एक मां कैसे बनी मामाअर्थ की कोफाउंडर : गजल अलघ

Ghazal Alagh : आज की महिलाएं हर फील्ड में अपनी कामयाबी के झंडे फहरा रही हैं. वे न सिर्फ मदरहुड ऐंजौय करते हुए फैमिली का खयाल रखती हैं बल्कि बाहर जा कर तरक्की के नए सोपानों पर भी चढ़ती हैं. वर्क लाइफ बैलेंस बनाते हुए अपनी जिंदगी के सिरों को नए अंदाज में पकड़ती हैं. अपने दम पर नाम, शोहरत और पैसा कमाती हैं और अपने बच्चे की रोल मौडल भी बनती हैं. वे केवल नौकरियों में ही नहीं बल्कि पौलिटिक्स, स्पोर्ट्स, बिजनैस आदि में भी सफल हो रही हैं. इन्हीं सफल, सैल्फ मेड महिलाओं की सूची में एक नाम गजल अलघ का भी शामिल है.

गजल अलघ ने मां बनने के बाद एक स्टार्टअप की शुरुआत की और करोड़ों की कंपनी खड़ी कर दी. उन को स्टार्टअप का विचार अपने बच्चे को बेबी केयर प्रोडक्ट्स से होने वाली ऐलर्जी से आया. पति वरुण अलघ के साथ मिल कर उन्होंने एक बेबी केयर ब्रैंड मामाअर्थ की शुरुआत की जो आज दुनियाभर में काफी मशहूर ब्रैंड बन गया है. यह एशिया का पहला मेड सेफ प्रमाणित ब्रैंड भी है.

गजल बताती हैं कि उन के बड़े बेटे अगस्त्य की स्किन ऐग्जिमा की वजह से बहुत सैंसिटिव थी. उस को बारबार रैशेज हो जाते थे. वे दिनरात बस यही खोजती रहती थीं कि ऐसे सेफ प्रोडक्ट्स मिल जाएं जो उस की स्किन को कोई नुकसान न करें. पर इंडिया में ऐसे टौक्सिन फ्री प्रोडक्ट्स मिल ही नहीं रहे थे. उन्होंने बाहर से भी प्रोडक्ट्स मंगवाए लेकिन वे भी उस की स्किन को सूट नहीं कर सके. तब खयाल आया कि अगर उन्हें खुद इतनी दिक्कत हो रही है तो और भी कितने पेरैंट्स होंगे जो इसी परेशानी से जूझ रहे होंगे.

ghazal alagh

उन के हस्बैंड वरुण और गजल ने मिल कर फिर रिसर्च शुरू की, मार्केट को समझ, पेरैंट्स से बात की, डाक्टरों से सलाह ली और उन्हें समझ में आया कि इंडिया में वास्तव में सेफ और टौक्सिन फ्री बेबी केयर प्रोडक्ट्स की बहुत ज्यादा जरूरत है. बस यहीं से उन्हें यह आइडिया आया कि कुछ ऐसा बनाया जाए जिस पर पेरैंट्स भरोसा कर सकें और वे बिना किसी टैंशन के अपने बच्चों की केयर कर पाएं. इसी सोच के साथ 2016 में मामाअर्थ की शुरुआत हुई.

रंग लाई मेहनत

मामाअर्थ यानी एक ऐसा ब्रैंड जो एकदम सेफ, जैंटल और टौक्सिन फ्री बेबी केयर प्रोडक्ट्स पर ध्यान देता है. गजल अलघ को ‘बिजनैस टुडे और फौर्च्यून इंडिया मोस्ट पावरफुल वूमन 2023,’ ‘ईटी 40 अंडर 40,’ ‘सीएनबीसी वूमन फास्ट फौरवर्ड वूमन अचीवर अवार्ड,’ ‘बिजनैस टुडे मोस्ट पावरफुल वूमन 2024,’ ‘बिजनैस वर्ल्ड 40 अंडर 40’ अवार्ड से सम्मानित किया गया है.

कला में रुचि रखने वाली गजल अलघ की रचनाओं का प्रदर्शन राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ और वे देश की शीर्ष 10 महिला कलाकारों की सूची में शामिल हैं. एक कौरपोरेट ट्रेनर, एक कलाकार और एक मां होने के साथसाथ गजल आज एक नामचीन बिजनैस वूमन हैं. गजल सोनी चैनल पर आने वाले शो ‘शार्क टैंक सीजन 1’ के जजों में भी एक थीं. गजल ‘एफआईसीसीआई स्टार्ट अप कमेटी 2024’ की सहअध्यक्षा भी हैं.

स्टूडैंट के तौर पर गजल पढ़ाई में अच्छी थीं पर साथ ही स्पोर्ट्स और ऐक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटीज जैसे पेंटिंग्स वगैरह में भी अच्छी थीं. उन्होंने 12वीं कक्षा में मैथ्स और साइंस लिया क्योंकि उन के मम्मीपापा चाहते थे कि वे इंजीनियरिंग करें. हालांकि उन का शौक हमेशा से कंप्यूटर और आर्ट्स में था. फिर भी पेरैंट्स की चौइस को प्रमुखता देते हुए उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की. मगर 12वीं के बाद उन्हें रियलाइज हुआ कि वे बाकी की जिंदगी यह बिलकुल नहीं कर सकतीं. इस में उन्हें जरा भी मजा नहीं आ रहा था.

गजल अलघ कहती हैं कि इस से फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना हार्ड वर्क कर रहे हैं. अगर आप एक ऐसी फील्ड में हार्ड वर्क कर रहे हैं जो आप को पसंद नहीं है तो आप ज्यादा आगे तक नहीं बढ़ पाएंगे, जबकि आप किसी ऐसी फील्ड में हैं जो आप को बहुत पसंद है तो उस में कम हार्ड वर्क कर के भी आप काफी सफल हो सकते हैं. इसलिए 12वीं कक्षा के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग के ऐग्जाम नहीं दिए और इस की जगह कंप्यूटर चूज किया.

बिजनैस की शुरुआत से पहले

गजल ने ग्रैजुएशन के साथसाथ एनआईआईटी से डिप्लोमा कोर्स भी किया था. उसी को करतेकरते अपनी पहली नौकरी भी शुरू की. यह पार्टटाइम काम था जो केवल वीकैंड पर होता था. वह बेसिकली कोऔपरेटिव ट्रेनिंग थी. इस तरह गजल ने अपने कैरियर की शुरुआत कौरपोरेट वर्ल्ड से की थी. वहां उन्होंने सीखा कि प्रोफैशनल ऐन्वायरन्मैंट में कैसे काम किया जाता है, कैसे टीम के साथ मिल कर टारगेट्स पूरे करने होते हैं और कैसे हर दिन कुछ नया सीखते हुए आगे बढ़ना होता है.

गजल बताती हैं कि कौरपोरेट जौब ने उन्हें स्ट्रक्चर और डिसिप्लिन दिया जो आज बिजनैस को चलाने में बहुत मदद करता है. कौरपोरेट ऐक्सपीरियंस ने उन्हें प्रैक्टिकल सोच दी, प्रोसैस को समझना सिखाया और यह भरोसा दिया कि मेहनत और लगन से किसी भी गोल को हासिल किया जा सकता है.

एक मदर से वर्किंग मदर बनने का रास्ता

यह जर्नी बिलकुल आसान नहीं थी. गजल बताती हैं कि जब उन्होंने मामाअर्थ की शुरुआत की तब बेटा बहुत छोटा था और उस उम्र में बच्चे को मां की सब से ज्यादा जरूरत होती है. दिन के 24 घंटे काम में लगाना और साथ ही मां की जिम्मेदारी भी निभाना बहुत ही चैलेंजिंग था. कई बार मीटिंग्स में भी उन्हें अपने बेटे को साथ ले कर जाना पड़ता क्योंकि और कोई रास्ता नहीं होता था. कई बार गिल्ट होता था कि क्या वे अपने बच्चे को उतना समय दे पा रही हैं जितना उसे चाहिए. लेकिन धीरेधीरे उन्होंने सम?ा कि क्वालिटी टाइम क्वांटिटी से ज्यादा इंपौर्टैंट होता है.

उन्होंने खुद को बहुत सारे सैल्फ डाउट से निकाला और यह सीखा कि एक अच्छी मां बनने के लिए परफैक्ट होना जरूरी नहीं है बल्कि प्रेजैंट होना जरूरी है. इस सब में एक स्ट्रौंग सपोर्ट सिस्टम ने उन की बहुत मदद की. यह सपोर्ट सिस्टम था उन के हस्बैंड, फैमिली और टीम. उन के मुताबिक वर्क लाइफ बैलेंस कोई फिक्स्ड गोल नहीं है. यह एक एवौल्विंग जर्नी है जिस में आप के लिए जो सही है आप को उस के लिए काम करना है.

पेरैंट्स की शिक्षा ने बनाया आधार

गजल अलघ चडीगढ़ की एक जौइंट फैमिली से हैं. उन के पिता बिजनैसमैन थे और मां हाउस वाइफ. गजल बताती हैं कि पापा हमेशा कहते थे कि जब बिजनैस प्रौफिट कमाता है तभी पैसे घर आते हैं. मेरे पेरैंट्स ने हमेशा मुझे इंडिपैंडैंट और सैल्फ रिलायंट बनने के लिए मोटिवेट किया. जो वैल्यूज उन्होंने मुझे दीं वे मेरे हर डिसीजन में दिखती हैं.

पापा का कहना था कि अपने सपनों के पीछे भागो लेकिन अपनी वैल्यूज कभी मत छोड़ो. उन्होंने मुझे मेहनत, ईमानदारी और डैडिकेशन की वैल्यू समई आई और ये तीनों चीजें आज भी मेरे हर बिजनैस डिसीजन का बेस हैं. जब भी मुश्किल आई है फैमिली की सपोर्ट और मेरे पेरैंट्स की सीखें ही मेरी सब से बड़ी ताकत बनी हैं. आज मैं जो कुछ भी बना पाई हूं उस में मेरी परवरिश और मेरे पेरैंट्स की सोच का बहुत बड़ा रोल है जैसे कस्टमर के लिए हमेशा ओनैस्ट रहना, क्वालिटी पर कभी कंप्रोमाइज न करना और हर दिन कुछ नया सीखते रहना.

आर्टवर्क का जनून

आर्ट गजल का पैशन रहा है और पेंटिंग एक थेरैपी जैसी जहां वह क्रिएटिव हो कर अपने थौट्स को ऐक्सप्रैस कर पाती हैं. गजल बताती हैं कि वे हमेशा से पेंटिंग करती रही हैं लेकिन जब उन के हस्बैंड ने एक दिन बिना बताए न्यूयौर्क की आर्ट ऐकैडमी में उन के लिए अप्लाई कर दिया तो उन की इस जर्नी ने एक नया मोड़ लिया. उन का ज्यादातर आर्टवर्क ऐब्स्ट्रैक्ट होता है जिस में वे अलगअलग कलर्स और टैक्स्चर्स के साथ ऐक्सपैरिमैंट करती हैं. वे ब्रश की जगह नाइफ और रोलर से काम करती हैं.

जब वे पेंटिंग शुरू करती हैं तब उन्हें नहीं पता होता कि फाइनल रिजल्ट कैसा होगा. यह एक जर्नी होती है जो धीरेधीरे अनफोल्ड होती है. जब माइंड बहुत बिजी होता है तब एक खाली कैनवास उन्हें पीस देता है और न्यू आइडियाज के लिए स्पेस क्रिएट करता है.

बच्चों की परवरिश

गजल के 2 बेटे हैं- अगस्त्य और आयान. अगस्त्य बड़ा है और आयान छोटा. गजल बताती हैं कि वे और उन के हस्बैंड वरुण मिल कर उन की अपब्रिंगिंग में कुछ बेसिक वैल्यूज पर फोकस करते हैं जैसे रिस्पैक्ट, ओनैस्टी और काइंडनैस. वे चाहते हैं कि बच्चे इंडिपैंडैंट बनें, सवाल पूछें और धीरेधीरे यह सम?ों कि उन्हें क्या अच्छा लगता है, क्या चीज उन्हें ऐक्साइट करती है. वे अपने रूट्स से जुड़े रहें.

आज के सोशल मीडिया वाले दौर में जहां हरकोई किसी और से कंपेयर करता है तो ऐसे में वे उन्हें बारबार याद दिलाते हैं कि उन की अपनी एक जर्नी है और उसी को अपनाना सब से जरूरी है.

स्ट्रैस मैनेजमैंट

एक ऐंटरप्रन्योर और मां होने के नाते उन्हें भी स्ट्रैस होता ही है. स्ट्रैस से डील करने का उन का सब से अच्छा तरीका है खुद के साथ टाइम स्पैंड करना. जब वे सुबह उठती हैं तो पहले 15 मिनट किसी से बात नहीं करती, न फोन चैक करती हैं बस खुद से बातें करती हैं. उन का मानना है कि जब इंसान खुद से बात करता है तो बहुत क्लैरिटी मिलती है. आप समझ पाते हो कि आप क्या सोच रहे हो, क्या फील कर रहे हो.

गजल कहती हैं, ‘‘बिजनैस ने मुझे सिखाया है कि हर चीज कंट्रोल में नहीं होती इसलिए जो कंट्रोल में है उसी पर फोकस करना चाहिए. दिन के एंड में मैं हमेशा इस बात पर ध्यान देती हूं कि मैं ने क्या किया न कि क्या रह गया और इसी के साथसाथ अच्छी नींद और हैल्दी खाना भी स्ट्रैस मैनेज करने में काफी मदद करता है.’’

बच्चों के लिए बैस्ट गिफ्ट

गजल के अनुसार, एक वर्किंग मदर का अपने बच्चों के लिए बैस्ट गिफ्ट है- एक रोल मौडल बनना. जब बच्चे अपनी मां को हार्ड वर्क करते, चैलेंजेस से लड़ते और अपने सपने पूरे करते देखते हैं तो उन्हें एक पावरफुल मैसेज मिलता है. वे सीखते हैं कि औरतें सबकुछ कर सकती हैं. दूसरा बैस्ट गिफ्ट है क्वालिटी टाइम. भले ही हम क्वांटिटी टाइम न दे पाएं लेकिन जब भी बच्चों के साथ हों पूरी तरह प्रेजैंट रहें- फोन, लैपटौप और टैंशन साइड में रख कर. तीसरा गिफ्ट है इंडिपैंडैंस का लैसन. वर्किंग मदर्स अपने बच्चों को खुद के लिए स्टैंड लेना, रिस्पौंसिबिलिटी लेना और खुद के सपनों पर भरोसा रखना सिखाती हैं.

एक वर्किंग मदर की सफलता का सीक्रेट

गजल मानती हैं कि एक वर्किंग मदर की सफलता का सब से बड़ा सीक्रेट है गिल्ट फ्री रहना. हम अकसर सोचते हैं कि हम परफैक्ट मां और परफैक्ट प्रोफैशनल दोनों नहीं बन पा रहे हैं. लेकिन हमें सम?ाना चाहिए कि परफैक्ट होना जरूरी नहीं है. दूसरा, एक अच्छा सपोर्ट सिस्टम बनाना जरूरी है- हसबैंड, पेरैंट्स, फ्रैंड्स या हैल्पर्स. तीसरा, अपने लिए टाइम निकालें. अगर आप खुश और हैल्दी नहीं हैं तो आप दूसरों को भी खुशी नहीं दे पाएंगी. चौथा, प्रायरिटाइज करना सीखें- हर चीज में परफैक्ट होने की कोशिश मत करो. जो सब से जरूरी है उस पर फोकस करो. 5वां, फ्लैक्सिबल रहें और अडौप्ट करना सीखें और सब से जरूरी अपनेआप पर और अपने डिसीजंस पर भरोसा रखें. बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम पर फोकस करें क्वांटिटी पर नहीं.

बिजनैस की सफलता के लिए क्या जरूरी

गजल के अनुसार, बिजनैस की सफलता के लिए सब से जरूरी है एक क्लीयर विजन और पैशन. आप को पता होना चाहिए कि आप क्या चाहते हैं और उस के लिए पूरी लगन से काम करना चाहिए. अपने कंज्यूमर की जरूरतों और समस्याओं को समझना और उन के लिए वैल्यू क्रिएट करना भी उतना ही जरूरी है. एक अच्छी टीम बनाना बेहद अहम है, सही लोगों को हायर करें और उन्हें आगे बढ़ने का मौका दें.

इनोवेशन पर लगातार फोकस रखें, मार्केट ट्रैंड्स को समझें और नए आइडियाज के लिए हमेशा ओपन रहें. बिजनैस में अडौप्टेबिलिटी भी एक बड़ी ताकत है क्योंकि मार्केट लगातार बदलती है और आप को उस के साथ खुद को भी बदलना आना चाहिए. नैटवर्किंग को नजरअंदाज न करें, अच्छे कनैक्शंस बनाएं और मैंटर्स से सीखते रहें. सब से आखिर में पर्सिस्टैंस यानी लगातार आगे बढ़ते रहना, चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, फेल्योर से सीख कर फिर से खड़े होना ही असली सफलता है.

कला में रुचि रखने वाली गजल अलघ की रचनाओं का प्रदर्शन राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ और वे देश की शीर्ष 10 महिला कलाकारों की सूची में शामिल हैं. एक कौरपोरेट ट्रेनर, एक कलाकार और एक मां होने के साथसाथ गजल आज एक नामचीन बिजनैस वूमन हैं…

बिजनैस ने मुझे सिखाया है कि हर चीज कंट्रोल में नहीं होती इसलिए जो कंट्रोल में है उसी पर फोकस करना चाहिए. दिन के एंड में मैं हमेशा इस बात पर ध्यान देती हूं कि मैं ने क्या किया न कि क्या रह गया और इसी के साथसाथ अच्छी नींद और हैल्दी खाना भी स्ट्रैस मैनेज करने में काफी मदद करता है…

Kantara 2 फिल्म के सितारे गर्दिश में, फिल्म से जुड़े कलाकारों की एक के बाद एक, दो मौतें…

Kantara 2 : ऋषभ शेट्टी स्टारर और निर्देशित फिल्म कांतारा ने बौक्स औफिस पर तहलका मचा दिया था. इस फिल्म को दर्शकों ने बेहद पसंद किया था, जिसके चलते फिल्म के एक्टर और डायरेक्टर ऋषभ शेट्टी ने कांतारा पार्ट 2 बनाने की भी शुरुआत कर दी, कांतारा फिल्म सिर्फ साउथ में ही नहीं बल्कि हिंदी भाषी दर्शकों द्वारा भी सराही गई, 2022 में आई कांतारा जो एक अलग तरह की फिल्म थी दर्शक उसको आज भी नहीं भूले है . इसी वजह से कांतारा की लोकप्रियता को भुनाने के लिए कन्तारा 2 की शूटिंग भी शुरू कर दी गई.

