पर्यटन मानचित्र पर नई कहानी कह रहा नया उत्तर प्रदेश: सीएम योगी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि प्रकृति और परमात्मा की असीम कृपा वाले उत्तर प्रदेश की पर्यटन सम्भावनाओं के विकास पर पिछली सरकारों ने अपेक्षित ध्यान नहीं दिया. 2017 के पहले की यूपी में पर्यटन तो दूर कानून-व्यवस्था की बदहाली के चलते लोग औद्योगिक निवेश तक करना नहीं चाहते थे. लेकिन आज आज प्रदेश पर्यटन विकास की ढेर सारी संभावनाओं को समेटे हुए आगे बढ़ रहा है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद देश के पर्यटन के पोटेंशियल को अगर किसी ने समझा है तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. उनकी दूरदर्शी व सकारात्मक सोच के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश पर्यटन विकास के मानचित्र पर आज एक नई कहानी कह रहा है.

मुख्यमंत्री योगी लखनऊ में अपने सरकारी आवास पर आयोजित कार्यक्रम में पर्यटन विकास से जुड़ीं ₹642 करोड़ की 488 परियोजनाओं का लोकार्पण व शिलान्यास कर रहे थे. कार्यक्रम में वर्चुअल माध्यम से केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी और केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट की भी उपस्थिति रही.

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2013 के प्रयागराज महाकुंभ में दुर्व्यवस्था, गंदगी, और भगदड़ की स्थिति रही. वहीं 2019 का प्रयागराज कुंभ “दिव्य और भव्य रहा. आज अयोध्या का दीपोत्सव, मथुरा का कृष्णोत्सव और रंगोत्सव और काशी की देव दीपावली पूरी दुनिया को आकर्षित कर रही है. हमने शुक तीर्थ, नैमिष धाम, गोरखपुर, कौशाम्बी, संकिसा, लालापुर सहित हर क्षेत्र के विकास पर ध्यान दिया है.

यही नहीं, मुख्यमंत्री पर्यटन संवर्धन योजना के माध्यम से प्रदेश के सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में किसी न किसी पर्यटन स्थल के व्यवस्थित विकास को आगे बढ़ाने का कार्य हुआ है. आज प्रदेश में 700 से अधिक पर्यटन स्थलों का सफलतापूर्वक विकास किया गया है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि हर वह स्थल जो हमारी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक पहचान और आस्था से जुड़े हैं, सबका सम्मान करते हुए हर स्थल के विकास का काम हो रहा है. रिलिजियस टूरिज्म के साथ-साथ इको टूरिज्म को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है. इन प्रयासों से युवाओं के लिए बड़ी संख्या में रोज़गार के अवसर भी सृजित हुए हैं. 191.04 करोड़ की 154 विकास परियोजनाओं का लोकार्पण करते हुए उन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष पर चौरीचौरा शताब्दी वर्ष, लखनऊ रेजीडेंसी में हुए ड्रोन और लाइट एंड साउंड शो, महाकवि निराला की भूमि के पर्यटन विकास, काकोरी और शाहजहांपुर में अमर शहीदों की यादें संजोने जैसी कोशिशों का भी जिक्र किया.

मंदिर हमारी आत्मा, यह नहीं तो हम निष्प्राण: रेड्डी

लोकार्पण-शिलान्यास के इस कार्यक्रम में वर्चुअली सहभाग करते हुए केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी.किशन रेड्डी ने योगी सरकार द्वारा पर्यटन व संस्कृति संवर्धन के लिए किए गए प्रयासों को अभूतपूर्व बताया.

उन्होंने कहा कि योगी सरकार सांस्कृतिक विरासतों का उत्थान कर रही है. यह नए भारत की नई तस्वीर है. ब्रज क्षेत्र में विकास कार्यों का जिक्र करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह मंदिर हमारी आत्मा हैं. अगर इसे निकाल दिया जाए तो कुछ भी नहीं बचेगा. केंद्रीय मंत्री ने पर्यटकों की सुविधा की दृष्टि से सड़क, वायु, जल, मार्ग व रोपवे कनेक्टिविटी की तारीफ की और काशी में माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा की पुनर्स्थापना, रामायण सर्किट, बौद्ध सर्किट, कृष्ण सर्किट का उदाहरण देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में रामराज्य है. विशेष अवसर पर पर्यटन विभाग के वार्षिक कैलेंडर व उपलब्धियों पराधारित पुस्तिका का भी विमोचन किया गया.

अभियुक्त: भाग 1- सुमि ने क्या देखा था

घंटी बजने के साथ ही, ‘‘कौन है?’’ भीतर से कर्कश आवाज आई.

‘‘सुमि आई है,’’ दरवाजा खोलने के बाद भैया ने वहीं से जवाब दिया.

‘‘फिर से?’’ भाभी ने पूछा तो सुमि शरम से गड़ गई.

विवेक मन ही मन झुंझला उठा. पत्नी के विरोध भाव को वह बखूबी समझता है. सुमि की दूसरी बार वापसी को वह एक प्रश्नचिह्न मानता है जबकि दीपा इसे अपनी सुखी गृहस्थी पर मंडराता खतरा मानती है. विवेक के स्नेह को वह हिसाब के तराजू पर तौलती है.

चाय पीते समय भी तीनों के बीच मौन पसरा हुआ था.

विवेक की चुप्पी से दीपा भी शांत हो गई लेकिन रात को फिर विवाद छिड़ गया.

‘‘शैलेंद्रजी बातचीत में तो बड़े भले लगते हैं.’’

‘‘ऊपर से इनसान का क्या पता चलता है. नजदीक रहने पर ही उस की असलियत पता चलती है.’’

‘‘मेरा भी यही कहना है. मुझे तो सुमि अच्छी लगती है पर पता नहीं शैलेंद्रजी के लिए कैसी हो. मेरा मतलब है, पत्नी के रूप में वह कैसी है हमें क्या मालूम.’’

सुमि विवेक की लाडली बहन थी. संयोग से इसी शहर में ब्याही गई थी. देखने में सुंदर, कामकाज में सलीकेदार, व्यवहारकुशल, रिश्तेदारों और मित्रों में खासी लोकप्रिय सुमि के बारे में वह गलत बात सोच भी नहीं सकता.

‘‘दीपा, मैं अपनी बहन के बारे में कुछ भी सुनना नहीं चाहता. अनैतिकता को किसी भी वजह का जामा पहना कर जायज नहीं ठहराया जा सकता.’’

भैयाभाभी के बीच बातचीत के कुछ अंश सुमि के कानों में भी पड़े. उस की आंखें भर आईं.

भाभी पहले ऐसी तो नहीं थीं. मां सब से बड़े भैया के पास जयपुर में रहती थीं. पिछले 2 वर्ष से वह विवेक भैया के पास ही रह कर अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर रही थी. तब भी उन्होंने उसे मां का स्नेह दिया था. हालात के साथ व्यक्ति का व्यवहार भी बदल जाता है.

