विद्रोह: भाग 3- घर को छोड़ने को विवश क्यों हो गई कुसुम

लेखिका- निर्मला सिंह

अब वह आंखें बंद कर के सोचने लगी, ‘काश, मेरी बहू रीता जैसी होती, कितनी अच्छी है, कितना खयाल रखती है अपनी सासू मां का, जितनी बार भी इस की सास मुझ से मिली हैं, हमेशा अपनी बहू की तारीफों के पुल ही बांधती रही हैं, लेकिन मुझे दुष्ट बहू मिली. अरे बहू का क्या दोष है, नालायक तो अपना बेटा है. यदि बेटा ठीक होता तो बहू की क्या मजाल कि गलत काम करे?’

ज्योंज्यों कानपुर नजदीक आ रहा था, कुसुम घबरा रही थी कि भैयाभाभी पता नहीं क्या सोचेंगे. सोचें तो सोचें, उस के पास उस रास्ते के सिवा कोई रास्ता नहीं था. वह बोझ नहीं बनेगी भैयाभाभी पर, कुछ ही दिनों में अलग छोटा सा मकान ले कर रहेगी, एक नौकरानी रखेगी. एक विचार की लहर बारबार उठ रही थी कि घर छोड़ कर मैं ने गलत काम तो नहीं किया.

फिर दिमाग ने कहा, तो फिर क्या करती, हर रोज मार खाती. और वह मारता रहता जब तक जायदाद पूरी अपने नाम न लिखवा लेता. एक बार, दो बार, तीन बार…उस ने अपनी दोबारा बनाई वसीयत पढ़ी, जिस की एक प्रति उसे अपनी बेटी के पास भी भेजनी पड़ेगी, वकील के पास तो एक कौपी रख आई थी.

कुसुम अब सोचने लगी, ‘आज मैं ने जो कुछ भी किया वह पहले ही कर लेना चाहिए था. छि:छि:, मां बेटे से मार खाए, इस से अच्छा मर न जाए. मैं अकेली पड़ गई थी, वे दोनों पतिपत्नी एक हो गए थे. शुक्र है कि रीता जैसी पड़ोसिन मिल गई, जिस ने मेरी मृतप्राय जिंदगी को सांसें दे दीं. रीता न होती तो मैं वसीयत भी न बदल पाती और घर से भाग भी नहीं पाती.’

इन्हीं विचारों का तानाबाना बुनते हुए कानपुर आ गया. हड़बड़ाते हुए कुसुम ने अटैची और पर्स पकड़ा, फिर स्वरूपनगर के लिए रिकशा कर के चल दी.

कुसुम निश्चय कर के अपने भाई देवेंद्र के घर पहुंच गई. दरवाजे पर लगी कौल बैल बजाई. थोड़ी देर में एक भोलीभाली, सुंदर सी बालिका ने दरवाजा खोला.

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‘‘आप कौन, किस से मिलना है?’’ मीठी आवाज में बच्ची ने पूछा.

‘‘बेटी, मैं लखनऊ से आई हूं. तुम्हारे पापाजी की बहन हूं. मेरा नाम कुसुम है.’’

‘‘अंदर आइए, दादीजी, अंदर आइए.’’

बच्ची के पीछेपीछे कुसुम अपना पर्स और अटैची संभालती हुई चल दी. बरामदे के साथ जुड़ा हुआ ही ड्राइंगरूम था. उस घर में कुसुम 5 वर्षों बाद आई थी. पिछली बार अपने पति के साथ कुसुम कार से आई थी. घरपरिवार वालों ने खूब इज्जत, मानसम्मान दिया था. भैयाभाभी ने तो आंखों पर ही बिठा लिया था.

कुसुम के भाई के घर का वातावरण उस समय भी शांत था और अब भी लगता है सुखमय और शांत है. कुसुम की विचारतंद्रा उस के भाई ने ही तोड़ी, ‘‘अरे कुसुम, तू इस समय अकेली कैसे? कु़छ फोन वगैरह तो कर देती?’’

‘‘वह भैया, बस आना पड़ा,’’ सूखा चेहरा, मरियल आवाज में दिए उत्तर से भाई सशंकित हो गया.

‘‘आना पड़ा, मैं समझा नहीं. खैर, चल पहले चाय पी ले, कुछ खा ले फिर बताना.’’

कुसुम की आवाज सुन कर बरामदे में ही सब्जी काटती हुई भाभी दौड़ कर आईं, पांव छुए फिर बैठ गईं. थोड़ी देर बाद चायनाश्ता भी आ गया.

‘‘दीदी, आप तो बहुत दुबली हो गई हैं. 5 साल में चेहरा ही बदल गया. क्या हो गया है आप को?’’ कुसुम के पास आ कर भाभी ने आलिंगन किया और आश्चर्यचकित नजरों से उस की ओर देखती रहीं.

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कुसुम बारबार बांहों पर, गरदन पर पड़े जख्मों के निशान छिपा रही थी. लेकिन मेज पर रखी हुई चाय की प्याली उठाते समय गरदन से शाल हट गई और बांह का स्वेटर ऊपर को हो गया, देखते ही भैया दौड़ कर पास आए, घबरा कर पूछा, ‘‘यह सब क्या है, कुसुम? तुम्हारे शरीर पर ये जख्म कैसे हैं?’’

‘‘वह…वह भैया, रवि मारता था. पीटता था. एक बार तो उस ने इतनी जोर से मारा कि दांत तक टूट गया. बस, ये सब उसी के निशान हैं.’’

‘‘इतना सब होता रहा और तुम ने बताया तक नहीं. अरे हम कोई गैर हैं क्या? कभी फोन ही कर देतीं या कोई खत ही डाल देती. पता नहीं तुम ने कितने दुख झेले हैं जीजाजी की मृत्यु के बाद. छि:छि:, इतना कू्रर, बिगड़ा रवि बेटा हो जाएगा. सपने में भी नहीं सोचा था. खैर, कुसुम, तुम ने अच्छा किया जो आ गईं.’’

‘‘वह तो मुझे भूखा तक रखता था. बाहर दरवाजे पर ताला, टैलीफोन पर ताला, फ्रिज और सभी अलमारियों में ताला लगा रहता था. भैया, ऐसी दुर्दशा तो किसी कैदी की भी नहीं होगी जो उस ने मेरी की थी,’’ कहते ही कुसुम फूटफूट कर रोने लगी.

भैयाभाभी घबरा गए. आंसू पोंछे भाभी ने फिर कुसुम से वसीयत की योजना पूछी. थोड़ी देर बाद स्वयं पर काबू पा कर कुसुम ने अपनी नई वसीयत उन दोनों को दिखा दी. भैयाभाभी खुश हुए. बहन को भाई ने खूब प्यार कर के कहा, ‘‘बहन, घबराओ मत. जैसा तुम चाहती हो वैसे ही होगा. वैसे तो अलग रहने की जरूरत नहीं है, लेकिन अगर तुम चाहोगी तो स्वरूपनगर में ही तुम्हें अच्छा मकान मिल जाएगा. अभी तुम आराम करो, चिंता मत करो.’’

‘‘अच्छा भैया,’’ कह कर कुसुम सोफे पर ही लेट गई.

उधर, शाम को जब रवि औफिस से लौटा, पल्लवी ने रोनी सी सूरत ले कर दरवाजा खोला और वह वृक्ष से टूटी हुई डाली सी धम्म से सोफे पर बैठ गई. रवि ने उसे झकझोर कर पूछा, ‘‘क्यों, क्या बात है? सब ठीक तो है.’’

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पल्लवी चीख पड़ी, ‘‘कुछ ठीक नहीं है, तुम्हारी मां धोखा दे कर भाग गईं और…’’

‘‘और क्या?’’

‘‘यह देखो, अपने पलंग पर यह चिट्ठी रख गई हैं. लिखा है : ‘मैं जा रही हूं. कुछ भी नहीं मिलेगा तुम्हें जायदाद में से. मैं ने वसीयत बदल दी है. आधी जायदाद बेटी मोनिका और आधी विकलांगों की संस्था के नाम कर दी है. मैं कपूत बेटे से विद्रोह करती हूं. जिस बेटे को पालपोस कर बड़ा किया वह मां पर हाथ उठाता है, वह भी जायदाद के लिए. मेरा सबकुछ तेरा ही तो था. लेकिन तू ने मांबेटे के रिश्ते का कोई लिहाज नहीं किया. तुझ से रिश्ता तोड़ने का मुझे कोई गम नहीं.’’’

कागज का टुकड़ा पढ़ कर रवि पागलों की तरह चिल्लाने लगा. कभी इधर कभी उधर चक्कर लगाने लगा. उधर पत्नी पल्लवी क्रोध में बड़बड़ाने लगी, ‘मैं ने पहले ही कहा था कि मांजी को मत सताओ, मत मारोपीटो, प्यार से उन्हें अपने वश में करो लेकिन तुम ने मेरी एक न सुनी. अब भुगतो. यह घर भी खाली करना पड़ेगा.’

