निराशा से भरे कटु स्वर में वरुण ने कहा, ‘‘वह तो स्पष्ट है. चलो कोई बात नहीं. कुछ और पसंद कर लो.’’
निशा को वरुण की निराशा का एहसास हुआ था, पर मां के कानून से बंधी थी. सोच कर बोली, ‘‘कोई परफ्यूम ले लेती हूं. कपड़े तो बहुत हैं और फिर रोज कुछ न कुछ बन ही रहा है.’’
‘‘कौन सा लोगी?’’ वरुण ने कहा, ‘‘कल मैं ने टीवी पर एक नए परफ्यूम का विज्ञापन देखा था. नाम जोरदार था और जिन लड़कियों ने लगाया था उन के आसपास खड़े 6 से 60 वर्ष तक के जवान हवा में सूघंते हुए उड़ रहे थे.’’
‘‘सच?’’ निशा ने व्यग्ंयभरी हंसी से कहा, ‘‘बड़ा खतरनाक था तब तो. क्या नाम था?’’
‘‘अरब की लैला,’’ वरुण मुसकराया, ‘‘चलो देखते हैं. शायद मिल जाए.’’
एक बड़ी दुकान पर यह परफ्यूम मिल भी गया. पूरे 500 रुपए की शीशी थी. वरुण ने सोचा, कोई बात नहीं, 1,750 रुपए से तो कम की है. वरुण ने नमूने के तौर पर निशा की गरदन के थोड़ा नीचे एक फुहार डाली. बड़ी मतवाली सुगंध थी.
अंदर गहरी सांस खींचते हुए निशा ने कहा, ‘‘यहां नहीं, मजनुओं का जमघट लग जाएगा.’’
वरुण ने कटाक्ष किया, ‘‘मेरे सासससुर के सामने मत लगाना. तुम्हारे घर की छत जरा नीची है.’’
निशा ने कृत्रिम क्रोध से कहा, ‘‘जरा भी शर्म नहीं आती आप को. मांबाप का सम्मान करना चाहिए.’’
वरुण के दिल पर चोट लगी. अभी से इतना तीखा बोलती है तो आगे क्या होगा? एकाएक गंभीर हो गया और चुप भी. निशा ने महसूस किया पर उस की गलती क्या थी? यह बात भी मन में आई कि इस आदमी से अब तक 3-4 बार झगड़ा सा हो
चुका है. क्या जीवनभर ऐसे ही झगड़ता रहेगा? यों तो घर में भी मांबाप के बीच कुछ न कुछ तूतूमैंमैं होती रहती है, पर अपने जीवन में ऐसी कल्पना नहीं कर पा रही थी.
कुछ देर बाद वरुण ने ही मौन तोड़ा, ‘‘तुम गुफा में गई हो?’’
‘‘गुफा?’’ निशा ने आश्चर्य से उत्तर दिया, ‘‘नहीं, अभी तक तो नहीं गई. अजंता, एलोरा जातेजाते रह गए हम लोग. भारी वर्षा के कारण पुणे से ही लौट आए. अब आप के साथ चलूंगी.’’
वरुण ने गहरी सांस ली, ‘‘तुम्हारे सामान्य ज्ञान पर बड़ा तरस आता है. यह देखो, ऊपर इतना बड़बड़ा क्या लिखा है?’’
निशा ने सिर उठा कर देखा. जिस रेस्तरां के सामने खड़ी थी उस का नाम था ‘गुफा’.
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झेंपते हुए बोली, ‘‘होटलों में कहां जाते हैं हम लोग. मां को बिलकुल पसंद नहीं है.’’
‘‘मां…’’ वरुण के मुंह से कटु शब्द निकलने ही वाला था, पर तुरंत होंठ सी लिए.
निशा ने घूर कर देखा, पर वरुण दरवाजा खोल कर अंदर जा रहा था. जल्दी से पीछे हो ली. वेटर ने एक खाली मेज की तरफ इशारा किया. बैठते ही वेटर ने पानी के गिलास रखे और मैन्यू कार्ड सामने रख दिया. आदेश की प्रतीक्षा में खड़ा हो गया.
‘‘क्या लोगी?’’ वरुण ने पूछा.
‘‘जो आप चाहें,’’ निशा ने संकोच से मैन्यू कार्ड पर निगाह डालते हुए कहा, ‘‘मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता.’’
