कमरेमें पंखा फुलस्पीड पर चल रहा था. लखनऊ में वैसे भी अप्रैल आतेआते अच्छीखासी गर्मी पड़ने लगती है.
मेज पर रखी ‘भैरवी सिंह, जिलाधिकारी’ नेमप्लेट के नीचे दबे लिफाफे से झंकते फड़फड़ाते गुलाबी कागज पर भैरवी की नजरें टिकी थीं. कागज पर लिखे सुनहरे रंग के शब्द दूर से ही चमक रहे थे.
‘‘सुप्रसिद्ध लोग गायक ‘मल्हार वेद’ के सुरों से सजी संध्या में आप सादर आमंत्रित हैं.’’
‘मल्हार’ यह नाम पढ़ते ही भैरवी का दिल डूबने सा लगा. उस ने अपनी कुरसी की पीठ पर सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं. पलकों के पीछे एक जानापहचाना सा दृश्य उभरने लगा. दूरदूर तक फैला गंगा का कछार और किनारे बसा प्रयाग के नजदीक ही कहीं छोटा सा उस का गांव मल्हार. यही तो नाम था उस का. 9-10 बरस
का लड़का आ कर जोर से भैरवी के कंधों पर धौंस जमाता और उस के कानों में चिल्लाता, ‘‘धप्पा.’’
भैरवी ने अचकचा कर आंखें खोल दीं. सामने उस की सैक्रेटरी मोहना खड़ी थी. बोली, ‘‘मैडम, आप का कल के लिए शेड्यूल बनाना था. कल सुबह आप की मंत्री महोदय के साथ मीटिंग है, फिर दोपहर में एक आर्ट गैलरी के उद्घाटन में जाना है और फिर कल शाम 7 बजे से फोक सिंगर मल्हार के कार्यक्रम में आप आमंत्रित हैं. आयोजकों ने डिनर के लिए भी रिक्वैस्ट की है. क्या कह दूं मैडम उन से?’’
‘‘ठीक है मोहना. हम कार्यक्रम में तो जाएंगे परंतु डिनर तक रुकेंगे या नहीं यह मैं बाद में देख लूंगी,’’ भैरवी ने अनमने ढंग से कहा, ‘‘चल न. तेरे बाग से आम की कच्ची कैरियां तोड़ें.’’