आखिर कब तक और क्यों: क्या हुआ था रिचा के साथ

‘‘क्या बात है लक्ष्मी, आज तो बड़ी देर हो गई आने में?’’ सुधा ने खीज कर अपनी कामवाली से पूछा.

‘‘क्या बताऊं मेमसाहब आप को कि मुझे क्यों देरी हो गई आने में… आप तो अपने कामों में ही लगी रहती हैं. पता भी है मनोज साहब के घर में कैसी आफत आ गई है? उन की बेटी रिचा के साथ कुछ ऐसावैसा हो गया है… बड़ी शांत, बड़े अच्छे तौरतरीकों वाली है.’’

लक्ष्मी से रिचा के बारे में जान कर सुधा का मन खराब हो गया. बारबार उस का मासूम चेहरा उस के जेहन में उभर कर मन को बेधने लगा कि पता नहीं लड़की के साथ क्या हुआ? फिर भी अपनेआप पर काबू पाते हुए लक्ष्मी के धाराप्रवाह बोलने पर विराम लगाती हुई वह बोली, ‘‘अरे कुछ नहीं हुआ है. खेलते वक्त चोट लग गई होगी… दौड़ती भी तो कितनी तेज है,’’ कह कर सुधा ने लक्ष्मी को चुप करा दिया, पर उस के मन में शांति कहां थी…

कालेज से अवकाश प्राप्त कर लेने के बाद सुधा बिल्डिंग के बच्चों की मैथ्स और साइंस की कठिनाइयों को सुलझाने में मदद करती रही है. हिंदी में भी मदद कर उन्हें अचंभित कर देती है. किस के लिए कौन सी लाइन ठीक रहेगी. बच्चे ही नहीं उन के मातापिता भी उसी के निर्णय को मान्यता देते हैं. फिर रिचा तो उस की सब से होनहार विद्यार्थी है.

‘‘आंटी, मैं भी भैया लोगों की तरह कंप्यूटर इंजीनियर बनना चाहती हूं. उन की तरह आप मेरा मार्गदर्शन करेंगी न?’’

सुधा के हां कहते ही वह बच्चों की तरह उस के गले लग जाती थी. लक्ष्मी के जाते ही सारे कामों को जल्दी से निबटा कर वह अनामिका के पास गई. उस ने रिचा के बारे में जो कुछ भी बताया उसे सुन कर सुधा कांप उठी. कल सुबह रिचा अपने सहपाठियों के साथ पिकनिक मनाने गंगा पार गई थी. खानेपीने के बाद जब सभी गानेबजाने में लग गए तो वह गंगा किनारे घूमती हुई अपने साथियों से दूर निकल गई. बड़ी देर तक जब रिचा नहीं लौटी तो उस के साथी उसे ढूंढ़ने निकले. कुछ ही दूरी पर झाडि़यों की ओट में बेहोश रिचा को देख सभी के होश गुम हो गए. किसी तरह उसे नर्सिंगहोम में भरती करा कर उस के घर वालों को खबर की. घर वाले तुरंत नर्सिंगहोम पहुंचे.

अनामिका ने जो कुछ भी बताया उसे सुन कर सुधा स्तब्ध रह गई. अब वह असमंजस में थी कि वह रिचा को देखने जाए या नहीं. फिर अनमनी सी हो कर उस ने गाड़ी निकाली और नर्सिंगहोम चल पड़ी, जहां रिचा भरती थी. वहां पहुंच तो गई पर मारे आशंका के उस के कदम आगे बढ़ ही नहीं रहे थे. किसी तरह अपने पैरों को घिसटती हुई उस के वार्ड की ओर चल पड़ी. वहां पहुंचते ही रिचा के पिता से उस का सामना हुआ. इस हादसे ने रात भर में ही उन की उम्र को10 साल बढ़ा दिया था. उसे देखते ही वे रो पड़े तो सुधा भी अपने आंसुओं को नहीं रोक पाई. ऐसी घटनाएं पूरे परिवार को झुलसा देती हैं. बड़ी हिम्मत कर वह कमरे में अभी जा ही पाई थी कि रिचा की मां उस से लिपट कर बेतहासा रोने लगीं. पथराई आंखों से जैसे आंसू नहीं खून गिर रहा हो.

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रिचा को नींद का इंजैक्शन दे कर सुला दिया गया था. उस के नुचे चेहरे को देखते ही सुधा ने आंखों से छलकते आंसुओं को पी लिया. फिर रिचा की मां अरुणा के हाथों को सहलाते हुए अपने धड़कते दिल पर काबू पाते हुए कल की दुर्घटना के बारे में पूछा, ‘‘क्या कहूं सुधा, कल घर से तो खुशीखुशी सभी के साथ निकली थी. हम ने भी नहीं रोका जब इतने बच्चे जा रहे हैं तो फिर डर किस बात का… गंगा के उस पार जाने की न जाने कब से उस की इच्छा थी. इतने बड़े सर्वनाश की कल्पना हम ने कभी नहीं की थी.’’

‘‘मैं अभी आई,’’ कह कर सुधा उस लेडी डाक्टर के पास गई, जो रिचा का इलाज कर रही थी. सुधा ने उन से आग्रह किया कि इस घटना की जानकारी वे किसी भी तरह मीडिया को न दें, क्योंकि इस से कुछ होगा नहीं, उलटे रिचा बदनाम हो जाएगी. फिर पुलिस के जो अधिकारी इस की घटना जांचपड़ताल कर रहे हैं, उन की जानकारी डाक्टर से लेते हुए सुधा उन से मिलने के लिए निकल गई. यह भी एक तरह से अच्छा संयोग रहा कि वे घर पर थे और उस से अच्छी तरह मिले. धैर्यपूर्वक उस की सारी बातें सुनीं वरना आज के समय में इतनी सज्जनता दुर्लभ है.

‘‘सर, हमारे समाज में बलात्कार पीडि़ता को बदनामी एवं जिल्लत की किनकिन गलियों से गुजरना पड़ता है, उस से तो आप वाकिफ ही होंगे… इतने बड़े शहर में किस की हैवानियत है यह, यह तो पता लगने से रहा… मान लीजिए अगर पता लग जाने पर अपराधी पकड़ा भी जाता है तो जरा सोचिए रिचा को क्या पहले वाला जीवन वापस मिल जाएगा? उसे जिल्लत और बदनामी के कटघरों में खड़ा कर के बारंबार मानसिक रूप से बलात्कार किया जाएगा, जो उस के जीवन को बद से बदतर कर देगा. कृपया इसे दुर्घटना का रूप दे कर इस केस को यहीं खारिज कर के उसे जीने का एक अवसर दीजिए.’’

सुधा की बातों की गहराई को समझते हुए पुलिस अधिकारी ने पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया. वहां से आश्वस्त हो कर सुधा फिर नर्सिंगहोम पहुंची और रिचा के परिवार से भी रोनाधोना बंद कर इस आघात से उबरने का आग्रह किया.

शायद रिचा को होश आ चुका था. सुधा की आवाज सुनते ही उस ने आंखें खोल दीं. किसी हलाल होते मेमने की तरह चीख कर वह सुधा से लिपट गई. सुधा ने किसी तरह स्वयं पर काबू पाते हुए रिचा को अपने सीने से लगा लिया. फिर उस की पीठ को सहलाते हुए कहा, ‘‘धैर्य रख मेरी बच्ची… जो हुआ उस से बुरा तो कुछ और हो ही नहीं सकता, लेकिन इस से जीवन समाप्त थोड़े हो जाता है? इस से उबरने के लिए तुम्हें बहुत बड़ी शक्ति की आवश्यकता है मेरी बच्ची… उसे यों बेहाल हो कर चीखने में जाया नहीं करना है… जितना रोओगी, चीखोगी, चिल्लाओगी उतना ही यह निर्दयी दुनिया तुम्हें रुलाएगी, व्यंग्यवाणों से तुझे बेध कर जीने नहीं देगी.’’

‘‘आंटी, मेरा मर जाना ठीक है… अब मैं किसी से भी नजरें नहीं मिला सकती… सारा दोष मेरा है. मैं गई ही क्यों? सभी मिल कर मुझ पर हसेंगे… मेरा शरीर इतना दूषित हो गया है कि इसे ढोते हुए मैं जिंदा नहीं रह सकती.’’

फिर चैकअप के लिए आई लेडी डाक्टर से गिड़गिड़ा कर कहने लगी, ‘‘जहर दे कर मुझे मार डालिए डाक्टर… इस गंदे शरीर के साथ मैं नहीं जी सकती. अगर आप ने मुझे मौत नहीं दी तो मैं इसे स्वयं समाप्त कर दूंगी,’’ रिचा पागल की तरह चीखती हुई बैड पर छटपटा रही थी.

