Valentine’s Special: प्यार जताना भी है जरूरी

पतिपत्नी के नाजुक रिश्ते की डोर प्यार से बंधी होती है. वैवाहिक जीवन खुशीखुशी बीते, इस के लिए प्यार का इजहार बेहद जरूरी है. आपसी रिश्ते में गरमाहट बनी रहे, इस के लिए पतिपत्नी को एकदूसरे के सामने प्यार को जताते रहना चाहिए. वरिष्ठ पत्रकार विवेक सक्सैना ने लव मैरिज की है. वे अपनी पत्नी से बेहद प्यार करते हैं. अकसर वे शाम को अपनी पत्नी को लेने औफिस जाते हैं. महीने में 2-3 बार उन्हें शौपिंग के अलावा रेस्तरां में खाना खिलाने भी ले जाते हैं. नेपाल के पूर्व गृहमंत्री एवं सांसद खड़का ने दूसरी जाति में 26 साल पहले लव मैरिज की. जब भी उन्हें लगता है कि बहुत दिन हो गए हैं अपनी पत्नी से प्यार जताए, तो वे उन्हें न सिर्फ बेशकीमती तोहफा देते हैं, बल्कि दोनों नेपाल से 10-15 दिनों के लिए बाहर चले जाते हैं. उन का रोमांटिक पल दोनों को बेहद करीब लाता है.

यौवन को रखें जीवंत

प्यार जताने में उम्र कभी भी बाधक नहीं होती. अगर आप की उम्र ज्यादा लग रही हो, तो ब्यूटी पार्लर, योगाभ्यास को अपनाएं. थोड़े से प्रयास से आप युवा दिख सकती हैं. आत्मविश्वास से भरे कदम, पहननेओढ़ने का सलीका, बातव्यवहार का कशिश भरा अंदाज आप दोनों के आकर्षण को ही नहीं दर्शाता, बल्कि एकदूसरे के प्रति प्यार को भी जताता है. बस, दिनचर्या के रूटीन को झटकें और प्रेम में सराबोर हो जाएं. नए लुक को देख कर पति महोदय आप की मुसकराहट से आप के नैनों की शरारती भाषा को समझ कर प्यार जताना नहीं भूलेंगे.

प्यार भरा स्पर्श

जब भी आप के साथी को लगे कि आपस में प्यार के मिठास की चाशनी कम हो रही है, नीरसता आहिस्ताआहिस्ता कदम बढ़ा रही है, तो बहुत जरूरी होता है प्यार को सलीके से जताना. एकदूसरे को प्यार भरा स्पर्श करें, बांहों में भर कर आहिस्ताआहिस्ता सहलाएं, आलिंगन में कस लें, केशों को उंगलियों से सहलाएं, प्यार भरे चुंबन लें. आप का यह सौफ्ट प्यार जताना उन के दिल को छू लेगा. प्यार को महसूस कराने का एक तरीका यह भी है कि आप का चेहरा हमेशा खिलाखिला रहे. होंठों पर मुसकराहट हो. आप चाहे हाउसवाइफ हों या कामकाजी महिला, आप के कपड़ों, हाथों से प्याजलहसुन, मसाले की गंध न आए. औफिस से पति के आने पर सजसंवर कर प्यार भरे अंदाज में उन्हें मिलें.

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भेजें संदेश भी

ईमेल पर अपना प्यार भरा संदेश कभीकभी जरूर भेजें. एस.एम.एस. में ‘आई लव यू’, ‘विदाउट यू आई एम नथिंग’, ‘यू आर माई हार्ट बीट’ आदि रोमांटिक शब्दों से उन्हें प्यार का एहसास कराएं. उन्हें फोन कर के रेस्तरां, तो कभी पार्क, तो कभी पिक्चर हाल पर बुलाएं. ग्रीटिंग कार्ड में ‘मिसिंग यू’, ‘कम सून’, ‘लव यू’ लिख कर कार्ड पति महोदय के औफिस के बैग में रख दें. बैडरूम, ड्राइंगरूम, ड्रैसिंग टेबल पर ग्रीटिंग कार्ड ऐसे रखें कि उन की निगाह जरूर पड़े. आप का प्यार जताना उन्हें जरूर भाएगा.

पति की पसंद का ध्यान रखें

कहावत है कि पुरुषों के दिल तक पहुंचने का रास्ता पेट से हो कर ही जाता है. उन की मनपसंद डिश बनाएं, उन्हें प्यार से खिलाएं. कई बार फोन पर ही पूछ लें कि खाने में क्या बनाना है. उन्हें अच्छा लगेगा कि आप उन्हें कितना चाहती हैं और उन की पसंदनापसंद का ध्यान रखती हैं. हाईकोर्ट के सीनियर ऐडवोकेट आर.एम. तुफैल का मानना है कि पतिपत्नी को आपसी संबंधों में मजबूती के लिए एकदूसरे से प्यार का इजहार बारबार करते रहना चाहिए. वरना कभीकभी जीवन ऐसे मोड़ पर आ जाता है जहां दोनों एकदूसरे के प्रति निराश ही नहीं हो जाते, बल्कि प्यार के अभाव में लड़ाईझगड़े भी होने लगते हैं. डिप्रैशन के चलते तलाक तक की भी नौबत आ जाती है.

आलिंगन एवं चुंबन

प्यार जताने का यह सशक्त माध्यम है. भागमभाग भरी जिंदगी में कुछ पल अपने लिए निकालने चाहिए. औफिस जाते वक्त, बैडरूम या स्टडीरूम में जैसे ही वे आएं उन के होंठों पर चुंबन कर प्यार से सराबोर कर दें. उन्हें अपने नजदीक होने का एहसास कराएं. आप का यह रूप उन के अंदर नई ऊर्जा भर देगा.

खास होने का एहसास कराएं

एकदूसरे के चेहरे को पतिपत्नी बखूबी पढ़ लेते हैं. औफिस से आने पर पति को परेशान देख कर उन के साथ प्यार जताएं. उन के हाथों को अपने हाथों में ले कर उन की काबिलीयत की तारीफ करें. उन की बातें प्यार से सुनें. उन के आराम पर ध्यान दें. परेशानी को दूर करने व उन का मूड बदलने के लिए उन्हें रोमांटिक एहसास कराएं. अंतरंग पलों में ले जाएं. उन की परेशानी भी दूर होगी, साथ ही उन्हें प्यार का वह क्षण नया भी लगेगा.

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फूलों से करें स्वागत

प्यार का प्रतीक फूल भी हैं, जो आप के अंदर मस्ती और जोश को भर देते हैं. नईनई शादी के बाद औफिस से फोन करना, फूलों का गजरा लाना, जैसी छोटीछोटी चीजों को कतई नजरअंदाज न करें. कभीकभी पत्नी को चाय की प्याली के साथ लाल गुलाब दे कर ‘आई लव यू’ कहें. तकिए के पास फूलों की पंखुडि़यां बिखेर दें. बैडरूम में फूलों का गुलदस्ता रख कर कमरे में रोमैंटिक एहसास लाएं. अपने प्यार का इजहार कुछ अलग अंदाज में करें.

यौन इच्छाएं जाग्रत रखें

पतिपत्नी एकदूसरे की यौन इच्छाओं के प्रति स्नेहपूर्ण बर्ताव रखें. एकदूसरे को संतुष्ट रखें. आंखों से, मुसकरा कर अपनी भावनाओं को व्यक्त करें. बौद्धिक ही नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक संतुष्टि के लिए प्यार को बरकरार रखें. इसे कह कर जताएं.

उन्हें महक से करें मदहोश

अच्छी खुशबू वाला परफ्यूम लगाएं. खुशबू से वे आप तक खिंचे चले आएंगे. उन्हें भी अच्छी क्वालिटी का डियो या परफ्यूम दें.

एकदूसरे को उपहार दें

साथ रहते हुए एकदूसरे की पसंदनापसंद का पता लग ही जाता है. उन का मनपसंद गिफ्ट दे कर प्यार को जताएं.  

करें कुछ नया

आप दोनों एकदूसरे को चाहे बेहद प्यार क्यों न करते हों फिर भी कभीकभी ‘आई एम योर्स’, ‘प्लीज लव मी’, ‘हग मी’, ‘किस मी’ जैसे प्यार भरे शब्दों को कह कर अपने प्यार की गहराई को महसूस कराएं.

यदि पति कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं, तो उन्हें प्यारा सा कार्ड अवश्य दें.

घर में आतेजाते एकदूसरे को हलका स्पर्श करें, अपने चुलबुलेपन और शरारती प्यार को उन्हें दिखलाएं.

उन के बालों में कलर करें. उन का फेशियल करें, उन्हें खुद कभीकभी नहलाएं.

छुट्टी के दिन दोनों ही एकदूसरे की पसंदनापसंद हर इच्छा को पूरा करने को तैयार रहें.

मनपसंद ड्रैस पहनें और छुट्टी के दिन का प्लान उन के मुताबिक करें.

पत्नी के लिए समय पर पहुंचें, चाहे वह घर पर हो या बाहर.

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Valentine’s Special: फैशन के मामले में ‘काव्या’ को टक्कर देती हैं ‘मालविका’, देखें फोटोज

सीरियल अनुपमा (Anupama) में इन दिनों मालविका (Aneri Vajani) और वनराज (Sudhanshu Panday) की दोस्ती से अनुज नाराज नजर आ रहा है. वहीं अनुपमा (Rupali Ganguly) पूरी कोशिश कर रही है कि मालविका को वनराज के जाल से निकाल सके. हालांकि मालविका के सिर पर वनराज के प्यार का भूत चढ़ा हुआ है. लेकिन आज हम सीरियल में किसी आने वाले ट्विस्ट की नहीं बल्कि मालविका के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस अनेरी वजानी के फैशन (Aneri Vajani Fashion) की बात करें. अनेरी वजानी कई पौपुलर टीवी सीरियल्स में नजर आ चुकी हैं, जिसमें वह एक से बढ़कर एक लुक में फैंस का दिल जीत चुकी हैं. इसी के चलते आज हम आपको वैलेंटाइन डे (Valentine’s Day) के लिए अनेरी वजानी के इंडियन से लेकर वेस्टर्न कलेक्शन (Indian to Western)की झलक दिखाएंगे….

