राइटर- शैलेंद्र सिंह

आदमी औरत मिलकर ना केवल घर चलाते है बल्कि समाज और देश के विकास में भी उनकी भागीदारी अहम होती है. अगर दोनो के बीच दूरियां बढ जायेगी तो घर परिवार समाज और देश की संरचना बदल जायेगी. कल्पना कीजियें की किसी एक जगह केवल आदमी ही आदमी हो और किसी एक जगह केवल औरतें तो माहौल कैसा होगा ? ऐसा माहौल शायद किसी को भी पसंद नहीं आयेगा. वैसे तो कहा जाता है कि औरत पति की अर्धागिनी है. गृहस्थी की गाडी के दो पहिये है. तरक्की वहीं होती है जहां आदमी औरत कंधे से कंधा मिलाकर काम करते है. इसके बावजूद आज भी औरतें हर आदमी पर शक करती है और आदमी हर अकेली औरत को अभी भी शक की नजर से देखती है.

आधुनिक समाज में औरतों के अधिकार, शिक्षा और बराबरी की बातें धार्मिक प्रचार के कारण नदी के पानी ही तरह से बह गई है. धार्मिक प्रचार में औरतों को कमजोर बताया जाता है. इसका असर यह होता है कि औरत हर फैसला करने के पहले आदमी पर निर्भर होती है. यहां पर कई बार उसे आदमी पर भरोसा करने की कीमत भी चुकानी पडती है. जिसकी वजह से आदमी पर औरतों का शक बढने लगा है. तेजी से एक विचारधारा बनने लगी है कि औरतें आदमी के बिना रह सकती है. कुछ औरतों ने सिंगल रहने की दिशा में काम भी शुरू दिया है.

ऐसी महिलाएं नारीवादी विचारधारा में सेरोगेसी के जरीये मां बनने लगी है. कुछ बच्चों को गोद लेने लगी है. कुछ औरतें आदमियों के बजाये औरतों के साथ संबंधों में ज्यादा सुरक्षित महसूस करने लगी है. सैक्सुअली भी सेक्स ट्वायज का उपयोग महिलाओं में बढना शुरू हो गया है. इन हालातों से आदमी और औरतों के बीच स्वाभाविक रिश्ते बदलने लगे है. यह आधुनिक समाज की ही बात नहीं है. पहले भी ऐसी सोचं वाली महिलाएं थी अब इनकी संख्या तेजी से बढने लगी है. आधुनिक समाज में इसके कारण भी अलग होने लगे है.

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महिलाओं के प्रति बढते अपराध:
महिलाओं के प्रति बढते अपराध के मामले सोशल मीडिया पर ऐसे मैसेज वायरल होते है जैसे समाज का हर पुरूष अपराधी हो. महिलाएं करीबी लोगो तक पर भरोसा नहीं कर पा रहीं है. सिंगल महिलाओं की संख्या समाज में बढती जा रही है. लडकियां अपने साथी पर खुलकर यकीन नहीं कर पा रही. महिलाओं के मन में पुरूषों के प्रति असुरक्षा की भावना बढती जा रही है. ऐसे में दोनो के बीच स्वाभाविक रिश्ते बिगडने लगे है. महिलाएं जहां नारीवादी सोंच का षिकार हो कर अपने सहयोगी पुरूषों को भी शका की नजर से देखने लगी है वहीं पुरूष भी महिलाओं पर भरोसा नहीं कर पा रहा. उसका डर है कि महिला का रूख बदलते ही वह अपराधी की श्रेणी में खडा हो सकता है.

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित लडकी के साथ गैंगरेप की घटना घटी. उसी समय लडकियों और महिलाओं के साथ अपराध की दूसरी तमाम घटनायें भी सुर्खियों में सुनाई देने लगी. समाज में एक ऐसा माहौल बन गया जैसे कि हर पुरूष अपराधी हो. महिलाएं हर पुरूष को शका की नजर से देखने लगी. वैसे देखा जाये तो यह पहली बार नहीं हुआ है. 2012 में जब दिल्ली में निर्भया कांड हुआ उसके बाद तो देश भर में महिला अपराध के खिलाफ माहौल तैयार हो गया. महिलाओं की सुरक्षा के लिये कठोर कानून तैयार हो गया. जिसमें महिलाओं को देखने और घूरने तक को अपराध की सूची में डाल दिया गया. सुरक्षा संगठन की शालिनी माथुर कहती है ‘महिलाओं के खिलाफ अपराधों से उनके मन में पुरूषों के प्रति एक डर तो बैठ ही रहा है. अगर एक लडकी किसी से प्यार नहीं करना चाहती, उससे शादी नहीं करना चाहती ऐसे में किसी लडके को यह अधिकार कहां से मिल जाता है कि वह उस लडकी की जान ले ले.’

