भी इन्फैक्शन हो सकता है. सामान्यतया कम लिक्विड डाइट लेने पर इन्फैक्शन हो सकता है और जब मूत्राशय के विकास की समस्या, स्टोन इत्यादि हो तब भी परेशानी हो सकती है.

बहुत सी स्कूलों और कालेजों में शौचालय की अच्छी सुविधा न होने के कारण इस समस्या का सामना करती हैं. पेशाब रोकने से भी इन्फैक्शन होता है.

विदेशों में बहुत कम दूरी पर ही फूड आउटलेट्स देखे जा सकते हैं. वहां खाने की और शौचालयों की सुविधा ले सकते हैं, लेकिन हमारे यहां जो लोग लंबी यात्रा पर निकालते हैं उन्हें सुविधाओं की कमी के कारण बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है. बसों, निजी तौर पर यात्रा करने वाले यात्रियों को यात्रा के दौरान कम से कम 2 या 3 बार रुकना चाहिए और सरकार को यात्रा के दौरान अच्छी शौचालय सुविधा मुहैया कराने की ओर पूरा ध्यान देना चाहिए.

विशेषज्ञता क्यों है अनिवार्य

आजकल लड़कियों को 9 वर्ष की उम्र में ही पीरियड्स होने लगे हैं. पर वे बहुत सी बातों को स्पष्टत: खोल कर रखने लगती हैं और इन की जानकारी का स्तर बढ़ने लगता है. इस उत्तेजन प्रक्रिया के मस्तिष्क में बहुत तेजी से होने के कारण हारमोंस बनने लगते हैं. पर्यावरणीय प्रदूषण से फैलने वाले कैमिकल्स शरीर में हारमोंस को प्रभावित करते हैं, जिस से जल्द ही मैच्योरिटी आ जाती है.

छोटी उम्र में पीरियड्स को मेनेज करना समस्या बन जाता है. मातापिता भी इस से चिंतित रहते हैं. पीरियड्स के शुरू होते ही प्रकृति शरीर को प्रजनन के लिए तो तैयार कर देती है पर रजोधर्म का समय घट रहा है और शादी की उम्र बढ़ती जा रही है. बिना शादी किए अनचाहे सैक्सुअल रिलेशन, अनचाहा गर्भ, गर्भपात तथा शादी से पहले गर्भधारण करने से बहुत सी समस्याएं उत्पन्न हो रही है. ये सब स्त्रीरोग विशेषज्ञा को जीवन में अनिवार्य बनाते हैं. ऐसे में उन से सैक्सुअलिटी पर खुली बातचीत की बहुत आवश्यकता होती है.

परंपरागत रूप से घर के बड़े इस विषय पर छिप कर बात करते हैं. बच्चों के सामने ऐसी बातें नहीं की जातीं. वहीं दूसरी तरफ फिल्मों और मीडिया के द्वारा इस का खुलासा किया जाता है. बच्चे इस उलझन में होते हैं कि आखिर सही क्या है? सैक्स की अधूरी व गलत जानकारी बच्चों को उत्तेजित करती है.

उपयुक्त जानकारी की जरूरत

आवश्यक है कि बच्चों को उन की उम्र के अनुसार उपयुक्त जानकारी, यौन शिक्षा दी जाए. यदि यह ज्ञान उन्हें उन के घर से मिलना शुरू हो और आगे स्कूलकालेज में भी मिले तो वे शादी के लिए, मातृत्व और अच्छे नागरिक बनने के लिए तैयार हो सकेंगे, लेकिन समाज में यह बड़ी ही गलत धारणा है कि सैक्स ऐजुकेशन तो इंटरकोर्स की ऐजुकेशन है. बच्चों को उन की छोटी उम्र में ही मानसिक और शारीरिक वृद्धि, यौवन, स्त्रीपुरुष संबंध, लिंग, समानता, लिंग भेद, पारस्परिक प्रेम आदि ये सभी यौन शिक्षा (सैक्स ऐजुकेशन) का हिस्सा हैं, इसलिए यह शिक्षा दी जानी जरूरी है. इस के लिए गाइनोकोलौजिस्ट सब से ज्यादा उपयोगी है.

विवाहपूर्ण काउंसलिंग इंटरकोर्स और उस से जुड़ी समस्याओं के विषय में गलत धारणाओं को दूर करती है. कई मामलों में सैक्स संबंध के विषय में जानकारी की कमी के कारण विवाह का पहला दिन ही आखिरी दिन बन जाता है. कुछ ही समय में तलाक हो जाता है.

