अपनी कमाई सास के हाथ पर कब रखें, कब नहीं

भले ही सासबहू के रिश्ते को 36 का आंकड़ा कहा जाता है पर सच यह भी है कि एक खुशहाल परिवार का आधार कहीं न कहीं सासबहू के बीच अच्छे सामंजस्य और एकदूसरे को समझने की कला पर निर्भर करता है.

एक लड़की जब शादी कर के किसी घर की बहू बनती है तो उसे सब से पहले अपनी सास की हुक़ूमत का सामना करना पड़ता है. सास सालों से जिस घर को चला रही होती है उसे एकदम से बहू के हवाले नहीं कर पाती. वह चाहती है कि बहू उसे मान दे, उस के अनुसार चले.

ऐसे में बहू यदि कामकाजी हो तो उस के मन में यह सवाल उठ खड़ा होता है कि वह अपनी कमाई अपने पास रखे या सास के हाथों पर रख दे. वस्तुतः बात केवल सास के मान की नहीं होती बहू का मान भी मायने रखता है. इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले कुछ बातों का ख्याल जरूर रखना चाहिए.

बहू अपनी कमाई सास के हाथ पर कब रखे—

1. जब सास हो मजबूर

यदि सास अकेली हैं और ससुर जीवित नहीं तो ऐसे में एक बहू यदि अपनी कमाई सास को सौंपती है तो सास उस से अपनापन महसूस करने लगती है. पति के न होने की वजह से सास को ऐसे बहुत से खर्च रोकने पड़ते हैं जो जरूरी होने पर भी पैसे की तंगी की वजह से वह नहीं कर पातीं. बेटा भले ही अपने रुपए खर्च के लिए देता हो पर कुछ खर्चे ऐसे हो सकते हैं जिन के लिए बहू की कमाई की भी जरूरत पड़े. ऐसे में सास को कमाई दे कर बहू परिवार की शांति कायम रख सकती है.

2. सास या घर में किसी और के बीमार होने की स्थिति में

यदि सास की तबीयत खराब रहती है और डॉक्टरबाजी में बहुत रुपए लगते हैं तो यह बहू का कर्तव्य है कि वह अपनी कमाई सास के हाथों पर रख कर उन्हें इलाज की सुविधाएं उपलब्ध कराने में मदद करे.

3. अपनी पहली कमाई

एक लड़की जैसे अपनी पहली कमाई को मांबाप के हाथों पर रख कर खुश होती है वैसे ही यदि आप बहू हैं तो अपनी पहली कमाई सास के हाथों पर रख कर उन का आशीर्वाद लेने का मौका न चूकें.

4. यदि आप की सफलता की वजह सास हैं

यदि सास के प्रोत्साहन से आप ने पढ़ाई की या कोई हुनर सीख कर नौकरी हासिल की है यानी आप की सफलता की वजह कहीं न कहीं आप की सास का प्रोत्साहन और प्रयास है तो फिर अपनी कमाई उन्हें दे कर कृतज्ञता जरुर प्रकट करें. सास की भीगी आंखों में छुपे प्यार का एहसास कर आप नए जोश से अपने काम में जुट सकेंगी.

5. यदि सास जबरन पैसे मांग रही हो

पहले तो यह देखें कि ऐसी क्या बात है जो सास जबरन पैसे मांग रही है. अब तक घर का खर्च कैसे चलता था?

इस मामले में अच्छा होगा कि पहले अपने पति से बात करें. इस के बाद पतिपत्नी मिल कर इस विषय पर घर के दूसरे सदस्यों से विचारविमर्श करें. सास को समझाएं. उन के आगे खुल कर कहें कि आप कितने रुपए दे सकती हैं. चाहे तो घर के कुछ खास खर्चे जैसे राशन /बिल/ किराया आदि की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लें . इस से सास को भी संतुष्टि रहेगी और आप पर भी अधिक भार नहीं पड़ेगा.

6. यदि सास सारे खर्च एक जगह कर रही हो

कई परिवारों में घर का खर्च एक जगह किया जाता है. यदि आप के घर में भी जेठ, जेठानी, देवर, ननद आदि साथ में रह रहे हैं और सम्मिलित परिवार की तरह पूरा खर्च एक ही जगह हो रहा है तो स्वभाविक है कि घर के प्रत्येक कमाऊ सदस्य को अपनी हिस्सेदारी देनी होगी.

सवाल यह उठता है कि कितना दिया जाए? क्या पूरी कमाई दे दी जाए या एक हिस्सा दिया जाए? देखा जाए तो इस तरह की परिस्थिति में पूरी कमाई देना कतई उचित नहीं होगा. आप को अपने लिए भी कुछ रुपए रकम बचा कर रखना चाहिए. वैसे भी घर के प्रत्येक सदस्य की आय अलगअलग होगी. कोई 70 हजार कमा रहा होगा तो कोई 20 हजार, किसी की नईनई नौकरी होगी तो किसी ने बिजनेस संभाला होगा. इसलिए हर सब सदस्य बराबर रकम नहीं दे सकता.

बेहतर होगा कि आप सब इनकम का एक निश्चित हिस्सा जैसे 50% सास के हाथों में रखें. इस से किसी भी सदस्य के मन में असंतुष्टि पैदा नहीं होगी और आप भी निश्चिंत रह सकेंगी.

7. यदि मकान सासससुर का है

जिस घर में आप रह रही हैं यदि वह सासससुर का है और सास बेटेबहू से पैसे मांगती है तो आप को उन्हें पैसे देने चाहिए. कुछ और नहीं तो घर और बाकी सुखसुविधाओं के किराए के रूप में ही पैसे जरूर दें

8. यदि शादी में सास ने किया है काफी खर्च

अगर आप की शादी में सासससुर ने शानदार आयोजन रखा था और बहुत पैसे खर्च किए थे. लेनदेन, मेहमाननवाजी तथा उपहार वितरण आदि में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. बहू और उस के घरवालों को काफी जेवर भी दिए थे तो ऐसे में बहू का भी फर्ज बनता है कि वह अपनी कमाई सास के हाथों में रख कर उन्हें अपनेपन का अहसास दिलाए.

9. ननद की शादी के लिए

यदि घर में जवान ननद है और उस की शादी के लिए रुपए जमा किए जा रहे हैं तो बेटेबहू का दायित्व है कि वे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दे कर अपने मातापिता को सहयोग करें.

10. जब पति शराबी हो*

कई बार पति शराबी या निकम्मा होता है और पत्नी के रुपयों पर अय्याशी करने का मौका ढूंढता है. वह पत्नी से रुपए छीन कर शराब में या गलत संगत में खर्च कर सकता है. ऐसी स्थिति में अपने रुपयों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि आप ला कर उन्हें सास के हाथों पर रख दें.

कब अपनी कमाई सास के हाथों में न रखें

1. जब आपकी इच्छा न हो

अपनी इच्छा के विरुद्ध बहू अपनी कमाई सास के हाथों में रखेगी तो घर में अशांति पैदा होगी. बहू का दिमाग भी बौखलाया रहेगा और उधर सास बहू के व्यवहार को नोटिस कर दुखी रहेगी. ऐसी स्थिति में बेहतर है कि सास को रुपए न दिए जाएं.

2. जब ससुर जिंदा हो और घर में पैसों की कमी न हो

यदि ससुर जिंदा हैं और कमा रहे हैं या फिर सास और ससुर को पेंशन मिल रही है तो भी आप को अपनी कमाई अपने पास रखने का पूरा हक है. परिवार में देवर, जेठ आदि हैं और वे कमा रहे हैं तो भी आप को कमाई देने की जरूरत नहीं है.

3. जब सास टेंशन करती हो

यदि आप अपनी पूरी कमाई सास के हाथों में दे रही हैं इस के बावजूद सास आप को बुराभला कहने से नहीं चूकती और दफ्तर के साथसाथ घर के भी सारे काम कराती हैं, आप कुछ खरीदना चाहें तो रुपए देने से आनाकानी करती हैं तो ऐसी स्थिति में सास के आगे अपने हक के लिए लड़ना लाजिमी है. ऐसी सास के हाथ में रुपए रख कर अपना सम्मान खोने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि अपनी मर्जी से खुद पर रुपए खर्च करने का आनंद लें और दिमाग को टेंशनफ्री रखें.

4. जब सास बहुत खर्चीली हो

यदि आप की सास बहुत खर्चीली हैं और आप जब भी अपनी कमाई ला कर सास के हाथों में रखती हैं तो वे उन रुपयों को दोचार दिनों के अंदर ही बेमतलब के खर्चों में उड़ा देती हैं या फिर सारे रुपए मेहमाननवाजी और अपनी बेटियों के परिवार और बहनों पर खर्च कर देती हैं तो आप को संभल जाना चाहिए. सास की खुशी के लिए अपनी मेहनत की कमाई यूं बर्बाद होने देने के बजाय उन्हें अपने पास रखिए और सही जगह निवेश कीजिए.

5. जब सास माता की चौकी कराए

जब सासससुर घर में तरहतरह के धार्मिक अनुष्ठान जैसे माता की चौकी वगैरह कराएं और पुजारियों की जेबें गर्म करते रहें या अंधविश्वास और पाखंडों के चक्कर में रूपए बर्बाद करते रहें तो एक पढ़ीलिखी बहू सास की ऐसी गतिविधियों का हिस्सा बनने या आर्थिक सहयोग करने से इंकार कर सकती है. ऐसा कर के वह सास को सही सोच रखने को प्रेरित कर सकती है.

