Rakshabandhan Special: भाईबहन इस राखी पर गिले शिकवे करें दूर

Rakshabandhan Special: रक्षाबंधन का त्योहार भाईबहनों के बीच प्यार और स्नेह का प्रतीक है. यदि किसी भाईबहन में अनबन हो गई है, तो रक्षाबंधन इसे सुलझाने का एक शानदार अवसर है. प्यार और सम्मान के साथ वे अपनी गलतफहमियों को दूर कर सकते हैं और अपने रिश्ते को फिर से मजबूत कर सकते हैं, कुछ इस तरह :

कम्युनिकेशन गैप को कहें बायबाय

कम्युनिकेशन गैप हर मसले की जड़ है. अगर आप ने भी बातचीत के सारे रास्ते बंद किए हुए हैं, तो उसे खोल दें. बात इतनी बड़ी नहीं होती जितनी बड़ी बात न करने से बन जाती है. लोग उस पर मसाला लगते हैं और 2 लोगों के बीच रिश्ता टूट जाता है. अगर कोई बात बुरी लगी है तो इस राखी आमनेसामने बैठ कर बात को सुलझा लें. शकवेशिकायते कर लें, लड़ लें. लेकिन बात करें, तभी किसी समस्या का हल निकलेगा.

एक चुप सौ को हराता है

अगर बहन जबान की थोड़ी तेज है और जल्दी गुस्सा हो जाती है तो आप ही चुप लगा जाएं. आखिर यह कहावत तो आप ने सुनी ही होगी,’एक चुप सौ को हराता है.’ अगर बहन से कोई लड़ाई चल रही है, तो अब उसे सुलझा लें और बहन की सारी बातें चुपचाप सुन कर मन से निकल दें और रिश्ता अच्छा कर लें.

इस बार माफी उपहार में दे दो न

अगर भाईबहन में झगड़ा और बोलचाल बंद है, बस फौर्मेलिटी में राखी बांध देते हैं तो इस बार उसे यहीं तक सीमित न रखें. इस बार दोनों एकदूसरे को माफ कर के नए सिरे से यह रिश्ता शुरू करें. एक बार आप ही पहल कर के देखें. हो सकता है कि बहन खुद भी लड़ाई खत्म करना चाह रही हो बस ईगो बीच में आ रही हो.

रिश्तों की अहमियत को समझें

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो जन्म से जुड़े होते हैं और उन्हें हम चाह कर भी नहीं तोड़ सकते. लेकिन कई बार आपस में मनमुटाव होना काफी आम बात है. लेकिन इस मनमुटाव को ज्यादा न बढ़ने दें और अगर रिश्ते टूटने की कगार पर पहुंच गए हैं तो इस बात को समझें कि आप की जगह कोई और नहीं ले सकता.

कई बार पत्नी की इन्सिक्योरिटी की वजह से भी रिश्ते खराब हो जाते हैं

कई बार पत्नी को ऐसा लगता है कि पति अपनी बहनों की बातों में आ कर उन्हें अनदेखा कर देते हैं और उन की बात नहीं सुनते हैं. इसलिए वह हमेशा पति को अपनी बहनों से दूर करने की कोशिश करती रहती है. ऐसा करने से सब के बीच का रिश्ता खराब होता है और दूरियां आती हैं. अगर ऐसा हुआ है तो पत्नी को समझाएं और बहन से उस का रिश्ता मजबूत करवाएं.

भाभी और ननद अपना मनमुटाव दूर करें

भाभी और ननद कई बार बहनों की तरह प्यार से रहती हैं तो कहीं दूसरे की दुश्मन बन बैठती हैं. लेकिन इस रक्षाबंधन आप अपनी ननदों के साथ तुलना करने के बजाए उन के साथ अपनापन बढ़ाने की कोशिश करें. जब आप ऐसा करना शुरू करेंगी तो खुद से आप का रिश्ता अपनी ननदों के साथ अच्छा होगा और आप को भाईबहन के बीच के प्यार से जलन नहीं होगी.

ननदों के साथ ग्रुपिंग न करें

हो सकता है कि आप की सारी ननदों में कुछ के साथ आप के रिश्ते बहुत अच्छे हों और कुछ के साथ खराब हों. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि उन कुछ के साथ बाकियों के खिलाफ आप ग्रुपिंग करने लगें और आप बाकी ननदों को अलगथलग महसूस कराने लगें.

इस को ऐसे समझिए कि आप अकेली भाभी हैं तो सारी ननदें आप से बना कर रखना चाहेंगी. लेकिन आप कुछ के साथ ही रिश्ते बनाएंगी तो यह बात बाकी ननदों को गुस्सा तो दिलाएगा ही, उन्हें दुखी भी होगा.

किसी को दुख पहुंचा कर आप को अच्छा तो नहीं लगेगा न. इसलिए अकेली भाभी हैं तो ग्रुपिंग से बचें. सब को साथ ले कर चलने की कोशिश करें फिर चाहे सामने से आप को ऐसा व्यवहार मिले या नहीं.

इसलिए ध्यान कर के सब से बराबरी का व्यवहार करने की कोशिश करें. भाभी और ननद के रिश्ते में प्यार लाने के लिए छोटीछोटी परेशानी शेयर करें और उन्हें सुलझाने की कोशिश भी करें. इसी तरह रिश्ता मजबूत होता है. Rakshabandhan Special

Hindi Sad Story: तेरा जाना- आखिर क्यों संजना ने लिया ऐसा फैसला?

Hindi Sad Story: दोमंजिले मकान के ऊपरी माले में अपनी पैरालाइज्ड मां के साथ अकेला बैठा अनिल खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था. मां सो रही थी. कमरा बिखरा पड़ा था. उसे अपनी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी. सुबह के 11 बज चुके थे. पेट में अन्न का एक भी दाना नहीं गया था. ऐसे में उठ कर नाश्ता बनाना आसान नहीं था. वैसे पिछले कई दिनों से नाश्ते के नाम पर वह ब्रेड बटर और दूध ले रहा था.

किसी तरह फ्रेश हो कर वह किचन में घुसा. दूध और ब्रेड खत्म हो चुके थे. घर में कोई ऐसा था नहीं जिसे भेज कर दूध मंगाया जा सके. खुद ही घिसटता हुआ किराने की शॉप तक पहुंचा. दूध, मैगी और ब्रेड के पैकेट खरीद कर घर आ गया.

अपनी पत्नी संजना के जाने के बाद वह यही सब खा कर जिंदगी बसर कर रहा था. घर आ कर जल्दी से उस ने दूध उबालने को रखा और ब्रेड सेकने लगा.

तभी मां ने आवाज लगाई,” बेटा जल्दी आ. मुझे टॉयलेट लगी है.”

अनिल ने ब्रैड वाली गैस बंद की और दूध वाली गैस थोड़ी हल्की कर के मां के कमरे की तरफ भागा. तब तक मां सब कुछ बिस्तर पर ही कर चुकी थीं. उन से कुछ भी रोका नहीं जाता. वह मां पर चीख पड़ा,” क्या मां, मैं 2 सेकंड में दौड़ता हुआ आ गया पर तुम ने बिस्तर खराब कर दिया. अब यह सब बैठ कर मुझे ही धोना पड़ेगा. कामवाली भी तो नहीं आ रही न.”

मां सकपका गईं. दुखी नजरों से उसे देखती हुई बोलीं,” माफ कर देना बेटा. पता नहीं कैसी हालत हो गई है मेरी. कितनी तकलीफ देती हूं तुझे. मैं मर क्यों नहीं जाती” कहते हुए वह रोने लगी थीं.

“ऐसा मत कह मां.”अनिल ने मां का हाथ पकड़ लिया.” पिताजी पहले ही हमें छोड़ कर जा चुके. भाई दूसरे शहर चला गया. संजना किसी और के साथ भाग गई. अब मेरा है ही कौन तेरे सिवा. तू भी चली जाएगी तो पूरी तरह अकेला हो जाऊंगा.”

अनिल की भी आंखें भर आई थीं. उसे संजना की याद तड़पाने लगी थी. संजना थी तो सब कुछ कितनी सहजता से संभाले रखती थी. मां की तबियत तब भी खराब थी मगर संजना इस तरह मां की सेवा करती थी कि तकलीफों के बावजूद वे हंसती रहती थीं. उस समय छोटा भाई और पिताजी भी थे. मगर घर के काम पलक झपकते निबट जाते थे.

अनिल की आंखों के आगे संजना का मुस्कुराता हुआ चेहरा आ गया जब वह ब्याह कर घर आई थी. नईनवेली बहू इधर से उधर फुदकती फिरती थी. मगर अनिल उस की मासूमियत को बेवकूफी का नाम देता था. वक्तबेवक्त उसे झिड़कता रहता था. वह घर से एक भी कदम बाहर रख देती थी तो घर सिर पर उठा लेता था. उस की सहेलियों तक से उसे मिलने नहीं देता था. समय के साथ चपल हिरनी सी संजना   पिंजरे में कैद बुलबुल जैसी गमगीन हो गई. हंसी के बजाय उस की आंखों में पीड़ा झांकने लगी थी. फिर भी कोई शिकायत किए बिना वह पूरे दिन घर के कामों में लगी रहती.

आज अनिल को याद आ रहा था वह दिन जब संजना की मौजूदगी में एक बार उसे बुखार आ गया था. उस वक्त उन की शादी को ज्यादा दिन नहीं हुए थे. तब संजना पूरे दिन  उस के हाथपैरों की मालिश करती रही थी. अनिल कभी संजना से सिर दबाने को कहता, कभी कुछ खाने को मंगाता तो कभी पत्रिकाओं में से कहानियां पढ़ कर सुनाने को कहता  हर समय संजना को अपनी सेवा में लगाए रखता.

एक दिन उस के मन की थाह लेने के लिए अनिल ने पूछा था,” मेरी बीमारी में तुम मुझ से परेशान तो नहीं हो गई? ज्यादा काम तो नहीं करा रहा हूं मैं ?”

संजना ने कुछ कहा नहीं केवल मुस्कुरा भर दिया तो अनिल ने उसे तुलसीदास का दोहा सुनाते हुए कहा था,” धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी…. आपद काल परखिए चारी…. जानती हो इस का मतलब क्या है?”

नहीं तो. आप बताइए क्या मतलब है?” संजना ने गोलगोल आंखें नचाते हुए पूछा तो अनिल ने समझाया,” इस का मतलब है खराब समय में ही धीरज, धर्म, मित्र और औरत की परीक्षा होती है. बुरे समय में पत्नी आप का साथ देती है या नहीं यह देखना जरूरी है. इसी से पत्नी की परीक्षा होती है.”

संजना के बारे में सोचतेसोचते काफी समय तक अनिल यों ही बैठा रहा. तभी उसे याद आया कि उस ने गैस पर दूध चढ़ा रखा है. वह दौड़ता हुआ किचन में घुसा तो देखा आधा से ज्यादा दूर जमीन पर बह गया है और बाकी जल चुका है. भगोना भी काला हो गया है. अनिल सिर पकड़ कर बैठ गया. किचन की सफाई का काम बढ़ गया था. दूध भी फिर से लाना होगा. उधर मां के बिस्तर की सफाई भी करनी थी.

सब काम निबटातेनिबटाते दोपहर के 2 बज गए. दूध के साथ ब्रेड खाते हुए अनिल को फिर से पुराने दिन याद आने लगे. संजना को उस के लिए पिताजी ने पसंद किया था. वह खूबसूरत, पढ़ीलिखी और सुशील लड़की थी. जबकि अनिल कपड़ों का थोक विक्रेता था.

घर में रुपएपैसों की कमी नहीं थी. फिर भी संजना जॉब करना चाहती थी. वह इस बहाने खुली हवा में सांस लेना चाहती थी. मगर अनिल ने उस की यह गुजारिश सिरे से नकार दी थी. अनिल को डर लगने लगा था कि कमला यदि बाहर जाएगी या अपनी सहेलियों से मिलेगी तो वे उसे भड़काएंगी. यही सोच कर उस ने संजना को जॉब करने या सहेलियों से मिलने पर पाबंदी लगा दी.

एक दिन वह दुकान से जल्दी घर लौट आया. उस ने देखा कि कपड़े प्रेस करतेकरते संजना अपनी किसी सहेली से बातें कर रही है. अनिल दबे पांव कमरे में दाखिल हुआ और बिस्तर पर बैठ कर चुपके से संजना की बातें सुनने लगा. वह अपनी सहेली से कह रही थी,” मीना सच कहूं तो कभीकभी दिल करता है इन को छोड़ कर कहीं दूर चली जाऊं. कभीकभी बहुत परेशान करते हैं. मगर उस वक्त सुनयना दीदी का ख्याल आ जाता है. वह इतनी सुंदर हैं पर विधवा होने की वजह से उन की कहीं शादी नहीं हो पाई. कितनी बेबस और अकेली रह गई हैं. एक औरत के लिए दूसरी शादी कर पाना आसान नहीं होता. कभी मन गवाह नहीं देता तो कभी समाज. एक बात बताऊं मीना…” संजना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनिल चीख पड़ा,” संजना फोन रखो. मैं कहता हूं फोन रखो.” डर कर संजना ने फोन रख दिया.

अनिल ने खींच कर एक झापड़ उसे रसीद किया. संजना बिस्तर पर बैठ कर सुबकने लगी. अनिल ने उस के कानों में तुलसीदास का दोहा बुदबुदाया,” ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी …. ये सब ताड़न के अधिकारी….”