लेकिन लगता है कांतारा 2 की शूटिंग गलत समय पर शुरू हुई है ,क्योंकि जब से इस फिल्म की शूटिंग शुरू हुई है कोई ना कोई हादसा हो रहा है जैसे की शूटिंग के दौरान एक बड़ा हादसा हो गया एक जूनियर आर्टिस्ट पानी में बह गया और उसकी मौत हो गई.

इस फिल्म की शूटिंग सौपर्णिका नदी किनारे हो रही थी, तभी एक जूनियर आर्टिस्ट नदी में अचानक बह गया और उसकी मौत हो गई. उस जूनियर आर्टिस्ट को पानी में ढूंढने की बहुत कोशिश की गई लेकिन वह वापस नहीं आया. केरल का रहने वाला 32 वर्षीय कपिल इस फिल्म की शूटिंग पूरी होने के बाद आराम करने के उद्देश्य से कोल्लूर के सामने सौपर्णिका नदी में कपिल और कुछ और लोग तैरने के उद्देश्य गए थे, लेकिन पानी का बहाव तेज होने की वजह से कपिल उस पानी में बह गया, गांव वालों ने उसे बचाने की कोशिश भी की लेकिन नाकाम रहे.

कपिल की मौत के बाद कांतारा के सेट पर मातम छा गया, अभी शूटिंग वाले एक घटना से उबरे भी नहीं थे कि कांतारा 2 के एक और एक्टर जो कॉमेडी के लिए जाने जाते थे और जिनका नाम राकेश पुजारे था, राकेश एक शादी अटेंड करने शूटिंग के बाद ही अपने गांव में गए थे वहीं पर शादी के दौरान ही राकेश पुजारे को हार्ट अटैक आया और वह अस्पताल तक भी नहीं पहुंच पाए. और उनकी मौत हो गई.

कांतारा फिल्म के दो कलाकारों की अचानक मौत ने सबको स्तब्ध कर दिया है. कांतारा की पूरी टीम इन दो सदस्यों की मौत की वजह से बहुत दुखी और परेशान है.

थायराइड और खून में खराबी के चलते Karan Johar अपना वजन कम करने के लिए हुए मजबूर…

Karan Johar  : एक जमाने में गोल मटोल रह चुके करण जौहर, जिनके लिए मोटापा एक बुरे सपने से कम नहीं है, क्योंकि बचपन में मोटापे की वजह से उन्हें कई बार बेइज्जती का सामना करना पड़ा है. इसी वजह से करण जौहर अपनी सेहत को लेकर सचेत रहते हैं , खासतौर पर करण जौहर कभी भी अपना वजन बढ़ता नहीं देखना चाहते . इसलिए करण जौहर अपने आप को दुबला पतला बनाए रखने के लिए तरह तरह के जतन करते रहते हैं.

लिहाजा हाल ही में जब करण जौहर एयरपोर्ट पर ट्रेवलिंग के लिए नजर आए तो वह कुछ ज्यादा ही दुबले पतले नजर आए इसके बाद करण जौहर अपने पतलेपन को लेकर ट्रोल होने लगे, कई लोग उनको देखकर चिंतित हो गए, कुछ लोगों को लगा कि करण जौहर को किसी भयानक बीमारी ने घेर लिया है, तो कुछ लोगों का मानना था कि करण जौहर गलत दवाइयां का सेवन करके अप्राकृतिक ढंग से पतले हो रहे हैं . लेकिन इन सभी बातों का खंडन करते हुए करण जौहर ने एक इंटरव्यू में बताया कि वह ना तो कोई दवाई ले रहे हैं पतले होने के लिए, और ना ही उन्हें कोई बीमारी हुई है बल्कि उनके पतले होने के पीछे ठोस वजह है.

हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान करण जौहर ने अपने पतले होने की वजह और वजन कम करने के लिए अपनाई गई खास टेक्निक पर खुलकर बातचीत की. इस बातचीत में करण जौहर ने अपने सामने आने वाली शारीरिक चुनौतियों और स्वस्थ परिवर्तन को लेकर विशेष रूप से बातचीत की.

करण जौहर के अनुसार वह फिलहाल थायराइड की बीमारी से पीड़ित है इसके काफी सारे उतार चढ़ाव उन्हें देखने पड़ रहे हैं. जिस पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी हो गया था. करण जौहर के अनुसार वह पिछले 15-20 सालों से थायराइड की बीमारी से ग्रस्त है जिस वजह से उन्हें अपना वजन कंट्रोल में रखने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा है.

वजन कम करने के लिए वह कुछ आयुर्वेदिक दवाइयों का सेवन कर रहे हैं और साथ ही पूरे दिन में एक ही बार भोजन करने का वह भी डाइट के अनुसार उन्होंने बड़ा कदम उठाया है. करण जौहर रात को 7 से 8 के बीच में खाना खा लेते हैं, इसके अलावा जिम जाकर भी जिम ट्रेनर की उपस्थिति में एक्सरसाइज भी करते हैं. इन्हीं सब चीजों की वजह से उनका वजन अचानक ही कम हुआ है , जो उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी था.

Hindi Kahaniyan : आखिर दोषी कौन है – क्या हुआ था रश्मि के साथ

Hindi Kahaniyan : जिसतरह दीए के साथ बाती का गहरा नाता होता है, अपनी आखिरी सांस तक वह दीए को नहीं छोड़ती, उसी के साथ ही जीती है और उस की बांहों में ही अपना दम तोड़ देती है, कुछ इसी तरह का प्यार करती थी रश्मि अपने प्रेमी आदित्य से. साथ जीनेमरने के वादे करने वाले आदित्य और रश्मि प्यार की राह पर एकदूसरे का हाथ पकड़े बहुत दूर निकल आए थे. एकदूसरे को देखे बिना कभी भी उन का दिन पूरा नहीं होता था. दोनों के परिवार भी इस रिश्ते को बहुत पसंद करते थे. दोनों के असीम प्यार को मिलाने के लिए दोनों परिवारों ने जोरशोर से तैयारियां शुरू कर दी थीं.

आदित्य की मां अनीता ही ने रश्मि के लिए उस की पसंद के कपड़े, गहने सबकुछ तैयार करवा लिया था. इकलौता ही बेटा तो था आदित्य उन का. अपने सूने आंगन में एक बेटी के कदमों को लाने की उन्हें बड़ी जल्दी थी. अपनी मंजिल को पूरा होता देख आदित्य और रश्मि की खुशी का ठिकाना न था. रश्मि के परिवार में भी जोरशोर से विवाह की तैयारियां चल रही थीं.

विवाह का मुहूर्त 1 माह बाद का निकला था. सभी को जल्दी थी, किंतु उस से पहले का कोई मुहूर्त था ही नहीं. अब सभी उस तारीख का इंतजार कर रहे थे. 1-1 कर के दिन बड़ी मुश्किल से कट रहे थे. सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. वह कहते हैं न कि समय से पहले और हिस्से से ज्यादा किसी को नहीं मिलता. कुछ ऐसा ही आदित्य और रश्मि के साथ भी हुआ.

आज करवाचौथ है. रश्मि बहुत ही उत्साह में थी. आदित्य से भले ही अब तक उस का विवाह न हुआ हो पर मन ही मन वह उसे पति तो मान ही चुकी थी. यही सब सोच कर उस ने भी आज करवाचौथ का व्रत रख लिया.

सुबहसुबह आदित्य के फोन की घंटी बजी. आदित्य गहरी नींद में सो रहा था. जैसे ही देखा रश्मि का फोन है, ‘अरे इतनी सुबह रश्मि का फोन? क्यों किया होगा,’ सोचते हुए उस ने

फोन उठाया.

रश्मि ने कहा, ‘‘आदित्य, आज शाम का कोई प्रोग्राम नहीं बनाना. मैं ने आज करवाचौथ का व्रत रखा है, निर्जला तुम्हारे लिए. रात को

चांद देख कर तुम्हारे हाथों से पानी पी कर ही उपवास तोड़ूंगी. शाम को तुम मेरे लिए बिलकुल फ्री रखना.’’

‘‘अरे रश्मि यह उपवास छोड़ो यार, कहां भूखी रहोगी दिन भर.’’

‘‘नहीं आदित्य, यह व्रत तो मुझे रखना ही है. सिर्फ आज ही नहीं, हर वर्ष तुम्हारे लिए, तुम्हारी लंबी उम्र के लिए.’’

‘‘ठीक है रश्मि, तुम से कभी मैं जीत सका हूं क्या? मैं शाम को अपनेआप को तुम्हारे हवाले कर दूंगा, अब खुश?’’

‘‘आदित्य शाम को 7 बजे तक तुम मुझे लेने आ जाना, शाम को पूजा मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर पर ही करूंगी.’’

‘‘ठीक है रश्मि, जो आज्ञा.’’

रश्मि शाम का इंतजार कर रही थी. हाथों में मेहंदी, सोलहशृंगार, लाल जोड़े में सजीधजी रश्मि बहुत ही सुंदर लग रही थी. ऐसा लग रहा था मानो आज ही उस का विवाह हो.

दुलहन की तरह सजीधजी रश्मि को देख कर अनीता भी फूली नहीं समा रही थीं. चांद का इंतजार सभी कर रहे थे. रश्मि को जोर की भूख लगी थी.

रश्मि बारबार आदित्य से कह रही थी, ‘‘आदि जाओ न बाहर चांद को ढूंढ़ो, कहां छिप कर बैठा है?’’

आदित्य ने कहा, ‘‘कहां जाऊं रश्मि, मुझे तो चांद मेरी आंखों के सामने ही दिखाई दे रहा है. इस चांद के सामने उस चांद को देखने कौन जाएगा.’’

‘‘जाओ न आदि, भूख लग रही है.’’

कुछ ही समय में चांद भी निकल आया. पूजा कर के छलनी से चांद के साथ आदित्य

को निहारते हुए रश्मि ने धीरे से कहा, ‘‘आई

लव यू आदित्य.’’

आदित्य ने भी वही 3 शब्द कहते हुए अपने हाथों से उसे पानी पिलाया और मिठाई खिला कर उस का व्रत खुलवाया. रश्मि को ये क्षण ऐसे मनमोहक लग रहे थे मानो जिंदगी की सारी खुशियां सिमट कर इन पलों में समा गई हों.

रश्मि की झल सी गहरी आंखों में आदित्य को प्यार ही प्यार नजर आ रहा था. वह उस गहराई में डूबता ही चला जा रहा था.

तभी पीछे से अनीता की आवाज आई, ‘‘आदि चलो रश्मि को खाना खिलाना है या नहीं?’’

‘‘हांहां मां आते हैं.’’

दोनों डाइनिंगरूम में चले गए और फिर सब ने साथ खाना खाया. परिवार के सदस्यों के साथ बातें करते हुए रात के 12 बज गए. रश्मि का घर आदित्य के घर से बहुत दूर था. आदित्य रश्मि को छोड़ने कार से निकला.

दोनों बातें करते हुए एकदूसरे में खोए चले जा रहे थे. रात काफी हो गई थी. हर तरफ अंधेरा पसरा था. रास्ता भी सुनसान था. कहीं कोई हलचल नहीं थी. आदित्य की कार मंजिल की तरफ बढ़ रही थी कि तभी अचानक कार झटके मारने लगी और बंद हो गई.

‘‘रश्मि घबरा गई, क्या हुआ आदित्य?’’

‘‘मालूम नहीं रश्मि, अचानक क्या हो

गया. आज के पहले कभी कार इस तरह रुकी नहीं थी.’’

आदित्य ने अंदर बैठेबैठे 2-3 बार कार स्टार्ट करने की कोशिश की, किंतु वह सफल नहीं हो पाया.

‘‘रश्मि रुको, मैं बाहर बोनट खोल कर देखता हूं. क्या हो गया है, वरना फोन कर के घर से किसी को बुलाना पड़ेगा. तुम अंदर, बैठो,’’ कहते हुए आदित्य बाहर निकल गया.

तब तक अचानक मौसम का अंदाज भी बदल गया. हवा के साथ हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. इस बिन मौसम की बारिश से घबरा कर रश्मि भी कार से बाहर निकल आई और अपने मोबाइल से लाइट दिखाने लगी.

तभी रश्मि ने कहा, ‘‘आदि, मुझे डर लग रहा है, जल्दी से घर पर फोन कर देते हैं पापा

आ जाएंगे.’’

‘‘हां रश्मि, यह कार अपने से तो ठीक होने से रही.’’

तभी अचानक तेजी से एक कार उन के पास आ कर रुकी. उस में नशे में धुत्त 4 लड़के बैठे थे. कार से बाहर निकल कर एक लड़के ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाई? कोई मदद चाहिए क्या?’’

आदित्य ने कहा, ‘‘जी नहीं थैंक यू.’’

तभी एक लड़के ने आदित्य को जोर से धक्का दिया. आदित्य को बिलकुल

आइडिया नहीं था. अत: वह उस धक्के से कुछ दूर तक लड़खड़ाने के बाद संभलने लगा. तब तक दूसरे दोनों लड़कों ने रश्मि को कार में खींच लिया. तीसरा भी जल्दी से बैठ गया और चौथा ड्राइवर सीट पर पहले से ही बैठा था. उस ने तेजी से कार को भगाना शुरू कर दिया.

रश्मि चिल्लाती रही, आदित्य कार के पीछे भाग रहा था. पीछे के कांच से रश्मि की काली परछाईं कुछ क्षणों तक तड़पते हुए आदित्य को दिखाई देती रही और फिर गायब हो गई. कार दूर तक सुनसान रास्ते पर दौड़ती हुई दिखाई देती रही. आदित्य कुछ भी न कर पाया. उस की आंखों के सामने ही उस की रश्मि का हरण हो गया. एक नहीं यहां तो 4-4 रावण थे.

आदित्य ने तुरंत पुलिस को फोन लगा कर बताया. पुलिस हरकत में आए तब तक वह हैवान रश्मि को कहीं बहुत दूर ले जा चुके थे.

दोनों परिवारों में इस खबर ने तूफान ला दिया. सब चिंता में थे, सदमे में थे. घर में आंसू और सन्नाटे के सिवा कुछ भी नहीं था. दोनों परिवार इस दुख की घड़ी में साथ थे. पुलिस अपना काम कर रही थी.

2-3 घंटों के बाद उन लड़कों ने रश्मि को सड़क के किनारे झडि़यों में फेंक दिया.

उन्होंने रश्मि को धमकी देते हुए कहा, ‘‘जान प्यारी हो तो चुपचाप ही रहना वरना हम ने तुम्हारे पति का फोटो भी ले लिया है. हम उसे नहीं छोड़ेंगे, समझ.’’

रश्मि बेहोशी की हालत में सड़क के

किनारे झडि़यों में पड़ी हुई थी. सुबह मौर्निंग वाक करने आए पतिपत्नी को झडि़यों में लड़की पड़ी दिखाई दी.

तभी उस महिला ने अपने पति से कहा, ‘‘अरे यह तो कोई दुलहन लग रही है, पर इस तरह झडि़यों में… जल्दी से पुलिस को फोन करो. इस की हालत देख कर लग रहा है मामला कुछ और ही है.’’

उस के पति ने पुलिस को फोन किया. वह महिला रश्मि को होश में लाने की कोशिश कर रही थी. तब तक पुलिस भी आ गई. रश्मि को तुरंत अस्पताल ले जाया गया.

पुलिस ने आदित्य को फोन कर के बताया, ‘‘आदित्य, एक लड़की सड़क के

किनारे झडि़यों में पड़ी मिली है. उस की हालत गंभीर है. उसे हम ने अस्पताल में भरती करा दिया है. किसी बुजुर्ग दंपती को वह बेहोशी की हालत में मिली थी. उन्होंने ही हमें खबर दी है. आप आ कर देख लीजिए, लगता है यह वही है, जिस के लिए आप ने शिकायत दर्ज करवाई थी.’’

आदित्य और रश्मि के परिवार तुरंत अस्पताल पहुंच गए. रश्मि की हालत बहुत ही खराब थी. जीवन और मौत के बीच संघर्ष करती रश्मि इस वक्त बिलकुल असहाय लग रही थी. वह इस समय होश में भी नहीं थी. उस के चेहरे पर लालनीले निशान दिख रहे थे. बाकी शरीर चादर से ढका था. रश्मि की ऐसी हालत देख कर परिवार वालों की तो क्या डाक्टर और नर्स की आंखों में भी आंसू छलक आए.

आदित्य अपनी मां के कंधे पर सिर रख कर आंसू बहा रहा था. वह बहुत देर तक रश्मि की ऐसी हालत देख न पाया और वहां से बाहर निकल गया.

रश्मि को जब होश आया, दोनों परिवार

वहां मौजूद थे. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, लेकिन जिस की चाहत थी, वही उसे दिखाई नहीं दिया. उस की आंखों से आंसू बिना रुके बहते जा रहे थे.

उस के मुंह से एक ही शब्द निकल रहा था, ‘‘आदि बचाओ मुझे…’’

कुछ समय के लिए वह होश में आती, फिर उस की आंखें बंद हो जातीं. दूसरे दिन सुबह उसे पूरी तरह से होश आया. अपनी मम्मी के गले लग कर वह बुरी तरह रो रही थी. उसे सांत्वना किस तरह से दें, कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था. सब की आंखों में सिर्फ आंसू थे. मुंह में मानो जबान नहीं है.

आखिरकार रश्मि ने चुप्पी तोड़ते हुए अपनी मम्मी से पूछा, ‘‘मम्मी आदित्य कहां है?’’

‘‘बेटा अभी तो यहीं था, शायद डाक्टर से बात करने गया होगा.’’

अनीता ने तुरंत आदित्य को फोन लगाया, ‘‘आदि कहां हो तुम? जल्दी आओ रश्मि को होश आ गया है. वह तुम्हें ही बुला रही है.’’

‘‘मां मैं उसे इस तरह तड़पता नहीं देख सकता… मैं उस का सामना नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘कैसी बात कर रहे हो आदित्य तुम? जल्दी से यहां आ जाओ.’’

आदित्य के मन में एक अलग ही तूफान उठा हुआ था. बलात्कार की शिकार हुई रश्मि को स्वीकार करने में अब वह हिचकिचा रहा था. इस तूफान में फंसा आदित्य अपनी मां की बात मान कर रश्मि के सामने आखिरकार आ ही गया.

रश्मि आदित्य से ऐसे लिपट गई जैसे किसी वृक्ष से बेल लिपट जाती है और उसे

छोड़ती ही नहीं. रश्मि बिना कुछ कहे रोती ही जा रही थी.

तब आदित्य ने कहा, ‘‘आई एम सौरी रश्मि, मैं तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया,’’ इतना कहते हुए आंखों में आंसू लिए वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया. रश्मि अभी भी बांहें फैलाए उसे जाते देख रही थी.

अनीता को आदित्य का ऐसा व्यवहार देख कर बिलकुल अच्छा नहीं लगा. वे तुरंत रश्मि के पास आईं और उसे सीने से लगाते हुए कहने लगीं, ‘‘रश्मि बेटा सब ठीक हो जाएगा. तुम अपने आप को संभालो, हिम्मत रखो बेटा. यह बुरा वक्त था हम दोनों परिवारों के लिए… अब जितनी जल्दी हो सके, हमें इस से बाहर निकलना होगा. आदित्य अपनेआप को दोषी मान रहा है कि वह तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया. इसलिए तुम से नजरें चुरा रहा है.’’

