लाइलाज नहीं थाइराइड की बीमारी

40 साल की सुधा का वजन अचानक बढ़ने लगा, किसी काम में उसका मन नहीं लगता था रह-रहकर उसे घबराहट होती थी, उसने डाइट शुरू कर दिया, लेकिन उसका वजन कम नहीं हो रहा था. परेशान होकर उसने अपनी जांच करवाई और पता चला कि उसे थाइराइड है. दवाई लेने के बाद वजन और घबराहट दोनों कम हुआ. असल में थाइराइड की बीमारी महिलाओं में अधिक होती है. 10 में 8 महिलाओं को ये बीमारी होती है, लेकिन महिलाओं में इसे लेकर जागरूकता कम है. इसलिए इसे पकड़ पाने में मुश्किलें आती है और रोगी को सही इलाज समय पर नहीं मिल पाता.

इस बारें में थाइराइड एक्सपर्ट डा शशांक जोशी कहते है कि यहाँ हम हाइपोथायराइडिज्म के बारें में बात कर रहे है,क्योंकि इसमें ग्लैंड काम करना बंद कर देती है.जिसका सीधा सम्बन्ध स्ट्रेस से होता है. इतना ही नहीं इस बीमारी का सम्बन्ध हमारे औटो इम्युनिटी अर्थात सेल्फ डिस्ट्रक्सन औफ थाइराइड ग्लैंड से जुड़ा हुआ होता है, जो तनाव की वजह से बढती है. आज की महिला अधिकतर स्ट्रेस से गुजरती है, क्योंकि उन्हें घर के अलावा वर्कप्लेस के साथ भी सामंजस्य बैठाना पड़ता है जो उनके लिए आसान नहीं होता. ये सभी तनाव थाइराइड को बढ़ाने का काम करती है, क्योंकि इसके बढ़ने से एंटी बौडी तैयार होना बंद हो जाती है. इसके लक्षण कई बार पता करने मुश्किल होते है, लेकिन कुछ लक्षण निम्न है जिससे थाइराइड का पता लगाया जा सकता है,

  • मोटापे का बढ़ना,
  • थकान महसूस करना,
  • काम में मन न लगना,
  • केशों का झरना,
  • त्वचा का सूखना,
  • मूड स्विंग होना,
  • किसी बात पर चिड़चिड़ा हो जाना,
  • अधिक मासिक धर्म का होना,
  • किसी बात को भूल जाना आदि सभी इसके लक्षण है.

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ऐसा देखा गया है कि सर्दियों में थाइराइड अधिक बढ़ जाता है, इसलिए इस मौसम में रोगी को जांच के बाद नियमित दवा लेनी चाहिए. थाइराइड हार्मोन हमारे शरीर की मेटाबोलिज्म प्रक्रिया और एनर्जी को चार्ज करती रहती है, इसलिए अगर शरीर कोशिकाए सही तरह से चार्ज नहीं होगी, तो व्यक्ति सुस्त और हमेशा सोने की कोशिश करता है और ये समस्या अधिकतर ‘एक्सट्रीम क्लाइमेट’ वाले जगहों में होता है. ये बीमारी होने के बाद आयोडीन युक्त नमक लेना सबसे जरुरी होता है.

अधिकतर लोगों को जिन्हें हाइपोथायराइडिज्म की शिकायत है उनका ग्लैंड काम करना बंद कर देती है और उनकी समस्या धीरे-धीरे बढती जाती है, लेकिन दवा के नियमित सेवन से इस बीमारी से बचा जा सकता है.

थाइराइड हर उम्र के व्यक्ति को हो सकती है. जन्म से लेकर किसी भी उम्र में ये बीमारी हो सकती है. इसके होने से महिला इनफर्टिलिटी की भी शिकार हो सकती है. मोटापे के अलावा महिला ह्रदय रोग की भी शिकार हो सकती है.

कोई भी एन्द्रोक्रोनोलोजिस्ट डा.इस बीमारी का इलाज कर सकता है. इसमें मुख्यतः खून की जांच करनी पड़ती है. जिसमें टी3 टी4 और टीएसएच होता है. एक बार इसका पता लगने पर साल में दो बार खून की जांच करवाएं ताकि दवा का असर पता चलता रहे.

हाइपोथायराइडिज्म के तीन प्रकार होते हैं

-प्राइमरी, जिसमें जहाँ थाइराइड ग्लैंड में बीमारी है,

-सेकेंडरी में पिट्युटरी ग्लैंड में टीएस एच रस बनता है वहां कई बार ट्यूमर आ जाता है, जो एक बिलियन में  केवल एक व्यक्ति को ही होता है,

–  पिट्युटरी ग्लैंड,हाइपोथेलेमस के द्वारा कंट्रोल किया जाता है,जो टी आर एच बनाती है. उसे टरशियरी कहते है.

केवल टी एस एच की जांच से ही थाइराइड का पता लगाया जा सकता है. 8 से लेकर 10 तक की मात्रा होने पर डाक्टर की सलाह लेकर दवा शुरू करना जरुरी होता है. इसके साथ ही अगर कोलेस्ट्राल की मात्रा है, तो दवा शुरू कर लेनी चाहिए. इसके रिस्क फैक्टर निम्न है-

-अगर घर में किसी को थाइराइड की बीमारी हो खासकर मां, बहन या नानी तो भी अगली पीढ़ी को ये बीमारी 80 प्रतिशत होने के चांसेस होते है.

-ये वंशानुक्रम में चलती है.

-80 प्रतिशत ये महिलाओं को और 20 प्रतिशत पुरुषों को होती है.

-पुरुषों में जो अधिकतर धूम्रपान करते है, उन्हें थाइराइड हो सकता है, क्योंकि ये थाइराइड को ट्रिगर करता है.

डा. जोशी आगे कहते हैं कि लाइफस्टाइल को बदलने से थाइराइड की वजह से होने वाले मोटापे को कुछ हद तक काबू में किया जा सकता है,लेकिन थाइराइड की दवा लेना हमेशा जरुरी होता है. ये मिथ है कि मेनोपोज के बाद थाइराइड होता है. दरअसल तब ये पता चलता है कि महिला में थाइराइड है.

डाईबेटोलोजिस्ट डा.प्रदीप घाटगे कहते है कि थाइराइड के मरीज पिछले 10 सालों में दुगुनी हो चुकी है. इसमें कोई खास परिवर्तन शरीर में नहीं आने की वजह से आसानी से इसे समझना मुश्किल होता है. अगर समय पर जांच न हो पाय, तो रोगी एक्सट्रीम कोमा में चला जाता है. ये अधिकतर हाइपोथायराइडिज्म में होता है. इस लिए जब भी इसके लक्षण दिखे, तुरंत जांच करवा लेनी चाहिए.

