Rakhi : शरारती झगड़े और भावुक पलों को शेयर करते सोनी सब टीवी के कलाकार

Rakhi : हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि के साथ रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही सावन का महीना ख़तम हो जाता है और भाद्रपद का महीना शुरू हो जाता है। इस साल रक्षाबंधन का फेस्टिवल 9 अगस्त, शनिवार को मनाया जा रहा है।
यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर रोली टीका और चावल लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती है, जिसे राखी कहते है, बहने ये राखी बांधकर ही अपने भाई के उज्जवल भविष्य की कामना भी करती है। इसके साथ ही भाई भी बहनों को गिफ्ट देने के साथ उनकी प्रोटेक्शन और सेफ्टी का प्रॉमिस करते हैं।

यादों को सजोते सोनी टीवी के कलाकार

यह दिलों को जोड़ने, यादों को संजोने और भाई-बहन के रिश्ते की अनकही मजबूती को मनाने का अवसर है। जब देश इस पारंपरिक पर्व को एकजुट होकर मना रहा है, तब सोनी सब के पॉपुलर चेहरे शब्बीर आह्लूवालिया, आशी सिंह, आन तिवारी और गरिमा परिहार अपने बचपन के रक्षाबंधन की रस्मों, शरारती झगड़ों और भावुक पलों को याद कर रहे हैं, जिन्होंने इस त्योहार को उनके लिए खास बना दिया। उनकी बातों में इस पर्व की मिठास झलकती है, जो स्क्रीन पर उनके नेचुरल इमोशनल कनेक्शन को और ऑथेंटिक बनाती है।

गरिमा परिहार

एक्ट्रेस गरिमा का कहना है, “मुझमे और मेरे भाई में 10 साल का अंतर है, लेकिन हमारा रिलेशनशिप परिपक्वता और शरारत (maturity and mischief)का परफेक्ट बैलेंस है। हर रक्षाबंधन मुझे इसी स्पेशल बांड की याद दिलाता है। हम बड़े हो गए हैं, लेकिन आज भी जो राखी मैं उनकी कलाई पर बांधती हूं, उसमें वही चाइल्डहुड वाला लव, सिक्योरिटी और मेमोरीज बसती हैं। वो मेरे लिए सेकंड फादर जैसे हैं. हमेशा प्रोटेक्टिव और सपोर्ट बनने वाले। उन्हें बस मुझे देखकर ही पता चल जाता है कि मैं ठीक हूं या नहीं। अब जब वो खुद पिता बन गए हैं, तो उनके छोटे बेटे को हमारे रक्षाबंधन के रीति-रिवाजों में शामिल होते देखना बहुत सुखद लगता है। हम आज भी एक-दूसरे की खिंचाई करते हैं, लेकिन दिन के अंत में हम सुनिश्चित करते हैं कि घर मुस्कानों से भरा रहे। रक्षाबंधन केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि उनके उस सुकून भरे साथ का जश्न है, जो मेरी जिंदगी में हमेशा रहा है।”

आशी सिंह

एक्ट्रेस आशी सिंह का कहना है, “रक्षाबंधन हमेशा से मेरे लिए बहुत खास रहा है, सिर्फ मेरे भाई की वजह से ही नहीं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि मेरी तीन शानदार बहनें भी हैं! हमारे घर में इस दिन का माहौल पूरी तरह जश्न में बदल जाता है ढेर सारी खिंचाई, सजना-संवरना और चार भाई-बहनों के होने की वजह से होने वाला हंगामा! मेरा भाई इकलौता लड़का है, इसलिए उसे बराबर से दुलार और छेड़छाड़ दोनों मिलती है! इस साल मैंने पहले ही कह दिया है कि मुझे उससे खास गिफ्ट चाहिए कोई बहाना नहीं चलेगा! हम बचपन से चॉकलेट से लेकर राज़ तक सबकुछ शेयर करते आए हैं, और रक्षाबंधन वह दिन है जब प्यार और खिंचाई दोनों कई गुना बढ़ जाते हैं। चाहे जिंदगी कितनी भी बिजी हो जाए, यह दिन हम सबको एक साथ लाता है और यही मुझे सबसे ज्यादा प्रिय है।”

शब्बीर अहलुवालिया

एक्टर शब्बीर का कहना है, “रक्षाबंधन हमेशा मेरे दिल के करीब रहा है क्योंकि यह केवल एक रस्म नहीं है, बल्कि हमेशा एक-दूसरे के लिए मौजूद रहने का वादा है। मेरी बहन शेफाली और मैं भले ही अब अलग-अलग शहरों में रहते हों, लेकिन हमारा रिश्ता उतना ही मजबूत है, शायद पहले से भी ज्यादा। हम बचपन से एक-दूसरे के सबसे बड़े सपोर्टर रहे हैं और दूरी ने इसे बदला नहीं है। इस साल मैं उसे एक खास गिफ्ट से सरप्राइज करने की योजना बना रहा हूं, जो उसके चेहरे पर मुस्कान लाए क्योंकि वह इसकी हकदार है। भले ही हम रक्षाबंधन पर एक साथ न हों, लेकिन हमारे बीच का प्यार और जुड़ाव राखी से कहीं ज्यादा गहरा है।”

आन तिवारी

एक्टर आन तिवारी का कहना है, “साची दीदी और मेरा रिश्ता प्यार, हंसी आन तिवारी और ढेर सारे राज़ों से भरा है! मैं खुद को बहुत लकी मानता हूं कि वह मेरी जिंदगी में हैं। वह मेरे लिए दूसरी मां जैसी हैं हमेशा मार्गदर्शन करने वाली, सहारा देने वाली और सही रास्ता दिखाने वाली। और मैं? मैं उनका सबसे बड़ा चीयरलीडर और रक्षक हूं उनके सामने कोई कुछ कह नहीं सकता! जब वह उदास होती हैं, तो मैं उन्हें सबसे बड़ा हग देता हूं और उन्हें हंसाने के लिए कुछ भी करता हूं। मेरे लिए यही रक्षाबंधन है उस अटूट, बिना शर्त वाले प्यार का जश्न।”

इन टीवी कलाकारों की तरह हर भाई-बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन सभी के लिए खास होता है। ये फेस्टिवल हर साल ये एहसास दिलाने आता है कि एक रिश्ता ऐसा भी है जिसमें कोई छल कपट नहीं होता है। सिर्फ चाइल्डहुड वाला लव, सिक्योरिटी,प्रोटेक्शन और मेमोरीज बसती है! Rakhi

Rakhi : बॉलीवुड स्टार्स और उनके राखी भाई और बहन

Rakhi :  रिश्ता कोई भी हो उसमें मिलावट नहीं होनी चाहिए, रिश्ता भाई बहन का हो या दोस्ती, और प्यार का लेकिन उसमें अगर स्वार्थ छल कपट, पैसा और प्रापर्टी का लालच आ गया तो वह रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं टिकता , फिर चाहे वह रिश्ता खून का रिश्ता ही क्यों ना हो, आज के आधुनिक युग में जहां हर कोई अपने-अपने जिंदगी में व्यस्त है , पैसा कमाने और अच्छी जिंदगी जीने के लिए परिवार से दूर है. ऐसे में यह सारे रिश्ते खून के रिश्ते होने के बावजूद लॉन्ग डिस्टेंस के चलते उस वक्त काम नहीं आते जब हमें उनकी सख्त जरूरत होती है.

उस दौरान हमारे साथ कुछ ऐसे रिश्ते जुड़े होते हैं जो खून के रिश्ते तो नहीं होते, लेकिन बुरे वक्त में साथ देने वाले जरूर होते हैं. क्योंकि इनसे हमारा दिल का और सच्चा रिश्ता होता है.
जैसे कि रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर हर किसी की तमन्ना होती है कि वह इस त्यौहार को खुशी खुशी और पूरे धूमधाम से मनाए और अपने भाई बहन के साथ राखी बांधकर इस त्यौहार को एंजॉय करें. लेकिन वक्त और हालात के चलते ऐसा संभव नहीं हो पाता , क्योंकि हम अपने काम धंधे और करियर को संवारने के चक्कर में अपने परिवार से कोसों दूर होते हैं, ऐसे मौके पर हमारे राखी भाई और बहन जो दिल से जुड़े होते हैं और हमेशा हमारे साथ और हमारे काम आते हैं.
ऐसे राखी भाई बहन के रिश्ते में ना तो कोई दिखावा होता है , और ना हीं कोई फॉर्मेलिटी होती है, इस रिश्ते के पीछे ना कोई स्वार्थ होता है, ना ही कोई लालच होता है लेकिन इस रिश्ते में विश्वास , सम्मान, प्यार, अपनापन, जरूर होता है. जो आपको मुसीबत में देखकर बिना कुछ कहे सुने आपकी मदद के लिए आ जाता है . राखी के बंधन से बंधे ये प्यारे भाई बहन आपकी चिंता करते हैं, आपसे प्यार करते हैं और इस राखी भाई बहन वाले रिश्ते को पूरे दिल से निभाते है . बॉलीवुड सेलिब्रिटीज भी इससे अछूते नहीं है. फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई हीरो हीरोइन रक्षाबंधन पर अपने राखी भाई बहन के साथ इस त्योहार को पूरे जोश के साथ मनाते हैं. सो पेश है खून के रिश्ते नहीं बल्कि दिल से जुड़े फिल्मी कलाकारों के राखी भाई बहनों पर एक नजर….