संजना ने सवालिया नजरों से अनिल की ओर देखा तो अनिल फिर चीखा,”जानती है इस दोहे का मतलब क्या है? नहीं जानती न. इस का मतलब है कि औरतों को अक्ल सिखाने के लिए उन्हें पीटना जरूरी होता है. वे ताड़न की अधिकारी होती हैं और मैं तेरी जैसी औरतों को पीटना अच्छी तरह जानता हूं. पति की बुराई मोहल्ले भर में करती चलती हो. सहेलियों के आगे बुराइयों का पोथा खोल रखा है. छोड़ कर जाएगी मुझे? क्या कमी रखी है मैं ने? जाहिल औरत बता क्या कमी रखी है?” कहते हुए अनिल ने गर्म प्रेस उस की हथेली पर रख दी.

संजना जोर से चीख उठी. बगल के कमरे से पिताजी दौड़े आए.” बस कर अनिल क्या कर रहा है तू ? चल तेरी मां दवा मांग रही है.”

पिताजी अनिल को खींचते हुए ले गए. फिर संजना देर तक नल के नीचे बहते पानी में हाथ रखी रोती रही. उस दिन संजना के अंदर कुछ टूट गया था. यह चोट फिर कभी ठीक नहीं हुई. उस दिन के बाद संजना ने अपनी सहेलियों से भी बातें करना छोड़ दिया. हंसनाखिलखिलाना सब कुछ छूट गया. वह अनिल के सारे काम करती मगर बिना एक शब्द मुंह से निकाले. रात में जब अनिल उसे अपनी तरफ खींचता तो उसे महसूस होता जैसे बहुत सारे बिच्छूओं ने एक साथ डंक मार दिया हो. पर वह बेबस थी. उसे कोई रास्ता नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

इस तरह जिंदगी के करीब 3 साल बीत गए. उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था. संजना वैसे भी बच्चे के पक्ष में नहीं थी. उसे लगता था कि इतने घुटन भरे माहौल में वह अपने बच्चे को कौन सी खुशी दे पाएगी?

एक दिन वह शाम के समय सब्जी लाने बाजार गई थी. वहीं उस की मुलाकात अपने सहपाठी नीरज से हुई. वह अपने भाई निलय के साथ के सब्जी और फल खरीदने आया था. संजना को देखते ही नीरज ने उसे पुकारा,” कैसी हो संजना पहचाना मुझे?”

नीरज को देख कर संजना का चेहरा खिल उठा,”अरे कैसे नहीं पहचानूंगी. तुम तो कॉलेज के जान थे.”

“पर तुम्हें पहचानना कठिन हो रहा है. कितनी मुरझा गई हो.सब ठीक तो है?” चिंता भरे स्वर में नीरज ने पूछा तो संजना ने सब सच बता दिया.

ढांढस बंधाते हुए नीरज ने संजना का परिचय अपने भाई से कराया,” यह मेरा भाई है. यहीं पास में ही रहता है. बीवी से तलाक हो चुका है. बीवी बहुत रुखे स्वभाव की थी जबकि यह बहुत कोमल हृदय का है. मैं तो जयपुर में रहता हूं मगर तुम्हें जब भी कोई समस्या आए तो मेरे भाई से बात कर सकती हो. यह तुम्हारा पूरा ख्याल रखेगा.”

इस छोटी सी मुलाकात में निलय ने अपना नंबर देते हुए हर मुश्किल घड़ी में साथ  निभाने का वादा किया था.

संजना को जैसे एक आसरा मिल गया था. वैसे भी निलय उसे जिन निगाहों से देख रहा था वे निगाहें घर आने के बाद भी उस का पीछा करती रही थीं. अजीब सी कशिश थी उस की निगाहों में. संजना चाह कर भी निलय को भूल नहीं पा रही थी.

करीब चारपांच दिन बीत गए. हमेशा की तरह संजना अपने घर के कामों में व्यस्त थी कि तभी निलय का फोन आया. उस का नंबर संजना ने सुधा नाम से सेव किया था. संजना ने दौड़ कर फोन उठाया.  निलय की आवाज में एक सुरुर था. वैसे उस ने संजना का हालचाल पूछने के लिए फोन किया था मगर उस के बात करने का अंदाज ऐसा था कि संजना दोतीन दिनों तक फिर से निलय के ख्यालों में गुम रही.

इस बार उसी ने निलय को फोन किया. दोनों देर तक बातें करते रहे. हालचाल से बढ़ कर अब जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर भी बातें होने लगीं थीं. अब हर रोज दोपहर करीब 2- 3 बजे दोनों बातें करने लगे. दोनों ने अपनीअपनी फीलिंग्स शेयर की और फिर एक दिन एकदूसरे के साथ कहीं दूर भाग जाने की योजना भी बना डाली. संजना के लिए यह फैसला लेना कठिन नहीं हुआ था. वह ऐसे भी अनिल से आजिज आ चुकी थी. अनिल ने जिस तरह से उसे मारापीटा और गुलाम बना कर रखा था वह उस के जैसी स्वाभिमानी स्त्री के लिए असहनीय था.

एक दिन अनिल के नाम एक चिट्ठी छोड़ कर संजना निलय के साथ भाग गई. वह कहां गई इस की खबर उस ने अनिल को नहीं दी मगर क्यों गई और किस के साथ गई इन सब बातों की जानकारी खत के माध्यम से अनिल को दे दी. साथ ही उस ने खत में स्पष्ट रूप से लिख दिया था कि वह अनिल को तलाक नहीं देगी और उस के साथ रहेगी भी नहीं.

अनिल के पास हाथ मलने और पछताने के सिवा कोई रास्ता नहीं था. इस बात को डेढ़ साल बीत चुके थे. अनिल की जिंदगी की गाड़ी पटरी से उतर चुकी थी. मन में बेचैनी का असर दुकान पर भी पड़ा. उस का व्यवसाय ठप पड़ने लगा. अनिल के पिता की मौत हो गई और घर के हालात देखते हुए अनिल के भाई ने लव मैरिज की और दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया.

अब अनिल अकेला अपनी बीमार मां के साथ जिंदगी की रेतीली धरती पर अपने कर्मों का हिसाब देने को विवश था. Hindi Sad Story

Love Story in Hindi: प्यार की तलाश

Love Story in Hindi: मेरी कक्षा में पढ़ने वाली नीतू मेरे बैंच से दाईं वाली पंक्ति में, 2 बैंच आगे बैठती थी. वह दिखने में साधारण थी पर उस में दूसरों से हट कर कुछ ऐसा आकर्षण था कि जब मैं ने पहली बार उसे देखा तो बस देखता ही रह गया… वह अपनी सहेलियों के साथ हंसतीखिलखिलाती रहती और मैं उसे चोरीछिपे देखता रहता.

नीतू मेरी जिंदगी में, उम्र के उस मोड़ पर जिसे किशोरावस्था कहते हैं और जो जवानी की पहली सुबह के समान होती है, उस सुबह की रोशनी बन कर आई थी वह. उस सुखद परिवर्तन ने मेरे जीवन में जैसे रंग भर दिया था. मैं हमेशा अपने में मस्त रहता. पढ़ाई में भी मेरा ध्यान पहले से अधिक रहता. मम्मीपापा टोकते, उस से पहले ही मैं पढ़ने बैठ जाता और सुबहसुबह स्कूल जाने के लिए हड़बड़ा उठता.

आज सोचता हूं तो लगता है, काश, वक्त वहीं ठहर जाता. नीतू मुझ से कभी जुदा न होती, पर जीवन के सुनहरे दिन, कितने जल्दी बीत जाते हैं. मेरा स्कूली जीवन कब पीछे छूट गया, पता ही नहीं चला.

मैट्रिक की परीक्षा के बाद, नीतू जैसे हमेशा के लिए मुझ से जुदा हो गई. मैं उस के घर का पता जानता था, लेकिन जब यह पता चला कि नीतू कालेज की पढ़ाई के लिए अपने मामा के यहां चली गई है तो मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया. मेरे पास कुछ था तो बस उस की यादें, उस के लिखे खत और स्कूल में मिली वह तसवीर, जिस में साथ पढ़ने वाले सभी विद्यार्थी और शिक्षक एक कतार में खड़े थे और नीतू एक कोने में खड़ी मुसकरा रही थी.

मैं नीतू की यादों में खोया, डायरी के पन्ने पलटता जा रहा था, तभी दरवाजे पर दस्तक सुन कर चौंक गया. नजरें उठा कर देखा तो सामने सुनयना खड़ी थी. अचानक उसे देख कर मैं हड़बड़ा गया, ‘‘कहिए, क्या बात है?’’ मैं ने डायरी बंद करते हुए कहा.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकती हूं…’’ सुनयना मेरी मनस्थिति भांप कर मुसकराते हुए बोली.

‘‘हां… हां, आइए न बैठिए,’’ मैं ने जैसे शरमा कर कहा.

‘‘मैं ने आप को डिस्टर्ब कर दिया. शायद आप कुछ लिख रहे थे…’’ सुनयना डायरी की ओर देख रही थी.

‘‘बस डायरी है…’’ मैं ने डायरी पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, आप डायरी लिखते हैं, क्या मैं देख सकती हूं?’’ सुनयना की आंखों में पता नहीं क्यों चमक आ गईर् थी.

‘‘किसी की पर्सनल डायरी नहीं देखनी चाहिए,’’ मैं ने मुसकरा कर मना करने के उद्देश्य से कहा क्योंकि वैसे भी वह डायरी मैं उसे नहीं दिखा सकता था.

‘‘क्या हम इतने गैर हैं?’’ सुनयना नाराज तो नहीं लग रही थी पर अपने चिरपरिचित अंदाज में मुंह बना कर बोली.

‘‘मैं ने ऐसा तो नहीं कहा,’’ मैं ने फिर मुसकराने का प्रयास किया.

‘‘खैर, छोडि़ए. पर कभी तो मैं आप की डायरी पढ़ कर ही रहूंगी,’’ सुनयना के चेहरे पर अब बनावटी नाराजगी थी. उस ने अपनी झील जैसी बड़ीबड़ी आंखों से मुझे घूरते हुए कहा, ‘‘…अभी चलिए, आप को बुलाया जा रहा है.‘‘

बैठक में भैयाभाभी सभी बैठे हुए थे. अंत्याक्षरी खेलने का कार्यक्रम बनाया गया था पर मेरा मन तो कहीं दूर था, लेकिन मना कैसे करता? न चाह कर भी खेलने बैठ गया. सुनयना पूरे खेल के दौरान, अपने गीतों से मुझे छेड़ने का प्रयास करती रही.

सुनयना मेरी भाभी की छोटी बहन थी. अपने नाम के अनुरूप ही उस की गहरी नीली झील सी आंखें थीं. वह थी भी बहुत खूबसूरत. उस के चेहरे से हमेशा एक आभा सी फूटती नजर आती. उस के काले, घने, चमकदार बाल कमर तक अठखेलियां करते रहते. वह हमेशा चंचल हिरनी के समान फुदकती फिरती. वह बहुत मिलनसार और बिलकुल खुले दिल की लड़की थी. यही वजह थी कि उसे सब बहुत पसंद करते थे और मजाक में ही सही, पर सभी ये कहते, इस घर की छोटी बहू कोई बनेगी तो सिर्फ सुनयना ही बनेगी. मैं सुन कर बिना किसी प्रतिक्रिया के चुपचाप रह जाता पर कभीकभार ऐसा लगता जैसे मेरी इच्छा, मेरी भावनाओं से किसी को कोईर् लेनादेना नहीं है पर मैं दोष देता तो किसे देता. किसी को तो पता ही नहीं था कि मेरे दिल में जो लड़की बसी है, वह सुनयना नहीं नीतू है.

दूसरे दिन सुनयना वापस जा रही थी. भाभी ने आ कर मुझे उसे घर तक छोड़ने को कहा. मैं जान रहा था, यह मेरे और सुनयना को ले कर घर वालों के मन में जो खिचड़ी पक रही है, उसी साजिश का हिस्सा है पर अंदर ही अंदर मैं खुश भी था… मैं मन ही मन सोच रहा था, ’आज रास्ते में सुनयना के सामने सारी बातें स्पष्ट कर दूंगा.’

सुनयना मेरे पीछे चिपक कर बैठी हुई थी. मैं आदतन सामान्य गति से मोटरसाइकिल चला रहा था. वह अपनी हरकतों से मुझे बारबार छेड़ने का प्रयास कर रही थी. मैं चाह कर भी उसे टोक नहीं पा रहा था. वह बीचबीच में ‘नदिया के पार’ फिल्म का गाना गुनगुनाने लगती और रास्तेभर तरहतरह की बातों से मुझे उकसाने का प्रयास करती रही. पर मैं थोड़ाबहुत जवाब देने के अलावा बस, कभीकभार मुसकरा देता.

जब हम शहर की भीड़भाड़ से बाहर, खुली सड़क पर निकले तो दृश्य भी ‘नदिया के पार’ फिल्म के जैसा ही था, बस अंतर इतना था कि मेरे पास ‘बैलगाड़ी’ की जगह मोटरसाइकिल थी. सड़क के दोनों किनारे कतार में खड़े बड़ेबड़े पेड़ थे. सामने दोनों तरफ खेतों में लहलहाती फसलें और वनों से आच्छादित पहाडि़यों की शृंखलाएं नजर आ रही थीं.

बड़ा ही मनोरम दृश्य था. मेरा मन अनायास ही उमंग से भर उठा. लगा जैसे सुनयना का साथ दे कर मैं भी कोई गीत गुनगुनाऊं. पर अचानक नीतू का खयाल आते ही मैं फिर से गंभीर हो उठा. मैं ने मन ही मन सोचा कि मुझे नीतू के बारे में सुनयना को स्पष्ट बता देना चाहिए. पर पता नहीं क्यों मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. बहुत कोशिश के बाद, किसी तरह खुद को संयत करते हुए मैं ने कहा, ‘‘सुनयनाजी, मैं आप से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘जी…’’ शायद सुनयना ठीक से सुन नहीं पाई थी.

