REVIEW: दिल को छू लेने वाली कहानी है ईशा देओल की ‘एक दुआ’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः वेंकीस, भारत तख्तानी,  ईशा देओल तख्तानी और अरित्रा दास

निर्देशकः राम कमल मुखर्जी

लेखकः अविनाश मुखर्जी

कलाकारः ईशा देओल, राजवीर अंकुर सिंह, बॉर्बी शर्मा , निक शर्मा व अन्य

अवधिः लगभग एक घंटा

ओटीटी प्लेटफार्मः वूट सेलेक्ट

पुरूष प्रधान भारतीय समाज में आज भी बेटे व बेटी के बीच भेदभाव किया जाता है. अत्याधुनिक युग में भी भ्रूण हत्या की खबरें आती रहती हैं. सरकार इस दिशा में अपने हिसाब से कदम उठा रही है. पर इसके सार्थक परिणाम नही मिल रहे हैं. इसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर फिल्म सर्जक राम कमल मुखर्जी और कहानीकार अविनाश मुखर्जी एक फिल्म‘‘एक दुआ’’लेकर आए हैं,  जिसका निर्माण ईशा देओल तख्तानी व उनके पति  तख्तानी ने  किया है. जो कि 26 जुलाई से ओटीटी प्लेटफार्म ‘वूट ’’पर स्ट्रीम हो रही है.

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कहानीः

फिल्म की कहानी टैक्सी ड्रायवर सुलेमान(राजवीर अंकुर सिंह)के परिवार के इर्द गिर्द घूमती है. सुलमान के परिवार में उनकी मां, पत्नी आबिदा(ईशा देओल तख्तानी),  बेटा फैज(निक शर्मा ) व बेटी दुआ(बार्बी शर्मा )हंै. बेटी दुआ के जन्म से सुलेमान की मॉं खुश नही है और सुलेमान भी अपनी बेटी से कटा कटा सा रहता है. सुलेमान के आर्थिक हालात अच्छे नही है, मगर वह अपने बेटे को स्कूल ख्ुाद छोड़ने जाता है. बेटे के लिए उपहार भी लाता है. सुलेमान बेटी दुआ को पढ़ाना नहीं चाहता. हर जगह उसकी उपेक्षा करता रहता है. लेकिन आबिदा हमेशा अपनी बेटी दुआ का खास ख्याल रखती है. वह बेटी को स्कूल भी भेजती है और बेटेे के साथ ही बेटी को भी बर्फ के गोले भी खिलाती है. ईद आने से पहले वह चुपचाप अपनी बेटी दुआ के लिए उपहार भी खरीद लाती है. जबकि ईद के दिन सुलेमान पूरे परिवार के साथ मस्जिद व दरगाह पर जाता है. सुलेमान ईद के अवसर पर अपनी मॉं के अलावा पत्नी व बेटे को ईदी यानी कि उपहार देता है. मगर वह बेटी दुआ के लिए कुछ नही लाता. यह देख दुआ की आॅंखों से आंसू बहते हैं, पर वह चुप रहती है. लेकिन आबिदा उसे उसकी पंसदीदा फ्राक ईदी यानी कि उपहार में देकर उसके चेहरे पर मुस्कान ले आती है. इस बीच दुआ की दादी सुलेमान से कहती है कि वह दूसरा बेटा पैदा करे. जबकि घर के बदतर आर्थिक हालात को देखते हुए आबिदा ऐसा नही चाहती. मगर मां की इच्छा के लिए सुलेमान पत्नी आबिदा को धोखा देकर उसे गर्भवती कर देता है. दुआ की दादी गभर्वती आबिदा के पेट की सोनोग्राफी के साथ ही लिंग परीक्षण भी करवा देती है, जिससे पता चलता है कि आबिदा बेटी को ही जन्म देने वाली है. अब दुआ की दादी चाहती हैं कि डाक्टर, आबिदा गर्भपात कर दे. मगर डाक्टर ऐसा करने की बजाय सुलेमान व उनकी मॉं को ही फटकार लगाती है. मगर सुलेमान की मां कहां चुप बैठने वाली. वह एक दूसरी औरत की मदद से ऐसा खेल खेलती है कि दूसरी दुआ नहीं आ पाती.

लेखन व निर्देशनः

अविनाश मुखर्जी ने अपनी कहानी में एक ज्वलंत व अत्यावश्क मुद्दे को उठाया है. लेकिन इसे जिस मनोरंजक तरीके से निर्देशक राम कमल मुखर्जी ने फिल्माया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. राम कमल मुखर्जी ने इस फिल्म में लंैगिक समानता, भ्रूण हत्या, नारी स्वतंत्रता व नारी सशक्तिकरण के मुद्दों को बिना किसी तरह की भाषण बाजी या उपेदशात्मक जुमलों के मनोरंजन के साथ प्रभावशली ढंग से उकेरा है. इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि कम संवादों के साथ बहुत गहरी बात कही गयी है. इसमें लिंग भेद व ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’की बात इस तरह से कही गयी है कि उन पर यह आरोप नहीं लग सकता कि इसी मुद्दे के लिए फिल्म बनायी गयी. इतना ही राम कमल मुखर्जी ने अपनी पिछली फिल्मों की ही तरह इस फिल्म में भी रिश्तों को उकेरा है.  इसमें मां बेटी के बीच के रिश्ते की गहराई को उकेरा गया है. तो वही फिल्मकार ने बदलते युग में किस तरह से ‘ओला’ व ‘उबर’की एसी वाली गाड़ियों के चलते दशकों से काली पीली टैक्सी वालों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट पैदा होता जा रहा है, उसे भी बड़ी खूबसूरती से उकेरा है. एक गरीब मुस्लिम परिवार हो या बाजार या स्कूल के सामने का माहौल या दरगाह व उसके अंदर हो रही कव्वाली हो, फिल्मकार ने हर बारीक से बारीक बात को जीवंतता प्रदान करने में कोई कसर नही छोड़ी है. मगर कहीं न कहीं इसे कम बजट में बनाने का दबाव भी नजर आता है. फिल्म की गति थोड़ी धीमी है. फिर भी हर इंसान को सेाचे पर मजबूर करती है.

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गीत संगीत पर थोड़ी सी मेहनत की जाती, तो बेहतर होता.