साड़ी में ढाती हैं कहर

 

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सीरियल अनुपमा में हाल ही के एपिसोड में मालविका यानी अनेरी साड़ी लुक में नजर आईं थी, जिसकी फोटोज उन्होंने सोशलमीडिया पर शेयर की थीं. वहीं फैंस ने उनके इस लुक की काफी तारीफें की थी. लुक की बात करें तो पर्पल कलर की प्लेन साड़ी किसी कैजुअल पार्टी में जाने के लिए अच्छा औप्शन है. वहीं अगर आप शादीशुदा हैं और वेलेंटाइन डे के मौके पर पति के साथ इंडियन लुक ट्राय करना चाहती हैं तो ये औप्शन परफेक्ट रहेगा.

 

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वेस्टर्न लुक में लगती हैं खूबसूरत

 

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एक्ट्रेस अनेरी वजानी को ट्रैवलिंग काफी शौक है, जिसका अंदाजा उनके सोशलमीडिया पेज को देखकर लगाया जा सकता है. वहीं ट्रैवलिंग में वह एक से बढ़कर एक लुक में नजर आती है, जिनमें शर्ट ड्रैसेस का कलेक्शन बेहद खास होता है.

 

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ड्रैसेस भी हैं खास

 

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अनेरी वजानी के वेस्टर्न लुक में ड्रैसेस की बात करें तो वह एक से बढ़कर एक ड्रैसेस ट्राय करती हैं, जिसमें फ्लोरल से लेकर स्लिम फिट ड्रैसेस शामिल हैं. इन लुक्स में वह बेहद खूबसूरत लगती हैं.

 

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डैनिम भी कर सकती हैं ट्राय

 

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ड्रैसेस के अलावा अनेरी वजानी के पास डैनिम जींस और ड्रैसेस का फी अच्छा कलेक्शन मौजूद हैं, जिन्हें वह फैंस के साथ शेयर करना नहीं भूलती हैं. वहीं फैंस भी वेलेंटाइन डे हो या आउटिंग. हर मौके पर अनेरी वजानी के इंडियन व वेस्टर्न कलेक्शन को ट्राय कर सकती हैं.

मेरी मंगेत्तर ने किसी और से शादी कर ली, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 28 साल का हूं. जिस लड़की से मेरी शादी तय हुई थी, वह 6 महीने तक मेरे संपर्क में रही और मेरे साथ सोई भी. मुझ से पहले उस की शादी कहीं और तय हुई थी, पर दहेज के चलते टूट गई थी. लड़की चोरीछिपे उस लड़के के संपर्क में भी रही और उसे चचेरी बहन का मंगेतर बताती रही. वह यह भी कहती थी कि उस का अंग खराब है. मगर आखिरकार उस ने उसी लड़के से शादी कर ली. मैं उसे बहुत प्यार करता हूं. अब मैं क्या करूं?

जवाब

वह लड़की हमबिस्तरी की काफी शौकीन है. अच्छा हुआ, जो आप बच गए. उस ने आप को चखा और शायद उस लड़के को भी. आखिर में उसे बेहतर पा कर उस से शादी कर ली. आप झूठी और कामुक लड़की के जाल से बच गए, लिहाजा, उस का फरेब वाला प्यार भी भूल जाएं.

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अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

सौत से सहेली: भाग 2- क्या शिखा अपनी गृहस्थी बचा पाई

लेखिका-दिव्या साहनी

उस दिन नीरजा ने छोलेभूठूरे बनाने की तैयारी करी हुई थी. चोट लगने से पहले छोले उस ने तैयार कर लिए थे. अब भठूरे बनाने की जिम्मेदारी शिखा के ऊपर आ पड़ी.

‘‘मैं ने अपनी मम्मी के साथ मिल कर ही हमेशा भठूरे बनवाए हैं. पता नहीं आज अकेले बनाऊंगी, तो कैसे बनेंगे,’’ शिखा का आत्मविश्वास डगमगा गया था.

अंजु आई ही आई, पर साथ में उस के दोनों बच्चे व पति भी लंच करने आ गए. अंजु ने एक बार शिखा को भठूरे बेलने व तलने की विधि ढंग से समझा दी और फिर किचन से गायब हो गई.

सब को छोलेभठूरों का लंच करातेकराते शिखा बहुत थक गई. राजीव को जब मौका मिलता रसोई में आ कर उस का हौसला बढ़ा जाता. जरूरत से ज्यादा थक जाने के कारण शिखा खुद अपने बनाए भठूरों का स्वाद पेटभर कर नहीं उठा सकी.

सदा बनसंवर कर रहने वाली शिखा ने अपने घर में कभी इतना ज्यादा काम नहीं किया था. उस दिन नीरजा के यहां इतना ज्यादा काम करने का उसे कोई मलाल नहीं था क्योंकि उस ने नीरजा की आंखों में अपने लिए ‘धन्यवाद’ के और राजीव की आंखों में गहरे ‘प्रेम’ के भाव बारबार पढ़े थे.

‘‘अगर नीरजा रात को रुकने के लिए कहे, तो रुक जाना. उस की अच्छी दोस्त बन जाओगी, तो हमें मिलने और मौजमस्ती करने के ज्यादा मौके मिला करेंगे,’’ राजीव की इस सलाहको शिखा ने फौरन मान लिया.

शाम को नीरजा की शह पर चारों छोटे बच्चों ने अपनी शिखा आंटी के साथ आइसक्रीम खाने जाने की रट लगा दी.

शिखा अपनी थकावट व दर्द को भुला कर उन के साथ बाजार गई. बच्चों को आइसक्रीम खिलाने के बाद उस ने घर में बचे बड़े लोगों के लिए ‘ब्रिक’ भी खरीदी. करीब 6 सौ रुपए का खर्चा कर वह घर लौट आईर्.

उस के घर में कदम रखते ही नीरज ने उसे सूचित किया, ‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी से फोन पर बात कर के उन की इजाजत ले ली है, शिखा.’’

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‘‘किसलिए?’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘तुम्हारे कुछ दिनों के लिए यहां रुकने को. उन्हें कोई एतराज नहीं है. बस, अब तुम इनकार न करना, प्लीज. तुम्हारी हैल्प के बिना तो हम सब बहुत परेशान हो जाएंगे.’’

सोनू, मोनू और अंजु के दोनों बच्चों ने फौरन ‘‘शिखा आंटी, रुक जाओ’’ का नारा बारबार लगाते हुए इतना ज्यादा शोर मचाया कि शिखा को फौरन ‘हां’ कहनी पड़ी.

राजीव के साथ शाम को शिखा अपने घर कुछ जरूरी सामान और कपड़े लाने गई. लौटते हुए उन्होंने कौफी पी. दोनों कुछ दिन एक ही छत के नीचे गुजारने की संभावना के बारे में सोच कर काफी खुश नजर आ रहे थे.

लौटते हुए दोनों ने बाजार से सप्ताहभर

के लिए सब्जी खरीदी. इस काम को करने

की याद नीरजा ने ही शिखा को फोन कर के दिलाई थी.

शिखा ने बड़े जोश के साथ सब के लिए पुलाव बनाया. कुछ होमवर्क करने में सोनू की सहायता भी खुशीखुशी करी. उस के सोने का इंतजाम गैस्टरूम में हुआ था. रात को राजीव से गैस्टरूम के एकांत में मुलाकात हुई, तो क्या होगा? इस सवाल के मन में उभरते ही शिखा के मन में अजीब सी गुदगुदी पैदा हो जाती थी.

सोनू और मोनू शिखा आंटी के जबरदस्त फैन बन गए थे. उन्होंने सोने से पहले उस से

2 कहानियां सुनीं. शिखा को अंगरेजी फिल्में देखने का शौक था. उस ने बैंक डकैती, मारधाड़ और कुछ अन्य सनसनीखेज घटनाओं को जोड़ कर जो कहानी सोनू, मोनू को सुनाई वह दोनों बच्चों को पसंद तो काफी आई पर साथ ही साथ उन्हें डर भी लगा.

इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों रातभर अपनी शिखा आंटी से लिपट कर सोए. नींद में डूबने से पहले बेहद थकी शिखा ने राजीव के गैस्टरूम में आने का इंतजार किया, पर उस से मुलाकात किए बिना ही वह सो गई थी.

नीरजा को दर्द के कारण नींद नहीं आ रही थी. राजीव को उस के पास बैठना

पड़ा. चाह कर भी वह शिखा के साथ कुछ

समय नहीं गुजार सका. उसे भी नींद ने एक बार दबोचा तो नीरजा के जगाने पर ही नींद सुबह

6 बजे खुली.

शिखा को भी नीरजा ने ही उस के मोबाइल की घंटी बजा कर 6 बजे उठा दिया.

‘‘मेरी प्यारी बहन, सोनू और मोनू को

स्कूल भेजना है. उन्हें जरा सख्ती से उठाओ… नाश्ते में ब्रैडबटर ही दे देना. राजीव दूध लेने

जा रहे हैं. दोनों की यूनीफौर्म यहां मेरे कमरे में

है. उन्हें भेजने के बाद हम दोनों साथसाथ

तसल्ली से चाय पीएंगे, माई डियर,’’ शिखा को

ये सब हिदायतें देते हुए नीरजा की आवाज में इतनी मिठास और अपनापन था कि शिखा ने बड़े जोश के साथ मुसकराते हुए पलंग छोड़ा था.

वक्त के साथ रेस लगाते हुए शिखा ने बड़ी कठिनाई से ही सोनू और मोनू को

स्कूल भेजा. कई बार उन की लापरवाही से तंग आ कर उस ने उन्हें डांटा भी, पर दोनों डांट सुन कर बेशर्मी से हंस पड़ते थे.

नीरजा ने बाद में उस के साथ चाय पीते हुए उस की भूरिभूरि प्रशंसा करी, ‘‘तुम बड़ी कुशल गृहिणी बनोगी किसी दिन, शिखा. बच्चों का दिल जीतने की कला आती है तुम्हें.’’

नीरजा का व्यवहार शिखा के प्रति बहुत दोस्ताना और प्रेमपूर्ण था. उसे अपने पास बैठा कर नीरजा उस का प्यार से हाथ पकड़ लेती. शिखा की प्रशंसा करते हुए उस का चेहरा फूल सा खिल जाता. कभीकभी आभार प्रकट करते हुए नीरजा की आंखें डबडबा उठतीं, तो शिखा भी भावुक हो जाती. ऐसे क्षणों में शिखा को नीरजा के बहुत करीब होने का एहसास होता. फिर उसे राजीव का खयाल आता. उस के साथ अपने अवैध प्रेम संबंध का ध्यान आते ही वह अजीब सा खिंचाव महसूस करते हुए इन कोमल भावों को दबा लेती थी.

