हेयर ड्रायर का इस्तेमाल पड़ सकता है महंगा

वैसे तो बालों को सुखाने के लिए धूप ही सबसे बेहतर विकल्प है, लेकिन यदि मौसम ठंडा या बारिश का हो, तो बालों को सुखाने के लिए ड्रायर का इस्तेमाल किया जा सकता है. हां, अगर आप नियमित तौर पर हेयर ड्रायर का इस्तेमाल करते हैं, तो आपको इसके नुकसान और सावधानियों के बारे में जरूर जान लेता चाहिए.

बालों को नया हेयर स्टाइल देने के लिए भी हेयर ड्रायर का इस्तेमाल होता है. लेकिन इसके नुकसान भी जल्द ही दिखाई दे सकते हैं. हेयर ड्रायर का अत्यधिक इस्तेमाल बालों की प्राकृतिक सुंदरता छीन सकता है. वहीं इसके रोजाना इस्तेमाल से बालों में डैंड्रफ, क्लीडेंट, डल एंड ड्राइनेस जैसी समस्याएं बढ़ सकती है और  बाल रूखे व बेजान होकर टूटने लगते हैं. हेयर ड्रायर के नुकसान का एक  प्रमुख कारण इससे निकलने वाली हीट ही है, जो बालों की जड़ों को नुकसान पहुंचाती है और बालों को दो मुंहा भी बनाती है.

 सावधानियां

1.  हेयर ड्रायर का इस्तेमाल करते वक्त ध्यान रखें कि बालों से इसकी दूरी 6-9 इंच की जरूर हो. ऐसा न होने पर बालों में रूखापन बढ़ जाएगा और वे जल्दी टूटने भी लगेंगे.

2. हेयर ड्रायर प्रयोग करने से पहले बालों में सीरम लगा लें, ताकि ड्रायर की हीट से बालों को ज्यादा नुकसान भी न पहुंचे और बाल मुलायम हो सकें.

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3. आपके बालों के प्रकार के अनुसार ही हेयर ड्रायर का इस्तेमाल करना बेहतर होगा. जैसे कि बाल कर्ली हैं, रूखे हैं, सॉफ्ट हैं या सिल्की हैं, इसके अनुसार आपको तापमान या फिर समय की आवश्यकता होगी.

4. ड्रायर के इस्तेमाल करने से पहले बालों की कंडीशनिंग करना न भूलें. कई बार सही तरीके से इस्तेमाल न किए जाने पर बाल ड्राय होने के साथ-साथ उलझ भी जाते हैं, जो इनके टूटने का कारण बनता है.

5. रूखे बालों में जितना हो सके कम ड्रायर का इस्तेमाल करें. कोल्ड ड्रायर का इस्तेमाल करें क्योंकि इसमें आयन ज्यादा होते हैं जो पॉजिटिव होते हैं और हवा में हीट कम होती है.

6. अगर आपके लिए हेयर ड्रायर का इस्तेमाल जरूरी है तो बालों की रेगुलर ऑयलिंग करें, ताकि बालों को पर्याप्त पोषण मिल सके. ड्रायर का अधिक इस्तेमाल बालों का पोषण छीन लेता है.

7. बालों का मजबूत व पोषित रखने के लिए खाने-पीने का विशेष ध्यान रखें. आंवला, हरी सब्जी, जूस, दही आदि को अपने खाने में शामिल कर भी बालों को पोषण प्रदान किया जा सकता है.

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बचत से करें भविष्य सुरक्षित

खुशहाल वर्तमान व सुख और सुकून भरे भविष्य के लिए किए गए उचित प्रयास ही फायदे का सौदा साबित होते हैं. सिर्फ कमानेखाने व बेहिसाब खर्च करने का नाम ही जिंदगी नहीं है. जीवन में भविष्य की प्लानिंग भी करनी पड़ती है और इस में सब से महत्त्वपूर्ण है फाइनैंशियल प्लानिंग. समयसमय पर आने वाली बड़ी जरूरतों या जिम्मेदारियों को पूरा करने में पहले से बचत कर के जमा की हुई राशि एक मजबूत सहारा होती है. यह आर्थिक सुरक्षा का एहसास कायम रख कर जीवन को आसान बना देती है.

सुरक्षित भविष्य के लिए जानिए कुछ आवश्यक बातें:

1. बचत की आदत डालें

हर महीने अपनी आय का कुछ हिस्सा बचत खाते में डालें और उस के बाद बचे हुए पैसे से पूरे महीने का बजट तैयार करें. हो सके तो बचत के पैसे से रिकरिंग डिपौजिट कराते रहें. राशि कम हो या ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ता. बचत की आदत पड़ते ही आप बड़ी रकम जोड़ना शुरू कर देंगे. धीरेधीरे इसे अपनी आदत बना लें. जैसेजैसे आप की बचत राशि बढ़ती जाएगी, आप को खुशी मिलने के साथसाथ और बचत करने की प्रेरणा मिलती रहेगी व आप की आर्थिक स्थिति मजबूत होती जाएगी.

2. उचित योजना बनाएं

भविष्य की आर्थिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए आवश्यक है कि उचित योजना बनाएं. अपने व घर के तमाम खर्चों का हिसाब लगाएं व अपनी कुल आमदनी भी जोड़ लें. खर्च और आमदनी की तुलना करें. अब देखें कि जितना पैसा बच रहा है, उस से भविष्य की जरूरतें पूरी हो सकेंगी या नहीं. आवश्यक हो तो गैरजरूरी खर्चों में कटौती करें.

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3. बेतहाशा खर्च करने की आदत से बचें

आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया’ वाली कहावत उस वक्त चरितार्थ होने लगती है जब गैरजरूरी चीजों या शौकिया तौर पर पैसे खर्च करते हुए इस बात का भी ध्यान नहीं रखा जाता कि हम अपनी आय से अधिक खर्च करते हुए पिछली जमा राशि को भी लुटाते जा रहे हैं. अत: अपने दैनिक खर्चों पर नजर डालें और प्रतिदिन के खर्चों का हिसाब रखें. आप स्वयं पर और घर पर कितना खर्च करते हैं, घर में एक दिन का खर्च कितना है, इन सब बातों को ध्यान में रखें. बाजार में जाने से पहले खरीदारी के सामान की एक लिस्ट तैयार करें. बाजार में सामान खरीदते वक्त मोलभाव करें. ऐसा करने से निश्चित रूप से बचत होगी. जहां तक संभव हो भुगतान कैश से ही करें. क्रैडिट कार्ड पर निर्भर न रहें. इस का इस्तेमाल केवल आवश्यकता पड़ने पर ही करें, क्योंकि क्रैडिट कार्ड के कारण अनावश्यक खर्च भी हो जाते हैं.