कैमरामैन मोधुरा पालित बधाई की पात्र हं. उन्होने अपने कैमरे से मंुबई शहर को एक नए किरदार में पेश किया है.

अभिनयः

आबिदा के किरदार में ईशा देओल तख्तानी ने शानदार अभिनय किया है. एक बार फिर उन्होने साबित कर दिखाया कि ग्रहस्थ जीवन या दो बेटियों की मां बनने के बावजूद उनकी अभिनय क्षमता में निखार ही आया है. तो वहीं टैक्सी ड्रायवर सुलेमान के किरदार को जीवंतता प्रदान करने में राजवीर कंुवर सिंह सफल रहे हैं. राजवीर,  मां व पत्नी के बीच पिसते युवक के साथ ही आर्थिक हालात से जूझते इंसान के दर्द को बयां करने में सफल रहे हैं. दुआ के किरदार में बॉर्बी शर्मा बरबस  लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं. वह बिना संवाद के महज अपने चेहरे के भाव व आंखों से ही दर्द, खुशी सब कुछ जितनी खूबसूरती से बयां करती है, वह बिरले बाल कलाकारों के ही वश की बात है. बेटे फैज के किरदार में निक शर्मा ठीक ठाक हैं.

 

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बच्चे के जीवन में पेरेंट्स की भूमिका को लेकर क्या कहती हैं एक्ट्रेस मेघना मलिक, पढ़ें इंटरव्यू

लड़कियों ने अगर कोई सपना किसी क्षेत्र में जाने के लिए देखा है…. तो उनको सिर्फ एक सहारे की जरुरत होती है….उनके माता-पिता, समाज और उनकी कम्युनिटी आगे बढ़ने में रोड़े न अटकाएं………जो पिता अपने बेटियों को रोकेगा नही….. वे आगे अपना रास्ता अवश्य बना लेंगी….लड़कियों में प्रतिभा है…..उन्होंने जो सोचा है, उसे अवश्य कर लेगी. कहना है अभिनेत्री मेघना मलिक का, जिन्होंने एक लम्बी जर्नी एंटरटेनमेंट की दुनिया में तय किया है और अपने काम से संतुष्ट है.

अभिनेत्री मेघना मलिक हरियाणा के सोनीपत की है. धारावाहिक ‘न आना देस लाडो’ में अम्मा की भूमिका से वह चर्चा में आई. मेघना एक थिएटर आर्टिस्ट है. इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर डिग्री लेने के बाद मेघना दिल्ली आई और नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में ग्रेजुएट किया और अभिनय की तरफ मुड़ी. सौम्य और हंसमुख स्वभाव की मेघना हमेशा खुश रहना पसंद करती है. फिल्म साइना में वह साइना की माँ उषा रानी नेहवाल की भूमिका निभाई है, जिनका उद्देश्य बेटी को एक मंजिल तक पहुंचाने की रही और इसके लिए उन्होंने बेटी को भरपूर सहयोग दिया. पेरेंट्स डे के अवसर पर मेघना ने पेरेंट्स की सहयोग का बच्चे की कामयाबी पर असर के बारें में बातचीत की. आइये जाने क्या कहती है, मेघना मलिक अपनी जर्नी और जर्नी के बारें में.

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सवाल-इस फिल्म में माँ की भूमिका निभाना कितना चुनौतीपूर्ण रहा?

जब मैंने निर्देशक अमोल गुप्ते की स्क्रिप्ट पढ़ी और मेरे किरदार को जाना, तो लगा कि यही एक भूमिका जो मुझे हमेशा से करनी थी और मुझे उसे करने को मिल रहा है. कहानी की पृष्ठभूमि हरियाणा की है. असल में भी साइना नेहवाल भी हरियाणा की है. उनकी बैडमिन्टन खेल ने नयी जेनरेशन को पूरी तरह से प्रभावित किया है. उन्हें देखकर बच्चों में इस खेल के प्रति रूचि बढ़ी है. पहले बैडमिन्टन इतना प्रचलित खेल नहीं था, लेकिन सायना की जीत ने सबको प्रेरित किया है. उषा रानी नेहवाल लाइमलाइट में नहीं थी, पर उन्हें अपनी बेटी की प्रतिभा की जानकारी थी. माता-पिता दोनों ने सायना के सपनों को पूरा किया है. इसके अलावा उषा रानी को सभी जानते है, इसलिए उनकी भूमिका को सही तरह से पर्दे पर लाना मेरे लिए बड़ी चुनौती थी. जब उषा रानी फिल्म को देखे,तो उन्हें लगना चाहिए  कि ये अभिनय वे खुद कर रही है, क्योंकि एक माँ जो बेटी की हर अवस्था में साथ थी, उस चरित्र को मुझे क्रिएट करना था. साइना के पेरेंट्स फिल्म देखकर मुझे फ़ोन पर बताया कि मेरी भूमिका में वे खुद को देख पा रही है. मुझे ये कोम्प्लिमेंट्स बहुत पसंद आया.

 

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सवाल-माँ की भूमिका लड़कियों की परवरिश में कितनी होती है?

मेरी फिल्म देखने के बाद एक आर्मी ऑफिसर ने फ़ोन किया और कहा कि मैं लद्दाख में पोस्टेड हूं, लेकिन मेरा परिवार दिल्ली में रहता है. मेरी पत्नी और बेटी फिल्म देखने के बाद फ़ोन कर बताया कि बच्चे की परवरिश में पत्नी भी मेरा साथ देगी. जबकि पहले वह मना कर रही थी. आपकी फिल्म ने सोच को बदला है.

सवाल-आपने अधिकतर माँ की भूमिका निभाई है, क्या आपने कभी हिरोइन बनने का सपना नहीं देखा?

मैं एक अभिनेत्री हूं, फिर चाहे मुझे माँ, चाची या सांस की भूमिका मिले, चरित्र कैसा है उस पर अधिक फोकस्ड रहती हूं. अगर कोई मुझे हिरोइन बना देगा, तो वह भी बन जाउंगी.(हंसती हुई) ये सामने वाले की सोच है, मेरी नहीं.

सवाल-आपने एक लम्बी जर्नी तय की है, कितने खुश है?

