Imlie-आर्यन के रिश्ते में जहर घोलेगी ज्योति, करेगी ये काम

सीरियल ‘इमली’ ( Imlie ) की कहानी में नए-नए ट्विस्ट लाने के लिए मेकर्स जमकर कोशिश कर रहे हैं. जहां एक के बाद एक सितारा सीरियल छोड़ रहा है तो वहीं इमली और आर्यन का रोमांस फैंस को पसंद आ रहा है. इसी बीच सीरियल में हुई नई एंट्री के चलते नया बवाल होने वाला है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर( Imlie Serial Update)…

नीला ने चली चाल

अब तक आपने देखा सुंदर और अर्पिता की शादी हो जाती है, जिसके चलते इमली को आर्यन से प्यार का एहसास होता है. इसी के बीच नीला, इमली से बदला लेने की ठानती है और गुंडों से इमली को किडनैप करने की कोशिश करती है. जहां ज्योति नाम की लड़की उसकी जान बचाती है.

ज्योति बचाएगी इमली की जान

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अपनी जान बचाने के बाद इमली, आर्यन को ढूंढेगी और जब वह उससे मिलेगा तो दोनों के बीच लड़ाई होगी. वहीं इसी बीच वह अपनी जान बचाने वाली लड़की ज्योति को आर्यन से मिलाएगी, जिसे देखते ही आर्यन, इमली को बताएगा कि वह और ज्योति कॉलेज के दोस्त हैं और वह इमली को अपनी वाइफ के रुप में मिलवाएगा. हालांकि इमली और आर्यन इस बात से अंजान होंगे कि ज्योति अपना प्यार हासिल करने आई है.

 

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बेहोश होगी इमली

 

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इसी के साथ आप देखेंगे कि दोस्त होने की बात जानकर इमली और आर्यन, ज्योति को अपने घर ले जाएंगे. जहां ज्योति, आर्यन को एहसास दिलाने की कोशिश करेगी कि इमली नहीं बल्कि वह उसके लिए अच्छी जीवनसाथी है. हालांकि आर्यन अपने प्यार का इजहार करने के लिए इमली का इंतजार करेगा. वहीं जब इमली लौटेगी तो घर में आग लगते हुए देख बेहोश हो जाएगी.

इमली बनेगी मां

 

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इसके अलावा खबरों की मानें तो इमली और आर्यन एक दूसरे के करीब आएंगे, जिसके बाद वह प्रेग्नेंसी की खबर आर्यन को देगी. हालांकि इमली की प्रैग्नेंसी की खबर सुनते ही आर्यन को शक होगा और वह बच्चे को अपना नाम देने से इनकार कर देगा. हालांकि अभी तक मेकर्स की तरफ से इस खबर पर कोई रिएक्शन सामने नहीं आया है.

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शादी से पहले ही कपाड़िया फैमिली की हुई Anupama, देखें फोटोज

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में शादी सेलिब्रेशन का आगाज हो गया है. जहां अनुपमा और अनुज की मेहंदी (Anupama-Anuj Mehendi Ceremony)की रस्म सेलिब्रेट होती हुई नजर आ रही है. वहीं इस सेलिब्रेशन में बौलीवुड सिंगर मीका सिंह (Mika Singh)  भी शिरकत करते हुए दिखने वाले हैं. इसी बीच सीरियल के सेट से मेहंदी सेलिब्रेशन की फोटोज वायरल हो रही हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

कपाड़िया फैमिली की हुई अनुपमा

 

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हाल ही में अनुपमा के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह मेहंदी सेलिब्रेशन लुक में जीके, मालविका और होने वाले पति अनुज के साथ पोज देती नजर आ रही हैं. वहीं कैप्शन में इस फोटो को कपाड़िया फैमिली बताती दिख रही हैं, जिसे देखकर फैंस काफी खुश हैं.

 

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पाखी-,समर ने की सेट पर मस्ती

मां अनुपमा की मेहंदी सेलिब्रेशन में जहां पूरा शाह परिवार मस्ती करते हुए नजर आया तो वहीं पाखी और समर मौका मिलते ही डांस करते हुए दिखे, जिसकी वीडियो समर का रोल निभाने वाले एक्टर पारस कलनावत (Paras Kalnawat) ने अपने सोशलमीडिया अकाउंट पर शेयर की है.

कपाड़िया फैमिली करेगी डांस

इसके अलावा सीरियल के अपकमिंग ट्रैक की बात करें तो मेहंदी सेलिब्रेशन में अनुज और अनुपमा के अलावा कपाड़िया फैमिली डांस करती हुई नजर आएगी. दरअसल, मीका सिंह के गाने पर सभी ठुमके लगाते हुए दिखेंगे. वहीं इस मौके पर राखी दवे शाह परिवार की खुशियों में आग लगाती नजर आएगी. दरअसल, बापूजी की रिपोर्ट राखी दवे के हाथ में लग जाएगी और वह पूरे सेलिब्रेशन को बर्बाद करने की ठानेगी. वहीं दूसरी तरफ वनराज, परिवार से दूर अनुज को कई पहाड़ी पर ले जाएगा और अपना गुस्सा जाहिर करेगा.

 

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जिंदगी के रंग- भाग 3: क्या था कमला का सच

बीबीजी और घर के सभी सदस्य उस के काम से खुश तो थे ही, इसलिए मालकिन हंसते हुए बोलीं, ‘‘चल, तू भी क्या याद रखेगी कमला, तेरी नौकरी इस घर में पक्की, लेकिन एक बात पूछनी थी, तू पूरी रात लाइट क्यों जलाती है?’’

‘‘वह क्या है बीबीजी, अंधेरे में मुझे डर लगता है, नींद भी नहीं आती. बस, इसीलिए रातभर बत्ती जलानी पड़ती है,’’ बड़े भोलेपन से उस ने जवाब दिया.

कभीकभी तो लता को अपने कमला बनने पर ही बेहद आश्चर्य होता था कि कोई उसे पहचान नहीं पाया कि वह पढ़ीलिखी भी हो सकती है. एक दिन तो उस की पोल खुल ही जाती, पर जल्दी ही वह संभल गई थी.

हुआ यह कि मालकिन की छोटी बेटी, जो बी.एससी. कर रही थी, अपनी बड़ी बहन से किसी समस्या पर डिस्कस कर रही थी, तभी कमला के मुंह से उस का समाधान निकलने ही वाला था कि उसे अपने कमलाबाई होने का एहसास हो गया.

अब तो मालकिन उस से इतनी खुश थी कि दोपहर को खुद ही उस से कह देती थी कि तू दोपहर में थोड़ी देर आराम कर लिया कर.

कमला को और क्या चाहिए था. वह भी अब दोपहर को 2 घंटे अपनी स्टडी कर लेती थी. इतना ही नहीं उसे कमरे में एक सुविधा और भी हो गई थी कि रोज के पुराने अखबार ?मालकिन ने उसे ही अपने कमरे में रखने को कह दिया था. इस से वह इंटरव्यू की दृष्टि से हर रोज की खास घटनाओं के संपर्क में बनी रहने लगी थी.

श्रीमती चतुर्वेदी के यहां काम करते हुए कमला को अब 2 महीने हो गए. एक दिन बीबीजी की तबीयत अचानक अधिक खराब हो गई, लगभग बिस्तर ही पकड़ लिया था उन्होंने. उस दिन बीमार मालकिन को दिखाने के लिए घर के सभी लोग अस्पताल गए थे, तभी टेलीफोन की घंटी बजी, फोन सविता की मामी का था.

‘‘हैलो लता, तुम्हारा साक्षात्कार लेटर आ गया है, 15 दिन बाद इंटरव्यू है तुम्हारा. कहो तो इंटरव्यू लेटर वहां भिजवा दूं.’’

मामी को उस समय टालते हुए कमला ने कहा, ‘‘नहीं, मामीजी, आप भिजवाने का कष्ट न करें, मैं खुद ही आ कर ले लूंगी.’’

इंटरव्यू से 2 दिन पहले कमला ने मालकिन से बात की, ‘‘बीबीजी, परसों 15 सितंबर को मुझे छुट्टी चाहिए.’’

‘‘क्यों?’’ श्रीमती चतुर्वेदी बोलीं.

‘‘ऐसा है, बीबीजी, मेरी दूर के रिश्ते की बहन यहां रहती है, जब से आई हूं उस से मिल नहीं पाई. 15 सितंबर को उस की लड़की का जन्मदिन है, यहां हूं तो सोचती हूं कि वहां हो आऊं.’’

फिर बच्चे की तरह मचलते हुए बोली, ‘‘बीबीजी उस दिन तो आप को छुट्टी देनी ही पड़ेगी.’’

15 सितंबर के दिन एक थैला ले कर कमला चल दी. वह वहां से निकल कर उसी धर्मशाला में गई और वहां कुछ देर रुक कर कमला से लता बनी.