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जिसमें रोगी का वजन कम होता जाता है, उसे हाइपरथायराइडिज्म कहते है. ये बीमारी अधिक खतरनाक होती है,क्योंकि इसमें रोगी के हार्ट पर उसका असर होता है.

थाइराइड होने पर निम्न चीजों को खाने से परहेज करें,

– पत्ता गोभी, फूल गोभी, ब्रोकोली, सोयाबीन और स्ट्राबेरी और नान वेज में क्रेबस, शेलफिश न खाएं,

– समय से खाएं, नियम से खाए.

फैशन के मामले में किसी से कम नही हैं अनुज कपाड़िया की रियल लाइफ ‘अनुपमा’

सीरियल अनुपमा इन दिनों टीआरपी चार्ट्स में धमाल मचा रहा है, जिसका श्रेय हाल ही में शो में नई एंट्री अनुपमा के खास दोस्त अनुज कपाड़िया यानी गौरव खन्ना की एंट्री के कारण हुआ है. वहीं सोशलमीडिया पर गौरव खन्ना की फोटोज वायरल हो रहे हैं, जिसमें वह अपनी रियल लाइफ अनुपमा यानी वाइफ आकांक्षा चमोला के साथ नजर आ रहे हैं.

एक्ट्रेस रह चुकीं आकांक्षा चमोला फैशन के मामले में काफी बोल्ड और खूबसूरत हैं, जिसका अंदाजा सोशलमीडिया को देखकर लगाया जा सकता है. आइए आपको दिखाते हैं उनके खूबसूरत फैशन की झलक…

हौट लुक में जीतती हैं फैंस का दिल

 

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सीरियल स्वरागिनी से सुर्खियां बटोर चुकीं एक्ट्रेस आकांक्षा चमोला काफी फैशनेबल हैं, उनका हर लुक फैंस को काफी पसंद आता है. ड्रैसेस में हौट लुक में नजर आनेवाली आकांक्षा काफी खूबसूरत लगती हैं. उनका एक से बढ़कर एक लुक फैंस के बीच वायरल होता रहता है.

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 इंडियन लुक में भी लगती हैं खूबसूरत

 

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वेस्टर्न लुक में नजर आने वाली आकांक्षा चमोला का लुक फैंस के बीच काफी पौपुलर हैं. सीरियल स्वरागिनी में परिणीता के किरदार में इंडियन लुक में नजर आती थीं, जिसमें उनके इंडियन लुक काफी सुंदर लगते थे. उनका लुक सोशलमीडिया पर काफी वायरल हुआ था.

हस्बैंड के साथ भी खूबसूरत लगता है लुक

 

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अनुपमा एक्टर गौरव खन्ना के साथ भी आकांक्षा चमोला का लुक काफी स्टाइलिश लगता है. वेस्टर्न हो या इंडियन हर लुक में वह पति के साथ कदम से कदम मिलाए नजर आती हैं. फैंस इसे काफी पसंद करते हैं.

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हौट लुक की होती हैं तारीफें

 

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आकांक्षा चमोला के सोशलमीडिया के औफिशियल अकाउंट पर हौट फोटोज को देखकर फैंस उनकी काफी तारीफें करते हैं. साथ ही सोशलमीडिया पर फोटोज वायरल होती हैं.

तेल मालिश के हैं फायदे अनेक, आप भी जानिए

बालों में आजकल कैमिकल युक्त उत्पादों का इतना ज्यादा प्रयोग किया जाता है कि वे कमजोर हो जाते हैं और शाइन नहीं करते. ऐसे में अगर बालों को स्वस्थ व मजबूत बनाए रखने के लिए तेल लगाने का सुझाव दिया जाए तो जवाब मिलता है कि तेल तो दादीनानी के जमाने में लगाया जाता था. अब भला कौन तेल लगाता है?

मगर क्या आप को पता है कि तेल बालों को घना बनाता है, उन में चमक लाता है? यही नहीं, स्कैल्प को सूखा भी नहीं होने देता और त्वचा को बैक्टीरिया और फंगल इन्फैक्शन से भी दूर रखता है. यानी तेल से बालों को पौष्टिक तत्त्व मिलते हैं. इसलिए अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ समय निकाल कर बालों की तेल से मालिश जरूर करें. नियमित रूप से अगर बालों में तेल से मालिश की जाए, तो इस के अनेक फायदे होते हैं. मसलन: 

अगर बालों की जड़ें सूखी हैं तो तेल की मालिश उन्हें ताकत देती है और नए बाल निकलने में मदद करती है.

तेल बालों को टूटने व उलझने से रोकता है, साथ ही तेल से सिर की मालिश करने से सिर का रक्तसंचार सुचारु रहता है.

बालों में सही मात्रा में तेल न लगाने से बाल दोमुंहे होने लगते हैं. पर्याप्त तेल लगाने से यह समस्या दूर हो जाती है.

मालिश से न केवल बाल स्वस्थ होते हैं, बल्कि शरीर को भी लाभ पहुंचता है. रात को अच्छी नींद आती है. दिमाग भी शांत होता है.

तेल से बालों में नमी आती है. वे मुलायम व चमकदार बनते हैं. जब भी बालों में तेल लगाएं तो इस बात का ध्यान रखें कि एक ही बार में पूरे बालों में तेल न लगाएं वरन सैक्शन बना कर तेल लगाएं. ऐसा करने से तेल स्कैल्प तक अच्छी तरह पहुंचता है.

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बालों और सिर की त्वचा के लिए हौट स्टीम बाथ लेना भी फायदेमंद होता है. गरम तेल से सिर की त्वचा की मसाज करें और इस के बाद कुनकुने पानी से भीगे तौलिए को कुछ मिनट के लिए सिर पर लपेटें. ऐसा करने से सिर की त्वचा के रोमछिद्र खुल जाते हैं और बाल चमकदार बनते हैं.

तेल बालों की ग्रोथ के लिए जरूरी है. इस की मालिश से आप के सिर की कोशिकाएं काफी सक्रिय हो जाती हैं, जिस से बाल जल्दी लंबे होते हैं.

अगर आप की घने और सिल्की बालों की चाह है तो सरसों के तेल में दही मिला कर लगाएं. इस से बाल बढ़ेंगे भी और घने भी होंगे.

रात में सोने से पहले या फिर हफ्ते में कम से कम 2 बार सिर की मालिश जरूर करें. इस से बालों को तो पोषण मिलता ही है, तनाव भी कम होता है.