व्यंग्य से वरुण ने कहा, ‘‘तुम्हारी शिक्षा अधूरी है. काफीकुछ सिखाना पड़ेगा. मां ने यही नहीं सिखाया.’’
कोई कड़वी बात न कह दे, इसलिए निशा ने होंठ दांतों से दबा लिया. इस पुरुष के साथ तो मस्ती का माहौल ही नहीं बनता. इतना पढ़ीलिखी है, पर उस की दृष्टि में बस गंवार ही है. वह भी तो बातबात में मांमां करती है.
मैन्यू कार्ड पर नजरें दौड़ाते हुए वरुण ने आश्चर्य से कहा, ‘‘अरे, यहां तो कढ़ी भी मिलती है.’’
‘‘कढ़ी?’’ निशा ने प्रश्न सा किया.
‘‘क्यों, नाम नहीं सुना कढ़ी का?’’ वरुण ने कहा, ‘‘मुझे बहुत अच्छी लगती है. तुम्हें बनानी आती है?’’
‘‘थोड़ाबहुत,’’ निशा के स्वर में अनिश्ंिचतता थी.
‘‘क्या मतलब?’’ वरुण ने कहा, ‘‘अरे, या तो बनाना आता है या नहीं.’’
निशा ने पूरी गंभीरता से कहा, ‘‘मां नहीं बनातीं. कहती हैं कि कढ़ी खाने से पेट में दर्द होता है. वैसे भी गरमी में तो बेसन की बनी कोई चीज नहीं खानी चाहिए. इसीलिए हमारे यहां कढ़ी नहीं बनती.’’
‘‘ऐसा सोचना है तुम्हारी मां का?’’ वरुण ने कटु व्यंग्य से पूछा, ‘‘और अगर मैं चाहूं कि कढ़ी बने तो क्या मां बनाएंगी?’’
‘‘पता नहीं,’’ निशा ने सरलता से सचाई सामने रख दी और कंधे हिला दिए.
‘‘मेरी पसंदीदा चीजों की सूची भी लंबी हो सकती है, जो मां को पसंद नहीं?’’ वरुण ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो सुना है कि ससुराल में दामाद की बड़ी खातिर होती है?’’
वरुण ने जिद में आ कर कढ़ी तो मंगाई ही, साथ ही वह कुछ और भी मंगाया जिसे खाना शायद निशा को अच्छा नहीं लगा. निशा ने साथ तो दिया पर यह भी जाना कि खाने के मामलों में भी वे दोनों उत्तरदक्षिण की तरह थे.
‘‘और कुछ नहीं खाओगी?’’ वरुण ने पूछा, ‘‘तुम ने तो कुछ खाया ही नहीं?’’
‘‘इतना ही खाती हूं,’’ निशा ने हंसने का असफल प्रयत्न किया, ‘‘शादी से पहले शरीर का ध्यान रखना है न.’’
‘‘और शादी के बाद?’’ वरुण ने कटुता से पूछा.
‘‘शादी के बाद बेफिक्री,’’ निशा मुसकराई.
‘‘यह भी तुम्हारी मां ने कहा होगा,’’ वरुण ने पूछा.
निशा की मुसकराहट गायब हो गई, ‘‘हर बात में आप मां को क्यों ले आते हैं?’’
‘‘मैं ले आता हूं?’’ वरुण ने कड़वाहट से कहा, ‘‘या तुम ले आती हो?’’
निशा ने वरुण के चेहरे को देखा और चुप हो गई.
घर के सामने निशा को छोड़ कर वरुण जैसे ही जाने लगा, निशा ने पूछा, ‘‘अंदर नहीं आएंगे? मां को बुरा लगेगा और मेरे ऊपर गुस्सा भी होंगी.’’
‘‘आज नहीं,’’ वरुण ने रूखेपन से कहा, ‘‘मेरी ओर से मां से क्षमा मांग लेना.’’
‘‘फिर कब आएंगे?’’
‘‘पता नहीं, पिताजी से पूछ कर बताऊंगा,’’ वरुण ने कहा और तेज कदम बढ़ाता हुआ आंखों से ओझल
हो गया.