घर के पास ही एक स्कूल में सुमि पढ़ाने जाती थी. कम तनख्वाह थी पर वक्त बड़े मजे से कट जाता था. उस दिन एक साथी शिक्षिका की मां के गुजर जाने से वह जल्दी घर लौट आई. देखा, दरवाजे पर ताला नहीं था. शायद शैलेंद्र लंच के समय आ गए थे. घंटी बजाई पर बिजली गुल थी. दरवाजे की दरार से झांक कर देखा तो उस पर जैसे सैकड़ों बिजलियां एकसाथ गिर पड़ीं.

दरवाजे की आहट पा कर शैलेंद्र ने दरवाजा खोला. उस के साथ कोई लड़की खड़ी थी. बदहवास.

उस दिन सुमि कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी. शैलेंद्र भी नजरें चुराता रहा.

सुमि लौट आई थी. घर आ कर फूटफूट कर रोई थी. दीपा ने उसे गले से लगाया था. विवेक ने शैलेंद्र को कोर्ट में खींचने की बात कही थी. लेकिन सुमि को साथ रहते 1 महीना होते ही दीपा का धैर्य चुकने लगा. वह सुमि को समझौते के लिए उकसाने लगी. लंबी जिंदगी का वास्ता देने लगी. सुमि को समझते देर नहीं लगी कि उस की मौजूदगी अब इस घर में अवांछनीय है. सोचा, एक बार जा कर अपनी लड़खड़ाती गृहस्थी संभाल ले. यह निर्णय आसान नहीं था. बारबार दरवाजे की दरार से देखा दृश्य याद आ जाता.

इतनी अंतरंगता, इतनी उत्तेजना तो उस ने खुद अपने साथ भी अनुभव नहीं की थी.

अपमान की गहरी खाई में जैसे सुमि को किसी ने धक्का दे दिया था.

उस के सौंदर्य, उस के समर्पण, उस के विश्वास का अपमान यहां तक कि उस की कोमल भावनाओं का अपमान.

अपनी वापसी उसे अपनी पराजय लगने लगी. पर शैलेंद्र के फोन ने उसे फिर दोराहे पर ला खड़ा किया.

‘‘सुमि, प्लीज, चली आओ. मैं बहुत दुखी हूं. तुम्हारे पांव पकड़ कर माफी मांगने को तैयार हूं. आइंदा ऐसी गलती नहीं करूंगा. बहुत शर्मिंदा हूं.’’

रिसीवर रखा तो भाभी आशाभरी नजरों से उसे देख रही थीं.

‘‘भाभी, मैं ने सोचा है कि शैलेंद्र को एक मौका दे दिया जाए,’’ दीपा के चेहरे पर राहत के भाव उभरे.

‘‘वही तो, मेरा भी यही मानना है कि यदि वह अपनी गलती मान रहा है तो हमें भी इतना नहीं अकड़ना चाहिए. फिर मांजी से भी यह बात कब तक छिपाई जा सकती है?’’

‘‘सुमि, तू ने ठीक से सोच लिया है न. यह कभी मत सोचना कि तू यहां नहीं रह सकती. बाबूजी के इस घर पर तेरा भी अधिकार है.’’

भैया की इस बात पर सुमि खामोश हो गई. प्रेम की सीमारेखा जहां समाप्त होती है वहीं से अधिकार की बातें शुरू होती हैं. प्रेम तो अपने साथ सब कुछ देना जानता है. अधिकार की फिर भी मर्यादा होती है. बहन के अधिकार का प्रयोग कर के वह यहां भी रह सकती है और पत्नी के अधिकार का प्रयोग कर के वहां भी रह सकती है.

सुमि को सोचने में क्षण भर लगा और वह तैयार हो कर आटो में बैठ गई.

फोन पर शैलेंद्र जितनी सहजता से बोल रहा था, सामने अपनेआप को बहुत कठिनाई में पा रहा था. घर की सफाई से निबट कर सुमि ने खाना बनाया.

रात को बिस्तर पर जाते ही शैलेंद्र की हिम्मत लौट आई. उस ने सुमि का हाथ पकड़ा. सुमि को झटका सा लगा. किसी भी तरह की गलती को वह माफ कर सकती थी पर आंखों देखा वह दृश्य. क्या वह भूलने योग्य था. उसे लगा जैसे सैकड़ों कीड़े उस के हाथ पर रेंग रहे हों. उस ने शैलेंद्र का हाथ झटक सा दिया.

‘‘शैलेंद्र, तुम कितनी ही बार माफी मांगो, मैं वह दृश्य नहीं भूल सकती. तुम ने संबंधों की पवित्रता को कलंकित किया है.’’

शैलेंद्र करवट बदल कर सो गया पर सुमित्रा की आंखों से नींद कोसों दूर थी. कितनी ही बार मन हुआ कि शैलेंद्र को झकझोर कर उसे प्रताडि़त करे लेकिन ऐसा लगता कि उस के आक्रोश को अभिव्यक्त करने योग्य शब्द अभी तक शब्दकोश में भी नहीं लिखे गए हैं. अव्यक्त क्रोध आंसुओं के रूप में बरस कर तकिया भिगोता रहा था.

सुमि मन ही मन घुलने लगी. शैलेंद्र का कलेजा उस की हालत देख कर टूकटूक हो जाता पर वह क्या करता. वह कुसूरवार था. उस दिन शिरीन उस के प्रेमपत्र और तसवीरें लौटाने आई तो वह अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख सका. उसे बांहों में भर कर बेतहाशा चूमने लगा तभी सुमि…

वह शायद आगे बढ़ता भी नहीं पर सुमि तो बहुत आगे तक सोच गई होगी. वैसे भी उस की इतनी भूल भी क्षमायोग्य तो नहीं थी.

दूसरे दिन शैलेंद्र ने भीगे स्वर में कहा, ‘‘सुमि, मुझ से तुम्हारी हालत देखी नहीं जाती. कितनी कमजोर हो गई हो. एक बार डाक्टर को दिखा दो. फिर चाहो तो अपने घर चली जाना.’’

आगे पढ़ें- शैलेंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं था…

पक्षाघात: भाग 1- क्या टूट गया विजय का परिवार

लेखिका- प्रतिभा सक्सेना

विजयजी काफी देर लिखने के बाद उठे पर ठीक से उठ न पाए और गिर पड़े. उन्होंने दोबारा उठना चाहा पर हाथपैर बेजान ही रहे. वह घबरा तो गए पर हिम्मत न हारी. उठने का उपक्रम करते रहे, फिर थक कर निढाल हो जमीन पर पड़े रहे.

उन्होंने चिल्लाना चाहा पर जबान ने जैसे न हिलने की कसम खा ली. तभी उन्हें याद आया कि सब तो पिक्चर देखने गए हैं, अब तो आने ही वाले होंगे. अब दरवाजा कौन खोलेगा उन के लिए? बेचारे बाहर ठंड में अकड़ जाएंगे.

थोड़ी देर में दरवाजे की घंटी बजी. सब आ चुके थे. उन्होंने फिर उठना चाहा पर न जाने क्या हो गया है, वह यही सोचसोच कर हैरान हो रहे थे. घंटी लगातार बजती ही जा रही थी.