4. अलग अलग सेविंग अकाउंट्स

बचत की राशि को सैलरी अकाउंट में रखने के बजाय उस के लिए अलग से सेविंग अकाउंट खोलें. बचत के लिए पैसे को अलगअलग जगह इन्वैस्ट करें. पोस्ट आफिस व बैंकों द्वारा चलाई जाने वाली सेविंग स्कीम का लाभ उठा सकते हैं. एनएससी, केवीपी, एमआईएस आदि स्कीम पैसों के निवेश में अच्छे विकल्प हैं. स्माल सेविंग स्कीम लेना बेहतर होता है. इस के अलावा ‘पीपीएफ’ में भी पैसा डाल कर फायदा हो सकता है. इस से पैसा सुरक्षित रहने के साथसाथ टैक्स में भी छूट मिलती है. इस के साथ ही इंश्योरैंस भी कराएं.

5. उपयुक्त इन्वैस्टमैंट

इन्वैस्टमैंट के मामले में सोचसमझ कर फैसला लें. इन्वैस्टमैंट का जो भी विकल्प चुनें वे आप की जरूरतों के मुताबिक ही हों. इस मामले में आप की आवश्यकताएं, आप की उम्र, फाइनैंशियल रिसोर्स, रिक्स प्रोफाइल, इन्वैस्टमैंट के लक्ष्य आदि पर निर्धारित होती हैं. इन्वैस्टमैंट प्लान लेते वक्त यह भी ध्यान रखें कि आप कितने समय बाद, कितने रिटर्न की उम्मीद कर रहे हैं.

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6. फाइनैंशियल लक्ष्य

सब से पहले यह जरूरी है कि आवश्यकतानुसार शौर्ट टर्म या लांग टर्म फाइनैंशियल प्लान बनाया जाए. जैसे कि आप कोई बिजली का उपकरण खरीदना चाहते हैं या फिर कार अथवा मकान. बिजली का उपकरण या ऐसी कोई अन्य चीज खरीदने के लिए आप को ज्यादा लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा. ये चीजें 1 या 2 महीने में खरीदने का इंतजाम किया जा सकता है, लेकिन कार या मकान के लिए एक लंबी अवधि तक बचत की आवश्यकता पड़ती है तभी आप इसे खरीद सकते हैं, जिस के लिए बहुत पहले से ही प्लानिंग कर लें.

फैमिली के लिए बनाएं खजूर नवाबी कोफ्ते

शनिवार यानि की सप्ताह का आखिरी दिन. हर किसी को विकेंड का बेसब्री से इंतजार रहता है. जिन्हें हफ्ते में सिर्फ एक छुट्टी मिलती है, उन्हें तो शनिवार का और भी बेसब्री से इंतजार रहता है. इस विकेंड जरूर ट्राई करें खजूर नवाबी कोफ्ते. करिए अपनी एक शाम शाही खाने के नाम. मैसेज कर के जरूर बताएं कि आपको यह डिश कैसी लगी.

सामग्री

– 10 खजूर

– 20 ग्राम खोया

– 50 ग्राम पनीर मसला

– चुटकी भर इलाइची पाउडर

– चुटकी भर लालमिर्च पाउडर

– चुटकी भर गरममसाला

– 100 ग्राम ब्रैडक्रंब्स

– पर्याप्त तेल फ्राई करने के लिए

– नमक स्वादानुसार.

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ग्रेवी की सामग्री

– 2-3 कलियां लहसुन

– 1 छोटा टुकड़ा अदरक

– 2 प्याज

– 30 ग्राम टोमैटो प्यूरी

– 5 काजू

– चुटकी भर इलाइची पाउडर

– 1 बड़ा चम्मच धनिया पाउडर द्य चुटकी भर सौंफ पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

– 2 बड़े चम्मच तेल

– 5 ग्राम क्रीम द्य 2 तेजपत्ते

– नमक स्वादानुसार.

विधि

खजूर के बीज निकाल लें. फिर खोया, नमक, लालमिर्च पाउडर, इलाइची पाउडर और गरम मसाले का मिश्रण तैयार करें और प्रत्येक खजूर में यह मिश्रण भरें. अब पनीर को मैश कर उस में नमक, लालमिर्च पाउडर और थोड़े से ब्रैडक्रंब्स मिला कर गूंथ लें.

अब एक लोई के बीचोंबीच एक खजूर रख दें. खजूर को अच्छी तरह लोई से कवर करें और ब्रैडक्रंब्स में रोल करने के बाद उसे डीप फ्राई करें. इस तरह 10 कोफ्ते तल लें. फिर 2-3 मिनट के लिए काजू को पानी में रखें. अब लहसुन, अदरक, प्याज और काजू का पेस्ट बना लें.

इस मिश्रण को हलका सुनहरा होने तक तेल में फ्राई करें. फिर इस में टोमैटो प्यूरी, धनिया पाउडर, इलाइची पाउडर, सौंफ पाउडर, जीरा पाउडर, लालमिर्च पाउडर, नमक और गरममसाला डालें और फ्राई करें. अब इस मिश्रण में थोड़ा पानी डालें और ग्रेवी को उबालें. इस में थोड़ी क्रीम डाल कर ग्रेवी में कोफ्ते डालें और परोसें.