‘‘ऐसा नहीं कहते… तुम ने बहुत बहादुरी से सामना किया है… मैं कहती हूं तुम्हें कुछ नहीं हुआ है,’’ डाक्टर की इस बात पर रिचा ने पथराई आंखों से उन्हें घूरा.बड़ी देर तक सुधा रिचा के पास बैठी उसे ऊंचनीच समझाते हुए दिलाशा देती रही लेकिन वह यों ही रोतीचिल्लाती रही. उसे नींद का इंजैक्शन दे कर सुलाना पड़ा. रिचा के सो जाने के बाद सुधा अरुण को हर तरह से समझाते हुए धैर्य से काम लेने को कहते हुए चली गई. किसी तरह ड्राइव कर के घर पहुंची. रास्ते भर वह रिचा के बारे में ही सोचती रही. घर पहुंचते ही वह सोफे पर ढेर हो गई. उस में इतनी भी ताकत नहीं थी कि वह अपने लिए कुछ कर सके.

रिचा के साथ घटी दुर्घटना ने उसे 5 दशक पीछे धकेल दिया. अतीत की सारी खिड़कियां1-1 कर खुलती चली गईं…

12 साल की अबोध सुधा के साथ कुछ ऐसा हुआ था कि वह तत्काल उम्र की अनगिनत दहलीजें फांद गई थी. कितनी उमंग एवं उत्साह के साथ वह अपनी मौसेरी बहन की शादी में गई थी. तब शादी की रस्मों में सारी रात गुजर जाती थी. उसे नींद आ रही थी तो उस की मां ने उसे कमरे में ले जा कर सुला दिया. अचानक नींद में ही उस का दम घुटने लगा तो उस की आंखें खुल गईं. अपने ऊपर किसी को देख उस ने चीखना चाहा पर चीख नहीं सकी. वह वहशी अपनी हथेली से उस के मुंह को दबा कर बड़ी निर्ममता से उसे क्षतविक्षत करता रहा.

अर्धबेहोशी की हालत में न जाने वह कितनी देर तक कराहती रही और फिर बेहोश हो गई. जब होश आया तो दर्द से सारा बदन टूट रहा था. बगल में बैठी मां पर उस की नजर पड़ी तो पिछले दिन आए उस तूफान को याद कर किसी तरह उठ कर मां से लिपट कर चीख पड़ी. मां ने उस के मुंह पर हाथ रख कर गले के अंदर ही उस की आवाज को रोक दिया और आंसुओं के समंदर को पीती रही. बेटी की बिदाई के बाद ही उस की मौसी उस के सर्वनाश की गाथा से अवगत हुई तो अपने माथे को पीट लिया. जब शक की उंगली उन की ननद के 18 वर्षीय बेटे की ओर उठी तो उन्होंने घबरा कर मां के पैर पकड़ लिए. उन्होंने भी मां को यही समझाया कि चुप रहना ही उस के भविष्य के लिए हितकर होगा.

हफ्ते भर बाद जब वह अपने घर लौटी तो बाबूजी के बारबार पूछने के बावजूद भी अपनी उदासी एवं डर का कारण उन्हें बताने का साहस नहीं कर सकी. हर पल नाचने, गाने, चहकने वाली सुधा कहीं खो गई थी. हमेशा डरीसहमी रहती थी.

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आखिर उस की बड़ी बहन ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बताओ न मां, वहां सुधा के साथ हुआ क्या जो इस की ऐसी हालत हो गई है? आप हम से कुछ छिपा रही हैं?’’

सुधा उस समय बाथरूम में थी. अत: मां उस रात की हैवानियत की सारी व्यथा बताते हुए फूट पड़ी. बाहर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. बाबूजी भैया के साथ बाजार से लौट आए थे. मां को इस का आभास तक नहीं हुआ. सारी वारदात से बाबूजी और भैया दोनों अवगत हो चुके थे और मारे क्रोध के दोनों लाल हो रहे थे. सब कुछ अपने तक छिपा कर रख लेने के लिए बाबूजी ने मां को बहुत धिक्कारा. सुधा बाथरूम से निकली तो बाबूजी ने उसे सीने से लगा लिया.

बलात्कार किसी एक के साथ होता है पर मानसिक रूप से इस जघन्य कुकृत्य का शिकार पूरा परिवार होता है. अपनी तेजस्विनी बेटी की बरबादी पर वे अंदर से टूट चुके थे, लेकिन उस के मनोबल को बनाए रखने का प्रयास करते रहे.

सुधा ने बाहर वालों से मिलना या कहीं जाना एकदम छोड़ दिया था. लेकिन पढ़ाई को अपना जनून बना लिया था. भौतिकशास्त्र में बीएसी औनर्स में टौप करने के 2 साल बाद एमएससी में जब उस ने टौप किया तो मारे खुशी के बाबूजी के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. 2 महीने बाद उसी यूनिवर्सिटी में लैक्चरर बन गई. सभी कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन शादी से उस के इनकार ने बाबूजी को तोड़ दिया था. एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे थे, लेकिन सुधा शादी न करने के फैसले पर अटल रही. भैया और दीदी की शादी किसी तरह देख सकी अन्यथा किसी की बारात जाते देख कर उसे कंपकंपी होने लगती थी.

सुधा के लिए जैसा घरवर बाबूजी सोच रहे थे वे सारी बातें उन के परम दोस्त के बेटे रवि में थी. उस से शादी कर लेने में अपनी इच्छा जाहिर करते हुए वे गिड़गिड़ा उठे तो फिर सुधा मना नहीं कर सकी. खूब धूमधाम से उस की शादी हुई पर वह कई वर्षों बाद भी बच्चे का सुख रवि को दे सकी. वह तो रवि की महानता थी कि इतने दिनों तक उसे सहन करते रहे अन्यथा उन की जगह कोई और होता तो कब का खोटे सिक्के की तरह उसे मायके फेंक आया होता.

रवि के जरा सा स्पर्श करते ही मारे डर के उस का सारा बदन कांपने लगता था. उस की ऐसी हालत का सबब जब कहीं से भी नहीं जान सके तो मनोचिकित्सकों के पास उस का लंबा इलाज चला. तब कहीं जा कर वह सामान्य हो सकी थी. रवि कोई वेवकूफ नहीं थे जो कुछ नहीं समझते. बिना बताए ही उस के अतीत को वे जान चुके थे. यह बात और थी कि उन्होंने उस के जख्म को कुरेदने की कभी कोशिश नहीं की.

2 बेटों की मां बनी सुधा ने उन्हें इस तरह संस्कारित किया कि बड़े हो कर वे सदा ही मर्यादित रहे. अपने ढंग से उन की शादी की और समय के साथ 2 पोते एवं 2 पोतियों की दादी बनी.

जीवन से गुजरा वह दर्दनाक मोड़ भूले नहीं भूलता. अतीत भयावह समंदर में डूबतेउतराते वह 12 वर्षीय सुधा बन कर विलख उठी. मन ही मन उस ने एक निर्णय लिया, लेकिन आंसुओं को बहने दिया. दूसरे दिन रिचा की पसंद का खाना ले कर कुछ जल्दी ही नर्सिंगहोम जा पहुंची. समझाबुझा कर मनोज दंपती को घर भेज दिया. 2 दिन से वहीं बैठे बेटी की दशा देख कर पागल हो रहे थे. किसी से भी कुछ नहीं कहने को सुधा ने उन्हें हिदायत भी दे दी. फिर एक दृढ़ निश्चय के साथ रिचा के सिरहाने जा बैठी.

सुधा को देखते ही रिचा का प्रलाप शुरू हो गया, ‘‘अब मैं जीना नहीं चाहती. किसी को कैसे मुंह दिखाऊंगी?’’

सुधा ने उसे पुचकारते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ वह कोई नई बात नहीं है. सदियों से स्त्रियां पुरुषों की आदम भूख की शिकार होती रही हैं और होती रहेंगी. कोई स्त्री दावे से कह तो दे कि जिंदगी में वह कभी यौनिक छेड़छाड़ की शिकार नहीं हुई है. अगर कोई कहती है तो वह झूठ होगा. यह पुरुष नाम का भयानक जीव तो अपनी आंखों से ही बलात्कार कर देता है. आज तुम्हें मैं अपने जीवन के उस भयानक सत्य से अवगत कराने जा रही हूं, जिस से आज तक मेरा परिवार अनजान है, जिसे सुन कर शायद तुम्हारी जिजिविषा जाग उठे,’’ कहते हुए सुधा ने रिचा के समक्ष अपने काले अतीत को खोल दिया. रिचा अवाक टकटकी बांधे सुधा को निहारती रह गई. उस के चेहरे पर अनेक रंग बिखर गए, बोली, ‘‘तो क्या आंटी मैं पहले जैसा जी सकूंगी?’’