अगले 2 दिनों तक भी आदित्य अस्पताल नहीं आया. अनीता रोज 3-4 घंटे

रश्मि के पास आ कर रुकती थीं.

तीसरे दिन रश्मि ने पूछ ही लिया, ‘‘मां, आदित्य मुझ से मिलने क्यों नहीं आ रहा? क्या वह मुझ से नाराज है?’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं, वह भी बहुत दुखी है. खुद से नाराज है. तुम्हारा सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. मैं आज ही उसे भेजती हूं.’’

‘‘नहीं मां, जब उस की इच्छा होगी तब वह खुद आएगा. आप उस से जबरदस्ती बिलकुल

मत करना.’’

‘‘ठीक है बेटा.’’

अनीता जब घर पहुंचीं तब मन में ठान चुकी थीं कि आदित्य के मन में क्या चल रहा है, आज वे जान कर ही रहेंगी.

शाम को वे आदित्य के पास जा कर बैठीं और बड़े ही प्यार से कहा, ‘‘आदि बेटा

तुम रश्मि से मिलने आखिर क्यों नहीं जा रहे हो? आज उसे तुम्हारी बहुत जरूरत है. मैं जानती हूं तुम दुखी हो, किंतु तुम्हारा इस तरह का व्यवहार रश्मि को तोड़ देगा. जाओ जा कर उस के पास बैठो, उस से बातें करो. उसे यह विश्वास दिलाओ कि तुम उस के साथ हो.

अपने कंधे का सहारा दे कर उस के बहते आंसुओं को तुम्हें ही पोंछना होगा आदित्य. जब भी कुछ आहट होती है, उस की आंखों में केवल यह उम्मीद होती है कि दरवाजे से तुम ही अंदर आओगे. उस की आंखें हर समय केवल और केवल तुम्हें ही ढूंढ़ती रहती हैं, लेकिन हर बार उस की उम्मीद टूट जाती है, जो उस की सूनी आंखों से पानी बन कर बहने लगती है. उठो आदित्य जाओ… उस के परिवार में भी सभी को लग रहा होगा कि आदित्य आखिर क्यों नहीं आ रहा. मैं कब तक बात को संभालूंगी बेटा.’’

इतना सब सुनने के उपरांत भी आदित्य जाने के लिए तैयार नहीं हुआ. अनीता का प्यार गुस्से में बदल रहा था. वे समझ रही थीं कि आदित्य जाना नहीं चाहता.

अनीता ने गुस्से में पूछा, ‘‘आदित्य, तुम्हारे दिल में क्या चल रहा है, साफसाफ बताओ. क्या तुम अपने पांव पीछे खींच रहे हो?’’

‘‘मां आप क्या चाहती हैं? बलात्कार हुआ है उस के साथ. क्या मैं उस के साथ विवाह कर लूं? समाज, दोस्त सब मेरा मजाक उड़ाएंगे. मुझे कैसीकैसी नजरों से देखेंगे. यदि उस के साथ घर से बाहर जाऊंगा तो कैसी नजरों से उसे देखेंगे? कैसेकैसे तंज कसेंगे? ये सब सोच कर ही मैं कांप जाता हूं. मैं इस का सामना नहीं कर

सकता मां.’’

‘‘अच्छा आदित्य तो यह खिचड़ी पक रही है, तुम्हारे अंदर. मैं तो सच में यह सोच रही थी कि तुम उस की रक्षा नहीं कर पाए, इसलिए दुखी हो, शर्मिंदा हो, इसलिए उस के पास नहीं जा रहे हो. तुम्हारे ऐसे विचार सुन कर मुझे तुम्हारी मानसिकता पर तरस आ रहा है. मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी. तुम ने आज मेरा सिर नीचे झका दिया है. इतने वर्षों से प्यार के वादे करने वाले, जन्मों तक साथ रहने के सपने देखने वाले, एक तूफान के आ जाने से साथी को बीच भंवर में डूबने के लिए छोड़ जाते हैं क्या? मैं ने तो रश्मि को इस घर की बेटी मान लिया है. जो भी हुआ, आखिर उस में दोषी कौन है? क्या गलती रश्मि की है?’’

‘‘मां मुझे भी बहुत दुख है पर मैं क्या करूं. मैं अपने मन को कैसे समझऊं?’’

‘‘आदि जो भी हुआ है, तुम्हें उस का सामना करना चाहिए. यों पीठ दिखाने से कुछ नहीं होगा. जो मुझे नहीं बोलना चाहिए, वह भी मैं तुम से पूछती हूं कि आज यदि ऐसा कुछ मेरे साथ हो जाए तो क्या तुम मुझे भी छोड़ दोगे?’’

‘‘मां यह क्या बोल रही हैं आप?’’

‘‘तुम्हें सुनना होगा आदित्य, समाज तो तब भी कुछ न कुछ कहेगा. मुझे कैसीकैसी नजरों से देखेगा. तुम्हारे साथ बाहर कहीं जाऊंगी तो तंज कसेगा. बोलो आदित्य बोलो… यदि तुम्हारी

बहन होती और उस के साथ ऐसा करती तो

क्या तुम उसे भी छोड़ देते? पूरा जीवन उसे अकेले रहने देते? क्या उस के विवाह की कोशिश नहीं करते? नहीं आदित्य, तब तुम कोई ऐसा लड़का अवश्य ढूंढ़ते जो उसे ये सब जान कर भी अपना लेता. तुम खुद ऐसा लड़का क्यों नहीं बन सकते आदित्य?’’

अपनी मां के इस तरह के तेवर देख कर आदित्य घबरा गया. वह कुछ

बोलता उस के पहले ही अनीता ने कहा, ‘‘तुम जैसे कुछ मर्द ही ऐसी घटनाओं को अंजाम देते

हैं और जीवनभर उस की सजा भोगनी पड़ती है स्त्री को. आदित्य तुम यह रिश्ता तोड़ना चाहते हो, तो तोड़ दो. मैं उस के लिए तुम से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ूंगी जो उसे इसी रूप में स्वीकार करे और उतनी ही इज्जत और प्यार दे जितना उस

का हक है. इस के बाद कभी भी मुझे मां कहने की कोशिश भी मत करना,’’ कहते हुए अनीता

रो पड़ीं.

अनीता का हर शब्द आदित्य के सीने को छलनी कर गया. उसे उन का हर शब्द चुभ रहा था.

दूसरे दिन अनीता जब अस्पताल पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर वे दंग रह गईं. आदित्य रश्मि के सिरहाने बैठे उस की आंखों से लगातार बहते आंसुओं को अपने हाथों से पोंछ रहा था. साथ ही वह कह रहा था, ‘‘रश्मि मुझे माफ कर दो. मैं तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया.’’

रश्मि के माथे का चुंबन लेने के लिए जैसे ही वह झका उस की आंखों के आंसू

रश्मि के आंसुओं से जा मिले. यह संगम था आंसुओं के साथसाथ उन दोनों के मिलन का, आदित्य के पश्चात्ताप का, रश्मि की उम्मीदों का और अनीता के प्यार और विश्वास का.

अनीता उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थीं. उन्होंने जैसे ही अपने कदम वापस जाने के लिए उठाए, उस के कानों में आवाज आई, ‘‘आदि मैं

3 दिनों से दरवाजे पर टकटकी लगा कर तुम्हारा इंतजार कर रही थी. मैं जानती हूं कि मैं तुम्हारे लायक नहीं रही. सिर्फ एक बार तुम से मिल कर, तुम्हारी बांहों में सो जाना चाहती थी. आज तुम ने मेरी वह इच्छा पूरी कर दी,’’ कहते हुए वह आदित्य की बांहों से लिपट गई.

‘‘यह क्या कह रही हो रश्मि? मैं तो

तुम्हें एक बार नहीं हजारों बार पूरी जिंदगी

अपने सीने से लगा कर अपनी बांहों में रखना चाहता हूं.’’

तब तक रश्मि की मम्मी भी आ कर अनीता के साथ खड़े हो कर दुनिया का यह सब से सुंदर अलौकिक नजारा देख रही थीं. उन दोनों ने एकदूसरे को गले मिल कर बधाई दी.

तब तक आदित्य ने रश्मि को अपनी गोद में उठा लिया और कहा, ‘‘चलो रश्मि घर चलते हैं.’’

रश्मि अपना सारा दुखदर्द भूल कर

आदित्य को निहारे जा रही थी. इस समय उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो धरती पर ही उसे स्वर्ग मिल गया हो.

Latest Hindi Stories : ऐसी मांगने वालियों से तोबा

Latest Hindi Stories : अभी मेरी नींद खुली ही थी कि मधुरिमा की मधुर आवाज सुनाई दी. वास्तव में यह खतरे की घंटी थी. मैं अपना मोरचा संभालती, इस से पहले ही स्थूल शरीर की वह स्वामिनी अंदर पहुंच चुकी थी. मैं अपने प्रिय प्रधानमंत्री की मुद्रा में न चाहते हुए भी मुसकरा कर खड़ी हो गई.

वह आते ही शुरू हो गईं, ‘‘अरे, नीराजी, आप सो कर उठी हैं? आप की तबीयत ठीक नहीं लग रही. अभी मैं सिरदर्द की दवा भेज देती हूं. और हां, भाई साहब और छोटी बिटिया नहीं दिख रहे?’’

मैं जबरदस्ती मुलायमियत ला कर बोल पड़ी, ‘‘यह तो अभी स्नानघर में हैं और बिटिया सोई है.’’

‘‘आप की बिटिया तो कमाल की है. बड़ी होशियार निकलेगी. और हां, खाना तो बनाना शुरू नहीं किया होगा.’’

मैं उन की भूमिका का अभिप्राय जल्दी जानना चाह रही थी. सारा काम पड़ा था और यह तो रोज की बात थी. ‘‘नहीं, शुरू तो नहीं किया, पर लगता है आप के सारे काम हो गए.’’

‘‘ओह हो,’’ मधुरिमा हंस कर बोलीं, ‘‘नहीं, मैं तो रोज दाल बनाती हूं न.’’

मैं ने आश्चर्य से कहा, ‘‘दाल तो मैं भी रोज बनाती हूं.’’

‘‘पर मैं तो दाल में जीरे का छौंक लगाती हूं.’’

‘‘वह तो मैं भी करती हं, इस में नई बात क्या है?’’

‘‘वह क्या है, नीराजी कि आज दाल बनाने के बाद डब्बा खोला तो जीरा खत्म हो गया था. सोचा, आप ही से मांग लूं,’’ मधुरिमा ने अधिकार से कहा. फिर बड़ी आत्मीयता से मेरी पत्रिकाएं उलटने लगीं.

मैं ने तो सिर पकड़ लिया. थोड़ा सा जीरा मांगने में इतनी भूमिका? खैर, यह तो रोज का धंधा था. मुझे तो आदत सी पड़ गई थी. यह मेरे घर के पास रहती हैं और मेरी सभी चीजों पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार जताती हैं. इस अधिकार का प्रयोग इन्होंने दूसरों के घरों पर भी किया था, पर वहां इन की दाल नहीं गली. और फिर संकोचवश कुछ न कहने के कारण मैं बलि का बकरा बना दी गई.

अब तो यह हालत है कि मेरी चीजें जैसे इस्तिरी, टोस्टर वगैरह इन्हीं के पास रहते हैं. जब मुझे जरूरत पड़ती है तो कुछ देर के लिए उन के घर से मंगवा कर फिर उन्हीं को वापस भी कर देती हूं क्योंकि जानती हूं कुछ ही क्षणों के बाद फिर मधुर आवाज में खतरे की घंटी बजेगी. भूमिका में कुछ समय बरबाद होगा और मेरा टोस्टर फिर से उन के घर की शोभा बढ़ाएगा.

पूरे महल्ले में लोग इन की आदतों से परिचित हैं. और घर में इन के प्रवेश से ही सावधान हो जाते हैं. यह निश्चित है कि यह कोई न कोई वस्तु अपना अधिकार समझ कर ले जाएंगी. फिर शायद ही वह सामान वापस मिले. सुबह होते ही यह स्टील की एक कटोरी ले कर किसी न किसी घर में या यों कहिए कि अकसर मेरे ही घर में प्रवेश करती हैं. मैं न चाहते हुए भी शहीद हो जाती हूं.

यह बात नहीं कि इन की आर्थिक स्थिति खराब है या इन में बजट बनाने की या गृहस्थी चलाने की निपुणता नहीं है. यह हर तरह से कुशल गृहिणी हैं. हर माह सामान एवं पैसों की बचत भी कर लेती हैं. पति का अच्छा व्यवसाय है. 2 बेटे अच्छा कमाते भी हैं. बेटी पढ़ रही है. खाना एवं कपड़े भी शानदार पहनती हैं. फिर भी न जाने क्यों इन्हें मांगने की आदत पड़ चुकी है. जब तक कुछ मांग नहीं लेतीं तब तक इन के हाथ में खुजली सी होती रहती है.

इन की महानता भी है कि जब आप को किसी चीज की अचानक जरूरत आ पड़े और इन से कुछ मांग बैठें तो सीधे इनकार नहीं करेंगी. अपनी आवाज में बड़ी चतुराई से मिठास घोल कर आप को टाल देंगी और आप को महसूस भी नहीं होने देंगी. पहले तो आप का व परिवार का हालचाल पूछती हुई जबरदस्ती बैठक में बैठा लेंगी. फिर चाय की पत्ती में आत्मीयता घोल कर आप को जबरन चाय पिला देंगी. आप रो भी नहीं सकतीं और हंस भी नहीं सकतीं. असमंजस में पड़ कर उन की मिठास को मापती हुई घर लौट जाएंगी.

इधर कुछ दिनों से मैं इन की आदतों से बहुत परेशान हो गई थी. मेरे पास चीनी कम भी होती तो उन के मांगने पर देनी ही पड़ती. इस से मेरी दिक्कतें बढ़ जातीं. दूध कम पड़ने पर भी वह बड़े अधिकार से ले जातीं. पहले तो मेरे घर पर न होने पर वह मेरे नौकर से कुछ न कुछ मांग ले जाती थीं. अब खुद रसोई में जा कर अपनी आवश्यकता के अनुसार, हलदी, तेल वगैरह अपनी कटोरी में निकाल लेती हैं.

इस बीच अगर मैं लौट आई तो मुझ पर मधुर मुसकान फेंकती हुई आगे बढ़ जाती हैं. अदा ऐसी, मानो कोई एहसान किया हो मुझ पर. मैं तो बिलकुल आज की पुलिस की तरह हाथ बांध कर अपनी चीजों का ‘सती’ होना देखती रहती. उन के चले जाने पर पति से इस की चर्चा जरूर करती पर झुंझलाती खुद पर ही. मेरा बजट भी गड़बड़ाने लगा, सामान भी जल्दी खत्म होने लगा.

होली के दिन तो गजब ही हो गया. मैं जल्दीजल्दी पुए, पूरियां, मिठाई वगैरह बना कर मेज पर सजा रही थी. मेहमान आने ही वाले थे. इधर मेहमान आने शुरू हुए उधर मधुरिमा खतरे की घंटी बजाती हुई आ पहुंचीं. दृढ़ निश्चय कर के मैं अपना मोरचा संभालती कि उन्होंने एक प्यारी सी मुसकान मुझ पर थोप दी और मेरी मदद करने लगीं. मैं भीतर ही भीतर मुलायम पड़ने लगी.

सोचा, आज होली का दिन है, शायद आज कुछ नहीं मांगेंगी. पर थोड़ी भूमिका के बाद उन्होंने भेद भरे स्वर में मुझे अलग कमरे में बुलाया. मैं शंकित मन से उधर गई. उन्होंने अधिकारपूर्वक मुझ से कहा, ‘‘नीराजी, आज तो पिंकू के पिताजी बैंक नहीं जा सकते. कुछ रुपए, यही करीब 200 तक मुझे दे दो. मैं कल ही लौटा दूंगी.’’

मेरे ऊपर तो वज्र गिर पड़ा. मैं इनकार करती, इस के पहले ही वह बोल पड़ीं, ‘‘नीरा बहन, तुम तो दे ही दोगी. मैं जानती थी.’’

मैं असमंजस में थी. वह फिर बोलीं, ‘‘देखो, जल्दी करना. तुम रुपए निकालो, तब तक मैं रसोई से 1 किलो चीनी ले आती हूं. थैली मेरे पास है. आज मेवों की गुझिया बनाने की सोच रही हूं. तुम लोगों को भी चखने को दे जाऊंगी.’’

मैं अभी कुछ कहना ही चाहती थी कि और भी मेहमान आ पहुंचे. मैं ने जल्दी से पर्स से 200 रुपए निकाले. सोचा, आगे देखा जाएगा. मधुरिमा ने जल्दी से रुपए लपक लिए और रसोई की ओर चली गईं. मैं इधर मेहमानों में फंस गई.

1 घंटे के बाद जब सारे मेहमान चले गए तो फिर वह आईं. मैं गुस्से से कुछ कहने ही वाली थी कि उन्होंने मोहक मुसकान फेंक कर कहा, ‘‘नीराजी, आप मालपुए बहुत अच्छे बनाती हैं. सोचा, चख लूं.’’

मैं ठंडी पड़ गई, ‘‘हांहां, क्यों नहीं?’’

थोड़े से मालपुए बचे थे. कुछ निकाल कर मैं ने उन्हें दिए.

‘‘नहीं, नीराजी, मैं तो बस थोड़ा सा चख लूंगी,’’ यह कह कर उन्होंने पूरा खाना खाया. फिर बोलीं, ‘‘वाह, बहुत स्वादिष्ठ हैं. अभी मैं बच्चों को बुला कर लाती हूं. वे भी थोड़ा चख लेंगे. फिर रात को पूरा खाना खाने हम लोग आएंगे’’

मेरी आंखों के आगे तो पूरी पृथ्वी घूम गई. अभी इस आघात से उबर भी नहीं पाई थी कि वह सपरिवार चहकते हुए आ पहुंचीं. साथ में फफूंदी लगा आम का मरियल सा अचार एक छोटी कटोरी में था. पति व बिटिया मेहमानों को छोड़ने बस अड्डे गए थे. सोचा, आज हमारा उपवास ही सही. किसी तरह लड़खड़ाते कदमों से रसोई की ओर बढ़ी.

पर उस से पहले मधुरिमा ने कहा, ‘‘आप बैठिए, नीराजी. थक गई होंगी. मैं निकाल लेती हूं.’’

मेरे मना करतेकरते उन्होंने सारी बचीखुची रसद निकाल कर बाहर की और सब लोग चखने बैठ गए.

मेरे हाथ में अचार की कटोरी थी और मैं मन ही मन सुलग रही थी. सोचा, कटोरी कूड़ेदान में फेंक दूं. खैर, सब लोग रात में खाना खाने का वादा कर के जल्दी ही मेरे पुए चख कर चले गए. मेरे लिए कुछ भी नहीं बचा था.

