यह खेद की बात है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार समान व्यक्तिगत कानून पर विचार करने को तैयार नहीं है. भगवा मंडली का यह पुराना एजेंडा है कि व्यक्तिगत कानून एकजैसे हों ताकि वे मुसलमानों से तलाक, मेहर व 4 पत्नियां रखने तक का हक छीन सकें. लेकिन इन कट्टरपंथियों को यह नहीं मालूम कि समान व्यक्तिगत कानून में हिंदू विवाह कानून और हिंदू संयुक्त परिवार भी पिस जाएंगे.

आज हिंदू विवाह पाखंडों का एक बड़ा जखीरा है. शुभ मुहूर्त, साए, कुंडली, पंडितों की घंटों की पूजा, अग्नि पूजा, देवताओं का आह्वान, फेरे, छोटीमोटी रस्में आदि हिंदू विवाह का हिस्सा हैं और कुछ कानून के दायरे में आती हैं, कुछ नहीं. यदि समान विवाह कानून विरासत, गोद बने तो सारी पंडिताई धराशाई हो सकती है.

भाजपा को सरकार में आने के बाद जब कानून का मसौदा तैयार करना पड़ा तो उसे यह एहसास हो गया होगा कि पार्टी के आधार, धर्म को यह समान कानून निरर्थक कर देगा.

समान विवाह कानून का अर्थ होगा कि सभी धर्मों के लोग आपस में बिना लागलपेट विवाह कर सकेंगे और विवाह या तो अदालतों में होंगे या फिर किसी कानून के अंतर्गत नियुक्त पब्लिक नोटरी टाइप लोगों के द्वारा. कुंडली देख कर पंडितों को विवाह कराने के जो मोटे पैसे मिलते हैं और रात भर लोगों से फेरों में जगने की जो जबरदस्ती की जाती है, वह बंद हो जाएगी.

मुसलिम कानून में जो परिवर्तन होंगे वे उतने महत्त्व के न होंगे, जितने हिंदू कानूनों में होंगे, क्योंकि मुसलिम व्यक्तिगत कानून कुछ हद तक औरत की रजामंदी पर निर्भर है, जबकि हिंदू विवाह कानून में उसे वर को दान के रूप में दिया जाता है.

मुसलिम विवाह कानून परिवर्तन मांगता है पर जो हौआ दिखाया जाता है कि वे 5 के 25 हो रहे हैं, गलत है. यह भी गलत है कि हर मुसलिम पुरुष 4 पत्नियां रखता है, क्योंकि फिर औरतों की जनसंख्या में पुरुष व महिला का अनुपात 1:4 का होता होगा यानी 4 गुना औरतें उपलब्ध होनी चाहिए.

समान व्यक्तिगत कानून का हौआ केवल चुनावी जुमला है, जैसा अच्छे दिन आने या क्व15 लाख प्रति व्यक्ति काला धन विदेश से लाने पर देने का. विवाह कानूनों में परिवर्तन हो पर उसे राजनीतिक चश्मे से न देख कर व्यावहारिक रूप दिया जाए. हिंदूमुसलिम दोनों समाजों में व्यक्तिगत कानूनों में बहुत परिवर्तनों की आवश्यकता है ताकि औरतों को अदालतों के गलियारों में वर्षों चप्पलें न घिसनी पड़ें.

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