अनुज को छोड़ बौस बनीं Anupama, फोटोज हुई वायरल

सीरियल अनुपमा में इन दिनों हाईवोल्टेड ड्रामा देखने को मिल रहा है, जिसके चलते शो की टीआरपी पहले नंबर पर बनी हुई है. वहीं शो के सितारे अपने फैंस को एंटरटेन करने के लिए सोशलमीडिया पर भी काफी एक्टिव नजर आ रहे हैं. इसी बीच अनुपमा के किरदार में नजर आने वाली रुपाली गांगुली के फोटोशूट की फोटोज काफी वायरल हो रही है, जिसमें वह लेडी बौस के लुक में नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं  रुपाली गांगुली की लेटेस्ट फोटोज…

बौस बनीं रुपाली गांगुली

 

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हाल ही में अनुपमा यानी रुपाली गांगुली ने एक फोटोशूट की फोटोज फैंस के साथ शेयर की हैं, जिसमें वह बौस लुक में नजर आ रही हैं. ब्लैक पैंट, टौप और प्रिंटेड श्रग पहनें, रुपाली गांगुली का लुक बेहद स्टाइलिश लग रहा है. वहीं फैंस फोटोज देखकर अंदाजा लगा रहे हैं कि यह उनके सीरियल में अपकमिंग लुक है.

 

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नए-नए फैशन कर रही हैं ट्राय

 

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अनुपमा की सिंपल बहू लुक से हटकर रुपाली गांगुली नए-नए लुक ट्राय कर रही हैं. ड्रैसेस से लेकर वह इन दिनों मौर्डन लुक में फैंस का दिल जीत रही हैं. वहीं फैंस उनके नए लुक में तारीफें कर रहे हैं.

अनुपमा के लुक में भी फैंस कर रहे हैं पसंद

 

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अनुपमा के रुप में दर्शकों को रुपाली गांगुली के कई लुक देखने को मिले हैं. वहीं अनुज की एंट्री के बाद अनुपमा के बदले लुक को भी फैंस को काफी पसंद किया है.

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अपना स्वास्थ्य करें सुरक्षित

महिलाएं ही अपने परिवार में स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देती हैं और सभी का खयाल रखती हैं, मगर वे कामकाजी और पारिवारिक जीवन में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि दोनों को संभालने के चक्कर में अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज करती हैं. ज्यादातर महिलाओं को इस बात का एहसास नहीं होता कि वे अपने परिवार के स्वास्थ्य का खयाल अच्छी तरह तभी रख सकती हैं, जब वे खुद बिलकुल स्वस्थ होंगी.

ऐसे में स्वास्थ्य बीमा की जरूरत को भी समझना बहुत जरूरी हो जाता है, जो आप को किसी भी मैडिकल आपात स्थिति में बड़े संकट से बचा सकता है. जांच में कोई बड़ी बीमारी निकल आए तो उस से न सिर्फ आप के स्वास्थ्य को नुकसान होता है, बल्कि वह आप की पूरी जिंदगी को भी खराब कर सकती है. आज मैडिकल इलाज बहुत महंगा हो गया है. इतना महंगा कि व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य बीमा के बिना अपने दम पर इतना वित्तीय बोझ वहन करना मुमकिन नहीं है.

स्वास्थ्य बीमा सभी आयुवर्गों के लिए उपयोगी होता है. युवा लड़कियां स्वयं और अपने मातापिता के लिए स्वास्थ्य बीमा ले सकती हैं, जबकि विवाहित महिलाएं स्वयं और अपने नए परिवार के लिए स्वास्थ्य बीमा का विकल्प चुन सकती हैं.

क्या है स्वास्थ्य बीमा

स्वास्थ्य बीमा एक व्यापक कौन्सैप्ट है, जो लोगों को किसी अप्रत्याशित मैडिकल आपदा और उस पर होने वाले खर्च से सुरक्षा प्रदान करता है. आज बाजार में ऐसी कई योजनाएं मौजूद हैं, जिन में कवर, लाभ इत्यादि उपलब्ध हैं, लेकिन सभी में कुछ न कुछ अंतर होता है.

महिलाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा

बाजार में महिलाओं पर केंद्रित कई अनूठी योजनाएं उपलब्ध हैं, जो सिर्फ उन की जरूरतों और गंभीर बीमारियों को कवर करती हैं. हालांकि बाजार में उपलब्ध इन योजनाओं के लिए कोई विशेष प्रीमियम मूल्य नहीं है.

सभी स्वास्थ्य बीमा कंपनियां महिलाओं पर केंद्रित उत्पाद उपलब्ध नहीं करातीं, लेकिन कंपनियों की नीतियों में मैटरनिटी बैनिफिट शामिल होता है. कंपनियों की नई योजनाएं विभिन्न आयुवर्गों की महिलाओं और उन के जीवन के कई चरणों के लिए हैं. बाजार में उपलब्ध प्रत्येक पौलिसी दूसरी पौलिसी से अलग होती है. पौलिसी के कुछ सामान्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:

– बीमा कंपनी के नैटवर्क के अस्पतालों में कैशलैस हौस्पिटलाइजेशन.

– अस्पताल में भरती होने से पहले या भरती होने के दौरान आने वाला खर्च.

– अधिकृत केंद्रों पर हैल्थ चैकअप की लागत.

– मैटरनिटी बैनिफिट, जो अस्पताल में भरती होने का खर्च भी कवर करता है. जन्म से पूर्व और जन्म के बाद होने वाला खर्च शामिल.

– ऐसी पौलिसी, जो आप के परिवार को भी कवर करे. पौलिसीधारक को कैंसर, हार्टअटैक, स्ट्रोक और गुरदे खराब होने जैसी गंभीर बीमारी होने पर संपूर्ण भुगतान.

– धारा 80 डी के तहत लाभ.

– पौलिसी में महिलाओं की गंभीर बीमारियां जैसे स्तन कैंसर, सर्वाइकल कैंसर और स्पौंडिलाइटिस आदि भी कवर होता है.

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अविवाहित/विवाहित महिलाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा

अविवाहित या विवाहित महिलाओं द्वारा उठाया जाने वाला मैडिकल खर्च काफी अधिक होता है. अगर उन के परिवार में किसी को गंभीर बीमारी हो जाए, जिस के इलाज पर काफी रकम खर्च करने की जरूरत हो तो एक समग्र हैल्थकेयर योजना और एक गंभीर बीमारी योजना परिवार को ऐसे समय में वित्तीय मदद उपलब्ध कराती है.

अगर आप अकेले ही बच्चों की जिम्मेदारी उठा रही हैं तो स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के जरीए निम्तलिखित लाभ उठा सकती हैं:

– व्यापक स्वास्थ्य कवर के तहत आप के साथ आप का बच्चा भी कवर हो सकता है.

– एक ही कवर में चाइल्ड केयर बैनिफिट भी उपलब्ध हो सकता है.

– इस कवर में 12 वर्ष की आयु तक वैक्सिनेशन शुल्क भी शामिल.

– आप अपने सिंगल कवर के तहत अपने बच्चों के साथ ही अपने अभिभावकों को भी शामिल कर सकती हैं.

