शादी की खुशी में सुबह 3 बजे डांस करती दिखी Anupama!

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupama) की टीआरपी में गिरावट आने के बाद मेकर्स ने सीरियल में बदलाव लाने की तैयारी कर ली है. जहां मेकर्स ने अनुपमा और अनुज की शादी का ट्रैक लाने का फैसला किया है, जिसके चलते सीरियल में अनुपमा, अनुज से शादी का ऐलान करती हुई नजर आई थी. इसी बीच सोशलमीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें अनुपमा (Rupali Ganguly) रात के 3 बजे डांस करती हुई नजर आ रही है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो की झलक…

डांस वीडियो हुआ वायरल

 

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सीरियल में जहां जल्द अनुपमा ने अनुज (Gaurav Khanna) से शादी का ऐलान कर दिया है तो वहीं ‘अनुपमा’ के सेट पर रुपाली गांगुली का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसमें एक्ट्रेस रात के तीन बजे डांस करती नजर आ रही हैं. दरअसल, अपनी एक Reel शेयर करते हुए एक्ट्रेस रुपाली गांगुली ने वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह शूटिंग के दौरान सुबह 3 बजे नींद भगाने के लिए डांस करती नजर आ रही हैं. वहीं कैप्शन में उन्होंने बताया है कि वह सुबह 9 बजे से शूटिंग कर रही हैं, जिसके बाद वह थकान और नींद भगाने के लिए सुबह 3 बजे डांस कर रही हैं. फैंस एक्ट्रेस के डांस पर जमकर प्यार बरसा रहे हैं.

 

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सीरियल के ट्रैक से खुश हुए फैंस

 

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अब तक आपने देखा कि सीरियल में अनुज का एक्सीडेंट होने का ट्रैक दिखाया जा रहा था, जिससे फैंस गुस्से में आ गए थे. लेकिन आज के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अनुज किसी तरह बच कर अनुपमा का डांस देखने के लिए पहुंचता है. जहां अनुपमा अपने डांस के बाद शादी का ऐलान करती है, जिससे बापूजी, समर और देविका जहां खुश होते हैं तो वहीं बा, वनराज और राखी दवे गुस्से में नजर आते हैं. हालांकि अनुपमा के शादी के फैसले पर फैंस का प्यार देखने के मिला है.

 

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Breakfast में क्या खाएं क्या नहीं

अकसर यह कहा जाता है कि सुबह का नाश्ता दिन का सब से महत्त्वपूर्ण भोजन है. ऐसा इसलिए क्योंकि पूरी रात नींद लेने और 12 घंटे या इस से अधिक समय तक बिना भोजन के रहने के बाद जब आप का शरीर पोषण के लिए तरस रहा होता है, तो उस की आपूर्ति सुबह का नाश्ता ही करता है. इस के अलावा जागने पर आप के मस्तिष्क में, जो काम करने के लिए ग्लूकोज इस्तेमाल करता है, ऊर्जा की कमी होती है. सुबह का नाश्ता ग्लूकोज की मात्रा को बैलेंस करता है और आप के चयापचय (रस प्रक्रिया) को दोबारा क्रियाशील बनाता है.

इन के अलावा, सुबह नाश्ता करने के अन्य लाभ भी हैं. यह आप की स्मरणशक्ति को बेहतर बनाता है और आप के वजन को काबू में रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सुबह के नाश्ते को नियमित रूप से छोड़ने वालों को दिन में जब भूख लगती है तो वे ज्यादा खाते हैं, जिस से उन का वजन बढ़ता ही है. सुबह नाश्ता करने की अच्छी आदत उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और मधुमेह से पीडि़त लोगों के लिए भी मददगार होती है.

हो पोषक तत्त्वों से भरपूर

न्यूट्रिशनिस्ट कहते हैं कि सुबह का नाश्ता आप को जागने के बाद 2 घंटे के अंदर कर लेना चाहिए. लेकिन इस में यह भी अहम होता है कि आप क्या खाते हैं. दिन का यह पहला भोजन कैल्सियम, आयरन, प्रोटीन, फाइबर और विटामिन बी जैसे जरूरी पोषक तत्त्वों से भरपूर होना चाहिए. लेकिन आमतौर पर अपने देश में सुबह के नाश्ते में खाई जाने वाली चीजें अच्छे स्वास्थ्य के लिए नहीं बनी होतीं. उन में खूब इस्तेमाल की गई चीनी, मक्खन, घी और तेल वगैरह कभीकभी एक बड़ी समस्या का कारण बनते हैं. चिकनाई व तेलयुक्त भोजन में खराब वसा की उच्च मात्रा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है. इस में अत्यधिक कैलोरी और वसा भी खूब होती है, जिस के परिणामस्वरूप मोटापा बढ़ता है और खराब कोलैस्ट्रौल की मात्रा बढ़ती है. धमनियों की भित्तियों पर वसा और प्लाक का धीरेधीरे लेकिन लगातार जमा होना रक्तप्रवाह को बाधित करता है और अंतत: हृदयाघात या स्ट्रोक को जन्म देता है. उच्च कोलैस्ट्रौल पित्त का असंतुलन भी पैदा कर सकता है.

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फोर्टिस अस्पताल, नई दिल्ली की कंसल्टैंट डा. सिमरन सैनी का कहना है कि नाश्ते में घी और मक्खन का अधिक होना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता. पूड़ी, मक्खन के परांठे, सफेद डबलरोटी और ब्रैड रोल जैसे गहरे तले हुए व्यंजनों का नियमित सेवन शरीर में खराब वसा को खतरनाक मात्रा में एकत्रित कर सकता है. चिकनाई व वसायुक्त और मीठे भोजन का इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा तंत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो जुकाम से ले कर कैंसर तक की संभावना को बढ़ाता है. अपने आहार में घी, मक्खन और चीनी के नियमित सेवन के स्थान पर स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों को अपनाना बीमारी मुक्त जीवन की कुंजी है.

मीठा करें कम

स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आप को सुबह के नाश्ते में अतिरिक्त मीठे को कम करने और चीनीयुक्त चीजों को उच्च फाइबर वाले और कम मीठे पदार्थों से बदलने की आवश्यकता होती है. मीठे के शौकीन एक सुरक्षित विकल्प के रूप में चीनी के विकल्प इस्तेमाल कर सकते हैं, जो मधुमेह, मोटापे और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीडि़त लोगों के लिए भी आदर्श हैं. स्टेविया, एस्पारटेम और सूक्रैलोस चीनी के ऐसे विकल्प हैं, जो पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं और अपने देश में भी उपलब्ध हैं. परंतु इन का प्रयोग डाक्टर की सलाह से ही करें. तो सुबह के नाश्ते में क्या खाना है और किस से बचना है? इस सवाल का जवाब यह है कि ऐसी चीजें चुनिए जो फाइबर, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर हों और अतिरिक्त मीठे की मात्रा कम रखती हों. अपने आहार को बदलते रहना भी जरूरी है. एक ही चीज को हर रोज मत खाइए. एक ही दिन में भी नाश्ते की भरपूर विविधता रखिए और थोड़ीथोड़ी मात्रा में हर चीज खाइए.

सुबह के स्वास्थ्यवर्धक नाश्ते के कुछ विकल्पों में दलिया, जई, फलों का सलाद, गेहूं की डबलरोटी, मल्टीग्रेन डोसा, पोहा, उपमा, सांबर, दाल, सोया, अंकुरित दालें, सब्जियों के सैंडविच, मक्का, कम वसा या शून्य वसा का दूध एवं दही, लस्सी, कौटेज चीज, ताजे फलों का रस, भूरा चावल, संपूर्ण दानेदार अन्न और केला, तरबूज एवं सेब जैसे फल शामिल हैं. चीनी की अधिक मात्रा रखने वाली चीजों से बचें जैसेकि पेस्ट्री और डब्बाबंद फल. खूब सारे घी या तेल में बने हुए परांठे और आमलेट भी न खाएं. इन के अलावा बहुत ज्यादा मक्खन या घी, सफेद डबलरोटी, सफेद चावल, फ्रैंच टोस्ट, वसायुक्त मीट, संपूर्ण दूध से बना दही और अन्य उत्पाद भी न खाएं. मक्खन और चीनी के स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों को चुनें. सुबह एक अच्छा नाश्ता बच्चों और किशोरकिशोरियों के लिए और भी ज्यादा जरूरी है. जो सुबह स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता करते हैं, उन्हें अधिक ऊर्जा मिलती है और उन के द्वारा शारीरिक क्रियाकलापों में भाग लिए जाने की संभावना अधिक होती है, जिस से मोटापे और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम में मदद मिलती है.

