अधूरा ज्ञान देता मोबाइल

सोशल मीडिया ने आज आम लोगों की खासतौर पर  लड़कियों, औरतों, मांओं, प्रौढ़ों, वृद्धाओं की सोच को कुंद कर दिया है क्योंकि उन्हें लगता है कि जो उन के मोबाइल की स्क्रीन पर दिख रहा है वही अकेला और अंतिम सच है, वही देववाणी है, वही धर्मादेश है, वही हो रहा है. अब यह न कोई बताने वाला बचा है कि जो दिखा है वह उस का भेजा है जो आप जैसी सोच का है, आप के वर्ग का है, आप की बिरादरी का है क्योंकि सोशल मीडिया चाहे अरबों को छू रहा हो, एक जना उन्हीं को फौलो कर सकता है जिन्हें वह जानता है या जानना चाहता है.

सोशल मीडिया की यह खामी कि इसे कोई ऐडिट नहीं करता, कोई चैक नहीं करता. इस पर कमैंट्स में गालियां तक दी जा सकती हैं. सोशल मीडिया को जानकारी का अकेले सोर्स मानना सब से बड़ी गलती है. यह दिशाहीन भी है, यह भ्रामक भी है,  झूठ भी है. यह जानकारी दे रहा है पर टुकड़ों में.

नतीजा यह है कि आज की लड़कियां, युवतियां, मांएं, औरतें पढ़ीलिखी व कमाऊ होते हुए भी देश व समाज को बदलने के बारे में न कुछ जान पा रही हैं, न कह पा रही हैं, न कर पा रही हैं क्योंकि उन्हें हर बात की जानकारी अधूरी है. यह उन से मिली है जो खुद अनजान हैं, उन के अपने साथी हैं. सभी प्लेटफौर्मों से आप उन्हीं के पोस्ट देखते हो जिन्हें फौलोे कर रहे हों और अगर कहीं महिलाओं के अधिकारों की बात हो भी रही हो तो वह दब जाती है क्योंकि जो फौरवर्ड कोई नहीं कर रहा. औरतों की समस्याएं कम नहीं हैं. आज भी हर लड़की पैदा होते ही सहमीसहमी रहती है. उसे गुड टच बैड टच का पाठ पढ़ा कर डरा दिया जाता है. उसे मोबाइल पकड़ा कर फिल्मों, कार्टूनों में उल झा दिया जाता है. उसे घर से बाहर के वायलैंस के सीन इतने दिखते हैं कि वह हर समय डरी रहती है. हर समय घर में मोरचा तो खोले रहती हैं पर घर के बाहर का जीवन क्या है यह उसे पता ही नहीं होता.

हमारी टैक्स्ट बुक्स आजकल एकदम खाली या भगवा पब्लिसिटी का सोर्स बन गई हैं. उन से जीने की कला नहीं आती. घरों में मोबाइल और सोशल मीडिया की वजह से संवाद कम हो जाता है, अनजानों की रील्स और आधीअधूरी जानने वालों की पोस्टों से ही फुरसत नहीं होती कि घर में रहने वाले कैसे रह रहे हैं, क्या सोच रहे हैं, क्या कर रहे हैं. यह संवादहीनता ही घरों में विवादों की जड़ है. कोई दूसरे को सम झ ही नहीं रहा क्योंकि मोबाइल पर एकतरफा बात हो रही है और यह बात भी ऐसी कि अगर अच्छी हो तो उसे संजो कर नहीं रख सकते.

धर्म वाले अभी भी धंधा चालू रख रहे हैं. वे मोबाइलों पर आरतियों, कीर्तनों, धार्मिक उपदेशों,  झूठी महानता की कहानियों, रीतिरिवाजों को विज्ञान से जोड़ कर बकवास पोस्ट करे जा रहे हैं. चूंकि सोशल मीडिया एक तरफा मीडियम है, उसे देखने वालों को सच झूठ पता नहीं चल पा रहा. यह औरतों को ज्यादा भयभीत कर रहा है क्योंकि आज भी उन्हें डर है कि उन का बौयफ्रैंड या पति धोखा न दे जाए. औरतों को जो कहना होता है वे अब कह नहीं पा रहीं क्योंकि ऐसे प्लेटफौर्म कम होते जा रहे हैं, जहां कुछ गंभीर कहा जा सकता था.

बलौर्ग्स को भी इंस्टाग्राम और यूट्यूब को शौर्ट रील्स की फालतू की चुहुलबाजी, बेमतलब की ड्रैसों, फूहड़ नाचगानों ने कहीं पीछे कोने में धकेल दिया है.

जीवन आज भी फिजिकल चीजों से चलता है. सिर्फ पढ़ने या जानने के अतिरिक्त सबकुछ फिजिकल है, ब्रिक ऐंड मोर्टार का है, वर्चुअल नहीं है. आज जो भी हमारे चारों ओर है वह फिजिकल वर्ल्ड की देन है, यहां तक कि मोबाइल भी जो ब्रिक ऐंड मोर्टार व इंजीनियरिंग मशीनों से भरी फैक्टरियों से निकलते हैं, दुकानों में बिकते हैं. इस फिजिकल वर्ल्ड को भूल कर वर्चुअल वर्ल्ड में खो जाना एक तरह से धर्म की जीत है जो चाहता है कि भक्त काम करें पर फिजिकल चीजें उसे दे दें और खुद भक्ति में रमे रहें, किसी भगवान के आगे पसरे रहें, दान देते रहें.

फिजिकल वर्ल्ड का नुकसान आम लड़कियों को हो रहा है, युवतियों को हो रहा है, प्रौढ़ मांओंको हो रहा है, वृद्धाओं को हो रहा है जिन के पास अपना कहने को सिर्फ मोबाइल पर आने वाली सैकड़ों की तसवीरें और जल्दी मिट जाने वाले शब्दों के अलावा कुछ ज्यादा नहीं. अंबानी, अडानी, ऐलन मस्क को छोड़ दीजिए. वे धार्मिक कौंसपिरेसी का हिस्सा हैं, औरतों के दुश्मन हैं, उन्हें नाचने, अपनी वैल्थ दिखाने के लिए पास रखते हैं.

सोशल मीडिया पर यूथ द्वारा प्रयोग होने वाली टर्मोनोलौजी

आजकल तकनीक के जमाने में हर चीज का शॉटकट है. युवापीढ़ी की बात करें तो वो भी हर चीज को शॉटकट में करना पसंद करते हैं और हर चीज को कम समय में पूरा करना चाहते हैं. सोशल मीडिया आज बातचीत का एक प्रमुख जरिया बन गया है. शायद लोग असल जिंदगी में इतनी बातचीत नहीं करते हैं जितनी की सोशल मीडिया पर. सीधे-सीधे कहें तो सोशल मीडिया आज जुड़ने का सबसे बड़ा साधन हैं. आज आपको हम सोशल मीडिया से जुड़ी कुछ टर्मोनोलॉजी बता रहे हैं जो आजकल के युवाओं के बीच प्रयोग की जाती है. तो आइए जानते हैं यही टर्मोनोलॉजी.

 

  • Ty- take care
  • Ttya-talk to you later
  • OOtd-outfit of the day
  • OOtn-outfit of the night
  • Omg-Oh my god
  • Fyi-for your information
  • FYR-for your reference
  • DYK-do you know
  • Goat-greatest of all time
  • BAE-before anyone else
  • LOL-lots of laughter
  • I don’t know what to do.
  • NM-nothing much
  • GTG-good to go
  • Lit-cool/awesome

 

 

कुशाल टंडन और शिवांगी जोशी एक-दूसरे को कर रहे हैं डेट? सोशल मीडिया पर यूं जाहिर किया प्यार

शिवांगी जोशी और कुशाल टंडन की जोड़ी टीवी सीरियल बरसातें में नजर आई थी. इस शो में दोनों की जोड़ी को काफी पसंद किया गया. हालांकि यह शो काफी समय पहले ही बंद हो गया है, लेकिन इन दोनों की जोड़ी के चर्चे अक्सर सुर्खियों में बनी रहती है.