बचपन से अभिनय का शौक था, लेकिन वहां थिएटर नहीं था, कोई गाइड करने वाला भी नहीं था. मेरी माँ डॉ. कमलेश मलिक जो एक अध्यापिका थी अब रिटायर्ड हो चुकी है. एक लेखिका और कवयित्री है. वह मेरे लिए मोनो एक्ट लिखती थी और मैं उसे करती थी. फिर उसे मैं स्कूल में करती थी. उन्होंने मेरी प्रतिभा को पहचाना और बहुत सहयोग दिया. मैं केवल 4 साल की अवस्था में मंच तक पहुँच चुकी थी, जिसमें नाटक, मोनोएक्टिंग आदि करने लगी और अभिनय से जुड़ गयी. इसके अलावा स्कूल, कॉलेज में भी मैंने हमेशा मंच पर कुछ न कुछ किया है. जर्नी वही से शुरू किया. मुझे जो स्क्रिप्ट पसंद आती है, उसमें किसी भी चरित्र में मैं काम कर सकती हूं. कई बार चुनौती तो कई बार पैसे के लिए भी काम करना पड़ता है, जो मुंबई में रहने के लिए बहुत जरुरी है.

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सवाल-पेरेंट्स की कौन सी बात जीवन में उतारना चाहती है?

मेरी माँ की स्प्रिट बहुत अच्छी है. क्लब जाना, मेंबर बनना, लिखना आदि सब करती है. इसके अलावा खाना बनाना, हम दोनों बहनों को पढ़ाना, संस्कृत में पी एच डी करना सब साथ-साथ करती रही. मैंने उन्हें कभी थकते हुए नहीं देख. मुझे उनसे ऐसी स्प्रिट और आत्मविश्वास को अपने जीवन में लाना चाहती हूं. मेरे पिता भी हमेशा चाहते थे कि हम दोनों वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर हो. कर्म को ही उन्होंने धर्म बताया है.

सवाल-कुछ पेरेंट्स अपनी इच्छाओं को बच्चों पर थोपते है, उनके लिए आप क्या कहना चाहती है?

बच्चों पर कभी भी पेरेंट्स को अपनी इच्छाओं को थोपना नहीं चाहिए, इससे बच्चे को किसी भी चीज में मन नहीं लगता. केवल डॉक्टर और इंजिनियर बनना ये पुरानी बात हो चुकी है. बच्चे की रूचि के हिसाब से जाने दे, इससे उसकी रूचि के बारें में पता लग सकेगा और उसकी ग्रोथ भी अच्छी होगी. अपने सपने में बच्चों को ढूढने के वजाय, उन्हें सपनों को देखने दें और थोड़ी सहयोग दे. पैरेंट्स की भूमिका इतनी ही होनी चाहिए. इससे बच्चे का भविष्य अच्छा होता है.

विराट से झगड़े के बाद हुआ सई का एक्सीडेंट, देखें वीडियो

स्टार प्लस के टीवी सीरियल इन दिनों टीआरपी चार्ट्स में धमाल मचाते नजर आ रहे हैं. वहीं मेकर्स भी सीरियल्स की कहानी में नया मोड़ लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. इसी बीच गुम है किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) के अपकमिंग एपिसोड में भी फैंस का दिल थमने वाला है. दरअसल, पाखी के कारण हुई विराट और सई की लड़ाई में नया मोड़ देखने को मिलेगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे.

विराट को भड़काती दिखी पाखी  

अब तक आपने देखा कि पाखी, सई और अंजिक्य का इस्तेमाल करके विराट को भड़काती है, जिसके चलते विराट, सई के दोस्त अजिंक्य पर हाथ उठा देता है. वहीं दोनों के बीच लड़ाई भी देखने को मिलती है. वहीं चव्हाण फैमिली में बवाल मच जाता है, जिसके कारण सई घर छोड़ कर चली जाती है. वहीं विराट भी सई के पीछे जाता है.

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सई का हुआ एक्सीडेंट

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि विराट, सई को अजिंक्य के साथ देखकर उसके चरित्र पर सवाल उठाता है, जिसके बाद वह घर से बाहर चली जाएगी. लेकिन विराट के सामने ही सई का एक्सीडेंट हो जाएगा. वहीं ये हादसा देखकर विराट टूट जाएगा और रोते-रोते सई को अस्पताल पहुंचाएगा. दूसरी तरफ पूरा चव्हाण परिवार भी अस्पताल पहुंच जाता है.

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खतरे में सई की जान

अस्पताल पहुंचाने के बावजूद अपकमिंग एपिसोड में विराट के सई की जान बचाने की कोशिश नाकामयाब होती नजर आएगी. दरअसल, पुलकित डॉक्टर से मिलकर पूरे परिवार को सई की हालत के बारे में बताते हुए कहेगा कि सई कोमा में जा सकती है या मर भी सकती है, जिसके सुनकर विराट के पैरों तले से जमीन खिसक जाएगी. वहीं पुलकित भी विराट को जिम्मेदार मानेगा और कहेगा कि सई की हालत का जिम्मेदार वह खुद है. अब देखना है कि क्या सई की जान बच जाएगी या पाखी का विराट से सई से दूर करने का सपना कामयाब हो जाएगा.

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सौतेली मां काव्या संग फ्लर्ट करते दिखा Anupamaa का बेटा समर, वीडियो वायरल

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupamaa) में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां पाखी के कारण समर और परितोष में लड़ाई देखने को मिली तो वहीं काव्या के वनराज और अनुपमा के रिश्ते पर सवाल उठाने से शाह निवास में हंगामा खड़ा हो गया. लेकिन हाल ही में सोशलमीडिया पर एक वीडियो वायरल हुई है, जिसमें समर अपनी सौतेली मां संग फ्लर्ट करते नजर आ रहे हैं. वहीं वीडियो देखने के बाद फैंस का मजेदार रिएक्शन देखने को मिल रहा है.

सेट पर मस्ती करती दिखी काव्या

सीरियल में भले ही इन दिनों तनाव का माहौल देखने को मिल रहा है, लेकिन औफस्क्रीन सीरियल के सितारे मस्ती करते नजर आ रहे हैं. दरअसल, रियल लाइफ में काव्या यानी मदालसा शर्मा सीरियल के सितारों के साथ वीडियो में नजर आती हैं. इसी बीच काव्या यानी मदालसा शर्मा अपने सौतेले बेटे समर यानी पारस कलनावत (Paras Kalnawat) के साथ मस्ती करती नजर आ रही हैं. वीडियो में पारस और मदालसा कोई मिल गया गाने पर डांस करते नजर आ रहे हैं, जिसके साथ ही मदालसा शर्मा ने फैंस को अनुपमा के सेट पर अपने फेवरेट पर्सन का नाम भी बताया है, जो और कोई नहीं समर यानी पारस कलनावत है.

