Anupama को अनुज कपाड़िया के साथ देख वनराज को लगा झटका, याद आई ये बात

स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इस हफ्ते अनुज कपाड़िया की एंट्री होने वाली है, जिसके साथ ही अनुपमा और शाह परिवार की जिंदगी में एक के बाद एक नए ट्विस्ट सामने आने वाले हैं. इसी बीच शो का नया प्रोमो रिलीज हो गया है, जिसमें अनुपमा का सामना उसके पुराने दोस्त से होने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

तैयार हुई अनुपमा

अब तक आपने देखा कि अनुपमा की दोस्त देविका उसे रियूनियन पार्टी में ले जाने की जिद करती है, जिसके लिए वह उसे खूबसूरती से तैयार करती है. क्योंकि वेदिका जानती है कि वहां अनुपमा का पुराना दोस्त आने वाला है, जो उसे काफी पसंद करता है. इसी बीच वनराज और काव्या भी इस पार्टी में नजर आने वाले हैं.

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अनुपमा-अनुज को साथ देखेगा वनराज

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा पार्टी में मस्ती करते हुए डांस करेगी. इस दौरान अनुज कपाडिया की एंट्री हो जाएगी . लेकिन अनुपमा उसे पहचान नही पाएगी. लेकिन अनुज उसे याद दिलाता नजर आएगा. इस बीच काव्या और वनराज की भी पार्टी में एंट्री होगी, जो अनुपमा और अनुज को साथ देखकर हैरान रह जाएंगे. वहीं दोनों को साथ देख वनराज को याद आएगा कि अनुज, अनुपमा का वही दोस्त है, जो उसे काफी पसंद करता था. ये बात याद करके वनराज दुखी हो जाएगा.

बता दें, अनुज कपाड़िया जहां अनुपमा को अपनी जिंदगी में लाने की कोशिश करेगा तो वहीं वनराज-काव्या को अनुपमा को परेशान करने के लिए सजा देता नजर आएगा. हालांकि समर और नंदिनी , अनुज को अनुपमा के करीब लाने की कोशिश करते नजर आएंगे.

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Imlie में होगी आदित्य की मौत! गश्मीर महाजनी ने शेयर किया सेट का आखिरी वीडियो

सीरियल इमली में इन दिनों इमोशनल ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ आदित्य को सत्यकाम ने गोली मार दी है. तो वहीं मालिनी समेत पूरा परिवार इमली को इस बात का जिम्मेदार ठहराकर घर से बाहर कर देंगे. इसी बीच आदित्या के रोल में नजर आने वाले गश्मीर महाजन की एक वीडियो से फैंस को झटका लग गया है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

आदित्य का आखिरी वीडियो

आदित्य (Gashmeer Mahajani) को गोली लगने के बाद फैंस उनके वापस आने का इंतजार कर रहे हैं. इस बीच आदित्य का रोल प्ले करने वाले गश्मीर महाजनी ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर करके फैंस को चौंका दिया है. दरअसल, आदित्य का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वो कहते नजर आर रहे हैं कि इमली (Imlie) के सेट पर उनका आखिरी दिन है और वो काफी इमोशनल हो रहे हैं. इसी के साथ वह इमली यानी एक्ट्रेस सुंबुल तौकीर खान (Sumbul Touqeer Khan) को गले लगाते हुए शो की टीम को अलविदा कहते दिख रहे हैं. हालांकि खबरे हैं कि गश्मीर शो में आदित्य के किरदार में नहीं बल्कि किसी दूसरे किरदार में एंट्री लेंगे.

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सीरियल की कहानी में आएगा नया ट्विस्ट

 

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इमली के अपकमिंग एपिसोड (Imlie Upcoming Episode) में आदित्य की मां टूट इमली के गले लगेगी और वो काफी इमोशनल हो जाएगी लेकिन वह गुस्से में इमली को खुद से दूर करेगी. इस बीच इमली की डेड बौड़ी नही मिलेगी, जिसके बाद इमली आदित्य की मां से वादा करेगी कि वो उनके बेटे को सही-सलामत वापस लाएगी.

मालिनी ने रची चाल

दूसरी तरफ खबरे हैं कि सत्यकाम को आदित्य को गोली मारने के लिए मालिनी ने कहा था, जिसका सच अपकमिंग एपिसोड में इमली सामने लाएगी. अब देखना होगा कि क्या होगा इमली की कहानी में आने वाला ट्विस्ट.

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अपने बच्चे का मेंटल बर्डन करें ऐसे कम

कोविड 19 महामारी ने हमारी नियमित जिंदगी को तो मानो खत्म ही कर दिया हो और सभी में एक भय और अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न कर दी है. न केवल बड़े व्यक्ति बल्कि बच्चे भी इसी डर से सहमे हुए हैं. अपने जज्बातों को दबा हुआ महसूस कर रहे हैं. बच्चों का दिमाग अभी भी विकसित हो रहा है इसलिए उनके दिमाग पर इतनी स्ट्रेस का बहुत नेगेटिव असर पड़ सकता है. इसलिए आपको बच्चों के बारे में अधिक फिक्र करनी चाहिए और उनकी स्थिति को भी अधिक गंभीरता से लेना चाहिए. आज हम आपको बताने वाले हैं कुछ ऐसे टिप्स जिनसे आप बच्चों के मानसिक भार को कम कर सकते हैं.

 1. उन्हें दे अधिक अटेंशन :

छोटे बच्चों को अधिक प्यार और अधिक अटेंशन की आवश्यकता होती है और वह आपसे यही उम्मीद करते हैं कि अगर उन्हें किसी दिन अधिक भार महसूस हो तो आप उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करें. इसलिए आप आपके बच्चों को अटेंशन दें और रोजाना उन्हें हग करें ताकि आपका प्यार उन्हें महसूस हो सके.

 2. उनके अच्छे व्यवहार के लिए दें पुरुस्कार :

अगर आपके बच्चे कोई अच्छा व्यवहार करते हैं या अगर कई बार वह अच्छा महसूस नहीं भी करते हैं तो उन्हें आप छोटा मोटा उनकी पसंद का गिफ्ट दे दें जिससे वह खुश हो सकें और मानसिक तनाव से छुटकारा पा सकें. ऐसे में आप उन्हें चॉकलेट या कोई खिलौना दे सकते हैं.

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 3. उन्हें सजा न दें :

आपको यह समझ लेना चाहिए की बच्चे भी इस समय एक युद्ध में लीन हैं जो उन्हें बहुत तंग कर रहा है. इस स्थिति में अगर वह जाने अनजाने में कोई गलती कर बैठते हैं तो आपको उन्हें मारना या पिटना नहीं चाहिए और न ही किसी चीज पर प्रतिबंध लगाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार की सजा से उनका मानसिक विकास बाधित हो सकता है और आपका रिश्ता भी खराब हो सकता है.

 4. खुद को उनके लिए रोल मॉडल बनाएं :

अगर आपके बच्चे आपको देखेंगे तो वह और अच्छे से स्थिति से निपटना सीखेंगे. अगर आप उनके सामने हमेशा परेशान और उदास बैठे रहेंगे तो वह भी यही सीखेंगे लेकिन अगर आप हमेशा खुश और चीयर अप महसूस करेंगे और उन्हें दिखाएंगे तो वह भी यह सीखेंगे और उनके मन से एक भार अपने आप ही कम हो जायेगा.

5. घर पर डिबेट न करें :

अगर आपके पास कोई ऐसा विषय है जो बच्चों के दिमाग पर बोझ बन सकता है तो उसके बारे में घर पर  चर्चा न करें. खास कर कोविड से बढ़ने वाले केस और डर की चीजों का बच्चों के सामने तो बिलकुल ही जिक्र न करें नहीं तो इससे बच्चों के दिमाग पर अधिक प्रेशर पड़ सकता है. समाचार आदि भी उन्हें कम ही देखने दें..

 6. उनके लिए एक शेड्यूल बना दें :

बच्चों के लिए एक शेड्यूल बना दें जिसमें पढ़ाई के साथ साथ उन्हें खेलने और रिलैक्स करने का टाइम भी दें. बहुत से मां बाप केवल पढ़ाई को लेकर ही बच्चे पर अधिक प्रेशर डाल देते हैं लेकिन आपको थोड़ा समय बच्चे के एंजॉय करने के लिए जैसे टीवी देखना आदि के लिए भी दे देना चाहिए.