काटन की साड़ी पहन, जूड़ा बना कर, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर, हाथ में फाइल और थीसिस ले कर जब उस ने वहां लगे शीशे में अपने को देखा तो जैसे मानो खुद ही बोल उठी, ‘वाह लता, क्या एक्ंिटग की है.’

सविता की मामी के पास से इंटरव्यू लेटर ले कर वह विश्वविद्यालय पहुंच गई. सभी प्रत्याशियों में इंटरव्यू बोर्ड को सब से अधिक लता ने प्रभावित किया था.

लौटते समय लता सविता की मामी से यह कह आई थी कि अगर उस का नियुक्तिपत्र आए तो वह फोन पर उसी को बुला कर यह खबर दें, किसी और से यह बात न कहें.

धर्मशाला में जा कर लता कपड़े बदल कर कमला बन गई और फिर मालकिन के घर जा कर काम में जुट गई थी. मन बड़ा प्रफुल्लित था उस का. अपने इंटरव्यू से वह बहुत अधिक संतुष्ट थी, इस से अच्छा इंटरव्यू हो ही नहीं सकता था उस का.

खुशी मन से जल्दीजल्दी काम करती हुई कमला से श्रीमती चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘सच कमला, तेरे बिना अब तो इस घर का काम ही चलने वाला नहीं है. इसलिए अब जब भी तुझे अपनी बहन के यहां जाना हुआ करे तो हमें बता दिया कर, हम मिलवा कर ले आया करेंगे तुझे.’’

‘‘ठीक है, बीबीजी,’’ इतना कह कर वह काम में लग गई थी.

एक दिन सविता की मामी ने फोन पर उसे बुला कर सूचना दी कि उस का चयन हो गया है, अपना नियुक्तिपत्र आ कर उन से ले ले.

अब वह सोचने लगी कि बीमार बीबीजी से इस बारे में क्या और कैसे बात करे, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि नौकरी ज्वाइन करने से पहले बीबीजी को यह बात बताए. उसे डर था कहीं कोई अडं़गा न आ जाए.

वहां से जा कर ज्वाइन करने का पूरा गणित बिठाने के बाद कमला बीबीजी से बोली, ‘‘बीबीजी, आज जब मैं सब्जी लेने गई थी, तब मेरी उसी बहन की लड़की मिली थी, उस ने बताया कि उस की मां की तबीयत बहुत खराब है, इसलिए बीबीजी मुझे उस की देखभाल के लिए जाना पड़ेगा.’’

‘‘और यहां मैं जो बीमार हूं, मेरा क्या होगा? हमारी देखभाल कौन करेगा? यह सब सोचा है तू ने,’’ बीबीजी नाराज होते बोलीं, ‘‘देख, तनख्वाह तो तू यहां से ले रही है, इसलिए तेरा पहला फर्ज बनता है कि तू पहले हम सब की देखभाल करे.’’

‘‘बीबीजी, आप मेरी तनख्वाह से जितने पैसे चाहे काट लेना, मेरी देखभाल के बिना मेरी बहन मर जाएगी, हां कर दो न बीबीजी,’’ अत्यंत दीनहीन सी हो कर उस ने कहा.

कमला की दीनता को देख कर बीबीजी को तरस आ गया और उन्होंने जाने के लिए हां कर दी.

सारी औपचारिकताएं पूरी करते हुए लता ने मुंबई विश्वविद्यालय में व्याख्याता पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया था. उसे वहीं कैंपस में स्टाफ क्वार्टर भी मिल गया था. आज उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. इन 5 दिन में सविता की मामी के पास ही रहने का उस ने मन बना लिया था.

जाते ही उसे एम.एससी. की क्लास पढ़ाने को मिल गई थी. क्लास में भी क्या पढ़ाया था उस ने कि सारे विद्यार्थी उस के फैन हो गए थे.

5 दिनो के बाद 3 दिन की छुट्टियों में डा. लता फिर कमलाबाई बन कर बीबीजी के घर पहुंच गई.

‘‘अरी, कमला, तू इस बीमार को छोड़ कर कहां चली गई थी. तुझे मुझ पर जरा भी तरस नहीं आया. कितना भी कर लो पर नौकर तो नौकर ही होता है, तुझे तो तनख्वाह से मतलब है, कोई अपनी बीबीजी से मोह थोड़े ही है. अगर मोह होता तो 5 दिनों में थोड़ी देर के लिए ही सही खोजखबर लेने नहीं आती क्या? अब मैं कहीं नहीं जाने दूंगी तूझे, मर जाऊंगी मैं तेरे बिना, सच कहे देती हूं मैं,’’ मालकिन बोले ही जा रही थीं.

कमला खामोश हो कर बीबीजी से सबकुछ कहने की हिम्मत जुटा रही थी. तभी शाम के समय चतुर्वेदीजी के एक मित्र घर आए. वह मुंबई विश्वविद्यालय में बौटनी विभाग के हेड थे और उस की ज्वाइनिंग उन्होंने ही ली थी. ड्राइंगरूम से ही बीबीजी ने आवाज लगाते हुए कहा, ‘‘कमला, अच्छी सी 3 कौफी तो बना कर लाना.’’

‘‘अभी लाई, बीबीजी,’’ कह कर कमला कौफी बना कर जैसे ही ड्राइंगरूम में पहुंची, डा. भार्गव को देख कर उस की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. लेकिन फिर भी वह अंजान ही बनी रही.

डा. भार्गव लता को देख कर चौंक कर बोले, ‘‘अरे, डा. लता, आप यहां?’’

‘‘अरे, भाई साहब, आप क्या कह रहे हैं, यह तो हमारी बाई है, कमला. बड़ी अच्छी है, पूरा घर अच्छे से संभाल रखा है इस ने.’’

‘‘नहीं भाभीजी, मेरी आंखें धोखा नहीं खा सकतीं, यह डा. लता ही हैं, जिन्होंने 5 दिन पहले मेरे विभाग में ज्वाइन किया है. डा. लता, आप ही बताइए, क्या मेरी आंखें धोखा खा रही हैं?’’

‘‘नहीं सर, आप कैसे धोखा खा सकते हैं, मैं लता ही हूं.’’

‘‘क्या…’’ घर के सभी सदस्यों के मुंह से अनायास ही एकसाथ निकल पड़ा. सभी लता के मुंह की ओर देख रहे थे.

उन के अभिप्राय को समझ कर लता बोली, ‘‘हां, बीबीजी, सर बिलकुल ठीक कह रहे हैं,’’ यह कहते हुए उस ने अपनी सारी कहानी सुनाते हुए कहा, ‘‘तो बीबीजी, यह थी मेरे जीवन की कहानी.’’

‘‘खबरदार, जो अब मुझे बीबीजी कहा. मैं बीबीजी नहीं तुम्हारी आंटी हूं, समझी.’’

‘‘डा. लता, वैसे आप अभिनय खूब कर लेती हैं, यहां एकदम नौकरानी और वहां यूनिवर्सिटी में पूरी प्रोफेसर. वाह भई वाह, कमाल कर दिया आप ने.’’

‘‘मान गई लता मैं तुम्हें, क्या एक्ंिटग की थी तुम ने, कह रही थी कि मुझे लाइट बिना नींद ही नहीं आती. लेकिन लता, सच में मुझे बहुत खुशी हो रही है…हम सभी को, कितने संघर्ष के बाद तुम इतने ऊंचे पद पर पहुंचीं. सच, तुम्हारे मातापिता धन्य हैं, जिन्होंने तुम जैसी साहसी लड़की को जन्म दिया.’’

‘‘पर बीबीजी…ओह, नहीं आंटीजी, मैं तो आप का एहसान कभी नहीं भूलूंगी, यदि आप ने मुझे शरण नहीं दी होती तो मैं कैसे इंटरव्यू की तैयारी कर पाती? मैं जहां भी रहूंगी, इस परिवार को सदैव याद रखूंगी.’’

‘‘क्या कह रही है…तू कहीं नहीं रहेगी, यहीं रहेगी तू, सुना तू ने, जहां मेरी 2 बेटियां हैं, वहीं एक बेटी और सही. अब तक तू यहां कमला बनी रही, पर अब लता बन कर हमारे साथ हमारे ही बीच रहेगी. अब तो जब तेरी डोली इस घर से उठेगी तभी तू यहां से जाएगी. तू ने जिंदगी के इतने रंग देखे हैं, बेटी उन में एक रंग यह भी सही.’’

खुशी के आंसुओं के बीच लता ने अपनी सहमति दे दी थी.

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Travel Special: Adventure sports से जिंदगी में भरें जोश

घूमने का शौक हर किसी को होता है. भारत में अनेक ऐसी जगहें हैं, जो खूबसूरती से भरी होने के साथसाथ वहां पर तरहतरह के ऐडवैंचर स्पोर्ट्स का आयोजन किया जाता है.