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समर संग काव्या ने लगाए ठुमके

इस वीडियो के अलावा मदालसा शर्मा ने एक और वीडियो शेयर की है, जिसमें वह पारस कलनावत संग ठुमके लगाती नजर आ रही हैं. दरअसल, हाल ही में पानी पानी हो गई गाने पर मदालसा शर्मा डांस करती नजर आईं, जिसमें उनका साथ पारस कलनावत ने दिया है.

अनुपमा ने भी किया ये काम

 

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मदालसा शर्मा के अलावा अनुपमा यानी रुपाली गांगुली भी इन दिनों REELS फैंस के साथ शेयर कर रही हैं. वहीं इसमें उनका साथ बा और बापूजी देते नजर आ रहे हैं.

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ससुराल में पहली रसोई के 7 टिप्स

कोरोना की दूसरी लहर के कारण शादियों पर लगा ब्रेक अब कुछ कमजोर पड़ गया है और भले ही मेहमानों की उपस्थिति कम हो परन्तु शादियां अब होने लगीं हैं. शादी के बाद दुल्हन जब ससुराल आती है तो अनेकों रस्मों के साथ ही एक रस्म बहू की पहली रसोई की भी होती है जिसमें बहू अपने हाथों से ससुराल के सदस्यों के लिए खाना बनाती है. अक्सर नवविवाहिताओं को समझ नहीं आ पाता कि क्या ऐसा बनाया जाए जो सभी को पसन्द भी आये और आसानी से बन भी जाये. पहले जहां वधू से कोई एक  मीठी डिश बनवाई जाती थी वहीं अब पूरी थाली का चलन है. यदि आप वधू बनने वालीं हैं तो ये टिप्स आपके बहुत काम के हो सकते हैं-

1. डिशेज का चयन मौसम के अनुकूल करें, मसलन गर्मियों में छाछ, मॉकटेल्स, आइसक्रीम, सर्दियों में सूप और बारिश में पकौड़े आदि को शामिल करें.

2. परिवार के सदस्यों की उम्र को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है, यदि बुजुर्ग हैं तो मेन्यू में कुछ सादा और बच्चे हैं तो चायनीज या इटैलियन डिशेज को शामिल करें ताकि सभी की पसन्द का एक कम्पलीट मील तैयार हो सके.

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3. एक कहावत है कि खाने का प्रजेंटेशन ऐसा होना चाहिए कि उसे देखकर ही भूख जाग्रत हो जाये, इसलिए परोसने से पूर्व डिशेज को मेवा, हरे धनिए या क्रीम आदि से गार्निश करके आराम से परोसें ताकि खाद्य पदार्थ नीचे न गिरने पाए.

4. मेन्यू को तय करते समय रंग संयोजन का विशेष ध्यान रखें ताकि आपकी थाली स्वाद के साथ साथ देखने में भी सुंदर लगे. हरी सब्जियों, कश्मीरी लाल मिर्च और क्रीम आदि का प्रयोग करना उचित रहेगा.

5. आजकल मेक्सिकन, चाइनीज और इटैलियन व्यंजनों का जमाना है इसलिए आप इन्हें मायके से सीखकर जाइये ताकि इन्हें बनाकर आप वहां अपना प्रभाव जमा सकें.

6. खाना बनाते समय संतुलित मिर्च मसालों का प्रयोग करें ताकि सभी आसानी से खा सकें, साथ ही कोई भी नया प्रयोग करने से बचें. आप जो भी खाना बनाएं उसे प्यार से परोसे और परिवार के सदस्यों को आग्रह करके खिलाएं.

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7. खाना बनाते समय एप्रिन अवश्य पहनें अन्यथा खाद्य पदार्थों के अवशेष आपके कपड़ों पर लगकर उन्हें खराब तो करेंगे ही साथ ही बेवजह आपके सलीके से काम न कर पाने की दास्तां भी बयान कर देंगे.

Fashion Tips: चैक प्रिंट को ऐसे करें स्टाइल

चैक प्रिंट हमेशा फैशन में रहता है और कुछ लाइंस की मदद से ही पूरा फैशन गेम पलट जाता है. आपकी अलमारी में भी बहुत सारे ऐसे कपड़े जरूर होंगे जिनमें किसी न किसी प्रकार का चैक प्रिंट तो अवश्य होगा. यह बहुत ही वर्सेटाइल होता है मतलब आप इसे बहुत तरीकों में स्टाइल कर सकती हैं और यह लगभग आपके हर टॉप या बॉटम के साथ मैच कर जाता है. चैक प्रिंट की अलग अलग वैरायटी होती हैं और आज हम उनमें से 5 प्रकार के चैक प्रिंट के बारे में जानेंगे. इसके साथ ही आपको बताएंगे कि आप अपने मन पसंद चैक प्रिंट आउटफिट को किस प्रकार स्टाइल कर सकती हैं. आइए जानते है.

1. गिंघम चैक :

यह एक कॉटन फैब्रिक होता है और डाई किए हुए धागों को बुनकारी करके तैयार किया जाता है. यह स्टाइल 18 वी सदी में फ्रांस में पहली बार आया था और यह 60 के दशक में भी ट्रेंड में था.

2. ग्लेन प्लैड :

यह ऊनी धागे से बना होता है और इसे देखने पर आपको लगेगा मानो इसमें बड़े बड़े स्क्वेयर बने हुए है. यह आम तौर पर ब्लैक और व्हाइट या ब्राउन और व्हाइट पैटर्न के साथ ही देखने को मिलता है.

3. विंडो पेन चैक :

यह प्रिंट फॉर्मल होता है और इसमें दो मोटी मोटी और चौड़ी लाइंस होती हैं जो एक दूसरे को काटती है. इसमें आपको बस बॉक्स देखने को मिलते हैं.

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4. टार्टन चैक :

इस प्रकार का चैक रंग बिरंगा होता है और यह ऐसा प्रतीत होता है मानो दो लाइंस एक क्रिस क्रॉस पैटर्न बनाती चल रही हों. इसे ऊनी और सर्दियों के कपड़ों के लिए स्टाइल किया जाता था लेकिन आजकल इसे हर तरह के कपड़ों के साथ स्टाइल किया जाता है.