बॉलीवुड स्टार्स और उनके राखी भाई बहन….
रक्षाबंधन का त्यौहार अटूट प्यार की मिसाल होता है लेकिन इस खास दिन पर वह लोग जरूर मायूस हो जाते हैं जिनका कोई भाई बहन यह त्यौहार मनाने के लिए उनके साथ नहीं होता, फिल्म इंडस्ट्री के गलियारे में कई ऐसे एक्टर है जो राखी बहन या भाई के साथ रक्षाबंधन के त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं. ना सिर्फ साथ निभाने का वादा करते हैं, बल्कि हर मुश्किल में साथ निभाते भी है,
एक जमाने के प्रसिद्ध एक्टर और शो मैन कहलाने वाले राज कपूर साहब अभिनेत्री निम्मी को अपनी राखी बहन मानते थे . राज कपूर और निम्मी का भाई बहन का रिश्ता फिल्म बरसात के समय शुरू हुआ था . जिसमें निम्मी ने राज कपूर की बहन का किरदार निभाया था. बॉलीवुड की हॉट एंड सेक्सी हीरोइन कैटरीना कैफ अर्जुन कपूर को अपना राखी भाई मानती हैं. और डायरेक्टर कबीर के साथ भी कैटरीना का राखी भाई वाला रिश्ता है. ऐश्वर्या राय सोनू सूद को अपना राखी भाई मानती हैं, और हर साल सोनू को बिना भूले राखी बांधती है . ऐश्वर्या और सोनू सूद का राखी भाई बहन का रिश्ता, आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा अकबर की शूटिंग से शुरू हुआ था, जो आज तक बरकरार है. बॉलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान एक्टर पुलकित सम्राट की पत्नी श्वेता रोहिरा से हर साल राखी बंधवाते है , श्वेता से सलमान का राखी बहन का रिश्ता काफी पुराना है. प्राप्त सूत्रों के अनुसार सलमान ने श्वेता की पुलकित से शादी के दौरान कन्यादान भी किया था.
बॉलीवुड की सेक्सी हीरोइन बिपाशा बसु जॉन अब्राहम के मेकअप आर्टिस्ट वेंकी को राखी बांधती है, बिपाशा और वेंकी का भाई बहन का रिश्ता बहुत पक्का रिश्ता है जिसके तहत दोनों ही हर साल रक्षा बंधन एक साथ मानना नहीं भूलते. एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया जो हिंदी और साउथ फिल्मों में अपने अभिनय और डांस का झंडा फहरा रही है, वह साजिद नाडियाडवाला को अपना राखी भाई मानती है. साजिद की फिल्म हमशकल के दौरान तमन्ना भाटिया और साजिद के इस प्यार भरे रिश्ते राखी भाई बहन की शुरुवात हुई थी. आज की प्रसिद्ध अभिनेत्री आलिया भट्ट करण जौहर के बेटे यश जौहर को हर साल राखी बांधती है, क्योंकि आलिया निर्माता निर्देशक करण जौहर को अपना पिता समान मानती है, इसलिए करण जौहर के बेटे यश को अपना राखी भाई मानती है. दीपिका पादुकोण अपने बॉडीगार्ड जलाल को अपना राखी भाई मानती है . Rakhi

फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’ को मिला नैशनल अवार्ड, सोनम बाजवा ने कही ये बात

Godday Godday Chaa: सोनम बाजवा की सुपरहिट पंजाबी फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’, जिस में वे लीड रोल में नजर आई थीं, को मिला है सर्वश्रेष्ठ पंजाबी भाषा की फिल्म का नैशनल अवार्ड.

कमर्शियल फिल्मों की क्वीन और दमदार फीमेल कैरेक्टर्स की चैंपियन सोनम कहती हैं कि फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’ के लिए बैस्ट पंजाबी फिल्म का नैशनल अवार्ड मिलना बेहद खास एहसास है. फिल्म को बौक्स औफिस पर जबरदस्त प्यार मिला था और अब इसे नैशनल लेवल पर पहचान मिली है.”

कुछ हट कर करने की ख्वाहिश

सोनम की यह दूसरी पंजाबी फिल्म है जिसे नैशनल अवार्ड मिला है. उन की पहली फिल्म थी ‘पंजाब 1984’, जिसे डाइरैक्ट किया था अनुराग सिंह ने, जो फिल्म ‘केसरी’ और अपकमिंग फिल्म ‘बार्डर 2’ के भी डाइरैक्टर हैं.

सोनम कहती हैं, “मैं पंजाबी और हिंदी दोनों भाषाओं में कमर्शियल और हट कर सिनेमा करती रहूंगी. असली मजा तो तब है जब फिल्म की कहानी मनोरंजक हो, जो दिलों को छू जाएं, और नैशनल लेवल पर सराही भी जाए.

हिंदी फिल्मों में भी कामयाबी

सोनम बाजवा हिंदी फिल्मों में भी अपने अभिनय का डंका बजवा चुकी हैं। फिल्म ‘हाउसफुल 5’ से बौलीवुड में ऐंट्री करने के बाद वे फिल्म ‘बागी 4’, ‘दीवानियत‘ और ‘बौर्डर 2’ में भी नजर आने वाली हैं. Godday Godday Chaa

जब ऐक्ट्रैस Rashami Desai की मां ने औडिशन लेने वाले को जड़ दिए थे थप्पड़

Rashami Desai: ग्लैमर वर्ल्ड में अच्छे लोग कम और बुरे लोगों की तादाद ज्यादा है, जो छोटे शहरों और गांवों से आने वाले लड़केलड़कियों की मजबूरियों और भोलेपन का फायदा उठा कर उन के साथ गलत व्यवहार करते हैं. इन के साथ न सिर्फ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करते हैं, काम देने के बहाने समझौता करने को बोलते हैं.

इन्हीं सब बातों की वजह से पहले की नामचीन हीरोइनें अपने साथ अपनी मां को रखती थीं ताकि उन पर कोई आंच न आए. बौलीवुड में लड़कियां ही नहीं लड़के भी सुरक्षित नहीं हैं.

क्या हुआ था उस दिन

ऐसा ही एक हादसा टीवी ऐक्ट्रैस रश्मि देसाई ने अपने एक इंटरव्यू में साझा किया. रश्मि देसाई के अनुसार, जब वे 16 साल की थीं तो टीवी सीरियलों और फिल्मों में काम के लिए औडिशंस दिया करती थीं.

रश्मि ने मीडिया से बात करते हुए बताया,”मुझे एक औडिशन के लिए बुलाया गया था. जब मैं वहां गई तो औडिशन लेने वाले आदमी ने मुझे बेहोश करने की कोशिश की, लेकिन असहज महसूस होने पर किसी तरह मैं वहां से बाहर निकलने में सफल हो गई और उसी दिन घर जा कर मैं ने अपनी मां को सारी बात बता दी.”

हार नहीं मानी

रश्मि कहती हैं कि इस घटना के बाद भी मैं ने हार नहीं मानी और दूसरे ही दिन मैं अपनी मां के साथ उसी जगह औडिशन देने के लिए पहुंच गई. वह आदमी मुझे वहां फिर से देख कर चकित रह गया और मेरे साथ मेरी मां को देख कर घबरा उठा.

उन्होंने बताया कि उस को देखने के बाद मेरी मां का गुस्सा कंट्रोल में नहीं रहा और उस औडिशन लेने वाले व्यक्ति को मां ने जोरदार थप्पड़ जड़ दिए. इस घटना के बाद हम वहां से चले आए.

कड़वा सच

रश्मि देसाई के अनुसार, कास्टिंग काउच ग्लैमर वर्ल्ड का कड़वा सच है लेकिन संयोग रहा कि मुझे अच्छे लोगों के साथ काम करने का मौका मिला और मेरे अनुभव भी अच्छे रहे.

कहने का मतलब यह कि ग्लैमर वर्ल्ड हो या कोई और फील्ड, हर जगह अच्छे और बुरे दोनों लोग होते हैं, ऐसे में चौकन्ना रहने की जरूरत है, ताकि कोई आप का फायदा न उठा सके. Rashami Desai

Bubble Bath Tips: बच्चों को बबल बाथ देने से पहले यह जरूर जानें

Bubble Bath Tips: छोटे बच्चों को नहाने के लिए तैयार करना कई बार माताओं के लिए चुनौती बन जाती है. ऐसे में बबल बाथ एक आसान उपाय लगता है क्योंकि रंगबिरंगे झाग बच्चों को आकर्षित करते हैं. लेकिन यह उपाय स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक साबित हो सकता है.

क्या है बबल बाथ

बबल बाथ में पानी को झागदार, सुगंधित व रंगीन बना कर बच्चों के लिए नहाने को मजेदार बनाया जाता है. लेकिन इन में मौजूद कैमिकल्स बच्चों की कोमल त्वचा और स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते हैं.

संभावित नुकसान

संवेदनशील त्वचा : कैमिकल और कृत्रिम खुशबू से जलन, खुजली या लाल चकत्ते हो सकते हैं.

आंखों का संक्रमण :  झागदार पानी आंखों में जाने पर जलन व लालिमा हो सकती हैं.