मैं ने मोटरसाइकिल की गति, धीमी करने के बाद, फिर से कहा, ‘‘मैं आप से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कोई सीरियस बात है?’’ सुनयना कुछ इस तरह मजाकभरे लहजे में बोली, जैसे मेरे जज्बातों से वह अच्छी तरह वाकिफ हो.

मगर मैं जो कहने जा रहा था, शायद उस से उस का दिल टूट जाने वाला था. सो मैं ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘मैं आप को जो बताने जा रहा हूं, मैं ने आज तक किसी से नहीं कहा है. दरअसल, मैं एक लड़की से प्यार करता हूं. उस लड़की का नाम नीतू है. वह मेरे साथ पढ़ती थी. हम दोनों एकदूसरे को बहुत चाहते हैं और मैं उसी से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘आप कहीं मजाक, तो नहीं कर रहे…’’ सुनयना को मेरी बातों पर यकीन नहीं हुआ.

‘‘यह मजाक नहीं, सच है,’’ मैं ने फिर गंभीर हो कर कहा, ‘‘मैं यह बात बहुत पहले सब को बता देना चाहता था पर कभी हिम्मत नहीं कर पाया. दरअसल, मैं इस बात से डर जाता था कि कहीं घर वाले यह न समझ लें कि मैं पढ़नेलिखने की उम्र में भटक गया हूं. पर अब मेरे सामने कोई मजबूरी नहीं है. मैं अपने पैरों पर खड़ा हो चुका हूं.‘‘

‘‘शशिजी, आप सचमुच बहुत भोले हैं,’’ इस बार सुनयना के लहजे में भी गंभीरता थी, वह मुसकराने का प्रयास करती हुई बोली, ‘‘एक तरफ आप प्यार की बातें करते हैं और दूसरी तरफ रिऐक्शन के बारे में भी सोचते हैं. ये बात आप को बहुत पहले सब को बता देनी चाहिए थी. मुझे पूरी उम्मीद है कि आप की पसंद सब को पसंद आएगी. फिर बात जब शादी की हो तो मेरे विचार से अपने दिल की ही बात सुननी चाहिए. चूंकि यह पल दो पल का खेल नहीं, जिंदगीभर का सवाल होता है.’’ सुनयना सहजता से बोल गई. ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे मन की बात जान कर उसे कोई खास फर्क न पड़ा हो.

इस तरह उस के सहयोगात्मक भाव से मेरे दिल का बोझ जो एक तरह से उस को ले कर था, उतरता चला गया.

सुनयना को घर छोड़ कर लौटते वक्त मेरे मन में हलकापन था. लेकिन अंदर कहीं एक खामोशी भी छाई हुई थी. पता नहीं क्यों? सुनयना की आंखों से जो दर्द, विदा लेते वक्त झलका था, मुझे बारबार अंदर ही अंदर कचोट रहा था.

रात को खाना खा कर मैं जल्दी ही बिस्तर पर लेट गया क्योंकि सुबह किसी भी हालत में मुझे नीतू के  पास जाना था. लेकिन नींद आ ही नहीं रही थी. बस करवटें बदलता रहा. मन में तरहतरह के विचार आजा रहे थे. इसी उधेड़बुन में कब नींद आ गई, पता ही न चला.

सुबह घर के सामने स्थित पीपल के पेड़ से आ रही चिडि़यों की चहचहाट से मेरी नींद खुली. चादर हटा कर देखा, प्र्रभात की लाली खिड़की में लगे कांच से छन कर कमरे के अंदर आ रही है. आज शायद मैं देर से सोने के बावजूद जल्दी उठ गया था क्योंकि देर होने पर मां जगाने जरूर आती थीं. मैं उठ कर चेहरे पर पानी छिड़क कर, कुल्ला कर के अपने कमरे से निकला.

बैठक में मेज पर अखबार पड़ा हुआ था. आदतन अखबार ले कर कुरसी पर बैठ गया और हमेशा की तरह खबरों की हैडलाइन पढ़ते हुए अखबार के पन्ने पलटने लगा. तभी अचानक मेरी नजर अखबार में छपी एक खबर पर अटक गई. मोटेमोटे अक्षरों में लिखा था, ‘थाना परिसर में प्रेमीप्रेमिका परिणयसूत्र में बंधे.’ हैडलाइन पढ़ कर मेरा दिल धक से रह गया, ‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता,‘ मैं ने सोचा.

खबर कोई अनोखी या विचित्र थी, ऐसी बात न थी, लेकिन जो तसवीर छपी थी मैं ने एक दीर्घ श्वास ले कर पढ़ना शुरू किया. वह नीतू ही थी. खबर में उस के घर का पताठिकाना स्पष्ट रूप से लिखा था. यहां तक कि वह लड़का भी उस के मामा  के महल्ले का ही था. दोनों के बीच 2 साल से प्रेम चल रहा था. घर वालों के विरोध के चलते दोनों भाग कर थाने आ गए थे.

खबर पढ़ कर मैं सन्न रह गया. मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि नीतू ऐसा कर सकती है. मैं ने मन ही मन अपनेआप से ही प्रश्न किया, ‘अगर इस लड़के के साथ, यह उस का प्रेम है तो 4-5 साल पहले मेरे साथ जो हुआ था, वह क्या था? क्या 4-5 साल का अंतराल किसी के दिल से किसी की याद, किसी का प्यार भुला सकता है? मैं उसे हर दिन, हर पल याद करता रहा, उस की तसवीर अपने सीने से लगाए रहा और उस ने मेरे बारे में तनिक भी न सोचा. क्या प्यार के मामले में भी किसी का स्वभाव ऐसा हो सकता है कि उस पर विश्वास करने वाला अंत में बेवकूफ बन कर रह जाए? मैं ने तो अब तक सुना था, प्यार का दूसरा नाम, इंतजार भी होता है पर उस ने मेरा इंतजार नहीं किया.’

मेरा मन घृणा और दुख से भर उठा. मैं किसी तरह खुद को संभालते हुए अखबार को कुरसी पर ही रख कर, धीरेधीरे उठा और अपने कमरे में जा कर फिर बिस्तर पर लुढ़क गया. ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मेरे अंदर थोड़ी सी भी जिजीविषा शेष न हो, जैसे मैं दुनिया का सब से दीन आदमी हूं, आंखों से अपनेआप आंसू छलके जा रहे थे.

सामने टेबल पर वही तसवीर थी. जिस में नीतू अब भी मेरी ओर देख कर मुसकरा रही थी, जैसे मेरे जज्बातों से मेरे दिल के दर्द से, उसे कोईर् लेनादेना न हो. जी में आया तसवीर को उठा कर खिड़की से बाहर फेंक दूं कि तभी मां चाय ले कर आ गईं, ‘’अरे, तू फिर सो रहा है क्या? अभी तो पेपर पढ़ रहा था.‘’

मैं ने झटपट अपने चेहरे पर हाथ रख कर पलकों पर उंगलियां फिराते हुए अपने आंसू छिपाते हुए कहा, ‘’नहीं, सिर थोड़ा भारी लग रहा है.‘’

‘‘रात को देर से सोया होगा. पता नहीं रातरात भर जाग कर क्या लिखता रहता है? ले, चाय पी ले, इस से थोड़ी राहत मिलेगी,‘‘ चाय का कप हाथ में थमा कर

मेरे माथे पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरते हुए मां ने कहा, ‘‘तेल ला कर थोड़ी मालिश कर देती हूं.’

‘‘नहीं ठीक है, मां, वैसा दर्द नहीं है. शायद देर से सोया था. इसलिए ऐसा लग रहा है,‘‘ मैं ने फिर बात बना कर कहा.

मां जब कमरे से निकल गईं तो मैं किसी तरह अपनेआप को समझाने की कोशिश करने लगा. पर दिल में उठ रही टीस, जैसे बढ़ती ही जा रही थी. मन कह रहा था, जा कर एक बार उस बेवफा से मिल आओ. आखिर उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? क्या वह इंतजार नहीं कर सकती थी? उन वादों, कसमों को वह कैसे भूल गई, जो हम ने स्कूल से विदाई की उस आखिरी घड़ी में, एकदूसरे के सामने खाई थीं.

न चाहते हुए भी मेरे मन में, रहरह कर सवाल उठ रहे थे. अपनेआप को समझाना जैसे मुश्किल होता जा रहा था. मन की पीड़ा जब बरदाश्त से बाहर होने लगी तो मैं फिर से बिस्तर पर लेट गया. उसी वक्त अचानक भाभी मेरे कमरे में आईं. उन्हें अचानक सामने देख कर मैं घबरा गया. किसी तरह अपने मनोभाव छिपा कर मैं बिस्तर से उठा.

कुछ देर पहले भाभी के मायके से फोन आया था. सुनयना की तबीयत बहुत खराब थी. वह कल ही तो यहां से गई थी. अचानक पता नहीं उसे क्या हो गया? भाभी काफी चिंतित थीं. भैया को औफिस के जरूरी काम से कहीं बाहर जाना था इसलिए मुझे भाभी के साथ सुनयना को देखने जाना पड़ा.

सुनयना बिस्तर पर पड़ी हुई थी. कुछ देर पहले डाक्टर दवा दे गया था. वह अभी भी बुखार से तप रही थी. उस की आंखें सूजी हुई थीं, देख कर ही लग रहा था, जैसे वह रातभर रोई हो.

मैं सामने कुरसी पर चुपचाप बैठा था. भाभी उस के पास बैठीं, उस के बालों को सहला रही थीं. सुनयना बोली तो कुछ नहीं, पर उस की आंखों से छलछला रहे आंसू पूरी कहानी बयान कर रहे थे. सारा माजरा समझ कर भाभी मुझे किसी अपराधी की तरह घूरने लगीं. मैं सिर झुकाए चुपचाप बैठा था. कुछ देर बाद, भाभी कमरे से निकल गईं.

कमरे में सिर्फ हम दोनों थे. सुनयना जैसे शून्य में कुछ तलाश रही थी. उसे देख कर मेरी आंखों में भी आंसू आ गए. अचानक महसूस हुआ कि यदि अब भी मैं ने सामने स्थित जलाशय को ठुकरा कर मृगमरीचिका के पीछे भागने का प्रयास किया तो शायद अंत में पछतावे के सिवा मेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा. मैं ने बिना देर किए सुनयना के पास जा कर, याचना भरे स्वर में कहा, ‘‘सुनयनाजी, मैं ने आप से जो कहा था, वह मेरा भ्रम था. मैं ने बचपन के खेल को प्यार समझ लिया था. मुझे आज ही पता चला कि उस लड़की ने एक दूसरे लड़के से प्रेम विवाह कर लिया है. मैं नादानी में आप से पता नहीं क्याक्या कह गया…‘’

सुनयना अपनी डबडबाई आंखों से अब भी शून्य में निहार रही थी. कुछ देर रुक कर, मैं ने फिर कहा, ‘‘कुदरत जिंदगी में सब को सच्चा हमदर्द देती है पर अकसर हम उसे ठुकरा देते हैं. मैं ने भी शायद, ऐसा ही किया है. लड़कपन से अब तक ख्वाबों के पीछे भागता रहा,’’ मेरा गला भर आया था.

सुनयना मुझे टुकुरटुकुर देख रही थी. उस की आंखों से टपकते आंसू उस के गालों पर लुढ़क रहे थे. मुझे पहली बार उस की आंखों में अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.

मैं ने किसी छोटे बच्चे की तरह भावुक हो कर कहा, ‘‘देखो, मुझे मत ठुकराना, वरना मैं जी नहीं पाऊंगा,’’ और हाथ बढा़ कर उस के गालों को छू रहे आंसुओं को पोंछने लगा.

सुनयना के होंठ कुछ कहने के प्रयास में थरथरा उठे. पर जब वह कुछ बोल न पाई तो अचानक मुझ से लिपट कर जोरजोर से सुबकने लगी. मैं ने भी उसे कस कर अपनी बांहों में भर लिया. हम दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे. मैं सोच रहा था, ‘मुझे अब तक क्यों पता नहीं चला कि हमेशा चंचल, बेफिक्र और नादान सी दिखने वाली इस लड़की के दिल में मेरे लिए इतना प्यार छिपा था.’

भाभी दरवाजे के पास खड़ीं मुसकरा रही थीं. पर उन की आंखों में भी खुशी के आंसू थे. Love Story in Hindi

Family Kahani: पछतावा- आखिर दीनानाथ की क्या थी गलती

Family Kahani: दीनानाथ नगरनिगम में चपरासी था. वह स्वभाव से गुस्सैल था. दफ्तर में वह सब से झगड़ा करता रहता था. उस की इस आदत से सभी दफ्तर वाले परेशान थे, मगर यह सोच कर सहन कर जाते थे कि गरीब है, नौकरी से हटा दिया गया, तो उस का परिवार मुश्किल में आ जाएगा.

दीनानाथ काम पर भी कई बार शराब पी कर आ जाता था. उस के इस रवैए से भी लोग परेशान रहते थे. उस के परिवार में पत्नी शांति और 7 साल का बेटा रजनीश थे. शांति अपने नाम के मुताबिक शांत रहती थी. कई बार उसे दीनानाथ गालियां देता था, उस के साथ मारपीट करता था, मगर वह सबकुछ सहन कर लेती थी.

दीनानाथ का बेटा रजनीश तीसरी जमात में पढ़ता था. वह पढ़ने में होशियार था, मगर अपने एकलौते बेटे के साथ भी पिता का रवैया ठीक नहीं था. उस का गुस्सा जबतब बेटे पर उतरता रहता था.

‘‘रजनीश, क्या कर रहा है? इधर आ,’’ दीनानाथ चिल्लाया.

