Best Story : सफेद जूते- बसंत ने नंदन को कैसे सही पाठ पढ़ाया?

Best Story :  ‘हा…हा…हा…इस का बाप नहीं है न, कौन लाएगा इस के लिए जूते?’ नंदन और संदीप के ठहाकों के शोर में बसंत की आह दब गई.  बसंत धीरेधीरे बरसात के धुले कंकड़ों की चुभन जसेतैसे सहता हुआ उन के पीछेपीछे चल रहा था.

‘काश, मेरे पिता जीवित होते,’ बसंत सोचने लगा.

‘बसंत भाई, तेरा वह जो पार्ट टाइम बाप है न, जूते ला कर नहीं देता, हा… हा…हा…’ उस के कंधे पर हाथ रख कर नंदन ने कहा.

‘उफ, यह बरसात क्यों इस तरह इन कंकड़ों को नुकीला बना जाती है,’ बसंत मन ही मन बुदबुदाया, ‘मैं इस पगडंडी में एक भी कंकड़ नहीं रहने दूंगा. मेरे घर के आंगन तक कोलतार वाली सड़क होगी. जब मैं कार से उतरूंगा तो कारपेट बिछी सीढि़यों पर चढ़ता हुआ सीधे अपने कमरे में घुस जाऊंगा. तब मेरे सफेद जूतों पर धूल भी नहीं लगेगी,’ एक जबरदस्त ठोकर लगी तो उस के अंगूठे का नाखून बिलकुल खड़ा हो गया. थोड़ी देर के लिए आंखें बंद हो गईं, चेहरा सिकुड़ गया. हाथ खड़े हुए नाखून पर लगा और एक झटके से उस ने नाखून उखाड़ कर दूर फेंक दिया. आंखें खुलीं तो वह अपने घर की टूटी सीढि़यों पर बैठा था.

देहरी पार करते ही देखा, जहांतहां रखे बरतनों में टपटप पानी टपक रहा था. मां गीली लकडि़यों को बारबार फूंक रही थीं.‘मां, आंखें लाल होने तक इन गीली लकडि़यों को क्यों सुलगाती रहती हो? ये नहीं जलेंगी,’’ बसंत झल्लाया.

तभी टप से एक बूंद चूल्हे में टपकी और राख भी गीली कर गई. मां फिर गीली लकडि़यों को सुलगाने लगीं.

‘‘रहने दो मां, ये गीली लकडि़यां नहीं जलेंगी,’’ वह फिर बोला.

‘‘बासी भात गरम कर दूंगी, बेटा,’’ मां चूल्हा फूंकते हुए बोलीं.

‘‘मैं ठंडा ही खा लूंगा, मां,’’ बसंत ने तश्तरी अपनी ओर खिसका ली.

मां टुकुरटुकुर बेटे को देखे जा रही थीं. ‘कितना सुख मिलता है बेटे को पास बैठा कर खिलाने में,’ वे सोचने लगीं.

अंधेरा घिरने लगा था. बसंत खिड़की के पास बैठा सोच रहा था, ‘काश, मेरे पिताजी भी जीवित होते, मैं सफेद जूते पहन कर स्कूल जाता, नंदन व संदीप के साथ खेलता…’

‘‘उदास क्यों बैठा है बेटा, आज पढ़ेगा नहीं क्या?’’

‘‘पढ़ंगा, मां,’’ बसंत ने 2 छिलगे (मशाल जलाने की लकड़ी) जला कर गीली लकडि़यां सुखाईं और छिलगों की रोशनी में पढ़ने लगा. परंतु उस का मन पढ़ने में नहीं लग रहा था. उस के पैरों के तलवों में जलन हो रही थी. वह एकाएक अपनी मां से सवाल कर बैठा, ‘‘वह ड्राइवर चाचा हमारे यहां क्यों आते हैं, मां?’’

‘‘हमारी देखभाल करने आते हैं, बेटा,’’ जवाब दे कर वे अपने काम में व्यस्त हो गईं.

थोड़ी देर तक बसंत अपनी मां की ओर ही ध्यान लगाए बैठा रहा. शायद उसे विस्तृत उत्तर की आशा थी. मां को व्यस्त देख कर वह पुस्तक के पन्नों को उलटपलट करने लगा, लेकिन उस का मन बिलकुल नहीं लग रहा था. मन में कई सवाल कुतूहल मचा रहे थे. नंदन की छींटाकशी उस के कानों में बज रही थी.

‘‘पिताजी को क्या हो गया था?’’ बसंत फिर सवाल कर बैठा.

‘‘तुझे आज क्या हो गया है, बेटा? तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’ मां बोलीं.

‘‘ऐसे ही, मुझे पता होना चाहिए न, मैं अब बड़ा हो गया हूं.’’

‘‘आया बहुत बड़ा…’’ मां उस के गाल पर थपकी देते हुए मुसकरा दीं.

‘‘बताओ न मां?’’

कुछ देर के लिए मौन छा गया और फिर अतीत के उस कभी न भर सकने वाले घाव से टीस सी उठने लगी…  ‘‘बरसात के दिन थे. शाम के वक्त बाहर जोरों से पानी बरस रहा था. नदीनाले सभी उफन रहे थे. मैं इसी खिड़की के पास खड़ी घबरा रही थी. तुम्हारे पिता मवेशियों को लेने गए हुए थे. मुझे उन पर पूरा भरोसा था. फिर भी न जाने क्यों जी घबरा रहा था. बारिश कम हुई तो मैं भी बोरी सिर पर ओढ़ कर निकल पड़ी.  ‘‘अभी नालों का उफान कम नहीं हुआ था. मैं नाले के इस ओर से तुम्हारे पिता को इशारों से बता रही थी कि अभी पानी तेज बह रहा है. थोड़ी देर वहीं रुके रहो, लेकिन वे फिर भी मवेशियों को नाला पार कराने की कोशिश कर रहे थे. एक बैल बहुत ताकतवर था. किसी तरह वे उस की पूंछ पकड़ कर आधे नाले तक पहुंच गए. बैल का केवल सिर ही पानी से बाहर था. वह आगे बढ़ना नहीं चाह रहा था, लेकिन तुम्हारे पिता उस की पूंछ पकड़ कर आगे धकेले जा रहे थे. वह पीछे की ओर बढ़ने लगा तो उन्होंने छाता आगे की ओर झटका. बैल ने बिदक कर छलांग मार दी और पानी में लुप्त हो गया. तुम्हारे पिता उस के पीछे ही थे. बस फिर मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया और मैं जमीन पर बैठ गई. थोड़ी देर बाद उन का छाता दूर पानी की हिलोरों के साथ दिखाई दिया और…’’ यह सब बताते हुए मां एकाएक रोआंसी हो गई थीं.

‘‘मां की गोद में सिर टिकाए बसंत की नजरें अतीत में खोई मां की आंसू भरी आंखों को निहार रही थीं. वह एक हाथ से पैरों के तलवों को खुजला रहा था. मां ने पल्लू से आंसू पोंछे और बेटे के सिर पर हाथ फेरने लगीं. कुछ देर के लिए मौन छा गया. बसंत को तलवे खुजलाते देख उन की नजरें बेटे के पैरों पर पड़ीं, ‘‘ओह, यह क्या हुआ, बेटा?’’

‘‘कुछ नहीं मां. जूते नहीं हैं न, बरसात में पैर मसक गए हैं.’’

‘‘जूते ला दूंगी, बेटा,’’ उन्होंने एक असहाय सा आश्वासन अपने बेटे को दे दिया.

‘‘कब ला दोगी, मां?’’ बसंत के माथे पर सलवटें आ गईं.

‘‘बेटा, अब सड़क का काम शुरू हो गया है न, तेरे ड्राइवर चाचा ने कंकड़ तोड़ने का काम दिला दिया है. पैसे मिलेंगे तब ला दूंगी,’’ बेटे के सिर पर थपकियां देदे कर वे अपनेआप को तसल्ली दे रही थीं.

‘‘तब तक तो बरसात खत्म ही हो जाएगी, मां.’’

‘‘बेटा, सर्दियां आ जाएंगी न, उन दिनों स्कूल जाने में पैरों में ठंड लगेगी, इसलिए जूते चाहिए. आजकल तो गरमी है, क्या जरूरत है जूतों की? चल, सो जा, बहुत रात हो गई है.’’

बिस्तर में करवटें लेते हुए उस का कभी मां की असहाय अवस्था के साथ समझौता करने का मन करता तो कभी नंदन व संदीप की ठिठोली पर विद्रोह करने का. वह करवटें बदलते हुए कुछ न कुछ निर्णय करने पर तत्पर था.

‘‘उठो बसंत, सुबह हो गई. स्कूल जाना है कि नहीं?’’ मां घर का काम निबटाते हुए बोले जा रही थीं.  वह उठ कर बैठ गया, उस की उनींदी आंखें भारी हो रही थीं.

‘‘आज मैं स्कूल नहीं जाऊंगा, मां,’’ वह जम्हाई लेते हुए बोला.

‘‘क्यों बेटा, क्या तबीयत ठीक नहीं?’’

‘‘तबीयत तो ठीक है मां, लेकिन मेरा मन नहीं कर रहा है.’’

‘‘ठीक है बेटा, जैसी तेरी इच्छा,’’ मां बसंत को नाश्ता दे कर खेतों की ओर चल दीं.  खेतों से लौट कर आईं तो चूल्हे के पास हुक्के से दबा हुआ एक कागज मिला, जिस में लिखा था :

‘‘मां,

मैं अब बड़ा हो गया हूं. तुम्हारा दुख देखा नहीं जाता. मैं नौकरी करूंगा. मैं नौकरी ढूंढ़ने जा रहा हूं्. मां, मेरी चिंता मत करना. हां, मैं ड्राइवर चाचा से 40 रुपए ले कर जा रहा हूं, घर आ कर लौटा दूंगा. मैं जल्दी लौट आऊंगा. मां, अपना खयाल रखना.
-तुम्हारा बेटा,
बसंत.’’

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मां परेशान हो गईं. 1 महीना बीतने पर भी बसंत की कोई खबर न आई. फिर करीब डेढ़ महीने बाद डाकिए को अपने घर की ओर आता देख कर हाथ का काम छोड़ कर वे आगे बढ़ीं, ‘‘किस की चिट्ठी है, मेरे बसंत की? पढ़ तो…क्या लिखा है?’’

‘‘चाची, पहले मुंह मीठा करवाओ,’’ डाकिया मुसकराते हुए बोला.

‘‘कराऊंगी, जरूर कराऊंगी, पहले चिट्ठी तो पढ़,’’ गीले हाथ पोंछती हुई वे बोलीं.

‘‘चिट्ठी ही नहीं चाची, मनीऔर्डर भी आया है,’’ डाकिया ऊंचे स्वर में बोला.

‘‘मनीऔर्डर?’’ उस के पांव जैसे जमीन पर ही नहीं थे.

बसंत ने 400 रुपए भेजे थे और लिखा था, ‘‘मां, प्रणाम. अपने पहले वेतन में से 400 रुपए भेज रहा हूं. मैं एक दफ्तर में चपरासी बन गया हूं. मुझे बहुत अच्छे साहब मिले हैं. शाम को स्कूल भी जाता हूं. मेरी चिंता मत करना, मैं जल्दी घर आऊंगा.
-बसंत.’’

साल दर साल बीतते गए. मां पास- पड़ोस, रिश्तेदारी में बसंत के मनीऔर्डर की ही बातें बताती रहतीं. वे बसंत की चिट्ठियां गले लगाए रखतीं और सोचती रहतीं, ‘मेरा बसंत घर आएगा तो कितना खुश होगा. गांव में मोटर आ गई, घर की छत भी पक्की बना दी, बिजली लग गई,’ और वे मन ही मन मुसकराती रहतीं.  बसंत 3 साल बाद 1 महीने की छुट्टी बिता कर के शहर जाने की तैयारी कर रहा था. रात भर बरसात होती रही थी.

‘‘मां, सामान उठाने के लिए किस से बोला था, अभी तक आया नहीं?’’ खीजते हुए वह बोला.

‘‘नंदन आता ही होगा बेटा, अभी तो समय है,’’ मां रसोई में खटरपटर करती हुई बोलीं.

‘‘नंदन…कौन नंदन?’’

‘‘अरे, भूल गया? शिकायत तो उस की खूब करता था, बचपन में,’’ मुसकराती हुई वे बोलीं.