खबर ये भी आई थी कि कुशाल और शिवांगी एक दूसरे को डेट कर रहे हैं. दरअसल कुछ समय पहले दोनों ने वेकेशन की तस्वीरें इंस्टग्राम पर शेयर की थी.

 

इन फोटोज में शिवांगी कुशाल की बाहों में दिखीं और दोनों ही बर्फ की वादियों को एन्जॉय कर रहे थे, इसके बाद दोनों की डेटिंग खबरें आने लगी. हाल ही में शिवांगी जोशी ने एक डांस वीडियो शेयर किया है, जिस पर कुशाल  टंडन ने दिल खोलकर प्यार लुटाया है, जी हां, इस डांस वीडियो पर उन्होंने दिल वाली आंखें इमोजी कमेंट की है.

 

शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) एक अच्छी एक्ट्रेस होने के साथ-साथ शानदार डांसर भी हैं. फैंस उनके एक्टिंग और डांसिंग दोनों के दीवाने हैं. उन्होंने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक डांस वीडियो शेयर किया है, जिसमें ‘यिम्मी यिम्मी’ गाने पर एक्ट्रेस सिजलिंग डांस कर रही हैं.

 

इसमें एक्ट्रेस ने मिनी स्कर्ट और व्हाइट टॉप कैरी किया है. इसमें शिवांगी का लुक काफी क्यूट हैं और उनके डांस मूव्स फैंस को काफी पसंद आ रहे हैं. कुशाल को भी ये वीडियो काफी पसंद आया. उन्होंने इस वीडियो को अपनी इंस्टा स्टोरी पर भी लगाया है.

हालांकि शिवांगी जोशी और कुशाल टंडन एक दूसरे को अच्छा दोस्त बताते हैं, लेकिन यूजर्स का कहना है कि दोनों एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं.

रील्स के लती बनते बुजुर्ग

बुजुर्गों के हाथों और चेहरे पर झुर्रियां पड़ चुकी हैं पर उन्हें रील देखने की बुरी लत लग चुकी है. फोन चला लेने में सक्षम हो चुके ये बुजुर्ग कांपते हाथों से हर समय रील्स देखने में लगे रहते हैं. पहले ये अपने से छोटों को समय की एहमियत पर लताड़ लगा दिया करते थे. टाइम पास नहीं होता था तो अपने पुराने किस्से बता दिया करते थे, पर अब खुद फोन पर घंटों लगे रहते हैं.

इन से भी फोन का मोह नहीं छूट पा रहा है. एक आंख में मोतियाबिंद का औपरेशन हो रखा है पिर भी दूसरी आंख से रील देखने में व्यस्त हैं जबकि तिरछे में सफेद पट्टी माथे डाक्टर ने आंख पर ज्यादा जोर डालने से मना किया है पर फिर भी रील देखने से कंप्रोमाइज नहीं करते. स्क्रीन से तब तक नजर नहीं हटती है जब तक कोई टोक न दे.

रील का चसका ऐसा कि बहू किचन से खाना तैयार है जोर से बाबूजीबाबूजी कह कर ड्राइंगरूम में बुला रही है पर बाबूजी अपने कमरे में मोबाइल में उलझे पड़े हैं. खाना ठंडा हो जा रहा है, फिर भी बिस्तर से सरक नहीं रहे हैं.

हैरानी की बात

जो बाबूजी पहले खुद जल्दबाजी मचाया करते थे, समय पर खाना खाने की अहमियत बताया करते थे उन्हें अब खुद फोन की घंटी बजा कर बुलाना पड़ता है. हैरानी की बात तो यह कि खातेखाते भी रील देख रहे हैं. फोन कुछ देर रखने को कहो तो ?ाल्ला कर खाना ही छोड़ देंगे.

यही हाल सास का भी है. पहले जिस सास का काम दिनभर बहू की निगरानी करना था, उसे आटेदाल का भाव बताना था, सुबह जल्दी उठने की नसीहत देना था, बातबात पर टोकनाडपटना था वह भी अब बिना अलार्म की बांग पर उठ नहीं रही है. अलार्म भी 4-5 सैट करने पड़ते हैं. पहले अलार्म से तो केवल भौंहें ही फड़कती हैं.

इन बुजुर्गों का स्लीप साइकिल बुरी तरह बिगड़ चुका है. रात को देर तक जाग रहे हैं. सास और बहू एक ही समय में सो कर उठ रही हैं. घर में बड़ा इक्वल सा माहौल चल रहा है. नए जमाने की बहू रील बनाते हुए अपनी सास को ही रील में खींच लेती है. 4 ठुमके बहू खुद मारती कहती है 1 सास को मारने को कहती है. सास भी गानों पर लिप्सिंग करना जान गई है, ‘मेरे पिया गए रंगून…’ की जगह अब ‘तेरे वास्ते फलक से चांद…’ गुनगुना रही है.

बुजुर्ग अब बीपी और आर्थ्राइटिस की गोलियां तो भूल ही रहे हैं. सुबह खाली पेट थायराइड की गोलियां खाना भी भूल रहे हैं. कोई फूल कर कुप्पा हो रहा है तो कोई सिकुड़ रहा है. कईयों के कान में हड़ताल चल रही है. मगर कान में रिसीविंग एन केनाल मशीन लगा कर रील सुनी जा रही हैं.

अजीबोगरीब शौक

रील्स का बैकग्राउंड वौइस बेहतर सुनाई दे इसलिए जिन के कान ठीक चल रहे हैं वे कान में कुछ ब्लूटूथ भी लगा रहे हैं. बुजुर्ग भी जानते हैं रील में ‘मोयेमोये,’ ‘आएं… बैगन’ की आवाज के बीच गालीगलौज निकल जाती है इसलिए कुछ वायर लीड से ही काम चला रहे हैं.

बुजुर्ग अलगअलग प्लेटफौर्म पर अलगअलग कंटैंट कंज्यूम कर रहे हैं. अधिकतर शौर्ट वीडियो यानी रील्स ही देख रहे हैं. जहां पर सोफिया अंसारी और कोमल पांडे की तड़कतीभड़कती रील्स भी दिख जा रही हैं. इन की रील्स पर रुकने का मन हो रहा है पर उम्र जवाब दे रही है.

बेटे का फ्लैट शहर में है. मम्मीपापा को शहर ही ले आया है. 100 गज के बंधे फ्लैट में गांव की याद आ रही है. गांवों से शहरों में पलायन कर चुके बुजुर्ग यूट्यूब पर गांव की खूब खबरें देख रहे हैं. पिज्जाबर्गर खाते हुए गांव के इन्फ्लुएंसरों को खोजखोज कर देख रहे हैं. शहर को गरिया रहे हैं, पिज्जाबर्गर खा रहे हैं.

अधकचरा ज्ञान

कुछ तो यूट्यूब पर पौलिटिकल ऐनालिसिस सुन रहे हैं. यूट्यूब पर पौलिटिकल रिसर्च करने वाले इन इन्फ्लुएंसर को ये बुजुर्ग रजनी कोठारी से ले कर विद्या धर सारीका राजनीतिक शास्त्री मान बैठे हैं. मामला अब व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से यूट्यूब रिसर्च इंस्टिटयूट में शिफ्ट हो चुका है. इन यूट्यूबरों कम इन्फ्लुएंसरों का मोबाइल पर इतना कंटैंट आ जाता है कि एक बार बुजुर्ग देखना शुरू करते हैं तो रुक ही नहीं पाते.

कुछ यहां से सुना अधकचरा ज्ञान ले कर वे सहबुजुर्गों के व्हाट्सऐप ग्रुप में शेयर कर रहे हैं. व्हाट्सऐप पर इन का ग्रुप बना पड़ा है, जिस पर आधे से ज्यादा मैसेज भगवान की पिक्चर के साथ गुड मौर्निंग, गुड नाइट के होते हैं.

पहले ये बुजुर्ग अपने इलाके में बनी चौपाल पर मिला करते थे. पुरुषों की सारी चुगलियां बरगद के पेड़ के नीचे हुआ करती थीं, चुगलियों के बीच घरपरिवार के दुखों को भी बांट जाया करते थे.

