बच कर रहें ऐसे सैलूनों से

कल सोहा को अपनी हर महीने होने वाली किट्टी पार्टी में जाना है, इसलिए अपने घर के काम निबटा कर सैलून रवाना हो गई. वैसे तो वह हर महीने वैक्स, हेयर कट, आइब्रोज करवाती ही है, किंतु इस बार किट्टी रैट्रो थीम पर आयोजित की जा रही है, इसलिए वह 70-80 के दशक की अभिनेत्रियों की तरह कुछ खास तैयार हो कर जाना चाहती है. उस जमाने में हेयरस्टाइल पर ही खास जोर दिया जाता था. अत: सैलून जा कर उस ने जब हेयरस्टाइल की बात की तो उन्होंने तरहतरह के स्टाइल दिखा अगले दिन आने का समय तय किया.

मैंबरशिप और डिस्काउंट का लालच

‘‘मैडम जब आप किट्टी पार्टी की तैयारी कर ही रही हैं तो फिर आप हमारा नया डायमंड फेशियल क्यों नहीं करवातीं? एक बार में ही खूब ग्लो आ जाएगा,’’ सैलून में कार्यरत लड़की ने कहा. ‘‘क्या खास बात है इस फेशियल की?’’ सोहा ने पूछा. ‘‘मैडम यह टैन रिमूवल फेशियल है. इस से आप के चेहरे से टैन के साथसाथ डैड स्किन भी निकल जाएगी जिस से चेहरे के दागदब्बे भी कम हो जाएंगे. इस से चेहरे पर गजब का निखार आएगा. एक बार करवा कर तो देखें.’’ ‘‘क्या रेट है इस फेशियल का?’’

‘‘मैडम कुछ खास नहीं केवल क्व2,200.’’

‘‘यह तो बहुत महंगा है?’’

‘‘मैडम क्या आप के पास सैलून की मैंबरशिप है?’’

‘‘नहीं, पर क्यों?’’

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‘‘मैडम आप मैंबरशिप ले लीजिए. मैंबर्स को हम डिस्काउंट देते हैं. आप की पूरी फैमिली का कोई भी मैंबर जब भी हमारे यहां से कोई सर्विस लेगा तो उसे हम डिस्काउंट देंगे और आज के फेशियल में भी आप को 20% डिस्काउंट मिलेगा.’’

सोहा दुविधा की स्थिति में थी कि क्या करे. तभी सामने लगे शीशे में अपना चेहरा देखा. झांइयां दिनबदिन बढ़ती जा रही थीं. अत: उस ने पूछा, ‘‘क्या ये दाग भी कम होंगे इस फेशियल से?’’

‘‘हां मैडम, पर इन्हें हटाने के लिए आप को 3-4 सिटिंग्स लेनी पड़ेंगी, क्योंकि दाग पुराने हैं.’’

सोहा ने खुद को सुंदर दिखाने के लिए फेशियल करवाने हेतु हामी भर दी.

1 घंटे बाद जब उस ने अपना चेहरा देखा तो सचमुच वह चमक उठी थी.

किंतु सोचने वाली बात यह है कि झांइयां क्या कभी फेशियल से जा सकती हैं?

हां, अस्थाई फर्क जरूर आएगा, क्योंकि चेहरे की मालिश से रक्तसंचार बढ़ने से चेहरे की कुछ सफाई हो जाती है. लेकिन डैड स्किन हटने से झांइयों वाली त्वचा अल्ट्रावायलेट किरणों के लिए पहले से अधिक ऐक्सपोज हो गईं. अत: ज्यादा अच्छा होता कि सोहा अपने चेहरे की झांइयों का इलाज करवाने के लिए किसी डर्मैटोलौजिस्ट के पास जाती.

नए प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल और खर्च

इसी तरह नेहा भी एक दिन सैलून गई. वहां जा कर उस ने बताया कि वह बिकिनी की शेव करकर के परेशान हो गई है. मासिक के समय तो खास परेशानी होती है. फिर जब दोबारा बाल निकलने लगते हैं तो बहुत मोटे निकलते हैं, जो चुभते हैं. अब ऐसी जगह बारबार स्क्रैच करो तो देखने में अच्छा नहीं लगता. तब सैलून में काम करने वाली लड़की बोली कि मैडम, बिकिनी वैक्स करवा लीजिए. पूरा महीना आराम रहेगा.

एक बार तो नेहा हिचकिचाई, फिर सोचा कि ट्राई करने में कोई हरज नहीं. फिर जब सैलून वाली लड़की ने पूछा कि मैडम वैक्स कौन सा नौर्मल या फिर फ्लेवर्ड तो नेहा ने कहा कि नौर्मल ही करो.

इस पर लड़की ने कहा कि वह फ्लेवर्ड वैक्स ही करेगी, क्योंकि उस से बिकिनी के बाल आसानी से निकल जाते हैं. अब चूंकि नेहा पहली बार बिकिनी वैक्स करवा रही थी सो बोली ठीक है. लेकिन जब बिल देखा तो 2 हजार रुपए का. साधारण वैक्स से दोगुना. उफ, उस के मुंह से निकला. घर आ कर जब नेहा ने अपनी मां को बताया तो मां बोली कि वैक्स तो वैक्स है जिस का काम है बालों पर चिपकना ताकि उस पर वैक्सिंग स्ट्रिप चिपका कर बालों को खींच लिया जाए. उस में फ्लेवर से क्या फर्क पड़ेगा? यह रुपए ऐंठने का तरीका है.

औफर्स की चकाचौंध

अकसर सैलून में किसी न किसी बहाने औफर्स रखे जाते हैं, जैसे नए वर्ष पर डिस्काउंट या दीपावली पर यह नया पैकेज. इन पैकेज में वैक्स, आईब्रो, मैनीक्योर, पैडीक्योर, हेयर कट आदि के साथ हेयर कलर फ्री.

इस तरह के पैकेज में हेयर कलर के रुपए पहले से ही जोड़ दिए जाते हैं. फिर यदि एक बार कलर किए बाल आप पर जंच गए, दूसरे लोगों ने आप की तारीफ कर दी तो आप उन के हर माह के क्लाइंट बन गए. कुल मिला कर सैलून को मुनाफा ही हुआ और आप भी खुश. लेकिन इस में आप यह भूल जाते हैं हेयर कलर में कैमिकल्स होते हैं जो आप के बालों को नुकसान पहुंचाते हैं.