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शिखा ने नीरजा के घर की लगभग सभी जिम्मेदारियों को संभाल लिया था. शाम को वह राजीव के साथ ही घर लौटती. दोनों का दिल तो करता था कि कुछ देर किसी पार्क या रेस्तरां में साथसाथ बैठें, पर नीरजा की ‘हैल्प’ के लिए फोन शिखा को लंच के बाद से ही मिलने लगते थे.

ऐसी ही भागमभाग में पहला हफ्ता कब निकल गया, शिखा को पता ही नहीं चला. रविवार फिर से आ गया और उस दिन सुबह उठने को उस का मन ही नहीं किया. शिखा को न अपने शरीर में भागदौड़ करने की जान महसूस हो रही थी और मन में भी अजीब सी खीज का एहसास छाया हुआ था.

अपनी आदत के अनुरूप रविवार सुबह देर तक सोना चाहती थी, पर कामवाली ने न आ कर ऐसी किसी भी संभावना का अंत कर दिया.

‘‘कल दोपहर में मैं ने कामवाली को डांट दिया था. वह कामचोर सफाई से काम जो नहीं कर रही थी. उस ने काम छोड़ दिया तो बड़ी गड़गड़ हो जाएगी, शिखा तुम प्लीज उसे किसी भी तरह से मना लाओ,’’ नीरजा ने उसे जब कामवाली को मना लाने की जिम्मेदारी सौंपी, तो एक बार को शिखा का रोमरोम गुस्से की आग में सुलग उठा.

कामवाली राधा से मिलाने के लिए सोनू

उसे पड़ोस में रहने वाली निर्मल आंटी के घर ले गया. उस से बातें करते हुए शिखा को बड़ा धैर्य रखना पड़ा क्योंकि वह काफी बदतमीजी से पेश आ रही थी.

‘‘सब से कम पैसा देती हैं नीरजा मैम और सब से ज्यादा डांटती और बेकार के नुक्स निकालती हैं. बिना पगार बढ़ाए मैं नहीं आऊंगी काम पर,’’ शिखा की कोई दलील सुने बिना राधा अपनी इस जिद पर अड़ी रही.

‘‘देख, जब तक नीरजा मैम का प्लस्तर कट नहीं जाता, तुम काम पर आती रहो. मैं उन से छिपा कर तुम्हें 2 सौ रुपए दूंगी?’’ इस समस्या का यही समाधन शिखा को समझ में आया.

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‘‘आप की खातिर मैं आ जाऊंगी, पर 5 सौ रुपए अलग से लूंगी,’’ राधा ने मौके का फायदा उठाते हुए अपनी शर्त बता दी.

‘‘2 सप्ताह के लिए 5 सौ रुपए. इतना लालच ठीक नहीं है, राधा,’’ शिखा गुस्सा हो उठी.

‘‘आप को 5 सौ रुपए ज्यादा लग रहे हैं, तो कोई बात नहीं. किसी दूसरी कामवाली को ढूंढ़ लो या खुद बरतन व सफाई कर लेना.’’

खुद बरतन व घर की सफाई की बात सोच कर ही शिखा की जान निकल गई. उस ने राधा को 5 सौ रुपए अपनी तरफ से देना स्वीकार किया और मन ही मन उसे गालियां देती सोनू के साथ घर लौट आई.

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अब जुड़वां बच्चे पाना हुआ आसान

कोलकाता की रहने वाली 32 साल की रिया की शादी हुए 7 साल बीत चुके थे,लेकिन बच्चा नहीं हुआ, सबकी ताने से अधिक, उसे ही अपने बच्चे की चाहत थी. उन्होंने हर जगह लेडी डॉक्टर से जांच करवाई, पर वजह कोई भी नहीं बता पाया, क्योंकि सबकुछ नार्मल था. उसकी इस हालत को देख, पति राजीव ने रिया से अनाथ आश्रम से किसी अनाथ बच्चे को गोद लेने की सलाह दी. इससे उसका ये तनाव दूर हो सकेगा, लेकिन रिया अपना बच्चा चाहती थी, ऐसे में रिया की सहेली ने आईवीऍफ़ यानि इन विट्रो फ़र्टिलाईजेशन से उन्हें अपना बच्चा पाने की सलाह दी. रिया ने अपने पति से इस बारें में चर्चा की और अगले एक साल में ही रिया और राजीव, जुड़वाँ बच्चे, एक बेटी और एक बेटे के पेरेंट्स बने. दोनों को अब ख़ुशी का ठिकाना न रहा.

सही उम्र में शादी न कर पाना

दरअसल आज की भागदौड़ की जिंदगी में खुद को स्टाब्लिश करने की कोशिश में लड़के और लड़कियां सभी की शादी की उम्र अधिक हो जाती है, ऐसे में शादी के बाद वे नार्मल तरीके से बच्चा पैदा करने में असमर्थ होते है. बच्चा न हो, तो भी जिंदगी वीरान लगने लगती है, पति-पत्नी दोनों सहजता महसूस नहीं करते,आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है,दोनों तनावग्रस्त होते है,इससे गर्भधारण में समस्या आने लगती है, बात काउंसलर तक पहुँचने के बाद उन्हें पता चलता है कि उनके बीच में एक बच्चे की कमी है, जिसे एडॉप्शन,असिस्टेड कन्सेप्शन या आईवीऍफ़ के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है. इसके अलावा आईवीऍफ़ बेहद खर्चीला प्रोसेस है, इसलिए एक बार में ही दो बच्चे पा लेने को पेरेंट्स बेहतर मानते है और इसके लिए ही वे डॉक्टर के पास आते है. साथ ही देर से बच्चे होने की वजह से दोनों बच्चे एक ही समय में पल जाते है, जो पेरेंट्स के लिए भी आसान होती है.

एक इंटरव्यू में निर्माता, निर्देशक और एक्ट्रेस फरहा खान ने कहा था कि मेरी शादी 32 साल की उम्र में हुई है, जबकि शिरीष कुंदर 25 साल के थे. मैंने सोच लिया था कि मेरा प्राकृतिक रूप से इस उम्र में गर्भधारण करना आसान नहीं, इसलिए मैंने आइवीऍफ़ का सहारा लिया और शादी के 4 साल बाद तीन बच्चों, एक बेटा और दो बेटी की माँ बनी. मैंने और शिरीष ने उस पल को बहुत एन्जॉय किया था, जब हमें एक नहीं बल्कि तीन बच्चों के पेरेंट्स बनने का मौका मिला.

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मल्टीपल प्रेगनेंसी

इस बारें में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी हॉस्पिटल की आईवीऍफ़ कंसल्टेंट डॉ. पल्लवी प्रियदर्शिनी कहती है कि आईवीऍफ़ या असिस्टेड कन्सेप्शन, गर्भधारण का ऐसा तरीका है, जिसमें प्रकृति की मदद की जाती है. कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि प्राकृतिक रूप से गर्भधारण से जुड़वा बच्चें कम पैदा होतेहै,जबकि आईवीएफ में मल्टिपल प्रेगनेंसी होने की संभावना अधिक होती है, लेकिन सिंगल एम्ब्रायो ट्रांसफर को विकास कर सिर्फ एक रेसल्टिंग एम्ब्रायो को स्थानांतरित करने की कोशिश की जा रही है,जिससे एक बच्चा पाना आसान हो सकेगा. इसके अलावा एक बार किसी को जुड़वाँ बच्चे होने पर, प्राकृतिक रूप से भी अगली जेनरेशन में जुड़वां बच्चे होने की संभावना अधिक होती है.साथ ही किसी परिवार में बिना आईवीऍफ़ के भी जुड़वां बच्चें होने की प्रवृत्ति होती है,तो प्राकृतिक रूप से भी जुड़वां गर्भधारण करने की संभावना थोड़ी बढ़ जाती है.

सही उम्र है जरुरी

इसके आगे डॉ. पल्लवी कहती है कि अधिकतर महिलाएं आईवीऍफ़ की सही उम्र के बारें में पूछती है. मेरे हिसाब से आईवीऍफ़ हर किसी के लिए नहीं होता,इसके लिए उम्र बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि एक महिला में खासतौर से 35 वर्ष की आयु के बाद, ओवेरियन रिज़र्व कम हो जाता है. साथ ही सफल प्रत्यारोपण की संभावना भी उम्र के साथ कम हो जाती है. 35 वर्ष से कम उम्र की महिला में सिंगलटन प्रेगनेंसी (एक गर्भधारण में एक बच्चा पैदा होना) की संभावना 38 से 40 प्रतिशत अधिक हो सकती है, लेकिन 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिला में गर्भधारण की संभावना 11प्रतिशत से भी कम हो सकती है.

है कुछ भ्रांतियां

आईवीएफ के बारे में कई गलतफहमियां हैऔर कुछ दम्पतियों को काफी चिंता भी रहती है. इस बारें में डॉक्टर कहती है कि कुछ पति-पत्नी को आईवीऍफ़ नैचुरल प्रोसेस न होने की वजह से वे इसे करने से डरती है, उन्हें लगता है कि इससे उनके बच्चे में कुछ न कुछ समस्या अवश्य आएगी. मैं इनमें से कुछ शंकाओं को दूर करने का प्रयास करूंगी, ताकि जरूरतमंद दंपतियों को आईवीऍफ़ के बारे में अपना निर्णय सही समय पर सही तरीके से ले सकें, उनके मन में किसी प्रकार की दुविधा न हो.

  • आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि आईवीएफ से होने वाला गर्भधारण और उससे होने वाला बच्चा मानसिक रूप से असामान्य होने की संभावना बढ़ सकती है,लेकिन सबूतों से पता चलता है कि आईवीएफ या आईसीएसआई के ज़रिए पैदा हुए बच्चों को बचपन मेंसाइकोसोशल बीमारी का कोई बड़ा खतरा नहीं होता. कुछ न्यूरोडेवलपमेंटल में देर हो सकती है, लेकिन इसका कारण आईवीएफ या आईसीएसआई की प्रक्रिया नहीं, बल्कि समय से पहले प्रसव (प्रीमैच्यूअर डिलीवरी) हो सकता है.

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करें डॉक्टर से संपर्क 

डॉ. पल्लवी आगे कहती है कि अगर किसी दंपति ने एक वर्ष से अधिक समय तक प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने की कोशिश की है, यदि महिला की उम्र 35 से कम है या 6 महीने के बाद उसकी उम्र 35 से ज़्यादा होने वाली है, तो उन्हें फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट से सलाह लेनी चाहिए, ताकि उनके अनुसार हर दंपति की व्यक्तिगत इलाज की जा सकें. अधिक देर होने पर आईवीऍफ़ भी अपनी पूरी क्षमता से मदद नहीं कर सकता.

