भोर की एक नई किरण: भाग 1- क्यों भटक गई थी स्वाति

लेखिका- रेनू मंडल

देहरादून एक्सप्रेस अपनी पूरी रफ्तार से भागी जा रही थी. कितु इस से भी तेज भाग रहा था, श्रीकांत का मन. भागती ट्रेन के शोर से भी अधिक स्वाति के पत्र के शब्द उन के दिमाग पर हथौडे़ बरसा रहे थे और चोट से बचने के लिए उन्होंने अपना चेहरा खिड़की से सटा लिया और प्रकृति के विस्तार में अपनी आंखें गडा़ दीं. कितु दूरदूर तक फैले हुए खेतखलिहान और भागते हुए वृक्ष भी उन के मन को न बांध सके. मन बारबार वर्तमान से अतीत की ओर भाग रहा था.

उन की बहन स्वाति ने मनोविज्ञान में एम.ए- किया था. उस का इरादा पीएच.डी- करने का था. वह शुरू से ही पढ़ने में बेहद तेज थी. मेहनत एवं लगन की उस में कमी नहीं थी. लेक्चरर बन कर अपना एक अलग स्थान बनाने के लिए वह जीजान से जुटी हुई थी. लेकिन स्वाति कहां जानती थी कि कभीकभी एक छोटा सा अनुरोध भी जीवन को नया मोड़ दे देता है.

मनीष ने उसे एक विवाह समारोह में देखा था और वहीं उसे उस ने पसंद कर लिया. उस की ओर से जब विवाह का प्रस्ताव आया तो स्वाति ने तुरंत इनकार कर दिया. विवाह के लिए वह अपने कैरियर को दांव पर नहीं लगा सकती थी. विवाह तो बाद में भी किया जा सकता था. उस के भाई श्रीकांत जो मित्र और पथप्रदर्शक भी थे, उन की भी यही इच्छा थी कि पहले कैरियर फिर विवाह.घ्भाभी सुधा ने दोनों को समझाया था कि जीवन में ऐसे मौके बारबार नहीं आते, स्वाति ऐसे मौकों की कभी अवहेलना मत करो.

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स्वाति ने प्रतिरोध करते हुए कहा, ‘भाभी, तुम भलीभांति जानती हो कि मैं ने वर्षों से एक ही सपना देखा है कि मैं जीवन में कुछ बनूं और तुम लोग मेरा यह स्वप्न तोड़ देना चाहते हो.’

बहुत सोचने के बाद श्रीकांत को सुधा की बात अधिक उचित जान पडी़. उन्होंने सुझाया, ‘क्यों न ऐसा रास्ता अपनाया जाए जिस से लड़का भी हाथ से न जाए और स्वाति की इच्छा भी रह जाए. मनीष से पत्रव्यवहार कर के यह स्पष्ट कर लेते हैं कि उसे विवाह के बाद स्वाति के पीएच-डी- करने पर कोई आपत्ति तो नहीं.’

इस के बाद श्रीकांत और मनीष के बीच पत्रव्यवहार हुआ, जिस से पता चला कि मनीष को इस पर कोई आपत्ति न थी. तब खुशीखुशी स्वाति और मनीष का विवाह हो गया.घ्स्वाति को विदा करते हुए जहां श्रीकांत को उस के दूर चले जाने का गम था, वहीं यह संतोष भी था कि उन्होंने बहन के प्रति कर्तव्यों को पूरा कर के मां को दिया हुआ वचन निभाया है. इस के लिए वह सुधा के भी आभारी थे, जिस ने भाभी के रूप में स्वाति को मां जैसा स्नेह दिया था.

विवाह के बाद स्वाति जब पहली बार मनीष के साथ मायके आई तो श्रीकांत को उस की खुशी देख कर सुखद अनुभूति हुई. समय का पंछी आगे उड़ता रहा और देखतेदेखते 6 वर्ष बीत गए. इस बीच स्वाति 2 बच्चों की मां भी बन गई. शादी के बाद जब कभी श्रीकांत और सुधा ने उस से पीएच-डी- पूरी करने के विषय में पूछा तो वह हंस कर टाल गई. श्रीकांत समझते, स्वाति अपने विवाहित जीवन के सुख में इतना खो गई है कि अब वह पीएच-डी- करने की बात भूल बैठी है. उन का स्वाति के बारे में यह भ्रम न जाने कब तक बना रहता, यदि अचानक उन्हें उस का भेजा पत्र न मिलता. पत्र देखते ही वह स्वाति से मिलने केघ्लिए चल पडे़ थे.घ्अचानक टेªन का झटका लगा और श्रीकांत अतीत से वर्तमान में लौट आए.

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उन्होंने जेब से पत्र निकाला और फिर एक बार उन की नजरें इन पंक्तियों पर अटक गईं:

फ्पिछले 6 सालों से अपने ही घर में अपने वजूद को तलाश करतेकरते थक चुकी हूं. इस से पहले कि पूरी तरह टूट कर बिखर जाऊं, मुझे यहां से ले जाओ.

पत्र पढ़ते ही श्रीकांत बेचैन हो उठे. उन का शेष सफर बहुत कठिनाई से बीता.

बडौ़दा स्टेशन पर उतरते ही उन्होंने टैक्सी पकडी़ और स्वाति के घर जा पहुंचे. बडे़ भाई को देखते ही स्वाति उन से लिपट गई और सुबकने लगी. मनीष आश्चर्यचकित हो कर बोला, फ्अरे, भैया आप आने की खबर कर देते तो मैं स्टेशन पहुंच जाता, कहते हुए उस ने श्रीकांत के पैर छुए.

फ्अचानक आफिस का कुछ विशेष काम निकल आया. इसलिए खबर देने का समय ही नहीं मिला.

फ्चलो, अच्छा हुआ. इसी बहाने आप आए तो, स्वाति के ससुर ने श्रीकांत को सोफे पर बैठाते हुए कहा.

फ्पायल कहां है? श्रीकांत ने चारों तरफ निगाहें दौडा़ते हुए पूछा.

फ्पायल स्कूल गई है, स्वाति बोली और बेटे सनी को अपने भाई की गोद में दे कर चाय का प्रबंध करने चली गई.

दोपहर में श्रीकांत जब आराम करने के लिए स्वाति के कमरे में आए तो स्नेहपूर्वक उसे पास बैठाते हुए बोले, फ्तुझे किस बात का दुख है, स्वाति?

भाई का स्नेहिल स्पर्श पाते ही स्वाति फफक पडी़, फ्मुझे यहां से ले चलो भैया वरना मैं मर जाऊंगी, और उस के बाद स्वाति ने धीरेधीरे श्रीकांत को सब बता दिया.

मनीष की मम्मी बेटे का विवाह कहीं और करना चाहती थीं परंतु मनीष ने स्वाति को पसंद कर लिया. बेटे के हठ के आगे मां को झुकना पडा़, पर उन्होंने कभी दिल से बहू को स्वीकार नहीं किया. वह पहले दिन से ही स्वाति का विरोध करती रहीं. स्वाति जब कभी उन का कोई काम करती, वह उस में कमी अवश्य निकालतीं. स्वाति के ससुर जब भी उस का पक्ष लेते वह उन्हें भी डांट देती थीं.

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विवाह के 2-3 दिन बाद उन्होंने सारे काम का दायित्व स्वाति को सौंप दिया था. धीरेधीरे स्वाति ने चुप्पी साध ली. इस बीच वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी फिर भी घर में उस का कोई महत्त्व नहीं था. मनीष स्वाति के साथ होते हुए अन्याय को देख कर भी अनदेखा कर देता था.

मनीष की उदासीनता ने स्वाति को इस घर से चले जाने के लिए प्रेरित किया. वह सोचती, जहां रह कर उस का खुद का व्यक्तित्व कुुंठित हो रहा हो, वहां वह किस प्रकार अपने बच्चों की उचित परवरिश कर सकती है. इसलिए उस ने श्रीकांत को पत्र लिखा ताकि उस के पास रह कर वह नए सिरे से अपना जीवन शुरू करे. श्रीकांत ने स्वाति को बताया, फिलहाल, वह 7-8 दिन बडौ़दा में रुकने वाला था.

आगे पढ़ें- एक रात श्रीकांत और स्वाति छत पर..

सौत से सहेली: भाग 3- क्या शिखा अपनी गृहस्थी बचा पाई

लेखिका-दिव्या साहनी

इस रविवार को अंजु ने लंच पर उन सब को अपने घर बुला लिया था. वहां चारों बच्चों ने उस को पूरा समय अपने साथ खेल में लगाए रखा. ज्यादा देर तक सोने व राजीव के साथ कुछ मौजमस्ती करने की अपनी दोनों इच्छाओं को पूरा करने का कोई मौका शिखा को नहीं मिला.

उस रात काफी थके होने के बाद भी शिखा सो नहीं सकी थी. नीरजा की घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां पूरा करने के चक्कर में वह अब

खुद को अजीब से जाल में बहुत फंसा महसूस कर रही थी. वह अपनी पुरानी दिनचर्या में

लौटना चाहती थी, पर नीरजा का दिल दुखाए बिना ऐसा करने का उसे कोई रास्ता नहीं सूझ

रहा था.

उस का न औफिस के काम में दिल लगता, न नीरजा के घर के कामों में. किसी से हंसनेबोलने का मन नहीं करता. नीरजा जितना ज्यादा उस के प्रति अपना आभार व प्रेम प्रकट करती, वह खुद को उतना ही ज्यादा चिड़ा व परेशान महसूस करती.

ऐसा भी हुआ कि राजीव ने मौका पा कर उसे अपनी बांहों में भर कर प्यार करने की कोशिश करी थी. परेशान शिखा को उस के स्पर्श से किसी तरह से उत्तेजना या सुख महसूस नहीं हुआ था. बगल के कमरे में नीरजा की मौजूदगी ने शायद उस की भावनाओं को खिलने व पनपने की स्वतंत्रता छीन ली थी.

सोनू और मोनू के साथ खेलने और बातें करने से वह बचती. अंजु के बच्चों को तो वह थोड़ी देर के बाद ही उन के घर भेज देती थी. नीरजा के मुंह से अपनी तारीफ सुनना उसे कोई खुशी नहीं देता. राजीव के प्रति जो खिंचाव वह सदा महसूस करती थी, उस में भी कमी आ

गईर् थी.

शिखा एकाएक नीरजा के प्लस्तर कटने का बड़ी बेसग्री से इंतजार करने लगी थी.

नीरजा उस की बदलती मनोस्थिति से पूरी तरह से अनजान थी, ‘‘मेरे पैर पर प्लस्तर चढ़ने का एक फायदा तो हुआ कि तुम जैसी नेकदिल, खुशमिजाज लड़की मेरी सब से अच्छी सहेली बनी है,’’ इस वाक्य को नीरजा शिखा के सामने ही नहीं, बल्कि हर आएगए के सामने कईकई बार भावुक लहजे में दोहराती थी.

नीरजा कईकई बार उसे औफिस में फोन करती. बेहिचक उसे जरूरी चीजें बाजार से लाने की हिदायत देती. जल्दी से जल्दी घर पहुंचने का प्यार से आग्रह करती. एक बार जो बोलना शुरू करती, तो रुकने का नाम ही न लेती.

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धीरेधीरे ऐसी नौबत आ गई कि शिखा अपने मोबाइल पर नीरजा का

नंबर देखते ही घबरा उठती. बड़े अनमने भाव से ही उस से बातें करती. कई बार सोचती कि राजीव से अपने मन का हाल कह कर उन के घर जाने से इनकार कर दे, पर ऐसी रुखाई दिखाने की हिम्मत अपने अंदर पैदा नहीं कर पाई. अपने प्रेमी की नजरों में अपनी छवि बिगाड़ने की इच्छुक नहीं थी.