अंधविश्वास को बढ़वा

थोड़ीबहुत पौलिटिकल बातें भी होती थीं पर अब चौपाल में कहने को 500 साल पुराना बरगद का पेड़ कट चुका है. वहां महल्ले के लड़केलड़कियों की बाइकस्कूटियां खड़ी होती हैं. इसलिए व्हाट्सऐप ग्रुप ही नया चौपाल बना गया है.

समस्या यह कि इंटरनैट ऐल्गोरिदम में फंसे ये बुजुर्ग नया कुछ नहीं देखसुन पा रहे. जो सुन रहे हैं वही शेयर कर रहे हैं. उसी को ज्ञान मान रहे हैं, उसी को सही मान रहे हैं, कुछ तो अलग लैवल के भक्त बन पड़े हैं.

फेसबुक पर लंबेलंबे धार्मिक पोस्ट पढ़ रहे हैं. विटामिन की गोली खा रहे हैं फिर नीचे कमैंट में जय श्रीराम लिख रहे हैं. ऐल्गोरिदम इन्हें यही पोस्ट और रील्स भेज रहा है, जिसे देखसुन कर ये लोटपोट हुए जा रहे हैं.

सोशल मीडिया को न होने दें खुद पर हावी, युवाओं में बढ़ रहा है डिप्रेशन और एंग्जायटी

सोशल मीडिया अब सिर्फ युवाओं ही नहीं हर किसी की जिंदगी का हिस्सा बन गया है.  अब युवा इसे अपने करियर के रूप में अपनाने के लिए बड़ी संख्या में आगे आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर रातों रात राजा से रंक बनने और एक वीडियो वायरल होने से सेलिब्रिटी बनने की अनगिनत कहानियां युवाओं को और भी ज्यादा अपनी ओर खींच रही हैं.

“आज मुझे एक बहुत अच्छा काम मिला है और इसमें किसी भी क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं”, चहकते हुए राहुल ने अपने दोस्त को बताया तो उसने पूछा,”आखिर मुझे भी तो पता लगे ऐसा क्या काम है?”

इस पर राहुल ने कहा,”  मुझे सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर बनना है और मुझे एक वेब साइट के लिए, एक दिन में 1000 फॉलाेअर्स बनाने पर 50 रुपये,  100 लाइक्स के  लिए 5 रुपये और 5 रुपये में 1000 व्यूज तक बढ़ाने होंगे.”,..ये सुनते ही राहुल का दोस्त सिर पकड़ कर बैठ गया.

दरअसल सोशल मीडिया के इस दौर में जेन-जेड के अपने सपने और लक्ष्य हैं. दुनिया को देखने का नजरिया अब वे अनुभव की जगह रील्स, वीडियो और वायरल वीडियो से तय करने लगे हैं. वे अपने आपको नेटिजन बोलना पसंद करते हैं. हर दिन घंटों सोशल मीडिया पर बिताने वाले कुछ युवा अब इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाने की राह भी पकड़ रहे हैं. लाइक, कमेंट, शेयर और सब्सक्राइब उनकी सफलता के नए पैमाने हैं. लेकिन दूर से आसान दिखने वाला यह सफर, असल में कई कठिनाइयों और परेशानियों से भरा है. खासतौर पर ट्रोलर्स के ताने और नेगेटिव कमेंट्स युवाओं को परेशान कर सकते हैं. कैसे करें इन परेशानियों का सामना, इस आर्टिकल में जानते हैं.

जिंदगी का हिस्सा है, लेकिन जिंदगी नहीं

सोशल मीडिया अब सिर्फ युवाओं ही नहीं हर किसी की जिंदगी का हिस्सा बन गया है.  अब युवा इसे अपने करियर के रूप में अपनाने के लिए बड़ी संख्या में आगे आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर रातों रात राजा से रंक बनने और एक वीडियो वायरल होने से सेलिब्रिटी बनने की अनगिनत कहानियां युवाओं को और भी ज्यादा अपनी ओर खींच रही हैं. हालांकि सफलता की इन कहानियों को बुनने और बुलंदी की ऊंचाइयों तक पहुंचने से पहले कई युवाओं को ट्रोलिंग का शिकार भी होना पड़ता है. सपनों का महल खड़ा करने वालों पर ये किसी बड़े प्रहार सा होता है और कई बार इसके कारण युवा डिप्रेशन और एंग्जायटी का शिकार हो जाते हैं. लेकिन युवाओं को ये समझना होगा कि कोई भी सफर आसान नहीं होता. सोशल मीडिया आपकी जिंदगी का हिस्सा हो सकती है, लेकिन जिंदगी नहीं.

क्या कहते हैं आंकड़े

आंकड़े बताते हैं कि लगभग 22 से 25% ऐसे लोग हैं जो सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर बनने के चक्कर में उन प्रोडक्ट्स को खरीद लेते हैं जिनकी जरूरत भी नहीं है. और वह प्रोडक्ट खराब भी निकालते हैं.

अच्छाई-बुराई दोनों है इसका हिस्सा

अगर आप सोशल मीडिया पर एक इन्फ्लुएंसर के रूप में करियर बनाने की सोच रहे हैं तो यह बात आपको गांठ बांध लेनी चाहिए कि कुछ लोग आपकी तारीफ करेंगे तो कुछ बुराई भी करेंगे. ये दोनों ही आपके काम का हिस्सा है. सोशल मीडिया एक सार्वजनिक मंच है और यहां कोई भी अपनी राय रख सकता है. कोशिश करें कि आप इससे प्रभावित न हों. आप अच्छाइयों को अपनाएं और कमियों को दूर करते हुए आगे बढ़ें. इससे आपका काम बेहतर बनेगा.

सिक्के के दूसरे पहलू को देखें

अधिकांश युवा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की सक्सेस स्टोरी, शॉपिंग, लाइफस्टाइल, बैंक बैलेंस, ट्रैवलिंग देखकर इंप्रेस होते हैं. और वैसी ही जिंदगी जीने की चाहत में सोशल मीडिया की राह पकड़ते हैं. लेकिन आप सिक्के का दूसरा पहलू भी देखें. इस सफलता के पीछे इन इन्फ्लुएंसर्स की सालों की मेहनत, संघर्ष और सीख है. लगातार कोशिश करने से आपको भी जरूर सफलता मिलेगी.

दूसरे विकल्प हमेशा खुले रखें

माना कि आप सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के रूप में अपना करियर बनाना चाहते हैं, लेकिन यह कोशिश सफल ही हो, इसकी कोई गारंटी नहीं हो सकती. इसलिए आप अपनी शिक्षा और नॉलेज पर पूरा ध्यान दें. इन दोनों के दम पर आप किसी भी क्षेत्र में सफलता पा सकते हैं. हमेशा कुछ नया सीखने पर फोकस करें.

Online एल्गोरिदम पर्सनल लाइफ को कर रहा हैक

यदि आप से कहें कि औनलाइन जो भी आप फीड कर रहे हैं वह आप अपनी इच्छा से कहीं अधिक एआई तकनीक के एल्गोगोरिदम मैथड से कर रहे हैं तो आप क्या हैरान होंगे? डिजिटल की पकड़ लोगों की जिंदगी में बुरी तरह पैठ जमा चुकी है, यह पर्सनल लाइफ को हैक करने जैसा है.

डिजिटल वर्ल्ड यूथ की रूटीन लाइफ का हिस्सा बन चुका है. आप सुबह सब से पहले अंधली नींद में अपना फोन चैक करते हैं. इन्फौर्मेशन के लिए न्यूजपेपर की जगह कच्ची जानकारी वाले व्हाट्सऐप देखते व फौरवर्ड करते हैं, अपने ईमेल और सोशल मीडिया फीड के माध्यम से बिना सोचेसमझे स्क्रौल करना शुरू कर देते हैं.