आइए, जानते हैं ऐसी जगहों के बारे में:

ऋषिकेश फौर राफ्टिंग लवर्स

अगर आप पानी के साथ अठखेलियां करने को बेचैन हैं, तो आप के लिए बेहतरीन रिवर राफ्टिंग डैस्टिनेशन है ऋषिकेश. यह जगह उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल में स्थित है. यहां विदेशों से भारत भ्रमण करने आए लोग भी इस राफ्टिंग का मजा जरूर लेते हैं क्योंकि यह ऐडवैंचर है ही इतना मजेदार क्योंकि रबड़ की नाव में सफेद वाटर में घुमावदार रास्तों से गुजरना किसी रोमांच से कम नहीं होता है.

इस की खासीयत यह है कि अगर आप को तैरना नहीं भी आता तो भी आप गाइड की फुल देखरेख में इस ऐडवैंचर का लुत्फ उठा सकते हैं.

इन 4 जगहों पर होती है राफ्टिंग:  ब्रह्मपुरी से ऋषिकेश- 9 किलोमीटर, शिवपुरी से ऋषिकेश- 16 किलोमीटर, मरीन ड्राइव से ऋषिकेश- 25 किलोमीटर, कौड़ीयाला से ऋषिकेश- 35 किलोमीटर.

बैस्ट मौसम: यदि आप राफ्टिंग के लिए ऋषिकेश आने का प्लान कर रहे हैं तो मार्च से मई के मिड तक का समय अच्छा है.

बुकिंग टिप्स: आप राफ्टिंग के लिए बुकिंग ऋषिकेश जा कर ही कराएं क्योंकि वहां जा कर आप रेट्स को कंपेयर कर के अच्छाखासा डिस्काउंट ले सकते हैं. जल्दबाजी कर के बुकिंग न करवाएं वरना यह आप की जेब पर भारी पड़ सकता है. वैसे आप ₹1,000 से ₹1,500 में राफ्टिंग का लुत्फ उठा सकते हैं और अगर आप को ग्रुप राफ्टिंग करनी है तो इस पर भी आप डिस्काउंट ले सकते हैं.

इस बात का ध्यान रखें कि राफ्ट में गाइड वीडियो बनाने के पैसे अलग से चार्ज करता है. ऐसे में अगर इस की जरूरत हो तभी वीडियो बनवाएं वरना राफ्टिंग का लुत्फ ही उठाएं.

पैराग्लाइडिंग इन कुल्लूमनाली

आसमान की ऊंचाइयों को करीब से देखने का जज्बा हर किसी में नहीं होता और जिस में होता है वह खुद को पैराग्लाइडिंग करने से रोक नहीं पाता. तभी तो देश में पैराग्लाइडिंग ऐडवैंचर की कमी नहीं है और इस ऐडवैंचर के शौकीन लोग इसे करने के लिए कहीं भी पहुंच जाते हैं. इस में एक बहुत ही फेमस जगह है मनाली, जो भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के कुल्लू जिले में स्थित है. वहां की ब्यूटी को देखने के लिए हर साल हजारों लोग आते हैं.

यह जगह अपनी सुंदरता के लिए ही नहीं बल्कि ऐडवैंचर के लिए भी जानी जाती है. इसलिए पैराग्लाइडिंग प्रेमी होने पर वहां जाना न भूलें क्योंकि वहां आप को शौर्ट पैराग्लाइडिंग राइड से ले कर लौंग पैराग्लाइडिंग राइड तक का लुत्फ उठाने का मौका जो मिलेगा.

इन जगहों पर होती है पैराग्लाइडिंग: सोलंग वैली- 15 किलोमीटर फ्रौम मनाली, (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 20 मिनट), फटरु- लोंगर फ्लाइट टाइम, (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 30 से 35 मिनट), बिजली महादेव- लोंगर फ्लाइट टाइम, (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 35 से 40 मिनट), कांगड़ा वैली- (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 15 से 25 मिनट), मरही- यहां पैराग्लाइडिंग 3000 मीटर की ऊंचाई से होती है, जो काफी ऊंची है. (पैराग्लाइडिंग डुरेशन- 30-40 मिनट).

बैस्ट मौसम: मई से अक्तेबर. मौसम खराब होने पर पैराग्लाइडिंग नहीं करवाई जाती है. इस ऐडवैंचर को एक्सपर्ट की देखरेख में कराया जाता है, इसलिए पहली बार करने वालों को भी इस से डरना नहीं चाहिए.

बुकिंग टिप्स: आप पैराग्लाइडिंग के लिए बुकिंग जहां आप ठहरे हुए हैं, वहां आसपास से पूछ कर करें या फिर जिस जगह पर आप को इन ऐडवैंचर को करना है, वहां अच्छी तरह पूछ कर रेट्स को कंपेयर कर के आप अपनी बातों से हैवी डिस्काउंट भी ले सकते हैं. आप शौर्ट व लौंग फ्लाई के हिसाब से ₹1,000-₹2,500 में इस ऐडवैंचर का लुत्फ उठा सकते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि तुरंत बुकिंग न कराएं क्योंकि ज्यादा जल्दी आप की पौकेट पर भारी पड़ सकती है.

स्कूबा डाइविंग अंडमान

अंडमान के बीच, नीला पानी, चारों तरफ फैली खूबसूरती हर किसी का मन मोह लेती है, साथ ही यहां के अंडरवाटर ऐडवैंचर्स तो ऐडवैंचर लवर्स की जान बन गए हैं. किसे पसंद नहीं होगा कि समुद्र के अंदर जा कर कोरेल, औक्टोपस व बड़ी मछलियों को नजदीक से देखने का अनुभव करना. तो अगर आप भी हैं स्कूबा डाइविंग के दीवाने तो इस जगह को भूल कर भी मिस न करें. यह वन टाइम ऐक्सपीरियंस जीवनभर आप को याद रहेगा.

इन जगहों पर होती है स्कूबा डाइविंग

हैवलौक आइलैंड: क्लीयर वाटर ऐंड व्यू औफ वाइब्रेंट फिशेज. सेफ ऐंड स्ट्रैस फ्री ऐडवैंचर. 30 मिनट राइड इन ₹2,000 से ₹2,500.

नार्थ बे आइलैंड: ब्लू वाटर विद फुल औफ कोरल्स.

नील आइलैंड: वाटर डैप्थ इज मीडियम, प्राइज इज लिटिल हाई. वंडरफुल प्लेस फौर स्कूबा डाइविंग.

बारेन आइलैंड: यह आइलैंड स्कूबा के लिए बैस्ट है, लेकिन महंगा है.

बैस्ट मौसम: अक्तूबर से मिड मई. मौनसून के मौसम में अंडरवाटर ऐक्टिविटीज बंद कर दी जाती हैं.

बुकिंग टिप्स: आप पीएडीआई सर्टिफाइड डाइवर्स से ही स्कूबा डाइविंग को प्लान करें क्योंकि इस से सेफ्टी के साथसाथ आप इस राइड को अच्छी तरह ऐंजौय कर पाएंगे. आप अपने पैकेज के साथ इसे बुक कर सकते हैं क्योंकि अधिकांश पैकेजस में यह कौंप्लिमेंट्री होता है. कोशिश करें कि इस पर अच्छाखासा डिस्काउंट लें ताकि मजा भी ले सकें और पौकेट पर भी ज्यादा बो झ न पड़े.

स्कीइंग गुलमर्ग

क्या आप की स्कीइंग में रुचि है, लेकिन आप यही सोच रहे हैं कि किस जगह जा कर अपने स्कीइंग के ऐडवैंचर को पूरा करें तो आप को बता दें कि गुलमर्ग कश्मीर से 56 किलोमीटर दूर एक खूबसूरत हिल स्टेशन है. यहां की चोटियां बर्फ से ढकी होने के कारण यह जगह बेहद खूबसूरत दिखती है. यह आप की ख्वाहिश को पूरा कर सकती है.

यहां करें स्कीइंग: गुलमर्ग, बारामुला जिला.

फर्स्ट फेज: स्कीइंग के लिए कोंगडोरी, जो 1476 फुट ढलान है, यह स्कीइंग के शौकीनों को रोमांचकारी अनुभव प्रदान करती है.

सैकंड फेज: अपरवाट पीक, जो 2624 फुट की दूरी पर है, जो अनुभवी स्कीइंग के शौकीनों में अधिक लोकप्रिय है.

बैस्ट मौसम: दिसंबर टू मिड फरवरी. वैसे मार्च से मई महीनों का मौसम भी काफी बेहतरीन रहता है.

बुकिंग टिप्स: आप औनलाइन बुकिंग.कौम से बुक करने के साथसाथ वहां जा कर भी बुक कर सकते हैं. इक्विपमैंट की कौस्ट ₹700 से ₹1,000 के बीच होता है और अगर आप इंस्ट्रक्टर लेते हैं तो वह आप से अलग से दिन के हिसाब से ₹1,200 से ₹2,000 तक लेता है. सब का रेट अलगअलग है, इसलिए अच्छी तरह रिसर्च कर के ही बुकिंग करें.

