7 टिप्स: खूबसूरत स्किन और बालों के लिए वोदका

पार्टी आदि में वोदका खूब पी जाती है लेकिन क्‍या आप जानती हैं कि यह वोदका आपके बालों तथा त्‍वचा के लिये कितनी ज्‍यादा फायदेमंद है. हम इसे पीने के लिये नहीं कह रहे हैं बल्‍कि हम इसे चेहरे पर लगाने तथा शैंपू की तरह प्रयोग करने की सलाह दे रहे हैं.

वोदका एक रशियन ड्रिंक है. क्‍या आपने कभी नोटिस किया है कि रशियन लेडिज के चेहरे हर वक्‍त चमकते क्‍यूं रहते हैं? ऐसा इसलिये क्‍योंकि वे वोदका को एक सौंदर्य सामग्री के रूप में प्रयोग करती हैं.

चेहरे को चमकदार बनाना हो या फिर चाहे मुंहासे हटाने हों, वोदका की बस कुछ बूंदे अपना असर दिखा सकती हैं. यह बालों को मजबूत बनाता है तथा बालों से रूसी का भी सफाया करता है. तो चलिये जानते हैं वोदका किस प्रकार से चेहरे तथा बालों के लिये अच्‍छी मानी जाती है.

1. चेहरे पर चमक भरे: चेहरे पर चमक भरनी हो तो आप थोड़े से वोदका को कॉटन बॉल में लगा कर चेहरे पर लगा सकती हैं. इससे मुर्झाया हुआ चेहरा बिल्‍कुल खिल उठेगा और चेहरे पर चमक आ जाएगी.

2. स्‍किन को टोन करे: इसे चेहरे पर लगाने से स्‍किन के खुले पोर्स बंद हो कर टाइट हो जाते हैं, जिस्‍से स्‍किन स्‍मूथ दिखने लगती है.

3. झुर्रियां मिटाए: वोदका में स्‍टार्च होता है जो लटकती हुई त्‍वचा को टाइट बनाने में मदद करता है. इसके नियमित प्रयोग से बारीक धारियां गायब हो जाती हैं.

4.एक्‍ने और मुंहासों से छुट्टी: वोदका में एंटीबैक्‍टीरियल गुण होते हैं इसलिये मुंहासों पर वोदका लगाने से मुंहासे जल्‍द ही सूख जाते हैं.

5. बालों और त्‍वचा को साफ करे: इसमें त्‍वचा तथा बालों से गंदगी साफ करने की क्षमता होती है. इसे लगाने से त्‍वचा और बाल सुंदर और स्‍वस्‍थ बनते हैं.

6. बाल बनें मुलायम: अपने शैंपू में थोड़ा सा वोदका मिला कर लगाने से बाल मुलायम बनते हैं तथा उनमें नमी आती है. साथ ही रूखे-सूखे बाल ठीक हो जाते हैं.

7. रूसी से मुक्‍ति: वोदका में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो फंगस और बैक्‍टीरिया का खात्‍मा करता है. यही बैक्‍टीरिया सिर में रूसी का कारण बनते हैं. इसके लिये आपको अपने शैंपू में कुछ बूंद वोदका की मिलानी होंगी और फिर उससे सिर धोना होगा.

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घर संभालता प्यारा पति

सुबह के 8 बजे हैं. घड़ी की सूइयां तेजी से आगे बढ़ रही हैं. स्कूल की बस किसी भी क्षण आ सकती है. घर का वातावरण तनावपूर्ण सा है. ऐसे में बड़ा बेटा अंदर से पापा को आवाज लगाता है कि उसे स्कूल वाले मोजे नहीं मिल रहे. इधर पापा नानुकुर कर रही छोटी बिटिया को जबरदस्ती नाश्ता कराने में मशगूल हैं. इस के बाद उन्हें बेटे का लंचबौक्स भी पैक करना है. बेटे को स्कूल भेज कर बिटिया को नहलाना है और घर की डस्टिंग भी करनी है.

यह दृश्य है एक ऐसे घर का जहां बीवी जौब करती है और पति घर संभालता है यानी वह हाउस हसबैंड है. सुनने में थोड़ा विचित्र लगे पर यह हकीकत है.

पुरातनपंथी और पिछड़ी मानसिकता वाले भारतीय समाज में भी पतियों की यह नई प्रजाति सामने आने लगी है. ये खाना बना सकते हैं, बच्चों को संभाल सकते हैं और घर की साफसफाई, बरतन जैसे घरेलू कामों की जिम्मेदारी भी दक्षता के साथ निभा सकते हैं.

ये सामान्य भारतीय पुरुषों की तरह नहीं सोचते, बिना किसी हिचकिचाहट बिस्तर भी लगाते हैं और बच्चे का नैपी भी बदलते हैं. समाज का यह पुरुष वर्ग पत्नी को समान दर्जा देता है और जरूरत पड़ने पर घर और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाने को भी हाजिर हो जाता है.

हालांकि दकियानूसी सोच वाले भारतीय अभी भी ऐसे हाउस हसबैंड को नाकारा और हारा हुआ पुरुष मानते हैं. उन के मुताबिक घरपरिवार की देखभाल और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी सदा से स्त्री की रही है, जबकि पुरुषों का दायित्व बाहर के काम संभालना और कमा कर लाना है.

हाल ही में हाउस हसबैंड की अवधारणा पर आधारित एक फिल्म आई थी ‘का एंड की.’ करीना कपूर और अर्जुन कपूर द्वारा अभिनीत इस फिल्म का मूल विषय था- लिंग आधारित कार्यविभेद की सोच पर प्रहार करते हुए पतिपत्नी के कार्यों की अदलाबदली.

लिंग समानता का जमाना

आजकल स्त्रीपुरुष समानता की बातें बढ़चढ़ कर होती हैं. लड़कों के साथ लड़कियां भी पढ़लिख कर ऊंचे ओहदों पर पहुंच रही हैं. उन के अपने सपने हैं, अपनी काबिलीयत है. इस काबिलीयत के बल पर वे अच्छी से अच्छी सैलरी पा रही हैं. ऐसे में शादी के बाद जब वर्किंग कपल्स के बच्चे होते हैं तो बहुत से कपल्स भावी संभावनाओं और परेशानियों को समझते हुए यह देखते हैं कि दोनों में से किस के लिए नौकरी महत्त्वपूर्ण है. इस तरह आपसी सहमति से वे वित्तीय और घरेलू जिम्मेदारियों को बांट लेते हैं.

यह पतिपत्नी का आपसी फैसला होता है कि दोनों में से किसे घर और बच्चों को संभालना है और किसे बाहर की जिम्मेदारियां निभानी हैं.

यहां व्यवहारिक सोच महत्त्वपूर्ण है. यदि पत्नी की कमाई ज्यादा है और कैरियर को ले कर उस के सपने ज्यादा प्रबल हैं तो जाहिर है कि ऐसे में पत्नी को ब्रैड अर्नर की भूमिका निभानी चाहिए. पति पार्टटाइम या घर से काम करते हुए घरपरिवार व बच्चों को देखने का काम कर सकता है. इस से न सिर्फ बच्चों को अकेला या डेकेयर सैंटर में छोड़ने से पैदा तनाव कम होता है, बल्कि उन रुपयों की भी बचत होती है जो बच्चे को संभालने के लिए मेड या डेकेयर सैंटर को देने पड़ते हैं.

हाउस हसबैंड की भूमिका

हाउस हसबैंड होने का मतलब यह नहीं है कि पति पूरी तरह से पत्नी की कमाई पर निर्भर हो जाए या जोरू का गुलाम बन जाए. इस के विपरीत घर के काम और बच्चों को संभालने के साथसाथ वह कमाई भी कर सकता है. आजकल घर से काम करने के अवसरों की कमी नहीं. आर्टिस्ट, राइटर्स ज्यादा बेहतर ढंग से घर पर रह कर काम कर सकते हैं. पार्टटाइम काम करना भी संभव है.

सकारात्मक बदलाव

लंबे समय तक महिलाओं को गृहिणियां बना कर सताया गया है. उन के सपनों की अवहेलना की गई है. अब वक्त बदलने का है. एक पुरुष द्वारा अपने कैरियर का त्याग कर के पत्नी को अपने सपने सच करने का मौका देना समाज में बढ़ रही समानता व सकारात्मक बदलाव का संदेश है.

एकदूसरे के लिए सम्मान

जब पतिपत्नी अपनी ब्रैड अर्नर व होममेकर की पारंपरिक भूमिकाओं को आपस में बदल लेते हैं, तो वे एकदूसरे का अधिक सम्मान करने लगते हैं. वे पार्टनर की उन जिम्मेदारियों व काम के दबाव को महसूस कर पाते हैं, जो इन भूमिकाओं के साथ आते हैं.