देखते ही देखते आप क्लिक और टैप के ऐसे भंवर में फंस जाते हैं जिस से कीमती टाइम और मैंटल एनर्जी बरबाद होने लगती है. जिन इन्फौर्मेशंस को आप पढ़ रहे होते हैं वे सही हैं या नहीं, यह जाने बगैर आप का फोन आप की उंगलियों को अपने इशारों पर नचा रहा होता है और आप ऐप और प्लेटफौर्म के ऐसे जाल में फंसते चले जाते हैं जो आप को सिर्फ एक कंज्यूमर समझता है, जिसे वह किसी भी हाल में अपना प्रोडक्ट बेचना चाहता है.

यही खासीयत है डिजिटल वर्ल्ड की कि जिन ऐप्स और प्लेटफौर्म्स का हम हर दिन उपयोग करते हैं, जितना अधिक वे हमारा ध्यान खींचते हैं, वे कंज्यूमर और प्रोडक्ट के इस खेल में उतने ही अधिक सफल होते जाते हैं. लेकिन यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि वे इसे आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के एल्गोरिदम मैथड को यूज कर के सफल होते हैं.

क्या है एल्गोरिदम मैथड

कंप्यूटर साइंस के अनुसार, एल्गोरिदम एक प्रकार का प्रोग्रामिंग प्रोसैस है, जिस की टैक्नोलौजी के आधार पर औनलाइन कंज्यूमर को एनालिसिस किया जाता है और उस की हर गतिविधि का सटीक अनुमान लगाया जाता है. यह तकनीक लगभग हर औनलाइन प्लेटफौर्म यूज करता है.

इस का इंपैक्ट समझिए कि, मानिए पटना के कचौड़ी गली के मकान नंबर 13 में बैठा अशोक जब औनलाइन शौपिंग साइट ‘अजियो’ पर अपने लिए वाइट कलर का 7 नंबर साइज वाला लेसअप स्नीकर शूज देखता है और थोड़ा भी समय बिताता है तो उस के बाद, वह चाहे दूसरे किसी भी प्लेटफौर्म या साइट पर विजिट करने लग जाए उसे उसी रंग, साइज, स्टाइल वाला स्नीकर फ्लैश होता दिखाई देगा.

यह आप ने भी देखा होगा कि यदि आप किसी प्रोडक्ट को किसी साइट पर देख रहे होते हैं तो उस प्रोडक्ट के रिकमंडेशन आप को लगातार आते दिखाई देते हैं. यह आप की स्क्रीन पर लगातार फ्लैश होता है, दरअसल, यही काम इंटरनैट एल्गोरिदम करता है.

यह एल्गोरिदम आप के द्वारा कंज्यूम किए जा रहे हर कंटैंट को (औडियो, वीडियो, आर्टिकल या कोई प्रोडक्ट आदि) जिसे सुना, देखा, पढ़ा या खोला और आप ने कोई रिऐक्शन दिया हो, के कीवर्ड्स, टैग, टौपिक को कैच करता है. उस के आधार पर आप की पर्सनल चौइस को समझ कर आप को लगातार फीड करता है.

आप फेसबुक के उदाहरण से समझिए. फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजने के लिए आप को जो सजेशंस अपने पेज पर दिखाई देते हैं उन का जुड़ाव कहीं न कहीं आप के बनाए बाकी फ्रैंड्स से डायरैक्टइनडायरैक्ट होता है. यह काम भी एल्गोरिदम करता है. वह आप के फ्रैंड सर्कल की पहचान
करता है, आप की पसंद को आंकता है. वह यह भी देखता है कि आप किस भाषा में, किस इलाके से, किस जैंडर के दोस्तों में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं. यह काम इंस्टाग्राम और ट्विटर भी करते हैं.
लेकिन फेसबुक एल्गोरिदम इस से एक कदम आगे बढ़ चुका है. मानिए, मेरठ के गंगानगर इलाके में बैठा मुन्ना बजरंगी, जिस ने अपने कवर पेज पर राम की गुस्सैल तसवीर लगा रखी है और तसवीर में राम धनुष चलाने की मुद्रा में हैं व पीछे भगवा आसमान और बिजली कड़कड़ा रही है. इस के साथ ही उस ने अपने बायो में ‘हिंदू’ लिखा है और अपने फेसबुक पेज को स्क्रौल करते हुए उन पोस्टों को लाइक करता है जिन में धर्म विशेष की बातें लिखी हैं.

ऐसे में एल्गोरिदम उस के इंटरैस्ट एरिया को देखेगा. उस के कीवर्ड, कमैंट, उस की पसंद का विश्लेषण करता है और उसे उन्हीं ग्रुप्स से जुड़ने के रिकमैंड भेजेगा जिस में धर्म विशेष की बातें लिखी हों, खासकर ऐसी बातें जिन में वो इंटरैस्ट रखता है. ऐसा ही कुछ इंस्टाग्राम में होता है. इंस्टाग्राम अपने रील्स कंटैंट के लिए जाना जाता है. आप देखेंगे कि आप के सर्कल में जो भी फ्रैंड है वह एक ही थीम वाले रील्स शेयर करता है. ऐसा इसलिए कि उस ने किसी के प्रोफाइल, कंटैंट क्रिएटर या कंपनी की प्रोफाइल विजिट की और अब उसे वही दिखाई दे रहा है.

हैक होती पर्सनल लाइफ

एल्गोरिदम बहुत पावरफुल टूल है. यह टूल डिजिटल कंज्यूमर की पर्सनल लाइफ को हैक कर रहा है. उन्हें इन्फ्लुएंस कर रहा है. उन की पसंद और नापसंद को स्टिक कर रहा है. यानी एक तरह से कंज्यूमर अपनी पसंद की सामग्री नहीं देख रहा, बल्कि उसे वही सामग्री दिखाई जा रही है जो उस के इंटरैस्ट में एल्गोरिदम समझ रहा है.

एल्गोरिदम एक तरह से ऐसी इमेजिनरी दुनिया में ले कर जाता है जहां लगता है सबकुछ एक ही जैसा चल रहा है. जैसे, मानिए कोई लड़की अपने लिए शौपिंग साइट ‘मिंत्रा’ पर नए ट्रैंड की कोई कुरती ढूंढ़ रही है. इस के लिए वह ‘अमेजन’ और ‘मीशो’ की शौपिंग साइट पर भी हो आती है. उस के पास पैसे नहीं हैं तो वह इस प्लान को ड्रौप कर देती है. अब जबजब वह औनलाइन आएगी तबतब उसे उस से मिलतीजुलती कुरतियां स्क्रीन पर फ्लैश होंगी.

इस से कुरती को ले कर उस की पसंद और मजबूत होगी. उसे मजबूर होना पड़ेगा कि वह कुछ न कुछ तो ले ही, चाहे अपने फ्रैंड से उधार मांगे. दूसरा, वह एक्सप्लोर भी नहीं कर पाई, हो सकता है, जिस रेट पर वह कुरती देख रही थी उस से कहीं बढि़या और रीजनेबल रेट पर दूसरी कोई जरूरी चीज उसे दिख जाती. लेकिन एल्गोरिदम ने उस की पसंद को जकड़ लिया.

अकसर जब हम बात करते हैं डिजिटल एक्सप्लोरेशन की तो यह मान बैठते हैं कि यह व्यापक जानकारियां मुहैया करवा रहा है, एक तरह का जौइंट सोर्स औफ इन्फौर्मेशन है. लेकिन क्या यह सच में इन्फौर्मेशन दे रहा है या हमें डिसइन्फौर्म कर रहा है?

इस की पड़ताल करना मुश्किल नहीं. हम युवा इन्फौर्मेशन के लिए अब सोशल मीडिया पर निर्भर हो गए हैं. सोशल मीडिया में चाहे मीम के माध्यम से हो, न्यूज के लिंक के माध्यम से या रील्स के माध्यम से, इसे ही सौर्स औफ इन्फौर्मेशन मान बैठे हैं. समस्या यह कि यह एक लिमिटेड फील्ड प्रोवाइड कराता है. यानी सोशल मीडिया एल्गोरिदम यहां सब से बड़ी समस्या पैदा करता है कि वह एक तरह की इन्फोर्मेशन
अपने कंज्यूमर तक पहुंचाता है.