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तो यह सब टिप्स थी जिनके कारण आप बच्चों के दिमाग से थोड़ा प्रेशर कम कर सकते हैं और साथ ही उन्हें फोन आदि के माध्यम से उनके सहपाठियों से भी जोड़ें रखें ताकि वह खुद को अकेला महसूस न कर पाए..

चिपचिपे मौसम में भी रखें अपनी स्किन को तरोताज़ा और खूबसूरत

मानसून चिलचिलाती गर्मी से राहत के साथ आता है, लेकिन साथ ही मौसम स्किन की समस्याओं के साथ-साथ चिपचिपी स्किन की समस्या भी लाता है. और जब स्किन सीधे रूप से सूर्य के संपर्क में आती है और गंदगी के संपर्क में आती है तो इससे स्किन की कई अन्य समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए यह सलाह दी जाती है कि इससे पहले कि स्किन को कोई नुकसान हो, इसकी रोकथाम के लिए पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए. आपको मानसून के मौसम में नियमित रूप से स्किन की देखभाल करने का रूटीन बनाना चाहिए और अपनी स्किन को यथासंभव साफ और गंदगी से मुक्त रखने की कोशिश करनी चाहिए.

ब्यूटी और मेकओवर एक्सपर्ट , ऋचा अग्रवाल शेयर कर रही हैं ऐसे टिप्स जो चिपचिपे या फिर मानसून के मौसम में भी आपकी स्किन को तरोताज़ा रखते हुए आपकी स्किन को पोषण देगा और लम्बे समय तक स्किन को यूथफुल रखेगा.

सबसे पहले, आपको नियमित अंतराल पर अपने चेहरे को धोने की आदत डालनी चाहिए. माइल्ड जेल बेस्ड फेस वॉश का इस्तेमाल करें जो स्किन की प्राकृतिक नमी को नहीं चुराता और स्किन को डीपर लेयर तक अच्छी तरह से साफ करता है, दिन में एक बार फेस वॉश का इस्तेमाल ज़रूर करें. आप अपनी स्किन के अनुकूल फलों से क्लींजर भी बना सकते हैं, पपीते का गूदा या खीरे का गूदा किसी भी प्रकार की स्किन के लिए उपयोग करने के लिए बहुत सुरक्षित है, ये प्राकृतिक चीजे स्किन के लिए क्लींजर हैं.

आप महीने में एक बार फेशियल के लिए भी जा सकते हैं और या फिर घर पर ही अपनी स्किन को पोषण दे सकते हैं. इसके लिए आप लौंग के तेल की कुछ बूंदें गर्म पानी में डालें और 10 मिनट के लिए भाप लें, इस प्रक्रिया से आप अपनी स्किन से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालते हुए आपनी स्किन की सफाई कर सकती हैं.

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इसके बाद आपको अपनी स्किन को टोन करना चाहिए, इससे स्किन का पीएच संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी. घर पर ही टोनिंग के लिए आप खीरे के रस में गुलाब जल की बूंदों को मिलाकर एक प्रभावी टोनर बना सकते हैं. इस मौसम में स्किन को हाइड्रेशन की आवश्यकता होती है, यह आपकी स्किन के लिए भोजन है इसलिए आपकी स्किन को मॉइस्चराइज़ करना एक दैनिक आदत होनी चाहिए. यदि आप प्राकृतिक मॉइस्चराइजर लगाना चाहते हैं तो एलोवेरा और गुलाब जल के साथ मॉइस्चराइजिंग करें या फिर
क्रूएलिटी फ्री ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें , यह पैक लगाने के बाद आप 15 मिनट बाद चेहरा ठन्डे पानी से धो लें.

हाईड्रेशन के अलावा स्किन को एक्सफोलिएट करना बहुत महत्वपूर्ण है जो हाइड्रेशन के लिए भी अच्छा है, आप गुलाब जल, ओट्स फ्लेक्स और नींबू के रस के साथ एक पैक बना सकते हैं, अपनी स्किन पर 15 मिनट तक रखें धीरे से स्क्रब करते करते हुए फेस वाश करे.

अगर आपकी स्किन संवेदनशील है तो आप एलोवेरा के गूदे और चिया सीड्स के पैक का भी उपयोग कर सकते हैं, चिया सीड्स को रात भर भिगो दें और अगले दिन सुबह ओट्स फ्लेक्स के साथ बीजों को मिलाएं, स्किन पर धीरे से रगड़ें और स्किन को धो लें, पैक को ज्यादा देर तक न रखें. यह नेचुरल पैक स्किन के हाइड्रेशन और मॉइस्चराइजिंग का ख्याल रखेगा, पीएच संतुलन बनाए रखेगा और स्किन से मृत कोशिकाओं को भी हटा देगा. पैक यह सुनिश्चित करेगा कि आपकी स्किन लंबे समय तक क्लीन और हाइड्रेट महसूस करे.

चिपचिपी स्किन से निपटने में मड पैक भी बहुत प्रभावी होते हैं, और चिपचिपे मौसम में में मिट्टी के फेस पैक का उपयोग करें, अगर आपकी स्किन रूखी है तो आप ठंडक के लिए दूध और चंदन पाउडर मिला सकते हैं. यह खुले रोमछिद्रों की देखभाल करते हुए स्किन को चिपचिपाहट से मुक्त रखेगा. 20 मिनट के लिए पैक को लगाएं और अगर आप अपनी स्किन को चमकाना चाहते हैं तो पैक में नींबू के रस की कुछ बूंदें मिलाएं.

नमी वाले दिनों में आपकी स्किन के लिए टोनिंग बहुत महत्वपूर्ण रहती है, गुलाब जल के टुकड़े, खीरे के रस के क्यूब्स को फ्रिज में रख दें और सुबह और शाम लगाएं. मेकअप करने से पहले उन्हें अवश्य लगाएं और ठंडे पानी से धो लें, इससे खुले रोमछिद्रों का ध्यान रखा जाएगा और स्किन को अत्यधिक पसीना नहीं आने देगा जैसा कि इस दौरान होता है. यह आपकी स्किन को मेकअप मेल्टडाउन से भी बचाएगा.

इसके अतिरिक्त आप नीचे दिए हुए टिप्स भी लगातार इस्तेमाल कर सकते हैं, क्यूंकि ये किचन बेस्ड हैं और पूरी तरह से नेचुरल हैं तो आप इनका इस्तेमाल रेगुलर बेसिस पर कर सकते हैं.

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अपने चेहरे पर बर्फ के ठंडे पानी के छींटे मारें क्योंकि यह छिद्रों को कस देगा और तेल के स्राव को एक हद तक रोक देगा.

• तैलीय स्किन के लिए खीरे के रस और कच्चे दूध को प्राकृतिक टोनर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

अपनी स्किन और शरीर को लगातार हाइड्रेट रखने का ध्यान रखें. चिपचिपा मौसम बाहर रखने के लिए लोशन-आधारित एक के बजाय पानी आधारित मॉइस्चराइज़र के लिए जाएं.

• कम से कम 8-10 गिलास ताजा पानी पिएं. बीच-बीच में आप पानी में नींबू के रस की कुछ बूंदें मिला सकते हैं. नींबू तेल के स्राव को नियंत्रित करने में मदद करता है और यह एक बेहतरीन क्लींजर है.

• अपने चेहरे पर बर्फ के ठंडे पानी से छींटे मारें क्योंकि यह रोमछिद्रों को कस देगा और तेल के स्राव को कुछ हद तक रोक देगा. अपनी स्किन और शरीर को लगातार हाइड्रेट रखने के लिए ध्यान रखें.

चिपचिपा मौसम को देखते हुए पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, दिन में कम से कम 8 गिलास पानी पिएं, भले ही इसके परिणामस्वरूप बार-बार पेशाब आए. यह सिर्फ विषाक्त पदार्थ है जो शरीर से बाहर निकल रहा है.
अगर आपकी स्किन रूखी है तो अल्कोहल आधारित टोनर से दूर रहने का नियम बना लें, क्योंकि ये स्किन का रूखापन बढ़ाते हैं. पानी आधारित विकल्पों की तलाश करें और अपनी स्किन को बेहतर बनाएं.