– किसी भी गंभीर बीमारी की स्थिति में अस्पताल में इलाज पर होने वाला पूरा खर्च शामिल.

नवविवाहित युगल के लिए स्वास्थ्य बीमा

नवविवाहित महिलाएं ऐसा बीमा योजना चुन सकती हैं कि जब अपना परिवार आगे बढ़ाने की योजना बनाएं तो मैटरनिटी बैनिफिट ले सकें. युगल मैटरनिटी लाभ तभी ले सकते हैं, जब पति और पत्नी को यह योजना लिए कम से कम 2 साल का समय बीत गया हो.

संयुक्त परिवार में रहने वाली महिलाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा अगर कोई महिला संयुक्त परिवार में रहती है तो उस के लिए भी बाजार में ऐसी पौलिसियां हैं, जो एक बार में 15 लोगों को कवर कर सकती हैं जैसे स्वयं, पति, उन पर निर्भर लोग (25 वर्ष तक की आयु के अविवाहित) या फिर उन पर निर्भर नहीं रहने वाले बच्चे, उन पर निर्भर या निर्भर नहीं रहने वाले अभिभावाक, निर्भर रहने वाले भाईबहन, बहुएं, दामाद, सासससुर, दादादादी और पोतेपोती (अधिकतम 15 सदस्य तक).

वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा

वरिष्ठ महिला नागरिक किसी बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में भरती होने पर स्वास्थ्य बीमा का लाभ उठा सकती हैं. अस्पताल से आने के बाद नर्सिंग जैसी सेवाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं और ये सेवाएं उस समय बहुत काम आती हैं, जब घर में उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं हो. कुछ पौलिसियों में नई पौलिसी खरीदने के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती. हालांकि उस के तहत व्यक्ति को दिए जाने वाले लाभ पौलिसी दर पौलिसी बदल सकते हैं.

बीमित रकम और भुगतान किया जाने वाला प्रीमियम

स्वास्थ्य बीमा पौलिसी का प्रीमियम योजना, प्लान, कवरेज की सीमा और बीमित रकम के साथ ही व्यक्ति की उम्र पर भी निर्भर करता है व इसी के अनुसार बढ़ या घट सकता है. प्रीमियम का भुगतान ईसीएस, कैश, चैक और डायरैक्ट औनलाइन भी किया जा सकता है.

दावों का निबटान

बीमाकर्ता पौलिसीधारक को विस्तृत दिशानिर्देश उपलब्ध कराते हैं, जिन में लिखा होता है कि दावे के लिए उन्हें क्या करना है. अस्पताल में भरती दावों के लिए बीमा कंपनी के नैटवर्क में शामिल अस्पतालों में कैशलैस सुविधा उपलब्ध  होती है. इन अस्पतालों को सूची बीमाधारक को पौलिसी लेते समय ही उपलब्ध करा दी जाती है. अगर बीमाकंपनी के नैटवर्क में शामिल अस्पतालों के अतिरिक्त कहीं और इलाज कराया तो बीमाधारक को दावों का भुगतान प्रतिपूर्ति के आधार पर करना होता है.

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कैसे खरीदें पौलिसी

पौलिसी की खरीद औनलाइन भी की जा सकती है. इस के अतिरिक्त आप बीमा कंपनी की अपने नजदीक की शाखा या कौल सैंटर पर भी कौल कर सकते हैं. उस के बाद वे एक उपयुक्त अधिकारी को आप से संपर्क करने को कहेंगे, जो आप को उस योजना की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराएगा.

बीमाकर्ता का चयन कैसे करें

व्यक्ति को बीमा हमेशा अच्छी साख वाली बीमा कंपनी से ही लेना चाहिए, जिन की सेवा और दावे निबटान का रिकौर्ड बहुत अच्छा हो, क्योंकि ये बातें उस समय बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं, जब वास्तव में आप को अपने बीमा का इस्तेमाल करने की जरूरत होती है. सस्ती पौलिसी जरूरी नहीं कि हमेशा अच्छी हो. ऐसी पौलिसी चुनें, जो कवरेज और बीमित रकम के लिहाज से आप की जरूरतों को पूरा करती हो. पूरी विवरणिका और पौलिसी के नियमों व शर्तों को ध्यान से पढ़ें, जिस से आप को निबटान इंतजार की अवधि, क्या शामिल नहीं है और पौलिसी में कितनी सीमा है जैसी जानकारी मिल सके. किसी भी पौलिसी पर हस्ताक्षर करने से पहले अच्छी तरह सोच समझ लें.

(श्रीराज देशपांडे, प्रमुख (स्वास्थ्य बीमा) फ्यूचर जेनेराली इंडिया इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड)

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Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं शाही पनीर

डिनर या लंच के मौके पर अगर आप अपनी फैमिली के लिए कुछ टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो शाही पनीर की रेसिपी ट्राय करें.

सामग्री

–  300 ग्राम पनीर के टुकड़े –  6 बड़े टमाटर कटे

–  8-10 काजू –  1 इलायची –  1 तेजपत्ता

–  3-4 कालीमिर्च –  1 टुकड़ा दालचीनी

–  1/2 कप पानी –  1 छोटा चम्मच लालमिर्च

–  2 छोटे चम्मच बटर –  1 छोटा चम्मच तेल

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–  1 छोटा चम्मच जीरा –  1/4 कप क्रीम

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

टमाटर, काजू, मोटी इलायची, तेजपत्ता, काली मिर्च, दालचीनी, 1/2 कप पानी डाल कर 1 सीटी लगा लें. प्रेशर ड्रौप और ठंडा होने पर अच्छे से ग्राइंड कर लें और छान लें. अब पैन में बटर और तेल गरम कर जीरा तड़काएं और तैयार मिश्रण के साथ सभी पिसे मसाले डाल कर भूनें. अब पनीर के टुकड़े मिला कर जरूरतानुसार पानी मिलाएं और कुछ देर भून कर सर्विंग डिश में निकालें. क्रीम से गार्निश कर नान के साथ परोसें.

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अभियुक्त: भाग 3- सुमि ने क्या देखा था

शैलेंद्र का चेहरा सफेद पड़ गया, ‘‘चाचीजी, बड़ा मुश्किल सवाल किया आप ने.’’

‘‘मुश्किल होगा तेरे लिए. मैं तो इस का जवाब जानती हूं. तभी तो कहती हूं तेरे संस्कार सदियों पुराने हैं. औरतें तो हों सीता जैसी जो अग्निपरीक्षा भी पास कर लें और आदमी हो रावण जैसे जो दूसरों की औरतों को उठा लाएं.’’

शैलेंद्र चाचीजी की बात पर हंस दिया, ‘‘चाचीजी, इतनी बार आप ने मुझे माफ किया है, इस बार भी कर दो. सुमि को समझाना अब आप की जिम्मेदारी है.’’