व्यंजन सहयोग: रुचिता जुनेजा कपूर

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तो बैटर हाफ बन जाएगी बैस्ट हाफ

विवाह 2 अजनबियों का वह बंधन होता है जिस में वे एकदूसरे का जीवन भर साथ निभाने का वादा करते हैं. लेकिन कई बार पारिवारिक दबाव के चलते यह बंधन बेमेल भी हो जाता है, जिस में पति तो बेहद आकर्षक होता है. मगर पत्नी उस के मुकाबले उन्नीस नहीं पंद्रह यानी कम आकर्षक या गंवार होती है. इस के चलते इस अटूट बंधन में गांठ पड़ने की संभावना रहती है, क्योंकि खूबसूरत और आकर्षक पति को लगता है उस का और उस की पत्नी का कोई मेल नहीं है. वह उस से कटाकटा सा रहने लगता है. जबकि विवाह व प्यार के लिए खूबसूरती से ज्यादा आपसी तालमेल की जरूरत होती है. वैसे भी विवाह 2 शरीरों का ही नहीं 2 दिलों का भी मिलन होता है. 1986 में बनी फिल्म ‘नसीब अपनाअपना’ में ऋषि कपूर का विवाह गांव की सांवली लड़की राधिका के साथ होता है. ऋषि कपूर उस में कोई दिलचस्पी नहीं लेता, लेकिन राधिका अपने पति को लुभाने की पूरीपूरी कोशिश करती है.

ब्यूटी पर भारी टैलेंट

कहावत है खूबसूरती देखने वाले की आंखों में होती है. अगर आप की पत्नी आप के मुकाबले लुक्स में उन्नीस है तो यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपनी पत्नी को किस नजर से देखते हैं. आप उस के लुक्स को अनदेखा कर के उस के गुणों व टैलेंट को ज्यादा महत्त्व दे सकते हैं. माना कि आप की पत्नी गोरी नहीं है, खूबसूरत नहीं है, मोटी है लेकिन उस में कुछ गुण अवश्य होंगे, जिन्हें आप खूबसूरती से ज्यादा महत्त्व दे सकते हैं. हो सकता है वह अच्छी कुक हो, गीतसंगीत में माहिर हो, अच्छी पेंटिंग करती हो. आप उस के उन गुणों को महत्त्व दें. उस की सराहना करें. अगर आप उस की कम खूबसूरती को ले कर उस की अनदेखी करेंगे या उस से दूरी बनाएंगे, तो आप न केवल उस के साथ ज्यादती करेंगे, बल्कि खुद के साथ भी ज्यादती करेंगे. आप अपने आसपास नजर दौड़ाए. ऐसे अनेक जोड़े होंगे, जिन का शारीरिक रूप से कोई मेल नहीं है, फिर वे एकदूसरे के पूरक है, एकदूसरे को पूरी तरह सपोर्ट करते हैं, क्योंकि उन्होंने एकदूसरे को दिल से अपनाया है.

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खूबसूरती के असल माने

कई बार देखने में आता है कि पत्नी बेहद खूबसूरत तो होती है, लेकिन पति के साथ उस का कोई तालमेल नहीं होता. वे एकदूसरे के अच्छे दोस्त नहीं होते, सुखदुख में उन की आपसी साझेदारी नहीं होती. ऐसे में पत्नी की खूबसूरती मात्र दिखावा बन कर रह जाती है. पतिपत्नी के रिश्ते में सूरत से ज्यादा आपसी प्यार व समझदारी महत्त्व रखती है. वैसे भी जब 2 लोग आपस में प्यार करते हैं तो काला, गोरा, मोटा, पतला, लंबा, ठिगना कोई महत्त्व नहीं रखता, क्योंकि प्यार अंधा होता है. आप छैलछबीले हैं, लेकिन आप की पत्नी गंवार है, तो भी आप उसे उसी रूप में स्वीकारें. जब आप उसे प्यार करने लगेंगे तो वह आप को खूबसूरत दिखने लगेगी. प्यार का एहसास खूबसूरती पैदा करता है, मुश्किलों का सामना करने की हिम्मत देता है. आप पत्नी से इसलिए प्यार न करें कि वह खूबसूरत है, बल्कि अपने प्यार से उस की खूबसूरती को निखारें.

बेमेल विवाह में ऐसे होगा मेल

माना कि आप दोनों के लुक्स, स्टाइल में अंतर है, लेकिन अब वह आप की बैटर हाफ है यानी आप के जीवन की पार्टनर है तो आप की जिम्मेदारी बनती है कि आप उसे बैस्ट हाफ बनाएं बजाय उसे अपने से कमतर होने का एहसास कराने के. दोस्तों, रिश्तेदारों के सामने न खुद शर्मिंदा हों न उसे शर्मिंदा कराएं. पत्नी की भावनाओं को महत्त्व दें व पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के सामने उस की खूबियों का बखान करें. कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना, इस पर अमल कर अपनी बैटर हाफ में आत्मविश्वास जगाएं. ‘तुम से विवाह कर के मेरी तो जिंदगी ही बरबाद हो गई,’ कई पति ऐसी बातें कह कर पत्नी को उस की कमियों का एहसास कराते हैं. इस से रिश्ते में प्यार व जुड़ाव पनपने के बजाय नफरत व अलगाव पैदा होता है, जो किसी भी रिश्ते के टूटने के लिए पर्याप्त होता है.

ऐसे बेमेल विवाह के बावजूद एकदूसरे के साथ मेल करना ही पतिपत्नी के स्वस्थ रिश्ते की पहचान होती है. हाल ही में धनबाद झारखंड की ऐसिड अटैक की शिकार सोनाली मुखर्जी की उड़ीसा के इंजीनियर चितरंजन तिवारी ने अपनी पत्नी बना कर यह जता दिया कि वह सिर्फ सोनाली मुखर्जी की बाहरी नहीं आंतरिक खूबसूरती से प्यार करता है. आप को जान कर हैरानी होगी कि इस ऐसिड अटैक में सोनाली का 70 फीसदी चेहरा जल गया था. सोनाली और चितरंजन का वैवाहिक बंधन साबित करता है कि विवाह में शारीरिक बनावट के बजाय मन का मेल अधिक माने रखता है.

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गू्रमिंग का लें सहारा

बाजार में, मेकअप, ब्यूटीफिकेशन व पर्सनैलिटी डैवलपमैंट के इतने औप्शन हैं कि आप पत्नी का टोटल लुक चेंज कर सकते हैं. अच्छा हेयर कट, फिगर के अनुकूल ड्रैस, सैक्सी साड़ी व ब्लाउज व चेहरे के अनुसार मेकअप आप की पत्नी को बेहतर लुक दे सकता है. आप चाहें तो अपनी पत्नी को पर्सनैलिटी डैवलपमैंट की क्लासेज भी जौइन करा सकते हैं जहां उसे टेबल मैनर्स, गैस्ट का वेलकम, बोलचाल, चालढाल सभी की सही ट्रेनिंग दी जाएगी. इस से उस का व्यक्तित्व निखर जाएगा और आप हैरान हो जाएंगे कि क्या यह वही पत्नी है. यही नहीं गू्रमिंग से आप की पत्नी में आत्मविश्वास भी जगेगा.