पति के आने पर मैं ने सारी बातें कहीं. वह भी बहुत दिनों से इसी समस्या पर विचार कर रहे थे. पहले तो उन्होंने मेरी बेवकूफी पर मेरी ख्ंिचाई की. फिर होटल से ला कर खाना खाया. शाम तक वह कुछ विचार करते रहे और फिर रात में खुश हो कर मधुरिमा के आने से पहले ही हमें सैर कराने ले गए. बाहर ही हम ने खाना खा लिया. उन्होंने 10 दिन की छुट्टी ली. मैं ने कारण पूछा तो बोले कि समय पर सब जान जाओगी. मैं मूक- दर्शक बन कर अगली खतरे की घंटी का इंतजार करने लगी.

दूसरे दिन सुबह ही मधुरिमा अपनी चिरपरिचित मुद्रा में खड़ी हो गईं. मैं तो पहले ही अंदर छिप चुकी थी. आज मेरे पति ने मोरचा संभाला था.

‘‘अरे, भाई साहब, आप? नीराजी किधर गईं?’’

‘‘वह तो अपनी सहेली के घर गई हैं. मुझ से कह गई हैं कि आप के आने पर जो कुछ भी चाहिए आप को मैं दे दूं. बोलिए, क्या चाहती हैं आप?’’

मधुरिमा सकपका गईं. अपने जीवन में शायद पहली बार उन को इस तरह की बातों का सामना करना पड़ रहा था. वह रुकरुक कर बोलीं, ‘‘बात यह है, भाई साहब कि आज पिंकू के सिर में दर्द है. मैं तो खुद बाजार नहीं जा सकती. मिट्टी का तेल भी खत्म हो गया है. सोचा, आप से मांग लूं. मैं कनस्तर ले कर आई हूं. 4 लिटर दे दीजिए.’’

‘‘देखिए, मधुरिमाजी, मैं अभी बाजार जा रहा हूं. आप पैसे दे दें. मैं अभी तेल ले आता हूं. मेरा भी खत्म हो चुका है,’’ मेरे पति ने हंस कर कहा.

अब तो मधुरिमा को काटो तो खून नहीं. मरियल आवाज में बोलीं, ‘‘रहने दीजिए, फिर कभी मंगवा लूंगी. अभी तो मुझे कहीं जाना है,’’ यह कह कर वह तेजी से चली गईं. मैं छिप कर देख रही थी और हंसहंस कर लोटपोट हो रही थी.

3-4 दिन चैन से गुजरे. मेरे वे 200 रुपए तो कभी लौटे नहीं. लेकिन खैर, एक घटना के बाद मुझे हमेशा के लिए शांति मिल गई. एक दिन सुबहसुबह फिर वह मुझे खोजती हुई सीधे मेरे कमरे में पहुंचीं. पर मैं तो पहले ही खतरे की घंटी सुन कर भंडारगृह में छिप गई थी. वह निराश हो कर वहीं बैठ गईं. मेरे पति ने अंदर आ कर उन को नमस्ते की और आने का कारण पूछा.

मधुरिमा ने सकपका कर कहा, ‘‘भाई साहब, नीराजी को बुला दीजिए. यह बात उन्हीं से कहनी थी.’’

‘‘मधुरिमाजी, आप को मालूम नहीं, नीरा की बहन को लड़का हुआ है. इसलिए वह तड़के ही उठ कर शाहदरा अपनी बहन के पास गई हैं. अब तो कल ही लौटेंगी आप मुझ से ही अपनी समस्या कहिए.’’

पहले तो वह घबराईं. फिर कुछ सहज हो कर कहा, ‘‘भाई साहब, मेरे पति आप की बहुत तारीफ कर रहे थे. सचमुच आप जैसा पड़ोसी मिलना मुश्किल है.’’

‘‘यह तो आप का बड़प्पन है.’’

‘‘नहींनहीं, सचमुच नीराजी भी बहुत अच्छी हैं. मेरे घर में तो सभी उन से बहुत प्रभावित हैं. इतना अच्छा स्वभाव तो कम ही देखनेसुनने को मिलता है.’’

मेरे पति आश्चर्य से उन्हें देख रहे थे और सोच रहे थे कि क्या यही बात इन को कहनी थी.

फिर मधुरिमा ने वाणी में मिठास घोल कर कहा, ‘‘भाई साहब, जब तक नीराजी नहीं आती हैं, मैं आप का खाना बना दिया करूंगी.’’

‘‘जी शुक्रिया, खाना तो मैं खुद भी बना लेता हूं.’’

इस के बाद 1 घंटे तक वह भूमिका बांधती रहीं. पर असली बात बोलने का साहस ही नहीं कर पा रही थीं. अंत में उन्होंने मेरे पति से विदा मांगी. पर जैसे ही पति ने दरवाजा बंद करना चाहा, वह अचानक बोल पड़ीं, ‘‘भाई साहब, 50 रुपए यदि खुले हों तो दे दीजिए.’’

‘‘अच्छा तो रुपए चाहिए थे. आप को पहले कहना चाहिए था. मैं आप को 50 के बदले 100 रुपए दे देता. पर आप ने मेरा समय क्यों बरबाद किया? खैर, कोई बात नहीं,’’ मेरे पति ने जल्दी से पर्स खोल कर 150 रुपए निकाले और कहा, ‘‘मैं आप को 150 रुपए दे रहा हं. मुझे वापस भी नहीं चाहिए. पर कृपया, हमारा समय बरबाद न किया करें.’’

मधुरिमा खिसियानी बिल्ली की तरह दरवाजे की लकड़ी को टटोलने लगीं.

‘‘भाई साहब, इतने रुपए देने की क्या जरूरत थी. मुझे तो बस…’’

‘‘नहींनहीं, मधुरिमाजी, आप सब ले जाइए. मैं खुशी से दे रहा हूं. हां, कल मैं आप के घर खाना खाने आ रहा हूं. नीरा ने कहा था कल आप छोले बनाने वाली हैं. सचमुच आप बहुत स्वादिष्ठ छोले बनाती हैं. यहां से प्याज, अदरक आप खुशी से ले जा सकती हैं.’’

‘‘नहीं, भाई साहब, ऐसी कोई बात नहीं. कल ही तो स्वादिष्ठ खीर बनाई थी, पर बच्चों ने सारी खत्म कर दी. सोचा था, आप को जरूर खिलाऊंगी,’’ मेरे पति ने आश्चर्य से मुंह फैला कर कहा, ‘‘अच्छा फिर दूध, चावल और पतीला किस के घर से लिया था आप ने?’’

अब तो मधुरिमा का रुकना मुश्किल था, ‘‘अच्छा, भाई साहब, चलती हूं,’’ कहती हुई और बेचारगी से मुंह बना कर वह तेजी से घर की ओर भागीं.

उस दिन के बाद मधुरिमा ने मांगने की आदत छोड़ दी. इस घटना का जिक्र भी उन्होंने किसी से नहीं किया क्योंकि इस में उन की ही बेइज्जती का डर था. मेरे परिवार से नाराज भी नहीं हो सकीं क्योंकि इस से बात खुलने का डर था. फलस्वरूप उन से हमारे संबंध भी ठीक हैं और हम शांति से गुजरबसर कर रहे हैं.

Best Hindi Stories : अपनाअपना क्षितिज – क्या थी पिता और बेटे की कहानी

Best Hindi Stories :  प्रशांत को देखते ही प्रभावती की जान में जान आ गई. प्रशांत ने भी जैसे ही मां को देखा दौड़ कर उन के गले लग गया, ‘‘मां, यह कैसी हालत हो गई है तुम्हारी.’’

प्रभावती के गले से आवाज ही न निकली. बहुत जोर से हिचकी ले कर वह फूटफूट कर रो पड़ीं. प्रशांत ने उन्हें रोकने की कोई चेष्टा नहीं की. इस रोने में प्रभावती को विशेष आनंद मिल रहा था. बरसों से इकट्ठे दुख का अंबार जैसे किसी ने धो कर बहा दिया हो.

थोड़ी देर बाद धीरे से  प्रशांत स्वयं हटा और उन्हें बैठाते हुए पूछा, ‘‘मां, पिताजी कहां हैं?’’

‘‘अंदर,’’ वह बड़ी कठिनाई  से बोलीं. एक क्षण को मन हुआ कि कह दें, पिताजी हैं ही कहां. पर जीभ को दांतों से दबा कर खुद को बोलने से रोक लिया. सच बात तो यह थी कि वह अपने जिस पिता के बारे में पूछ रहा था वह तो कब के विदा हो चुके थे. अवकाश ग्रहण के 2 माह बाद ही या एक तरह से सुशांत के पैरों पर खड़ा होते ही उन की देह भर रह गई थी और जैसे सबकुछ उड़ गया था.

अपनी आवाज की एक कड़क से, अपनी भौंहों के एक इशारे से पिताजी का जो व्यक्तित्व इस्पात की तरह सब के सामने  बिना आए ही खड़ा हो जाता था, वह पिताजी अब उसे कहां मिलेंगे.

प्रशांत दूसरे कमरे की ओर बढ़ा तो तुरंत प्रभावती के पैरों पर रजनी आ कर झुक गई और साथ ही 7 बरस का नन्हा प्रकाश. उन्होंने पोते को भींच कर छाती से लगा लिया. मेले में बिछुड़ गए परिवार की तरह वह सब से मिल रही थीं. पूरे 7 साल बाद प्रशांत और रजनी से भेंट हो रही थी. वह प्रकाश को तो चलते हुए पहली बार देख रही थीं. उस की डगमग चाल, तुतलाती बोली, कच्ची दूधिया हंसी, यह सब वह देखसुन नहीं सकी थीं. साल दर साल केवल उस के जन्मदिन पर उन के पास प्रकाश का एक सुंदर सा फोटो आ जाता था औैर उन्हें इतने से ही संतोष कर लेना पड़ता था कि अब मेरा प्रकाश ऐसे दिखाई देने लगा है.

7 साल पहले जब वह कुल 9 माह का था, तभी प्रशांत घर छोड़ कर अपने परिवार को ले कर वहां से दूर बंगलौर चला गया था. इस अलगाव  के पीछे मुख्य कारण था प्रशांत और सुशांत की आपसी नासमझी और उन के पिता द्वारा बोया गया विषैला बीज. सुशांत डाक्टर था और प्रशांत कालिज में शिक्षक. बस, यही अंतर दोनों के मध्य उन के पिता के कारण बड़ा होता चला गया और इतना बड़ा कि फिर पाटा न जा सका.

उन के पिता सत्यव्रत शुरू से ही चाहते थे कि दोनों बच्चे डाक्टर बनें. इस के लिए उन्होंने अपनी सीमित आय की कभी परवा नहीं की. उन का बराबर यही प्रयत्न रहा कि उन के बच्चों को कभी किसी चीज का अभाव न खटके.

सत्यव्रत दफ्तर से लौटने के बाद बच्चों की पढ़ाई  पर ध्यान देते. उन का पाठ सुनते, उन्हें समझाते, उन की गलतियां सुधारते, उन्हें स्वयं नाश्ता परोसते, उन के कपड़े बदलते, बत्ती जलाते, मसहरी लगाते पुस्तकें खोल कर रखते. बच्चे पढ़तेपढ़ते सोने लगते तो पंखा चला देते. दूध का गिलास थमाते. कभी अपने हिस्से का दूध भी दोनों के गिलास में उडे़ल देते. सोचते, ‘बहुत पढ़ते हैं दोनों. गिलास भर दूध से इन का क्या होगा.’

भविष्य के दर्पण में उन्हें 2 डाक्टर बेटों का अक्स दिखाई पड़ता और वह दोगुनेचौगुने गर्व से झूम उठते. अपने इस सपने को बुनने में बस, इसी बात का कोई ध्यान नहीं रखा कि असल में उन के बेटे क्या चाहते हैं. उन की रुचि किस बात में है, डाक्टर बनने में या इंजीनियर अथवा कुछ और बनने में.

सत्यव्रत इस मामले में एक तानाशाह की तरह थे. जो सोच लिया वह बच्चों को पूरा करना ही है. वह सदा यही सोच कर चलते थे, पर ऐसा हो कहां सका. बड़े लड़के प्रशांत को डाक्टर बनने में कोई रुचि  नहीं थी. उस का कविताओं, कहानियों, पेंटिंग, साहित्य में खूब मन लगता था. कई बार वह पढ़ाई  के ही मध्य में आड़ीतिरछी लकीरें खींचता पकड़ा जाता था. कभी रेखागणित की आकृतियां बनातेबनाते पन्ने पर कविता लिखने लगता था.

सत्यव्रत की नजर उस पर पड़ जाती तो जैसे आग में घी पड़ जाता. खूब कस कर धुनाई होती उस की. खाना बंद कर दिया जाता. उसे सोने नहीं दिया जाता. यहां तक कि प्यास से उस का कंठ सूखने लगता, पर वह नल में मुंह नहीं लगा सकता था.

वह अकसर कहा करते, ‘साहित्य, पेंटिंग, कविता भी कोई विषय हैं?’

प्रभावती सन्न रह जातीं. हाथ जोड़ कर कहतीं, ‘मेरे बेटे को इतना मत सताओ.  उस की तो तारीफ होनी चाहिए कि वह इतनी बढि़या कहानियां लिखता है. तुम्हें कब अक्ल आएगी पता नहीं.’

‘कविता, कहानी से पेट नहीं भरता,’ वह चीख कर कहते, ‘जानती हो न कि कितने कवि और लेखक भूखों मरते हैं?’

वह इतने से ही बस न करते. कहते, ‘मैं जानता हूं, तुम्हीं प्रशांत का दिमाग बिगाड़ रही हो. पर अच्छी तरह समझ लो इसे कवि या शिक्षक नहीं, डाक्टर बनना है. इस का भोजन अभी तो एक दिन ही बंद हुआ है, कभी हफ्ते भर भी बंद किया जा सकता है.’

डर से प्रभावती के हाथ फूल जाते, क्या कहें बेटे को. हर व्यक्ति एक ही बात को आसानी से नहीं सीख सकता. किसी के लिए हिसाब आसान है तो किसी के लिए इतिहास. प्रकृति ने सब की समझ का पैमाना एक कहां रखा है? पर वह यह भेद अपने पति को न समझा पातीं. उन्हें  तमाशाई  बन कर चुपचाप सबकुछ देखना, सहना पड़ता.

सब से बुरी हालत तो प्रशांत की हो गईर्र्  थी. अपनी और पिता की इच्छाओं के मध्य वह झूलता रहता था. न वह कविता लिखना छोड़ सकता था न पिता की तमन्ना पूरी करने से पीछे हटना चाहता था. दिनरात किताब उस की आंखों के आगे लगी रहती थी. इस चक्कर में आंखों पर मोटे फे्रम का चश्मा चढ़ गया था. चेहरे की चमक खो गई थी. वह किसी से कुछ कहता नहीं था. बस, भीतर ही भीतर छटपटाता रहता था.

इस के विपरीत सुशांत की आंखोंं के आगे बस, एक ही सपना तैरता रहता था, डाक्टर बनने का. उस के लिए उसे न पिता से मदद लेने की जरूरत थी न मां से. प्रशांत को बड़ी तेजी से पीछे छोड़ता हुआ सुशांत अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा था.

सत्यव्रत उसे देखदेख कर निहाल होते रहते थे. पड़ोसियों में बखान करते और दोस्तों से तारीफ करते न अघाते. सुशांत से तुलना कर के वह प्रशांत को नीचा दिखाते रहते. सुशांत प्रशांत से सिर्फ 1 साल ही छोटा था. पर दोनों एक ही कक्षा में थे. दोनों ने एकसाथ ही मेडिकल में दाखिले के लिए तैयारियां की थीं और साथ ही परीक्षाएं दी थीं. नतीजा निकला तो प्रशांत असफल था और सुशांत सफल. सुशांत आगे की पढ़ाई के लिए मुजफ्फरपुर रवाना हो गया. प्रशांत अपनी असफलता के साथसाथ पिता के व्यंग्य बाणों से घायल अपने कमरे में बंद हो गया.

प्रभावती चीख कर बोली थीं, ‘इसीलिए तो कहा था, इसे जो राह पसंद है उसी पर चलने दो. जिस पढ़ाईर् में इस की रुचि नहीं है उस में धक्के दे कर मत चलाओ.’

‘इस की अपनी कोई राह नहीं है. मेहनत से जी चुराने की सजा इस ने पाईर् है. पूरे समाज में इस ने मेरी नाक कटवा दी है. तुम्हें कुछ पता है कि क्या करेगा यह आगे? कलम घिसेगा कलम, बस.’

‘कौन जानता है, कलम घिसते- घिसते यह कहां से कहां पहुंच जाए. सुशांत ने अगर तुम्हारी डाक्टरी की लाइन पकड़ ही ली है तो क्या हुआ. प्रशांत भी मनचाहे क्षेत्र में कहीं ज्यादा सफल हो. तुम साहित्यकारों, कवियों के महत्त्व को नकारते क्यों हो?’

ऐसी बहसों से सत्यव्रत प्रभावती की ओर से बेटे को मिलने वाली तरफदारी समझते. वह कहते, ‘मैं उसे राह दिखाता हूं तो तुम्हें बुरा लगता है. क्या मेरा बेटा नहीं है वह? किसी भी पौधे के विकास के लिए उस की काटछांट जरूरी है. वही काम मैं भी कर रहा हूं.’

प्रभावती को कहना ही पड़ता, ‘पर काटछांट इतनी अधिक न करें कि पौधे का विकास ही न होने पाए.’

पर अपनी जिद पर अडे़ सत्यव्रत ने प्रशांत से फिर डाक्टरी में प्रवेश की तैयारी कराई, पर नतीजा फिर वही निकला. तीसरी बार प्रशांत ने जबरदस्ती तैयारी नहीं की. मन में पिता के प्रति एक विद्रोह, एक क्रोध लिए प्रशांत उन दिनों  भटकने लगा था. न वह ढंग  से खातापीता था न सोता था और न घर में रहता था. देर रात तक वह घर से बाहर रहता. यहां तक कि घर के सदस्यों से उस की बातचीत भी बंद हो जाती. पिता की तो वह सूरत भी नहीं देखना चाहता था.

जब सत्यव्रत ने प्रशांत का यह रूप देखा तो धीरेधीरे उस के प्रति उन का रुख बदलता गया. अब वह केवल सुशांत की देखरेख में खोए रहने लगे. प्रशांत की ओर से उन का मन खट्टा हो गया. अपने बेटे के रूप में मात्र कलम घिस्सू की कल्पना न उन से होती थी और न ही किसी के पूछने पर उन से यह परिचय ही दिया जाता था.

कई बार तो वह मित्रों में बस, सुशांत की चर्चा करते. प्रशांत की बात गोल कर जाते. कोई बहुत जोर दे कर प्रशांत से मिलने की चर्चा करता तो उस की मुलाकात सुशांत से करवा कर झट से बहाना बना देते, ‘प्रशांत घर पर नहीं है.’