एक बार जब पुरुष घरेलू काम और बच्चों की देखभाल करने लगता है तो खुद ही उस के मन में महिलाओं के लिए सम्मान बढ़ जाता है. महिलाएं भी उन पुरुषों को ज्यादा मान देती हैं जो पत्नी के सपनों को उड़ान देने में अपना योगदान देते हैं और स्त्रीपुरुष में भेद नहीं मानते.

जोखिम भी कम नहीं

समाज के ताने: पिछड़ी और दकियानूसी सोच वाले लोग आज भी यह स्वीकार नहीं कर पाते कि पुरुष घर में काम करे व बच्चों को संभाले. वे ऐसे पुरुषों को जोरू का गुलाम कहने से बाज नहीं आते. स्वयं चेतन भगत ने स्वीकार किया था कि उन्हें ऐसे बहुत से सवालों का सामना करना पड़ा जो सामान्यतया ऐसी स्थिति में पुरुषों को सुनने पड़ते हैं. मसलन, ‘अच्छा तो आप की बीवी कमाती है?’ ‘आप को घर के कामकाज करने में कैसा महसूस होता है? वगैरह.’

पुरुष के अहं पर चोट: कई दफा खराब परिस्थितियों या निजी असफलता की वजह से यदि पुरुष हाउस हसबैंड बनता है तो वह खुद को कमजोर और हीन महसूस करने लगता है. उसे लगता है जैसे वह अपने कर्त्तव्य निभाने (कमाई कर घर चलाने) में असफल नहीं हो सका है और इस तरह वह पुरुषोचित कार्य नहीं कर पा रहा है.

मतभेद: जब स्त्री बाहर जा कर काम कर पैसे कमाती है और पुरुष घर में रहता है तो और भी बहुत सी बातें बदल जाती हैं. सामान्यतया कमाने वाले के विचारों को मान्यता दी जाती है. उसी का हुक्म घर में चलता है. ऐसे में औरत वैसे इशूज पर भी कंट्रोल रखने लगती है जिन पर पुरुष मुश्किल से ऐडजस्ट कर पाते हैं.

सशक्त और अपने पौरुष पर यकीन रखने वाला पुरुष ही इस बात को नजरअंदाज करने की हिम्मत रख सकता है कि दूसरे लोग उस के बारे में क्या कह रहे हैं. ऐसे पुरुष अपने मन की सुनते हैं न कि समाज की.

स्त्रीपुरुष गृहस्थी की गाड़ी के 2 पहिए हैं. आर्थिक और घरेलू कामकाज, इन 2 जिम्मेदारियों में से किसे कौन सी जिम्मेदारी उठानी है, यह कपल को आपस में ही तय करना होगा. समाज का दखल बेमानी है.

जानेमाने हाउस हसबैंड्स

ऐसे बहुत से जानेमाने चेहरे हैं, जिन्होंने अपनी इच्छा से हाउस हसबैंड बनना स्वीकार किया है-

भारतीय लेखक चेतन भगत, जिन के उपन्यासों पर ‘थ्री ईडियट्स’, ‘2 स्टेट्स’, ‘हाफ गर्लफ्रैंड’ जैसी फिल्में बन चुकी हैं, ने अपने जुड़वां बच्चों की देखभाल के लिए हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया.

वे ऐसे दुर्लभ पिता हैं, जिन्होंने आईआईटी, आईआईएम से निकलने के बाद अपने बच्चों को अपने हाथों बड़ा किया. हाउस हसबैंड बनने का फैसला उन्होंने तब लिया था जब वे अपने कैरियर में ज्यादा सफल नहीं थे जबकि उन की पत्नी यूबीएस बैंक की सीईओ थीं. चेतन भगत ने नौकरी छोड़ कर भारत आने का फैसला लिया और खुशीखुशी घर व बच्चों की देखभाल में समय लगाने लगे. साथ में लेखन का कार्य भी चलता रहा. आज उसी चेतन भगत के उपन्यासों का लोगों को बेसब्री से इंताजर रहता है.

इसी तरह की कहानी जानेमाने फुटबौलर डैविड बैकहम की भी है, जिन्होंने प्रोफैशनल फुटबौल की दुनिया से अलविदा कह कर हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया. एक टैलीविजन शो के दौरान उन्होंने स्वीकारा था कि वे अपने 4 बच्चों के साथ समय बिता कर ऐंजौय करते हैं. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, स्कूल छोड़ कर आना, लंच बनाना, सुलाना जैसे सभी कामों को वे बड़ी सहजता से करते हैं.

न्यूटन इनवैस्टमैंट मैनेजमैंट की सीईओ हेलेना मोरिसे लंदन की चंद ऐसी महिला सीईओ में से एक हैं जो 50 बिलियन पाउंड्स से ज्यादा का कारोबार संभालती हैं और करीब 400 से ज्यादा कर्मचारियों पर हुक्म चलाती हैं. वे 9 बच्चों की मां भी हैं. जब हेलेना ने बिजनैस वर्ल्ड में अपना मुकाम बनाया तो उन के पति रिचर्ड ने खुशी से घर पर रह कर बच्चों की जिम्मेदारी उठाना स्वीकारा.

कुछ इसी तरह की कहानी भारत की सब से शक्तिशाली बिजनैस वूमन, इंदिरा नूई की भी है. पेप्सिको की सीईओ और चेयरमैन इंदिरा नूई के पति अपनी फुलटाइम जौब को छोड़ कर कंसलटैंट बन गए ताकि वे अपनी दोनों बच्चियों की देखभाल कर सकें.

इसी तरह बरबेरी की सीईओ ऐंजेला अर्हेंड्स के पति ने भी अपनी पत्नी के कैरियर के लिए अपना बिजनैस समेट लिया और बच्चों की देखभाल व घर की जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले लीं.

डिप्लोमैट जेम्स रुबिन ने भी खुशीखुशी अपनी हाई प्रोफाइल जौब छोड़ दी ताकि वे अपनी पत्नी जर्नलिस्ट क्रिस्टीन अमान पोर को सफलता की सीढि़यां चढ़ता देख सकें. उन्होंने जौब छोड़ कर अपने बेटे की परवरिश करने की ठानी.

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Anupama बनने के बाद काफी बदल चुकी हैं Rupali Ganguly, देखें फोटोज

सीरियल अनुपमा (Anupamaa) की कहानी में जहां नए-नए ट्विस्ट आ रहे हैं तो वहीं टीआरपी में भी सीरियल कमाल करता दिख रहा है. इन दिनों सीरियल में फैंस को अनुपमा और अनुज की रोमांटिक कैमेस्ट्री काफी पसंद आ रही हैं. हालांकि बुढापे में अनुपमा के मां बनने को लेकर मेकर्स को ट्रोलिंग का सामना भी करना पड़ रहा है. हालांकि अनुपमा यानी रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और सीरियल के दूसरे सितारे (Anupamaa Serial Cast) शो को हिट बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इसी बीच, रुपाली गांगुली का लेटेस्ट पोस्ट सोशलमीडिया पर छा गया है, जिसमें उनका नया अवतार देखने को मिल रहा है.

अनुपमा को बनाया खूबसूरत

 

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सीरियल में इन दिनों कपाड़िया खानदान की बहू बनने के बाद अनुपमा का नया अवतार देखने को मिलने वाला है. दरअसल, हाल ही में रुपाली गांगुली ने अनुपमा के लुक में नई फोटोज शेयर की हैं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. खूबसूरत बनारसी साड़ी पहने और बालों में गजरा औऱ गोल्ड की ज्वैलरी पहने अनुपमा के लुक में रुपाली गांगुली बेहद खूबसूरत लग रही हैं.

 

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 काफी वजन घटा चुकी हैं रुपाली गांगुली

 

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सीरियल अनुपमा के लिए रुपाली गांगुली काफी वजन घटा चुकी हैं, जिसका अंदाजा उनकी लेटेस्ट फोटोज से लगाया जा सकता है. मौर्डन लुक में रुपाली गांगुली का ट्रांसफौर्मेशन फैंस को काफी पसंद आ रहा है और वह एक्ट्रेस के पोस्ट पर कमेंट करते हुए तारीफें कर रहे हैं.

 

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बेहद ग्लैमरस हैं रुपाली

 

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सीरियल अनुपमा में जहां एक्ट्रेस रुपाली गांगुली का रोल बेहद सिंपल है तो वहीं रियल लाइफ में वह नए-नए अवतार में नजर आती हैं. किसी अवौर्ड शो में गाउन हो या बर्थडे पार्टी में वेस्टर्न अवतार हर लुक में एक्ट्रेस रुपाली गांगुली बेहद खूबसूरत लगती हैं. हाल ही में एक फोटोशूट में एक्ट्रेस का ग्लैमरस लुक सोशलमीडिया पर काफी वायरल हुआ था. वहीं फैंस ने भी इस लुक की काफी तारीफें की थीं.