पत्नी तो बेटे- बहुओं के साथ अकेली जाना ही नहीं चाह रही थी. पर उन्हें कुछ लेखन का काम करना था सो जबरन ही उसे बेटों के साथ भेज दिया था. वह तो बहुएं बड़ी लायक हैं, उन्हें यह विचार ही नहीं आता कि मां- बाबूजी को उन के साथ नहीं लगना चाहिए, पर अब वह अपनी जिद को कोस रहे थे कि क्यों भेजा पत्नी को उन के साथ?

बाहर से बेटे बाबूजीबाबूजी चिल्ला रहे थे. दरवाजे को पीटा जाने लगा. तभी पत्नी का दहशत भरा स्वर सुनाई दिया, ‘‘मुकुल, दरवाजा तोड़ दो.’’

शायद दोनों बेटों ने मिल कर दरवाजा तोड़ा. घर में घुसते ही बाबूजीबाबूजी की आवाजें लगनी शुरू हो गईं. कमरे में बाबूजी को यों पड़े देखा तो हाहाकार मच गया. झट से दोनों बेटों ने मिल कर उन्हें पलंग पर लिटाया. उन की पत्नी ललिता उन के तलवे मलने लगी. बहुएं झट रसोई से उन के लिए पानी और हलदी वाला दूध ले आईं.

मुकेश ने पत्नी के हाथ से पानी का गिलास ले लिया और बाबूजी को हाथ के सहारे से उठा कर पिलाना चाहा तो होंठों के किनारों से पानी बाहर बह निकला. पति की यह हालत देख ललिता बिलखने लगीं. मुकेशमुकुल अपनीअपनी पत्नियों को मां को संभालने की आज्ञा दे कर डाक्टर को बुलाने चल दिए.

डाक्टर ने जांच कर के बताया कि विजयजी को पक्षाघात हुआ है. सब यह सोच कर अचंभित रह गए कि अब क्या होगा? सब को अब अपनी दुनिया अंधेरी नजर आने लगी.

डाक्टर ने दवाइयां और मालिश के लिए तेल लिख दिया और कहा, ‘‘संभालिए आप सब अपनेआप को. यदि आप सब घबरा जाएंगे तो इन्हें कौन संभालेगा? देखिए, इन के जीवन को तो कोई खतरा नहीं है पर कब तक ठीक होंगे यह कहना मुश्किल है. सेवा कीजिए, दवा दीजिए. शायद आप सब का परिश्रम रंग लाए और विजयजी ठीक हो जाएं. और हां, घर का वातावरण शांत रखिए. आप सब हाहाकार मचाएंगे तो मरीज का मन कैसे शांत रहेगा.’’

फिर तो परिवार में हर किसी की दिनचर्या ही बदल गई. फिक्र भरी सुबहें, तो दोपहर व्यस्त हो गई, शामें चिंतित और रातें दुखदायी हो गईं. बेटों ने कुछ दिनों की छुट्टियां ले लीं पर आखिर कब तक घर बैठे रहते. सब की अपनीअपनी उलझनें और परेशानियां थीं, अपनेअपने कार्य थे पर विजयजी कितने निरीह, कितने बेबस हो गए थे यह कौन समझ सकता है. आखिर कोई भी मातापिता अपने बच्चों को परेशान नहीं करना चाहता, पर नियति के आगे किसी की कब चली है.

तय यह हुआ कि अभी सुमि दीदी को खबर नहीं की जाए, इतनी दूर अमेरिका से आ तो पाएंगी नहीं पर परेशान बहुत होंगी. बच्चों को भी सख्त हिदायत दे दी गई कि बूआ का फोन आए तो बाबूजी के बारे में उन से कुछ न कहा जाए.

सुमि का फोन आने पर जब वह बाबूजी से बात कराने को कहती तो अलगअलग बहाने बना दिए जाते. बाबूजी सुमि से क्या बात कर पाते, वह तो जबान ही न हिला पाते.

एक फिजियोथेरैपिस्ट रोज आ कर बाबूजी को हलके व्यायाम करा जाता. दोनों बेटों ने बाबूजी को नहलानेधुलाने और उन की साफसफाई करने के लिए एक नौकर की व्यवस्था कर ली थी. मालिश का काम कभीकभी वह नौकर तो कभी ललिता करतीं.

डाक्टर की नसीहत के कारण बच्चों को बाबूजी के कमरे में ज्यादा देर रुकने को मना कर दिया गया था इसलिए बच्चे कम ही आते थे. विजयजी कमरे में अकेले पड़ेपड़े ऊब गए थे. बेटे तो कामकाजी थे सो वे घर में कम ही रहते थे. बहुएं कमरे में उन का खाना, चाय, दूध, नाश्ता आदि ले कर आतीं और अम्मां को पकड़ा कर चली जातीं. साथ ही कहतीं, ‘‘अम्मांजी, कुछ और जरूरत हो तो आवाज लगा दीजिएगा,’’ फिर वे दोनों अपनेअपने कामों में व्यस्त हो जातीं.

बाबूजी की बीमारी से काम भी तो बहुत बढ़ गए थे. पहले तो उन की मालिश बेटे करते थे पर अब अम्मां और कभीकभी नौकर किशन कर देता था. ललिता उन से दिन भर की बातें करतीं. पर बाबूजी की तरफ से कोई जवाब नहीं आ पाता तो धीरेधीरे बोलने का नियम कम होतेहोते समाप्त सा हो गया. वह भी बस, जरूरत भर की ही बातें करने लगीं.

विजयजी ने कई बार अपनी पत्नी ललिता से कहने की कोशिश की कि बच्चों को कमरे में खेलने दिया करो, कुछ तो मन लगे पर गोंगों का अस्पष्ट स्वर ही निकल पाता. ललिता पूछती ही रह जातीं कि क्या कहना चाह रहे हो? पर स्वत: उन की बात समझने में असफल ही रहतीं.

विजयजी बहुत बेबस हो जाते. दोनों बेटे भी सुबहशाम उन के पास बैठ जाते, पर आखिर कब तक. बाद में तो आफिस से आ कर हालचाल पूछ कर अपनेअपने कमरों में घुस जाते या बाहर आंगन में सब साथ बैठ कर बतियाते. बहुएं भी वहीं बैठ कर कुछ न कुछ करतीं और बच्चे या तो खेलते या फिर पढ़ते पर बाबूजी के कमरे में जाने की उन्हें मनाही थी. ललिता भी अब बाबूजी का काम निबटा कर बहूबेटों के साथ आंगन में बैठने लगीं. अब बाबूजी ज्यादातर दिन भर अकेले ही पड़े रहने लगे.

पहले खबर लगते ही विजयजी के दोस्त घर में जुटने लगे थे. 3-4 दोस्त साथ आ जाते तो उन की गप्पें शुरू हो जातीं. बाबूजी का उन की बातें ही सुन कर वक्त कट जाता पर कभीकभी उन की बातें सुन कर परेशान भी होने लगते. एक दिन गुप्ताजी कहने लगे, ‘‘वैसे यह रोग है बड़ा जानलेवा, जल्दी ठीक ही नहीं होता. मेरे साढू भाई के बड़े भाई साहब को हुआ तो 10 साल बिस्तर पर पड़े रहे. हिलडुल भी नहीं पाते थे, बड़े कष्ट झेले.’’