चाचीजी का चेहरा गंभीर हो गया. भोली सी बच्ची शैलेंद्र की नादानी का सदमा ले बैठी थी. चाचीजी सुमि से पूछपूछ कर उस की पसंद के व्यंजन बनातीं तो वह उन्हें अभिभूत हो कर देखती रहती. सीधे पल्ले की सूती साड़ी, गोरा, गोल, आनंददीप्त चेहरा. सिर से पांव तक चाचीजी ममता की मूर्ति थीं. मां जैसी वह उस की देखभाल करतीं. अधिकारपूर्ण वाणी में उसे आदेश देतीं. कभी बड़ी बहन बन कर उस के रूखे बालों में तेल मलतीं, कभी सहेली बन कर गांव, खेतखलिहान की सैकड़ों बातें करतीं.

सुमि की चुप्पी धीरेधीरे टूटने लगी. चाचीजी को ले कर एक भय था मन में, जो कब का खत्म हो गया. अब तो उसे लगता कि बस, चाचीजी यहीं रह जाएं.

‘‘सुमि,’’ चाचीजी उस दिन उस के लिए खीर बना रही थीं, ‘‘गांव में अपना सबकुछ है. दूध, मक्खन, घी, कितना वैभव है. यहां पनियल दूध की खीर बनाना बहुत तकलीफ दे रहा है. दूध औटा कर आधा कर लिया फिर भी ऐसे उबल रहा है जैसे पानी.’’

सुमि मुसकरा दी, ‘‘अब इस से गाढ़ी यह नहीं हो पाएगी,’’ उस ने गैस बंद कर दी.

‘‘चलो, बेटी, दो घड़ी आराम कर लें फिर खाना खाएंगे.’’

‘‘जी,’’ सुमि उन के साथ शयनकक्ष तक चली आई.

‘‘चाचीजी,’’ सुमि लाड़ से उन का आंचल अपनी उंगली में लपेटते हुए बोली.

‘‘आप सचमुच आदर्श हैं. शैलेंद्र आप की तारीफ अकसर किया करते थे. शादी के बाद मैं 4 दिन आप के पास रही पर अब लगता है काश, वहीं रहती.’’

‘‘पगली कहीं की,’’ चाचीजी उसे अंक में भर कर बोलीं, ‘‘फिर मेरे शैलेंद्र का खयाल कौन रखता. शादी के शुरुआती दिनों में पतिपत्नी को एकदूसरे के पास ही रहना चाहिए. गांव वालों ने मुझ से कितना कहा कि बहू को कम से कम 1 महीना अपने पास ही रखो पर मैं ने किसी की नहीं सुनी.’’

‘‘चाचीजी, आप तो अंतर्यामी हैं. निपट देहात में रह कर आप इतनी आधुनिक बातें कैसे समझ लेती हैं? शैलेंद्र कहते हैं, आप बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक हैं.’’

चाचीजी सकुचा गईं फिर बोलीं, ‘‘बसबस, अब चने के झाड़ पर मत चढ़ा. और तू जिसे मनोविज्ञान कहती है वह मेरे लिए कड़वेमीठे अनुभवों का निचोड़ भर है. 21 साल की उम्र में पति और जेठजेठानी की मृत्यु. बूढ़ी सास की जहर उगलती जबान, मुझे मनहूस समझ कर पड़ोसियों का सुबह से छिपना. एकएक अनुभव हृदय पर अमिट परिभाषाएं लिखता रहा. मानव के अबूझ व्यवहार की, धर्म के नाम पर किए जाने वाले ढकोसलों की, झूठे चरित्र की…’’

‘‘चाचीजी…’’ बीच में टोकते हुए सुमि की आवाज कांप गई.

‘‘ठीक कह रही हूं, सुमि, एक परीक्षा से गुजरते ही दूसरी सामने खड़ी हो जाती. अनगिनत परीक्षाएं दीं मैं ने. पर एक बात सोलह आने सच है कि समाज के सामने ताल ठोंक कर खड़े हो जाना फिर भी आसान था. लेकिन अपनेआप से लड़ना बहुत ही मुश्किल.’’

चाचीजी ने एक गहरी सांस ली. फिर कहने लगीं, ‘‘मेरा धर्म मुझे संयम सिखाता रहा, संस्कार गलत काम करने से रोकते रहे लेकिन 25 साल की उम्र और विवाह के सुखभरे 2 साल…खेत में हिसाब- किताब देखने वाला मोहनलाल उन दिनों मेरे संयम की मजबूत चट्टान को हिला रहा था. लाख रामनाम जपा. रामायणगीता पढ़ी पर सब बेकार…और एक रात जब वह मुझे हिसाब के रुपए देने आया उस ने…नहीं, यह कहना गलत होगा, बल्कि मैं ने ही उसे मौका दे दिया. मन मुझे पीछे धकेल रहा था पर शरीर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. पता नहीं उस दिन कैसे इतनी कमजोर पड़ गई थी मैं. सुबह उठ कर इतनी शरम आई कि मुंह अंधेरे बावड़ी की ओर चल दी.

लेकिन कूदने से पहले शैलेंद्र की याद ने मेरे पैरों में बेडि़यां डाल दीं. मैं मर जाती तो वह बेचारा जीतेजी मर जाता. माना कि मेरी गलती बहुत बड़ी थी पर सजा तो शैलेंद्र को ही भुगतनी पड़ती न. मैं तो अपनी बदकिस्मती से पल भर में मुक्त हो जाती पर उस की भी किस्मत के दरवाजे बंद कर जाती. अबोध शैलेंद्र क्या पता उसे यह जमीनजायदाद मिलती भी या चालाकी से ये मुलाजिम ही सब डकार जाते.’’

सुमि शांत मन से चाची द्वारा कहे एकएक शब्द को सुन रही थी.

‘‘बहुत नफरत हो रही है न मुझ से?’’ चाचीजी ने उसे टटोला.

‘‘नफरत,’’ सुमि को सोचना पड़ा. कम उम्र में आवेश को नकारना सहज नहीं होता. उसे मानना ही पड़ा.

‘‘उस कमजोरी को यदि मैं ताकत में न बदलती तो इस घटना की मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती. मोहनलाल को मैं ने नौकरी से हटा दिया. अपना आचरण संयमित कर लिया और मन ममतामय. कोशिश की कि कोई भी मुझे भोग्या न समझे बल्कि मां की तरह आदरणीय समझे.’’

कुछ देर रुक कर चाचीजी ने गहरी सांस ली, ‘‘सुमि, राह चलते पैरों में कीचड़ लग जाए तो कोई पांव काट कर नहीं फेंक देता. पवित्रता का महत्त्व जरूर है पर जीवन की कीमत पर नहीं.’’

‘‘चाचीजी,’’ सुमि उन के कंधे से लग कर फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘शैलेंद्र से भी गलती हुई है. लेकिन वह तुम से बहुत प्यार करता है. उस गलती के लिए तुम 3 जिंदगियां दांव पर लगाने की गलती मत करो. तुम, वह और यह नन्ही सी जान, सब बिखर जाएंगे. वह तो तुम से माफी मांग ही चुका है, उस की ओर से आंचल फैला कर मैं भी तुम से विनती करती हूं.’’

‘‘नहीं, चाचीजी, आप बड़ी हैं. आप का आदेश ही मेरे लिए काफी है. लेकिन क्या शैलेंद्र ने आप को सबकुछ बता दिया?’’