‘‘एकदम मेरी बच्ची… ऐसी घटनाओं से हमारे सारे धार्मिक ग्रंथ भरे पड़े हैं… पुरुषों की बात कौन करे… अपना वंश चलाने के लिए स्वयं स्त्रियों ने स्त्रियों का बलात्कार करवाया है. कोई शरीर गंदा नहीं होता. जब इन सारे कुकर्मों के बाद भी पुरुषों का कौमार्य अक्षत रह जाता है तो फिर स्त्रियां क्यों जूठी हो जाती हैं.

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‘‘इस दोहरी मानसिकता के बल पर ही तो धर्म और समाज स्त्रियों पर हर तरह का अत्याचार करता है. सारी वर्जनाएं केवल लड़कियों के लिए ही क्यों? लड़के छुट्टे सांड़ की तरह होेंगे तो ऐसी वारदातें होती रहेंगी. अगर हर मां अपने बेटों को संस्कारी बना कर रखे तो ऐसी घटनाएं समाज में घटित ही न हों. पापपुण्य के लेखेजोखे को छोड़ते हुए हमें आगे बढ़ कर समाज को ऐसी घृणित सोच को बदलने के लिए बाध्य करना है. जो हुआ उसे बुरा सपना समझ कर भूल जाओ और कल तुम यहां से अपने घर जा रही हो. सभी की नजरों का सामना इस तरह से करना है मानो कुछ भी अनिष्ट घटित नहीं हुआ है. देखो मैं ने कितनी खूबसूरती से जीवन जीया है.’’

रिचा के चेहरे पर जीवन की लाली बिखरते देख सुधा संतुष्ट हो उठी. उस के अंतर्मन में जमा वर्षों की असीम वेदना का हिम रिचा के चेहरे की लाली के ताप से पिघल कर आंखों में मचल रहा था. अतीत के गरल को उलीच कर वह भी तो फूल सी हलकी हो गई थी.

यूपी में कोई नहीं रहेगा बेघर

लखनऊ . “अपना घर” का सपना संजोने वालों के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ अवसर यादगार हो गया. खास मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सूबे के 02 लाख 853 लोगों को घर बनाने के लिए ₹1341.17 करोड़ की धनराशि सीधे उनके बैंक खाते में भेजी. इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने वर्ष 2022 तक “सबको आवास” का संकल्प दोहराते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में अब तक 40 लाख शहरी गरीबों के ‘घर’ का सपना पूरा हुआ है. यह काम तेजी से जारी है.

उन्होंने कहा कि प्रदेश में कोई भी परिवार बेघर नहीं रहेगा मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित इस वर्चुअल कार्यक्रम में सूबे के 650 से अधिक नगरीय निकायों से 50 हजार से अधिक लोग जुड़े थे. कार्यक्रम में पीएम आवास योजना (शहरी) के अंतर्गत 98,234 लोगों को पहली क़िस्त, 34,369 को दूसरी और 68,250 लाभार्थियों को तीसरी क़िस्त मिली. सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में धनराशि भेजते हुए सीएम ने कहा कि एक समय था कि जब एक प्रधानमंत्री कहते थे कि वो दिल्ली से ₹100 भेजते हैं और आम आदमी को ₹15 मिलता है, लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी ने तकनीक की मदद से ऐसी व्यवस्था कर दी है, जिससे ₹100 के ₹100 लाभार्थी को मिल रहा है.

आवास के लिए पैसे चाहिए या व्यवसाय के लिए लोन, अगर आप अर्हता पूरी करते हैं तो बिना सिफारिश, बिना घूस, पूरी मदद मिलनी तय है. और अब तो बैंक जाने की भी जरूरत नहीं, गांव-गांव में बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट-सखी तैनात हैं.

पीएम आवास और स्वनिधि योजना में यूपी है नम्बर 01

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री से बातचीत करते हुए पीएम आवास और स्वनिधि योजना के लाभार्थियों ने भी बताया कि उन्हें कहीं भी किसी को भी घूस-सिफारिश को जरूरत नहीं पड़ी. मुख्यमंत्री ने कहा, पिछले साढ़े 04 साल में हमारी सरकार ने करीब 40 लाख लोगों को आवास उपलब्ध करवाए हैं. 2017 से पहले पीएम आवास योजना में यूपी का कोई स्थान नहीं था. 25 वें-27 वें नम्बर पर था. 2017 में सरकार आने के बाद पीएम आवास हो या स्वनिधि, यूपी सबमें नम्बर एक है. योगी ने कहा कि आज ठेले-खोमचे वाले व्यवसायियों को व्यापार के लिए पैसा मुहैया कराया जा रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी से पहले कभी किसी ने भी स्ट्रीट वेंडर के हितों के बारे में नहीं सोचा. महिला स्वावलम्बन के लिहाज से स्वयं सहायता समूहों के कार्यों की सराहना की. कार्यक्रम में नगर विकास मंत्री आशुतोष टण्डन और राज्य मंत्री महेश गुप्ता ने भी अपने विचार रखे.

“घर ही नहीं, शौचालय, बिजली, राशन और मुफ्त इलाज भी मिला योगी जी”

वर्चुअली आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री से बातचीत करते हुए पीएम आवास योजना और स्वनिधि योजना के लाभार्थियों ने सीएम को धन्यवाद दिया. प्रयागराज की सुशीला हों, मीरजापुर की निर्मला या फिर झांसी की रेशमा, सबने बारी-बारी से सीएम को बताया कि उन्हें आवास के लिए धनराशि पाने में कहीं भी न तो घूस देना पड़ा न ही सिफारिश करनी पड़ी.

बाराबंकी की मंजू ने बताया कि आज उन्हें आवास की तीसरी क़िस्त मिली है. इससे पहले उन्हें मुफ्त बिजली और गैस कनेक्शन मिला,जनधन खाता खुला, आज महीने में दो बार राशन मिल रहा है. उन्होंने बताया कि उनके बच्चों की पढ़ाई भी फ्री में हो रही है. वहीं स्वनिधि योजना से लाभ लेकर आगरा शिल्पग्राम में चाय का ठेला लगाने वाले पवन और काशी में सब्ज़ी की दुकान लगाने वाली शीला देवी ने स्वनिधि योजना के माध्यम से मिले, रुपयों से उनके व्यापार में हुई बढ़ोतरी के लिए पीएम मोदी और सीएम योगी को धन्यवाद दिया.

ललितपुर के ओम प्रकाश ने बताया कि बीते 30 साल से कभी किसी सरकार ने उन्हें कुछ न दिया, आज सब मिल रहा है. मुख्यमंत्री ने ओमप्रकाश के मूक बघिर बेटे के इलाज के लिए सभी जरूरी प्रबंध के निर्देश भी दिए.

बॉक्स : प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) : अब तक

– स्वीकृत आवासों की संख्या (सभी घटकों सहित)- 17,15,816

– प्रारम्भ आवासों की संख्या (सभी घटकों सहित)- 8,65,174

– 2007 से 2017 तक मात्र 2.50 लाख आवास पूर्ण

– 2017 से आज तक 8.65 लाख आवास पूर्ण

– वर्ष 2019 के पीएमएवाई अवार्ड अन्तर्गत नगर पालिका परिषद श्रेणी में नगर पालिका परिषद मिर्जापुर को पूरे देश में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु प्रथम स्थान प्राप्त

– वर्ष 2019 के पीएमएवाई अवार्ड अन्तर्गत नगर पंचायत श्रेणी में नगर पचायत मलीहाबाद को प्रथम एवं हरिहरपुर को तृतीय स्थान प्राप्त

– उत्तर प्रदेश राज्य पूरे देश में डीबीटी द्वारा फन्ड ट्रान्सफर में पहले स्थान पर.

– देश में स्वीकृत 06 लाइट हाउस प्रोजेक्ट में से 01 लाइट प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ में स्वीकृत.

अनुपमा मिलेगी पुराने दोस्त अनुज कपाड़िया से, सज-संवरकर होगी तैयार

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में जल्द ही कई नए ट्विस्ट आने वाले हैं, जिसके चलते दर्शकों का इंटरेस्ट बढ़ता जा रहा है. वहीं अनुपमा की जिंदगी में अनुज कपाड़िया का लुक कैसा होगा इसका भी मेकर्स ने प्रोमो रिलीज कर दिया है, जिसे देखकर फैंस अच्छा रिएक्शन दे रहे हैं. इसी बीच अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा की अनुज से मुलाकात कैसी होगी इसकी फोटोज भी सामने आ गई हैं. आइए आपको दिखाते हैं अनुपमा के अपकमिंग ट्विस्ट की कहानी…

 अनुपमा के लिए वापस आई देविका

अब तक आपने देखा कि राखी दवे को काव्या ने 20 लाख की रकम चुका दी है, जिसके बाद शाह फैमिली में शांति देखने को मिल रही है. वहीं अनुपमा भी बेहद खुश है. वहीं उसकी खास दोस्त देविका की भी दोबारा शो में वापसी हो गई है. जो अपकमिंग एपिसोड में उसकी जिंदगी में रंग भरती नजर आएगी. वहीं इसमें उसका साथ किंजल, नंदिनी और समर देंगे, जिसके चलते सीरियल की कहानी में मजेदार ट्विस्ट देखने को मिलेगा.