त्वचा का असंतुलित pH : बबल बाथ का pH त्वचा के प्राकृतिक स्तर से अलग होता है, जिस से त्वचा रूखी व खुजलीदार हो जाती है.

यूटीआई (UTI) का खतरा : खासतौर पर बच्चियों में, कैमिकल युक्त पानी प्राइवेट पार्ट्स में जलन व संक्रमण का कारण बन सकता है.

सुरक्षित विकल्प

  • गुनगुने पानी में गुलाब की पंखुड़ियां या दूध डालें.
  • नारियल तेल या एलोवेरा युक्त पीएच बैलेंस्ड साबुन का प्रयोग करें.

ध्यान रखने योग्य बातें

  • 5 साल से छोटे बच्चों को बबल बाथ देने से बचें. अगर देना हो तो फ्रैगरेंस फ्री, पैराबेन फ्री, सल्फेट फ्री और डर्मेटोलौजिस्ट टेस्टेड प्रोडक्ट्स ही लें.
  • हमेशा पैच टेस्ट करें और बाथ के दौरान बच्चे पर नजर रखें ताकि फिसलने, संक्रमण या चोट की संभावना न हो. अंत में साफ पानी से अच्छी तरह धोना न भूलें. Bubble Bath Tips

Rakhi Special: पति की मुंहबोली बहनों को कैसे हैंडल करें

Rakhi Special: भाईबहन का रिश्ता अनमोल होता है. शादी के बाद कई बार भाईबहन एकदूसरे से दूर हो जाते हैं. लेकिन फिर भी औफिस में या पड़ोस में कोई बहन बन जाती है और पति पूरी शिद्दत से उस नए बने भाईबहन के रिश्ते को निभाता है. लेकिन दिक्कत तब आती है जब पत्नी उसे अपनी ननद नहीं बल्कि प्रतिद्वंदी समझने लगती है. वह उस से सिर्फ जलती ही नहीं बल्कि उस के और पति के रिलेशन पर शक भी करने लगती है, जिस से सभी का रिश्ता उलझ जाता है. कई बार यह शक सही भी हो सकता है लेकिन ज्यादातर बेवजह ही होता है.

यह बड़ी बात है कि आज के समय में कोई अपना कहने वाला आप की जिंदगी में है, जो एक आवाज पर आ जाएगा. उसे अपने बेकार के शक के चलते न खोएं. आज की तारीख में मांबाप पता नहीं कहां चले जाएंगे. असली भाईबहन पता नहीं कितनी दूर चले जाएंगे. पहले 5 पीढ़ियां एक ही घर में रहती थी तो पता था खाना तो मिल ही जाएगा, बीमार होने पर कोई न कोई केयर भी कर ही देगा. लेकिन अब घर अलगअलग हो गए. सामने के घर में कौन पड़ोसी है पता नहीं. इसलिए अगर कुछ सच्चे रिश्ते मिल रहे हैं तो उन्हें संभाल कर रखें न कि उन्हें ऐसे ही हाथ से जाने दें.

ऐसे करें हैंडल

उन्हें शक के घेरे में बहुत हद तक न लाएं. कई बार बेवजह ही हम पति की बनाई हुई बहनों पर शक करने लगते हैं और अच्छेभले रिश्तों को अपनी बेकार की सनक के चलते खराब कर देते हैं. जैसेकि सिर्फ इसलिए कि एक दिन वह सिनेमा हाल में फिल्म देखते मिल गए या फिर किसी कौफी पीते दिख गए तो शक की वजह मिल गई, ऐसा नहीं होना चाहिए. इस पर यह न सोच लें कि दोनों रात में सो भी साथ ही रहे हैं. कौफी हाउस में कौफी पीना कोई गुनाह नहीं है.

इसी तरह इस बात पर न लड़ें कि हम ने उन्हें खाने पर बुलाया था और तुम उसे ले कर कोने में खुसुरपुसुर कर रहे थे. अगर कर भी रहे थे तो क्या हुआ होगी कोई बात. हो सकता है कि आप को ही सरप्राइज देनी की तैयारी चल रही हो और आप ने बीच में घुस कर लड़ना शुरू कर दिया कि मैं तम्हें छोड़ कर जा रही हूं.

पति की मुंहबोली बहन को दीदी ही कहें और भाभी ही बुलवाएं

आप खुद से रिश्तों की मर्यादा बनाएं. पति की बहन को दीदी बुलाएं, भले ही वह उम्र में आप से कुछ छोटी ही क्यों न हो. इस से आपके बीच ननद भाभी का रिश्ता हो जाएगा. वह भी आप को भाभी ही बोलेगी और आप के पति को भाई समझ कर ही व्यवहार करेगी.

एकदूसरे से ईर्ष्या न रखें

सगी बहनों को तो भाभी फिर भी झेल लेती है लेकिन इस तरह की नकली बहन जो औफिस या घर के आसपास बनी हो भाभी कम ही झेल पाती है. लेकिन भाभी और ननद को जलन और तुलना करने वाली सोच से भी बचना चाहिए क्योंकि घर के हर सदस्य की अपनी पहचान और महत्ता होती है. ऐसे में भाभी को ननद से और ननद को भाभी से जलन नहीं करनी चाहिए. अगर आप जलन की भावना नहीं रखेंगी, तो रिश्ते में प्यार और सम्मान बढ़ता है.

खुद भी ननद के साथ टाइम स्पैंड करें

अपनी ननद की दोस्त बनने की कोशिश करें. ऐसा न हो कि बहन का रिश्ता सिर्फ भाई से ही हो बल्कि आप भी अपनी ननद के साथ टाइम स्पैंड करें. उस के साथ कोई बिजनैस या कोई काम करें. कोई काम साथ साथ करेंगे तो असलियत में शक का कीड़ा कम होगा. दोनों घूमने या शौपिंग के लिए जाएं. आपस में रिलेशन बेहतर रखें. भाभी को साड़ी खरीदनी है और समझ नहीं आ रहा क्या खरीदें, तो उन की मदद करें. अगर बहन से संबंध बनाए रखना है, तो उस की शौपिंग की सलह भी मानें और आप दोनों भी एकदूसरे के करीब आएं.

स्पेस का सम्मान करें

ननद और भाभी, दोनों की ही पर्सनल लाइफ होती है और जीने का तरीका भी अलग होता है. ऐसे में ननद को भाभी की जिंदगी में दखल देने से बचना चाहिए और यही बात भाभी को भी ध्यान रखनी चाहिए. ननद और भाभी को रिश्ता मजबूत बनाए रखने के लिए पर्सनल स्पेस और प्राइवेसी का सम्मान करना चाहिए.

स्पैशल दिनों का रखें खयाल

भाभी और ननद दोनों को ही एकदूसरे के जन्मदिन, शादी की सालगिरह और अन्य खास दिनों का खयाल रखना चाहिए. सिर्फ खयाल ही नहीं, कोशिश करें कि इन खास दिनों को साथ बिताएं और यादगार बनाने के लिए ऐफर्ट्स डालें. स्पैशल दिनों पर विश करने के साथसाथ गिफ्ट दे कर भी आप पति की बहनों के साथ रिश्ता बेहतर बनाए रख सकती हैं.

Rakshabandhan Special: भाईबहन इस राखी पर गिले शिकवे करें दूर

Rakshabandhan Special: रक्षाबंधन का त्योहार भाईबहनों के बीच प्यार और स्नेह का प्रतीक है. यदि किसी भाईबहन में अनबन हो गई है, तो रक्षाबंधन इसे सुलझाने का एक शानदार अवसर है. प्यार और सम्मान के साथ वे अपनी गलतफहमियों को दूर कर सकते हैं और अपने रिश्ते को फिर से मजबूत कर सकते हैं, कुछ इस तरह :

कम्युनिकेशन गैप को कहें बायबाय

कम्युनिकेशन गैप हर मसले की जड़ है. अगर आप ने भी बातचीत के सारे रास्ते बंद किए हुए हैं, तो उसे खोल दें. बात इतनी बड़ी नहीं होती जितनी बड़ी बात न करने से बन जाती है. लोग उस पर मसाला लगते हैं और 2 लोगों के बीच रिश्ता टूट जाता है. अगर कोई बात बुरी लगी है तो इस राखी आमनेसामने बैठ कर बात को सुलझा लें. शकवेशिकायते कर लें, लड़ लें. लेकिन बात करें, तभी किसी समस्या का हल निकलेगा.

एक चुप सौ को हराता है

अगर बहन जबान की थोड़ी तेज है और जल्दी गुस्सा हो जाती है तो आप ही चुप लगा जाएं. आखिर यह कहावत तो आप ने सुनी ही होगी,’एक चुप सौ को हराता है.’ अगर बहन से कोई लड़ाई चल रही है, तो अब उसे सुलझा लें और बहन की सारी बातें चुपचाप सुन कर मन से निकल दें और रिश्ता अच्छा कर लें.

इस बार माफी उपहार में दे दो न

अगर भाईबहन में झगड़ा और बोलचाल बंद है, बस फौर्मेलिटी में राखी बांध देते हैं तो इस बार उसे यहीं तक सीमित न रखें. इस बार दोनों एकदूसरे को माफ कर के नए सिरे से यह रिश्ता शुरू करें. एक बार आप ही पहल कर के देखें. हो सकता है कि बहन खुद भी लड़ाई खत्म करना चाह रही हो बस ईगो बीच में आ रही हो.