प्रभावती का मन चूरचूर हो जाता और प्रशांत पंख कटे पंछी सा छटपटाता  रह जाता. सत्यव्रत अब जैसे सुशांत के लिए ही जी रहे थे. जब तक सुशांत  घर में रहता, वह उस के लिए एकएक चीज का ध्यान रखते.

प्रशांत यह सब देखदेख कर कटता रहता, फिर भी वह पिता की किसी बात का विरोध न करता. भले ही सत्यव्रत उस की रुचि को जिद का नाम दे कर अपने और पुत्र के मध्य निरर्थक विवादों को जन्म दे बैठते.

यह केवल प्रभावती ही समझ सकती थीं कि प्रशांत की रुचि किस चीज में है. ऐसे में वह सदा ही अपने पति को दबा कर रखतीं और प्रशांत के लिए वह सब करतीं जो सत्यव्रत सुशांत के लिए किया करते और चाहतीं कि प्रशांत यही जाने कि पिता ने उस के लिए वह सब किया है.

ऊंची आकांक्षाआें के बीच तनाव की कंटीली दूरियां तय करतेकरते दिन भागते गए. प्रशांत साहित्यकार के रूप में स्थापित हो चुका था और सुशांत डाक्टर बन चुका था. अब दोनों घर पर ही मौजूद रहते. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों भाइयों में मतभेद पैदा होने लगे. गांव और महल्ले वाले भी सत्यव्रत की देखादेखी प्रशांत और सुशांत की तुलना कर उन में नीचे और ऊपर की सीमा खींचने लगे थे.

असल में खींचातानी तो तब शुरू हुई जब सुशांत अपनी डाक्टर पत्नी लाया और प्रशांत अपने ही साहित्य की प्रशंसिका ब्याह लाया. घर में प्रशांत का कम मानसम्मान और सुशांत की अधिक इज्जत प्रशांत की पत्नी को हिलाने लगी थी. स्वयं सुशांत और उस की पत्नी पूनम को भी प्रशांत का यह कह कर परिचय देना कि साहित्यकार है, अच्छा न लगता.

रोजरोज के इस मानअपमान ने प्रशांत को इतना परेशान कर दिया कि एक दिन उस ने घर ही छोड़ दिया. तब रजनी की गोद में 9 महीने का प्रकाश था. प्रभावती के चरण छू कर उस ने कहा था, ‘मां, जब भी तुम्हें मेरी जरूरत हो, मुझे बुला लेना.’

प्रशांत के जाने के 1 वर्ष बाद ही  सत्यव्रत सेवानिवृत्त हो गए थे. कुछ सालों तक घर आसानी से चलता रहा था. सुशांत और पूनम के हंसीठहाके, सत्यव्रत की परम संतोषी मुद्रा, इन सब के बीच अपने एक पुत्र के विछोह के क्लेश को मौन रूप से झेलती प्रभावती बस, जीती थीं, एक पत्थर की तरह. कभीकभार पत्रपत्रिकाओं में अपने पुत्र की प्रशंसा देखपढ़ कर पलभर के लिए उन्हें सुकून मिल जाता था.

धीरेधीरे समय ने करवट बदली. सुशांत को अपने विषय में शोध के लिए 3 वर्ष अमेरिका जाने का अवसर मिला. वह मांबाप को आश्वासन देता हुआ पूनम के साथ चला गया.

अब घर में केवल सत्यव्रत और प्रभावती के साथ अकेलापन रह गया.

सत्यव्रत किताबें पढ़ कर वक्त काटने लगे थे. घर में जितनी किताबें थीं, सब प्रशांत की सहेजीसंजोई हुई थीं. प्रशांत द्वारा अलगअलग पन्नों पर खींची गई लकीरों को देख और कुछ अपनी ओर से लिखी गई टिप्पणियों को पढ़ कर सत्यव्रत मुसकराते. प्रभावती मन ही मन डरतीं कि ऐसा न हो कि वह पुन: इन पुस्तकों को पढ़ कर प्रशांत का मजाक उड़ाने लगें. पर ऐसा नहीं हुआ. किताबों के साथ वक्त काटने के चक्कर में वह किताबों के दोस्त होते गए. दिन ही नहीं रात में भी कईकई घंटे वह आंखों पर चश्मा चढ़ाए किताबें पढ़ते रहते. कई बार वह चकित हो कर कह उठते, ‘अरे, इन किताबों में तो बहुत कुछ है. मत पूछो क्या मिल रहा है इन में मुझे. मैं तो सोचा करता था कि लोगों का वक्त बेकार करने के लिए इन पुस्तकों में केवल ऊलजलूल बातें भरी रहती हैं.’

प्रभावती चकित हो कर उन्हें सुनतीं, फिर रो पड़तीं. अब कभीकभी वह उस से पूछने भी लगे थे, ‘प्रशांत की कोई रचना अब देखने को नहीं मिलती. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस ने लिखना बंद कर दिया हो. उस से कहो, वह कुछ लिखे. ऐसी ही कोई शानदार चीज जैसी मैं पढ़ रहा हूं.’

कभीकभी तो सत्यव्रत आधी रात को पत्नी को उठा कर कहते, ‘परसों प्रशांत की एक कहानी पढ़ी थी. एक प्रशंसापत्र उसे अवश्य डाल देना अपनी ओर से. इस से हौसला बढ़ता है.’

कभी सत्यव्रत पुरानी बातें ले कर बैठ जाते, ‘मुझ से प्रशांत जरूर नाराज रहता होगा. प्रभावती, मैं ने उसे बहुत बुराभला कहा था इस लिखनेपढ़ने के कारण.’

अब वह खोजखोज कर प्रशांत की रचनाएं पढ़ते.

प्रभावती खुश रहने लगीं. देर से ही, पर सत्यव्रत प्रशांत की सड़ीगली किताबों के ढेर से प्रीत तो कर सके. कभीकभी मन करता कि सत्यव्रत से पूछ लें, ‘लिख दूं प्रशांत को, यहीं आ जाए. कितना सूना लगता है मेरा घर. बच्चों के आने से रौनक हो जाएगी. सुशांत की चिट्ठियां आती हैं तो उन से यही लगता है कि शेर के मुंह खून लग गया है. वह उस पराए देश का गुणगान ही करता रहता है. ऐसा लगता है जैसे वह वहीं बस जाएगा.’

पर कह कहां पातीं. डर लगता कि सत्यव्रत बुरा न मान जाएं. ऐसा न समझें कि वह उन्हें प्रशांत से पराजित करना चाहती है. शायद किसी दिन स्वयं ही कह दें, ‘प्रभा, प्रशांत को बुला लो. वह भी तो हमारा बेटा है. मैं ने उसे बहुत उपेक्षित किया. अब उस का प्रायश्चित्त करूंगा.’

पर सत्यव्रत खुद कभी न बोले. अंदर से कई बार वह उबलतेउफनते प्रशांत से मिलने के लिए उतावले हो उठते पर उसे बुला लेने की बात होंठों पर न लाते.

साल भर तो जैसेतैसे निकला. पर इस के बाद सत्यव्रत के अंदर का तनाव रोग बन कर फूट पड़ा. वह रक्तचाप के साथसाथ दमे की भी गिरफ्त में आ गए.

डाक्टरों ने उन से बहुत अधिक न सोचने, व्यर्थ परेशान न होने की ताकीद कर दी. बारबार प्रभावती को भी हिदायतें मिलीं कि वह अपने पति को व्यस्त रखें और दिमागी तौर पर प्रसन्न रखें. तब प्रभावती स्वयं को रोक न पाईं. वह समझ गईं कि बुढ़ापे के इस अकेलेपन में वह प्रशांत के लिए परेशान हैं. पुत्र को देखनेमिलने के लिए वह तड़प रहे हैं. पर अंदर के संकोच व पिता होने के अभिमान ने उन का मुंह सी रखा है.

तब प्रभावती ने प्रशांत को सब समझा कर पत्र लिख ही दिया. पत्र मिलने में 4-5 दिन लगे होंगे और अब प्रशांत उन की सेवा में वैसे ही उपस्थित हो गया, जैसे आज से पहले कुछ हुआ ही न हो. दमे से खांसते सत्यव्रत से प्रशांत ने उन का हालचाल पूछा तो उन की हालत देखने लायक हो गई. आंखों के दोनों कोर भीग गए. कैसे सिसकी भर कर रो पड़े.

प्रशांत ने उन्हें सहारा दे कर उठाया, ‘‘छि:, पिताजी, रोते नहीं. लीजिए, अपने पोते से मिलिए.’’

सत्यव्रत ने प्रकाश को बड़ी जोर से अपनी छाती से भींच कर आंखें मूंद लीं. थोड़ी देर बाद रजनी ने उन के पैरों का स्पर्श किया तो वह स्वयं को संभाल कर आंखें पोंछने लगे. कुछ मुसकरा कर उसे आशीर्वाद दिया. प्रभावती सत्यव्रत की ओर बढ़ीं और वह प्रकाश को दुलार कर पूछने लगे, ‘‘कौन सी कक्षा में पढ़ते हो?’’

प्रकाश ने हंस कर बताया, ‘‘तीसरी में.’’

‘‘खूब, और क्याक्या करते हो?’’

‘‘मन लगा कर सितार बजाता हूं. मैं बहुत अच्छा सितारवादक बनूंगा, दादाजी.’’

प्रभावती सन्न रह गईं, कहीं सत्यव्रत बिदक न पड़ें. अभी प्रशांत के प्रति जो थोड़ाबहुत पिघलाव शुरू हुआ है वह फिर हिम न हो जाए. ऐसा हुआ तो वह कभी प्रशांत के साथ रहना पसंद नहीं करेंगे. वह कुछ कहतीं, उस से पहले ही प्रशांत ने थोड़ा झेंप कर सफाई दी, ‘‘क्या कहूं, पिताजी, बहुत चाहता हूं कि यह पढ़ाई ज्यादा करे और शौक कम पूरे करे, पर यह मानता ही नहीं. सोचता हूं कि इसे डाक्टर बना कर अपने डाक्टर न होने की आप की शिकायत दूर कर दूंगा.’’

‘‘कोईर् बात नहीं,’’ सत्यव्रत ने सब की इच्छा के विपरीत प्रभावती से कहा, ‘‘तुम तो अच्छा सितार बजाती हो, प्रभा, तुम इस की मदद करना. यह भी प्रशांत की तरह हमारा नाम रोशन करेगा.’’

प्रभावती की आंखें भर आईं. प्रशांत ने चकित हो कर पूछा, ‘‘मगर सितार बजाने भर से यह क्या कर लेगा, पिताजी?’’

सत्यव्रत ने बहुत दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘यह सोचना तुम्हारा काम नहीं है. इस के पंख काट कर इस की उड़ान मत रोको. प्रशांत, जो गलती कल मैं करता रहा, उसे आज तुम मत दोहराओ. मन के सुर जिस प्रकार बजना चाहते हैं उन्हें उसी प्रकार बजने दो. यह मत समझो कि यह डाक्टर- इंजीनियर नहीं बन सका तो इस की उड़ान खत्म हो गई. नहीं बेटे, नहीं. यह सोचना बड़ी भूल है.

‘‘मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हारी कला को कोई विकास नहीं दे सका. अगर मैं ने तुम्हारी कोई मदद की होती तो आज तुम वहां होते, जहां 20 साल बाद होगे. हम अपनी इच्छा मनवाने के चक्कर में भूल जाते हैं कि जिसे ऊपर उठना होता है, वह अपना क्षितिज स्वयं ही ढूंढ़ लेता है. तुम्हीं बोलो, सूरज को आकाश में कौन चढ़ाता है? कोई भी तो नहीं. वह खुद ही ऊंचाइयों की तरफ उठता चला जाता है.

Famous Hindi Stories : जड़ें – कौनसा खेल नीरज खेल रहा था

Famous Hindi Stories : मेरीपत्नी शिखा की कविता मौसी रविवार की सुबह 11 बजे बिना किसी पूर्व सूचना के जब मेरे घर आईं तब रितु भी वहीं थी. उन दोनों का परिचय कराते हुए मैं कुछ घबरा उठा था.

2 मिनट रितु से बातें कर के जब वे पानी पीने के लिए रसोई की तरफ चलीं तो मैं भी उन के पीछे हो लिया.

‘‘शिखा कहां गई है?’’ उन्होंने शरारती अंदाज में सवाल किया तो मेरी घबराहट कुछ और बढ़ गई.

‘‘वह मायके गई हुई है, मौसीजी,’’ मैं ने अपनी आवाज को सामान्य रखते हुए जवाब दिया.

‘‘रहने के लिए?’’

‘‘हां, मौसीजी.’’

‘‘कब लौटेगी?’’

‘‘अगले रविवार को.’’

‘‘बालक, शिखा के पीछे यह कैसा चक्कर चला रहे हो? यह रितु कौन है?’’

मौसी की झटके से कैसा भी खुराफाती सवाल पूछ लेने की आदत से मैं पहले से परिचित न होता तो जरूर हकला उठता. पर मुझे ऐसे किसी सवाल के पूछे जाने का अंदेशा था, इसलिए उन के जाल में नहीं फंसा था.

मैं ने बड़े संजीदा हो कर जवाब दिया, ‘‘मौसीजी, यह रितु शिखा की ही सहेली है. यह पड़ोस में रहती है और उसी से मिलने आई थी. आप उस के और मेरे बारे में कोई गलत बात न सोचें. मैं वफादार पतियों में से हूं.’’

‘‘वे तो सभी होते हैं… जब तक पकड़े न जाएं,’’ अपने मजाक पर जब मौसी खूब जोर से हंसीं तो मैं भी उन का साथ देने को झेंपी सी हंसी हंस पड़ा.

फ्रिज में से ठंडे पानी की बोतल निकालते हुए उन्होंने मुझे फिर से छेड़ा,

‘‘बालक, तुम दोनों की शादी को मुश्किल से 3 महीने हुए हैं और तुम ने उसे घर भेज रखा है? क्या तुम्हें मनचाही पत्नी नहीं मिली है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मौसीजी. शिखा को मैं बहुत प्यार करता हूं. वही जिद कर के मायके भाग जाती है. मेरा बस चले तो मैं उसे 1 रात के लिए भी कहीं न छोड़ूं,’’ मैं ने अपनी आवाज को इतना भावुक बना लिया कि वे मेरी नीयत पर किसी तरह का शक कर ही न सकें.

‘‘देखो, अगर तुम दोनों के बीच कोई मनमुटाव पैदा हो गया है तो मुझे सब सचसच बता दो. मैं तुम्हारी प्रौब्लम यों चुटकी बजा कर हल कर दूंगी,’’ उन्होंने बड़े स्टाइल से चुटकी बजाई.

‘‘हमारे बीच प्यार की जड़ें बहुत मजबूत हैं. आप किसी तरह की फिक्र न करो, मौसीजी,’’ मैं ने यह जवाब दिया तो वे मुसकरा उठीं.

‘‘यू आर ए गुड बौय, नीरज. मेरी बातों का कभी बुरा नहीं मानना,’’ कह उन्होंने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगाया और फिर पीने के लिए बोतल से गिलास में पानी डालने लगीं.

ड्राइंगरूम में लौट कर उन्होंने बिना कोई भूमिका बांधे रितु की मुसकराते हुए तारीफ कर डाली, ‘‘रितु, तुम बहुत सुंदर हो.’’

‘‘थैंक यू, मौसीजी,’’ रितु खुश हो गई.

‘‘तुम ने शादी करने के लिए कोई लड़का देख रखा है या मैं तुम्हारे लिए कोई अच्छा सा रिश्ता ढूंढ़ कर लाऊं?’’

‘‘न कोई लड़का ढूंढ़ रखा है न मैं अभी शादी करना चाहती हूं, मौसीजी.’’

‘‘अरे, शादी करने में बहुत ज्यादा देर मत कर देना. शादी के बाद भी लड़की बहुत ऐश कर सकती है. फिर कभीकभी ऐसा भी हो जाता है कि बाद में अच्छे लड़कों के रिश्ते आने बंद हो जाते हैं. मेरी सलाह तो यही है कि तुम शादी के लिए अब फटाफट हां कर दो.’’

‘‘आप इतना जोर दे कर समझा रही हैं तो मैं राजी हो ही जाती हूं मौसीजी. अब आप ढूंढ़ ही लाइए मेरे लिए कोई अच्छा सा रिश्ता,’’ उस ने नाटकीय ढंग से शरमाने का बढि़या अभिनय किया तो मौसीजी खिलखिला कर हंस पड़ीं.

‘‘तुम सुंदर होने के साथसाथ स्मार्ट और आत्मविश्वास से भरी हुई लड़की भी हो. तुम जिसे मिलोगी वह सचमुच खुशहाल इंसान होगा,’’ मौसीजी ने भावविभोर हो उसे प्यार से गले लगा कर आशीर्वाद दिया और फिर अचानक पूछा, ‘‘तुम कौन सा सैंट लगाती हो, रितु? बड़ी अच्छी महक आ रही है.’’

‘‘यह सैंट मैं ने आर्चीज की शौप से लिया है, मौसीजी. ज्यादा महंगा भी नहीं है.’’

‘‘मैं भी यह सैंट जरूर खरीद कर लाऊंगी. आज तो नीरज और शिखा के साथ कहीं घूम आने की इच्छा ले कर मैं घर से निकली थी. अब मुझे यह साफसाफ बता दो कि तुम दोनों ने पहले से कहीं जाने का कोई प्रोग्राम तो नहीं बना रखा है?’’

‘‘कोई प्रोग्राम नहीं है हमारा. मैं अब चलती हूं. शिखा के आने पर फिर आऊंगी,’’ रितु जाने को उठ खड़ी हुई.

मैं ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं करी तो वह मौसीजी को नमस्ते कर अपने घर चली गई.

उस के जाते ही मौसीजी ने मुझे फिर छेड़ा, ‘‘मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं ने बिना बताए यहां आ कर रंग में भंग डाल दिया है?’’

‘‘मौसीजी, आप भी बस बेकार में मुझ पर शक किए जा रही हो. शिखा के सामने ऐसा कोई मजाक मत कर देना नहीं तो वह बेकार ही मुझ पर शक करने लग जाएगी,’’ मैं कुछ नाराज हो उठा था.

‘‘तुम टैंशन मत लो, क्योंकि मेरी मजाक करने की आदत से वह भलीभांति परिचित है, बालक. अच्छा, अब तुम मेरे साथ चलने के लिए जल्दी से तैयार हो जाओ.’’

‘‘हमें जाना कहां हैं, मौसीजी?’’

‘‘मैं आज तुम्हारी मुलाकात बड़े खास इंसान से करवाने जा रही हूं,’’ वे रहस्यमयी अंदाज में मुसकरा उठी थीं.

‘‘कौन है यह इंसान, मौसीजी?’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हारे मौसाजी से दूसरी शादी करी है?’’

‘‘आप मुझ से मजाक मत करो?’’ मैं

चौंक पड़ा.

‘‘अरे, मैं सच बता रही हूं. अपनी पहली शादी के 6 महीने बाद ही मैं ने अपने पहले पति राजीव से तलाक लेने का मन बना लिया था.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कारण बाद में बताऊंगी. हम उन्हीं से मिलने चल रहे हैं.’’