कलर्ड हेयर को ऐक्स्ट्रा केयर की जरूरत होती है, जो आप नहीं कर पाते हैं. अब जब  आप के बाल डैमेज होते हैं तो आप फिर सैलून वालों से पूछते हैं, ‘‘क्या करूं बहुत हेयर फौल हो रहा है और बाल रफ भी हो गए हैं.’’ तब वे अपने सैलून में रखे जाने वाले कई बड़ी कंपनियों के उत्पाद इस्तेमाल करने को कहते हैं. उन का कमीशन तय होता है. कुल मिला कर फिर सैलून वालों का फायदा और आप का बुद्धू बनना.

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पैकेज की बहार और आप का बंधन

इसी तरह से आजकल सैलून में एक और नया पैकेज तैयार है. यदि आप 3 माह लगातार 3 हजार रुपए हमारे सर्विसेज पर खर्च करें तो चौथे माह आप का हेयर कट फ्री. अब ग्राहक चाहे हर महीने डेढ़ या 2 हजार का खर्च सैलून में करता है, लेकिन उस फ्री हेयर कट के लिए हर माह ऐक्सट्रा सर्विसेज ले कर 3 हजार का खर्च करता है. वह सोचता है कि ये 3 हजार तो सर्विसेज के हैं. बाद में हेयर कट तो फ्री है ही. यहां यह समझने की कोशिश कीजिए कि दुनिया में कुछ भी फ्री नहीं होता है. कहीं न कहीं तो आप को कीमत देनी ही होती है. इस तरह से हर ग्राहक से 3 हजार कमा कर उन की आय फिक्स हो गई और आप 4-5 माह तो वहां जाएंगे ही, क्योंकि आप को फ्री हेयर कट जो करवाना है. आप रुपए दे कर उस एक ही सैलून से बंध जाते हैं अन्यत्र कहीं जाने की सोच भी नहीं सकते, भले ही आप को उन का काम पसंद आए या नहीं.

पैकेज की ऐडवांस पेमैंट

इसी तरह से निहारिका ने एक पैकेज ले लिया जिस की सर्विसेज 2 दिन में पूरी करने की बात थी. पहले दिन उस ने हेयर कलर करवाया. उसे स्कैल्प में बहुत इचिंग होने लगी. घर पहुंचने पर उस के सिर में लाललाल चकत्ते हो गए. उन के कारण उसे डाक्टर के पास जाना पड़ा. मालूम हुआ जो हेयर कलर उस के बालों में इस्तेमाल किया गया है उस से उस के सिर में ऐलर्जिक रिएक्शन हो गया है. उसे बहुत गुस्सा आया. वह अगले ही दिन सैलून जा कर बोली कि पैकेज के रुपए वापस कर दें, उसे वहां से कोई सर्विसेज नहीं लेनी है. लेकिन सैलून वाले रुपए वापस देने को तैयार नहीं थे.

उन का कहना था कि मैडम ये सब औनलाइन सिस्टम में पहले से फीड किया होता है. आप ने पैकेज लिया है और उस के लिए पे किया है अब आप को सर्विसेज तो लेनी ही होंगी. यदि आप आधी सर्विसेज ले कर छोड़ देना चाहें तो हमारी क्या गलती? फिर आप ने भी तो नहीं बताया था कि आप को किस प्रोडक्ट से ऐलर्जी है. किसी और ग्राहक को तो इस प्रोडक्ट से कोई नुकसान नहीं हुआ. आप ही पहली हैं जो यहां ऐसी शिकायत ले कर आई हैं.

फिर क्या था निहारिका अपना सा मुंह ले कर घर लौट आई.

नकली प्रोडक्ट्स की पहचान

आजकल बाजार में सभी बड़े ब्रैंड के नकली प्रोडक्ट्स बिक रहे हैं. यहां तक कि नकली सामान की बिक्री औनलाइन भी हो रही है. यही नकली प्रोडक्ट्स कई सैलून में इस्तेमाल होते हैं. ग्राहकों को इस की जानकारी नहीं होती और वे बड़ी कीमत दे कर वहां की सर्विसेज लेते हैं, जबकि सैलून को वे नकली प्रोडक्ट्स कम कीमत पर मिलते हैं. इस से सैलून को काफी मुनाफा होता है.

अब बात आती है कि ग्राहक इन नकली प्रोडक्ट्स की पहचान कैसे करे? तो सब से पहले जब ग्राहक सैलून में सर्विसेज लेता है तो इस्तेमाल किए गए प्रोडक्ट्स की पैकिंग की मैन्युफैक्चरिंग डेट व बैच नंबर देखे, क्योंकि बाजार में रिपैकिंग किए गए प्रोडक्ट्स उपलब्ध होते हैं यानी पैकिंग मैटीरियल असली और उन में पैक किया गया सामान नकली.हम इस्तेमाल किए गए असली प्रोडक्ट्स की खाली शीशियां, डब्बे रद्दी वाले को बेच देते हैं या फिर कूड़ेदान में डाल देते हैं. इन शीशियों व डब्बों का इस्तेमाल नकली सामान की पैकिंग में किया जाता है. नकली प्रोडक्ट के इस्तेमाल से जलन भी हो सकती है, यह भी उस के नकली होने का एक प्रमाण है.

सैलून में बिकने वाले प्रोडक्ट्स

इसी तरह एक बार निहारिका हेयर कट के लिए एक बड़े सैलून में गई और अपनी बेटी को भी साथ ले गई. वहां हेयर कट से पहले हेयर वाश जरूरी होता है. सैलून की स्टाफ हेयर वाश कर हेयर कट कर बिलिंग के समय बोली, ‘‘मैडम, आप की बेटी के बाल बहुत रफ हो रहे हैं. हेयर कट के समय कंघी चलाने में भी मुझे परेशानी हो रही थी. आप उस के लिए हमारे सैलून में रखे प्रोडक्ट्स क्यों नहीं इस्तेमाल करतीं? ये देखिए…’’ ऐसा कह उस ने अपने सैलून के शोकेश में सजे कई महंगे प्रोडक्ट्स दिखाए.

निहारिका समझ गई थी कि यह उस से रुपए ऐंठने की चाल है. अत: उस ने प्रोडक्ट्स को देख कर कहा कि मैं बाद में सोचूंगी. मगर स्टाफ कहां आसानी से टलने वाला था. उस प्रोडक्ट को बेच कर उसे कमीशन जो मिलने वाला था, सो बोली कि मैडम और्गेनिक प्रोडक्ट्स हैं. आप की बेटी के बाल अच्छे रहेंगे इन से. वरना बहुत खराब हो जाएंगे.’’