‘‘तो क्या गलत किया? उस ने मुझ से आज तक कुछ नहीं छिपाया. इस बार भी…’’

सुमि को हंसी आ गई. उस की घुंघरू जैसी रुनझुन हंसी की अनुगूंज पूरे घर को आनंद से सराबोर कर रही थी. अभीअभी आया, दरवाजे पर ठिठका शैलेंद्र समझ गया था कि इस बार भी चाचीजी ने उस की समस्या चुटकियों में सुलझा दी है. अभियुक्त की बाकी सजा माफ हो गई है.

पक्षाघात: भाग 3- क्या टूट गया विजय का परिवार

लेखिका- प्रतिभा सक्सेना

यह परिवर्तन बाबूजी के लिए सुखद था. अब तक सुमि कहां थी? अब उन का मन लगने लगा. धीरेधीरे उन में जीने की इच्छा जागने लगी. गों गों का स्वर धीरेधीरे अस्फुट शब्दों में परिवर्तित होने लगा. उंगलियों में हरकत होने लगी. सभी तो खुश लग रहे थे इस सुधार से.

सुमि के वापस जाने का समय नजदीक आ रहा था. एक दिन जब सुमि और बच्चे बाबूजी के पास बैठे थे कि मुकुल व मुकेश अपनीअपनी पत्नियों के साथ आ गए. बच्चों को बाहर भेज दिया गया. बाबूजी का दिल बैठने लगा. ऐसी क्या बात है जो बच्चों के सामने नहीं हो सकती?

बड़े बेटे मुकुल ने, अटकते हुए कहना शुरू किया, ‘‘बाबूजी, हमें आप को कुछ बताना है.’’

सुमि बोली, ‘‘क्या बात है, मुकुल?’’

मुकुल बोला, ‘‘दीदी, यह बड़ी अच्छी बात है कि आप के आने से बाबूजी की स्थिति में सुधार आ रहा है, पर…’’

‘‘हां, पर क्या, बोलो?’’

मुकुल थूक निगलते हुए बोला, ‘‘दीदी, बाबूजी की बीमारी के कारण अब हम दोनों की स्थिति ठीक नहीं है.’’

वह आगे कुछ कहता कि सुमि ने आंखें तरेरीं और चुप रहने का इशारा किया पर दोनों भाई तो ठान कर आए थे, सो चुप कैसे रहते, ‘‘बाबूजी, मुकेश आप की बीमारी का कुछ भी खर्चा उठाने को तैयार नहीं है. अभी तक मैं अकेला ही सब खर्चे का बोझ उठा रहा हूं.’’

मुकेश जो अब तक चुप था बोला, ‘‘बाबूजी, आप तो जानते ही हैं कि मेरी इस के जितनी तनख्वाह नहीं है.’’

‘‘तो मैं क्या करूं, अगर आप की तनख्वाह कम है,’’ मुकुल बोला, ‘‘आखिर मुझे भी तो अपने परिवार के भविष्य का खयाल रखना है.’’

‘‘तुम्हारा अपना परिवार? लेकिन मैं तो समझती थी कि यह पूरा परिवार एक ही है, नहीं है क्या?’’ सुमि ने कहा.

‘‘दीदी, किस जमाने की बातें कर रही हो आप. अब वह जमाना नहीं है जब सब एकसाथ हंसीखुशी रहते थे. देखना कुछ सालों बाद आप का यह लाड़ला मुझ से अपना हिस्सा मांगेगा. तो जो कल होना है वह आज अम्मांबाबूजी के सामने क्यों न हो जाए?’’

‘‘कुछ तो शर्म करो तुम दोनों, बाबूजी को ठीक तो होने देते, बेशर्मी करने से पहले,’’ सुमि ने डपटा, ‘‘और अब तो बाबूजी ठीक भी हो रहे हैं. कुछ दिन और सह लो, फिर बंटवारे की जरूरत ही नहीं रहेगी. बाबूजी स्वस्थ हो जाएं तो वह भी कुछ न कुछ कर लेंगे.’’

‘‘नहीं दीदी, आप नहीं समझ रही हैं. बात खर्चे की नहीं है, नीयत की है. मुकेश की नीयत ठीक नहीं,’’ मुकुल बोल पड़ा.

‘‘सोचसमझ कर बोलिए भैया, मेरी नीयत में कोई भी खोट नहीं, यह कहिए कि आप ही निबाहना नहीं चाहते,’’ मुकेश ने बात काटी. दोनों एकदूसरे को खूनी नजरों से घूर रहे थे.

‘‘चुप रहो दोनों. बाबूजी को ठीक होने दो फिर कर लेना जो दिल में आए.’’

‘‘देखिए दीदी, आप बाबूजी की बीमारी के बारे में जानने के बाद अब 1 वर्ष बाद आ पाई हैं. अब बुलाने पर तो आप आएंगी नहीं. यह बात आप के सामने हो तो बेहतर होगा. वरना बाद में आप ने कुछ आपत्ति उठाई तो?’’ मुकेश बोला.

‘‘मुकेश,’’ सुमि चीखी, ‘‘मैं तुम दोनों की तरह बेशर्म नहीं हूं, जो ऐसी बातें करूंगी और सुन लो, मुझे अपने अम्मांबाबूजी की खुशी के अलावा कुछ नहीं चाहिए. और हां, बंटवारे के बाद अम्मांबाबूजी कहां रहेंगे, बताओ तो जरा?’’

‘‘क्यों, मुकेश के पास. वही अम्मां का लाड़ला छोटा बेटा है,’’ मुकुल ने झट कहा.

‘‘मेरे पास क्यों? आप बड़े हैं. आप की जिम्मेदारी है,’’ मुकेश ने नहले पर दहला मारा.

विजयजी की आंखों की कोरों से 2 बूंद आंसू लुढ़क गए. उन के दोनों स्तंभ बड़े कमजोर निकले. उन का अभेद्य किला आज ध्वस्त हो गया था, जाने कब से अंदर ही अंदर यह ज्वालामुखी धधक रहा था. ललिता ने भी मुझे कुछ भनक नहीं लगने दी. अंदर का ज्वालामुखी मन में दबाए मेरे आगे हमेशा हंसती रही. उन की नजरें ललिता को खोजने लगीं. वह उन्हें दरवाजे की ओट में से भीतर झांकती दिखीं. बेहद डरीसहमी हुई. दोनों बहुएं भी वहीं थीं. शायद वे भी यह सब चाहती थीं, पर उन के चेहरों पर ऐसा कुछ भी नहीं था. उन की निगाहें झुकी हुई थीं, चुप थीं दोनों.

सुमि फिर दहाड़ी, ‘‘इतना सबकुछ तय कर लिया अपनेआप, यह भी बताओ, बंटवारा कैसे करना है, यह भी तो सोच ही लिया होगा? आखिर बाबूजी तो लाचार हैं, कुछ बोल नहीं सकेंगे, तो?’’

‘‘इतना बड़ा घर है. बीच से एक दीवार डाल देंगे, जो आंगन को भी बराबरबराबर बांट दे. रसोई काफी बड़ी है, आंगन के बीचोंबीच. उस में भी दीवार डाल देंगे,’’ मुकुल ने कहा.

‘‘और अम्मांबाबूजी के बारे में भी तो तुम दोनों ने सोच ही लिया होगा. उन का क्या होगा, क्या सोचा है?’’ सुमि का चेहरा लाल हो रहा था.