 

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Customized Furniture से घर को सजाएं कुछ ऐसे

क्या आप घर में पुराने फ़र्निचर देखकर थक चुके है, क्या उसे आप बदलना चाहते है? बजट कम है? आइये बताते है कुछ आसान बातें, जिससे आप घर की फर्नीचर को अपने बजट और टेस्ट के अनुसार बदल सकते है या फिर नए घर को सजा सकते है.

मुंबई जैसे शहर में, जहाँ फ्लैट्स बाकी शहरों की तुलना में काफी छोटे होते है,कस्टमाइज्डफर्नीचर का प्रचलन अधिक है. सही ढंग से फर्नीचर रखे होने पर हर कमरे की जगह सही तरीके से उपयोग करना संभव होता है.साथ ही कमरे बड़े और अच्छे लगते है, जिसे आजकल फ्लैट या मकान मालिक करवाना पसंद करते है. इसके अलावा घर की फर्नीचर को बदलने के लिए भी अनुकूल फर्नीचर मार्केट से रेडीमेड खरीदकर या जगह के अनुसार कारीगर के द्वारा बनाया जा सकता है, इसमें सभी काम बजट के अनुसार ही किया जाता है. इस बारें में कारपेंटर श्यामलाल कहते है कि मैं उत्तरप्रदेश का रहने वाला हूँ, मुंबई आकर कम जगह में फर्नीचर बनाने की कला सीखी और अब मैंने कई फ्लैट्स में कस्टमाइज्ड फर्नीचर बनाए है, जिसे फ्लैट मालिक बहुत पसंद करते है, वे कहते है कि इसमें पहले ओनर के साथ मिलकर फर्नीचर का खाका तैयार करना पड़ता है,इसके बाद लकड़ियों का चयन और बनाने का कॉस्ट बताता हूँ,मैं अधिकतर अच्छी लकड़ियों से ही फर्नीचर बनाता हूँ, जो काफी सालों तक चलती है. बजट कम हो तो इंजिनीयर वुड से भी फर्नीचर बनता हूँ.

कस्टमाइज्डफर्नीचर है क्या

  • इस तरह के फर्नीचर ओनर अपने स्टाइल से आर्डर देकर अपने पसंद के अनुसार कारपेंटर को बुलाकर फ़र्निचर बनाते है.
  • ऐसे फर्नीचर एक्सक्लूसिव होते है, क्योंकि वैसी डिजाईन मार्केट में नहीं मिलता.
  • कस्टमाइज्डफर्नीचर अधिकतर ट्रेडिशनल होते है, जिसमे कारपेंटर की कारीगरी खास होती है, क्योंकि इसे बनाने के लिए स्किल्ड कारीगर और शिल्पी की जरुरत होती है, इसलिए ऐसे काम करने वाले कारीगर भी कम है और इसका खर्चा भी बाकी फर्नीचर से अधिक होता है, क्योंकि इसमें प्रयोग किये जाने वाले मटेरियल और लकड़ियाँ भी बहुत खास होती है.

लाभ

  • ऐसे फर्नीचर को टेलर मेड फर्नीचर भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें व्यक्ति की खास स्टाइल और टेस्ट को अधिक महत्व मिलता है.
  • कस्टमाइज्ड फर्नीचरके द्वारा कमरे के जगह का अधिक से अधिक प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि जगह के अनुसार ही फर्नीचर का निर्माण होता है.
  • कमरे में पहले से रखे सामानों के साथ ऐसे फर्नीचर को मिक्स एन मैच किया जा सकता है, जिसमे उनके कलर,टेक्सचर, डिजाईन आदि कई चीजों को व्यक्ति पसंद के अनुसार बना सकते है, जो यूनिक और स्टाइलिश लगता है.
  • कस्टमाइज्ड फर्नीचर काफी दिनों तक टिकता है, क्योंकि इसमें प्रयोग किये जाने वाले रॉ मटेरियल, प्रीमियम क्वालिटी की होती है, इसलिए ऐसे फर्नीचर पर किये गए खर्च, सालों बाद भी इसकी ओरिजिनालिटी को बनाए रखते है.
  • ऐसे फर्नीचर जल्दी ख़राब नहीं होते, इसलिए इसे करवाने वाला व्यक्ति बाहरी फिनिशिग और रॉ मटेरियल को अपने बजट के अनुसार फिक्स कर सकता है.

हानि

  • कस्टमाइज्ड फ़र्नीचर बाकी फर्नीचर से महंगा होता है.
  • ऐसे फर्नीचर बनाने में काफी समय लगता है, क्योंकि इसके लिए कई बार लकड़ियों की क्वालिटी, टेक्सचर और बनावट को ओनर से अप्रूवल लेने के बाद फाइनल प्रोडक्ट बनाना पड़ता है, जिसमे समय अधिक लग जाता है, जबकि रेडीमेड फर्नीचर को शो रूम में देखकर तुरंत घर पर लाया जा सकता है. साथ ही ये मूवेबल होते है, लेकिन रॉ मटेरियल की कोई गारंटी नहीं होती.

फर्नीचर बनाने में योगदान ठोस और इंजीनियर लकड़ी का

इसके अलावा आजकल फ़र्निचर कई प्रकार के लकड़ियों से बनते है, जिसमें ठोस लकड़ी और इंजीनियर लकड़ीखास है. ठोस लकड़ी से बने फ़र्नीचर टिकाऊ और मजबूत होते है, जबकि इंजीनियर लकड़ी से बने फर्नीचर कम समय तक टिकते है. ठोस लकड़ी पर दीमक का हमला जल्दी होता है. ये प्राकृतिक होने की वजह से मौसम का अनुसार फूलने और सिकुड़ने लगती है, इससे उसका मूल रूप बदल जाता है,इसलिए इसे धूप और नमी से बचाना पड़ता है , जबकि इंजीनियर लकड़ी नमी या नमी के प्रभाव का सामना कुछ हद तक कर सकती है और इंजीनियर लकड़ी प्राप्त करने के लिए ताजी लकड़ी की आवश्यकता नहीं होती है. यह पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है. ये ठोस लकड़ी से हलकी होती है, इसलिए इसे आसानी से हिलाया जा सकता है.

पथभ्रष्ठा- भाग 4: बसु न क्यों की आत्महत्या

अब बाई भी सच पर उतर आई थी, ‘‘इंसान की शक्ल में भेडि़या है भेडि़या. दिनरात गाली बकता है, दारू पीता है.’’

‘‘बसु कहां है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अस्पताल में है. बिटिया हुई है.’’

मैं ने बाई की बात सुन कर मां को बताया और फिर औटो कर के हम अस्पताल पहुंच गईं.

बसु सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर अकेली लेटी थी. मैं ने जैसे ही उस के सिर पर हाथ फेरा. उस की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. पता नहीं ये आत्मग्लानि के आंसू थे या पश्चात्ताप के… पास ही झूले में लेटी उस की बिटिया को गोद में उठा कर मैं ने बसु से पूछा, ‘‘रवि कहां हैं?’’

‘‘व्यस्त होंगे वरना जरूर आते,’’ उस ने बिना मेरी ओर देखे अपना मुंह दूसरी ओर मोड़ लिया.

बसु मुझे धोखे में रखना चाह रही थी या खुद धोखा खा रही थी. पता नहीं, क्योंकि जिस रात बसु प्रसव पीड़ा से छटपटा रही थी उस रात रवि अपनी पत्नी के साथ था.

एक बार बसु ने बताया था कि अपने दोनों बेटों के प्रसव के समय शुभेंदु पूरी रात अस्पताल के कौरिडोर में दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में चहलकदमी करते रहे थे. अपनी पत्नी या बच्चों की जरा सी भी पीड़ा वे बरदाश्त नहीं कर पाते थे. आज बसु खुद को कितना अकेला महसूस कर रही होगी. उधर रेगिस्तान में लू के थपेड़ों के बीच शुभेंदु ने भी कितने अनदेखे दंश खाए होंगे. यहां भी उन के लिए मरुभूमि के अतिरिक्त क्या था?

औरत विधवा हो या परित्यक्ता, पुनर्विवाह करने पर बरसों अपने पूर्व पति को भुला नहीं पाती. यादें कोई स्लेट पर लिखी लकीरें तो नहीं होतीं कि जरा सा पोंछने पर ही मिट जाएं. सहज नहीं होता एक नीड़ को तोड़ कर, दूसरे नीड़ की रचना करना. बसु ने कैसे भुलाया होगा शुभेंदु को? अपने बच्चों की नोकझोंक, उठतेबैठते शुभेंदु की बसुबसु की गुहार क्या उसे पुराने परिवेश में लौट जाने के लिए बाध्य नहीं करती होगी या फिर जानबूझ कर शुभेंदु को भुलाने का नाटक कर रही है?