‘‘मैं पढ़ रहा हूं बापू,’’ रजनीश ने जवाब दिया.

‘‘तेरा बाप भी कभी पढ़ा है, जो तू पढ़ेगा. जल्दी से इधर आ.’’

‘‘जी, बापू, आया. हां, बापू बोलो, क्या काम है?’’

‘‘ये ले 20 रुपए, रामू की दुकान से सोडा ले कर आ.’’

‘‘आप का दफ्तर जाने का समय हो रहा है, जाओगे नहीं बापू?’’

‘‘तुझ से पूछ कर जाऊंगा क्या?’’ इतना कह कर दीनानाथ ने रजनीश के चांटा जड़ दिया.

रजनीश रोता हुआ 20 रुपए ले कर सोडा लेने चला गया. दीनानाथ सोडा ले कर शराब पीने बैठ गया.

‘‘अरे रजनीश, इधर आ.’’

‘‘अब क्या बापू?’’

‘‘अबे आएगा, तब बताऊंगा न?’’

‘‘हां बापू.’’

‘‘जल्दी से मां को बोल कि एक प्याज काट कर देगी.’’

‘‘मां मंदिर गई हैं… बापू.’’

‘‘तो तू ही काट ला.’’

रजनीश प्याज काट कर लाया. प्याज काटते समय उस की आंखों में आंसू आ गए, पर पिता के डर से वह मना भी नहीं कर पाया. दीनानाथ प्याज चबाता हुआ साथ में शराब के घूंट लगाने लगा. शाम के 4 बज रहे थे. दीनानाथ की शाम की शिफ्ट में ड्यूटी थी. वह लड़खड़ाता हुआ दफ्तर चला गया.

यह रोज की बात थी. दीनानाथ अपने बेटे के साथ बुरा बरताव करता था. वह बातबात पर रजनीश को बाजार भेजता था. डांटना तो आम बात थी. शांति अगर कुछ कहती थी, तो वह उस के साथ भी गालीगलौज करता था. बेटे रजनीश के मन में पिता का खौफ भीतर तक था. कई बार वह रात में नींद में भी चीखता था, ‘बापू मुझे मत मारो.’

‘‘मां, बापू से कह कर अंगरेजी की कौपी मंगवा दो न,’’ एक दिन रजनीश अपनी मां से बोला.

‘‘तू खुद क्यों नहीं कहता बेटा?’’ मां बोलीं.

‘‘मां, मुझे बापू से डर लगता है. कौपी मांगने पर वे पिटाई करेंगे,’’ रजनीश सहमते हुए बोला.

‘‘अच्छा बेटा, मैं बात करती हूं,’’ मां ने कहा.

‘‘सुनो, रजनीश के लिए कल अंगरेजी की कौपी ले आना.’’

‘‘तेरे बाप ने पैसे दिए हैं, जो कौपी लाऊं? अपने लाड़ले को इधर भेज.’’

रजनीश डरताडरता पिता के पास गया. दीनानाथ ने रजनीश का कान पकड़ा और थप्पड़ लगाते हुए चिल्लाया, ‘‘क्यों, तेरी मां कमाती है, जो कौपी लाऊं? पैसे पेड़ पर नहीं उगते. जब तू खुद कमाएगा न, तब पता चलेगा कि कौपी कैसे आती है? चल, ये ले 20 रुपए, रामू की दुकान से सोडा ले कर आ…’’

‘‘बापू, आज आप शराब बिना सोडे के पी लो, इन रुपयों से मेरी कौपी आ जाएगी…’’

‘‘बाप को नसीहत देता है. तेरी कौपी नहीं आई तो चल जाएगा, लेकिन मेरी खुराक नहीं आई, तो कमाएगा कौन? अगर मैं कमाऊंगा नहीं, तो फिर तेरी कौपी नहीं आएगी…’’ दीनानाथ गंदी हंसी हंसा और बेटे को धक्का देते हुए बोला, ‘‘अबे, मेरा मुंह क्या देखता है. जा, सोडा ले कर आ.’’

दीनानाथ की यह रोज की आदत थी. कभी वह बेटे को कौपीकिताब के लिए सताता, तो कभी वह उस से बाजार के काम करवाता. बेटा पढ़ने बैठता, तो उसे तंग करता. घर का माहौल ऐसा ही था. इस बीच रात में शांति अपने बेटे रजनीश को आंचल में छिपा लेती और खुद भी रोती.

दीनानाथ ने बेटे को कभी वह प्यार नहीं दिया, जिस का वह हकदार था. बेटा हमेशा डराडरा सा रहता था. ऐसे माहौल में भी वह पढ़ता और अपनी जमात में हमेशा अव्वल आता. मां रजनीश से कहती, ‘‘बेटा, तेरे बापू तो ऐसे ही हैं. तुझे अपने दम पर ही कुछ बन कर दिखाना होगा.’’

मां कभीकभार पैसे बचा कर रखती और बेटे की जरूरत पूरी करती. बाप दीनानाथ के खौफ से बेटे रजनीश के बाल मन पर ऐसा डर बैठा कि वह सहमासहमा ही रहता. समय बीतता गया. अब रजनीश 21 साल का हो गया था. उस ने बैंक का इम्तिहान दिया. नतीजा आया, तो वह फिर अव्वल रहा. इंटरव्यू के बाद उसे जयपुर में पोस्टिंग मिल गई. उधर दीनानाथ की झगड़ा करने की आदत से नगरनिगम दफ्तर से उसे निकाल दिया गया था.

घर में खुशी का माहौल था. बेटे ने मां के पैर छुए और उन से आशीर्वाद लिया. पिता घर के किसी कोने में बैठा रो रहा था. उस के मन में एक तरफ नौकरी छूटने का दुख था, तो दूसरी ओर यह चिंता सताने लगी थी कि बेटा अब उस से बदला लेगा, क्योंकि उस ने उसे कोई सुख नहीं दिया था.

मां रजनीश से बोलीं, ‘‘बेटा, अब हम दोनों जयपुर रहेंगे. तेरे बापू के साथ नहीं रहेंगे. तेरे बापू ने तुझे और मुझे जानवर से ज्यादा कुछ नहीं समझा…

‘‘अब तू अपने पैरों पर खड़ा हो गया है. तेरी जिंदगी में तेरे बापू का अब मैं साया भी नहीं पड़ने दूंगी.’’

रजनीश कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘नहीं मां, मैं बापू से बदला नहीं लूंगा. उन्होंने जो मेरे साथ बरताव किया, वैसा बरताव मैं नहीं करूंगा. मैं अपने बेटे को ऐसी तालीम नहीं देना चाहता, जो मेरे पिता ने मुझे दी.’’

रजनीश उठा और बापू के पैर छू कर बोला, ‘‘बापू, मैं अफसर बन गया हूं, मुझे आशीर्वाद दें. आप की नौकरी छूट गई तो कोई बात नहीं, मैं अब अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूं. चलो, आप अब जयपुर में मेरे साथ रहो, हम मिल कर रहेंगे.‘‘

यह सुन कर दीनानाथ की आंखों में आंसू आ गए. वह बोला, ‘‘बेटा, मैं ने तुझे बहुत सताया है, लेकिन तू ने मेरा साथ नहीं छोड़ा. मुझे तुझ पर गर्व है.’’

दीनानाथ को अपने किए पर खूब पछतावा हो रहा था. रजनीश ने बापू की आंखों से आंसू पोंछे, तो दीनानाथ ने खुश हो कर उसे गले लगा लिया. Family Kahani

Social Story: मेवानिवृत्ति- मीराजी की क्या था कहानी

Social Story: सरकारी मुलाजिम के 60 साल पूरे होने पर उस के दिन पूरे हो जाते हैं. कोईर् दूसरा क्या, वे खुद ही कहते हैं कि सेवानिवृत्ति के समय घूरे समान हो जाते हैं. 60 साल पूरे होने को सेवानिवृत्ति कहते हैं. उस वक्त सब से ज्यादा आश्चर्य सरकारी आदमी को ही होता है कि उस ने सेवा ही कब की थी कि उसे अब सेवानिवृत्त किया जा रहा है. यह सब से बड़ा मजाक है जोकि सरकार व सरकारी कार्यालय के सहकर्मी उस के साथ करते हैं. वह तो अंदर ही अंदर मुसकराता है कि वह पूरे सेवाकाल में मेवा खाने में ही लगा रहा.

इसे सेवाकाल की जगह मेवाकाल कहना ज्यादा उपयुक्त प्रतीत होता है. सेवा किस चिडि़या का नाम है, वह पूरे सेवाकाल में अनभिज्ञ था. वह तो सेवा की एक ही चिडि़या जानता था, अपने लघु हस्ताक्षर की, जिस के ‘एक दाम, कोई मोलभाव नहीं’ की तर्ज पर दाम तय थे. एक ही दाम, सुबह हो या शाम.

आज लोगों ने जब कहा कि सेवानिवृत्त हो रहे हैं तो वह बहुत देर तक दिमाग पर जोर देता रहा कि आखिर नौकरी की इस सांध्यबेला में तो याद आ जाए कि आखिरी बार कब उस ने वास्तव में सेवा की थी. जितना वह याद करता, मैमोरी लेन से सेवा की जगह मेवा की ही मैमोरी फिल्टर हो कर कर सामने आती. सो, वह शर्मिंदा हो रहा था सेवानिवृत्ति शब्द बारबार सुन कर.

सरकारी मुलाजिम को शर्म से पानीपानी होने से बचाने के लिए आवश्यक है कि 60 साल का होने पर अब उसे सेवानिवृत्त न कहा जाए? इस के स्थान पर सटीक शब्द वैसे यदि कोई हो सकता है तो वह है ‘मेवानिवृत्त’, क्योंकि वह पूरे कैरियर में मेवा खाने का काम ही तो करता है. यदि उसे यह खाने को नहीं मिलता तो यह उस के मुवक्किल ही जान सकते हैं कि वे अपनी जान भी दे दें तो भी उन के काम होते नहीं. बिना मेवा के ये निर्जीव प्राणी सरीखे दिखते हैं और जैसे ही मेवा चढ़ा, फिर वे सेवादार हो जाते हैं. वैसे, आप के पास इस से अच्छा कोईर् दूसरा शब्द हो तो आप का स्वागत है.

आज आखिरी दिन वह याद करने की कोशिश कर रहा था कि उस ने सेवाकाल में सेवा की, तो कब की? उसे याद आया कि ऐसा कुछ उस की याददाश्त में है ही नहीं जिसे वह सेवा कह सके. वह तो बस नौकरी करता रहा. एक समय तो वह मेवा ले कर भी काम नहीं कर पाने के लिए कुख्यात हो गया था. क्या करें, लोग भी बिना कहे मेवा ले कर टपक जाते थे. चाहे जीवनधारा में कुआं मंजूर करने की बात हो या कि टपक सिंचाई योजना में केस बनाने की बात, सीमांकन हो या बिजली कनैक्शन का केस, वह क्या करे, वह तो जो सामने ले आया, उसे गटक जाता था. और ऐसी आदत घर कर गई थी कि यदि कोई सेवादार बन कर न आए तो ऐसे दागदार को

वह सीधे उसे फाटक का रास्ता दिखा देता था.

दिनभर में वह कौन सी सेवा करता था, उसे याद नहीं आ रहा था? सुबह एक घंटे लेट आता था, यह तो सेवा नहीं हुई. एक घंटे का समयरूपी मेवा ही हो गया. फिर आने के घंटेभर बाद ही उस को चायबिस्कुट सर्व हो जाते थे. यह भी मेवा जैसा ही हुआ. मिलने वाले घंटों बैठे रहते थे, वह अपने कंप्यूटर या मोबाइल में व्यस्त रहता था. काहे की सेवा हुई, यह भी इस का मेवा ही हुआ.

कंप्यूटर व मोबाइल में आंख गड़ाए रहना जबकि बाहर दर्जनों मिलने वाले इस के कक्ष की ओर आंख गड़ाए रहते थे कि अब बुलाएगा, तब बुलाएगा. लेकिन इसे फुरसत हो, तब भी इंतजार तो कराएगा ही कराएगा. फिर भी इसे सरकारी सेवक कहते हैं.

60 साल पूरे होने पर सेवानिवृत्त हो रहे हैं. कहते हैं, इस सदी का सब से बड़ा झूठ यही है, कम से कम

भारत जैसे देश के लिए जहां कि सेवा नहीं मेवा उद्देश्य है. सरकारीकर्मी आपस में कहते भी हैं कि ‘सेवा देवई मेवा खूबई.’

वह बिलकुल डेढ़ बजे लंच पर निकल जाता था. चाहे दूरदराज से आए किसी व्यक्ति की बस या ट्रेन छूट रही हो, उसे उस से कोई मतलब नहीं रहता था. उसे तो अपने टाइमटेबल से मतलब रहता था. उस के लिए क्लब में सारा इंतजाम हो जाए. यही उस की सेवा थी जनता के प्रति.

सेवानिवृत्त वह नहीं हो रहा था बल्कि वह जनता हो रही थी, मातहत हो रहे थे जो उस की देखभाल में लगे रहते थे. अब उस के 60 साल के हो जाने से उन्हें निवृत्ति मिल रही थी बेगारी से. लेकिन असली सेवानिवृत्त को कोई माला नहीं पहनाता.

हर साल उसे वेतनवृद्धि चाहिए, अवकाश, नकदीकरण चाहिए, मैडिकल बैनिफिट चाहिए, एलटीसी चाहिए, नाना प्रकार के लोन चाहिए. यह उस की सेवा है

कि बीचबीच में मेवा का इंतजाम है?