जैसे जाति या धर्म के नाम पर हो रहे किसी इलाके में भेदभाव या दंगे के बाद अगर इसी तरह के ग्रुप या पेज से जुड़ जाएं तो आने वाली सारी इन्फोर्मेशन इसी तरह की होने लगती हैं. अब इन ग्रुप्स से आने वाली इन्फौर्मेशन से ऐसे लगता है जैसे पूरे देश में इसी तरह की ऐक्टिविटीज चल रही हैं, जो पूरी तरह सही नहीं होता.

ऐसे ही, सोशल मीडिया पर फिल्म को प्रमोट किया जाता है. जैसे, ‘एनिमल’, ‘गदर’, ‘पठान’ या ‘जवान’ फिल्म जिस समय रिलीज हुईं, उन के फैन पेज बनने लग गए. इन फैन पेज के अगर किसी पोस्ट पर आप लाइक करते हैं तो यह उसी तरह के और कंटैंट भेजने लगता है, इस से दिमाग पूरी तरह एक चीज में कंसन्ट्रेटेड हो जाता है. यानी आप में जबरदस्ती इंटरैस्ट पैदा किया जाता है.

अब यह अच्छा है या बुरा, टैक्निकली, यह एक तरह से आप की रसोई में रैसिपी की किताब जैसी है. एल्गोरिदम की क्वालिटी उस की इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस मिजाज के हैं और कैसा टेस्ट पसंद करते हैं. अगर ज्यादा तलाभुना पसंद करते हैं तो वह उसी तरह के इन्ग्रीडिएंट्स आप के सामने परोस देगा. अब उस से आप क्या बनाते हैं, यह आप पर निर्भर करता है और उस के परिणाम भी आप ही
भुगतेंगे.

इसे कैसे फिक्स किया जाए

डिजिटल प्लेटफौर्म आप को कंट्रोल करे, इस से बढि़या है कि आप खुद उस के प्रभाव को कम करें. इस के तरीके भी हैं, जैसे फेसबुक टाइमलाइन से सौर्टिंग एल्गोरिदम को हटाने की परमिशन देता है.
फेसबुक पर, ‘न्यूज फीड’ के आगे 3 डौट्स पर क्लिक करें, फिर ‘रीसैंट’ पर क्लिक करें. ऐप पर, आप को ‘सैटिंग्स’ पर क्लिक करना होगा, फिर ‘शो मोर’ फिर ‘रीसेंट’ पर कर के इस के प्रभाव को कम किया जा सकता है.

ऐसे ही यूट्यूब पर भी इसे ठीक किया जा सकता है. इस में औटोप्ले को बंद कर के कम से कम आप यूट्यूब एल्गोरिदम को कुछ हद तक कंट्रोल कर सकते हैं. ऐसे ही इंस्टाग्राम ने फरवरी में कुछ अपडेट किया है.

इंस्टाग्राम आप को यह औप्शन दे रहा है कि आप अनजाने में किसे अनदेखा कर रहे हैं. यानी इस से यह थोड़ाबहुत जानने को मिल सकता है कि किस तरह के कंटैंट को आप ज्यादा देख रहे हैं. इस के लिए अपनी प्रोफाइल पर जा कर ‘फौलोइंग’ में क्लिक करेंगे.

वहीं नीचे सौर्टेड बाय का औप्शन दिया होता है. इस में ‘सब से कम इंटरैक्टेड’ और ‘फीड में सब से अधिक इंटरैक्टेड’ के औप्शन होते हैं. लेकिन ये तरीके इस बात की गारंटी नहीं कि इस के बाद एल्गोरिदम आप का पीछा छोड़ दे बल्कि एल्गोरिदम एक तरह की ऐसी तकनीक है, जो डिजाइन ही की गई है ताकि कंज्यूमर की पर्सनल डिटेल को हैक कर अपने प्रोडक्ट बेच सके. इस से आप बस, खुद को रीफ्रैश या रीशफल कर सकते हैं लेकिन एल्गोरिदम से पीछा नहीं छुड़ा सकते.

युवाओं का अड्डा इंस्टाग्राम बना मुसीबतों का गड्ढा

सोशल मीडिया का नाम सुनते ही आजकल सब के दिमाग में बस एक ही नाम आता है इंस्टाग्राम. इंस्टाग्राम युवाओं के बीच सब से ज्यादा यूज किया जाने वाला सोशल प्लेटफौर्म बन गया है. इसे अब तक प्लेस्टोर पर एक बिलियन से ज्यादा लोग इंस्टौल कर चुके हैं. इंस्टाग्राम को 6 अक्तूबर, 2010 में लौंच किया गया था. इसे शुरू करने वाले केविन सिस्ट्रौम और माइक क्रेगर थे. इंस्टाग्राम एक अमेरिकन कंपनी है.

इंस्टाग्राम में युवा अपनी छोटी वीडियोज, जिन्हें रील्स कहा जाता है और अपनी पिक्चर शेयर करते हैं. एक तरह से यह युवाओं का ऐसा अड्डा बन चुका है जहां युवा अपनी रिप्रेजैंटेशनल एक्सप्रैशन को जाहिर करता है. बस, सवाल बनता है कि क्या वह इस तरह के प्लेटफौर्म्स को सही से यूज कर पा रहा है?

बात करें अगर इंस्टाग्राम के फौलोअर्स की तो इंस्टाग्राम पर सब से ज्यादा फौलोअर्स खुद इंस्टाग्राम के ही हैं. इस के बाद फुटबौल प्लेयर क्रिस्टियानो रोनाल्डो जिन के 603 मिलियन से भी ज्यादा फौलोअर्स हैं. वहीं भारत में इंस्टाग्राम पर सब से ज्यादा फौलोअर्स क्रिकेटर विराट कोहली के हैं. विराट कोहली के बारे में हाल ही में खबर आई थी कि वे एक स्पौंसर्ड इंस्टाग्राम पोस्ट के लगभग 11 करोड़ रुपए चार्ज करते हैं, जिसे बाद में उन्होंने खुद नकार दिया था. कोहली के इंस्टाग्राम पर 257 मिलियन से भी ज्यादा फौलोअर्स हैं. वहीं, कोहली के बाद भारत में दूसरे नंबर पर बौलीवुड से हौलीवुड तक लंबी छलांग लगाने वाली प्रियंका चोपड़ा हैं. वे ग्लोबल आइकन हैं. उन के लगभग 89 मिलियन फौलोअर्स हैं.

अब फेसबुक को पीछे छोड़ कर इंस्टाग्राम नंबर वन पर आ गया है. इस की बढ़ती पौपुलैरिटी को देखते हुए फेसबुक ने साल 2012 में इसे खरीद लिया. अब फेसबुक और इंस्टाग्राम दोनों आपस में लिंक्ड हैं. ये मेटा के पार्ट हैं, जिसे मार्क जुकरबर्ग चलाते हैं. अब इंस्टाग्राम पर जो फोटो या रील पोस्ट की जाती है सिर्फ एक सैंटिग से वह फेसबुक पर भी अपलोड हो जाती है. है न कमाल की बात. ऐसे ही यह युवाओं की पहली पसंद नहीं बना है.

इंस्टाग्राम एक ऐसा प्लेटफौर्म है जहां पर यूजर्स न सिर्फ अपनी फोटो, वीडियो अपलोड करते हैं बल्कि नए दोस्त भी बनाते हैं और अपने टैलेंट को दिखाने के लिए उन्हें किसी रिऐलिटी शो के आगे हाथ नहीं गिड़गिड़ाने होते. यही वजह है कि युवाओं ने इसे अपना अड्डा बना लिया है. इस में बहुत से युवा अपनी टैलेंट वीडियो अपलोड कर के दुनिया में नाम कमा रहे हैं.