2 वर्ष का अंतराल चुपचाप दरक गया. उन दिनों अतुल की अंशकालिक पोस्टिंग देहरादून हो गई. मैं नन्हे संभव को ले कर थोड़ाबहुत जरूरत का सामान ले कर देहरादून पहुंच गई थी. 6 महीने के लिए अतुल को देहरादून के अतिरिक्त मसूरी और सहारनपुर का भी अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया था. काम की व्यस्तता उन्हें हर समय घेरे रहती. ऐसे में घरगृहस्थी के हर छोटेबड़े काम को निबटाने का दायित्व मुझ पर आ गया था.

एक दिन मैं अतुल के साथ फिल्म देख कर लौट रही थी तभी सामने एक गाड़ी से एक स्मार्ट, आकर्षक व्यक्तित्व के व्यक्ति को उतरते देखा. हालांकि मैं उन्हें काफी समय बाद देख रही थी, फिर भी मैं ने उन्हें तुरंत पहचान लिया. वे शुभेंदु थे. मन में संशय जगा कि शुभेंदु यहां कैसे? क्या दुबई का बिजनैस समेट दिया या मन भर गया वहां की चकाचौंध और पैसा कमाने की लालसा से? फिर मन ही मन सोचा कि उकसाने वाली पत्नी ही साथ छोड़ गई तो क्यों भटकते फिरते उस रेगिस्तान में? चलो देर से ही सही अपनी आत्मशक्ति और पौरुष का इजहार तो किया उन्होंने वरना तो सारी जिंदगी बसु के ही हाथों की कठपुतली बने रहे थे.

अगली सुबह अतुल दफ्तर के लिए निकल ही रहे थे कि शुभेंदु का फोन आ गया. मैं अचरज में पड़ गई. इन्हें मेरा नंबर कहां से मिला? शायद टैलीफोन डाइरैक्टरी से ढूंढ़ निकाला हो.

तभी उन का हताश स्वर सुनाई दिया, ‘‘चारु मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘मैं कुछ देर बाद आप को फोन करती हूं,’’ मैं ने टालने की गरज से कहा और फिर फोन काट दिया.

अतुल मेरे पास आ कर खड़े हो गए थे. सब कुछ जानने के बाद उन्होंने मुझे समझाया. ‘‘चारु, किसी की निजी जिंदगी से हमें क्या लेनादेना? मिल लो उन से.’’

दफ्तर पहुंच कर अतुल ने अपनी गाड़ी मेरे पास भेज दी. मैं ने संभव को आया के पास छोड़ा और कुछ ही देर में शुभेंदु के मसूरी रोड स्थित भव्य बंगले पर पहुंच गई.

शुभेंदु बेहद गर्मजोशी से मिले. बेशकीमती सामान से सजे उस बंगले को देख कर मेरी आंखें चौंधिया गईं. द्वार पर दरबान, माली और घर के अंदर दौड़ते नौकर, रसोइए. सामने वाली दीवार पर उन्होंने अपने परिवार का बड़ा सा चित्र टांगा हुआ था. साइड स्टूल, शोकेस पर हर जगह बसु के ही फोटो रखे थे. हंसतीखिलखिलाती बसु, राजेशमहेश को गोद में उठाए बसु, शुभेंदु के कंधों पर झूलती बसु, विदेशी पहनावा पहने हुए कैरियर वूमन बसु. घर के चप्पेचप्पे पर बसु का आधिपत्य था. शुभेंदु ने उस की अनुपस्थिति में भी उस की पसंदनापसंद का पूरा ध्यान रखा था. खिड़कियों पर आसमानी रंग के परदे, गमलों में सजे मनीप्लांट. जैसे किसी भी पल बसु आएगी और कहेगी कि शुभेंदु देखो मैं उस दरिंदे को छोड़ कर तुम्हारे पास लौट आई.

‘‘बसु कैसी है?’’ शुभेंदु का स्वर मुझे कल्पना लोक से यथार्थ में लौटा गया था. नजरें उन के उदास चेहरे पर अटक गईं. क्षण भर के लिए मुझे बसु के प्रति रवि का बर्बरतापूर्ण व्यवहार याद आ गया था. कदमकदम पर बेइज्जती, तानेउलाहने, गालीगलौज, मारपीट… क्या शुभेंदु कायर हैं, जो अभी भी उस की यादों को सीने से चिपकाए बैठे हैं? मानसम्मान, सब कुछ तो ले डूबी यह औरत. क्षमाप्रार्थी तो वह कदापि नहीं थी.

क्या उत्तर देती शुभेंदु के प्रश्न का? बस इतना ही कहा था मैं ने, ‘‘बस यह समझ लीजिए अपने किए की सजा भुगत रही है… इंसान जो बोता है वही काटता है.’’

6 माह की अवधि समाप्त हुई और हम दिल्ली लौट आए. न अब बसु से मेरा या मेरे परिवार का कोई संबंध रह गया था. मां और भैयाभाभी सभी लखनऊ चले गए थे. शुभेंदु अकसर फोन करते रहते थे. हर बार बसु के विषय में पूछते, लेकिन मैं सहजता से टाल जाती. क्या जवाब थे मेरे पास उन के प्रश्नों के?

एक दिन अचानक बसु मेरे घर आ गई. गोद में मुसकान थी. मन में प्रश्नों के नाग फन उठा कर खड़े हो गए कि क्यों आई है बसु यहां? कहीं रवि ने भी तो इसे नहीं निकाल दिया? हमेशा ही तो अश्लील भाषा में बात करता था इस से. प्रकृति का नियम है कि जीवन में हम जिन लोगों से दूर भागना चाहते हैं, वे हमें उतना ही अपने पास खींचते हैं. बसु के साथ मेरा रिश्ता भी तो ऐसा था… कुछ प्यार का, कुछ नफरत का, कुछ सहानुभूति का.

मैं ने उस की खूब आवभगत की. कटाक्ष भी किए. अपने सुखद गृहस्थ जीवन का रेखाचित्र खींचते हुए मैं उसे जताना चाह रही थी कि इंसान यदि अपनी इच्छाओं और कामनाओं पर नियंत्रण रखे तो जिंदगी सुख से कट जाती है. महत्त्वाकांक्षी होना बुरा नहीं, लेकिन उस के लिए रिश्तों को दांव पर लगाना सही नहीं. रिश्तों की चादर ओढ़ कर भी सपनों को सच किया जा सकता है.

बसु मेरी बातें चुपचाप सुनती रही. जैसे शतरंज का खिलाड़ी अपनी ढेर सारी चालों के बावजूद यकायक विपक्षी की एक ही चाल से मात खा कर उठ जाता है कुछ ऐसा ही भाव लिए वह मुझे घूरती रही.

अहंकार के दायरे- भाग 2: क्या बेटे की खुशियां लौटा सके पिताजी

‘अरे, यह अर्चना है?’ नीरा आश्चर्य व्यक्त करते हुए प्रसन्न हो उठी, ‘तुम दोनों ने मिल कर मुझे बेवकूफ बनाया. आओ अर्चना,’ नीरा ने उसे प्यार से अपने पास बैठा लिया, ‘कहां से घूम कर आ रहे हो तुम दोनों?’

‘भाभी, आज मैं औफिस से जल्दी आ गया था. अर्चना को तुम से मिलवाने लाना था न.’

‘यह तुम ने बहुत अच्छा किया, यतीन. मैं तो स्वयं ही तुम से कहने वाली थी.’

अर्चना करीब 2 घंटे वहां बैठी रही. नीरा ने उस से बहुत सी बातें कीं. जब यतीन उसे छोड़ कर वापस आया तो नीरा ने कहा, ‘लड़की मुझे पसंद है. अपने लिए मुझे ऐसी ही देवरानी चाहिए.’

‘सच, भाभी,’ प्रसन्नता के अतिरेक में यतीन चहक उठा, ‘बस फिर तो भाभी, बाबूजी और भैया को ऐसी पट्टी पढ़ाओ कि वे लोग तैयार हो जाएं.’

‘परंतु अर्चना राजपूत है और हम लोग ब्राह्मण. मुझे डर है, बाबूजी इस रिश्ते के लिए कहीं इनकार न कर दें.’

‘सबकुछ तुम्हारे हाथ में है, भाभी. तुम कहोगी तो बाबूजी मान जाएंगे.’

किंतु बाबूजी सहमत न हुए. नरेन को तो नीरा ने तुरंत राजी कर लिया था मगर बाबूजी के समक्ष उस की एक न चली. एक दिन रात को नरेन और नीरा ने जब इस विषय को छेड़ा तो बाबूजी ने क्रोधित होते हुए कहा, ‘तुम लोगों ने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं इस रिश्ते के लिए सहमत हो जाऊंगा. यतीन के लिए मेरे पास एक से एक अच्छे रिश्ते आ रहे हैं.’