Sunrise Pure स्वाद और सेहत उत्सव में आज बनाते हैं पाव भाजी

पाव भाजी को घर पर आसानी से बहुत जल्दी बनाया जा सकता हैं. नाश्ते में पाव भाजी बनाकर परोसें, आपको और आपके परिवार को यह बहुत पसन्द आयेगा.

सामग्री

– 250 ग्राम लौकी छिली व कटी

– 2 गाजरें

– 150 ग्राम फूलगोभी

– 6 फ्रैंचबींस

– 1/4 कप मटर के हरे दाने

– 1 शिमला मिर्च

– 250 ग्राम टमाटर कद्दूकस किया

– 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट

– 1/2 कप प्याज बारीक कटा

– 2 बड़े चम्मच Sunrise Pure पावभाजी मसाला

– 2 बड़े चम्मच टोमैटो कैचअप

– लालमिर्च स्वादानुसार

– 2 छोटे चम्मच मक्खन यानी बटर

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजावट के लिए

– थोड़ा सा पनीर कटा सजावट के लिए

– 6 पाव

– 1 छोटा चम्मच नमक स्वादानुसार

विधि

एक नौनस्टिक कड़ाही में बटर गरम कर प्याज को सुनहर होने तक भूनें और उसके बाद शिमला मिर्च को काटकर प्याज के साथ डालकर भूनें. दूसरी तरफ गाजरों को छील कर मोटे टुकड़ों में व फूलगोभी, को भी मोटे टुकड़ों में काट लें. फ्रैंचबींस को भी 1/2 इंच टुकड़ों में काट लें. अब सभी सब्जियों को 1/2 कप पानी और 1/2 चम्मच नमक के साथ प्रैशरकुकर में पकाएं. 1 सीटी आने के बाद लगभग 7 मिनट धीमी आंच पर और पकाएं.

फिर अदरकलहसुन पेस्ट डालें. 2 मिनट बाद टमाटर और Sunrise Pure पावभाजी मसाला डाल कर भूनें. जब मसाला भुन जाए तब इस में उबली सब्जियां डालें व मैशर से मैश करें. अच्छी तरह पकाएं. इस में टोमैटो कैचअप भी मिला दें. भाजी तैयार हो जाए तो सर्विंग बाउल में निकालें. पनीर के टुकड़ों और धनियापत्ती से सजाएं. एक नौनस्टिक तवे को मक्खन से चिकना कर उस पर पावभाजी मसाला बुरक तुरंत पाव को बीच से काट कर तवे पर डालें. अच्छी तरह सेंक लें. भाजी के साथ सर्व करें.

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प्रकाश स्तंभ: भाग 1- क्या पारिवारिक झगड़ों को सुलझा पाया वह

‘‘दीदी, जरा गिलास में पानी डाल दो,’’ रम्या ने खाने की मेज के दूसरी ओर बैठी अपनी बड़ी बहन नंदिनी से कहा था.

‘‘आलस की भी कोई सीमा होती है या नहीं? तुम एक गिलास पानी भी अपनेआप डाल कर नहीं पी सकतीं,’’ नंदिनी ने टका सा जवाब दिया था.

‘‘पानी का जग तुम्हारे सामने रखा था इसीलिए कह दिया. भूल के लिए क्षमा चाहती हूं. मैं खुद ही डाल लूंगी,’’ रम्या उतने ही तीखे स्वर में बोली थी.

‘‘वही अच्छा है. तुम जितनी जल्दी अपना काम खुद करने की आदत डाल लो तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा रहेगा,’’ नंदिनी सीधेसपाट स्वर में बोली थी.

‘‘मैं सब समझती हूं, इतनी मूर्ख नहीं हूं. ईर्ष्या करती हो तुम मुझ से.’’

‘‘लो और सुनो. मैं क्यों ईर्ष्या करने लगी तुम से?’’

‘‘बड़ी बहन कुंआरी बैठी रहे और छोटी का विवाह हो जाए, क्या यह कारण कम है?’’ रम्या तीखे स्वर में बोली थी पर इस से पहले कि नंदिनी कुछ बोल पाती, उन की मां रचना ने दोनों का ध्यान आकर्षित किया था.

‘‘तुम दोनों अपने झगड़े से थोड़ा सा समय निकाल सको तो मैं भी कुछ बोलूं?’’

‘‘क्या मां? आप भी मुझे ही दोष दे रही हैं?’’ नंदिनी ने शिकायत की थी.

‘‘मैं किसी को दोष नहीं दे रही बेटी. मैं तो भली प्रकार जानती हूं कि मेरी 30-30 साल की दोनों बेटियां 5 मिनट के लिए भी आपस में लड़े बिना नहीं रह सकतीं.’’

‘‘30 साल की होने का ताना आप मुझे ही दे रही हैं न? रम्या तो मुझ से 2 साल छोटी है और मैं बड़ी हूं तो सारा दोष भी मेरा ही होगा,’’ नंदिनी ने आहत होने का अभिनय किया था.

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‘‘मेरा ऐसा कोई तात्पर्य नहीं था. मैं जो कहने जा रही हूं उस का तुम दोनों से कुछ भी लेनादेना नहीं है. मैं तो केवल यह कहना चाहती हूं कि मैं ने यह शहर या यों कहूं कि यह देश ही छोड़ कर जाने का निर्णय कर लिया है,’’ रचना ने मानो शांत जल में पत्थर दे मारा था.

‘‘क्या? कहां जा रही हैं आप?’’ खाने की मेज पर बैठे पति नीरज के विस्फारित होते नेत्रों को उस ने देखा था. रम्या के पति प्रतीक का मुंह खुला का खुला रह गया था और दोनों बेटियों की नजर मां पर ही गड़ी हुई थी.

‘‘हमारे बैंक की एक नई शाखा ‘सीशेल्स’ में खुलने जा रही है. मैं ने वहीं जा कर नई शाखा का कार्यभार संभालने की स्वीकृ ति दे दी है. हमारे बैंक से और 2-3 कर्मचारी भी साथ जा रहे हैं,’’ रचना ने अपनी बात पूरी की थी.

‘‘क्यों उपहास कर रही हैं मां? अब इस आयु में आप देश छोड़ कर जाएंगी?’’ रम्या हंस पड़ी थी पर नंदिनी केवल उन का मुंह ताकती रह गई थी.

‘‘यह उपहास नहीं वास्तविकता है बेटी. दिनरात की इस कलह में मेरा मन घुटने लगा है. मैं शायद मां की भूमिका सफलतापूर्वक नहीं निभा पाई. तुम दोनों का व्यवहार इस का प्रमाण है. फिर भी मैं कहूंगी कि मैं ने अपनी ओर से पूरा प्रयत्न किया था. नंदिनी की पढ़ाई में कभी कोई रुचि नहीं रही. फिर भी पीछे पड़ कर उसे स्नातक तक की पढ़ाई करवाई. कंप्यूटर कोर्स करवाया. एकदो जगह नौकरी भी लगवाई पर यह मेरा और उस का…या कहें हम दोनों की बदनसीबी है कि वह अब तक जीवन में व्यवस्थित नहीं हो सकी.

‘‘तुम्हारे लिए भी मैं ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार सबकुछ किया पर तुम ने अच्छीभली नौकरी छोड़ कर विवाह कर लिया और अब तुम और तुम्हारे पति प्रतीक दोनों बेकार बैठे हैं,’’ रचना का स्वर बेहद निरीह प्रतीत हो रहा था.

‘‘और ऐसे में आप ने हम सब को छोड़ कर जाने का फैसला ले लिया?’’ रम्या और नंदिनी ने समवेत स्वर में प्रश्न किया था.

‘‘यहां रह कर भी मैं तुम दोनों के लिए कहां कुछ कर पाई. वहां थोड़ा अधिक पैसा मिलेगा तो शायद मैं तुम लोगों की कुछ अधिक सहायता कर पाऊंगी. वैसे भी ऐसे अवसर कभीकभी ही मिलते हैं. वह तो सीशेल्स जैसे छोटे से द्वीप पर कोई जाना नहीं चाहता वरना तो मुझे यह भी मौका नहीं मिलता.’’

‘‘आप कब तक  जाएंगी, मम्मीजी?’’ प्रतीक ने प्रश्न किया था.

‘‘1 माह तो जाने में लग ही जाएगा, थोड़ा अधिक समय भी लग सकता है,’’ परिवार के अन्य सदस्यों को गहरी सोच में डूबे छोड़ कर रचना अपने कमरे में चली गई थीं.

आरामकुरसी पर पसर कर रचना देर तक शून्य में ताकती रही थीं. कमरे के अंधेरे में वह काल्पनिक आकृतियों को बनतेबिगड़ते देखती रही थीं. साथ ही अतीत की अनेक बातें उन के मानसपटल से टकराने लगी थीं.

‘क्या हुआ रचना? इस तरह सिर थामे क्यों बैठी हो?’ उस दिन उन की सहेली निमिषा ने रचना को आंखें मूंदे स्वयं में ही डूबे देख कर पूछा था.

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उत्तर में रचना ने अपनी आंखें खोल दी थीं. उन की डबडबाई आंखें लगातार बरसने लगी थीं.

‘क्या हुआ? कुशलमंगल तो है? मैं ने तुम्हें इस तरह स्वयं पर नियंत्रण खोते कभी नहीं देखा,’ निमिषा हैरान हो गई थी.

‘तुम स्वयं पर नियंत्रण की बात कर रही हो, मैं ने तो अपने सारे जीवन को अनियंत्रित होते देखा है.’

‘क्यों, क्या हुआ? कोई विशेष बात?’

‘सप्ताह भर से रम्या के फोन पर फोन आ रहे हैं. अपने पति के साथ यहीं हमारे पास रहना चाहती है,’ रचना धीमे स्वर में बोली थीं.

‘क्यों? प्रतीक का स्थानांतरण यहीं हो गया है क्या?’

‘किस का स्थानांतरण, निमिषा. वही हुआ जिस का डर था. फोन पर रम्या बता रही थी कि प्रतीक की नौकरी छूट गई है. मुझे तो पहले ही संदेह था कि वह नौकरी करता भी था या नहीं. अब वह नौकरी नहीं करना चाहता. व्यापार करेगा और व्यापार उसे मेरे अलावा करवाएगा कौन? एक और राज की बात बताऊं तुम्हें?’

‘क्या?’