सरकार को गंभीरता से विचार कर के सेवानिवृत्ति की जगह मेवानिवृत्ति शब्द को मान्यता दे देनी चाहिए. वैसे, गंगू कहता भी है कि सेवानिवृत्ति से कहीं सटीक व ठीक शब्द मेवानिवृत्ति है.

ऐसा भी होता है हमारे आसपास रिश्तेनाते में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो भावनाहीन तथा रुखे स्वभाव के होते हैं.

हम एक रिश्तेदार के यहां उन्हें दावत के लिए निमंत्रण देने गए. हमें खुशी थी कि इसी निमंत्रण के बहाने हम उन के घर भी हो आएंगे तथा वे खुश होंगे. लेकिन जब उन के घर पहुंच कर हम ने उन्हें जोर दे कर आने के लिए कहा तो वे बोले, ‘‘अरे, इतनी सी बात के लिए आने का कष्ट क्यों किया आप लोगों ने. यह तो फोन से भी बता सकती थीं.’’

इतना सुनते ही हम हतप्रभ रह गए और हम ने कहा, ‘‘क्या आप को हमारे आने से तकलीफ हुई?’’

हमारी बात सुन कर वे सफाई देने लगे कि नहीं, ऐसी बात बिलकुल भी नहीं है. हम तो आप को तकलीफ नहीं देना चाहते थे.

हम सब मन ही मन उन के अमानवीय व्यवहार से आहत हुए. उस दिन हमें प्रेरणा मिली कि दुनिया में हर तरह के लोगों से मिलना होता है. इन्हें कौन समझाए कि किसी की भावना का सम्मान करते हुए ही शब्द निकालने चाहिए. मायारानी श्रीवास्तव मेरे पड़ोस में मीराजी रहती हैं. वे एक विद्यालय में सहायक अध्यापिका हैं. एक बार रविवार को वे खाना बना रही थीं कि उन के मायके से कुछ लोग आ गए. दाल वे बना चुकी थीं. लेकिन सब लोगों ने मिल कर बाहर खाने का प्रोग्राम बनाया.

मीराजी ने दाल फ्रिज में रख दी और सब के साथ होटल में खाने चली गईं. इस तरह उन के मायके वाले उन के घर 2 दिनों तक रहे और वे उन की खातिरदारी में लगी रहीं.

सब के जाने के बाद मीराजी के पति बोले, ‘‘मीरा देखो, यह दाल फ्रिज में रखी है, खा कर क्यों नहीं खत्म कर देती हो?’’

मीराजी बोलीं, ‘‘अब यह 2 दिन पुरानी बासी दाल हम लोगों के खाने लायक नहीं है, पर फेंकना मत, 220 रुपए किलो खरीदी हुई दाल है.’’

शाम को कामवाली आई तो मीराजी उस को दाल देते हुए बोलीं, ‘‘आज दाल बहुत बच गई है, तुम और बच्चे खा लेना.’’

बात सोचने की है कि जो दाल उन के खाने लायक नहीं, क्या कामवाली के लिए ठीक थी? Social Story

Motivational Story in Hindi: एक तीर दो शिकार

Motivational Story in Hindi: अटैची हाथ में पकड़े आरती ड्राइंगरूम में आईं तो राकेश और सारिका चौंक कर खडे़ हो गए.

‘‘मां, अटैची में क्या है?’’ राकेश ने माथे पर बल डाल कर पूछा.

‘‘फ्रिक मत कर. इस में तेरी बहू के जेवर नहीं. बस, मेरा कुछ जरूरी सामान है,’’ आरती ने उखड़े लहजे में जवाब दिया.

‘‘किस बात पर गुस्सा हो?’’

अपने बेटे के इस प्रश्न का आरती ने कोई जवाब नहीं दिया तो राकेश ने अपनी पत्नी की तरफ प्रश्नसूचक निगाहों से देखा.

‘‘नहीं, मैं ने मम्मी से कोई झगड़ा नहीं किया है,’’ सारिका ने फौरन सफाई दी, लेकिन तभी कुछ याद कर के वह बेचैन नजर आने लगी.

राकेश खामोश रह कर सारिका के आगे बोलने का इंतजार करने लगा.

‘‘बात कुछ खास नहीं थी…मम्मी फ्रिज से कल रात दूध निकाल रही थीं…मैं ने बस, यह कहा था कि सुबह कहीं मोहित के लिए दूध कम न पड़ जाए…कल चाय कई बार बनी…मुझे कतई एहसास नहीं हुआ कि उस छोटी सी बात का मम्मी इतना बुरा मान जाएंगी,’’ अपनी बात खत्म करने तक सारिका चिढ़ का शिकार बन गई.

‘‘मां, क्या सारिका से नाराज हो?’’ राकेश ने आरती को मनाने के लिए अपना लहजा कोमल कर लिया.

‘‘मैं इस वक्त कुछ भी कहनेसुनने के मूड में नहीं हूं. तू मुझे राजनगर तक का रिकशा ला दे, बस,’’ आरती की नाराजगी उन की आवाज में अब साफ झलक उठी.

‘‘क्या आप अंजलि दीदी के घर जा रही हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘बेटी के घर अटैची ले कर रहने जा रही होे?’’ राकेश ने बड़ी हैरानी जाहिर की.

‘‘जब इकलौते बेटे के घर में विधवा मां को मानसम्मान से जीना नसीब न हो तो वह बेटी के घर रह सकती है,’’ आरती ने जिद्दी लहजे में दलील दी.

‘‘तुम गुस्सा थूक दो, मां. मैं सारिका को डांटूंगा.’’

‘‘नहीं, मेरे सब्र का घड़ा अब भर चुका है. मैं किसी हाल में नहीं रुकूंगी.’’

‘‘कुछ और बातें भी क्या तुम्हें परेशान और दुखी कर रही हैं?’’

‘‘अरे, 1-2 नहीं बल्कि दसियों बातें हैं,’’ आरती अचानक फट पड़ीं, ‘‘मैं तेरे घर की इज्जतदार बुजुर्ग सदस्य नहीं बल्कि आया और महरी बन कर रह गई हूं…मेरा स्वास्थ्य अच्छा है, तो इस का मतलब यह नहीं कि तुम महरी भी हटा दो…मुझे मोहित की आया बना कर आएदिन पार्टियों में चले जाओ…तुम दोनों के पास ढंग से दो बातें मुझ से करने का वक्त नहीं है…उस शाम मेरी छाती में दर्द था तो तू डाक्टर के पास भी मुझे नहीं ले गया…’’

‘‘मां, तुम्हें बस, एसिडिटी थी जो डाइजीन खा कर ठीक भी हो गई थी.’’

‘‘अरे, अगर दिल का दौरा पड़ने का दर्द होता तो तेरी डाइजीन क्या करती? तुम दोनों के लिए अपना आराम, अपनी मौजमस्ती मेरे सुखदुख का ध्यान रखने से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. मेरी तो मेरी तुम दोनों को बेचारे मोहित की फिक्र भी नहीं. अरे, बच्चे की सारी जिम्मेदारियां दादी पर डालने वाले तुम जैसे लापरवाह मातापिता शायद ही दूसरे होंगे,’’ आरती ने बेझिझक उन्हें खरीखरी सुना दीं.

‘‘मम्मी, हम इतने बुरे नहीं हैं जितने आप बता रही हो. मुझे लगता है कि आज आप तिल का ताड़ बनाने पर आमादा हो,’’ सारिका ने बुरा सा मुंह बना कर कहा.

‘‘अच्छे हो या बुरे, अब अपनी घरगृहस्थी तुम दोनों ही संभालो.’’

‘‘मैं आया का इंतजाम कर लूं, फिर आप चली जाना.’’

‘‘जब तक आया न मिले तुम आफिस से छुट्टी ले लेना. मोहित खेल कर लौट आया तो मुझे जाते देख कर रोएगा. चल, रिकशा करा दे मुझे,’’ आरती ने सूटकेस राकेश को पकड़ाया और अजीब सी अकड़ के साथ बाहर की तरफ चल पड़ीं.

‘पता नहीं मां को अचानक क्या हो गया? यह जिद्दी इतनी हैं कि अब किसी की कोई बात नहीं सुनेंगी,’ बड़बड़ाता हुआ राकेश अटैची उठा कर अपनी मां के पीछे चल पड़ा.

परेशान सारिका को नई आया का इंतजाम करने के लिए अपनी पड़ोसिनों की मदद चाहिए थी. वह उन के घरों के फोन नंबर याद करते हुए फोन की तरफ बढ़ चली.

करीब आधे घंटे के बाद आरती अपने दामाद संजीव के घर में बैठी हुई थीं. अपनी बेटी अंजलि और संजीव के पूछने पर उन्होंने वही सब दुखड़े उन को सुना दिए जो कुछ देर पहले अपने बेटेबहू को सुनाए थे.

‘‘आप वहां खुश नहीं हैं, इस का कभी एहसास नहीं हुआ मुझे,’’ सारी बातें सुन कर संजीव ने आश्चर्य व्यक्त किया.

‘‘अपने दिल के जख्म जल्दी से किसी को दिखाना मेरी आदत नहीं है, संजीव. जब पानी सिर के ऊपर हो गया, तभी अटैची ले कर निकली हूं,’’ आरती का गला रुंध गया.

‘‘मम्मी, यह भी आप का ही घर है. आप जब तक दिल करे, यहां रहें. सोनू और प्रिया नानी का साथ पा कर बहुत खुश होंगे,’’ संजीव ने मुसकराते हुए उन्हें अपने घर में रुकने का निमंत्रण दे दिया.

‘‘यहां बेटी के घर में रुकना मुझे अच्छा…’’

‘‘मां, बेकार की बातें मत करो,’’ अंजलि ने प्यार से आरती को डपट दिया, ‘‘बेटाबेटी में यों अंतर करने का समय अब नहीं रहा है. जब तक मैं उस नालायक राकेश की अक्ल ठिकाने न लगा दूं, तब तक तुम आराम से यहां रहो.’’

‘‘बेटी, आराम करने के चक्कर में फंस कर ही तो मैं ने अपनी यह दुर्गति कराई है. अब आराम नहीं, मैं काम करूंगी,’’ आरती ने दृढ़ स्वर में मन की इच्छा जाहिर की.

‘‘मम्मी, इस उम्र में क्या काम करोगी आप? और काम करने के झंझट में क्यों फंसना चाहती हो?’’ संजीव परेशान नजर आने लगा.

‘‘काम मैं वही करूंगी जो मुझे आता है,’’ आरती बेहद गंभीर हो उठीं, ‘‘जब अंजलि के पापा इस दुनिया से अकस्मात चले गए तब यह 8 और राकेश 6 साल के थे. मैं ससुराल में नहीं रही क्योेंकि मुझ विधवा की उस संयुक्त परिवार में नौकरानी की सी हैसियत थी.

‘‘अपने आत्मसम्मान को बचाए रखने के लिए मैं ने ससुराल को छोड़ा. दिन में बडि़यांपापड़ बनाती और रात को कपड़े सिलती. आज फिर मैं सम्मान से जीना चाहती हूं. अपने बेटेबहू के सामने हाथ नहीं फैलाऊंगी. कल सुबह अंजलि मुझे ले कर शीला के पास चलेगी.’’

‘‘यह शीला कौन है?’’ संजीव ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘मेरी बहुत पुरानी सहेली है. उस नेबडि़यांपापड़ बनाने का लघुउद्योग कायम कर रखा है. वह मुझे भी काम देगी. अगर रहने का इंतजाम भी उस ने कर दिया तो मैं यहां नहीं…’’

‘‘नहीं, मां, तुम यहीं रहोगी,’’ अंजलि ने उन्हें अपनी बात पूरी नहीं करने दी और आवेश भरे लहजे में बोली,  ‘‘जिस घर में तुम्हारे बेटाबहू ठाट से रह रहे हैं, वह घर आज भी तुम्हारे नाम है. अगर बेघर हो कर किसी को धक्के खाने ही हैं तो वह तुम नहीं वे होंगे.’’

‘‘तू इतना गुस्सा मत कर, बेटी.’’

‘‘मां, तुम ने कभी अपने दुखदर्द की तरफ पहले जरा सा इशारा किया होता तो अब तक मैं ने राकेश और सारिका के होश ठिकाने लगा दिए होते.’’

‘‘अब मैं काम करना शुरू कर के आत्मनिर्भर हो जाऊंगी तो सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘मुझे तुम पर गर्व है, मां,’’ आरती के गले लग कर अंजलि ने अपने पति को बताया, ‘‘मुझे वह समय याद है जब मां अपना सुखचैन भुला कर दिनरात मेहनत करती थीं. हमें ढंग से पालपोस कर काबिल बनाने की धुन हमेशा इन के सिर पर सवार रहती थी.

‘‘आज राकेश बैंक आफिसर और मैं पोस्टग्रेजुएट हूं तो यह मां की मेहनत का ही फल है. लानत है राकेश पर जो आज वह मां की उचित देखभाल नहीं कर रहा है.’’

‘‘मेरी यह बेटी भी कम हिम्मती नहीं है, संजीव,’’ आरती ने स्नेह से अंजलि का सिर सहलाया, ‘‘पापड़बडि़यां बनाने में यह मेरा पूरा हाथ बटाती थी. पढ़ने में हमेशा अच्छी रही. मेरा बुरा वक्त न होता तो जरूर डाक्टर बनती मेरी गुडि़या.’’

‘‘आप दोनों बैठ कर बातें करो. मैं जरा एक बीमार दोस्त का हालचाल पूछने जा रहा हूं. मम्मी, आप यहां रुकने में जरा सी भी हिचक महसूस न करें. राकेश और सारिका को मैं समझाऊंगा तो सब ठीक हो जाएगा,’’ संजीव उन के बीच से उठ कर अपने कमरे में चला गया.