‘वह भी बहुत अच्छी लड़की है, बाबूजी. आप एक बार उस से मिल कर तो देखिए. सुंदर, पढ़ीलिखी और अच्छे संस्कारों वाली लड़की है.’

‘किंतु है तो राजपूत.’

‘जातिपांति सब व्यर्थ की बातें हैं, बाबूजी, हमारे ही बनाए हुए ढकोसले. अगर लड़के और लड़की के विचार मेल खाते हों, दोनों एकदूसरे को पसंद करते हों तो मेरे विचार में आप को आपत्ति नहीं होनी चाहिए,’ नरेन पिताजी को समझाते हुए बोले.

‘लड़के और लड़की की पसंद ही सबकुछ नहीं होती. कभी सोचा है, लोग क्या कहेंगे? रिश्तेदार क्या सोचेंगे? आखिर रहना तो हमें समाज में ही है न. आज तक इस खानदान में दूसरी जाति की बहू नहीं आई है.’

‘रिश्तेदारों की वजह से क्या आप अपने बेटे की खुशियां छीन लेंगे?’

‘मुझ से बहस मत करो, नरेन. मैं किसी की खुशियां नहीं छीन रहा. तुम मुझे नहीं यतीन को समझाओ. यह प्रेम का चक्कर छोड़ कर जहां मैं कहूं वहां विवाह करे. उस के लिए अर्चना से भी अच्छी लड़की ढूंढ़ना मेरा काम है. व्यर्थ की भावुकता में कुछ नहीं रखा.’

बाबूजी उठ कर बाहर चले गए. इस का मतलब था, अब वे इस विषय पर और बात नहीं करना चाहते थे.

नीरा परेशान रहने लगी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या को कैसे सुलझाए. एक ओर बाबूजी का हठी स्वभाव, दूसरी ओर यतीन की कोमल भावनाएं. दोनों में सामंजस्य किस प्रकार स्थापित करे.

जब से यतीन को बाबूजी के इनकार के विषय में बताया था, वह खामोश रहने लगा था. उस का अधिकांश समय घर से बाहर व्यतीत होता था. नीरा को भय था कि कहीं यह खामोशी आने वाले तूफान की सूचक न हो.

एक दिन नीरा रसोई में खाना बना रही थी. यतीन वहीं आ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘भाभी, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं.’ नीरा का हृदय जोरजोर से धड़कने लगा कि न जाने यतीन क्या कहने वाला है. उस ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उस की ओर देखा.

‘मैं ने अर्चना से विवाह कर लिया है,’ यतीन नीरा से नजरें चुराते हुए बोला.

नीरा सन्न रह गई. कुछ पलों के लिए तो जैसे होश ही न रहा. इतने में उसे रोटी जलने की गंध आई. उस ने फुरती से गैस बंद की और पलट कर यतीन का चेहरा देखने लगी, ‘यह तुम ने क्या किया?’

‘मैं मजबूर था, भाभी. मैं स्वयं ऐसा कदम नहीं उठाना चाहता था किंतु क्या करता, अर्चना को क्या छोड़ देता? पिछले 4-5 वर्षों से उस की और मेरी मित्रता है.’

‘तुम कुछ समय तक प्रतीक्षा कर सकते थे. मैं और नरेन बाबूजी को मनाने का दोबारा प्रयास करते.’

‘कोई फायदा नहीं होता, भाभी. मैं जानता हूं, वे मानने वाले नहीं थे. उधर अर्चना के घर वाले विवाह के लिए जल्दी मचा रहे थे इसलिए विवाह में विलंब नहीं हो सकता था वरना वे लोग उस का अन्यत्र रिश्ता कर देते.’

‘अब क्या होगा, यतीन? अर्चना को तुम घर कैसे लाओगे?’ नीरा बुरी तरह घबरा रही थी.

‘मैं अर्चना को तब तक घर नहीं लाऊंगा जब तक बाबूजी उसे स्वयं नहीं बुलाएंगे. अब वह मेरी पत्नी है. उस का अपमान मैं हरगिज सहन नहीं कर सकता,’ यतीन दृढ़ स्वर में बोला.

‘फिर उसे कहां रखोगे?’

‘फिलहाल कंपनी की ओर से मुझे फ्लैट मिल गया है. मैं और अर्चना वहीं रहेंगे,’ यतीन धीमे स्वर में बोला और वहां से चला गया.

पिछले कुछ दिनों से यतीन कितना परेशान था, यह तो उस का दिल ही जानता था. भैयाभाभी और बाबूजी से अलग रहने की कल्पना उसे बेचैन कर रही थी. वह किसी को भी छोड़ना नहीं चाहता था किंतु परिस्थितियों के सम्मुख विवश था.

इस के बाद के दिनों की यादें नीरा को अंदर तक कंपा देतीं. बाबूजी को जब यतीन के विवाह के विषय में पता चला तो वे बुरी तरह से टूट गए. उन की हठधर्मी बेटे को विद्रोही बना देगी, इस का उन्हें स्वप्न में भी गुमान न था. उन्होंने बेटों को पालने में बाप की ही नहीं, मां की भूमिका भी निभाई थी. बेटों के पालनपोषण में स्वयं का जीवन होम कर डाला था. किंतु एक लड़की के प्रेम में पागल बेटे ने उन के समस्त त्याग को धूल में मिला दिया था.

अब बाबूजी थकेथके और बीमार रहने लगे थे. नीरा के आने से घर की जो खुशियां पूर्णिमा के चांद के समान बढ़ रही थीं, यतीन के जाते ही अमावस के चांद की तरह घट गईं. नीरा की दशा उस चिडि़या की तरह थी जिस के घोंसले का तिनका बिखर कर दूर जा गिरा था. वह उस तिनके को उठा लाने की उधेड़बुन में लगी रहती थी.

आज जब उस ने बाबूजी को यतीन की फोटो के समक्ष रोते देखा तो विकलता और भी बढ़ गई. अगले दिन नीरा बाजार गई हुई थी. जब लौटी, उस के साथ एक अन्य युवती भी थी. बाबूजी बाहर लौन में बैठे थे.

अहंकार के दायरे- भाग 1: क्या बेटे की खुशियां लौटा सके पिताजी

सुबह से ही नीरा का मन बेहद उदास था. यतीन को घर से गए हुए पूरे 2 माह बीत चुके थे. इस अवधि में कोई दिन ऐसा न था जब उस ने यतीन के घर लौट आने की बात न सोची हो, वक्त की आंधी के थपेड़ों से बिखर गए इस घर को सहेजने की न सोची हो किंतु उसे प्रतीक्षा थी सही वक्त की.

सुबह जब नीरा नाश्ते के लिए बाबूजी को बुलाने गई तो देखा, वे यतीन की फोटो के समक्ष खड़े चुपचाप उसे निहार रहे हैं. यद्यपि उसे देखते ही वे वहां से हट गए किंतु अश्रुपूर्ण नेत्रों में उतर आई व्यथा को उस से न छिपा पाए. नीरा ने एक बार गहरी दृष्टि से उन्हें देखा, फिर रसोई में चली गई.

नीरा का विवाह हुए 5 वर्ष बीत गए थे. सुहागरात को उस के पति नरेन ने कहा था, ‘बचपन में मेरी मां चल बसी थीं. बाबूजी, यतीन और मैं ने अत्यंत कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत किया है. घर में एक स्त्री का अभाव सदैव खटका है. मैं चाहता हूं, अपने स्नेह एवं अपनत्व के बल पर तुम इस अभाव की पूरक बनो. इस घर के प्रति तुम्हारी निष्ठा में कभी कमी न आए.’

नीरा ने अपना कांपता हुआ हाथ पति के हाथ पर रख कर उसे अपनी मौन स्वीकृति दी थी. अगले दिन नरेन ने हनीमून के लिए नैनीताल चलने का प्रस्ताव रखा तो नीरा ने इनकार कर दिया और कहा था,  ‘नहीं, नरेन, नए जीवन की शुरुआत के लिए स्वजनों को छोड़ कर इधरउधर भटकने की आवश्यकता नहीं. हनीमून हम अपने घर पर रह कर मनाएंगे. यतीन की परीक्षाओं के बाद हम सब इकट्ठे नैनीताल चलेंगे.’

यतीन तो बिलकुल अपनी भाभी का दीवाना था. भाभी के रूप में मानो उस ने अपनी मां को पा लिया था. छोटेबड़े हर काम में वह भाभी पर निर्भर हो गया था. यहां तक कि अकसर वह अपने नोट्स तैयार करने में भी नीरा की सहायता लेने लगा था. परीक्षाओं के बाद वे तीनों नैनीताल चले गए. वहां के प्राकृतिक सौंदर्य ने उन के मन को बांध लिया था. ऐसा प्रतीत होता था मानो सारे संसार से अलगथलग यह छोटा सा शहर अपनेआप में कोई रहस्य समेटे हुए हो.ताल के किनारे बने हुए होटल में वे ठहरे थे. लगभग नित्य ही शाम को वे बोटिंग करते थे. उस समय नरेन और यतीन ताल की लहरों के साथ कोई न कोई गीत छेड़ देते. दोनों भाइयों को संगीत से बेहद लगाव था.