बेहतर है कि उपहार दें

इस सन्दर्भ में सोशल वर्कर अनुजा कपूर कहती हैं कि जरूरी नहीं आप पूरी कमाई सास को दें. आप उपहार ला कर सास पर रुपए खर्च कर कर सकती हैं. इस से उन का मन भी खुश हो जाएगा और आप के पास भी कुछ रूपए बच जाएंगे. सास का बर्थडे है तो उन्हें तोहफे ला कर दें, उन्हें बाहर ले जाएं, खाना खिलाएं, शॉपिंग कराएं, वह जो भी खरीदना चाहें वे चीजें खरीद कर दें. त्यौहारों के नाम पर घर की साजसजावट और सब के कपड़ों पर रूपए खर्च कर दें.

पैसों के लेनदेन से घरों में तनाव पैदा होते हैं पर तोहफों से प्यार बढ़ता है, रिश्ते सँभलते हैं और सासबहू के बीच बॉन्डिंग मजबूत होती है. याद रखें रुपयों से सास में डोमिनेंस की भावना बढ़ सकती है जब कि बहू के मन में भी असंतुष्टि की भावना उत्पन्न होने लगती है. बहू को लगता है कि मैं कमा क्यों रही हूं जब सारे रुपए सास को ही देने हैं.

इसलिए बेहतर है कि जरूरत के समय सास पर या परिवार पर रूपए जरूर खर्च करें पर हर महीने पूरी रकम सास के हाथों में रखने की मजबूरी न अपनाएं.

वर्किंग वुमन के लिए परफेक्ट हैं ये 8 ब्यूटी टिप्स

अधिकांश कामकाजी महिलाओं को सही से तैयार होने का समय नहीं मिल पाता है, जो उनके मेकअप को प्रभावित करता है. ड्राई शैम्पू और पेट्रोलियम जेली जैसे उत्पाद कामकाजी महिलाओं के जीवन को आसान बना सकते हैं.

इन टिप्स को अपनाकर कामकाजी महिलाएं अपना रुप निखारने के साथ साथ आकर्षक लुक भी पा सकती हैं.

1. अगर आपके पास शैम्पू करने का समय नहीं है और आपको काम के बाद पार्टी में जाना है तो फिर आप ड्राई शैम्पू का इस्तेमाल कर सकती हैं. अगर यह स्प्रे के रूप में है तो इसे बालों की जड़ों पर स्प्रे कर कंघी कर लें और इससे बालों की गंदगी और तैलीयपन दूर हो जाएगी.

2. सुबह बाल धुलने के बाद अगर आपके पास हेयर ड्रायर इस्तेमाल करने का समय नहीं है तो तौलिए का इस्तेमाल करें और सूती टी-शर्ट से बांध लें. सूती टी-शर्ट बालों की नमी को तुरंत सोख लेगा और बालों में नैचुरल मॉइश्चराइजर छोड़ देगा, जो नैचुरल कर्ल बनाए रखेगा. आप सीरम का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

3. व्यस्तता के चलते अगर आप मैनीक्योर और पैडीक्योर के लिए सैलून नहीं जा पा रही हैं तो फिर रात में सोने से पहले हाथों और पैरों पर पेट्रोलियम जेली लगाएं. पैरों पर लगाकर मोजे पहन लें. यह त्वचा में नैचुरल मॉइश्चराइजर बनाता है.

4. देर रात पार्टी से आने के बाद किसी की भी नींद मुश्किल से ही पूरी हो पाती है और सुबह ऑफिस जाते समय आपका चेहरा उदास व बेजान दिख सकता है. आंखों की निचले किनारे पर स्किन या सफेद रंग का पेंसिल लगाएं और फिर आंखों पर लाइनर लगाएं.

5. ऑफिस के बाद पार्टी जाने के लिए कामकाजी महिलाएं अपने पास बनाना बैंड्स या फंकी एक्सेसरीज रख सकती हैं. उनके लिए फ्रंट पफ हेयर स्टाइल करना आसान होगा. आप चाहे तो पफ के साथ हाईपोनीटेल भी बना सकती हैं.

6. कभी-कभी किसी खास शेड की लिपस्टिक लगाने का मन करता है लेकिन उस समय अगर यह आपके पास नहीं है तो होठों पर आप अच्छी कंपनी का मॉइश्चराइजर या जेली लगाएं और फिर उस पर आप जिस रंग की लिपस्टिक लगाना चाहती थी तो उस रंग का आईशैडो लगाएं.

7. चेहरे की त्वचा में नमी व निखरा बरकरार रखने के लिए गुलाब जल का स्प्रे करना नहीं भूलें.

8. आंखों की बरौनी को उभार देने के लिए रूई का फाहा लेकर उस पर थोड़ा सा बेबी पाउडर डालें और मस्कारा लगाने के बाद इसे हल्के हाथों से बरौनियों पर लगाएं और फिर दोबारा मस्कारा लगाएं, इससे आपकी आंखें बेहद खूबसूरत लगेंगी.

वर्किंग वाइफ पसंद करते हैं पुरुष

दिलचस्प बात यह है कि जहां लोग पहले शादी के लिए कामकाज में दक्ष, संस्कारी और घरेलू लड़की पसंद करते थे वहीं आज इस ट्रेंड में बदलाव नजर आ रहा है. अब पुरुष शादी के लिए घर बैठी लड़की नहीं बल्कि वर्किंग वूमन पसंद करने लगे हैं. अपनी वर्किंग वाइफ का दूसरों से परिचय कराते हुए उन्हें गर्व महसूस होता है. आइये जानते हैं पुरुषों की इस बदलती सोच की वजह;

पति की परिस्थितियों को समझती है

अगर पत्नी खुद भी कामकाजी है तो वह पति की काम से जु़ड़ी हर परेशानी को बखूबी समझ जाती है. वह समयसमय पर न तो पति को घर जल्दी आने के लिए फोन करती रहेगी और न घर लौटने पर हजारों सवाल ही करेगी. इस तरह पतिपत्नी का रिश्ता स्मूथली चलता रहता है. दोनों हर संभव एक दूसरे की मदद को भी तैयार रहते हैं. यही वजह है कि पुरुष कामकाजी लड़कियां खोजने लगे हैं.

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अपना खर्च खुद उठा सकती हैं

जो महिलाएं जौब नहीं करतीं वे अपने खर्चे के लिए पूरी तरह पति पर निर्भर होती हैं. छोटी सी छोटी चीज़ के लिए भी उन्हें पति और घरवालों के आगे हाथ पसारना पड़ता है. दूसरी तरफ वर्किंग वूमन खर्चों को पूरा करने के लिए पति पर डिपेंडेंट नहीं रहती हैं. वे न सिर्फ अपने खर्चे खुद उठाती हैं बल्कि समय पड़ने पर परिवार की भी मदद करती हैं.

पौजिटिव होती हैं

कामकाजी महिलाओं पर हुई एक रिसर्च के मुताबिक ज्यादातर वर्किंग वूमन सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहती हैं. उन के अंदर आत्मविश्वास और चीज़ों को हैंडल करने का अनूठा जज्बा होता है. उन्हें पता होता है कि किस परेशानी से किस तरह निपटना है.इस लिए वे छोटी छोटी बातों पर हाइपर नहीं होती न ही घबड़ाती हैं. उन्हें पता होता है कि प्रयास करने पर वे काफी आगे बढ़ सकती हैं.

खर्च कम बचत ज्यादा

आज की महंगाई में यदि पतिपत्नी दोनों कमाई करते हैं तो जिंदगी आसान हो जाती है. आप को कोई भी प्लान बनाते समय सोचना नहीं पड़ता. भविष्य के लिए बचत भी आसानी से कर पाते हैं. घर और वाहन खरीदने या फिर किसी और जरुरत के लिए लोन लेना हो तो वह भी दोनों मिल कर आसानी से ले लेते हैं और किश्तें भी चुका पाते हैं. आलम तो यह है कि आज महिलाएं लोन लेने और उसे चुकाने के मामले में पुरुषों से कहीं आगे हैं. वे न सिर्फ पारिवारिक और सामाजिक दृष्टि से बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी घर की धुरी बनती जा रही है.

बढ़ रही है लोन लेने वाली औरतों की संख्या

क्रेडिट इन्फौर्मेशन कंपनी ‘ट्रांसयूनियन सिबिल’ की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले 3 सालों में कर्ज लेने के मामले में महिला आवेदको की संख्या लगातार बढ़ रही हैं. देखा जाए तो औरतों ने मर्दों को पीछे छोड़ दिया है.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘साल 2015 से 2018 के बीच कर्ज लेने के लिए सफल महिला आवेदकों की संख्या में 48 फीसदी की बढ़त हुई है. इस की तुलना में सफल पुरुष आवेदकों की संख्या में 35 फीसदी की बढ़त हुई है. हालांकि कुल कस्टमर बेस के हिसाब से अभी भी कर्ज लेने वाले पुरुषों की संख्या काफी ज्यादा है.

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रिपोर्ट के अनुसार करीब 5.64 करोड़ के कुल लोन अकाउंट में अब भी ज्यादा हिस्सा गोल्ड लोन का है, हालांकि साल 2018 में इस में 13 फीसदी की गिरावट आई है. इस के बाद बिजनेस लोन का स्थान है. कंज्यूमर लोन, पर्सनल लोन और टू व्हीलर लोन के लिए महिलाओं की तरफ से मांग साल-दर-साल बढ़ती जा रही है.