स्काई डाइविंग मैसूर

भारत के कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले में स्थित एक नगर है, जो स्काई डाइविंग के लिए खासा प्रचलित है. तभी यहां स्काई डाइविंग करने के शौकीन खुद को यहां लाए बिना रह नहीं पाते हैं. मैसूर की चामुंडी हिल्स स्काई डाइविंग के लिए काफी फेमस है. लेकिन यहां स्काई डाइविंग का लुत्फ उठाने के लिए आप को पहले एक दिन की ट्रेनिंग लेनी होगी.

यहां आप टेनडेम स्टेटिक व ऐक्ससेलरेटेड फ्रीफाल्स जंप्स में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं. दोनों ही काफी रोमांचकारी होते हैं. टेनडेम स्टेटिक नए लोगों के लिए अच्छी है क्योंकि इस में प्रशिक्षित स्काई डाइवर आप के साथ एक ही रस्सी से बंधा होता है और पूरा कंट्रोल उस के हाथ में ही होता है. लेकिन ऐक्ससेलरेटेड फ्रीफाल्स जंप काफी मुश्किल माना जाता है. इस में आप के साथ इंस्ट्रक्टर नहीं होता. अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस का चुनाव करें.

बैस्ट मौसम: जब भी मौसम खुला हुआ हो, तो आप इस का लुत्फ उठा सकते हैं. वैसे सुबह 7 से 9 बजे का समय बैस्ट है.

बुकिंग टिप्स: आप इस के लिए मैसूर की स्काई राइडिंग से जुड़ी वैबसाइट्स की मदद ले सकते हैं या फिर वहां पहुंच कर औफलाइन बुकिंग भी अच्छा विकल्प है. आप को स्काई डाइविंग के लिए ₹30 से ₹35 हजार खर्च करने पड़ सकते हैं. इसलिए अगर आप ऐडवैंचर करने के लिए तैयार हैं तो इन जगहों पर जाना न भूलें.

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जंग की कीमत चुकाती है औरत

रूसयूक्रेन युद्ध का मंजर दिल दहलाने वाला है. करीब 2 महीनों से जारी युद्ध की विभीषिका बढ़ती ही जा रही है. यह लड़ाई अब रूस और यूक्रेन के बीच नहीं बल्कि दुनिया की 2 बड़ी ताकतों- रूस और अमेरिका के बीच होती स्पष्ट दिखाई दे रही है. यह लड़ाई तीसरे विश्वयुद्ध का संकेत देती भी नजर आ रही है. इस आशंका ने दुनियाभर की औरतों की चिंता बढ़ा दी है क्योंकि युद्ध कोई भी लड़े, कोई भी जीते, मगर उस का सब से बड़ा खमियाजा तो औरतों को ही भुगतना पड़ता है.

रूस के बारूदी गोलों और मिसाइलों ने यूक्रेन को राख के ढेर में तबदील कर दिया है. लोगों के घर, कारोबार, दुकानें, फैक्टरियां सबकुछ युद्ध की आग में भस्म हो चुका है. युवा अपने देश को बचाने के लिए सेना की मदद कर रहे हैं तो औरतें, बच्चे, बूढ़े अपना सबकुछ खो कर यूक्रेन की सीमाओं की तरफ भाग रहे हैं ताकि दूसरे देश में पहुंच कर अपनी जान बचा सकें.

एक खबर के अनुसार अब तक करीब 70 लाख यूक्रेनी पड़ोसी देशों पोलैंड, माल्डोवा, रोमानिया, स्लोवाकिया और हंगरी में शरण ले चुके हैं. इन शरणार्थियों में औरतों और बच्चों की तादात सब से ज्यादा है. युद्ध की विभीषिका सब से ज्यादा महिलाओं को भुगतनी पड़ती है. युद्ध के मोरचे के अलावा घरेलू मोरचे पर भी.

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सभी संकटों और संघर्षों में महिलाएं और लड़कियां सब से अधिक कीमत चुकाती हैं. म्यांमार, अफगानिस्तान से ले कर साहेल और हैती के बाद अब यूक्रेन का भयानक युद्ध उस सूची में शामिल हो गया है. हर गुजरते दिन के साथ यह महिलाओं और लड़कियों की जिंदगी, उम्मीदों और भविष्य को बरबाद कर रहा है. यह युद्ध गेहूं और तेल उत्पादक 2 देशों के बीच होने की वजह से दुनियाभर में जरूरी चीजों तक पहुंच को खतरा पैदा कर रहा है और यह महिलाओं और लड़कियों को सब से कठिन तरीके से प्रभावित करेगा.

श्रीलंका में औरतों की दुर्दशा

दुनियाभर में घरपरिवार से ले कर राष्ट्र तक को बनाने और संवारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली औरतें युद्ध, महंगाई और अस्थिरता जैसे हालात में हिंसा और शोषण का सर्वाधिक शिकार होती हैं. युद्ध के हालात से जू झने वाले समाज का रुख प्रगतिशील हो या परंपरागत, आधी आबादी को घाव ही घाव मिलते हैं.

स्त्री होने के नाते उन्हें बर्बरता और अमानवीय स्थितियों का सामना करना पड़ता है. श्रीलंका में गृहयुद्ध के बाद करीब 59 हजार महिलाएं विधवा हो गईं, मगर उन में से अधिकांश यह मानने को तैयार नहीं थीं कि उन के पति मर चुके हैं. इन में से अधिकतर उत्तरी और पूर्वी तमिल आबादी वाले इलाकों में रहती थीं.

वे जानती थीं कि उन के पति मर चुके हैं, फिर भी वे विधवा का जीवन नहीं जीना चाहती थीं क्योंकि उस हालत में उन्हें समाज में बुरी नजरों का सामना करना पड़ता. घर चलाने के लिए मजबूरन सैक्स वर्क के पेशे में जाना पड़ता.

श्रीलंका की हालत आज एक बार फिर बहुत नाजुक दौर से गुजर रही है. बढ़ती महंगाई के चलते तमिल औरतें अपने बच्चों को ले कर पलायन कर रही हैं. वे नाव के जरीए भारत के रामेश्वरम में बने शरणार्थी कैंपों में पहुंच रही हैं. कैंपों में जहां हर दिन खानेपीने और जरूरत के सामान के लिए उन्हें एक युद्ध लड़ना पड़ता है, वहीं उन की अस्मत पर गिद्ध नजरें भी टिकी रहती हैं.

युद्ध में औरत वस्तु मात्र है

किसी भी युद्ध का इतिहास पलट कर देख लें, नुकसान में औरतें ही होती हैं. पति सेना में है, लड़ाई में मारा जाए तो विधवा बन कर समाज के दंश सहने के लिए औरत मजबूर होती है. युद्ध जीतने वाली सेना हारने वाले देश की औरतों को भेड़बकरियों की तरह बांध कर अपने साथ ले जाते है ताकि उन से देह की भूख शांत की जाए, हरम की दासी बनाया जाए या बंधुआ बना कर काम लिया जाए.

भारत में हुए तमाम युद्धों में मारे जाने वाले सैनिकों की औरतें जौहर कर के खुद को आग में भस्म कर लेती थीं ताकि दुश्मन सेना के हाथ पड़ कर अपनी लाज न खोनी पड़े. 2 देशों के बीच युद्ध 2 राष्ट्राध्यक्षों का फैसला या यों कहें कि सनक है, जिस में औरतों और बच्चों की हिफाजत का कोई नियम नहीं बनाया जाता है. वे युद्ध में जीती जाने वाली वस्तुएं सम झी जाती हैं. युद्ध में लड़ाकों को औरतें तोहफे के रूप में मिलती हैं. वे चाहे यौन सुख भोगें या बैलगाड़ी में बैल की तरह जोतें, उन की मरजी. युद्ध की त्रासदी सिर्फ औरतें भोगती हैं.

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सोवियत की सेना ने पूर्वी प्रूशिया पर कब्जा कर लिया. घरों से खींचखींच कर जरमन औरतेंबच्चियां बाहर निकाली गईं और एकसाथ दसियों सैनिक उन पर टूट पड़े. सब का एक ही मकसद था- जर्मन गर्व को तोड़ देना. किसी पुरुष के गर्व को तोड़ने का आजमाया हुआ नुसखा है उस की औरत से बलात्कार. रैड आर्मी ने यही किया.

पहले और दूसरे विश्वयुद्ध की विभीषिका को जब भी याद किया गया, महिलाओं के साथ हुई बर्बरता का जिक्र जरूर हुआ. दरअसल, युद्ध में शक्ति प्रदर्शन का एक तरीका स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार करने की सोच से जुड़ा हुआ है. यही वजह है कि जंग के दौरान ही नहीं, बल्कि युद्ध खत्म होने के बाद भी औरतों के साथ अमानवीय घटनाएं जारी रहती हैं.