‘प्रतीक खुद कोई बात नहीं करता. हर बात में रम्या को आगे करता है. पहले उसी की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर रम्या यहां अच्छीभली नौकरी छोड़ कर गुंइर चली गई. अब दिन में 2-3 बार फोन आता है. मैं सप्ताह भर से समझा रही हूं कि मेरी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि उस की सहायता कर सकूं तो रोने लगी. बोली कि आप तो बैंक में अफसर हैं, क्या कर्ज नहीं ले सकतीं?’

‘नीरज भाई साहब क्या कहते हैं?’

‘वह क्या कहेंगे? आज तक कुछ कहा है जो अब कहेंगे? उन पर तो जीवन भर व्यापार का भूत सवार रहा. पर व्यापार में कमाया कम और गंवाया अधिक. अब तो उन का शरीर ही साथ नहीं देता. अस्थमा तो पुराना रोग है ही पर हर दिन कुछ न कुछ लगा ही रहता है. बेटीदामाद के आने के समाचार से भी उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता. वह तो, बस अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं.’

‘फिर तुम क्यों चिंता में घुली जा रही हो? आ रही है तो आने दो. उन दोनों के आने से भला कितना अंतर पड़ जाएगा,’ निमिषा ने समझाना चाहा था.

‘प्रश्न केवल भोजनकपड़े का नहीं है. व्यापार के लिए पूंजी कहां से जुटाऊं. ऊपर से मेरी दोनों बेटियों में बिलकुल नहीं पटती. नंदिनी को कोई वर अपने उपयुक्त लगता ही नहीं. संसार के सब से अधिक धनवान, सुदर्शन और प्रसिद्ध वर से ही विवाह करेगी वह. हम तो उस के विवाह की उधेड़बुन में खोए थे कि रम्या ने अपनी इच्छा से विवाह कर लिया. जगहंसाई न हो इसलिए हम ने परंपरागत रूप से विवाह करवा दिया. वर पक्ष से तो कोई औपचारिकता निभाने भी नहीं आया.’

‘विवाह के पहले तो प्रतीक बड़ी डींगें हांकता था. विवाह को 6 माह भी नहीं हुए कि नौकरी छूट गई. घर वालों ने घर से निकाल दिया. अब वह हमारी शरण में आना चाहते हैं. अब स्थिति यह है कि मेरी नौकरी न हो तो हमारा परिवार भूखों मर जाए,’ रचना अपनी रामकहानी सुनाती रही थी.

‘तुम्हारी समस्या तो वास्तव में विकट है. मैं तो केवल सलाह दे सकती हूं पर उस पर अमल तो तुम को ही करना है. मैं तुम्हारे स्थान पर होती तो कब की भाग खड़ी होती. तनिक सोचो, यदि तुम उन्हें छोड़ कर चली जाओ तो क्या वे भूखे मरेंगे? अपना पेट भरने के लिए तो हाथपैर हिलाएंगे ही न,’ निमिषा ने बात सच कही थी पर रचना को लगा कि उस की सलाह मानने की शक्ति उस में नहीं थी.

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‘तुम ठीक कहती हो. मेरी नियति ही ऐसी है. कालिज में प्रवेश लेते ही मातापिता चल बसे. अपने छोटे भाई और स्वयं को व्यवस्थित करने में मैं ने कठिन परिश्रम किया. संतोष इसी बात का है कि उस का जीवन पूरी तरह से व्यवस्थित है, व्यावसायिक रूप से भी और पारिवारिक तौर पर भी. उसे देख कर बड़ी संतुष्टि मिलती है. पर मुझे तो विवाह के बाद भी चैन नहीं मिला. मुझे तो लगता है कि मेरी दोनों बेटियां अभिशाप बन कर मेरे जीवन में आई हैं. थकीहारी घर पहुंचती हूं तो नंदिनी एक प्याली चाय को भी नहीं पूछती. सर्वगुण संपन्न वर न जुटा पाने के लिए शायद वह मुझे ही दोषी समझती है. सदा मुंह फूला ही रहता है उस का.’

‘भूल जाओ यह सब, रचना. अपनी ओर से तुम ने दोनों बेटियों के लिए कर्तव्य पूरा कर दिया. हो सके तो उन पर जिम्मेदारी डाल कर उन में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करो. कभीकभी परिस्थितियां स्वयं बदलने लगती हैं अत: प्रतीक्षा करो.’

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सौतेली: भाग 4- क्या धोखे से उभर पाई शेफाली

शेफाली को लग रहा था वंदना ठीक कह रही है. वह अपना घर क्यों छोडे़. उस को हालात का सामना करना चाहिए था. फिर उस औरत से नफरत कैसी जिसे अभी उस ने देखा भी नहीं था.

अगले दिन सुबह वंदना चली गई.

कुछ भी नहीं होते हुए वंदना कुछ दिनों में ही अपनेपन का जो कोमल स्पर्श शेफाली को करवा गई थी उस को भूलना मुश्किल था. यही नहीं वह शेफाली की दिशाहीन जिंदगी को एक दिशा भी दे गई थी.

परीक्षाओं के शुरू होते ही शेफाली ने जानकी बूआ से घर जाने की बात कह दी और थोड़ाथोड़ा कर के अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया.

परीक्षाएं खत्म होते ही शेफाली अपने घर को रवाना हुई तो जानकी बूआ खुद उस को अमृतसर जाने वाली बस में बैठाने के लिए बस अड्डे पर आई थीं.

बस जब चल पड़ी तो शेफाली के मन में कई सवाल बुलबुले बन कर उभरने लगे कि पापा उस का सामना कैसे करेंगे, उस का सौतेली मां से सामना कैसे होगा? वह कैसा व्यवहार करेंगी?

शेफाली जानती थी कि उस को बस में बैठाने के बाद बूआ ने फोन पर इस की सूचना पापा को दे दी होगी. शायद घर में उस के आने के इंतजार में होंगे सभी…

सामान का बैग हाथ में लिए घर के दरवाजे के अंदर दाखिल होते एक बार तो शेफाली को ऐसा लगा था कि किसी बेगानी जगह पर आ गई है.

पापा उस के इंतजार में ड्राइंगरूम में ही बैठे थे. उन के साथ मानसी और अंकुर भी थे जोकि दौड़ कर उस से लिपट गए.

उन को प्यार करते हुए शेफाली की नजरें पापा से मिलीं. चाह कर भी शेफाली मुसकरा नहीं सकी. उस ने केवल इतना ही कहा, ‘‘हैलो पापा, कैसे हैं आप?’’

‘‘अच्छा हूं. अपनी सुनाओ. सफर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई?’’

‘‘नहीं…और होती भी तो अब कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझ को कुछ समय से तकलीफें बरदाश्त करने की आदत पड़ चुकी है,’’ कोशिश करने पर भी अपने गुस्से और आक्रोश को छिपा नहीं सकी शेफाली.

इस पर पापा ने मानसी और अंकुर से कहा, ‘‘तुम दोनों जा कर जरा अपनी दीदी का कमरा ठीक करो, मैं तब तक इस से बातें करता हूं.’’

पापा का इशारा समझ कर दोनों तुरंत वहां से चले गए.

‘‘मैं जानता हूं तुम मुझ से नाराज हो,’’ उन के जाने के बाद पापा ने कहा.

‘‘मुझ को बहाने के साथ घर से बाहर भेज कर मेरी ममी की जगह एक दूसरी ‘औरत’ को दे दी पापा और इस के बाद भी आप उम्मीद करते हैं कि मुझ को नाराज होने का भी हक नहीं?’’

‘‘यह मत भूलो कि वह ‘औरत’ अब तुम्हारी नई मां है,’’ पापा ने शेफाली को चेताया.

इस से शेफाली जैसे बिफर गई और बोली, ‘‘मैं इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करूंगी, पापा,’’

‘‘मैं इस के लिए तुम पर जोर भी नहीं डालूंगा, मगर तुम उस से एक बार मिल लो…शिष्टाचार के नाते. वह ऊपर कमरे में है,’’ पापा ने कहा.

‘‘मैं सफर की वजह से बहुत थकी हुई हूं, पापा. इस वक्त आराम करना चाहती हूं. इस बारे में बाद में बात करेंगे,’’ शेफाली ने अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए रूखी आवाज में कहा.

शेफाली कमरे में आई तो सबकुछ वैसे का वैसा ही था. किसी भी चीज को उस की जगह से हटाया नहीं गया था.

मानसी और अंकुर वहां उस के इंतजार में थे.

कोशिश करने पर भी शेफाली उन के चेहरों या आंखों में कोई मायूसी नहीं ढूंढ़ सकी. इस का अर्थ था कि उन्होंने मम्मी की जगह लेने वाली औरत को स्वीकार कर लिया था.

‘‘तुम दोनों की पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘एकदम फर्स्ट क्लास, दीदी,’’ मानसी ने जवाब दिया.

‘‘और तुम्हारी नई मम्मी कैसी हैं?’’ शेफाली ने टटोलने वाली नजरों से दोनों की ओर देख कर पूछा.

‘‘बहुत अच्छी. दीदी, तुम ने मां को नहीं देखा?’’ मानसी ने पूछा.

‘‘नहीं, क्योंकि मैं देखना ही नहीं चाहती,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘ऐसी भी क्या बेरुखी, दीदी. नई मम्मी तो रोज ही तुम्हारी बातें करती हैं. उन का कहना है कि तुम बेहद मासूम और अच्छी हो.’’

‘‘जब मैं ने कभी उन को देखा नहीं, कभी उन से मिली नहीं, तब उन्होंने मेरे अच्छे और मासूम होने की बात कैसे कह दी? ऐसी मीठी और चिकनीचुपड़ी बातों से कोई पापा को और तुम को खुश कर सकता है, मुझे नहीं,’’ शेफाली ने कहा.

शेफाली की बातें सुन कर मानसी और अंकुर एकदूसरे का चेहरा देखने लगे.

उन के चेहरे के भावों को देख कर शेफाली को ऐसा लगा था कि उन को उस की बातें ज्यादा अच्छी नहीं लगी थीं.

मानसी  से चाय और साथ में कुछ खाने के लिए लाने को कह कर शेफाली हाथमुंह धोने और कपडे़ बदलने के लिए बाथरूम में चली गई.

सौतेली मां को ले कर शेफाली के अंदर कशमकश जारी थी. आखिर तो उस का सामना सौतेली मां से होना ही था. एक ही घर में रहते हुए ऐसा संभव नहीं था कि उस का सामना न हो.