आगे पढ़ें- विजयजी सकते में आ गए. तो क्या…

Anupama करेगी मालविका की मदद तो वनराज-अनुज आएंगे साथ, सीरियल में आएगा नया ट्विस्ट

सीरियल अनुपमा  (Anupama) की कहानी दिलचस्प मोड़ लेने के लिए तैयार हैं. जहां अनुज (Gaurav Khanna) और अनुपमा (Rupali Ganguly)की कहानी में प्यार की एंट्री होगी तो वहीं मालविका (Aneri Vajani) का अतीत सभी के सामने आता नजर आएगा. वहीं काव्या (Madalsa Sharma) इस बात का फायदा उठाकर वनराज (Sudhanshu Panday) को भड़काती नजर आएगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे….

अनुपमा को पता चला मालविका का अतीत

अब तक आपने देखा कि घरेलू हिंसा होते हुए देखकर मालविका को पैनिक अटैक आ जाता है, जिसके कारण वह खुद को एक कमरे में कैद कर लेती है. हालांकि अनुज और अनुपमा दोनों दरवाजा खोल देते हैं. लेकिन अनु, मालविका को डिप्रेशन की गोलियां खाते हुए देखती है, जिसके बाद अनुज उसे मालविका के अतीत के बारे में बताता है.

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वनराज और अनुज ने मिलाया हाथ

 

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दरअसल, अनुपमा के गोलियों के बारे में सवाल करने पर अनुज, मालविका के अतीत के बारे में बताएगा. अपकमिंग एपिसोड में अनुज, अनुपमा को बताएगा कि मालविका की जिंदगी से बौयफ्रेंड अक्षय को दूर करने के बाद उसने एक लड़का देखकर मालविका की शादी कर दी थी. लेकिन वह लड़का हैवान निकला और उसके साथ मारपीट की, जिसके कारण मालविका डिप्रेशन में चली गई. दूसरी तरफ वनराज को मालविका के डिप्रेशन के बारे में पता लगेगा और वह अनुज से कहेगा कि वह उसका मालविका के लिए हर एक फैसले में साथ देने के लिए तैयार है.

 

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पाखी के कान फरेगी काव्या

एक तरफ जहां अनुपमा, मालविका को डिप्रेशन से निकालने की कोशिश करती नजर आएगी तो वहीं काव्या एक बार फिर अपनी चाल चलेगी और पाखी को वनराज और अनुपमा के खिलाफ भड़काएगी. दरअसल, खबरों की मानें तो मालविका का ख्याल रखने पर पाखी को कहेगी कि उसके माता पिता को उसकी परवाह नहीं है और वह गैर लड़की की केयर कर रहे हैं, जिसके चलते पाखी जलन महसूस करती हुई दिखेगी.

 

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संपत्ति के लिए साजिश: भाग 1- क्या हुआ था बख्शो की बहू के साथ

यह कहानी तब की है, जब मैं थाना मठ, जिला खुशाब में थानाप्रभारी था. सुबह मैं अपने एएसआई कुरैशी से एक केस के बारे में चर्चा कर रहा था, तभी एक कांस्टेबल ने आ कर बताया कि गांव रोड़ा मको का नंबरदार कुछ लोगों के साथ आया है और मुझ से मिलना चाहता है.

मैं नंबरदार को जानता था. मैं ने कांस्टेबल से कहा कि उन के लिए ठंडे शरबत का इंतजाम करे और उन्हें आराम से बिठाए, मैं आता हूं. शरबत को इसलिए कहा था, क्योंकि वे करीब 20 कोस से ऊंटों की सवारी कर के आए थे. कुछ देर बाद मैं ने नंबरदार गुलाम मोहम्मद से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि वह एक रिपोर्ट लिखवाने आया है. मैं ने उन से जबानी बताने को कहा तो उन्होंने जो बताया, वह काफी रोचक और अनोखी घटना थी. उन के साथ एक 60 साल का आदमी बख्शो था, जिस की ओर से यह रिपोर्ट लिखी जानी थी.

बख्शो डेरा गांजा का बड़ा जमींदार था. उस के पास काफी जमीनजायदाद थी. उस का एक बेटा गुलनवाज था, जो विवाहित था. उस की पत्नी गर्भवती थी. 2 महीने पहले उस का बेटा घर से ऊंट खरीदने के लिए निकला तो लौट कर नहीं आया. थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई और अपने स्तर से भी काफी तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला.

बख्शो के छोटे भाई के 5 बेटे थे, जो उस की जमीन पर नजर रखे थे. वे तरहतरह के बहाने बना कर उस की जायदाद पर कब्जा करने की फिराक में थे. उन से बख्शो के बेटे गुलनवाज को भी जान का खतरा था. शक था कि उन्हीं लोगों ने गुलनवाज को गायब किया है. पूरी बिरादरी में उन का दबदबा था. उन के मुकाबले बख्शो और उस की पत्नी की कोई हैसियत नहीं थी.

यह 2 महीने पहले की घटना थी, जो उस ने मुझे सुनाई थी. उस समय थाने का इंचार्ज दूसरा थानेदार था. बख्शो ने मुझे जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. उस ने बताया कि 2-3 दिन पहले उस की बहू को प्रसव का दर्द हुआ तो उस की पत्नी ने गांव की दाई को बुलवाया. बख्शो के भाई की बेटियां और उस के बेटों की पत्नियां भी आईं.

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उन्होंने किसी बहाने से बख्शो की पत्नी को बाहर बैठने के लिए कहा. कुछ देर बाद कमरे से रोने की आवाजें आने लगीं. पता चला कि बच्चा पैदा होने में बख्शो की बहू और बच्चा मर गया है. वे देहाती लोग थे, किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि प्रसव में बच्चे की मां कैसे मर गई.

उन के इलाके में अकसर ऐसे केस होते रहते थे. उस जमाने में शहरों जैसी सहूलियतें नहीं थीं. पूरा इलाका रेगिस्तानी था. मरने वाली के कफनदफन का इंतजाम किया गया. जनाजा कब्रिस्तान ले गए. जब मृतका को कब्र में उतारा जाने लगा तो अचानक मृतका ने कब्र में उतारने वाले आदमी की बाजू बड़ी मजबूती से पकड़ ली.

वह आदमी डर गया और चीखने लगा कि मुरदे ने उस की बाजू पकड़ ली है. यह देख कर जनाजे में आए लोग डर गए. जिस आदमी का बाजू पकड़ा था, वह डर के मारे बेहोश हो कर गिर गया. इतनी देर में मुर्दा औरत उठ कर बैठ गई. सब लोगों की चीखें निकल गईं. उन्होंने अपने जीवन में कभी मुर्दे को जिंदा होते नहीं देखा था.

बख्शो की बहू ने कहा कि वह मरी नहीं थी, बल्कि बेहोश हो गई थी. बहू ने अपने गुरु एक मौलाना को बुलाया. वह काफी दिलेर था. वह उस के पास गया तो औरत ने बताया कि उस का बच्चा गेहूं रखने वाले भड़ोले में पड़ा है. यह कह कर उस ने मौलाना का हाथ पकड़ा और कफन ओढ़े ही मौलाना के साथ चल दी. बाकी सब लोग उस के पीछेपीछे हो लिए. जो भी यह देखता, हैरान रह जाता.