पीरियड्स में साफ रहें स्वस्थ रहें

माहवारी को यौवन की शुरुआत कहा जाता है. महिलाएं इस का अनुभव किशोरावस्था से ले कर मध्य आयु तक करती हैं. फिर भी अभी तक हमारे समाज में इस के बारे में खुल कर बात नहीं की जाती है. यहां तक कि कुछ लोगों की तो मान्यता है कि माहवारी के समय महिलाएं बीमार और अछूत हो जाती हैं.

इस तरह की बातें दकियानूसी होती हैं. माहवारी कोई बीमारी नहीं है. माहवारी महिलाओं को प्रकृति का एक अनमोल तोहफा है, जो महिलाओं को पूर्ण बनाता है. महिलाओं को माहवारी के दौरान शर्म की जगह गर्व महसूस करना चाहिए, क्योंकि वे पूर्ण हैं.

जानकारी जरूरी

हर लड़की को माहवारी की समस्या से जूझना पड़ता है. लेकिन यह समस्या तब और बड़ी लगने लगती है जब बिना किसी जानकारी के इस से निबटना पड़े. अकसर लड़कियां झिझक के कारण किसी से माहवारी के विषय में बात नहीं करतीं. नतीजा यह होता है कि अचानक पीरियड्स शुरू हो जाते हैं और वे घबरा जाती हैं. इस घबराहट में वे अपनी तबीयत खराब कर लेती हैं. जबकि उन्हें पहले से ही माहवारी की जानकारी हो तो इस स्थिति से निबटना उन के लिए आसान हो जाता है.

सभी मांओं को अपनी बेटियों को उन के शरीर में होने वाले प्राकृतिक बदलावों के बारे में पहले से बताना चाहिए. ऐसा करने से मांएं अपनी बेटियों को बेवजह तनाव का शिकार बनने से रोक पाएंगी.

उपेक्षित महसूस न करें

पुरानी रीतियों और रिवाजों के तहत माहवारी के दौरान लड़कियों पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी जाती हैं. जैसे रसोई में न जाओ, बिस्तर में न बैठो, पेड़पौधों को न छुओ. इस तरह की टोकाटाकी से लड़कियां खुद को उपेक्षित महसूस करने लगती हैं. माहवारी के दिन आते ही वे खुद को अपराधी सा महसूस करने लगती हैं.

कई लड़कियां तो माहवारी  के दिनों में अवसादग्रस्त हो जाती हैं. इस तरह के मानसिक बदलाव के कारण रक्तस्राव में फर्क पड़ता है. किसी को रक्तस्राव अधिक होने लगता है तो किसी को बहुत कम. लेकिन इस स्थिति में बिलकुल भी तनाव नहीं लेना चाहिए, क्योंकि माहवारी होना एक प्राकृतिक क्रिया है.

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साफसफाई है जरूरी

कई महिलाओं को भ्रम होता है कि माहवारी के समय केशों को नहीं धोना चाहिए. इस से माहवारी ठीक से नहीं हो पाती और रक्तस्राव भी कम होता है. कुछ महिलाएं तो माहवारी के समय नहाने तक को सही नहीं समझतीं और जब तक रक्तस्राव होता है तब तक वे नहीं नहातीं. दरअसल, उन का मानना होता है कि नहाने से माहवारी के समय अधिक दर्द होता है. लेकिन यह सिर्फ भ्रम है. उलटे माहवारी के समय नहाना बेहद जरूरी है. इस समय तो शरीर की साफसफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए खासकर योनि व उस के आसपास की सफाई बेहद जरूरी है.

सैनिटरी नैपकिन का रखरखाव

कई महिलाएं सैनिटरी नैपकिन को कहीं भी रख देती हैं. जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए. खासतौर पर खुले और इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी नैपकिन को हमेशा साफसुथरे स्थान पर रखना चाहिए. यदि इस्तेमाल किए जा रहे नैपकिन को गंदे स्थान पर रखा जाए तो उस में कीटाणु पनपने लगते हैं, जिस से संक्रमण फैलने का खतरा रहता है.

इतना ही नहीं इस्तेमाल किए जा चुके पैड को फेंकने में भी सावधानी बरतनी चाहिए. खुले स्थान पर पैड कभी नहीं फेंकना चाहिए. पैड को हमेशा कागज में लपेट कर कूड़े के ढेर में फेंकना चाहिए.

सैनिटरी नैपकिन का चुनाव

माहवारी की जानकारी तब तक अधूरी है जब तक आप सही सैनिटरी नैपकिन के चुनाव के बारे में नहीं जानतीं. आजकल मार्केट में कई साइजों और वैराइटी में सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध हैं. लेकिन आप को अपनी बेटी को कौटन लेयर वाले स्लिम सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करने की सलाह देनी चाहिए.

डाक्टरों और हाल ही में की गई स्टडीज के अनुसार माहवारी के दौरान हर 6 घंटे के अंतराल पर नैपकिन बदलते रहना चाहिए. फिर चाहे रक्तस्राव कम हो रहा हो या अधिक. इस के अतिरिक्त उसे यह भी बताएं कि वही सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करे, जो गीलेपन को अच्छी तरह सोख कर जैल में परिवर्तित कर दे.

अपनी परेशानी बेझिझक बताएं

कई बार मांएं बेटियों की बातों को यह कह कर अनसुनी कर देती हैं कि पीरियड्स में ऐसा तो होता ही है. लेकिन ऐसा करना गलत है, क्योंकि माहवारी की शुरुआत में लड़कियों को कई प्रकार की तकलीफें होती हैं, जिन्हें बताने में वे हिचकिचाहट महसूस करती हैं. जबकि अपनी मां को अपनी तकलीफ बता कर बेटी निश्चिंत हो जाती है.

इसलिए समयसमय पर मांओं को खुद भी बेटियों से पूछते रहना चाहिए कि उन्हें किस तरह की समस्या आ रही है. साथ ही बेटियों को भी बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी मांओं को अपनी परेशानी बतानी चाहिए ताकि समय रहते उस का इलाज करवाया जा सके.