ऐसे बच्चे स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि वे चिड़चिड़े, बेचैन, थके हुए या तुनकमिजाज भी अपेक्षाकृत कम होते हैं. इसलिए हर किसी को सुबह के नाश्ते को गंभीरता से लेना चाहिए, भले ही वह बालिग हो या बच्चा.

-डा. सिमरन सैनी, फोर्टिस हौस्पिटल

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वजन कम करने का तरीका बताएं?

सवाल-

मैं 34 साल की विवाहित स्त्री हूं. मेरे वक्ष बहुत भारी हैं, इस कारण मुझे कंधों में भी दर्द होने लगा है. कुछ ऐसे सरल उपाय बताएं जिन से उन का आकार घटाया जा सके?

जवाब-

यदि आप का शरीर भारी है तो आप अपना वजन घटाने की कोशिश करें. नियमित व्यायाम करें, सलाद और कच्चे फल व सब्जी ज्यादा खाएं. तलाभुना व घीतेल वाला भोजन कम करें. इस से आप निश्चित रूप से लाभ अनुभव करेंगी. जैसेजैसे वजन घटेगा वैसेवैसे बस्ट लाइन में भी अंतर दिखने लगेगा. लेकिन इस के लिए आप को अपने ऊपर निरंतर संयम रखने की आवश्यकता होगी. कंधों के दर्द से छुटकारा पाने के लिए उन के इर्दगिर्द की पेशियों को मजबूत बनाने वाले व्यायाम नियम से करें. बांहों को ऊपरनीचे, अंदरबाहर ले जाने वाले और कंधों को घुमाने, उचकाने वाले व्यायाम इस के लिए उपयोगी व फायदेमंद रहेंगे. यदि इतने से लाभ नहीं होता तो फिर किसी ऐस्थैटिक बस्ट प्लास्टिक सर्जन से परामर्श लें. बस्ट रिडक्शन सर्जरी द्वारा बस्ट को छोटा ही नहीं करा जा सकता, बल्कि उसे सुंदर व आकर्षक भी बनाया जा सकता है.

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‘‘फरवरी में मेरी बहन की शादी है और फिट होने के लिए मेरे पास केवल एक महीना है,’’ या फिर ‘‘आने वाली छुट्टियां मुझे मियामी में बितानी हैं और मुझे उस के लिए वजन कम करना है,’’ ऐसे संकल्प हम अपने दोस्तों, परिजनों और परिचितों से किसी न किसी समय आमतौर पर सुनते रहते हैं. अपने इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लोग कई तरह की क्रैश डाइट्स और तेजी से वजन घटाने वाले व्यायाम करते हैं. जबकि ये सभी प्रयास लंबी अवधि में प्रभावी नहीं होते. इसलिए बहुत से जागरूक और समझदार लोग वजन घटाने के ऐसे प्रयास करते हैं, जिन में वजन का घटना लगातार जारी रहता है. वे फिटनैस के लिए पूरे शरीर पर असर करने वाले जुंबा और शरीर को मजबूती देने वाली वेट लिफ्टिंग का सहारा लेते हैं. इस की वजह मांसपेशियों की स्थायी मजबूती और फैट बर्निंग के प्रति बढ़ती जागरूकता है.

फिटनैस के दीवाने लोगों के बीच जुंबा और शरीर को मजबूती देने वाली वेट लिफ्टिंग बेहद लोकप्रिय हो रहे हैं. हालांकि, जुंबा के लिए भी कई लोग जिम जाना पसंद करते हैं, लेकिन जिम के उपकरणों और मशीनों पर वही परंपरागत तरीके से वर्कआउट बड़ी संख्या में फिटनैस प्रेमियों के लिए नीरस हो जाता है. अब वे अपने फिटनैस लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ विविधता, उत्साह और मनोरंजन से भरपूर तकनीक चाहते हैं.

जुंबा का आविष्कार 90 के दशक में एक फिटनैस प्रशिक्षक अल्बर्टो बेटो पेरेज के हाथों हुआ. यह एक मस्ती और ऊर्जा से भरपूर ऐरोबिक फिटनैस प्रोग्राम है, जो दक्षिणी अमेरिकी डांस की विभिन्न शैलियों से प्रेरित है. यह वर्कआउट शैली तेजी से कैलोरी बर्न करने के लिए कारगर है. दरअसल, इस में अपने पंजों पर खड़े रह कर हिपहौप और सालसा की चुस्त बीट्स पर अपनी बौडी को मूव कराना होता है. मुख्य रूप से गु्रप में किया जाने वाला वर्कआउट जुंबा उत्साही बने रहने और फिटनैस लक्ष्यों पर केंद्रित है. चूंकि जुंबा तेज गति से होने वाला डांस है, इसलिए यह अन्य वर्कआउट्स जैसे ट्रेडमिल पर दौड़ने या क्रौसट्रेनर पर समय बिताने के मुकाबले तेजी से फैट बर्न करता है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

न्यू लुक में बेबी बंप फ्लौंट करती दिखीं Sonam Kapoor, Photos Viral

बौलीवुड की फैशनिस्टा कही जाने वाली एक्ट्रेस सोनम कपूर (Sonam Kapoor) ने हाल ही में अपनी प्रैग्नेंसी की खबर फैंस को दी है, जिसके बाद से वह सुर्खियों में हैं. इसी बीच एक कार्यक्रम में सोनम कपूर बेबी बंप फ्लौंट करती हुई नजर आईं हैं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सोनम कपूर का लुक हुआ वायरल

 

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दरअसल, हाल ही में पति आनंद अहूजा के साथ सोनम कपूर अपने नए स्टोर को मुंबई में ओपन करने पहुंची थी. वहीं इस दौरान वह अपना बेबी बंप फ्लौंट करती नजर आईं. लुक की बात करें तो नेवी ब्लू सूट के साथ व्हाइट फिटेड टॉप में बेहद खूबसूरत लग रही थीं. वहीं इस लुक में उनका बेबी बंप क्यूट लग रहा था. हालांकि फैंस सोनम कपूर की तारीफ करते हुए नजर आ रहे हैं.

 

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प्रैग्नेंसी की खबर शेयर करते हुए था ये लुक

 

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इसके अलावा सोनम कपूर के सोशलमीडिया पर ऐलान किया था कि वह मां बनने वाली हैं, जिसमें उन्होंने ब्लैक कलर के आउटफिट को कैरी किया था, जिसमें सोनम कपूर का बेबी बंप साफ नजर आ रहा था. वहीं इस खबर के वायरल होते ही सोनम कपूर को फैंस बधाइयां देते हुए नजर आ रहे थे.

फैशन के लिए जानी जाती हैं सोनम कपूर

 

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बौलीवुड एक्ट्रेस सोनम कपूर अपने फैशन सेंस के लिए सोशलमीडिया पर वायरल रहती हैं. इंडियन हो या वेस्टर्न हर लुक में सोनम कपूर बेहद खूबसरत लगती हैं. वहीं एक्ट्रेस का लुक कई फैशन शोज में भी देखने को मिला है. हालांकि देखना होगा कि सोनम कपूर का प्रैग्नेंसी कलेक्शन (S) कैसा होने वाला है.

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बता दें, एक्ट्रेस सोनम कपूर अपनी पर्सनल लाइफ के चलते कई बार ट्रोल हुई हैं. हालांकि वह ट्रोलर्स को करारा जवाब देती हुई भी नजर आई हैं.