अपराधिनी: भाग 1- क्या था उसका शैली के लिए उसका अपराध

लेखिका-  रेणु खत्री

पुरानी यादों के पन्ने समेटे आज  बरस बीत गए, फिर भी उस तसवीर को देखते ही पता नहीं क्यों मेरा मन अतीत में लौट जाता है. जब से शैली को टीवी पर देखा है, उस से मिलने की चाहत और भी बलवती हो गई. वह कैसे समाजसेविका बन गई? उसे क्या जरूरत थी यह सब करने की? उस का पति तो उसी की भांति समझदार ही नहीं, बल्कि कार की एक बड़ी कंपनी का मालिक भी था. ऐसे में वह इस क्षेत्र में कैसे आ गई?

मेरे अंतर्मन में ढेरों प्रश्न उमड़घुमड़ रहे थे. मैं उस से मिलने को बेताब हो उठी. पर न पता, न ठिकाना. कहां खोजूं उसे? यही सब सोचतेसोचते 4 दिन बीत गए. और फिर मेरे घर की चौखट पर जब मेरी प्रिय पत्रिका ने दस्तक दी तो उस में छपी उस की समाजसेवा की कुछ विशेष जानकारी से उस की संस्था का पता चला. उसी से उस का फोन नंबर मालूम हुआ. मेरी खुशी का ठिकाना न रहा.

मैं ने फोन लगाया. वही चिरपरिचित मधुर आवाज में वह ‘‘हैलो, हैलो…’’ बोले जा रही थी. और मेरे शब्द मुख के बजाय आंखों से झर रहे थे. मुझ से कुछ भी कहते नहीं बन रहा था. आखिर अपमान भी तो मैं ने ही किया था उस का. अब कैसे अपने किए की माफी मांगूं? फोन कट गया. मैं ने फिर मिलाया. अब भी बात करने की हिम्मत मैं नहीं कर पाई.

अब की बार वहीं से फोन आया. मैं ने घबराते हुए फोन उठाया. आवाज आई, ‘‘हैलो जी, कौन? लगता है आप तक मेरी आवाज नहीं पहुंच पा रही है.’’ उस का इतना कहना भर था कि मैं एकाएक बोल उठी, ‘‘शैली.’’

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‘‘हांहां, मैं शैली ही हूं. आप कौन हैं?’’

‘‘मैं, मैं, प्रिया, तुम्हारी बचपन की सहेली.’’

वह चौंकी, ‘‘प्रिया, तुम, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि मैं अभी भी तुम्हें याद हूं.’’

‘‘प्लीज शैली, मुझे माफ कर दो. उस दिन मैं ने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया. सच मानो तो आज तक अपनेआप से नजरें मिलाते हुए आत्मग्लानि होती है. उस दिन के बाद से कितना तड़पी हूं तुम से माफी मांगने के लिए,’’ मैं लगातार बोले जा रही थी.

वह थोड़ा रोब में बोली, ‘‘बस, बहुत हुआ. और हां, तुम किस बात की माफी मांग रही हो? माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. मैं ने तुम्हारे सपनों को तोड़ा. अगर तुम सचमुच मुझ से नाराज नहीं हो, तो मैं हैदराबाद में हूं. क्या तुम मुझ से मिलने आओगी? अपना पता मैं मोबाइल पर अभी मैसेज किए देती हूं. और प्रिया, तुम कहां हो?’’

‘‘मैं यहीं दिल्ली में ही हूं. आज तो तुम से बात करने से भी ज्यादा खुशी की बात यह है कि अगले महीने ही मेरे पति की औफिस की मीटिंग हैदराबाद में ही है. अब की बार मैं भी उन के साथ ही आऊंगी,’’ मैं ने कहा.

हम दोनों ही खुशी से खिलखिला उठे व जल्द ही एकदूसरे से मिलने की चाहत लिए अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए.

शशांक के औफिस से लौटते ही मैं ने उन के आगे अपनी बात रख दी, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. वैसे भी याशिका और देव तो होस्टल में हैं. याशिका का इसी वर्ष आईआईटी में चयन हो गया है. वह कानपुर में है. और देव कोटा में अपने मैडिकल प्रवेश टैस्ट की तैयारी में व्यस्त है.

अब शैली से मिलने की मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी. यों लगने लगा मानो दुख व नफरत के काले मेघ छंट गए और खुशियों की छांव फिर से हमारे दिलों पर दस्तक देने को तैयार है. शायद आंसू और खुशी के इस सामंजस्य का नाम ही जिंदगी है.

अब तो मेरा पूरा ध्यान ही शैली पर केंद्रित होने लगा. फिर फोन मिलाया. यह जानने के लिए कि उस के पति कैसे हैं, बच्चे कितने हैं, कितने बड़े हो गए.

पर शैली ने फोन पर कुछ भी बताने से मना कर दिया. मात्र इतना कहा, ‘‘अभी इसे राज ही रहने दो. मिलने पर सब बताऊंगी.’’

अपनी कल्पना में खोई मैं 2 बच्चों के हिसाब से उन के लिए कुछ उपहार आदि खरीद लाई.

अगले दिन शशांक के औफिस जाने के बाद मैं ने अपना पुराना वह अलबम निकाला जो शादी के समय दादी ने मेरे कपड़ों के साथ रख दिया था. इस में शैली और मेरी बचपन की कई तसवीरें थीं. उन्हें देखते ही मुझे वर्षों पुराने उन रंगों की स्मृति हो आई जो कभी मेरे जीवन में गहरे थे व कभी उन रंगों की चमक फीकी पड़ गई थी. उन यादों के अलगअलग रूप मेरे सामने चलचित्र की भांति आते जा रहे थे.

कितना प्यारा था वह बचपन, जो कभी तो मां की साड़ी के आंचल में छिप जाता था और कभी झांकने लगता था दादी की प्रेरणादायक कहानियों के माध्यम से.

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शैली और प्रिया की जोड़ी पूरे स्कूल में मशहूर थी. हमारे तमाम रिश्तों में हमारी दोस्ती का रिश्ता ही इतना प्रगाढ़ और अनमोल था कि स्कूल में, चाहे अध्यापिका हो अथवा सहेलियां, हम दोनों का नाम जोड़ कर ही बोला जाता था -शैलप्रिया.

शैली, जितनी बाहर से खूबसूरत सी, उस से कहीं अधिक वह दिल से भी सौंदर्य की धनी थी. हमारा बचपन ढेर सारे अनुभवों और किस्सों से भरा था. वह अपने मातापिता की इकलौती लाड़ली थी और मेरे दोनों छोटे भाइयों को वह राखी बांधती थी.

हमारा घर भी पासपास ही था. उस के पापा यहीं दिल्ली में ही किसी गैरसरकारी कंपनी में कार्यरत थे व उस की मां गृहिणी थीं, जबकि मेरे पापा का अपना कारोबार था और मम्मी अध्यापिका थीं. कालेज में भी हमारे विषय समान थे और कालेज भी हम दोनों का एक ही था. हम ने बीए किया था. उस के बाद हमारी दोस्ती पर पता नहीं किस की बुरी नजर लग गई जो हम एकदूसरे से 20 सालों से जुदा हैं. सोचतेसोचते ही मेरी आंखें नम हो आईं, फिर भी विचारों की झड़ी दिलोदिमाग में गोते खाती रही.

कुदरत व समय का हमारे जीवन से गहरा नाता है. हम तो इस मायावी दुनिया में मात्र माध्यम बनते हैं. जबकि कुदरत बड़ी करामाती है जो किस का समय, किस का काम, कहां, कैसे बांट दे, कोई नहीं जानता. फिर भी हम बुनते हैं सपनों के महल.

उस दिन भी जिंदगी ने एक रास्ता तय किया था जिस की सुखद फूलोंभरी राह पर मैं ने चलने के सपने देखे. लेकिन कुदरत ने उस दिन मेरा समय यों पलट दिया मानो मेरे अहं पर किसी ने भयानक प्रहार किया हो.

अगले भाग में पढ़ें- क्या हुआ जो रोहित ने उसे पसंद कर लिया…

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जैसे को तैसा : कहीं लोग आपके भोलेपन का फायदा तो नहीं उठा रहे

मीता आज बेहद परेशान थी. इस की वजह थी उस की ननद. मीता की ननद जबतब घर आ जाती, तरहतरह की फरमाइशें करती, कभी कपड़े उठा ले जाती. मीता के अपने भी बच्चे हैं. वह कब तक सब की फरमाइशें पूरी करती रहती. एक दिन मीता ने यह बात अपनी मां को बताई.

