नीतू श्रीवास्तव, समाजसेविका

नीतू ने समाज के निर्धनों, बेसहारों, वृद्धों, दिव्यांगों और बच्चों को भिक्षावृत्ति व महिलाओं को वेश्यावृत्ति के चंगुल से मुक्त कराया. समाजसेवा के क्षेत्र में और बेहतर कार्य करने के लिए 2 मार्च, 2019 को ‘श्रुति फाउंडेशन’ की नींव रख कर वे उपेक्षित वर्ग के उत्थान के मार्ग पर निकल पड़ीं.

बेसहारों को सहारा देने के लिए जानी जाने वाली नीतू श्रीवास्तव का जन्म छत्तीसगढ़ के भिलाई शहर में एक सामान्य परिवार में हुआ था. उन में सामाजिक हितों के लिए कार्य करने की भावना स्कूल टाइम से ही थी.

समाजशास्त्र और राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रैजुएट होने के साथ ही नीतू ने आईटीआई से इलैक्ट्रौनिक्स व पीजी कंप्यूटर कोर्स भी किया है. ब्यूटीशियन के तौर पर अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली नीतू श्रीवास्तव में समाजसेवा का जनून इस कदर सवार था कि उन्होंने इस की खातिर अपने पार्लर को बंद कर समाजसेवा की ओर उन्मुख होना ज्यादा बेहतर समझा. आइए, जानते हैं उन से उन के इस सफर के बारे में:

समाजसेवा के क्षेत्र में आने की पे्ररणा कहां से मिली?

समाजसेवा में आने की प्रेरणा मुझे स्कूल टाइम से मिली जब मैं स्काउट गाइड में थी. हमें मिशनरी के साथ कुष्ठ उन्मूलन शिविर में ले जाया जाता था और रोगियों की सेवा कैसे की जाती है यह सिखाया और बताया जाता था. इस तरह मेरा झुकाव दीनदुखियों की तरफ होने लगा. समय के साथ सेवा की भावना बढ़ती गई. दूसरों के दुख अपने लगने लगे तो निर्णय लिया कि चाहे कितनी भी व्यस्त दिनचर्या क्यों न हो अपना समय समाजसेवा में जरूर दूंगी और फिर इस फील्ड में आ गई.

सामाजिक संगठनों से कैसे जुड़ीं?

इस दिशा में अकेले कुछ भी करना मुमकिन नहीं था. अत: मैं समाजहित में जो भी कार्य करती, उसे फेसबुक पर शेयर कर देती, जिस से समाज के लोगों व कई सामाजिक संगठनों की नजर मुझ पर पड़ी. वहीं से मुझे कई सामाजिक संगठनों से जुड़ने के औफर मिलने लगे. इन के साथ जुड़ कर मैं ने कुछ समय ही काम किया. फिर अपने विचारों के साथ आगे बढ़ी.

भिक्षावृत्ति और वेश्यावृत्ति आज देश की 2 बड़ी समस्याएं हैं. इन के लिए अपनी जंग के बारे में बताएं?

भिक्षावृत्ति और वेश्यावृत्ति का कारण पैसों की कमी, मजबूरी व शिक्षा की कमी है, साथ ही लोगों में जागरूकता का अभाव भी एक कारण है. हम अपनी जंग के अंतर्गत इन कार्यों से जुड़े लोगों को इन के बुरे अंजाम से अवगत करा कर उन्हें इन से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें इन कार्यों से दूर कर उन के पुनरुत्थान की कोशिश कर रहे हैं.

‘बड़े सामाजिक संगठन नाम बड़े दर्शन छोटे’ इस बारे में आप का क्या कहना है और कैसे आप खुद को इस फील्ड में अलग साबित कर पा रही हैं?

बड़ेबड़े संगठन सिर्फ बाहर से बड़े लगते हैं, पर अंदर से खोखले होते हैं. अपने समाज के लोग ही जब अपने समाज की मदद करने के लिए आगे नहीं आते हैं तो बड़ा दुख होता है. मेरा संघर्ष यहीं से शुरू हुआ. अब मैं जमीनी स्तर पर कार्य कर के खुद को इस फील्ड में अलग साबित कर पा रही हूं. यह जरूरी नहीं कि बड़ेबड़े डोनेशन हों तभी कोई कार्य मुमकिन हो सकता है. हम शासनप्रशासन के सहयोग से भी कई कार्यों को अंजाम दे सकते हैं. मददगार और शासन के बीच की कड़ी बन कर अर्थात् बहुत से कार्य माध्यम बन कर भी किए जा सकते हैं, जो हम कर रहे हैं.

किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

कई तरह की चुनौतियां सामने आती हैं खासकर मैडिकल फील्ड में. लोगों को पैसा और मदद तो चाहिए पर करना वही चाहते हैं जो उन का मन करता है. ऐसे में हमें उन्हें बहुत समझाना पड़ता है कि हम आप के लिए जो कर रहे हैं वह सही है. कई बार जब किसी वादविवाद के कार्य में आगे आओ तो लोग बयान देने में पीछे हटने लगते हैं, जिस की वजह से कोई भी केस हलका होने लगता है.

महिलाओं को क्या संदेश देना चाहेंगी?

अगर आप के अंदर जनून है और कुछ करने की चाह, तो अपने आत्मविश्वास को बनाए रखें. परेशानियों और संघर्ष के दौर से घबराएं नहीं. संघर्ष के दौर में भले ही आप के साथ कोई न हो पर कामयाबी मिलते ही आप के पीछे पूरा कारवां होगा. जब तक आप खुद अपनी काबिलीयत को नहीं पहचानेंगी कोई आप को न जानेगा और न समझेगा.

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