‘हां, संदीप, कल्याण, अरुण, पंकज सभी तो मिले थे. बस, एक नंदन ही नहीं मिला. मैं भी कैसा पागल हूं, किसी से पूछा भी नहीं उस के बारे में,’ वह मन ही मन सोचता रहा.

‘‘बड़ी देर कर दी, नंदन बेटा…’’ अचानक कमरे से मां की आवाज सुनाई दी.

‘‘देर हो गई चाची, रात बहुत बारिश हुई न, घर में पानी घुस गया था. बस, इसी से देर हो गई,’’ वह सामान की ओर देखते हुए बोला.

‘‘अरे, नंदन भैया, तुम तो दिखाई ही नहीं दिए, कहां रहे? ठीक तो हो?’’ बसंत उस से गले मिलते हुए बोला.

‘‘ठीक हूं भैया, घरगृहस्थी का जंजाल जो ठहरा, कहीं आनाजाना ही नहीं होता… तुम सुनाओ, कैसे हो?’’

‘‘बस देख ही रहे हो…जा रहा हूं आज.’’

‘‘नंदन बेटा, नाश्ता कर ले, बातें रास्ते में करते रहना. समय हो रहा है, गाड़ी निकल न जाए,’’ मां बोलीं.

‘‘चाची, मैं पहले बसंत भैया को छोड़ कर आता हूं, फिर वापस आ कर नाश्ता कर लूंगा.’’

नंदन सामान उठाए आंगन में बसंत का इंतजार कर रहा था. बसंत ने देखा कि नंदन नंगे पांव है. उसे अपना बचपन याद आने लगा और वह कई वर्ष पीछे चला गया.

‘‘चलो बसंत भैया, समय हो रहा है,’’ नंदन की आवाज से उस की तंद्रा टूटी.

‘‘नहीं, नंदन भैया, बरसाती कंकड़ बहुत नुकीले होते हैं…यह बैग जरा मुझे देना,’’ बसंत गंभीरता से बोला. उस ने बैग से अपने सफेद जूते निकाले और नंदन को पहना दिए.  नंदन बस अड्डे पहुंच कर जूते उतारने लगा तो बसंत ने उस का हाथ रोक दिया, ‘‘नहीं, नंदन भैया, मैं ने उतारने के लिए नहीं दिए हैं, पहने रहो. मेरे पास दूसरी जोड़ी है.’’

नंदन उसे एकटक देखते हुए अतीत में खो गया, ‘इस का बाप नहीं है न, कौन लाएगा इस के लिए जूते…हा…हा…हा…’ उस के कानों में बहुत दूर से गूंज सी सुनाई दी.  बस धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी और धूल उड़ाती हुई आंखों से ओझल हो गई. नंदन सफेद जूते पहने खड़ा हुआ शर्म महसूस कर रहा था. जूते उतार कर उस ने बगल में दबाए और घर की ओर चल दिया.

Husband Wife Story : उफ्फ ये पति और समोसा

Husband Wife Story : सलोनी की शादी के लिए सब उस के पीछे पड़े थे कि समय से होनी चाहिए नहीं फिर अच्छा पति नहीं मिलेगा…

सलोनी ने सारे व्रतउपवास कर लिए. अब इंतजार था कि कोई राजकुमार आएगा और उसे घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा और जिंदगी हो जाएगी सपने जैसी. प्रतीक्षा को विराम लगा. आ गए राजकुमार साहब घोड़े पर तो नहीं पर कार पर चढ़ कर आ गए.

हां तो शादी के पहले का हाल भी बताना जरूरी है. सगाई के बाद ही सलोनी को ये राजकुमार साहब लगे फोन करने. घंटो बतियाते, चिट्ठी भी लिखतेलिखाते. सलोनी के तो पौ बारह, पढ़ालिखा बांका जवान मुंडा जो मिल गया था… शादी धूमधाम से हुई. सलोनी की मुसकान रोके नहीं रुक रही थी.

राजकुमार साहब भी शुरुआत में हीरो की माफिक रोमांटिक थे पर पति बनते ही दिमाग चढ़ गया 7वें आसमान पर ‘मैं पति हूं.’ सलोनी भी भौचक्का कि इन महानुभाव को हुआ… क्या अभी तक तो बड़े सलीके से हंसतेमुसकराते थे जनाब, लेकिन पति बनते ही नाकभौं सिकोड़ कर बैठ गए. प्रेम के महल में हुक्म की इंतहा यह बात कुछ हजम नहीं हुई पर शादी की है तो हजम करनी ही पड़ेगी तो सलोनी ने अपना पूरा हाजमा ठीक किया.

मगर पति को यह कैसे बरदाश्त कि पत्नी का हाजमा सही हो रहा है कुछ तो करना पड़ेगा वरना पति बनने का क्या फायदा.

‘‘कपड़े क्यों नहीं फैलाए अभी तक… मशीन में सड़ जाएंगे,’’ पति महाशय ने अपना भोंपू फूंका.

सलोनी ने सहम कर कहा, ‘‘भूल गई थी.’’

‘‘कैसे भूल गई फेसबुक, व्हाट्सऐप, किताबें याद रहती हैं… यह कैसे भूल गई.’’

‘अब भूल गई तो भूल गई. भूल सुधार ली जाएगी,’ सलोनी ने मन में कहा.

‘‘भूलना कितनी बड़ी गलती, अब जाओ कोई काम मत करना मेरा मैं खुद कर लूंगा,’’ पति महाशय ने ऐलान कर दिया.

‘ठीक है जनाब कर लो बहुत अच्छा. ऐसे भी मु?ो कपड़े फैलाने पसंद नहीं,’ सलोनी ने मन में सोचा.

पति महाशय ने मुंह फुला लिया… अब बात नहीं करेंगे. बात नहीं करेंगे तो वह भी कुछ घंटे नहीं बल्कि पूरे 3-4 दिन नहीं करेंगे… इतनी बड़ी भूल जो कर दी सलोनी ने. अब सलोनी का हाजमा कहां से ठीक हो. अब तो ऐसिडिटी होनी ही है, फिर सिरदर्द.

एक बार सलोनी पति महाशय के औफिस के टूअर पर साथ आई थी. पति महाशय ने रात को गैस्टहाउस के कमरे में साबुन मांगा. सलोनी ने साबूनदानी पकड़ाई पर यह क्या उस में तो छोटा सा साबुन का टुकड़ा था. पति महाशय का गुस्सा 7वें आसमान पर… बस पूरा 1 हफ्ता बात नहीं की. औफिस के टूअर में घूमने आई सलोनी की घुमाई गैस्टहाउस में ही रह गई… इतनी बड़ी भूल जो कर दी थी.

उस के बाद से सलोनी कभी साबुन ले जाना नहीं भूली.

पति महाशय ने इसी में गर्व से सीना तान लिया कि सलोनी की इतनी बड़ी गलती जो

उन्होंने सुधार दी. सलोनी ने भी सोचा कि पति के इस तरह मुंह फुलाने की गलती को सुधारा जाए पर पति कहां सुधरने वाले. उन का मुंह गुब्बारे जैसा फूला तो जल्दी पिचकेगा नहीं, आखिर पति हैं न.

सलोनी एक बार घूमने गई थी बड़े शौक से. पति महाशय ने ऊंची एड़ी के सैंडल खरीदे. सलोनी सैंडल पहन कर ज्यों ही घूमने निकली ऊंची एड़ी का एक सैंडल गया टूट और पति महाशय गए रूठ. उस पर से ताना भी मार दिया, ‘‘कभी इतनी ऊंची एड़ी के सैंडल पहने नहीं तो खरीदे क्यों? अब चलो बोरियाबिस्तर समेट वापस चलो.’’

सलोनी हो गई हक्काबक्का… इतनी सी बात पर इतना बवाल… आखिर सैंडल का ही तो था सवाल दूसरे ले लेंगे. नहीं तो नहीं… एक बार पति महाशय का मुंह तिकोना हो गया तो सीधा होने में समय लगता है पर सलोनी को भी ऐसे आड़ेतिरछे सीधा करना खूब आता है. सौरी बोल कर मामला रफादफा किया और पति महाशय को घुमाघुमा के घुमा लिया.

कभीकभी पति महाशय का स्वर चाशनी

में लिपटा होता है पर ऐसा बहुत कम ही होता

है, हिटलर के नाती जो ठहरे. एक बार बड़े प्यार से सलोनी को जन्मदिन पर घुमाने का वादा कर औफिस चले गए और लौटने पर सलोनी के

तैयार होने में सिर्फ 5 मिनट की देरी पर बिफर पड़े. नाकभौं सिकोड़ कर ले गए मौल लेकिन

मुंह से एक शब्द नहीं फूटा. सलोनी ने अपनी फूटी किस्मत को कोसा. ऐसे नमूने पति जो मिले थे उसे.

सलोनी पति की प्रतीक्षा में थी कि पति टूर से लौट कर आएंगे तो साथ में खाना खाएंगे. पति महाशय लौटे 11 बजे. जैसे ही सुना कि सलोनी ने खाना नहीं खाया तो बस जोर से डपट दिया और पूरी रात मुंह घुमा कर लेटे रहे. सलोनी ने फिल्मों में कुछ और ही देखा था पर हकीकत तो कुछ और ही थी. वह दिन और आज का दिन सलोनी ने पति की प्रतीक्षा किए बगैर ही खाने का नियम बना लिया… कौन भूखे पेट को लात मारे और भूखे रह कर कौन से उसे लड्डू मिलने वाले थे…

कभीकभी भ्रम का घंटा मनुष्य को अपने में लपेटे में ले ही लेता है. सलोनी को लगा कि पति महाशय का त्रिकोण अब सरल कोण में तबदील होने लगा है पर भ्रम तो भ्रम ही होता है सच कहां होता है. सलोनी को प्रतीत हुआ कि उस का एकलौता पति भी सलोना हो गया है पर सूरत

और सीरत में फर्क होता है न… सूरत से सलोना और सीरत… व्यंग्यबाण चला दिया, ‘‘आजकल बस पढ़तीलिखती ही रहती हो घर का काम भी मन से किया करो नहीं तो कोई जरूरत नहीं

करने की…’’

सलोनी ने कुछ ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘दिखता नहीं है कि मैं कितना काम करती हूं.’’

इतना कहना था कि पति जनाब ने मुंह फुला लिया कि पढ़लिख कर सलोनी का दिमाग खराब हो रहा है.

सलोनी ने भी ठान लिया कि इस बार नहीं मनाएगी, पर हमेशा की तरह सलोनी ने ही मनाया, ‘‘तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं,’’ यह गीत सलोनी की जिंदगी में लिंग बदल कर बज रहा था और धूमधड़ाके से बजता आ रहा था.

सलोनी ने एक दिन अपनी माताश्री से अपनी व्यथाकथा कह डाली, ‘‘मां, पापा तो ऐसे

हैं नहीं…’’

माताश्री मुसकराईं, ‘‘बेटी, तुम्हारे पापा बहुत अच्छे हैं पर पति कैसे हैं

उस का दुखड़ा अब तुम से क्या बताऊं… मेरी दुखती रग पर तुमने हाथ रख दिया. दरअसल, यह पति नामक प्रजाति होती ही ऐसी है… इस प्रजाति में कोई भी जैविक विकास की अवधारणा लागू नहीं होती, इसलिए जो है जैसा है, इन्हीं से उल?ो रहो… ये कभी सुलझने वाले नहीं. लड़के प्रेमी, भाई, मित्र, पिता सब रूप में अच्छे हैं पर पति बनते ही देवता इन पर सवार हो जाते हैं. सलोनी ने देवी चढ़ना सुना था पर देवता… उसे वह गाना याद आने लगा, ‘भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति मेरा…’’

‘‘पर माताश्री, फिर स्त्री के अधिकारों का क्या और स्त्री विमर्श का प्रश्न?’’ सलोनी ने पूछा

‘‘सलोनी बेटी, तुम्हारा पति त्रिकोण ही सही  पर तिकोना समोसा खिलाता है न.’’

‘‘हां, वह तो खिलाता है.’’

‘‘बस फिर कोई बात नहीं, उस की बातें एक कान से सुनो दूसरे से निकालो और अपना काम धीरेधीरे करते चलो,’’ माताश्री ने पति का मर्म समझ दिया.

सलोनी ने एक ठंडी आह भरी और मुंह से निकला ‘उफ ये पति.