5. बफैलो चैक :

यह बड़े बड़े डिब्बे के आकार में होता है और दो अलग अलग रंग के धागों के द्वारा इसकी लाइन बनी होती हैं जो एक दूसरे को काटती है. इसे सबसे पहले स्कॉटलैंड में पहना गया था.

यह सारे चैक प्रिंट के प्रकार ही अब दुबारा से ट्रेंड में हैं और अगर आपके पास इनमें से एक भी नहीं है तो आपको जल्दी से खरीद लेना चाहिए.

चैक प्रिंट को कैसे स्टाइल करें?

1. लेयरिंग करें :

अगर आप कोई शॉर्ट ड्रेस पहन रही हैं जिसमें चैक प्रिंट है तो उसके ऊपर आप एक ब्लेजर या डेनिम जैकेट पहन सकती हैं.

2. को ओर्ड सेट :

आजकल बहुत सारे को ऑर्ड सेट में चैक प्रिंट चल रहा है और आप बहुत सारे ऐसे जंप सूट भी देख सकती हैं जिनमें चैक प्रिंट है और जो आपको फॉर्मल वाइब देंगे. इसके अलावा आप चैक स्प्लिट स्कर्ट के साथ चैक प्रिंट वाला टॉप भी पहन सकती हैं.

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3. स्टेटमेंट पीस :

अगर आप अंदर बहुत शॉर्ट को ओर्ड सेट पहन रही हैं या एक क्रॉप टॉप और शॉर्ट्स का कॉम्बो पहन रही हैं तो उसके ऊपर एक बहुत बड़ा चैक का ब्लेजर या कोट डाल सकती हैं जो आपके अंदर के पूरे कपड़ों को ढंक लेगा. लेकिन आपको इसे आगे से खुला रखना है और यह आपको एक स्टेटमेंट पीस वाली वाइब देगा.

इस साल चैक प्रिंट दुबारा से ट्रेंड कर रहा है इसलिए आप जैसे इसे स्टाइल करना चाहें वैसे कर सकती हैं क्योंकि यह लगभग हर आउटफिट के साथ मैच हो जाता है और आपको एक बहुत अच्छा लुक भी देता है.

इन 8 टिप्स से पाएं नेचुरल ग्लॉसी मेकअप लुक

बरसात के मौसम में महिलाएं ज्यादा मेकअप करना पसंद नहीं करती हैं क्योंकि पसीने और ह्यूमिडिटी के कारण सारा मेकअप बिगड़ जाता है और अधिक हैवी मेकअप के कारण गर्मी भी अधिक लगती है इसलिए वे चाहती हैं कि एक बहुत ही लाइट मेकअप लुक हो जो बहुत ग्लॉसी और नेचुरल लगे. आजकल सेलिब्रिटी से लेकर इनफ्लूएंसर तक हर कोई ग्लॉसी मेकअप कर रहा है और इसे करने के ट्यूटोरियल भी दे रहे हैं. इसलिए अगर आप भी एक ऐसा ही लुक पाना चाहती हैं तो आज आप बिल्कुल सही जगह पर आई हैं क्योंकि हम आज आपको जो टिप्स देने वाले हैं उनकी मदद से आप अपने चेहरे पर बहुत कम प्रोडक्ट्स की मदद से एक ग्लॉसी मेकअप लुक अचीव कर सकती हैं. आइए जानते हैं इन टिप्स के बारे में.

1. प्राइमर के साथ अपनी स्किन को प्रिपेयर करें :

अगर आप अपने मेकअप को लंबे समय तक टिकाना चाहती हैं और एक परफेक्ट बेस चाहती हैं तो सबसे पहले अपनी स्किन को प्रिपेयर कर लें. इसके लिए आप एक अच्छे से प्राइमर का प्रयोग कर सकती हैं जो आपके पोर्स को कम कर दे और आपकी स्किन को स्मूथ कर दे.

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2. लिक्विड फाउंडेशन की बहुत लाइट लेयर अप्लाई करें :

ग्लॉसी मेकअप लुक पाने के लिए आपको लिक्विड फाउंडेशन का प्रयोग करना चाहिए और बहुत ही लाइट लेयर यानी कम प्रोडक्ट का प्रयोग करें. अगर आपको पिगमेंटेशन वाली जगह पर अधिक कवरेज की जरूरत है तो वहां केवल एक डॉट ही लगाएं और उसे एक ब्रश की मदद से ब्लेंड कर लें.

3. कंसीलर का प्रयोग करें :

अपने नाक के आस पास, होंठों के ऊपर और डार्क सर्कल्स को. छुपाने के लिए थोड़े से कंसीलर का प्रयोग करें और इसके प्रयोग से आपके यह प्वाइंट थोड़े से हाईलाइट भी हो जाते हैं जिस कारण आपको एक ग्लॉसी लुक मिलता है.

4. आईब्रो का गैप भरने के लिए ब्राउन पेंसिल का प्रयोग करें :

अगर आप अपनी आईब्रो को और अधिक डिफाइन करना चाहती हैं और उनके बीच का गैप भरना चाहती हैं तो एक ब्रॉउन पेंसिल का प्रयोग कर सकती हैं और इसे ब्लेंड करने के लिए स्पूली का प्रयोग करें.

5. क्रीमी हाईलाइटर का करें प्रयोग :

अगर आप अपने उभरे हुए पार्ट को थोड़ा अधिक हाईलाइट करना चाहती हैं तो अपनी उंगलियों पर थोड़ा सा हाईलाइटर लें और उसे अपने गालों पर , नाक पर और थोड़ा सा माथे पर लगा लें. यह आपको एक बहुत ही प्राकृतिक लुक देता है इसलिए अधिक प्रोडक्ट का प्रयोग न करें.

6. मेकअप को सेट करने के लिए ट्रांसलूसेंट पाउडर का प्रयोग करें :

अगर आप अपने मेकअप को सेट करना चाहती हैं और नहीं चाहती की यह बाद में ऑक्सीडाइज हो जाए तो उसके लिए ट्रांसलूसेंट पाउडर का प्रयोग करें. यह आपके सारे बेस मेकअप को सेट कर देगा.