 

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अनुज से कुछ ऐसे मिलेगी अनुपमा

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि देविका शाह हाउस आएगी और अनुपमा को उसके पुराने दोस्तों संग मिलने के लिए कहेगी. हालांकि वनराज को यह बात बिल्कुल पसंद नही आएगी. लेकिन काव्या उसे चुप करा देगी. इसी के साथ किंजल अनुपमा को खूबसूरत तरीके से सजाएगी और उससे कहेगी कि क्या पता उसे इस पार्टी में उसकी खुशी मिल जाए, जिसके बाद अनुपमा पार्टी में जाएगी और अनुज कपाड़िया से मुलाकात करेगी. वहीं अपकमिंग एपिसोड में वह उसका 5 करोड़ का औफर भी ठुकराने के लिए तैयार होगी. लेकिन काव्या और वनराज उसके फैसले के खिलाफ होंगे.

ये होगा अनुज का प्लान

अनुपमा की जिंदगी में अनुज कपाड़िया अपना प्यार लेकर आएगा, जिसके साथ सीरियल में कई और ट्विस्ट भी आएंगे. दरअसल, अनुपमा का एक बड़ा सपोर्ट बनकर अनुज उसकी एकेडमी को दोबारा शुरु करेगा, जिससे अनुपमा को कामयाबी मिलेगी तो वहीं वनराज को तगड़ी हार मिलेगी. साथ ही अनुज पूरी कोशिश करेगा कि वनराज को बर्बाद कर सके क्योंकि उसने अनुपमा की जिंदगी बर्बाद की है. हालांकि इस दौरान अनुपमा की दोबारा शादी का भी प्लान देखने को मिलेगा.

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मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर खड़ी होकर रोने लगी थीं एक्ट्रेस आशी सिंह, जानें वजह

आगरा की रहने वाली चुलबुली और हंसमुख अभिनेत्री आशी को बेटे और बेटी में फर्क कभी अच्छा नहीं लगा, जबकि उसके परिवार में ऐसा नहीं था, पर रिश्तेदारों और आसपास के माहौल में उन्होंने कहते हुए सुना है, बेटी है… अधिक पढ़ा लिखाकर क्या करोगे? शादी ही तो करनी है… गोल रोटी बनानी आती है क्या?जबकि बेटे के लिए सबकी सोच अच्छी पढाई कर कमाने की है. बेटी आखिर कब तक इसे सहेगी, 21वीं सदी में भी सोच क्यों नहीं बदलती? इसी सोच के साथ 24 वर्षीय आशी ने जी टीवी की शो ‘मीत’ में एक टॉम बॉय की भूमिका निभाकर परिवार, समाज और धर्म को सबक सिखाने और लोगों के बीच जागरूकता फ़ैलाने की कोशिश की है.

धारावाहिक ‘ये उन दिनों की बात है और अलादीन- नाम तो सुना होगा आदि से चर्चित अभिनेत्री आशी सिंह को बचपन से अभिनय की इच्छा थी, लेकिन ये कैसे होगा, जानती नहीं थी. इसलिए जहाँ भी उसे मॉडलिंग का मौका मिलता, वह करती जाती थी, इससे उसकी अभिनय प्रतिभा में विकास हुआ और आज एक टीवी शो को लीड कर रही है. उनसे फ़ोन पर बात हुई, आइये जाने कुछ बातें आशी सिंह की जर्नी के बारें में.

सवाल- इस भूमिका को करने की खास वजह क्या है?

इस शो में मैं एक ऐसी लड़की की भूमिका निभा रही हूं, जो लड़की की तरह दिखती है, पर लड़कियों जैसी काम नहीं करती. वह घर और बाहर दोनों जगह काम करती रहती है. इस चरित्र में काफी सारे शेड्स है, जो बहुत अलग, आत्मविश्वास से भरी हुई और चुनौतीपूर्ण है. मुझे इसकी कहानी पसंद आई और मैने हाँ कह दी.

सवाल- इस चरित्र से आप खुद को कितना जोड़ पाती है?

मैं लडको की तरह ड्रेस पहनना और छोटे बाल रखना पसंद नहीं करती. मेरे केश बड़े है और कपडे भी मैं रियल लाइफ में लड़कियों की तरह ही पहनना पसंद है. यहाँ मेरे छोटे केश होने की वजह अलग है, मीत अपने केश हमेशा छोटी रखती है, ताकि केश बनाने में फिजूल टाइम जाता है. बाइक चलाने के लिए जींस और टी शर्ट में आसानी रहती है, इसलिए उसे पहनती है. असल जिंदगी में भी आशी को ऐसी ड्रेस पहनना पसंद है. मैंने बचपन में कई लड़कियों को कहते हुए सुना है कि लड़की होने की वजह से वे खुलकर जी नहीं सकती. मुझे ऐसा महसूस कभी घर वालों के साथ नहीं हुआ, क्योंकि मैं जो कुछ भी करना चाहती हूं, करने की मुझे आज़ादी है.

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सवाल- हमारे समाज और परिवार में लिंग भेद आज भी है, क्या आपने अपने आसपास कभी कुछ देखा है?

मेरे परिवार में मुझे और भाई को पेरेंट्स ने कभी अलग नहीं समझा. मैंने कभी खुद लड़की होने की वजह से अलग महसूस भी नहीं किया, लेकिन मेरी दादी घर में एक लड़के का होना जरुरी समझती है. वे लडको को घर का चिराग मानती है. अब ये सोच वक्त के साथ बदलने की जरुरत है, पर ऐसा नहीं हुआ है. काफी लोगों को मैंने आसपास देखा है, जो बेटा होने को जरुरी मानते है, क्योंकि बेटा बाहर काम कर सकता है और बेटे के बिना परिवार कम्पलीट नहीं होता. लड़कियों को सिर्फ घर का काम आना चाहिए, क्योंकि उन्हें ससुराल जाना है. पढ़-लिख कर उन्हें जॉब तो करना नहीं है. मैं उत्तरप्रदेश से हूं, इसलिए वहां लोग लड़कियों के लिए ऐसी ही विचारधारा रखते है.

सवाल- परिवार में लड़कियों को सम्मान नहीं मिलता, लेकिन एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में भी ऐसी असामनता उनकी फीस को लेकर दिखाई दिखाई पड़ती है, क्या आपको कभी ऐसी चीजों का सामना करना पड़ा?

मैंने बहुतों से सुना है कि इंडस्ट्री में ऐसा होता है, पर मुझे कभी ऐसा अनुभव नहीं हुआ. मैं अपने काम के अनुसार पेमेंट मांगती हूं. एक्टर को कितना मिलता है, इस बारें में मैंने कभी पता करने की कोशिश नहीं की है. एक्टर की फीस मुझसे अधिक हो सकता है या कम भी हो सकता है, क्योंकि अभिनेत्रियों के होने पर ही शो आकर्षक लगता है. मेरे हिसाब से अभिनेता और अभिनेत्रियों की फीस बराबर होनी चाहिए, लेकिन इन सब बातों के बारें में मैं अधिक नहीं सोचती, क्योंकि इससे मेरा परफोर्मेंस सही नहीं होगा.

सवाल- आगरा से मुंबई कैसे आना हुआ?

मैंने 17 साल की उम्र से अभिनय करना शुरू किया है. स्कूल के नाटकों में मैने हमेशा भाग लिया है, लेकिन एक समय लगता था कि यहाँ रहने से मेरी प्रतिभा को मौका नहीं मिलेगा. संयोग से मेरे पिता का काम मुंबई में सेटल होने की वजह से हम सब मुंबई आ गये. तब मैं 9 वीं कक्षा में थी. पढाई शुरू की और उस दौरान पिता की एक दोस्त के समझाने पर मेरे पिता ने एक्टिंग में डिप्लोमा कराया. इसके बाद मैंने हर प्रोडक्शन हाउस में अपनी पिक्चर दी और ऑडिशन देती रही. मैंने बहुत सारे ऑडिशन दिए. इसके बाद मुझे धारावाहिक ‘उन दिनों की बात है’ में काम मिला.

सवाल- क्या आगरा से मुंबई आने पर खुद को मुंबई की माहौल में एडजस्ट करना मुश्किल लगा?