संजीदा और Aamir Ali क्यों हुए अलग, तलाक के 4 साल बाद एक्टर को हुआ फिर से प्यार

Aamir Ali : आजकल रिश्ते जुड़ना और टूटना आम बात होते जा रहा है. क्या आम कपल हो या सेलिब्रिटी….शादी के बाद झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि बात तलाक तक पहुंच जाती है, कुछ कपल्स अपने रिश्ते संभाल लेते हैं, तो वहीं कुछ कपल्स को अपनी आगे की जिंदगी शांति से बिताने के लिए तलाक लेना पड़ता है… ऐसा ही कुछ हुआ टीवी के फेमस कपल आमिर अली और संजीदा शेख (Sanjeeeda Sheikh) के साथ…

संजीदा शेख
संजीदा शेख

शादी के 8 साल बाद हुए अलग

दोनों के तलाक से फैंस को दुख हुआ. दरअसल आमिर और संजीदा ने अपनी शादीशुदा जिंदगी 8 साल तक गुजारने के बाद एकदूसरे से अलग हो गए. साल 2020 में अलग हुए और 2021 में इनका तलाक हो गया. हालांकि शादी से पहले दोनों ने एकदूसरे को लंबे समय तक डेट किया था.

आमिर अली
आमिर अली

संजीदा शेख का था एक्सट्रा मैरिटल अफेयर

आमिर और संजीदा की मुलाकात टीवी सीरियल ‘क्या दिल में है’ के सेट पर हुई थी. दोनों की एक बेटी है, जो संजीदा शेख के साथ रहती है. रिपोर्ट्स के मुताबिक तलाक की वजह संजीदा शेख का एक्सट्रा मैरिटल अफेयर बताया जाता है. खबरों के अनुसार, संजीदा शेख और हर्षवर्धन राणे डेट कर रहे थे, इसी वजह से तलाक हो गया.

आमिर अली की जिंदगी में फिर से हुआ प्यार का दस्तक

ईटाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, आमिर अली की जिंदगी में प्यार ने दोबारा दस्तक दिया है. तलाक के लगभग 4 साल बाद अब आमिर अली अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने अपने रिश्ते के बारे में कन्फर्म किया है. आमिर अंकिता कुकरेती को डेट कर रहे हैं.

हर कोई अपनी जिंदगी में प्यार का हकदार होता है

रिपोर्ट के अनुसार, आमिर ने कहा कि ‘किसी के साथ जानपहचान बढ़ाना अच्छी बात है. बहुत समय बाद मुझे किसी को जानने का मौका मिला है. हर कोई अपनी जिंदगी में प्यार का हकदार होता है. हालांकि, किसी को कुछ होने से पहले ही अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना था और कोई अब बढ़ रहा है’. आमिर ने आगे कहा कि वह अपनी जिंदगी में बहुत खुश हैं. ‘मेरी जिंदगी में सब ठीक है. मैं बहुत खुश हूं. मुझे एहसास है कि मेरे सीने में आज भी दिल है.’

5 महीने पहले हुई रिश्ते की शुरुआत

उनका रिश्ता 5 महीने पहले ही शुरू हुआ है. आमिर की जिंदगी में काफी उतारचढ़ाव आए, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं माना. एक्टर ने ये भी कहा कि उन्हें लगने लगा था कि अब उनका दिल प्यार करने लायक नहीं है. लेकिन उनकी जिंदगी दोबारा पटरी पर आने लगी है. अभी उनका रिलेशनशिप स्टार्टिंग फेज में है.

हिट फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ में डायरेक्टर ने Madhuri Dixit को लेने से क्योंं किया इनकार

Madhuri Dixit : माधुरी दीक्षित नेने और सलमान खान की जोड़ी ‘हम आपके हैं कौन’ की सफलता के बाद सबसे खूबसूरत जोड़ी के रूप में मानी जाती है. अगर पर्सनल जिंदगी की बात करें तो औफ स्क्रीन हो यह औन स्क्रीन सलमान खान और माधुरी दीक्षित एक दूसरे का बहुत सम्मान करते हैं और हमेशा एकदूसरे के साथ फिल्में करने के लिए भी तैयार रहते हैं.

‘हम आपके हैं कौन’ के अलावा सलमान खान और माधुरी दीक्षित की जोड़ी फिल्म साजन और दिल तेरा आशिक में भी एक साथ नजर आई. सलमान माधुरी की जोड़ी को अपार लोकप्रियता मिलने के बावजूद हम साथ साथ हैं के लिए डायरेक्टर ने माधुरी दीक्षित को फिल्म में लेने के लिए ना बोल दिया. इस फिल्म के डायरेक्टर सूरज बड़जात्या ने इस फिल्म से जुड़ी कास्टिंग को लेकर दिलचस्प किस्सा सुनाया.

सूरज बड़जात्या के अनुसार जब वह फिल्म हम साथ साथ हैं की कास्टिंग कर रहे थे उस वक्त माधुरी दीक्षित इस फिल्म में काम करना चाहती थी और उन्होंने अपनी यह इच्छा सूरज बड़जात्या के सामने भी रखी. डायरेक्टर के अनुसार ‘हम साथ साथ हैं’ में जितने भी किरदार थे वह माधुरी दीक्षित के लोकप्रियता और टैलेंट के हिसाब से सही नहीं थे. क्योंकि माधुरी दीक्षित जो रोल करना चाहती थी वह उनकी काबिलियत के हिसाब से बहुत छोटा और ऐसा सही नहीं था.

सूरज के अनुसार उन्होंने माधुरी दीक्षित को समझाया कि यह पुरुष प्रधान फिल्म है और इसमें माधुरी दीक्षित के लायक रोल नहीं है. क्योंकि सलमान के साथ वाला रोल जो करिश्मा कपूर ने निभाया था वह बहुत छोटा था, सलमान की भाभी के रोल में जो बाद में तब्बू ने निभाया. वह सब वह माधुरी के लिए किसी भी एंगल से सही नहीं था. बावजूद इसके माधुरी दीक्षित सूरज बड़जात्या की फिल्म करना चाहती थी. तब सूरज बड़जात्या को माधुरी को बोलना पड़ा कि अगर आप छोटा और ऐसा रोल करेंगे तो मैं सहज नहीं हो पाऊंगा.

गौरतलब है हम साथ साथ हैं के दौरान ही सलमान खान और हिरन वाला कांड हुआ था. इसके अलावा इस फिल्म में सलमान खान के साथ करिश्मा कपूर तब्बू, नीलम कोठारी, मोहनीश बहल आदि कई अच्छे कलाकार थे. लेकिन माधुरी दीक्षित नहीं थी और सूरज बड़जात्या को इस बात का अफसोस भी है, क्योंकि उन्हें माधुरी दीक्षित को हम साथ साथ हैं मैं काम करने के लिए ना बोलना पड़ा था.

Surrogacy : मां बनना साबित हुआ वरदान

Surrogacy : एक लड़की के लिए मां बनना बेहद सुखदाई और खुशी की बात होती है. लेकिन किन्हीं कारणों से मां न बन पाना और इस वजह से बांझ औरत कहलाना किसी तिरस्कार और अपमान से कम नहीं होता. एक विवाहित स्त्री के लिए मां न बन पाना किसी श्राप से कम नहीं होता लेकिन आज मैडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि आज हर वह लड़की जो मां बनने की इच्छा रखती है, मैडिकल साइंस की मदद से मां बन सकती है.

हर लड़की का सपना होता है कि वह शादी कर के अपने बच्चों के साथ अपनी छोटी सी दुनिया बसाए। कई बार तो कई लड़कियां बच्चों का सुख पाने के लिए ही शादी के बंधन में बंध जाती हैं. लेकिन आज मैडिकल साइंस की मेहरबानी के बिना शादी किए भी सरोगेसी के जरीए अनब्याही लड़की भी मां बन सकती है.

सरोगेसी का मतलब होता है किराए की कोख के जरीए मां बनने की प्रक्रिया को संपन्न करना. आज के समय में कई ऐसी स्त्रियां हैं जो सरोगेसी का सहारा ले कर मां बनने का सुख प्राप्त कर रही हैं. खासतौर पर ग्लैमर वर्ल्ड, बौलीवुड हीरोइन, मौडल्स, यहां तक की हीरोज भी सरोगेसी के जरीए मातापिता बनने का सुख प्राप्त कर रहे हैं. निर्माता निर्देशक करण जौहर और तुषार कपूर इस बात का जीताजाता उदाहरण हैं जिन्होंने बिना शादी किए पिता बनने का सुख प्राप्त किया है.

पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

नैचुरल तरीके से गर्भवती न हो पाना

आज के मौडर्न युग में जबकि हर इंसान अपनी मरजी का मालिक है, तो वह अपने शरीर को भी उसी हिसाब से चलाने की कोशिश करता है जैसाकि वह चाहता है. लेकिन जैसेकि हर दवाई की ऐक्सपायरी डेट होती है, वैसे ही हमारा शरीर भी मशीन की तरह ही है, जिस में एक समय तक मां बनने की क्षमता होती है और शरीर का गर्भाशय भी कम उम्र के चलते मजबूत होता है. एक स्त्री का गर्भाशय पैदा करने की प्रक्रिया के लिए भी एक उम्र तक मजबूत होता है. अगर सही समय पर महिलाएं कैरियर बनाने के चक्कर में या देरी से शादी करने की वजह से यह यों कहिए कि गर्भनिरोधक गोलियां खा कर शारीरिक संबंध बनाने की वजह से संभोग और ऐयाशी के चलते जब तक मां बनने के फैसले पर पहुंचती हैं तो बहुत देरी हो जाती है.

ऐसे समय में कई स्त्रियां जो कई लोगों के साथ संभोग करती हैं और गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं, एक समय के बाद उन की बच्चेदानी इस लायक ही नहीं होती कि वह बच्चा कंसीव कर सके. इसी वजह से ऐसी कई स्त्रियों को गर्भपात का दुख सहन करना पड़ता है. ऐसी महिलाएं चाह कर भी मां नहीं बन पातीं.

कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं जिन के गर्भाशय में मैडिकल प्रौब्लम होती है और इसी के चलते वे मां बनने में असमर्थ होती हैं. ऐसी कई औरतें आज के समय में सरोगेसी के जरीए मां बनने का सुख प्राप्त कर रही हैं. इन में ऐसी भी तैयार होती हैं जो अविवाहित होने की वजह से या फिगर खराब होने के दर से बच्चा पैदा नहीं करना चाहतीं लेकिन बच्चे का सुख प्राप्त करना चाहती हैं. ऐसे लोगों के लिए भी सरोगेसी वरदान साबित हुआ है.

ग्लैमर वर्ल्ड की कई फिल्मी हस्तियों ने सरोगेसी के जरीए मां और पिता बनने का सुख प्राप्त किया है

बौलीवुड में सरोगेसी का बोलबाला जोरशोर से है, क्योंकि ऐक्टर हो या आम इंसान, मांबाप बनने का सुख सभी प्राप्त करना चाहते हैं. अपनी आंखों के सामने एक छोटे से बच्चे को हंसताखेलता देखते हुए बड़े होते देखना हर किसी का सपना होता है. लेकिन हमेशा जो हम चाहते हैं वह होता नहीं, कभीकभी बायोलौजिकल परिस्थितियों की वजह से कई औरतें मां बनने के सुख से वंचित रह जाती हैं। बौलीवुड में भी कई हीरोइनें हैं, जिन्होंने कई बार गर्भपात का दुख झेलते हुए फाइनली सरोगेसी का सहारा लिया और मां बनने का सुख प्राप्त किया.

अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने 21 जनवरी, 2022 को सरोगेसी के जरीए मां बनने की घोषणा की और वे एक बेटी की मां बनीं. शाहरुख खान और गौरी खान का बेटा अबराम सरोगेसी की मदद से हुआ है. उन के पहले 2 बच्चे बायोलौजिकल तरीके से ही हुए हैं और गौरी ही उन की मां हैं.

शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा ने सरोगेसी का सहारा ले कर एक बेटी को जन्म दिया। एक बेटा उन को पहले से है जो शिल्पा और राज कुंद्रा का बेटा है. सूत्रों के अनुसार, शिल्पा शेट्टी औटोइम्यून बीमारी से पीड़ित हैं इसीलिए वे दूसरी बार मां नहीं बन पाईं, लिहाजा बेटी शामिशा के जन्म के लिए शिल्पा और राज कुंद्रा ने सरोगेसी का सहारा लिया.

पोर्न स्टार और ऐक्ट्रैस सनी लियोन आज के समय में 3 बच्चों की मां हैं जिस में से एक लड़की को उन्होंने अनाथालय से गोद लिया है और उन के और 2 बच्चे सरोगेसी से हुए हैं.