‘‘दीदी, आप अमेरिका में रह कर ऐसी नादानी भरी बातें करेंगी, आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वहां बूढ़े और अपाहिज मातापिता का क्या करते हैं यह आप से बेहतर कोई क्या जानेगा?’’ मुकुल फुसफुसाया जो सब ने सुन लिया.

‘‘हां, भैया ठीक कह रहे हैं. आजकल यहां भारत में भी ऐसा इंतजाम है. यहां भी कई वृद्धाश्रम खुल गए हैं,’’ मुकेश ने कहा तो सुमि को लगा कि दोनों भाई कम से कम इस बारे में एकमत थे.

दोनों अपना फैसला सुना कर बाहर चल दिए. अम्मां दरवाजे के पास घुटनों में सिर दे कर बैठ गईं, सिसकते हुए अपने दिवंगत सासससुर को याद करने लगीं, ‘‘अब कहां हो अम्मांजी, बापूजी? हम तो एक बेटे एक बेटी में खुश थे. आप ही को 2-2 पोते चाहिए थे. अगर एक ही होता तो आज यह नौबत न आती.’’

सुमि दोनों हथेलियों में सिर थामे निर्जीव सी कुरसी पर ढह गई. जीजाजी, जो अब तक चुप थे, ने चुप ही रहने में अपनी भलाई समझी. कहीं यह न हो कि दोनों सालों को डांटें तो वह यह न कह दें कि जीजाजी, आप को क्या कमी है, आप क्यों नहीं ले जाते अपने साथ?

विजयजी बेबस परेशान अपने दिए संस्कारों में गलतियां खोज रहे थे. जिस भरोसे से उन्होंने अपने अटूट परिवार की नींव डाली थी, वह भरोसा ही खंडखंड हो गया था. सबकुछ तो उन के तय किए हुए खाके पर चल रहा था, शायद ऐसे ही चलता रहता, अगर उन पर इस पक्षाघात का कहर न टूट पड़ता.

YRKKH: अक्षरा के एक्सीडेंट से टूटा अभिमन्यू का दिल, #abhira फैंस को लगा झटका

स्टार प्लस का पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में लीप के बाद की कहानी फैंस को काफी पसंद आ रही हैं. जहां फैंस अभिमन्यू (Harshad Chopda) और अक्षरा  (Pranali Rathod)का रोमांस देखने का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि आरोही संग अभिमन्यू की शादी ने फैंस को निराश कर दिया है. इसी बीच अक्षरा के साथ हुआ हादसा शो की कहानी में जबरदस्त ट्विस्ट लाने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अक्षरा का हुआ एक्सीडेंट

अब तक आपने देखा कि अक्षरा की बहन के लिए प्यार की कुरबानी के चलते अभिमन्यु उसे इग्नोर करता है. इसी बीच अक्षरा का एक्सीडेंट हो जाता है. हालांकि एक्सीडेंट की खबर से अंजान अभिमन्यू को अक्षरा का इलाज करने के लिए कहा जाता है. लेकिन अक्षरा को देखते ही वह टूट जाता है.

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अभिमन्यू करेगा अक्षरा का इलाज

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अक्षरा के एक्सीडेंट के बाद हालत बुरी हो जाएगी. वहीं अभिमन्यू से उसका इलाज करने के लिए कहा जाएगा. लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाएगा. हालांकि महिमा उसे समझाएगी कि उसे अक्षरा की जान बचानी होगी. वहीं अक्षरा के परिवार को एक्सीडेंट की खबर मिलेगी, जिसके चलते पूरा परिवार टूट जाएगा. वहीं आरोही को अपनी गलती का एहसास होगा और उसे अक्षरा के लिए अभिमन्यू का प्यार नजर आएगा.

सेट पर हो रही है मस्ती

सीरियल में सीरियल माहोल के बीच अक्षरा और आरोही साथ में डांस करते हुए नजर आ रहे हैं. दरअसल, हाल ही में सोशलमीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें आरोही यानी करिश्मा सावंत और अक्षरा यानी प्रणाली राठोड़ सेट पर जमकर डांस करते नजर आ रहे हैं. वहीं फैंस को दोनों का ये वीडियो काफी पसंद आ रहा है.

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Top 10 Best Family Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट फैमिली कहानियां हिंदी में

Family Story in Hindi: परिवार हमारी लाइफ का सबसे जरुरी हिस्सा है, जो हर सुख-दुख में आपका सपोर्ट सिस्टम बनती है. साथ ही बिना किसी के स्वार्थ के आपका परिवार साथ खड़ा रहता है. इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की 10 Best Family Story in Hindi. रिश्तों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जो आपके दिल को छू लेगी. इन Family Story से आपको कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए Grihshobha की Best Family Story in Hindi 2022.

1. सुबह अभी हुई नहीं थी: आखिर दीदी को क्या बताना चाहती थी मीनल

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अपनी बङी दीदी को मीनल कुछ बताना चाहती थी, मगर फोन में मैसेज लिख चुकने के बाद भी वह सालों से उसे पढ़ तो लेती, पर भेजने का साहस नहीं जुटा पा रही थी. आखिर क्यों…

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2. ध्रुवा: क्या आकाश के माता-पिता को वापस मिला बेटा

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आकाश के मातापिता, जो बेटे को खो कर अपने लिए जीने की वजह खो चुके थे, उस कागज के टुकड़े को पढ़ते ही दौड़ कर बाहर आए. ध्रुवा को घर के अंदर लेते वक्त सभी ने आकाश को अपने आसपास महसूस किया जैसे उन का बेटा लौट आया हो.

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3. हमारे यहां ऐसा नहीं होता: धरा की सास को क्यों रहना पड़ा चुप

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घर में नई बहू धारा ने आ कर परंपरावादी सास सुधा का दिल जीत ही लिया. परंतु बहू में ऐसा कौन सा गुण था, जिस से सास भी अछूती न रह सकी? हर वक्त हमारे यहां तो ऐसा नहीं होता है, पर तुम्हारे यहां… सास की हिदायत सुन बहू धारा तर्क करती तो सास को क्यों चुप रहना पड़

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4. मां का बटुआ: कुछ बातें बाद में ही समझ आती हैं

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कुछ बातें एक उम्र गुजर जाने के बाद ही समझ में आती हैं. मां की हर बात का फलसफा मुझे अब समझ आने लगा है. क्या करूं मां बन कर, सोचना जो आ गया है.

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5. चक्रव्यूह भेदन : वान्या क्यों सोचती थी कि उसकी नौकरी से घर में बरकत थी

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वान्या सोचती थी कि उस की नौकरी से घर में बरकत थी. लेकिन असलियत जान कर उसे अपने निर्णय पर गर्व क्यों हो आया?