मुझे बचपन से अभिनय का शौक था, इसलिए आगरा में अच्छी-अच्छी फोटो खिचावाकर मुंबई की प्रोडक्शन हाउस में भेजती थी. मैं यहाँ आने पर बहुत एक्साइटेड थी, क्योंकि यह सपनों की नगरी है और मेरा सपना सच होने का रास्ता भी यही पर है. इसलिए मुझे एडजस्ट करने में अधिक मुश्किल नहीं हुई. आगरा से यहाँ सब अलग होगा, ये मुझे पता था, क्योंकि वहां मुझे सब जानते थे, पर यहाँ कोई नहीं जानता. कठिन बहुत था, लेकिन मेहनत और धीरज से मुझे अभिनय का मौका मिला.

सवाल- कितना संघर्ष रहा?

मैंने 6 महीने का एक्टिंग डिप्लोमा किया. इसके बाद ढाई साल मैंने ऑडिशन दिए है, जिसमे हर दिन 4 से 5 ऑडिशन धूप और बारिश की परवाह किये बिना दिए है. मैं हमेशा अपने परिवार के साथ रही, लेकिन एक्टिंग की जर्नी मैंने अकेले ही तय की है. मुझे याद है, एक दिन मुझे शूट के लिए दूसरी जगह लोकल ट्रेन से जाना था, स्टेशन पहुंचकर मुझे पता नहीं था कि मुझे टिकट कहाँ से लेना है, मैं वहां खड़ी होकर रोने लगी थी. फिर मैंने पूछ-पूछकर शूटिंग स्पॉट पर पहुँच गयी थी, ऐसा कई बार हुआ, क्योंकि मुझे मुंबई के बारें में कुछ भी पता नहीं था. संघर्ष थी, पर अकेले इसे तय करने की संतुष्टि भी रही.

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सवाल- आपकी ड्रीम क्या है?

मेरा ड्रीम हमेशा एक कलाकार बनने की थी और मैंने धारावाहिकों में जिस तरह की भूमिका निभाई है, सभी फिल्मों की तुलना में काफी अच्छी भूमिका थी. मैं अपने काम से बहुत संतुष्ट हूं और मैं अपने सपने को ही जी रही हूं. मैं हमेशा अच्छी और नई भूमिका में काम कर दर्शकों को खुश करना चाहती हूं.

टीवी की ‘किंजल’ ने दी बॉलीवुड हिरोइंस को मात, स्टाइलिश लहंगे पहनकर छाई अनुपमा की ‘बहू’

स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा (Anupama)इन दिनों दर्शकों का दिल जीत रहा है, जिसके चलते सीरियल के सितारे घर-घर में छा गए हैं. अनुपमा (Rupali Ganguly) से लेकर किंजल का किरदार निभाने वाले सितारे सोशलमीडिया पर सुर्खियों में रहते हैं. इसी बीच किंजल का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस निधि शाह (Nidhi Shah) की हाल ही में वेडिंग लुक्स फैंस के बीच छाया हुआ है. वेडिंग सीजन के लिए निधि शाह के ड्रैसेस परफेक्ट औप्शन हैं. तो आइए दिखाते हैं निधि शाह के वेडिंग लुक्स की झलक…

इंडियन लुक्स में छाई किंजल

 

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आए दिन हौट फोटोज के चलते सुर्खियों में रहने वाली किंजल यानी निधि शाह हाल ही में एक वेडिंग फोटोशूट करवाती दिखीं, जिसमें नई दुल्हन के लिए नए-नए औप्शन में नजर आईं. ब्राउन कलर के लहंगे में निधि शाह का लुक बेहद खूबसूरत लग रहा है, जिसके साथ मैचिंग ज्वैलरी उनके लुक पर चार चांद लगा रहा है.

 

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नई दुल्हन के लिए है खास अंदाज

 

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क्रीम कलर के साथ Peach कलर के कौम्बिनेशन वाले हैवी लहंगे में निधि शाह बेहद स्टाइलिश लग रही हैं. सीरियल में किंजल के अंदाज से अलग निधि शाह का ये लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है. इसके साथ मैचिंग ज्वैलरी, मेकअप, हेयर स्टाइल उनके लुक को स्टाइलिश बना रहा है, जो हर दुल्हन के लिए परफेक्ट औप्शन होगा.

 

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ग्लैमरस है किंजल का अंदाज

 

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किंजल यानी निधि शाह के सीरियल में लुक्स की बात करें तो वह अक्सर इंडियन और वैस्टर्न लुक कैरी करते हुए नजर आती हैं, जिसमें उनका लुक काफी खूबसूरत लगता है. वहीं रियल लाइफ उनका हौट अवतार देखकर फैंस के मजेदार रिएक्शन देखने को मिलता है.

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समय के साथ जरूरी है ग्रूमिंग

दादी, नानी बन कर घर व नातीपोते तक ही सीमित न रहें बल्कि बढ़ते समय के साथ आप अपनी ग्रूमिंग करती रहें. अपने रंगरूप के प्रति सचेत रहें. फेशियल मसाज, बालों का रखरखाव आदि के प्रति बेरुखी न अपनाएं. माह में 1 बार ब्यूटीपार्लर जाएं या घर पर ही ब्यूटी ऐक्सपर्ट को बुलाएं. आजकल तो घर पर जा कर भी ब्यूटी ऐक्सपर्ट अपनी सेवाएं उपलब्ध कराती हैं. यह सब रही बौडी की ग्रूमिंग की बात.

मनमस्तिष्क की ग्रूमिंग के लिए आज के आवश्यक वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग करना अवश्य सीखें. ‘अब क्या करना है सीख कर’ जैसा विचार अपने पास फटकने न दें. आज मोबाइल पर फोटो खींच कर व्हाट्सऐप से भेजना, फेसबुक पर पोस्ट करना और गूगल द्वारा नईनई जानकारी प्राप्त करना सहज हो गया है. रोजमर्रा के सोशल नैटवर्क को अपना कर आप, घर बैठे ही, सब से  जुड़ी रहेंगी.

बुजुर्ग महिला विमला चड्ढा अपने 75वें जन्मदिन पर मोबाइल में व्हाट्सऐप व फेसबुक पर उंगलियां चला रही थीं. उन की बहू के साथसाथ उन के नातीनातिन बड़े ही गर्व से उन्हें निहार कर खुश हो रहे थे.

1980 में सोशल साइंटिस्ट विलियम जेम्स ने कहा था कि 30 वर्ष की उम्र तक बना व्यक्तित्व एक प्लास्टर की भांति ठोस हो कर पूरे जीवन हमारे साथ रहता है. यानी इस उम्र तक हम जो बन जाते हैं, वैसे ही पूरे जीवन रहते हैं. यह धारणा 90 के दशक तक चली.  आज के सोशल साइंटिस्ट के अनुसार, हमारा व्यक्तित्व एक खुला सिस्टम है जिस में हम जीवन के किसी भी समय में, वर्तमान स्टाइल, जीवन का नया तरीका अपना सकते हैं. प्लास्टिसिटी सिद्धांत के अनुसार, जिंदगी में उम्र के किसी भी पड़ाव में परिवर्तन किया जा सकता है.

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ऐसी कई छोटीछोटी राहें हैं, कदम हैं, जिन के द्वारा ग्रूमिंग होती रहती है, व्यक्तित्व निखरता रहता है, जैसे कि-

अंगरेजी शब्दों के आज के उच्चारण पर ध्यान दें. उन्हें याद रखें. जैसे कि ‘डाइवोर्स’ शब्द को आजकल ‘डिवोर्स’ बोला जाता है. ‘बाउल’ (कटोरा) को ‘बोल’ कहा जाता है. मुझे याद है, रीझ को ‘बीअर’ कहा जाता था अब ‘बेअर’ कहा जाता है. ऐसे और भी कई शब्दों के उच्चारण आत्मसात करते रहें.

औनलाइन शौपिंग करना, टिकट बुक कराना जैसे कार्य सीखें. हां, औनलाइन शौपिंग करने पर होशियार अवश्य रहें. शौपिंग से पूर्व, विके्रता कंपनी से वस्तु की गारंटी तथा उस की क्याक्या शर्तें हैं, यह जरूर जान लें. वस्तु पसंद न आने पर रुपयों के वापसी की गारंटी या वस्तु बदलने की गारंटी लें. एमेजोन और फ्लिपकार्ट जैसी शौपिंग साइटें गारंटी देती हैं. थर्डपार्टी से शौपिंग करने से बचें. इस में धोखा होने की संभावना होती है.

सांस्कृतिक कार्यों, गोष्ठियों में रुचि बनाए रखें. संभव हो तो उन में भाग लें. अपने विचारों का आदानप्रदान करें. इस से सकारात्मक भाव बना रहता है.