वक्त कैसा भी चल रहा हो, वह बीत ही जाता है. आखिरकार 3 सप्ताह बीत गए और नीरजा के पैर का प्लस्तर कट गया.

नीरजा ने सब से पहले शिखा को आंखों में आंसू ला कर गले से लगाया और भावुक लहजे में कहा, ‘‘तुम्हारे सारे एहसानों का बदला मैं कभी नहीं चुका सकूंगी, पर फिर भी तुम्हें मेरी एक बात तो माननी ही पड़ेगी.’’

‘‘कौन सी बात नीरज?’’ अपनी जबरदस्ती ओढ़ी जिम्मेदारियों से मुक्ति पा जाने की खुशी शिखा के चेहरे पर साफ झलक रही थी.

‘‘हम सब नैनीताल घूमने चलेंगे. कितना मजा आएगा… सोनू और मोनू कितना खुश होंगे. तुम्हारा साथ पा कर… खूब ऐश रहेगी… जीभर कर सथ घूमेंगे, खाएंगेपीएंगे और गप्पें मारेंगे… उन की और मेरी तरफ  से यह ‘ट्रिप’ तुम्हारे लिए गिफ्ट होगा, शिखा,’’ बेहद प्रसन्न नजर आ रही नीरजा ने जोर से शिखा को फिर से अपनी छाती से लगा लिया.

राजीव को भी नीरजा के इस प्रोग्राम की भनक नहीं थी. अपनी प्रेमिका के साथ नैनीताल घूम आने की बात उस के मन को गुदगुदा

रही थी.

‘‘श्योर… श्योर… जरूर चलेंगे हम सब नैनीताल,’’ शिखा जवाब में मुसकराई, पर

उसे अचानक अपनी सांस घुटती हुई सी

महसूस हुई.

जब घंटे भर बाद वह सब से विदा ले कर अपने घर चली, तो राजीव व नीरजा के

घर में दोबारा जल्दी से कदम न रखने का

संकल्प उस के मन में बेहद मजबूत जड़ें जमा चुका था.

‘मुझे नीरजा की दोस्ती नहीं चाहिए. उस

से दूरी बनाने को मैं राजीव से भी संबंध तोड़ लूंगी. मेरे किसी दुश्मन ने मेरा इतना खून कभी नहीं फूंका होगा जितना इस नई सहेली के प्यार और अपनेपन ने फूंका है,’ ऐसे विचारों में

उलझी परेशान शिखा नीरजा की जिंदगी से

निकल गई.

नीरजा ने कई बार शिखा को उस दिन फोन मिलाया पर दोनों की बात नहीं हो पाई. शिखा ने अपना फोन बंद कर रखा था.

अगले दिन रविवार दोपहर को वह डाक्टर राजेश की फिजियोथेरैपिस्ट अनुराधा से रेस्तरां के बाहर मिली. नीरजा ने ही उसे लंच साथसाथ करने के लिए बुलाया था.

‘‘समस्या अंडर कंट्रोल है न?’’ अनुराधा

ने शरारती चमक आंखों में भर कर नीरजा से सवाल किया.

‘‘पूरी तरह और मुझे ज्यादा झेलना बेचारी शिखा के लिए अब संभव नहीं,’’ नीरजा ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘हम ने ठीक रास्ता चुना, सहेली. तुम राजीव और उसे दूर करने के लिए अपने पति

या शिखा से उलझती, तो मामला बिगड़ता ही. उस स्थिति में राजीव और तुम्हारे बीच की दूरी बढ़ जाती.’’

‘‘शिखा के साथ दोस्ती बढ़ा कर उस की जान के लिए मुसीबत बन जाने का तुम्हारा सुझाव बड़ा कारगर साबित हुआ.’’

‘‘डाक्टर राजेश, लगभग रोज ही तुम्हारे बारे  में मुझ से पूछ लेते थे. शिखा की परेशानियां को सुन कर खूब हंसते थे.’’

‘‘मैं उन के बच्चों के लिए आज मिठाई और चौकलेट भिजवाऊंगी तुम्हारे हाथ. वह झूठा प्लस्तर चढ़ाने को तैयार न होते, तो हमारी योजना में जान न पड़ती.’’

‘‘अपनी प्यारी सहेली की खातिर मुझे उन्हें मनाना ही था.’’

‘‘थैंक यू, माई फ्रैंड.’’ नीरजा ने अनुराधा का कंधा दबा कर फिर से आभार प्रकट किया.

अनुराधा से नीरजा ने ही पूछा था कि क्या वह किसी स्वामी या वकील के पास जाए? तो अनुराधा ने ही मना किया था. उसी ने बताया था कि असल में ये दोनों ही औरतों को लूटते हैं. उस के पास बहुत से मामले आते हैं जिन में औरततों को शारीरिक दर्द असल में मानसिक व्यथाओं के कारण होते है और स्वामी वकील दोनों ही मन और तन का दर्द बढ़ाते हैं. उसी ने सारी प्लानिंग की थी.

‘‘वैसे शिखा का हाल कैसा है?’’ अनुराधा ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘कल शाम और रात को उस ने अपना फोन बंद रखा. अभी तुम्हारे सामने ट्राई करती हूं,’’ कह नीरजा ने अपना मोबाइल निकाल कर शिखा का नंबर मिलाया.

शिखा ने इस बार उस का फोन रिसीव कर लिया तो नीरजा आंखों में हैरानी के

भाव ला कर उस से बातें करने लगी.

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‘‘कैसी हो शिखा?’’ नीरजा ने अपनी आवाज में बहुत ज्यादा मिठास घोल कर प्रश्न किया.

‘‘मैं ठीक हूं,’’ शिखा की आवाज में किसी तरह का उत्साह या खुशी के भाव मौजूद नहीं थे.

‘‘सोनू और मानू तुम्हें बहुत याद करते हैं. कल फोन क्यों बंद कर रखा था?’’

‘‘उस की बैटरी खत्म हो गईर् थी. मैं आऊंगी उन से मिलाने’’

‘‘कब?’’

‘‘जल्द ही.’’

‘‘नैनीताल चलने का पक्का कार्यक्रम बना लेना. इस शुक्रवार की रात को निकलेंगे.’’

‘‘मैं तो नहीं जा पाऊंगी, नीरजा.’’

‘‘ऐसा मत कहो, शिखा.’’

‘‘मुझे अपनी मौसी के पास लखनऊ जाना है. उन की तबीयत ठीक नहीं चल रही है.’’

‘‘वहां बाद में चली…’’

‘‘नहीं, लखनऊ तो मुझे जाना ही पड़ेगा. अभी कोई घर में आया हुआ है. बाद में बात करते हैं.’’

‘‘अरे, सुनो तो नैनीताल में बहुत मजे… हैलो… हैलो…’’

शिखा ने संबंधविच्छेद कर दिया था. नीरजा और अनुराधा की नजरें मिलीं और दोनों परेशान शिखा की मनोस्थिति की कल्पना कर एकसाथ जोरदार ठहाका मार कर हंस पड़ीं.

‘‘चल, अपने पति की भूतपूर्व प्रेमिका

को सही सबक सिखाने की खुशी में पार्टी करते हैं,’’ नीरजा ने मुसकराते हुए अनुराधा का हाथ थामा और दोनों शान से चलती हुईं रेस्तरां में प्रवेश कर गईं.

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सूरजमुखी सी वह: भाग 3- क्यों बहक गई थी मनाली

मनाली कभी उन लोगों से नहीं मिली थी इसलिए वहां जाने में हिचकिचा रही थी, मगर उस का संकोच जल्द ही दूर हो गया. आंटी, अंकल बहुत ही मिलनसार थे. उन की इकलौती संतान विशाल बीटैक करने के बाद कुछ दिन पहले ही नौकरी पर लगा था. घर की चकाचौंध देख मनाली आश्चर्यचकित हो गई. बंगले सदृश्य दिखने वाले मकान में सब प्रकार की सुविधाएं थीं. विशाल का कमरा किसी होटल के कमरे से कम नहीं लग रहा था. नक्काशीदार डबलबैड, कमरे में बिछा मोटा गद्देदार कालीन और दीवार पर लगी सुंदर पेंटिंग अपनी कीमत जैसे स्वयं ही बता रहे थे.

मनाली को अगले ही दिन जब विशाल एक रेस्टोरैंट में ले गया गया तो मैन्यू कार्ड में दाम देख मनाली की आंखें फटी रह गईं. विशाल ने कई प्रकार की डिशेज मंगवाई थीं. मनाली को समझते देर न लगी कि विशाल को मनमाना पैसा खर्च करने की छूट मिली हुई है.

खाना खाने के बाद जब वे लौटे तो विशाल के मातापिता दोनों को घुलतेमिलते देख बहुत प्रसन्न हुए. कुछ दिनों से विशाल अकेलेपन को झेल रहा था. उस का अपनी गर्लफ्रैंड से ब्रैकअप हुए 2-3 महीने ही बीते थे.

मनाली विशाल के कमरे में बैठी देर रात तक बातें करती रही. विशाल ने मनाली को सोने की वह चेन दिखाई जो उस ने अपनी गर्लफ्रैंड के लिए बनवाई थी. चेन का पेंडैंट ‘एम’ लैटर से था।

“उस का नाम मुसकान था,” विशाल बताने लगा, “इस से पहले कि मैं मुसकान को चेन गिफ्ट करता मुझे पता लगा कि वह एक और लड़के के चक्कर में पड़ी हुई है. मैं ने बिना देरी किए रिश्ता तोड़ लिया.”

चेन हाथों में ले मनाली ने विशाल की पसंद को सराहा तो विशाल ने तपाक से चेन उस के ही गले में पहना दी. मनाली की खुशी का ठिकाना न था.
मनाली का बिस्तर दूसरे कमरे में लगाया गया था, लेकिन विशाल से बातें करतेकरते ही उसे नींद आ गई और वहीं सो गई.

अगले दिन जब वह यूनिवर्सिटी से लौटी तो विशाल स्वागत में पलकें बिछाए बैठा था. अपने मम्मीपापा के सो जाने पर विशाल ने मोबाइल में मुसकान की अपने साथ ली हुईं कुछ तसवीरें मनाली को दिखाईं. दोनों को हाथों में हाथ डाले घूमते देख मनाली का मन विशाल के करीब जाने को बेताब होने लगा. विशाल को इसी पल की प्रतीक्षा थी. उस ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. 2 प्यासे तन एकदूसरे की बांहों के घेरे में तृप्त हो रहे थे.

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सोमवार को अपने घर जा कर मनाली को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. होमवर्क में मिली असाइनमैंट करने बैठती तो विशाल का चेहरा सामने आ जाता.

‘कितनी ठंडक है विशाल के स्पर्श में। ऐसी शीतलता क्या मुझे अभिषेक से मिली थी? बिलकुल नहीं. अब किसी सूरज की तलाश नहीं है मुझे, चांद मिल गया है न. क्यों बनूं मैं सूरजमुखी का फूल? नहींनहीं मुझे नहीं चाहिए सूरज की रोशनी. मैं तो वह जूही का फूल हूं जिसे सूरज की रोशनी बरदाश्त ही नहीं होती. जूही का फूल रात की रानी भी तो कहलाता है और चांदनी भी तो कहते हैं न उसे, क्योंकि वह चांद के प्रकाश में खिलता है. तो अब विशाल मेरा चांद होगा और सप्ताह में 3 रातें तो बिताऊंगी ही मैं उस के साथ,’ अपनेआप से कहते हुए खयालों में ही वह विशाल को चूमने लगी.