कौन सा तेल फायदेमंद

आज मार्केट में कई तरह के खुशबूदार तेल उपलब्ध हैं. उन से दूर रहें. प्राकृतिक तेल से ही मालिश करें. सिर की मसाज के लिए जैतून का तेल, नारियल तेल, तिल का तेल, बादाम तेल, भृंगराज तेल, नीम का तेल, जोजोबा, चमेली व पेपरमिंट तेल और मेहंदी का तेल आदि अच्छे विकल्प हैं. यदि आप नियिमित हेयरकलर कराती हैं तो जोजोबा का तेल आप के लिए बेहतरीन विकल्प है. इस से क्षतिग्रस्त रंगीन और रूखे बालों की रिपेयर होती है.

अपने बालों की जरूरत के अनुसार तेल का चुनाव ऐसे करें:

नौर्मल हेयर: इस तरह के बालों की कुदरती चमक बनाए रखने के लिए इन की आंवले या बादाम के तेल से मसाज करें.

ड्राई हेयर: रूखे बालों के लिए नारियल, तिल, सरसों और बादाम का तेल उपयुक्त है. सप्ताह में एक बार नारियल के दूध से बालों को धोना भी फायदेमंद है.

औयली हेयर: एक खास तरह का सीबम निकलने की वजह से बाल तैलीय दिखते हैं. ऐसे बालों में तिल या जैतून का तेल लगाने से फायदा मिलता है.

डैंड्रफ हेयर: स्कैल्प में रूसी हो जाने के कारण बालों की ग्रोथ भी रूक जाती है और वे कमजोर भी हो जाते हैं. इस समस्या से बचने के लिए टीट्री औयल और भृंगराज तेल का इस्तेमाल करें.

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कैसे करें मसाज: जब सिर की त्वचा सेहतमंद रहेगी, तभी बाल मजबूत और घने होंगे. स्वस्थ बालों के लिए सब से जरूरी है कि मसाज सही तरीके से की जाए. बालों में तेल लगाने से पहले उसे हलका कुनकुना कर लें. इस के बाद पोरों से स्कैल्प की धीरेधीरे मसाज करें. इस से स्कैल्प में रक्तसंचार बढ़ता है और स्कैल्प के बंद छिद्र खुल जाते हैं. बालों में तेल लगाते वक्त उंगलियों का मूवमैंट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मसाज करते समय उंगलियों में प्रैशर दें और पूरे सिर की त्वचा में रोटेट करें. आप चाहें तो रात में तेल से अच्छी तरह मालिश कर के अगले दिन शैंपू कर सकती हैं. अगर आप रात भर तेल बालों में नहीं लगाए रखना चाहती हैं, तो सब से आसान तरीका यह है कि शैंपू करने से पहले अच्छी तरह मसाज करें और 1 घंटे के लिए छोड़ दें. इस के बाद शैंपू से बालों को धो लें.

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जनसंख्या नियंत्रण और समाज

जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने वाली कट्टरपंथी हिंदू सोच की सरकारों को असल में औरतों के दुख की चिंता ही नहीं है. जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर वे न केवल औरतों का यौन सुख का हक छीन रही हैं, अगर गर्भ ठहर जाए तो उन्हें अपराधी की सी श्रेणी में डाल रही हैं. तीसरा बच्चा नाजायज है, अपराधी है, समाज विरोधी है, राज्य पर बोझ है जैसे शब्दों से चाहे जनसंख्या नियंत्रण कानून न भर हों, पर ये शब्द हैं जो केवल उन्हें दिखेंगे जो भुगतेंगी, सचिवालयों और मंत्रालयों में बैठने वालों को नहीं.

फ्रांस का उदाहरण लें. उस की प्रति व्यक्ति आय भारत की महज 2000 डौलर प्रतिवर्ष के मुकाबले 60,000 डौलर प्रति वर्ष है यानि वहां के लोग 30 गुना अमीर हैं. फिर भी वहां बहुत गर्भ ठहर जाते हैं क्योंकि लड़कियां गर्भनिरोधक नहीं खरीद पातीं. अब फ्रांस सरकार ने 25 वर्ष की आयु तक डाक्टर की फीस, दवाएं व गर्भपात सब फ्री कर दिया है. फ्रांस सरकार का मानना है कि यह मामला लडक़ी की इच्छा का है कि वह कब सेक्स सुख ले और कब बच्चा पैदा करे. सरकार को लडक़ी की इच्छा का आदर करना चाहिए.

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हमारे यहां लडक़ी को पहले ही दिन से बोझ माना जाता है. उस के सारे हक बनावटी हैं. दिखाऊ हैं. उसे धर्मकर्म में अकेला जाता है जहां और कुछ नहीं तो सेक्स सुख अवश्य मिल जाता है चाहे पति हो या न हो औरतें घरों में सेक्स सुख से वंचित रहें इसलिए ङ्क्षहदूमुसलिम के नाम पर उन के जननांग और कोख पर आदेशों के ताले लगाए गए हैं, उन्हें कहां गया है कि 2 बच्चों के बाद या तो ताला या सरकारी समाज से बाहर, न नौकरी मिलेगी न राशन, न चुनाव लडऩे की सुविधा. कहने को यह बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए पर असल में यह भ्रामक सोच पर आधारित है जो नरेंद्र मोदी ने जम कर गुजरात विधानसभा चुनावों में कही थी कि एक समाज 5 से 25 होता है और दूसरा 2 पर संतोष करता है.

मुसलमानों और दलितों के लिए गर्भ नियंत्रण कठिन है, मंहगा है यह इस कानून में सुलझाना नहीं गया है, सुविधाएं छीनने का खौफ दर्शाया गया है. आज यदि गर्भ निरोधक सस्ते या मुफ्त हो और गर्भपात्र जब चाहों जहां चाहो मुफ्त में करा लो तो नैतिकता नहीं खत्म होगी औरतों के अधिकारों की स्थापना होगी. हर युवती, चाहे विवाहित हो या अविवाहित अपने शरीर का कैसे इस्तेमाल करे, उस का अपना मामला है और वह खुद बेकार का गर्भ नहीं चाहती. आज की कामकाजी औरत बच्चों को चाहती है पर सीमा में. इस के लिए कानून चाहिए तो सुविधाएं देने वाले पर उस में खर्च होता है. सरकार तो ऐसा आदेश देना जानती है जिस से नागरिकों के हाथ पैर बंंधे, अब जननांग भी बांध रहे हैं.

