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महीने भर में रिया के शरीर की खरोंचें और घाव तो ठीक हो गए, लेकिन वह अपने साथ हुए हादसे को भूल नहीं पा रही थी. न वह खातीपीती, न स्कूल जाने या पढ़ने को तैयार होती. बस बिस्तर पर लेटी हुई एक ही बात बोलती रहती, ‘‘मुझे मर जाने दो, मुझे मर जाने दो.’’

मम्मीपापा, भैया ने बहुत कोशिश की  वह दोबारा पढ़ने में अपना मन लगा ले तो यह हादसा भूल जाएगी, लेकिन उस की जीने की इच्छा ही खत्म हो चुकी थी. वह अपने मन की गहराई में कहीं अपनेआप को ही गुनहगार मान बैठी थी. उसे अपने शरीर से घृणा हो गई थी.

मम्मीपापा को उस के भविष्य की चिंता होने लगी. उन की मेधावी बेटी का भविष्य एक हैवान ने बरबाद कर दिया था. उन्होंने बहुत कोशिश की पता लगाने की, मगर नहीं जान पाए कि वह कौन शैतान था, जिस ने एक मासूम की खुशियां, उस का सुनहरा भविष्य, उस की प्यारी मुसकराहट सब कुछ बरबाद कर दिया.

डा. आशा अब भी कभीकभी रिया से मिलने आ जाती थीं. उन्हें उस से हमदर्दी हो गई थी. वे स्वयं भी इस घटना से बहुत दुखी और क्षुब्ध थीं और नहीं चाहती थीं कि इतनी अच्छी प्रतिभा यों घुट कर रह जाए.

एक दिन वे रिया से बोलीं, ‘‘बेटा, अब तो तुम ठीक हो चुकी हो. स्कूल जाना और पढ़ना शुरू करो. इस साल तो तुम्हें बहुत मेहनत से पढ़ना होगा, क्योंकि तुम्हें मैडिकल की तैयारी भी तो करनी है. अब समय मत गंवाओ और कल से ही स्कूल जाना शुरू करो.’’

‘‘क्या करूंगी मैं पढ़ कर? मैं अब जीना नहीं चाहती. सब कुछ खत्म हो गया.’’

उस का सदमे से भरा सपाट स्वर सुन कर आशाजी धक रह गईं. सचमुच रिया में जीने की कोई इच्छा बाकी नहीं रह गई थी. फिर भी उन्होंने कोशिश करना नहीं छोड़ा. वे उसे सम?ाने लगीं, ‘‘पढ़ कर तुम डाक्टर बनोगी. तुम्हारे तो मम्मीपापा, भाईबहन सब हैं. जीते तो वे भी हैं जिन का कोई नहीं होता. फिर तुम्हारा तो पूरा परिवार है. उन के लिए और डाक्टर बन कर लोगों का दुख बांटने के लिए तुम्हें जीना है, लोगों की सेवा करनी है. अपने लिए नहीं तो दूसरों के लिए जीना सीखो रिया. यों हिम्मत हारने से कुछ नहीं होता.’’

‘‘आप तो जानती हैं मेरे साथ क्या हुआ. मैं स्कूल जाऊंगी तो सब मु?ा से दूर भागेंगे. कौन अपनी लड़की को मेरे साथ रहने देगा. तब मेरे साथसाथ मेरे घर वालों का भी घर से बाहर निकलना बंद हो जाएगा आंटी. सब जगह मेरी बदनामी होगी,’’ और रिया फफकफफक कर रो दी.

आशाजी ने उसे रोने दिया. वे चाहती थीं कि रिया के मन का सारा गुबार निकल जाए, तभी वह कुछ अच्छा सोच और समझ पाएगी. वे चुपचाप उस की पीठ पर हाथ फेरती रहीं. जब रिया कुछ शांत हुई तब उन्होंने उसे प्यार से देखा और बोलीं, ‘‘दुनिया बस कालापीपल तक ही सीमित नहीं है. तुम दूसरे शहर भी जा सकती हो. मैं तुम्हारे पापा से कहूंगी वे अपना ट्रांसफर करा लें और ऐसी जगह चले जाएं जहां तुम्हें कोई न पहचानता हो और तुम सहजता से रह सको.’’

रिया की आंखों में क्षण भर को एक चमक सी आ गई. फिर बोली, ‘‘लेकिन मैं तो वही रहूंगी न. लोग मुझे नहीं जानेंगे, लेकिन मैं कैसे भूल पाऊंगी कि मेरे साथ क्या हुआ है?’’ रिया की आंखों में फिर एक भय उभर आया.

इसी बात का डा. आशा को डर था. दरअसल, हमारे समाज का ढांचा ही ऐसा है कि बचपन से ही लड़की को यह सिखाया जाता है कि विवाह होने तक उसे अक्षत यौवना रहना चाहिए. पति के अलावा किसी भी पुरुष के छूने या कौमार्य भंग होने से लड़की अपवित्र हो जाती है. बचपन से ही रूढिवादी समाज ऐसी मान्यताएं लड़की के मन में कूटकूट कर भर देता है और इन खोखली मान्यताओं के जाल में उलझ बेचारी पीडि़ता निर्दोष होते हुए भी किसी दूसरे के कुकर्म की सजा उम्र भर भोगने को विवश हो जाती है.