शालिनी माथुर कहती है ‘हरियाणा के वल्लभगढ में निकिता हत्याकांड में यह मानसिकता देखने को मिली. यह पुरूषवादी सोंच है जो औरतों के मन में पुरूष के प्रति नफरत और भय की मानसिकता को बढावा देती है. महिला और पुरूष के प्रति अपराध को लेकर कानून और समाज भी भेदभाव करता है अपराध को अपराध की नजर से नहीं देखा जाता. वल्लभगढ की घटना की जघन्य थी. सरेआम किसी लडकी को कार में खीचना और वह बैठने से इंकार कर दे उसको गोली से मार देना. इसके बाद भी समाज, सरकार और मीडिया हाथरस की तरह प्रतिक्रिया देने को तैयार नहीं हुआ. इससे अपराधी को षह मिलती है. अपराध को केवल अपराध की नजर से देखा जाये तभी उसका असर पड सकेगा.‘

बलात्कार से कम नहीं होती घूरती निगाहें :
किसी जगह पर अगर कोई लडकी कम कपडों में घूमने जाती है उसको हर निगाह घूरने लगती है. मध्य प्रदेश की वीरासनी बघेल लखनऊ में रहती है. यही जौब करती है. उनका कहना है ‘थोडे भी फैशनेबल कपडे पहन कर अगर घूमने या होटल रेस्त्रां में पहंुच जाये तो लोगांे की निगाहें ऐसे घूरती है जैसे बलात्कार कर देगी. रास्तें में चलते समय अगर कभी लगता है कि कोई मेरा पीछा कर रहा तो सबसे पहले यही ख्याल आता है कि कोई पुरूष पीछा तो नहीं कर रहा. अपने दोस्तों के साथ घूमने जाने पर भी चिंता लगी रहती है. कहीं किसी मुसीबत में ना पड जाये. यही सब कारण है जो मर्दो के प्रति सोंच नजरिया बदल रहा है.’

अकेली रहने वाली रीना गुप्ता कहती है ‘एक बार मैं रात में होटल में रूकने गई. मैंने अपना पूरा परिचय दिया. आधार कार्ड दिया. इसके बाद भी होटल वाले ने कमरा देने से पहले इतने सवाल किये जैसे मैं आतंकवादी हॅू. यहां तक कह दिया गया कि रूम में किसी पुरूष से मिलना नहीं है. किसी से मिलना है तो होटल की लौबी या रेस्त्रा में मिल लूं. जबकि गैर कानूनी रूप से इन्ही होटलों में गलत काम करने वालों को आराम से जगह मिल जाती है. मुझे अकेली होटल मंे देखकर होटल वालों को यह यकीन नहीं हो रहा था कि मैं अकेले रूकने आई हॅू. उनको लग रहा था कि मेरे से मिलने कोई ना कोई आने वाला है. इसी वजह यह है कि अकेली महिला के चरित्र को शका की नजर से देखा जाता है. जो हमारे चरित्र को गलत निगाह से देखता है वही हमको लेकर मौके की तलाश में रहता है. यही डर हमें मर्दो के प्रति शका के भाव से भर देता है.’

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महिलाओं के प्रति बढते अपराध प्रमुख वजह:
महिलाओं और पुरूषों के बीच बढती दूरी का प्रमुख कारण महिलाओं के प्रति बढते अपराध है. इसने दोनो के बीच खांई को बढा दिया है. महिलाओं को लगता है कि उनके प्रति खतरा बढ रहा है. अपराध के राष्ट्रीय आंकडे बताते है कि 2019 में महिलाओं के प्रति 4 लाख 5 हजार 861 मामले दर्ज किये गये. 2018 के मुकाबले यह आंकडे 7 फीसदी अधिक है. इनमें से ज्यादा मामले पति और रिश्तेदारों के द्वारा किये गये थे. अपराध के आंकडे ही नहीं बढे बल्कि अपराध का तरीका भी बदल गया है. अपराध के मामलों में जघन्यता बढती जा है. कुछ साल पहले लखनऊ में आपसी प्रेम में लडके ने अपनी प्रेमिका की हत्या करके उसकी बौडी को 3 टुकडों में बांटकर सडक के किनारे फेंक दिया. ऐसे तमाम उदाहरण है.