आज के जमाने में लोगों के कितने ही वैकल्पिक संबंध बनते रहते हैं और चाहे किसी न किसी तरह ये विवाह व्यवस्था को भी प्रभावित करें पर इन्हें बंद नहीं करा जा सकता. जब कोई पुरुष और महिला जो एकसाथ काम करते हों या पास रहते हों अथवा पढ़ते हों तब वे दोनों एकदूसरे का ज्यादा साथ देना पसंद करेंगे. कुछ मकान का किराया बचाने के लिए एक ही मकान को भी शेयर करने लगते हैं. ऐसे में दोनों को सैक्स संबंधों में बहुत सी सावधानियां बरतनी होती हैं और इन में गाइनेकोलौजिस्ट का बड़ा रोल होता है.

गर्भपात और सुप्रीम कोर्ट का फैसला

जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात के मामले में एक महत्वपूर्ण जजमैंट दिया कि शादी होना या न होना एक गर्भवती के अधिकारों को कमबढ़ती नहीं करता अगर वह गर्भपात कराना चाहे गर्भवती का गर्भपात कराना न जाने क्यों आज भी सरकारों के हाथों में है, मरीजों और डाक्टरों के हाथों में नहीं. मेडिकल टर्मिनेशन औफ प्रैगनैंसी एक्ट और इस के अंतर्गत बने रूल्स गर्भवती को दरदर ठोकरें खाने को मजबूर करते हैं और कितनी बार गर्भवती को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ता है जहां उस की इज्जत भी तारतार होती है और जमापूंजी स्वाह होती है.

सैक्स करना मौलिक व मूलभूत प्राक्रतिक अध्धिककार है और जो सरकार, समाज, घर, रीतिरिवाज इस के बीच में आड़े आता है वह अपने को प्रकृति के ऊपर खुद को काल्पनिक भगवान का सा दर्जा देता है. दुनिया के कितने ही देशों में, जिस मेंं  वैज्ञानिक सोच के लिए जाना जाने वाला अमेरिका भी शामिल है, औरतों के इस हक पर खुलेआम डाका डालते हैं.

शादी अपनेआप में एक लीगल फिक्शन. है, यानी समाज व सरकार के कानूनों द्वारा दिया नकली प्रमाणपत्र है कि अब 2 जने सैक्स कर सकते हैं. यह बदलाव नया नहीं है पर सदियों से इस की गाज आदमी पर नहीं औरतों पर ज्यादा पड़ती रही हैं. सदियों से तलाकशुदा, विधवा, कुआंरियों के सैक्स संबंधों पर समाज सिर्फ इसलिए नाकमौं चढ़ाता रहा है कि उन्होंने सैक्स का सामाजिक, कानूनी, धार्मिक लाइसेंस नहीं लिया. सैक्स की वजह से गर्भ हो जाए तो सजा औरतों को मिलती है आदमियों को नहीं.

पहले गर्भपात का अठलन तरीकों में कूएं में कूदना, नदी में बह जाना या रस्सी गले में बांध कर लटक जाना था. आज सेफ एबोर्शन मिल रहा है. यह चिकित्सा जगत का औरतों को उपहार है पर जैसे पंडेपादरी हर खुशी के मौके पर टांग अड़ाते हैं, इस खुशी में भी टांग अड़ाने आ गए. अमेरिका में प्रेमनाटक मूवमैंट चर्च जीवन रहा है और वह काफी अफैक्टिव है. औरतों को चर्च की शरण में जाना पड़ रहा है और इस मूवमैंट से चर्च को डोनेशन भी बढ़ गई है.

भारत में कानून लगातार लिबरल और लचीला हो रहा है और यह खुशी की बात है. इस फैसले से कि अविवाहित गर्भवती को भी शादीशुदा गर्भावती जैसे राइट्स हैं. एक राहत की बात है. इस में आपत्ति बस यही है कि एक भी वजह हो तो बताएं कि मेडिकल टॢमनेशन औफ प्रैगनैंसी एक्ट है क्यों? यह हक हर औरत का प्राकृतिक है कि वह सैक्स करे और अगर गर्भ ठहर जाए तो वह डाक्टर की सलाह पर उसे गिरा दे.