अपने बच्चों व नातीपोतों की फेवरिट बनी रहने के लिए नईनई रैसिपी सीखती रहें. इन्हें आप टीवी, यूट्यूब या गूगल द्वारा सीख सकती हैं. इस से आप में आत्मविश्वास, एक जोश पनपेगा. जब चाहें तब अपने बच्चों की पसंद की डिश बना कर आप उन्हें सरप्राइज दे सकती हैं.

बच्चों की इच्छा पर रैस्टोरैंट जा कर, उन की पसंद की डिशेज खाएं. हो सकता है वह आप को पसंद न भी आए, पर सब की खुशी में शामिल हो कर स्वयं को उन डिशेज के टेस्ट से ग्रूमिंग करें.

पुरानी मानसिकता त्याग दें. सब से प्रथम, अपना भविष्य देखना, सुनना (टीवी व रेडियो), अखबार में पढ़ना तुरंत छोड़ दें. ‘वृद्धावस्था तो बस माला जपने, धार्मिक पोथी पढ़ने के लिए ही बुक होती है,’ जैसी पुरानी मानसिकता का त्याग कर दें.

किसी भी पुरानी आदत को स्वयं से चिपकाए न रखें. किसी ने कहा है कि ‘आदत एक जबरदस्त रस्सी होती है जिसे प्रतिदिन हम अपने ही हाथों बंटते हैं.’ सो, इसे अपने ही हाथों खोल डालें. खुले हृदय से परिवर्तन को स्वीकारें. उदाहरण के तौर पर, आज बर्गरपिज्जा के समय में आप अपने बच्चों को अपने समय का सत्तू, गुड़धानी खिलाने की जिद करेंगी तो परिणाम आप स्वयं जानती हैं. समय के साथ बदलना, जीवन को सार्थकता देता है.

सो, उम्र के नाम पर, ग्रूमिंग की पंक्ति में पीछे खड़ी न रहें. आज की सासबहू, मांबेटी स्मार्ट पोशाक, स्मार्ट व्यक्तित्व व आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की जानकारी के साथ जब बराबर कदम उठा कर चलती हैं, तब आसपास की उठती निगाहें ‘वाह, वाह’ कह उठती हैं.

बस, आप को ग्रूमिंग करते रहना है बदलते समय के साथ. न पीछे मुड़ कर देखें और न अडि़यल बनें. फिर देखिए, आप के चारों ओर खुशी और ऊर्जा बिखरी होगी.

बैंकिंग कार्य से परिचित व जुड़ी रहें, जैसे चैक जमा करना, रुपए निकालना, अपना लौकर औपरेट करना आदि. आप ने यह कार्य छोड़ रखा है तो अब शुरू कर दें. अगर कभी किया ही नहीं है तो सीख लें. इस तरह एक अलग ही आत्मविश्वास पनपेगा आप के व्यक्तित्व में.

समयानुसार अपने विचारों को बदलते रहें. आज के तरीकों व परिवेश को सहजतापूर्वक स्वीकारें. आज से कुछ दशकों पूर्व, शादी से पहले लड़कालड़की का खुलेआम घूमना, साथ समय व्यतीत करना संभव न था. पर अब शादी से पूर्व घूमनेफिरने के साथसाथ रहना तक भी संभव हो रहा है ताकि एकदूसरे की कंपैटिबिलिटी जानी जा सके. ऐसी बातों पर आप तनावग्रस्त न हों.

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अपने लिए कोई न कोई, चाहे छोटा ही हो, लक्ष्य चुनती रहें. चलते रहना जीवन है, रुक जाने का नाम मृत्यु है. तो चलती रहिए जीवनपर्यंत नईनई मंजिलों की ओर. इस तरह तनमन में एक जोश व ऊर्जा बनी रहती है. ‘अब तो आखिरी पड़ाव है, अब क्या करना है,’ ऐसे विचार को दिमाग से खुरच डालिए. अंगरेजी में कहावत है- ‘कावर्ड्स डाई मैनी टाइम्स, बिफोर देअर डैथ.

अपनी उम्र के अनुसार आधुनिक स्टाइल की पोशाकें खरीदें व बनवाएं. ‘अब तो उम्र निकल ही गई, अब क्या करना है नई पोशाकों का’, ऐसा बिलकुल न सोचें. अपनी वार्डरोब समयसमय पर बदलती रहें. बुजुर्ग महिला चांद वालिया अपनी उम्र के 80 दशक में भी कलफ लगी कौटन साड़ी, ट्राउजर आदि पहनती रहीं. सारा फ्रैंड सर्किल और पड़ोसी उन की पसंद पर दाद देते थे.

राधा, रवि और हसीन सपने: राधा को कौनसी धमकी दे रहा था रवि

लेखक- केपी सिंह ‘किर्तीखेड़ा’

‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं खुद को खत्म कर लूंगी. फिर तुम मुझे कभी नहीं पा सकोगे. अगर तुम वाकई मुझ से प्यार करते हो, तो जैसा मैं कहती हूं, वही तुम्हें करना होगा.’’

रवि ने जब राधा की धमकी सुनी, तो उस के होश उड़ गए. उस ने कभी नहीं सोचा था कि राधा अपने ही भाई को मौत के घाट उतारने के लिए इस कदर बेकरार होगी.

रवि एक बार फिर उसे समझाते हुए बोला, ‘‘राधा, अगर हम ने तुम्हारे भाई उमेश की जान ली, तो हमें भी अपनी जवानी जेल की दीवारों के बीच गुजारनी पड़ सकती है.’’

रवि की बात सुनते ही राधा गुस्से में बोली, ‘‘तो ठीक है, तुम जाओ यहां से. मैं सबकुछ समझ गई. तुम्हें मेरी बात पर जरा भी भरोसा नहीं है…’’

इतना कह कर राधा ने रवि की तरफ से मुंह फेर लिया और करवट बदल कर दूसरी तरफ देखने लगी. रवि और राधा इस वक्त रवि के घर की दूसरी मंजिल पर पलंग पर बिना कपड़ों के लेटे थे. रवि का सारा मजा किरकिरा हो गया था, लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था. रवि ने राधा को अपनी तरफ घुमा कर पहले जी भर कर चूमा और फिर जब दोनों प्यार की आग में दहकने लगे, तो एकदूसरे में समा गए.  राधा रवि को तब से चाहती थी, जब वह 12वीं जमात के इम्तिहान देने शहर के स्कूल गई थी. चूंकि राधा और रवि एक ही जगह के रहने वाले थे, इसलिए वहां उन की जानपहचान हो गई थी. राधा अगड़ी जाति की थी और रवि निचली जाति का, इसलिए दोनों के लिए परेशानी थी. लेकिन तकरीबन 3 साल तक लुकछिप कर मुहब्बत करने के बाद जब एक दिन राधा ने परिवार वालों को अपने और रवि के बीच प्यार और शादी की तमन्ना वाली बात बताई, तो उस के घर का माहौल अचानक खराब हो गया.

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राधा की 5 बहनों की शादी हो चुकी थी. वह सब से छोटी थी. उमेश इन बहनों के बीच अकेला भाई था. उसी ने राधा के इस प्यार का विरोध किया था. राधा की मां काफी बूढ़ी हो चुकी थीं. पिताजी की मौत एक हादसे में पहले ही हो चुकी थी. उमेश को पिताजी की जगह क्लर्क की नौकरी मिल चुकी थी. उमेश शादीशुदा था, लेकिन राधा का बेहद विरोधी था, इसीलिए राधा भाई उमेश और भाभी साक्षी को अपना दुश्मन मानती थी. जब एक दिन रात को राधा रवि से फोन पर बातें कर रही थी, तभी उमेश ने उसे बातें करते देख कई तमाचे जड़ दिए थे. इतना ही नहीं, राधा के हाथ से मोबाइल फोन छीन कर उसे बड़ी बहन के घर छोड़ आया था. राधा रवि को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी, वहीं उमेश की जिद थी कि वह राधा की शादी रवि से कभी नहीं होने देगा.

राधा चाहती थी कि रवि उमेश को जान से मार दे, ताकि उस के प्यार पर कोई पाबंदी लगाने वाला न बचे, लेकिन रवि राधा की बात मानने को तैयार नहीं था. वह जानता था कि राधा जो चाहती है, वह जुर्म है. लकिन रवि भी इश्क की चाशनी का स्वाद चख चुका था. लाख मना करने के बाद भी आखिर में वह वही करने को तैयार हो गया, जो राधा चाहती थी. तय समय और तारीख पर रवि को राधा के फोन का इंतजार था.

जब राधा का फोन आया, तब रवि तुरंत अपने मनसूबों को अंजाम देने चल दिया. राधा और रवि एकएक कदम सावधानी से आगे बढ़ा रहे थे. शायद इसीलिए जब वे दोनों एकसाथ उमेश के कमरे के पास पहुंचे, तो अचानक राधा ने रवि को हाथ से इशारा कर के रोक दिया और अकेले ही उस के कमरे में घुस गई. राधा ने सब से पहले कमरे की लाइट जलाई और देखा कि उमेश गहरी नींद में सो गया है या नहीं. जब राधा को इतमीनान हो गया कि उमेश गहरी नींद में है, तो उस ने रवि को अंदर बुलाया.