कई लोग गाना, डांस, मेकअप, स्टाइलिंग, कुकिंग, ट्रैवलिंग, स्टडी टिप्स और न्यूज जैसी रील्स बना कर इंस्टाग्राम पर अपलोड कर रहे हैं. इन्हें देखने और फौलो करने वालों की संख्या भी हजारोंलाखों में है. यही फौलोअर्स उन की कमाई का जरिया भी हैं.

समय बरबाद करते युवा

वहीं, कुछ लोग इस पर दिनरात अपना समय भी बरबाद कर रहे हैं, जिन का काम सिर्फ इंस्टाग्राम पर रील्स देखना है. इस तरह से वे सिर्फ समय की बरबादी कर रहे हैं. इन्हें यह सम?ाना चाहिए कि इंस्ट्राग्राम पर रील्स देखने से कैरियर नहीं बनेगा. कैरियर बनाने के लिए इन्हें पढ़ाई करनी होगी. इस के अलावा अपने टैलेंट पर काम करना होगा. ऐसे खलिहर लोग सिवा वक्त की बरबादी के, सोसाइटी में अपना कोई योगदान नहीं दे रहे.

कहते हैं, ‘अगर किसी चीज के फायदे हैं तो नुकसान भी हैं.’ ऐसे ही इंस्टाग्राम के फायदे के साथसाथ कुछ नुकसान भी हैं. असल में इंस्टाग्राम के यूजर्स आपस में अपनी लाइफ कंपेयर करने लगते हैं, जो कि गलत है. सब का घर, फैमिली और फाइनैंशियल स्टेटस अलगअलग होता है. लेकिन यूजर्स यह भूल जाते हैं.

अगर कोई अमीर यूजर यूएस, यूके की ट्रिप एंजौय कर रहा है और उस की वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर रहा है तो दूसरा यूजर जो फाइनैंशियली इतना स्ट्रौंग नहीं है, वह अपनेआप को उस से कंपेयर करने लगता है. जबकि दोनों का फाइनैंशियल स्टेटस बहुत अलग है. ऐसे में जब वह ट्रिप पर जा नहीं पाता तो वह डिप्रैस्ड हो जाता है.

इंस्टाग्राम हमारी मैंटल हैल्थ के लिए सही नहीं है. इस विषय में एक रिसर्च की गई. यूनाइटेड किंगडम की रौयल सोसाइटी फौर पब्लिक हैल्थ द्वारा प्रकाशित स्टेटस औफ मांइड रिसर्च में इंग्लैंड, स्कौटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड के 1,479 युवाओं के इनपुट लिए गए. इन की उम्र 14 से 24 साल थी. इस रिसर्च का मुद्दा यह जानना था कि अलगअलग सोशल मीडिया प्लेटफौर्मों ने उन की मैंटल और फिजिकल हैल्थ को कैसे इफैक्ट किया है.

रिसर्च में इंस्टाग्राम को मैंटल हैल्थ के लिए सब से खराब सोशल मीडिया नैटवर्क कहा गया. यह हाईलैवल की टैंशन, डिप्रैशन, बदमाशी, फोमो की भावना जागने वाला प्लेटफौर्म माना गया.

इंस्टाग्राम कितना घातक साबित हो सकता है, यह तो आप जान ही गए हैं, इसलिए आप में कोई टैलेंट है तो वह आप जरूर इंस्टाग्राम पर खुद को दिखाएं, लेकिन इस के भीतर इतना न घुस जाएं कि आप को समस्या होने लगे.

सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर के चंगुल में इंडियन पौलिटिक्स

सबकुछ सोशल मीडिया हो चला है, राजनीति के धुरंधर नेता भी रील और शौर्ट वीडियोज बना रहे हैं. नेताओं की चलते हुए स्लो मोशन क्लिप वायरल हो रही हैं. हों भी क्यों न, रील वीडियोज में स्लो मोशन का गजब का खेल जो है. नेतामहानेता होने जैसा फील ले पा रहा है, जैसे ‘जवान’ फिल्म का शाहरुख खान 7 बार जनता का मसीहा बनने के लिए परदे पर स्लो मोशन एंट्री लेता है.

नेता समझ गए हैं, उन के लंबे उबाऊ भाषण युवा नहीं सुनना चाहते. अब तो महामानवों के भाषण भी झूठे, नीरस और बोझिल लग रहे हैं. सोसाइटी, इकौनोमी के लिए क्या अच्छा है, किस पार्टी के क्या मुद्दे हैं, युवा इस में इंट्रैस्टेड नहीं हैं. उन्हें20-25 सैकेंड का मजा चाहिए. वह तो नेताओं की वीडियो भी शोर्ट क्लिप में देख रहे हैं, उसी से अपनी समझ बना रहे हैं. वे 20-25 सैकंड लायक ही बच गए हैं, अपनी पर्सनल लाइफ में इस से आगे का वे न तो सोच पा रहे हैं न किसी चीज का मजा ले पा रहे हैं.

राजनीति में चुनाव के समय जनता ही सर्वोपरि है, लेकिन जनता तो रील्स में डूबी है. सुबह उठने के साथ रील, संडास जाते रील, दातून करते रील, खाना बनाते रील्स, खाना खाते रील, रील बनाते रील्स, काम करते रील, यहां तक कि सोने से पहले रील ही रील. अगर तर्जनी उंगली और अंगूठे की जांच की जाए तो हाथों की आधी रेखाएं मिटी दिखेंगी. अब जाहिर है युवा रील पर हैं तो नेता क्यों न हों? जहां जनता वहां नेता.

अब यही देख लो, राहुल गांधी शौर्ट वीडियो और स्लो मोशन क्लिप्स से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे तो जमीनी नेता कहे जाने वाले यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करने की अपील करने लगे और फिर हरियाणा के इंफ्लुएंसर अंकित बेथनपुरिया के साथ स्वच्छता दिवस के मौके पर कौलेब करते दिखाई दिए.

तालमेल वाले इंफ्लुएंसर

राजनीति में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की मांग बढ़ने लगी है. कुछ दिन पहले गुरुग्राम में बिग बौस विनर रहे और खुद को कट्टर हिंदू बताने वाले एलविश यादव को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने खुद आ कर स्टेज पर बधाई दी, स्पैशल प्रोग्राम रखा गया और उन्हें युवाओं का आइकन बताया गया.

इस से किसी और को रश्क हुआ हो या न हुआ हो, हरियाणा के उन मैडलधारी रेसलर्स को जरूर हुआ होगा जो महीनों जंतरमंतर पर धरना देते बैठे रहे. वे यही सोच रहे होंगे कि देश के लिए मैडल जीतने से अच्छा शौर्ट रील बना ली होती, लटके?ाटके दिखा दिए होते तो कोई उन की सुनने वाला भी होता.

जिस एल्विश यादव, फायर ब्रैंड हिंदू इंफ्लूएंसर को भाजपा व उस के नेता सरआंखों पर बैठा कर रखते हैं, उस पर रेव पार्टी करने व उन पार्टियों में विदेशी लड़कियों के साथ सांपों की तस्करी करने का आरोप लगा है. यूपी पुलिस ने उस के 6 साथियों को गिरफ्तार किया है.

सोचने वाली बात है कि यह ऐसा अपराध है, जिस में यदि कोई अपराधी साबित होता है तो 7 साल की सजा व भारी जुर्माना तय है.

ऐसे सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर का नाम कभी भोगी तो कभी खट्टर जपते रहते हैं और राजनीतिक राह देते हैं.

आजकल राजनीतिक पार्टियां पेड प्रमोशनल वीडियो बनवा रही हैं. उन के पीआर यूट्यूब इन्फ्लुएंसर को पकड़ रहे हैं. दोनों कोलेबोरेशन कर रहे हैं, पोडकास्ट हो रहे हैं, घंटेडेढ़घंटे इंटरव्यू हो रहे हैं. लंबी इंटरव्यू वीडियोज में आधे से ज्यादा इज्जत खातिरदारी वाले सवाल किए जा रहे हैं, इमेज बिल्ंिडग की जा रही है, हां,20-30 सैकंड का तड़कताभड़कता सवाल बीच में किया जा रहा है, जिसे शौर्ट बना कर सोशल मीडिया पर ठेला जा रहा है.