मानसी चाय के साथ नमकीन और डबलरोटी के पीस पर मक्खन लगा कर ले आई थी.

भूख के साथ सफर की थकान थी सो थोड़ा खाने और चाय पीने के बाद शेफाली थकान मिटाने के लिए बिस्तर पर लेट गई.

मस्तिष्क में विचारों के चक्रवात के चलते शेफाली कब सो गई उस को इस का पता भी नहीं चला.

शेफाली ने सपने में देखा कि मम्मी अपना हाथ उस के माथे पर फेर रही हैं. नींद टूट गई पर बंद आंखों में इस बात का एहसास होते हुए भी कि? मम्मी अब इस दुनिया में नहीं हैं, शेफाली ने उस स्पर्श का सुख लिया.

फिर अचानक ही शेफाली को लगा कि हाथ का वह कोमल स्पर्श सपना नहीं यथार्थ है. कोई वास्तव में ही उस के माथे पर धीरेधीरे अपना कोमल हाथ फेर रहा था.

चौंकते हुए शेफाली ने अपनी बंद आंखें खोल दीं.

आंखें खोलते ही उस को जो चेहरा नजर आया वह विश्वास करने वाला नहीं था. वह अपनी आंखों को बारबार मलने को विवश हो गई.

थोड़ी देर में शेफाली को जब लगा कि उस की आंखें जो देख रही हैं वह सच है तो वह बोली, ‘‘आप?’’

दरअसल, शेफाली की आंखों के सामने वंदना का सौम्य और शांत चेहरा था. गंभीर, गहरी नजरें और अधरों पर मुसकराहट.

‘‘हां, मैं. बहुत हैरानी हो रही है न मुझ को देख कर. होनी भी चाहिए. किस रिश्ते से तुम्हारे सामने हूं यह जानने के बाद शायद इस हैरानी की जगह नफरत ले ले, वंदना ने कहा.

‘‘मैं आप से कैसे नफरत कर सकती हूं?’’ शेफाली ने कहा.

‘‘मुझ से नहीं, लेकिन अपनी मां की जगह लेने वाली एक बुरी औरत से तो नफरत कर सकती हो. वह बुरी औरत मैं ही हूं. मैं ही हूं तुम्हारी सौतेली मां जिस की शक्ल देखना भी तुम को गवारा नहीं. बिना देखे और जाने ही जिस से तुम नफरत करती रही हो. मैं आज वह नफरत तुम्हारी इन आंखों में देखना चाहती हूं.

‘‘हम जब पहले मिले थे उस समय तुम को मेरे साथ अपने रिश्ते की जानकारी नहीं थी. पर मैं सब जानती थी. तुम ने सौतेली मां के कारण घर आने से इनकार कर दिया था. किंतु सौतेली मां होने के बाद भी मैं अपनी इस रूठी हुई बेटी को देखे बिना नहीं रह सकती थी. इसलिए अपनी असली पहचान को छिपा कर मैं तुम को देखने चल पड़ी थी. तुम्हारे पापा, तुम्हारी बूआ ने भी मेरा पूरा साथ दिया. भाभी को सहेली के बेटी बता कर अपने घर में रखा. मैं अपनी बेटी के साथ रही, उस को यह बतलाए बगैर कि मैं ही उस की सौतेली मां हूं. वह मां जिस से वह नफरत करती है.

‘‘याद है तुम ने मुझ से कहा था कि मैं बहुत अच्छी हूं. तब तुम्हारी नजर में हमारा कोई रिश्ता नहीं था. रिश्ते तो प्यार के होते हैं. वह सगे और सौतेले कैसे हो सकते हैं? फिर भी इस हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि मैं मां जरूर हूं, लेकिन सौतेली हूं. तुम को मुझ से नफरत करने का हक है. सौतेली मांएं होती ही हैं नफरत और बदनामी झेलने के लिए,’’ वंदना की आवाज में उस के दिल का दर्द था.

‘‘नहीं, सौतेली आप नहीं. सौतेली तो मैं हूं जिस ने आप को जाने बिना ही आप को बुरा समझा, आप से नफरत की. मुझ को अपनेआप पर शर्म आ रही है. क्या आप अपनी इस नादान बेटी को माफ नहीं करेंगी?’’ आंखों में आंसू लिए वंदना की तरफ देखती हुई शेफाली ने कहा.

‘‘धत, पगली कहीं की,’’ वंदना ने झिड़कने वाले अंदाज से कहा और शेफाली का सिर अपनी छाती से लगा लिया.

प्रेम के स्पर्श में सौतेलापन नहीं होता. यह शेफाली को अब महसूस हो रहा था. कोई भी रिश्ता हमेशा बुरा नहीं होता. बुरी होती है किसी रिश्ते को ले कर बनी परंपरागत भ्रांतियां.

सौतेली: भाग 3- क्या धोखे से उभर पाई शेफाली

एक दिन शेफाली को चौंकाते हुए वंदना रात को अचानक उस के कमरे में आ गई.

शेफाली को रात देर तक पढ़ने की आदत थी.

वंदना को अपने कमरे में देख चौंकी थी शेफाली, ‘‘आप,’’ उस के मुख से निकला था.

‘‘बाथरूम जाने के लिए उठी थी. तुम्हारे कमरे की बत्ती को जलते देखा तो इधर आ गई. मेरे इस तरह आने से तुम डिस्टर्ब तो नहीं हुईं?’’

‘‘जी नहीं, ऐसी कोई बात नहीं,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘रात की शांति में पढ़ना काफी अच्छा होता है. मैं भी अपने कालिज के दिनों में अकसर रात को ही पढ़ती थी. मगर बहुत देर रात जागना भी सेहत के लिए अच्छा नहीं होता. अब 1 बजने को है. मेरे खयाल में तुम को सो जाना चाहिए.’’

वंदना ने अपनी बात इतने अधिकार और अपनत्व से कही थी कि शेफाली ने हाथ में पकड़ी हुई किताब बंद कर दी.

‘‘मेरा यह सब कहना तुम को बुरा तो नहीं लग रहा?’’ उस को किताब बंद करते हुए देख वंदना ने पूछा.

‘‘नहीं, बल्कि अच्छा लग रहा है. बहुत दिनों बाद किसी ने इस अधिकार के साथ मुझ से कुछ कहा है. आज मम्मी की याद आ रही है. वह भी मुझ को बहुत देर रात तक जागने से मना किया करती थीं,’’ शेफाली ने कहा. उस की आंखें अनायास आंसुओं से झिलमिला उठी थीं.

शेफाली की आंखों में झिलमिलाते आंसू वंदना की नजरों से छिपे न रह सके थे. इस से वह थोड़ी व्याकुल सी दिखने लगी. उस ने प्यार से शेफाली के गाल को सहलाया और बोली, ‘‘जो बीत गया हो उस को याद कर के बारबार खुद को दुखी नहीं करते. अब सो जाओ, सुबह बहुत सारी बातें करेंगे,’’ इतना कहने के बाद वंदना मुड़ कर कमरे से बाहर निकल गई.

इस के बाद तो शेफाली और वंदना के बीच की दूरी जैसे सिमट गई और दोनों के बीच की झिझक भी खत्म हो गई.

एकाएक ही शेफाली को वंदना बहुत अपनी सी लगने लगी थी. जाहिर है अपने व्यवहार से शेफाली के विश्वास को जीतने में वंदना सफल हुई थी. अब दोनों में काफी खुल कर बातें होने लगी थीं.

शेफाली के शब्दों में सौतेली मां के प्रति आक्रोश को महसूस करते हुए एक दिन वंदना ने कहा, ‘‘आखिर तुम दूसरों के साथसाथ अपने से भी इतनी नाराज क्यों हो?’’

‘‘क्या जानकी बूआ ने मेरे बारे में आप को कुछ नहीं बतलाया?’’

‘‘बतलाया है,’’ गंभीर और शांत नजरों से शेफाली को देखती हुई वंदना बोली.

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि तुम्हारे पापा ने किसी और औरत से दूसरी शादी कर ली है. वह भी तुम्हारी गैरमौजूदगी में…और तुम को बतलाए बगैर,’’ शेफाली की आंखों में झांकती हुई वंदना ने शांत स्वर में कहा.

‘‘इतना सब जानने के बाद भी आप मुझ से पूछ रही हैं कि मैं नाराज क्यों हूं,’’ शेफाली के स्वर में कड़वाहट थी.

‘‘अधिक नाराजगी किस से है? अपने पापा से या सौतेली मां से?’’

‘‘नाराजगी सिर्फ पापा से है.’’

‘‘सौतेली मां से नहीं?’’ वंदना ने पूछा.

‘‘नहीं, उन से मैं नफरत करती हूं.’’

‘‘नफरत? क्या तुम ने अपनी सौतेली मां को देखा है या उन से कभी मिली हो?’’ वंदना ने पूछा.

‘‘नहीं.’’

‘‘फिर सौतेली मां से नफरत क्यों? नफरत तो हमेशा बुरे इनसानों से की जाती है न,’’ वंदना ने कहा.

‘‘सौतेली मांएं बुरी ही होती हैं, अच्छी नहीं.’’

‘‘ओह हां, मैं तो इस बात को जानती ही नहीं थी. तुम कह रही हो तो यह ठीक ही होगा. बुरी ही नहीं, हो सकता है सौतेली मां देखने में डरावनी भी हो,’’ हलका सा मुसकराते हुए वंदना ने कहा.

शेफाली को इस बात से भी हैरानी थी कि जानकी बूआ ने अपने घर की बातें अपनी सहेली की बेटी से कैसे कर दीं?

वंदना अपने मधुर और आत्मीय व्यवहार से शेफाली के बहुत करीब तो आ गई मगर वह उस के बारे में ज्यादा जानती न थी, सिवा इस के कि वह जानकी बूआ की किसी सहेली की लड़की थी.

फिर एक दिन शेफाली ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘आप की शादी हो चुकी है?’’

‘‘हां,’’ वंदना ने कहा.

‘‘फिर आप अकेली यहां क्यों आई हैं? अपने पति को भी साथ में लाना चाहिए था.’’

‘‘वह साथ नहीं आ सकते थे.’’

‘‘क्यों?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘क्योंकि कोई ऐसा काम था जो उन के साथ रहने से मैं नहीं कर सकती थी,’’ बड़ी गहरी और भेदपूर्ण मुसकान के साथ वंदना ने कहा.

‘‘ऐसा कौन सा काम है?’’ शेफाली ने पूछा भी लेकिन वंदना जवाब में केवल मुसकराती रही. बोली कुछ नहीं.