कौमेडियन कृष्णा अभिषेक और ऐक्ट्रैस कश्मीरा शाह भी काफी समय से बच्चों के लिए कोशिश कर रहे थे लेकिन कश्मीरा को कई बार गर्भपात के दुख से गुजरना पड़ा। इस के बाद उन्होंने सरोगेसी का सहारा ले कर 2 बच्चों को जन्म दिया. इस के अलावा प्रीति जिंटा भी सरोगेसी के जरीए 2 बच्चों की मां बनीं.

श्रेयस तलपङे 14 साल की शादी के बाद 2018 में एक बेटी के पिता बने. आमिर खान की दूसरी पत्नी किरण राव भी कई बार गर्भपात के दर्द से गुजरीं। उस के बाद उन्होंने सरोगेसी का सहारा ले कर बेटे आजाद को जन्म दिया.

बिना संबंध के सरोगेसी के जरीए मां बनने की प्रक्रिया पर एक नजर

मैडिकल साइंस की तरक्की के चलते सरोगेसी का सहारा ले कर मां या पिता बनने का सुख प्राप्त किया जा सकता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर यह सरोगेसी की प्रक्रिया कैसे होती है?

भारत में सरोगेसी को किराए की कोख भी कहा जाता है. गौरतलब है कि भारत में सरोगेसी बेन है क्योंकि पिछले कुछ सालों से सरोगेसी की प्रक्रिया जोरशोर से फलफूल रही है और कई लोग इसे पैसा कमाने का और बिजनैस का माध्यम भी बना रहे हैं. इस प्रक्रिया में तकरीबन ₹15 से 20 लाख के करीब लगते हैं और सरोगेट मदद को इस से बहुत फायदा मिलता है.

बच्चा पैदा करने के लिए जब कोई पतिपत्नी का जोड़ा किसी दूसरी औरत की मदद से बच्चा पैदा करते हैं, तो इस प्रक्रिया को सरोगेसी कहते हैं. इस प्रक्रिया में सरोगेट मदर अपने या फिर डोनर के एग्स के जरीए किसी दूसरे कपल के लिए गर्भवती होती है और पेट में दूसरे का बच्चा पालने वाली महिला सरोगेट मदर कहलाती है.

सरोगेसी भी 2 तरह की होती है- ट्रैडिशनल सरोगेसी और जैस्टेशनल सरोगेसी. ट्रैडिशनल सरोगेसी में पिता या डोनर का स्पर्म सरोगेट मदर के एग्स से मैच कराया जाता है उस के बाद 9 महीने तक सरोगेट मदर बच्चों को अपने पेट में रखती है. कई बार पति का स्पर्म मैच नहीं होता तो डोनर का स्पर्म इस्तेमाल किया जाता है इसे ट्रैडिशनल या पारंपरिक सरोगेसी कहते हैं और जैस्टेशनल सरोगेसी में पति और पत्नी का एग्स और पति के स्पर्म को किराए की कोख में डाला जाता है.

ऐसे में यह सरोगेट मदर सिर्फ बच्चे को जन्म देती है और वह बायोलौजिकल मदर नहीं होती.

भारत में सभी आईवीएफ केंद्रों में जैस्टेशनल सरोगेसी ज्यादा प्रचलित है क्योंकि इस में आगे चल कर विवाद होने का खतरा नहीं होता. सरोगेसी की प्रक्रिया के लिए सरोगेट मदर की उम्र 25 से 35 के अंदर ही होनी चाहिए.

लेटैस्ट सरोगेसी रैगुलेशन बिल के मुताबिक, कमर्शियल सरोगेसी बेन है. सरोगेट मदर को एक बार ही सरोगेट मदर बनने का हक है ताकि इसे पैसा कमाने का बिजनैस न बनाया जा सके.

इस प्रक्रिया में ₹15 से 20 लाख लगते हैं. सरोगेट मदर के चुनाव से पहले उस का पूरी तरह से चेकअप होता है ताकि पता लगाया जा सके की कही सरोगेट मदर किसी बीमारी से जूझ तो नहीं रही और वह पूरी तरह स्वस्थ है कि नहीं. जो स्त्री पूरी तरह से स्वस्थ होती है उसे ही सरोगेट मदर के लिए चुना जाता है.

Boyfriend का मेरे प्रति फीका व्यवहार है, मैं बहुत दुखी हूं…

Boyfriend :   अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं अपने बौयफ्रैंड से बहुत दुखी हूं. वह अपने कैरियर को ले कर बहुत परेशान रहता है. इस टैंशन के चलते वह मेरे साथ किसी भी पल को एंजौय नहीं करता. एंजौय करना तो बहुत दूर की बात है वह तो मुझे गर्लफ्रैंड की तरह ट्रीट तक नहीं करता. सैक्स के बाद वह चादर तान कर सो जाता है, जब भी हम मिलते हैं तो कभी हग नहीं करता, न ही हाथ पकड़ता है. वह मुझे मैसेजेस भी तब करता है जब मैं उसे गुस्से में कुछ कह देती हूं. मैं उस से प्यार करती हूं और उस का चेहरा देखते ही, उस से बात करते ही मेरे चेहरे पर खुशी आ जाती है, लेकिन मैं इस रिलेशनशिप में खुश नहीं हूं. उस का मेरे प्रति इस तरह का फीका व्यवहार अब मुझ से सहा नहीं जाता. क्या मुझे उस से ब्रेकअप कर लेना चाहिए?

जवाब-

आप के बौयफ्रैंड का अपने कैरियर को ले कर चिंतित होना जायज है लेकिन आप के प्रति जो उस का व्यवहार है, न तो वह जायज है और न ही ऐक्सैप्टेबल. रिलेशनशिप्स काफी कौंप्लिकेटेड होती हैं और इन्हें पटरी पर चलाते रहने के लिए यह बहुत जरूरी है कि एफर्ट्स दोनों तरफ से बराबर होते रहें.

आप के बौयफ्रैंड की यदि आप के प्रति कोई जवाबदेही या अच्छा व्यवहार नहीं है तो आप को उस से इस बारे में बात करनी चाहिए. यदि वह आप के विचार जान कर यह कहता है कि ब्रेकअप करने के बजाय वह खुद को सुधारेगा और आप को खुश रखेगा तो रिलेशनशिप को मौका दे कर देखिए. यदि उसे आप के होने या न होने से फर्क न पड़े तो ब्रेकअप कर आगे बढि़ए. रिलेशनशिप में खुश रहने का अधिकार आप दोनों को बराबर है.

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टीवी ऐक्ट्रैस Ishita Ganguly की कामयाबी का क्या है राज

Ishita Ganguly : खूबसूरत, हंसमुख और मृदुभाषी अभिनेत्री इशिता गांगुली कोलकाता की एक मध्यवर्गीय परिवार से हैं. परिवार में उन के पेरैंट्स की कला में बहुत रुचि थी. उन की मां सोमा गांगुली एक क्लासिकल गजल सिंगर हैं. उन के भाई तबला प्लेयर है. यही वजह है कि बचपन से ही उन्हे ऐक्टिंग में आने की रुचि रही है.

उन्होंने 13 साल की उम्र में कैरियर की शुरुआत बांग्ला थिएटर और टीवी शो से किया और कैरियर को आगे बढ़ाने के लिए मुंबई आईं और शो ‘शास्त्री सिस्टर्स’ में एक सिस्टर की भूमिका निभाई, जिसे दर्शकों ने पसंद किया. इस के बाद उन्होंने कई धारावाहिक, फिल्मों और वैब सिरीज में काम किया है, जिस में ‘इश्क का रंग सफेद,’ ‘पेशवा बाजीराव,’ ‘लाल इश्क’ आदि हैं.

उन्होंने हर तरह की भूमिका निभाई है और आगे भी नईनई चुनौतियों को लेना पसंद करती हैं. शेमारू  उमंग पर उन की शो ‘बड़ी हवेली की छोटी ठकुराइन’ आने वाली है, जिस में उन्होंने चमकीली की निगेटिव भूमिका निभाई है, जो उन की सब से अलग भूमिका है. उन्होंने अपनी जर्नी के बारे में खास गृहशोभा से बात की, पेश हैं कुछ खास अंश :

शो को करने की खास वजह के बारे में इशिता कहती हैं कि निगेटिव भूमिका निभाना हमेशा कठिन होता है, क्योंकि इस में चुनौतियां बहुत होती हैं, लेकिन ऐक्टिंग के शेड्स बहुत होते हैं. मैं ऐसी भूमिका पहली बार निभा रही हूं. इस में एक परिवार की पावर को पाने की कोशिश को दिखाया गया है, जैसा अमूमन अधिकतर परिवारों में होता है. इस चरित्र में ड्रामा, अदाएं और रोमांच बहुत अधिक हैं, जिसे करने में मजा आ रहा है.

नहीं कर पातीं रिलेट

इस निगेटिव चरित्र से इशिता खुद अधिक रिलेट नहीं कर पातीं, क्योंकि वे रियल लाइफ में बहुत शांत और सादगी पसंद लड़की हैं. वे कहती हैं कि इस किरदार से मैं रिलेट नहीं करती, लेकिन इस की कौन्फिडेंट और क्लीयरिटी से मैं खुद को जोड़ पाती हूं, क्योंकि रियल लाइफ में मैं इस चरित्र की तरह पौजिटिव होने के साथसाथ अपने काम के प्रति बहुत पैशनेट हूं. इस के अलावा शो में एकदूसरे से पावर की छीनाझपटी दिखाया गया है, जो अधिकतर कुछ परिवारों में आज भी होता है, पर मेरे परिवार में मैं, मेरी भाभी और मां हैं, लेकिन सब को अपने हिसाब से रहने की आजादी है और किसी से किसी को कोई समस्या नहीं है.

मिली प्रेरणा

वे कहती हैं कि मेरी मां एक गजल गायिका हैं, भाई तबला वादक और भाभी सिंगर हैं, ऐसे में पूरे परिवार में कला का माहौल है. मैं ने भी पढ़ाई के साथसाथ डांस क्लासेज जौइन किया था. ऐक्टिंग मेरा प्रोफेशन होगा, तब मैं ने सोचा नहीं था, लेकिन अभिनेत्री माधुरी दीक्षित और रेखा के अभिनय और डांस से बहुत प्रभावित थी. उन की अदाएं, उन के अभिनय को मैं आईने के सामने परफौर्म करती थी. धीरेधीरे जब मैं थोड़ी बड़ी हुई, तो 13 साल की उम्र में मैं ने पहली बार कैमरे को फैस किया. छोटेछोटे काम कोलकाता में मिले. मैं थिएटर के साथ करती रही. फिर मुझे लगा कि इस फील्ड में आगे बढ़ने के लिए मुंबई जाना पड़ेगा और मैं मुंबई आ गई.

मैं ने अभिनय का कोर्स नहीं किया है, लेकिन जहां भी कुछ मौका देखती थी, तो बड़े कलाकारों के अभिनय की बारीकियों को देख कर सीखती रहती थी.

थिएटर, फिल्मों या टीवी की तकनीकों में काफी अंतर होता है. थिएटर में सब लाइव होता है, जबकि फिल्मों या टीवी में कैमरे के सामने ऐक्टिंग करना पड़ता है, जो पहले बहुत कठिन था, धीरेधीरे आसान हुआ.

रहा संघर्ष

इशिता मुंबई सिर्फ 3 दिनों के लिए अभिनय के क्षेत्र में ट्राई करने आई थीं. उन 3 दिनों में उन्होंने 15 से 20 औडिशन हर तरह की भूमिका के लिए दिए और उन्हे शो ‘शास्त्री सिस्टर्स’ में एक बहन की भूमिका मिली. इस से उन के अभिनय की शुरुआत मुंबई में टीवी शो से हुई.

वे कहती हैं कि हर नए काम के लिए संघर्ष और चुनौतियां होती हैं, लेकिन एक बार काम मिल जाने पर आगे काम मिलता है. मैं ने भी शो ‘शास्त्री सिस्टर्स’ के बाद कई शोज में लीड भूमिका निभाई, जिस में सभी भूमिका एकदूसरे से अलग थे, क्योंकि मैं हमेशा एक शो से दूसरे में अलग दिखने की कोशिश करती रही. इस के लिए मैं ने लुक पर भी काफी काम किया, जिसे दर्शकों ने पसंद किया है.

किसी भी भूमिका से निकल कर कुछ अलग करने में मुझे समस्या नहीं. मैं हर किरदार को शून्य से
शुरू करती हूं. इस के अलावा मैं ने हिंदी फिल्मों में भी आने की कोशिश की है.