घर पहुंच कर भड़ोले में देखा तो गेहूं पर लेटा बच्चा अंगूठा मुंह में लिए चूस रहा था. मां ने झपट कर बच्चे को सीने से लगाया और दूध पिलाया. इस तरह बख्शो का पोता मौत के मुंह से निकल आया और उस की बहू भी मर कर जिंदा हो गई.

बख्शो ने बताया कि उस की बहू नूरां ने उसे बताया था कि उसे उमरां और भागभरी ने जान से मारने की कोशिश की थी. बख्शो अपनी बहू और पोते को मौलाना की हिफाजत में दे कर नंबरदार के साथ रिपोर्ट लिखवाने आया था. उस ने यह भी कहा कि उस के बेटे गुलनवाज को भी बरामद कराया जाए.

मैं ने धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और गुलनवाज के गुम होने की सूचना सभी थानों को भेज दी, साथ ही उसी समय बख्शो के गांव डेरा गांजा स्थित घटनास्थल पर जाने का इरादा भी किया. एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर मैं ऊंटों पर सवार हो कर डेरा गांजा रवाना हो गया.

ये ऊंट हमें सरकार की ओर से इसलिए मिले थे, क्योंकि वह एरिया रेगिस्तानी था. ऊंटों के रखवाले भी हमें मिले थे, जिन्हें सरकार से तनख्वाह मिलती थी. डेरा गांजा पहुंच कर हम ने जांच शुरू की. सब से पहले मैं ने नूरां को बुलाया और उस के बयान लिए.

नूरां के बताए अनुसार, बच्चा होने का समय आया तो उस के सासससुर ने गांव से दाई रोशी को बुलाया. वह अपने काम में बहुत होशियार थी. रोशी बीबी के साथ बख्शो की भतीजियां उमरां और भागभरी भी कमरे में आ गईं. रोशी ने अपना काम

शुरू किया, लेकिन उसे लगा कि उमरां और भागभरी उस के काम में रुकावट डालने की कोशिश के साथसाथ एकदूसरे के कान में कुछ कानाफूसी भी कर रही हैं.

बच्चे के पैदा होते ही नूरां की नाक पर एक कपड़ा रख दिया गया. उस कपड़े से अजीब सी गंध आ रही थी. नूरां धीरेधीरे बेहोश होने लगी. वह पूरी तरह से बेहोश तो नहीं हुई थी, लेकिन वह कुछ बोल नहीं सकती थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे सपना देख रही हो. उसे ऐसी आवाजें सुनाई दे रही थीं, जैसे कोई कह रहा हो कि मां के साथ बच्चे को भी मार दो. असली झगड़े की जड़ यही बच्चा है. यह मर गया तो बख्शो लावारिस हो जाएगा.

इस के बाद उस ने सुना कि उस के बच्चे को अनाज वाले भड़ोले में डाल दिया है. नूरां पर बेहोशी छाई रही. उस के बाद हुआ यह कि जल्दबाजी में उस के कफनदफन का इंतजाम किया गया. बख्शो की भतीजियां और भतीजे इस काम में आगे रहे. वे हर काम को जल्दीजल्दी कर रहे थे.

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जब नूरां को गरम पानी से नहलाया गया तो उसे कुछकुछ होश आने लगा. जब उसे चारपाई पर डाल कर कब्रिस्तान ले जाने लगे तो उसे पूरी तरह होश आ गया. उस का जीवन बचना था, इसलिए वह हाथपैर हिलाने लायक हो गई. उस के बाद कब्र में रखते समय उस ने एक आदमी का हाथ पकड़ लिया, जिस से वह डर कर भागा तो नूरां मोहल्ले के मौलवी साहब का हाथ पकड़ कर घर आई और भड़ोले से अपना बच्चा निकाला. बख्शो का एक दोस्त गांव की दूसरी दाई को ले आया. उस ने बच्चे को नहलाधुला कर साफ किया.

‘‘कुदरत ने मेरे और मेरे बच्चे पर रहम किया और हमें नई जिंदगी दी.’’ नूरां ने आसमान की ओर देख कर कहा, ‘‘अब मुझे और मेरे बच्चे को रांझे वगैरह से खतरा है. मेरे पति गुलनवाज को भी इन्हीं लोगों ने गायब किया है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘इन लोगों पर शक करने का कोई कारण?’’

उस ने कहा, ‘‘यह सब मेरे ससुर की जायदाद का चक्कर है. उन्होंने जायदाद के लिए मेरे पति को गायब कर दिया और मुझे तथा मेरे बच्चे को मारने की कोशिश की.’’

नूरां ने यह भी बताया कि डेरा गांजा के अलावा भी मठ टवाना में उस के ससुर की काफी जमीन है. उस जमीन से होने वाली फसल का हिस्सा बख्शो के भतीजे उस तक पहुंचने नहीं देते.

मैं ने उस से कुछ बातें और पूछी और मन ही मन तुरंत काररवाई करने का फैसला कर लिया. मैं ने अपने एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर रांझा वगैरह के घरों पर छापा मारा. वहां से मैं ने रांझा, उस के भाई दत्तो और रमजो को गिरफ्तार कर लिया. उन के 2 भाई घर पर नहीं थे. उन के घर की तलाशी ली तो 2 बरछियां और कुल्हाड़ी बरामद हुई. उन हथियारों की लिस्ट बना कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद मैं ने दाई रोशी, भागभरी और उमरां को भी गिरफ्तार कर लिया. मैं ने महसूस किया कि वहां के लोग पुलिस के आने से खुश नहीं थे. वे पुलिस को किसी तरह का सहयोग करने को तैयार नहीं थे. मैं ने मसजिद के लाउडस्पीकर से गांव में ऐलान करा दिया कि गांव के लोग इस केस में पुलिस का सहयोग करें और कोई बात न छिपाएं.

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जानें न्यू बोर्न बेबी केयर से जुड़ें ये 6 खास मिथ

किसी महिला के पहली बार गर्भधारण करते ही आसपास से सबके सुझाव आने शुरू हो जाते है, कभी माँ, कभी सास, दादी, नानी, चाची आदि, परिवार की सारी महिलाओं के पास सुझाव के साथ नुस्खे भी तैयार रहते है, जिसे वह बिना पूछे ही उन्हें देती रहती है और गर्भधात्री इन सभी सुझावों को शांति से सुनती है,क्योंकि एक नए शिशु के आगमन की ख़ुशी नए पेरेंट्स के लिए अनोखा और अद्भुत होता है. ये सुख मानसिक और शारीरिक दोनों रूपों में होती है.