रवि ने उमेश को चादर में लपेट दिया और जोर से उस का गला दबाने लगा. उमेश छटपटा कर पलंग के नीचे गिर गया, लेकिन जल्दी ही राधा और रवि ने उस पर काबू पा लिया था. जब उन दोनों को भरोसा हो गया कि उमेश अब जिंदा नहीं है, तभी उन्होंने उसे छोड़ा था. फिर उन दोनों ने उमेश का बिस्तर ठीक किया और दोबारा चादर इस तरह ढक दी, जैसे वह गहरी नींद में सो रहा हो. फिर वे दोनों एकदूसरे को बांहों में भर कर चूमने लगे. उस समय राधा काफी सैक्सी लग रही थी. एक बार जब राधा की प्यास जाग जाती थी, तो आसानी से उसे संतुष्ट कर पाना सब के बस की बात न थी. रवि कसरती बदन का मालिक था. वह राधा को बेहद और भरपूर मजा देता था, इसीलिए राधा उसे जीजान से चाहती थी. राधा और रवि इस कदर इश्क में अंधे हो गए कि बगल में पड़ी लाश भी न दिखाई दी. दोनों वहीं पर प्यार के समुद्र में गोते लगाने लगे.

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सुबह हुई, तो राधा बिलखबिलख कर पूरे महल्ले के सामने कह रही थी, ‘‘हाय, मेरा एकलौता भाई… कहां चला गया तू…’’ उस ने उमेश की मौत को स्वाभाविक मौत मानने पर सब को मजबूर कर दिया था.

पुलिस भी यही मान कर चल रही थी कि उमेश की मौत स्वाभाविक है कि तभी थाना इंचार्ज ने कहा, ‘‘उमेश की तो शादी हो चुकी है. इस की बीवी को आ जाने दीजिए.’’ तब राधा ने बड़ी चालाकी से कहा, ‘‘अरे साहब, वह तो इस से झगड़ा कर के मायके गई है. वह आ भी जाएगी, तो क्या करेगी. कम से कम मेरे भाई का अंतिम संस्कार तो समय पर हो जाने दीजिए.’’ राधा की बारबार अंतिम संस्कार की बात पर पहले तो सभी को अटपटा लगा, लेकिन जब वह लाश के सड़नेगलने की बात करने लगी, तो पुलिस भी इस के लिए राजी हो गई. पुलिस अपना काम पूरा समझ कर वहां से जाने ही वाली थी, तभी बाजी पलट गई. उसी वक्त उमेश की पत्नी साक्षी अपने मायके वालों के साथ वहां आ गई. साक्षी ने आते ही पुलिस से लाश का पोस्टमार्टम कराने की बात कही, तो राधा के होश उड़ गए. जैसे ही पुलिस को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली, तो पुलिस तुरंत हरकत में आ गई.

शक होते ही राधा को तुरंत गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई. इस के बाद पुलिस रवि की खोज में दौड़ गई और उसे भी धर दबोचा. राधा और रवि के हसीन सपने बहुत देर तक पुलिस केसामने टिक न सके.

राधा खुद अपनी जबान से काली करतूत बयान करने लगी, ‘‘साहब, हम 6 बहनें हैं. उमेश मेरा एकलौता भाई था. लेकिन केवल कहने का भाई था. उसे अपनी बीवी के अलावा किसी और की चिंता न थी. वह अपनी बीवी के कहने पर मुझ पर जुल्म ढाता था, इसलिए मैं ने उसे खत्म करने का फैसला कर लिया था.

‘‘मैं मौके की तलाश में थी, तभी इस का अपनी बीवी से झगड़ा हो गया. वह अपने मायके चली गई. मैं ने मौका पा कर रवि को फोन कर के बुलाया था. हम दोनों ने उमेश का गला दबा कर उसे मार डाला था.

‘‘साहब, मैं रवि से प्यार करती हूं और उसे मैं किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी…’’ राधा बिना किसी झिझक के अपना बयान दे रही थी. रवि पुलिस के सामने जहां फूटफूट कर रो रहा था, वहीं राधा की आंखों में आंसू का एक भी कतरा नहीं था. उसे अपने हसीन सपनों के लिए भाई की जान लेने का जरा भी दुख नहीं था.

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YRKKH: सीरत ने कार्तिक से किया प्यार का इजहार, धूमधाम से होगी दोनों की शादी

स्टार प्लस के सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है सालों से फैंस का दिल जीतता रहा है. वहीं कार्तिक और नायरा की जोड़ी आज भी फैंस के दिलों पर राज कहती है. लेकिन अब कार्तिक और सीरत को भी फैंस अपना चुके हैं, जिसके चलते वह सीरियल में दोनों का रोमांस देखने को बेताब हैं. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में फैंस का ये सपना पूरा होने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

कार्तिक का टूटा था दिल

 

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अब तक आपने देखा कि कार्तिक (Mohsin Khan) एक अंगूठी पकड़कर घुटनों पर बैठकर सीरत (Shivangi Joshi) को स्टाइलिश तरीके से प्रपोज करता है, जिसे सीरत ने ठुकरा दिया और कहा कि वह उससे प्यार नहीं करती, जिसके चलते कार्तिक टूट जाता है. लेकिन दिल ही दिल में वह कार्तिक से प्यार करती नजर आती है.

 

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सीरत करेगी प्यार का इजहार

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सीरत, कार्तिक से दूर जाने का फैसला करेगी. लेकिन रास्ते में पहुंचते ही उसे अपने प्यार का इजहार होगा. वहीं कार्तिक चोरी छिपे ड्राइवर के भेस में वह सीरत को छोड़ने जाएगा. लेकिन सीरत को रोते हुए देखेगा और उसके सामने आ जाएगा. जहां सीरत उससे अपने दिल की बात कहेगी और घुटनों पर बैठकर कार्तिक से प्यार का इजहार कहेगी और उसे I Love You कहेगी.

सीरत-कार्तिक की होगी शादी


दूसरी तरफ कार्तिक और सीरत घर पहुंचेंगे जहां दादी दोनों की शादी धूमधाम से करने का ऐलान करेगी. वहीं सीरियल में एक बार फिर बड़ी वेडिंग देखने को मिलेगी, जिसके साथ फैंस को सीरत और कार्तिक का रोमांस देखने को मिलेगा.

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सीरियल अनुपमा में इन दिनों काफी ड्रामा देखने को मिलने वाला है, जिसके पहले सीरियल की लीड एक्ट्रेस रुपाली गांगुली फैमिली वेकेशन पर चली गई है, जिसकी फोटोज और वीडियो वह फैंस के साथ शेयर कर रही हैं. इसी बीच सीरियल में एक आदर्श मां और बहू का फर्ज निभाने वाली अनुपमा यानी रुपाली गांगुली का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह अपने किचन में आने वाली परेशानियों के बारे में बताते नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं वीडियो…

किचन में पहुंची अनुपमा

 

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सीरियल अनुपमा में रुपाली गांगुली का किरदार ऐसा है कि वह किचन से लेकर घर का हर काम करना जानती है. लेकिन रुपाली गांगुली रियल लाइफ में उतना अच्छा खाना नही बना पाती है, जिसका अंदाजा फैन उनकी नई वीडियो से लगा रहे हैं. दरअसल, वीडियो में रुपाली गांगुली कहती नजर आ रही हैं कि किचन में उन्हें नींद आती है, जिसे देखकर फैंस मजेदार रिएक्शन देते नजर आ रहे हैं.

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नई-नई वीडियो कर रही हैं शेयर

 

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सोशलमीडिया पर इन दिनों रुपाली गांगुली काफी एक्टिव हो गई है, जिसके चलते वह फैंस के साथ नई-नई वीडियो शेयर कर रही हैं. हाल ही में रुपाली गांगुली ने कई मजेदार वीडियो शेयर की हैं, जिसमें वह हील्स का दर्द भी बयां करती नजर आ रही हैं.

सीरियल में भी आएगा नया ट्विस्ट

अपकमिंग एपिसोड की बात करें तो अनुपमा की जिंदगी में अनुज कपाड़िया की एंट्री होने वाली है, जिसके चलते सीरियल की कहानी और भी मजेदार होने वाली है. दरअसल, काव्या और वनराज के लालच का फायदा उठाकर अनुज कपाड़िया अनुपमा की जिंदगी और शाह हाउस में एंट्री लेगा. दूसरी तरफ नंदिनी की जिंदगी में भी उसके एक्स बौयफ्रेंड की एंट्री होगी, जिसका असर समर-नंदिनी के रिश्ते पर पड़ने वाला है.

 

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