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निहारिका उन की बातों में आने वाली नहीं थी, सो बोली, ‘‘मैं घर में उस के बाल धोने के लिए आंवला, रीठा, शिकाकाई का इस्तेमाल करती हूं और उस से बहुत खुश हूं.’’

इसी तरह जब सत्या हेयर कट के लिए गई तो बाल धोते ही उस के बालों से मेहंदी की खुशबू आने लगी, क्योंकि वह मेहंदी का इस्तेमाल करती थी. सैलून का स्टाफ बाल काटते समय उस से बोला कि मैडम आप के बालों से गंध आ रही है. मेहंदी की जगह हेयर कलर क्यों नहीं इस्तेमाल करतीं?

स्टाफ की बात सुन सत्या बोली, ‘‘आप जिसे बैड स्मैल कह रहे हैं हमें वह खुशबू लगती है, आप बाल काटें उस के सिवा कुछ न करें.’’

वजन कम करने का बेहद आसान तरीका है वाटर वर्कआउट

अगर आप जिमिंग, जुंबा, जौगिंग, पाइलेरस, ऐरोबिक्स, ब्रिस्क वाकिंग आदि फिटनैस के तरीकों से उकता गई हैं, तो वाटर वर्कआउट अपनाएं यानी अब पूल को जिम पूल बनाएं. वैसे तो फिटनैस के सभी तौरतरीकों से बौडी टोनिंग जरूर होती है, पर कैलोरी बर्न करने और बीमारियों से दूर रहने के लिए वाटर वर्कआउट अधिक कारगर है. वाटर वर्कआउट कर के आप कई तरह की बीमारियों को भी दूर कर सकती हैं. इस से शरीर के सभी अंगों की बढ़िया कसरत हो जाती है.

क्या है वाटर वर्कआउट

पानी में ऐक्सरसाइज करना ही वाटर वर्कआउट या ऐक्वा वर्कआउट अथवा ऐरो वर्कआउट कहलाता है. पानी बहता नहीं, बल्कि रुका होना चाहिए. तालाब या स्विमिंग पूल में वाटर ऐक्सरसाइज करना बैस्ट रहता है. इन में पानी का स्तर 3 फुट से अधिक नहीं होना चाहिए. आप अपनी सुविधा के अनुसार पानी का स्तर तय कर सकती हैं यानी घुटनों तक, पैल्विक तक या चैस्ट तक. साथ ही पानी का तापमान 20 से 25 डिग्री सैल्सियस से अधिक नहीं हो.

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पानी में सब छूमंतर

ऐक्सरसाइज करने में मोटापा सब से बड़ी बाधा बनता है. ऐसे में वाटर वर्कआउट अपनाएं. विशेषज्ञों के अनुसार पानी में ऐक्सरसाइज करते समय शरीर का वजन केवल 10% रह जाता है. यही नहीं वाटर वर्कआउट कर के जोड़ों के दर्द, गठिया, मोटापा, मधुमेह आदि में राहत मिलती है. खुले में करने से हाथ या पैर गलत दिशा में जाने से चोट लगने की संभावना रहती है और साथ ही शरीर के भारीपन के कारण ऐक्सरसाइज प्रभावी तरीके से भी नहीं हो पाती है.

वाटर वर्कआउट मांसपेशियों को मजबूती मिलती है. इस के अलावा पानी में व्यायाम करने से शरीर और मन दोनों को तनाव से राहत मिलती है. जब शरीर पानी में होता है तो वजन कम महसूस होता है. इसलिए शरीर पर व्यायाम का प्रभाव भी कम होता है, जो मांसपेशियों में तनाव या शारीरिक तनाव पैदा नहीं करता. पानी में कसरत करने से ताजगी और खुशी महसूस होती है. वाटर वर्कआउट वेट लौस करने और हर उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद रहता है.

जरूरी है देखरेख

यदि आप पहली बार वाटर वर्कआउट कर रही हैं, तो ट्रेनर की निगरानी में ही करें. 1 घंटे से अधिक पानी में न रहें अन्यथा त्वचा पर सनबर्न हो सकता है. इस से बचने के लिए वाटर वर्कआउट करने के 20 मिनट पहले शरीर पर सनस्क्रीन लगाएं. किसी भी तरह का वाटर वर्कआउट करने के बाद 10-15 मिनट आराम जरूर करें ताकि शरीर का तापमान सामान्य हो जाए.

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कैलोरी बर्नर

आप सेहतमंद तरीके से वजन कम करना चाहती हैं, तो वाटर वर्कआउट जरूर अपनाएं, क्योंकि पानी में ऐक्सरसाइज करने से मांसपेशियों में तनाव नहीं आता है. अगर आप दिन में 1 घंटा वाटर वर्कआउट करती हैं तो 300 से 600 कैलोरी बर्न कर सकती हैं. यानी वाटर वर्कआउट करने से शरीर की चरबी को खत्म करने के साथसाथ उसे सुरक्षित तरीके से शेप में भी ला सकती हैं.

फ्लैक्सिबिलिटी में विस्तार

फ्लैक्सिबिलिटी यानी लचीलापन. वाटर वर्कआउट से जुड़ी है फ्लैक्सिबिलिटी. पानी में  कसरत करने से अंदरूनी चोट नहीं लगती. साथ ही जोड़ अधिक लचीले बनते हैं. नतीजतन उन की सक्रियता में इजाफा होता है.

तनाव से छुटकारा

यदि आप बहुत तनाव में हैं, तो वाटर वर्कआउट करें. इस से आप तरोताजा महसूस करेंगी और तनाव से राहत मिलेगी. पानी में होने पर दिमाग ऐंडोर्फिंस हारमोन रिलीज होते हैं, जिस से तनाव कम होता है.

स्ट्रौंग होतीं मसल्स

जहां वाटर वर्कआउट से वजन कम होता है, वहीं तनाव से राहत मिलती है. मांसपेशियों में लचीलापन बढ़ता है, कई रोगों का निदान होता है. इसे नियमित करने से मसल्स भी स्ट्रौंग होती हैं, साथ ही उन में लचीलापन भी बढ़ता है.

कंट्रोल में ब्लडप्रैशर

पानी में व्यायाम करने से शरीर में रक्त का प्रवाह बेहतर होता है, जिस से ब्लडप्रैशर की समस्या नहीं होती. इस से हार्टबीट भी बेहतर रहती है.

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फैमिली के लिए बनाएं लौकी के कटलेट

लौकी हर किसी को पसंद नही होती है इसलिये आज हम आपको लौकी की एक ऐसी डिश बनाना सिखाएंगे जिसे देखते ही आपके मुंह में पानी आ जाएगा. जी हां, आज हम आपको टेस्‍टी लौकी कटलेट बनाना सिखाएंगे.