रिश्तों की अहमियत को समझें

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो जन्म से जुड़े होते हैं और उन्हें हम चाह कर भी नहीं तोड़ सकते. लेकिन कई बार आपस में मनमुटाव होना काफी आम बात है. लेकिन इस मनमुटाव को ज्यादा न बढ़ने दें और अगर रिश्ते टूटने की कगार पर पहुंच गए हैं तो इस बात को समझें कि आप की जगह कोई और नहीं ले सकता.

कई बार पत्नी की इन्सिक्योरिटी की वजह से भी रिश्ते खराब हो जाते हैं

कई बार पत्नी को ऐसा लगता है कि पति अपनी बहनों की बातों में आ कर उन्हें अनदेखा कर देते हैं और उन की बात नहीं सुनते हैं. इसलिए वह हमेशा पति को अपनी बहनों से दूर करने की कोशिश करती रहती है. ऐसा करने से सब के बीच का रिश्ता खराब होता है और दूरियां आती हैं. अगर ऐसा हुआ है तो पत्नी को समझाएं और बहन से उस का रिश्ता मजबूत करवाएं.

भाभी और ननद अपना मनमुटाव दूर करें

भाभी और ननद कई बार बहनों की तरह प्यार से रहती हैं तो कहीं दूसरे की दुश्मन बन बैठती हैं. लेकिन इस रक्षाबंधन आप अपनी ननदों के साथ तुलना करने के बजाए उन के साथ अपनापन बढ़ाने की कोशिश करें. जब आप ऐसा करना शुरू करेंगी तो खुद से आप का रिश्ता अपनी ननदों के साथ अच्छा होगा और आप को भाईबहन के बीच के प्यार से जलन नहीं होगी.

ननदों के साथ ग्रुपिंग न करें

हो सकता है कि आप की सारी ननदों में कुछ के साथ आप के रिश्ते बहुत अच्छे हों और कुछ के साथ खराब हों. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि उन कुछ के साथ बाकियों के खिलाफ आप ग्रुपिंग करने लगें और आप बाकी ननदों को अलगथलग महसूस कराने लगें.

इस को ऐसे समझिए कि आप अकेली भाभी हैं तो सारी ननदें आप से बना कर रखना चाहेंगी. लेकिन आप कुछ के साथ ही रिश्ते बनाएंगी तो यह बात बाकी ननदों को गुस्सा तो दिलाएगा ही, उन्हें दुखी भी होगा.

किसी को दुख पहुंचा कर आप को अच्छा तो नहीं लगेगा न. इसलिए अकेली भाभी हैं तो ग्रुपिंग से बचें. सब को साथ ले कर चलने की कोशिश करें फिर चाहे सामने से आप को ऐसा व्यवहार मिले या नहीं.

इसलिए ध्यान कर के सब से बराबरी का व्यवहार करने की कोशिश करें. भाभी और ननद के रिश्ते में प्यार लाने के लिए छोटीछोटी परेशानी शेयर करें और उन्हें सुलझाने की कोशिश भी करें. इसी तरह रिश्ता मजबूत होता है. Rakshabandhan Special

Hindi Sad Story: तेरा जाना- आखिर क्यों संजना ने लिया ऐसा फैसला?

Hindi Sad Story: दोमंजिले मकान के ऊपरी माले में अपनी पैरालाइज्ड मां के साथ अकेला बैठा अनिल खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था. मां सो रही थी. कमरा बिखरा पड़ा था. उसे अपनी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी. सुबह के 11 बज चुके थे. पेट में अन्न का एक भी दाना नहीं गया था. ऐसे में उठ कर नाश्ता बनाना आसान नहीं था. वैसे पिछले कई दिनों से नाश्ते के नाम पर वह ब्रेड बटर और दूध ले रहा था.

किसी तरह फ्रेश हो कर वह किचन में घुसा. दूध और ब्रेड खत्म हो चुके थे. घर में कोई ऐसा था नहीं जिसे भेज कर दूध मंगाया जा सके. खुद ही घिसटता हुआ किराने की शॉप तक पहुंचा. दूध, मैगी और ब्रेड के पैकेट खरीद कर घर आ गया.

अपनी पत्नी संजना के जाने के बाद वह यही सब खा कर जिंदगी बसर कर रहा था. घर आ कर जल्दी से उस ने दूध उबालने को रखा और ब्रेड सेकने लगा.

तभी मां ने आवाज लगाई,” बेटा जल्दी आ. मुझे टॉयलेट लगी है.”

अनिल ने ब्रैड वाली गैस बंद की और दूध वाली गैस थोड़ी हल्की कर के मां के कमरे की तरफ भागा. तब तक मां सब कुछ बिस्तर पर ही कर चुकी थीं. उन से कुछ भी रोका नहीं जाता. वह मां पर चीख पड़ा,” क्या मां, मैं 2 सेकंड में दौड़ता हुआ आ गया पर तुम ने बिस्तर खराब कर दिया. अब यह सब बैठ कर मुझे ही धोना पड़ेगा. कामवाली भी तो नहीं आ रही न.”

मां सकपका गईं. दुखी नजरों से उसे देखती हुई बोलीं,” माफ कर देना बेटा. पता नहीं कैसी हालत हो गई है मेरी. कितनी तकलीफ देती हूं तुझे. मैं मर क्यों नहीं जाती” कहते हुए वह रोने लगी थीं.

“ऐसा मत कह मां.”अनिल ने मां का हाथ पकड़ लिया.” पिताजी पहले ही हमें छोड़ कर जा चुके. भाई दूसरे शहर चला गया. संजना किसी और के साथ भाग गई. अब मेरा है ही कौन तेरे सिवा. तू भी चली जाएगी तो पूरी तरह अकेला हो जाऊंगा.”

अनिल की भी आंखें भर आई थीं. उसे संजना की याद तड़पाने लगी थी. संजना थी तो सब कुछ कितनी सहजता से संभाले रखती थी. मां की तबियत तब भी खराब थी मगर संजना इस तरह मां की सेवा करती थी कि तकलीफों के बावजूद वे हंसती रहती थीं. उस समय छोटा भाई और पिताजी भी थे. मगर घर के काम पलक झपकते निबट जाते थे.

अनिल की आंखों के आगे संजना का मुस्कुराता हुआ चेहरा आ गया जब वह ब्याह कर घर आई थी. नईनवेली बहू इधर से उधर फुदकती फिरती थी. मगर अनिल उस की मासूमियत को बेवकूफी का नाम देता था. वक्तबेवक्त उसे झिड़कता रहता था. वह घर से एक भी कदम बाहर रख देती थी तो घर सिर पर उठा लेता था. उस की सहेलियों तक से उसे मिलने नहीं देता था. समय के साथ चपल हिरनी सी संजना   पिंजरे में कैद बुलबुल जैसी गमगीन हो गई. हंसी के बजाय उस की आंखों में पीड़ा झांकने लगी थी. फिर भी कोई शिकायत किए बिना वह पूरे दिन घर के कामों में लगी रहती.

आज अनिल को याद आ रहा था वह दिन जब संजना की मौजूदगी में एक बार उसे बुखार आ गया था. उस वक्त उन की शादी को ज्यादा दिन नहीं हुए थे. तब संजना पूरे दिन  उस के हाथपैरों की मालिश करती रही थी. अनिल कभी संजना से सिर दबाने को कहता, कभी कुछ खाने को मंगाता तो कभी पत्रिकाओं में से कहानियां पढ़ कर सुनाने को कहता  हर समय संजना को अपनी सेवा में लगाए रखता.

एक दिन उस के मन की थाह लेने के लिए अनिल ने पूछा था,” मेरी बीमारी में तुम मुझ से परेशान तो नहीं हो गई? ज्यादा काम तो नहीं करा रहा हूं मैं ?”

संजना ने कुछ कहा नहीं केवल मुस्कुरा भर दिया तो अनिल ने उसे तुलसीदास का दोहा सुनाते हुए कहा था,” धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी…. आपद काल परखिए चारी…. जानती हो इस का मतलब क्या है?”

नहीं तो. आप बताइए क्या मतलब है?” संजना ने गोलगोल आंखें नचाते हुए पूछा तो अनिल ने समझाया,” इस का मतलब है खराब समय में ही धीरज, धर्म, मित्र और औरत की परीक्षा होती है. बुरे समय में पत्नी आप का साथ देती है या नहीं यह देखना जरूरी है. इसी से पत्नी की परीक्षा होती है.”

संजना के बारे में सोचतेसोचते काफी समय तक अनिल यों ही बैठा रहा. तभी उसे याद आया कि उस ने गैस पर दूध चढ़ा रखा है. वह दौड़ता हुआ किचन में घुसा तो देखा आधा से ज्यादा दूर जमीन पर बह गया है और बाकी जल चुका है. भगोना भी काला हो गया है. अनिल सिर पकड़ कर बैठ गया. किचन की सफाई का काम बढ़ गया था. दूध भी फिर से लाना होगा. उधर मां के बिस्तर की सफाई भी करनी थी.

सब काम निबटातेनिबटाते दोपहर के 2 बज गए. दूध के साथ ब्रेड खाते हुए अनिल को फिर से पुराने दिन याद आने लगे. संजना को उस के लिए पिताजी ने पसंद किया था. वह खूबसूरत, पढ़ीलिखी और सुशील लड़की थी. जबकि अनिल कपड़ों का थोक विक्रेता था.