इस बारें में सुपर बॉटम की एक्सपर्टपल्लवी उतागी कहती है कि बच्चे के परिवार में आते ही बच्चे के पेरेंट्स बहुत अधिक खुश हो जाते है और उनका हर मोमेंट उनकी जिज्ञासा को बढ़ाता है. जबकि बच्चे की असहजता की भाषा उस दौरान एक पहेली से कम नहीं होती, जिसे पेरेंट्स नजदीक से समझने की कोशिश करते रहते है, जबकि परिवार, दोस्त और ऑनलाइन कुछ अलग ही सलाह देते है, ऐसे में न्यू मौम को कई प्रकार की मिथ से गुजरना पड़ता है, जिसकी जानकारी होना आवश्यक है, जो निम्न है,

अपने बच्चे की ब्रेस्ट फीडिंग का समय निर्धारित करें

न्यू बोर्न बेबी को जन्म के कुछ दिनों तक हर दो घंटे बाद स्तनपान करवाने की जरुरत होती है, इसकी वजह बच्चे के वजन को बढ़ाना होता है, इसके बाद जब बच्चे को भूख लगे, उसे ब्रैस्ट फीडिंग कराएं, कई बार जब बच्चे की ग्रोथ होने लगती है, तो उसे अधिक बार स्तनपान कराना पड़ता है, जिसके बाद बच्चा काफी समय तक अच्छी नींद लेता है. बच्चे में स्तनपान की इच्छा लगातार बदलती रहती है. बच्चा हेल्दी होने पर उसकी ब्रैस्ट फीडिंग अपने आप ही कम हो जाती है. जरुरत के अनुसार ही ब्रैस्ट फीडिंग अच्छा होता है.

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फीडिंग के बाद भी बच्चा रोता है, क्योंकि वह अब भी भूखा है

कई बार भरपेट स्तनपान करने के बाद भी बच्चा रोता है. बहुतों को लगता है कि बच्चे का पेट पूरा नहीं भरा है और उन्हें ऊपर से फार्मूला मिल्क या गाय की दूध पिलाने की सलाह दी जाती है, जो सही नहीं है. भूख के अलावा बच्चे कई दूसरे कारणों से भी रो सकते है मसलन असहज कपडे, गीला डायपर, डायपर रैशेज, अधिक गर्मी या अधिक सर्दी, माँ की गर्भ से अलग होने के बाद की असहजता आदि कई है, जिसे सावधानी से समझना पड़ता है. समय के साथ पेरेंट्स शिशु की असहजता को अपने हाथ और लिप्स से समझ जाते है.

एक अच्छी माँ बच्चे को बार-बार गोंद नहीं उठाती

एक न्यू बोर्न बेबी अपने सुरक्षित माँ की कोख से अचानक नई दुनिया में जन्म लेता है, बच्चा आराम और गर्माहट को माँ के स्पर्श से महसूस करता है. बच्चा केवल उसी से परिचित होता है और उसे बार-बार अपने आसपास महसूस करना चाहता है. ये बच्चे की एक नैचुरल नीड्स है, जिसे माँ को देना है. इसके अलावा आराम और गर्माहट बच्चे की इमोशनल, फिजिकल और दिमागी विकास में सहायक होती है. एक्सपर्ट का सुझाव ये भी है कि शिशु को कंगारू केयर देना बहुत जरुरी है,जिसमे पेरेंट्स की स्किन टू स्किन कांटेक्ट हर दिन कुछ समय तक करवाने के लिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए.इसके अलावा पहले 2 से 3 महीने तक शिशु को बेबी स्वेड्ल में रखने से उन्हें माँ की कोख का एहसास होता है और वह एक अच्छी नींद ले पाता है.

गोलमटोल होना है हेल्दी बच्चे की निशानी

हर बच्चे का आकार अलग होता है, जिसमें उसकी अनुवांशिकी काफी हद तक निर्भर करती है, जहाँ से उसे पोषण मिलता है. बच्चे की स्वास्थ्य को उसकी आकार के आधार पर जज नहीं की जानी चाहिए. उनके स्वास्थ्य की आंकलन के लिए पेडियाट्रीशन से संपर्क करन आवश्यक है, जो शिशु का वजन, उसकी ग्रोथ, हाँव-भाँव आदि सबकुछ जांचता है और कुछ कमी होने पर सही सलाह भी देता है.

न्यू बोर्न के कपडे कीटाणु मुक्त करने के लिए एंटीसेप्टिक से धोना

न्यू बोर्न बेबी की इम्युनिटी जन्म के बाद विकसित होती रहती है, ऐसे में बच्चे के कपडे को साफ़ और हायजिन रखना आवश्यक है. अधिकतर न्यू पेरेंट्स एंटीसेप्टिक लिक्विड का प्रयोग कर कपडे और नैपीस धोते है. एंटीसेप्टिक अच्छे और ख़राब दोनों बेक्टेरिया को मार डालते है,इसके अलावा इसमें कई हार्श केमिकल भी होते है, जो बच्चे की स्किन में रैशेज पैदा कर सकते है. जर्मफ्री करने के लिए बच्चे के कपड़ों को धूप में सुखाएं.

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न्यू बोर्न के पेट में दर्द से राहत के लिए ग्राइप वाटर देना

अभी तक ये सिद्ध नहीं हो पाया है कि ग्राइप वाटर बच्चे कोपेट दर्द में देना सुरक्षित है या अच्छी नीद के लिए ग्राइप वाटर सही है, इसलिए जब भी बच्चा पेट दर्द से रोये, तो तुरंत बाल और शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क कर दवा दे.

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मेरे फेस पर बहुत सारे पिंपल्स हो रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी उम्र 18 साल है और मेरे फेस पर बहुत सारे पिंपल्स हो रहे हैं. मु झे घर से बाहर जाना भी अच्छा नहीं लगता. बताएं क्या करूं?

जवाब-

18 साल की उम्र में पिंपल्स होना बहुत कौमन है. घबराने की कोई बात नहीं है. इस उम्र में हारमोनल इंबैलेंस हो जाता है, जिस से स्किन औयली होने लगती है. उस के ऊपर आया औयल, धूलमिट्टी मिल कर ब्लैकहैड्स बना देते हैं, जिन में इन्फैक्शन होने पर वे पिंपल्स में कन्वर्ट हो जाते हैं. अत: आप स्किन की सफाई पर ज्यादा ध्यान दें. दिन में 2-3 बार अलकोहल रहित स्किन टोनर का इस्तेमाल करें. अलकोहल फेस को ड्राई कर देता है, इसलिए अलकोहल वाला स्किन टोनर इस्तेमाल न करें.

1 चम्मच विनेगर में 3 चम्मच पानी डाल लें. फिर इसे कौटन से पिंपल्स पर दिन में 3-4 बार लगाएं. पिंपल्स कम होने लग जाएंगे.

किसी अच्छे क्लीनिक में जा कर दिखाएं. जहां मैडिकल हिस्टरी ली जाए. अगर इंटरनली कोई और प्रौब्लम हो तो उस की दवा लेना भी जरूरी है.

ध्यान रहे औयली खाने को अवौइड करें. बहुत सारा पानी पीएं और बैलेंस डाइट लें. अगर पिंपल्स नौर्मल इलाज से ठीक न हो रहे हैं तो कैमिकल पील भी करा सकती हैं, जिस से पिंपल्स 2-3 सीटिंग्स में ही खत्म हो जाते हैं.