आज हर 4 कर्जधारकों में से एक महिला है. यह अनुपात और भी बदलेगा क्यों कि कर्ज लेने लायक महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ रही है. बेहतर शिक्षा और श्रम बाजार में बेहतर हिस्सेदारी की वजह से अब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं अपने वित्तीय फैसले खुद ले रही हैं.

हैप्पी लाइफ के लिए बनिए स्मार्ट वूमन

रक्षिता एक संयुक्त परिवार की छोटी बहू है. परिवार का रैडीमेड कपड़ों का बड़ा व्यवसाय है, पढ़ीलिखी तो थी ही, सो शादी के बाद वह भी व्यवसाय में मदद करने लगी. जहां उस की 2 जेठानियां घर पर रहतीं, वह हर दिन तैयार हो कर दुकान जाती और बिजनैस में सहभागी होती. परंतु उस की आर्थिक स्वतंत्रता बिलकुल अपनी जेठानियों के ही स्तर की रही. वह एक कर्मचारी की ही तरह काम करती और वित्तीय मामलों में उस के सुझवों को उस के अधिकारों का अतिक्रमण माना जाता है.

रक्षिता को भी इस व्यवस्था में कोई खामी नजर नहीं आती है और घर से बाहर जाने के मिले अधिकार की खुशी में ही संतुष्ट रहती है. उस के ससुर, जेठ या उस के पति यह सोच भी नहीं सकता कि घर की औरतों को आयव्यय, बचत, हिसाब जानने की कोई जरूरत भी है. वहीं कुछ महिलाएं खुद ही यह मान कर चलती हैं कि घर के वित्तीय मामले उन के लिए नहीं हैं.

शर्माजी कोविडग्रस्त हो 75 साल की उम्र में गुजर गए. सबकुछ इतना अचानक हुआ कि उन की पत्नी जिंदगी में आए इस बदलाव से भौचक सी रह गई. आर्थिक रूप से शर्मा दंपती बेहद संपन्न थे. शर्माजी के गुजरने के बाद भी मजबूत बैंक बैलेंस, पैंशन और इंश्योरैंस की मजबूत आर्थिक सुरक्षा थी. परंतु अफसोस यह है कि शर्माजी की पत्नी अपनी आर्थिक सुदृढ़ता से पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं.

विवाह के शुरुआती दिनों से उन्होंने कभी भी यह सीखने या जानने की कोशिश नहीं की कि घर में कितने पैसे आ रहे हैं, कहां खर्च हो रहे हैं या फिर कहां क्या बचत हो रही है. शर्माजी उन के लिए सदा एटीएम बने रहे.

बच्चों पर निर्भरता

बेटे के बड़े होने और अवकाशप्राप्ति के बाद शर्माजी ने बड़ी कोशिश करी उर्मला को अपना वित्तीय स्टैटस समझने की, बैंक और औनलाइन ट्रांजैक्शन समझने की, परंतु उर्मला को यही लगता कि कौन इस झमेले में पड़े, जब उन के पति सब कर ही लेते हैं.

अब जब शर्माजी नहीं रहें तो अचानक वे पूरी तरह अपने बेटे पर निर्भर हो गईं, अकेले रहने लायक वे थी ही नहीं. अब पाईपाई के लिए बेटे पर निर्भरता उन्हें बेहद खलती है पर अब कोई चारा नहीं है.

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उर्मला के विपरीत कंचन बाजपेयी ने देर से ही सही पर सबकुछ सीखा और अपने आत्मसम्मान के साथ एक आत्मनिर्भर जीवन व्यतीत कर रही हैं. यदाकदा जरूरत पड़ने पर बच्चों या किसी और की मदद लेती हैं. वे भी उर्मला की ही तरह गृहिणी थीं और वित्तीय जानकारी उन की भी शून्य ही थी.

यहां बाजपेयी ने कभी बताने की भी जरूरत नहीं समझ थी कि ‘मैं तो हूं’ ही. परंतु मरने से 10 वर्ष पहले जब उन्हें पहली बार हार्टअटैक आया तो अपनी पत्नी की अनभिज्ञता के चलते उन्हें रिश्तेदारों और दोस्तों पर निर्भर होना पड़ा. अस्पताल के बिल चुकाने से ले कर अन्य बातों के लिए. बाद में स्वस्थ होने पर उन्होंने ठान लिया कि पत्नी को सब सिखाना है.

60 वर्षीय कंचन बाजपेयी न सिर्फ एटीएम से पैसे निकालना जानती हैं बल्कि विभिन्न औनलाइन पोर्टल से ट्रांजैक्शन करना भी उन्हें आता है. कहां किस बैंक में कितने पैसे हैं, कौन नौमिनी है, खर्चों के पैसों को किस अकाउंट से निकालना है इत्यादि उन्हें सब पता है. अपनी इस वित्तीय जागरूकता के चलते वे निर्णय लेने की क्षमता भी रखती हैं और बच्चों के घर में एक फर्नीचर की तरह रहने की जगह वे अपने घर में अपनी इच्छानुसार रहती हैं.

आर्थिक गुलामी

आर्थिक आत्मनिर्भरता हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है. अब दिनोंदिन कामकाजी और आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाओं की गिनती बढ़ रही है पर अब भी उन महिलाओं की गिनती अधिक है जो आर्थिक स्वावल?ंबन से दूर हैं. यह लेख मूलतया उन्हीं महिलाओं के लिए है, जो संपन्न होने के बावजूद आर्थिक गुलामी की जिंदगी चुन लेती हैं.

अधिकतर महिलाएं आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं चाहे पिता पर, पति पर या फिर पुत्र पर. माइंड कंडीशनिंग कुछ ऐसी होती है महिलाओं

की कि उन्हें बुरा भी नहीं महसूस होता है. मगर उन्हें मालूम होना चाहिए कि यह गुलामी का ही प्रतीक है.

बेटियों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना हर मातापिता का फर्ज है. फिर भी यदि किसी कारणवश एक लड़की आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं प्राप्त कर पाती है तो भी उस का यह हक है कि अपनी गृहस्थी के फाइनैंशियल स्टेटस को पूरी तरह सम?ो.

जरूरतें और मुसीबतें कभी बता कर नहीं आती हैं. हर परिस्थिति के लिए पतिपत्नी को शुरू से प्लानिंग करनी चाहिए और महत्त्वपूर्ण बातों को आपस में शेयर करना चाहिए. पतिपत्नी दोनों को मिल कर अपने भविष्य की तैयारी करनी चाहिए, न कि पति अपनी घरवाली को सिर्फ घरेलू काम की ही इंसान सम?ो. बहुत लोग दोस्तों से, रिश्तेदारों से अपनी वित्तीय जानकारी शेयर करते हैं पर अपनी घरवाली को अनभिज्ञ रखेंगे. घर की महिलाओं को पता ही नहीं रहता है कि आड़े वक्त में पैसे कहां से आएंगे.

कदमकदम पर धोखा

रामकली घर पर ब्लाउज सिलने का काम करती थी. वह कुछ दर्जियों से जुड़ी हुई थी जो उस से सिलवा कर अपने ग्राहकों को देते थे. ठीकठाक कमा लेती थी. वह जो कमाती अपने पति रणबीर के हाथों में दे कर निश्चिंत हो जाती थी जो खुद टैंपो चलाता था. एक दिन रणबीर टेम्पो सहित दुर्घटनाग्रस्त हो गया. आसपास के लोगों की मदद से उसे पास के अस्पताल में भरती करवाने के बाद रामकली को समझ नहीं आ रहा था कि अब वह अस्पताल के बिल कैसे और कहां से भरे.

उस ने पूरा घर छान मारा पर कुछ हजार रुपयों के अलावा उसे कुछ नहीं मिला. रणबीर तो बेहोश था. इसलिए वह कैसे पूछती कि पैसे कहां रखे हैं. नतीजा समय पर पैसे नहीं जमा करने के कारण उस के इलाज में देरी हो गई. सिलाईमशीन छोड़ वह घर का 1-1 समान बेच कर किसी तरह इलाज करवा और सदा के लिए अपंग हो गए पति को घर ला पाई.

बाद में पता चला कि रणबीर अपनी और रामकली की सारी कमाई अपने दोस्त को ब्याज पर उधार दे रखी थी, जिस ने पूरी रकम डकार ली. इस धोखे के बाद रामकली ने फिर से ब्लाउज सिलने शुरू किए तो खुद अपनी कमाई का हिसाबकिताब रखने लगी.

गलती किस की

बिल गेट्स की एक प्रसिद्ध उक्ति है कि यदि आप गरीब परिवार में जन्म लेते हैं तो यह आप की गलती नहीं है पर यदि आप गरीब ही मर जाते हैं तो यह आप की गलती है.

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इसी तर्ज पर यदि कोई महिला पूर्णरूपेण समृद्ध होते हुए भी अपनी नासमझ और अज्ञानता के कारण किसी पर आश्रित हो कर जीती है तो यह उस की गलती है. अपने आसपास ऐसी कई औरतें दिख जाएंगी जो हर तरह से समृद्ध होते हुए भी पति के गुजरने पर बेबस और पराश्रित हो जाती हैं. अफसोस होता है उन की पराधीनता पर. अकसर घरेलू और कई बार कामकाजी कमाऊ पत्नियां भी पति के बताने के बावजूद फाइनैंशियल ज्ञान से बेखबर रहना पसंद करती  हैं. यह गलत है. शुरू से ही पति की सहायिका बन कर सारी जानकारी रखनी चाहिए. बदलते वक्त के साथ खुद को अपडेट भी करते रहना चाहिए. बैंकिंग और टैक्नोलौजी के प्रति आप  की थोड़ी सी जागरूकता भविष्य में बहुत  सहायक होगी.