घर में रुपएपैसों की कमी नहीं थी. फिर भी संजना जॉब करना चाहती थी. वह इस बहाने खुली हवा में सांस लेना चाहती थी. मगर अनिल ने उस की यह गुजारिश सिरे से नकार दी थी. अनिल को डर लगने लगा था कि कमला यदि बाहर जाएगी या अपनी सहेलियों से मिलेगी तो वे उसे भड़काएंगी. यही सोच कर उस ने संजना को जॉब करने या सहेलियों से मिलने पर पाबंदी लगा दी.

एक दिन वह दुकान से जल्दी घर लौट आया. उस ने देखा कि कपड़े प्रेस करतेकरते संजना अपनी किसी सहेली से बातें कर रही है. अनिल दबे पांव कमरे में दाखिल हुआ और बिस्तर पर बैठ कर चुपके से संजना की बातें सुनने लगा. वह अपनी सहेली से कह रही थी,” मीना सच कहूं तो कभीकभी दिल करता है इन को छोड़ कर कहीं दूर चली जाऊं. कभीकभी बहुत परेशान करते हैं. मगर उस वक्त सुनयना दीदी का ख्याल आ जाता है. वह इतनी सुंदर हैं पर विधवा होने की वजह से उन की कहीं शादी नहीं हो पाई. कितनी बेबस और अकेली रह गई हैं. एक औरत के लिए दूसरी शादी कर पाना आसान नहीं होता. कभी मन गवाह नहीं देता तो कभी समाज. एक बात बताऊं मीना…” संजना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनिल चीख पड़ा,” संजना फोन रखो. मैं कहता हूं फोन रखो.” डर कर संजना ने फोन रख दिया.

अनिल ने खींच कर एक झापड़ उसे रसीद किया. संजना बिस्तर पर बैठ कर सुबकने लगी. अनिल ने उस के कानों में तुलसीदास का दोहा बुदबुदाया,” ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी …. ये सब ताड़न के अधिकारी….”

संजना ने सवालिया नजरों से अनिल की ओर देखा तो अनिल फिर चीखा,”जानती है इस दोहे का मतलब क्या है? नहीं जानती न. इस का मतलब है कि औरतों को अक्ल सिखाने के लिए उन्हें पीटना जरूरी होता है. वे ताड़न की अधिकारी होती हैं और मैं तेरी जैसी औरतों को पीटना अच्छी तरह जानता हूं. पति की बुराई मोहल्ले भर में करती चलती हो. सहेलियों के आगे बुराइयों का पोथा खोल रखा है. छोड़ कर जाएगी मुझे? क्या कमी रखी है मैं ने? जाहिल औरत बता क्या कमी रखी है?” कहते हुए अनिल ने गर्म प्रेस उस की हथेली पर रख दी.

संजना जोर से चीख उठी. बगल के कमरे से पिताजी दौड़े आए.” बस कर अनिल क्या कर रहा है तू ? चल तेरी मां दवा मांग रही है.”

पिताजी अनिल को खींचते हुए ले गए. फिर संजना देर तक नल के नीचे बहते पानी में हाथ रखी रोती रही. उस दिन संजना के अंदर कुछ टूट गया था. यह चोट फिर कभी ठीक नहीं हुई. उस दिन के बाद संजना ने अपनी सहेलियों से भी बातें करना छोड़ दिया. हंसनाखिलखिलाना सब कुछ छूट गया. वह अनिल के सारे काम करती मगर बिना एक शब्द मुंह से निकाले. रात में जब अनिल उसे अपनी तरफ खींचता तो उसे महसूस होता जैसे बहुत सारे बिच्छूओं ने एक साथ डंक मार दिया हो. पर वह बेबस थी. उसे कोई रास्ता नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

इस तरह जिंदगी के करीब 3 साल बीत गए. उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था. संजना वैसे भी बच्चे के पक्ष में नहीं थी. उसे लगता था कि इतने घुटन भरे माहौल में वह अपने बच्चे को कौन सी खुशी दे पाएगी?

एक दिन वह शाम के समय सब्जी लाने बाजार गई थी. वहीं उस की मुलाकात अपने सहपाठी नीरज से हुई. वह अपने भाई निलय के साथ के सब्जी और फल खरीदने आया था. संजना को देखते ही नीरज ने उसे पुकारा,” कैसी हो संजना पहचाना मुझे?”

नीरज को देख कर संजना का चेहरा खिल उठा,”अरे कैसे नहीं पहचानूंगी. तुम तो कॉलेज के जान थे.”

“पर तुम्हें पहचानना कठिन हो रहा है. कितनी मुरझा गई हो.सब ठीक तो है?” चिंता भरे स्वर में नीरज ने पूछा तो संजना ने सब सच बता दिया.

ढांढस बंधाते हुए नीरज ने संजना का परिचय अपने भाई से कराया,” यह मेरा भाई है. यहीं पास में ही रहता है. बीवी से तलाक हो चुका है. बीवी बहुत रुखे स्वभाव की थी जबकि यह बहुत कोमल हृदय का है. मैं तो जयपुर में रहता हूं मगर तुम्हें जब भी कोई समस्या आए तो मेरे भाई से बात कर सकती हो. यह तुम्हारा पूरा ख्याल रखेगा.”

इस छोटी सी मुलाकात में निलय ने अपना नंबर देते हुए हर मुश्किल घड़ी में साथ  निभाने का वादा किया था.

संजना को जैसे एक आसरा मिल गया था. वैसे भी निलय उसे जिन निगाहों से देख रहा था वे निगाहें घर आने के बाद भी उस का पीछा करती रही थीं. अजीब सी कशिश थी उस की निगाहों में. संजना चाह कर भी निलय को भूल नहीं पा रही थी.

करीब चारपांच दिन बीत गए. हमेशा की तरह संजना अपने घर के कामों में व्यस्त थी कि तभी निलय का फोन आया. उस का नंबर संजना ने सुधा नाम से सेव किया था. संजना ने दौड़ कर फोन उठाया.  निलय की आवाज में एक सुरुर था. वैसे उस ने संजना का हालचाल पूछने के लिए फोन किया था मगर उस के बात करने का अंदाज ऐसा था कि संजना दोतीन दिनों तक फिर से निलय के ख्यालों में गुम रही.

इस बार उसी ने निलय को फोन किया. दोनों देर तक बातें करते रहे. हालचाल से बढ़ कर अब जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर भी बातें होने लगीं थीं. अब हर रोज दोपहर करीब 2- 3 बजे दोनों बातें करने लगे. दोनों ने अपनीअपनी फीलिंग्स शेयर की और फिर एक दिन एकदूसरे के साथ कहीं दूर भाग जाने की योजना भी बना डाली. संजना के लिए यह फैसला लेना कठिन नहीं हुआ था. वह ऐसे भी अनिल से आजिज आ चुकी थी. अनिल ने जिस तरह से उसे मारापीटा और गुलाम बना कर रखा था वह उस के जैसी स्वाभिमानी स्त्री के लिए असहनीय था.

एक दिन अनिल के नाम एक चिट्ठी छोड़ कर संजना निलय के साथ भाग गई. वह कहां गई इस की खबर उस ने अनिल को नहीं दी मगर क्यों गई और किस के साथ गई इन सब बातों की जानकारी खत के माध्यम से अनिल को दे दी. साथ ही उस ने खत में स्पष्ट रूप से लिख दिया था कि वह अनिल को तलाक नहीं देगी और उस के साथ रहेगी भी नहीं.

अनिल के पास हाथ मलने और पछताने के सिवा कोई रास्ता नहीं था. इस बात को डेढ़ साल बीत चुके थे. अनिल की जिंदगी की गाड़ी पटरी से उतर चुकी थी. मन में बेचैनी का असर दुकान पर भी पड़ा. उस का व्यवसाय ठप पड़ने लगा. अनिल के पिता की मौत हो गई और घर के हालात देखते हुए अनिल के भाई ने लव मैरिज की और दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया.

अब अनिल अकेला अपनी बीमार मां के साथ जिंदगी की रेतीली धरती पर अपने कर्मों का हिसाब देने को विवश था. Hindi Sad Story

Love Story in Hindi: प्यार की तलाश

Love Story in Hindi: मेरी कक्षा में पढ़ने वाली नीतू मेरे बैंच से दाईं वाली पंक्ति में, 2 बैंच आगे बैठती थी. वह दिखने में साधारण थी पर उस में दूसरों से हट कर कुछ ऐसा आकर्षण था कि जब मैं ने पहली बार उसे देखा तो बस देखता ही रह गया… वह अपनी सहेलियों के साथ हंसतीखिलखिलाती रहती और मैं उसे चोरीछिपे देखता रहता.

नीतू मेरी जिंदगी में, उम्र के उस मोड़ पर जिसे किशोरावस्था कहते हैं और जो जवानी की पहली सुबह के समान होती है, उस सुबह की रोशनी बन कर आई थी वह. उस सुखद परिवर्तन ने मेरे जीवन में जैसे रंग भर दिया था. मैं हमेशा अपने में मस्त रहता. पढ़ाई में भी मेरा ध्यान पहले से अधिक रहता. मम्मीपापा टोकते, उस से पहले ही मैं पढ़ने बैठ जाता और सुबहसुबह स्कूल जाने के लिए हड़बड़ा उठता.