एक दिन वे बहुत सवेरे  स्नोव्यू और  चाइना पीक के लिए रवाना हो गए. मार्ग में चीड़ व देवदार के वृक्ष और उन से छन कर आती हुई सूर्य की किरणों का नृत्य सम्मोहित कर रहा था. बीचबीच में रुकते, हंसते, बातें करते हुए वे तीनों चाइना पीक तक पहुंच गए. वहां से समूचे नैनीताल का विहंगम दृश्य दिखाई दे रहा था. समय मानो वहां आ कर थम गया था. वातावरण में एक गहरी निस्तब्धता रचीबसी हुई थी.

कुछ देर के लिए नीरा प्राकृतिक सौंदर्य में खो गई. उस समय वह स्वयं को प्रकृति के काफी निकट महसूस कर रही थी. उसे पता नहीं चला कब नरेन पास बने हुए रेस्तरां में चाय का और्डर देने चले गए. उस समय चौंकी जब यतीन ने उस से खोईखोई आवाज में कहा, ‘कभीकभी ऐसा क्यों होता है भाभी, किसी विशेष इंसान की स्मृतिमात्र ही वातावरण में खुशियों का उजाला भर देती है?’

नीरा ने एक गहरी दृष्टि यतीन की ओर डाली, ‘आखिर कौन है वह विशेष इंसान, मैं भी तो सुनूं?’

यतीन खामोश रहा. नीरा समझ गई, वह उस से संकोच कर रहा है. तब उस ने कहा, ‘अपनी भाभी को भी नहीं बताओगे.’

यतीन कुछ पल खामोश रहा, फिर बोला, ‘उस का नाम अर्चना है. वह मेरे साथ कालेज में पढ़ती थी. बहुत अच्छी लड़की है. तुम मिलोगी, अवश्य पसंद करोगी.’

‘अच्छा, तो कब मिलवा रहे हो?’

‘जब तुम चाहो, परंतु भैया को इस विषय में तभी कुछ बताना जब तुम लड़की पसंद कर लो और मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं,’ यतीन यह बात कह ही रहा था तभी नरेन वहां आ गए और वह खामोश हो गया.

चाय पी कर वे लोग वहां से लौट पड़े. अगले दिन नैनीताल से वे वापस आ गए थे. कुछ दिन नीरा को घर व्यवस्थित करने में लगे. यतीन नौकरी के लिए जगहजगह इंटरव्यू दे रहा था. 2-3 जगह उसे आशा भी थी. दीवाली में 15 दिन शेष थे. नीरा के घर से उस के पिताजी का पत्र आया कि वे उसे दीवाली पर लेने आ रहे हैं. पत्र पढ़ने के बाद उस के ससुर ने बुला कर कहा,  ‘बेटी, अपने जाने की तैयारी कर लो. तुम्हारे पिताजी तुम्हें लेने आ रहे हैं.’

सुन कर नीरा खामोश खड़ी रही. बाबूजी ने उसे देखा और बोले,  ‘क्या बात है, बेटी, किस सोच में डूब गईं?’

‘बाबूजी, आप पिताजी को पत्र लिख दीजिए, वे दीवाली के बाद ही मुझे लेने के लिए आएं.’

‘क्यों?’ बाबूजी अचंभित रह गए.

‘बात यह कि वहां पिताजी के पास अन्य बच्चे भी हैं. मेरे न जाने से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ने वाला. किंतु यहां मेरे जाने से आप लोग अकेले पड़ जाएंगे. नहीं, बाबूजी, अपने घर की रोशनी फीकी कर के मैं कहीं नहीं जाऊंगी. आप पिताजी को

दीवाली के बाद आने के लिए लिख दें,’ इतना कह कर नीरा चली गई.

दीवाली से 2 दिन पहले यतीन का नियुक्तिपत्र आ गया तो दीवाली की खुशी दोगुनी हो गई. उसे एचएएल में बहुत अच्छी नौकरी मिली थी.

एक दिन दोपहर के समय नीरा घर पर अकेली थी. सब अपनेअपने काम पर गए हुए थे. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो देखा सामने एक लड़की खड़ी थी. उस के हाथ में एक ब्रीफकेस था. वह नीरा से बोली, ‘नमस्ते दीदी. मैं एक साबुन कंपनी की तरफ से आई हूं. आप अपने घर में कौन सा साबुन इस्तेमाल करती हैं?’

नीरा उस समय गाजर का हलवा बना रही थी. वह बोर सी होती हुई बोली, ‘देखो, फिर कभी आना. इस समय मैं बहुत व्यस्त हूं. वैसे भी हमारे घर में साबुन और अन्य वस्तुएं कैंटीन से आती हैं.’

‘मैं आप का अधिक समय नहीं लूंगी. आप बस एक नजर देख लीजिए.’

‘नहींनहीं, अभी तो बिलकुल समय नहीं है,’ कह कर नीरा अंदर जाने को मुड़ी कि तभी न जाने कहां से यतीन प्रकट हो गया. वह हंसते हुए नीरा की बांह पकड़ कर बोला, ‘2 मिनट तो ठहरो भाभी, ऐसी भी क्या जल्दी है. साबुन न भी देखो, अर्चना को तो देख लो.’

अहंकार के दायरे- भाग 3: क्या बेटे की खुशियां लौटा सके पिताजी

नीरा ने उस का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह मेरी सहेली पूजा है. हम दोनों एक ही साथ पढ़ती थीं. इस का इस शहर में विवाह हुआ है. आज मुझे अचानक बाजार में मिल गई तो मैं इसे घर ले आई.’’

पूजा ने आगे बढ़ कर बाबूजी के पांव छू लिए. बाबूजी ने उस के सिर पर हाथ रख कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ जाने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘बैठो बेटी, कहां काम करते हैं तुम्हारे पति?’’

‘‘जी, एचएएल हैदराबाद में.’’

‘‘अभी पूजा यहां अकेली है, बाबूजी. जब इस के पति को वहां कोई अच्छा मकान मिल जाएगा, वे इसे ले जाएंगे,’’ नीरा ने कहा.

बाबूजी एचएएल का नाम सुन कर खामोश हो गए. यतीन भी तो यहां इसी फैक्टरी में  काम करता था. दर्द की एक परछाईं उन के चेहरे पर से आ कर गुजर गई किंतु शीघ्र ही उन्हें पूजा की उपस्थिति का भान हो गया और उन्होंने स्वयं को संभाल लिया. इस के बाद वे, पूजा और नीरा काफी देर तक बातचीत करते रहे.

जब पूजा जाने लगी तो बाबूजी ने कहा, ‘‘बेटी, अब तो तुम ने घर देख लिया है, आती रहना.’’

‘‘जी बाबूजी, अब जरूर आया करूंगी. मैं भी घर में अकेली बोर हो जाती हूं.’’

इस के बाद पूजा अकसर नीरा के घर आने लगी. धीरेधीरे वह बाबूजी से खुलने  लगी थी. वे तीनों बैठ कर विभिन्न विषयों पर बातचीत करते, हंसते, कहकहे लगाते और कभीकभी ताश खेलते.

पूजा ने अपने स्वभाव और बातचीत से बाबूजी का मन मोह लिया था. बाबूजी भी उसे बेटी के समान प्यार करने लगे थे. वह 3-4 दिनों तक न आती तो वे उस के बारे में पूछने लगते थे. पूजा नीरा को घर के कामों में भी सहयोग देने लगी थी.

कुछ दिनों बाद न जाने क्यों पूजा एक सप्ताह तक न आई. एक दिन बाबूजी नीरा से बोले, ‘‘पूजा आजकल क्यों नहीं आ रही है?’’

‘‘मैं आप को बताना भूल गई बाबूजी, कल पूजा का फोन आया था. वह बीमार है.’’

‘‘बीमार है? और तुम मुझे बताना भूल गईं. तुम से ऐसी लापरवाही की उम्मीद न थी. जाओ, उसे देख कर आओ. उसे किसी चीज की आवश्यकता हो तो लेती जाना. आखिर हमारा भी तो उस के प्रति कुछ फर्ज बनता है.’’

बाबूजी की पूजा के प्रति इस ममता को देख कर नीरा मुसकरा उठी. पूजा ने बाबूजी के मन में अपना स्थान बना लिया था, फिर भी यतीन का अभाव उन्हें खोखला बना रहा था. नरेन, नीरा और पूजा के अथक प्रयासों के बावजूद उन का स्वास्थ्य दिन पर दिन गिरता जा रहा था.

