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उसी पल उस ने उठ कर अपना प्रोफाइल बनाया था. फिर वह दिनरात नौकरी की तलाश में लैपटौप पर बैठी रहती थी. उस ने फेसबुक से रोहन का भी पता लगा लिया था. वह पुणे में अपनी एडवर्टाइजिंग कंपनी चला रहा था.

अब उस का उद्देश्य था, किसी तरह से भी पुणे पहुंचना. जल्द ही उस की चाहत ने उस का साथ दिया. एच.आर. की पोस्ट के लिए पुणे की ही एक कंपनी ने उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया. उस ने अपनी प्लेसमैंट एजेंसी से पहले फोन पर इंटरव्यू करवाने का आग्रह किया, जो बहुत अच्छा हुआ था. उन्होंने औनलाइन जौइन करने का पत्र भी भेज दिया. उस ने नैट से अपना टिकट भी कर लिया था और चुपचाप अपनी पूरी तैयारी कर ली थी. उस के बाद एक दिन वह अपने पापा से बोली, ‘पापा, मैं अपने पैरों पर खड़े होने के लिए नौकरी करना चाहती हूं.’

‘क्या तुम्हारा दिमाग खराब है? हमारे घर की लड़कियां नौकरी नहीं करतीं. पहले ही तुम ने मेरी बेइज्जती कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, अब क्या चाहती हो?’ मम्मी धीरे से बोलीं थीं, ‘कर लेने दीजिए घर में पड़ेपड़े उस का मन नहीं लगता है.’

पापा नाराज हो उठे थे, ‘हांहां जाओ, कोई नया गुल खिला कर मेरे मुंह पर कालिख पोतना. तुम मांबेटी मिल कर मु  झे चैन से जीने नहीं दोगी.’ आज वह अच्छी तरह सम  झ गई थी कि यहां पर उस का साथ देने वाला कोई नहीं है. पापा की जीवनशैली और विचार उस से मेल नहीं खाते. एक रात पिता के नाम एक पत्र लिख कर वह घर से निकल कर ट्रेन में जा कर बैठ गई थी. वैसे घबराहट के कारण वह नर्वस बहुत थी, क्योंकि जीवन में पहली बार वह घर से इतनी दूर जाने के लिए निकल पड़ी थी. उस ने कंपनी के गैस्टहाउस का पता ले लिया था.

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