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फैमिली के लिए बनाएं कौर्न कोन

आपने कौर्न की कई तरह की रेसिपी ट्राय की है. लेकिन क्या आप कौर्न कोन की रेसिपी ट्राय की है, जिसे आप आसानी से शाम के नाश्ते में बना सकते हैं. आइए आपको बताते हैं कौर्न कोन की आसान रेसिपी…

सामग्री कोन की

– 1/2 कप मैदा

– 1 छोटा चम्मच घी

– 1/2 छोटा चम्मच अजवाइन

– कोन तलने के लिए पर्याप्त रिफाइंड औयल

– कोन बनाने का सांचा

– नमक स्वादानुसार.

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सामग्री कौर्न की

– 1/2 कप मक्की के दाने उबले

– 2 बड़े चम्मच हरे मटर उबले

– 1 बड़ा चम्मच टमाटर बारीक कटा

– 1 बड़ा चम्मच प्याज बारीक कटा

– 1 छोटा चम्मच मक्खन पिघला

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– थोड़े से सलादपत्ते

– चाटमसाला, लालमिर्च व नमक स्वादानुसार.

विधि

मैदे में घी, अजवाइन और नमक डाल कर पानी से पूरी लायक आटा गूंध लें. 15 मिनट ढक कर रखें फिर मोटीमोटी 2 लोइयां बनाएं और खूब बड़ी बेल लें. कांटे से गोद दें व 4 टुकड़े कर लें. प्रत्येक टुकड़े को कोन पर लपेटें और किनारों को पानी की सहायता से सील कर दें. धीमी आंच पर सारे कोन तल लें. मक्की के दानों में सारी सामग्री मिला लें. सलादपत्तों के छोटे टुकड़े कर लें. प्रत्येक कोन में थोड़ा सा सलादपत्ता लगाएं. फिर मक्की के दाने वाला मिश्रण भरें. स्पाइसी कौर्न इन कोन तैयार है. तुरंत सर्व करें.

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आशा की नई किरण: भाग 1- कौनसा मानसिक कष्ट झेल रहा था पीयूष

स्वाति के मन में खुशी की लहर दौड़ रही थी. महीना चढ़े आज 15 दिन हो गए थे और अब तो उसे उबकाई भी आने लगी थी. खट्टा खाने का मन करने लगा था. वह खुशी से झूम रही थी. पर वह पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहती थी. इतनी जल्दी इस राज को वह किसी पर प्रकट नहीं करना चाहती थी, खासकर पति के ऊपर. 15 दिन और बीत गए. दूसरा महीना भी निकल गया. अब वह पूरी तरह आश्वस्त थी. वह सचमुच गर्भवती थी. शादी के 10 वर्षों बाद वह मां बनने वाली थी, परंतु मां बनने के लिए उस ने क्याक्या खोया, यह केवल वही जानती थी. अभी तक उस के पति को भी मालूम नहीं था. पता चलेगा तो कैसा तूफान उस के जीवन में आएगा इस का अनुमान तो वह लगा सकती थी, लेकिन मां बनने के लिए वह किसी भी तूफान का सामना करने के लिए चट्टान की तरह खड़ी रह सकती थी. इस के लिए वह हर प्रकार का त्याग करने को तैयार थी. 10 वर्ष के विवाहित जीवन में बहुत कष्ट उस ने सहे थे. बांझ न होते हुए भी उस ने बांझ होने का दंश झेला था, सास की जलीकटी सुनी थीं, मातृत्वसुख से वंचित रहने का एहसास खोया था. आज वह उन सभी कष्टों, दुखों, व्यंग्यभरे तानों और उलाहनों को अपने शरीर से चिपके घिनौने कीड़ों की तरह झटक कर दूर कर देना चाहती थी, लोगों के मुंह बंद कर देना चाहती थी. वह सास के चेहरे पर खुशी की झलक देखना चाहती थी और पति…

पति को याद करते हुए उस के मन को झटका लगा, दिल में एक कड़वी सी कसक पैदा हुई, परंतु फिर उस के सुंदर मुखड़े पर एक व्यंग्यात्मक हंसी दौड़ गई. अपने होंठों को अपने दांतों से हलके से काटते हुए उस ने सोचा, पता नहीं उन को कैसा लगेगा? उन के दिल पर क्या गुजरेगी, जब उन को पता चलेगा कि मैं मां बनने वाली हूं. हां, मां, परंतु किस के बच्चे की मां? क्या पीयूष इस सत्य को आसानी से स्वीकार कर लेंगे कि वह मां बनने वाली है. उन के दिमाग में धमाका नहीं होगा, उन का दिल नहीं फट जाएगा? क्या वे यह पूछने का साहस कर पाएंगे कि स्वाति के पेट में किस का बच्चा पल रहा है या वे अपने दिल और दिमाग के दरवाजे बंद कर के अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाने के लिए एक चुप्पी साध लेंगे? कुछ भी हो सकता है. परंतु स्वाति उस के बारे में चिंतित नहीं थी.

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उस ने बहुत सोचसमझ कर इतना बड़ा कदम उठाया था. मातृत्वसुख प्राप्त कर के अपने माथे से बांझपन का कलंक मिटाने के लिए उस ने परंपराओं का अतिक्रमण किया था और मर्यादा का उल्लंघन किया था. परंतु उस ने जो कुछ किया था, बहुत सोचसमझ कर किया था. शादी के वक्त स्वाति एक टीवी चैनल में न्यूजरीडर और एंकर थी. वह अपनी रुचि के अनुसार काम कर रही थी, परंतु शादी के पहले ही पीयूष की मम्मी ने कह दिया था कि शादी के बाद वह काम नहीं करेगी. मन मार कर उस ने यह शर्त मंजूर कर ली थी. पीयूष ने एमबीए किया था. एमबीए पूरा होते ही वह अपने पिता के साथ उन के व्यापार में हाथ बंटाने लगा था. उन्हीं दिनों उस के पिता की असामयिक मौत हो गई. उस के बाद उस ने अपने पिता का कारोबार संभाल लिया. उन दोनों की शादी के समय पीयूष के पिता जीवित नहीं थे.