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7. लिप स्क्रब का प्रयोग करें :

अगर आपके होंठ फटे हुए हैं या चैप्पी लग रहे हैं तो वहां से डेड स्किन सेल्स निकलने के लिए और सॉफ्ट लिप्स पाने के लिए लिप स्क्रब का प्रयोग करें.

8. एक क्रीमी लिप टिंट का प्रयोग करें :

आप ज्यादा डार्क शेड की लिपस्टिक की बजाए एक लिप टिंट का प्रयोग कर सकती हैं जो आपके होंठों को दूर से ही चमकते हुए दिखायेगा और इसका प्रयोग आप ब्लश के रूप में भी कर सकती हैं.

गर्मियों में हल्का मेकअप करने के लिए इन सभी टिप्स का प्रयोग करना बहुत आवश्यक होता है नहीं तो आप का सारा मेकअप आपके पसीने के साथ ही बह जाएगा.

उपवास के जाल में उलझी नारी

धर्म के नाम पर रखे जाने वाले कोई भी व्रत या उपवास से आज तक किसी का भला नहीं हुआ है . हां व्रत , उपवास के दौरान होने वाली कथा पूजन से धर्म के दुकानदारों की मौज जरूर होती रही है . इन कथा पूजन से न केवल  उन्हे दान दक्षिणा मिलती है , बल्कि पकवान युक्त मुफ्त का खाना भी मिलता है . हर धर्म के  पंडित , मौलवी , पादरी यह बात अच्छी तरह समझ गये हैं कि महिलाओं को धर्म का भय आसानी से दिखाया जा सकता है .यही बजह है कि धर्म के ये ठेकेदार उन्हें पाप का भय दिखाकर व्रत या उपवास में उलझाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं . आशाराम , रामपाल और राम रहीम जैसे  धर्मगुरू महिलाओं को धार्मिक कर्मकांड , कथा प्रवचन , व्रत उपवास का झांसा देकर उनका यौन शोषण करने से भी नहीं हिचकते.

धार्मिक कथा पुराणों और पंडे पुजारियों की बातों का असर भारतीय नारी के दिलो दिमाग पर कुछ इस तरह हावी है कि वे साल के बारह महिने संतोषी माता का व्रत,महालक्ष्मी व्रत ,संतान सप्तमी ,हरछठ ,दुर्गा पूजाजैसेकई तरह के व्रत उपवास के जाल में फंसी रहती है .इन्ही व्रत उपवासों में से एक व्रत है करवा चौथ का व्रत . दकियानूसी परम्पराओं के नाम पर मनाया जाने वाला करवा चौथ का पर्व सुहागनों के लिये भले ही सार्वजनिक तौर पर अपने आप को महिमामंडित करने का हो ,लेकिन अविवाहित ,परित्यक्ता,तलाकशुदा और बिधवा महिलाओं को अपमानित करने वाला पर्व रहता है.

मध्यप्रदेश की पिछली भाजपा सरकार में मंत्री रही कुसुम महदेले की करवा चौथ पर्व पर सोशल मीडिया पर की गई एक टिप्पणी में उन्होने लिखा कि हिन्दुस्तान में हिन्दू महिलायें अपने पति या पुत्रों की सलामती या उनकी लंबी आयु के लिये ब्रतरखती हैं ,क्या सारे पुरूष इतने कमजोर हो गये हैं?. उन्होने इस टिप्पणी के माध्यम से समाज पर सबाल उठाते हुये कहा कि पुरूष सत्तात्मक समाज में यैसा कोई व्रत नहीं है जो पुरूष महिलाओं के भले के लिये करें .जितने व्रत उपवास बनाये गये हैं वे सब महिलाओं को पुरूष की सलामती के लिये रखने पड़ते हैं . हरितालिका व्रत से लेकर करवा चौथतक सब पति की लंबी आयु के लिये रखे जाते हैं .

करवा चौथ का वैसे तो ज्यादातर उत्तर भारत में प्रचलित है . शादी शुदा महिलायें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए पूरे दिन व्रत रखती हैं. इस दिन वह सुबह से रात तक चाँद निकालने तक कुछ नहीं खाती और पानी भी नहीं पीती. रात को चाँद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत समाप्त करती हैं.हालाकि दक्षिण भारत में इस प्रकार के व्रत या त्यौहार को महत्व नहीं दिया जाता है .करवा चौथ के व्रत की कहानी अंधविश्वास के साथ एक भय भी उत्पन्न करती है कि करवाचौथ का व्रत न रखने अथवा व्रत के खंडित होने से पति के प्राण खतरे में पड़ सकते हैं.व्रत उपवास की ये परम्परायें महिलाओं को अधविश्वास की बेड़ियों में जकड़े रहने को प्रेरित करती हैं

क्या है करवा चौथ व्रत की कथा

फुटपाथों पर बीस बीस रूपयो में विकने वाली करवा चौथव्रत कथा की पुस्तक में बताया गया है कि एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी. सभी सातों भाई अपनीबहन से इतनाप्यार करते थे कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद मेंस्वयं खाते थे एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी.शाम को भाई जब अपनाकाम धंधा बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी-सभी भाईखाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन नेबताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा कोदेखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है.
सबसेछोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एकदीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है- दूर से देखने पर वह चतुर्थी का चांद जैसे प्रतीतहोता है .

बहनउसे चांद समझकर अर्घ्‍य देकरखाना खाने बैठ जाती है.वहपहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है. दूसरा टुकड़ा डालतीहै तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने कीकोशिश करती है तो पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है.उसकीभाभी उसे बताती है कि करवा चौथ काव्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं.

करवानिश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपनेसतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी.वह पूरे एक साल तक अपने पति केशव के पास बैठी रहती है. एकसाल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है. उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रतरखती हैं. जब भाभियांउससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी सेअपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसाआग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चलीजाती है.इसप्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है.यह भाभी उसे बताती है कि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा थाअतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित करसकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति कोजिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना.ऐसा कहकर वह चली जाती है.सबसे अंत में छोटी भाभी आती है. करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है.इसे देख कर वा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है.यहदेख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है.करवा का पति तुरंत उठ बैठता है.