इस लौकी कटलेट में थोड़ा सा मैदा और पके हुए चावल मिलाएं जाते हैं, जिससे यह काफी क्रिस्‍पी बनती है. इस रेसिपी को आप स्‍नैक के तौर पर बना सकती हैं.

सामग्री

– 1 कप लौकी कद्दूकस की

– 1/2 कप भुने चने का पाउडर

– 1/2 कप ब्रैडक्रंब्स

– 2 बड़े चम्मच चावल का आटा

– 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

– मिर्च, चाटमसाला व नमक स्वादानुसार.

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सामग्री भरावन की

– 100 ग्राम पनीर कद्दूकस किया

– 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च चूर्ण

– 8 किशमिश छोटे टुकड़ों में कटी

– 2 छोटे चम्मच पुदीनापत्ती कटी

– शैलो फ्राई करने के लिए थोड़ा सा रिफाइंड औयल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

कद्दूकस की लौकी को दोनों हाथों से कस कर निचोड़ें ताकि सारा पानी निकल जाए. फिर इस में सारी सामग्री मिला लें. इसी तरह पनीर में भी सारी सामग्री मिला लें. लौकी वाले मिश्रण से बड़े नीबू के बराबर मिश्रण ले कर बीच में पनीर वाला मिश्रण भर कर बंद करें. इच्छानुसार आकार दें और नौनस्टिक पैन में थोड़ा सा तेल डाल कर कटलेट को सुनहरा होने तक तल लें. सौस या चटनी के साथ सर्व करें.

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नामर्द: तहजीब का इल्जाम क्या सह पाया मुश्ताक

तहजीब के अब्बा इशरार ने अपनी लड़की को दिए जाने वाले दहेज को गर्व से देखा. फिर अपने साढ़ू तथा नए बने समधी से पूछा, ‘‘अल्ताफ मियां, कुछ कमी हो तो बताओ?’’

‘‘भाई साहब, आप ने लड़की दी, मानो सबकुछ दे दिया,’’ तहजीब के मौसा व नए रिश्ते से बने ससुर अल्ताफ ने कहा, ‘‘बस, जरा विदाई की तैयारी जल्दी कर दें.’’

शीघ्र ही बरात दुलहन के साथ विदा हो गई. तहजीब का मौसेरा भाई मुश्ताक अपनी मौसेरी बहन के साथ शादी करने के पक्ष में नहीं था. उस का विचार था कि यह व्यवस्था उस समय के लिए कदाचित ठीक रही होगी जब लड़कियों की कमी रही होगी. परंतु आज की स्थिति में इतने निकट का संबंध उचित नहीं. किंतु उस की बात नक्कारखाने में तूती के समान दब कर रह गई थी. उस की मां अफसाना ने सपाट शब्दों में कहा था, ‘‘मैं ने खुद अपनी बहन से उस की लड़की को मांगा है. अगर वह इस घर में दुलहन बन कर नहीं आई तो मैं सिर पटकपटक कर अपनी जान दे दूंगी.’’

विवश हो कर मुश्ताक को चुप रह जाना पड़ा था. तहजीब जब अपनी ससुराल से वापस आई तो वह बहुत बुझीबुझी सी थी. वह मुसकराने का प्रयास करती भी तो मुसकराहट उस के होंठों पर नाच ही न पाती थी. वह खोखली हंसी हंस कर रह जाती थी. तहजीब पर ससुराल में जुल्म होने का प्रश्न न था. दोनों परिवार के लोग शिक्षित थे. अन्य भी कोई ऐसा स्पष्ट कारण नहीं था जिस में उस उदासी का कारण समझ में आता.

‘‘तुम तहजीब का दिल टटोलो,’’ एक दिन इशरार ने अपनी पत्नी रुखसाना से कहा, ‘‘उसे जरूर कोई न कोई तकलीफ है.’’

‘‘पराए घर जाने में शुरू में तकलीफ तो होती ही है, इस में पूछने की क्या बात है?’’ रुखसाना बोली, ‘‘धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी.’’ ‘‘जी हां, जब आप पहली बार इस घर से गई थीं तब शायद ऐसा ही मुंह फूला हुआ था, खिली हुई कली के समान गई थीं. तहजीब बेचारी मुरझाए हुए फूल के समान वापस आई है,’’ इशरार ने शरारत के साथ कहा.

‘‘हटो जी, आप तो चुहलबाजी करते हैं,’’ रुखसाना के गालों पर सुर्खी दौड़ गई, ‘‘मैं तहजीब से बात करती हूं.’’

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रुखसाना ने बेटी को कुरेदा तो वह उत्तर देने की अपेक्षा आंखों में आंसू भर लाई. ‘‘तुझे वहां क्या तकलीफ है? मैं आपा को आड़े हाथों लूंगी. उन्हीं के मांगने पर मैं ने तुझे उन की झोली में डाला है. मैं ने उन से पहले ही कह दिया था कि मेरी बिटिया नाजों से पली है. किसी ने उस के काम में नुक्ताचीनी निकाली तो ठीक नहीं होगा.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, अम्मीजान, मुझ से किसी ने कुछ कहा नहीं है,’’ तहजीब ने धीमे से कहा.

‘‘फिर?’’

कुछ कहने की अपेक्षा तहजीब फिर आंसू बहाने लगी. नकविया तहजीब की सहेली थी. वह एक संपन्न घराने की थी. जिस समय तहजीब की शादी हुई थी उस समय वह लंदन में डाक्टरी की पढ़ाई कर रही थी. उसे शादी में बुलाया गया था परंतु यात्रा की किसी कठिनाई के कारण वह समय पर नहीं आ सकी थी. उस का आना कुछ दिन बाद हो पाया था. भेंट होने पर रुखसाना ने उस से कहा, ‘‘बेटी, तहजीब ससुराल से आने के बाद से बहुत उदास है. कुछ पूछने पर बस रोने लगती है. जरा उस के दिल को किसी तरह टटोलो.’’

‘‘आप फिक्र न करें, अम्मीजान, मैं सबकुछ मालूम कर लूंगी,’’ नकविया ने कहा और फिर वह तहजीब के कमरे में घुस गई.

‘‘अरे यार, तेरा चेहरा इतना उदासउदास सा क्यों है?’’ उस ने तहजीब से पूछा.

‘‘बस यों ही.’’