मां ने मीता से कहा कि तू आज और अभी से अपनी ननद को इग्नोर करना शुरू कर दे. मीता ने यही किया. इस का असर यह हुआ कि कुछ दिनों बाद ही उस की ननद ने आनाजाना कम कर दिया. साथ ही, मीता के कपड़ों में हाथ मारना भी बंद कर दिया. बात छोटी सी है लेकिन बड़े काम की है. अकसर हम कई लोगों से परेशान होते हैं. इस की असल वजह हम ही होते हैं. अगर हम इग्नोर करना शुरू कर दें तो काफी समस्याओं का हल निकल आएगा.

एक कहावत है कि जो आप के साथ जैसा करे आप उस के साथ वैसा ही व्यवहार करें. कई बार यह जरूरी भी हो जाता है. सामने वाला जिस तरह का व्यवहार करे, यह भी जरूरी नहीं कि आप उस की तरह  ही नीचे गिर जाएं. कई बार हमें न चाहते हुए भी कुछ लोगों को इग्नोर करना पड़ता है. इन में से कुछ रिश्ते अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे. कुछ खट्टे होते हैं तो कुछ मीठे.

जरूरी है नजरअंदाज करना

कुछ लोग बिना बात के ही सिर पर बैठ जाते हैं. बातबात पर या तो रोकटोक करेंगे या कुछ न कुछ ऐसा करेंगे जिस से हमें कोफ्त होती है. अगर आप की जिंदगी में भी ऐसा कोई है जिस से आप बेहद परेशान हैं तो उसे आज से ही इग्नोर करना शुरू कर दें. अगर आप नजरअंदाज कर देंगे तो सामने वाला भी धीरेधीरे समझ जाएगा. नतीजा यह होगा कि वह आप से कन्नी काटना शुरू कर देगा जिस से आप को नजात मिल जाएगी.

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जिंदगी में हम रोज कई लोगों से मिलते हैं. कुछ लोग हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं तो कुछ नहीं बन पाते. लेकिन कई बार हिस्सा बन चुके ये लोग ही हमारी जिंदगी को नासूर बना देते हैं. अगर आप ऐसी ही किसी परेशानी से दोचार हो रहे हैं तो आप यह काम कर सकते हैं. अगर आप को बारबार फोन कर के सामने वाला परेशान कर रहा है तो आप फोन न उठाएं. लेकिन बात हद से ज्यादा हो जाए तो आप पुलिस का सहारा भी ले सकते हैं.

अगर बात इग्नोर करने से बन जाती है तो इस से अच्छी कोई बात हो ही नहीं सकती. अगर आप सामने वाले को फोन या फिर किसी तरह का कोई जवाब नहीं देंगे तो वह जल्दी ही समझ जाएगा और अगर वह शर्मदार हुआ तो आप से खुदबखुद किनारा कर लेगा.

आप को लग रहा है कि सामने वाला हद से ज्यादा नीचे गिर रहा है. बातबात पर आप को नीचा दिखा रहा है. बेमतलब आप को खरीखोटी सुना रहा है. तो, आप उस की तरह व्यवहार बिलकुल न करें. जरूरी नहीं है कि जैसा वह करे वैसा ही आप भी करें. आप में और उस में कुछ न कुछ फर्क तो रहना ही चाहिए. सामने वाला आप से गलत शब्दों में बात कर रहा है तो आप कतई वैसा न करें. उस को इग्नोर करना ही बेहतर होगा. कहते हैं फालतू की बातों और फालतू के लोगों पर ध्यान न देना  खुद के लिए अच्छा होता है.

इग्नोर करने से बात नहीं बन रही है तो आप सामने वाले को सख्ती से समझा दें. आप को कोई बात चुभ गई है या कोईर् हरकत पसंद नहीं है तो आप सख्ती से भी बता सकती हैं. आप के सख्ती दिखाने की देर है, वह शख्स अगली बार से आप के सामने फटकेगा ही नहीं.

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यह सख्ती सिर्फ किसी शख्स पर ही लागू नहीं होती. कई बार हमारे आसपास के रिश्ते भी हमें परेशान कर देते हैं. कई बार घर के ही किसी व्यक्ति से हम परेशान हो जाते हैं. औफिस में साथ में काम करने वाले लोग कई बार हमारी परेशानी को बढ़ा देते हैं. रिश्तेदार बिना मतलब खून पीना शुरू कर देते हैं. समाज में असमाजिक तत्त्व जान लेने को उतारू रहते हैं. ऐसे में व्यवहार में इग्नोर करने की प्रवृत्ति के साथसाथ सख्ती जरूरी हो जाती है.

सैकंड चांस: क्या मिल पाया शिवानी को दूसरा मौका

रोज की तरह ठीक 6 बजे अलार्म की तेज आवाज गूंज उठी. उनींदी सी शिवानी ने साइड टेबल पर रखे अलार्म क्लॉक को बंद किया और फिर से करवट बदल कर सो गई. बगल के कमरे में अवनीश भी गहरी नींद में सोया हुआ था. अलार्म की आवाज सुन कर वह कभी नहीं उठता. शिवानी ही उसे उठाती है. पर आजकल शिवानी को उठने या उठाने की कोई हड़बड़ी नहीं होती. पिछले सप्ताह ही देश में प्रधानमंत्री ने तेजी से फैलते कोरोना वायरस के मद्देनजर पूरे देश में 21 दिन के लौकडाउन की घोषणा जो कर दी थी. अब वह वर्क फ्रॉम होम कर रही थी.

शिवानी के लिए वर्क फ्रॉम होम का मतलब था आनेजाने में बर्बाद होने वाले समय को नींद पूरी करने में लगाना.

शिवानी करीब 8 बजे उठी और फ्रेश हो कर नाश्ता बनाने लगी. अवनीश अब तक टांग पसार कर सो रहा था. शिवानी दोतीन बार अवनीश के कमरे का चक्कर लगा आई थी. आज उसे सोता हुआ अवनीश बहुत ही प्यारा और सीधासाधा सा लग रहा था. अपनी सोच पर उसे खुद ही हंसी आ गई. सीधासाधा और अवनीश, हो ही नहीं सकता.

पुरानी बातें याद आते ही उस का मन कसैला हो उठा. पिछले दोतीन महीने से दोनों के बीच कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा था. शिवानी तो दिल से तलाक का फैसला भी ले चुकी थी. इसी वजह से उस ने अलग कमरे में सोना शुरू कर दिया था. मगर तलाक की बात उस ने अब तक अवनीश से कही नहीं थी. वह कहीं न कहीं खुद को पूरी तरह से श्योर कर लेना चाहती थी कि वाकई अवनीश बेवफा है.

नाश्ता बनाते समय शिवानी की सहेली प्रिया का फोन आ गया,

“हाय कैसी है शिवानी डार्लिंग?” प्रिया की चहकती हुई सी आवाज सुन कर शिवानी के चेहरे पर मुस्कान खिल गई.

“अच्छी हूं. तू बता.”

“बस अच्छी हूं ? इतना शानदार मौका है. पूरे दिन तुमदोनों को घर में साथ रहने का मौका मिल रहा है और यार तुम दोनों के मिलन की पहली सालगिरह भी तो है. पर तेरी आवाज में तो कोई तड़प, कोई जोश नहीं ?”

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“ओह सॉरी मैं तो भूल ही गई थी.” शिवानी सकपकाती हुई सी बोली.

“सॉरी ? अरे यार इस में सॉरी की क्या बात है? याद कर मेरे प्रमोशन की वह पार्टी. जब तुम दोनों ने पहली दफा एकदूसरे को देखा था और फिर देखते ही रह गए थे. कई महीने डेटिंग करने और एकदूसरे को अच्छी तरह समझने के बाद तुम दोनों ने शादी का फैसला लिया था. तुम्हारे इस फैसले पर सब से ज्यादा खुश मैं ही थी.”

“मगर यार आज मुझ को अपने इस फैसले पर ही अफसोस होने लगा है.” शिवानी की आवाज में दर्द उभर आया था.