सुषमा: क्या हुआ अचला के साथ

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स्क्रबिंग से करें स्किन की देखभाल

सुंदर व कोमल त्वचा हर किसी को आकर्षित करती है और सभी इसे पाना चाहते हैं. लेकिन हमारा चेहरा मौसम, प्रदूषण, धूलमिट्टी, थकान सभी कुछ  झेलता है और इस का प्रभाव सब से ज्यादा चेहरे की त्वचा पर नजर आता है. थकी, कांतिहीन त्वचा,  झांइयां और आंखों के नीचे काले घेरे चेहरे का आकर्षण कम करते हैं. ऐसे में फेस स्क्रबिंग करना एक ऐसा जादुई तरीका है, जो मिनटों में आप की स्किन को नरम, मुलायम और चमकदार बना सकता है. स्क्रबिंग से त्वचा दोबारा चमकदार व जवान लगने लगती है. इसे एक्सफोलिएशन भी कहा जाता है व इसे अपने नियमित स्किन केयर रूटीन में शामिल करना चाहिए. फेस स्क्रब द्वारा आप मेकअप के उन छिपे कणों को भी हटा सकती हैं, जो रोमछिद्रों में घुस जाते हैं और सामान्य तौर पर क्लींजर या पानी से साफ करने से नहीं हटते. कुछ फेस स्क्रब्स में मास्चराइजर भी होता है, जिस से त्वचा को पोषण भी मिलता है.

कैसे करें स्क्रबिंग

स्क्रब्स में कुछ ऐसे खुरदरे पदार्थ होते हैं, जिन्हें त्वचा पर रगड़ने से मृत त्वचा की ऊपरी परत हट जाती है. स्क्रब को हाथों में ले कर उंगलियों की सहायता से भी आप लगा सकती हैं और कास्मेटिक पैड की सहायता से भी. इसे आप चाहे कैसे भी लगाएं, पर एक बात का ध्यान रखें कि स्क्रब को चेहरे पर गोलाकार घुमाते हुए हलके हाथों से लगाएं, साथ ही यह भी सुनिश्चित कर लें कि यह पूरे चेहरे और गरदन पर अच्छी तरह से लग जाए. स्क्रब करने के बाद चेहरे को पानी से धो कर मास्चराइज कर लें. फेस स्क्रब में बहुत सी चीजें शामिल की जा सकती हैं जैसे बैंबू फाइबर्स, ओटमील, चोकर, चीनी, फलोें का गूदा, मूंगफली के छिलके, अखरोट आदि. नमक, मिट्टी जैसी चीजें स्क्रब्स में इस्तेमाल नहीं की जातीं. एक अच्छे स्क्रब में कोई क्रीम, अच्छी क्वालिटी की खुशबू, एसेंशियल आयल, मास्चराइजर आदि भी होते हैं.

चेहरे पर स्क्रब लगाने से पहले उस का पैच टेस्ट जरूर कर लें. इस के लिए थोड़ा सा स्क्रब ले कर कलाई की अंदरूनी तरफ लगाएं. कलाई पर स्क्रब लगा कर थोड़ी देर रुकें और फिर साफ पानी से धो लें. यदि किसी प्रकार की खारिश, जलन न हो तभी इसे चेहरे पर लगाएं. स्क्रब की हमेशा थोड़ी मात्रा ही लें. इसे फेस पैक की तरह न लगाएं. यदि आप के चेहरे पर पिंपल्स हैं तो स्क्रबिंग न करें. रगड़ने व स्क्रब में मौजूद खुरदरी चीजों से आप के पिंपल्स फूट सकते हैं. हमेशा ऐसे स्क्रब्स ही इस्तेमाल करें, जिन में मौजूद स्क्रबिंग एजेंट घुलनशील हों, वरना वे रोमछिद्रों में फंस कर उन्हें बंद कर सकते हैं.

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घरेलू फेस स्क्रब्स

आयली स्किन के लिए

1/2 कप हरे चने मैश कर लें. उस में 1 बड़ा चम्मच दही व पानी मिला कर पेस्ट बना लें. इस से हलके हाथों से चेहरे को स्क्रब करें. ठंडे पानी से धो लें. साबुन न लगाएं.

1/2 कप चावल के आटे में 1/2 कप कच्चा पपीता मैश कर के मिला लें और इस में आधे नीबू का रस भी मिला लें. चेहरे को हलका गीला कर के इस पेस्ट से स्क्रब करें.

ड्राई स्किन के लिए

विटामिन ई आयल में 1 बूंद नीबू का रस और 1 बूंद ग्लिसरीन मिला लें. इस से चेहरे की मसाज कर के ठंडे पानी से धो लें.

1/2 चम्मच बादाम के चूरे में 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच गुलाबजल मिला कर लगा लें और फिर गीले कौटन पैड से साफ कर लें.

सामान्य त्वचा के लिए

आटे का चोकर या बारीक दलिया लें. उस में 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच दूध मिलाएं और चेहरे पर लगाएं. कुछ देर बाद हलके हाथों से रगड़ कर छुड़ा लें.

जेंटल फेस स्क्रब

3 चम्मच पिसे बादाम में 3 चम्मच ओटमील, 3 चम्मच मिल्क पाउडर, 2 चम्मच सूखी गुलाब की पत्तियां और बादाम का तेल मिला लें. इस मिश्रण को कांच के जार में भर कर रख लें और सप्ताह में 1 बार इस्तेमाल करें.

बाजार से रेडीमेड स्क्रब खरीदते समय ध्यान रखें कि स्क्रब अच्छी कंपनी का ही हो और उस में किसी भी प्रकार के हानिकारक रसायन न हों. चाहे स्क्रब घरेलू हो या रेडीमेड, सप्ताह में 1 बार इस का प्रयोग अवश्य करें.

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जबरन यौन संबंध पति का विशेषाधिकार नहीं

विवाह बाद पत्नी से जबरन सैक्स करने को बलात्कार कहा जाने वाला कानून बनाए जाने के खिलाफ जो बातें कही जा रही हैं वे सब धार्मिक नजरिए से कही जा रही हैं. इन का मकसद यह कहना है कि चूंकि हिंदू धर्म में विवाह एक पवित्र बंधन है, इसलिए वैवाहिक बलात्कार जैसी किसी बात के लिए यहां कोई जगह नहीं. जब से विवाहितों के बीच बलात्कार को ले कर चर्चा शुरू हुई तब से यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि रोजमर्रा की इस बहुत ही सहज, सरल व सामान्य बात को ले कर इतना शोर मचाने का कोई औचित्य नहीं है.

कभी न कभी हर महिला अपने सुख के लिए नहीं, मात्र पति की यौन संतुष्टि के लिए बिस्तर पर बिछती है. शादी को ले कर उस ने जो सपना बुना होता है वह चूरचूर हो जाता है. कई नवविवाहित युवतियों का पहली रात का अनुभव बड़ा दर्दनाक होता है. इतना कि सैक्स उन के लिए आनंद का नहीं, बल्कि डर का विषय बन कर रह जाता है. कुछ इस डर को रोज झेलती हैं और फिर यह उन की आदत में शुमार हो जाता है.

दरअसल, इस तरह का मामला तब तकलीफदेह हो जाता है जब किसी महिला के पति का संभोग हिंसक यौन हमले का रूप ले लेता है और वह महिला महज यौन सामग्री के रूप में तबदील हो जाती है. वह असहाय हो जाती है. तब जाहिर है, आपसी परिचय और भरोसे की नींव हिल जाती है. कुछ मामलों में वजूद का आपसी टकराव ही ऐसे संबंध की सचाई बन कर रह जाता है. कुछ ज्यादा ही सोचता है. एक लड़की का बदन किस हद तक खुला रहना शोभनीय या अशोभनीय है या फिर किसी बच्ची के लड़की से युवती बनने के रास्ते में कौन से शारीरिक संबंध सामाजिक रूप से स्वीकृत हैं, इस सब के बारे में सामाजिक व धार्मिक फतवे जारी किए जाते हैं. जबकि इसी समाज में चाचा, मामा और यहां तक कि पिता और भाइयों द्वारा भी लड़कियां बलात्कार की शिकार हो रही हैं. तो क्या यह भी धर्म और संस्कृति का हिस्सा है? बहरहाल, अब एक और सांस्कृतिकसामाजिक फतवे को सरकारी स्वीकृति दिलाने की कोशिश की जा रही है और यह स्वीकृति है वैवाहिक संबंध में बलात्कार को ले कर. कहा जा रहा है कि धर्म के अनुसार हुए विवाह में बलात्कार की गुंजाइश नहीं है.

गौरतलब है कि निर्भया कांड के बाद वर्मा कमीशन द्वारा वैवाहिक बलात्कार को बलात्काररोधी कानून में शामिल करने की सिफारिश से हड़कंप मच गया. मोदी सरकार में मंत्री रहे हरिभाई पारथीभाई चौधरी ने साफसाफ शब्दों में कहा है कि वैवाहिक रिश्ते में बलात्कार जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती. इस के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ किया कि विधि आयोग ने बलात्कार संबंधी कानून में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की सूची में शामिल नहीं किया है और न ही सरकार ऐसा करने की सोच रही है.