मनाली को सप्ताह के अंत की प्रतीक्षा व्याकुलता से रहती थी. वह सचमुच विशाल की रानी बन गई थी. उस की रातों को महकाने वाली रात की रानी।
कक्षा में वह न तो कुछ सुनती थी और न ही समझ पाती, क्योंकि अकसर पूरी रात विशाल के साथ जागतेजागते ही बीतती थी. कुछ अधूरी नींद तो कुछ मदहोशी के कारण मनाली को कक्षा में नींद के झोंके आते रहते, लेकिन विशाल से रिश्ते के आगे उसे कुछ भी नहीं सूझता था.

दिन पंख लगाए उड़ रहे थे. प्रत्येक सप्ताह इम्पोर्टेड परफ्यूम, ब्रैंडेड कपड़े, मोबाइल, कैमरा व पर्स जैसी महंगी वस्तुएं विशाल उसे गिफ्ट के तौर पर देता तो रात में उस के जिस्म को निचोड़ कर रख देता.

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इधर कुछ दिनों से मनाली को यूरिन पास करते समय तेज दर्द होने लगा. खुजली और जलन भी होती. बारबार टौयलेट जाने की इच्छा होती, लेकिन यूरिन बहुत ही कम होता. बुखार और थकावट भी रहने लगी थी. जब विशाल को उस ने इस विषय में बताया तो वह सांत्वना देने या मदद करने के स्थान पर कन्नी काटने लगा. सप्ताहांत में जब मनाली उस के घर आती तो वह बहाने से कहीं और चला जाता.

जब मनाली की तकलीफ बढ़ने लगी तो उस ने अपनी एक पुरानी सहेली को सब कुछ विस्तार से बताते हुए अपने साथ डौक्टर के पास चलने को कहा. यहां भी मनाली के हाथ निराशा लगी. सहेली ने न सिर्फ साफ शब्दों में इनकार कर दिया, बल्कि यह भी कहा, “तेरी करनी है, तू ही भुगत…”
जब दर्द बरदाश्त के बाहर हो गया तो मनाली मम्मी से पुस्तकें खरीदने के बहाने कुछ पैसे ले कर यूनिवर्सिटी के निकट एक नर्सिंगहोम में चली गई. डाक्टर ने कुछ दवाएं और टैस्ट लिख दिए. मनाली तब बेहद चिंतित हुई जब टैस्ट की रिपोर्ट आने पर उसे पता लगा कि उसे यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन हुआ है. इलाज व कुछ अन्य टैस्ट करवाने के खर्च की जानकारी सुन उस के होश उड़ गए.

इन दिनों उस की एक नई मित्र बनी थी, सुमेधा. इस समय उसे सुमेधा का सहारा ही दिखाई पड़ रहा था. मनाली ने उसे अपनी शारीरिक व मानसिक पीड़ा खुल कर बता दी. सुमेधा ने कहा कि वह उस के साथ डाक्टर के पास तो नहीं जाएगी, हां उस की एक मदद अवश्य कर सकती है. सुमेधा के पिता पुरानी वस्तुओं का व्यापार करते हैं. उन से कह कर वह मनाली को उपहार में मिली वस्तुओं की अच्छी कीमत दिलवा सकती है. अंततः मनाली को अपने सभी गिफ्ट बेचने पड़े. उन से मिले रुपयों से वह इलाज करवाने लगी.

उस दिन नर्सिंगहोम में अपनी बारी आने की प्रतीक्षा में बैठी मनाली स्वयं को लुटा सा महसूस कर रही थी. परीक्षा शुरू होने वाली थी. मनाली धीरेधीरे स्वस्थ तो हो रही थी मगर यह सोच कर बहुत दुखी थी कि इस बार भी वह परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगी. पूरे साल तो उस का मन पढ़ाई में लगा नहीं था और अब यह मुसीबत… मनाली का जी चाह रहा था कि वह चिल्ला कर जोरजोर से रोने लगे.

“तुम्हारे घर वाले इतनी जल्दी क्यों कर देते हैं तुम्हारी शादी?” डाक्टर के कमरे से आवाज आई तो मनाली जैसे अपने में लौट आई. कुछ देर पहले एक महिला अंदर गई थी जिस के माथे पर पट्टी बंधी हुई थी. डाक्टर उस से ही मुख़ातिब थीं. महिला के शराबी पति ने नशे में उस के सिर पर कुरसी दे मारी थी. वह महिला पति के साथ रहना तो नहीं चाहती थी, लेकिन बच्चों को ले कर जाती भी कहां?

कुछ देर की चुप्पी के बाद डाक्टर की आवाज़ सुनाई पड़ी, “पढ़ालिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करने की जगह न जाने क्यों तुम्हारे मातापिता पति के पल्ले बांध लेते हैं? क्यों तुम्हें यह नहीं बताया जाता कि तुम्हारी भी अपनी एक पहचान है. शादी, ब्याह, बच्चे तो जिंदगी में आ ही जाएंगे पहले खुद की खुद से पहचान तो होने दें वे. अपने बल पर खड़ी हो जाएगी तो लड़की क्यों चाहेगी किसी का सहारा? अपने दम पर जीना कब सीखोगी?”

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मनाली को अकस्मात जैसे नई दिशा मिल गई. शायद मैं सहारा ढूंढ़ते हुए ही अपने से दूर हो गई थी. नहीं बनूंगी अब मैं सूरजमुखी, रात की रानी भी नहीं. तो क्या चंपा का फूल बन जाऊं जिस पर भंवरे नहीं बैठते कभी? चंपा के फूल में पराग नहीं होता. तो क्या मैं मन की गुनगुनी चाह, इच्छाओं और भावनाओं को निकाल बाहर करूं? नहीं मैं अपने मन से दूर तो नहीं होने दूंगी ये एहसास, लेकिन अभी मन के कोने में छिपा कर रखूंगी और पूरा तनमन एक उद्देश्य में रमा दूंगी. अपने पैरों पर खड़े होने का उद्देश्य, किसी पर निर्भर न रहने का उद्देश्य. क्यों बनूं मैं कोई फूल? शायद कोमल समझ कर यह समाज मुझ जैसी लड़कियों के कानों में सदा किसी पर निर्भर रहने का मंत्र फूंकता रहता है. क्यों प्रतीक्षा हो मुझे अपने जीवन के आकाश में किसी चांद या सूरज की? मैं तो बनूंगी खुद सूरज भी चांद भी. छू लूंगी किसी दिन छलांग लगा कर अरमानों के आसमान को.

सूरजमुखी सी वह: भाग 2- क्यों बहक गई थी मनाली

कहते हैं कि कच्ची उम्र कच्ची मिट्टी के समान होती है, उसे जो भी आकार मिल जाए उस में ही ढलने लगती है. मातापिता कुम्हार के समान होते हैं उसे सही रूप में ढालने वाले. मनाली का मन किस ओर भाग रहा है इस बात की चिंता से दूर उस के मातापिता मंदिरों में दर्शन का कार्यक्रम बना व आएदिन घर में पूजापाठ रखवा कर व्यस्त रहते. इस के अतिरिक्त उन की नजरों में संतान पर किशोर अवस्था में अंकुश लगाना ही उन को सही दिशा दिखाना था.

मनाली की मां रोजरोज सत्संग में भाग ले कर जीवन दर्शन समझने का प्रयास तो करतीं, लेकिन इस बात को समझने का प्रयास उन्होंने कभी नहीं किया कि नाजुक उम्र के इस दौर में मनाली के मनमस्तिष्क में अनेक जिज्ञासाएं जन्म ले रही हैं. स्त्रीपुरुष संबंधों के विषय में जानने की उस की दबीछिपी उत्सुकता कौतुहल जगाने के साथ ही उस की कामभावना को भड़का सकती है और ऐसे प्रश्नों के उत्तर पाने की उत्कंठा उसे अनुचित राह का राही भी बना सकती है.

मनाली प्रतिदिन सायंकाल छत पर जा गमलों में पानी देती थी. उस दिन साथ वाले घर की छत पर बने कमरे से एक लड़के को निकलते देख मनाली को उस के विषय में जानने की उत्सुकता हुई. जानबूझ कर वह ऐसे स्थान पर खड़ी हो गई जहां से लड़के का कमरा स्पष्ट दिखाई दे रहा था. अपनी दृष्टि वहां गड़ा वह कुछ समझने का प्रयास कर ही रही थी कि लड़का कमरे से बाहर आ गया. औपचारिकता से भरी मुसकराहट के बाद उस ने मनाली को अपना परिचय दिया. अभिषेक नाम था उस का. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के साथ ही वह बीए कर रहा था. पड़ोस की छत पर बना कमरा उस ने किराए पर लिया था.

दोनों छतों की दीवारें जुड़ी हुई थीं इसलिए वे न केवल धीरे से बातचीत कर पा रहे थे बल्कि एकदूसरे की निकटता को भी महसूस कर रहे थे. दोनों ने कुछ देर में ही एकदूसरे के विषय में काफी कुछ जान लिया. अभिषेक फिल्में देखने का बहुत शौकीन था.

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अपने लैपटौप पर अकसर रात में वह इंग्लिश फिल्में व वेब सीरीज देखा करता था. मनाली से उस ने एक विशेष वेब सीरीज का जिक्र किया जो टीनएजर्स के लिए बनी थी. अभिषेक की बातें सुन मनाली का दिल भी उस सीरीज को देखने के लिए मचल उठा. अभिषेक ने उसे यह कहते हुए कि कल उस का औफ डे है, उसे अपने कमरे में अगले दिन आने का निमंत्रण दे दिया.

अभिषेक से हुई उस छोटी सी भेंट ने मनाली को अंदर तक हिला दिया. बारबार उसे वह पल गुदगुदा रहा था जब अभिषेक से बातें करते हुए दीवार पर रखे उस के हाथ अभिषेक के हाथों को छू रहे थे.

अगले दिन मम्मी के मंदिर जाते ही वह छत पर चली गई. अभिषेक तो इंतजार में पहले से ही खड़ा था. पहली बार दीवार फांदने में मनाली को थोड़ी कठिनाई हो रही थी. अभिषेक ने अपने एक हाथ से उस की बाजू को कस कर पकड़ लिया और दूसरे हाथ से पीठ को सहारा दे अपनी छत पर उतार लिया.

अभिषेक के साथ सीरीज देखते हुए मौजमस्ती करना मनाली को बहुत भा रहा था. बारबार अभिषेक उसे किसी बहाने हौले से छू लेता. वह अभिषेक की बातों का रस ले रही थी तो अभिषेक की नजरें उस की देह का. जाने का समय आया तो अभिषेक ने एक बड़ी सी चौकलेट मनाली को उपहारस्वरूप देने के लिए निकाली और पैकेट खोल एक टुकड़ा तोड़ कर मनाली के होंठों से लगा दिया.

मनाली अब सारा दिन छत पर आने की फिराक में रहती. कभी पढ़ने के बहाने तो कभी मां की निगाहों से बच कर बिना कोई बहाना बनाए. जानती थी कि मम्मी तो सीढ़ियां चढ़ कर आएंगी नहीं. अभिषेक अकसर कमरे में ही होता था. लगभग हर मुलाकात में कोई न कोई गिफ्ट पा कर मनाली स्वयं पर ही इतराने लगी थी.

अभिषेक से मिली छूअन में मनाली को ऊष्मा का एहसास होता. सर्द मन को थोड़ी राहत अवश्य मिल गई थी, लेकिन उस का जी अकुला उठा और पाने को. रात में बिस्तर पर करवटें बदलते हुए सुबह होने का इंतजार रहता उसे. अभिषेक उस के जीवन का सूरज बन रहा था. उस से मिला चुंबन और आलिंगन उसे धूप के एक टुकड़े सा लगता था.