आज भी भारत में महिलाओं के बीच माहवारी के दौरान सैनिटरी नैपकिन की जगह कपड़ा इस्तेमाल करने से जुड़ी कई भ्रांतियां हैं. एक सर्वे के अनुसार भारत में केवल 12% महिलाएं ही माहवारी के दौरान साफसुथरे नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं. बाकी महिलाएं इन दिनों घर में पड़े पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं. कुछ महिलाएं कपड़े के अंदर रुई भर कर उसे पैडनुमा आकार दे कर इस्तेमाल करती हैं. जरूरत पड़ने पर दिन में 2-3 बार वे इसी तरह पैड बना कर उस का इस्तेमाल कर लेती हैं.

कई महिलाएं तो इतना भी नहीं करतीं. वे सिर्फ गंदे कपड़े को हटा कर उस की जगह साफ कपड़ा लगा लेती हैं. लेकिन ऐसा करना अपने  स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना है. महिलाएं ऐसा 2 वजहों से करती हैं. पहली वे महंगे सैनिटरी नैपकिन नहीं खरीदना चाहतीं, दूसरी उन में भ्रांति है कि नैपकिन का इस्तेमाल करने से रक्तस्राव ज्यादा होता है और संक्रमण फैलने का खतरा रहता है. जबकि ऐसा नहीं है.

सैनिटरी नैपकिन खरीदने में थोड़ा पैसा जरूर लगता है, लेकिन वे बेहद स्वच्छ होते हैं. उन के इस्तेमाल से किसी तरह का संक्रमण नहीं फैलता. वहीं कपड़े के इस्तेमाल से युरिन इन्फैक्शन, योनि के आसपास की त्वचा में खुजली आदि का खतरा हो जाता है. कपड़े औैर रुई के इस्तेमाल से त्वचा को औक्सीजन मिलने में दिक्कत होती है, जिस से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है. इस तरह के संक्रमण से बचने के लिए सैनिटरी नैपकिन से बेहतर कोई विकल्प नहीं है.

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महिलाओं में ऐनीमिया

ऐनीमिया भारतीय महिलाओं में एक आम बीमारी है. ऐनीमिया शरीर में 2 जरूरी पोषक तत्त्वों-विटामिन बी 12 और आयरन की कमी से होता है. महिलाओं की शारीरिक रचना इस तरह की होती है कि मासिकस्राव, गर्भावस्था एवं प्रसव में बहुत अधिक रक्त उन के शरीर से बाहर निकल जाता है. ये सारी स्थितियां उन्हें ऐनीमिया का शिकार बना देती हैं.

ऐनीमिया किसी भी आयुवर्ग एवं शारीरिक बनावट की महिला को हो सकता है. लेकिन इस का पता सिर्फ रक्त की जांच से ही चल सकता है.

क्या है ऐनीमिया

हमारे शरीर के सैल्स को जिंदा रहने के लिए औक्सीजन की जरूरत होती है. शरीर के अलगअलग हिस्सों में औक्सीजन रैड ब्लड सैल्स में मौजूद हीमोग्लोबिन पहुंचाता है. आयरन की कमी और दूसरी वजहों से रैड ब्लड सैल्स और हीमोग्लोबिन की मात्रा जब शरीर में कम हो जाती है, तो उस स्थिति को ऐनीमिया कहते हैं.

आरबीसी और हीमोग्लोबिन की कमी से सैल्स को औक्सीजन नहीं मिल पाती. कार्बोहाइड्रेट और फैट को जला कर ऐनर्जी पैदा करने के लिए औक्सीजन जरूरी है. औक्सीजन की कमी से हमारे शरीर और दिमाग की काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है.

ऐनीमिया के प्रकार

माइल्ड: अगर बौडी में हीमोग्लोबिन 10 से 11 जी/डीएल के आसपास हो तो उसे माइल्ड ऐनीमिया कहते हैं. इस में हैल्दी और बैलेंस्ड डाइट खाने की सलाह के अलावा आयरन सप्लिमैंट्स दिए जाते हैं.

मौडरेट: अगर हीमोग्लोबिन 8 से 9 जी/डीएल से कम हो तो सीवियर ऐनीमिया कहलाता है, जो एक गंभीर स्थिति होती है. इस में मरीज की हालत को देखते हुए ब्लड भी चढ़ाना पड़ सकता है.

सीवियर: अगर हीमोग्लोबिन 8 जी/डीएल से कम हो तो सीवियर ऐनीमिया कहलाता है, जो एक गंभीर स्थिति होती है. इस में भी मरीज की हालत की गंभीरता को देखते हुए ब्लड भी चढ़ाना पड़ सकता है.

ऐनीमिया के लक्षण

ऐनीमिया से पीडि़त महिला को सुस्ती, सिर में दर्द, छाती में दर्द, त्वचा में पीलापन, शरीर का ठंडा रहना, मामूली कामकाज से थकान, शारीरिक शक्ति में कमी, हांफना, रुकरुक कर सांसें लेना, दिल की धड़कन का अनियमित होना आदि शारीरिक लक्षणों से गुजरना पड़ता है.

ऐनीमिया से खतरा

खून की कमी होने पर हृदय को अधिक काम करना पड़ता है. खून की कमी से हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, जिस से हृदयाघात का खतरा रहता है. खून की कमी से ही शरीर के कई अंग अपनी पूर्ण क्षमता के साथ काम नहीं कर पाते. यह शरीर को अक्षम बना देता है. शारीरिक विकास की गति थम जाती है और जीवनकाल कम हो जाता है.

महिलाओं की सारी शारीरिक गतिविधियां खून की कमी के कारण प्रभावित हो जाती हैं. खासतौर पर गर्भस्थ शिशु का विकास पूर्णरूप से नहीं हो पाता. इस से किसी भी समय गर्भपात हो सकता है.

ऐनीमिया की जांच व निदान

ऐनीमिया का पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में रक्त की जांच ही एकमात्र उपाय है. इस में महिला के कंप्लीट ब्लड काउंट की जांच होती है. महिलाओं में इस की संख्य 11 से 15 होती है. यदि ब्लड काउंट निर्धारित संख्या से कम होते हैं तो इस का मतलब महिला ऐनीमिया पीडि़त है. फिर इस का इलाज किया जाता है और संतुलित खानपान की सलाह दी जाती है. दरअसल, हमारे दैनिक खानपान में बहुत सी ऐसी वस्तुएं हैं जिन का सेवन रक्त बढ़ाने में सहायक होता है.