प्यार, दोस्ती, टार्चर और ब्लैकमेल करने के मामले आदमी और औरत के बीच दूरी बढाने का काम कर रहे है. 2013 में मुम्बई में शक्तिमिल में 22 साल की महिला फोटोग्राफर के साथ हत्या और गैंगरेप की घटना केवल अकेली लडकी ही नहीं उसके परिवार के मन में भी भय पैदा करता है. हैदराबाद में भी लडकी के साथ गैंगरेप और हत्या की घटना सभी के सामने है. महिलाओं के साथ घटने वाली अपराध की घटनायें बहुत वीभत्स होने लगी है. यह मामले बताते है कि अपराध करने वाला केवल अपराध ही नहीं करता घृणा के भाव तक जाकर अपराध करता है. उससे भी बडी बात यह है समाज अपराधी को दोष देने की जगह पर लडकी को ही दोष देने लगता है. यहां पर लडकी के कपडे, उसका रात में बाहर निकलना ऐसे कई सवाल खडे हो जाते है. अपराध अपराध को फर्क की नजर से देखा जाता है.

हिलाओं के प्रति अपराध में वीभत्सता हर स्तर पर बढ गई है. बलात्कार के मामलें देखे तो कठुआ कश्मीर में 8 साल की लडकी के साथ गैंगरेप से लेकर 60-70 साल तक की महिलाओं के प्रति यौन अपराध के उदाहरण मौजूद है. यह बताते है कि महिलाओं के प्रति अपराध को लेकर किसी तरह की हैवानी सोंच सामज के पुरूष वर्ग में छाई हुई है. जब ऐसे उदाहरणों को देखते है तो लगता है कि महिलाओं के मन में पुरूषों को लेकर जो नजरिया बदल रहा है वह सही ही है. एक तरफ समाज कहता है कि महिला और पुरूष को कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिये. दूसरी तरफ अपने साथ काम करने वाली लडकी के प्रति मन में हमेशा उससे छल करने की भावना बनी रहती है.

कानून से सहायता नहीं:
कानून और समाज बहुत सारे बदलाव की दुहाई देता है पर गंभीरता से देखे तो थानों में शिकायत नही लिखी जाती, कोर्ट जल्दी फैसला नही देता और समाज बलात्कार की पीडित को ही गलत नजरों से देखने का काम करता है. हाथरस कांड में लडकी की एफआईआर एक सप्ताह में 3 बार लिखी गई. जैसे दबाव पीडित बना लेगा वैसा मुकदमा लिखा जाता है. अगर किसी लडकी के साथ कोई घटना घट जाये वह अपना दर्द बताना चाहे तो उसकी बात कोई मानता नहीं और लडकी को ही सलाह दी जाने लगती है. केवल छोटी घटनाओं के मामलें में ही नहीं संसद में बहस तक के मामलें में यह भेदभाव देखने कोे मिलता है. संसद में जब महिला हिंसा के खिलाफ कानून पर समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि ‘लडको से ऐसी गलतियां हो जाती है’.

मुलायम सिंह यादव अकेले ऐसा नेता नहीं जो इस तरह के विचार व्यक्त कर चुके है. ऐसे नेताओं की लंबी लिस्ट है. जो छोटे कपडो, अंग प्रदर्शन, अश्लील फिल्मों जैसी वजहों को महिलाओं के प्रति अपराध का कारण मानते है. अगर समाज में कोई लडकी, महिला बेखौफ होकर घूम नहीं सकती. अकेले किसी होटल, सिनेमाहाल, ट्रेन, बस में सफर नहीं कर सकती तो उसका आदमियों से डर स्वभाविक ही है. अगर लडकी को समाज में बेखौफ रहने के लिये हथियार का लाइसेंस लेकर चलना पडे या हमेषा मारधाड के लिये तैयार रहना पडे तो यह सभ्य समाज नहीं हो सकता. अपने खिलाफ बढते अपराधों के गुस्से में अगर महिलाओं का पुरूषों के प्रति नजरिया बदल रहा है तो इसमें गलत भी नहीं है.

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ऐसे समाज से निपटने के लिये फूलन देवी को हथियार उठाकर लोगों की सामूहिक हत्या करनी पडी थी. उसे चंबल में रहकर डकैत बनना पडा था. 25ह बात अपनी जगह सही है कि आदमी औरत के बीच से संसार का स्वरूप बदल जायेगा पर इसकी जिम्मेदारी पुरूषों को भी लेनी होगी. इसकी सबसे बडी वजह यह है कि यह समाज पुरूष प्रधान समाज माना जाता है. महिलाओं को भी सोचना होगा कि पुरूष के बिना संसार उनके किस काम का होगा. आदमी और औरत एक साथ चलेगे तभी दोनो का लाभ होगा. देश और समाज भी खुशहाल होगा.

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