‘‘यह तो कोई बात न हुई. साफसाफ बता कि क्या बात है? कहीं दूल्हा भाई किसी दूसरी से तो फंसे हुए नहीं हैं.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. वे कहीं फंसने लायक ही नहीं हैं,’’ तहजीब बहुत धीमे से बोली, ‘‘वे तो पूरी तरह ठंडे हैं.’’

‘‘क्या?’’ नकविया ने चौंक कर कहा, ‘‘तू यह क्या कह रही है?’’

‘‘हां, यही तो रोना है, तेरे दूल्हा भाई पूरी तरह ठंडे हैं, वे नामर्द हैं.’’ नकविया सोच में डूब गई, ‘भला वह पुरुष नामर्द कैसे हो सकता है जो कालेज के दिनों में घंटों एक लड़की के इंतजार में खड़ा रहता था और कालेज आतेजाते उस लड़की के तांगे का पीछा किया करता था.’

‘‘नहीं, वह नामर्द नहीं हो सकता,’’ नकविया के मुख से अचानक निकल गया.

‘‘तू दावे के साथ कैसे कह सकती है? भुगता तो मैं ने उसे है. एकदो नहीं, पूरी 5 रातें.’’

‘‘अरे यार, मैं डाक्टर हूं. मैं जानती हूं कि ऐसे 99 प्रतिशत मामले मनोवैज्ञानिक होते हैं. लाखों में कोई एकाध आदमी ही कुदरती तौर पर नामर्द होता है.’’

‘‘तो शायद तेरे दूल्हा भाई उन एकाध में से ही हैं,’’ तहजीब मुसकराई.

‘‘अच्छा, क्या तू उन्हें मेरे पास भेज सकती है? मैं जरा उन का मुआयना करना चाहती हूं.’’

‘‘भिजवा दूंगी, जरा क्या, पूरा मुआयना कर लेना. तेरी डाक्टरी कुछ नहीं करने की.’’

‘‘तू जरा भेज तो सही,’’ नकविया ने इतना कहा और उठ खड़ी हुई. तहजीब की मां ने जब नकविया से तहजीब की उदासी का कारण जाना तो वह सनसनाती हुई अपनी बहन के घर जा पहुंची. उस ने उन को आड़े हाथों लिया, ‘‘आपा, तुम्हें अपने लड़के के बारे में सबकुछ पता होना चाहिए था. ऐसी कोई कमी थी तो उस की शादी करने की क्या जरूरत थी? मेरी लड़की की जिंदगी बरबाद कर दी तुम ने.’’

‘‘छोटी, तू कहना क्या चाहती है?’’ मुश्ताक की मां अफसाना ने कुछ न समझते हुए कहा.

‘‘अरे, जब लड़का हिजड़ा है तो शादी क्यों रचा डाली? कम से कम दूसरे की लड़की का तो खयाल किया होता,’’ रुखसाना हाथ नचा कर बोली.

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‘‘छोटी, जरा मुंह संभाल कर बात कर. मेरी ससुराल में ऐसे मर्द पैदा हुए हैं जिन्होंने 3-3 औरतों को एकसाथ खुश रखा है. यहां शेर पैदा होते हैं, गीदड़ नहीं.’’ बातों की लड़ाई हाथापाई में बदल गई. अल्ताफ ने बड़ी मुश्किल से दोनों को अलग किया.

रुखसाना बड़बड़ाती हुई चली गई. इस प्रकरण को ले कर दोनों परिवारों के मध्य बहुत कटुता उत्पन्न हो गई. एक दिन अल्ताफ और इशरार भी परस्पर भिड़ गए, ‘‘मैं तुम्हें अदालत में खींचूंगा. तुम पर दावा करूंगा. दहेज के साथसाथ और सारे खर्चे न वसूले तो नाम पलट कर रख देना,’’ इशरार ने गुस्से से कहा तो अल्ताफ भी पीछे न रहा. दोनों में हाथापाई की नौबत आ गई. कुछ लोग बीच में पड़ गए और उन्हें अलगअलग किया. दोनों तब वकीलों के पास दौड़े. तहजीब मुश्ताक के पास यह संदेश भेजने में सफल हो पाई कि उसे उस की सहेली नकविया याद कर रही है. एक दिन मुश्ताक नकविया के घर जा पहुंचा.

‘‘आइए, आइए,’’ नकविया ने मुश्ताक का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘मेरे कालेज जाने से पहले और लौट कर आने से पहले तो मुस्तैदी से रास्ते में साइकिल लिए तांगे का पीछा करने को तैयार खड़े मिलते थे, और अब बुलाने के इतने दिन बाद आए हो.’’

नकविया ने मुसकरा कर यह बात कही तो मुश्ताक झेंप गया. फिर दोनों इधरउधर की बातें करते रहे. ‘‘तहजीब के साथ क्या किस्सा हो गया? मैं उस की सहेली होने के साथसाथ तुम्हारे लिए भी अनजान नहीं हूं. मुझे सबकुछ साफसाफ बताओ जिस से 2 घरों के बीच खिंची तलवारों को म्यानों में पहुंचाया जा सके?’’

‘‘मैं बचपन से तहजीब को अपनी बहन मानता रहा हूं. वह भी मुझे ‘भाईजान’ कहती रही है. उस के साथ जिस्मानी ताल्लुक रखना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल काम है. तुम ही बताओ, इस में मेरा क्या कुसूर है?’’ नकविया मुश्ताक को कोई उत्तर नहीं दे सकी. तब उस ने बात का पहलू बदल लिया, वह दूसरी बातें करने लगी. जब मुश्ताक जाने लगा तो उस ने वादा किया कि वह रोज कुछ देर के लिए आएगा जब तक कि वह इंगलैंड नहीं चली जाती.

फिर नकविया तथा मुश्ताक दोनों एकदूसरे के निकट आते चले गए. एक दिन नकविया ने तहजीब को बताया, ‘‘सुन, तेरा पति तो पूरा मर्द है. उस में कोई कमी नहीं है. उस के दिल में तेरे लिए जो भावना है, उसे मिटाना बड़ा मुश्किल काम है,’’ फिर नकविया ने सबकुछ बता दिया. तहजीब बहुत देर तक कुछ सोचती रही. फिर बोली, ‘‘उन का सोचना ठीक लगता है. सचमुच, इतने नजदीकी रिश्तों में शादी नहीं होनी चाहिए. अब कुछ करना ही होगा.’’ फिर तहजीब और मुश्ताक परस्पर मिले और उन के बीच एक आम सहमति हो गई. कुछ दिन बाद मुश्ताक ने तहजीब को तलाक के साथ मेहर का पैसा तथा सारा दहेज भी वापस भेज दिया.