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अंदेशा यह है कि इस से परिवारों के टूटने का खतरा बढ़ जाएगा. इस खतरे को टालने के लिए हमारा समाज पत्नियों की बलि लेने को तैयार है. तर्क यह भी कि भारतीय समाज में केवल विवाहित यौन संबंध को ही सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है और इस पर पत्नी और पति दोनों का ही समान अधिकार है. अर्द्धनारीश्वर की अवधारणा भी तो भारत की धार्मिक संस्कृति का हिस्सा है. लेकिन ऐसा होता कहां है? ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यौन संबंध बनाने में पत्नी की इच्छा न होने की स्थिति में क्या ऐसा करने का अधिकार अकेले पति को मिल जाता है? जबरन संबंध बनाने का अधिकार अकेले पति  का कैसे हो सकता है? पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने को आखिर क्यों बलात्कार नहीं माना जाना चाहिए?

आइए, जानें कि भारतीय कानून इस बारे में क्या कहता है. कोलकाता हाई कोर्ट के वकील भास्कर वैश्य का कहना है कि भारतीय कानून के तहत पति को केवल 2 तरह के मामलों में बलात्कारी कहा जा सकता है- पहला अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम हो और पति उस के साथ जबरन यौन संबंध बनाए तो कानून की नजर में यह बलात्कार है और दूसरा, पतिपत्नी के बीच तलाक का मामला चल रहा हो, कानूनी तौर पर पतिपत्नी के बीच विच्छेद यानी सैपरेशन चल रहा हो और पति पत्नी की रजामंदी के बगैर जबरन यौन संबंध बनाता है तो इसे भारतीय कानून में बलात्कार कहा गया है. इस के लिए सजा का प्रावधान भी है. हालांकि इन दोनों ही मामलों में पति को जो सजा सुनाई जा सकती है वह बलात्कार के लिए तय की गई सजा की तुलना में कम ही होती है.

विवाह की पवित्रता पर सवाल

सुनने में यह भी बड़ा अजीब लगता है कि विवाहित महिला कानून यौन संबंध के लिए पति को अपनी सहमति देने को बाध्य है यानी पत्नी यौन संबंध के लिए पति को मना नहीं कर सकती. कुल मिला कर यहां यही मानसिकता काम करती है कि चूंकि हमारे यहां विवाह को पवित्र रिश्ते की मान्यता प्राप्त है और इस का निहितार्थ संतान पैदा करना है, इसलिए पतिपत्नी के बीच यौन संबंध बलात्कार की सीमा से बाहर की चीज है. तब तो इस का अर्थ यही निकलता है कि यौन संबंध बनाने की पति की इच्छा के आगे पत्नी की अनिच्छा या उस की असहमति कानून की नजर में गौण है.

ऐसे में यह कहावत याद आती है कि मैरिज इज ए लीगल प्रौस्टिट्यूशन यानी पत्नी का शरीर रिस्पौंस करे या न करे पति के स्पर्श में प्रेम की छुअन का उसे एहसास मिले या न मिले पति की जैविक भूख ही सब से बड़ी चीज है. यह बात दीगर है कि जब प्रेमपूर्ण स्पर्श पर पति की जैविक भूख हावी हो जाती है तब यह स्थिति किसी भी पत्नी के लिए किसी अपमान से कम नहीं होती. जाहिर है, सभी विवाह पवित्र नहीं होते. हमारे समाज में बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं, जिन के मन में कभी न कभी यह सवाल उठाता है कि क्या वाकई सैक्स पत्नियों के लिए भी सुख का सबब हो सकता है? जिन के भी मन में यह सवाल आया, उन के लिए शादी कतई पवित्र रिश्ता नहीं हो सकता. रवींद्रनाथ ठाकुर ने भी अपने एक अधूरे उपन्यास ‘योगायोग’ में वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा उठाया है. उन्होंने उपन्यास की नायिका कुमुदिनी के जरीए यही बताने की कोशिश की है कि सभी विवाह पवित्र नहीं होते. शादी के बाद पति मधुसूदन के साथ बिताई गई रात के बाद कुमुदिनी ने आखिर अपनी करीबी बुजुर्ग महिला से पूछ ही लिया कि क्या सभी पत्नियां अपने पति को प्यार करती हैं?

गौरतलब है कि यह उपन्यास 1927 में लिखा गया था. जाहिर है, वैवाहिक बलात्कार इस से पहले एक सामाजिक समस्या रही होगी और नारीवादी रवींद्रनाथ ठाकुर ने इस समस्या को अपने इस उपन्यास में बड़ी शिद्दत से उठाया है.

वैवाहिक बलात्कार और राजनेता

वैवाहिक बलात्कार पर यूनाइटेड नेशंस पौप्यूलेशन फंड का एक आंकड़ा कहता है कि भारत में विवाहित महिलाओं की कुल आबादी की तीनचौथाई यानी 75% महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में अकसर बलात्कार का शिकार होती हैं. मजेदार तथ्य यह है कि आज भी वैवाहिक बलात्कार के आंकड़े पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं. अगर इस से संबंधित आंकड़े उपलब्ध होते तो समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाना और भी सहज होता, कभीकभार ही कोई मामला दर्ज होता है. विश्व के ज्यादातर देशों में वैवाहिक बलात्कार की गिनती दंडनीय अपराधों में होती है. यूनाइटेड नेशंस पौप्यूलेशन फंड के इस आंकड़े के आधार पर ही डीएमके सांसद कनीमोझी ने भी बलात्कार विरोधी कानून में बदलाव की मांग की थी. इसी मांग के जवाब में मोदी सरकार में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री हरिभाई पारथी ने बयान दिया कि वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा भारतीय संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था, मूल्यबोध और धार्मिक आस्था के अनुरूप नहीं है. जाहिर है, 16 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में निर्भया कांड की जांच के लिए गठित किए गए वर्मा कमीशन की रिपोर्ट की हरिभाई पारथी ने अनदेखी कर के बयान दिया था. गौरतलब है कि वर्मा कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में वैवाहिक बलात्कार को भी बलात्कार विरोधी कानून में शामिल करने की सिफारिश की थी. हालांकि हमारा बलात्कार संबंधी कानून तो यही कहता है कि यौन संबंध बनाने में महिला की सहमति न हो तो उस की गिनती बलात्कार में होगी. लेकिन पति द्वारा बलात्कार को इस से जोड़ कर देखने में सरकार को भी गुरेज है.

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शादी एकतरफा यौन संबंध की छूट नहीं

इस विषय पर आम चर्चा के दौरान मध्य कोलकाता में एक डाकघर में कार्यरत संचिता चक्रवर्ती बड़ी ही बेबाकी के साथ कहती हैं कि कानून की बात दरकिनार कर दें. जहां तक यौन संबंध में महिला की सहमति का सवाल है तो उस का निश्चित तौर पर अपना महत्त्व है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता. विवाह का प्रमाणपत्र इस महत्त्व को कतई कम नहीं कर सकता. यौन संबंध में पतिपत्नी दोनों अगर बराबर के साझेदार हों तो वह सुख दोनों के लिए अवर्णनीय होगा. विवाह बंधन जबरन यौन संबंध का लाइसैंस किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता.

संचिता कहती हैं कि मोदी सरकार में मंत्री के बयान की बात करें तो उस से तो यही लगता है कि उन के हिसाब से भारतीय संस्कृति में पत्नी की सहमति के बगैर यौन संबंध बनाने की पति को छूट है. भारत में विभिन्न संस्कृतियों के लोगों का वास है. तथाकथित भारतीय संस्कृति में विवाहित महिला पुरुष की बांदी है, भोग की वस्तु है. इसीलिए वैवाहिक बलात्कार उन की तथाकथित भारतीय संस्कृति में लागू नहीं होता. अमेरिका के शिकागो में एक अस्पताल में कार्यरत भारतीय मूल की सुष्मिता साहा का कहना है कि इस विषय को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और वैवाहिक बलात्कार पर सख्त कानून होना ही चाहिए. आज भारत में जिस संस्कृति की दुहाई दी जा रही है, वही स्थिति कभी ब्रिटेन या न्यूयौर्क में थी. पर अब वहां वैवाहिक बलात्कार के बढ़ते मामलों को देखते हुए कड़े कानून बनाए गए हैं. फिर भारत में यह क्यों नहीं संभव हो सकता?