रक्त वृद्धि

हीमोग्लोबिन को बढ़ाने में आयरन, विटामिन सी एवं बी-12 प्रमुख व सहायक घटक हैं. हरी सब्जियां जैसे पालक, मेथी, चौलाई, मटर आदि रक्त बढ़ाने में सहायक होते हैं. साथ ही  मूंगफली, मसूर, बादाम, किशमिश, अंडा, मांस, मछली आदि में भी रक्त बढ़ाने की क्षमता होती है. लाल व बैगनी रंग के फल एवं सब्जियों में भी आयरन की मात्रा होती है.

रक्त नवनिर्र्माण में सहायक द्वितीय मुख्य घटक विटामिन सी है. यह शरीर को आयरन के अवशोषण में सहायता करता है. विटामिन सी सभी रसदार फलों जैसे नीबू, मौसमी, संतरा, आम, स्ट्राबैरी, तरबूज, खरबूजा, अमरूद, आंवला, कीवी आदि में पाया जाता है. यह टमाटर, गोभी और आलू में भी होता है. विटामिन बी-2 एवं मल्टी विटामिन अंकुरित अनाज, दलहन में पाया जाता है. ये सभी रक्त निर्माण में सहायक हैं.

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किन्हें खतरा ज्यादा

जिन महिलाओं को किडनी में समस्या, डायबिटीज, बवासीर, हर्निया और दिल की बीमारी है, उन्हें ऐनीमिया होने का ज्यादा खतरा होता है. शाकाहारी महिलाओं या स्मोकिंग करने वाली महिलाओं को भी ऐनीमिया का खतरा रहता है. यदि पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो तो फौरन डाक्टर को दिखाएं, क्योंकि इस से शरीर में आयरन तेजी से कम हो जाता है.

हाल ही में किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है कि भारत में लगभग 50% महिलाएं ऐनीमिया की शिकार हैं. महिलाओं की शारीरिक संरचना के अनुसार माहवारी या अन्य कारणों से उन में रक्तस्राव होना स्वाभाविक है, पर जब यह ज्यादा मात्रा में होने लगे तो इस के रोकथाम के उपाय करना जरूरी है.

कौमार्थ शह देता है धर्म

लेखिका -पूजा यादव

वर्जिनिटी या कौमार्थ न आज कोई अजूबा है न पहले कभी था. पश्चिमी देशों में नई पत्नी को अपनी वर्जिनटी साबित करने के लिए पहली रात को खून से सनी चादर तक दिखानी होती थी. इस का अर्थ यही है कि अधिकतर लड़कियां शादी तक वर्जिन नहीं रहती थीं. ऐसा कोई नियम लड़कों पर लगा नहीं था. पहले लड़की का फ्यूचर अच्छे पति पर टिका था. आज चाहे लड़का हो या लड़की घर से बाहर रह कर पढ़ने या नौकरी करने को मजबूर हैं.

आज बच्चे 1 या 2 ही होते हैं और जीवन के हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा है. 10वीं कक्षा के बाद मुश्किल से ही घर में रह पाते हैं. बेहतर से बेहतरीन की तलाश में बड़े शहरों का या जहां मनचाहा कोर्स मिले वहां का रुख कर लेते हैं और शादी करने की किसी को कोई जल्दी नहीं होती.

युवा पीढ़ी शादी के बंधन से तो बचना चाहती है, लेकिन शरीर की किसी भी जरूरत को पूरा करने से हिचकती नहीं है. जरूरतें उम्र के साथसाथ जाग ही जाती हैं. स्वतंत्र वातावरण में वैसे भी कोई नियंत्रित नहीं कर सकता है. लड़कों को तो इस मामले में हमेशा से ही छूट रही है. उन पर तो कोई जल्दी और आसानी से उंगली भी नहीं उठाता पर अब लड़कियों के भी आत्मनिर्भर होने से उन पर भी जल्दी शादी का दबाव नहीं रहा.

बदल गई है जीवनशैली

लड़केलड़कियों का एकसाथ रहना एक सामान्य बात ही नहीं जरूरत भी हो गई है. बहुत बार 3-4 कमरों के सैट में 2-3 लड़कियों और 2-3 लड़कों के साथसाथ रहने में भी कोई बुराई नहीं है. कुछ साल साथ रह कर अपनी सुविधानुसार सही समय पर शादी के बारे में सोचें तो बहुत ही अच्छी बात है. लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब कुछ समय साथ रहने के बाद दोनों के विचार नहीं मिलते और अलग हो जाते हैं.

कमी न तो लड़कों को लड़कियों की है और न लड़कियों को लड़कों की. कोई दूसरा साथी मिल जाता है और फिर वही सब. अब शहरों के कामकाजी और सफल युवाओं का यह रहनसहन ही बन गया है.

यह बात भी है कि 27-28 की आयु आतेआते घर वाले चाहते हैं कि अब लड़के की शादी हो जानी चाहिए और फिर शुरू होती है एक अदद सीधी, घरेलू, कमउम्र ऐसी लड़की की खोज जिसे जमाने की हवा ने टच तक न किया हो यानी एकदम वर्जिन.

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बदलनी होगी सोच

एक लड़का अपनी 29-30 साल की उम्र तक न जाने कितनी लड़कियों के साथ सैक्स कर चुका हो उस के बाद शादी के लिए अनछुई कली की ख्वाहिश रखता है. यह हवाई बात है. अब वह समय है जब लड़कों को भी अपनी सोच बदलनी होगी क्योंकि जितना अधिकार लड़कों को है उतना ही अधिकार लड़कियों को भी है अपनी जिंदगी को अपनी तरह से गुजारने का.

जब जीवनशैली में परिवर्तन आ ही गया है तो इसे वर्जिन और प्योर के दायरे से बाहर निकल कर खुले दिल से स्वीकार करने का साहस भी दिखाया जाने लगा है पर फिर भी वर्जिनिटी का भूत बहुतों के सिर पर सवार रहता है.