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6. वह बेमौत नहीं मरता: एक कठोर मां ने कैसे ले ली बेटे की जान

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बड़बड़ा रही थीं 80 साल की अम्मां. सुबहसुबह उठ कर बड़बड़ करना उन की रोज की आदत है, ‘‘हमारे घर में नहीं बनती यह दाल वाली रोटी, हमारे घर में यह नहीं चलता, हमारे घर में वह नहीं किया जाता.’’ सुबह 4 बजे उठ जाती हैं अम्मां, पूजापाठ, हवनमंत्र, सब के खाने में रोकटोक, सोनेजागने पर रोकटोक, सब के जीने के स्तर पर रोकटोक. पड़ोस में रहती हूं न मैं, और मेरी खिड़की उन के आंगन में खुलती है, इसलिए न चाहते हुए भी सारी की सारी बातें मेरे कान में पड़ती रहती हैं….

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7. सहारा: कौन बना अर्चना के बुढ़ापे क सहारा

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रजनीश सिगरेट फूंकता हुआ फुटपाथ पर खड़ा नजरें इधरउधर दौड़ा रहा था कि अचानक एक महिला को एक दुकान से निकलता देख चौंक पड़ा, ‘अर्चना?’ हां, यह अर्चना ही तो है. वही चेहरामोहरा, वही चालढाल…’ वह खुद से बुदबुदाया और अनायास ही उस की ओर बढ़ गया.

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8. मेरा घर: बेटे आरव को लेकर रंगोली क्यों भटक रही थी

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पति का घर पति का होता है, मम्मीपापा का घर मम्मीपापा का. रंगोली का तो कोई घर ही नहीं. पुत्र आरव को ले कर वह कहां रहे? सहेली अतिका ने एक सुझाव दिया जिस को मान उस ने फैसला कर लिया.

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9. आखिरी प्यादा: क्या थी मुग्धा की कहानी

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सायरन बजाती हुई एक एम्बुलेंस अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी. वहां की औपचारिकताएं पूरी करने में दोतीन घंटे लग गए थे. सारी कार्यवाही कर जब वे वापस आए तब घर में केवल राघव और मैं थे. राघव और ‘मैं’ यानी पड़ोसी कह लीजिए या दोस्त, हम दोनों का व्यवसाय एक था और पारिवारिक रिश्ते भी काफी अच्छे थे. हम सब मित्रों की संवेदनाएं राघव के साथ थीं कि इस उम्र में पत्नी मुग्धा जी मानसिक असंतुलन खो बैठी हैं और उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा था.

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10.संबंध : भैया-भाभी के लिए क्या रीना की सोच बदल पाई?

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जिस भाभी के लिए रीना के मन के किसी कोने से अस्फुट सी एक आवाज उठती थी कि वे इस दुनिया से चली जाएं और भैया का जीवन बंधनों से मुक्त हो जाए…

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Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं पनीर भुरजी

अगर आप सर्दियों में कुछ हेल्दी और टेस्टी डिश ट्राय करना चाहते हैं तो हेल्दी और टेस्टी पनीर भुरजी आप पराठें के साथ अपनी फैमिली और बच्चों को परोस सकती हैं.

सामग्री

–  450 ग्राम पनीर

–  2 बड़े चम्मच घी

–  1 छोटा चम्मच जीरा

–  2 प्याज कटे हुए

–  1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

–  थोडी सी हरीमिर्च कटी हुई

–  2 टमाटर कटे हुए

–  1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  2 कप पनीर क्रंब्स

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–  3 बड़े चम्मच फेंटा हुआ दही

–  थोड़ी सी धनियापत्ती कटी हुई

–  नमक स्वादानुसार.

सामग्री गार्निशिंग की

–  प्याज टुकड़ों में कटा हुआ

–  धनियापत्ती

–  नीबू टुकड़ों में कटा हुआ.

विधि

कड़ाही में औयल गरम कर उस में जीरा डाल कर उसे चटकाएं. फिर इस में प्याज डाल कर सुनहरा होने तक भूनें. इस के बाद अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर तब तक भूनें जब तक उस का कच्चापन न चला जाए. अब इस में हरीमिर्च, टमाटर डाल कर उन के नर्म होने तक पकाएं. इस के बाद इस में नमक, हलदी, लालमिर्च पाउडर डाल कर अच्छी तरह चलाएं. फिर इस में पनीर डाल कर 1-2 मिनट तक अच्छी तरह पकाएं. अब आंच बंद कर इस में दही और कटी धनियापत्ती डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. फिर प्याज, नीबू के टुकड़ों और धनियापत्ती से गार्निश कर के गरमगरम पाव या फिर रोटी के साथ सर्व करें.

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इन 10 आसान तरीकों को अपनाएं और बचाएं पैसे

क्या आपके पैसे वक्त से पहले खर्च हो जाते हैं, क्या आपने अब तक कुछ भी सेव नहीं किया है तो डरिये नहीं आज हम आपके लिये कुछ बहुत ही साधारण टिप्स लेकर आएं हैं जिसे अपने रोजमर्रा के जीवन में लागू कर थोड़े बहुत पैसे तो आप सेव कर ही लेंगी. चलिये आपको बताते हैं.

1. बेहतर प्लान बनाएं

आपको सुनने में भले ही यह अजीब लगे लेकिन शौपिंग पर जाते समय यह कभी डिसाइड न करें कि आपको क्या क्या खरीदना है. बेहतर है कि जब भी आपको जो सामान याद आए, उसे एक लिस्ट में अपडेट करते जाएं. और जब वो सामान आपके आस पास हो आप उसे फौरन खरीद लें.

2. शौपिंग की लिस्ट हमेशा साथ रखे

अक्सर दुकान पर पहुंच कर हमें पता चलता है कि हम लिस्ट घर पर ही भूल आएं है इसीलिए शौपिग पर जाने से पहले हमेशा याद से लिस्ट साथ रख लें. यह लिस्ट तब और भी जरूरी हो जाती है जब आपके पास सीमित समय हो और उसी दौरान आपको घर के लिए पूरा सामान अपडेट करना हो.

3. बाजार के हिसाब से लिस्ट बनाएं

हमेशा सामान को एक ग्रुप में बांट लें इससे आपको पता रहेगा कि किस दुकान में जाकर क्या लेना और आपको कुल कितनी अलग अलग दुकानों पर जाने की जरूरत है. इस बेहतर प्लानिंग से आप समय बचा सकते हैं. जैसे सब्जी के दुकान का अलग और राशन का अलग इस तरीके से आप ये लिस्ट बनाएं.

4. लिस्ट से भटकें नहीं

आपने लिस्ट किसी खास वजह से बनाई है इसलिए जरूरी है कि आप उस पर टिके रहें. अपनी लिस्ट के प्रति ईमानदार रहेंगे तो फिजूल के खर्च से बचेंगे. ऐसा नहीं की बाजार में गएं और जो मन में आया वो आप खरीदे जा रहीं हैं.

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5. सिर्फ जरूरत का सामान ही थोक में ले

अक्सर हम औफर्स, छूट जैसे लुभावने प्रस्ताव की वजह से किसी चीज को ज्यादा क्वांटिटी में खरीद लेते हैं. आपको हमेशा वैराइटी का ध्यान रखना चाहिए जिससे आप जल्दी उबेंगे भी नहीं और थोक का सामान बर्बाद भी नहीं होगा.