दोनों की शादी धूमधाम से संपन्न हुई. स्वाति भी खुश थी कि उस को अपने सपनों का राजकुमार मिल गया. परंतु सुहागरात को ही उस की खुशियों पर तुषारापात हो गया, उस के अरमान बिखर गए और सपनों के पंख टूट गए. सुहागरात में दोनों का मिलन स्वाति के लिए बहुत दुखद रहा. पीयूष ने जैसे ही उड़ान भरी कि धड़ाम से जमीन पर आ गिरा, जैसे उड़ान भरने के पहले ही किसी ने पक्षी के पर काट दिए हों. वह लुढ़क कर लंबीलंबी सांसें लेने लगा. स्वाति का हृदय दहल गया. मन में एक डर बैठ गया, अगर ऐसा है तो दांपत्य जीवन कैसे पार होगा? फिर उस ने अपने मन को तसल्ली देने की कोशिश की. हो सकता है, पहली बार के कारण ऐसा हुआ हो. उस ने कहीं पढ़ा था कि प्रथम मिलन में लड़के अत्यधिक उत्तेजना के कारण जल्दी स्खलित हो जाते हैं. यह असामान्य बात नहीं होती है. धीरेधीरे सब सामान्य हो जाता है. काश, ऐसा ही हो, स्वाति ने सोचा. परंतु स्वाति की शंका निर्मूल नहीं थी. उस की आशाओं के पंख किसी ने नोंच कर फेंक दिए. उस की सोच भी सत्य सिद्ध नहीं हुई. पीयूष के पंख सचमुच कटे हुए थे. वह बहुत लंबी उड़ान भर सकने में असमर्थ था. स्वाति अपने पर रोती, परंतु कुछ कर नहीं सकती थी. दांपत्य जीवन के बंधन इतने कड़े होते हैं कि कोई भी उन को तोड़ने का साहस नहीं कर सकता है. अगर तोड़ता है तो शरीर में कहीं न कहीं घाव हो जाता है. स्वाति के जीवन में खुशियों के फूल मुरझाने लगे थे, परंतु वह पढ़ीलिखी थी. उस ने आशा का दामन नहीं छोड़ा. आधुनिक युग विज्ञान का युग था, हर प्रकार के मर्ज का इलाज संभव था.

स्वाति के मन में पीड़ा थी परंतु ऊपर से वह बहुत खुश रहने का प्रयास करती थी. घर के सारे काम करती थी. सासूमां उस के व्यवहार व कार्यकुशलता से खु थीं, उस का पूरा खयाल रखतीं. स्वाति के साथ घर के कामों में हाथ बंटातीं. स्वाति कहती, ‘‘मांजी, अब आप के आराम करने के दिन हैं, क्यों मेरे साथ लगी रहती हैं. मैं कर लूंगी न सबकुछ.’’

‘‘तू सब कर लेती है, मैं जानती हूं परंतु मैं अपंग नहीं हूं. तेरे साथ काम करती हूं तो शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है. काम न करूंगी तो बीमार हो कर बिस्तर से लग जाऊंगी.’’

‘‘फिर भी कुछ देर आराम कर लिया कीजिए,’’ स्वाति सासूमां को समझाने का प्रयास करती.

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‘‘तेरे आने से मुझे आराम ही आराम है. बस, 1 पोता दे कर तू मुझे बचीखुची खुशियां दे दे तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा,’’ मांजी ने स्वाति की तरफ ममताभरी निगाह से देखा.

स्वाति के हृदय में कुछ टूट गया. मांजी की तरफ देखने का उसे साहस नहीं हुआ. सिर झुका कर अपने काम में व्यस्त हो गई. समय बीतने के साथसाथ सासूमां की स्वाति से पोते पैदा करने की अपेक्षाएं बढ़ने लगीं. दिन बीतते जा रहे थे. उसी अनुपात में सासूमां की पोते के प्रति चाहत भी बढ़ती जा रही थी. एक दिन उन्होंने कहा, ‘‘स्वाति बेटा, अब और कितना इंतजार करवाओगी? तुम लोग कुछ करते क्यों नहीं? क्या कोई सावधानी बरत रहे हो?’’ उन्होंने संदेहपूर्ण निगाहों से स्वाति को देखा. ‘‘कैसी सावधानी, मां?’’ स्वाति ने अनजान बनते हुए पूछा. वह अपनी तरफ से क्या कहती, उसे ऐसे पुरुष के साथ बांध दिया था जिस में पुरुषत्व की कमी थी. इस में न उस के घर वालों का दोष था, न ससुरालपक्ष के लोगों का? दोष था तो केवल पीयूष का, जिस ने सबकुछ जानते हुए भी शादी की. स्वाति अभी तक चुप थी. शर्म और संकोच की दीवार उस के मन में थी, परंतु अब इस दीवार को उसे तोड़ना ही होगा. पीयूष से इस बारे में उसे बात करनी होगी, परंतु इस तरीके से कि उस के अहं को ठेस न पहुंचे और वह बात की गंभीरता को समझ कर अपना इलाज करवाने के लिए तैयार हो जाए.

शादी की पहली वर्षगांठ बीत गई. कोई उत्साह उन के बीच में नहीं था. स्वाति कोई जश्न मनाना नहीं चाहती थी. पीयूष और मां दोनों की इच्छा थी कि घर में छोटामोटा जश्न मनाया जाए. केवल खास लोगों को बुलाया जाए परंतु स्वाति ने साफ मना कर दिया. वह लोगों की निगाहों में जगे हुए प्रश्नों की आग में तपना नहीं चाहती थी. अंत में पीयूष और स्वाति एक रेस्तरां में डिनर कर के लौट आए. उसी रात…स्वाति ने खुल कर बात की पीयूष से, ‘‘एक साल हो गया, अब हमें कुछ करना होगा. मम्मी की हम से कुछ अपेक्षाएं हैं.’’

पीयूष चौंका, परंतु बिना स्वाति की ओर करवट बदले पूछा, ‘‘कैसी अपेक्षाएं?’’

स्वाति मछली की तरह करवट बदल कर पीयूष की आंखों में देखती हुई बोली, ‘‘क्या आप नहीं जानते कि एक मां की बेटेबहू से क्या अपेक्षाएं होती हैं?’’

पीयूष की पलकें झुक गईं, ‘‘मैं क्या कर सकता हूं?’’ उस ने हताश स्वर में कहा. स्वाति ने अपनी कोमल उंगलियों से उस के सिर को सहलाते हुए कहा, ‘‘आप निराशाजनक बातें क्यों कर रहे हैं. दुनिया में हर चीज संभव है, हर मर्ज का इलाज है और प्रत्येक समस्या का समाधान है.’’

पीयूष ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा, ‘‘तुम क्या चाहती हो?’’

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धारा के विपरीत: भाग 1- निष्ठा के कौनसे निर्णय का हो रहा था विरोध

कैसे भूले जा सकते हैं वे दिन जब कोरोना महामारी के कारण देश में आपातकालीन लौकडाउन लगा दिया गया था. मानो तेज रफ्तार गाड़ी में अचानक हैंडब्रैक लगा दिया हो. हर तरफ अफरातफरी का माहौल था. एक तो अनजान बीमारी, दूसरे इलाज का अतापता नहीं. भय तो फैलना ही था. सब अंधेरे में तीर चला रहे थे. दवाओं के अलावा कोई काढ़ा-आसव तो कोई कुछ… जिसे जो समझ में आ रहा था वह वही आजमा कर देख रहा था.