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चेहरे पर आया एक छोटा सा पिंपल हमारा सारा मूड खराब कर देता है. चेहरे के पिंपल को जाने में करीब 4 से 5 दिन लगते हैं, और जब यह जाते हैं तो चहरे पर एक निशान छोड़ जाते हैं. क्‍या आपने कभी पिंपल को एक दिन में हटाने की सोची है? आप सोंच रही होंगी कि यह कैसे हो सकता है. लेकिन ऐसा आइस क्‍यूब के इस्‍तेमाल से मुमकिन है. चलिये जानते हैं फिर वो तरीके जिनसे यह संभव हो सकता है.

स्‍टेप 1: पहले अपने चेहरे को गरम पानी और फेस वाश से धो लें. पिंपल वाले चेहरे पर कभी भी स्‍क्रब का प्रयोग ना करें वरना पिंपल का पस पूरे चेहरे पर फैल जाएगा.

स्‍टेप 2: अब मुल्‍तानी मिट्टी को चंदन पाउडर और नींबू के रस के साथ मिलाएं. इस फेस पैक को 5 मिनट तक के लिये चेहरे पर लगाएं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- 1 दिन में पाएं पिंपल प्रौब्लम से छुटकारा, पढ़ें खबर

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

सोया और ओट्स के दूध को कड़ी टक्कर देगा आलू का दूध, पढ़ें खबर

लेखक- दीप्ति गुप्ता

दूध कई लोगों के आहार का अनिवार्य हिस्सा है. गाय और भैंस के दूध का सेवन लंबे समय से एक पेय के रूप में किया जाता रहा है. लेकिन जिन लोगों को दूध पसंद नहीं है, उन्होंने अपनी डाइट से डेयरी वाले दूध को हटाकर वीगन को शामिल करना शुरू कर दिया है. बता दें कि वीगन डाइट को अपनाने वाले ज्यादातर लोग डेयरी फ्री प्रोडक्ट्स का सेवन करना पसंद करते हैं. वे अक्सर बादाम या सोया के दूध को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों में उनके लिए एक अन्य गैर डेयरी के रूप में पोटेटो मिल्क यानी आलू का दूध एक दिलचस्प विकल्प बनकर उभरा है. हालांकि, आपने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक हाई कार्बोहाइड्रेट वाली सब्जी कभी एक ट्रेंड बनकर  हेल्दी फूड आइटम्स की लिस्ट में शामिल हो सकती है. खैर, अगर रिपोर्ट्स पर यकीन करें, तो पोटेटो मिल्क 2022 में ट्रेंडसेटर बनने जा रहा है. वेट्रोज द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नए साल में पौधे आधारित खाद्य पदार्थों की डिमांड बढऩे वाली है. रिपोर्ट की मानें तो आलू का दूध, सोया, बादाम और ओट्स के दूध को भी कड़ी टक्कर देगा. बता दें कि आलू के दूध में सैचुरेटेड फैट और चीनी की मात्रा कम होती  है, यही कारण है कि दुनियाभर के लोगों द्वारा इसे खूब पसंद किया जा रहा है.

पोटेटो मिल्क यानी आलू का दूध पीने के फायदे-

आलू का दूध भोजन को बेहतर ढंग से पचाने में मदद करता है. इसलिए अगर आप कब्ज की समस्या रहती  है, पेट फूला है या फिर गैस का अनुभव करते हैं, तो आलू का दूध आपके लिए बहुत अच्छा विकल्प है. इसमें फाइबर, विटामिन बी-12, आयरन और फोलेट बहुत अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं. नियमित रूप से इसका सेवन करने से आपके शरीर और दिमाग को बेहतर तरीके से काम करने में मदद मिल सकती है.

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कोलेस्ट्रॉल फ्री है पोटेटो मिल्क-

आलू का दूध डेयरी फ्री, फैट रहित और कोलेस्ट्रॉल मुक्त है. आलू के दूध में पाया जाने वाला कैल्शियम गाय के दूध के बराबर बताया जाता है. इतना ही नहीं विशेषज्ञों का कहना है कि आलू के दूध में पाए जाने वाले मिनरल और विटामिन किसी भी तरह के शाकाहारी दूध की वैरायटी से ज्यादा हैं.

आलू का दूध बनाने की विधि-

अगर आपको अपने पास वाली डेयरी पर आलू का दूध नहीं मिल रहा है, तो चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि  आप इसे घर में भी बना सकते हैं.

– इसे बनाने के लिए सबसे पहले आलुओं को छीलें.

– अब कुकर में पानी डालकर इन्हें उबालें.

– उबले हुए आलुओं को पानी, ग्राउंड आल्मंड सॉल्ट और स्वीटनर के साथ ब्लेंड कर लें.

– अब इसे छानकर दूध में मिला लें और पी जाएं.

यदि आप रिफाइंड शुगर से परहेज कर रहे हैं, तो चीनी के रूप में शकरकंद का इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि, अन्य वैरायटी के दूध से यह ज्यादा मीठा होगा, लेकिन नुकसानदायक  नहीं.

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जब जबान नहीं हाथ चलाएं बच्चे

‘‘पापा, सुनो… सुनो न…’’ थोड़ी देर बाद तेज आवाज में चिंटू चिल्लाया, ‘‘पापा… पापा ऽऽऽ, मुझे दाल नहीं खानी, मेरे लिए पिज्जा और्डरकरो.’’ पिज्जा की जिद के चक्कर में चिंटू ने खाना फेंक दिया और कमरे में बंद हो जोरजोर से चिल्लाने लगा.उस की इस हरकत पर पापा को भी गुस्सा आ गया. उन्होंने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम कितने बदतमीज हो गए हो,अब तुम्हें आगे से कुछ नहीं मिलेगा.’’ यह सुनते ही चिंटू ने रोना शुरू कर दिया. इकलौते बच्चे को रोते देख किस बाप का दिल नहीं पिघलेगा.

‘‘अलेअले, मेरा बेटा, अच्छा बाबा, कल तुम्हारे लिए पिज्जा मंगा देंगे.’’ इतना सुनना था कि चिंटू की बाछें खिल गईं, ‘‘ये…ये, हिपहिप हुर्रे. पापा, लव यू.’’

‘‘लव यू टू माय सन,’’ पापा ने प्रत्युत्तर में कहा. क्या आप और आप का बेटा/बेटी चिंटू की तरह ही रिऐक्ट करते हैं? अगर हां, तो आप का बच्चा न केवल जिद्दी है बल्कि उस की परवरिश में आप की तरफ से कमी है. बच्चे अकसर अपना गुस्सा मारपीट या रो कर निकालते हैं ताकि उन की मुंह से निकली ख्वाहिश पूरी हो सके. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चे ऐसा व्यवहार अपने आसपास की घटनाओं से ही सीखते हैं.