6. एक हफ्ते की खरीदारी मेन्यू बनाएं

रोजाना कुछ न कुछ खरीदने के लिए दुकान पर जाने से बेहतर है कि आप हफ्ते भर के सामान की लिस्ट एक साथ बना लें और उसी के मुताबिक सामान खरीदें. साथ ही, अगली शौपिंग की तारीख भी तय कर लें. इससे घर पर अचानक सामान खत्म होने की स्थिति का सामना आपको नहीं करना पड़ेगा.

7. पीक आवर्स में शौपिंग न करें

हमेशा शौपिंग ऐसे समय पर ही करने जाएं जब भीड़ कम हो और पेमेंट के लिए लाइन छोटी हो. साथ ही आपके पास भी फुर्सत हो. हमें कोशिश करनी चाहिए कि शाम, रात और रविवार की दोपहर में शौपिंग पर न जाएं. इस समय ज्यादातर लोग खरीदारी के लिए इकट्ठा होते हैं और समय का अभाव होने पर अक्सर कुछ न कुछ लेना छूट जाता है.

8. एक्सपायरी डेट चेक करें

जब भी कोई प्रोडक्ट खरीद रहे हों तो एक्सपायरी डेट चेक करें. इस बात को भी चेक करें कि पैकिंग में कोई खराबी न हो. कई बार कुछ चीजें जो छूट या कम रेट पर बेची जाती हैं वे अपनी एक्सपायरी डेट के नजदीक हो सकती हैं या उनकी पैकिंग में कोई खराबी हो सकती है. इसका सीधा-सा मतलब यह है कि उस चीज की क्वालिटी के साथ समझौता किया गया है.

9. किसी फ्रेंड के साथ शौपिंग पर जाएं

जहां तक मुमकिन हो अपनी किसी ऐसी सहेली या पड़ोसन के साथ खरीददारी करने जाएं जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो और हेल्दी फूड में विश्वास रखती हो. शौपिंग के दौरान जंक फूड के औप्शन आसानी से आपको ललचा देते हैं. खासकर जब जंक फूड के साथ ‘बाय वन गेट वन फ्री’ जैसे औफर मिलते हैं. ऐसे समय में ये फ्रेंड्स ही आपको ऐसी खरीदारी करने से रोकते हैं.

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10. लेबल्स समझें

कई प्रोडक्ट्स के पैक पर लो फैट जैसे शब्द लिखे होते हैं. अधिकतर इनको ढंग से समझ नहीं पाते हैं. अधिकतर लो फैट फूड्स में शुगर या नमक भरपूर मात्रा में होता है जो उसमें स्वाद के लिए डाला जाता है. खाने का सामान खरीदते समय उसमे मौजूद कैलोरीज के लिए न्यूट्रीशनल लेबल्स जरूर पढ़ें. कोई चीज कम कैलोरी वाली है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह हेल्दी भी है. आपको कैलोरी वैल्यू के लिए नहीं, बल्कि क्वालिटी वैल्यू के लिए खाना चाहिए.

पति का टोकना जब हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो उन्हें इस तरह कराएं एहसास

कविता शादी से पहले ही शहर के एक सरकारी स्कूल में टीचर थी. जब उस की शादी हुई तो वह जो कुछ उस के ससुराल वाले कहते उसे मानने लगी. फिर उसी के अनुसार उस ने अपने रहने, खाने व पहननेओढ़ने की जीवनशैली बना ली. कविता का ससुराल पक्ष ग्रामीण क्षेत्र से था, लेकिन शहरी होने के बावजूद भी उस ने हर एक पारंपरिक रीतिरिवाज को बड़ी आसानी से अपना लिया. लेकिन परिवार, पति, बच्चों व नौकरी के साथ बढ़ती जिम्मेदारियों का चतुराई से सामंजस्य बैठाना उस के लिए शादी के 15 साल बाद भी एक चुनौती है. वक्त के साथ सब कुछ बदलता है. लेकिन कविता की ससुराल में कुछ भी नहीं बदला. बदलाव के इंतजार में वह घुटघुट कर जीती आई है और अभी भी जी रही है.

उस के पति की धारणा यह थी कि शादी के बाद पत्नी का एक ही घर होता है, और वह है पति का घर. दकियानूसी सोच की वजह से अकसर कविता के घर से उस की अनर्गल बातें सुनाई पड़ जाती थीं. जैसे, साड़ी ही पहनो, सिर पर पल्लू रख कर चला करो, घर में मम्मीपापा के सामने घूंघट निकाल कर रहा करो, सुबह नाश्ते में यह बनाना… दोपहर का खाना ऐसा बनाना… रात का खाना वैसा बनाना आदि. कपड़े वाशिंग मशीन में नहीं हाथ से ही धोने चाहिए, क्योंकि मशीन में कपड़े साफ नहीं धुलते. कविता को बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा होने का शौक था और इस जनून को पूरा करने के लिए वह हालात से समझौता करने के लिए तैयार थी.

समय बीतने पर वह प्रमोट हो कर प्रथम ग्रेड टीचर बन गई. उस के बच्चे 9वीं और 10वीं कक्षा में अध्ययन कर रहे थे. लेकिन अभी भी उसे स्पष्ट निर्देश मिले हुए थे कि बस से आयाजाया करो. अगर पैदल जाओ तो इसी रास्ते से पैदल वापस आया करो और ध्यान रहे स्कूल के अलावा अकेली कहीं मत जाना. मानसिक तनाव झेलती कविता इन सब बातों से झल्ला उठी, क्योंकि वह स्कूल में सहयोगियों और पड़ोसिनों के लिए उपहास का पात्र बन गई थी. उस ने मन में ठान ली कि वह अब यह सब धीरेधीरे खत्म कर देगी और खुद की जिंदगी जिएगी. हर गलत बात का पालन और समर्थन नहीं करेगी.

आधुनिकता का वास्ता

उस ने ऐसा सोचा और फिर एक बार बोल क्या दिया तानों, बहस व कोसने का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन कविता ने परिवर्तन करने की ठान ली. वह धीरेधीरे घूंघट हटा कर सिर तक पल्ला लेने लगी. फिर आधुनिकता का वास्ता दे कर सूट भी पहनने लगी तो पति तिलमिला गया. उस के तिलमिलाने से कविता ने जब यह कहा कि मैं थक चुकी हूं और अब नौकरी नहीं करना चाहती. जितना करना था कर लिया. अब मैं आप का, बच्चों और परिवार का ध्यान रखूंगी और इस के लिए मैं घर पर ही रहूंगी. सुनते ही पति बौखला गया और यह कह कर, ‘‘धौंस देती है नौकरी की… छोड़ दे… अभी ही छोड़ दे… क्या तेरे नौकरी नहीं करने से मेरा घर नहीं चलेगा,’’ घर से बाहर निकल गया. 2 घंटे बाद वह वापस आया और बोला, ‘‘ठीक है, पहन लो सूट लेकिन लंबे और पूरी बांहों वाले कुरते ही पहनना और चूड़ीदार नहीं, सलवार पहनोगी.’’ आधुनिकता की दिखावटी केंचुली में खुद को फंसा पा कर कविता खुद को बेहद अकेला महसूस कर रही थी और उस की आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे, जिन्हें समझने का दम न उस के पति के पास था और न घर के अन्य सदस्यों के पास.