अगर अनैतिक काम हो रहा है तो वह पुरुष कर रहा है. कानून तो बनना चाहिए इम्प्रैग्नैंट प्रोहीबिशन एक्ट जिस में वह पुरुष दोषी हो जिस ने औरत को प्रैग्नैंट किया. यह कानून नहीं बनेगा. यह रेप कानून से अलग होगा क्योंकि यह सिर्फ सैक्स के बारे में नहीं गर्भ ठहरने पर लागू होगा. दरदर ठोकरे पुरुष खाए. उस ने प्रैग्नैंट किया है तो आप से ज्यादा दोष उस का है, यह पति पर भी लागू होगा, प्रेमी होगा, लिव इन पार्टनर पर भी, शिकायत लेने का काम पुरुष का है. प्यार में भी पुरुष का काम है देखना कि उस के पैनट्रेशन से प्रैग्नैंसी तो नहीं होगी.

कानून चाहे संसद का बना हो या धर्म का या समाज का, अब औरतों के बराबर समझे. सदियों से औरतों को जो बच्चे पैदा करने की और खाना बनाने की गुलामी औरतें सह रही हैं, उस के खिलाफ विद्रोह करें. आधुनिक तर्क, वह तकनीक व तथ्य औरतों को पूरी तरह बराबर का हक देते हैं, वही हक जो प्रकृति में हर अन्य प्रजाति का मादा का है.

मम्मियां: जब रिश्तों में दूरी बढ़ाएं

मां बेटी का रिश्ता बहुत प्यारा रिश्ता है. हर मां दिल से चाहती है कि उस की बेटी अपनी ससुराल में बहुत खुश रहे, इसलिए वह बचपन से ही अच्छे संस्कार देती है परंतु समय के साथ इस सीख में बहुत फर्क आ गया है. आधुनिक परिवेश में विवाह के माने बदल गए हैं. जहां पहले समस्या लड़की के एक नए व अनजाने ससुराल के माहौल को समझने और तालमेल बैठाने में आती थी, वहीं अब लड़केलड़की की आपस में ही बन जाए तो शादी सफल मानी जाती है.

आजकल नई पीढ़ी के पास किताबी ज्ञान और डिगरियां तो बहुत हैं परंतु व्यावहारिक बुद्धि का अभाव है. शादी के बाद पतिपत्नी दोनों को ही काफी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं, इस के लिए दोनों का आपसी सहयोग बेहद आवश्यक है, परंतु देखा यह जा रहा है कि लड़कियां पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को भूल कर बातबात पर एकदूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लग जाती हैं.

शादी को सफल बनाने में जहां पतिपत्नी दोनों की समझदारी काम देती है वहीं घर वालों का सकारात्मक रवैया भी काफी मददगार होता है.

मतभेद बढ़ाता है मोबाइल

पतिपत्नी के रिश्ते में फोन के कारण अकसर कड़वाहट आ जाती है. आजकल फोन के माध्यम से लड़की के मायके वाले, दोस्त आदि लगातार संपर्क में रहते हैं. हर समय बेटी का फोन बजता ही रहता.

न्यायाधिकारी मालिनी शुक्ला का कहना है कि आजकल बेटी ससुराल पक्ष की हर छोटीछोटी बात अपनी फ्रैंड या दूसरों से डिस्कस करती है और फिर वे अपनी राय भी थोपते है, अपनी सलाह भी देते हैं कि तुम्हें जरा भी दबने की जरूरत नहीं है. तुम घूमने चली जाया करो.

सारी जिम्मेदारी तुम्हारी थोडे़ ही है आदि भड़काऊ बातें कर के उस के मन में उलटासीधा भरते रहते हैं. इस तरह की बातें पतिपत्नी के बीच में गलतफहमियां पैदा कर के रिश्ते में दरार डाल देती हैं.

हर घर का अपना तरीका होता है, अपना बजट होता है और अपनी प्राथमिकताएं होती हैं. संपन्न परिवार से आई आरुषि ससुराल मैं कदम रखते ही कभी परदे बदलने की बात करती तो कभी सोफा तो कभी पति से गाड़ी लेने की डिमांड करती. पति अमोल उसे प्यार से समझने का प्रयास करता रहा. लेकिन उस की फ्रैंड्स और रिश्तेदारों का रोज कौल पर कहना. परदे कितने पुराने हैं. सोफा तो जाने किस जमाने में खरीदा गया होगा आदि बातों ने दोनों के प्यारभरे रिश्ते में दरार पैदा कर दी.