कुछ देर बाद वह तैयार हो कर बाहर चला गया. उस के बदन से आ रही इत्र की खुशबू को अंजलि ने तो नहीं, पर आरती ने जरूर नोट किया.

‘‘कौन सा दोस्त बीमार है संजीव का?’’ आरती ने अपने स्वर को सामान्य रखते हुए अंजलि से पूछा.

‘‘मुझे पता नहीं,’’ अंजलि ने लापरवाह स्वर में जवाब दिया.

‘‘बेटी, पति के दोस्तों की…उस के आफिस की गतिविधियों की जानकारी हर समझदार पत्नी को रखनी चाहिए.’’

‘‘मां, 2 बच्चों को संभालने में मैं इतनी व्यस्त रहती हूं कि इन बातों के लिए फुर्सत ही नहीं बचती.’’

‘‘अपने लिए वक्त निकाला कर, बनसंवर कर रहा कर…कुछ समय वहां से बचा कर संजीव को खुश करने के लिए लगाएगी तो उसे अच्छा लगेगा.’’

‘‘मैं जैसी हूं, उन्हें बेहद पसंद हूं, मां. तुम मेरी फिक्र न करो और यह बताओ कि क्या कल सुबह तुम सचमुच शीला आंटी के पास काम मांगने जाओगी?’’ अपनी आंखों में चिंता के भाव ला कर अंजलि ने विषय परिवर्तन कर दिया था.

आरती काम पर जाने के लिए अपने फैसले पर जमी रहीं. उन के इस फैसले का अंजलि ने स्वागत किया.

रात को राकेश और सारिका ने आरती से फोन पर बात करनी चाही, पर वह तैयार नहीं हुईं.

अंजलि ने दोनों को खूब डांटा. सारिका ने उस की डांट खामोश रह कर सुनी, पर राकेश ने इतना जरूर कहा, ‘‘मां ने कभी पहले शिकायत का एक शब्द भी मुंह से निकाला होता तो मैं जरूर काररवाई करता. मुझे सपना तो नहीं आने वाला था कि वह घर में दुख और परेशानी के साथ रह रही हैं. उन्हें घर छोड़ने से पहले हम से बात करनी चाहिए थी.’’

अंजलि ने जब इस बारे में मां से सवाल किया तो वह नींद आने की बात कह सोने चली गईं. उन के सोने का इंतजाम सोनू और प्रिया के कमरे में किया गया था.

उन दोनों बच्चों ने नानी से पहले एक कहानी सुनी और फिर लिपट कर सो गए. आरती को मोहित बहुत याद आ रहा था. इस कारण वह काफी देर से सो सकी थीं.

अगले दिन बच्चों को स्कूल और संजीव को आफिस भेजने के बाद अंजलि मां के साथ शीला से मिलने जाने के लिए घर से निकली थी.

शीला का कुटीर उद्योग बड़ा बढि़या चल रहा था. घर की पहली मंजिल पर बने बडे़ हाल में 15-20 औरतें बडि़यांपापड़ बनाने के काम में व्यस्त थीं.

वह आरती के साथ बड़े प्यार से मिलीं. पहले उन्होंने पुराने वक्त की यादें ताजा कीं. चायनाश्ते के बाद आरती ने उन्हें अपने आने का मकसद बताया तो वह पहले तो चौंकीं और फिर गहरी सांस छोड़ कर मुसकराने लगीं.

‘‘अगर दिल करे तो अपनी परेशानियों की चर्चा कर के अपना मन जरूर हलका कर लेना, आरती. कभी तुम मेरा सहारा बनी थीं और आज फिर तुम्हारा साथ पा कर मैं खुश हूं. मेरा दायां हाथ बन कर तुम चाहो तो आज से ही काम की देखभाल में हाथ बटाओ.’’

अपनी सहेली की यह बात सुन कर आरती की पलकें नम हो उठी थीं.

आरती और अंजलि ने वर्षों बाद पापड़बडि़यां बनाने का काम किया. उन दोनों की कुशलता जल्दी ही लौट आई. बहुत मजा आ रहा था दोनों को काम करने में.

कब लंच का समय हो गया उन्हें पता ही नहीं चला. अंजलि घर लौट गई क्योंकि बच्चों के स्कूल से लौटने का समय हो रहा था. आरती को शीला ने अपने साथ खाना खिलाया.

आरती शाम को घर लौटीं तो बहुत प्रसन्न थीं. संजीव को उन्होंने अपने उस दिन के अनुभव बडे़ जोश के साथ सुनाए.

रात को 8 बजे के करीब राकेश और सारिका मोहित को साथ ले कर वहां आ पहुंचे. उन को देख कर अंजलि का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.

बड़ी कठिनाई से संजीव और आरती उस के गुस्से को शांत कर पाए. चुप होतेहोते भी अंजलि ने अपने भाई व भाभी को खूब खरीखोटी सुना दी थीं.

‘‘मां, अब घर चलो. इस उम्र में और हमारे होते हुए तुम्हें काम पर जाने की कोई जरूरत नहीं है. दुनिया की नजरों में हमें शर्मिंदा करा कर तुम्हें क्या मिलेगा?’’ राकेश ने आहत स्वर में प्रश्न किया.

‘‘मैं इस बारे में कुछ नहीं कहनासुनना चाहती हूं. तुम लोग चाय पिओ, तब तक मैं मोहित से बातें कर लूं,’’ आरती ने अपने 5 वर्षीय पोते को गोद में उठाया और ड्राइंगरूम से उठ कर बच्चों के कमरे में चली आईं.

उस रात राकेश और सारिका आरती को साथ वापस ले जाने में असफल रहे. लौटते समय दोनों का मूड बहुत खराब हो रहा था.

‘‘मम्मी अभी गुस्से में हैं. कुछ दिनों के बाद उन्हें समझाबुझा कर हम भेज देंगे,’’ संजीव ने उन्हें आश्वासन दिया.

‘‘उन्हें पापड़बडि़यां बनाने के काम पर जाने से भी रोको, जीजाजी,’’ राकेश ने प्रार्थना की, ‘‘जो भी इस बात को सुनेगा, हम पर हंसेगा.’’

‘‘राकेश, मेहनत व ईमानदारी से किए जाने वाले काम पर मूर्ख लोग ही हंसते हैं. मां ने यही काम कर के हमें पाला था. कभी जा कर देखना कि शीला आंटी के यहां काम करने वाली औरतों के चेहरों पर स्वाभिमान और खुशी की कैसी चमक मौजूद रहती है. थोड़े से समय के लिए मैं भी वहां रोज जाया करूंगी मां के साथ,’’ अपना फैसला बताते हुए अंजलि बिलकुल भी नहीं झिझकी थी.

बाद में संजीव ने उसे काम पर न जाने के लिए कुछ देर तक समझाया भी, पर अंजलि ने अपना फैसला नहीं बदला.

‘‘मेरी बेटी कुछ मामलों में मेरी तरह से ही जिद्दी और धुन की पक्की है, संजीव. यह किसी पर अन्याय होते भी नहीं देख सकती. तुम नाराज मत हो और कुछ दिनों के लिए इसे अपनी इच्छा पूरी कर लेने दो. घर के काम का हर्जा, इस का हाथ बटा कर मैं नहीं होने दूंगी. तुम बताओ, तुम्हारे दोस्त की तबीयत कैसी है?’’ आरती ने अचानक विषय परिवर्तन कर दिया.

‘‘मेरे दोस्त की तबीयत को क्या हुआ है?’’ संजीव चौंका.

‘‘अरे, कल तुम अपने एक बीमार दोस्त का हालचाल पूछने गए थे न.’’

‘‘हां, हां…वह…अब ठीक है…बेहतर है…’’ अचानक बेचैन नजर आ रहे संजीव ने अखबार उठा कर उसे आंखों के सामने यों किया मानो आरती की नजरों से अपने चेहरे के भावों को छिपा रहा हो.

आरती ने अंजलि की तरफ देखा पर उस का ध्यान उन दोनों की तरफ न हो कर प्रिया की चोटी खोलने की तरफ लगा हुआ था.

आरती के साथ अंजलि भी रोज पापड़बडि़यां बनाने के काम पर जाती. मां शाम को लौटती पर बेटी 12 बजे तक लौट आती. दोनों इस दिनचर्या से बेहद खुश थीं. मोहित को याद कर के आरती कभीकभी उदास हो जातीं, नहीं तो बेटी के घर उन का समय बहुत अच्छा बीत रहा था.

आरती को वापस ले जाने में राकेश और सारिका पूरे 2 हफ्ते के बाद सफल हुए.

‘‘आया की देखभाल मोहित के लिए अच्छी नहीं है, मम्मी. वह चिड़चिड़ा और कमजोर होता जा रहा है. सारा घर आप की गैरमौजूदगी में बिखर सा गया है. मैं हाथ जोड़ कर प्रार्थना करती हूं…अपनी सारी गलतियां सुधारने का वादा करती हूं…बस, अब आप घर चलिए, प्लीज,’’ हाथ जोड़ कर यों विनती कर रही बहू को आरती ने अपनी छाती से लगाया और घर लौटने को राजी हो गईं.

अंजलि ने पहले ही यह सुनिश्चित करवा लिया कि घर में झाड़ूपोछा करने व बरतन मांजने वाली बाई आती रहेगी. वह तो आया को भी आगे के लिए रखवाना चाहती थी पर इस के लिए आरती ही तैयार नहीं हुईं.

‘‘मैं जानती थी कि आज मुझे लौटना पडे़गा. इसीलिए मैं शीला से 15 दिन की अपनी पगार ले आई थी. अब हम सब पहले बाजार चलेंगे. तुम सब को अपने पैसों से मैं दावत दूंगी…और उपहार भी,’’ आरती की इस घोषणा को सुन कर बच्चों ने तालियां बजाईं और खुशी से मुसकरा उठे.

आरती ने हर एक को उस की मनपसंद चीज बाजार में खिलवाई. संजीव और राकेश को कमीज मिली. अंजलि और सारिका ने अपनी पसंद की साडि़यां पाईं. प्रिया ने ड्रेस खरीदी. सोनू को बैट मिला और मोहित को बैटरी से चलने वाली कार.

वापस लौटने से पहले आरती ने अकेले संजीव को साथ लिया और उस आलीशान दुकान में घुस गइ्रं जहां औरतों की हर प्रसाधन सामग्री बिकती थी.

‘‘क्या आप यहां अपने लिए कुछ खरीदने आई हैं, मम्मी?’’ संजीव ने उत्सुकता जताई.

‘‘नहीं, यहां से मैं कुछ बरखा के लिए खरीदना चाहती हूं,’’ आरती ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

‘‘बरखा कौन?’’ एकाएक ही संजीव के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम्हारी दोस्त जो मेरी सहेली उर्मिला के फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में रहती है…वही बरखा जिस से मिलने तुम अकसर उस के फ्लैट पर जाते हो..जिस के साथ तुम ने गलत तरह का रिश्ता जोड़ रखा है.’’

‘‘मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं…’’

‘‘संजीव, प्लीज. झूठ बोलने की कोशिश मत करो और मेरी यह चेतावनी ध्यान से सुनो,’’ आरती ने उस की आंखों में आंखें डाल कर सख्त स्वर में बोलना शुरू किया, ‘‘अंजलि तुम्हारे प्रति…घर व बच्चों के प्रति पूरी तरह से समर्पित है. पिछले दिनों में तुम्हें इस बात का अंदाजा हो गया होगा कि वह अन्याय के सामने चुप नहीं रह सकती…मेरी बेटी मानसम्मान से जीने को सब से महत्त्वपूर्ण मानती है.

‘‘उसे बरखा  की भनक भी लग गई तो तुम्हें छोड़ देगी. मेरी बेटी सूखी रोटी खा लेगी, पर जिएगी इज्जत से. जैसे मैं ने बनाया, वैसे ही वह भी पापड़बडि़यां बना कर अपने बच्चों को काबिल बना लेगी.

‘‘आज के बाद तुम कभी बरखा के फ्लैट पर गए तो मैं खुद तुम्हारा कच्चा चिट्ठा अंजलि के सामने खोलूंगी. तुम्हें मुझे अभी वचन देना होगा कि तुम उस से संबंध हमेशा के लिए समाप्त कर लोगे. अगर तुम ऐसा नहीं करते हो, तो अपनी पत्नी व बच्चों से दूर होने को तैयार हो जाओ. अपनी गृहस्थी उजाड़ कर फिर खूब मजे से बरखा के साथ मौजमस्ती करना.’’

संजीव ने कांपती आवाज में अपना फैसला सुनाने में ज्यादा वक्त नहीं लिया, ‘‘मम्मी, आप अंजलि से कुछ मत कहना. वह खुद्दार औरत मुझे कभी माफ नहीं करेगी.’’

‘‘गुड, मुझे तुम से ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी. आओ, बाहर चलें.’’

आरती एक तीर से दो शिकार कर के बहुत संतुष्ट थीं. उन्होंने घर छोड़ कर राकेश व सारिका को अपना महत्त्व व उन की जिम्मेदारियों का एहसास कराया था. साथ ही अंजलि के व्यक्तित्व की कुछ विशेषताओं से संजीव को परिचित करा कर उसे सही राह पर लाई थीं. उन का मिशन पूरी तरह सफल रहा था. Motivational Story in Hindi

RakshaBandhan Look: रेड ड्रेस में कैसे दिखें एलिगेंट और सबसे खास?

RakshaBandhan Look: रक्षाबंधन एक त्योहार नहीं, एक एहसास भी है. यह दिन हर बहन के लिए खास होता है और खास दिन पर स्टाइलिश और ऐलिगेंट दिखना आप का हक भी है और खुशी भी.तो इस रक्षाबंधन क्यों न रैड कलर की खूबसूरती और परंपरा को एक ट्रेंडी ट्विस्ट के साथ अपनाया जाए?