सरला माथुर 72 वर्ष की आयु में भी काफी सक्रिय रहती हैं. माथुर साहब कुछ वर्षों से बहुत बीमार रहने लगे तो न सिर्फ सरलाजी ने सारी जिम्मेदारियों को अपने पर ले लिया बल्कि बैंक, पोस्ट औफिस, पैंशन और मैडिकल इंश्योरैंस सहित सभी वित्तीय मामलों की लगाम अपने हाथों में थाम लिया. कभी बच्चों के घर जा कर रहने पर भी वे उन पर आश्रित नहीं रहतीं. गृहस्थी की शुरुआत से ही पतिपत्नी के बीच एक मधुर सामंजस्य रहा. जब जिंदगी में जैसी जरूरत पड़ी रोल बदल कर उन्होंने जिंदगी आसान और खुशनुमा बनाए रखी.

यह एक कड़वा सत्य है कि पतिपत्नी में एक को पहले गुजरना है, उम्र में कम होने के चलते ज्यादातर पत्नियां रह जाती हैं. एक तो जुदाई का गम दूसरा अपनी परतंत्रता स्त्रियों पर दोहरी गाज बन गिरती है, इसलिए स्मार्ट वूमन बनिए और जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीते रहने की कला से वाकिफ रहिए. आर्थिक स्वतंत्रता ही सुखद, उन्मुक्त जीवन की कुंजी है ताउम्र. -रीता गुप्ता द्य

वर्क फ्रॉम होम में कपल्स ऐसे बिठाएं तालमेल, रिलेशनशिप रहेगा ठीक

कोविड-19 ने सभी वर्क करने वाले लोगों को घर पर रहने और घर से ही काम करने को मजबूर कर दिया है. वैसे तो ज्यादातर घर के पुरुष ही वर्क करते हैं और पैसे कमाते हैं अपने परिवार के लिए लेकिन अब चूंकि जमाना बदल चुका है और लड़के- लड़कियां सभी नौकरी करते हैं.इस दौर में ज्यादातर परिवारों में पति-पत्नी दोनों ही वर्किंग हैं. वर्क फ्रॉम होम में पति-पत्नियों को कई तरहों की समस्याओं को झेलना पड़ रहा है, जिस वजह से पति- पत्नी के आपसी रिश्ते में दूरियां बढ़ने लगी हैं.

जैसे कि उनकी क्या टाइमिंग है ऑफिस की उसके कारण आमतौर पर पति-पत्नी जब बाहर काम करते थें तो वो अपने ऑफिस की सारी टेंशन सारी थकान सब बाहर ही छोड़ कर आते थें और घर में अपना फैमिली टाइम बिताते थे. लेकिन अब चूंकि कोरोना काल चल रहा है तो ऐसे में पति-पत्नी दोनों ही वर्क फ्रॉम होम कर रहे है.लेकिन इसका उनकी नीजि जिंदगी पर कोई असर ना पड़े और वो दोनों बेहतर तरीके से एक-दूसरे को समय दे पाएं ये बहुत ही जरूरी है.जिसके लिए उन्हें खुद भी इन बातों का खयाल एक-दूसरे के बारे में सोच कर रखना होगा.

1. काम के बीच- बीच में ब्रेक लेकर अपने पाटर्नर से बात करते रहें,उनके साथ थोड़ी सी मस्ती करें. ऐसा करने से मानसिक तनाव भी नहीं होगा और आपका रिश्ता भी मजबूत होगा। अपने जीवनसाथी को खुश रखने के लिए आप चाय या कॅाफी ब्रेक ले सकते हैं आप अपने वाइफ के साथ वक्त निकाल कर थोड़ा सा किचन में भी हेल्प कर सकते हैं.इससे आप दोनों का ही मूड फ्रेश होगा और खाना भी जल्दी बन जाएगा और फिर से अपना काम जल्दी कर सकते हैं.

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2. पति-पत्नी को साथ मिलकर घर के काम करने चाहिए.वर्किंग कपल्स को इस बात को समझना होगा कि इस कोरोना काल में काम का दबाव दोनों पर है क्योंकि उन्हें घर और ऑफिस दोनों संभालना है इसलिए घर के सभी काम मिलकर किए जाएं। ऐसा करने से किसी एक व्यक्ति पर दबाव भी नहीं पड़ेगा और घर के काम भी जल्दी हो जाएंगे। एक साथ घर के काम करने से आप दोनों का रिलेशनशिप भी मजबूत होगा।

3. घर से काम कर रही महिलाएं को भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें जयादातर घरों में जो वर्किंग वुमन हैं उन्हें ऑफिस के साथ घर का और यदि वो फैमिली में हैं तो पूरी फैमिली का भी ध्यान रखना होता है.घर के हर सदस्य को यह समझाएं कि आपके लिए जितना जरूरी घर का काम है, उतना ही जरूरी ऑफिस के काम भी है। छोटे-छोटे कामों का तनाव लेने के बजाय काम को घर के हर सदस्य के साथ शेयर करें और ऐसी और ऐसी सिचुएशन में पुरुषों को भी अपनी पार्टनर का पूरा ध्यान रखना चाहिए और साथ ही उनकी मदद भी करनी चाहिए.

4. पति-पत्नी को इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि उन्हें अपनी प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को अलग रखना है। अपने ऑफिस के काम के समय सिर्फ काम करें और घर के काम करते वक्त सिर्फ घर की बातें और घर के काम हों. पर्सनल और प्रोफेशन को कभी भी आपस में ना मिलाएं. अगर इस बात खयाल दोनों रखें तो रिश्ते बने रहने के साथ ही मजबूत भी होते हैं.

5. कभी-कभी काम के प्रेशर में आप इरिटेट होने लगते हैं लेकिन इसका मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि आप पर काम का दबाव अधिक और अचानक से आपको गुस्सा आ जाए तो आप वो गुस्सा किसी पर भी या अपनी पत्नी पर निकाल दें.ऐसा कभी ना करें. बल्कि आपको अपने गुस्से पर नियंत्रण में रखना है और अपने पाटर्नर से प्यार से बातें करनी हैं. इस समय आपका पाटर्नर आपसे गुस्से में कुछ बोल दे तो उस ओर ध्यान न दें.

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घरेलू काम: न मान, न दाम

क्या घरेलू कामकाज थैंकलैस जौब है? जी हां, यह सच है. अगर ऐसा नहीं होता तो हिंदुस्तान में कामगार के तौर पर महिलाओं की इज्जत पुरुषों से ज्यादा होती, क्योंकि वे पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा काम करती हैं. उन का काम हर समय जारी रहता है, केवल सोने के समय को छोड़ कर. यह बात एनएसएसओ यानी नैशनल सैंपल सर्वे और्गेनाइजेशन के सालाना राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण से सामने आई है. 68वें चक्र के इस सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं चाहे शहरों में रहती हों या गांवों में, वे पुरुषों से कहीं ज्यादा काम करती हैं.

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 68वें चक्र के आंकड़े एक और गलतफहमी दूर करते हैं कि शहरी महिलाएं शिक्षित होने के नाते अधिक कामकाजी होती हैं. आंकड़ों से मालूम होता है कि ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में शहरी क्षेत्र की महिलाएं गैरमेहनताने वाले घरेलू कार्य में अधिक व्यस्त रहती हैं. एनएसएसओ के 68वें चक्र के अनुसार, 64% महिलाएं जो 15 वर्ष या उस से अधिक आयु की हैं घरेलू कामकाज में व्यस्त रहती हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का यह प्रतिशत 60 है.

अगर शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों की बहस को छोड़ दें तो इन आंकड़ों से मालूम होता है कि ज्यादातर महिलाएं घरेलू कामकाज में व्यस्त रहती हैं, जिस का उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलता है. इन आंकड़ों से भी इस मांग को बल मिलता है कि घरेलू कामकाज को श्रम माना जाए और महिलाओं को उस का मेहनताना दिया जाए. गौरतलब है कि ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में लगभग 92% महिलाएं अपना ज्यादातर समय घरेलू काम में व्यतीत करती हैं.

बहरहाल, प्रत्येक राज्य व केंद्र शासित प्रदेश में 1 लाख घरों को इस सर्वे में शामिल किया गया, जिस में चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि शहरी क्षेत्र की अधिकतर महिलाएं कहती हैं कि वे घरेलू काम अपनी व्यक्तिगत इच्छा के कारण करती हैं. जबकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का कहना है कि वे घरेलू काम इसलिए करती हैं, क्योंकि उसे करने के लिए कोई और सदस्य उपलब्ध नहीं है.

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जुलाई, 2011 से जून, 2012 तक के इस 68वें चक्र से यह भी जाहिर होता है कि चूंकि शहरों में छोटे परिवार ज्यादा हो गए हैं, इसलिए घरेलू जिम्मेदारियों को बांटने के लिए सदस्यों की कमी रहती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में ऐसी स्थिति नहीं है.