फिल्म ‘मेरी प्यारी बिंदु’ में मैं ने एक छोटी सी भूमिका की है, लेकिन बड़ी भूमिका नहीं मिली. कुछ चीजें हमारे जीवन में ऐसी होती हैं, जिन पर कोई कंट्रोल नहीं होता, लेकिन मैं हार नहीं मानती और कोशिश हमेशा हर काम को अच्छा करने के लिए करती रहती हूं.

परिवार का सहयोग

इशिता कहती हैं कि परिवार का सहयोग हमेशा मेरे साथ रहा है। उन्होंने कोलकाता से दूर मुंबई आ कर काम करने की आजादी मुझे दी. परिवार के सहयोग के बिना अपनी शर्तों पर बिना गौडफादर के यहां काम करना आसान नहीं होता. केवल मानसिक ही नहीं, वित्तीय सहायता भी परिवार वालों ने दिया
है. मेरी मां ने हमेशा अपनी जर्नी खुद तय करने की सलाह बचपन से मुझे दी है, जिस से मुझे आगे बढ़ने में मदद मिलती है.

रिजैक्शन है पार्ट औफ औडिशन

इशिता को औडिशन में हुए रिजैक्शन से अधिक फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि वे जानती हैं कि हर औडिशन एक प्रोसेस है और इस का अर्थ उस किरदार के लिए चुना जाना नहीं होता. वे कहती हैं कि कई बार मायूसी होती है, लेकिन खुद को समझाना पड़ता है. इस के अलावा मैं बहुत कम उम्र में इंडस्ट्री में आई थी, इसलिए रिजैक्शन का अधिक असर मुझ पर नहीं पड़ा, क्योंकि इंडस्ट्री में आप पहले से कुछ भी प्रेडिक्ट नहीं कर सकते. यहां आज काम है, कल नहीं, ऐसे में मैंने अपनी फाइनैंस को अच्छी तरह से प्लानिंग की हुई है.

मैसेज

इशिता का नए कलाकारों के लिए मेसेज है कि वे अभिनय में सही मौका न मिलने को ले कर कभी हताश या निराश न हों. धीरज रखें, मेहनत और लगन के साथ किसी भी क्षेत्र में कामयाबी मिल सकती है. खुद को ऐक्टिव रखें और इस के लिए फिजिकल ऐक्सरसाइज को अधिक महत्त्व दें. मानसिक और शारीरिक रूप से फिट रहने पर व्यक्ति किसी भी समस्या से निकल सकता है और मैं भी इसी का सहारा लेती हूं. इंडस्ट्री में हर चीज को स्वीकारना पड़ता है, तभी आप यहां टिक पाते हैं.

Short Story : मोहिनी – क्या उसकी सच्चाई ससुराल वालों के सामने आई?

Short Story :  मनोहरा की पत्नी मोहिनी बड़ी शोख और चुलबुली थी. अपनी अदाओं से वह मनोहरा को हमेशा मदहोश किए रहती थी. उस को पा कर मनोहरा को जैसे पंख लग गए थे और वह हमेशा आकाश में उड़ान भरने को तैयार हो उठता था. मोहिनी उस की इस उड़ान को हमेशा ही सहारा दे कर दुनिया जीतने का सपना देखती रहती थी.

अपने मायके में भी मोहिनी खुली हिरनी की तरह गांवभर में घूमती रहती थी. इस में उसे कोई हिचक नहीं होती थी, क्योंकि उस की मां बचपन में ही मर गई थी और सौतेली मां का उस पर कोई कंट्रोल न था.

मोहिनी छोटेबड़े किसी काम में अपनी सीमा लांघने से कभी भी नहीं हिचकती थी. शादी से पहले ही उस का नाम गांव के कई लड़कों से जोड़ा जाता था. वैसे, ब्याह कर अपने इस घर आने के बाद पहले तो मोहिनी ने अपनी बोली और बरताव से पूरे घर का दिल जीत लिया, पर जल्दी ही वह अपने रंग में आ गई.

मनोहरा के बड़े भाई गोखुला की सब से बड़ी औलाद एक बेटी थी, जो अब सयानी और शादी के लायक हो चली थी. उस का नाम सलोनी था. गोखुला के 2 बेटे अभी छोटे ही थे. गोखुला की पत्नी पिछले साल हैजे की वजह से मर गई थी.

मोहिनी के सासससुर और गोखुला अब कभीकभी सलोनी की शादी कर देने की चर्चा छेड़ देते थे, जिस से वह डर जाती थी. उस की शादी में अच्छाखासा खर्च होने की उम्मीद थी.

मोहिनी चाहती थी कि अगर किसी तरह उस का पति अपने भाई गोखुला से अलग होने को राजी हो जाए, तो होने वाले इस खर्च से वह बच निकलेगी.

मोहिनी ने माहौल देख कर मनोहरा को अपने मन की बात बताई. मनोहरा एक सीधासादा जवान था. वह घर के एक सामान्य सदस्य की तरह रहता और दिल खोल कर कमाता था. वह इन छलप्रपंचों से कोसों दूर था.मोहिनी की बातों को सुन कर पलभर के लिए तो मनोहरा को बहुत बुरा लगा, पर मोहिनी ने जब इन सारी बातों की जिम्मेदारी अपने ऊपर छोड़ देने की बात कही, तो वह चुप हो गया.

यही तो मोहिनी चाहती थी. अब वह आगे की चाल के बारे में सोचने लग गई. पहले कुछ दिनों तक तो उस ने सलोनी से खूब दोस्ती बढ़ाई और उसे घूमनेफिरने, खेलनेखिलाने वगैरह की पूरी आजादी दे दी, फिर खुद ही अपने सासससुर से उस की शिकायत भी करने लगी.

1-2 बार उस ने सलोनी को गुपचुप उसी गांव के रहने वाले अपने चहेते पड़ोसी रामखिलावन के साथ मेले में भेज दिया और पीछे से ससुर को भी भेज दिया.

सलोनी के रंगे हाथ पकड़े जाने पर मोहिनी ने उस घर में रहने से साफ इनकार कर दिया. सासससुर और गांव वाले उसे समझासमझा कर थक गए, पर उस ने तब तक कुछ नहीं खायापीया, जब तक कि पंचों ने अलग रहने का फैसला नहीं ले लिया.

अब तो मोहिनी की पौबारह थी. अकेले घर में उसे सभी तरह की छूट थी. न दिन में कोई देखने वाला, न रात में कोई उठाने वाला. अब तो वह अपनी नींद सोती और अपनी नींद जागती थी. मनोहरा तो उस के रूप और जवानी पर पहले से ही लट्टू था, बंटवारा होने के बाद से तो वह उस का और भी एहसानमंद हो गया था.

मनोहरा दिनभर अपने खेतों में काम करता और रात में खापी कर मोहिनी के रूपरस का पान कर जो सोता, तो 4 बजे भोर में ही पशुओं को चारापानी देने के लिए उठता.

इस बीच मोहिनी क्या करती है, क्या खातीपीती है, कहां उठतीबैठती है, इस का उसे बिलकुल भी एहसास न था और न ही चिंता थी.

मोहिनी ने एक मोबाइल फोन खरीद लिया. कुछ ही दिनों में उस ने अपने पुराने प्रेमी से फोन पर बात की, ‘‘सुनो कन्हैया, अब मैं यहां भी पूरी तरह से आजाद हूं. तुम जब चाहो समय निकाल कर यहां आ सकते हो, केवल इतना ध्यान रखना कि मेरे गांव के पास आ कर पहले मुझ से बातचीत कर के ही घर पर आना… समझे?’’

‘क्यों, अब मेरे रात में आने से तुझे अपनी नींद में खलल पड़ती है क्या? दिन में बारबार तुम्हारे यहां आने से नाहक लोगों को शक होगा,’ कन्हैया ने कहा.

‘‘रात के अंधेरे में तो सभी काला धंधा चलाते हैं, पर दिन के उजाले में भी कुछ दिन अपना काला धंधा चला कर मजा लेने में क्या हर्ज है. रात को पशुशाला में गोबर की बदबू के बीच वह मजा कहां, जो दिन के उजाले में अपने मर्द के बिछावन पर मिलेगा.’’

‘ठीक है, मोहिनी. तुम्हारी बातों को मैं ने कब काटा है. यह आदेश भी सिरआंखों पर, लेकिन जोश के साथ होश कभी नहीं खोना चाहिए… ठीक है, कल दोपहर बाद…’ कन्हैया बोला.

दूसरे दिन सवेरे ही मोहिनी ने मनोहरा को चायनाश्ता करा कर, दोपहर का खाना दे कर खेत पर काम करने इस तरह विदा किया, जैसे कोई मां अपने बच्चे को तैयार कर पढ़ने के लिए भेजती है.

ठीक साढ़े 12 बजे मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. भीतरबाहर, अगलबगल देख कर मोहिनी ने कन्हैया को घर पर आने का सिगनल दे दिया.

कन्हैया सावधानी से उस के दरवाजे तक आ गया और वहां से उसे अपने आंगन तक ले जाने के लिए तो मोहिनी वहां मौजूद थी ही. तकरीबन 2 घंटे तक कन्हैया वहां रह कर मौजमजा लेता रहा, फिर जैसे आया था वैसे ही लौट गया.

ठीक उसी समय अलग हुए बराबर के घर में सलोनी अपने छोटे भाई रमुआ के साथ पशुओं को खूंटे से बांध रही थी. आज रमुआ अपने साथ दोपहर का खाना नहीं ले जा सका था, इसी वजह से वह सवेरे ही पशुओं को हांक लाया था.

सलोनी ने चाची के घर से निकल कर एक अजनबी को जाते देखा, तो उसे कुछ अटपटा सा लगा, पर वह चुप लगा गई.

दूसरे दिन भी जब सलोनी बैलों को पानी पिलाने के लिए दरवाजे पर आई, तो गांव के ही रामखिलावन को मोहिनी के घर से निकलते देखा. देखते ही वह पहचान गई कि यह वही रामखिलावन है, जिस के साथ चाची उसे बदनाम कर के दादादादी और उन से अलग हुई थी.

अब तो सलोनी के मन में कुछ उथलपुथल सी होने लगी. उस ने अपने मन को शांत कर एक फैसला लिया और मुसकराने लगी.

अब सलोनी बराबर चाचा के घर की निगरानी करने लगी. वह अपने आंगन से निकल कर चुपके से चाचाचाची के घर की ओर देख लेती और लौट जाती. एक दिन उसे फिर एक नया अजनबी उस आंगन से निकलते हुए दिखा.

अब सलोनी से रहा नहीं गया. उस ने अपनी दादी से सारी बातें बताईं. वह बूढ़ी अपनी एक खास जवान पड़ोसन से मदद ले कर इस बात की जांच में जुट गई.

तीनों मिल कर छिपछिप कर एक हफ्ते तक निगरानी करती रहीं. सलोनी की बात सोलह आने सच साबित हुई. फिर दादी ने अपने बड़े बेटे गोखुला और अपने पति से सहयोग ले कर एक नई योजना बनाई और 2-4 दिनों तक और इंतजार किया.

दूसरी ओर मोहिनी इन सभी बातों से अनजान मौजमस्ती में मशगूल रहती थी. वैसे, उस के घर में जो भी मर्द आता था, वह कोई कीमती चीज उसे दे जाता था.

कन्हैया को आए जब कई दिन हो गए, तो मोहिनी के मन की तड़प बढ़ गई, दिल जोरों से धड़कने लगा. उसे खयाल आया कि सिकंदर भी आने से मना कर चुका है, तो क्यों न आज फिर एक बार कन्हैया को ही बुला लिया जाए. उस ने झट से मोबाइल फोन उठा लिया.

दूसरी ओर से कन्हैया ने पूछा, ‘हां मोहिनी, क्या हालचाल है? तुम वहां खुश तो हो न?’

‘‘क्या खाक खुश रहूंगी. तुम तो इधर का जैसे रास्ता ही भूल बैठे. दिनभर बैठी रहती हूं मैं तुम्हारी याद में और तुम तो जैसे डुमरी का फूल बन गए हो आजकल.’’

‘बोलो क्या हुक्म है?’

‘‘आज तुम दोपहर के 12 बजे मेरे घर आ जाओ.’’

‘हुजूर का हुक्म सिरआंखों पर,’ कहते हुए कन्हैया ने फोन काट दिया.