बीर बायसैप्स के नाम से मशहूर इंफ्लुएंसर रनवीर अलाहबादिया और राज शमामी ऐसे पौलिटिकल इंटरव्यू करते नजर आ रहे हैं, जहां वाहवाही के अलावा और कुछ नहीं है.

युवाओं को साधने की कोशिश

चीजें बदल गई हैं. बौलीवुड सितारों से ले कर राजनीतिक सितारों तक, सभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं. किसी को अपनी पिक्चर हिट करानी है तो किसी को अपना शो. किसी को अपना राजनीतिक कैरियर बनाना है तो किसी को बचाना है.

एक समय पार्टी और नेता यही काम बौलीवुड के सितारों से लेते रहे. अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, गोविंदा, हेमा मालिनी, राज बब्बर, सनी देओल, परेश रावल ये सब राजनीति में हैं या आए गए. फेहरिस्त लंबी है. रीजनल कलाकारों को भी इस्तेमाल किया जाता रहा, रवि किशन, मनोज तिवारी, निरहुआ, संजय यादव जैसे तमाम नाम सामने हैं.

भले ये सितारे कभी अपने लोकसभाई क्षेत्र नहीं गए, अधिकतर समय अपने एक्ंिटग प्रोफैशन से जुड़े रहे, जिन मुद्दों से सरोकार नहीं रहा, पब्लिक ने भले ही इन के पोस्टर ‘फलां नेता गायब है’ इलाके में चिपका दिए हों, लेकिन चुनाव के समय बस मंच पर डांस कर कमर मटका दी तो जनता ने भी इन की गलतियों को दूधभात समझ माफ करने में भी देर नहीं लगाई.

लेकिन वह दिन अब दूर नहीं जब इन्फ्लुएंसर को लोकसभा और विधानसभा की सीटें पकड़ाई जाएंगी. विधायिका में वैसे भी 33 प्रतिशत वीमेन रिजर्वेशन पास करवा दिया गया है. बेशक कुछ ममता, मायावती जयललिता, शीला जैसी निकलेंगी पर अधिकतर मर्द नेताओं की बहु, पत्नियों, बेटियों, देवरानियां ही होंगी. इस के बाद बची सीटें इन्फ्लुएंसर उड़ा ले जाएं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. सोशल मीडिया पर वैसे भी रील बालाओं का जलवा है.

पार्टियों के लिए अच्छी बात कि यहां अलगअलग जातियों और धर्मों की रील बालाएं हैं. यहां मैडम भी हैं तो नौकरानी भी. दोनों ही अपनेअपने जोन में फेमस हैं. यानी सारा मसला सोर्टआउट है. राजनीतिक पार्टियों के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं होने वाली. करना क्या है, बस फौलोअर्स ही तो देखने हैं, अपनी पार्टी हित देखते कैंडिडेट चुनने हैं. जो जितना पौपुलर, जिस के लचक में जितना दम, उस के उतने चांस.

कारण भी है इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर बिग बौस विजेता के लिए वोट मांगे जा रहे हैं और इन वीडियोज को देख कर खलिहर लाखों युवा में वोट डाल रहे हैं, अपने कैंडिडेट को जिताने के लिए सड़कों के ट्रैफिक जाम कर रहे हैं, जैसे किसी बाहुबली नेता के लिए गुर्गे निकल पड़ते हैं, घर से पिता की जेब से चुराए पैसों से गाडि़यों में पैट्रोल भर कर सड़कों पर हुडदंग कर रहे हैं और टीवी पर आ कर पागलों की तरह चिल्ला रहे हैं तो ऐसे ही इंस्टाग्राम पर रील्स देख कर ये अपने कैंडिडेट भी चुन ही लेंगे. लगता है भारत का भविष्य इन्हीं के भरोसे हो चला है.

इधर कुआं उधर खाई

हर मोबाइल में कैमरा होना एक टैक्नोलौजी का कमाल है पर हर नई टैक्नोलौजी की तरह उस में भी खतरे भरे हैं. अब इस कैमरे का वाशरूमों में लड़कियों के कपड़े बदलने के दौरान वीडियो बनाने के लिए जम कर इस्तेमाल किया जा रहा है जिसे बाद में ब्लैकमेल के लिए या यों ही मजा लेने के लिए वायरल कर दिया जाता है.

भारत की महान जनता भी ऐसी है कि इस तरह के सैक्सी वीडियो को देखने के लिए हर समय पागल बनी रहती है और इंस्टाग्राम, फेसबुक, ऐप्स, थ्रैड्स, यूट्यूब पर हरदम जुड़ी रहती है तो इसलिए कि इस तरह का कोई वीडियो डिलीट होने से पहले मिस न हो जाए.

दिल्ली के आईआईटी में स्टूडैंट्स के एक प्रोग्राम में फैशन शो के दौरान लड़कियों के ड्रैस बदलने व कौस्ट्यूम पहनने के समय वाशरूम की खिड़की से एक सफाई कर्मचारी शूटिंग करता पकड़ा गया. इस तरह के मामले तो आम हैं पर जिन लड़कियों के वीडियो वायरल हो जाते हैं उन की कितनी रातें हराम हो जाती हैं.

आजकल ऐडिटिंग टूल्स भी इतने आ गए हैं कि इन लड़कियों की बैकग्राउंड बदल कर इन्हें देहधंधे में लगी तक दिखाया जा सकता है, वह भी न के बराबर पैसे में.

अच्छा तो यही है कि मोबाइल का इस्तेमाल बात करने या मैसेज देने के काम आए और उसे कैमरों से अलग किया जाए. कैमरा आमतौर पर दूसरों की प्राइवेसी का हनन करता है. पहले जो कैमरे होते थे दिख जाते थे और जिस का फोटो खींचा जा रहा होता था वह सतर्क हो जाता था और आपत्ति कर सकता था.

अब जराजरा सी बात पर मोबाइल निकाल कर फोटो खींचना या वीडियो बनाना अब बड़ा फैशन बन गया है और लोग रातदिन इसी में लगे रहते हैं. यह पागलपन एक वर्ग पर बुरी तरह सवार हो गया है और टैक्नोलौजी का इस्तेमाल हर तरह से घातक होने लगा है.

मोबाइल बनाने वाली कंपनियां लगातार कैमरों में सुधार कर रही हैं पर यह बंद होना चाहिए. कैमरे की डिजाइन अलग होनी चाहिए और केवल अलग रंगों में मिलनी चाहिए ताकि इस का गलत इस्तेमाल कम से कम हो. यह टैक्नोलौजी विरोधी कदम नहीं है, यह कार में सेफ्टी ब्रेक, एअर बैलून जैसा फीचर है.

हर मोबाइल एक प्राइवेसी हनन का रास्ता बन जाए उतना खतरनाक है जैसा सुरक्षा के नाम रिवाल्वरों को हरेक हाथों में पकड़ा देना जो अमेरिका में किया जा रहा है. वहां हर थोड़े दिनों में कोई सिरफिरा 10-20 को बेबात में गोलियों की बौछारों से भून डालता है पर चर्च समर्थक इसे भगवान की मरजी और अमेरिकी संविधान के हक का नाम देते हैं. जब अमेरिका का संविधान बना था तब हर जगह पुलिस व्यवस्था नहीं थी और लोगों को गुंडों, डाकुओं और खुद सरकार की अति से बचना होता था.

मोबाइल कैमरे किसी भी तरह काम के नहीं हैं. वैसे ही सरकारों ने देशों को सर्विलैंस कैमरों से पाट रखा है. इस पर मोबाइल कैमरे बंद होने चाहिए. कैमरे बिकें, एक अलग डिवाइस की तरह. ऐसा करने से कम लोग कैमरे लेंगे और जो लेंगे उन में अधिकांश जिम्मेदार होंगे. वे अमेरिका के गन कल्चर की तरह काम करें, यह संभव है पर फिर भी उम्मीद की जाए कि निर्दोष मासूम लड़कियां अपने बदन की प्राइवेसी को बचा कर रख सकेंगी. वैसे यह मांग मानी जाएगी, इस में शक है क्योंकि जनता को अफीम की तरह मोबाइल कैमरों की लत पड़ चुकी है और ड्रग माफिया की तरह मोबाइल कंपनियां अरबों रुपए लगा कर ऐसे किसी बैन को रोकने में सक्षम हैं.

कहीं आप भी तो नहीं फोमो का शिकार

फोमो यानी फियर औफ मिसिंग आउट. फोमो का आशय किसी चीज से वंचित रहने पर अफसोस होना है यानी दुनिया की दौड़ से पीछे छूट जाने की भावना. कभी आप को ऐसा महसूस होता है कि आप की जिंदगी में कोई मजा नहीं है बस गुजर रही है जैसे आप को लगता हो कि आप के दोस्त और रिश्तेदार मजेदार चीजें कर रहे हैं पर आप वैसा नहीं कर पा रहे हैं.

आप बारबार अपने करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों के सोशल मीडिया अकाउंट को चैक करते रहते हैं ताकि उन के बारे में कुछ न कुछ पता लगता रहे और कुछ पता न लगने पर निराशा महसूस करते हैं या फिर आप बस सोशल मीडिया पर कुछ भी अपलोड करना चाहते है और लाइक्स और कमैंट्स पाने के लिए बेताब रहते हैं. यदि इन में से कोई भी लक्षण आप में है तो आप फोमो का शिकार है यानि आप को पीछे छूट जाने का डर सता रहा है.

कब महसूस होगा

क्या कभी आप के साथ ऐसा हुआ है कि आज आप का अपने दोस्तों संग पार्टी पर जाने का प्रोग्राम है और आप औफिस से समय पर घर आए भी, मगर किसी जरूरी काम की वजह से या किसी और पारिवारिक काम की वजह से पार्टी में नहीं जा पाए. ऐसे में क्या आप ने अपने काम को निबटाते हुए मन में एक अजीब सी बेचैनी महसूस की है और इस बेचैनी को दूर करने के लिए क्या आप बारबार अपना सोशल मीडिया अकाउंट स्क्राल कर उस पार्टी या ट्रिप के पोस्ट चैक करते हैं.

आप के दोस्त क्या खा रहे हैं और कैसे ऐंजौय कर रहे हैं, आप ने क्या मिस कर दिया, क्या अपने हालात की उन के ऐंजौयमैंट के साथ तुलना करते हैं? यदि हां तो आप सम?ा लीजिए कि आप फोमो का शिकार हो गए हैं.

आइए, इन कुछ उदाहरणों में से किसी भी स्थिति में यदि खुद को पाते हैं तो आप फोमो के शिकार हैं:

स्मार्ट फोन फोमो यानी दिनरात स्मार्टफोन से चिपके रहना. कुछ लोग पूरा समय अपने स्मार्ट फोन से चिपके रहते हैं. आवश्यकता न होने पर भी हर 10-15 मिनट में अपने मोबाइल को चैक करने लग जाते हैं ताकि वे हर समय अपडेट रहें और उन को अपने से  ज्यादा फिक्र स्मार्ट फोन की होती है कि कहीं मेरा फोन बंद न हो जाए या फिर सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ अपडेट करते रहना.

स्मार्ट फोन फोमो शिकार लोग इस के बिना एक पल भी नहीं रह सकते हैं. वे अपने फोन में ऐसी दुनिया बसा चुके होते हैं जो बाहरी दुनिया से बिलकुल अलग है और वे बारबार अपने दोस्तों, परिचितों एवं रिश्तेदारों के स्टेटस और उन के द्वारा की गई कोई भी ऐक्टिविटी को  देखने में ज्यादा रुचि रखते हैं.

इस समस्या का हल

कुछ समय मोबाइल से दूरी बनाएं. इस के लिए 24 घंटे के बाद या जब सभी कामों से फ्री हों, आराम कर रहे हों या किसी के औफिस के प्रतीक्षाकक्ष में बैठे हों तब भी ये सब कर सकते हैं अथवा दिनभर में एक निश्चित समय पर कुछ देर के लिए यह काम कर सकते हैं जिसे आप व्यू टाइम कह सकते हैं.

फोमो शौपिंग

अमूनन सभी लोगो को नई वस्तु खरीदने का शौक होता है लेकिन यदि आप फोमो शौपिंग के शिकार हैं तो इन लोगों का शौक अलग तरीके का होता है. जैसे ऐसे लोगों के दिमाग मे हमेशा यही चलता रहता है कि बाजार में ऐसी कौन सी वस्तु नई आई है जो किसी के पास नहीं है और उन्हें डर सताता है कि अगर वह वस्तु उन्हें न मिली तो वे दूसरे लोगों से पीछे रह जाएंगे.

महंगी वस्तुओं पर पैसे खर्च करना और बिना मतलब की चीजें खरीदना ताकि वे दुनिया से पीछे न छूट जाएं. वे उस वस्तु को किसी भी कीमत पर प्राप्त करना चाहते हैं ताकि वे दुनिया के साथ अपडेट रह सकें और सभी को सोशल व मीडिया पर शेयर करते रहें अगर आप में भी ऐसी कोई आदत है तो आप फोमो शौपिंग के शिकार हैं.

सोशल मीडिया फोमो यानी किसी भी समय सोशल मीडिया चलाते रहना. बहुत से लोगों को सोशल मीडिया का इतना शौक होता है कि वे कहीं भी हों उन का एक हाथ मोबाइल और सोशल मीडिया चलाने में बिजी रहता है. इस की वजह से कई बार लोग काफी अकेला, ईष्यालु और दुखी महसूस करते हैं. उन का ध्यान अपनी मीटिंग या काम पर कम हो कर अपने सोशल मीडिया की बारबार जांच करने में ज्यादा होता है. ऐसे लोग उस पल में न रह कर सोशल मीडिया की दुनिया में क्या हो रहा है जानने में लग जाते हैं. उन का सुबह से ले कर रात सोने तक का पूरा समय सोशल मीडिया के लिए ही होता है.

सोशल मीडिया फोमो समस्या का हल

  •  अपनी जिंदगी में होने वाली सकारात्मक बातों की लिस्ट तैयार करें.
  • ख़ुद की तुलना दूसरों से करना बंद कर दें. किसी के सोशल मीडिया पर खुश या रोमांचक फोटो को पोस्ट करने से यह गारंटी नहीं मिलती कि वह वास्तव में खुश और पूर्ण है.
  • सोशल मीडिया आप को एक काल्पनिक दुनिया में ले जाता है, जहां आप इस के साथ अपने जीवन की तुलना करना शुरू करते हैं. इस भावना से छुटकारा पाने के लिए सोशल मीडिया पर कम समय बिताएं.
  • अपने व्यस्त जीवन से थोड़ा विराम लें. अपना समय आसपास के माहौल में जैसे प्रकृति, दोस्तों, परिवार के बीच बिताएं.
  • प्रकृति के करीब होने से आप का दिमाग शांत होता है और आप की चिंता को शांत करने में मदद मिलती है.
  • आप अपने घर की बालकनी और पेड़पौधों की देखभाल में भी वक्त बिता सकते हैं.

नोटिफिकेशन फोमो

स्मार्ट फोन पर रातदिन हर पल आते नोटिफिकेशन जहां हमें अपडेट रखते हैं वहीं साथ ही हमारे ध्यान को भटकाने का भी काम करते हैं और हमारी एकाग्रता को भंग करते हैं. साथ ही किसी भी काम के ऊपर कंसन्ट्रेशन होने ही नहीं देते हैं. ये अनावश्यक पुश अलर्ट परेशान कर देते हैं और हमें नोटिफिकेशन फोमो का शिकार बनाते हैं.

इस तरह के फोमो के शिकार लोगों को यह डर लगा रहता है कि कोई नोटिफिकेशन अलर्ट देखने में देर न हो जाए और हम कमैंट, लाइक या रिप्लाई करने में पीछे न छूट जाएं.

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