अब पढ़ाई के लिए शेफाली जब भी ज्यादा रात तक जागती तो वंदना उस के कमरे में आ जाती और अधिकारपूर्वक उस के हाथ से किताब पकड़ कर एक तरफ रख देती व उस को सोने के लिए कहती.

शेफाली भी छोटे बच्चे की तरह चुपचाप बिस्तर पर लेट जाती.

‘‘गुड गर्ल,’’ कहते हुए वंदना अपना कोमल हाथ उस के ललाट पर फेरती और बत्ती बुझा कर कमरे से बाहर निकल जाती.

वंदना शेफाली की कुछ नहीं लगती थी फिर भी कुछ दिनों में वह शेफाली को इतनी अपनी लगने लगी कि उस को बारबार ‘मम्मी’ की याद आने लगी थी. ऐसा क्यों हो रहा था वह स्वयं नहीं जानती थी.

एक दिन रंजना ने शेफाली को यह बतलाया कि वंदना अगले दिन सुबह की ट्रेन से वापस अपने घर जा रही हैं तो उस को एक धक्का सा लगा था.

‘‘आप ने मुझ को बतलाया नहीं कि आप कल जा रही हैं?’’ मिलने पर शेफाली ने वंदना से पूछा.

‘‘मेहमान कहीं हमेशा नहीं रह सकते, उन को एक न एक दिन अपने घर जाना ही पड़ता है.’’

शेफाली का मुखड़ा उदासी की बदलियों में घिर गया.

‘‘आप जिस काम से आई थीं क्या वह पूरा हो गया?’’ शेफाली ने पूछा तो उस की आवाज में उदासी थी.

‘‘ठीक से बता नहीं सकती. वैसे मैं ने कोशिश की है. नतीजा क्या निकलेगा मुझ को मालूम नहीं,’’ वंदना ने कहा.

‘‘आप कितनी अच्छी हैं. मैं आप को भूल नहीं सकूंगी,’’ वंदना के हाथों को अपने हाथ में लेते शेफाली ने उदास स्वर में कहा.

‘‘शायद मैं भी नहीं,’’ वंदना ने जवाब में कहा.

‘‘क्या हम दोबारा कभी मिलेंगे?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘भविष्य के बारे में कुछ बतलाना मुश्किल है और दुनिया में संयोगों की कमी भी नहीं है,’’ शेफाली के हाथों को दबाते हुए वंदना ने कहा.

रवानगी से पहली रात को शेफाली के कमरे में वंदना आई तो वह बहुत गंभीर थी. उस की तरफ देख कर वंदना बोली, ‘‘जाने से पहले मैं तुम को कुछ समझाना चाहती हूं. मेरी बात पर अमल करना, न करना तुम्हारी मर्जी होगी. जीवन के सच से मुंह मोड़ना और हालात का सामना करने के बजाय उस से दूर भागना समझदारी नहीं. जिस को तुम ने देखा नहीं, जाना नहीं, उस के लिए नफरत क्यों? नफरत इसलिए क्योंकि उस के साथ ‘सौतेली’ शब्द जुड़ा है. प्यार और नफरत करने का तुम को हक है. किंतु तब तक नहीं जब तक तुम किसी को देख या जान न लो. अगर तुम्हारे पापा ने किसी दूसरी औरत से शादी कर के तुम्हारा दिल दुखाया है तो इस का मतलब यह नहीं कि तुम अपने घर पर अपना हक छोड़ दो. तुम को परीक्षाएं देने के बाद अपने घर वापस जाना ही है. यह पक्का इरादा कर लो. अपनों पर नाराज हुआ जाता है, उन को छोड़ा नहीं जाता. रही बात तुम्हारे पापा के साथ शादी करने वाली दूसरी औरत, मेरा मतलब तुम्हारी सौतेली मां से है. एक बार उस को भी देख लेना. अगर वह सचमुच तुम्हारी सोच के मुताबिक बुरी हो तो उस को घर से बाहर का रास्ता दिखलाने का इंतजाम कर देना. इस के लिए तुम को अपने पापा से भी झगड़ना पडे़ तो कोई हर्ज नहीं.’’

जब वंदना अपनी बात कह रही थी तो शेफाली हैरानी से उस के चेहरे को देख रही थी. वंदना की बातों से उस को एक बल मिल रहा था.

आगे पढ़ें- जानकी बूआ ने शेफाली पर घर जाने और पापा से फोन पर बात करने का दबाव बनाने की कोशिश की तो उस ने बूआ को सीधी धमकी दे डाली, ‘‘बूआ, अगर आप किसी बात के लिए मुझे ज्यादा परेशान करोगी तो सच कहती हूं, मैं इस घर को भी छोड़ कर कहीं चली जाऊंगी और फिर कभी किसी को नजर नहीं आऊंगी.’’

शेफाली की इस धमकी से बूआ थोड़ा डर गई थीं. इस के बाद उन्होंने शेफाली पर किसी बात के लिए जोर देना ही बंद कर दिया था.

शेफाली को यह भी पता था कि वह हमेशा के लिए बूआ के घर में नहीं रह सकती थी. 5-6 महीने के बाद जब उस की बी.एड. की पढ़ाई खत्म हो जाएगी तो उस के पास बूआ के यहां रहने का कोई बहाना नहीं रहेगा.

तब क्या होगा?

आने वाले कल के बारे में जितना सोचती उतना ही अनिश्चितता के धुंधलके में घिर जाती. बगावत पर आमादा शेफाली का मन उस के काबू में नहीं रहा था.

फूफा से शेफाली कम ही बात करती थी. बूआ से तो उस का छत्तीस का आंकड़ा था लेकिन उस घर में शेफाली जिस से अपने दुखसुख की बात करती थी वह थी रंजना, जानकी बूआ की बेटी.

रंजना लगभग उसी की हमउम्र थी और एम.ए. कर रही थी.

रंजना उस के दिल के हाल को समझती थी और मानती थी कि उस के पापा ने उस की गैरमौजूदगी में शादी कर के गलत किया था. इस के साथ वह शेफाली को हालात के साथ समझौता करने की सलाह भी देती थी.

सौतेली मां के लिए शेफाली की नफरत को भी रंजना ठीक नहीं समझती थी.

वह कहती थी, ‘‘बहन, तुम ने अभी उस को देखा नहीं, जाना नहीं. फिर उस से इतनी नफरत क्यों? अगर किसी औरत ने तुम्हारी मां की जगह ले ली है तो इस में उस का क्या कुसूर है. कुसूर तो उस को उस जगह पर बिठाने वाले का है,’’ ऐसा कह कर रंजना एक तरह से सीधे शेफाली के पापा को कुसूरवार ठहराती थी.

कुसूर किसी का भी हो पर शेफाली किसी भी तरह न तो किसी अनजान औरत को मां के रूप में स्वीकार करने को तैयार थी और न ही पापा को माफ करने के लिए. वह तो यहां तक सोचने लगी थी कि पढ़ाई पूरी होने पर उस को जानकी बूआ का घर भले ही छोड़ना पडे़ लेकिन वह अपने घर नहीं जाएगी. नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी होगी और अकेली किसी दूसरी जगह रह लेगी.

2 बार मना करने के बाद पापा ने फिर शेफाली से फोन पर बात करने की कोशिश नहीं की थी. हालांकि जानकी बूआ से पापा की बात होती रहती थी.

मानसी और अंकुर से शेफाली ने फोन पर जरूर 2-3 बार बात की थी, लेकिन जब भी मानसी ने उस से नई मम्मी के बारे में चर्चा करने की कोशिश की तो शेफाली ने उस को टोक दिया था, ‘‘मुझ से इस बारे में बात मत करो. बस, तुम अपना और अंकुर का खयाल रखना,’’ इतना कहतेकहते शेफाली की आवाज भीग जाती थी. अपना घर, अपने लोग एक दिन ऐसे बेगाने बन जाएंगे शेफाली ने कभी सोचा नहीं था.

पहले तो शेफाली सोचती थी कि शायद पापा खुद उस को मनाने जानकी बूआ के यहां आएंगे पर एकएक कर कई दिन बीत जाने के बाद शेफाली के अंदर की यह आशा धूमिल पड़ गई.

इस से शेफाली ने यह अनुमान लगाया कि उस की मम्मी की जगह लेने वाली औरत (सौतेली मां) ने पापा को पूरी तरह से अपने वश में कर लिया है. इस सोच में उस के अंदर की नफरत को और गहरा कर दिया.

अचानक एक दिन बूआ ने नौकरानी से कह कर ड्राइंगरूम के पिछले वाले हिस्से में खाली पड़े कमरे की सफाई करवा कर उस पर कीमती और नई चादर बिछवा दी थी तो शेफाली को लगा कि बूआ के घर कोई मेहमान आने वाला है.

शेफाली ने इस बारे में रंजना से पूछा तो वह बोली, ‘‘मम्मी की एक पुरानी सहेली की लड़की कुछ दिनों के लिए इस शहर में घूमने आ रही है. वह हमारे घर में ही ठहरेगी.’’

‘‘क्या तुम ने उस को पहले देखा है?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ रंजना का जवाब था.

शेफाली को घर में आने वाले मेहमान में कोई दिलचस्पी नहीं थी और न ही उस से कुछ लेनादेना ही था. फिर भी वह जिन हालात में बूआ के यहां रह रही थी उस के मद्देनजर किसी अजनबी के आने के खयाल से उस को बेचैनी महसूस हो रही थी.

वह न तो किसी सवाल का सामना करना चाहती थी और न ही सवालिया नजरों का.

जानकी बूआ की मेहमान जब आई तो शेफाली उसे देख कर ठगी सी रह गई.

चेहरा दमदमाता हुआ सौम्य, शांत और ऐसा मोहक कि नजर हटाने को दिल न करे. होंठों पर ऐसी मुसकान जो बरबस अपनी तरफ सामने वाले को खींचे. आंखें झील की मानिंद गहरी और खामोश. उम्र का ठीक से अनुमान लगाना मुश्किल था फिर भी 30 और 35 के बीच की रही होगी. देखने से शादीशुदा लगती थी मगर अकेली आई थी.

जानकी बूआ ने अपनी सहेली की बेटी को वंदना कह कर बुलाया था इसलिए उस के नाम को जानने के लिए किसी को कोई कोशिश नहीं करनी पड़ी थी.