सुष्मिता कहती हैं, ‘‘जबरन यौन संबंध पति का विशेषाधिकार उसी तरह नहीं हो सकता, जिस तरह विवाह का प्रमाणपत्र यौन हिंसा की छूट नहीं देता. इसलिए वैवाहिक बलात्कार भी दरअसल दूसरे बलात्कार की ही तरह यौन हिंसा का ही एक मामला है, ऐसा न्यूयौर्क के अपील कोर्ट ने अपने बयान में कहा था. लेकिन अगर एक पत्नी के नजरिए से देखें तो वैवाहिक बलात्कार अन्य बलात्कार से इस माने में अलग है कि यहां यौन हिंसा को महिला का सब से करीबी व्यक्ति अंजाम देता है. यही बात किसी पत्नी को जीवन भर के लिए झकझोर देती है.

विवाह और यौन स्वायत्तता

भारतीय संस्कृति में पारंपरिक विवाह के तहत लड़कालड़की की पारिवारिकसामाजिक हैसियत को देखपरख कर वैवाहिक रिश्ते तय होते हैं. ऐसे रिश्ते में जाहिर है परस्पर प्रेम व मित्रता शुरुआत में नहीं होती है. हालांकि कुछ समय के बाद पतिपत्नी के बीच प्रेम का रिश्ता बन जाता है. पर ऐसे ज्यादातर विवाह एकतरफा यौन स्वायत्तता का मामला ही होते हैं. मोदी सरकार के मंत्री ने जिस भारतीय संस्कृति की बात की है उस में नारीजीवन की इसी सार्थकता का प्रचार सदियों से किया जाता रहा है और इस संस्कृति में औरत पुरुष के खानदान के लिए बच्चे पैदा करने का जरीया और पुरुष के लिए यौन उत्तेजना पैदा करने की खुराक मान ली गई है.हमारी परंपरा में लड़कियां अपने मातापिता को खुल कर सब कुछ कहां बता पाती हैं? खासतौर पर नई शादी का ‘लव बाइट’ आगे चल कर पति का ‘वायलैंट बाइट’ बन जाए तो शादी के नाम पर लड़की अकसर अपने भीतर ही भीतर घुट कर रह जाती है. माना ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता है.

2013 में दिल्ली में पारंपरिक विवाह के बाद नवविवाहित जोड़ा हनीमून के लिए बैंकौक पहुंचा. हनीमून के दौरान लड़की के साथ उस के पति पुनीत ने क्रूरता की तमाम हदें पार कर के बलात्कार किया. लौट कर लड़की ने पुलिस में शिकायत दर्ज की. पुलिस ने दीनदयाल अस्पताल में लड़की की जांच करवाई तो बलात्कार की पुष्टि हुई. इस के बाद भारतीय दंड विधान की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दायर किया. साफ है कि वैवाहिक बलात्कार पर हमारा कानून एकदम से खामोश भी नहीं है. इस के लिए भी हमारे यहां प्रावधान है. भारतीय दंड विधान की घरेलू हिंसा की धारा 498ए के तहत शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न और क्रूरता के लिए सजा का प्रावधान है. इसी धारा के तहत वैवाहिक बलात्कार का निदान महिलाएं ढूंढ़ सकती हैं.

अन्य देशों की स्थिति

चूंकि विकास और सभ्यता एक निरंतर प्रक्रिया है, इसीलिए दुनिया के बहुत सारे देशों में वैवाहिक बलात्कार के लिए कोई कानून नहीं था. लेकिन विमन लिबरेशन ने महिलाओं को अपने अधिकार के लिए आवाज बुलंद करना सिखाया. लंबी लड़ाई के बाद सफलता भी मिली. दोयमदर्जे की स्थिति में बदलाव आया. कहा जाता है कि आज दुनिया के 80 देशों में वैवाहिक बलात्कार के लिए कानूनी प्रावधान हैं. बहरहाल, दुनिया में वैवाहिक बलात्कार को ले कर चर्चा ने तब पूरा जोर पकड़ा जब 1990 में डायना रसेल की एक किताब ‘रेप इन मैरिज’ प्रकाशित हुई. इस किताब में डायना रसेल ने समाज को अगाह करने की कोशिश की है कि वैवाहिक जीवन में बलात्कार को पति के विशेषाधिकार के रूप में देखा जाना पत्नी के लिए न केवल अपमानजनक है, बल्कि महिलाओं के लिए एक बड़ा खतरा भी है.

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2012 में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की आयुक्त भारतीय मूल की नवी पिल्लई ने कहा कि जब तक महिलाओं को उन के शरीर और मन पर पूरा अधिकार नहीं मिल जाता, जब तक पुरुष और महिला के बीच गैरबराबरी की खाई को पाटा नहीं जा सकता. महिला अधिकारों का उल्लंघन ज्यादातर उस के यौन संबंध और गर्भधारण से जुड़ा हुआ होता है. ये दोनों ही महिलाओं का निजी मामला है. कब, कैसे और किस के साथ वह यौन संबंध बनाए या कब, कैसे और किस से वह बच्चा पैदा करे, यह पूरी तरह से महिलाओं का अधिकार होना चाहिए. यह अधिकार हासिल कर के ही कोई महिला सम्मानित जीवन जी सकती है. 1991 में ब्रिटेन की संसद में वैवाहिक संबंध में बलात्कार का मामला उठाया गया था, जो आर बनाम आर के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है. ब्रिटेन संसद के हाउस औफ लौर्ड्स में कहा गया कि चूंकि शादी के बाद पति और पत्नी दोनों समानरूप से जिम्मेदारियों का वहन करते हैं, इसलिए पति अगर पत्नी की सहमति के बिना यौन संबंध बनाता है तो अपराधी करार दिया जा सकता है. इस से पहले 1736 में ब्रिटेन की अदालत के न्यायाधीश हेल ने एक मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया था कि शादी के बाद सभी परिस्थितियों में पत्नी पति से यौन संबंध बनाने को बाध्य है. उस की शारीरिक स्थिति कैसी है या यौन संबंध बनाने के दौरान वह क्या और कैसा महसूस कर रही है, इन बातों के इसलिए कोई माने नहीं हैं, क्योंकि शादी का अर्थ ही यौन संबंध के लिए मौन सहमति है. हेल के इस फैसले को ब्रिटेन में 1949 से पहले कभी किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा. लेकिन 1949 में एक पति को पहली बार पत्नी के साथ बलात्कार का दोषी ठहराया गया.

ब्रिटेन के अलावा यूरोप के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार दंडनीय अपराध है. अमेरिका, आस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देशों में भी इस के लिए कानून बना कर इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है. नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भी पत्नी की रजामंदी के बगैर संभोग को बलात्कार करार दिया है. कोर्ट ने अपनी इस घोषणा का आधार हिंदू धर्म को ही बताते हुए कहा है कि हिंदू धर्म में पति और पत्नी की आपसी समझ को ही महत्त्व दिया गया है. इसलिए यौन संबंध बनाने में पति पत्नी की मरजी की अनदेखी नहीं कर सकता. अब जब गरीब राष्ट्र नेपाल घोषित रूप से भी हिंदू राष्ट्र है, वैवाहिक बलात्कार के लिए महिलाओं के पक्ष में कानून बना सकता है तो भारत में क्या दिक्कत है?

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क्या परफैक्ट होते हैं नुक्स निकालने वाले पति

रतिमा पोस्टग्रैजुएट है. शक्लसूरत भी ठीकठाक है. खाना भी अच्छा बनाती है. व्यवहारकुशल भी है. चाहे रिश्तेदार हों, पड़ोसी हों या फिर सहेलियां सभी में वह लोकप्रिय है. मगर पति की नजरों में नहीं. क्यों? यह सवाल सिर्फ प्रतिमा के लिए ही नहीं है, बल्कि ऐसी बहुत सी महिलाओं के लिए है, जिन की आदतें, तौरतरीके, रहनसहन उन के पति के लिए नागवार होते हैं, तो क्या हमेशा अपनी पत्नी में नुक्स निकालने वाले पति परफैक्ट होते हैं? हर व्यक्ति का अपनाअपना स्वभाव, तौरतरीके, नजरिया और पसंद होती है. ऐसे में हम यह सोचें कि फलां हमारी तरह नहीं है इसलिए परफैक्ट नहीं है, तो यह ज्यादती होगी. यह जरूरी नहीं कि जिस में हम नुक्स निकालते हैं उस में कोई गुण हो ही न.