मोहिनी ने तो अपनी योजना बना ली थी, पर उसे भनक तक नहीं थी कि कोई उस पर नजर रखे हुए है. कन्हैया पर नजर पड़ते ही सभी सावधान हो गए. वह एक ओर से आ कर मोहिनी के आंगन में घुस गया. लोगों ने देखा कि मोहिनी उसे दरवाजे से भीतर ले गई.

सलोनी ने दादी के कहने पर मनोहरा चाचा को भी बुला कर अपने दरवाजे पर बैठा लिया था. धीरेधीरे कुछ और लोग आ गए और जब तकरीबन आधा घंटा बीत गया होगा, तब मनोहरा को आगे कर सभी लोग उस के दरवाजे पर पहुंच गए.

दस्तक देने पर जब दरवाजा नहीं खुला, तब लोगों ने मनोहरा को ऊंची आवाज लगा कर मोहिनी को बुलाने को कहा. उस की आवाज को पहचान कर मोहिनी को कुछ शक हुआ, क्योंकि आज उसे धान के खेत की निराईगुड़ाई करनी थी. आज उसे शाम में भी देर से आने की उम्मीद थी. वह कन्हैया संग पलंग पर प्रेम की पेंगें भर रही थी.

ज्यों ही मोहिनी ने दरवाजा खोला, सामने मनोहरा के संग पासपड़ोस के लोगों को देख कर उस के होश उड़ गए. वह कुछ बोलती, इस से पहले ही पूरा हुजूम उस के आंगन में घुस गया और कन्हैया को भी धर दबोचा.

पत्नी मोहिनी के सामने हमेशा भीगी बिल्ली बना रहने वाला मनोहरा आज न जाने कैसे बब्बर शेर बन कर दहाड़ता हुआ उस पर पिल पड़ा और चिल्लाया, ‘‘आज मैं इस को जान से मार कर ही चैन की सांस लूंगा.’’

उस दिन के बाद से फिर न तो मोहिनी कभी वापस गांव में दिखी और न ही उस का प्रेमी. सुना था कि वह शहर जा कर कई घरों में बरतन मांज कर फटेहाल गुजारा कर रही है.

Online Hindi Story : बुद्धि का इस्तेमाल

Online Hindi Story : 2 साल स्कूल की पढ़ाई उस ने यहीं से की थी. एक दिन आनंद को उस समय के अपने सब से करीबी दोस्त रमाकांत मोरचकर यानी मोरू ने अपने घर बुलाया. वक्त मिलते ही आनंद भी अपना सामान बांध कर बिना बताए उस के पास पहुंच गया.

‘‘आओआओ… यह अपना ही घर है,’’ मोरू ने बहुत खुले दिल से आनंद का स्वागत किया, लेकिन उस के घर में एक अजीब तरह का सन्नाटा था.

‘‘क्या मोरू, सब ठीक तो है न?’’

‘‘हां, ऐसा ही सम झ लो.’’

‘‘बिना बताए आने से नाराज हो क्या?’’

तब तक भाभी पानी ले कर बाहर आईं. उन के चेहरे पर चिंता की रेखाएं साफ नजर आ रही थीं.

‘‘सविता भाभी कैसी हैं आप?’’

‘‘ठीक हूं,’’ कहते समय उन के चेहरे पर कोई भाव नहीं था.

‘‘आनंद के लिए जरा चाय रखो.’’

देवघर में चाची (मोरू की मां) पूजा कर रही थीं. उन्हें नमस्कार किया.

‘‘बैठो बेटा,’’?चेहरे से चाची भी खुश नहीं लग रही थीं.

बैठक में आनंद की नजर गई तो 14-15 साल की एक लड़की चुपचाप बैठी थी, जो उस की उम्र को शोभा नहीं दे रही थी. दुबलेपतले हाथपैर और चेहरा मुर झाया हुआ था. आनंद ने बड़े ध्यान से देखा.

‘‘यह सुरभि है न…? चौकलेट अंकल को पहचाना नहीं क्या? हां, सम झ में आया. चौकलेट नहीं दी, इसलिए तू गुस्सा है. यह ले चौकलेट, यहां आओ,’’ पर सुरभि ने चौकलेट नहीं ली और अचानक से रोने लगी.

‘‘आनंद, वह बोल नहीं सकती है,’’ चाचीजी ने चौंकने वाली बात कही.

‘‘क्या…? बचपन में टपाटप बोलने वाली लड़की आज बोल नहीं सकती, लेकिन क्यों?’’

चाय ले कर आई भाभी ने तो और चौंका दिया, ‘‘सालभर पहले एक दिन जब से यह स्कूल से आई है, तब से कुछ नहीं बोल रही है.’’

‘‘क्या हुआ था…? अब क्यों स्कूल नहीं जाती है?’’

‘‘स्कूल जा कर क्या करेगी? घर में बैठी है,’’ भाभी ने उदास लहजे में कहा.

आनंद इस सदमे से संभला और सुरभि का नाक, गला, कान वगैरह सब चैक किया.

स्पीच आडियो आनंद का सब्जैक्ट नहीं था, फिर भी एक डाक्टर होने के नाते जानकारी तो है.

‘‘मोरू मु झे बता, आखिर यह सब कब हुआ? मु झे तुम लोगों ने बताया क्यों नहीं?’’

‘‘बीते साल अगस्त महीने में अपनी सहेली के साथ यह स्कूल से आई. हम ने देखा, इस की आवाज जैसे बैठ गई थी, लेकिन कुछ दिन बाद तो हमेशा के लिए ही बंद हो गई.’’

‘‘अरे, यह उस पेड़ के नीचे गई थी, वह बता न…’’ चाचीजी ने कहा.

‘‘कौन से पेड़ के नीचे…? उस की टहनियां टूट कर इस के ऊपर गिर गई थीं क्या?’’

‘‘पीपल के नीचे… टहनी टूट कर कैसे लगेगी. उस पेड़ के नीचे अमावस्या के दिन ऐसे ही होता है. वह भी दोपहर 12 बजे.’’

‘‘यह अकेली थी क्या?’’

‘‘नहीं, 3-4 सहेलियां थीं. लेकिन इसी को पकड़ा न. अन्ना महाराज ने मु झे सबकुछ बताया,’’ काकी की बातें सुन कर अजीब सा लगा.

‘‘अब ये अन्ना महाराज कौन हैं?’’

‘‘पिछले एक साल से अन्ना बाबा गांव के बाहर मठ में अपने शिष्य के साथ रहते हैं और पूजापाठ करते हैं. भक्तों की कुछ भी समस्या हो, वे उन का निवारण करते हैं.’’

‘‘फिर, तुम उन के पास गए थे कि नहीं?’’

‘‘मां सुरभि को ले कर गई थीं. देखते ही उन्होंने कहा कि पीपल के नीचे की बाधा है… मंत्र पढ़ कर कोई धागा दिया और उपवास करने के लिए कहा, जो वे करती हैं.’’

‘‘वह तो दिख रहा है भाभी की तबीयत से. क्यों इन तंत्रमंत्र पर विश्वास करता है? यह सब अंधश्रद्धा नासम झी से आई है. विज्ञान के युग में हमारी सोच बदलनी चाहिए. इन बाबाओं की दवाओं से अगर हम अच्छे होने लगते तो मैडिकल साइंस किस काम की है. डाक्टर को दिखाया क्या?’’

‘‘दिखाया न. गोवा के एक डाक्टर को दिखाया. उन्होंने कहा कि आवाज आ सकती है, लेकिन आपरेशन करना पड़ेगा. एक तो काफी खर्चा, दूसरे कामयाब होने की गारंटी भी नहीं है.

‘‘ठीक है. इस की सहेलियां, जो उस समय इस के साथ थीं, मैं उन से मिलना चाहता हूं.’’

सुरभि की सहेलियों से बातचीत की. आनंद पीपल के नीचे गया और जांचा. यह देख कर मोरू, उस की मां और पत्नी सभी उल झन में थे.

‘‘मोरू, कल सुबह हम गोवा जाएंगे. मेरा दोस्त नाक, कान और गले का डाक्टर है. उस की सलाह ले कर आते हैं,’’ आनंद ने कहा.

‘‘गोवा का डाक्टर ही तो आपरेशन करने के लिए बोला है. फिर क्या यह कुछ अलग बोलेगा? जानेआने में तकलीफ और उस की फीस अलग से.’’

‘‘तुम उस की चिंता मत करो. वहां जाने के लिए मेरी गाड़ी है. आते वक्त तुम्हें बस में बैठा दूंगा. रात तक तुम लोग वापस आ जाओगे.’’

‘‘लेकिन, अन्ना महाराज ने कहा है कि डाक्टर कुछ नहीं कर सकता है?’’ चाचीजी ने टोका.

‘‘चाचीजी, उस के दिए हुए धागे इस के हाथ में हैं. अब देखते हैं कि डाक्टर क्या बोलता है.’’

न चाहते हुए भी मोरू जाने के लिए तैयार हुआ. घर के बाहर निकलने की वजह से सुरभि की उदासी कुछ कम हुई.

डाक्टर ने चैक करने के बाद दवाएं दीं. कैसे लेनी हैं, यह भी बताया. इस के बाद हम ने आगे की कार्यवाही शुरू की.

सुरभि की तबीयत को ले कर आनंद फोन पर कुछ पूछ रहा था और भाई को भी उस पर ध्यान देने के लिए कहा था. आनंद ने मोरू की बेटी सुरभि के साथ कुछ समय बिताने को कहा था. उपवास,  झाड़फूंक, धागा, अन्ना महाराज के पास आनाजाना सबकुछ शुरू था.

‘‘कैसी हो सुरभि, अब अच्छा लग रहा है न?’’

सिर हिलाते हुए उस ने हाथ से चौकलेट ली और हलके से मुसकराई.

‘‘मोरू, यह हंस रही है क्या? अब देख, उस डाक्टर ने सुरभि को 15 दिन के लिए गोवा बुलाया है, वहीं इस का इलाज होगा.’’

‘‘अरे बाप रे… यानी 15 दिन तक उसे अस्पताल में रहना होगा. मैं इतना खर्च नहीं उठा पाऊंगा,’’ मोरू ने कहा.

‘‘चुप बैठ. मेरा घर अस्पताल के नजदीक ही है. तेरी भाभी भी आई है. 2 दिन के लिए मैं सुरभि को ले कर जा रहा हूं. वह हर रोज इसे अस्पताल ले जाएगी. इलाज 15 दिन तक चलेगा. नतीजा देखने के बाद ट्रीटमैंट शुरू रखने के बारे में सोचेंगे.’’

‘‘ट्रीटमैंट क्या होगा?’’ भाभी ने घबराते हुए पूछा.

‘‘वह डाक्टर तय करेंगे. लेकिन आपरेशन बिलकुल नहीं.’’

सुरभि का ट्रीटमैंट तकरीबन 20 दिन चला. इस बीच मोरू और भाभी 2 बार गोवा आ कर गए. 20 दिन बाद आनंद और उस की पत्नी सुरभि को ले कर सावंतबाड़ी गए.

‘‘सुरभि बेटी, मां को बुलाओ,’’ आनंद ने कहा.

सुरभि ने आवाज लगाई ‘‘आ… आ…’’ उस की आवाज सुन कर भाभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

‘‘सुरभि, अपने पापा को नहीं बुलाओगी?’’

फिर उस ने ‘पा… पा…’ कहा. यह सुन कर दोनों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए.

‘‘भैयाजी, सुरभि बोलने लगी है, पर अभी ठीक से नहीं बोल पा रही है,’’ सुरभि की चाची ने कहा.

‘‘भाभी, इतने दिनों तक उस के गले से आवाज नहीं निकली. अभीअभी आई है तो प्रैक्टिस करने पर सुधर जाएगी.’’

‘‘लेकिन, यहां कैसे मुमकिन हो पाएगा यह सब?’’

‘‘यहां के सरकारी अस्पताल में शितोले नाम की एक औरत आती है. वह यही प्रैक्टिस कराती है. इसे स्पीच और आडियो थेरैपी कहते हैं. वह प्रैक्टिस कराएगी तो धीरेधीरे सुरभि बोलने लगेगी.’’

चाचीजी ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, ‘‘अन्ना महाराज ने सालभर उपचार किया. बहू ने उपवास किए. यह सब उसी का फल है. आनंद, तेरा डाक्टर एक महीने में क्या करेगा.’’

‘‘चाचीजी, जो एक साल में नहीं हुआ, वह 15 दिन में हुआ है, और वह भी मैडिकल साइंस की वजह से. फिर भी सुरभि अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है.’’

‘‘लेकिन, उसे हुआ क्या था?’’

‘‘हम सब को अन्ना महाराज के पास जा कर यह जानकारी देनी चाहिए.’’