‘‘मैं दावा करूंगा. क्या समझता है अल्ताफ अपनेआप को. जब लड़का हिजड़ा था तो क्यों शादी का नाटक रचा,’’ तहजीब के अब्बा गुस्से से बोले.

‘‘नहीं अब्बा, नहीं. अब हमें कुछ नहीं करना है. मुश्ताक में कोई कमी नहीं थी. दरअसल, मैं ही उस से पिंड छुड़ाना चाहती थी,’’ तहजीब ने बात समाप्त करने के उद्देश्य से इलजाम अपने ऊपर ले लिया.

‘‘लेकिन क्यों?’’ उस की मां ने हस्तक्षेप करते हुए पूछा.

‘‘मुझे वे पसंद नहीं थे.’’

‘‘अरे बेहया,’’ मां चिल्लाईं, ‘‘तू ने झूठ बोल कर पुरानी रिश्तेदारी को भी खत्म कर दिया,’’ उन्होंने तहजीब के सिर के बालों को पकड़ कर झंझोड़ डाला. फिर उस के सिर को जोर से दीवार पर दे मारा. कुछ दिनों बाद नकविया लंदन वापस चली गई. लगभग 5 माह बाद नकविया फिर भारत आई. वह अपने साथ 1 व्यक्ति को भी लाई थी. उस को ले कर वह तहजीब के घर गई. तहजीब के मांबाप से उस व्यक्ति का परिचय कराते हुए नकविया ने कहा, ‘‘ये मेरे साथ लंदन में डाक्टरी पढ़ते हैं. लखनऊ में इन का घर है. आप चाहें तो लखनऊ जा कर और जानकारी ले सकते हैं. तहजीब के लिए मैं बात कर रही हूं.’’ लड़का समझ में आ जाने पर अन्य बातें भी देखभाल ली गईं, फिर शादी भी पक्की हो गई.

‘‘बेटी, तुम शादी कहां करोगी, हिंदुस्तान में या इंगलैंड में?’’ एक दिन तहजीब की मां ने नकविया से पूछा.

‘‘अम्मीजान, मैं अपने ही देश में शादी करूंगी. बस, जरा मेरी पढ़ाई पूरी हो जाए.’’

‘‘कोई लड़का देख रखा है क्या?’’

‘‘हां, लड़का तो देख लिया है. यहीं है, अपने शहर का.’’

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‘‘कौन है?’’

‘‘आप का पहले वाला दामाद मुश्ताक,’’ नकविया ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हाय, वह… वह नामर्द. तुम्हें उस से शादी करने की क्या सूझी?’’

‘‘अम्मीजान, वह नामर्द नहीं है,’’ नकविया ने तब उन्हें सारा किस्सा कह सुनाया. ‘‘हम ही गलती पर थे. हमें इतनी नजदीकी रिश्तेदारी में बच्चों की शादी नहीं करनी चाहिए. सच है, जहां भाईबहन की भावना हो वहां औरतमर्द का संबंध क्यों बनाया जाए,’’ तहजीब की मां ने अपनी गलती मानते हुए कहा.

मंथर हत्या: सुरेश और उसकी पत्नी ने कैसे दिया माता-पिता को धोखा

बड़े भैया और सुरेश दोनों सगे भाई थे लेकिन दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर था. मैं अनीता जोशी, माताजी की नर्स हूं. माताजी जब बड़े भैया के यहां से वापस आई थीं, एकदम चुस्त- दुरुस्त थीं. खूब हंसहंस कर बाबूजी को बता रही थीं कि क्या खाया, क्या पिया, किस ने पकाया.

बड़े भैया जब भी कनाडा से भारत आते मां को अपने फ्लैट पर ले जाते और अमृतसर से अपनी छोटी बहन मंजू को भी बुला लेते. कई सालों से यह सिलसिला चल रहा है. महीना भर के लिए मेरी भी मौज हो जाती. मैं भी उधर ही रहती. माताजी पिछले 4 सालों से मेरे ऊपर पूरी तरह निर्भर थीं. 90 साल की उम्र ठहरी, शरीर के सभी जरूरी काम बिस्तर पर ही निबटाने पड़ते थे.

वैसे देखा जाए तो सुरेश और उन की पत्नी संतोष को सेवा करनी चाहिए. मांबाप के घर में जो रह रहे हैं. कभी काम नहीं जमाया. एक तरह से बाबूजी का ही सब हथिया कर बैठ गए हैं. संतोष बीबीजी भी एकदम रूखी हैं. पता नहीं कैसे संस्कार पाए हैं. औरत होते हुए भी इन का दिल कभी अपनी सास के प्रति नहीं पसीजता. बस, अपने पति और बच्चों से मतलब या पति की गांठ से.

इधर कई महीनों से माताजी रात को आवाज लगाती थीं तो सुरेश का परिवार सुनीअनसुनी कर देता था. एक दिन बाबूजी ने सुरेश के बच्चों को फटकारा तो वह कहने लगे कि ऊपर तक आवाज सुनाई नहीं देती. आवाज लगाना फुजूल हुआ तो माताजी ने कटोरी पर चम्मच बजा कर घंटी बना ली. इस पर संतोष बीबीजी ने यह कह कर कटोरी की जगह प्लास्टिक की डब्बी रखवा दी कि कटोरी बजाबजा कर बुढि़या ने सिर में दर्द कर दिया.

मैं ड्यूटी पर आई तो माताजी ने कहा कि अनीता, तू ने मुझे रात को खाना क्यों नहीं दिया. मैं बोली कि खाना तो मैं बना कर जाती हूं और आशीष आप को दोनों समय खाना खिलाता है. मैं ने ऊपर जा कर छोटी बहू संतोष से पूछा तो वह बोलीं, ‘‘अरे, इस बुढि़या का तो दिमाग चल गया है. खाऊखाऊ हमेशा लगाए रखती है. खाना दिया था यह भूल गई.’’

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अगले दिन बाबूजी से पूछा तो वह कहने लगे कि डाक्टर ने खाने के लिए मना किया है. रात का खाना खिलाने से इन का पेट खराब हो जाएगा. ताकत की दवाइयां दे गया है. आशीष खिला देता है.

मैं ने माताजी से पूछा, ‘‘डाक्टर आप को देखने आया था लेकिन आप ने तो नहीं बताया.’’

माताजी हैरान हो कर बोलीं, ‘‘कौन सा डाक्टर? अरे, मैं तो डा. चावला को दिखाती थी पर उन को मरे हुए तो 2 साल हो गए. दूसरे किसी डाक्टर को ये इसलिए नहीं दिखाते कि मुझ पर इन को पैसा खर्च करना पड़ेगा.’’