न रेल चल रही थी, न ही बस. स्कूल, कालेज, कोचिंग और अन्य दूसरे होस्टल खाली करवाए जा रहे थे. ऐसे में उन लोगों को परेशानी हो गई जो किसी कारण से अपने ठिकाने से दूर थे.

निष्ठा के साथ भी यही हुआ. कहां तो वह अपना वीकैंड मृदुल के साथ बिताने आई थी और कहां इस झमेले में फंस गई. नहींनहीं, यह कोई पहली बार नहीं था जब वे दोनों इस तरह से एक साथ थे. वे अकसर इस तरह के शौर्ट ट्रिप प्लान करते रहते थे.

चूंकि दोनों ही अपनेअपने घरों से दूर यहां पुणे में जौब करते हैं, इसलिए कोई रोकटोक भी नहीं थी. भविष्य में शादी करेंगे या नहीं, इस फिक्र से दूर दोनों वर्तमान को जी रहे थे.

जनता कर्फ्यू की घोषणा के साथ ही आगामी दिनों में लौकडाउन लगने की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी थी. निष्ठा और मृदुल ने भी सोचा कि कौन जाने कितने दिन एकदूसरे से दूर रहना पड़े, इसलिए क्यों न खुल कर जी लिया जाए. निष्ठा चूंकि वर्किंग वुमन होस्टल में रहती थी और मृदुल कहीं पेइंगगैस्ट, इसलिए दोनों ने पणजी में मृदुल के दोस्त अभय के घर जाना तय किया. अभय अपने दोस्तों के साथ कहीं बाहर था, इसलिए उस का घर खाली था. मौके का फायदा उठाते हुए वे दोनों 2 दिन की अपनी जमा की हुई लीव ले कर पणजी चले गए.

अभी दोनों इस वीकैंड को एंजौय कर ही रहे थे कि देशव्यापी लौकडाउन घोषित कर दिया गया. खबर सुनते ही मृदुल की आंखें चमक उठीं.

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“हम तुम एक कमरे में बंद हों, और चाबी खो जाए…” वह शरारत से आंख दबाते हुए गुनगुनाया.

“तुम्हें बड़ा मजाक सूझ रहा है. क्या तुम्हें अंदाजा भी है कि हम किस मुश्किल में फंस चुके हैं?” निष्ठा ने उसे सीरियस करने की कोशिश की.

“इस में कौन सी मुसीबत हुई भला? जैसे हम यहां फंसे हैं वैसे अभय भी फंसा हुआ है. घर में राशन तो रखा ही हुआ है. बस, बनाओ और खाओ. अच्छा ही है, इस बहाने तुम्हारे हाथ के बने पकवान खाने को मिलेंगे.” मृदुल ने उसे बेफिक्र करना चाहा लेकिन निष्ठा तो दूसरी ही चिंता में घुली जा रही थी.

“एकसाथ एक घर में रहने का मतलब तुम समझ रहे हो न, वह भी बिना किसी सुरक्षा उपाय के.” निष्ठा ने कुछ संकोच के साथ कहा तो मृदुल खिलखिला दिया.

“तो क्या हुआ? नन्हा सा गुल खिलेगा, अंगना… सूनी बैंया सजेगी सजना.” गाते हुए उस ने निष्ठा को छेड़ा. वह गुस्से में पांव पटकती हुई वहां से हट गई.

यह पूरे 21 दिन का लौकडाउन था. जब तक थे तब तक तो सुरक्षा उपाय अपनाए गए, फिर मन मार कर कुछ दिन संयम भी रखा गया. जब धैर्य चूक गया तो महीने के सुरक्षित दिनों का हिसाब रखते हुए भी दोनों ने संबंध बनाए लेकिन उस में कोई आनंद न था.

एकएक दिन चिंता में गुजर रहा था. किसी को लौकडाउन खुलने का इंतजार होगा, लेकिन निष्ठा तो अपने मासिकधर्म के आने का इंतजार कर रही थी. आखिर जिस दिन उसे अपनी पैंटी पर कत्थई निशान दिखे, उस ने सुकून की सांस ली. जिंदगी में पहली बार अपना मासिकधर्म आने पर निष्ठा खुश हुई थी. इस से पहले तो यह पीरियड उसे बहुत ही असहज कर दिया करता था.

खैर, किसी तरह पहले लौकडाउन के 21 दिन बीते. हालांकि लौकडाउन को आगे भी बढ़ा दिया गया लेकिन पाबंदियों में कुछ ढील भी मिली. मृदुल और निष्ठा भी किसी तरह पणजी से निकले और पुणे आए. निष्ठा ने राहत महसूस की. बेशक निष्ठा आधुनिक विचारधारा की लड़की है लेकिन समाज में बिनब्याही मां की स्थिति से भी बखूबी वाकिफ है, इसलिए लौकडाउन में वह किसी मुसीबत में नहीं फंसी, इसी बात से वह बहुत राहत महसूस कर रही थी.

कहते हैं कि एक बार वर्जनाएं टूट जाएं तो उन के बारबार टूटने का अंदेशा बना रहता है. लौकडाउन की पाबंदियों के बीच फिर से जिंदगी न्यू नौर्मल होने लगी थी. यातायात के साधन खुलने लगे थे. इस बीच कहींकहीं पर्यटन उद्योग भी फिर से पटरी पर आने लगा था. निष्ठा और मृदुल की जिंदगी में पुराने समय के दौर ने फिर से गति पकड़ ली. दोनों फिर से हर वीकैंड में एकसाथ दिखने लगे. लेकिन इस कठिन समय ने निष्ठा को अपने रिश्ते के लिए अवश्य ही संजीदा कर दिया था. उस ने और मृदुल ने शादी करने का फैसला कर लिया.

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यों तो आजकल प्रेम विवाह टैबू नहीं रहे लेकिन फिर भी अलग जातिधर्म के व्यक्ति को अपनी बिरादरी में शामिल करने से पहले पुराने लोग आज भी हिचकते हैं. शुरूआती आपत्ति के बाद दोनों परिवार इस रिश्ते के लिए राजी हो गए. नवंबर के महीने में जब सबकुछ बिलकुल ठीक सा लग रहा था तब कुछ निजी लोगों की उपस्थिति में निष्ठा और मृदुल की मंगनी हो गई.