हम सभी लोग मठ में दाखिल हुए.

‘‘नमस्कार अन्ना महाराज. सुरभि, अन्ना महाराज को आवाज दो.’’

‘‘न… न…’’ ये शब्द सुन कर क्षणभर के लिए अन्ना चौंक गए.

‘‘अरे साहब, सालभर से हम ने कड़े प्रयास किए हैं. मां की तपस्या, भाभी की उपासना कामयाब हुई हैं.’’

‘‘अरे, वाह, पर इसे हुआ क्या था?’’

‘‘अरे, क्या बोलूं. पीपल से लटक कर एक लड़की ने खुदकुशी की थी, उसी के भूत ने इसे पकड़ लिया था, पर अब उस ने सुरभि को छोड़ दिया है.’’

‘‘मैं खुद उस पीपल से लटक गया था. उस समय मेरे साथ उस की सहेलियां भी थीं. लेकिन, उस ने हमें तो नहीं पकड़ा.’’

‘‘सब लोगों को नहीं पकड़ते हैं. इस लड़की के नसीब में ही ऐसा लिखा था.’’

‘‘और, आप के नसीब में इस के मातापिता का पैसा था.’’

‘‘यह क्या बोल रहे हो तुम? मु झ पर शक कर रहे हो?’’ अन्ना ने तमतमाते हुए पूछा.

‘‘चिल्लाने से  झूठ सच नहीं हो जाता. तुम अपनी ओछी सोच से लोगों को गलत रास्ते पर धकेल रहे हो. सच बात तो कुछ और है.’’

‘‘क्या है सच बात…?’’ अन्ना की आवाज नरम हो गई.

‘‘सुरभि जन्म से ही गूंगी नहीं है, वह बोलती थी, लेकिन तुतला कर, क्लास में लड़कियां उसे ‘तोतली’ कह कर चिढ़ाती थीं, इसलिए वह बोलने से बचने लगी और मन ही मन कुढ़ने लगी.’’

‘‘फिर, तुम ने उस पर क्या उपाय किया. सिर्फ ये दवाएं?’’

‘‘ये दवाएं उस के लिए एक टौनिक थीं, सही माने में उसे ऐसे टौनिक की जरूरत थी, जो उस के मन को ठीक कर सके, जिसे मेरे डाक्टर दोस्त ने पहचाना.

‘‘ये सारी बातें मु झे सुरभि की सहेलियों ने बताईं. गोवा ले जा कर मैं ने उस की काउंसलिंग कराई. उसे निराशा के अंधेरे से बाहर निकाला. इस के बाद बोलने की कोशिश करना सिखाया. अब वह धीरेधीरे 2 महीने में अच्छी तरह से बोलना सीख जाएगी.’’

‘‘यह सब अपनेआप होगा क्या?’’ भाभी की चिंता वाजिब थी.

‘‘अपनेआप कैसे होगा? उस के लिए यहां के सरकारी अस्पताल में उसे ले जाना पड़ेगा. यह सब आप को करना होगा.’’

‘‘मैं करूंगी भाईजी, आप हमारे लिए एक फरिश्ते से कम नहीं हो.’’

‘‘तो आप इस फरिश्ते को क्या खिलाओगी?’’ आनंद ने मजाक करते हुए पूछा.

‘‘कोंबडी बडे.’’

‘‘बहुत अच्छा. 2 दिन रहूंगा मैं यहां. पहले इस अन्ना महाराज को कौन सा नुसखा दें, क्यों महाराज?’’

‘‘मु झे कुछ नहीं चाहिए, अब मैं यहां से जा रहा हूं दूसरी जगह.’’

‘‘जाने से पहले सुरभि के हाथ से धागा निकालो. तुम्हें दूसरी जगह जाने की बिलकुल जरूरत नहीं है. वहां के लोगों के हाथ में भी धागा बांध कर उन्हें लूटोगे. इसलिए इसी मठ में रहना है. काम कर के खाना, मुफ्त का नहीं. यह गांव तुम छोड़ नहीं सकते. वह तुम्हें कहीं से भी खोज निकालेगा. सम झ

गया न.’’

‘‘डाक्टर साहब, आप जैसा बोलोगे, वैसा ही होगा.’’

घर आ कर मोरू को डांट लगाई,  ‘‘चाचीजी की बात अलग है, लेकिन, तू तो कम से कम सोच सकता था न. तंत्रमंत्र, धागा, धूपदान से किसी का भी भला नहीं होता है. श्रद्धा और अंधश्रद्धा दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. अंधश्रद्धा बुद्धि खराब कर के एक ही जगह पर जकड़ कर रखती है, इसलिए पहले सोचें कि अपनी बुद्धि का कैसे इस्तेमाल करें.’’

मोरू के दिमाग में आनंद की बात घर कर चुकी थी.

Kahani : घोंसला – क्या सारा अपना घोंसला बना पाई

Kahani : सारा आज खुशी से झूम रही थी. खुश हो भी क्यों ना, पुणे की एक बहुत बड़ी फर्म में उस की नौकरी लग गई थी. अपनी गोलगोल आंखें घुमाते हुये वह अपनी मम्मी से बोली, “मैं ना कहती थी कि मेरी उड़ान कोई नहीं रोक सकता. पापा ने पढ़ने के लिए मुझे मुजफ्फरनगर से बाहर नहीं जाने दिया, पर अब इतनी अच्छी नौकरी मिली है कि वे मुझे रोक नहीं सकते हैं.

सारा 23 वर्ष की खूबसूरत नवयुवती, जिंदगी से भरपूर, गोरा रंग, गोलगोल आंखें, छोटी सी नाक और मोटे विलासी गुलाबी होंठ, होंठों के बीच काला तिल सारा को और अधिक आकर्षक बना देता था.

सारा को खुले आकाश में उड़ने का शौक था. वह अकेले रहना चाहती थी और जीवन को अपने तरीके से जीना चाहती थी.

जब भी सारा के पापा कहते कि हमें तुम से जिंदगी का अधिक अनुभव है, इसलिए हमारा कहा मानो.

सारा फट से कहती, “पापा, मैं अपने अनुभवों से कुछ सीखना चाहती हूं.”

सारा के पापा उसे पुणे भेजना नहीं चाहते थे, पर सारा की दलीलों के आगे उन की एक ना चली. फिर सारा की मम्मी ने भी समझाया कि इतनी अच्छी नौकरी है. आजकल अच्छी नौकरी वाली लड़कियों की शादी आराम से हो जाती है.

सारा के पापा ने फिर हथियार डाल दिए थे. ढेर सारी नसीहतें और अपने परिवार की इज्जत का दारोमदार सारा के हाथों में सौंप कर सारा के पापा वापस मुजफ्फरनगर आ गए थे.

सारा को शुरुआत में थोड़ी दिक्कत हुई थी, परंतु धीरेधीरे वह पुणे के लाइफ की अभ्यस्त हो गई थी. यहां पर मुजफ्फरनगर की तरह ना टोकाटाकी थी और ना ही ताकाझांकी.

सारा को आधुनिक कपड़े पहनने का बहुत शौक था, जो सारा अब पूरा कर पाई थी. वह स्वछंद तितली की तरह जिंदगी बिता रही थी. दफ्तर में ही सारा की मुलाकात मोहित से हुई थी.

मोहित का ट्रांसफर दिल्ली से पुणे हुआ था. मोहित को सारा पहली नजर में ही भा गई थी. सारा और मोहित अकसर वीकेंड पर बाहर घूमने जाते थे. परंतु सारा को हर हाल में रात 9 बजे तक अपने होस्टल वापस जाना ही पड़ता था. फिर एक दिन मोहित ने यों ही सारा से कहा कि तुम मेरे फ्लैट में शिफ्ट क्यों नहीं हो जाती हो. इस चिकचिक से छुटकारा भी मिल जाएगा और हमें यों ही हर वीकेंड पर बंजारों की तरह घूमना नहीं पड़ेगा. सब से बड़ी बात तुम्हारे होस्टल का खर्च भी बच जाएगा.

सारा छूटते ही बोली, “पागल हो क्या, ऐसे कैसे रह सकती हूं, तुम्हारे साथ? मतलब, मेरातुम्हारा रिश्ता ही क्या है.”

मोहित बोला, “रहने दो बाबा, मैं तो भूल ही गया था कि तुम तो गांव की गंवार ही हो. छोटे शहर के लोगों की मानसिकता कहां बदल सकती है. चाहे वो कितने ही आधुनिक कपड़े पहन लें.”

सारा मोहित की बात सुन कर एकदम से चुप हो गई थी. अगले कुछ दिनों तक मोहित सारा से खिंचाखिंचा सा रहा था.

जब सारा ने मोहित से पूछा कि आखिर उस की गलती क्या है, तो मोहित बोला, तुम्हारा मुझ पर अविश्वास. सारा बोली, “बात अविश्वास की नहीं है मोहित, मेरे परिवार को अगर पता चल जाएगा तो वो मेरी नौकरी भी छुड़वा देंगे.”

मोहित बोला, “तुम्हें अगर रहना है तो बताओ. बाकी सब मैं हैंडल कर लूंगा.”

घर पर पापा के मिलिट्री राज के कारण सारा का आज तक कोई बौयफ्रेंड नहीं बन पाया था, इसलिए वो ये सुनहरा मौका हाथ से नहीं छोड़ना चाहती थी.

सारा एक हफ्ते बाद मोहित के साथ शिफ्ट कर गई थी. घर पर सारा ने बोल दिया था कि उस ने एक लड़की के साथ अलग से फ़्लैट ले लिया है, क्योंकि उसे होस्टल में बहुत परेशानी होती थी.

ये बात सुनते ही सारा के मम्मीपापा ने आने के लिए सामान बांध लिया था. वो देखना चाहते थे कि उन की लाड़ली कैसे अकेले रहती होगी.

सारा घबरा कर मोहित से बोली कि अब क्या करेंगे?

मोहित हंसते हुए बोला, “अरे देखो, मैं कैसा चक्कर चलाता हूं. अगले रोज मोहित अपनी एक दोस्त शैली को ले कर आ गया और बोला, “तुम्हारे मम्मीपापा के सामने मैं शैली के बड़े भाई के रूप में उपस्थित रहूंगा.”

सारा के मम्मीपापा आए. मोहित के नाटक पर वे मोहित हो कर चले गए थे. सारा के मम्मीपापा के सामने मोहित शैली के बड़े भाई के रूप में मिलने आता था. सारा के मम्मीपापा को अब तस्सली हो गई थी और वो निश्चिन्त होकर वापस अपने घर चले गए थे.

सारा और मोहित एकसाथ रहने लगे थे. सारा को मोहित का साथ भाता था, परंतु अंदर ही अंदर उसे अपने मम्मीपापा से झूठ बोलना भी कचोटता रहता था.

एक दिन सारा ने मोहित से कहा कि मोहित तुम मुझे पसंद करते हो क्या?”

इस पर वह बोला, “अपनी जान से भी ज्यादा.”

सारा बोली, “मोहित, तुम और मैं क्या इस रिश्ते को नाम नहीं दे सकते हैं? हम क्या अपना एक छोटा सा घोंसला नहीं बना सकते हैं ?”

मोहित चिढ़ते हुए बोला, “यार, मुझे माफ करो. मैं ने पहले ही कहा था कि हम एक दोस्त की तरह ही रहेंगे. मैं तुम पर कोई बंधन नहीं लगाना चाहता हूं और ना ही तुम मुझ पर लगाया करो. ये घोंसला अवश्य है, परंतु बंधनों का नहीं आजादी का. और तुम ये बात क्यों भूल जाती हो कि मेरे घर पर रहने के कारण तुम्हारी कितनी बचत हो रही है और बाकी फायदे भी हैं.₹,” ये बात कहते हुए मोहित ने अपनी बाई आंख दबा दी.

सारा को मोहित का ये सस्ता मजाक बिलकुल पसंद नहीं आया था. 2 दिन तक मोहित और सारा के बीच तनाव बना रहा, परंतु फिर से मोहित ने हमेशा की तरह सारा को मना लिया था.

सारा भी अब इस नए लाइफस्टाइल की अभ्यस्त हो चुकी थी. सारा जब मुजफ्फरनगर से पुणे आई थी, तो उस के बड़ेबड़े सपने थे, परंतु अब ना जाने क्यों उस के सब सपने मोहित के इर्दगिर्द सिमट कर रह गए थे.