मेहमान को घर के लोगों से मिलवाने की औपचारिकता पूरी करते हुए जानकी बूआ ने अपनी भतीजी के रूप में शेफाली का परिचय वंदना से करवाया था तो उस ने एक मधुर मुसकान लिए बड़ी गहरी नजरों से उस को देखा था. वह नजरें बडे़ गहरे तक शेफाली के अंदर उतर गई थीं.

शेफाली समझ नहीं सकी थी कि उस के अंदर गहरे में उतर जाने वाली नजरों में कुछ अलग क्या था.

‘‘तुम सचमुच एक बहुत ही प्यारी लड़की हो,’’ हाथ से शेफाली के गाल को हलके से थपथपाते हुए वंदना ने कहा था.

उस के व्यवहार के अपनत्व और स्पर्श की कोमलता ने शेफाली को रोमांच से भर दिया था.

शेफाली तब कुछ बोल नहीं सकी थी.

जानकी बूआ वंदना की जिस प्रकार से आवभगत कर रही थीं वह भी कोई कम हैरानी की बात नहीं थी.

एक ही घर में रहते हुए कोई कितना भी अलगअलग और अकेला रहने की कोशिश करे मगर ऐसा मुमकिन नहीं क्योंकि कहीं न कहीं एकदूसरे का सामना हो ही जाता है.

शेफाली और वंदना के मामले में भी ऐसा ही हुआ. दोनों अकेले में कई बार आमनेसामने पड़ जाती थीं. वंदना शायद उस से बात करना चाहती थी लेकिन शेफाली ही उस को इस का मौका नहीं देती थी और केवल एक हलकी सी मुसकान अधरों पर बिखेरती हुई वह तेजी से कतरा कर निकल जाती थी.

आगे पढ़ें- वंदना ने अपनी बात इतने अधिकार…

अपनी-अपनी जिम्मेदारियां: भाग 4- आशिकमिजाज पति को क्या संभाल पाई आभा

रास्तेभर वह सोचविचार करता रहा कि वह कितना गलत था और आभा कितनी सही. मैं ने कभी उसे नहीं समझा. बच्चे घर में मौज करते रहे और मैं बाहर और वह बेचारी हम सब की तीमारदारी में लगी रही. कभी अपने लिए नहीं सोचा उस ने और मैं ने भी क्या सोचा उस के लिए? एक डाक्टर को तो दिखा नहीं पाया. अगर आज उसे कुछ हो जाता, तो क्या करता मैं? क्या पूरी जिंदगी जी पाता मैं उस के बिना? बेटाबेटी, जिन्हें मैं जान से बढ़ कर प्यार करता हूं, उन के सामने आभा को कभी अहमियत नहीं दी वही बच्चे 1 गिलास पानी मांगने पर चिढ़ उठते. देख लिया मैं ने सब और समझ भी लिया. वह रंभा, जो मेरी जेबें खाली करवाती रहती थी, उसे भी देख लिया. कैसे मुंह फेर लिया उस ने मुझ से? चलो अच्छा ही है. वह कहते हैं न, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है यही सब सोचते हुए वह कब घर पहुंच गया, पता ही नहीं चला.

देखा तो रिनी बड़े मजे से झूला झूलते हुए किसी से फोन

पर बातें करने में मशगूल थी. सोनू कमरे में बैठा हमेशा की तरह लैपटौप चला रहा था और निर्मला, बाबाजी की आवभगत में लगी हुई थीं. नवल को देखते ही सब की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. बाबाजी तो तुरंत वहां से रफूचक्कर हो गया, क्योंकि पहले ही नवल ने चेता दिया था कि बाबा को घर में न बुलाया करें. उस दिन तो वह चुप रह गया था, लेकिन आज लगता है आभा एकदम सही कहती थी, ये ढोंगी बाबा लोगों को बहला कर सिर्फ उन से पैसे ऐंठते हैं और कुछ नहीं. बाबाओं के कारनामे सुनसुन कर तो अब उन पर से विश्वास ही उठ गया है. लेकिन अभी भी निर्मला जैसे कुछ लोग हैं, जो उन के चरणों में लोट जाने के लिए तत्पर रहते हैं.

‘‘चाय पिलाओ रिनी, 1 कप,’’ झूले पर बैठते हुए एकबारगी नवल ने सब को देखा. निर्मला पूछने लगीं, ‘‘अब आभा कैसी है?’’

‘‘ठीक है. डाक्टर कह रहे थे 2-4 दिन में छुट्टी कर देंगे, लेकिन आप लोगों से कुछ बात करनी है मुझे,’’ कह नवल ने सोनू और रिनी को भी आवाज दे कर बुलाया.

‘‘रिनी, आभा घर आ तो रही है, पर डाक्टर ने अभी उसे आराम करने को कहा है, इसलिए जब तक तुम्हारी मां पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाती खाना तुम बनाओगी.’’

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खाना बनाने का नाम सुनते ही रिनी के हाथपांव फूलने लगे. घबरा कर बोली, ‘‘पर पापा, मैं कैसे… मुझे कहां कुछ बनाना आता है? नहींनहीं, मुझ से ये सब नहीं होगा. वैसे भी मां तो अब आ ही रही हैं न?’’

रिनी की बात पर नवल ऐसे गुर्राया कि वह सहम उठी. बोला, ‘‘क्या वह हम सब की नौकरानी है? मैं ने कहा कि जब तक तुम्हारी मां पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाती, खाना तुम ही बनाओगी यह बात तय है और रही बात बनाना न आने की, तो दादी से पूछो, यूट्यूब में देखो और बनाओ. कोई बहाना नहीं चलेगा, अब तुम बच्ची नहीं रही. कालेज में चली गई हो. कल को शादी भी होगी, तो क्या वहां भी तुम्हारी मां तुम्हारे नखरे उठाने जाएगी?’’

समझ गई रिनी कि अब वह नहीं बचने वाली. काम तो करना ही पड़ेगा. इसलिए सिर झुका कर उसे नवल के फैसले को स्वीकार करना पड़ा.

रिनी के बाद नवल ने सोनू को घूर कर देखा, तो बेचारा डर के मारे अपनेआप में ही सिकुड़ने लगा. कहा भी गया है सामने वाले को पहले अपने हावभाव से डराओ ताकि उस की आधी हिम्मत वैसे ही पस्त हो जाए. जैसेकि सोनू की हो गई.

‘‘क्यों, अगले महीने से तुम्हारी परीक्षा शुरू होने वाली है न? तो क्या पढ़ाई तुम्हारा बाप करेगा? पढ़ाई छोड़ कर दोस्तों के साथ चैटिंग करने में लगे रहते हो. क्या इसलिए मैं ने तुम्हें लैपटौप खरीद कर दिया था? जिंदगीभर का ठेका नहीं ले रखा है मैं ने तुम सब का समझे?’’

नवल ने कड़कती आवाज में कहा, तो सोनू जी पापा, जी पापा करने लगा. समझ में आ गया नवल को कि प्यार के साथसाथ बच्चों के साथ सख्ती भी जरूरी होती है. बोला, ‘‘पढ़ाई के अलावा आज से बाहर के सारे काम, जैसे दूध, फलसब्जी लाना आदि जो भी घर से जुड़े काम हैं वे सब तुम करोगे और हां, अपने कपड़े भी तुम खुद ही धोओगे आज से, समझ गए?’’

नवल की सख्त आवाज से दोनों बच्चों की घिग्गी बंध गई.

‘‘और मां आप, बाबाओं को घर में बुलाना बंद कीजिए. कितनी बार आभा ने आप को समझाया, लेकिन आप हैं कि सुनती ही नहीं हैं. आप बड़ी हैं घर की. कम से कम इतना तो ध्यान रख ही सकती हैं कि बच्चे क्या कर रहे हैं, कहां जा रहे हैं, घर पर हैं की नहीं, घर में कौन आया, कौन गया, क्या ये सब ध्यान रखने की जिम्मेदारी आप की नहीं बनती? आप ही बताइए न, एक अकेला इंसान आखिर कितना काम करेगा. मैं तो सुबह से रात के 8 बजे तक औफिस में ही रहता हूं, तो मैं क्या कर सकता हूं?’’ प्यार से ही, पर निर्मला को भी नवल ने उन की जिम्मेदारी अच्छी तरह समझा दी.

हफ्तेभर बाद जब आभा घर पहुंची, तो उसे सबकुछ बदलाबदला सा

लगा. क्या सोचा था उस ने कि उस के बिना घर की क्या स्थिति हो गई होगी और यहां तो सब अलग ही था. सब बिस्तरों पर सलीके से चादरें बिछी थीं. हाल भी एकदम करीने से सजा चमका था. किचन भी एकदम साफसुथरी व व्यवस्थित थी. खाने की बड़ी अच्छी खुशबू भी आ रही थी. पूरा घर चमक रहा था. विश्वास नहीं हुआ आभा को कि यह उस का ही घर है.

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‘‘क्या देख रही हो आभा? यह तुम्हारा ही घर है और ये सब मां और बच्चों ने मिल कर किया है,’’ नवल ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘मां को देखते ही दोनों बच्चे आ कर उस से लिपट गए. निर्मला ने भी बहू को अपने सीने से लगा लिया. यह सब अप्रत्याशित था आभा के लिए, क्योंकि  उस ने सपने में भी नहीं सोचा था ये सब होगा.’’

रात में बड़ी सुकून की नींद आई आभा को. वह जैसे ही उठने लगी नवल ने उस का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘आज से हर सुबह की चाय यह बंदा बनाएगा आप के लिए,’’ कह कर वह उठने लगा तो लड़खड़ा गया.

‘‘नहींनहीं, घबराओ नहीं मैं ठीक हूं और अगर कभी ठोकर खा कर गिर भी जाऊं, तो

तुम संभाल लेना,’’ नवल ने कहा, तो आभा

को हंसी आ गई. वर्षों बाद आभा के चेहरे पर हंसी देख नवल भी मुसकरा उठा, ‘‘अब मैं तुम्हें कभी मुरझाने नहीं दूंगा आभा… बस आप का साथ रहे.’’

औरत का सरोवर तो आदमी होता है. पुरुषरूपी पानी के साथ वह बढ़ती जाती है, ऊपर से ऊपर, पर जैसे ही पानी घटा, पीछे हटा, वैसे ही औरत बेसहारा हो कर सूखने लगती है. आभा के साथ भी वही हुआ. जब तक नवल का सहयोग था, वह खिलती रही, जब से नवल का प्यार घटा, वह मुरझाने लगी. लेकिन आज फिर उसी पुराने नवल को देख वह खिल उठी. मन लहराने को करने लगा. मन के साथ उस के पूरे शरीर में भी ताकत समा गई.

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