शादी से पहले किस की जिंदगी में क्या हुआ यह माने नहीं रखता, बल्कि शादी के बाद एकदूसरे के प्रति प्यार, विश्वास, सहयोग और समर्पण ही शादी को सफलता के मुकाम तक ले जाता है, इसलिए जहां जिंदगी में इतने बदलाव आए हैं वहीं लड़कों को अपनी मानसिकता में भी बदलाव लाना होगा कि वर्जिन जैसा कोई शब्द न आज है और न कभी था. इसलिए इस बात को जितनी जल्दी समझ लें जीवन उतनी ही जल्दी आसान होगा.

दोषी कौन

समाज और धर्म ने अपनी सारी मेहनत लड़कियों पर ही झोंक दी उन्हें संस्कार देने में गऊ बनाने में. आज लड़कियां प्रतिस्पर्धा के हर क्षेत्र में लड़कों से 4 कदम आगे हैं. लेकिन कुछ लड़के आज भी वही बरसों पुरानी मानसिकता

से ग्रस्त हैं. आज भी उसी पत्नी के सपने देखते हैं जो दूध के गिलास के साथ उन का स्वागत करे और घर के साथसाथ बाहर भी उन के कंधे से कंधा मिलाए.

इस में उन धार्मिक कथाओं का बहुत असर है जिन में सैक्स संबंधों में एकतरफा नियंत्रण के गुण जम कर गए जाते हैं. हिंदू पौराणिक कहानियां हों अथवा नाटक की या किसी और धर्म की, ऐसे नियमों से भरी हैं जिन में शादी से पहले संबंध बने. इन में अधिकांश में लड़की को दोषी ठहराया गया और दोषी पुरुष को छोड़ दिया गया.

जरूरी नहीं वर्जिन होना

इस के अवशेष आज भी हमारे दिमाग पर बैठे हैं. बहुत से तलाक के मामलों में लड़के विवाहपूर्ण संबंधों का इतिहास सोच कर बैठ जाते हैं, जबकि आधुनिक कानून ज्यादा उदार है और प्रावधान है कि जब तक कोई लड़की किसी दूसरे से संबंध बनाए न रख रही है, उस का पति तलाक का हक नहीं रखता. विवाह की शर्तों में आज के कानून में वर्जिन होना भी जरूरी नहीं है. अत: वर्जिनिटी को दिमाग से निकाल दें. ये ज्यादातर चोंचले ऊंची जातियों के हैं जो अपनी शुद्धतों का ढोल पीटने के लिए औरतों पर अत्याचार उसी तरह करते रहे हैं जैसे समाज के पिछड़े वर्गों के लिए.

वक्त के साथ वर्जिन लड़कियां लड़कों की कल्पना में ही रह जाएंगी क्योंकि सचाई यह है कि आज नहीं तो कल यह शब्द शब्दकोष से गायब हो ही जाना है, इसलिए खुद को इस सचाई से रूबरू रखना और समय अनुसार स्वयं को ढाल लेना ही सरल जीवन का गुरुमंत्र है.

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फैटी लीवर के कारण मैं परेशान हूं, कृपया इलाज बताएं?

सवाल-

सप्ताह भर पहले मेरे पेट के ऊपरी हिस्से में अचानक तेज दर्द हुआ. अल्ट्रासाउंड कराने के बाद डाक्टर ने बताया कि मेरा लिवर फैटी है. मेरा वजन अधिक नहीं है, लेकिन यह ओवरवेट की शुरुआती सीमा के पास ही है. मैं ऐसा क्या करूं, जिस से यह बीमारी न बन सके?

जवाब-

आप को वसा एवं चीनी के सेवन से बचना चाहिए यानी जंक फूड, तले भोजन, बेकरी के उत्पादों, कुकीज, शराब, तंबाकू के सेवन से परहेज करें ताकि आप के लिवर में और वसा न बने. फलों के सेवन की मात्रा भी कम करें, क्योंकि इन में भारी मात्रा में चीनी होती है. अपने आहार में ज्यादा सब्जियां शामिल करें. आप उन्हें कच्चा अथवा पका कर खा सकते हैं. वजन कम करने के लिए खूब व्यायाम करें.

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लीवर में छाले पड़ना यानि लीवर के कुछ भाग में पस जमा होने लगता है, जो काफी दर्दनाक होता है. अगर समय पर इसका इलाज नहीं करवाया जाता तो ये जख्म फूट सकते हैं और इससे निकलने वाली गंदगी रक्त प्रवाह के जरिए शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंचकर उन्हें संक्रमित कर सकती है.  इस संबंध में बताते हैं मणिपाल होस्पिटल के लीवर ट्रांसप्लांटेशन सर्जन डाक्टर राजीव लोचन. साधारण तौर पर यह बीमारी दो प्रकार की होती है- एमिओबिक लीवर एब्सेस और पायोजेनिक लीवर एब्सेस .वैसे आपके लीवर में छाले पड़ने के कई कारण हो सकते हैं. बता दें कि एमिओबिक  लीवर एब्सेस का महत्वपूर्ण कारण यह है कि यह बीमारी एन्टामिबा हिस्टॉलिटिका  जैसे पेरेसाइट्स के चलते होती है. इसका मतलब यह है कि लीवर के मार्ग में इंफेक्शन के चलते  एमिबायासिस होता है. पायोजेनिक लीवर एब्सेस होने का प्रमुख कारण इंटेस्टाइन ट्रैक या मूत्र मार्ग का इंफेक्शन होना ही अकसर माना जाता है.

एब्सेस की बीमारी होने में उम्र भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.  एमिओबिक  लीवर एब्सेस की बीमारी अधिकतर अधिक उम्र के लोगों में ज्यादा होती है. वयस्क लोग विशेष रूप से जिन्हें मधुमेह या जिनकी कीमोथेरेपी हुई होती है , उन्हें लीवर एब्सेस होने का खतरा सबसे अधिक होता है. या फिर ऐसे व्यक्ति जिनकी प्रतिकार क्षमता कम हो या जो वजन घटाने का कोई उपचार कर रहे हैं , उन्हें भी लीवर की बीमारियां होने का खतरा सबसे अधिक हो सकता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- लीवर में छाले, क्या है इलाज 

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

लड़ाई जारी है: सुकन्या ने कैसे जीता सबका दिल

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Sunrise Holi Utsav में देखिए नोएडा की पारुल अग्रवाल की ‘प्याज़ी पकौड़ा’ की रेसिपी

Name : Parul Agarwal

City : Noida

Receipe name:  प्याज़ी पकोड़ा

होली के त्यौहार और रंगो की वैसे तो बहुत सारी यादें हैं पर एक बात जो अभी भी मेरे होंठों पर मुस्कान लाती है वो इस तरह से है.