आज सारा बेहद परेशान थी. उस की पीरियड्स की डेट मिस हो गई थी. जब उस ने मोहित को ये बात बताई ,तो मोहित बोला, “सारा, ऐसे कैसे हो सकता है. हम ने तो सारे एहतियात बरते थे?”

सारा बोली, “तुम मुझ पर शक कर रहे हो?”

मोहित ने कहा, “नहीं बाबा, नहीं. कल टेस्ट कर लेना.”

सारा को जैसे डर था वो ही हुआ था. प्रेगनेंसी किट की टेस्ट रिपोर्ट देख कर सारा के हाथपैर ठंडे पड़ गए थे.

मोहित उसे संभालते हुए बोला, “टेंशन मत लो. कल डाक्टर के पास चलेंगे.”

अगले दिन डाक्टर के पास जा कर जब उन्होंने अपनी समस्या बताई, तो डाक्टर बोली, “पहली बार एबार्शन करने की सलाह मैं नहीं दूंगी. आगे आप की मरजी.”

घर आ कर सारा मोहित की खुशामद करने लगी. मोहित प्लीज शादी कर लेते हैं. ये हमारे प्यार की निशानी है.”

मोहित चिढ़ते हुए बोला, “सारा प्लीज, फोर्स मत करो. ये शादी मेरे लिए शादी नहीं, बल्कि एक फंदा बनेगी.

यह सुन कर सारा फिर चुप हो गई थी. अगले दिन चुपचाप जब सारा तैयार हो कर जाने लगी, तो मोहित भी साथ हो लिया था.

रास्ते मे मोहित बोला, “सारा मुझे मालूम है कि तुम मुझ से गुस्सा हो. पर, ऐसा कुछ जल्दबाजी में मत करो, जिस से बाद में हम दोनों को घुटन महसूस हो.

“देखो, इस रिश्ते में हम दोनों का फायदा ही फायदा है और शादी के लिए मैं मना कहां कर रहा हूं. पर अभी नहीं कर सकता हूं.”

डाक्टर से सारा और मोहित ने बोल दिया था कि कुछ निजी वजहों से वो अभी बच्चा नहीं कर सकते हैं. डाक्टर ने उन्हें एबार्शन के लिए 2 दिन बाद आने के लिए कहा था.

मोहित ने जब पूरा खर्च पूछा, तो डाक्टर ने कहा कि तकरीबन 25 से 30 हजार रुपए लग ही जाएंगे, क्योंकि हम किसी भी प्रकार का रिस्क नहीं लेते हैं.

घर आ कर मोहित ने पूरा हिसाब लगाया. सारा तुम्हें तो 3-4 दिन बैडरैस्ट भी करना होगा, जिस कारण तुम्हें लीव विदआउट पे लेनी पड़ेगी. तुम्हारा अधिक नुकसान होगा, इसलिए इस एबार्शन का 50 प्रतिशत खर्चा मैं उठा लूंगा.

सारा छत को टकटकी लगा कर देख रही थी. बारबार उसे ग्लानि हो रही थी कि वो एक जीव हत्या करेगी. बारबार सारा के मन में यह खयाल आ रहा था कि अगर उस की और मोहित की शादी हो गई होती तो भी मोहित ऐसे ही 50 प्रतिशत खर्चा देता.

सारा ने रात में एक बार फिर मोहित से बात करने की कोशिश की, मगर मोहित ने बात को वहीं समाप्त कर दिया था. वह बोला, “तुम्हें वैसे तो बराबरी चाहिए, मगर अब फीमेल कार्ड खेल रही हो. ये गलती दोनों की है, तो 50 प्रतिशत भुगतान कर तो रहा हूं. और ये बात तुम क्यों भूल जाती हो कि तुम्हारा वैसे ही क्या खर्चा होता है. ये घर मेरा है, जिस में तुम बिना किराया दिए रहती हो.

मोहित की बात सुन कर सारा का मन खट्टा हो गया था. उस के अंदर कहीं कुछ किरच गया था. वो किरच जो सारा और मोहित के रिश्ते में व्याप्त हो गई थी. जब से सारा एबार्शन करा कर लौटी थी, वो मोहित के साथ हंसतीबोलती जरूर थी, मगर सारा के अंदर बहुतकुछ बदल गया था. पहले जो सारा मोहित को ले कर बहुत केयरिंग और पसेसिव थी, अब उस ने मोहित से एक डिस्टेंस बना ली थी. शुरूशुरू में तो मोहित को सारा का बदला व्यवहार अच्छा लग रहा था, परंतु बाद में मोहित को सारा का वो अपनापन बेहद याद आने लगा. पहले मोहित जब औफिस से घर आता था, तो सारा उस के साथ ही चाय लेती थी, परंतु आजकल अधिकतर सारा गायब ही रहती थी.

एक दिन संडे में मोहित ने कहा, “सारा, कल मैं ने अपने कुछ दोस्त लंच पर बुलाए हैं.

सारा लापरवाही से बोली, “तो मैं क्या करूं, तुम्हारे दोस्त हैं. तुम उन्हें लंच पर बुलाओ या डिनर पर.”

मोहित बोला, “अरे यार, हम एकसाथ एक घर में रहते हैं, ऐसा क्यों बोल रही हो?”

सारा मुसकराते हुए बोली, “बेबी, इस घोंसले की दीवारें आजाद हैं. जो जब चाहे उड़ सकता है. कोई तुम्हारी पत्नी थोड़े ही हूं, जो तुम्हारे दोस्तों को एंटरटेन करूं.”

मोहित मायूस होते हुए बोला, “एक दोस्त के नाते भी नहीं.”

सारा बोली, “कल तुम्हारी इस दोस्त को अपने दोस्तों के साथ बाहर जाना है.”

मोहित आगे कुछ नहीं बोल पाया. ये सारी वो ही बातें थीं, जो उस ने सारा को सिखाई थीं.

सारा ने अब तक अपनी जिंदगी मोहित के इर्दगिर्द ही सीमित कर रखी थी. जैसे ही उस ने बाहर कदम बढ़ाए, तो सारा को लगा कि वो कुएं के मेढक की तरह अब तक मोहित के साथ बनी हुई थी. इस कुएं के बाहर तो बहुत बड़ा समुंदर है.

सारा अब इस समुंदर की सब सीपियों और मोतियों को अनुभव करना चाहती थीं. एक दिन डिनर करते हुए सारा मोहित से बोली, “तुम्हें पता नही है कि तुम कितने अच्छे हो?”

मोहित मन ही मन खुश हो रहा था. उसे लगा कि अब सारा शायद फिर से प्यार का इकरार करेगी. मगर सारा मोहित की आशा के विपरीत बोली, “अच्छा हुआ कि तुम ने शादी करने से मना कर दिया था. मुझे उस समय बुरा अवश्य लगा था, परंतु अगर हम शादी कर लेते, तो मैं इस कुएं में ही सड़ती रहती.”

अगले माह मोहित को कंपनी के काम से बंगलोर जाना था. मोहित को ना जाने क्यों अब सारा का ये स्वछंद व्यवहार अच्छा नहीं लगता था.

मोहित ने मन ही मन तय कर लिया था कि अगले माह सारा के जन्मदिन पर वो उसे प्रपोज कर देगा और फिर परिवार वालों की सहमति से अगले साल तक विवाह के बंधन में बंध जाएंगे.

बंगलोर पहुंचने के बाद भी मोहित ही सारा को मैसेज करता रहता था, परंतु चैट पर बकबक करने वाली सारा अब बस हांहूं के मैसेज तक सीमित हो गई थी. लेकिन मोहित को पूरा विश्वास था कि वो हमेशा की तरह सारा को मना लेगा.

जब मोहित बंगलोर से वापस पुणे पहुंचा तो देखा, सारा वहां नहीं थी.

मोहित ने फोन लगाया, तो सारा की चहकती आवाज आई, “अरे यार, मैं गोवा में हूं. बहुत मजा आ रहा है.”

इस से पहले मोहित कुछ बोलता, सारा ने झट से फोन काट दिया था. 3 दिन बाद जब सारा वापस आई, तो मोहित बोला, “बिना बताए ही चली गई. एक बार पूछा तक नहीं.”

सारा बोली, “तुम मना कर देते क्या?”

मोहित झेंपते हुए बोला, “मेरा मतलब ये नहीं था.”

मोहित को उस के एक नजदीकी दोस्त ने बताया था कि सारा अर्पित नाम के लड़के के साथ गोवा गई थी.

मोहित को ये सुन कर बुरा लगा था, मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो सारा से क्या बात करे? उस ने खुद ही अपने और सारा के बीच ये खाई बनाई थी.

मोहित सारा को दोबारा से अपने करीब लाने के लिए सारे पैंतरे अपना चुका था, परंतु अब सारा पानी पर तेल की तरह फिसल गई थी.

अगले हफ्ते सारा का जन्मदिन था. मोहित ने मन ही मन सारा को सरप्राइज देने की सोच रखा था. तभी उस रात अचानक से मोहित को तेज बुखार हो गया था. सारा ने मोहित की खूब अच्छे से देखभाल की थी. 5 दिन बाद जब मोहित पूरी तरह ठीक हो गया, तो उसे विश्वास हो गया था कि सारा उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी.

मोहित ने सारा के लिए हीरे की अंगूठी खरीद ली थी. कल सारा का जन्मदिन था. मोहित शाम को जल्दी आ गया था. उस ने औनलाइन केक बुक कर रखा था. ना जाने क्यों आज उसे सारा का बेसब्री से इंतजार था. जैसे ही सारा घर आई तो मोहित ने उस के लिए चाय बनाई.

सारा ने मुसकराते हुए चाय का कप पकड़ा और कहा कि क्या इरादा है जनाब का.

मोहित बोला, “कल तुम्हारा जन्मदिन है. मैं तुम्हें स्पेशल फील कराना चाहता हूं.”

सारा ने कहा, “वो तो तुम्हें मेरे घर आ कर करना पड़ेगा.”

मोहित बोला,”तुम क्या अपने घर जा रही हो जन्मदिन पर.”

सारा बोली, “मैं ने अपने औफिस के पास एक छोटा सा फ्लैट ले लिया है. मैं अपना जन्मदिन वहीं मनाना चाहती हूं. अब मैं अपना खर्च खुद उठाना चाहती हूं. ये निर्णय मुझे बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था.”

मोहित बोला, “मुझे मालूम है कि तुम मुझ से अब तक एबार्शन की बात से नाराज हो. यार, मेरी गलती थी कि मैं ने तुम से तब शादी करने के लिए मना कर दिया था.”.

सारा बोली, “अरे नहीं. तुम सही थे, मजबूरी में अगर तुम मुझ से शादी कर भी लेते, तो हम दोनों हमेशा दुखी रहते.”

मोहित बोला, “सारा, मैं तुम से प्यार करता हूं और शादी करना चाहता हूं.”

सारा बोली, “मोहित, पर मैं तुम से आकर्षित थी, अगर प्यार होता तो शायद आज मैं अलग रहने का फैसला नहीं लेती.”

सारा सामान पैक कर रही थी. मोहित के अहम को ठेस लग गई थी, इसलिए उस ने अपना आखिरी दांव खेला. तुम्हारे नए बौयफ्रेंड को पता है कि तुम ने एबार्शन करवाया था. अगर तुम्हारे घर वालों को ये बात पता चल जाएगी, तो सोचो कि उन्हें कैसा लगेगा. मैं तुम पर विश्वास करता हूं, इसलिए मैं तुम से शादी करने को अभी भी तैयार हूं.”

सारा बोली, “पर मोहित, मैं तैयार नही हूं. अच्छा हुआ कि इस बहाने ही सही, मुझे तुम्हारे विचार पता चल गए. और रही बात मेरे परिवार की, तो वे कभी नहीं चाहेंगे कि मैं तुम जैसे लंपट इनसान से विवाह करूं. मोहित तुम्हारा ये घोंसला आजादी के तिनकों से नहीं, वरन स्वार्थ के तिनकों से बुना हुआ है. अगर एक दोस्त के नाते कभी मेरे घर आना चाहो, तो अवश्य आ सकते हो,” कहते हुए सारा ने अपने नए घोंसले का पता टेबल पर रखा और एक स्वछंद चिड़िया की तरह खुले आकाश में विचरण करने के लिए उड़ गई.

सारा ने अब निश्चय कर लिया था कि वो अपनी मेहनत और हिम्मत के तिनकों से अपना घोंसला स्वयं बनाएगी. तिनकातिनका जोड़ कर बनाएगी अब वो अपना घोंसला, आज की नारी में हिम्मत, मेहनत और खुद पर विश्वास का हौसला.

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