दिलचस्प बात यह है कि लगभग 34% ग्रामीण महिलाओं ने इस बात की इच्छा व्यक्त की कि अगर उन्हें घर पर ही कोई अन्य काम दिया जाए तो वे उसे खुशीखुशी स्वीकार लेंगी, जबकि 28% शहरी महिलाओं ने ही घर पर रह कर कोई अन्य काम करने की इच्छा व्यक्त की. दोनों क्षेत्रों में मात्र 8% महिलाएं ही ऐसी हैं, जिन्हें अपना ज्यादातर समय घरेलू काम करते हुए गुजारना नहीं पड़ता.

अब सवाल यह है कि घरेलू काम के अतिरिक्त घर पर रहते हुए महिलाएं किस किस्म के काम को करने को अधिक प्राथमिकता देती हैं? सर्वे से मालूम पड़ता है कि सिलाई का काम महिलाओं को अधिक पसंद है. दोनों क्षेत्रों में 95% महिलाएं नियमित आधार पर कार्य करने को प्राथमिकता देती हैं. महिलाओं की दिलचस्पी स्वरोजगार में भी है, बशर्ते उन्हें व्यापार करने के लिए रिआयती व आसान दर पर ऋण दिया जाए.

दिलचस्प बात यह है कि इस सिलसिले में भी ग्रामीण महिलाओं का प्रतिशत (41), शहरी महिलाओं के प्रतिशत (29) से कहीं ज्यादा है. इस के अलावा 21% ग्रामीण महिलाओं और 27% शहरी महिलाओं ने कहा कि अपनी इच्छा का कार्य करने के लिए वे पहले ट्रेनिंग लेना पसंद करेंगी.

2011-12 के सर्वे से यह तथ्य भी सामने आया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान शहरी क्षेत्र में घरेलू कार्य में जुटी महिलाओं का प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में लगभग एक सा ही रहा है. घरेलू कार्य में जुटी महिलाओं का प्रतिशत 2004-05 में जहां 45.6 था, वहीं 2009-10 में बढ़ कर 48.2% हो गया, लेकिन 2009-10 और 2011-12 के बीच वह लगभग समान ही रहा है.

दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र में घरेलू कामों में जुटी महिलाओं का प्रतिशत निरंतर बढ़ता जा रहा है. मसलन, 61वें चक्र में यह प्रतिशत 35.3% था जो 66वें चक्र में बढ़ कर 40.1% हो गया और वर्तमान चक्र में यह 42.2% है. अगर क्षेत्र की दृष्टि से देखें तो उत्तरी राज्यों खासकर पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में महिलाएं घरेलू काम में अधिक जुटी हुई हैं. दक्षिण व उत्तरपूर्व राज्यों में यह स्थिति कम है.

जरूरी है अर्थिक स्वतंत्रता

बहरहाल, जहां घरेलू काम को ‘उत्पादक श्रम’ की श्रेणी में शामिल करने की मांग बढ़ती जा रही है, वहीं एनएसएसओ से यह भी आग्रह किया जा रहा है कि वह ‘समय प्रयोग सर्वे’ को लागू करे. इस का एक फायदा यह होगा कि शोधकर्ताओं को मालूम हो जाएगा कि घर पर रहने वाली महिला कितना समय आर्थिक दृष्टि से उत्पादक गतिविधि में व्यतीत करती है.

इस में कोई संदेह नहीं है कि समाज में महिलाओं की स्थिति उसी सूरत में मजबूत हो सकती है जब वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों. जाहिर है, इस के लिए जरूरी है कि महिलाओं द्वारा किए जा रहे घरेलू कार्य को श्रम माना जाए और उन्हें इस का आर्थिक मेहनताना मिले. इस के अलावा यह भी जरूरी है कि महिलाओं की संपूर्ण स्थिति को सामने लाने के लिए एनएसएसओ उन से आधुनिक संदर्भों पर भी सवाल करे जैसे- क्या वे घर से बाहर कोई वेतन कार्य करना पसंद करेंगी या घरेलू काम के बोझ को वे किसी दूसरे के साथ बांटना चाहेंगी आदि.

किसी भी विकसित देश की तमाम अलगअलग परिभाषाओं में एक महत्त्वपूर्ण परिभाषा या फिर कहें उस के विकसित होने को साबित करने वाली स्थिति यह होती है कि उस देश की तमाम महिलाएं उस देश के पुरुषों की ही तरह कामकाजी होती हैं. कामकाजी होने से यहां आशय पुरुषों के बराबर महत्त्व वाले घर से बाहर के कामकाजों में हिस्सेदारी करना और उन्हीं के बराबर वेतन पाना है. जिन देशों में ऐसी स्थितियां नहीं हैं वे कम से कम विकसित देशों की सूची में नहीं आते. इसलिए भी हिंदुस्तान को अभी लंबा सफर तय करना है, क्योंकि हमारे यहां श्रम के मामले में महिलाएं यों तो पुरुषों से कहीं ज्यादा श्रम करती हैं, लेकिन उन के श्रम को उतना पारितोष नहीं मिलता जितना पुरुषों को मिलता है.

अगर 2020 तक भारत को एक बड़ी आर्थिक ताकत बनना है तो हमें अपने देश की महिलाओं के श्रम की महत्ता को समझना होगा. लेकिन समझने से आशय महज मुंहजबानी शाबाशी देना या यह कहना कि सब कुछ तुम्हारा ही तो है, से नहीं है, बल्कि इस से आशय महिलाओं के श्रम को आर्थिक दृष्टि से बराबर का सम्मान देना है और उन्हें तमाम आर्थिक गतिविधियों का अनिवार्य व बराबर की ताकत वाला महत्त्व देना है.

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सवाल जो सर्वे में नहीं पूछे गए

यह सच है कि नैशनल सैंपल सर्वे के आंकड़ों से बहुत कुछ पता चलता है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अगर इस सर्वेक्षण को सामाजिक, आर्थिक दृष्टि से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बनाना है, तो इस में हर उस सवाल को शामिल करना जरूरी होगा जो महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को विस्तार से बयां कर सके, क्योंकि महत्त्वपूर्ण होते हुए भी इस सर्वे की कई खामियां हैं और वे आमतौर पर न पूछे गए जरूरी सवालों को ले कर ही हैं.

मसलन, सर्वे में महिलाओं से इस संबंध में सवाल नहीं किया गया कि क्या वे घर से बाहर के कामकाज में शामिल होना चाहेंगी? यह प्रश्न इसलिए भी आवश्यक था, क्योंकि घर पर रह कर घरेलू काम करने वाली महिलाओं में से बहुत कम ही ऐसी होंगी जो घर के बाहर जा कर काम करते हुए वेतन लेने की इच्छुक न हों. महिलाएं इस बात से भी काफी आहत रहती हैं कि पुरुषों के मुकाबले काफी ज्यादा काम करने के बावजूद उन के काम से ठोस रूप में घर वेतन नहीं आता, इसलिए उन के काम को महत्त्व नहीं दिया जाता.

यही नहीं, न सिर्फ महिलाओं के श्रम को नकद वेतन मिलने वाले श्रम के मुकाबले कम महत्त्व दिया जाता है, बल्कि उस श्रम की सामाजिक प्रतिष्ठा भी बहुत कम है. महिलाएं इस पीड़ा से अकसर दोचार होती रहती हैं. मगर इस सर्वेक्षण में उन की इस पीड़ा को व्यक्त करने वाला कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है. इस लिहाज से भी यह सर्वेक्षण की एक बड़ी खामी है.

अधूरी तसवीर

इस सर्वेक्षण में एक और जरूरी पहलू पर महत्त्वपूर्ण राय नहीं पता चल पाई कि अगर इस सर्वेक्षण में घर पर रहने वाली महिलाओं से यह सवाल किया जाता कि उन्हें सवेतन संबंधी काम करने के लिए आखिर किस चीज की ज्यादा जरूरत है- अच्छी क्वालिफिकेशन की, शुरू से घर से बाहर काम करने की मानसिकता के तहत की जाने वाली परवरिश की, अपना काम शुरू करने के लिए नकद पैसों की, परिवार के सदस्यों के प्रोत्साहन की या महिलाओं को घर के बाहर के कामकाज को बढ़ावा देने वाली संस्कृति की? यह जानना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि सामूहिक रूप से किसी विस्तृत राय के अभाव में हम लोग महज अनुमान लगाते हैं कि महिलाएं किस बात या चीज की कमी के चलते खुद को कोल्हू के बैल माफिक मानती हैं.

इस सवाल के अभाव में हम तार्किक रूप से यह भी नहीं जान सकते कि महिलाएं क्या सोचती हैं कि जब वे घर का काम नहीं करेंगी तो फिर उन की नजर में यह काम किसे करना चाहिए? जैसे आज की स्थिति में तमाम घर के काम उन के जिम्मे हैं क्या कल वे भी इसी तरह घर के तमाम कामों को पुरुषों के सिर पर डालना चाहती हैं? या फिर पुरुषों ने भले उन के साथ बराबरी का व्यवहार न किया हो और बाहर का काम करने के बाद भी उन से घर के पूरे काम की अपेक्षा करते हों, वे प्रोफैशनल कामकाजी होने के बाद घर के काम के लिए बराबरी के बंटवारे पर भरोसा करती हैं?