हमारे समाज में मंगनी होने को शादी की गारंटी मान लिया जाता है. ऐसी स्थितियों में समाज और संस्कार दोनों ही लड़कालड़की के मिलन पर एतराज नहीं करते. ये दोनों तो वैसे भी खूब मिलतेजुलते थे, अब थोड़े से अधिक बेपरवाह होने लगे थे.

यह शादी अप्रैल के महीने में होने वाली थी लेकिन इस से पहले ही एक मनचाही समस्या सामने आ खड़ी हुई. निष्ठा ने इस बार अपना पीरियड मिस कर दिया. यह बात जब उस ने मृदुल को बताई तो उस ने आदतन लापरवाही से निष्ठा की फिक्र को हवा में उड़ा दिया.

“अरे यार, क्यों टैंशन ले रही हो. अब तो शादी होने ही वाली है न. वैसे, तुम चाहो तो एबौर्शन करवा सकती हो.” फ़िक्रमुक्त करने के साथ ही मृदुल ने उसे सलाह भी दे डाली.

“नहीं. कहते हैं, पहला बच्चा प्रकृति का उपहार होता है. पहले ही गर्भ को गिरवा दिया जाए तो बाद में गर्भ धारण करने में समस्याएं होने लगती हैं. मैं यह बच्चा नहीं गिरवाऊंगी,” कहते हुए निष्ठा ने एबौर्शन करवाने से इनकार कर दिया.

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हर औरत के लिए फेमेनिजम की अपनी परिभाषा होती है- किट्टू गिडवाणी

लगभग 35 वर्षों से मॉडलिंग और थिएटर से कैरियर की शुरूआत कर टीवी सीरियलों व फिल्मों में अपनी एक अलग मौजूदगी दर्ज करा चुकी अदाकारा किट्टू गिडवाणी ने हिंदी के अलावा अंग्रेजी व फ्रेंच भाषा में भी अभिनय किया है. इन दिनों वह ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘सोनी लिव’’ पर  वेब सीरीज ‘‘पॉटलक’’ में नजर आ रही हैं.

प्रस्तुत है किट्टू गिडवाणी से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

अपनी अब तक की अभिनय यात्रा को किस तरह से देखती हैं?

-मेरी अभिनय यात्रा काफी रोचक व रचनात्मक रही. मैंने थिएटर,  टीवी, फिल्म व ओटीटी प्लेटफार्म सहित हर प्लेटफार्म पर काम बेहतरीन काम किया. मुझ पर कोई इमेज चस्पा नही हो सकी. मैं वर्सेटाइल कलाकार हूं. मुझे सदैव रंगमंच पर काम करने में आनंद की अनुभूति होती है. मुझे बेहतरीन टीवी कार्यक्रमों में काम करना पसद है. फिल्में करना पसंद है. मैने ‘फैशन’सहित कुछ फिल्में करते हुए इंज्वॉय किया, तो वहीं मैने ‘तृष्णा’,  ‘स्वाभिमान’, ‘जुनून’, ‘एअरहोस्टेस’और ‘खोज’ जैसे सीरियल करते हुए काफी इंज्वॉय किया. मुझे नहीं लगता कि मेरी तरह सभी कलाकार हर माध्यम में काम करने में सहज हों. मैने लंदन व पेरिस जाकर फिल्म व रंगमंच पर काम किया. मैने लंदन में एक अंग्रेजी नाटक में अभिनय किया. जबकि फ्रांस में मैने दो फ्रेंच फिल्मों में अभिनय किया.  मैं पूरे संसार पर अंकुश नही लगा सकती, लेकिन मैने अपनी क्षमता के अनुरूप हर माध्यम पर कई प्रयोग किए. मुझे गर्व है कि मंैने अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जी है.

1985 में कैरियर शुरू किया था. उन दिनों जिस तरह के सीरियल किए थे, उनसे इसमें क्या अंतर पाती हैं?

-‘स्वाभिमान’’ 1995 में किया था. उससे पहले ‘एअरहोस्टेस’सहित कई सीरियल किए थे. वक्त के साथ बहुत कुछ बदलता है. लोगों की सोच बदलती है. एक्सपोजर जितना अधिक होता है, उसके अनुसार बहुत कुछ बदलता है. जैसे कि हमने ‘पॉटलक’में अपर मिडल क्लास परिवार को लिया है. इसलिए ‘पॉटलक’ के साथ ‘स्वाभिमान’ को जोड़कर नहीं देख सकते. ‘स्वाभिमान’ उच्च वर्ग की कहानी थी. उन दिनों हम सारे संवाद हिंदी में बोलते थे. अब तो हम हिंदी व अंग्रेजी मिश्रित संवाद बोलते हैं. हर जमाने में रचनात्मकता बदलती रहती है. हर जमाने में ताकत, अच्छाई व बुराई भी होती है. ऐसे में एक वक्त के सीरियल की तुलना दूसरे वक्त के सीरियल से करना ठीक नही है. पहले जब हम वीकली सीरियल कर रहे थे, उन दिनों बजट कम हुआ करते थे, जबकि अब बजट काफी हो गए हैं.

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मेरा सवाल कलाकार के तौर पर संतुष्टि को लेकर है?

-देखिए, कलाकार के तौर पर संतुष्टि मुझे ‘स्वाभिमान’ में भी मिली थी और ‘जुनून’ में भी मिली थी. मैने काम करते हुए काफी इंज्वॉय किया था. अब ‘पॉटलक’ करके भी काफी संतुष्टि मिली. मेरे लिए प्रोजेक्ट अच्छा होना चाहिए, तभी मैं उसके साथ जुड़ती हूं. फिर वह प्रोजेक्ट चाहे फिल्म हो,  थिएटर हो या सीरियल हो या वेब सीरीज हो. हर प्रोजेक्ट की अपनी एक जान होती है. मेरी राय में हर कलाकार संतुष्टि के पीछे ही भागता रहता है.

वेब सीरीज ‘‘ पॉटलक ’’ से जुड़ने के लिए आपको किस बात ने प्रेरित किया?

-इसकी पटकथा काफी सुंदर है. निर्देशक काफी समझदार और एक नई व ताजी सोच वाली हैं. वह पूरे दस वर्ष तक अमरीका में रहने के बाद भारत वापस आयी हैं. संवादों की स्टाइल काफी नेच्युरल स्वाभाविक है. इसमें हास्य के पल भी हैं. इन सारी बातों ने मुझे इसके साथ जुड़ने के लिए आकर्षित किया.

‘‘पॉटलक’में आपका किरदार?