एक रात बाबूजी को दिल का दौरा पड़ा. वे बेहोश हो गए. नरेन ने यतीन को भी फोन कर दिया था. वह और अर्चना तुरंत अस्पताल पहुंचे. सारी रात आंखों में ही कट गई.

यतीन की दशा सब से खराब थी. वह बारबार रो पड़ता था. नीरा ही उसे तसल्ली दे रही थी. सुबह के समय बाबूजी को होश आया. समय पर डाक्टरी चिकित्सा मिल जाने के कारण खतरा टल गया था. बाबूजी के होश में आने पर यतीन सामने से हट गया. सोचा, हो सकता है उस को देख कर उन के दिल को धक्का लगे और उन की दशा फिर से बिगड़ जाए.

10 दिनों तक बाबूजी अस्पताल में रहे. नरेन और नीरा उन की सेवा में जुटे रहे. घर का सारा काम पूजा ने संभाला. जिस दिन बाबूजी को घर आना था, पूजा ने सारा घर मोमबत्तियों से सजा दिया था. जिस समय वे कार से उतरे, उस ने आगे बढ़ कर बाबूजी के चरण स्पर्श किए. नरेन और नीरा उन्हें अंदर ले आए.

‘‘बाबूजी, पूजा ने आप की बहुत सेवा की है,’’ नीरा ने उन्हें पलंग पर बैठाते हुए कहा.

‘‘हमेशा सुखी रहो बेटी. वे लोग कितने सुखी होंगे जिन्हें तुम्हारे जैसी बहू मिली है,’’ बाबूजी एक क्षण खामोश रहे. फिर आह सी भरते हुए दुखी स्वर में बोले, ‘‘नरेन ने मेरी पसंद से विवाह किया, देखो कितना खुश है. नीरा हजारों में एक है. काश, यतीन ने भी कहा माना होता तो उस की बहू भी तुम दोनों जैसी होती.’’

नीरा को लगा, यदि अब उस ने बाबूजी से अपने मन की बात न कही तो फिर बहुत देर हो जाएगी. जीवन में अनुकूल क्षण बारबार नहीं आते. वह उन के समीप जा बैठी. उस ने आंखों ही आंखों में नरेन से अनुमति मांगी और बोली, ‘‘आप की इस बेटी से बहुत बड़ा अपराध हो गया है बाबूजी. मुझे क्षमा कर दीजिए.’’

‘‘कौन सा अपराध?’’ बाबूजी हैरान हो उठे.

नीरा ने उन के घुटनों पर सिर रख दिया और डरतेडरते बोली, ‘‘पूजा जिस घर की बहू है, वह घर यही है, बाबूजी. यह पूजा नहीं, आप की दूसरी बेटी अर्चना है.’’

‘‘अर्चना यानी यतीन की पत्नी? इतने दिनों तक तुम मुझ से…’’

‘‘बाबूजी, मैं ने यह अपराध आप को धोखा देने या दुख पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं किया. मैं और नरेन चाहते हैं, हम सब आप की छत्रछाया में रहें. यह घर एक घोंसले के समान है, बाबूजी. इस के तिनके को बिखरने मत दीजिए, इन्हें समेट लीजिए,’’ कहतेकहते नीरा रोने लगी.

बाबूजी की आंखों में भी आंसू आ गए. कुछ तो नीरा की निष्ठा और कुछ अर्चना का सरल स्वभाव व सेवाभावना उन्हें कमजोर बना रही थी. साथ ही, हालात ने उन के और यतीन के बीच जो दूरी पैदा कर दी थी उस ने उन की हठधर्मिता को कमजोर बना डाला था. उन्होंने स्नेहपूर्वक नीरा को उठाया फिर अर्चना को अपने पास बैठा लिया और अर्चना की तरफ देख कर कहा, ‘‘बेटी, जीवन में यदि किसी को अपना आदर्श बनाना तो नीरा को ही बनाना. इस के प्रयत्नों के फलस्वरूप इस घर की खुशियां वापस आई हैं,’’ फिर उन्होंने नरेन को यतीन को बुलाने भेज दिया.

वास्तव में व्यक्ति अपने झूठे अहंकार के दायरे में कैद रह कर स्वयं ही अपने जीवन में दुखों का समावेश कर लेता है. बाबूजी ने सोचा, यदि वे अपने इस अहं के दायरे से बाहर आ कर भावनाओं के साथसाथ विवेक से भी काम लेते तो उन बीते दिनों को भी आनंदमय बना सकते थे जो उन्होंने और उन के परिवार ने दुखी रह कर गुजारे थे. उन्होंने खिड़की में से देखा, यतीन नरेन के साथ कार से उतर रहा है. बाहर मोमबत्तियों की झिलमिलाती लौ भविष्य को अपने प्रकाश से आलोकित कर रही थी.

हो जाने दो- भाग 2: कनिका के साथ क्या हुआ

उलटियां करती कनिका बेहाल हो रही थी. लेकिन अभी तक पेट में अन्न का एक दाना तक नहीं गया था. दोपहर बाद राखी उस के लिए एक प्लेट उबली हुई बेस्वाद सी सब्जी और बिना घी लगी 2 रोटी ले कर आई. मन हो न हो, लेकिन शरीर को तो भूख लगती ही है. तब और भी ज्यादा जब शरीर में एक और शरीर पल रहा हो. कनिका ने लपक कर एक निवाला मुंह की तरफ किया. खाते ही उसे उबकाई सी आ गई.

जलज कितना खयाल रखता था उस के खानेपीने का. उस के आंखें फेरते ही सब का नजरिया एक ही दिन में कितना बदल गया. जो मां जी उसे ‘खा ले, खा ले’ कहती नहीं अघाती थीं, वे आज देख भी नहीं रहीं कि वह खा भी रही है या नहीं. दो बूंद आंसुओं और दो घूंट पानी के साथ कनिका ने 2 कौर किसी तरह निगल कर प्लेट एक तरफ सरका दी.

“कनिका, 12 दिन घर में सूतक रहेगा. इसी तरह का खाना बनेगा. वैसे भी, अब सादगी की आदत डाल लो. हमारे यहां पति की चिता के साथ ही सब रागरंग भस्म हो जाता है, समझी?” माधवी ने उस की जूठी प्लेट की तरफ नजर डाली और राखी को प्लेट उठाने का इशारा किया.

‘फिर पंडित जी को क्यों छप्पन भोग खिलाए जा रहे हैं?’ कनिका ने अपने मन में उठे सवाल को वहीं का वहीं दफन कर दिया. सोच में सिर्फ एक ही बात थी, ‘कहीं जलज की आत्मा को कोई तकलीफ न हो.’

पहाड़ से दिन काटे नहीं कट रहे थे. कनिका को हिदायत थी कि सुबह सब से पहले उठ कर नहानाधोना कर ले और पक्के रंग के कपड़े पहन कर बैठक के लिए बैठ जाए. उसे ध्यान रखना होता था कि उस के चेहरे को कोई सुहागन स्त्री न देख ले या कोई पुरुष उसे छू न जाए. उस के इस्तेमाल किए गए कंघेतोलिए तक को सब से अलग रखा जाता था.

दिनभर शोक जताने वालों का आनाजाना लगा रहता था. कनिका को हरेक के सामने अपना कलेजा चीर कर दिखाना होता था कि उस पर कितना बड़ा पहाड़ टूट पड़ा है. आनेजाने वालों की संख्या से कनिका को अंदाजा हो गया था कि समाज में जलज का कद कितना बड़ा था. दूरदूर से उस के फेसबुक फ्रैंड्स भी अपनी संवेदनाएं प्रकट करने आ रहे थे. कुछ कनिका तक पहुंच पाते थे, तो कुछ बाहर पुरुषों की बैठक से ही लौट जाते थे.

“भाभी, ये जलज भैया के फेसबुक फ्रैंड हैं महेश. हरिद्वार से आए हैं,” राखी के यह कहने पर घुटनों में सिर दिए बैठी कनिका ने मुंह उठा कर देखा. जलज के ही हमउम्र 2 युवक नम आंखें लिए हाथ जोड़े खड़े थे. एक युवक विदेशी लग रहा था. कनिका ने भी हाथ जोड़ कर अपना सिर फिर से नीचे कर लिया.

“भाभी जी, जो कुछ हुआ, उस के लिए तो कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन जो बचा है उसे सहेजने की जिम्मेदारी अब आप की है. जलज मेरा बहुत अच्छा दोस्त था. बेशक हमारी दोस्ती फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी लेकिन हम एकदूसरे के बहुत करीब थे,” महेश कनिका के पास बैठ गया.