आज सोचता हूं तो लगता है, काश, वक्त वहीं ठहर जाता. नीतू मुझ से कभी जुदा न होती, पर जीवन के सुनहरे दिन, कितने जल्दी बीत जाते हैं. मेरा स्कूली जीवन कब पीछे छूट गया, पता ही नहीं चला.

मैट्रिक की परीक्षा के बाद, नीतू जैसे हमेशा के लिए मुझ से जुदा हो गई. मैं उस के घर का पता जानता था, लेकिन जब यह पता चला कि नीतू कालेज की पढ़ाई के लिए अपने मामा के यहां चली गई है तो मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया. मेरे पास कुछ था तो बस उस की यादें, उस के लिखे खत और स्कूल में मिली वह तसवीर, जिस में साथ पढ़ने वाले सभी विद्यार्थी और शिक्षक एक कतार में खड़े थे और नीतू एक कोने में खड़ी मुसकरा रही थी.

मैं नीतू की यादों में खोया, डायरी के पन्ने पलटता जा रहा था, तभी दरवाजे पर दस्तक सुन कर चौंक गया. नजरें उठा कर देखा तो सामने सुनयना खड़ी थी. अचानक उसे देख कर मैं हड़बड़ा गया, ‘‘कहिए, क्या बात है?’’ मैं ने डायरी बंद करते हुए कहा.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकती हूं…’’ सुनयना मेरी मनस्थिति भांप कर मुसकराते हुए बोली.

‘‘हां… हां, आइए न बैठिए,’’ मैं ने जैसे शरमा कर कहा.

‘‘मैं ने आप को डिस्टर्ब कर दिया. शायद आप कुछ लिख रहे थे…’’ सुनयना डायरी की ओर देख रही थी.

‘‘बस डायरी है…’’ मैं ने डायरी पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, आप डायरी लिखते हैं, क्या मैं देख सकती हूं?’’ सुनयना की आंखों में पता नहीं क्यों चमक आ गईर् थी.

‘‘किसी की पर्सनल डायरी नहीं देखनी चाहिए,’’ मैं ने मुसकरा कर मना करने के उद्देश्य से कहा क्योंकि वैसे भी वह डायरी मैं उसे नहीं दिखा सकता था.

‘‘क्या हम इतने गैर हैं?’’ सुनयना नाराज तो नहीं लग रही थी पर अपने चिरपरिचित अंदाज में मुंह बना कर बोली.

‘‘मैं ने ऐसा तो नहीं कहा,’’ मैं ने फिर मुसकराने का प्रयास किया.

‘‘खैर, छोडि़ए. पर कभी तो मैं आप की डायरी पढ़ कर ही रहूंगी,’’ सुनयना के चेहरे पर अब बनावटी नाराजगी थी. उस ने अपनी झील जैसी बड़ीबड़ी आंखों से मुझे घूरते हुए कहा, ‘‘…अभी चलिए, आप को बुलाया जा रहा है.‘‘

बैठक में भैयाभाभी सभी बैठे हुए थे. अंत्याक्षरी खेलने का कार्यक्रम बनाया गया था पर मेरा मन तो कहीं दूर था, लेकिन मना कैसे करता? न चाह कर भी खेलने बैठ गया. सुनयना पूरे खेल के दौरान, अपने गीतों से मुझे छेड़ने का प्रयास करती रही.

सुनयना मेरी भाभी की छोटी बहन थी. अपने नाम के अनुरूप ही उस की गहरी नीली झील सी आंखें थीं. वह थी भी बहुत खूबसूरत. उस के चेहरे से हमेशा एक आभा सी फूटती नजर आती. उस के काले, घने, चमकदार बाल कमर तक अठखेलियां करते रहते. वह हमेशा चंचल हिरनी के समान फुदकती फिरती. वह बहुत मिलनसार और बिलकुल खुले दिल की लड़की थी. यही वजह थी कि उसे सब बहुत पसंद करते थे और मजाक में ही सही, पर सभी ये कहते, इस घर की छोटी बहू कोई बनेगी तो सिर्फ सुनयना ही बनेगी. मैं सुन कर बिना किसी प्रतिक्रिया के चुपचाप रह जाता पर कभीकभार ऐसा लगता जैसे मेरी इच्छा, मेरी भावनाओं से किसी को कोईर् लेनादेना नहीं है पर मैं दोष देता तो किसे देता. किसी को तो पता ही नहीं था कि मेरे दिल में जो लड़की बसी है, वह सुनयना नहीं नीतू है.

दूसरे दिन सुनयना वापस जा रही थी. भाभी ने आ कर मुझे उसे घर तक छोड़ने को कहा. मैं जान रहा था, यह मेरे और सुनयना को ले कर घर वालों के मन में जो खिचड़ी पक रही है, उसी साजिश का हिस्सा है पर अंदर ही अंदर मैं खुश भी था… मैं मन ही मन सोच रहा था, ’आज रास्ते में सुनयना के सामने सारी बातें स्पष्ट कर दूंगा.’

सुनयना मेरे पीछे चिपक कर बैठी हुई थी. मैं आदतन सामान्य गति से मोटरसाइकिल चला रहा था. वह अपनी हरकतों से मुझे बारबार छेड़ने का प्रयास कर रही थी. मैं चाह कर भी उसे टोक नहीं पा रहा था. वह बीचबीच में ‘नदिया के पार’ फिल्म का गाना गुनगुनाने लगती और रास्तेभर तरहतरह की बातों से मुझे उकसाने का प्रयास करती रही. पर मैं थोड़ाबहुत जवाब देने के अलावा बस, कभीकभार मुसकरा देता.

जब हम शहर की भीड़भाड़ से बाहर, खुली सड़क पर निकले तो दृश्य भी ‘नदिया के पार’ फिल्म के जैसा ही था, बस अंतर इतना था कि मेरे पास ‘बैलगाड़ी’ की जगह मोटरसाइकिल थी. सड़क के दोनों किनारे कतार में खड़े बड़ेबड़े पेड़ थे. सामने दोनों तरफ खेतों में लहलहाती फसलें और वनों से आच्छादित पहाडि़यों की शृंखलाएं नजर आ रही थीं.

बड़ा ही मनोरम दृश्य था. मेरा मन अनायास ही उमंग से भर उठा. लगा जैसे सुनयना का साथ दे कर मैं भी कोई गीत गुनगुनाऊं. पर अचानक नीतू का खयाल आते ही मैं फिर से गंभीर हो उठा. मैं ने मन ही मन सोचा कि मुझे नीतू के बारे में सुनयना को स्पष्ट बता देना चाहिए. पर पता नहीं क्यों मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. बहुत कोशिश के बाद, किसी तरह खुद को संयत करते हुए मैं ने कहा, ‘‘सुनयनाजी, मैं आप से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘जी…’’ शायद सुनयना ठीक से सुन नहीं पाई थी.

मैं ने मोटरसाइकिल की गति, धीमी करने के बाद, फिर से कहा, ‘‘मैं आप से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कोई सीरियस बात है?’’ सुनयना कुछ इस तरह मजाकभरे लहजे में बोली, जैसे मेरे जज्बातों से वह अच्छी तरह वाकिफ हो.

मगर मैं जो कहने जा रहा था, शायद उस से उस का दिल टूट जाने वाला था. सो मैं ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘मैं आप को जो बताने जा रहा हूं, मैं ने आज तक किसी से नहीं कहा है. दरअसल, मैं एक लड़की से प्यार करता हूं. उस लड़की का नाम नीतू है. वह मेरे साथ पढ़ती थी. हम दोनों एकदूसरे को बहुत चाहते हैं और मैं उसी से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘आप कहीं मजाक, तो नहीं कर रहे…’’ सुनयना को मेरी बातों पर यकीन नहीं हुआ.

‘‘यह मजाक नहीं, सच है,’’ मैं ने फिर गंभीर हो कर कहा, ‘‘मैं यह बात बहुत पहले सब को बता देना चाहता था पर कभी हिम्मत नहीं कर पाया. दरअसल, मैं इस बात से डर जाता था कि कहीं घर वाले यह न समझ लें कि मैं पढ़नेलिखने की उम्र में भटक गया हूं. पर अब मेरे सामने कोई मजबूरी नहीं है. मैं अपने पैरों पर खड़ा हो चुका हूं.‘‘

‘‘शशिजी, आप सचमुच बहुत भोले हैं,’’ इस बार सुनयना के लहजे में भी गंभीरता थी, वह मुसकराने का प्रयास करती हुई बोली, ‘‘एक तरफ आप प्यार की बातें करते हैं और दूसरी तरफ रिऐक्शन के बारे में भी सोचते हैं. ये बात आप को बहुत पहले सब को बता देनी चाहिए थी. मुझे पूरी उम्मीद है कि आप की पसंद सब को पसंद आएगी. फिर बात जब शादी की हो तो मेरे विचार से अपने दिल की ही बात सुननी चाहिए. चूंकि यह पल दो पल का खेल नहीं, जिंदगीभर का सवाल होता है.’’ सुनयना सहजता से बोल गई. ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे मन की बात जान कर उसे कोई खास फर्क न पड़ा हो.

इस तरह उस के सहयोगात्मक भाव से मेरे दिल का बोझ जो एक तरह से उस को ले कर था, उतरता चला गया.