करवा चौथ की इस काल्पनिक कहानी को पढकर अंधभक्त समाज को कैसे भरोसा हो जाता है कि अंगुली चीरने से रक्त की जगह अमृत निकलता है या मरा हुआ आदमी एक साल बाद फिर से कैंसे जीवित हो सकता है ?अपने आपको आधुनिक मानने वाली महिलायें कैंसे इस प्रकार की दकियानूसी कथा कहानियां पर विश्वास कर लेती हैं यह समझ से परे है .

बैंक में काम करने वाली सोनाली शर्मा कहती हैं कि मुझे इस तरह के व्रत उपवास पसंद नहीं है ,लेकिन आफिस की अन्य सहकर्मी और कालोनी में रहने वाली महिलायें इस व्रत को रखती हैं तो मजबूरन मुझे भी व्रत  रखना पड़ता है .क्योंकि यैसा न करने पर लोग समझते हैं कि उन्हे अपने पति की फिक्र ही नहीं है . कुछ महिलायें इस प्रकार के व्रत को पति पत्नी के बीच प्यार के रिश्ते की बकालत करते हुये कहती हैं कि हमारे साथ पति भी यह व्रत रखते हैं ,उनका कहना है कि इस व्रत के बहाने पति से अच्छी साड़ी या ज्वेलरी का गिफट भी मिल जाता है . परन्तु गांव देहात की अधिकतर महीलायों ने इस व्रत को मजबूरी बताया हैं.गांव में रहने वाली सरकारी स्कूल की टीचर अनुराधा बताती हैं कि वो इस प्रकार के कोई व्रत नहीं रखती थी . दो साल पहले उनके पति का मोटर वाईक से स्लिप होने से एक पैर में फे्रक्चर हो गया था . उनकी सास ने उससे कहा कि पति की सलामती के लिये करवा चौथव्रत रखा कर तो मजबूरन उसे रखना पड़ा . उनका मानना हैं कि यहपारंपरिक और रूढ़िवादीव्रत हैं जिसे घर के बड़ो के कहने पर रखना पड़ता हैं क्योंकि कल को यदि उनके पति के साथ संयोग से कुछ हो गया तो उसे हर बात का शिकार बनाया जायेगा.

प्रश्न उठता है कि क्या पत्नी के भूखे प्यासे रहने से पति दीर्घायु या स्वस्थ्य हो सकता है ?यदि सच देखा जाये तो समाज में अनगिनत महिलायें यैसी हैं जो इन व्रत उपवासों को रखने के वावजूद भी अपने पति को खोकर विधवा हो चुकी हैं . सुहागनों के लिये बनाये गये जितने पर्व त्यौहार में महिलायें व्रत उपवास रखती हैं ,इसके बावजूद भी विधवा महिलाओं की संख्या हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा है .दिन भर बिना दाना ,पानी के रहना भी एक प्रकार का शारीरिक अत्याचार ही है . धर्म का मौज करने वाले दुकानदारों ने इस प्रकार के व्रतों की काल्पनिक कथायें गढकर इस देश की महिलाओं को भावनात्मक रूप से पाप पुण्य के जाल में फंसाकर यैसे पर्व त्यौहारों को बढ़ावा देने की कोशिश की है. वास्तव में इस पकार के व्रत त्यौहार आज के समय में निरर्थक ही है.

व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो पति की सलामती की चिंता उन्ही महिलाओं को ज्यादा रहती है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और पति के संरक्षण में रहती हैं . उन्हे हर वक्त यही डर रहता है कि पति के न रहने से वे अपना और बच्चों का पालन पोषण कैसे करेंगी . मु्फ्त की दक्षिणा वटोरने वाले पंडे इन महिलाओं को यही भय दिखाकर व्रत या उपवास के लिये उकसाते हैं . हमारी पौराणिक कथाये भी यही कहती हैं कि सती ,सीता ,उर्मिला,द्रोपदी और अहिल्या जैसी नारियां पति के संरक्षण में रहकर उनके हर एक आदेश को गुलाम बनकर स्वीकार करती रहीं . जबकि शूर्पणखा और हिडम्बा जैसी औरतें किसी के संरक्षण की बजाय अपने बलबूते पर जंगलों में अकेली रहती थी . आज भी देश विदेश में कामयाबी का परचम फहरा रही हजारों महिलायें वहीं हैं ,जिन्होने इन व्रत ,उपवासों के चोचलों से बाहर निकलकर अपनी योग्यता ,लगन और मेहनत से सफलता प्राप्त की है .

इन नये नये व्रत , पर्व और त्यौहारों को बढ़ावा देने में हमारे टीवी चैनलों के धारावाहकों की भी खास भूमिका है .महिलाओं के इन व्रत उपवासों पर आधारित सीरियलों ने निम्न मध्यम वर्ग की महिलाओं को अपने जाल में फांस लिया है.चिंता का विषय ये है कि उच्च वर्ग की महिलाओं का यह आधुनिक वर्ग करवा चौथ के बाजारीकरण से प्रभावित हो कर ज्यादा ढकोसले बाज हो गया है  .करवा चैथ के पूर्व की पार्टियां ,शापिंग ,और सजने संवरने के नाम पर व्यूटी पार्लरों में लंबी रकम खर्च कर दिन भर निर्जला उपवास कर अपने शरीर को कष्ट देकर सेहत के साथ खिलवाड़ ही है .

पुरूषवादी सोच आज भी महिलाओं के प्रति बदली नहीं है. निम्न मध्यम वर्ग के साथ पढ़े लिखे उच्च वर्ग मे भी महिलाओं के शोषण और उत्पीड़न की कहानियां आये दिन अखवारों की सुर्खियां बनती रहती हैं . समाज में महिलाओं को मानसिंक और शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है . वास्तव में इस तरह के उपवास से न तो कोई देवी देवता प्रसन्न होते हैं और न ही कोई दीर्घायु होता हैं .

महिलाओं को व्रत ,उपवास या कथा पुराण में पंडे पुजारियों को मौज का अवसर देने की बजाय अपने पति या परिवार के कामकाज में सहभागी बनकर अपने आपको आर्थिक रूप से सुदृढ बनाने पर जोर देना चाहिये . आर्थिक मजबूती से ही पति और पूरा परिवार सलामत रह सकता है .