“ये मेरा दोस्त सैम है, यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कौलर है. भारतीय दर्शन पर शोध कर रहा है. असल भारत की परम्पराएं और रीतिरिवाज जानने की जिज्ञासा लिए गांवगांव, शहरशहर भटकता रहता है. इसे भी मैं अपने साथ ले आया,” महेश ने आगे कहा तो कनिका ने सैम की तरफ हाथ जोड़ कर उस का अभिवादन किया.

कनिका ने देखा भूरे बालों वाले सैम ने अपने कान पर पीर्सिंग करवा कर सोने की बाली सी पहन रखी है. दाहिने हाथ की कलाई और बाएं हाथ की भुजा पर विदेशी भाषा में लिखे कुछ शब्दों के टैटू बनवा रखे थे जिन के अर्थ कनिका की समझ से परे थे. होजरी की पतली सी सफ़ेद टीशर्ट और फुल्ली रुग्गड जींस में वह सचमुच सब से अलग दिख रहा था. माधवी की चुभती दृष्टि महसूस कर कनिका ने सैम पर से अपनी निगाहें हटा लीं और फिर से अपना मुंह घुटनों में छिपा लिया.

तभी कनिका को उबकाई सी आई और वह भाग कर वाशबेसिन की तरफ गई. उलटी कर के पलटी, तो देखा कि सैम पानी का गिलास लिए खड़ा था. कनिका को सैम की ये

ह हरकत अजीब लगी, लेकिन उसे सैम के कोमल हृदयी होने का आभास अवश्य हो गया था. उस ने चुपचाप पानी के 2 घूंट लिए और अपनी जगह आ कर बैठ गई.

“महेश जी, आप लोग खाना खा लीजिए,” राखी महेश और सैम को खाने के लिए ले गई. सैम ने कनिका की तरफ देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न था- “आप ने खाया?” कनिका से उसे कोई प्रत्युतर का भाव नहीं मिला.

महेश की ट्रेन दूसरे दिन सुबह की थी. पूरे 20 घंटे सैम को कनिका के घर ही रहना था. उस की आंखें हर गतिविधि का भरपूर अवलोकन कर रही थीं, लेकिन भाषाई समस्या के कारण वह अधिक कहसुन नहीं पा रहा था. बारबार कनिका की तरफ उठती उस की आंखों में कनिका के प्रति सहज संवेदना झलक रही थी. एहसासों को अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता भी कहां होती है.

रात को खाना खाने के बाद शिष्टाचारवश जब सैम अपनी जूठी प्लेट सिंक में रखने गया तो उसे माधवी और राखी की फुसफुसाहट सुनाई दी. हिंदी की समझ न होने के कारण उसे समझ में तो कुछ नहीं आया लेकिन कुछ शब्द जैसे- “एबौर्शन… कनिका…” आदि से उस ने अनुमान लगाया कि ये बातें या फिर पारिवारिक फैसले शायद कनिका को ले कर हो रहे हैं. कनिका के प्रति उस की सहानुभूति और भी अधिक गहरी हो गई.

“भाभी, हम चलते हैं. आप अपना और हमारे भाई की निशानी का खयाल रखिएगा. कोई भी परेशानी हो, तो छोटा भाई समझ कर बेहिचक याद कर लेना,” महेश अगली सुबह कनिका से विदा लेने आया. उस के पीछे हाथ जोड़े सैम भी खड़ा था. कनिका मुंह से कुछ नहीं बोली, बस, अंगूठे से जमीन कुरेदती रही.

‘भाई की निशानी, पता नहीं बचेगी भी या नहीं,’ सैम मन ही मन सोच रहा था.जलज की तेरहवीं में कनिका के औफिस से भी कुछ लोग आए थे.“औपचारिकता वाली बातें सुनसुन कर आप थक चुकी होंगी. मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं. आप कब तक औफिस जौइन करेंगी,” कनिका के बौसस असद ने पूछा.

“इस बारे में हम लोगों ने अभी विचार नहीं किया है. फिलहाल 6 महीने तो भाभी कहीं आनाजाना नहीं करेंगी. उस के बाद तय किया जाएगा कि क्या करना है,” कनिका के मुंह खोलने से पहले ही राखी बोली.

“कनिका जी, जो भी फैसला करना हो, सोचसमझ कर कीजिएगा. आप का एक निर्णय आप की आने वाली पूरी जिंदगी के लिए जवाबदेह हो सकता है,” असद ने उसे सचेत किया.

लेकिन कनिका तो अपने दुख में इतना डूब चुकी थी कि उसे न तो कुछ सुनाई दे रहा था और न ही कुछ दिखाई. बस, मशीन की तरह जो भी आदेश उसे दिया जा रहा था, वह किए जा रही थी. अवचेतन मन में कहीं न कहीं यह बात भी थी कि उस के हठ या नादानी के कारण उस के जलज की आत्मा को कोई कष्ट न पहुंचे.

“कनिका, आज शोक उतारने की रस्म होगी. तुम्हें अपने मायके जा कर वापस आना है. वहां नहाधो कर नए कपड़े पहनने हैं. और हां, याद रखना, तुम्हारा मुंह कोई सुहागन स्त्री न देखे. तुम्हारी मां भी नहीं. वरना, अपशगुन होगा,” माधवी ने एक रोज उसे कहा.

“जिस बेटी को जन्म दिया, पालापोसा, उस का मुंह भला मां के लिए अशुभ कैसे हो सकता है? कनिका विस्मित थी. लेकिन तर्कवितर्क करना तो जैसे वह भूल ही चुकी थी.

जलज को गए महीना हो चला था. कनिका के भीतर इतना कुछ उमड़ताघुमड़ता रहता था कि जबतब आंखों के रास्ते बरस पड़ता था. कनिका किस से अपने दिल का हाल कहे, किस से जलज की यादों को साझा करे, उसे कुछ भी समझ में नहीं आता था. आसपास की दुनिया के लोग भी उस से कटेकटे जैसे रहते थे. माधवी तो सुबह-सुबह उस का चेहरा तक देखना पसंद नहीं करती थी. लोगों की आंखों में दिखाई देने वाली दया, बेचारगी, सहानुभूति उसे असहज कर देती थी. वह सारा दिन अकेली अपने कमरे में बैठी मोबाइल हाथ में लिए, बस, सर्फिंग करती रहती.

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Shivangi Joshi ने Balika Vadhu 2 के सुपर फ्लॉप होने पर कही ये बात

सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) फेम एक्ट्रेस  शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) की बालिका वधू 2 में एंट्री से फैंस काफी खुश हुए थे. हालांकि धीरे-धीरे शो की टीआरपी गिरी और शो फ्लॉप हो गया, जिसके चलते मेकर्स ने सीरियल को औफएयर करने का फैसला कर लिया. हालांकि अब एक्ट्रेस शिवांगी जोशी ने इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़ी है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सीरियल फ्लॉप होने पर कही ये बात

एक्ट्रेस शिवांगी जोशी ने अभी तक बालिका वधू 2 के फ्लॉप होने को लेकर कोई बयान नहीं दिया था. लेकिन अब एक्ट्रेस अपने एक इंटरव्यू में बताया है कि मुझे बालिका वधू 2 में काम करने का कोई भी अफसोस नहीं है. एक आर्टिस्ट होने के नाते मैंने बहुत मेहनत की. हालांकि मेकर्स को लग रहा था कि जल्द ही शो टीआरपी बटोरेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पर जरूरी नहीं है कि आपका हर शो हिट हो. हर एक टीवी शो का एक अलग सफर होता है. मेकर्स ने बालिका वधू 2 पर बहुत मेहनत की थी और मुझे मेकर्स और टीम पर गर्व है. मुझे बालिका वधू में काम करके मजा आया. बालिका वधू एक बड़ा नाम है. मुझे खुशी है कि मैंने बालिका वधू 2 के फैंस को एंटरटेन किया.

खतरों के खिलाड़ी में लेंगी हिस्सा

हाल ही में एक्ट्रेस शिवांगी जोशी ने अपना 27वां जन्मदिन मनाया, जिसके बाद वह खतरों से खेलने के लिए केपटाउन के लिए रवाना हो गईं हैं. दरअसल, जल्द ही शिवांगी जोशी, रोहित शेट्टी के पौपुलर रिएलिटी शो ‘खतरों के खिलाड़ी 12’ (Khatron Ke Khiladi 12) में नजर आने वाली हैं, जिसके चलते वह अपने पहले रिएलिटी शो के लिए काफी एक्साइटेड हैं. वहीं फैंस भी उनके इस शो का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

बता दें, एक्ट्रेस शिवांगी जोशी बालिका वधू 2 के अलावा मोहसिन खान संग म्यूजिक वीडियो में भी नजर आ चुकी हैं, जिसे फैंस ने काफी प्यार दिया था. वहीं फैंस दोनों की इस जोड़ी को दोबारा देखने के लिए बेताब हैं.

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