“क्या ? यह क्या कह रही है शिवानी? कोई वजह ?” प्रिया भी गंभीर हो उठी थी.

“वजह बहुत बड़ी नहीं. दरअसल मुझे पता लगा कि अवनीश की जिंदगी में एक और लड़की है जिसे वह बहुत प्यार करता है. यह बात मुझे अवनीश के ही ऑफिस कूलीग और दोस्त पीयूष ने बताई. पीयूष एकदो बार अवनीश के साथ घर भी आ चुका है और अवनीश पियूष से अपनी हर बात शेयर भी करता है. ऐसे में मेरे लिए इस बात पर विश्वास न करने की कोई वजह नहीं थी.”

“अरे यार यह सब क्या कह रही है तू? अवनीश ऐसा नहीं हो सकता.”

“शायद ऐसा नहीं या फिर ऐसा हो. इसलिए कोई बड़ा फैसला लेने से बच रही हूं. बस दूरी बढ़ा ली है. अपने ही घर में हमदोनों अलगअलग कमरों में रहते हैं. अब तक अलगअलग समय पर ऑफिस जाते थे ताकि एकदूसरे के साथ कम से कम वक्त गुजारना पड़े. उस ने रात की शिफ्ट ज्वाइन की और मैं दिन में जाती थी. जरूरी बातचीत के अलावा हमारे बीच कोई कनेक्शन नहीं है. बस यही कहानी है फिलहाल मेरी जिंदगी की. पर अब इस लॉकडाउन में न चाहते हुए भी हमें पूरे दिन एकदूसरे को सहना पड़ेगा. एक ही छत के नीचे रहना होगा.”

“ऐसा क्यों कह रही है? हो सकता है लॉकडाउन के ये दिन तेरी जिंदगी को फिर से खूबसूरत बना जाएं. चल इसी विश के साथ अब फोन रख रही हूं. लगता है मेरे पति महोदय उठ गए हैं.”

“ओके बाय डियर.” प्रिया का फोन रख कर शिवानी मुड़ी तो देखा सामने अवनीश मास्क लगाए खड़ा है.

“जरा नीचे ग्राउंड में वाक कर के आता हूं. थोड़ी देर मनीष से बातें भी करनी हैं. कुछ ऑफिशियल काम है.”

“ओके” सपाट आवाज में जवाब दे कर शिवानी फिर से किचन के काम में लग गई.

नाश्ता बनाते हुए उसे याद आ रहा था वह दिन जब सब जानने के बाद भी उस ने दिल की तसल्ली के लिए अवनीश से पूछा था,” रागिनी नाम है न उस का, तुम्हारी फ्रेंड का, क्लोज फ्रेंड का जो हर समय तुम्हारे साथ रहती है?”

शिवानी के कहने के अंदाज से अवनीश समझ गया था कि उस मतलब क्या है. अपनी नजरें फेरता हुआ बोला था उस ने,” हां मेरी फ्रेंड है. क्लोज फ्रेंड. वैसे किस ने बताया तुम्हें?”

अवनीश की बेशर्मी से आहत शिवानी फूट पड़ी थी,”किसी ने भी बताया, मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं बस यह जानना चाहती हूं कि ऐसा है या नहीं?”

“ऐसा है मगर इस में क्या बात हो गई? तुम्हारे मेल फ्रेंड्स नहीं हैं क्या?”

“मेल फ्रेंड्स हैं पर कोई क्लोज नहीं.”

“अरे यार वह मेरी स्कूल फ्रेंड है. हम स्कूल से एकदूसरे के क्लोज हैं. चारपांच महीने हुए, उस ने ज्वाइन किया तो हमें एकदूसरे की कंपनी मिल गई.” अवनीश ने सफाई दी.

“कंपनी…. बहुत अच्छे. तुम उस के इतने ही क्लोज थे तो उसी से शादी कर लेते न. मेरी जिंदगी क्यों खराब की?” कहते हुए शिवानी ने गुस्से में अपने हाथ में पकड़ा हुआ गिलास जमीन पर दे मारा.

शिवानी के तेवर देख कर अवनीश चिढ़ता हुआ बोला,” खबरदार मेरे ऊपर ऐसे गंदे इल्जाम लगाने की सोचना भी मत. आज के बाद तुम ने रागिनी और मुझे ले कर कोई कहानी गढ़ी तो अच्छा नहीं होगा.”

कह कर वह पैर पटकता हुआ बाहर चला गया और शिवानी देर तक सिसकसिसक कर रोती रही. वह दिन था और आज का दिन, दोनों के बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी हो गई जिसे तोड़ने का प्रयास न तो अवनीश ने किया और न शिवानी ने.

दोनों छोटीछोटी बातों पर झगड़ने लगे. शिवानी को भी हर बात पर गुस्सा आ जाता. अवनीश भी चिल्लाचिल्ला कर जवाब देता. कितनी ही दफा दोनों के बीच भारी लड़ाई हो चुकी है. एकदूसरे के लिए दिल में कोई भाव नहीं रह गए हैं. बस अपने इस रिश्ते को किसी तरह ढोए जा रहे हैं .आपस में जरूरत की बातें करते हैं और अपनेअपने कमरे में अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त रहते हैं.

कई बार शिवानी ने अवनीश के फोन पर रागनी की कॉल आती देखी. काफी देर तक अवनीश को उस से हंसहंस कर बातें करते भी देखा.

नाश्ता बना कर शिवानी घर की सफाई करने लगी. अवनीश अब तक लौटा नहीं था. काफी समय से उस ने अवनीश के कमरे का रुख भी नहीं किया था. कामवाली ही सफाई कर के चली जाती थी. वैसे भी ऑफिस से थक कर आने के बाद उसे अपने कमरे और किचन के अलावा कहीं जाने की सुध नहीं रहती थी.

पर आज कुछ सोचकर शिवानी अवनीश के कमरे में घुस गई.

उम्मीद के अनुरूप अवनीश का कमरा बुरी तरह बिखरा हुआ मिला. कमरा साफ करते हुए शिवानी को वह दिन याद आ गया जब पहली दफा वह अवनीश के घर गई थी. अवनीश उस की खातिर किचन में कुछ बनाने घुसा और शिवानी ने पूरा कमरा साफ कर दिया. अवनीश को शिवानी की यह हरकत बहुत पसंद आई थी.

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आज अवनीश का कमरा साफ करते हुए शिवानी को निचले दराज में अपनी छोटी सी फोन डायरी पड़ी मिल गई जिसे वह रख कर भूल गई थी. वैसे भी मोबाइल के इस समय में सारे कांटेक्ट फोन में ही सेव रहते हैं.‌

वह यूं ही डायरी पलटने लगी कि उसे अपनी कॉलेज फ्रेंड निशा का नंबर दिखा. वह खुशी से चहक उठी. निशा से बात करना उसे शुरू से बहुत पसंद था. पर इन सालों में जिंदगी इतनी व्यस्त हो गई थी कि निशा उस के दिमाग से निकल ही गई थी.

अब लौकडाउन के इन दिनों में समय की कमी नहीं तो क्यों न पुरानी सहेली से बातें हो जाए, सोचते हुए शिवानी अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर पसर कर निशा को फोन लगाने लगी.

“हाय शिवानी कैसी है डियर ? इतने साल बाद तेरी आवाज सुन कर मुझे कितनी खुशी हो रही है बता नहीं सकती.”

आई नो. हम दोनों की दोस्ती है ही इतनी प्यारी. यार तुझ से बात कर के दिल को बहुत सुकून मिलता है. तुझ से ज्यादा कोई नहीं समझता मुझे.”

कोई की बात न कर. तेरा मियां तो तुझे समझता ही होगा.” कहते हुए ठठा कर हंस पड़ी वह.

शिवानी की आवाज में थोड़ी सुस्ती आ गई,” अरे कहां यार, सहेली से बढ़ कर कोई नहीं होता. तू बता, तू कहां है आजकल ? कहां जॉब कर रही है?”

“मैं तो आजकल दिल्ली में हूं, एलजी मैं काम कर रही हूं.”

“क्या बात है यार, मैं भी दिल्ली में ही हूं और मेरे हसबैंड एलजी में ही तो काम करते हैं ”

“अच्छा क्या नाम है उन का ? किस पोजीशन पर हैं? मैं तो डेढ़ साल से यहां हूं.”