मानव तस्करों का सवाल

हमेशा से ही युद्ध ग्रस्त इलाकों में संगठित आपराधिक गिरोह सक्रिय रूप से महिलाओं और बच्चों को अपना शिकार बनाते रहे हैं. युद्ध के हालात में विस्थापन के चलते दूसरे देशों में पनाह लेने वाली ज्यादातर महिलाएं वेश्यावृत्ति, आपराधिक गतिविधियों, मानव तस्करी और गुलामी के जाल में भी फंस जाती हैं. शरणार्थी के रूप में दूसरे देशों में पहुंचने वाली औरतें मानव तस्करों का शिकार बन जाती हैं. औरतों की मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें दुष्कर्म और यौन दासता की अंधेरी सुरंग में हमेशा के लिए धकेल दिया जाता है.

90 के दशक में जब अफगानिस्तान में तालिबान ने सिर उठाया तो इत्र लगा कर घर से निकलने वाली औरतों को गोली मारने का आदेश हो गया. पढ़ाईलिखाई, नौकरी सब छूट गया. ऊंची आवाज में औरतों का बात करना बैन हो गया. कहा गया कि इत्र की खुशबू, खूबसूरत चेहरा और औरत की आवाज मर्द को बहकाती है. औरतें घरों में कैदी बन गईं.

फिर जब अफगानिस्तान की गलियों में अमेरिकी बूटों की गूंज सुनाई देने लगी तो औरतें फिर आजाद हुईं. वे इत्र लगाने लगीं, खुल कर हंसनेबोलने लगीं, पढ़ाई और नौकरी करने लगीं. मगर अगस्त, 2021 में तालिबान ने फिर अफगानिस्तान को अपने कब्जे में ले लिया और फिर औरतों को तहखानों में छिपाया और बुरकों से ढक दिया गया. यानी हुकूमत बदलने का पहला असर औरत पर होता है. सब से पहले उस की आजादी छीन कर उस को नोचा, डराया और मारा जाता है.

हर युद्ध में औरत को रौंदा गया

चाहे रूस हो, ब्रिटेन हो, चीन हो या पाकिस्तान- हर जंग में मिट्टी के बाद जिसे सब से ज्यादा रौंदा गया, वह है औरत. वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिकी सैनिकों के दिल बहलाव के लिए एक पूरी की पूरी सैक्स इंडस्ट्री खड़ी हो गई. कांच के सदृश्य चमकती त्वचा वाली वियतनामी युवतियों के सामने विकल्प था- या तो वे अपनी देह उन के हवाले करें या कुचली और मारी जाएं.

इस दौरान हजारों कम उम्र लड़कियों को हारमोन के इंजैक्शन दिए गए ताकि उन का भराभरा शरीर अमेरिकी सैनिकों को ‘एट होम’ महसूस कराए. इस पूरी जंग के दौरान सीलन की गंध वाले वियतनामी बारों में सुबह से ले कर रात तक उकताए सैनिक आते, जिन के साथ कोई न कोई वियतनामी औरत होती थी.

लड़ाई खत्म हुई. अमेरिकी सेना लौट गई, लेकिन इस के कुछ ही महीनों के भीतर 50 हजार से भी ज्यादा बच्चे इस दुनिया में आए. ये वियतनामीअमेरिकी मूल के थे, जिन्हें कहा गया- बुई दोय यानी जीवन की गंदगी. इन बच्चों की आंसू भरी मोटी आंखें देख मांओं का कलेजा फटता था, बच्चों को गले लगाने के लिए नहीं, बल्कि उन बलात्कारों को याद कर के, जिन की वजह से वे इन बच्चों की मांएं बनीं. इन औरतों और बच्चों के लिए वियतनामी समाज में कोई जगह नहीं थी. ये सिर्फ नफरत के पात्र थे, जबकि इन की कोई गलती नहीं थी.

1919 से लगभग ढाई साल चले आयरिश वार की कहानी भी औरतों के साथ हुई कू्ररताओं का बयान है. जहां खुद ब्यूरो औफ मिलिटरी हिस्ट्री ने माना था कि इस पूरे दौर में औरतों पर बर्बरता हुई. सैनिकों ने रेप और हत्या से अलग बर्बरता का नया तरीका इख्तियार किया था. वे दुश्मन औरत के बाल छील देते. सिर ढकने की मनाही थी. सिर मुंडाए चलती औरत गुलामी का इश्तिहार होती थीं.

राह चलते कितनी ही बार उन के शरीर को दबोचा जाता, अश्लील ठहाके लगते, खुलेआम उन से सामूहिक बलात्कार होते और अकसर अपने बच्चों के लिए खाना खरीदने निकली मजबूर औरतें घर नहीं लौट पाती थीं. उन के आदमी लेबर कैंपों में बंधुआ थे और छोटे बच्चे घर पर इंतजार करते हुए- उन मां और दीदी का जो कभी लौटी नहीं.

मुक्ति का रास्ता क्या है

पितृसत्तात्मक समाज का विध्वंस ही नारी मुक्ति और सुरक्षा का एकमात्र रास्ता है. जब औरत और पुरुष दोनों को समान बुद्धि प्रकृति ने प्रदान की है, तो उस का समान उपयोग होना चाहिए. उसे हर क्षेत्र में समान अवसर मिलना चाहिए. शिक्षा, व्यवसाय, नौकरी, सेना, युद्ध, राजनीति इन सभी क्षेत्रों में उन्हें न केवल बराबरी पर आना होगा बल्कि पुरुषों से आगे भी निकलना होगा. तभी वे उन के खूंखार पंजों से बच पाएंगी जो उन की बोटीबोटी नोच लेने को आतुर रहते हैं.

युद्ध पुरुष वर्चस्व की मानसिकता पर आधारित कृत्य है. यह विध्वंस को बढ़ावा देता है, साथ ही सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि से पुरुष तंत्र को मजबूत भी बनाता है. युद्ध का सब से नकारात्मक एवं विचारणीय पक्ष यह है कि यहां स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है. युद्ध के दौरान औरत एक वस्तु हो जाती है, जिसे एक पक्ष हार जाता है और दूसरा जीत कर ले जाता है और उस से बलात्कार करता है और दासी बना कर रखता है.

औरत वस्तु क्यों

महाभारत काल से आज तक औरत वस्तु ही बनी हुई है. युधिष्ठिर चौसर की बिसात पर द्रौपदी को हार जाता है और दुर्योधन भरी सभा में उस से बलात्कार पर उतारू हो जाता है. यही द्रौपदी अगर पत्नी या रानी होने के साथ उस पद पर बैठी होती, जहां निर्णय लिए जाते हैं तो न चौसर की बिसात बिछती, न मुकाबला होता और न ही औरत को नंगा करने की कोशिश होती.

‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते’ के दावेदार अपनी खुद में  झांक कर देखें और बताएं कि क्या औरत को देवी बनाने का असल मकसद उसे उस के व्यक्तित्व से वंचित करने और बेडि़यों में जकड़ने का षड्यंत्र नहीं है? सामाजिकराजनीतिक सत्ता तंत्र में स्त्री व्यक्तित्व की बराबर की हिस्सेदारी एक सहज स्वाभाविक अधिकार से होनी चाहिए न कि किसी कृपा के रूप में.

कहने का मतलब यह है कि औरत को राजनीति के उन ऊंचे पदों तक अपनी बुद्धि और शिक्षा के बल पर पहुंचना है, जहां से उस की मुक्ति संभव है. बड़ेबड़े देशों की सब से ऊंची और निर्णायक कुरसी पर अगर औरत बैठी होगी तो विश्व के देशों के बीच होने वाले युद्ध भी समाप्त हो जाएंगे. एक औरत कभी भी अपनी संतान को युद्ध में नहीं  झोंकना चाहती. एक शासक के लिए प्रजा उस की संतान ही है, ऐसे में शासक का स्त्री होना विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त करेगा. मगर विडंबना से राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को स्वीकारने के बावजूद तमाम देशों में अब भी राजनीतिक जीवन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पुरुषों की अपेक्षा काफी कम है.

तमाम प्रकार के रोजगारों एवं पेशों में भी महिलाओं की संख्या पुरुषों के बराबर नहीं है. अब भी समान कार्यों के लिए समान वेतन को लागू नहीं गया है. शिक्षा और व्यवसाय में उन की पुरुषों से कोई बराबरी नहीं है. शादी के बाद उन्हें ही अपना घर छोड़ कर दूसरे के घर की नौकरानी बनने के लिए मजबूर होना पड़ता है. उच्च शिक्षा पा कर भी वे दूसरे के घर का  झाड़ूबरतन करती हैं. उस के बच्चे पैदा करती हैं और उन्हें पालने में अपनी जान सुखाती हैं. उस पर भी ताने और मार खाती हैं. वे आवाज भी नहीं उठा पाती हैं क्योंकि वह उन का अपना घर नहीं है.

सामाजिक तानेबाने में यदि थोड़ा सा परिवर्तन हो जाए और शादी के बाद स्त्री के बजाय पुरुष को अपना घर छोड़ कर स्त्री के घर पर रहना पड़े तो स्त्री की दशा तुरंत बदल जाएगी. सारी चीजें पलट जाएंगी. अपने घर में औरत के पास निर्णय लेने की ताकत और आजादी होगी और यही आजादी उस की अपनी आजादी को सुनिश्चित करेगी.