मैं ने फिर पूछा, ‘‘ताकत की गोलियां कहां हैं मांजी, दूध के संग उन्हें मेरे सामने ही ले लो.’’

वह बोलीं, ‘‘कौन सी गोलियां? मरने को बैठी हूं… झूठ क्यों बोलूंगी? 3 दिन से रात का खाना बंद कर दिया है मेरा. जा, पूछ, क्यों किया ऐसा.’’

मैं ने तरस खा कर जल्दी से एक अंडा आधा उबाला और डबल रोटी का एक स्लाइस ले कर अपने घर जाने से पहले उन्हें खिला दिया.

अगले दिन मेरी आफत आ गई. सुरेश बाबू ने मुझे डांटा और कहा कि जो वह कहेंगे वही मुझे करना पड़ेगा. रात को उन्हें पाखाना कौन कराएगा.

मैं ने दबी जबान से दलील दी कि भूख तो जिंदा इनसान को लगती ही है, तो चिल्ला पड़े, ‘‘तू मुझे सिखाएगी?’’

मैं भी मकानजायदाद वाली हूं. घर से कमजोर नहीं हूं. मेरा बड़ा बेटा डाक्टरी पढ़ रहा है. छोटा दर्जी की दुकान करता है. उसी की कमाई से फीस भरती हूं. दोनों मुझे यहां कभी न आने देते. मगर माताजी मेरे बिना रोने लगती हैं. मैं हूं भी कदकाठी से तगड़ी. माताजी 80 किलो की तो जरूर होंगी. उन्हें उठानाबैठाना आसान काम तो नहीं और मैं कर भी लेती हूं.

एक बार कनाडा से माताजी जिमर फ्रेम ले आई थीं जो वजन में हलका और मजबूत था. माताजी उसे पकड़ कर चल लेती थीं. अंदरबाहर भी हो आती थीं. पर तभी छोटी बहू के पिताजी को लकवा मार गया. अत: उन्होंने जिमर फ्रेम अपने पिताजी को भिजवा दिया.

बड़े भैया जब अगली बार आए तो अपनी मां को एक पहिएदार कुरसी दिला गए. मैं उसी पर बैठा कर उन को नहलानेधुलाने बाथरूम में ले जाती थी. मगर 2 साल पहले जब आशीष ने कंप्यूटर खरीदा तो संतोष बीबीजी ने उस की पुरानी मेज माताजी के कमरे में रखवा दी जिस से व्हील चेयर के लिए रास्ता ही नहीं बचा.

बड़े भैया कनाडा से आते तो अपनी मां के लिए जरूरत का सब सामान ले आते. भाभीजी सफाईपसंद हैं, एकदम कंचन सा सास को रखतीं. भाभीजी अपने हाथ से माताजी की पसंद का खाना बना कर खिलातीं. बाबूजी बड़े भैया के घर नहीं जाते थे. सुरेश ने कुछ ऐसा काम कर रखा था कि बाप बेटे से जुदा हो गया. बाबूजी के मन में अपने बड़े बेटे के प्रति कैसा भाव था यह तब देखने को मिला जब भैया माताजी से मिलने आए तो बाबूजी परदे के पीछे चले गए. इस के बाद ही बड़े भैया ने अलग मकान लिया और मां को बुलवा कर उन की सारी इच्छाओं को पूरा करते थे. तब मेरी भी खूब मौज रहती. वह मुझे 24 घंटे माताजी के पास रखते और उतने दिनों के पैसों के साथ इनाम भी देते.

फिर जब उन के कनाडा जाने का समय आता तो वह माताजी को वापस यहां छोड़ जाते और वह फिर उसी गंदी कोठरी में कैद हो जातीं. भाभीजी की लाई हुई सब चीजें एकएक कर गायब हो जातीं. मैं ने एक बार इस बात की बाबूजी से शिकायत की तो उलटा मुझ पर ही दोष लगा दिया गया. मैं ने जवाब दे दिया कि कल से नहीं आऊंगी, दूसरा इंतजाम कर लो. मगर माताजी ने मेरे नाम की जो रट लगाई कि उन का चेहरा देख कर मुझे अपना फैसला बदलना पड़ा.

खाना तो रोज बनता है इस घर में. बाबूजी को खातिर से खिलाते हैं मगर मांजी के लिए 2 रोटी नहीं हैं. यह वही मां है जिस ने किसी को कभी भूखा नहीं सोने दिया. देवर, ननद, सासससुर, बच्चे सब संग ही तो रहते थे. आज उसी का सब से लाड़ला बेटा उसे 2 रोटी और 1 कटोरी सब्जी न दे? क्या कोई दुश्मनी थी?

माताजी की सहेली भी मैं ही थी. एक दिन उन से पूछा तो कहने लगीं कि बाबूजी की ये खातिरवातिर कुछ नहीं करते. सब नीयत के खोटे हैं. बाबूजी के बैंक खाते में करोड़ों रुपए हैं इसलिए उन्हें मस्का लगाते हैं. मैं ठहरी औरत जात. 2-4 गहने थे उन्हें बेटी के नेगजोग में दे बैठी. इन पर बोझ नहीं डाला कभी. अब मैं खाली हाथ खर्चे ही तो करवा रही हूं. रोज दवाइयां, डाक्टर. ऊपर से मुझे दोष लगाते हैं कि तू मेरे गहने परायों को दे आई.

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आज सुरेश अपनी बीवी को 5 हजार रुपया महीना जेबखर्च देता है. मेरा आदमी इसे देख कर भी नहीं सीखता. पहले तो ऐसा रिवाज नहीं था. औरतों को कौन जेबखर्च देता था.

माताजी की बाबूजी से नहीं बनती. कैसे बने? शराबी का अपना दिमाग तो होता नहीं. सुरेश के हाथ कठपुतली बन कर रह गए हैं. 10वीं में बेटा फेल हुआ तो उसे अपने साथ दुकानदारी में लगा लिया और पीना भी सिखा दिया. अब उसी नालायक से यारी निभा रहे हैं. माताजी कहती थीं कि देखना अनीता, जिस दिन मेरी आंखें बंद हो जाएंगी यह बाप की रोटीपानी भी बंद कर देगा. बाप को बोतल पकड़ा कर निचोड़ रहा है, ताकि जल्दी मरे.