सुनयना को घर छोड़ कर लौटते वक्त मेरे मन में हलकापन था. लेकिन अंदर कहीं एक खामोशी भी छाई हुई थी. पता नहीं क्यों? सुनयना की आंखों से जो दर्द, विदा लेते वक्त झलका था, मुझे बारबार अंदर ही अंदर कचोट रहा था.

रात को खाना खा कर मैं जल्दी ही बिस्तर पर लेट गया क्योंकि सुबह किसी भी हालत में मुझे नीतू के  पास जाना था. लेकिन नींद आ ही नहीं रही थी. बस करवटें बदलता रहा. मन में तरहतरह के विचार आजा रहे थे. इसी उधेड़बुन में कब नींद आ गई, पता ही न चला.

सुबह घर के सामने स्थित पीपल के पेड़ से आ रही चिडि़यों की चहचहाट से मेरी नींद खुली. चादर हटा कर देखा, प्र्रभात की लाली खिड़की में लगे कांच से छन कर कमरे के अंदर आ रही है. आज शायद मैं देर से सोने के बावजूद जल्दी उठ गया था क्योंकि देर होने पर मां जगाने जरूर आती थीं. मैं उठ कर चेहरे पर पानी छिड़क कर, कुल्ला कर के अपने कमरे से निकला.

बैठक में मेज पर अखबार पड़ा हुआ था. आदतन अखबार ले कर कुरसी पर बैठ गया और हमेशा की तरह खबरों की हैडलाइन पढ़ते हुए अखबार के पन्ने पलटने लगा. तभी अचानक मेरी नजर अखबार में छपी एक खबर पर अटक गई. मोटेमोटे अक्षरों में लिखा था, ‘थाना परिसर में प्रेमीप्रेमिका परिणयसूत्र में बंधे.’ हैडलाइन पढ़ कर मेरा दिल धक से रह गया, ‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता,‘ मैं ने सोचा.

खबर कोई अनोखी या विचित्र थी, ऐसी बात न थी, लेकिन जो तसवीर छपी थी मैं ने एक दीर्घ श्वास ले कर पढ़ना शुरू किया. वह नीतू ही थी. खबर में उस के घर का पताठिकाना स्पष्ट रूप से लिखा था. यहां तक कि वह लड़का भी उस के मामा  के महल्ले का ही था. दोनों के बीच 2 साल से प्रेम चल रहा था. घर वालों के विरोध के चलते दोनों भाग कर थाने आ गए थे.

खबर पढ़ कर मैं सन्न रह गया. मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि नीतू ऐसा कर सकती है. मैं ने मन ही मन अपनेआप से ही प्रश्न किया, ‘अगर इस लड़के के साथ, यह उस का प्रेम है तो 4-5 साल पहले मेरे साथ जो हुआ था, वह क्या था? क्या 4-5 साल का अंतराल किसी के दिल से किसी की याद, किसी का प्यार भुला सकता है? मैं उसे हर दिन, हर पल याद करता रहा, उस की तसवीर अपने सीने से लगाए रहा और उस ने मेरे बारे में तनिक भी न सोचा. क्या प्यार के मामले में भी किसी का स्वभाव ऐसा हो सकता है कि उस पर विश्वास करने वाला अंत में बेवकूफ बन कर रह जाए? मैं ने तो अब तक सुना था, प्यार का दूसरा नाम, इंतजार भी होता है पर उस ने मेरा इंतजार नहीं किया.’

मेरा मन घृणा और दुख से भर उठा. मैं किसी तरह खुद को संभालते हुए अखबार को कुरसी पर ही रख कर, धीरेधीरे उठा और अपने कमरे में जा कर फिर बिस्तर पर लुढ़क गया. ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मेरे अंदर थोड़ी सी भी जिजीविषा शेष न हो, जैसे मैं दुनिया का सब से दीन आदमी हूं, आंखों से अपनेआप आंसू छलके जा रहे थे.

सामने टेबल पर वही तसवीर थी. जिस में नीतू अब भी मेरी ओर देख कर मुसकरा रही थी, जैसे मेरे जज्बातों से मेरे दिल के दर्द से, उसे कोईर् लेनादेना न हो. जी में आया तसवीर को उठा कर खिड़की से बाहर फेंक दूं कि तभी मां चाय ले कर आ गईं, ‘’अरे, तू फिर सो रहा है क्या? अभी तो पेपर पढ़ रहा था.‘’

मैं ने झटपट अपने चेहरे पर हाथ रख कर पलकों पर उंगलियां फिराते हुए अपने आंसू छिपाते हुए कहा, ‘’नहीं, सिर थोड़ा भारी लग रहा है.‘’

‘‘रात को देर से सोया होगा. पता नहीं रातरात भर जाग कर क्या लिखता रहता है? ले, चाय पी ले, इस से थोड़ी राहत मिलेगी,‘‘ चाय का कप हाथ में थमा कर

मेरे माथे पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरते हुए मां ने कहा, ‘‘तेल ला कर थोड़ी मालिश कर देती हूं.’

‘‘नहीं ठीक है, मां, वैसा दर्द नहीं है. शायद देर से सोया था. इसलिए ऐसा लग रहा है,‘‘ मैं ने फिर बात बना कर कहा.

मां जब कमरे से निकल गईं तो मैं किसी तरह अपनेआप को समझाने की कोशिश करने लगा. पर दिल में उठ रही टीस, जैसे बढ़ती ही जा रही थी. मन कह रहा था, जा कर एक बार उस बेवफा से मिल आओ. आखिर उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? क्या वह इंतजार नहीं कर सकती थी? उन वादों, कसमों को वह कैसे भूल गई, जो हम ने स्कूल से विदाई की उस आखिरी घड़ी में, एकदूसरे के सामने खाई थीं.

न चाहते हुए भी मेरे मन में, रहरह कर सवाल उठ रहे थे. अपनेआप को समझाना जैसे मुश्किल होता जा रहा था. मन की पीड़ा जब बरदाश्त से बाहर होने लगी तो मैं फिर से बिस्तर पर लेट गया. उसी वक्त अचानक भाभी मेरे कमरे में आईं. उन्हें अचानक सामने देख कर मैं घबरा गया. किसी तरह अपने मनोभाव छिपा कर मैं बिस्तर से उठा.

कुछ देर पहले भाभी के मायके से फोन आया था. सुनयना की तबीयत बहुत खराब थी. वह कल ही तो यहां से गई थी. अचानक पता नहीं उसे क्या हो गया? भाभी काफी चिंतित थीं. भैया को औफिस के जरूरी काम से कहीं बाहर जाना था इसलिए मुझे भाभी के साथ सुनयना को देखने जाना पड़ा.

सुनयना बिस्तर पर पड़ी हुई थी. कुछ देर पहले डाक्टर दवा दे गया था. वह अभी भी बुखार से तप रही थी. उस की आंखें सूजी हुई थीं, देख कर ही लग रहा था, जैसे वह रातभर रोई हो.

मैं सामने कुरसी पर चुपचाप बैठा था. भाभी उस के पास बैठीं, उस के बालों को सहला रही थीं. सुनयना बोली तो कुछ नहीं, पर उस की आंखों से छलछला रहे आंसू पूरी कहानी बयान कर रहे थे. सारा माजरा समझ कर भाभी मुझे किसी अपराधी की तरह घूरने लगीं. मैं सिर झुकाए चुपचाप बैठा था. कुछ देर बाद, भाभी कमरे से निकल गईं.

कमरे में सिर्फ हम दोनों थे. सुनयना जैसे शून्य में कुछ तलाश रही थी. उसे देख कर मेरी आंखों में भी आंसू आ गए. अचानक महसूस हुआ कि यदि अब भी मैं ने सामने स्थित जलाशय को ठुकरा कर मृगमरीचिका के पीछे भागने का प्रयास किया तो शायद अंत में पछतावे के सिवा मेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा. मैं ने बिना देर किए सुनयना के पास जा कर, याचना भरे स्वर में कहा, ‘‘सुनयनाजी, मैं ने आप से जो कहा था, वह मेरा भ्रम था. मैं ने बचपन के खेल को प्यार समझ लिया था. मुझे आज ही पता चला कि उस लड़की ने एक दूसरे लड़के से प्रेम विवाह कर लिया है. मैं नादानी में आप से पता नहीं क्याक्या कह गया…‘’

सुनयना अपनी डबडबाई आंखों से अब भी शून्य में निहार रही थी. कुछ देर रुक कर, मैं ने फिर कहा, ‘‘कुदरत जिंदगी में सब को सच्चा हमदर्द देती है पर अकसर हम उसे ठुकरा देते हैं. मैं ने भी शायद, ऐसा ही किया है. लड़कपन से अब तक ख्वाबों के पीछे भागता रहा,’’ मेरा गला भर आया था.

सुनयना मुझे टुकुरटुकुर देख रही थी. उस की आंखों से टपकते आंसू उस के गालों पर लुढ़क रहे थे. मुझे पहली बार उस की आंखों में अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.

मैं ने किसी छोटे बच्चे की तरह भावुक हो कर कहा, ‘‘देखो, मुझे मत ठुकराना, वरना मैं जी नहीं पाऊंगा,’’ और हाथ बढा़ कर उस के गालों को छू रहे आंसुओं को पोंछने लगा.