वह अब सूरजमुखी बन जाना चाहती थी, अपने सूर्य का प्रकाश पा कर खिल जाना चाहती थी. उसे अब ऐसी धूप की चाह थी जो खिला दे उस का अंगअंग. सहला दे उस का तन, खिल जाए उस की पंखुड़ीपंखुड़ी. अभिषेक भी तो यही चाहता था.

2 दिन में ही मन का संबंध तन का रिश्ता बन गया. अपने मन में घुमड़ रहे प्रश्नों का उत्तर खोजने मनाली रिश्ते में डूबती चली गई, लेकिन दोनों के बीच अब संवाद केवल शरीर की भाषा में होने लगे. मनाली कुछ संतुष्ट थी तो कहीं असंतुष्ट भी. उसे लगने लगा था कि अभिषेक भी वही पुरुष है जो अपनी शारीरिक भूख शांत कर रहा है. वह कभी कुछ पूछना भी चाहती तो अभिषेक उत्तर ही नहीं देता था. धीरेधीरे नौबत यहां तक पहुंच गई कि कभीकभी उस की इच्छा ही नहीं होती थी अभिषेक के पास जाने की, मगर उपहारों के लोभ में वह फंसती ही गई. कभी महंगे कौस्मेटिक्स, कभी कमरा सजाने का सामान तो कभी ब्लूटूथ ईयरफोन जैसी वस्तुएं… मनाली की अलमारी भरती जा रही थी.

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एक दिन वह छत पर आई तो अभिषेक के कमरे में कोई हलचल दिखाई न दी. उस ने ध्यान से देखा तो समझ में आया कि दरवाजे पर ताला लटक रहा है, यह देख वह हक्कीबक्की रह गई. ‘न जाने क्या हुआ होगा’ वह छत पर खड़ेखड़े ही चिंता में घुली जा रही थी. तभी मकानमालिक एक व्यक्ति के साथ आया और कमरे का ताला खोल उस से बोला, “आप कल से ही आ सकते हैं यहां. वह लड़का कुछ महीनों से किराया नहीं दे रहा था. कल रात ही यहां से चुपचाप चला गया. सामान के नाम पर एक सूटकेस ही तो था. मुझे तो उस के कमरे में एक लैटर रखा हुआ मिला जिस पर लिखा था कि वह अपने गांव वापस जा रहा है, किराया न देने के लिए माफी भी मांगी थी,” सब सुन कर मनाली को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. ‘बेनाम रिश्तों का अंजाम शायद यही होता है,’ वह बुदबुदाई.

इस घटना के 2 माह बाद एक दिन बाजार में अभिषेक को एक लड़की के साथ देख मनाली आश्चर्यचकित रह गई. अभिषेक उसे देख कर सकपका गया और मुंह फेर कर चुपचाप चल दिया. मनाली भी उसे अनदेखा कर घर आ गई. अपने उदास मन को समझाते हुए सोच रही थी, ‘मैं क्यों बन गई थी सूरजमुखी, जबकि वह सूरज था ही नहीं. वह तो कमरे में जलते घासफूस के ढेर सा था जिस ने मुझे कुछ देर गरमी दी और उजाला भी, लेकिन अंत तो निश्चित ही था.’

कुछ देर बाद जब मन शांत हुआ तो हार में जीत ढूंढ़ते हुए बोली, ‘सौदा बुरा भी नहीं रहा, कितने सारे गिफ़्ट तो दिए हैं उस ने मुझे,’ अलमारी खोल कर एक दृष्टि अभिषेक द्वारा दिए उपहारों पर डाल वह मुसकरा दी.

12वीं का परीक्षा परिणाम आया तो मनाली को बहुत कम अंक प्राप्त हुए. किसी कौलेज में प्रवेश न मिल पाने के कारण उसे ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना पड़ा. वहां प्रत्येक शनिवार और रविवार को सुबह से शाम तक कक्षाएं होती थीं. मनाली का घर यूनिवर्सिटी से दूर था. सुबह 8 बजे प्रारंभ होने वाली कक्षा में उस का जाना लगभग असंभव था. उन के दूर के एक रिश्तेदार यूनिवर्सिटी के पास रहते थे. मनाली पर सौ पाबंदियां लगाने वाले मातापिता को आखिर फैसला करना पड़ा कि मनाली शुक्रवार की शाम उन के घर चली जाएगी और 2 दिन क्लास करने के बाद सोमवार सुबह घर वापस आ जाया करेगी.

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सूरजमुखी सी वह: भाग 1- क्यों बहक गई थी मनाली

“लगता है विकास जीजू आए हैं. वाह, मजा आ गया. बाद में आ कर पढ़ लूंगी. 12वीं कक्षा है तो क्या हुआ? बोर्ड के ऐग्जाम का मतलब यह तो नहीं कि किसी से बात करना ही गुनाह है,” हाथों में पकड़ी किताब को बंद करते हुए मनाली मंदमंद मुसकरा कर अपने कमरे से निकल ड्राइंगरूम की ओर चल दी.

रिश्ते की दीदी कुमुद का विवाह लगभग 6 माह पहले हुआ था. विवाह से पहले कुमुद जब कभी उन से मिलने आती थी तो मनाली खूब नाकभौं सिकोड़ा करती. उस का साथ मनाली को कुछ देर के लिए भी नहीं सुहाता था, लेकिन कुमुद का विवाह हुआ तो विकास जीजू की कदकाठी और रंगयौवन देख मनाली के दिल में कुलबुलाहट सी होने लगी. अब कुमुद के साथ विकास के घर आते ही मनाली का मुखमंडल दमक उठता.
रात का अंधेरा भी उसे दीदी, जीजू के संबंधों की कल्पना से चकाचौंध करने लगा था.

‘जीजू की बगल में लेटी दीदी को कैसा लगता होगा? उन के प्रेम प्रदर्शित करने पर दीदी की प्रतिक्रिया क्या होती होगी…’ मन ही मन दीदी के स्थान पर स्वयं को कल्पना में रख वह अपनी सोच पर लजा जाती. दीदीजीजू के बीच हो रहे संवादों के सांकेतिक अर्थ जानने में उस की रुचि बढ़ रही थी.

‘क्या महत्त्व है जीवन में ऐसे संबंधों का? क्या अंतर होता होगा दोस्ती और ऐसे रिश्तों में…’ मन में घुमड़ते ऐसे सवालों का जवाब पाने को बेचैन वह अपनी सहेलियों से इस विषय पर चर्चा करना चाहती थी, मगर मातापिता के कठोर नियमों के कारण वह घर से निकल नहीं पाती थी. सहेलियों के घर आने पर भी वे क्षुब्ध हो जाते. मनाली स्वयं में खोई अंतर्मन में सब छिपाए व्याकुल सा जीवन जी रही थी.

मनाली के हावभाव देख मां को समझते देर न लगी कि उम्र की हलचल उस पर हावी हो रही है. अपनी संकीर्ण मानसिकता से इस का हल निकालते हुए मनाली को वे शाम को अपने साथ मंदिर ले जाने लगीं ताकि आचार्यजी से प्रवचन सुन कर मन में पल रही असामयिक इच्छाओं से मनाली का पीछा छूट जाए.

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सत्संग भवन में मां जब आंखें मूंदें भक्तिभाव में लीन होतीं तो मनाली आचार्यजी की लालसा में डूबी निगाहों को यहांवहां ताकते स्पष्ट रूप से देखती थी. बीमारी दूर करने व आशीर्वाद के नाम पर स्त्रियों के अंगों को स्पर्श करते हुए उन के चेहरे के भाव भी मनाली की आंखों से छिप न सके.

अपनी मां से पढ़ाई का बहाना बना उस ने वहां जाना तो बंद कर दिया, लेकिन इस घटना के बाद शारीरिक भूख जैसे शब्द उसे उलझाने लगे. ‘शायद जिस्म की प्यास सब को बेचैन करती है, चाहे कोई इस से दूर होने का कितना भी ढोंग कर ले. कभीकभी मेरा मन भी करता है कि कोई प्यार से सहलाता रहे. क्या यह वही भूख है? इसे शांत कैसे किया जाता होगा…’ ऐसे प्रश्न उसे लगातार झिंझोड़ रहे थे.

इस बीच पड़ोस की एक आंटी के किसी पुरुष के साथ संबंध होने की चर्चा ने उस के मन की उथलपुथल को और बढ़ा दिया. आंटी के पति विदेश में रह कर नौकरी कर रहे थे. उन की बेटी आयु में मनाली से थोड़ी ही छोटी थी. मनाली ने भी कई बार किसी अंकल को रात में कार से उतरते और सुबह वापस जाते देखा था. एक ओर इस रिश्ते के विषय में सोच कर मनाली के दिल में हलचल सी जाग रही थी, तो दूसरी ओर वह प्रेम का अर्थ खोज रही थी.

वह जानती थी कि पड़ोस में रहने वाली आंटी के पति 2 साल में 1 बार आते हैं, ऐसे में आंटी अकेलापन महसूस करती होंगी. लेकिन वह अंकल? सुना है, उन के विवाह को 3-4 वर्ष ही हुए हैं. वे खुश हैं अपने परिवार से. 2 वर्षीय बेटा भी है उन का, तो फिर यह सब क्यों? क्या वे दोनों केवल मित्र बन कर नहीं रह सकते? क्या सैक्स इतना जरूरी है कि नए संबंध बनने लगें?

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मां से मनाली ने पड़ोस वाली आंटी की बात शुरू की तो उन्होंने उसे झिड़कते हुए कहा, “खबरदार जो आइंदा ऐसी गंदी बातें की मुझ से. छोटी हो अभी बहुत, बच्चे की तरह रहो,” मनाली सहम कर चुप हो गई.

एक दिन अपने घर मिलने आए मामा को वह चाय देने कमरे में पहुंची तो मोबाइल पर उन को किसी से मीठी आवाज़ में बातें करते पाया. दरवाजे की ओर मामा की पीठ थी, इसलिए उस की उपस्थिति से अनभिज्ञ मामा नटखट अंदाज में द्विअर्थी संवाद बोलते हुए खिलखिला कर हंस रहे थे. मनाली के सामने जाते ही अचकचा कर “अभी करता हूं फोन,” कह कर उन्होंने काल काट दी. मोबाइल सामने टेबल पर रख वे निगाहें बचाते हुए हड़बड़ा कर वाशरूम में घुस गए.

‘कुछ देर पहले तो मामाजी मां से मामीजी की शिकायत कर रहे थे और अब इतनी प्यार भारी बातें? कहीं वे भी पड़ोसी आंटी की तरह…” मनाली ने झट से मोबाइल उठा कर ताजा काल का नंबर देखना चाहा. मोबाइल को टच करते ही वाट्सऐप खुल गया. शायद मामा की बातचीत वाट्सऐप काल के माध्यम से हो रही थी. सब से ऊपर की चैट में किसी महिला की डीपी लगी थी. मनाली ने झटपट चैट खोली तो इश्क में रंगी हुई बातचीत पढ़ते हुए उस का दिल धड़क उठा. मामा द्वारा ली गई एक सैल्फी भी दिखी जिस में मामा किसी होटल के बिस्तर पर उस महिला के साथ लेटे हुए थे. हैरत में पड़ी मनाली मोबाइल टेबल पर रख चुपचाप अपने कमरे में चली गई. अपनी मम्मी से इस बारे में बात करने का बहुत मन था मनाली का, लेकिन चाह कर भी वह ऐसा न कर सकी.