‘‘आप उन से मिलती रहती हैं.’’

‘‘हां. आज के दिन तो जरूर ही मैं उन से मिलने जाती हूं, क्योंकि आज उन का जन्मदिन है.’’

‘‘तलाक होने के बावजूद उन से आप ने अपने संबंध पूरी तरह से खत्म नहीं किए हैं?’’

‘‘करैक्ट.’’

‘‘बस, यह और समझा दो कि आप मुझे उन से क्यों मिलाने ले चल रही हैं?’’

‘‘अरे, अपने भूतपूर्व पति से अकेले मिलने जाना क्या मेरे लिए समझदारी की बात होगी? पता नहीं शराब पी कर मारपीट करने का शौकीन वह बंदा किस मूड में हो? अपनी हिफाजत के लिए मैं तुम्हें साथ ले जा रही हूं, बालक.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि उन की शराब पी कर मारपीट करने की आदत के कारण आप ने उन्हें तलाक दिया था?’’

‘‘यह नंबर 2 पर आने वाला महत्त्वपूर्ण कारण था.’’

‘‘और नंबर 1 वाला कारण क्या था?’’

‘‘वह कारण तुम्हें उन से मिलाने के बाद बताऊंगी,’’ उन्होंने इस विषय पर आगे कोई चर्चा न करते हुए मुझे तैयार हो जाने के लिए बैडरूम की तरफ धकेल दिया था.

घंटेभर बाद घंटी बजाए जाने पर मौसीजी के पहले पति राजीव के घर का

दरवाजा उन के पुराने नौकर रामदीन ने खोला. वह मौसीजी को पहचानता था. मैं ने नोट किया कि वह उन्हें देख कर खुश नहीं हुआ. मौसीजी उस से कोई बात किए बिना ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ गईं.

‘‘हैप्पी बर्थ डे…’’ मौसीजी ने जब अपने भूतपूर्व पति को विश किया तो वे जबरदस्ती वाले अंदाज में मुसकराए.

‘‘थैंक यू, कविता. वैसे मेरी समझ में नहीं आता है कि तुम हर साल यहां आ कर मुझे विश करने का कष्ट क्यों उठाती हो?’’ उन्होंने मौसी को ताना सा मारा.

‘‘रिलैक्स, राजीव. हर साल मैं आ जाती हूं, क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरे अलावा तुम्हें विश करने और कोई नहीं आएगा,’’ मौसीजी ने उन

की बात का बुरा माने बगैर आगे बढ़ कर उन से हाथ मिलाया.

‘‘यह भी तुम ठीक कह रही है. यह कौन है?’’ उन्होंने मेरे बारे में सवाल पूछा.

‘‘यह नीरज है. मेरी बड़ी बहन अनिता की बेटी शिखा का पति,’’ मौसीजी ने उन्हें मेरा परिचय दिया तो मैं ने एक बार फिर से उन्हें हाथ जोड़ कर नमस्ते कर दी.

उन्होंने मेरे अभिवादन का जवाब सिर हिला कर दिया और फिर ऊंची आवाज में बोले, ‘‘रामदीन, इन मेहमानों का मुंह मीठा कराने के लिए फ्रिज में से रसमलाई ले आ.’’

‘‘तुम्हें मेरी मनपसंद मिठाई मंगवाना हमेशा याद रहता है.’’

‘‘तुम से जुड़ी यादों को भुलाना आसान नहीं है, कविता.’’

‘‘खुद को नुकसान पहुंचाने वाली मेरी यादों को भूला देते तो आज तुम्हारा घर बसा होता.’’

‘‘तुम्हारी जगह कोई दूसरी औरत ले नहीं पाती, मैं ने दोबारा अपना घरसंसार ऐसी सोच के कारण ही नहीं बसाया, कविता रानी.’’

‘‘मुझे भावुक कर के शर्मिंदा करने की तुम्हारी कोशिश हमेशा की तरह आज भी बेकार जाएगी, राजीव,’’ मौसीजी ने कुछ उदास से लहजे में मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘मैं फिर से कहती हूं कि मुझ जैसी बेवफा पत्नी की यादों को दिल में बसाए रखना समझदारी की बात नहीं है. यह छोटी सी बात मैं तुम्हें आज तक नहीं समझा पाई हूं. इस बात का मुझे सचमुच बहुत अफसोस है, राजीव.’’

मौसीजी ने खुद को बेवफा क्यों कहा था, इस का कारण मैं कतई नहीं

समझ सका था. तभी राजीव अपने नौकर को कुछ हिदायत देने के लिए मकान के भीतरी भाग में गए तो मैं ने मौसीजी से धीमी आवाज में अपने मन में खलबली मचा रहे सवाल को पूछ डाला, ‘‘आप ने अभीअभी अपने को बेवफा क्यों कहा?’’

मेरी आंखों में संजीदगी से झांकते हुए मौसीजी ने मेरे सवाल का जवाब देना शुरू किया, ‘‘नीरज, हमारे बीच जो तलाक हुआ उस का दूसरे नंबर पर आने वाला महत्त्वपूर्ण कारण तो मैं तुम्हें पहले ही बता चुकी हूं. इन्हें दोस्तों के साथ आएदिन शराब पीने की लत थी और मुझे शराब की गंध से भी बहुत ज्यादा नफरत थी. मैं इस कारण इन से झगड़ा करती तो ये मुझ पर हाथ उठा देते थे.

‘‘तब मैं रूठ कर मायके भाग जाती. ये मुझे जाने देते, क्योंकि इन्हें अपने दोस्तों के साथ पीने से रोकने वाला कोई न रहता. फिर जब मेरी याद सताने लगती तो मुझे लेने आ जाते. मेरे सामने कभी शराब न पीने वादा करते तो मैं वापस आ जाती थी.’’

‘‘लेकिन इन के वादे झूठे साबित होते. शराब पीने की लत हर बार जीत जाती. हमारा फिर झगड़ा होता और मैं फिर से मायके भाग आती. यह सिलसिला करीब 3 महीने चला और फिर अमित मेरी जिंदगी में आ गया.’’

‘‘अमित कौन?’’

‘‘जो आज तुम्हारे मौसाजी हैं. उन्हीं का नाम अमित है, नीरज. वे मेरी एक सहेली के बड़े भाई थे. उन की पत्नी की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. उन्होंने जब मेरे दांपत्य जीवन की परेशानियों और दुखों को जाना तो बहुत गुस्सा हो उठे. मेरे लिए उन के मन में सहानुभूति के गहरे भाव पैदा हुए. पहले वे मेरे शुभचिंतक बने, फिर अच्छे दोस्त और बाद में हमारी दोस्ती प्रेम में बदल गई.’’

‘‘नीरज, ये राजीव भी दिल के बहुत अच्छे इंसान होते थे. हमारे बीच प्यार का रिश्ता भी मजबूत था, लेकिन इन्होंने शराब पीने की सुविधा पाने को मुझे मायके भाग जाने की छूट दे कर बहुत बड़ी गलती करी थी. विधुर अमित ने इस भूल का फायदा उठा कर अपना घर बसा लिया और राजीव की गृहस्थी ढंग से बसने से पहले ही उजड़ गई.

‘‘राजीव ने मेरे सामने बहुत हाथ जोड़े थे. छोटे बच्चे की तरह बिलख कर रोए भी पर मेरे दिल में तो इन की जगह अमित ने ले ली थी. मैं ने अमित के साथ भविष्य के सपने देखने शुरू कर दिए थे. मैं ने इन के साथ बेवफाई करी और ये हमारे बीच तलाक का पहला और मुख्य कारण बन गया.’’

‘‘मैं मानती हूं कि मैं ने राजीव के साथ बहुत गलत किया. अब तक भी मैं अपने मन में बसे अपराधबोध से मुक्त नहीं हो पाई हूं और इसी कारण तलाक हो जाने के बावजूद इन की खोजखबर लेने आती रहती हूं. क्या अब तुम समझ सकते हो कि मैं तुम्हें आज यहां अपने साथ क्यों लाई हूं?’’

‘‘क्यों?’’ बात कुछकुछ मेरी समझ में आई थी और इसी कारण मेरा मन बहुत बेचैन हो उठा था.

‘‘तुम भी वैसी ही मिस्टेक कर रहे हो जैसी कभी राजीव ने करी थी. ये बेरोकटोक शराब पीने की खातिर मुझे मायके भाग जाने देते थे और तुम रितु के साथ ऐश करने को शिखा को मायके जा कर रहने की फटाफट इजाजत दे देते हो. कल को…’’

‘‘मेरा रितु के साथ किसी तरह का चक्कर…’’

‘‘मुझ से झूठ बोलने का क्या फायदा है, नीरज? मैं ने तुम्हें रसोई में और रितु को ड्राइंगरूम में गले लगाया था. तुम्हारे कपड़ों में से रितु के सैंट की महक बहुत जोर से आ रही थी और तुम भला लड़कियों वाला सैंट क्यों प्रयोग करोगे?’’

‘‘मैं अपनी भूल स्वीकार करता हूं, मौसीजी,’’ और ज्यादा शर्मिंदगी से बचने के लिए मैं ने उन्हें टोक दिया और फिर तनावग्रस्त लहजे में बोला, ‘‘पर आप मुझे एक बात सचसच बताना कि क्या मायके में रहने की शौकीन शिखा का वहां किसी के साथ चक्कर चल रहा है?’’

‘‘नहीं, बालक. मगर ऐसा कभी नहीं हो सकता है, इस की कोई गारंटी नहीं. रितु के साथ मौज करने के लिए तुम जो अपने विवाहित जीवन की खुशियों और सुरक्षा को दांव पर लगा रहे हो, वह क्या समझदारी की बात है? कल को अगर कोई अमित उस की जिंदगी में भी आ गया तो क्या करोगे?’’

‘‘मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगा,’’ मैं उत्तेजित हो उठा.

‘‘राजीव ने भी कभी मुझे खो देने की कल्पना नहीं करी थी, नीरज. जैसे मैं भटकी वैसे ही शिखा क्यों नहीं भटक सकती है?’’

‘‘मैं उसे कल ही वापस…’’

‘‘कल क्यों? आज ही क्यों नहीं, बालक?’’

‘‘हां आज ही…’’

‘‘अभी ही क्यों नहीं निकल जाते हो उसे अपने पास वापस लाने के लिए?’’

‘‘अभी चला जाऊं?’’

‘‘बिलकुल जाओ, बालक. नेक काम में

देरी क्यों?’’

‘‘तो मैं चला, मौसीजी. मैं आप को विश्वास दिलाता हूं कि शिखा के साथ आपसी प्रेम की जड़ें मैं बहुत मजबूत कर लूंगा. मेरी आंखें खोलने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’ कह मैं ने उन के पैर छुए और फिर लगभग भागता सा शिखा के पास पहुंचने के लिए दरवाजे की तरफ चल पड़ा.

Hindi Story Collection : शुक्रगुजार – क्या अपने मकसद में कामयाब हो पाई अन्नया

Hindi Story Collection :  सुबह के 8 बजे थे. सरलाजी बेटी अनन्या के साथ मंदिर के बाहर दुकान से लड्डू खरीद रही थीं. तभी वहां वसुधाजी आ गईं. बोलीं, ‘‘आज सुबहसुबह मांबेटी दोनों मिल कर किस बात के लिए भगवानजी को घूस देने जा रही हैं?’’

‘‘दी, मैं आप को फोन करने ही वाली थी. अपनी अनन्या को बैंक में नौकरी मिल गई है.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी खबर है. बधाई हो. बधाई अनन्या.’’

‘‘थैंक्स आंटी.’’

‘‘दी, ये सब तो ठीक है, लेकिन अब इस के लिए कोई अच्छा सा लड़का मिल जाए. बस फिर मैं अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊं . इस के पापा का अधूरा सपना पूरा हो जाए.’’

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी है? कुछ दिन तो इसे मस्ती कर लेने दो.’’

‘‘इस साल 26 की पूरी हो जाएगी. लड़का ढूंढ़ने में समय लगता है.’’

‘‘अनन्या, किसी मैट्रीमोनियल साइट पर अपना बायोडेटा रजिस्टर करवा कर उस पर सरला का फोन नंबर डाल दो. लड़के वाले खुद ही तुम लोगों से संपर्क करते रहेंगे.’’

‘‘वह तो मैं ने डलवा रखा है, लेकिन आप की नजर में कोई लड़का हो तो बताइएगा जरूर, क्योंकि जानपहचान में रिश्ता होगा तो दिल को तसल्ली रहेगी.’’

‘‘इतनी चिंता क्यों करती हो… नौकरी लग गई है… लड़का भी मिल जाएगा. आजकल तो नौकरी करने वाली लड़कियों को लोग बहुत पसंद कर रहे हैं. सोने की मुरगी जो होती है… जिंदगीभर घर भरती रहेगी.’’

‘‘तब भी न तो दहेज कम हो रहा है और न ही लड़कियों पर अत्याचार’’

‘‘हां… हां… वह तो है पर अनन्या क्या मेरी बेटी नहीं है. कोई लड़का समझ में आएगा तो जरूर बताऊंगी.’’

‘‘मम्मी, आप भी कभी खुश नहीं रह सकतीं. अब कुछ नहीं तो मेरी शादी की चिंता में घुलने लगीं.’’

वसुधाजी और सरलाजी दोनों प्रौढ़ महिलाएं थीं. मंदिर में होने वाली मुलाकात आपस में प्रगाढ़ रिश्ते में बदल चुकी थी.

वसुधाजी संपन्न परिवार से थीं. दोनों बेटे ऊंचे ओहदों पर थे. बहूबच्चों से घर भरा था, लेकिन पति के निधन के बाद से वे अपनेआप को नितांत अकेला पाती थीं. इसीलिए स्वयं को व्यस्त रखने के लिए रोज मंदिर, कथा, पूजा आदि में व्यस्त रखती थीं.

सरलाजी के पति एक ऐक्सीडैंट के दौरान रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण बिस्तर पर आ गए थे. उन की दुकान पर छोटे भाई ने कब्जा कर लिया था. अच्छा यह था कि पति ने अपना मकान बना लिया था. उस में 2 किराएदार थे. उस पैसे से खींचतान कर किसी तरह खर्च चल जाता था.

मगर जिस समय अनन्या 12 वर्ष की थी, उन के पति उन्हें अकेला छोड़ गए थे. अब उन के जीवन का लक्ष्य बेटी को पढ़ालिखा कर उसे अपने पैरों पर खड़ा करना था.

भगवान के प्रति अगाध श्रद्धा के कारण वे मंदिर, व्रत, उपवास आदि कर्मकांडों पर अटूट विश्वास रखती थीं. पति के स्वस्थ होने की कामना से भी रोज मंदिर जाती थीं.

वसुधाजी चूंकि सरलाजी से उम्र में बड़ी थीं तो स्वत: वे उन की दीदी बन गई थीं. ससुराल पक्ष में देवर के दुकान हड़पने पर भी उन की सास देवर के पक्ष में खड़ीं थीं. इसलिए ससुराल वालों के साथ उन के रिश्ते खराब हो गए थे और मायके में बूढ़ी मां और भाई का परिवार था, जो स्वयं अपने जीवनयापन के लिए सदा संघर्षरत रहते थे.

इन हालात में वसुधाजी उन्हें बड़ी बहन या कह लो, गार्जियन सी लगतीं, क्योंकि पति

के निधन के समय उन्होंने आगे बढ़ कर उन्हें अपने गले से लगाया था और बड़ी बहन की तरह हर समय उन की मदद के लिए तैयार रहती थीं.

सरलाजी बेटी की शादी के लिए प्रयास तो कर ही रही थीं. अब वह परेशान भी रहने लगी थीं. तभी एक मैट्रीमोनियल साइट पर एक लड़के का प्रोफाइल उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने बात बढ़ाते हुए बेटी का प्रोफाइल और फोटो भेज दिया. उन का ओके आते ही उन्होंने फोन से बात की और जब उन्होंने दहेज न लेने की बात की तब तो वे उतावली हो उठीं.

उन्होंने जल्दी से लड़के का फोटो और बायोडाटा वसुधा दी को दिखाया. यह सुनते ही कि लड़के के परिवार से वे परिचित हैं तो तुरंत अपनी दी को ले कर लड़के को देखने उस की दुकान पर पहुंच गईं.

प्रतिष्ठित मौल में बड़ा शोरूम और गोरेचिट्टे आकर्षक 6 फुट के अर्णव की सादगी पर वे मुग्ध हो उठीं. उस ने वसुधा दी को बूआजी कहते हुए पैर छुए. फिर उन के भी चरण स्पर्श कर के आशीर्वाद लिया. उस ने इशारे से ही किसी से कह कर उन के लिए कोल्ड ड्रिंक मंगवा लिया था.

इतने बड़े शोरूम और आकर्षक अर्णव के हाथ में बेटी के भविष्य को सुरक्षित और खुशहाल समझ वे खुश हो गईं.

अब वे अपनी दी पर जल्दी रिश्ता करवाने के लिए दबाव डालने लगीं.

अर्णव की मां मीराजी ने जन्मकुंडली मिला कर शादी करने की अपनी इच्छा जाहिर की. सरलाजी जन्मकुंडली भेज कर बेसब्री से उन के उत्तर का इंतजार कर रही थीं. वैसे उन के विचार से भी जन्मपत्री का मिलान आवश्यक था.

अगले दिन ही मीराजी का फोन आया, ‘‘बधाई हो सरलाजी. बस बच्चे

आपस में मिल लें और एकदूसरे को समझ लें, फिर हम लोग आपस में रिश्तेदार बन जाएंगे.’’

वे खुशी से खिल उठी थीं. वसुधा दी ने उन्हें बताया था कि जन्मकुंडली तो मिल गई है, लेकिन शादी से पहले अनन्या को एक छोटी सी पूजा करनी होगी. उन्हें भला पूजा से क्या एतराज होता. वे खुशी से अपनी दी के साथ मीराजी से मिलने पहुंचीं.

मीराजी ने शालीनतापूर्वक उन का स्वागतसत्कार किया.

भोली और सीधीसादी सरलाजी के लिए बड़ी सी कोठी और भव्य शोरूम का मालिक आकर्षक अर्णव को देखने के बाद कुछ सोचनेविचारने को बचा ही नहीं था.

मीराजी ने अपने मन का दर्द साझा करते हुए बताया कि चूंकि अपनी बेटी की शादी में उन्होंने भारी दहेज दिया था… दहेज के कारण ही उन की बेटी ने परेशान हो कर आत्महत्या कर ली थी… दहेज के दंश की पीड़ा के दर्द की अनुभूति उन्होंने बहुत करीब से की है. अत: उन्होंने प्रण कर लिया है कि बेटे की शादी में

वे दहेज नहीं लेंगी और उस का विवाह सादगीपूर्वक करेंगी.

मीराजी ने अनन्या की मेल आईडी मांगी थी ताकि दोनों आपस में चैटिंग कर के एकदूसरे को समझ लें.