रिया भी ऐसे ही समाज में पलीबढ़ी है, इसलिए उस में भी ऐसे ही संस्कार भरे हुए हैं. समाज में भले ही किसी को पता न चले पर वह स्वयं अपनेआप को उम्र भर के लिए अपवित्र हो गई है, मान बैठी है. पर डा. आशा ऐसा हरगिज नहीं होने देना चाहती थीं.

‘‘तुम्हें भूलना होगा रिया,’’ आशाजी कठोर स्वर में बोलीं, ‘‘क्या लोगों के ऐक्सीडैंट नहीं होते? हाथपैर नहीं टूटते? उस के लिए तो लोग जिंदगी भर मुंह छिपा कर रोते नहीं रहते? फिर तुम क्यों रोओगी? जो कुछ भी हुआ उस में तुम्हारा क्या दोष है? यह तुम्हारा कुसूर नहीं है. हमारे संस्कार ही ऐसे हैं कि इस केस में हमेशा लड़की को ही दोषी ठहराया जाता है. वह नीच राक्षस तो समाज में सिर ऊंचा कर के चलता है और पीडि़त लड़की कोई गलती न होने के बाद भी ताउम्र एक अपराधबोध से ग्रस्त रहती है.

‘‘लेकिन मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगी रिया. मैं किसी भी हालत में तुम्हारी प्रतिभा को बरबाद नहीं होने दूंगी. तुम न गलत हो, न ही दोषी. गलत और दोषी तो वह हैवान था. तुम्हें इस घटना को रात में देखा गया बुरा सपना समझ कर भूलना ही होगा. एक सुनहरा भविष्य तुम्हारा इंतजार कर रहा है.’’

‘‘मैं किसी आश्रम या मिशनरी चली जाऊंगी. ईश्वर की आराधना कर लोगों की सेवा में अपना जीवन बिता लूंगी,’’ रिया ने उदास स्वर में कहा.

‘‘ईश्वर होता तो तुम्हारे साथ यह होने देता? वह पत्थर या मूर्तियों में कभी नहीं होता और तुम्हें अभी इन धार्मिक स्थलों और आश्रमों की सचाई पता नहीं है. ऐसी बात भी अपने मन में कभी मत लाना. धर्म के तथाकथित ठेकेदार भगवान और धर्म के नाम पर अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए इन आश्रमों में ऐसेऐसे काले कारनामे करते हैं, जिन के बारे में कोई दूसरा सोच भी नहीं सकता. मैं तुम्हें अपने बचपन की एक घटना बताती हूं.’’

डाक्टर आशा ने 2 मिनट रुक कर अपने माथे से पसीना पोंछा और आगे कहना शुरू किया, ‘‘मैं तब 10-11 साल की थी और छुट्टियों में नानी के गांव गई थी. नानी के पड़ोस में एक परिवार रहता था. उन की 16-17 वर्ष की एक छोटी बेटी थी, जो बहुत सुंदर व गुणवान थी. मैं सारा दिन दीदीदीदी कहती उस के आसपास घूमती रहती थी. एक दिन खेत से वह अकेली लौट रही थी. पिता जरूरी काम से खेत पर ही रुक गए थे.

रिया पलंग पर लेटी तो उसे देर तक नींद नहीं आई. वह भी नीरज से काफी प्रभावित हुई थी. जिंदगी में पहली बार किसी ने उस के दिल के एक कोने को छू लिया था. लेकिन वह बारबार यह सोच रही थी कि क्या वह नीरज को अपने अतीत के बारे में बता दे या चुप रह कर रिश्ता स्वीकार कर ले? अगर वह बता देती है, तो नीरज से रिश्ता टूटना तय था और अगर नहीं बताती तो सारी उम्र उस के मन पर एक बोझ रहेगा और वह यह बोझ ले कर जी नहीं पाएगी.

रिया बेचैनी में उठ कर टहलने लगी. उस का अतीत उस की आंखों के सामने नाचने लगा… तब रिया के पिता कालापीपल नामक छोटे कसबे में रहते थे. 2 साल के लिए उन की पोस्टिंग वहां हुई थी. हंसताखेलता सुखी परिवार था उन का, जिस में उन के बच्चे रिया, उस का बड़ा भाई और छोटी बहन थी. तीनों ही मेधावी छात्र थे. उन का बड़ा सा सरकारी बंगला कसबे से बाहर की ओर था.

रिया तब मात्र 16 साल की किशोरी थी. अपने रंगरूप और मेधावी होने के कारण वह सब की लाडली थी. पूरे कसबे में उस की सुंदरता के चर्चे थे. लड़के उस की एक झलक पाने के लिए उस के स्कूल के आसपास चक्कर काटते थे, लेकिन रिया इन सब बातों से बेखबर अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी. वह खुशमिजाज थी, हमेशा हंसती रहती और सब से मीठा व्यवहार करती.

रिया तब 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. अगले साल उसे मैडिकल की प्रवेश परीक्षा देनी थी. कसबे में एक टीचर थे सिद्धार्थ सर. वे बौटनी और जुलौजी बहुत अच्छा पढ़ाते थे. उन से पढ़े हुए बहुत से स्टूडैंट्स का चयन मैडिकल में हो चुका था. रिया ने 11वीं कक्षा की परीक्षा समाप्त होते ही एक सीनियर से 12वीं कक्षा की किताबें लीं और सिद्धार्थ सर के यहां पढ़ने जाने लगी. उन का घर कसबे के बिलकुल दूसरे छोर पर था और वहां ज्यादा घनी बस्ती भी नहीं थी.

यह 27 जून की बात है. मानसून आ चुका था. शाम 6 बजे तक आसमान बिलकुल साफ था. रिया अपनी स्कूटी उठा कर पढ़ने चली गई. उस की 2 सहेलियां भी उस के साथ पढ़ती थीं. पढ़ाई के बाद उन के बीच स्कूल की पढ़ाई और पीएमटी की तैयारी पर चर्चा होने लगी. ऐसे में रात के 8 कब बज गए, पता ही नहीं चला. बाहर आसमान पर बादल छाए हुए थे. रिया की सहेलियां पास ही में रहती थीं. अत: वे पैदल ही चली गईं.

रिया ने भी अपनी स्कूटी उठाई और घर की ओर तेजी से चल दी. अभी वह आधा किलोमीटर दूर भी नहीं पहुंची होगी कि तेज बारिश शुरू हो गई. रिया बारिश से तरबतर हो गई.

तभी अचानक रिया की स्कूटी चलतेचलते रुक गई. रिया स्कूटी से उतर कर किक लगा कर उसे स्टार्ट करने की कोशिश करने लगी मगर गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई. उसे अपनेआप पर गुस्सा आया कि सहेलियों ने कहा था, मगर वह उन के घर नहीं गई. सोचा था कि बारिश शुरू होने से पहले ही घर पहुंच जाएगी, लेकिन अब क्या हो सकता है?

रिया का घर 2 किलोमीटर आगे है और सहेलियों के लगभग इतना ही पीछे. आखिर उस ने तय किया कि स्कूटी को ताला लगा कर यहीं खड़ी कर पैदल ही घर चली जाएगी. आते समय धूप थी इसलिए वह रेनकोट भी नहीं लाई थी. वह जिस स्थान पर थी, वह एकदम सुनसान था.

स्ट्रीट लाइट की रोशनी में वह थोड़ा ही आगे बढ़ी थी कि अचानक बिजली गरजी और लाइट चली गई. चारों ओर घुप्प अंधेरा हो गया. रिया का दिल जोरों से धड़कने लगा. वह अपना बैग सीने से दबाए तेजी से घर की ओर भागने लगी कि तभी 2 मजबूत हाथों ने उसे पीछे से दबोच लिया. रिया की चीख निकल गई. वह छूटने के लिए बहुत छटपटाई, चीखीचिल्लाई, लेकिन उस की चीखें मूसलाधार बारिश और बिजली की गड़गड़ाहट में दब कर रह गईं. हवस में अंधे नरपिशाच के आगे रिया बेदम हो गई.

जब उसे होश आया उस समय वह अपने पलंग पर अधमरी पड़ी थी. सुबह के शायद 8 बजे थे. मम्मीपापा व दोनों भाईबहन सहमे से खड़े थे. मम्मी के आंसू थम ही नहीं रहे थे. रिया को होश आता देख कर सब लोग उस के आसपास सिमट आए. रिया ने निर्जीव निगाहों से सब की ओर देखा और तभी उस के मस्तिष्क में रात की घटना कौंध गई और वह चीख मार कर पुन: बेहोश हो गई.

4-5 दिन बाद रिया की तबीयत जरा संभली. डाक्टर आशा सुबहशाम रिया का चैकअप करने आतीं. अपने सामने उसे सूप या जूस वगैरह दिलवातीं.

इस घटना को 1 माह बीत गया. रिया अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकली. घर वालों की बातों से पता चला कि उस रात जब वह काफी देर तक घर नहीं पहुंची, तो उस का भाई उसे ढूंढ़ने निकला. रास्ते में ही उसे रिया की किताबें पड़ी दिखाई दे गईं और पास ही सड़क से थोड़ा हट कर झडि़यों में रिया पड़ी मिली.

घर के नौकरचाकरों को यही पता है कि वह स्कूटी से फिसल कर गिर पड़ी है. उस के स्कूल में भी यही खबर भिजवाई गई थी. उस की सहेलियां जब भी उसे देखने आतीं कोई न कोई बहाना बना कर उस का भाई उन्हें उस से मिलने से रोक देता था.

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