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Travel Special: भारत के इस महल में हैं 1000 दरवाजें

किसी महल की यात्रा हमें उस समय में ले जाती है जब शाही खानदानों का बोलबाला था. भारत में तो कई ऐसे महल आज भी मौजूद हैं पर कोई समय के हाथों बर्बाद हो रहा है तो किसी पर सरकार निगेहबान है. इन्हीं सबके बीच शाही ठाठ-बाट के साथ आज भी अपनी ऐतिहासिक चमक को लिए हुए पश्चिम बंगाल में स्थापित हजारद्वारी महल खड़ा है.

जैसा कि आपको नाम से ही पता चल रहा होगा कि हजारद्वारी ऐसा महल है जिसमें हजार दरवाजे हैं. इस महल का निर्माण 19वीं शताब्दी में नवाब निजाम हुमायूं जहां के शासनकाल में हुआ जिन्होंने बंगाल. इनका राज्य बिहार और ओड़िशा तीनों तक फैला हुआ था. पुराने जमाने में इसे बड़ा कोठी के नाम से जाना जाता था. यह महल पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में स्थित है जो कभी बंगाल राजधानी हुआ करती थी. इस कृति को प्रसिद्ध वास्‍तुकार मैकलिओड डंकन द्वारा ग्रीक (डोरिक) शैली का अनुसरण करते हुए बनवाया गया था.

महल को कौन सी चीजें खास बनाती हैं?

– भागीरथी नदी के किनारे बसे इस तीन मंजिले महल में 114 कमरे और 100 वास्तविक दरवाजे हैं और बाकि 900 दरवाजे आभासी(हूबहू मगर पत्थर के बने हुए हैं). इन दरवाजों की वजह से इसे हजारद्वारी महल कहा जाता है.

– महल की रक्षा के लिए ये दरवाजे बनवाये गए थे.

– दरवाजों की वजह से हमलावर भ्रमित हो जाते थे और पकड़े जाते थे.

– लगभग 41 एकड़ की जमीन पर फैले हुए इस महल में नवाब अपना दरबार लगाते थे.

– अंग्रेजों के शासनकाल में यहां प्रशासनिक कार्य भी किये जाते थे.

– इस महल का इस्तेमाल कभी भी आवासीय स्थल के रूप में नहीं किया गया.

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महल के दीवार को निजामत किला या किला निजामत कहा जाता है. महल के अलावा परिसर में निजामत इमामबाड़ा, वासिफ मंजिल, घड़ी घर, मदीना मस्जिद और बच्चावाली तोप भी स्थापित हैं. 12-14 शताब्दी में बनी इस 16 फीट की तोप में लगभग 18किलो बारूद इस्तेमाल किया जा सकता था. कहते हैं कि इसे सिर्फ एक ही बार इस्तेमाल किया गया है और उस समय धमाका इतना बड़ा और तीव्र हुआ था कि कई गर्भवती महिलाओं ने समय से पूर्व ही बच्चों को जन्म दे दिए था, इसलिए इसे बच्चावाली तोप कहते हैं.

भागीरथी नदी के तट से लगभग 40 फीट के दूरी पर बने इस महल की नींव बहुत गहरी रखी गई थी, इसलिए आज भी यह रचना इतनी मजबूती से खड़ी है. महल की ओर जाती भव्य सीढ़ियां और भारतीय-यूरोपियन शैली इस संरचना के अन्य मुख्य आकर्षण हैं.

महल का संग्रहालय

यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का सबसे बड़ा स्थल संग्रहालय है. सन् 1985 में इस महल के बेहतर परिक्षण के लिए इसे भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण को सौंप दिया गया. यह संग्रहालय भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण का सबसे बड़ा स्‍थल संग्रहालय माना जाता है और इसमें बीस दीर्घाएं प्रदर्शित हैं जिनमें 4742 पुरावस्‍तुएं मौजूद हैं जिनमें से जनता के लिए 1034 पुरावस्‍तुएं प्रदर्शित की गई हैं.

पुरावस्‍तुओ के संग्रह में विभिन्‍न प्रकार के हथियार, डच, फ्रांसिसी और इतालवी कलाकारों द्वारा बनाए गए तैल चित्र, संगमरमर की मूर्तियां, धातु की वस्‍तुएं, चीनी मिट्टी और गचकारी की मूर्तियां, फरमान, विरल पुस्‍तकें, पुराने मानचित्र, पाण्‍डुलिपियां, भू-राजस्‍व के रिकॉर्ड, पालकी आदि शामिल हैं जिनमें से अधिकतर 18वीं और 19वीं शताब्‍दियों से सम्‍बंधित हैं.

इस संग्राहलय में पर्यटक 2700 से अधिक हथियारों को देख सकते हैं. इन हथियारों में नवाब अलीवर्दी खान, सिराजुद्दौला और उनके दादाजी की तलवारें प्रमुख हैं. यहां घूमने के बाद पर्यटक विन्टेज कारों का अद्भुत संग्रह भी देख सकते हैं. इन कारों का प्रयोग शाही घराने के सदस्य किया करते थे.

संग्राहलय और पैलेस देखने के बाद पर्यटक यहां पर बने पुस्तकालय में भी घूमने जा सकते हैं. पुस्तकालय में घूमने के लिए पर्यटकों को पहले विशेष अनुमति लेनी पड़ती है. अकबरनामा की मूल प्रति भी यहीं रखी हुई है.

महल संग्रहालय के पुरावशेष में शाही परिवार के कई सामान मौजूद हैं, जिनमें दरबार हॉल में लगा हुआ खूबसूरत झूमर भी शामिल है. यह झूमर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा झूमर है, पहला बकिंघम महल में है. यह झूमर नवाब को रानी विक्टोरिया द्वारा तोहफे के रूप में भेंट किया गया था.

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संग्रहालय की गैलरियों में शस्त्रागार विंग, राजसी प्रदर्शनी, लैंडस्केप गैलरी, ब्रिटिश पोर्ट्रेट गैलरी, नवाब नाज़िम गैलरी, दरबार हॉल, समिति कक्ष, बिलबोर्ड कक्ष, पश्चिमी ड्राइंग कक्ष और धार्मिक वस्तुओं वाली गैलरी शामिल हैं. इस महल को देखने के लिए कुछ प्रवेश शुल्क भी निर्धारित है. शुक्रवार के दिन यह महल पर्यटकों के लिए बंद रहता है.

यहां आने का सही समय

महल के भ्रमण के लिए सबसे अच्छा समय सितम्बर से मार्च तक का महीना है.

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