प्रतिमा को ही लें. वह अच्छा खाना बनाती है. व्यवहारकुशल भी है. वहीं उस के पति न तो व्यवहारकुशल हैं और न ही उन में कोई बौद्धिक प्रतिभा है, जिस से वे दूसरों से खुद को अलग साबित कर सकें. सिवा इस के कि वे कमाते हैं. कमाने को तो रिकशे वाला भी कमाता है. प्रतिमा स्वयं घर पर ट्यूशन कर के क्व 8-10 हजार कमा लेती है. सुबह 5 बजे उठना. बच्चों के लिए टिफिन तैयार करना, उन्हें तैयार करना, घर को इस लायक बनाना कि शाम को पति घर आए तो सब कुछ व्यवस्थित लगे. शाम को बच्चों को खुद पढ़ाना. अगर पति कभी पढ़ाने लगें तो पढ़ाने पर कम पिटाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं.

अत्यधिक अपेक्षा

पति महोदय किसी भी हालत में सुबह 7 बजे से पहले नहीं उठते हैं. वजह वही दंभ कि मैं कमाता हूं. मुझ पर काम का बोझ है. सुबह पहले उठना और रात सब से बाद में सोना प्रतिमा की दिनचर्या है. उस पर पति आए दिन उस के काम में मीनमेख निकालते रहते हैं. उस की हालत यह है कि दिन भर खटने के बाद जैसे ही शाम पति के आने की आहट होती है वह सहम जाती है कि क्या पता आज किस काम में नुक्स निकालेंगे? पति महोदय आते ही बरस पड़ते हैं, ‘‘तुम दिन भर करती क्या हो? बच्चों के कपड़े बिस्तर पर पड़े हैं. अलमारी खुली हुई है. आज सब्जी में ज्यादा नमक डाल दिया था. मन किया फेंक दूं.’’

सुन कर प्रतिमा का मन कसैला हो गया. यह रोजाना का किस्सा था. कल अलमारी बंद थी. आज नहीं कर सकी, क्योंकि उसी समय पड़ोसिन आ गई थी. ध्यान उधर बंट गया. बच्चे की कमीज का बटन निकल गया था. उसे लगाने के लिए उस ने उसे बिस्तर पर रखा था. अब कौन सफाई दे. सफाई देतेदेते शादी के 10 साल गुजर गए, पर पति की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. कभीकभी प्रतिभा की आंखें भीग जातीं कि उस की भावनाओं से पति को कुछ लेनादेना नहीं. उन्हें तो सब कुछ परफैक्ट चाहिए.

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पति की तानाशाही

सवाल उठता है कि परफैक्ट की परिभाषा क्या है? सब्जी में नमक कम है या ज्यादा कैसे परफैक्ट माना जाएगा? हो सकता है कि जितना नमक पति को पसंद हो उतना प्रतिमा को नहीं. प्रतिमा ही क्यों उस के घर आने वाले हर मेहमान को प्रतिमा का बनाया खाना बेहद पसंद आता है. ऐसे में पति की परफैक्शन की परिभाषा को किस रूप में लिया जाए? क्या यह पति की तानाशाही नहीं कि जो वे कह रहे हैं वही परफैक्ट है?

नुक्स निकालने की आदत एक मनोविकार है. मेरी एक परिचिता हैं. वे भी ऐसे ही मनोविकार से ग्रस्त हैं. चैन से बैठने की उन की आदत ही नहीं है. जहां भी जाएंगी सिवा नुक्स के उन्हें कुछ नहीं दिखता. नजरें टिकेंगी तो सिर्फ नुक्स पर. किसी की आईब्रो में ऐब नजर आएगा, तो किसी की लिपस्टिक फैली नजर आएगी. किसी की साड़ी पर कमैंट करेंगी. हर आदमी एक जैसा नहीं होता. बेशक प्रतिमा के पति को सब कुछ परफैक्ट चाहिए परंतु उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि अकेली प्रतिमा से चूक हो सकती है. इस का मतलब यह नहीं कि उसे डांटाफटकारा जाए. औफिस और घर में फर्क होता है. औफिस में सफाई के लिए कर्मचारी रखे जाते हैं. मगर घर में पत्नी के हिस्से तरहतरह के काम होते हैं. हर काम में वह समान रुचि दिखाए, यह संभव नहीं. इसलिए परफैक्शन के लिए पति का भी कर्तव्य होता है कि पत्नी के काम में हाथ बंटाए.

कलह की शुरुआत

किसी भी चीज की अति बुरी होती है. परफैक्शन के चलते घरघर नहीं, बल्कि जेलखाना बन जाता है. ऐसे लोगों के घर जल्दी कोई जाता नहीं. अगर पत्नी के मायके के लोग चले आएं, तो पति महोदय सामने तो कुछ नहीं कहेंगे, पर उन के जाते ही उलाहना देना शुरू कर देंगे, ‘‘तुम्हारे भाईबहनों को तमीज नहीं है. दो कौड़ी की मिठाई उठा लाए थे.’’ मायके के सवाल पर हर स्त्री आगबबूला हो जाती है. हंसमुख स्वभाव की प्रतिमा की भी त्योरियां चढ़ जातीं. फिर शुरू होती कलह.

नुक्स के चलते पति से मिली लताड़ का गुस्सा पत्नियां अपने बच्चों पर निकालती हैं. वे अकारण उन्हें पीटती हैं, जिस से बच्चों की परवरिश पर बुरा प्रभाव पड़ता है. धीरेधीरे पत्नी के स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी आ जाता है. वह अपनी खूबियां भूलने लगती है. प्राय: ऐसी औरतें डिप्रैशन की शिकार होती हैं, जो घरपरिवार के लिए घातक होता है. क्या पति महोदय इस बारे में सोचेंगे? पति के नुक्स निकालने की आदत की वजह से जब कभी प्रतिमा मायके आती है, तो ससुराल जाने का नाम नहीं लेती. जाएगी तो फिर उसी दिनचर्या से रूबरू होना पड़ेगा. जब तक पति औफिस नहीं चले जाते तब तक उस का जीना हराम किए रहते हैं. वह बेचारी दिन भर घर समेटने में जुटी रहती है ताकि पति को शिकायत का मौका न मिले. मगर पति महोदय तो दूसरी मिट्टी के बने हैं. शाम घर में घुसते ही नुक्सों की बौछार कर देंगे.

समझौता करना ही पड़ता है

नुक्स निकालने वाले व्यवहारकुशल नहीं होते. उन के शुभचिंतक न के बराबर होते हैं. नकारात्मक सोच के चलते वे सभी में अलोकप्रिय होते हैं. माना कि पति महोदय परफैक्ट हैं, तो क्या बाकी लोग अयोग्य और नकारा हैं? प्रतिमा की बहन एम.एससी. है. स्कूल में पढ़ाती है. अच्छाखासा कमाती है. वहीं उस के पति भी सरकारी कर्मचारी हैं. घर जाएं तो कुछ भी सिस्टेमैटिक नहीं मिलेगा. तो भी दोनों को एकदूसरे से शिकायत नहीं है. वे लोग सिर्फ काम की प्राथमिकता पर ध्यान देते हैं. जो जरूरी होता है उस पर ही सोचते हैं. रही घर को ठीकठाक रखने की बात तो वह समय पर निर्भर करता है. काम में परफैक्शन होना अच्छी बात है. मगर इस में टौर्चर करने वाली बात न हो. जरूरी नहीं कि हर कोई हमारी सोच का ही हो खासतौर पर पतिपत्नी का संबंध. समझौता करना ही पड़ता है. प्रतिमा साड़ी का पल्लू कैसे ले, यह उस का विषय है. वह किसी से कैसे बोलेबतियाए यह उस पर निर्भर करता है. पति महोदय अपने हाथों जूतों पर पौलिश तक नहीं करते. यह काम भी प्रतिमा को ही करना पड़ता है. उस में भी नुक्स कि तुम ने ठीक से चमकाए नहीं. प्राय: यह काम पति खुद करता है.