“मेरे हसबैंड 4 साल से एलजी में हैं. अवनीश नाम है उन का. अवनीश शेखर.”

ओ हो तो तू उस हैंडसम, डीसेंट और स्मार्टी अवनीश की बीवी है. यार मुझे तो जलन होने लगी तुझ से.”

“चुप कर. जलन की बात छोड़ और यह बता कि ऑफिस में वे किस वजह से मशहूर हैं? यार सच्चाई बताना. उन की कोई गर्लफ्रेंड भी है जिस के साथ वे घूमतेफिरते हैं?”

“यार गर्लफ्रेंड तो नहीं पर हां दोस्त जरूर है . रागिनी नाम है उस का. बहुत प्यारी दोस्ती है दोनों की. स्कूल के दोस्त हैं दोनों और हाल ही में रागिनी ने ऑफिस ज्वाइन किया तो उसे अवनीश की कंपनी मिल गई. करीब 10 साल बाद एकदूसरे से मिले थे वे. ज्यादा समय नहीं हुआ इस बात को.”

“पर क्या उन के बीच चक्कर नहीं चल रहा? शिवानी ने अपनी शंका जाहिर की तो निशा उबल पड़ी,

“क्या यार, शक्की बीवी वाली बातें मत कर. वह इतना डीसेंट बंदा है. उस के लिए कोई ऐसी बात सोच भी नहीं सकता. तूने कैसे सोच लिया?”

“मगर अवनीश का दोस्त पीयूष तो कुछ और ही कह रहा था. उसी ने बताया मुझे कि दोनों रिलेशनशिप में हैं. पीयूष गहरा दोस्त है अवनीश का तो मुझे लगा कि वह सच कह रहा होगा…”

“दोस्त ? यार 6 महीने हो चुके दोनों की दोस्ती टूटे. जितने गहरे दोस्त थे अब उतने ही गहरे दुश्मन है.”

सहेली की बातें सुन कर शिवानी को बहुत तसल्ली हुई. निशा ने आगे कहा,

“ऑफिस में पीयूष को छोड़ कर हर बंदा अवनीश की शराफत के गीत गाता है. कभी अवनीश ने रागिनी को उस तरह से टच भी नहीं किया. तू भी यार किस की बातों में आ गई.”

थोड़ा सोच कर निशा ने फिर कहा,

“तू रुक, मैं अभी कॉन्फ्रेंस कॉल कर के पियूष को भी इस में ऐड करती हूं. तुझे सब पता चल जाएगा. बात मैं करूंगी .. तू केवल सुनना.” निशा ने कहा तो शिवानी ने स्वीकृति दे दी,

निशा ने पीयूष का नंबर मिलाया, ” हाय पीयूष कैसे हो?”

“अच्छा हूं निशा तुम बताओ. आज हमें कैसे याद कर लिया?”

“हम तो सब को याद करते हैं. आप ही जरा उखड़ेउखड़े से रहते हैं.”

“क्या बात है आज बड़ी शायरी के मूड में हो.”

इसीतरह इधरउधर की कुछ बातें और ऑफिस से जुड़ी गॉसिप करते हुए निशा मेन मुद्दे पर आई,” यार पीयूष तुझे क्या लगता है, रागिनी कैसी लड़की है? उस पर विश्वास किया जा सकता है?”

“एक्चुअली रागिनी काफी फनी है. माहौल में रंग जमा देती है. ” उस ने जवाब दिया.

“…और यार यह रागिनी और अवनीश के बीच कुछ चल रहा है क्या ? हमेशा साथ ही दिखते हैं.”

“नहीं यार रागिनी और अवनीश के बीच कुछ हो ही नहीं सकता. बस दोस्त हैं दोनों. मैं जानता हूं अवनीश अपनी वाइफ से बहुत प्यार करता है.”

“मगर मैं ने सुना है कि तुम ने उस की वाइफ से कहा है कि इन दोनों के बीच कोई चक्कर चल रहा है.”

“अरे यार वह तो बस मस्ती में कहा था मैं ने ताकि उस के मन में अवनीश को ले कर शक पैदा हो जाए. अवनीश ज्यादा बनने लगा था न पर तुझे किस ने कहा?

अचानक पियूष चौंका तो निशा हंस पड़ी और बोली, अवनीश की बीवी  ने ही कहा. चल मैं तुझ से बाद में बात करती हूं. बट थैंक्स यार सच बताने के लिए.”

कह कर निशा ने कॉल काट दी और वापस शिवानी की तरफ मुखातिब हुई,” अब बता कैसा लग रहा है सच जान कर?”

शिवानी की आंखें भर आई थीं. रुंधे हुए कंठ से इतना ही कह पाई,” थैंक्स यार तूने आज मेरा बहुत बड़ा काम किया है. मुझे सच से वाकिफ कराया है.”

“तेरी तसल्ली के लिए रागिनी की पिक भी भेजती हूं. तू खुद समझ जाएगी कि उसे ले कर तेरे मन में इनसिक्योरिटी आने की जरूरत ही नहीं. बहुत फनी और प्यारी सी है रागिनी. गोलूमोलू टाइप. इसीलिए तो अवनीश को उस से बातें करने में मजा आता है. वह उस तरह की नहीं है जैसी तू सोच रही थी.” कहते हुए निशा ने शिवानी को रागिनी और अवनीश की ऑफिस ग्रुप वाली कुछ तस्वीरें भेजी.

शिवानी रागिनी की फोटो देख कर दंग रह गई. सांवली, खूब फैटी और थोड़ी कम हाइट वाली रागिनी हर फोटो में खिलखिला कर हंसती दिखी.

शिवानी देर तक बैठी रही. एक गलतफहमी ने किस कदर उस की जिंदगी नीरस और बोझिल बना दी थी. पीयूष की बात सुनने के बाद वह कितना शक करने लगी थी अवनीश पर. हर छोटीछोटी बात पर झगड़ने लगी थी. उस की केयर करनी छोड़ दी थी. नाहक ही कितनी दूरी बढ़ा ली थी उस ने. मगर अवनीश ने कभी भी उस से कड़ी शब्दों में बात नहीं की. न ही कभी कोई शिकायत किया या सफाई दी. बस खामोश हो गया था वह.

शिवानी ने अपने आंसू पोंछ लिए और उठ गई. आज वह अपने अवनीश के लिए कुछ उस की पसंद का बनाना चाहती थी. नहा कर उस की पसंद की ड्रेस पहनना चाहती थी. शरमा कर उस की बांहों में समा जाना चाहती थी. सच था कि वह अपने बिखर रहे रिश्ते को सेकंड चांस देना चाहती थी. समेट लेना चाहती थी खुशियां फिर से अपने दामन में.

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खुशियों का उजास: भाग 1- बानी की जिंदगी में कौनसा आया नया मोड़

“मम्मा… मम्मा…,” नन्हे की घुटीघुटी चीखें सुन कर मां बानी दौड़ीदौड़ी ड्राइंगरूम में आई, जहां वह अपने 4 साल के बेटे को आया की निगरानी में छोड़ कर गई थी. उस ने वहां जो दृश्य देखा, सदमे से उस की खुद की चीख निकल गई.

उस के सगे बड़े भाई और पिता कमरे में थे. भाई ने एक तकिए से नन्हे के मुंह को दबाया हुआ था, साथ खड़े पिता क्रोध से जलती लाल अंगारा आंखों से दांत पीसते हुए उस से कह रहे थे, “ज़ोर से भींच, और जोर से कि इस संपोले का काम आज तमाम हो ही जाए.”

एक क्षण को तो बानी में समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे, लेकिन अगले ही पल वह भाई के हाथों से तकिया छीनते हुए जोर से चीखी, “बचाओ… बचाओ…” कि तभी बिजली की गति से एक लंबा व तगड़ा शख्स ड्राइंगरूम के खुले दरवाजे से कमरे में घुसा. उस ने भाई के हाथों से तकिया जबरन छीन कर एक ओर पटक दिया और नन्हे को उस के चंगुल से मुक्त करा बानी को थमा कर उस से बोला, “आप इसे ले कर भीतर जाइए. कमरे का दरवाजा बंद कर लीजिएगा. मैं इन से निबटता हूं.”