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उस रात मनाली को नींद नहीं आ रही थी. ‘शालिनी मामी सी खूबसूरत पत्नी के होते हुए उस महिला के चक्कर में क्यों हैं मामा? डीपी में दिखने वाली महिला तो मामी के सामने कहीं ठहरती ही नहीं. कहीं उस ने ही फुसला कर मामा को अपनी ओर तो नहीं कर लिया? लेकिन मामा क्यों मान गए? क्या शारीरिक सुख इतना अहम है कि सभी आंखें मूंदे उस रास्ते पर चलना चाहते हैं? या फिर ऐसा तो नहीं कि मामी अपने पति की इच्छाएं पूरी नहीं कर सकीं कि उन्हें किसी और से प्रेम की चाहत है? पुरुष की क्या अपेक्षाएं होती होंगी एक पार्टनर से? क्या मैं अपने साथी को वह सब दे सकूंगी जो उसे चाहिए ताकि वह भटक न पाए? कौन बताएगा यह सब? किसी पुरुष से नजदीकी हो तो शायद इस विषय में जान पाऊं…’ सोचते हुए मनाली को नींद आ गई.

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12 साल के संघर्ष के बाद पंकज त्रिपाठी को मिली मंजिल, पढ़ें खबर

बिहार के गोपालगंज के बेलसंड गांव में जन्में अभिनेता पंकज त्रिपाठी हिंदी सिनेमा जगत के एक जाना-माना नाम है और आज हर निर्माता निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना चाहते है, लेकिन कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंचना पंकज के लिए आसान नहीं था. उनके पिता का नाम पंडित बनारस त्रिपाठी और माँ का नाम हेम्वंती त्रिपाठी है. पिता किसान होने के साथ-साथ पंडिताई भी करते थे. चार बच्चों में सबसे छोटे पंकज को बचपन से ही अभिनय का शौक था. छोटी उम्र में ही उन्होंने लड़की की वेशभूषा धारण कर किसी भी उत्सव या अवसर पर अभिनय किया करते थे, इससे उनके अंदर अभिनय की इच्छा जगी और वे इसे ही अपना प्रोफेशन मान लिए थे, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर बने और उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने पटना भेज दिए.

स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद पकज ने होटल मनेजमेंट की पढाई की और पटना के एक पांच सितारा होटल में किचन सुपरवाईजर का काम करने लगे, क्योंकि उन्हें कुछ पैसा कमा लेना था. पंकज के आदर्श मनोज बाजपेयी है, एक बार जब मनोज पटना होटल में आये और अपना स्लीपर छोड़कर चले गए थे तो पंकज ने उन स्लीपर्स को सम्हाल कर अपने पास रखा, ताकि अभिनय के प्रति उनकी शौक बनी रहे. करीब 7 साल होटल में काम करने के बाद वे दिल्ली एक्टिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए शिफ्ट हो गए और नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में ग्रेजुएशन कर अभिनय के लिए मुंबई आ गए. मुंबई वे अपनी पत्नी मृदुला और बेटी आशी के साथ आये थे. अभी उनकी बेटी दसवीं कक्षा में है और पढाई पर ध्यान दे रही है.

पंकज को लगा नहीं था कि उनकी संघर्ष इतनी लम्बी होगी, लेकिन उन्होंने धीरज नहीं हारी. शुरू में पंकज ने कई विज्ञापनों और एक दो सीन्स में काम किये,उस दौरान उनकी पत्नी, मृदुला,जो एक स्कूल टीचर थी, पूरे परिवार का खर्चा चलाया और पंकज को उनके सपनों को पूरा करने की आज़ादी दी. कुछ दिनों बाद पंकज को फिल्म ‘रन’ मिली, लेकिन फिल्म ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ उनके अभिनय कैरियर की माइलस्टोन बनी, जिसके बाद से उन्हें मुड़कर पीछे देखना नहीं पड़ा. इस फिल्म की ऑडिशन पंकज ने करीब 8 घंटे तक दिया था. व्यस्त जीवन शैली के बीच पंकज त्रिपाठी ने मुंबई स्थित अपने आवास से टेलीफोन पर गृहशोभा के लिए खास बात की, जो रोचक थी, पेश है, कुछ खास अंश.

सवाल – अभिनय की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?

जवाब –जब गाँव में था तो वह किसी भी अवसर पर नाटक करता था. पटना जाने के बाद भी मैं वहां थिएटर करने लगा था, फिर महसूस हुआ कि ये फील्ड अच्छी है, इसमें काम कर जीवन चलाना आसान होगा. इसके बाद पटना से दिल्ली आ गया और एनएसडी में ज्वाइन किया. आज यहं तक पहुंचा हूँ. 12 साल की संघर्ष के बाद मुझे लोग थोडा जानने लगे थे. काम मिलने लगा था.

सवाल- 12 साल की संघर्ष में किसका सहयोग रहा?

जवाब – मेरी पत्नी मृदुला का जो उस समय मुंबई में टीचर थी और उनके पैसे से ही घर चल जाता था. उस दौरान मैं काम खोज रहा था और अपने क्राफ्ट पर काम कर रहा था. उन्होंने उनका काम मेरे स्टाब्लिश होने के बाद छोड़ दिया और अपने मनपसंद शूटिंग की कंपनी चलाती है.

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सवाल –पत्नी से आप कैसे मिले थे?

जवाब – मैं उनसे एक शादी में मिला था, मुझे मृदुला बहुत अच्छी लगी थी. इसके बाद प्यार और प्रेमविवाह किया है.

सवाल – मुंबई आने पर काम के लिए कितनी समस्याएं आई? क्या आउटसाइडर होने की वजह से आपको अधिक मेहनत करनी पड़ी?

जवाब –हमारे देश में हर काम के लिए भीड़-भाड होती है और एक्टर बनना तो सबसे कठिन काम होता है. उसमें जो मेहनत करते है, उनके लिए रास्ते बन जाने है, मैंने भी मेहनत कर अपना रास्ता बनाया. इतना ही नहीं कई बार काम होते-होते पता चलता था कि नहीं हुआ किसी दूसरे को ले लिया है, ये पार्ट ऑफ़ ऑडिशन होता है.

सवाल – आपकी अधिकतर फिल्मों या वेब सीरीज में आपके काम को सराहा जाता है, इसकीवजह क्या मानते है?

जवाब – इसके लिए मैं उन कहानियों में काम करना पसंद करता हूँ, जो मुझे अच्छी लगती है. उसे सजीव करने के लिए पूरी मेहनत करता हूँ और उससे जुड़ जाता हूँ. ये अच्छी बात है कि मेरे काम की प्रसंशा दर्शक करते है, जिससे मुझे हर फिल्म में अधिक अच्छा करने की इच्छा होती है.

सवाल – आप अपनी जर्नी से कितना संतुष्ट है, क्या कोई रिग्रेट रह गया है?

जवाब – मैं अपने जर्नी से बहुत संतुष्ट हूँ, क्योंकि जितना मैंने सोचा, उससे अधिक मुझे मिला है, इसलिए किसी प्रकार की रिग्रेट मुझमे नहीं है. इसके अलावा मैं सुकून गति का व्यक्ति हूँ और जिस गति से मेरा काम चल रहा है,उसे मैं वैसे ही चलने देना चाहता हूँ. मेरे जीवन में ठहराव है औरजब समय मिलने पर दार्शनिक किताबे पढना पसंद करता हूँ.

सवाल – आपके मुंबई एक्टिंग के लिए आने पर परिवार की प्रतिक्रियां कैसी थी?

जवाब – परिवार वालों को मुझपर भरोसा था, वे जानते थे कि मैं कुछ न कुछ अच्छा अवश्य कर लूँगा, इसलिए उन्होंने सफल होने का आशीर्वाद दिया. गांव मैं हर तीन से चार महीने बाद 2 दिन के लिए जाता हूँ. मेरे जाते ही कई लोग मुझसे मिलने आ जाते है.

सवाल –मुंबई में सभी यूथ हीरो बनने के लिए आते है,आपकी इच्छा क्या थी?

जवाब –मेरी इच्छा एक्टिंग करने की थी, इसलिए जो भी काम मिला मैं करता गया. इसमें मैंने केवल गैंग्स्टर ही नहीं, वकील, कॉमेडियन, आम आदमी आदि सबकी भूमिका निभा रहा हूँ.

सवाल – आगे आपकी कौन-कौन सी फिल्में रिलीज पर है?

जवाब – आगे फिल्म ‘ओह माय गॉड 2’ और  ‘शेरदिल’ है, जिसपर काम चल रही है.

सवाल – अभिनय से पहले और अब एक सफल एक्टर बनने की जर्नी में आप वजह क्या मानते है?

जवाब –मेरा धीरज, निरंतर प्रयास करते रहना, अपने क्राफ्ट को सवांरते रहना आदि कई बातें है, जिसे मैंने अपने जीवन में शामिल किया है.

सवाल – रियल लाइफ में पंकज कैसे है?

जवाब – रियल लाइफ में पंकज एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार का बेटा है, जिन्हें बाज़ार जाकर सब्जियां खरीदना, ट्रेन के स्लीपर कोच में सफ़र करना, परिवार के साथ समय बिताना, गांव और खेती को देखना, खाना बनाना आदि सब पसंद है.

सवाल – अगर आपको कोई सुपर पॉवर मिले तो आप देश में क्या बदलना चाहेंगे?

जवाब – मैं बहुत सारे पौधे लगाना चाहता हूँ, ताकि बहुत हरियाली रहे. ऑक्सिजन की कमी न रहे, नदियाँ साफ़ रहे, वातावरण सुंदर रहे, पशु पक्षी का समागम हो और सभी सुखी रहे. सुपर पॉवर से मैं पूरी दुनिया को सुखी बनाना चाहता हूँ.

सवाल – आपने अधिकतर फिल्मों में बाहुबली की भूमिका निभाई है, क्या आपको राजनीति में जाने की कभी इच्छा है?

जवाब –अभी तो बताना मुश्किल है, क्योंकि इस बारें में मैंने सोचा नहीं है, लेकिन आगे क्या होगा उसे आज समझ पाना बहुत मुश्किल है. राजनीति डेमोक्रेटिक देश में बहुत जरुरी होती है, क्योंकि इससे सामाजिक क्षमता बढ़ जाती है. हाथ में पॉवर होता है और आप कुछ सही काम करना चाहते है तो कर सकते है. देश का संविधान भी एक महत्व पूर्ण अंग है, जिसके आधार पर हम सब चलते है. इसके द्वारा हमें अपने अधिकार, कर्तव्य, स्वतंत्रता आदि कई मूलभूत बातों का पता चलता है.

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सवाल – बिहार का विकास बाकी राज्यों की तुलना में काफी कम है, क्या आप अपने राज्य के विकास के बारें में कभी सोचा है?

जवाब – सोचते है कि गांव और राज्य का विकास हो. अपने हिसाब से करने का प्रयास भी करते है. इसके अलावा कई सामाजिक कार्य से जुड़ा हूँ, पर उस बारें में बात करना नहीं चाहता.

सवाल – कोविड और लॉकडाउन ने बता दिया है कि हमारे देश में लोग कितने गरीब है और कितनी संख्या में वे माइग्रेट करते है, खासकर मुंबई से बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों से, आपकी सोच इस बारें में क्या है?

जवाब – देश में माइग्रेशन सालों से होता आया है, मुंबई में अधिक होने की वजह काम का मिलना है, जिससे वे अपने गांव और शहर से आकर अपनी रोजी -रोटी कमाते है. विस्थापन एक बड़ी समस्या है और इसपर लगाम तभी लग सकेगा, जब उन राज्यों का समुचित विकास हो. अगर मेरे गाँव में एक फैक्ट्री लग जाती है, तो कोई मुंबई या कल्याण की फैक्ट्री में काम करने क्यों आएगा? हर राज्य में उद्योग – धंधे और काम के मौके का सही विकास हो तो कोई भी व्यक्ति अपने शहर और परिवार को छोड़कर दूसरी जगह नहीं जायेगा.