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पत्नी ही क्यों पति को अपने बच्चों की आदतों में भी हजार ऐब नजर आते हैं. पति को पत्नी के हर काम में टोकाटाकी से बाज आना चाहिए वरना पत्नी, बच्चों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है. उन्हें हमेशा भय रहता है कि वे कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं?

क्या पति के काम में नुक्स नहीं निकाला जा सकता? खुद उन का बौस उन के काम में नुक्स निकालता होगा. पति इसलिए चुप रहते होंगे कि उन्हें नौकरी करनी है. ऐसे ही प्रतिमा चुप इसलिए रहती है कि उसे कमाऊ पति के साथ जीवन गुजारना है.

खुद पहल करें

मिस्टर परफैक्शनिस्ट के नाम से मशहूर आमिर खान की फिल्म ‘धोबीघाट’ असफल रही. गलतियां वही करता है, जो काम करता है. खाना खाते समय चावल का दाना गिर जाए इस का मतलब यह नहीं कि उसे खाना खाने का तरीका नहीं आता. नुक्स निकालने वाले पति अगर खाने पर साथ बैठेंगे तो चैन से खाना भी नहीं खाने देंगे. कभी ठीक से कौर न उठाने के लिए टोकेंगे, तो कभी पानी का गिलास न होने पर टोकेंगे. वे खुद पानी का गिलास रख कर पत्नी का काम हलका नहीं करेंगे. गृहस्थ जीवन में यह सब होना आम बात है. इसे नुक्स नहीं समझना चाहिए. एक औरत किसकिस पर ध्यान दे? कमी रह ही जाती है. फिर हर आदमी एक जैसा नहीं होता. अगर हमें गृहस्थ जीवन में कुछ खास चाहिए, तो खुद पहल करनी होगी. पत्नी को मुहरा बना कर उसे डांटनाडपटना खुदगर्जी है. पतियों को यह सोचना चाहिए.

घर की सफाई का रखें ख्याल

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है तथा इस की शुरुआत घर से ही होती है,जहां हम अपना अत्यधिक समय व्यतीत करते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े दर्शाते हैं कि विश्व में लगभग 3.2% मृत्यु एवं 4.2% अशक्तता असुरक्षित जल, साफसफाई एवं स्वच्छता के कारण होती है, जिन में से 99.8% घटनाएं विकासशील देशों में होती हैं संक्रमण से संबंधित अधिकांश अनुसंधान, अस्पतालों, डे-केअर सुविधाओं तथा स्कूल तक ही सीमित रहे हैं और घरों पर बहुत कम ध्यान दिया गया है.

हालांकि घर में रोगाणुओं के पनपने एवं संक्रमण को फैलाने के लिए प्रचुर अवसर उपलब्ध रहते हैं. घर के वातावरण के अलावा परिवार के किसी सदस्य के द्वारा बाहर से संक्रमण के फलस्वरूप अन्य सदस्यों में भी इस के फैलने के अवसर बढ़ जाते हैं. अत: यह जानना आवश्यक हो जाता है कि घर में संक्रमण फैलने के कौनकौन से स्थान हैं तथा स्वच्छ वातावरण बना कर इन पर कैसे नियंत्रण रखा जा सकता है.

संक्रामक रोग जीवाणुओं, विषाणुओं अथवा प्रोटोजोआ संक्रमण के कारण उत्पन्न होते हैं. प्रमुख जीवाणुओं में सालमोनेला, कैम्पाइलोबैक्टर, ई-कोलि, स्टेफाइलोकोकस आदि शामिल हैं, जबकि कवक के अंतर्गत कैंडिडा, एस्परजिलस एवं विषाणुओं के अंतर्गत नोरोविषाणु, रोटाविषाणु, कोल्ड, फ्लू एवं मीजल्स आदि के विषाणु शामिल हैं. घर पर इन सब के उपस्थित रहने के अवसर रहते हैं.

खूबसूरत किचन

अकसर हम अपने घर के कमरों, खिड़कियों, दरवाजों की साफसफाई तो करते हैं लेकिन अपनी चमकदार टाइल्स और सुंदर, सुसज्जित बने किचन की सफाई की ओर ध्यान नहीं देते या यह सोच कर कि किचन में कौन  आएगा, किचन की सफाई को नजरअंदाज कर  जाते हैं. आप के इस प्रकार के विचार की वजह से ही आप अपने घर के सदस्यों और मेहमानों के बीच तारीफ पाने से वंचित रह जाती हैं. हैरान न हों, हम ले कर आए हैं आप के लिए कुछ खास टिप्स:

– किचन में जब भी प्रवेश करें, गैस को पोंछें. फिर किचन के फर्श पर झाड़ूपोंछा दोनों लगाएं. इस से आप दिन भर ताजगी महसूस करेंगी. कभीकभी फ र्श को फिनाइल से भी धोएं.

– किचन में प्रयोग की जाने वाली चप्पल अलग रखें.

– खाना बनाते समय किचन की खिड़की और दरवाजे को हमेशा खुला रखें.

– किचन में यदि नल नहीं है और आप का किचन छोटा है तो खाने की तैयारी जैसे सब्जी काटने, आटा गूंधने आदि कामों को अलग स्थान पर पूर्ण कर किचन में खाना बनाने जाएं.

– किचन में मकड़ी का जाला दिखाई दे तो उस की तुरंत सफाई करें अन्यथा वह आप के खाने को नुकसान पहुंचा सकता है.

– किचन में कभी भी न खाएं क्योंकि चूहे, काकरोच आदि कीट फर्श पर गिरे खाद्यपदार्थ को इधरउधर ले जा कर नुकसान पहुंचाते हैं.

– खाना बनाने के बाद खाने को सदैव ढककर रखें.

– यदि आप किचन में बरतन साफ करती हैं तो खाना बनाने के बाद बरतनों को साफ कर के रखें ताकि मक्खी आदि का आगमन न हो.

– किचन में प्रयोग में आने वाले चीनी, चाय, मसाले आदि के डब्बों को महीने में एक बार खाली कर के उन्हें अवश्य साफ कर लें, साथ ही मसाले, चाय, चीनी आदि का इस्तेमाल सदैव चम्मच से करें.

– यदि कड़ाही में तलने वाला व्यंजन बनाएं,तो उसे जालीदार कलछी से निकालें ताकि तेल बाहर न गिरे और सफाई में भी दिक्कत न हो.

– कभीकभी महिलाएं किचन के शैल्फ पर ही रोटियां बेलती हैं, लेकिन उस के बाद उसे साफ नहीं करतीं. रोटियां बनाने के बाद वहां गीले कपड़े से अवश्य सफाई करें.

– किचन में यदि सब्जी काटने और मसाला तैयार करने के कार्यों को करें तो छिलके नियमित स्थान पर और मिक्सी को धो कर रखना न भूलें.

– खाना पूरा बनाने के बाद गैस और किचन की पुन: सफाई करना कभी न भूलें.

– किचन में प्रयोग की गई चीजों को सदैव नियमित स्थान पर रखें ताकि आप की अनुपस्थिति में आप की किचन में किसी को कोई दिक्कत न हो.

– किचन में सदैव ताजे फूल रखें ताकि आप जब भी वहां जाएं तो फूलों की तरह प्रफुल्लित मन से खाना बनाएं.

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खतरे का आकलन

खाद्यपदार्थों एवं उत्पादन से संबंधित वातावरण में सूक्ष्म जीवों के खतरे के नियंत्रण के लिए हेजार्ड एनालिसिस क्रिटिकल कंट्रोल प्वाइंट को प्रयोग किया गया है. घर के अंदर प्रदूषित खाद्यपदार्थ, संक्रमित व्यक्ति, पालतू जानवर, कीट रोगवाहक, कभीकभार प्रदूषित वायु तथा जल इन रोगाणुओं के प्राथमिक स्रोत होते हैं. अन्य दूसरे स्रोतों के अंतर्गत ऐसे स्थल, जहां पानी की अधिकता हो, जैसे सिंक, टायलेट, कपड़े धोने का स्थान आदि हैं, जो जीवाणुओं एवं कवकों को पनपने का मौका प्रदान करते हैं.