आइए, जानें कुछ आसान और असरदार फैशन टिप्स, जो आप को बनाएंगे सब से स्टाइलिश और ग्रेसफुल.

अपने स्टाइल और लुक से खास महसूस करें

रक्षाबंधन का त्योहार सिर्फ भाईबहन के रिश्ते का जश्न नहीं होता, बल्कि यह एक ऐसा दिन होता है जब आप अपने स्टाइल और लुक से भी खास महसूस करना चाहती हैं. ऐसे में रैड कलर की ड्रैस एक शानदार विकल्प है, जो पारंपरिक भी है और ट्रेंडी भी.

अगर आप सोच रही हैं कि रैड ड्रैस के साथ खुद को कैसे स्टाइल करें ताकि आप दिखें सब से अलग और ऐलिगेंट तो ये फैशन टिप्स आप के लिए ही हैं :

रैड को स्टाइल करें मौडर्न ट्विस्ट के साथ

मैरून, ब्रिक रैड, चाइनीज रैड या क्लासिक ब्राइट रैड, हर शेड का अपना एक अलग स्वैग है. इसलिए रैड पहनने से पहले अपनी स्किनटोन, पर्सनैलिटी और ओकेजन का ध्यान जरूर रखें. अगर ट्रैडिशनल लुक चाहिए, तो रैड अनारकली या शरारा सेट परफैक्ट रहेगा.

कुछ सिंपल और ऐलिगेंट चाहिए, तो एक क्लासिक रैड कुरता प्लाजो कौंबो ट्राई करें. इस बात का ध्यान रखें कि रैड में एक रौयल टच होता है, बस सही शेड और सही स्टाइल चुनना जरूरी है.

सिंपल और बैलेंस्ड मेकअप

ग्लोइंग और बैलेंस्ड रैड कलर खुद में बहुत बोल्ड और आकर्षक होता है, इसलिए उस के साथ मेकअप को हमेशा थोड़ा सटल और बैलेंस्ड रखना ही बेहतर होता है. ‘लेस इज मोर’ पर खास ध्यान दें, क्योंकि ओवरडन मेकअप लुक को भारी बना सकता है.

सब से पहले बेस को नैचुरल रखें ताकि आप की स्किन फ्रैश, क्लीन और हैल्दी ग्लो करती दिखे. एक हलका फाउंडेशन या बीबी क्रीम, थोड़ा कंसीलर और अच्छी तरह ब्लैंड किया गया पाउडर ही काफी है. आई मेकअप में हलका काजल, मसकारा और थोड़ा सा ब्राउन या गोल्डन टोन आईशैडो आप को सटल लेकिन डिफाइंड लुक देगा.

लिप्स के लिए न्यूड, पिच या सौफ्ट पिंक शेड्स चुनें. ये लाल आउटफिट के साथ खूबसूरती से बैलेंस बनाते हैं. थोड़ा सा हाइलाइटर चीकबोंस, नोज ब्रिज और आई कौर्नर पर लगाएं ताकि चेहरे पर नैचुरल शाइन आए.

ऐसा ग्लो जो अंदर से निकला हुआ लगे, अगर आप ट्रैडिशनल टच चाहती हैं, तो एक छोटी सी बिंदी जरूर लगाएं. यह छोटा सा डिटेल आप के पूरे लुक को क्लासिक, ऐलिगेंट और पूरी तरह फैस्टिव बना देता है.

ऐक्सैसरीज जो आप के लुक को बना देंगे स्टेटमैंट

लुक को परफैक्ट बनाने में ऐक्सैसरीज का बहुत बड़ा हाथ होता है. यह आप के पूरे आउटफिट को एक नया आयाम देती है. लाल या किसी भी फैस्टिव ड्रैस के साथ झुमके, ड्रौप इयररिंग्स या औक्सीडाइज्ड सिल्वर इयररिंग्स एक सेफ और स्टाइलिश चौइस हैं. ये हर ट्रैडिशनल आउटफिट के साथ आसानी से मैच हो जाते हैं और चेहरे को एक अलग शाइन देते हैं.

अगर आप की ड्रैस की नेकलाइन सिंपल है, तो पतला सिल्वर चेन पैंडेंट या क्लासिक पर्ल नेकपीस पहनना ज्यादा अच्छा रहेगा. भारीभरकम नेकलेस हर लुक के साथ जरूरी नहीं होता, कभीकभी कम ही ज्यादा होता है. हाथों के लिए एक साइड में सिल्वर कड़ा, मिनिमल ब्रेसलेट या कलर कोऔर्डिनेटेड ट्रेंडी चूड़ियां बेहतरीन लगती हैं.

अगर आप थोड़ी ऐक्सपेरिमैंटल हैं, तो मैटल फिंगर रिंग्स, ऐथनिक पायल या बिंदी जैसे छोटेछोटे ऐलिमैंट्स से भी लुक को खास बना सकती हैं. ध्यान रखें, ऐक्सैसरीज का काम है आप के लुक को उभारना, उसे ढंकना नहीं. इसलिए संतुलन जरूरी है.

फुटवियर : स्टाइल और कंफर्ट का परफैक्ट बैलेंस

आप का लुक तभी पूरा माना जाता है जब फुटवियर सही हो, जो दिखने में भी अच्छा लगे और पहनने में भी आरामदायक हो. रैड ड्रैस के साथ न्यूड, गोल्डन या सिल्वर टोन की हील्स, खासकर स्ट्रैपी हील्स या ब्लौक हील्स बेहद क्लासी लगती हैं.फ्लैट्स या ट्रेंडी पंजाबी जूतियां एक बढ़िया औप्शन हैं.

आजकल मिरर वर्क, गोटा पट्टी या थोड़ा सा ऐंब्रौयडरी वाला फुटवियर भी खूब चलन में है. यह ट्रैडिशनल टच भी देता है और कंफर्ट भी. ध्यान रखें, फुटवियर ऐसा हो जो आप के पूरे लुक को बैलेंस करे, न कि ओवरशैडो या अंडरप्ले.

हेयरस्टाइल : जब बाल भी बोले त्योहार की खुशी

आप का हेयरस्टाइल आप के पूरे लुक को एक अलग लेवल पर ले जा सकता है, इसलिए इसे नजरअंदाज न करें. अगर आप क्लासी और सिंपल लुक चाहती हैं, तो आधे खुले बाल पीछे पिन कर लें. यह लुक साफ, ऐलीगेंट और कभी आउट औफ ट्रेंड नहीं होता. अगर आप खुले बाल पसंद करती हैं, तो उन्हें एक खूबसूरत हेयरबैंड या ट्रेंडी क्लिप से सजाएं. यह आप के स्टाइल में थोड़ा फैस्टिव ग्लैमर जोड़ देगा.

थोड़ी सी क्रिएटिविटी चाहें तो साइड ब्रेड या लोबन बनाएं. इन में आप गजरा, बीड्स या पर्ल पिन्स लगा कर ट्रैडिशनल टच भी जोड़ सकती हैं. बस ध्यान रखें कि हेयरस्टाइल ऐसा हो जो आप के आउटफिट और ज्वेलरी से मेल खाए और आप को कंफर्ट दे.

खुशबू में असर, कौन्फिडेंस में दम

रक्षाबंधन सिर्फ राखी का त्योहार नहीं, बल्कि उस रिश्ते की महक है जो हर साल और गहराता है. जब आप अपने भाई से मिलने जाएं, तो सिर्फ उपहार नहीं, अपनी मुसकान, आत्मविश्वास और एक खूबसूरत खुशबू भी साथ ले जाएं क्योंकि आप की मौजूदगी से ही तो यह त्योहार खास बनता है.

Dessert Recipes: फैस्टिवल पर बनाएं डेजर्ट, बच्चे वाह-वाह करते नहीं थकेंगे

Dessert Recipes

केक लौलीज

सामग्री

– 150 ग्राम केक क्रंब्स

– 5 ग्राम क्रीम

– 15 ग्राम मैल्ट टैंपर्ड डार्क कुकिंग चौकलेट

– 10 ग्राम पिघला मक्खन

– 5 ग्राम आइसिंग शुगर

– 2-3 बूंदें वैनिला ऐसेंस

– कुछ लौली स्टिक्स.

विधि

एक बाउल में केक क्रंब्स लें. फिर उस में आइसिंग शुगर और पिघला मक्खन डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. अब इस में वैनिला ऐसेंस और क्रीम डाल कर चलाएं. फिर चौकलेट डाल कर मिलाएं और सौफ्ट डो तैयार कर के 5-10 मिनट फ्रिज में रखें. फिर डो से छोटीछोटी बौल्स तैयार कर पुन: फ्रिज में रखें. लौली स्टिक को पिघली चौकलेट में डिप कर के बौल्स में डालें और फिर फ्रिज में रखें. अब इन्हें पिघली चौकलेट में डिप कर के जेम्स से सजाएं और 10 मिनट फ्रिज में ठंडा कर सर्व करें.

जरमन ब्लैक फौरैस्ट कप

सामग्री

– 2 कप क्रीम फेंटी

– 150 ग्राम प्लेन चौकलेट केक क्रंब्स

– 1/2 कप बिना बीज वाली कैन्ड चैरीज

– 100 एमएल चैरी जूस

– 2 बड़े चम्मच चौकलेट कटी

– 5 ग्राम इलायची पाउडर

– 15 ग्राम अखरोट कटे

– गार्निशिंग के लिए चैरीज.

विधि

चैरीज को इलायची पाउडर के साथ मिला कर एक तरफ रख दें. फिर पुडिंग गिलास में फेंटी हुई क्रीम की लेयर लगाएं. फिर उस पर केक क्रंब्स की लेयर सैट करें. अब उस पर चैरी जूस डालें. फिर तैयार चैरीइलायची के मिश्रण से लेयर तैयार करें. उस पर नट्स व चौकलेट डालें. पुन: उस पर फेंटी क्रीम की लेयर बनाएं और ऊपर से नट्स व चौकलेट डाल कर चैरीज से सजा कर सर्व करें.

डच चौकलेट

सामग्री

– 30 ग्राम नारियल बुरादा

– 15 ग्राम चौकलेट पाउडर

– 40 ग्राम बिस्कुट क्रंब्स

– 15 ग्राम कंडैंस्ड मिल्क

– 10 ग्राम पिघला मक्खन

– चुटकीभर इलायची पाउडर

– सजाने के लिए थोड़ी सी जेम्स

– कोटिंग के लिए नारियल बुरादा.

विधि

बिस्कुट क्रंब्स में चौकलेट, इलायची पाउडर और नारियल डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस में मक्खन डाल कर अच्छी तरह चलाएं. अब इस में कंडैंस्ड मिल्क डाल कर डो तैयार करें. फिर हाथों पर थोड़ी सी चिकनाई लगा कर उस की छोटी बौल्स तैयार कर उन्हें नारियल के बुरादे से रोल कर जेम्स से सजा सर्व करें.

कोकोनट मैकरून

सामग्री

– 100 ग्राम नारियल का बुरादा

– चुटकीभर बेकिंग पाउडर

– चुटकीभर सोडा

– 50 ग्राम मैदा

– 40 ग्राम चीनी

– 15 ग्राम पिघला मक्खन

– 1-2 बड़े चम्मच दूध

– 1 बड़ा चम्मच नारियल का बुरादा गार्निशिंग के लिए

– नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में नारियल का बुरादा ले कर उस में बेकिंग पाउडर, सोडा और नमक मिला कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर उस में मैदा, चीनी व मक्खन मिला कर तब तक चलाती रहें जब तक मिश्रण चूरे की तरह न हो जाए. अब इस में दूध मिला कर नर्म आटा गूंध कर लोइयां बनाएं और उन्हें ओवनप्रूफ ट्रे में रख थोड़ा सपाट करें. फिर पहले से गरम ओवन में 1500 सैंटीग्रेड पर 10 मिनट  बेक करें. मैकरून बन कर तैयार हैं. ऊपर से थोड़ा नारियल बुरक कर नारियल को हलका सुनहरा करने के लिए 2-3 मिनट और बेक करें. ठंडा कर सर्व करें. Dessert Recipes

Genz Career Planning: जैन जेड कैसे बनाएं फ्यूचर

Genz Career Planning: आज के युवाओं को आजादी इतनी प्यारी होने लगी है कि वे अकसर आजादी का मूल ही भूल जाते हैं. आजादी का मतलब सिर्फ अपनी मनमानी करना, बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ना या आंख बंद कर मस्ती में फिरना नहीं होता बल्कि अपने विचारों को विस्तृत और प्रगतिशील करना होता है. अपनी योग्यता को निखारना और अपने भविष्य के लिए गंभीर मनोस्थिति अपनाना कार्यबद्ध होने से है.

कहीं तो आज के जैन जेड किशोर अवस्था से ही अपनी योग्यता को पहचान, उस पर मेहनत कर नाम कर रहे हैं तो कहीं और कुछ अपने लक्ष्य से भटक रहे. जो समय उन्हे अपनी पढ़ाई, कला आदि में लगाना चाहिए उस समय को वे सोशल मीडिया में गुमराह हो कर नष्ट कर रहे.

बहुत से युवा जितनी जानकारी टैक्नोलौजी या किसी वायरल ट्रेंड की रखते हैं, वहीं आम दुनियादारी की नहीं. न परिवार, सरकार व समाज में अपनी भूमिका की और न ही वे इस बात को महत्त्व देते हैं. वे यह नहीं समझते कि उन्हें अपना पूरा जीवन इसी दुनिया की भागदौड़ में निकालना है. इसलिए उन्हें बदलते दौर के साथ वर्तमान और भविष्य दोनों के उतारचढ़ाव के लिए हर रूप से तैयार रहना चाहिए.