सुनयना के होंठ कुछ कहने के प्रयास में थरथरा उठे. पर जब वह कुछ बोल न पाई तो अचानक मुझ से लिपट कर जोरजोर से सुबकने लगी. मैं ने भी उसे कस कर अपनी बांहों में भर लिया. हम दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे. मैं सोच रहा था, ‘मुझे अब तक क्यों पता नहीं चला कि हमेशा चंचल, बेफिक्र और नादान सी दिखने वाली इस लड़की के दिल में मेरे लिए इतना प्यार छिपा था.’

भाभी दरवाजे के पास खड़ीं मुसकरा रही थीं. पर उन की आंखों में भी खुशी के आंसू थे. Love Story in Hindi

Family Kahani: पछतावा- आखिर दीनानाथ की क्या थी गलती

Family Kahani: दीनानाथ नगरनिगम में चपरासी था. वह स्वभाव से गुस्सैल था. दफ्तर में वह सब से झगड़ा करता रहता था. उस की इस आदत से सभी दफ्तर वाले परेशान थे, मगर यह सोच कर सहन कर जाते थे कि गरीब है, नौकरी से हटा दिया गया, तो उस का परिवार मुश्किल में आ जाएगा.

दीनानाथ काम पर भी कई बार शराब पी कर आ जाता था. उस के इस रवैए से भी लोग परेशान रहते थे. उस के परिवार में पत्नी शांति और 7 साल का बेटा रजनीश थे. शांति अपने नाम के मुताबिक शांत रहती थी. कई बार उसे दीनानाथ गालियां देता था, उस के साथ मारपीट करता था, मगर वह सबकुछ सहन कर लेती थी.

दीनानाथ का बेटा रजनीश तीसरी जमात में पढ़ता था. वह पढ़ने में होशियार था, मगर अपने एकलौते बेटे के साथ भी पिता का रवैया ठीक नहीं था. उस का गुस्सा जबतब बेटे पर उतरता रहता था.

‘‘रजनीश, क्या कर रहा है? इधर आ,’’ दीनानाथ चिल्लाया.

‘‘मैं पढ़ रहा हूं बापू,’’ रजनीश ने जवाब दिया.

‘‘तेरा बाप भी कभी पढ़ा है, जो तू पढ़ेगा. जल्दी से इधर आ.’’

‘‘जी, बापू, आया. हां, बापू बोलो, क्या काम है?’’

‘‘ये ले 20 रुपए, रामू की दुकान से सोडा ले कर आ.’’

‘‘आप का दफ्तर जाने का समय हो रहा है, जाओगे नहीं बापू?’’

‘‘तुझ से पूछ कर जाऊंगा क्या?’’ इतना कह कर दीनानाथ ने रजनीश के चांटा जड़ दिया.

रजनीश रोता हुआ 20 रुपए ले कर सोडा लेने चला गया. दीनानाथ सोडा ले कर शराब पीने बैठ गया.

‘‘अरे रजनीश, इधर आ.’’

‘‘अब क्या बापू?’’

‘‘अबे आएगा, तब बताऊंगा न?’’

‘‘हां बापू.’’

‘‘जल्दी से मां को बोल कि एक प्याज काट कर देगी.’’

‘‘मां मंदिर गई हैं… बापू.’’

‘‘तो तू ही काट ला.’’

रजनीश प्याज काट कर लाया. प्याज काटते समय उस की आंखों में आंसू आ गए, पर पिता के डर से वह मना भी नहीं कर पाया. दीनानाथ प्याज चबाता हुआ साथ में शराब के घूंट लगाने लगा. शाम के 4 बज रहे थे. दीनानाथ की शाम की शिफ्ट में ड्यूटी थी. वह लड़खड़ाता हुआ दफ्तर चला गया.

यह रोज की बात थी. दीनानाथ अपने बेटे के साथ बुरा बरताव करता था. वह बातबात पर रजनीश को बाजार भेजता था. डांटना तो आम बात थी. शांति अगर कुछ कहती थी, तो वह उस के साथ भी गालीगलौज करता था. बेटे रजनीश के मन में पिता का खौफ भीतर तक था. कई बार वह रात में नींद में भी चीखता था, ‘बापू मुझे मत मारो.’

‘‘मां, बापू से कह कर अंगरेजी की कौपी मंगवा दो न,’’ एक दिन रजनीश अपनी मां से बोला.

‘‘तू खुद क्यों नहीं कहता बेटा?’’ मां बोलीं.

‘‘मां, मुझे बापू से डर लगता है. कौपी मांगने पर वे पिटाई करेंगे,’’ रजनीश सहमते हुए बोला.

‘‘अच्छा बेटा, मैं बात करती हूं,’’ मां ने कहा.

‘‘सुनो, रजनीश के लिए कल अंगरेजी की कौपी ले आना.’’

‘‘तेरे बाप ने पैसे दिए हैं, जो कौपी लाऊं? अपने लाड़ले को इधर भेज.’’

रजनीश डरताडरता पिता के पास गया. दीनानाथ ने रजनीश का कान पकड़ा और थप्पड़ लगाते हुए चिल्लाया, ‘‘क्यों, तेरी मां कमाती है, जो कौपी लाऊं? पैसे पेड़ पर नहीं उगते. जब तू खुद कमाएगा न, तब पता चलेगा कि कौपी कैसे आती है? चल, ये ले 20 रुपए, रामू की दुकान से सोडा ले कर आ…’’

‘‘बापू, आज आप शराब बिना सोडे के पी लो, इन रुपयों से मेरी कौपी आ जाएगी…’’

‘‘बाप को नसीहत देता है. तेरी कौपी नहीं आई तो चल जाएगा, लेकिन मेरी खुराक नहीं आई, तो कमाएगा कौन? अगर मैं कमाऊंगा नहीं, तो फिर तेरी कौपी नहीं आएगी…’’ दीनानाथ गंदी हंसी हंसा और बेटे को धक्का देते हुए बोला, ‘‘अबे, मेरा मुंह क्या देखता है. जा, सोडा ले कर आ.’’

दीनानाथ की यह रोज की आदत थी. कभी वह बेटे को कौपीकिताब के लिए सताता, तो कभी वह उस से बाजार के काम करवाता. बेटा पढ़ने बैठता, तो उसे तंग करता. घर का माहौल ऐसा ही था. इस बीच रात में शांति अपने बेटे रजनीश को आंचल में छिपा लेती और खुद भी रोती.

दीनानाथ ने बेटे को कभी वह प्यार नहीं दिया, जिस का वह हकदार था. बेटा हमेशा डराडरा सा रहता था. ऐसे माहौल में भी वह पढ़ता और अपनी जमात में हमेशा अव्वल आता. मां रजनीश से कहती, ‘‘बेटा, तेरे बापू तो ऐसे ही हैं. तुझे अपने दम पर ही कुछ बन कर दिखाना होगा.’’

मां कभीकभार पैसे बचा कर रखती और बेटे की जरूरत पूरी करती. बाप दीनानाथ के खौफ से बेटे रजनीश के बाल मन पर ऐसा डर बैठा कि वह सहमासहमा ही रहता. समय बीतता गया. अब रजनीश 21 साल का हो गया था. उस ने बैंक का इम्तिहान दिया. नतीजा आया, तो वह फिर अव्वल रहा. इंटरव्यू के बाद उसे जयपुर में पोस्टिंग मिल गई. उधर दीनानाथ की झगड़ा करने की आदत से नगरनिगम दफ्तर से उसे निकाल दिया गया था.

घर में खुशी का माहौल था. बेटे ने मां के पैर छुए और उन से आशीर्वाद लिया. पिता घर के किसी कोने में बैठा रो रहा था. उस के मन में एक तरफ नौकरी छूटने का दुख था, तो दूसरी ओर यह चिंता सताने लगी थी कि बेटा अब उस से बदला लेगा, क्योंकि उस ने उसे कोई सुख नहीं दिया था.

मां रजनीश से बोलीं, ‘‘बेटा, अब हम दोनों जयपुर रहेंगे. तेरे बापू के साथ नहीं रहेंगे. तेरे बापू ने तुझे और मुझे जानवर से ज्यादा कुछ नहीं समझा…

‘‘अब तू अपने पैरों पर खड़ा हो गया है. तेरी जिंदगी में तेरे बापू का अब मैं साया भी नहीं पड़ने दूंगी.’’

रजनीश कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘नहीं मां, मैं बापू से बदला नहीं लूंगा. उन्होंने जो मेरे साथ बरताव किया, वैसा बरताव मैं नहीं करूंगा. मैं अपने बेटे को ऐसी तालीम नहीं देना चाहता, जो मेरे पिता ने मुझे दी.’’

रजनीश उठा और बापू के पैर छू कर बोला, ‘‘बापू, मैं अफसर बन गया हूं, मुझे आशीर्वाद दें. आप की नौकरी छूट गई तो कोई बात नहीं, मैं अब अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूं. चलो, आप अब जयपुर में मेरे साथ रहो, हम मिल कर रहेंगे.‘‘

यह सुन कर दीनानाथ की आंखों में आंसू आ गए. वह बोला, ‘‘बेटा, मैं ने तुझे बहुत सताया है, लेकिन तू ने मेरा साथ नहीं छोड़ा. मुझे तुझ पर गर्व है.’’

दीनानाथ को अपने किए पर खूब पछतावा हो रहा था. रजनीश ने बापू की आंखों से आंसू पोंछे, तो दीनानाथ ने खुश हो कर उसे गले लगा लिया. Family Kahani

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