संक्रमण फैलाने के स्रोत

हाथों की स्वच्छता :

हाथों के संक्रमित होने से रोगाणु अन्य स्थलों तक पहुंच सकते हैं. हाथों को साबुन एवं गरम पानी से धोना चाहिए ताकि रोगाणु नष्ट हो जाएं. हाथों को ठीक तरह से सूखने देना चाहिए. बेहतर हो कि लिक्विड सोप या एंटीसेप्टिक सोप का प्रयोग हो. बिना धुले हाथों के कारण सालमोनेला, मीजल्स, ई-कोलि तथा स्टेफाइलोकोकस जैसे जीवाणु, रोटाविषाणु एवं नोरोविषाणु अन्य लोगों, सतहों तथा खाद्यपदार्थों में पहुंच सकते हैं. कुछ रोगाणु सीधे हाथ से मुंह एवं आंखों के रगड़ने से अन्य स्थलों पर पहुंच सकते हैं.

कपड़े तथा सफाई के साधनों की स्वच्छता :

कपड़ों, बरतन पोंछने के कपड़ों, पोंछे तथा अन्य साधनों में भी रोगाणुओं के पनपने का बेहतर वातावरण होता है. इन के द्वारा क्रास प्रदूषण का उच्च खतरा बना रहता है. इन को हाथ से छूने पर हाथों में प्रदूषण अथवा बरतनों को पोंछने पर वहां संक्रमण हो सकता है. कपड़े धोने के लिए बाजार में तरहतरह के डिटरजेंट, ब्लीचिंग एजेंट आदि उपलब्ध हैं. ये क्लोरीन बेस्ड, सोडियम हाइपोक्लोराइड या आक्सीजन बेस्ड होते हैं.

सामान्य हाथों के संपर्क में आने वाली सतह :

घरों में बहुत सी ऐसी सतहें होती हैं जिन्हें हमें बारबार हाथ से छूना पड़ता है जैसे- पानी के नल, टायलेट हैंडल, टायलेट सीट कवर, कपबोर्ड, ओवन, फ्रिज आदि के हैंडल, खिलौने, टेलीफोन, कंप्यूटर, सब्जी या मीट आदि काटने के बोर्ड आदि. इन सतहों पर रोगाणु काफी समय तक जीवित रह सकते हैं. इन सतहों को हाथ से छूने पर ये दूसरे लोगों व अन्य जगहों पर फैल सकते हैं.

टायलेट, पैड्स एवं मैट्स की साफ-सफाई :

यह स्थान संक्रमण फैलने के मुख्य स्रोत होते हैं. अत: बेहतर है कि इन की सफाई के समय दस्तानों का प्रयोग किया जाए. बाथरूम को भी साफसफाई के पश्चात हवा में सूखने देना चाहिए. सफाई के लिए पानी में क्लोरीन का प्रयोग करना चाहिए. नैपीज को उचित स्थान पर रखना चाहिए तथा डिस्पोजेबल नैपीज का प्रयोग करना चाहिए.

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फर्श एवं सजावट के साधनों की  स्वच्छता :

सूक्ष्म जीव घर के फर्श पर प्राय: जूतेचप्पलों, पालतू जानवरों के पैरों आदि से प्रवेश कर जाते हैं. वायु द्वारा भी प्रदूषण का खतरा रहता है. धूलकण परदों व अन्य सामान पर जमा होते रहते हैं. डिसइन्फेक्शन के साथ फर्श की सफाई नियमित रूप से करनी चाहिए.

खाद्य संदूषण:

खाद्यपदार्थों के द्वारा संक्रमण का खतरा सर्वाधिक होता है, जिसे आम भाषा में फूड पौयजनिंग कहा जाता है. फूड (खाद्य) विषाक्तता जीवाणुओं, विषाणुओं, कवकों एवं प्रोटोजोआ के संक्रमण/प्रदूषण के द्वारा होती है. इस के अतिरिक्त जहरीले पादपों, रसायनों एवं कुछ खाद्यपदार्थों के प्रति एलर्जी के कारण भी संक्रमण हो सकता है. खाद्य विषाक्तता होने के प्रमुख कारणों में शामिल हैं- इस का ठीक से नहीं पकाया जाना, खाने को बहुत पहले से ही तैयार कर के रख देना, खाने को गलत तरीके से रखना, रसोई में प्रदूषण होना अथवा खाना बनाने वाले एवं उस को हैंडल करने वाले व्यक्ति का संक्रमित होना.

कई सब्जियों में प्रदूषित पानी से सिंचाई के कारण उन में अनेक प्रकार के रोगाणु प्रवेश कर जाते हैं. देखा गया है कि कच्चा सलाद खाने से कभीकभार टीनिया सोलियम का संक्रमण हो जाता है एवं सिस्टीसर्कोसिस जैसी गंभीर बीमारी उत्पन्न हो जाती है.अत: खाद्यपदार्थ की उचित देखभाल जरूरी है.

‘दीया और बाती हम’ की ‘संध्या’ ने इसलिए छोड़ी थी TV इंडस्ट्री

स्टार प्लस का पौपुलर सीरियल ‘दीया और बाती हम’ आज भी दर्शकों के दिलों पर राज करता है. वहीं इस सीरियल की लीड एक्ट्रेस दीपिका सिंह गोयल (Deepika Singh) भी फैंस के बीच काफी पौपुलर हैं. हालांकि अब वह टीवी की दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं. लेकिन अब उनके टीवी इंडस्ट्री छोड़ने की वजह सामने आई है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सीरियल छोड़ने की थी यह वजह

सीरियल ‘दीया और बाती हम’ में संध्या के किरदार से फैंस का दिल जीत चुकीं एक्ट्रेस दीपिका सिंह (Deepika Singh Goyal) अपनी फिटनेस से फैंस को प्रेरणा देती हुई नजर आती हैं. वहीं हाल ही के एक इंटरव्यू में एक्ट्रेस ने अपने टीवी इंडस्ट्री छोड़ने की वजह का खुलासा करते हुए कहा है कि ‘मैंने अपनी हेल्थ के चलते टीवी पर काम ना करने का फैसला लिया था. मैं दो साल से टीवी से दूर हूं. दरअसल काम के चलते मेरी बिगड़ती लाइफस्टाइल की वजह से काफी सारी हेल्थ प्रौब्लम होने लगी थी, जिसे मैनेज करना बहुत मुश्किल हो रहा था. इसीलिए मैंने तय कर लिया था कि मैं डेली सोप्स नहीं करूंगी. मैं तो बस प्रार्थना यही करती हूं कि शो सालों तक चले और हमें प्रॉफिट भी हो. लेकिन मैंने काफी समय इसमें निवेश किया है. ‘

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ये था हेल्थ प्रौब्लम का कारण

डेली सोप के चलते हेल्थ प्रौब्लम के लिए एक्ट्रेस ने कहा कि टीवी सीरियल्स के काम में आपको ये तक नहीं पता होता है कि आपको छुट्टी कब मिलेगी. इसीलिए मेरे लिए ये फैसला करना बिल्कुल भी आसान नहीं था. शुरुआत में मैने सोचा कि मैं कोई दूसरा प्रोजेक्ट शुरू करती हूं, जिससे शायद मैं हेल्थ प्रौब्लम मैनेज कर पाऊं. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. मैं अपने वेट को सिर्फ डाइटिंग से कंट्रोल नहीं कर सकती. वहीं ‘कवच’ सीरियल के दौरान मैंने नोटिस किया कि मैं अपनी हेल्थ पर ध्यान नहीं दे पा रही हूं. डाइट वगैरह के चक्कर में वर्कआउट भी नहीं हो पा रहा था. मैंने देखा कि इन वजहों से मेरा बीपी लो रहने लग गया. इन सबके चलते मैंने काफी दिक्कतों को सामना किया. फिर मैंने सोचा कि मुझे एक्टिंग छोड़ देनी चाहिए. हालांकि मैं शुक्रगुजार हूं कि टीवी इंडस्ट्री छोड़ने के बाद सोशल मीडिया ने मेरी लाइफ में पैसों की दिक्कत नहीं होने दी.’

बता दें, एक्ट्रेस दीपिका सिंह पांच साल तक ‘दीया और बाती हम’ सीरियल का हिस्सा रहीं, जिसे दर्शकों ने बेहद प्यार दिया. हालांकि साल 2016 में एक्ट्रेस ने शो को अलविदा कह दिया. वहीं तीन साल बाद यानी साल 2019 में ‘कवच महाशिवरात्रि’ से एक बार फिर दीपिका सिंह ने टीवी पर वापसी की.

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