इस दौरान पिता उस की ओर मुखातिब हो चीख रहे थे, “पंडितजी ने कहा है, तूने हमारे घर पर अपने पाप की काली छाया डाल रखी है. तेरी वजह से हमारा घर फलफूल नहीं रहा. मेरी नौकरी नहीं रही. इस बड़के की नौकरी भी बारबार चली जाती है. छुटकी का रिश्ता नहीं हो रहा. तेरी और तेरे इस मनहूस की वजह से ही घर पर विपदा आई हुई है, कुलक्षणी.”

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वह खौफ़ और दहशत से थरथर कांपती हुई रोतेगर्राते नन्हे को अपने धड़कते सीने से चिपकाए अंदर के कमरे में जातेजाते थोड़ा ठहर कर पिता पर रोती हुई गरजी, “किस के कहने पर आप एक नन्हे से बच्चे की जान लेने चले आए? यह भी नहीं सोचा कि यह आप का अपना खून है. मैं ने अपनेआप अपनी ज़िंदगी बनाई है. खुद के दम पर पढ़लिख कर आज मैं इस मुकाम पर पहुंची हूं कि मैं अपने बेटे को एक बढ़िया जिंदगी दे पा रही हूं. एक बेहतरीन ज़िंदगी जी रही हूं. और आप कहते हैं, मेरे पाप की काली छाया आप लोगों पर पड़ रही है.

“आप की परेशानियों का कारण मैं नहीं, आप खुद हैं. आप और भैया को अपने दोस्तों के साथ अड्डेबाजी और गांजे से फुरसत मिले, तब तो आप लोग किसी नौकरी में टिकेंगे. आप दोनों का काहिलपना आप की समस्या की वजह है, न कि इतनी दूर बैठी मैं.” यह कह कर उस ने कमरे में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया, और नन्हे को बेहताशा चूमती हुई, अर्धविक्षिप्त सी आंसू बहाती, मुंह ही मुंह में बुदबुदाई, ‘मेरा बेटा… मेरा सोना… मेरा राजा… आज अगर वह लड़का समय पर नहीं आता तो क्या होता? तुझे कुछ हो जाता, तो मैं कहीं की न रहती.’

बाहर से उस युवक और भाई के बीच हाथापाई की आवाजें आ रही थीं. पिता गुस्से में उस युवक पर गरज रहे थे, “तू होता कौन है हमारे निजी मामलों में टांग अड़ाने वाला. यह मेरी बेटी है. मैं चाहे जो करूं.”

उधर शायद एक बार को उस का भाई उस युवक की गिरफ्त से छूट उस के बंद कमरे के दरवाजे को पीटने लगा, लेकिन शायद तभी उस युवक ने फिर से उसे काबू कर लिया. करीब दस मिनट तक पिता का चीखनाचिल्लाना जारी रहा.

बानी पत्ते की तरह थरथर कांपती, तेजी से धड़कते दिल के साथ नन्हे को कलेजे से चिपकाए बैठी थी, कि तभी उस ने सुना, वह युवक तेज आवाज में पापा को धमका रहा था, “आप दोनों यहां से फौरन नहीं गए, तो मुझे मजबूरन सौ नंबर डायल करना पड़ेगा. इसलिए बेहतर यही होगा कि आप दोनों यहां से फौरन चले जाएं. यह मत समझिए कि वे अकेली हैं. मैं यहां जस्ट बगल वाले फ्लैट में रहता हूं, इसलिए अगली बार यहां पैर रखने से पहले दस बार सोच लीजिएगा. अगर आप लोगों ने फिर से इन्हें या बच्चे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, तो मैं आप के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने में बिलकुल नहीं हिचकूंगा. आप इन के पिता हैं, उस का लिहाज कर मैं अभी कुछ नहीं कर रहा.”

कुछ ही देर में बाहर सन्नाटा छा गया. शायद पिता और भाई चले गए थे. तभी उस युवक ने उस का दरवाजा खटखटाया, “दरवाजा खोलिए, वे लोग चले गए हैं.”

डरीसहमी बैठी बानी ने अपनी गोद में सोए नन्हे को पलंग पर लिटा दिया और उठ कर दरवाजा खोला.

“आप ऐन समय पर नहीं आते तो आज अनर्थ हो जाता. मैं आप का किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूं, मेरे पास शब्द नहीं हैं. थैंक यू, थैंक यू सो वैरी मच,” उस ने हाथ जोड़ते हुए उस युवक से कहा, “आप बगल वाले फ्लैट में रहते हैं, मैं ने आप को पहले तो कभी नहीं देखा.”

“जी, मैं पिछले हफ्ते ही मुंबई से ट्रांसफ़र हो कर यहां आया हूं. मैं उमंग हूं, एक डाक्टर हूं. आप का गुड नेम, प्लीज.”

“मैं बानी हूं.”

“आप क्या करती हैं बानीजी?”

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“जी, मैं अभिज्ञान यूनिवर्सिटी में मैथ्स की लैक्चरर हूं.”

“लैक्चरर, ओह, ओके.”

“चलिए बानीजी, मैं अपने बाहर के कमरे में खिड़की के पास ही बैठता हूं. रात को वहीं सोऊंगा भी. कभी भी आधी रात को भी कोई जरूरत हो तो आप बेहिचक एक मिस्डकौल दे दीजिएगा. मैं हाजिर हो जाऊंगा. वैसे तो अब वे लोग दोबारा आने की ज़ुर्रत नहीं करेंगे, फिर भी आप मेरा नंबर ले लीजिए.”

“जी, एक बार फिर से आप का बहुतबहुतबहुत शुक्रिया, डाक्टर उमंग.”

“अरे, हम पड़ोसी हैं. इन शुक्रिया और थैंक्स के चक्कर में मत पड़िए. चलिए, दरवाजा ठीक से बंद कर लीजिएगा.”

“जी, बहुत अच्छा.”

उस रात बानी को बहुत देर तक नींद नहीं आई. नन्हे को सीने से लगाए हुए कब बरबस उस के जेहन में बीते दिनों की मीठीकसैली यादों की गिरहें एकएक कर खुलने लगीं, उसे एहसास तक न हुआ.

‘वह एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार में कट्टर, पुरातनपंथी मान्यताओं वाले अल्पशिक्षित मातापिता की बेटी थी. उस का एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन थी. पिता निठल्ले स्वाभाव के थे. कहीं टिक कर नौकरी नहीं करते. काम के बजाय यारीदोस्ती और गांजे का नशा करने में उन का मन ज्यादा रमता. आएदिन नौकरी छोड़ देते. घर में हर वक्त तंगी ही रहती. सो, घरखर्च चलाने के लिए मां लोगों के घरों में खाना बनातीं.

मां और पिता दोनों सुबह जल्दी घर से निकलते और देररात घर में घुसते. उपयुक्त नियंत्रण और मार्गदर्शन के अभाव में उन की बड़ी संतान, उन का एकमात्र बेटा ज्यादा नहीं पढ़ पाया. उस ने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. वह साड़ियों के एक शोरूम में काम करने लगा.

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वह शुरू से ही कुशाग्रबुद्धि थी, हमेशा पढ़ाई में अच्छा परिणाम देती और सीढ़ीदरसीढ़ी आगे बढ़ती गई. अपनी कड़ी मेहनत के दम पर उस ने मैथ्स जैसे कठिन विषय में एमएससी कर नैट की प्रतियोगी परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली और पीएचडी पूरी कर स्थानीय यूनिवर्सिटी में लैक्चरर बन गई.

आगे पढ़ें- कालेज के स्टाफरूम में बानी की टेबल…

खुशियों का उजास: भाग 2- बानी की जिंदगी में कौनसा आया नया मोड़

नन्हे के पिता पार्थ से उस की मुलाकात उसी कालेज में हुई. वह उस से लगभग 3 साल सीनियर था. वह भी यूनिवर्सिटी के मैथ्स डिपार्टमैंट में ही लैक्चरर था.

कालेज के स्टाफरूम में बानी की टेबल पार्थ की टेबल के साथ ही लगी हुई थी. सो, दिनभर साथ उठते बैठते दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए, इतने कि घर जा कर भी दोनों एकआध बार एकदूसरे से बात किए बिना न रहते. उन के प्रेम का बिरवा उन की प्रगाढ़ दोस्ती की माटी में फूटा.