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रूढि़वादी सोच

अशोक 5 भाइयों में मझला भाई है. वह पढ़ालिखा है लेकिन उस की सोच शुरू से ही, मातापिता व अन्य भाइयों से बिलकुल विपरीत कट्टर, रूढि़वादी और परंपरावादी रहा है. उस के मातापिता व घर के अन्य सदस्य वक्त के साथ बदले लेकिन वह बिलकुल नहीं बदला. उस की बेबुनियादी बातें, व्यवहार एवं आचरण पहले जैसा है. अशोक की शादी निशा से हुई. शादी के बाद होली निशा का पहला त्योहार था. उसे होली के एक दिन पहले ही अशोक द्वारा कठोर निर्देश मिल गए थे कि कल होली है, ध्यान रहे रंग नहीं खेलना है. निशा बोली, ‘‘क्यों…?’’ तो अशोक ने कहा, ‘‘क्यों कोई मतलब नहीं, बस नहीं खेलना तो नहीं खेलना.’’ निशा ने सोचा कि हो सकता है कि इन के यहां होली के त्योहार पर कभी कोई दुखद घटना घटी हो, इसलिए इन के यहां नहीं खेलते होंगे. दूसरे दिन देखा कि घर के सभी लोग चहकचहक कर होली खेल रहे हैं. वह दिल ही दिल में अचंभित हो रही थी कि अशोक ने मुझे तो मना किया है तो ये सब क्या है… सब क्यों खेल रहे हैं?

वह सोच ही रही थी कि सब ने आ कर होली है भई होली है कह कर उसे गुलाबी रंग के गुलाल से रंग दिया. यह सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि वह सकपका गई और इनकार करने का भी समय उसे नहीं मिल पाया. फिर वह अशोक की कही बात सोच ही रही थी कि अशोक आ गया और आवाज दी, ‘‘निशा.’’ निशा आवाज सुन कर बहुत खुश हुई कि चलो अच्छा हुआ जो ये आ गए. आज हमारी पहली होली है. उस का दिल गुदगुदा रहा था. अशोक के पास आते ही उस ने हरे रंग का गुलाल मुट्ठी में भर लिया और ज्यों ही अशोक के गाल पर लगाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, अशोक ने उस का हाथ झटक दिया. उस के हाथ का सारा गुलाल हवा में फैल कर बिखर गया. इस अप्रत्याशित आक्रामकता के लिए निशा कतई तैयार नहीं थी.

अशोक की आंखें तर्रा रही थीं. वह तेज आवाज में बोला, ‘‘जब तुम्हें मना किया था कि होली नहीं खेलना है तब क्यों होली खेली?’’ निशा सिर झुका कर बाथरूम में चली गई. फिर पूरे दिन निशा का मूड खराब रहा. रात को बिस्तर पर अशोक ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘‘होली नहीं खेलना. मैं ने सिर्फ इसलिए कहा था कि इस के रंगों से घर में गंदगी हो जाती है साथ ही चमड़ी भी खराब हो जाती है.’’

बातबात पर टोकना

निशा ने अपने पति की इस बात को सकारात्मक लिया तो बात आईगई हो गई. लेकिन धीरेधीरे विचारों की परतें उधड़ने और खुलने लगीं. हर बात पर टोकाटाकी फिर तो जैसे उस की झड़ी ही लग गई.

‘‘पड़ोसिनों से ज्यादा बात मत किया करो… टाइम पास औरतें हैं वे.’’

‘‘बाल खुले मत रखा करो… ऐसी चोटी नहीं वैसी बनाया करो, नहीं तो बाल खराब हो जाएंगे.’’

‘‘सहेलियों से मोबाइल पर ज्यादा बात नहीं किया करो… बारबार बात करने से मोबाइल खराब हो जाता है और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही पैसे का मीटर भी खिंचता है.’’

‘‘टीवी ज्यादा मत देखो, आंखें कमजोर हो जाएंगी.’’

‘‘घर की बालकनी में मत खड़ी हुआ करो, कई तरह के लोग यहां से गुजरते हैं.’’

‘‘सभी के खाना खाने के बाद तुम खाना खाया करो. मर्यादा और लक्ष्मण रेखा में रहा करो.’’

निशा भीतर ही भीतर कसमसा गई. फिर उस के द्वारा अपने अधिकारों की मांग शुरू हुई तो अशोक उस को छोड़ देने की बारबार धमकी देने लगा. समय रुका नहीं और अशोक की आदतें भी नहीं छूटीं. अब निशा चिड़चिड़ी रहने लगी. उस के गर्भ में अशोक का बच्चा पल रहा था. वह आवाज उठाने का प्रयास करती तो सीधे उस के खानदान को गाली मिलती. धीरेधीरे वह अवसाद में आने लगी. उस से उबरने और अपना ध्यान हटाने के लिए कभी मैगजीन पढ़ती या कोई संगीत सुनती तो भी ताने कि पैसा खर्च होता है… समय खराब होता है… स्वास्थ्य खराब होता है.

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बदलनी होगी सोच

निशा अब अपना दिमागी संतुलन खोने लगी, क्योंकि अशोक का छोटीछोटी बातों में मीनमेख निकालना और उसे बातबात पर ताने देना कम नहीं हो रहा था. वह रोती तो उस के आंसू मगरमच्छ के आंसू समझ लिए जाते. निशा अधिक घुटन नहीं सह सकी तो अपने मायके आ गई. वहां उस को बेटा हुआ. अशोक उसे देखने नहीं आया, उस ने तलाक के कागज पहुंचा दिए. पर निशा ने तलाक के पेपर साइन नहीं किए. उस का बेटा 4 साल का हो चुका है, वह आज भी प्रयासरत है कि अशोक उसे अपने घर ले जाएं. पर अशोक ऐसा बिलकुल नहीं सोचता. वह कहता है कि निशा उस की एक नहीं सुनती. जबकि सच तो यह है कि अहंकारी, जिद्दी एवं स्वार्थी अशोक को हां में हां करने वाली गुडि़या चाहिए. सहयोगिनी एवं अर्द्धांगिनीनहीं. कहीं कम तो कहीं ज्यादा अहं और स्वार्थ पति पत्नी पर लाद देने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि कोई पत्नी दिल से ऐसे रिश्तों को कैसे पाल सकती है और निभा सकती है? ऐसे रिश्ते चलते नहीं घिसटते हैं और बाद में नासूर बन जाते हैं. जुल्म बड़ा आसान लगता है मगर पत्नी की भावनाओं को दफना कर क्या पति खुद सुख के बिस्तर पर सो पाता है?

यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस प्रकार सुबह उठ कर दांतमुंह व शरीर की सफाई जरूरी है वैसे ही सुखद एवं स्थायी रिश्तों के लिए मानसिक एवं विचारात्मक सफाई भी जरूरी है. पतिपत्नी दोनों का ही दायित्व बनता है कि वे अपनी गलतियां सुधारें और एकदूसरे की भावनात्मक, शारीरिक एवं मानसिक जरूरतें समझ कर कदम से कदम मिला कर साथसाथ चलने को तत्पर रहें. वे इस बात का खयाल रखें कि एकदूसरे के प्रति कभी नफरत के बीज न पनपने पाएं.

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