इसे नाकार नहीं सकते कि जैन जेड समाज का भविष्य है और इस भविष्य को उज्ज्वल और दृढ़ बनाने के लिए हमें वर्तमान में अपनी भागीदारी निभानी पड़ेगी. अब वह भागीदारी मांबाप, भाईबहन बन कर निभाएं या एक सलाहकार बन कर अपनी इसी जैन जेड के लिए हम भी कुछ सलाह देना चाहेंगे:

अपना पैशन पहचाने: बहुत से युवा जीवन के कई वर्ष निकाल लेते लेकिन उन्हें अपना पैशन या वह कार्य या कला नहीं जान पाते जिस में उन की योग्यता उभर कर बाहर आ सके, जिस पैशन को अपना कर वे आंतरिक व भौतिक दोनों सुख प्राप्त कर सकें.

मैंटर या गुरु का चुनाव: हमारी योग्यता जितनी हमारी मेहनत पर टिकी है उतनी ही एक उत्तम गुरु या मैंटर के मार्गदर्शन पर भी. जिस तरह अशोक एक शक्तिशाली योद्धा थे लेकिन चाणक्य की छाया में वे एक सम्राट बन गए. उन की तरह अपनी सफलता के लिए हमें एक गुरु की आवश्यकता होती है. अब वे गुरु हमारे टीचर्स हों, मांबाप हो या कोई सलाहकार.

अपनी गलतियों या फेल्योर से सीखना: बहुत से युवा गलती होने पर या अपने परिश्रम में सफल न होने पर निराश हो पीछे हट जाते है, जबकि ऐसे समय में उन्हें धैर्य रखना चाहिए और बचपन में सुनाई चींटी के संघर्ष की कहानी याद करनी चाहिए कि किस तरह वह अपने रास्ते में आती हर रुकावट को पार करती है और अपने लक्ष्य तक पहुंचती है.

उचित संगत: हम हमेशा से सुनते आ रहे हैं कि हमें अपनी संगत का चुनाव सूझबूझ से करना चाहिए. हमारे दोस्तों, सहभागियों के स्वभाव का असर हमारे हावभाव पर भी पड़ता है. अगर हमारी संगत परिश्रमी हो तो हम साथ मिल कर एकदूसरे के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता कर सकते हैं नहीं तो गलत संगत दोनों की ही हानि करेगी.

स्किल्स को निखारें: आज समय उतनी तेजी से नहीं भाग रहा जितनी तेजी से टैक्नोलौजी बढ़ और बदल रही है. इसलिए युवाओं को चाहिए कि अपनी स्किल्स को निखारने और डैवलप करने के लिए हमेशा तैयार रहें.

फाइनैंस का ज्ञान: यहां हमारा अर्थ फाइनैंस की किसी डिप्लोमा या डिगरी से नहीं बल्कि आम ज्ञान से है अर्थात कोई अपनी आर्थिक स्थिति और कमाए गए धन के बारे में कितना ज्ञान रखता है? युवाओं को अपनी कमाई, अपनी जरूरतें, खर्च इन सब का ज्ञान होना चाहिए क्योंकि वे ही अपने भविष्य और अपने परिवार के भविष्य का, उन की आर्थिक जरूरतों, सुखसुविधाओं व मैडिकल जरूरतों का बीड़ा उठाने वाले हैं.

बजट, बचत: युवाओं को फाइनैंशल बजट का 50-30-20 रूल का ज्ञान होना चाहिए. यह रूल बहुत कारगर और आसान भी है जो यह कहता है कि आप की कमाई का 50% आप की जरूरत व आर्थिक आवश्यकताओं पर खर्च होना चाहिए, 30% आप की इच्छाओं पर और 20% आप की बचत या इनवैस्टमैंट पर इस रूल को अपना वे कई फुजूल खर्चों से बच सकते हैं और अपनी कमाई का सही इस्तेमाल कर सकते हैं.

इनवैस्टमैंट की समझ: इनवेस्टमैंट करने से पहले यह जानना जरूरी है कि इनवैस्टमैंट की कहां जाए? आखिर अपने पैसे के साथ कौन जोखिम लेना चाहेगा. युवाओं को चाहिए कि जिस किसी चीज में वे निवेश करना चाहते हैं पहले उस के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करें. अपना जोखिम, लाभ, उस की शर्तें व नियम इन सब की जानकारी हासिल कर के ही निवेश करें क्योंकि यह निवेश वे भविष्य के लिए ही कर रहे हैं और यही निवेश उन्हे कई बार आपातकालीन स्थितियों में सहायता देता है.

फाइनैंशियल एडवाइस: हमारी जैन जेड बहुत सी चीजों और लोगों से प्रभावित हो कर उन से तरहतरह के एडवाइस ले रही है जैसे बौडी बिल्डिंग, स्किन केयर, रिलेशनशिप, स्टाइलिंग और बहुत कुछ तो उन्हें अपनी लिस्ट में फाइनैंशियल एडवाइस भी जोड़ लेनी चाहिए. आखिर लिस्ट में लिखी बाकी चीजों को पूरा तो पैसे से ही किया जा सकता है. जहां वे सोशल मीडिया पर ऐंटरटेनमैंट इन्फ्लुएंसर को फौलो कर करे हैं वहीं वे फाइनैंशियल इन्फ्लुएंसर से भी क्यों न जुड़ें जो उन्हें कई तरह के एडवाइस फ्री में दे सकते हैं, साथ ही फाइनैंशियल एडवाइस सिर्फ ऐक्सपर्ट ही नहीं बल्कि अपने घर व समाज के बड़ेबूड़े से भी मिल सकती है.

सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल: सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एक सिक्के की तरह है जो अच्छा और बुरा दोनों पहलू लिए हुए है. एक तरफ तो युवा इस का इस्तेमाल कर के नाम और काम दोनों में सफल हो रहे वहीं दूसरी तरफ इस की बनावटी दुनिया में मुखौटे पहने चेहरों के चमकीले झूठ में डूब कर अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं. ऐसे प्लेटफौर्म पर ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें देख कर वे गुमराह हो रहे हैं इसलिए उन्हें चाहिए कि इन्हीं प्लेटफौर्म्स का सही इस्तेमाल कर उन लोगों से जुड़ें जो सच में गुणी, सफल और शालीन व्यक्तित्व वाले हैं. उन लोगों से इंसपायर हों. उन से मार्गदर्शन मांगे और अपने जीवन में सफल बनें.

मदद मांगने में हिचक नहीं: बहुत से युवाओं को किसी भी तरह की मदद मांगने में बहुत संकोच या शर्म महसूस होती है. उन्हें इस प्रकार की सोच से बाहर निकल अपनी परेशानी साझा करनी चाहिए ताकि उस पर समय से कदम उठा उसे दूर किया जा सके. उन्हें यह याद रखना चाहिए कि मदद मांगने से वे छोटे नहीं हो जाते और न ही किसी से कम बल्कि एकदूसरे की मदद करना अपने ही आत्मविश्वास को बढ़ाता है.

ट्रैवल टू लर्न: युवाओं को ट्रैवल करना बहुत पसंद है लेकिन क्या ट्रैवल सिर्फ मौजमस्ती के लिए होता है? नहीं. किसी जगह ट्रैवल करना वहां सिर्फ घूमना नहीं हुआ बल्कि वहां के रहनसहन, बोली, भाषा, कल्चर, कला, वहां के इतिहास का ज्ञान अर्जन के लिए बहुत अच्छा रास्ता है. कई बार इसी तरह से प्राप्त ज्ञान का सही उपयोग कर बहुत लोग जीवन में सफल बन जाते हैं.

सैल्फ केयर: सैल्फ केयर से हमारा अर्थ सिर्फ त्वचा की सुंदरता बढ़ाने से नहीं बल्कि हर रूप से अपनी सुंदरता और आत्म के विकास से है. युवाओं को अपने रूप के साथ मनमस्तिष्क और अपनी सेहत का भी ध्यान रखना चाहिए. आजकल की भागदौड़ और बेढंगे लाइफस्टाइल से उन्हें न ही पूरी रैस्ट मिल पा रही है और न ही पोषण. याद रहे कि स्वस्थ रह कर ही जीवन का आनंद लिया जा सकता है क्योंकि स्थूल व बीमार शरीर न ही कोई कार्य कर सकता और न ही मौज, इसलिए अपनी जीवनशैली या लाइफस्टाइल में सुधार लाना चाहिए.

बी थैंकफुल: आभार शब्द हमें इतना भारी लगने लगा है कि हम दूसरों के प्रयत्नों, उन की मदद या अच्छे स्वभाव के प्रति आभार नहीं दिखा पाते. यह बरताव आज के युवाओं में अधिक देखा जाता है. वे न अपने मांबाप के प्रति थैंकफुल हैं, न ही अपने गुरुओं के प्रति. उन्हें यह लगता है कि ये सब अपना कर्तव्य निभा रहे और इस कर्तव्य के लिए उन का आभार व्यक्त करना फुजूल की बात है. वे यह भूल जाते कि जब वे किसी और का आभार या धन्यवाद नहीं करेंगे तो कोई और भी उन के किए गए प्रयासों व मेहनत के लिए न थैंक्स कहेगा और न ही अहमियत देगा.

वैल्यू ऐंड कंसीडर हैल्दी रिलेशनशिप: रिलेशन चाहे मांबाप से हो, भाईबहन या किसी दोस्त से आज की पीढ़ी उस की वैल्यू भूल सी गई है. उस के लिए हर रिश्ता या तो कोई फौरमैलिटी निभाना है या फिर कैजुअल रहना बन गया है. वह रिश्तों के प्रति गंभीर नहीं. Genz Career Planning

Work Life Balance: रिश्ते पर भारी वर्कलोड

Work Life Balance: रीमा और आदित्य कभी एकदूसरे की आंखों में सुबह ढूंढ़ते थे, अब लंबे समय से अपनेअपने कामों के मेलबौक्स में खो गए थे. मीटिंग्स, डैडलाइन और मोबाइल स्क्रीन ने उन के रिश्ते में सन्नाटा भर दिया था. फिर एक दिन आदित्य ने रीमा को बिना वजह कौफी पर बुलाया. दोनों अचकचाए, मुसकराए और फिर बातोंबातों में पुराने किस्से धीरेधीरे लौटने लगे.

रीमा बोली, ‘‘हम काम में इतना खो गए थे कि साथ चलना भूल गए थे.’’ आदित्य ने रीमा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘तो क्या हुआ? फिर से चलना शुरू कर लेते हैं.’’ कभीकभी दूरी नहीं, एक कौफी और इरादा ही काफी होता है एक नई शुरुआत के लिए.

आगे बढ़ने की रेस

आजकल की जिंदगी में काम और कैरियर की रेस इतनी तेज हो गई है कि हम अकसर उन लोगों को पीछे छोड़ देते हैं जिन के साथ यह सफर शुरू किया था. सुबह की नींद औफिस कौल्स से टूटती है और रातें लैपटौप की नीली रोशनी में बीत जाती हैं. ऐसे में न जाने कब रिश्तों के बीच एक खामोशी आ कर बैठ जाती है जो बोलती कुछ नहीं पर बहुत कुछ कह जाती है.

कभी जिन से घंटों बातें करते थे, अब उन से हफ्तों तक सिर्फ ‘ठीक हूं’ या ‘बिजी हूं’ में बातचीत सिमट जाती है. क्या यह सच में बिजनैस है या हम खुद ही अपने रिश्तों से दूरी बना बैठे हैं? लेकिन अच्छी बात यह है कि रिश्ते टूटते नहीं, बस थम जाते हैं और हर थमे रिश्ते को फिर से चलाने के लिए बस एक छोटी सी कोशिश काफी होती है.

रिश्तों में भी रिचार्ज जरूरी है

जैसे मोबाइल बिना चार्ज के काम नहीं करता वैसे ही रिश्ते भी बिना समय और संवाद के फीके पड़ जाते हैं. रोज नहीं तो हफ्ते में एक बार, बस 10 मिनट भी साथ बैठ कर मुसकरा लेना रिश्तों की बैटरी को दोबारा जिंदा कर सकता है.

टैक्नोलौजी नहीं खुद से जुडि़ए

वीडियो काल्स, व्हाट्सऐप और ईमेल से भरे इस दौर में असली मौजूदगी की अहमियत और भी बढ़ गई है. एक काल के बजाय कभीकभी 1-1 कप चाय साथ पीना या औफिस से लौटते हुए फूल ले आना ये छोटेछोटे कदम दिलों को फिर से पास ला सकते हैं.

शिकायत कम यादें ज्यादा बांटें

हर रिश्ता कभी न कभी थकता है. ऐसे समय में एकदूसरे को सुनना, बीती अच्छी बातों को याद करना और बिना जज किए सामने वाले की बात समझना बेहद जरूरी होता है. रिश्ते तब नहीं बिगड़ते जब लड़ाई हो बल्कि तब बिगड़ते जब बात ही बंद हो जाए.

बड़े प्लान की जरूरत नहीं

कभीकभी एक कप कौफी, एक वाक या बस चलो बात करते हैं कह देना भी नई शुरुआत बन सकता है. प्यार दिखाने के लिए बड़े जेस्चर नहीं, बस सच्चा इरादा चाहिए.

काम करने की उम्र है तो काम करना ही है क्योंकि अच्छी जिंदगी जीना हर किसी का सपना होता है. लेकिन इस बीच अपने जीवनसाथी या फ्रैंड के साथ अपने रिश्ते पर कोई डैंट न आने देना भी जरूरी है. इसलिए छोटीछोटी बातों से अपने रिश्ते को रिफ्रैश करते रहना जरूरी है. Work Life Balance

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