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Mother’s Day Special: 42 की उम्र में भी कम नही हुआ ‘पुरानी कोमोलिका’ का जलवा

दो बच्चों की मां होने के साथ-साथ 41 साल की उर्वशी किसी भी एक्ट्रेस से फैशन के मामले में पीछे नहीं हैं. 24 साल के जुड़वा बच्चों की मां उर्वशी पार्टी हो या कोई शादी उर्वशी का हर जगह परफेक्ट लुक में नजर आती हैं, जिसका अंदाजा उनके इंस्टाग्राम पेज को देखकर लगाया जा सकता है. आज हम उर्वशी के इंडियन और वेस्टर्न के कम्फरटेबल फैशन के बारे में बताएंगे.

1. सिंपल फिशकट जींस के साथ वाइट का कौम्बिनेशन है बेस्ट

आजकल फिशकट जींस लोगों के बीच बहुत पौपुलर है. उर्वशी भी इस फैशन का इस्तेमाल करने में पीछे नही हैं. हाल ही में उर्वशी फिशकट जींस के साथ सिंपल वाइट फ्रिल टौप का कौम्बिनेशन ट्राय करती नजर आईं. आप चाहे तो अपने कम्फर्ट के लिए इस लुक के साथ शूज का पेयर ट्राय कर सकती हैं. ये आपके लुक को परफेक्ट बनाएगा.

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2. फ्लोरल प्रिंट का कौम्बिनेशन है परफेक्ट

आजकल फ्लोरल प्रिंट की डिमांड हर मार्केट में है. फ्लोरल प्रिंट की खास बात यह है कि ये हर ड्रेस के साथ परफेक्ट मैच करता है. उर्वशी ने भी फ्लोरल प्रिंट के वाइट पैटर्न को पिंक प्लाजो के साथ मैच किया. जिसमें वह बहुत खूबसूरत लग रही थीं.

3. उर्वशी का लहंगा है परफेक्ट

अगर आप भी लहंगे के पैटर्न का कुछ नया डिजाइन ट्राय करने की सोच रही हैं तो उर्वशी  की ये ड्रेस आपके लिए परफेक्ट औपशन है. सिंपल ग्रीन कलर के साथ नेट की चुन्नी आपको सिंपल के साथ-साथ स्टाइलिश लुक देगी.

4. उर्वशी का लाइट कलर का शाइनिंग शरारा है परफेक्ट

अगर आप कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो उर्वशी का ये शरारा औप्शन आपके लिए बेस्ट रहेगा. सिंपल ब्लू कलर के कुर्ते के साथ शरारा आप के लिए अच्छा औपशन है. ये लुक आपको एलीगेंट के साथ-साथ स्टाइलिश भी बनाएगा. आप चाहें तो ये किसी शादी या फैमिली गैदरिंग में ट्राय कर सकती हैं.

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बता दें, एक्ट्रेस उर्वशी ढोलकिया स्टार प्लस में आने वाले कसौटी जिंदगी की में कोमोलिका के रोल में फेमस हुई थीं, जिसके बाद वह कईं सीरियल्स में नजर आईं. वहीं उर्वशी ढोलकिया सलमान खान के पौपुलर रियलिटी शो ‘बिग बौस’ के एक सीजन में विनर का खिताब हासिल कर चुकीं हैं.

Top 10 Best Mother’s Day Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट मदर्स डे कहानियां हिंदी में

Mother’s Day Story in Hindi: परिवार हमारी लाइफ का सबसे जरुरी हिस्सा है. लेकिन उसकी सबसे अहम कड़ी मां होती है, जो बच्चो और अपनी फैमिली को जोड़कर रखने का काम करती है. साथ ही बिना किसी के स्वार्थ के परिवार हर अच्छे-बुरे वक्त में साथ खड़ी होती है. इसीलिए इस मदर्स डे के मौके पर आज हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की 10 Best Mother’s Day Story in Hindi. मां के बलिदान और प्यार की दिलचस्प कहानियां, जो आपके दिल को छू लेगी. साथ ही आपको इन Mother’s Day Story से आपको कई तरह की सीख भी मिलेगी, जो आपके रिश्तों को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौकिन हैं तो पढ़िए Grihshobha की Best Mother’s Day Story in Hindi 2022.

1. Mother’s Day Special: और प्यार जीत गया

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मातापिता की जिद की वजह से देवयानी की शादी उस के प्रेमी अविनाश से नहीं हो पाई थी. जब यही स्थिति उस की बेटी आलिया के समक्ष आ खड़ी हुई तो क्या देवयानी उसे उस का प्यार दिलवा पाई…

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2. Mother’s Day Special: मां का दिल- क्या वक्त के साथ बदल सकता है मां का प्यार?

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एक मां का बच्चे के लिए प्यार कभी नहीं बदलता भले ही वक्त या परिस्थितियां कितनी भी क्यों न बदल जाएं.

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3. Mother’s Day Special: बिट्टू: नौकरीपेशा मां का दर्द

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इधर बिट्टू मां का प्यार पाने को तरस रहा था, उधर अनिता चाह कर भी बिट्टू को अपना प्यार नहीं दे पा रही थी. बिट्टू था कि हर रोज एक नया बखेड़ा खड़ा कर देता था.

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4. Mother’s Day Special: थैंक्यू मां

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पूजा की मां क्यों ममता के लिए तरसती थी. क्या उनकी ममता पूरी तरह तृप्त हो पाई?

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5. Mother’s Day Special: ममता का आंगन

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नए घर में पहुंचकर निशा को बहुत प्यार सम्मान मिला. शुरू के कुछ दिनों में उसे किसी भी काम में हाथ नहीं लगाने दिया.

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6. Mother’s Day Special: मुक्ति : मां के मनोभावों से अनभिज्ञ नहीं था सुनील

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मां के मनोभावों से अनभिज्ञ नहीं था सुनील. बावजूद इस के ऐसी क्या मजबूरी थी कि उस ने मां के प्रति अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ लिया था. मुक्ति के लिए मां आखिरी सांस तक लड़ती रहीं.

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7. Mother’s Day Special: सैल्फी- आखिर क्या था बेटी के लिए निशि का डर?

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अपनी युवा होती बेटी कुहू को ले कर निशि के मन में एक अजीब से डर का भाव बना रहता था. क्या अपनी सहेली स्नेहा से मिल कर उस का डर खत्म हुआ…

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8. Mother’s Day Special: मेरी मां के नाम

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मां ने सदा सीख दी थी कि ‘अपनी हर सफलता के पीछे दूसरों का योगदान मानो’. मां की यह बात मैं ने हमेशा याद रखी और सफलता की सीढि़यां चढ़ती गईं जिस का सारा श्रेय जाता है मेरी मां को.

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9.Mother’s Day Special: यह कैसी मां- क्या सच थीं मां के लिए की गई माया के पिता की बातें

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माया अपने पिता के मुंह से अपनी मां के बारे में सुन कर सन्न रह गई थी. एक पत्नी अपने पति के साथ ऐसा व्यवहार भी कर सकती है, माया को यकीन नहीं हो रहा था, लेकिन हकीकत यही थी.

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10. Mother’s Day Special: रिश्तों की कसौटी-जब बेटी को पता चले मां के प्रेम संबंध का सच

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मेरी एड़िया काली पड़ने लग गई हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

गरमी के मौसम में चप्पलें पहने की वजह से मेरी एडि़यां काली पड़ने लग गई हैं. अगर मैं अच्छी तरह से साबुन लगा कर साफ करती हूं तो भी कुछ कालापन रह जाता है. साथ में हलकाहलका दर्द थोड़ेथोड़े समय पर महसूस होता है जैसेकि पस पड़ गई हो. कुछ दरारें भी पड़ जाती हैं.

जवाब-

एडि़यों को साफ करने के लिए खास तरह के सौफ्ट स्क्रबर का इस्तेमाल होता है. आप इस से हलकेहलके अपनी एडि़यों को साफ करें. इस से एडि़यां सौफ्ट भी रहेंगी और दरारें भी नहीं पड़ेंगी. इस के अलावा किसी सैलून में पैडीक्योर करवा लें. घर में भी खुद पैडीक्योर कर सकती हैं. इस के लिए 1/2 कप कुनकुने पानी में 1 चम्मच शैंपू, 1 बड़ा चम्मच नमक व थोड़ा सा कोई ऐंटीसैप्टिक लोशन डाल लें. 10 मिनट तक पैरों को इस पानी में भिगोए रखें. फिर प्यूमिक स्टोन से हलकेहलके रगड़ कर साफ पानी से धो लें. पैरों को सुखा कर किसी क्रीम से थोड़ी देर मसाज करें. अगर रात को पैडीक्योर करती हैं तो कोई कौटन की सौक्स कुछ देर तक पहन कर रख सकती हैं जिस से पैर सौफ्ट बने रहेंगे और साफ भी रहेंगे. कभीकभार पैरों पर ब्लीच करना भी अच्छा रहता है. इससे पैरों का रंग एकदम गोरा हो जाता है.

-समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा

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बदलते मौसम में हम अपने चेहरे और हाथों की स्किन का तो खूब खयाल रखते हैं, लेकिन अकसर यह भूल जाते हैं कि हमारी पर्सनैलिटी में जितनी इंपौर्टैंस चेहरे और हाथों की खूबसूरती की है उतने ही अहम हमारे पैर भी हैं, जिन पर मौसम की मार सब से पहले पड़ती है, लेकिन हम उन्हीं को अपनी टेक केयर लिस्ट में सब से आखिर में रखते हैं. नतीजा यह होता है कि हमारी एडि़यां फट जाती हैं, पैर बेजान नजर आने लगते हैं.

आप अपने पैरों का खयाल कैसे रख सकती हैं और ऐसी कौन सी चीजें हैं, जो आप के पैरों में फिर से जान डाल देंगी, यही बताने के लिए हम यह लेख आप के लिए ले कर आए हैं.

एडि़या फटने के कारण

एडि़या फटने की सब से आम वजह है मौसम का बदलना, साथ ही मौसम के अनुरूप पैरों को सही तरीके से मौइस्चराइज न करना और जब मौसम शुष्क हो जाता है तो यह परेशानी और बढ़ जाती है.

देखा जाए तो अधिकतर महिलाएं फटी एडि़यों से परेशान होती हैं, क्योंकि काम करते समय अकसर उन के पैर धूलमिट्टी का ज्यादा सामना करते हैं इस के साथ ही इन कारणों की वजह से भी एडि़यां फटती हैं:

– लंबे समय तक खड़े रहना

– नंगे पैर चलना

– खुली एडि़यों वाले सैंडल पहनना

– गरम पानी में देर तक नहाना

– कैमिकल बेस्ड साबुन का  इस्तेमाल करना – सही नाप के जूते न पहनना.

बदलते मौसम के कारण वातावरण में नमी कम होना फटी एडि़यों की आम वजह है. साथ ही बढ़ती उम्र में भी एडि़यों का फटना आम बात है. ऐसे में कई बार एडि़यां दरारों के साथ रूखी हो जाती हैं. कई मामलों में उन दरारों से खून भी रिसना शुरू हो जाता है, जो काफी दर्दनाक होता है.

उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की भाव और भावना एक: सीएम योगी

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लिए गुरुवार का दिन ऐतिहासिक रहा. दोनों राज्यों के बीच तीन दशक से चले आ रहे एक विवाद का पटाक्षेप करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अलकनंदा अतिथि गृह की चाबी सौंपी तो उत्तर प्रदेशवासियों के लिए हरिद्वार में नवनिर्मित भव्य भागीरथी भवन का लोकार्पण किया.

माँ गंगा तट के पर आयोजित संपन्न कार्यक्रम को मुख्यमंत्री योगी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन के अनुरूप बताया. उन्होंने कहा कि माँ गंगा भारत के जीवनधारा की आत्मा हैं. गंगा तब बनती है जब अलकनंदा और भागीरथी एक साथ मिलती हैं.

प्रधानमंत्री जी ने हमें विवादों को संवाद से सुलझाना सिखाया है और इसी भावना के साथ दोनों राज्यों के बीच विवादों का समाधान होना संभव हुआ.

पूज्य संतों, धर्माचार्यों, अनेक पूर्व मुख्यमंत्री गणों, उत्तराखंड सरकार के मंत्रियों की उपस्थिति में मुख्यमंत्री योगी ने दोनों राज्यों के समग्र विकास के लिए साथ-साथ मिलकर काम करने की जरूरत बताई.

उत्तराखंड को अपनी माँ और मातृभूमि कहते हुए सीएम योगी ने कहा कि उत्तराखंड में स्प्रिचुअल टूरिज्म और इको टूरिज्म की अपार सम्भावनाएं हैं. उत्तर प्रदेश की 25 करोड़ जनता सहित पूरे भारत से कौन ऐसा है जो उत्तराखंड के चार धाम का पुण्य लाभ नहीं लेना चाहता, ऐसा कोई नहीं जो हर की पैड़ी पर स्नान नहीं करना चाहता. यहां हर मौसम में पर्यटन के अवसर हैं.

चारधाम यात्रा के दौरान केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री की ओर लोग आने को उत्सुक हैं तो दूसरे सीजन में कुमाऊं, नैनीताल, झूंसी मठ से जुड़े अनेक हिल स्टेशन भी लोगों को लालायित करता है. यही नहीं, हाल के वर्षों में यहां फारेस्ट कवर भी बढ़ा है, जो इको टूरिज्म की संभावनाओं को बल देने वाला गया. सीएम योगी ने डबल इंजन की सरकार में देवभूमि उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, ऋषिकेश, आदि आध्यत्मिक स्थलों के पर्यटन विकास के लिए जारी प्रयासों की सराहना की. इन पावन स्थलों को आस्था के साथ-साथ राष्ट्रीय एकात्मता को तेज और ओज देने के केंद्र की संज्ञा देते हुए सीएम योगी ने विश्वास जताया कि यहां विकास की यह यात्रा सभी के सुख-समृद्धि का कारक बनेगी.

काशी में 50 लोग पूजन नहीं कर पाते थे, आज 50 हजार लोग होते हैं मौजूद उत्तर प्रदेश में अयोध्या दीपोत्सव, काशी देव दीपावली, बरसाना रंगोत्सव, कृष्ण जन्मोत्सव के भव्य आयोजनों की चर्चा करते हुए सीएम ने अयोध्या, काशी, शुक तीर्थ, नैमिष धाम, राजापुर, आदि पावन, आध्यत्मिक ऊर्जा के केंद्रों के समग्र विकास के कार्यक्रमों की भी जानकारी दी.

प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में काशी में श्रीकाशीविश्वनाथ धाम कॉरिडोर निर्माण के बाद बदली परिस्थितियों की चर्चा करते हुए सीएम योगी ने कहा कि जहां 50 लोग एक साथ पूजा-पाठ नहीं कर सकते थे आज 50 हजार लोग एक साथ उपस्थित रहते हैं. मुख्य पर्वों पर तो 05 लाख लोग दर्शन कर रहे हैं.

वेदालाइफ-निरामयम् में लिया आड़ू और खुमैनी का स्वाद

पौड़ी-गढ़वाल में पतंजलि योगपीठ द्वारा नवविकसित योग, आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा की इंटीग्रेटेड थेरेपी के अत्याधुनिक केंद्र “वेदालाइफ-निरामयम्” भ्रमण के अनुभवों को भी साझा किया.

सीएम ने बताया कि वहां उन्होंने आड़ू और खुमैनी जैसे फलों का आनंद लिया. उन्होंने कहा कि एक सूखी पहाड़ी पर, जहां मोटे पत्थर हुआ करते थे, वहां 40 हजार से अधिक वृक्षों का एक मनोरम जंगल बसा दिया गया है. यह पूरा क्षेत्र किसी ऋषि की साधना स्थली लगती है. कल देश के मैदानी क्षेत्रों में जब 45℃ तापमान था तब हम लोग वहां 15℃ का आनंद ले रहे थे. सीएम योगी ने कहा कि यह केंद्र हेल्थ टूरिज्म को बढ़ावा देने के साथ ही व्यापक पैमाने पर रोजगार सृजन का कारक भी बनेगा.

वसंत आ गया- भाग 1: क्या संगीता ठीक हो पाई

ट्रिन ट्रिन…फोन की घंटी बजती जा रही थी मगर इस से बेखबर आलोक टीवी पर विश्व कप फुटबाल मैच संबंधी समाचार सुनने में व्यस्त थे. तब मैं बच्चों का नाश्ता पैक करती हुई उन पर झुंझला पड़ी, ‘‘अरे बाबा, जरा फोन तो अटेंड कीजिए, मैं फ्री नहीं हूं. ये समाचार तो दिन में न जाने कितनी बार दोहराए जाएंगे.’’

आलोक चौंकते हुए उठे और अपनी स्टाइल में फोन रिसीव किया, ‘‘हैलो…आलोक एट दिस एंड.’’

स्कूल जाते नेहा और अतुल को छोड़ने मैं बाहर की ओर चल पड़ी. दोनों को रिकशे में बिठा कर लौटी तो देखा, आलोक किसी से बात करने में जुटे थे. मुझे देखते ही बोले, ‘‘रंजू, तुम्हारा फोन है. कोई मिस्टर अनुराग हैं जो सिर्फ तुम से बात करने को बेताब हैं,’’ कह कर उन्होंने रिसीवर मुझे थमा दिया और खुद अपने छूटते समाचारों की ओर दौड़ पड़े.