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Karan Kundrra पहुंचे तेजस्वी के घर, #tejran का Cute Video Viral

Bigg Boss 15 का विनर बनने के बाद जहां तेजस्वी प्रकाश (Tejasswi Prakash) सातवें आसमान पर हैं तो वहीं सोशलमीडिया पर उनके विनर बनने को लेकर बहस जारी है. इसी बीच सोशलमीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें करण कुंद्रा (Karan Kundrra) तेजस्वी के घर के चक्कर काटते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो की झलक…

तेजस्वी के घर के बाद नजर आए करण

दरअसल, 3 महीने बिग बॉस के घर में साथ रहने पर तेजस्वी और करण कुंद्रा एक दूसरे को मिस करने लगे हैं, जिसके चलते करण पुराने हीरो की तरह तेजस्वी के घर के बाहर चक्कर लगाते नजर आ रहे हैं. वीडियो में करण कुंद्रा तेजस्वी प्रकाश के घर के बाहर खड़े होकर करण उनसे सड़क पर बाते करते हुए नजर आ रहे हैं. हालांकि तेजस्वी उन्हें घर के अंदर आने की बात कहती नजर आ रही हैं. वहीं वीडियो देखने के बाद फैंस #tejran की इस जोड़ी की वीडियो को पुराने जमाने का प्यार का टैग देते हुए नजर आ रहे हैं.

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तेजस्वी को दिया था सरप्राइज

इसके अलावा बिग बॉस 15 जीतने के बाद तेजस्वी की फैमिली और करण कुंद्रा ने मिलकर उन्हें सरप्राइज दिया था, जिसकी वीडियो सोशलमीडिया पर भी तेजी से वायरल हो रही है. वीडियो की बात करें तो सरप्राइज देखकर तेजस्वी प्रकाश बेहद खुश हुई थीं.

बता दें, तेजस्वी प्रकाश जल्द ही कलर्स के पौपुलर सीरियल नागिन 6 में नजर आने वाली हैं, जिसके चलते वह सीरियल की शूटिंग भी शुरु कर चुकी हैं. वहीं पर्सनल लाइफ की बात करें तो वह करण कुंद्रा संग क्वालिटी टाइम बिताते हुए भी नजर आ रही हैं, जिसके वीडियो और फोटोज सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं.

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उसका अंदाज: भाग 3- क्या थी नेहल की कहानी

नीलेश को और बात करने का अवसर न दे, नेहल तेजी से कमरे के बाहर चली गई. मुसकराते चेहरे के साथ नेहल पूजा के कमरे में जा पहुंची.

‘‘हाय नेहल, कैसी रही तेरी मुलाकात? लगता है, बात जम गई,’’ पूजा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मुलाकात की छोड़, आज उस फोन करने वाले का रहस्य खुल गया.’’

‘‘सच, कौन है वह? उसे पुलिस के हवाले क्यों न कर दिया?’’

‘‘अरे, वह तो मेरे लिए मां द्वारा चुना गया उम्मीदवार इंद्रनील था. उस की बातों से समझ गई थी, अपने भाई का नाम ले कर मेरी परीक्षा ले रहे थे, जनाब. मैं ने भी अच्छा जवाब दिया है. देखें, अब उस दूसरे इंद्रनील को कहां से लाते हैं.’’

‘‘वाह, तेरी तो प्रेमकहानी बन गई नेहल. वैसे, कैसा लगा अपना मजनूं?’’

‘‘मुझे तो यही खुशी है, उसे करारा जवाब मिला है. वैसे देखने में खासा हीरो दिखता है. बातें भी अच्छी कर लेता है. पर अब मजा आएगा, मुझे बनाने चले थे और खुद बन गए,’’ नेहल के चेहरे पर शरारतभरी मुसकान थी.

‘‘मुझे तो यकीन है उस ने तेरा दिल चुरा लिया,’’ पूजा हंस रही थी.

‘‘जी नहीं, मेरा दिल यों आसानी से चोरी नहीं हो सकता. चलती हूं, शायद मां का फोन आए,’’ नेहा अपने कमरे में जाने को उठ गई.

किताब खोलने पर नेहल का मन नहीं लग रहा था. नीलेश का चेहरा आंखों के सामने आ रहा था. उस का क्या रिऐक्शन होगा, कहीं वह निराश तो नहीं हो गया, शायद वह हर दिन की तरह फोन करे और कहे, ‘आज आप ने मायूस कर दिया. इतना बुरा तो नहीं हूं मैं.’ देर रात तक कोई फोन न आने से नेहल ही निराश हो गई.

कल रविवार है, देर तक सोने के निर्णय के साथ न जाने कब सोई थी कि मोबाइल की घंटी सुनाई पड़ी. जरूर उसी का फोन होगा, पर दूसरी ओर से एक गंभीर पुरुषस्वर सुनाई दिया.

‘‘हैलो, नेहलजी, मैं इंद्रनील, जयपुर से बोल रहा हूं. माफ कीजिएगा, मैं आप से मिलने खुद नहीं पहुंच सका, बहुत जरूरी काम था, टाला नहीं जा सकता था. आप के बारे में नीलेश ने विस्तृत जानकारी दी है, मानो मैं स्वयं आप से मिला हूं. नीलेश ने आप का संदेश दिया है, जल्दी ही आप से मिलने पहुंचूंगा. मेरे बारे में नीलेश ने बताया ही होगा. और कुछ जानना चाहें तो बेहिचक पूछ सकती हैं.’’

‘‘जी नहीं, आप के भाई ने आप की बहुत प्रशंसा की है. एक बात पूछना चाहती हूं, आप अपने भाई पर इतना विश्वास रखते हैं कि अपनी जगह उसे भेज दिया, पर क्या आप जानते हैं कि आप की जगह वे खुद मेरे साथ अपनी शादी के लिए उत्सुक थे?’’

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‘‘अरे, आप उस की बातों को सीरियसली न लें, मजाक करना उस का स्वभाव है. हां, आप ने मेरे साथ अपनी शादी की सहमति दी है, उस के लिए आभारी हूं. जल्द ही हम जरूर मिलेंगे. नीलेश ने जयपुर से आप के मनपसंद रंग की साड़ी लाने को कहा है, वह ला रहा हूं. यहां से और कुछ चाहिए तो बताइए.’’

‘‘थैंक्स, मुझे कुछ नहीं चाहिए, बाय.’’

फोन बंद करतेकरते नेहल का मन रोनेरोने का हो आया. यह क्या हो गया. फोन जयपुर से ही आया था. कौन है यह इंद्रनील, उस से बिना मिले, बिना फोन पर बात किए उस के साथ शादी के लिए स्वीकृति दे बैठी. तभी मां का फोन आ गया, ‘‘आज मेरी चिंता दूर हो गई, बेटी. इंद्रनील जैसा दामाद और तेरे लिए वर, कुदरती तौर पर ही मिलता है. उस ने तुझ से होली के बाद मिलने की इजाजत मांगी है. तेरी परीक्षा के पहले वाली प्रिपरेशन लीव में ही पहुंचेगा.’’

‘‘मां, मुझ से गलती हो गई, मैं इंद्रनील से शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘पागल मत बन. तू ने खुद सहमति दी है, किसी ने जबरदस्ती तो नहीं की है?’’

‘‘तुम नहीं समझोगी मां, मैं किसी और से…’’

‘‘मुझे कुछ समझना भी नहीं है. बहुत मनमानी कर ली. हम तेरे दुश्मन तो नहीं हैं, नेहल, इंद्रनील हर तरह से तेरे लिए उपयुक्त है. अब हमें परेशान मत कर, बेटी. बचपना छोड़, किसी को वचन दे कर वचन तोड़ना अक्षम्य अपराध है. मेरा यकीन कर, इंद्रनील के साथ तू बहुत सुखी रहेगी.’’

नेहल की समझ में नहीं आ रहा था, वह क्या करे? यह तो अपने पांव खुद कुल्हाड़ी मारने वाली बात हो गई. पूजा भी परेशान थी, पर उस का एक ही सुझाव था, फोन पर इंद्रनील को सचाई बता दे. जयपुर से इंद्रनील वापस जा चुका था, अब तो उस के फोन का इंतजार करना था.

प्रिपरेशन लीव की छुट्टियां शुरू हो गईं. नेहल का मन बेचैन था. इंद्रनील उस से मिलने कभी भी आ सकता है, क्या वह उस से कह सकेगी कि वह उस से नहीं, उस के छोटे भाई से विवाह करना चाहती है. छुट्टी के 3 दिनों बाद सुबहसुबह कलावती केयरटेकर ने आ कर कहा, ‘‘कोई नील बाबू आप से मिलने आए हैं. उन का पहला नाम याद नहीं रहा.’’

धड़कते दिल के साथ नेहल इंद्रनील से मिलने की हिम्मत जुटा पहुंची थी. सामने खड़े व्यक्ति को देख वह चौंक गई. अपनी उसी मोहक हंसी के साथ नीलेश खड़ा था. नेहल समझ नहीं सकी वह क्या कहे, पर खुद नीलेश आगे बढ़ आया.

‘‘कैसी हैं? चाहता तो था होली पर आ कर आप को रंगता, पर आ नहीं सका. अब तो बस कहना चाहूंगा जिंदगी की सारी खुशियां आप के जीवन में रंग भरती रहें.’’

‘‘इंद्रनीलजी की जगह क्या आज फिर उन की ओर से कोई नया संदेश लाए हैं?’’

‘‘नहीं, उन्होंने अपनी जगह हमेशाहमेशा के लिए मुझे दे दी, आखिर बिग ब्रदर को इतना तो करना ही चाहिए. वैसे भी वे जान गए थे कि आप मुझे चाहती हैं. आप का पीछा करने के लिए पूरे 10 दिन होम किए हैं, नेहलजी. सच कहिए, क्या मेरा फोन करना आप को खराब लगता था? मुझे तो लगता है, आप को मेरे फोन का इंतजार रहता था.’’

‘‘यह तुम्हारा भ्रम है, वैसे भी किसी के विकल्परूप में तुम्हें क्यों स्वीकार करूंगी? मैं ने तो इंद्रनील से मिलने आने का अनुरोध किया था, उन के विकल्प का नहीं.’’

‘‘अगर ऐसा है तो मिस नेहल, मैं किसी का विकल्प नहीं, स्वयं इंद्रनील हूं, अपने मातापिता का बड़ा बेटा. अब कहिए, क्या इरादा है? सौरी, मैं चाह कर भी आप के पास किसी दूसरे इंद्रनील को नहीं ला सकता. अब तो यही नील चलेगा, नेहल.’’

‘‘तुम इतने बड़े चीट हो, इंद्रनील? तुम से तो शादी करने में भी खतरा है.’’

‘‘फिर वही गलती कर रही हैं. मैं धोखेबाज नहीं, जीनियस इडियट हूं और मैं ने कहा था, मुझे आप पकड़ नहीं सकेंगी.’’

‘‘पर मैं ने तो तुम्हें पकड़ ही लिया. तुम्हें पहले दिन ही पहचान लिया था, मुझे फोन करने वाले तुम ही थे.’’

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‘‘पर यह तो नहीं समझ सकी थीं कि मैं ही इंद्रनील था, वरना मां से उस इंद्रनील से शादी न करने को क्यों कह रही थीं. धोखा खा गई थीं न? मां को मुझे ही सचाई समझानी पड़ी थी, वरना तुम ने तो उन्हें भी डरा दिया था.’’