फिर क्या था. दोनों के बीच चैटिंग शुरू हो गई. पर अब सरलाजी के मन में डर

बना रहता कि कहीं उन की सांवली बेटी को गोराचिट्टा अर्णव और मीराजी नापसंद न कर दे.

वे बेटी से तरहतरह के उबटन और ब्यूटी प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने को कहतीं और ब्यूटीपार्लर जाने को मजबूर करतीं.

इसी बात पर एक दिन वह नाराज हो कर बोली, ‘‘मम्मी, मैं जैसी हूं वैसी पसंद करनी है तो करें अन्यथा मैं खुश हूं.

‘‘आप को उन लोगों के पसंद करने की इतनी फिक्र है, कभी आप ने अपनी बेटी से भी उस की पसंद पूछी है?’’

‘‘अर्णव, तो हीरा है, तुम उसे नापसंद ही नहीं कर सकतीं.’’

कई बार वह मन ही मन सोचती कि कब तक लोग इस गोरे रंग के पीछे भागते रहेंगे. अर्णव के साथ चैटिंग करने के बाद वह भी उसे मन ही मन पसंद करने लगी थी.

वसुधाजी चूंकि दोनों पक्षों से परिचित थीं, इसलिए उन्होंने सब की

सुविधा को ध्यान में रखते हुए संडे को एक रैस्टोरैंट में मिलने का प्रोग्राम बना लिया.

अनन्या के मन में भी प्यार का अंकुर फूट चुका था. वह भी थोड़ी घबराई हुई रैस्टोरैंट में अपनी मां और वसुधाजी के साथ पहुंची.

अपनी उंगली में अर्णव के नाम की अंगूठी पहन कर मन ही मन बहुत खुश थी.

मीराजी ने कहा था कि वे किसी तरह का लेनदेन नहीं करेंगी. अब अनन्या उन की बहू है, इसलिए अब उस के लिए भी फिक्र करने की आप को कोई आवश्यकता नहीं है.

उन की इन बातों को सुन कर सरलाजी की आंखें भर आई थीं.

उत्साहित सरलाजी बेटी की शादी धूमधाम से करने के लिए तैयारी में जुट गई थीं. वे सोचतीं कि इकलौती बेटी की शादी इतनी शानों शौकत से करें कि सब देखते रह जाएं.

टौप का मैरिज हौल, डैकोरेशन, इवैंट मैनेजमैंट आदि सबकुछ पर उन्होंने पानी की तरह पैसा बहाया.

शौपिंग तो पूरी ही नहीं हो पा रही थी. कभी बुटीक तो कभी ज्वैलर, तो

कभी कुछ और. मांबेटी और उन की वसुधा दी शादी की तैयारियों में लगी हुई थीं. लेकिन तैयारियां थीं कि पूरी ही नहीं हो पा रही थीं.

शादी के 5 दिन बचे थे. तभी एक दिन उस ने बताया कि आज मम्मीजी ने उस से व्रत करने को बोला है. उन्होंने उस के लिए पूजा रखी है. उस के राहु के घर में शनि बैठा है और सूर्य की अंतर्दशा में मंगल नीच घर में है, इसलिए शादी से पहले ग्रहशांति के लिए पंडितजी ने यह पूजा जरूरी बताई है.

वे स्वयं धार्मिक विचारों की थीं, इसलिए उन लोगों को इस में कुछ गलत नहीं लगा था. वसुधा दी और वे उसे ले कर उन के बताए हुए मंदिर में गईं. 3 घंटे तक लंबी पूजा चली. उस का तो पूरे दिन का उपवास हो गया था. मगर सुखद भविष्य की कल्पना में उस दिन वह भूखप्यास सब भूल गई थी.

शादी खूब धूमधाम से हुई. मीराजी उस के लिए बहुत सुंदर जेवर और साडि़यां ले कर आई थीं.

भारी साड़ी और जेवर से लदीफंदी मन में अनेक अरमान संजोए अर्णव की बांह पकड़ कर वह अपनी नई दुनिया में आई थी.

शादी की भीड़भाड़, रस्मोंरिवाज, हंसीठहाकों में पूरा दिन कब बीत

गया, पता ही नहीं लगा. आखिर वह खूबसूरत घड़ी आ गई, जब वह अर्णव की बांहों में समाने का ख्वाब संजोए अपने कमरे में आई. वह उस की बांहों में समाने को बेकरार बैठी थी, फिर जाने कब नींद के आगोश में समा गई, पता ही नहीं चला.

सुबह मम्मीजी की आवाज से उस की आंख खुली. वह हड़बड़ा कर उठी.

‘‘अनन्या जल्दी से तैयार हो जाओ. पंडितजी आने वाले हैं.’’

‘‘जी.’’

फिर वे उस के सूटकेस में रखे कपड़ों को उलटपुलट कर बोलीं, ‘‘तुम हरे रंग की कोई साड़ी नहीं लाई हो? आज बुद्धवार है. पंडितजी ने हरे रंग

के कपड़े पहनने को बोला है. वे स्वयं भी हरे रंग की साड़ी पहने थीं.’’

अनन्या चुपचाप उन की ओर देख रही थी.

‘‘कोई बात नहीं, मैं अपनी साड़ी ला कर दे देती हूं.’’

एक साधारण सी प्रिंटेड चटक हरे रंग की साड़ी देख कर उस का मन रो पड़ा. लेकिन ससुराल का पहला दिन था, इसलिए उस ने चुपचाप पहन ली. उस की आंखें डबडबा उठी थीं. वह जानती थी कि उस के सांवले रंग को यह साड़ी और सांवला बना देगी.

अर्णव ने उस पर एक नजर डाली और फिर मुसकराते हुए उस की बगल में बैठ गया. वह भी मुसकरा उठी.

‘‘सौरी अन्नी, कल पंडितजी ने कहा था कि नए जोड़े का भद्रा काल में मिलन अशुभ होता है.’’

वह उस की ओर देखते हुए बोली, ‘‘मुझ से बता तो देते, मैं सारी रात तुम्हारा इंतजार करती रही.’’

‘‘मैं थका हुआ था. मम्मी के कमरे में लेटा तो वहीं सो गया.’’

अपने प्यारे पति के भोलेपन पर वह मुसकरा उठी, क्योंकि प्यार ऐसा ही होता है.

आखिर वह घड़ी आ ही गई… एकदूसरे की बांहों में खो कर 2 जिस्म एक जान बन गए. प्यार के पल इतने खूबसूरत होते हैं, यह एहसास अपनेआप में ही बहुत सुंदर होता है.

‘‘एक बात कहूं, तुम बुरा तो नहीं मानोगी?’’

प्रियतम की बांहों के झूले में प्यार में डूबती हुई अनन्या बोली, ‘‘आप का हुकुम सिरमाथे मेरे हुजूर.’’

हिचकिचाते हुए अर्णव अटकतेअटकते हुए बोला, ‘‘अपनी सैलरी मम्मी को दोगी?’’ वह उस समय अनन्या से आंखें नहीं मिला पारहा था.

‘‘अर्णव, तुम्हारे प्यार के लिए सैलरी क्या, मैं तो अपनी जान भी कुरबान कर दूं.’’

अर्णव ने तुरंत अपना हाथ उस के मुंह पर रख दिया.

जब उस ने सरप्राइज गिफ्ट के तौर पर हनीमून पैकेज के टिकट और प्रोग्राम उसे बताया तो वह खुश तो हुआ, लेकिन चेहरे पर घबराहट दिखाई दे रही थी.

‘‘परेशान क्यों हो? कोई प्रौब्लम हो तो बताओ?’’

‘‘नहीं… नहीं…’’

दोनों कश्मीर की वादियों में श्रीनगर, पहलगाम, खिलनमर्ग घूम कर वैष्णोदेवी के दर्शन करने भी गए.

अर्णव की एक बात अनन्या को बहुत खटकी कि हनीमून के दिनों में भी वह पूजापाठ करता और घंटों तक माला जपता.

बर्फबारी के कारण फ्लाइट कैंसिल हो जाने की वजह से वे 1 दिन देर से घर लौटे. जैसे ही उन्होंने मम्मीजी को फोन किया कि वे लोग घर पहुंच रहे हैं, वे नाराज स्वर में बोलीं, ‘‘आज 9वां दिन है, इसलिए आज की रात कहीं होटल में रुक जाओ. कल सुबह आना.’’

अनन्या बोल पड़ी, ‘‘यह क्या बेवकूफी है?’’

‘‘तुम नहीं समझोगी. आज 9वें दिन घर लौटना अशुभ होता है.’’

उसे अर्णव की सोच पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन चुप रही.

अब अनन्या चुपचाप अपनी ससुराल की दिनचर्या समझने की कोशिश कर रही

थी, क्योंकि अभी उस की छुट्टियां बाकी थीं.

रोज सुबह 7-8 बजे के बीच एक पंडितजी का आगमन होता, उन की सेवा के लिए फूलफल और नियमित रूप से मिठाई मंगाई जाती. स्वाभाविक था कि उन पंडितजी को महीने का पारिश्रमिक भी दिया जाता रहा होगा.

मम्मीजी भी घंटों न जाने क्याक्या पाठ करतीं. फिर माला जपतीं. अर्णव भी पीछे नहीं रहते. उन का पूजापाठ तो हनीमून पीरियड में भी चलता रहा था.

‘‘अनन्या ध्यान रहे, मेरे यहां उन खास दिनों में किचन में प्रवेश करना वर्जित है. हमारा घर पूजापाठ वाला घर है. तुम उन दिनों अर्णव से दूर रहना.’’

सास की बातें सुन अनन्या को झटका लगा कि आज 21वीं सदी में भी लोगों की सोच ऐसी है. आज भी परिवारों में इस तरह का अंधविश्वास जड़ें जमाए है. मासिकधर्म के

दिनों के दौरान यह करो, यह न करो सुनसुन कर उस की इच्छा हुई कि वह अपना माथा पीट ले. उसे अफसोस था तो इस बात का कि उस का पति अर्णव भी उसी कट्टर सोच को मानने वाला है.

अच्छाई यह थी कि मम्मीजी और अर्णव दोनों ही उस का बहुत खयाल रखते थे. मम्मीजी उसे चाय भी नहीं बनाने देतीं, न ही घर का और कोई काम करने को कहतीं.

अनन्या की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. इसलिए वह घड़ी में अलार्म लगा कर सोई, क्योंकि उसे 8 बजे घर से निकलना था. वह नहाधो कर किचन में अपना नाश्ता और चाय बनाने के लिए गई तो देखा कि मम्मीजी ने उस का फैवरिट पोहा तैयार कर रखा है और टिफिन भी तैयार था. लेकिन अंधविश्वास में डूबी मम्मीजी ने उस की ड्रैस के कलर के लिए टोक कर उस का मूड खराब कर दिया.

अनन्या चुपचाप औफिस चली गई. उस की शादी को 6 महीने होने वाले थे. वह देखती कि अर्णव और मम्मीजी टीवी चला कर धार्मिक चैनल देखते और उन में बताए गए ऊटपटांग कर्मकांड करते. ये सब देख कर उसे उन लोगों की बेवकूफी पर हंसी भी आती और गुस्सा भी. उन दोनों का दिन टोनेटोटकों और गंडेताबीजों में बीतता.

एक दिन मम्मीजी ने उसे थोड़ा डपटते हुए एक कागज

दिया, ‘‘ध्यान रखा करो. सोम को सफेद, मंगल को लालनारंगी, बुद्ध को हरे, बृहस्पतिवार को पीले, शुक्रवार को प्रिंटेड, शनिवार को काले, नीले और रविवार को सुनहरे गुलाबी कपड़े पहना करो.’’

अनन्या ने कागज हाथ में ले कर सरसरी निगाह डाली और फिर बोली, ‘‘इस से कुछ नहीं होता.’’

अब उस ने मन ही मन सोचना शुरू कर दिया था कि वह इस घर में जड़ जमाए अंधविश्वास को यहां से निकाल कर ही दम लेगी.

जब अनन्या अर्णव से बात करने की कोशिश की तो वह भी मम्मीजी की भाषा बोलने लगा. नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम जिद क्यों करती हो? मम्मीजी के बताए रंग के कपड़े पहनने में तुम्हें भला क्या परेशानी है?’’

उसे समझ में आ गया कि मर्ज ने मांबेटे दोनों के दिल और दिमाग को दूषित कर रखा है. इन लोगों का ब्रेन वाश करना बहुत आवश्यक है.

अर्णव की उंगलियों में रंगबिरंगे पत्थरों की अंगूठियों की संख्या बढ़ती जा रही थी.

वह देख रही थी कि अब सुबह 5 बजे से ही मम्मीजी की पूजा की घंटी बजने लगी है. घंटों चालीसा पढ़तीं, माला जपतीं. कभी मंगलवार का व्रत तो कभी एकादशी तो कभी शनिवार का व्रत. कभी गाय को रोटी खिलानी है तो कभी ब्राह्मणों को भोजन कराना है, कभी कन्या पूजन… वह मम्मीजी के दिनरात के पूजापाठ और भूखा रहने व व्रतउपवास देखदेख कर परेशान हो गई थी.

अर्णव भी बिना पूजा किए नाश्ता नहीं करता और घंटों लंबी पूजा चलती. अखंड ज्योति 24 घंटे जलती रहती.

मम्मीजी और अर्णव उस पर अपना प्यार तो बहुत लुटाते थे, लेकिन धीरेधीरे उन्होंने अपने अंधविश्वास और कर्मकांड की बेडि़यां उस पर भी डालने का प्रयास शुरू कर दिया, ‘‘अनन्या, गाय को यह चने की दाल और गुड़ खिला कर ही औफिस जाना… तुम से कहा था कि तुम्हें 5 बृहस्पतिवार का व्रत करना है… पंडितजी ने बताया है. इसलिए आज तुम्हारे लिए नाश्ता नहीं बनाया है.’’

‘‘मम्मीजी, मुझ से भूखा नहीं रहा जाता. भूखे रहने पर मुझे ऐसिडिटी हो जाती है. सिरदर्द और उलटियां होने लगती हैं,’’ और फिर उस ने टोस्टर में ब्रैड डाली और बटर लगा कर जल्दीजल्दी खा कर औफिस निकल गई.

अनन्या ने अब मुखर होना शुरू कर दिया था, ‘‘मम्मीजी, इस तरह भूखे रह कर यदि भगवान खुश हो जाएं तो गरीब जिन्हें अन्न का दाना मुहैया नहीं होता है, वे सब से अधिक संपन्न हो जाएं.’’

मम्मीजी का मुंह उतर गया.

जब वह शाम को लौटी तो मांबेटे के चेहरे पर तनाव दिखाई दे रहा था. उस ने देखा कि पंडितजी को मम्मीजी क्व2-2 हजार के कई नोट दे रही थीं.

अनन्या नाराज हो कर बोली, ‘‘मम्मीजी, ये पंडितजी आप का भला नहीं कर रहे हैं वरन अपना भला कर रहे हैं. यह तो उन का व्यवसाय है. लोगों को अपनी बातों में उलझाना, ग्रहों का डर दिखा कर उन से पैसे वसूलना… यह उन का धंधा है और आप जैसे लोगों को ठग कर इसे चमकाते हैं.’’

‘‘रामराम, कैसी नास्तिक बहू आई है. पूजापाठ के बलबूते ही सब काम होते हैं. माफ करना प्रभू, बेचारी भोली है.’’

शनिवार का दिन था. अनन्या की छुट्टी थी. काले लिबास में एक

तांत्रिक, जो अपने गले में बड़ीबड़ी मोतियों की माला पहने हुए थे, मम्मीजी ने उन्हें बुला कर उन से आशीर्वाद लेने को कहा तो अनन्या ने आंखें तरेर कर अर्णव की ओर देखा. उस ने उस का हाथ पकड़ कर उसे प्रणाम करने को मजबूर कर दिया. उसे अपने सिर पर तांत्रिक के हाथ का स्पर्श बहुत नगवार गुजरा.

अपना क्रोध प्रदर्शित करते हुए वह वहां से अंदर चली गई ताकि वहां से वह उन लोगों का वार्त्तालाप ध्यान से सुन सके.

‘‘माताजी महालक्ष्मी को सिद्ध करने के लिए श्मशान पर जा कर मंत्र सिद्ध करना होगा. उस महापूजा के बाद वहां की भस्म को ताबीज में रख कर पहनने से आप के सारे आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे और आप के आंगन में नन्हा मेहमान भी किलकारियां भरेगा.

‘‘यह पूजा दीवाली की रात 12 बजे की जाएगी. इस पूजा में आप की बहू को ही बैठना होगा, क्योंकि लाल साड़ी में सुहागन के द्वारा पूजा करने से महालक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होंगी.’’

अनन्या कूपमंडूक अर्णव का उत्तर सुनने को उत्सुक थी.

तभी मम्मीजी ने फुसफुसा कर उस तांत्रिक से कहा जिसे वह समझ नहीं पाई. लेकिन आज अर्णव से दोटूक बात करनी होगी.

वह तांत्रिक अपनी मुट्ठी में दक्षिणा के रुपए दबा कर जा चुका था.

आज वह मन ही मन सुलग उठी, ‘‘मम्मीजी, आप यह बताइए कि इस

पूजापाठ, तंत्रमंत्र से यदि महालक्ष्मी प्रसन्न होने वाली हैं, तो सब से पहले इन्हीं तांत्रिक महाशय के घर में धन की वर्षा हो रही होती. बेचारे क्यों घरघर भटकते फिरते.

‘‘मैं जब से आई हूं, देख रही हूं कि अर्णव का ध्यान अपने बिजनैस पर तो है नहीं… सारा दिन इन्हीं कर्मकांडों में लगा रहता है.

‘‘यदि कोई समस्या है तो उसे सुलझाने का प्रयास करिए. इस तरह की पूजापाठ से कुछ नहीं होगा.’’

मम्मीजी आ कर धीरे से बोलीं, ‘‘अनन्या, हम लोग बहुत बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं. हमारी दुकान के अकाउंटैंट ने क्व20 लाख का गबन कर लिया. वह हेराफेरी कर के रुपए इधरउधर गायब करता रहा. अर्णव ने ध्यान ही नहीं दिया. अब बैंक ने हमारी लिमिट भी कैंसिल कर दी है. इसलिए हम लोग बहुत परेशानी में हैं.’’

‘‘अर्णव, यह बताइए कि ये पंडित लोग क्या सारे अनुष्ठान मुफ्त में कर देंगे? एक ओर तो आर्थिक संकट बता रहे हैं दूसरी ओर फुजूलखर्ची करते जा रहे हैं. आप लोग फालतू बातों में अपने दिमाग को लगाए हैं.

‘‘आप वकील से मिलें. वह आप को रास्ता बताएगा. आप ने पुलिस में शिकायत दर्ज की?

‘‘आप का किस बैंक में खाता है, मुझे बताएं? मैं बैंक के मैनेजर से बात कर के आप की लिमिट को फिर से करवाने की कोशिश करूंगी.