झगड़ों के छोटेछोटे कारण

अमोल की अपनी सोच थी कि वह कर्ज ले कर घी पीयो पर विश्वास नहीं करता. वह अपने भविष्य के प्रति जागरूक था. वह अपना फ्लैट खरीदने की योजना के अनुसार बचत कर रहा था. परंतु आरुषि की रोजरोज की अनावश्यक डिमांड्स की वजह से दोनों के रिश्ते बिगड़ गए. आज आरुषि मायके में रह रही है और उस घड़ी को कोस रही है, जब उस ने फुजूल की बातों में आ कर अपने सुखी संसार में आग लगा ली.

डिस्ट्रिक जज रूपा महर्षि कहती हैं कि फोन के कारण दूसरों के अनाधिकृत हस्तक्षेप ने बेटियों के जीवन में कटुता घोल दी है. यह बीमारी अब शहरों से गांवों तक पहुंच चुकी है. घरेलू हिंसा के मुकदमों में सुलहसमझते के प्रयास में झगड़ों के छोटेछोटे कारण सामने आते हैं, जिन की वजह दूसरों का लगातार संपर्क में रहना होता है.

उन का कहना है कि आजकल की वीडियोकौल के कारण घर के हर कोने में मायके वालों की नजर पड़ने लगी है और बेटी को किचन में देखते ही हितैषी बन कर बहन या भाभी कहेगी, ‘‘तुम्हारी सास का मैनेजमैंट बिलकुल अच्छा नहीं है. खुद तो एसी में बैठी गप्पें मार रही हैं, मेरी लाडली बेचारी गरमी में पसीना बहा रही है.’’

‘‘पार्टी में तेरी ननद ने तेरी ड्रैस पहन रखी थी. उस ने पहन कर पुरानी कर दी, अब जब तुम पहनोगी तब सोचेंगे कि तुम ने नीरजा से मांग कर पहनी है.’’

‘‘रोहन तो दिनभर अपनी मां और भाईभाभी के आगेपीछे घूमता रहता है. तुझे प्यार भी करता है कि नहीं?’’

‘‘लवी तुम ने अपना हार सास को क्यों पहनने को दिया?’’

‘‘उन्हें अच्छा लग रहा था. मैं भी तो मम्मीजी का हार पहना था… दीदी बेमतलब की बात मत किया करो,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

इन्हें कौन समझाए

ममतामए मोह से भरे हितचिंतक का दिखावा करने वालों को कौन समझए कि बेटी स्वयं समझदार है. उस के मुंह में भी जबान है. वह खुद मैनेज कर लेगी. हर घर के अपने तौरतरीके होते हैं. वह यदि खुश है, उसे काम ज्यादा करना पड़ रहा है, तो वह ससुराल वालों के दिल में सदा के लिए जगह बना लेगी और इस के लिए उन्हें भी तो तारीफ मिलेगी कि बेटी को कितने अच्छे संस्कार दिए हैं.

उन्नाव निवासी उर्वशी की शादी 6 महीने पहले लखनऊ के सुदेश से खूब धूमधाम से हुई थी, लेकिन कुछ महीनों में ही दोनों का झगड़ा कोर्ट तक पहुंच गया. जब समझते के लिए प्रोबेशन अधिकारी के पास पहुंचा तो काउंसलिंग के दौरान उर्वशी ने बताया कि भाभी ने नया लहंगा खरीदा तो उन के सामने वह नीचा नहीं देखना चाहती थी. उस के चचेरे भाई की शादी थी, तो वह जबरदस्ती नया लहंगा खरीदने के लिए जोर डाल रही थी. सुदेश का कहना था कि शादी वाला लहंगा या दूसरी कोई साड़ी पहन लो, लेकिन लहंगे पर 40-50 हजार रुपए खर्च करना सरासर बेवकूफी है. शादी का लंहगा एक बार ही पहना है इसलिए वही पहन लो.

बस बहस बढ़ती चली गई और वह रूठ कर मायके चली गई. फिर तो वकील जो कहते रहे वही सारे इलजाम लगाए जाते रहे.

कानून का बेजा इस्तेमाल

कानपुर के किदवई नगर की उच्चशिक्षित सोमा की शादी प्रयागराज के दिलीप से हुई. दोनों ने लव मैरिज की थी. घर वाले भी काफी सुलझे हुए थे. दोनों बहुत प्यार से 1 साल तक रहते रहे, फिर दूसरों की बातों में आ कर आपस में झगड़ा शुरू हो गया.