यह भी जानना जरूरी था कि महिलाएं नौकरी करना ज्यादा पसंद करती हैं या अपना काम? अगर अपना काम करना पसंद करती हैं, तो इस क्षेत्र में उन्हें सब से बड़ी बाधा फिलहाल क्या लगती है? इन जरूरी सवालों के अभाव में यह सर्वेक्षण महिलाओं के कामकाज की स्थिति और उन के आर्थिक आकलन की एक तसवीर तो पेश करता है, मगर यह तसवीर कुल मिला कर अधूरी ही है.

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कितनी अपडेट हैं आप

लेखिका-स्नेहा सिंह

आजकल जिधर देखो यही कहा जाता है कि यह सूचना का युग है. आप के पास जितनी ज्यादा सूचना होगी, आप उतनी ही ज्यादा सफलता किसी भी काम में पा सकती हैं.

इन्फौरमेशन यानी सूचना अगर हम इसे सीधे शब्दों में कहें तो अपने आसपास से ले कर शहर, राज्य और देशदुनिया में क्या चल रहा है, इस सब की जानकारी रखना कहलाता है. फैशन से ले कर व्यसन और नौकरीधंधे से ले कर शिक्षा तक, हर क्षेत्र की जानकारी रखना.

इन सभी क्षेत्रों में क्या नया हो रहा है, इस की रोजरोज की जानकारी होना आज के समय में बेहद आवश्यक है.

मात्र अपने विषय का पूरा ज्ञान रखना, आप को अपने क्षेत्र में तो सफलता दिला सकता है पर इस के अलावा अगर आसपास के समग्र जगत की जानकारी हो तो यह सोने पर सुहागा होगा.

आप जिस क्षेत्र में काम कर रही हैं, इस के अलावा अन्य सभी बातों का ज्ञान जीवन में दूसरे अनेक मोरचे पर सफलता दिला सकता है.

हर विषय की जानकारी

कामकाजी महिला हो या गृहिणी, अगर दुनियाभर की गतिविधियों की जानकारी है तो यह गुणवत्ता भरे निर्णयों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है.

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जीवन में छोटीछोटी बातों की जानकारियां सुविधाओं से बचा कर श्रेष्ठता की ओर ले जाती हैं. पर रुचि के अलावा अन्य क्षेत्रों के बारे में अपडेट रहना महिलाओं को बहुत अच्छा नहीं लगता. पर आज जब नौलेज ही पावर माना जाने लगा है तो सूचनाओं से दूरी बना कर काम नहीं चल सकता.

इस बात को एक उदाहरण द्वारा समझते हैं:
मान लीजिए कि आप महिलापुरुष के किसी समूह में बैठी हैं और वहां इधरउधर की बातें चल रही हैं. उस स्थिति में जिस के पास इन्फौरमेशन होगी, वही व्यक्ति चर्चा में भाग ले सकेगा. जो महिलाएं राजनीति, अर्थव्यवस्था या विज्ञान की बातोें को उबाऊ मान कर इस सब में बिलकुल रुचि नहीं लेती हैं, उन की जहां देखो वहीं किरकिरी हो सकती है.

जानकारी रखने वाली महिलाओं को हर जगह सम्मान मिलता है और उन की खूब वाहवाह होती है.

एक परिवार में 2 महिलाएं हैं और उन में एक खापी कर मौज करने वाली मानसिकता की है. उसे अपने परिवार के अलावा बाहर की दुनिया से कोई लेनादेना नहीं है. परिवार संभालने के लिए इस महिला को सम्मान तो मिल सकता है पर परिवार के बाहर का कोई भी काम होगा या कोई अन्य बात चल रही होगी, तो उसे महत्त्व नहीं मिलेगा.

इस की अपेक्षा जो महिला घर के काम के अलावा बैंक, मैडिकल, इंश्योरैंस, मोबाइल, लैपटौप के अलावा लेटैस्ट गैजेट्स (साधन) या टैक्नोलौजी की जानकारी रखती होगी और पूरी दुनिया मेें घटने वाली घटनाओें की भी जानकारी रखती होगी, उसे अधिक महत्त्व मिलेगा. उस का पति भी उस के अपडेट होने वाले ज्ञान की वजह से उस की हर बात को ध्यान से सुनेगा.

सोशल मीडिया भरोसेमंद नहीं

आसपास की अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करने की हम बात कर रहे हैं तो यहां एक खुलासा करना जरूरी है. आजकल की ज्यादातर महिलाएं व्हाट्सऐप, फेसबुक द्वारा जो जानकारी मिलती है, इस से उन्हें लगता है कि उन के दिमाग में ज्ञान का दरिया समा गया है. पर वास्तव में ऐसा है नहीं. व्हाट्सऐप या फेसबुक आदि सोशल मीडिया पर परोसा जाने वाला ज्ञान एक तो भरोसेमंद नहीं है, दूसरा यह अधूरा और छिछला है.

अगर इस जानकारी की जांच करके उस का उपयोग करें, तब तो ठीक है, वरना इस तरह की अधूरी जानकारी हमें गलत दिशा की ओर ले जा सकती है. इसलिए इस से दूर रहना ही ठीक है. इस समय कोरोना के कारण इम्युनिटी बुस्ट करने के लिए तरहतरह की जानकारियां हर माध्यम के द्वारा परोसी जा रही हैं. पर इन सब में आप की प्रकृति और शरीर के अनुकूल जानकारी खोजना अथवा डाक्टर या किसी ऐथैंटिक व्यक्ति से जानकारी लेना इस जानकारी की सच्ची दिशा कही जा सकती है. जहां रोजरोज सूचना का अंबार जमा हो रहा हो, उस में से सही बातें निकालना भी एक चैलेंज है जबकि थोड़े खट्टेमीठे अनुभव के बाद सही बात की परख अपनेआप आ जाती है.

ज्यादातर महिलाएं आज भी कुकिंग के काम को अपनी फर्स्ट प्रायोरिटी देती हैं. परंतु हैल्थ के लिए क्या चीज अच्छी है, किस चीज में कितनी कैलोरी और कितनी विटामिन मिलती है? रसोई में उपयोग में लाई जाने वाली अन्य चीजें किस चीज से बनती हैं? इस में कितनी मात्र में कैमिकल्स हैं? किस सीजन में कौन सा फूड
बैस्ट है? किस सीजन में किस खाने में कौन सा मसाला होना चाहिए? इस सब की जानकारी उन्हें आदर्श बना सकती है.

पर इस जानकारी से आज भी अनेक महिलाएं अनजान हैं जबकि टेस्ट के साथ हैल्थ का कौंबिनैशन इस समय की मांग है. तो इस के लिए आप को अपडेट रहना चाहिए.

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अनिवार्य है यह

जिस की सूचना अनिवार्य है, वह क्षेत्र है फाइनैंस का. इस में बैंक, सैविंग्स, इन्वैस्टमैंट या इंश्योरैंस जैसे
अनेक मामले आ जाते हैं. शायद आज भी 100 में से 50 महिलाएं अपने बैंक अकाउंट के बारे में जानकारी नहीं रखतीं.

हाउसवाइफ के अकाउंट प्रायः पति ही मैनटेन करते हैं. इन्वैस्टमैंट और सैविंग्स के लिए क्या श्रेष्ठ है, इस बात
को तो को तो जाने दीजिए, परिवार का इन्वैस्टमैंट क्या है, उस की भी उन्हें खबर नहीं होती. ऐसा ही इंश्योरैंस पौलिसी के बारे में भी होता है.

अंजलि नाम की 35 साल की एक महिला के पति का ऐक्सीडैंट हो गया. उस के पति ने पिछले 2 सालों से लाइफ इंश्योरैंस का प्रीमियम नहीं भरा था. पति की मौत के बाद उसे ₹20 लाख मिले. अंजलि घर के कामों में इस कदर डूब गई थी कि इन सब मामलों में अपडेट रहना ही भूल गई थी.

पति के लाखों रुपए के शेयर का हिसाब लगाने में वह पागल हो गई क्योंकि उस के पास कोई जानकारी नहीं थी.

इसलिए घर के बजट से ले कर बचत तक की इन्फौरमेशन की जानकारी जरूर रखनी चाहिए.

हैल्थ की जानकारी

इसी तरह मैडिसिन या मैडिकल के बारे में बेसिक नौलेज जरूरी है. अगर इस बारे में नौलेज नहीं है तो आप गलत निर्णय ले सकती हैं.

घबराहट में तकलीफ और बढ़ जाती है. सामान्य रूप से महिला केंद्रित बीमारियों के बारे में तो पता होना
ही चाहिए. किस मामले को हलके में लिया जा सकता है और किस मामले में अधिक प्रयास की जरूरत है, इस का निर्णय ज्ञान द्वारा ही अच्छी तरह से लिया जा सकता है.

तमाम महिलाओं को थायराइड या डिप्रैशन की परेशानी हो जाती है और तमाम महिलाएं कैंसर में भी स्वस्थ रह सकती हैं. इस में अपने धैर्य के अलावा सही जानकारी भी
महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है.

छोटेमोटे रोगों के इलाज में अपडेट होने या इस बारे में आप का ज्ञान ही आप को बल दे सकता है.

तकनीकी ज्ञान में क्या जरूरी

आज सब से महत्त्वपूर्ण मामला है टैक्नोलौजी का. आप को एफबी या इंस्टाग्राम का उपयोग करना आता है, तो इस का मतलब यह नहीं हुआ कि आप टैकसेवी नहीं हो गईं. टाइपिंग, ऐडिटिंग, फोटो ऐडिटिंग, बेसिक अकाउंटिंग, ई-मेल करना, औनलाइन पेमैंट, नैट बैंकिंग, औनलाइन बुकिंग या जीपीएस सिस्टम का उपयोग करने जैसी बाताें की जानकारी आज बहुत जरूरी हैं.

एक स्मार्टफोन द्वारा आप पूरी दुनिया घूम सकती हैं क्योंकि एक बटन दबा कर आप फूड, टिकट बुकिंग, दुनिया के स्थानों की जानकारी, मनी ट्रांसफर या व्हीकल प्राप्त कर सकती हैं. पर इस में जरा सी गलती हो गई तो बड़ी परेशानी हो सकती है. इस के लिए हर बात का परफेमैक्ट ज्ञान होना जरूरी है. यह ज्ञान आप की जिंदगी को आसान बना सकता है.

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‘‘फिटनैस से आत्मविश्वास बढ़ता है’’: पद्मप्रिया

पद्मप्रिया

सैकंड रनरअप, मिसेज इंडिया यूनिवर्स

कहते हैं न कि जहां चाह वहां राह यानी जिस ने सच्चे मन व लगन से जो पाने की इच्छा रखी हो वह पूरी हो जाती है. अपनी मेहनत के दम पर पद्मप्रिया ने ‘मिसेस इंडिया यूनिवर्स’ प्रतियोगिता में सैकंड रनरअप का खिताब अपने नाम कर के न सिर्फ अपने परिवार का बल्कि अपने राज्य का भी नाम रोशन किया है. इस दौरान उन के सामने मुश्किलें भी आईं लेकिन उन के जनून ने उन्हें हारने नहीं दिया और उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया.

गृहशोभा का साथ आया काम

पद्मप्रिया का जन्म कर्नाटक के बैंगलुरु में हुआ. वहीं वे बड़ी हुईं और उन्होंने अपनी पढ़ाई की. उन के पिता डाक्टर हैं और मां होममेकर, जिन की प्रेरणा पद्मप्रिया के बहुत काम आई. उन के हौसले को पंख तब और मिले जब उन्होंने गृहशोभा का साथ पकड़ा. वे हाई स्कूल के दिनों से ही इस पत्रिका की फैन रही हैं. वे इस पत्रिका में प्रकाशित होने वाले फैशन पेजेस से बहुत प्रभावित थीं और मन ही मन ये ठान चुकीं थीं कि एक दिन वे भी इस में छपने वाली मौडल्स की तरह ही बनेंगी ताकि वे भी अपनी खास पहचान बना सकें.

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पहले बड़े मौके ने बढ़ाया हौसला

स्कूल के दिनों से ही मीडिया में नाम पाने की चाह के कारण जब उन्होंने ‘सिनेमा में महिला कलाकारों की जरूरत वाले विज्ञापन को देखा तो उन्होंने इस के लिए मशहूर कन्नड़ निर्देशक एन चंद्रशेखरजी से हीरोइन के रोल के लिए संपर्क किया. वे स्क्रीन टैस्ट में पास भी हो गईं. लेकिन निर्देशक की शर्त थी कि उन्हें शूट के लिए फोरेन लोकेशंस पर जाना पड़ेगा. इतने बड़े मौके को जिसे वे हाथ से नहीं जाने देना चाहती थीं, पेरैंट्स भी इस के लिए राजी हो गए. लेकिन जब सगेसंबंधियों ने सलाह दी कि अभी से फिल्म लाइन में जाने से हायर स्टडी चौपट हो सकती है तब पेरैंट्स ने उन की बात को तवज्जो देते हुए उन्हें इस औफर को ठुकराने को कहा और हायर स्टडी की खातिर उन्हें इस औफर को मना करना पड़ा. लेकिन मन में विश्वास था कि एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी.

वूमन टी बैग की तरह

पद्मप्रिया का मानना है, ‘‘वीमेन टी बैग की तरह होती है. वैवाहिक जीवन में बंधना मेरे लिए आसान न था, क्योंकि मैं मल्टी नैशनल कंपनी में सौटवेयर डैवलपर भी थी. लेकिन परिवार के सहयोग के कारण मैं अपनी प्रोफैशनल और पर्सनल लाइफ में बैलेंस बना पाई. अपनी फैमिली कंप्लीट होने के बाद मैं फैशन इंडस्ट्री के प्रति और ऐक्टिव हो गई, जिस कारण मु झे मुकाम हासिल करने में आसानी हुई.

छोटी शुरुवात ने दिलाई बड़ी पहचान

‘‘मैं धीरेधीरे लोकल फैशन शोज में भाग लेने के साथसाथ टीवी सीरियल्स और स्टेज परफौरर्मैंस भी देने लगी. फिर एक दिन मेरी नजर उस विज्ञापन पर पड़ी, जिस में विवाहित महिलाओं के लिए ‘मिसेस इंडिया यूनिवर्स फैशन शो’ में भाग लेने का मौका था. मन में प्रबल इच्छा थी कि इस प्रतियोगिता में भाग लूं और फि र मैं प्रथम चरण के औनलाइन औडिशन में सभी प्रश्नों के उत्तर देने में सफल हो गई. मेरी इसी सफलता ने मु झे गोवा फैशन शो में भाग लेने का मौका दिया.

मन में उत्साह भी और डर भी

‘‘यह प्रतियोगिता गोवा में आयोजित हुई. सभी चयनित प्रतिभागियों को 10 दिन पहले ही आयोजनस्थल पर पहुंचना था. सभी राज्यों से

1-1 प्रतियोगी था. 10 दिनों तक 2 अलगअलल राज्यों के प्रतियोगियों को एक रूम में ही रहना था और यही सब से बड़ी परीक्षा थी कि आपस में किस तरह तालमेल बैठा कर रहें. रोज हमें नई थीम दी जाती थी, जिसे हमें तैयार करना होता था. सैल्फ मेकमअप, ड्रैसिंग मेकओवर, विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों पर अलगअलग तरह से अपने हुनर का प्रदर्शन करना हमारे लिए एक बड़ा चैलेंज था.

‘‘आखिरी दिन यानी 10वां दिन हमारे फाइनल प्रदर्शन का दिन था. इस राउंड में 5-6 प्रतिभागी ही पहुंचे थे, जिन्हें अब सब से मुश्किल चैलेंज का मुकाबला करना था और इस में मैं ने ‘मिसेज इंडिया यूनिवर्स’ सैकंड रनरअप का खिताब अपने नाम कर ही लिया.

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फिटनैस का भी ध्यान रखें

‘‘मेरा उन सभी महिलाओं से जो इस तरह की प्रतियोगिताओं में भाग लेने की इच्छा रखती हैं यही कहना है कि वे अपनी फिटनैस का खासतौर पर ध्यान रखें. क्योंकि जब हम खुद को फिट रखते हैं तो हमारा कौन्फिडैंस काफी बढ़ जाता है. अपने आउटफिट्स का खास ध्यान रखें, क्योंकि इस तरह के फैशन शोज में इन पर काफी ध्यान दिया जाता है. कभी डरें नहीं बल्कि मौका मिलने पर इन प्रतियोगिताओं में पूरी हिम्मत से आगे बढ़ें.’’

अगला युग कैसा

वर्क फ्रौम होम देश के मध्यवर्ग की औरतों के लिए एक नई चुनौती पैदा कर रहा है. टैक्नोलौजी के आने और कोरोना के लौकडाउनों में इस के पौपुलर हो जाने की वजह से वर्क फ्रौम होम के साथसाथ ऐंजौय ऐट होम भी जम कर होने लगा है. जो बातें पहले केवल बहुत टैक्सैवियों के पल्ले पड़ती थीं अब आम लोगों तक पहुंचने लगी हैं और मोबाइल या कंप्यूटर पर जूम जैसे दसियों ऐप्लिकेशनों के जरीए घर बैठे दफ्तर का काम भी हो रहा है और रिश्तेदारों से मिलाजुला भी.

इस में चुनौती यह है कि औरतों को अब सारा दिन घर संभालना होगा. पहले उन्हें पति या बच्चों के जाने के बाद खुद के लिए जो समय मिलता था वह अब गया. अब हर समय घर में खानापीना तैयार रखो, शांति रखो क्योंकि पति वर्क फ्रौम होम में व्यस्त हैं और बच्चे औनलाइन क्लास में. औरत अगर खुद कामकाजी है तो उसे

9-10 बजे तक सब को उठा कर तैयार करवाने पर जोर देना होगा ताकि वह भी वर्क फ्रौम होम में लग जाए.

घर से बाहर निकलने का जो आनंद पहले औरतों को मिलता था चाहे कामकाजी हों या घरेलू वह अब कोरोना तक ही नहीं गायब हो गया, उस के बाद भी गायब हो जाएगा.

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अब पक्का है कि बहुत से दफ्तर घरों में काम करने के नए तरीके ईजाद करेंगे ताकि दफ्तरों का रखरखाव कम करना पड़े और अनुशासन मैंनटेन करने में सिर खपाना न पड़े.

घरों में काम करेंगे तो वर्क प्लेस पर सैक्सुअल हैरिसमैंट के मामले कम हो जाएंगे. स्कूल भी कईकई दिन बंद रख कर बच्चों को घर पर पढ़ने को कहेंगे ताकि उन्हें संभालने की मुसीबत न झेलनी पड़े. ये बदलाव परमानैंट होंगे, पोस्ट कोरोना युग का हिस्सा होंगे.

इस का मतलब यह भी है औरतों पर हर समय पति और बच्चों की मांगें चढ़ी रहेंगी. उन्हें घंटों की राहत भी नहीं मिलेगी. पति और बच्चों की सुविधाओं का तो इंतजाम करो पर वे बात करने को खाली नहीं.

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अगर रेल और हवाईजहाज चालू हो भी गए तो भी बहुत से रिश्तेदार कहेंगे कि मिल कर क्या करोगे, आप को वर्चुअल टूर करा देते हैं. यहां तक कि खाने की डिशेज ऐक्सचेंज नहीं होंगी, रैसिपियां ऐक्सचेंज होंगी.

सास भी कहेगी बहू जरा रैफ्रीजरेटर खोल कर तो दिखाओ, कब से गंदा पड़ा होगा, वर्चुअल इंस्पैक्शन होगा अब. यह युग ज्यादा खतरनाक होगा.

3 औफिस मेकअप ट्रिक्स

आज के जमाने में ब्यूटी केवल ग्लैमरस महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि हर स्त्री के लिए एक जरूरत बन गई है. हर स्त्री सुंदर दिखना चाहती है, अपनी बैस्ट इमेज सामने रखना चाहती है. सुंदर दिखना हम में एक पावर की भावना जगाता है. वर्किंग वूमन के लिए खूबसूरत दिखना और भी आवश्यक हो जाता है, क्योंकि वह बाहर की दुनिया में कदम रखती है.

हर स्त्री जानती है कि सुंदरता में चार चांद लगाता है सही मेकअप. बिना मेकअप के औफिस में जाने से आप की गलत छवि बन सकती है कि आप ढंग से तैयार हो कर नहीं आतीं.

अगर आप को मेकअप का शौक है या आप की कोई खास मीटिंग या प्रेजैंटेशन है तो आप का तैयार होना बनता है, साथ ही औफिस में आप वैसा मेकअप भी नहीं कर सकतीं जैसा एक पार्टी या शादी में करती हैं. आइए, सीखते हैं कई तरह के मेकअप, जिन्हें आप औफिस में कर सकती हैं.

नैचुरल मेकअप लुक

रोज औफिस जाते हुए अकसर महिलाएं एक नैचुरल लुक रखना पसंद करती हैं जहां मेकअप थोपा हुआ न लगे. इसे हम न्यूड मेकअप भी कह सकते हैं. कौरपोरेट वर्कप्लेस के लिए यह उत्तम रहता है. वैसे भी सुबह सभी काम निबटाने की जल्दी में आप को जरूरत होती है फटाफट मेकअप की क्योंकि ऐसे में मेकअप करने के लिए कम समय मिलता है. सब से पहले अपने चेहरे को अच्छी तरह मौइस्चराइज कर लें. साफ चेहरे पर मौइस्चराइजर लगा कर करीब 10 सैकंड हलके हाथ से मसाज करें. रोजाना फाउंडेशन लगाने की जरूरत नहीं, यह औफिस पार्टी के लिए ठीक है.

रोज के लिए बीबी क्रीम काफी रहेगी. ध्यान रहे क्रीम का शेड आप की स्किन टोन से मैच करना चाहिए. डौटडौट कर के चेहरे पर लगाएं और गीले स्पंज से चेहरे पर फैला लें. आंखों के नीचे कंसीलर के हलके स्ट्रोक लगा कर उंगलियों से डैब करें. इसे उंगलियों से आंखों की कोरों और नाक के आसपास भी फैला लें. चेहरे पर जहां भी पिगमैंटेशन हो वहां भी लगा लें ताकि सारे दाग छिप जाएं. इस के ऊपर कौंपैक्ट लगा लें ताकि आप का मेकअप अच्छी तरह सैट हो जाए और सारा दिन टिका रहे. कौंपैक्ट लगाने के लिए एक घने मेकअप ब्रश का प्रयोग करें. नाक के पास से गालों से होते हुए कान तक ब्रश के स्ट्रोक लगाने से चेहरे पर मेकअप एकसार हो जाएगा. एक ‘लिप ऐंड चीक टिंट क्रीम’ अपनी ड्रैसिंग टेबल पर हैंडी रखें. तैयार होते समय अपने चीक ऐपल पर पिंक टिंट वाली क्रीम लगाएं ताकि आप का रूप फ्रैश और खिला हुआ लगे.

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आंखों को रैडी करने के लिए अपनी अप्पर आईलिड पर पतला आईलाइनर और अपनी वाटरलाइन पर काजल पैंसिल लगाएं. अगर आप की पलकें बहुत हलकी हैं तो आप हलका मसकारा लगा सकती हैं.

अपने लुक को पूरा करने के लिए होंठों पर न्यूड लिपस्टिक या लिप बाम लगा सकती हैं. लिप ग्लौस लगाने से होंठ अधिक प्लंप दिखेंगे. रोज रात को सोते समय होंठों पर अच्छे ब्रैंड की लिप बाम लगाएं ताकि सुबह होंठ नर्म व गुलाबी रहें.

वार्म मेकअप लुक

न्यूट्रल वार्म मेकअप लुक आप के चेहरे के लिए अच्छा चेंज रहेगा. औफिस में आप का चेहरा सन किस्ड समान लगेगा जोकि ब्राउन, पीच, औरेंज शेड्स की ड्रैसेज के साथ बहुत फबेगा. इस लुक के लिए अपनी आइलिड्स पर प्राइमर लगा कर औरेंज या पीच कलर का आईशैडो लगाएं. अप्पर आईलैश पर चौकलेट ब्राउनशैडो अच्छा लगेगा. इसी को हलका सा लोअर लैश तक फैला लें. आईलाइनर और मसकारा लगा कर अपना लुक कंप्लीट करें.

गालों पर पीच या कोरल कलर का ब्लश लगाएं और भी समरी लुक के लिए पीच या ब्राउन लिपस्टिक लगाएं.

ग्लोइंग मेकअप लुक

कोरियन ब्यूटी से जन्मा यह लुक शीशे की तरह चमकते चेहरे को फैशन में लाया है. पहले चेहरे पर मौइस्चराइजर लगा कर अच्छी तरह हाइड्रेट करें. फिर चेहरे पर कोई चमकदार प्राइमर लगाएं. इस में लिक्विड फाउंडेशन मिक्स कर लें ताकि चेहरे को एकसा लुक मिले. इस से चेहरा शीशे की तरह चमकने लगेगा और आप की स्किन एकदम फ्रैश दिखने लगेगी. अगर आप की आंखों के नीचे काले घेरे हैं तो आप वहां कंसीलर भी लगाएं. अब कौंपैक्ट की मदद से मेकअप को सैट करें. गालों पर पिंक ब्लश से गाल भरे हुए लगेंगे और स्किन एकदम जवान लगेगी. घनी पलकों के लिए मसकारा लगाएं.

मेकअप से लुक बदलने के कुछ सीक्रेट्स

– चीकबोंस पर ब्रौंजर लगाने से आप की जौ लाइन उभरी हुई नजर आएगी. पर ब्रौंजर बहुत हलका लगाएं, औफिस में चेहरे पर अधिक कंटूरिंग अच्छी नहीं लगती.

– जिस दिन आप चुस्ती न फील कर के सुस्त हों उस दिन अपने काले काजल को सफेद काजल पैंसिल से बदल लें, जिसे लोअर वाटरलाइन पर थोड़ा थिक काला आईलाइनर लगाएं. मसकारा लगा कर आंखों को सजीव सा लुक दें.

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जिस दिन आप का मन अपनी आंखों को कुछ अलग लुक देने का करे, उस दिन आप कैट आई लुक ट्राई कर सकती हैं. अपनी आंखों पर लाइनर लगाते हुए कोरों के पास एक छोटा सा वी बनाते हुए लाइनर को आंखों के कौर्नर तक वापस ले आएं. बीच में लाइनर पैंसिल से भर लें.

– स्मोकी आई लुक के लिए अप्पर और लोअर वाटरलाइन पर पतला लाइनर लगा कर फैला लें. काला आईशैडो लगाएं. मसकारा लगाने से आप का लुक पूरा हो जाएगा.

– अपने पर्स में एक ब्राइट कलर की लिपस्टिक जरूर रखें जैसे रैड या पर्पल. यदि किसी शाम अचानक पार्टी ईवनिंग आउट का प्रोग्राम बन जाए तो इस लिपस्टिक से चेहरे को ब्राइट चेंज दे डालें.

हाइलाइटर लगाते समय

जब कभी औफिस में कोई खास मीटिंग या पार्टी हो तो हाइलाइटर का प्रयोग कर सकती हैं. इस से चेहरे पर अलग ही आभा उभर कर आती है. हाइलाइटर की कुछ ड्रौप्स फाउंडेशन में मिक्स करें. इस से नैचुरल लुक के साथ चेहरे पर ग्लो भी आएगा. इसे लगाने का सही तरीका आप की फेस शेप के अनुसार होगा.

– अंडाकार /चौकोर/हार्ट शेप चेहरा- अपनी चीकबोंस, ब्राउ बोन, माथे के बीच और चिन पर लगाएं.

– चतुर्भुज चेहरा- माथे के बीच, नोज ब्रिज और चिन पर लगाएं.

– राउंड या डायमंड शेप- माथे के बीच, नोज टिप और चिन पर लगाएं.

औफिस में आप अपनी पसंद के अनुरूप मेकअप कर के जाएं और अपने काम के साथ अपने सौंदर्य की भी छटा बिखेरें.

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