‘‘लेकिन आप दोनों को प्रौमिस करना होगा कि अब घर में इस तरह के कर्मकांड और अंधविश्वासों से भरी बातें नहीं की जाएंगी.

‘‘यदि आप का पूजापाठ, व्रतउपवास से ठीक होना होता तो रमेश क्यों गबन कर लेता? गबन इसलिए हुआ क्योंकि आप दोनों दिनरात हवन, व्रत, रंगीन कपड़ों, रंगीन पत्थरों में ही मगन रहे और वह आप की लापरवाही का फायदा उठा कर अपना घर भरता रहा, आप को खोखला करता रहा.

‘‘मैं सालभर से आप दोनों के ऊलजुलूल अंधविश्वास भरे कर्मकांडों को देखदेख कर घुटती रही. यदि आप का यही रवैया रहा तो मैं अपने भविष्य के निर्णय के लिए स्वतंत्र हूं.’’

आज पहली बार इस लहजे में इतना बोलने के बाद जहां वे एक ओर हांफ उठी थी वहीं दूसरी ओर आंखों से आंसू भी निकल पड़े थे. फिर वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गई.

घर में सन्नाटा छाया था. काफी देर बाद मम्मीजी आईं, ‘‘बेटी तुम सही कह रही

हो. हम दोनों की आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बंधी थी. रमेश ने गबन करने के बाद अर्णव को मार डालने की भी धमकी दे दी… हम दोनों मांबेटे डर के मारे चुप रहे और इसी पूजापाठ के द्वारा समाधान पाने के लिए इसी पर अपना ध्यान केंद्रित कर लिया.

‘‘इसी संकट से निबटने के लिए तुम्हें बहू बना कर लाए ताकि हर महीने घर खर्च चलता रहे.

‘‘लेकिन अब मैं स्वयं शोरूम में बैठा करूंगी, अर्णव बाहर का काम देखा करेगा.

‘‘अनन्या मैं तुम्हारी शुक्रगुजार हूं कि तुम ने हम लोगों को सही राह दिखाई,’’ उन्होंने उस का माथा चूम कर गले से लगा लिया.

अनन्या का मन हलका हो गया था. वह बहुत खुश थी कि अंतत: अंधविश्वास के दलदल में फंसे अपने परिवार को उस ने निकाल लिया.

Hindi Moral Tales : बेईमानी का नतीजा – क्या हुआ बाप और बेटे के साथ

Hindi  Moral Tales : आधी रात का समय था. घना अंधेरा था. चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था. ऐसे में रामा शास्त्री के घर का दरवाजा धीरे से खुला. वे दबे पैर बाहर आए. उन का बेटा कृष्ण भी पीछेपीछे चला आया. उस के हाथ में कुदाली थी. रामा शास्त्री ने एक बार अंधेरे में चारों ओर देखा. लालटेन की रोशनी जहां तक जा रही थी, वहां तक उन की नजर भी गई थी. उस के आगे कुछ भी नहीं दिख रहा था.

रामा शास्त्री ने थोड़ी देर रुक कर कुछ सुनने की कोशिश की. कुत्तों के भूंकने की आवाज के सिवा कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा था. रामा शास्त्री ने अपने घर से सटे हुए दूसरे घर का दरवाजा खटखटाया और पुकारा, ‘‘नारायण.’’

नारायण इसी इंतजार में था. आवाज सुनते ही वह फौरन बाहर आ गया. ‘‘सबकुछ तैयार है. चलें क्या?’’ रामा शास्त्री बोले.

‘‘हां चलो,’’ कह कर नारायण ने घर में ताला लगा दिया और उन के पीछे हो लिया. उस के हाथ में टोकरी थी. उस की बीवी और बच्चे मायके गए थे. रामा शास्त्री लालटेन ले कर आगेआगे चलने लगे और कृष्ण व नारायण उन के पीछे चल पड़े.

रामा शास्त्री और उन का छोटा भाई नारायण पहले एक ही घर में रहते थे. छोटे भाई की 2 बेटियां थीं. रामा शास्त्री का बेटा कृष्ण 25 साल का था. उस की शादी अभी नहीं हुई थी. नारायण की बेटियां अभी छोटी थीं. घर में जेठानी और देवरानी में पटती नहीं थी. उन दोनों में हमेशा किसी

न किसी बात को ले कर झगड़ा होता रहता था. अपने मातापिता के जीतेजी नारायण व रामा शास्त्री बंटवारा नहीं करना चाहते थे. मातापिता की मौत के बाद दोनों भाइयों और उन की बीवियों के बीच मनमुटाव बढ़ गया. अंदर सुलगती आग अब भड़क उठी थी.

नारायण का मिजाज कुछ नरम था पर रामा शास्त्री चालबाज थे. भाई और भाभी की बातों में आ कर नारायण अपनी बीवी को अकसर पीटता रहता था. उस की नासमझी का फायदा उठा कर रामा शास्त्री ने चोरीछिपे कुछ रुपए भी जमा कर रखे थे. नारायण के साथ जो नाइंसाफी हो रही थी, उसे देख कर गांव के कुछ लोगों को बुरा लगता था. उन्होंने नारायण को बड़े भाई के खिलाफ भड़का दिया.

नतीजतन एक दिन दोनों के बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ और घर व जमीनजायदाद का बंटवारा हो गया. मातापिता की मौत के बाद 3 महीने के अंदर ही वे अलग हो गए. सब बंटवारा तो ठीक से हो गया, मगर बाग को ले कर फिर झगड़ा शुरू हो गया. रामा शास्त्री बाग को अपने लिए रखना चाहते थे. इस के बदले में वे सारी जायदाद छोड़ने के लिए तैयार थे. लेकिन 6 एकड़ के बाग में नारायण अपना हिस्सा छोड़ने को तैयार नहीं था.

बाग में 3 सौ नारियल के पेड़ और सौ से ज्यादा सुपारी के पेड़ थे. उस से सटी हुई 6 एकड़ खाली जमीन भी थी. बाकी जमीन भी बहुत उपजाऊ थी. बाग से जितनी आमदनी होती थी, उतनी बाकी जमीन में भी होती थी. लेकिन नारायण की जिद की वजह से बाग का भी 2 हिस्सों में बंटवारा हो गया.

रामा शास्त्री ने अपने हिस्से के बाग में जो खाली जगह थी, वहां रहने के लिए मकान बनवाना शुरू कर दिया. इसी चक्कर में एक दिन शाम को मजदूरों के जाने के बाद कृष्ण नींव के लिए खोदी गई जगह का मुआयना कर रहा था. वह एक जगह पर कुदाली से मिट्टी हटाने लगा, क्योंकि वहां मिट्टी अंदर से खिसक रही थी.

कृष्ण ने 2 फुट गहराई का गड्ढा खोद डाला. नीचे एक बड़ा चौकोर पत्थर था. उस के नीचे एक लोहे का जंग लगा ढक्कन था, मगर वह उसे खोल नहीं सका. उस ने सोचा कि वहां कोई राज छिपा हुआ होगा. वह मिट्टी से गड्ढा भर कर वापस घर लौट गया. उस ने अपने पिता को सबकुछ बताया. रामा शास्त्री ने बेटे के साथ आ कर अच्छी तरह से गड्ढे की जांच की. देखते ही देखते उन का चेहरा खिल उठा. उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वे कुछ पलों तक सुधबुध खो कर बैठ गए.

कुछ देर बाद रामा शास्त्री ने इधरउधर देखा और कहा, ‘‘कृष्ण, मिल गया… मिल गया.’’ 4-5 पीढि़यों पहले रामा शास्त्री का कोई पुरखा किसी राजा का खजांची रह चुका था. वह अपने एक साथी के साथ राजा के खजाने का बहुत सा धन चुरा कर भाग गया था. राजा को इस बात का पता चल गया था.

राजा ने सैनिकों को चारों ओर भेजा, लेकिन वे चोर तलाशने में नाकाम रहे. राजा ने चोरों के घर वालों को तमाम तकलीफें दीं, मगर कुछ भी नतीजा नहीं निकला. इस के बाद सभी पीढ़ी के लोग मरते समय अपने बेटों को यह बात बता कर जाते. लेकिन किसी को भी वह छिपाया गया खजाना नहीं मिला था.

रामा शास्त्री ने तय किया था कि अगर उन्हें खजाना मिल गया तो वे एक मंदिर बनवाएंगे. उन का सपना अब पूरा होने वाला था. बापबेटा दोनों लोहे का ढक्कन हटाने की कोशिश कर रहे थे कि उसी समय नारायण भी वहां आ गया. उस का आना रामा शास्त्री व कृष्ण दोनों को अच्छा नहीं लगा.

उन की बेचैनी देख कर नारायण को कुछ शक हुआ और इस काम में वह भी शामिल हो गया. तीनों ने मिल कर उस ढक्कन को हटा दिया. उस के नीचे भी मिट्टी ही थी. लेकिन वहां कुछ खोखला था. लकड़ी के तख्त पर मिट्टी बिछी हुई थी. उन को यकीन हो गया कि अंदर कोई खजाना है.

इतने में दूर से किसी की बातचीत सुनाई पड़ी, इसलिए उन्होंने गड्ढे पर पत्थर रख दिया. फिर रात को दोबारा आ कर खजाना निकालने की योजना बनाई गई.

आधी रात को कुदाली ले कर तीनों चल पड़े. वे गांव के मंदिर के पास वाली पगडंडी से होते हुए बाग की ओर चल पड़े. वे चारों ओर सावधानी से देखते हुए चल रहे थे. दूर से किसी की आहट सुन कर वे लालटेन बुझा कर पास के इमली के पेड़ की आड़ में छिप गए.

पड़ोस के गांव गए 2 लोग बातें करते हुए वापस आ रहे थे. नजदीक आतेआते उन की बातें साफ सुनाई दे रही थीं. एक ने कहा, ‘‘इधर कहीं आग की लपट दिखाई दी थी न?’’

दूसरे ने कहा, ‘‘हां, मैं ने भी देखी थी… आग का भूत होगा.’’ पहला आदमी बोला, ‘‘सचमुच भूत ही होगा. उसे परसों रंगप्पा ने यहीं देखा था. इस इमली के पेड़ में मोहिनी भूत है.

‘‘रंगप्पा अकेला आ रहा था. पेड़ के पास कोई औरत सफेद साड़ी पहने खड़ी थी. उसे देख कर रंगप्पा डर कर घर भाग गया था. उस के बाद वह 3 दिनों तक बीमार पड़ा रहा.’’ तभी इमली के पेड़ से सरसराहट की आवाज सुनाई दी.

‘भूत… भूत…’ चिल्ला कर वे दोनों तेजी से भागे. कुछ देर बाद रामा शास्त्री, नारायण और कृष्ण पेड़ की आड़ से बाहर निकल कर बाग की ओर चल पड़े. बाग के पास पहुंच कर उन्होंने कुछ देर तक आसपास का जायजा लिया. वहां कोई न था. दूर से सियारों की आवाज आ रही थी. फिर तीनों वहां खड़े हो गए, जहां खजाना गड़ा होने की उम्मीद थी.

कृष्ण कुदाली से मिट्टी खोदने लगा, तो नारायण टोकरी में भर कर मिट्टी एक तरफ डालता रहा. रामा शास्त्री आसपास के इलाके पर नजर रखे हुए थे. लोहे का ढक्कन हटा कर नीचे की मिट्टी निकाल कर एक ओर फेंक दी गई. उस के नीचे मौजूद लकड़ी के तख्त को भी हटा दिया गया, तख्त के नीचे एक गोलाकार मुंह वाला गहरा गड्ढा नजर आया. उस की गहराई करीब

6 फुट थी. लालटेन की रोशनी में अंदर कुछ कड़ाहियां दिखाई पड़ीं. नारायण गड्ढे के अंदर झांक कर देख रहा था तभी रामा शास्त्री ने कृष्ण को कुछ इशारा किया. अचानक नारायण के सिर पर एक बड़े पत्थर की मार पड़ी. वह बिना आवाज किए वहीं लुढ़क गया.

दोबारा पत्थर की मार से उस का काम तमाम हो गया. उस की लाश को बापबेटे ने घसीट कर एक ओर फेंक दिया. रामा शास्त्री लालटेन हाथ में ले कर खड़े हो गए. कृष्ण गड्ढे में कूद पड़ा. गड्ढे में जहरीली गैस की बदबू भरी थी. कृष्ण को सांस लेने में मुश्किल हो रही थी. उस ने लालटेन की रोशनी में अंदर चारों ओर देखा.

दीवार से सटी हुई 6 ढकी हुई कड़ाहियां रखी हुई थीं. कृष्ण ने कुदाली से एक कड़ाही के मुंह पर जोर से मारा, तो उस का ढक्कन खुल गया. उस में चांदी के सिक्के भरे थे. दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वे उस सारे खजाने के मालिक थे. तभी कृष्ण की नजर वहां एक कोने में पड़ी हुई किसी चीज पर पड़ी. वह जोर से चीख उठा. डर से उस का जिस्म कांपने लगा.

रामा शास्त्री ने परेशान हो कर भीतर झांक कर देखा तो वे भी थरथर कांपने लगे. वहां 2 कंकाल पड़े थे. वे शायद खजांची और उस के साथी के रहे होंगे. रामा शास्त्री ने किसी तरह खुद को संभाला और बेटे को हौसला बंधाते हुए एकएक कर सभी कड़ाहियां ऊपर देने को कहा.

कड़ाहियां भारी होने की वजह से उन्हें उठाना कृष्ण के लिए मुश्किल हो रहा था. जहरीली गैस की वजह से उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी. कृष्ण ने बहुत कोशिश कर के एक कड़ाही को कमर तक उठाया ही था कि उस का सिर चकरा गया और आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह कड़ाही लिए हुए नीचे गिर गया.

रामा शास्त्री घबरा कर कृष्ण को पुकारने लगे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. परेशान हो कर वह भी गड्ढे में कूद पड़े. जहरीली गैस की वजह से उन से भी वहां सांस लेना मुश्किल हो गया. उन्होंने कृष्ण को  उठाने की कोशिश की, लेकिन उठा न सके. वह भी बेदम हो कर नीचे गिर पड़े. बाप और बेटे फिर कभी नहीं उठे. वे मर चुके थे.

E Vehicle : गरमी में ऐसे करें केयर

E Vehicle : मौसम विभाग के अनुसार इस बार पारा 50 सैल्सियस के पार हो सकता है. ऐसे में गरमी के इस मौसम में अपने व्हीकल का ध्यान रखना और भी जरूरी हो जाता है. इस पर भी अगर व्हीकल इलैक्ट्रिकल है तो खासतौर पर ध्यान रखा जाना चाहिए क्योंकिइलैक्ट्रिक कारों की बैटरी में हीटिंग इशू होता है और इस से कार में आग भी लग सकती है.

आइए, जानें गरमी में अपनी कार की देखभाल कैसे करें:

पार्क करें ध्यान से

कई लोगों की आदत होती है जहां जगह मिली बस गाड़ी पार्क कर दी. कुछ तो गाड़ी पार्क करने के लिए अच्छी जगह ढूंढ़ने का आलस और दूसरा पार्किंग के पैसे बचाने का लोभ. अगर आप भी ऐसा करते हैं तो अगली बार जरा सोचसमझ कर करें. अब गरमियां आ गई हैं और ऐसे में अगर आप ने गाड़ी धूप में लगा दी तो आप मुश्किल में पड़ सकते हैं.

धूप में गाड़ी खड़ी करने से बैटरी गरम हो सकती है. ओवरहीट के चक्कर में आप की गाड़ी या स्कूटर आग पकड़ सकता है, जिस से इस की ऐफिशिएंसी और लाइफ कम होने की संभावना रहती है. इसलिए गरमी के मौसम में अपनी गाड़ी छाया में ही खड़ी करें.

बैटरी 70 से 80तक ही चार्ज करें

जिस तरह मोबाइल की बैटरी को ज्यादा चार्ज करने पर उस के फटने का डर रहता है उसी तरह इस साल जिस तरह ज्यादा गरमी की संभावना है उस में लंबे समय तक चार्ज करने से बैटरी खराब हो सकती है और समय के साथ इस की परफौर्मैंस भी कम हो सकती है. इस के आलावा अपनी बैटरी को हमेशा उस के औरिजनल चार्जर से ही चार्ज करें.

प्रीकंडीशनिंग फीचर का यूज करें

कई इलैक्ट्रिक वाहन (ईवी) प्रीकंडीशनिंग फीचर से लैस होते हैं, जिस से आप को कार में बैठने से पहले कार के कैबिन को ठंडा करने की सुविधा मिलती है. यह बैटरी की टैंशन को कम करता है और जब आप गाड़ी चलाते हैं आप को एक आरामदायक ड्राइव ऐक्सपीरियंस मिलता है.

सर्विस अच्छी जगह ही कराएं

कई लोगों की आदत होती है अपने थोड़े से पैसे बचाने के चक्कर में अपनी गाड़ी की सर्विस लोकल मार्केट में करा लेते हैं. कई बार वहां नएनए लड़के काम पर आते हैं उन्हें काम का उतना अनुभव नहीं होता जिस वजह से वे कोई ऐसी कमी छोड़ देते हैं जिस से आप का नुकसान हो जाता है. यह चीज गरमी के मौसम में तो और भी ज्यादा खतरनाक हो जाती है. ढीले तार और शौर्ट सर्किट से व्हीकल में आग लग सकती है. इसलिए अपनी गाड़ी को टाइम पर और अच्छी जगह से ही सर्विस कराएं.

स्पीड पर नियंत्रित रखें

अगर आप तेज रफ्तार पसंद लोगों में से हैं तो जरा इस मौसम का भी खयाल कर लें. चिलचिलाती गरमी में तेज स्पीड रखने पर मोटर और बैटरी पर ज्यादा दबाव पड़ता है. इस से आग लगने का खतरा बढ़ जाता है इसलिए स्पीड कंट्रोल में रखें.

चार्जिंग के बाद तापमान चैक करें

चार्जिंग के बाद कार की बैटरी के तापमान को चैक करें. अगर बैटरी बहुत गरम हो गई है तो उसे कुछ समय के लिए आराम करने दें.

गाड़ी को चैक कराते रहें

इलैक्ट्रिक कार की बैटरी, मोटर और चार्जिंग सिस्टम को नियमित चैक करना चाहिए. कार का नियमित रखरखाव करने से उस की लाइफ बढ़ती है और गरमी का पड़ने वाला असर कम होता है.

टायर प्रैशर चैक करते रहें

गर्मी में टायर का दबाव कम हो सकता है, जिस से माइलेज कम होती है और टायर फटने का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐसे में नियमित रूप से टायर प्रैशर की जांच कराते रहें.

राइड के तुरंत बाद बैटरी चार्ज न करें

राइड के दौरान लिथियम आयन बैटरी पैक गरम रहती है और जब कहीं से आने के बाद तुरंत बैटरी चार्जिंग पर लगा देते हैं तो हम आप को बता दें कि लंबी राइड के बाद तुरंत बैटरी चार्ज करने पर बैटरी के खराब होने का खतरा रहता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें