Shahzad Ali: सूफी संगीत और बौलीवुड फिल्मों से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले सिंगर शाहजाद अली से आज हरकोई परिचित है क्योंकि फिल्म ‘धुरंधर’ का टाइटल सौंग ‘न तो कारवां की तलाश है…’ का रीमिक्स आज सब की जबान पर है और सभी उसे पसंद कर रहे हैं.

उन्होंने संगीत में पहचान ‘सुरक्षेत्र’ और ‘वौयस औफ इंडिया’ से बनाई. इस के बाद ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘आंधी और आश्रम’ आदि कई फिल्मों के गाने गाए हैं. यहां तक पहुंचना आसान नहीं था क्योंकि उन का कोई भी परिचित इस क्षेत्र से नहीं है.

राजस्थान के निम्न मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखने वाले शाहजाद ने खास ‘गृहशोभा’ से बात की.

सफल होना नहीं आसान

शाहजाद ने 15 साल से मेहनत किया है, तब जा कर उन्हें बड़ी कामयाबी मिली है क्योंकि इंडस्ट्री में गौडफादर न रहने पर काम का मिलना आसान नहीं होता. अपनी जर्नी के बारे में उन का कहना है कि फिल्म ‘धुरंधर’ के गाने की पौपुलरिटी की वजह से मेरे आगे बढ़ने का रास्ता आसानी से खुल गया है. अभी बहुत सारी रिकोर्डिंग और शोज के औफर्स आने लगे हैं और मेरे कैरियर के लिए यह अच्छी बात है, जिस के लिए  मैंने 15 साल से कोशिश की है.

शुरुआती दौर

वे कहते है कि मैं 13 साल की उम्र में टीवी शो ‘सा रे गा मा पा लिटल चैंप’ के लिए राजस्थान के बीकानेर से मुंबई आया था. उस दौरान मैं यहीं शिफ्ट हो गया और काम के लिए संघर्ष शुरू कर दिया था. उस समय मैं ने मुंबई में छोटेछोटे रेस्तरां में प्रोग्राम करने शुरू कर दिए थे, जहां मुझे कुछ पैसे मिल जाते थे. यहीं से जर्नी शुरू हुई थी. उस के बाद एक शो ‘सुरक्षेत्र’ किया था, उस से मुझे इंडस्ट्री में ऐंट्री मिली.

उस समय मेरी उम्र 18 वर्ष थी. इस शो में काम करने की वजह से मेरा नाम हुआ. मुझे बाहर भी वैडिंग, कारपोरेट शोज में गाने का काम मिलने लगे और मैं कुछ पैसे कमाने लगा और फिर लाइफ अच्छी चलने लगी.

इस के बाद मैं ने कई संगीत निर्देशकों को फोन करने लगा. उन से मिलने की कोशिश करता रहा. वर्ष 2015 में मेरी मुलाकात संगीत निर्देशक विशाल ददलानी से हुई. उन्होंने मुझे फिल्म ‘एनएच सेवन’ में गाने का मौका दिया, जिस में नुसरत फतेह अली खान को ट्रिब्यूट किया गया था. उस के बाद मैं गीतकार कुमार से मिला और उन्होंने मुझे बहुत सारे गानों को गाने का मौका दिया.

वे कहते हैं कि वैब सीरीज ‘आश्रम’ का मुख्य गाना मैं ने गाया, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया. इस के बाद कई रिकोर्डिंग किए, जिस में ‘आर्टिकल 370’, ‘कश्मीर फाइल्स’ आदि कई फिल्में थीं, जिन के गाने चर्चित हुए. अब ‘धुरंधर’ फिल्म का गाना ‘न तो कारवां की तलाश है…’ चल रही है.

रीमिक्स गलत नहीं

रीमिक्स के बारे में शाहजाद का कहना है कि क्रिएटिविटी में हमेशा एक नई चीज ही यह जरूरी नहीं क्योंकि 60 से 70 साल पुराना गाना जिसे नई पीढ़ी ने नहीं सुनी हो उस में कुछ नया कर पेश किया जा सकता है, यह उन के लिए एक सम्मान है, जिसे हम सभी देना चाहते है. उन्होंने वह काम कर दिया है, जिसे दोबारा करना मुमकिन नहीं.

मिली प्रेरणा

संगीत में लगाव और मुंबई आने की प्रेरणा के बारे में शाहजाद का कहना है कि मेरे शहर से 2 लोग संदीप आचार्य और राजा हसन पौपुलर हुए हैं, जिन्हे मैं बचपन में टीवी पर देखता था. उन्होंने टीवी शो कर काफी नाम कमाया. उन्हें देख कर मुझ में प्रेरणा जागी और मैं इसे करने की ठान लिया. इस के अलावा मुझे मोहम्मद रफी, नुसरत फतेह अली खान और किशोर कुमार के गाने बहुत पसंद हैं. गजल में मेहंदी हसन खां को सुनना अच्छा लगता है.