वह यह सब सोच ही रही थी कि तभी घर के बाहर गली के चौकीदार के डंडे की खटखटाहट उसे सुनाई दी. उस के सीने से चिपका नन्हे कुनमुनाया. गले में उमड़ती रुलाई के साथ बानी ने सोचा, ‘उफ़, पार्थ तुम कहां चले गए अपनी बानी को छोड़ कर.’ और वह फिर से एक बार पार्थ के साथ बिताए हंसीं दिनों की मीठी यादों के प्रवाह में डूबनेउतराने लगी.

उस दिन वह और पार्थ कालेज की लाइब्रेरी के लिए मैथ्स की कुछ किताबें खरीदने एक बुक एग्ज़िबिशन में आए थे. किताबें खरीदने के बाद पार्थ उसे एग्ज़िबिशन ग्राउंड के साथ लगे पार्क में ले गया, जहां पार्क के एक सूने कोने में रंगबिरंगे गुलाब के पौधों के बीच लगी बैंच पर बैठ उसे एक सुर्ख गुलाब का खूबसूरत फूल तोड़ कर उसे थमाते हुए अनायास उस ने उस से कहा, ‘बानी, हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं. तुम्हारे बिना जीने की सोच ही मुझे घबराहट से भर देती है. घर पर भी तुम से बात करने की इच्छा होती रहती है. मन करता है, तुम हर लमहा मेरी आंखों के सामने रहो. अब मैं अपनी जिंदगी का हर पल तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं. जिंदगी की आखिरी सांस तक तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं. मुझे रोमांटिक फिल्मी बातें करना नहीं आता. सीधेसाधे शब्दों में तुम से पूछ रहा हूं, मुझ से शादी करोगी?’

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इतने दिनों की करीबी से बानी भी पार्थ को बेहद पसंद करने लगी थी. सो, उस ने एक सलज़्ज़ मुसकान के साथ उसे इस विवाह प्रस्ताव के जवाब में अपनी सहमति दे दी.

दोनों के प्यार की दास्तां रफ्तारफ्ता आगे बढ़ चली.

उसे आज तक अच्छी तरह से याद है, उस दिन उस ने अपनी मां और पिता को पार्थ से अपनी शादी करने की इच्छा के बारे में बताया, लेकिन उस की अपेक्षा के विपरीत मां और पापा उस के एक विजातीय लड़के से विवाह की इच्छा पर बुरी तरह भड़क गए. उस के मातापिता दोनों ही बेहद पुराने रूढ़िवादी खयालों के थे. उन्हें अपनी बेटी का हाथ किसी अयोग्य, अल्पशिक्षित सजातीय पात्र के हाथ में देना मंजूर था, लेकिन पार्थ जैसे सुशिक्षित, सुयोग्य मगर विजातीय पात्र के हाथ में देना गवारा न था. बानी को एहसास था कि उस की जाति में उस जैसी निम्नमध्यवर्गीय व अल्पशिक्षित परिवार की लड़की को पार्थ जैसा योग्य और उच्चशिक्षित मैच मिलना मुश्किल ही नहीं, असंभव था.

सो, उस ने बहुत सोचविचार कर घर वालों की मरजी के खिलाफ़ जा कर पार्थ को अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला ले लिया. एक दिन घर वालों को बिना बताए उस ने कुछ करीबी दोस्तों के समक्ष एकदूसरे को अंगूठी पहना कर सगाई कर ली. फिर 5 माह बाद कोर्ट मैरिज करने के लिए औपचारिक कार्यवाही भी कर डाली.

लेकिन, यदि कुदरती और इंसानी मंशाओं की मंजिल एक होती, तो दुर्भाग्य जैसी आपदा का वज़ूद न होता.

उन दिनों कोविड की बीमारी का प्रकोप चल रहा था. पार्थ को कोविड का भयंकर संक्रमण हुआ. पार्थ ने लापरवाही में शुरुआत में ही कोविड का इलाज किसी योग्य डाक्टर से नहीं करवाया. उस की बीमारी बिगड़ती गई और जब तक उस के घर वाले चेते, उस की बीमारी भयावह रूप लेते हुए उस के सभी अंगों को प्रभावित कर चुकी थी.

लगभग 20 दिनों तक कोविड से जूझने के बाद वह अपनी अंतिमयात्रा पर निकल पड़ा.

भाग्य का खेल, उस की मौत के बाद बानी को पता चला कि पार्थ का अंश उस की कोख में पल रहा था. बानी की दुनिया उलटपुलट हो गई. उस के पांवतले जमीन न रही.

कोविड के प्रकोप के बाद पूरे देश में कंप्लीट लौकडाउन चल रहा था. एक तरफ घर से निकलने की बंदिश, दूसरी ओर प्राइवेट क्लीनिकों के डाक्टरों ने मैडिको-लीगल कारणों से उस के अनमैरिड होने की वजह से अबौर्शन करने के लिए मना कर दिया और उसे उस के लिए उस से सरकारी अस्पताल में जाने को कहा. परंतु सरकारी अस्पताल में कोविड-19 के संक्रमण के खतरे को देखते हुए वह वहां नहीं गई. इन सब की वजह से उस का गर्भ 3 माह का होने को आया. सो, उसे विवश हो अपने गर्भ को रखने का फैसला लेना पड़ा.

इधर प्रैग्नैंसी के लक्षण जाहिर होते ही उस के मातापिता ने उस के खिलाफ़ मोरचाबंदी कर ली. वे दिनरात उसे बिनब्याही मां बनने पर कटु ताने और व्यंग्यबाण सुनाते. परेशान हो कर बानी ने एक दिन चुपचाप मांबाप का घर छोड़ दिया और अपनी यूनिवर्सिटी के पास किराए पर घर ले कर रहने लगी. यूनिवर्सिटी की बढ़िया नौकरी थी, आर्थिक रूप से वह ख़ासी मजबूत थी, तो उसे अकेले रहने में कोई खास दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा.

समय अपनी चाल से चलता गया. नियत समय पर बानी ने एक बेटे को जन्म दिया.

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बानी की नौकरी बदस्तूर जारी थी. नन्हे 4 बरस का होने आया. लेकिन इतना समय गुजर जाने पर भी उस के बिनब्याही मां बनने पर पिता और भाई का गुस्सा कम न हुआ. उन के खानदानी पंडितजी ने आग में घी डालते हुए उसे उन के लिए अपशगुनी करार दिया था. उस की छोटी बहन उस के संपर्क में थी. उस के माध्यम से उसे अपने घर की खबरें मिलती रहती थीं. कि तभी उसे अपने विचारों से नजात दिलाते हुए झपकी आ गई और उस का क्लांत तनमन नींद की आगोश में समा गया.

अगली सुबह जब बानी उठी, तो नन्हे तेज बुखार से तप रहा था. वह उसे ले कर डाक्टर के यहां ले जाने के लिए घर से निकल ही रही थी कि डाक्टर उमंग अपने घर के बाहर चहलकदमी करते हुए मिल गए.

“हैलो, गुडमौर्निंग, बानी. सुबहसवेरे कहां चल दीं?”

“नन्हे को बुखार आ रहा है. रातभर बुखार में भुना है. इसे डाक्टर के यहां ले जा रही हूं.”

“अगर आप चाहें तो मैं उसे एग्जामिन कर सकता हूं. मैं ने शायद आप को बताया नहीं, मैं यहां विनायक चिल्ड्रंस हौस्पिटल में पीडियाट्रिशियन हूं.”

“ओह, फिर तो आप प्लीज़ इसे एग्ज़ामिन कर लीजिए डाक्टर. आइए डाक्टर, प्लीज़, भीतर आ जाइए.”

डाक्टर उमंग ने नन्हे को एग्जामिन करने के बाद बानी से कहा, “चिंता की कोई बात नहीं है. कल की घटना से वह बेहद शाक में है. उसे कुछ मैडिसिन्स और इंजैक्शन लगाने पड़ेंगे.”

नन्हे को दवाई दे कर और इंजैक्शन लगाने के बाद वे जाने के लिए उठे ही थे कि बानी बोल पड़ी, “डाक्टर, चाय पी कर जाइएगा.”

चाय पी कर शाम को नन्हे का चैकअप करने के लिए घर आने का वादा कर के डाक्टर उमंग अपने घर चले गए.

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