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इसी बीच बलदेव सिंह का अचानक सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया. पिता के देहांत पर जब भैरवी गांव आई तो उसे अपनी बचपन की सहेली से पता चला कि मल्हार का परिवार गांव छोड़ कर राजस्थान चला गया है, जहां के कणकण में लोकसंगीत बसा है. मल्हार के परिवार को वहां बहुत प्रसिद्धि मिल रही है.

पिता की मृत्यु के पश्चात मां राजरानी बिलकुल टूट गई थीं और दादी ने भी खाट पकड़ ली थी. खेतों पर भी बटियादारों द्वारा कब्जा हो गया था और पैसों की तंगी के कारण घर चलाना मुश्किल हो रहा था.

भैरवी का सिविल सेवा परीक्षा का वह चौथा प्रयास था. वह दिनरात कड़ी मेहनत कर रही थी कि इस बार तो वह सिविल सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण कर ले. एक दिन वह लाइब्रेरी से लौट रही थी कि उसे मां की चिट्ठी मिली. चिट्ठी में लिखा था-

‘बिटिया भैरवी, शादी विवाह समय पर हो जाए तो सही रहता है. तुम न जाने क्या मन में पाले बैठी हो. बड़ी मुश्किल से तुम्हारे लिए एक रिश्ता आया है, मेरी भाभी के मायके की तरफ का. अगले रविवार को लड़के वाले आ रहे हैं. तुम भी आ जाओ. तुम्हारा विवाह हो तो आगे सोनी का भी विवाह करना है. दोनों बेटियों का विवाह कर लूं तो गंगा नहाऊं.’’

मल्हार के प्रेम में रचीबसी भैरवी इस बार मां को कुछ न कह पाई. उसे तो यह भी नहीं पता था कि इतने साल बीत जाने के बाद मल्हार उस से प्रेम करता भी है या नहीं.

उस ने अपनी सखियों से सुना भी था कि लड़के तो निर्मोही होते हैं. आज किसी से प्रेम तो कली किसी दूसरे से. दिल देने में माहिर होते हैं दिल फेंक किस्म के लड़के, मल्हार भी ऐसा ही हो, क्या पता.

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