परिवार का सहयोग

परिवार का सहयोग शाहजाद को हमेशा मिला है क्योंकि उन के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. वे कहते हैं कि कमाने वाला कोई नहीं था. जहां मैं रहता था, वहां कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं था. पिता को मैं ने मुंबई जाने की बात कही और यहां आ गया, मुश्किलें रहीं पर आज सफल भी हुआ. वित्तीय परेशनी रही, लेकिन मैं मीरा रोड में रहता था और वहां काफी रेस्तरां हुआ करते थे, जहां लोग खाना खाने जाते थे और उन्हें गजल सुनना पसंद था. वहां मैं अच्छा कमा लेता था, जिस से मेरी रोजीरोटी चल जाया करती थी. कम उम्र होने की वजह से लोग मेरे गानों को सुनते भी थे.

मैं ने संगीत की तालिम भी ली है. मेरे उस्ताद पहले अब्दुल सत्तार बियानी थे बाद में अब्दुल शकुर सुलेमानी से मैं ने संगीत की बारीकियां सीखी हैं. मेरा घराना बीकानेर है. मैं ने गाने के साथ पढ़ाई भी जारी रखा और पूरा किया क्योंकि शिक्षा से मेरे अंदर आत्मविश्वास हुआ, जिस की मुझे जरूरत थी. मुझे 14 साल की उम्र में कोई नौकरी मिलना संभव नहीं था. संगीत में ही मेरे लिए कुछ करना था क्योंकि यही मेरा पैशन रहा है.

शहजाद कहते हैं कि मेरे पिता शब्बीर अली भी आर्टिस्ट ही थे. उन के गले में थायराइड होने की वजह से वे अधिक मेहनत नहीं कर सकते थे.

कुछ भी आसान नहीं

फिल्मों में संगीत कम हो चुका है, ऐसे में प्लेबैक सिंगर के लिए बहुत कम औप्शन रहता है, लेकिन शाहजाद इसे चुनौती नहीं मानते. वे कहते हैं कि आज हर क्षेत्र में चुनौती है, कहीं भी कुछ भी आसान नहीं है क्योंकि मरने से अधिक मुश्किल जीना होता है यानि जिंदगी का नाम चुनौती है. मैं किसी भी चीज पर कभी शक नहीं करता. मैं मानता हूं कि जो व्यक्ति मेहनत करता है वह कभी भूखा नहीं सोता.

रहा संघर्ष

शाहजाद कहते हैं कि संघर्ष भी कई प्रकार के होते है कि जिस में शुरू में रोटी कमाने का संघर्ष बाद में जब कामयाबी मिलती है, तो उसे बचाने का संघर्ष होता है, जिसे करने में मजा आता है. पहले जब मैं काम की तलाश कर रहा था, तो बहुत मायूसी मिली है, काम नहीं मिला. वह मेरी सीख थी, जिस से हो कर मुझे गुजरना था. मुझे याद है कि कई बार मुझे स्टूडियो से बाहर निकाल दिया गया और कहा गया कि मैं गा नहीं सकता. आज वही मुझे बुला रहे हैं. मैं ने उसे दिल से कभी नहीं लिया और काम कर रहा हूं.

आगे की योजनाएं

शाहजाद कोई प्लानिंग नहीं करते क्योंकि कलाकार कोई प्लान नहीं कर सकता. उन्हे टीम के हिसाब से जाना पड़ता है. उन का ड्रीम है कि सूफी संगीत के साथ रौक को मिक्स कर दुनिया के सामने लाया जाए. न्यू जैनरेशन के लिए उन का कहना है कि गरीब हो या अमीर सब के पास आज सबकुछ प्राप्त है, वे काबिल हैं और सही लोग से अगर वे मिल सकते हैं, तो उन्हें कामयाबी मिलेगी. इस में यह ध्यान रखना है कि संगीत हमारा सबकुछ है और इसे कायम रखना हमारा फर्ज है. मेरे बड़े पिता राजकुमार डागर थे, वे रामलीला में राम बनते थे और उन्हें सब संवाद मुंह जबानी याद रहती थी. उन के इस चरित्र को गांववाले बहुत पसंद करते थे. संगीत में कोई जातपात या धर्म नहीं होता, सिर्फ सुरों की दुनिया होती है, जिसे हरकोई सुनना पसंद करता है.

Shahzad Ali

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