बचपन में एक बार मेरी मौसी के बच्चे भी होली खेलने हमारे यहां आए हुए थे. हमने मौसी की बेटी को अपनी मिलाकर, उनके बेटे को रात में खूब रंग लगाकर उसका चेहरा पोत दिया था. उसे पता भी नहीं चला था क्योंकि उसे बहुत गहरी नींद आती थी. सुबह जब उसने अपना चेहरा आईने में देखा तो वो खुद ही डर गया.

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यहां क्लिक करके देखिए पारुल की प्याज़ी पकौड़ा की रेसिपी…

Holi Special: होली में त्वचा को भी दे खूबसूरती का एहसास कुछ ऐसे

होली रंगों का त्यौहार है, हर साल दोस्त और परिवारके साथ मिलकर स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाना,एक दूसरे को रंग लगाना,होली के गानों के साथ डांस करना, पानी के गुब्बारों और पिचकारी के साथ रंग खेलना आदि होता आया है, लेकिन पिछले दो सालों से कोविड ने इसे बेरंग बना दिया है, इसलिए इस बार कोविड के कम होने की वजह से सभी होली को मौज-मस्ती से मनाने की कोशिश कर रहे है, लेकिन आजकल होली के रंगों में केमिकल होने की वजह से त्वचा पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है. इसलिए रंगों की खुशियाँ कम न हो, कुछ बातों का ख्याल अवश्य रखें.

इस बारें में कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के कंसलटेंट डर्मेटोलॉजिस्ट और ट्राइकोलॉजिस्टडॉ तृप्ति डी अग्रवाल कहती है कि मौजमस्ती और खुशियों के साथ मनाए जाने वाले इस त्यौहार के ख़त्म होने पर शुरू होता है,बहुत ही थका देने वाला समय, जिसमेंचेहरे और बालों पर लगे रासायनिक ज़िद्दी रंगों के दाग को निकालने की कोशिश करना. कठोर रसायनों और सूरज की रोशनी के संपर्क में आने की वजह से त्वचा रूखी पड़ सकती है और जलन भी पैदा होती है, ऐसी तकलीफें त्यौहार के बाद कई हफ़्तों तक जारी रह सकती है. होली का आनंदलेने के लिए अपने बालों, नाखूनों और त्वचा के रंग के प्रभाव के बारे में चिंतित न हो, इस उत्सव मनाने के लिए कुछ आसान टिप्स निम्न है,

• त्वचा को कठोर रसायनों से बचाने के लिए त्वचा और रंग के बीच एक अवरोध बनाना आवश्यक होता है. रंग खेलने के 10 से15 मिनट पहले सनस्क्रीन, नारियल या सरसों का तेल चेहरे, कानों, गर्दन आदि सभी स्थानों पर लगा लें, ताकि रंगों का पर्व का प्रभाव आप पर कम हो.

• रूखी त्वचा वाले लोगों को कठोर रसायनों से नुकसान होने का खतरा अधिक होता है. इससे बचने के लिए नियमित रूप से मॉइस्चराइज़ करना और सनस्क्रीन का उपयोग करना ज़रूरी है. होली से एक हफ्ते पहले ब्लीच या केमिकल पील न करें.

• अगर आप आरामदेह सूती कपड़ों का उपयोग करते है, तो होली का रंग कपड़े के भीतर भी जा सकता है, इससे बचने के लिए होली पर पहनने के लिए थोड़ा मोटा और पूरी आस्तीन वाला कपड़ा चुनें, ताकि आपकी त्वचा रंग के सीधे संपर्क में न आएं.

• होली का रंग कई दिनों तक आपके नाखूनों पर चिपका न रहें, इसलिए नाखूनों को ट्रिम करें और उन पर ग्लॉसी नेल पेंट या क्लियर-कोटेड नेल पेंट लगाएं. रंग नाखूनों में रिस न जाएं या फंसा न रहें,इसके लिए नाखूनों के आसपास की त्वचा पर भी पॉलिश लगाएं. इसके अलावा नाखूनों पर और उनके आस-पास वैसलीन जैसी साधारण पेट्रोलियम जेली का भी उपयोग कर सकते है.

• बालों पर तेल लगाएं, इससे बालों पर लगा रंग आसानी से निकल जाता है.

• कृत्रिम और सिंथेटिक रंगों के बजाय प्राकृतिक और जैविक रंगों से होली खेलें.

• खूब सारा पानी पिएं और होली के दिन खुद को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रखें.
इसके आगे डॉ. तृप्ति कहती है कि होली के बाद त्वचा को फिर से खुबसूरत बनाने के लिए कुछ बातों पर ध्यान दें, ताकि त्वचा पहले जैसी खिली-खिली लगे,

• चेहरे और शरीर पर रंगों को धीरे-धीरे हटाएं और उसके लिए माइल्ड साबुन या साबुन रहित क्लींज़र का उपयोग करें,

• स्क्रबिंग या त्वचा को ज़ोर लगाकर रगड़ने से त्वचा में जलन और रैशेस हो सकते है,

• जिद्दी रंग को हटाने के लिए तेल आधारित उत्पादों का इस्तेमाल करे,

• बालों को स्क्रब करने के लिए पैराबेन फ्री और सल्फेट फ्री सौम्य शैम्पू का इस्तेमाल करें,

• नहाने के बाद मॉइस्चराइज़र और सनस्क्रीन लगाएं,

• होली के लगभग 1 हफ्ते बाद तक केमिकल पील, हेयर रिडक्शन या कठोर रसायनों के प्रयोग से बचे,

• नियमित लेने वाली दवा को होली के दौरान बंद न करें, उन्हें पहले की तरह जारी रखें,

• जिन व्यक्ति को एक्ज़िमा, मुंहासें, सोरायसिस जैसी त्वचा सम्बन्धी समस्याएं है,उन्हें विशेष सावधानी बरतने की जरुरत होती है,रंगों और गुलाल का कम से कम इस्तेमाल करते हुए सूखी होली खेलना एक सुरक्षित विकल्प है, इसके अलावा त्वचा की स्थिति अगर बिगड़ रही है या नए ज़ख्म हुए हो, तो त्वचा विशेषज्ञ से तुरंत सम्पर्क करें.

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