एक दिन किसी बात पर दिलीप ने नाराज पत्नी का हाथ पकड़ लिया. बस घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करवा दिया गया. काउंसलिंग के समय सोमा ने बताया कि दिलीप उसे बहुत प्यार करता है. उस ने उसे कभी भी नहीं मारा. सब लोग कहते हैं कि हर समय तुम काम में ही लगी रहती हो. तुम्हें मुझ से बात करने की भी फुरसत नहीं रहती. दिन भर के लिए कामवाली रख लो और आराम से रहो. धीरेधीरे दूसरों की सीख की वजह से घर के काम करने बंद कर दिए और फिर इसी कारण घर में तनाव, अव्यवस्था और झगड़े होने लगे. हंसताखेलता परिवार टूटने की कगार पर पहुंच गया.

‘‘गूंज… गूंज कहां हो? सुबहसुबह फोन पर लग जाती हो. मेरी शर्ट प्रैस नहीं है. बटन भी तुम ने नहीं लगाया,’’ राहुल जोर से चिल्ला रहा था.

गूंज के कुलीग का फोन था. उसे बहुत बेइज्जती महसूस हुई. वह गुस्से में बोली, ‘‘तुम

से मैं ने कितनी बार कहा है कि जब मैं फोन पर रहूं तो तुम चिल्लाया मत करो, लेकिन तुम भला क्यों मानो.’’

राहुल नाराज हो कर औफिस चला गया. गूंज का मूड खराब था. उधर सास ने नाश्ता बनाया था और राहुल नाराज हो कर गया तो वाजिब था, उन्होंने भी चार बातें सुनाईं उस का मूड दिनभर खराब रहा. औफिस में भी उस का मन नहीं लगा और काम में गलती होने की वजह से बौस की डांट और पड़ गई.

अपनी गलती मानने के बजाय वह सोचती रही कि क्या राहुल अपनी शर्ट प्रैस नहीं कर सकता? अब गूंज हर समय राहुल से अपने काम खुद करने को कहती. राहुल को बिलकुल भी नहीं अच्छा लगता. वह गूंज के रवैए से आहत हो जाता. धीरेधीरे दोनों के रिश्ते में कड़वाहट बढ़ने लगी. आपस की जरा सी नासमझ के कारण रिश्ते में दरार पड़ गई. पति को इतना तो समझना ही चाहिए कि पत्नी फोन पर किसी जरूरी कौल पर ही होगी.

बेटी की हर तकलीफ पर दूसरों का दुखी होना स्वाभाविक और उचित है परंतु ससुराल की छोटीछोटी बातों पर अपनी बेटी का पक्ष लेने पर रिश्तों में कड़वाहट आने में देर नहीं लगती.

एक नई समस्या

एक नई समस्या देखने में आ रही है कि आजकल लड़कियों को घर संभालने की जिम्मेदारी उठाना यह कह कर नहीं सिखाया जाता कि दूसरे घर जाना है. वहां तो काम करना ही होगा, इसलिए अभी आराम करो. जिंदगी भर काम ही करना है.

यही वजह है कि लड़कियां शादी को अपने सपने पूरे करने का साधन मानने लगी हैं. मगर यथार्थ के धरातल पर जब उन के सपने जिम्मेदारियों के नीचे धराशायी हो जाते हैं तो वैवाहिक जीवन से चिढ़ होने लगती है और ससुराल पक्ष का हर व्यक्ति अपना दुश्मन सा दिखने लगता है, जिस का शिकार मुख्य रूप से सास या पति बन जाता है क्योंकि लड़कियों का ज्यादा समय उस के साथ ही बीतता है. लड़कियां आते ही पति और घर पर अपना पूरा अधिकार जमाना चाहती हैं, ऐसे में लड़का यदि मां, बहन, भाई किसी को भी कुछ दिनों तक प्राथमिकता देता है या आर्थिक सहायता करना चाहता है तो लड़की परेशान हो कर बात का बतंगड़ बना कर घर में अशांति फैला देती है. शादी का अर्थ ही है जिम्मेदारी और आपसी तालमेल, इसलिए लड़की को पति और परिवार की जिम्मेदारी और तालमेल से रहते देख कर खुश होने की जरूरत है न कि परेशान होने की.

दूसरों को समझदारी दिखाते हुए बेटी और उस के ससुराल वालों के घर में दखलंदाजी न कर के बेटी को तालमेल बना कर रहने की सीख देनी चाहिए.

हां, यह आवश्यक है कि बेटी को अपने साथ अन्याय या अत्याचार, दुर्व्यवहार सहन नहीं करना है और उस के विरोध में अवश्य आवाज उठानी है, यह समझने की जरूरत है.

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