‘‘मानती हूं, इस जगह तो मैं धोखा खा ही गई, पर इसे मेरी हार मत समझना. तुम ने मेरी मां को अपने मोहजाल में बांध लिया वरना…’’

‘‘तुम किसी बेचारे इंद्रनील का ही इंतजार करती रहतीं. अब तुम्हारी इस गलती के बदले तुम्हें सजा देने का अधिकार तो मुझे मिलना ही चाहिए,’’ इंद्रनील शरारत से मुसकराया.

‘‘क्या सजा दोगे, नील? इतने दिनों तक फोन कर के परेशान करते रहे, सजा तो तुम्हें मिलनी चाहिए,’’ नेहल ने मानभरे स्वर में कहा.

‘‘अच्छाजी, जैसे मैं जानता नहीं था, मोहतरमा को फोन का कितना इंतजार रहता था.’’

‘‘यह तुम्हारा भ्रम है, अगर पकड़ पाती तो तुम्हारे हाथों में हथकड़ी जरूर पहनवाती,’’ नेहल के चेहरे पर परिहास की हंसी खिल आई.

‘‘तो अब सजा दे दो, पर लोहे की हथकड़ी की जगह तुम्हारे प्यार का बंधन मंजूर है.’’

बात खत्म करते इंद्रनील ने नेहल के माथे पर स्नेह चुंबन अंकित कर दिया. नेहल के गुलाबी चेहरे पर सिंदूरी आभा बिखर गई.

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प्रकाश स्तंभ: भाग 2- क्या पारिवारिक झगड़ों को सुलझा पाया वह

दोनों सहेलियां भोजन करने लगी थीं पर रचना की विचारशृंखला पहले की भांति ही चलती रही. रम्या आजकल में आने ही वाली थी. दोनों बहनों में एक क्षण को भी नहीं बनती. इस समस्या को कैसे सुलझाएं इसी ऊहापोह में डूबी थी. निमिषा ठीक ही कहती है कि मेरा घर तो पूरा अजायबघर है, इसे सचमुच छोड़ कर भाग जाने का मन होता है.

रचना घर पहुंची तो रम्या आ चुकी थी. उस का पति प्रतीक टीवी देखने में व्यस्त था जबकि रम्या अपना सामान खोल रही थी.

‘मां, अच्छा हुआ आप आ गईं. अब आप ही बता दीजिए कि मैं अपना सामान कहां लगाऊं? मैं दीदी से कह रही थी कि वह ऊपर का कमरा हमारे लिए खाली कर दे. वह अकेली जान नीचे के गेस्टरूम में सरलता से रह लेंगी. हम दोनों ऊपर का कमरा ले लेंगे,’ रम्या रचना को देखते ही बदहवास हो उठी थी.

‘मैं ने पहले ही कहा था कि मैं अपना कमरा किसी को नहीं देने वाली. अतिथियों के लिए अतिथिकक्ष होता है, उन्हें वहीं रहना चाहिए,’ नंदिनी ने रचना के कुछ बोलने से पहले ही अपना निर्णय सुना दिया था.

‘रहने दे रम्या. बड़ी बहन है तेरी. क्यों छेड़ती है बेचारी को. तुम दोनों अपना सामान अतिथिकक्ष में जमा लो. थोड़ा छोटा अवश्य है पर बहुत हवादार और आरामदायक कमरा है,’ रचना ने समझौता करवा दिया था.

‘ठीक है. हमें कौन सा यहां जीवन बिताना है? कहीं भी रह लेंगे…प्रतीक का काम जमते ही हम यहां से चले जाएंगे. हमें तो बड़ा सा, खुला घर चाहिए,’ रम्या ने मुंह बनाया था.

‘छोड़ो, यह सब. इतनी छोटी सी बात के लिए क्यों अपना मन खराब करती हो. कुछ और बताओ. क्या हालचाल हैं. इतने दिनों बाद घर आई हो, इतने दिनों तक क्या किया, कहां घूमेफिरे?’

‘मां, मैं अतिथिकक्ष में अपना सामान जमा लेती हूं. बातें बाद में करेंगे. पहले कुछ खाने को दो. सामान बांधने और यहां आने के चक्कर में नाश्ता तक नहीं किया. बस, एक कप चाय पी थी.’

रम्या की बात सुन कर रचना पिघल उठी थी. बेचारी ने सुबह से कुछ नहीं खाया है.

‘नंदिनी, तुम ने छोटी बहन को खाने तक को नहीं पूछा?’ रचना आश्चर्य- चकित स्वर में पूछ बैठी थी.

‘जरूर कुछ खिलाती माताश्री, पर आप की लाड़ली ने मुझ से कहा तक नहीं कि वह भूखी है. यह शुभ समाचार तो इस ने आप के लिए ही रख छोड़ा था.’

‘चल, मैं अभी कुछ बना देती हूं,’ रचना द्रवित हो उठी थी, ‘बेचारी सुबह से भूखी है.’

रचना ने आननफानन में गरमागरम पूडि़यां और रम्या की पसंद की सब्जी बना दी थी. पिता नीरज गुलाबजामुन ले आए थे. बहुत दिनों बाद पूरा परिवार एकसाथ भोजन करने बैठा था.

‘अच्छा हुआ रम्या, तुम आ गईं, न जाने कितने दिनों बाद आज हम ढंग का भोजन कर रहे हैं…नहीं तो सूखी दालरोटी खातेखाते मन ऊब गया था,’ नंदिनी अपनी प्लेट में पूड़ी डालते हुए बोली थी.

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‘ऐसी बातें तुम्हें शोभा नहीं देतीं नंदिनी, तुम क्या अब भी छोटी बच्ची हो? जो खाने का मन हो स्वयं बना कर खा सकती हो,’ नंदिनी की बात सुन कर रचना तीखे स्वर में बोली थी.

‘हां, पता है कि मैं बच्ची नहीं हूं पर मां, हर क्षण यह बताने की आवश्यकता नहीं है. आगे से मैं अपने लिए खुद ही भोजन बना लूंगी,’ नंदिनी एकदम से भड़क उठी और अपनी प्लेट छोड़ कर वह रोती हुई ऊपर कमरे में चली गई थी.

‘तुम भी चुप नहीं रह सकतीं, रचना. रुला दिया न बेचारी को,’ नीरज बाबू रूखे स्वर में बोले और बेटी को समझाने उस के कमरे में चले गए थे.

नीरज बाबू के समझानेबुझाने से उस समय युद्धविराम अवश्य हो गया था पर दोनों बहनों के बीच शीतयुद्ध की स्थिति बनी रहती थी. रचना को हर घड़ी यही चिंता सताती थी कि कहीं स्थिति विस्फोटक न हो जाए.

‘मां, प्रतीक बहुत बुद्धिमान और परिश्रमी है,’ रम्या बोली, ‘परिवार का थोड़ा सहारा मिल जाता तो पता नहीं कहां से कहां पहुंच जाता. पर उस के पिता और भाई तो उस की शक्ल देखने को तैयार नहीं हैं.’

‘लेकिन बेटी, उसे अपनी नौकरी को कुछ अधिक गंभीरता से लेना चाहिए था कि नहीं?’ रचना ने अपनी बात स्पष्ट की थी.

‘मां, सच पूछो तो अपने पिता के भरोसे ही प्रतीक नौकरी छोड़ कर आया था पर पिता की बेरुखी  से बिलकुल टूट गया है. वैसे भी उस का दोष क्या है मां. यही न कि उस ने अपनी पसंद से विवाह किया है,’ रम्या रो पड़ी थी.

रचना प्रस्तर मूर्ति बनी बैठी रही थीं. काश, वह भी ऐसा कर पातीं, पर नहीं, चाहे कुछ हो जाए वह अपने खून का तिरस्कार करने की सामर्थ्य नहीं रखती थीं.

 

‘कितनी पूंजी चाहिए प्रतीक को?’ ‘कम से कम

15-20 लाख रुपए, मां. एक बार उन का काम चल निकला तो वह आप की पाईपाई चुका देगा.’

‘रम्या, मैं प्रतीक से बात करना चाहती हूं. उस के मुंह में तो लगता है जबान ही नहीं है.’

रम्या लपक कर प्रतीक को बुला लाई थी.

‘देखो, बेटे,’ रचना ने बात स्पष्ट की, ‘मेरी बात को अन्यथा मत लेना. मैं तो तुम्हें केवल अपनी वस्तुस्थिति से अवगत कराना चाहती हूं. हम ठहरे मध्यवर्गीय लोग. हमारा काम अवश्य चलता रहता है पर व्यापार के लिए बड़ी रकम जुटा पाना हमारे लिए संभव नहीं है. लेदे कर यह एक घर ही है. कम से कम सिर पर छत होने का संतोष तो है, जहां हर परिस्थिति में शरण ली जा सकती है.

‘मैं तो तुम्हें यही सलाह दूंगी कि एक अच्छी सी नौकरी ढूंढ़ लो तुम दोनों. थोड़ा अनुभव और पूंजी दोनों पास हों तो व्यापार करने में सरलता रहती है. तुम समझ रहे हो न?’ प्रतीक के चेहरे पर बेचैनी के भाव देख कर वह पूछ बैठी थीं.

प्रतीक कुछ क्षणों तक शून्य में ताकता चुप बैठा रह गया था. रचना मन ही मन बदहवास हो उठी थीं. प्रतीक सामान्य तो है? ऐसा क्या है इस में जिस पर रम्या रीझ गई थी. रचना ने इसे भी नियति का खेल जान कर खुद को समझाना चाहा था.

आखिर मौन रम्या ने ही तोड़ा था, ‘मां, हम आप से सलाह नहीं सहायता की उम्मीद ले कर आए थे.’

‘बेटी, मैं अपनी सामर्थ्य के अनुसार हर सहायता करने को तैयार हूं.’

उस दिन से रम्या ने उन से बोलचाल भी अत्यंत सीमित कर दी थी. कभी सामने पड़ जाती तो रचना ही बोल पड़ती अन्यथा रम्या और प्रतीक अपने ही कक्ष में सिमटे रहते.

ऐसे में सीशैल्स जाने का प्रस्ताव उन्हें ताजी हवा के झोंके की भांति लगा था. कुछ विशेष भत्तों के साथ उन्हें पदोन्नति दे कर भेजा जा रहा था. साथ ही नई शाखा स्थापित करने का अपना रोमांच भी था.

इसी ऊहापोह में देर तक सोचती हुई कब वह निद्रा की गोद में समा गईं उन्हें स्वयं ही पता नहीं चला था. नीरज ने जब बत्ती जलाई तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठी थीं.

‘‘सो रही थीं क्या? सोना ही है तो आराम से पलंग पर सो जाओ, मैं बत्ती बुझा देता हूं,’’ नीरज बाबू धीरगंभीर स्वर में बोले थे.

‘‘थकान के कारण आंख लग गई थी. अभी सोने का मन नहीं है,’’ वह उठीं, घड़ी पर नजर डाली. अभी 9 ही बजे थे पर ऐसी शांति थी मानो आधी रात हो. चूंकि टीवी बंद था इसलिए उन्हें अजीब सा लगा.

‘‘क्या बात है नीरज, नाराज हो क्या? कुछ तो बोलो?’’

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‘‘बोलने को क्या बचा है, रचना? तुम ने फैसला लिया है तो सोचसमझ कर ही लिया होगा. मुझे तो सदा यही अपराधबोध सताता है कि मैं ने तुम्हारे साथ अन्याय किया है. पर सच मानो, मैं ने अपनी ओर से पूरा प्रयास किया है,’’ नीरज बाबू का स्वर बेहद उदास था.