यहां कुछ पेरैंट्स के साथ हुई घटनाओं के उदाहरण पेश किए जा रहे हैं :

उदाहरण-1

दिल्ली के मयूरविहार, फेज वन, इलाके में रहने वाले रोहन और साक्षी को एक फैमिली गैट टूगैदर में जाना था. वे अपने 8 वर्षीय बेटे सारांश को भी साथ ले कर गए. वैसे तो साक्षी कभी भी सारांश को अकेले नहीं भेजती थी क्योंकि वह बड़ा शैतान बच्चा था. पार्टी में पहुंच कर भी साक्षी ने सारांश का हाथ नहीं छोड़ा क्योंकि साक्षी जानती थी कि हाथ छोड़ते ही वह उछलकूद करने लगेगा. साक्षी को देख उस की फ्रैंड लीजा आ गई. उस ने कहा कि चल, वहां चल कर मजे करते हैं. अब अपनी पूंछ को छोड़ भी दे. उस के कहते ही साक्षी ने सारांश से बच्चों के ग्रुप में शामिल होने को कहा. थोड़ी देर बाद ही चीखनेचिल्लाने के साथ रोने की आवाजें आने लगीं. मुड़ कर देखा, तो सारांश ने एक बच्चे की धुनाई शुरू कर दी थी, जिस कारण वह खूब रो रहा था. साक्षी भाग कर वहां पहुंची और सारांश को समझा कर उसे सौरी बोलने को कहा. फिर साक्षी वहां से चली आई. दरअसल, सारांश जैसे बच्चे दूसरे बच्चों को ऐक्सैप्ट नहीं कर पाते और जब मिलते हैं तो लड़ाईझगड़ा शुरू कर देते हैं.

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उदाहरण-2

मैं ने एक दिन डिनर के लिए अपने एक रिश्तेदार दंपती को घर पर आमंत्रित किया. वे लोग तय समय पर अपनी 6 वर्षीय बेटी सना के साथ आ गए. बातों का दौर शुरू हुआ. बातें इतनी रुचिकर थीं कि काफी देर तक जारी रहीं. बीचबीच में उन की बेटी सना, जो स्वभाव से ऐंठू और कम बोलने वाली थी, ने तो बात करना व बैठना ही मुश्किल कर दिया. वह कुछ सैकंडों में बीचबीच में पापापापा आवाजें लगाए. ‘बसबस, बेटा शांत बैठो’ जैसे शब्द भाईसाहब भी कहते जा रहे थे. कुछ देर बाद सना भाईसाहब की गोद में चढ़ी और उन के गालों पर चांटे मारने लगी. भाईसाहब तो बेटी के लाड़ में इतने अंधे दिखे कि कहने लगे, ‘अरे, मेरा सोना बेटा…अच्छा बताओ, क्या कह रही थी.’ यह देख मैं और मेरे पति एकदूसरे का मुंह देखने लगे. बेटी की ऐसी हरकत के बावजूद भाईसाहब ने उसे कुछ नहीं कहा. बच्चों के प्रति मांबाप का प्यार स्वाभाविक है पर बच्चे को इतना लाड़ देना कि वह मारने लगे या बीच में बोलने लगे गलत है.

ऐसे करें पहचान

डेढ़ से 2 साल : इस उम्र के बच्चे अपनी जरूरत को सही से बता नहीं पाते. इसी उम्र में बच्चों की ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत पड़ती है. इस उम्र के बच्चे दांत काटना, हाथ चलाना, खिलौने पटकना, लात मारना या रोने जैसी हरकतें ज्यादा करते हैं. बच्चा अगर इस तरह का नैगेटिव व्यवहार करे तो उसे फौरन समझाएं क्योंकि इस उम्र में नहीं समझाएंगे तो वह बड़ा हो कर भी ऐसी हरकतें करता रहेगा. यह समझें कि वह कहना क्या चाह रहा है और यह सीख कहां से रहा है.

3-6 साल : अगर 2 साल तक उस का व्यवहार नहीं सुधरता तो इस उम्र में वही व्यवहार बच्चों की आदत बन जाती है और वे समझते हैं कि कौन सी चीज पाने के लिए उन्हें क्या करना है. मान लीजिए अगर कोई खिलौना या उन्हें कोई मनपसंद चीज खानी है तो वे मार्केट में बुरी तरह से फैल जाते हैं और चीजें देख कर रोने लगते हैं और तब तक रोते हैं जब तक कि उन्हें वह चीज न मिल जाए.

7-10 साल : इस उम्र के कई बच्चे शैतानी में पूरी तरह परिपक्व हो जाते हैं. ऐसे बच्चों को बातें खूब आती हैं और वे अपनेआप को नुकसान पहुंचा कर अपनी बातों को मनवाते हैं, जैसे चीखतेचिल्लाते हैं, झल्लाते हैं, मारते हैं, चुप हो जाते हैं, चिड़चिड़ करते हैं, बातें छिपाते हैं, झूठ बोलते हैं, बातें बनाते हैं. ऐसे बच्चे अपने आसपास नेगेटिव व्यवहार देखते हैं, उस का असर उन पर पड़ता है.

क्यों होता है ऐसा

सिंगल चाइल्ड : हम दो हमारा एक कौंसैप्ट यानी सिंगल चाइल्ड के चलते भी अब बच्चों में एकाधिकार की भावना आती है, जिस के चलते भी बच्चे दूसरे बच्चों को ऐक्सैप्ट नहीं कर पाते और उन्हें अपनी चीजें भी नहीं देते. वे जहां दूसरे बच्चों या भीड़भाड़ को देखते हैं तो असहज हो जाते हैं. ऐसे बच्चों के दोस्त भी कम होते हैं. ऐसे बच्चे पर पेरैंट्स हमेशा समाजीकरण का विशेष ध्यान दें.

खेल खेलें : इंडोर गेम्स में भी बच्चे सिर्फ वीडियो गेम्स ही खेलना पसंद करते हैं या फिर ज्यादा हुआ तो टीवी खोल कर कार्टून देखते हैं. अगर बच्चों में पेरैंट्स आउटडोर खेल खेलने के लिए प्रेरित करें तो इस से बच्चा बहुतकुछ सीखता है. आउटडोर गेम्स से चीजों की शेयरिंग तो होती ही है, इस से बच्चा अपनी पारी का इंतजार करना भी सीखता है. बच्चे को ऐसे में यह भी एहसास होगा कि हर जगह मनमानी नहीं चल सकती. अगर आप का बच्चा शर्मीला है तो उसे पार्क में ले जाएं ताकि बच्चा और बच्चों के समूह को देखे और खेलने के लिए उत्सुक भी हो.

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घर स्कूल से भी सीखते हैं बच्चे

देखा जाए तो ज्यादातर बच्चे नेगेटिव व्यवहार सब से पहले अपने घर से सीखते हैं. घर के आसपास का माहौल भी अच्छा होना चाहिए ताकि बच्चे पड़ोस से कुछ गलत न सीखें. कुछ बच्चे स्कूल से भी नेगेटिव व्यवहार सीखते हैं. घर में तो टीवी में हिंसा देखने से भी गलत सोच बनती है, जैसे एक कार्टून में अगर भीम ने किसी को मारा तो मारने वाली हिंसा को बच्चे जल्दी अपना लेते हैं. बच्चे कहा जाए तो हर एक गलत चीज जल्दी सीखते हैं और फिर वे प्रैक्टिकली करने की कोशिश भी करते हैं. पहले टीवी पर कोई ऐक्शन या ‘शक्तिमान’ सीरियल आता था तो शक्तिमान अपनी उन शक्तियों और ऐक्शन सीन को अंत में बच्चों को करने से मना करता था, ठीक वैसे ही अगर बच्चा मारधाड़ वाली चीजें देखे तो उसे प्यार से समझाएं.

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