-निजी जीवन में मेरी अपनी कोई संतान नही है. मगर वेब सीरीज ‘पॉटलक’में मैं मैने प्रमिला शास्त्रीका किरदार निभाया है, जिनके दो बेटे व एक बेटी है. बेटों की शादी हो चुकी है, पर बेटी की शादी की उसे चिंता है. इसमें सिचुएशनल कॉमेडी है, जो आजकल कम देखने को मिलती है.

जब आपने ‘जुनून’ या ‘स्वाभिमान’में अभिनय किया था, उन दिनों समाज के हर तबके में परिवार व संयुक्त परिवार बहुत मायने रखता था. आज आधुनिक युग में संयुक्त परिवारों की जगह एकाकी परिवार आ गए हैं. ऐसे में ‘पॉटलक’ से क्या सीख मिलेगी?

-‘पॉटलक’ लोगों से कहती है कि हम बहुत मुश्किल जमाने से गुजर रहे हैं, ऐसे वक्त में हमें इस बात का ख्याल रखना है कि कहीं अहम विखर न जाएं. इसके लिए जरुरी है कि आप सभी एक दूसरे को समझने का प्रयास करेंं, कुछ चीजों को नजरंदाज करें. वर्तमान समय में बच्चों को लगता है कि उनके माता पिता बेवजह बकवास करते रहते हैं, तो वहीं माता पिता को लगता है कि बच्चे उनसे जुदा हो गए हैं, परिवार विखर गया है, बच्चे अपनी अलग सोच के साथ जिंदगी जी रहे हैं. बच्चे पूरे दिन मोबाइल पर लगे रहते हैं,  परिवार के साथ उनका कोई जुड़ाव ही नहीं रहता है. इन सारी शिकायतों के बावजूद यदि आप एक दूसरे के करीब आने की कोशिश करते हैंं, तो क्या होता है, इसका परिणाम अच्छा होता है या बुरा होता है, यही सब ‘पॉटलक’ में बताया गया है. ‘पॉटलक’में दिखाया है कि कभी अच्छा, तो कभी बुरा होता है, मगर अंत में परिवार तो परिवार ही होता है. लेकिन ‘पॉटलक’ देखने के बाद लोगांे की सहमति या असहमति हो सकती है. लेकिन हमने तो यही कहने की कोशिश की है कि साथ रहने में ही फायदा है. एकता में ताकत है, यह बात हर इंसान को समझनी चाहिए.

आपने कई बेहतरीन फिल्में व सीरियल किए, पर बीच में काफी समय तक गायब रही?

-ऐसा न कहें. मैं गायब तो नही हुई. देखिए, जब मुझे अच्छी फिल्म या सीरियल करने का अवसर मिलता है, तो मैं करती हूं. महज संख्या गिनाने के लिए कोई भी फिल्म या सीरियल नही करती. मैं अच्छा काम नही मिलता तो नही करती. मैं जबरन ख्ुाद को व्यस्त रखने में यकीन नहीं करती.

यह सच है कि मैंने लंबे समय से टीवी करना बंद कर रखा है. मैने पिछले 15 वर्षों से सीरियल नहीं किए हैं. इसकी मूल वजह यह है कि अब टीवी का कंटेंट ही अच्छा नही है. सच कह रही हूं और आप भी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि अब टीवी का कंटेंट काफी बुरा हो गया है. मैं अपने कैरियर के इस मुकाम पर ‘सास बहू मार्का ’ सीरियल नहीं कर सकती. मैं किचन पोलीटिक्स वाले सीरियलो में फिट ही नही होती. एसे सीरियलों में कलाकार के तौर पर मेरे लिए कोई जगह ही नही है.

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इन दिनों नारी स्वतंत्रता, फेमेनिजम आदि की काफी चर्चाएं हो रही हैं. आपके लिए फेमेनिजम क्या है?

-फेमेनिजम को परिभाषित नहीं किया जा सकता. हर औरत की अपनी एक यात्रा होती है. हर औरत के लिए फेमेनिजम की अपनी परिभाषा होती है. फेमेनिज्म के बारे में हर किसी का एक सिद्धांतवादी दृष्टिकोण होता है. मुझे नहीं लगता कि किसी को मुझे बताने की जरुरत है कि फेमेनिजम क्या है. मेरे लिए फेमेनिजम की परिभाषा यह है कि मैं एक औरत होने के नाते जो करना चाहूं, वह कर सकूं. जो मुझे सही लगता है, उसे लेकर मैं किसी को भी उसका फायदा लेने नहीं दूंूगी. मैं अपनी क्षमता के अनुरूप काम करती रहूंगी. किसी भी संस्था को अधिकार नही है कि वह फेमेनिजम को परिभाषित करे.

जब आप शूटिंग नही कर रही होती हैं, उस वक्त आपकी क्या गतिविधियां होती हैं?

-मैं बहुत कुछ पढ़ती हूं. राजनीति व अर्थशास्त्र को लेकर काफी कुछ पढ़ती हूं. मैं भारतीय दर्शन शास्त्र पढ़ती व सीखती हूं. नृत्य भी सीखती हूं. यात्राएं करने का भी शौक है.

पीएम मोदी ने की सीएम योगी की तारीफ

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की सरकार में प्रदेश में वृहद टीकाकरण अभियान के तहत ‘सबका साथ, सबका विकास, सबको वैक्सीन, मुफ्त वैक्सीन’ के मूल मंत्र पर टीकाकरण किया जा रहा है.

सबको मुफ्त वैक्सीन अभियान का आयोजन हो रहा है. ये बातें प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने अलीगढ़ के संबोधन में कहीं. उन्‍होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में अब तक 8 करोड़ से अधिक वैक्सीन के साथ एक दिन में सबसे ज्यादा वैक्सीन लगाने का रिकॉर्ड भी उत्तर प्रदेश के ही नाम है.

यूपी ने टीकाकरण में दूसरे प्रदेशों को पीछे छोड़ते हुए रोजाना नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं. महाराष्‍ट्र, दिल्‍ली, आंध्र प्रदेश, वेस्‍ट बंगाल समेत दूसरे कई राज्‍यों से आगे निकल आठ करोड़ 94 लाख से अधिक टीकाकरण की डोज दी हैं. यह आंकड़ा देश के दूसरे प्रदेशों से कहीं अधिक है. यूपी टीकाकरण के साथ ही सर्वाधिक जांच करने वाला प्रदेश है. ट्रिपल टी की रणनीति व टीकाकरण से यूपी में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर नियंत्रण में हैं. प्रदेश में वैक्‍सीन की पहली खुराक 7 करोड़ 42 लाख से अधिक और  वैक्‍सीन की दूसरी डोज 1 करोड़ 51 लाख से अधिक को दी जा चुकी है.

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