‘‘मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. तुम ने तो हर कदम पर मुझे मजबूत सहारा प्रदान किया है. केवल तुम्हारे ही बलबूते पर तो मैं बेधड़क कोई भी निर्णय ले लेती हूं. तुम्हारा मेरे जीवन में जो महत्त्व है उसे पैसे से नहीं आंका जा सकता,’’ रचना का स्वर अनजाने ही भीग गया था.

नीरज बाबू हंस दिए थे. एक उदास खोखली सी हंसी जो रचना के दिल को छलनी करती चली गई थी.

‘‘इस तरह मन क्यों छोटा करते हो,’’ रचनाजी बोलीं, ‘‘मैं अकेली नहीं जा रही, हम दोनों साथ जा रहे हैं. नंदिनी और रम्या स्वयं को संभालने योग्य हो गई हैं.’’

‘‘लेकिन रचना, नंदिनी का हाल तो तुम जानती ही हो. हम दोनों के सहारे के बिना कैसे जीएगी वह.’’

‘‘मां हूं मैं, फिर भी मन को समझा लिया है मैं ने. शायद जो हमारी मौजूदगी से संभव नहीं हुआ वह हमारी गैरमौजूदगी में हो जाए. जब समस्या सिर पर आ खड़ी होती है तो हल ढूंढ़ने के अलावा और कौन सा रास्ता शेष रह जाता है?’’ रचना ने समझाना चाहा था.

‘‘ठीक है. मुझे सोचने के लिए कुछ समय दो,’’ और कुछ दिनों की ऊहापोह के बाद वह मान गए थे. रचना ने अनेक तर्क दे कर उन्हें साथ जाने के लिए मना लिया था.

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उसका अंदाज: भाग 2- क्या थी नेहल की कहानी

‘‘क्या हुआ, आज कैंटीन में नहीं आई? कहीं तेरे उस नए आशिक का फोन तो नहीं आ गया था?’’ पूजा के चेहरे पर हंसी थी.

‘‘आया था, रात के 2 बजे, चांद का दीदार कराने, पर सच वह दृश्य बड़ा सुंदर था. नहीं देख पाती तो इतनी सुंदर चांदनी में नहाई प्रकृति को मिस करती. शायद, जनाब को शायरी करने का शौक है. ऐसा लगता है उसे मेरे बारे में बहुतकुछ मालूम है, यहां तक कि मैं कविता लिखती हूं.’’

‘‘तब तो वह तेरा सच्चा आशिक है, नेहल.’’

‘‘सच्चे आशिक को अपना नामपता छिपाने की जरूरत नहीं होती, पूजा. वैसे एक बात है, वह बातें बड़े अंदाज से करता है. पता नहीं कहां से छिप कर मेरे बारे में सारी बातें पता कर लेता है. यहां तक कि मेरे पहने हुए कपड़ों के रंग भी याद रखता है.’’

‘‘सच कह, नेहल, तू उस की बातें एंजौय करती है या नहीं?’’

‘‘जब उस का फोन आता है तब तो गुस्सा आता है, पर बाद में उस की बातों पर हंसी आती है. वैसे, आज तक कभी उस ने कोई अश्लील बात नहीं कही है, जैसे कि अकसर सड़कछाप लड़के कहते हैं.’’

‘‘मुझे तो वह कोई सच्चा प्रेमी लगता है, नेहल. संभल के रहना.’’

‘‘अरे, क्या मुझे पागल समझती है? ये बातें छोड़, आज मां का फोन आया था, मेरी शादी के लिए मुझ से मिलने कोई आने वाला है. समझ में नहीं आ रहा है क्या करूं? पता नहीं मांबाप को बेटियों की शादी की इतनी जल्दी क्यों होती है.’’

‘‘वाह, यह तो गुड न्यूज है. कोई है वह जो हमारी नेहल को ले जाएगा. काश, मेरी शादी यहां आने के पहले ही तय न हो गई होती,’’ पूजा ने आह भरी.

‘‘क्यों? क्या नितिन से कोई शिकायत है या किसी और पर दिल आ गया है?’’

नेहल ने पूजा को छेड़ा.

‘‘अरे नहीं, नितिन तो बहुत अच्छा है. बस, कभी लगता है, मैं प्रेमविवाह करती. शादी के पहले के रोमांस का मजा ही और होता है.’’

‘‘प्रेम शादी के बाद कर लेना. हमारे देश में कितनी लड़कियों को प्रेमविवाह की अनुमति मिलती है. किसी न किसी बात को ले कर, अकसर प्रेम का धागा तोड़ ही दिया जाता है. मेरी एक बात मानेगी पूजा, जब वह मुझ से मिलने आएगा तब तू मेरे साथ रहेगी?’’

‘‘न बाबा, मैं क्यों कबाब में हड्डी बनूं, और हर डिबेट में जीतने वाली नेहल किसी से डरे, असंभव. चल, आज इस खुशी में क्लास छोड़ ही दें, चाट चलेगी?’’

‘‘ठीक है, आज इंद्रनील के नाम पर तेरी ही सही.’’

शाम को लौटी नेहल कमरे में पहुंची ही थी कि मोबाइल बजा, ‘‘क्लास बंक करना अच्छी बात नहीं है, खासकर आप जैसी लड़की से तो कतई ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती. क्या कोई खास खुशी सैलिबे्रट की जा रही थी?’’

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‘‘टु हैल विद यू. मैं क्या करती हूं, कहां जाती हूं तुम से मतलब? क्यों मुझे परेशान कर रहे हो, सामने क्यों नहीं आते?’’ नेहल नाराज हो उठी.

‘‘सौरी, आप को परेशान करना मेरा मकसद नहीं था.’’

इतना कहते ही फोन कट गया.

नेहल ने अपने मोबाइल पर आए नंबरों से उस फोन करने वाले का पता करना चाहा था, पर फोन हर बार किसी नए पीसीओ से किया गया था. उस ने ठीक कहा था, उसे पकड़ पाना कठिन था. कभी नेहल को फिल्मों में देखे गए कुछ पात्र याद आते जो पागल की तरह किसी लड़की के पीछे पड़, उस लड़की को परेशान कर देते थे. नेहल कभी सोचती, कहीं वह भी वैसा ही इंसान तो नहीं, पर उस की किसी भी बात से पागलपन नहीं झलकता था बल्कि बातों से वह पढ़ालिखा व्यक्ति लगता था.

‘‘आप से कोई मिलने आए हैं, विजिटर रूम में बैठे हैं,’’ होस्टल की केयरटेकर ने आ कर नेहल को सूचित किया.

‘‘ठीक है, मैं आती हूं,’’ कह कर नेहल ने सरसरी नजर अपने कपड़ों पर डाली. अब चेंज करने का सवाल नहीं था, निश्चय ही वह इंद्रनील ही होगा. बालों पर हाथ फेर

वह विजिटर रूम की ओर चल दी.

विजिटर रूम में एक सौम्य युवक उस की प्रतीक्षा कर रहा था. नेहल के प्रवेश करते ही वह खड़ा हो गया. एक नजर में ही नेहल समझ गई, उस के व्यक्तित्व से कोई भी प्रभावित हो जाएगा. स्लेटी सूट के साथ सफेद शर्ट में उस का व्यक्तित्व और भी निखर आया था. चेहरे की मुसकान किसी को भी मोहित कर सकती थी.

‘‘प्लीज, बैठिए. मैं नेहल और आप शायद इंद्रनीलजी हैं,’’ मीठी आवाज में नेहल बोली.

‘‘ओह, तो आप मेरे बिग ब्रदर का इंतजार कर रही हैं. सौरी, उन्हें किसी जरूरी काम की वजह से शहर के बाहर जाना पड़ गया. आप उन्हें एक्स्पैक्ट करेंगी इसलिए उन्होंने आप को अप्रूव करने की जिम्मेदारी मुझे दे दी है. हां, अपना परिचय देना तो भूल ही गया, मैं नीलेश, इंद्रनीलजी का छोटा भाई.’’

‘‘कमाल है, आप के भाई ने अपनी जगह आप को भेजा है. कैसे हैं आप के सो कौल्ड बिग ब्रदर?’’ नेहल के शब्दों में व्यंग्य स्पष्ट था.

‘‘अरे, उन के गुणों के लिए तो शब्द कम पड़ जाएंगे. वे बेहद गंभीर, तेजस्वी, मेधावी, स्नेही, योग्य अधिकारी और न जाने क्याक्या हैं. मुझ पर उन्हें अगाध विश्वास है. उन की तुलना में मैं तो उन के पांवों की धूल भी नहीं हूं.’’

‘‘भले ही वे आप के शब्दों में गुणों की खान हों, पर जिस के साथ जीवनभर का साथ निभाना है उस से मिलना भी जरूरी नहीं समझते. यह कैसा विश्वास है? शायद विवाह में उन की ज्यादा रुचि नहीं है,’’ नेहल ने स्पष्ट शब्दों में अपनी राय दे डाली.

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‘‘वे जानते हैं कि आप की हर तरह की परीक्षा लेने के बाद ही मैं आप को अप्रूव करूंगा. वैसे मैं दावे के साथ कह सकता हूं, आप उन के लिए बहुत उपयुक्त जीवनसाथी हैं. बिग ब्रदर को भी यही बात समझाई है.’’

‘‘रुकिए, क्या कहा, आप मेरी परीक्षा लेंगे? आप मेरी परीक्षा लेने वाले होते कौन हैं?’’ नेहल का चेहरा तमतमा आया.

‘‘परीक्षा तो हो चुकी, और आप उस में पूरे अंक पा चुकी हैं,’’ फिर वही हंसी.

उस हंसी ने नेहल को किसी और की हंसी और बात करने के तरीके की याद दिला दी. निश्चय ही यह वही था जो फोन कर के उसे परेशान किया करता था. नेहल सोच में पड़ गई, उस जैसी बुद्धिमान लड़की पहले ही उसे क्यों नहीं पहचान गई.

अब शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी.

‘‘तुम…तुम, वही हो न जो मुझे फोन करते थे? क्या यही सब करने को तुम्हारे धीरगंभीर भाई ने इजाजत दी थी? साफसाफ सुन लो, मुझे तुम्हारे भाई या तुम्हारे साथ कोई भी रिश्ता मंजूर नहीं है,’’ नेहल का चेहरा लाल हो उठा.

‘‘भाई न सही, मेरे बारे में क्या राय है? आप की कितनी डांट सुनी है. सच कहता हूं, जिंदगीभर आप का गुलाम बन कर रहूंगा. अच्छीभली नौकरी है, आप को जिंदगी की हर खुशी देने का वादा रहेगा.’’

‘‘अपने आदरणीय बिग ब्रदर को क्या जवाब दोगे? तुम पर उन्हें अगाध विश्वास है. उन का विश्वास तोड़ना क्या ठीक होगा. नहीं मिस्टर नीलेश, आप अपने भाई का दिल नहीं तोड़ सकते. सच कहूं तो मुझे उन से हमदर्दी हो गई है. जो इंसान अपने भाई पर इतना विश्वास रखता है, वह अपनी पत्नी के तो सात खून भी माफ कर देगा. मुझे इंद्रनीलजी के साथ अपना रिश्ता मंजूर है.’’

‘‘शुक्रिया, आप ने मेरी आंखें खोल दीं. मैं सचमुच अपराध करने जा रहा था. अब मेरा मकसद पूरा हो गया. बिग ब्रदर तक आप की स्वीकृति पहुंच जाएगी,’’ फिर उस की मीठी हंसी देखसुन नेहल जैसे चिढ़ गई.

‘‘थैंक्स, मैं इंद्रनीलजी की प्रतीक्षा करूंगी और उन से कहिएगा मैं उन से मिलने को उत्सुक हूं. नमस्ते,’’ हाथ जोड़ नेहल ने अभिवादन किया.

आगे पढ़ें- किताब खोलने पर नेहल का मन…

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