‘पिताजी से पूछ कर बताऊंगा,’ निशा ने समझ लिया कि शादी के सिलसिले में मांबाप जितने महत्त्वपूर्ण होते हैं, उतने ही महत्त्वहीन भी होते हैं. क्या विडंबना है. अगले 10-12 दिनों तक कोई संपर्क न होने से निशा और परिवार वालों को चिंता होने लगी. होने वाले दामाद का शादी से पहले आनाजाना बना रहे तो सब निश्चिंत रहते हैं. बस, बेटी का जाना संदेह के दायरे में घिरा होता है. शादी होने तक मानसम्मान बना रहे, बाद में तो कोई बात नहीं. निशा के दिल में तो विशेषकर एक खटका सा लगा रहा. कहीं वरुण नाराज तो नहीं हो गया?
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अंत में चिंतामुक्त होने के लिए वरुण को दावतनामा भेज दिया. वरुण ने कई बहाने बेमन से बनाए, पर फिर राजी हो गया. आखिर उसे भी तो निशा से मिलने की उतनी ही बेकरारी थी.
दोपहर के भोजन के बाद वरुण ने निशा से घूमने चलने को कहा.
‘‘मां से पूछ कर आती हूं,’’ निशा ने मुड़ते हुए कहा.
‘‘और अगर मना कर दिया?’’
‘‘हो भी सकता है.’’
मां ने मुंह तो बनाया पर जल्दी लौट आने की चेतावनी भी दे दी. बोली तो अंदर थी, पर इस तरह कि वरुण के कान में पड़ जाए. वरुण के माथे पर लकीरें पड़ गईं.
काफी देर तक दोनों सड़क पर पैदल चलते रहे. कोई बातचीत नहीं, लगभग एक शीतयुद्ध सा.
निशा ने ही मौन तोड़ा, ‘‘इतने दिनों तक आए क्यों नहीं? सब को चिंता हो रही थी.’’
मानो इसी प्रश्न की प्रतीक्षा में था. वरुण ने शीघ्रता से उत्तर दिया, ‘‘पिताजी से पूछा नहीं था.’’
उत्तर का अभिप्राय समझते हुए भी निशा ने प्रश्न किया, ‘‘क्यों नहीं पूछा? इतना डरते हैं आप?’’
‘‘हां,’’ वरुण ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा, ‘‘और तुम्हें भी डरना पड़ेगा.’’
‘‘जिन से लोग डरते हैं,’’ निशा ने कहा, ‘‘उन का सम्मान भी नहीं करते.’’
‘‘ओह,’’ वरुण ने तीखेपन से कहा, ‘‘तो तुम मेरे पिताजी का सम्मान नहीं करोगी?’’
‘‘ऐसा तो मैं ने नहीं कहा.’’
‘‘बात एक ही है.’’
‘‘क्या हर बात का गलत अर्थ निकालना आप की आदत है?’’
‘‘अपनीअपनी समझ है,’’ वरुण ने आते आटोरिकशा को रोकते हुए कहा.
निशा ने पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’
‘‘जहां चलो,’’ वरुण ने हंस कर कहा, ‘‘वैसे तो चांद पर जाने की तमन्ना है.’’
‘‘सुना है चांद की सतह में बहुत गहरे खड्डे हैं,’’ निशा ने अर्थभरी मुसकान से कहा.
‘‘हां, हैं तो,’’ वरुण ने उत्तर दिया, ‘‘पर दिल्ली की सड़कों से कम.’’ और तभी एक गढ्डा सामने आने से आटोरिकशा उछल पड़ा और निशा वरुण के ऊपर जा गिरी. जब गति सामान्य हुई तो निशा ने अपने को संभाला, और फिर हंस पड़ी, ‘‘क्या गढ्डा है.’’
‘‘हां,’’ वरुण भी मुसकराया, ‘‘गढ्डे भी कभीकभी एकदूसरे को मिला देते हैं.’’
‘‘विशेषकर,’’ निशा ने अर्थपूर्ण मुसकराहट से कहा, ‘‘तब जबकि ये गढ्डे मांबाप ने न खोदे हों.’’
मीठे व्यंग्य से वरुण ने पूछा, ‘‘इतनी अच्छी शिक्षा तुम्हें किस ने दी?’’
‘‘मां ने,’’ निशा ने तत्परता से कहा और पूछा, ‘‘आप को गढ्डे में गिरने के बारे किस ने बताया?’’
‘‘पिताजी ने,’’ वरुण ने उसी तत्परता से उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि शादी एक गढ्डा है.’’
फिर एकदूसरे को देख कर दोनों खुल कर हंसने लगे.
सुना है कि इस के बाद दोनों ने कभी भी अपनेअपने मांबाप की चर्चा नहीं की और सारा जीवन हंसी खुशी से बिताया.