मुझे कुछ याद ही नहीं आ रहा था कि कौन अनुराग है जिसे मैं जानती हूं, पर बात तो करनी ही थी सो बोल पड़ी, ‘‘हैलो, मैं रंजू बोल रही हूं…क्या मैं जान सकती हूं कि आप कौन साहब बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं अनुराग, पहचाना मुझे? जरा दिमाग पर जोर डालना पड़ेगा. इतनी जल्दी भुला दिया मुझे?’’ फोन करने वाला जब अपना परिचय न दे कर मजाक करने लगा और पहेलियां बुझाने लगा तो मुझे बहुत गुस्सा आया कि पता नहीं कौन है जो इस तरह की बातें कर रहा है, पर आवाज कुछ जानीपहचानी सी लग रही थी. इसलिए अपनी वाणी पर अंकुश लगाती हुई मैं बोली, ‘‘माफ कीजिएगा, अब भी मैं आप को पहचान नहीं पाई.’’

‘‘मेरी प्यारी बहना, अपने सौरभ भाई की आवाज भी तुम पहचान नहीं पाओगी, ऐसा तो मैं ने सोचा ही नहीं था.’’

‘‘सौरभ भाई, आप…वाह…, तो मुझे उल्लू बनाने के लिए अपना नाम अनुराग बता रहे थे,’’ खुशी से मैं इतनी जोर से चीखी कि आलोक घबरा कर मेरे पास दौड़े चले आए.

‘‘क्या हुआ? इतनी जोर से क्यों चीखीं? कहीं छिपकली दिख गई क्या?’’

मैं इनकार में सिर हिलाती हुई हंस पड़ी, क्योंकि छिपकली देख कर भी मैं डर के मारे हमेशा चीख पड़ती हूं. फिर रिसीवर में माउथपीस पर हाथ रख कर बोली, ‘‘जरा रुकिए, अभी आ कर बताती हूं,’’ तो आलोक लौट गए.

‘‘हां, अब बताइए भाई, इतने दिनों बाद बहन की याद आई? कब आए आप स्ंिगापुर से? बाकी लोग कैसे हैं?’’ मैं ने सवालों की झड़ी लगा दी.

‘‘फिलहाल किसी के बारे में मुझे कोई खबर नहीं है, क्योंकि सब से ज्यादा मुझे सिर्फ तुम्हारी याद आई, इसलिए भारत आने के बाद सब से पहले मैं ने तुम्हें फोन किया. तुम से मिलने मैं कल ही तुम्हारे घर आ रहा हूं. पूरे 2 दिन तुम्हें बोर होना पड़ेगा. इसलिए कमर कस कर तैयार हो जाओ. बाकी बातें अब तुम्हारे घर पर ही होंगी, बाय,’’ इतना कह कर भाई ने फोन काट दिया.

सौरभ भाई कल सच में हमारे घर आने वाले हैं, सोच कर मैं खुशी से झूम उठी. 10 साल हो गए थे उन्हें देखे. आखिरी बार उन्हें अपनी शादी के वक्त देखा था.

अपने मातापिता की मैं अकेली संतान थी, पर दोनों चचेरे भाई सौरभ और सौभिक मुझ पर इतना प्यार लुटाते

थे कि मुझे कभी एहसास ही न हुआ कि मेरा अपना कोई सगा भाई या बहन नहीं है. काकाकाकी की तो मैं वैसे भी लाड़ली थी.

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि हम भुवनेश्वर में रहते थे और काका का परिवार पुरी में. हमारा लगभग हर सप्ताह ही एकदूसरे से मिलनाजुलना हो जाता था. इसलिए 60-65 किलोमीटर की दूरी हमारे लिए कोई माने नहीं रखती थी.

मेरी सौभिक भाई से उतनी नहीं पटती थी, जितनी सौरभ भाई से. मेरे प्यारे और चहेते भैया तो सौरभ भाई ही थे. उन के अलावा समुद्र का आकर्षण ही था जो प्रत्येक सप्ताह मुझे पुरी खींच लाता था.

उन दिनों मैं दर्शनशास्त्र में एम.ए. कर रही थी इसलिए सौरभ भाई की जीवनदर्शन की गहरी बातें मुझे अच्छी लगती थीं. एक दिन वह कहने लगे, ‘रंजू, अपने भाई की एक बात गांठ बांध लो, गलती स्वीकार करने में ही समझदारी होती है. जीवन कोई कोर्ट नहीं है जहां कभीकभी गलत बात को भी तर्क द्वारा सही साबित कर दिया जाता है.’

मैं उन का मुंह ताकती रह गई तो वह आगे बोले, ‘तुम शायद ठीक से मेरी बात समझ नहीं पाईं. ठीक है, इस बात को मैं तुम्हें फिल्मी भाषा में समझाता हूं. थोड़ी देर पहले तुम ‘आनंद’ फिल्म का जिक्र कर रही थीं. मैं ने भी देख रखी है यह फिल्म. इस के एक सीन में जब अमिताभ रमेश देव से पूछता है कि तुम ने क्यों उस धनी सेठ को कोई बीमारी न होते हुए भी झूठमूठ की महंगी गोलियां दे कर एक मोटी रकम झटक ली. तो इस पर रमेश देव कहता है कि अगर ऐसे धनी लोगों को बेवकूफ बना कर मैं पैसे नहीं लूंगा तो गरीब लोगों का मुफ्त इलाज कैसे करूंगा?

‘एक नजर में रमेश देव का यह तर्क सही भी लगता है, परंतु सचाई की कसौटी पर परखा जाए तो क्या वह गलत नहीं था? अगर किसी गरीब की वह मदद करना चाहता था तो अपनी ओर से जितनी हो सके करनी चाहिए थी. इस के लिए किसी अमीर को लूटना न तो न्यायसंगत है और न ही तर्कसंगत, इसलिए ज्ञानी पुरुष गलत बात को सही साबित करने के लिए तर्क नहीं दिया करते बल्कि उस भूल को सुधारने का प्रयास करते हैं.’

एक दिन कालिज से घर लौटी तो मां एक खुशखबरी के साथ मेरा इंतजार कर रही थीं. मुझे देखते ही बोलीं, ‘सुना तू ने, तेरे काका का फोन आया था कि कल तेरे सौरभ भाई के लिए लड़की देखने कानपुर चलना है. सौरभ ने कहा है कि उसे हम सब से ज्यादा तुझ पर भरोसा है कि तू ही उस के लिए सही लड़की तलाश सकती है.’

मुझे अपनेआप पर नाज हो आया कि मेरे भाई को मुझ पर कितना यकीन है.

दूसरे दिन सौरभ भाई और सौभिक भाई के अलावा हम सब कानपुर पहुंचे तो मैं बहुत खुश थी. हम सभी को लड़की पसंद आ गई. हां, उस की उम्र जरूर मेरी मां और काकी के विचार से कुछ ज्यादा थी, पर आजकल 27 साल में शादी करना कोई खास बात नहीं होती. फिर उसे देख कर कोई 22-23 से ज्यादा की नहीं समझ सकता था.

बैठक में सब को चायनाश्ता देने और थोड़ी देर वहां बैठने के बाद जब भाभी अंदर जाने लगीं तो काकी ने मुझ से कहा, ‘रंजू, तुम अंदर जा कर संगीता के साथ बातें करो. यहां बड़ों के बीच बैठी बोर हो जाओगी. फिर हमें तो कुछ उस से पूछना है नहीं.’

मैं भी भाभी के साथ बात करना चाहती थी, इसलिए अंदर चली गई. तभी उन के  घर में भाभी के बचपन से काम करने वाली आया कमली ने उन्हें एक टेबलेट खाने को दी. मेरे कुछ पूछने से पहले की कमली बोली, ‘शायद घबराहट के मारे बेबी के सिर में कुछ दर्द सा होने लगा है. आप तो समझ ही सकती हैं क्योंकि आप भी लड़की हैं.’

इस पर मैं बोली, ‘मैं समझ सकती हूं, पर च्ंिता करने की कोई बात नहीं है. हम सब को भाभी पहले ही पसंद आ चुकी हैं.’

भाभी ने तब तल्ख स्वर में कहा था, ‘पसंद तो सभी करते हैं पर शादी कोई नहीं.’

‘पर हम तो आज सगाई भी कर के जाने वाले हैं.’ मुझे लगा कि पहले कोई रिश्ता नहीं हो पाया होगा इसलिए भाभी ऐसे बोल रही हैं.

फिर सगाई कर के ही लौटे थे. इस के 10 दिन बाद सौरभ भाई के पास एक गुमनाम फोन आया कि जिस लड़की से आप शादी करने जा रहे हैं वह एक गिरे हुए चरित्र की लड़की है. अपने स्वभाव के मुताबिक सुनीसुनाई बात पर यकीन न करते हुए भाई ने फोन करने वाले से सख्त लहजे में कहा था, ‘आप को इस विषय में च्ंिता करने की कोई आवश्यकता नहीं है. उस के चरित्र के विषय में मुझे सब पता है.’

करीब एक महीने बाद ही धूमधाम से हम सब संगीता भाभी को दुलहन बना कर घर ले आए. उन के साथ दहेज में कमली भी आई थी. हमारे घर वालों ने सोचा ससुराल में भाभी को ज्यादा परेशानी न हो इस वजह से उन के मायके वालों ने उसे साथ भेजा है.

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