माताजी कोसतीं कि इतनी बड़ी कोठी कौडि़यों के मोल बेच दी और इस दड़बे जैसे घर में आ बैठा, जहां न हवा है न रोशनी. मेरे कमरे में तो सूरज के ढलने या उगने का पता ही नहीं चलता. ऊपर से संतोष ने सारे घर का कबाड़ यहीं फेंक रखा है.

माताजी रोज अपनी कोठी को याद करती थीं. सुबह चिडि़यों को दाना डालती थीं. सूरज को निकलते देखतीं, पौधों को सींचतीं. ग्वाला गाय ले कर आता तो दूध सामने बैठ कर कढ़वातीं. लोकाट और आम के पेड़ थे, लाल फूलों वाली बेल थीं.

बड़े भैया के बच्चे सामने चबूतरे पर खेलते थे. बड़े भैया अच्छा कमाते थे. सारे घर का खर्च उठाते थे. सारा परिवार एक छत के नीचे रहता था और यह सुरेश की बहू डोली से उतरने के 4 दिन बाद से  ही गुर्राने लगी. अपने घर की कहानी सुनातेसुनाते माताजी रो पड़तीं.

इस बार बड़े भैया जब आए तब जाने क्यों बाबूजी खुद ही उन से बोलने लगे. भाभीजी ने पांव छुए तो फल उठा कर उन के आंचल में डाले. पास बैठ कर घंटों अच्छे दिनों की यादें सुनाने लगे. जब वह लोग माताजी को अपने फ्लैट पर ले गए तो मैं ने देखा कि उस रोज बाबूजी पार्क की बेंच पर अकेले बैठे रो रहे थे.

मैं रुक गई और पूछा, ‘‘क्या बात हो गई?’’ तो कहने लगे कि अनीता, आज तो मैं लुट गया. मेरा एक डिविडेंड आना था. सुरेश फार्म पर साइन करवाने कागज लाया था. मगर मैं ने कुछ अधिक ही पी रखी थी. उस ने बीच में सादे स्टांप पेपर पर साइन करवा लिए. नशा उतरने के बाद अपनी गलती पर पछता रहा हूं. अरे, यह सुरेश किसी का सगा नहीं है. पहले बड़े भाई के संग काम करता था तो उसे बरबाद किया. वह तो बेचारा मेहनत करने परदेस चला गया. मुझ से कहता था, भाई ने रकम दबा ली है और भाग निकला है. मैं भी उसे ही अब तक खुदगर्ज समझता रहा मगर बेईमान यह निकला.

मैं ने कहा, ‘‘अभी भी क्या बिगड़ा है. सबकुछ तो आप के पास है. बड़े को उस का हक दो और आप भी कनाडा देखो.’’

वह हताश हो कर बोले, ‘‘अनीता, कल तक सब था, आज लुट गया हूं. क्या मुंह दिखाऊंगा उसे. मुझे लगता है कि मैं ने इस बार बड़े से बात कर ली तो छोटे ने जलन में मुझे बरबाद कर दिया.’’

मन में आया कह दूं कि आप को तो रुपए की बोरी समझ कर संभाल रखा है. मांजी पर कुछ नहीं है इसलिए उन्हें बड़े भाई के पास बेरोकटोक जाने देता है. मगर मैं क्यों इतनी बड़ी बात जबान पर लाती.

होली की छुट्टियों में मैं गांव गई थी. जाते समय जमादारिन से कह गई थी कि माताजी को देख लेगी. 4 दिन बाद गांव से लौटी तो देखा माताजी बेहोश पड़ी थीं. बड़े भैया 1 माह की दवाइयां, खाने का दिन, समय आदि लिख कर दे गए थे. उसी डा. चावला को टैक्सी भेज कर बुलवाया था जिसे इन लोगों ने मरा बता दिया था. माताजी देख कर हैरान रह गई थीं. डाक्टर साहब ने हंस कर कहा था, ‘‘उठिए, मांजी, स्वर्ग से आप को देखने के लिए आया हूं.’’

बाबूजी ने मुझे बताया कि जब से तू गांव गई सुरेश ने एक भी दवाई नहीं दी. कहने लगा कि आशीष और विशेष की परीक्षाएं हैं, उस के पास दवा देने का दिन भर समय नहीं और मुझे तो ठीक से कुछ दिखता नहीं.

माताजी ब्लड प्रेशर की दवा पिछले 55 साल से खाती आ रही हैं. मुझे बाबूजी से मालूम हुआ कि दवा बंद कर देने से उन का दिल घबराया और सिर में दर्द होने लगा तो सुरेश ने आधी गोली नींद की दे दी थी. उस के बाद ही इन की हालत खराब हुई है.

मैं ने माताजी की यह हालत देखी तो झटपट बड़े भैया को फोन लगाया. सुनते ही वह दौड़े आए. बड़ी भाभी ने हिलाडुला कर किसी तरह उठाया और पानी पिलाया. माताजी ने आंखें खोलीं. थोड़ा मुसकराईं और आशीर्वाद दिया, ‘‘सुखी रहो…सदा सुहागिन बनी रहो.’’

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बस, यही उन के आखिरी बोल थे. अगले 7 दिन वह जिंदा तो रहीं पर न खाना मांगा न उठ कर बैठ पाईं. डाक्टर ने कहा, सांस लेने में तकलीफ है. चम्मच से पानी बराबर देते रहिए.

मैं बैठी रही पर उन्होंने आंखें नहीं खोलीं. ज्यादा हालत बिगड़ी तो डाक्टर ने कहा कि इन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ेगा.

सुरेश झट से बोला, ‘‘देख लो, बाबूजी. क्या फायदा ले जाने का, पैसे ही बरबाद होंगे.’’

तभी बड़ी भाभी ने अंगरेजी में बाबूजी को डांटा कि आप इन के पति हैं. यह घड़ी सोचने की नहीं बल्कि अपनी बीवी को उस के आखिरी समय में अच्छे से अच्छे इलाज मुहैया कराने की है, अभी इसी वक्त उठिए, आप को कोई कुछ करने से नहीं रोकेगा.

2 दिन बाद माताजी चल बसीं. उन का शव घर लाया गया. महल्ले की औरतें घर आईं तो संतोष बीबीजी ऊपर से उतरीं और दुपट्टा आंखों पर रख कर रोने का दिखावा करने लगीं.

अंदर मांजी को नहलानेधुलाने का काम मैं ने और बड़ी भाभी ने किया. बड़े भैया ने ही उन के दाहसंस्कार पर सारा खर्च किया.

कल माताजी का चौथा था. कालोनी की नागरिक सभा की ओर से सारा इंतजाम मुफ्त में किया गया. पंडाल लगा, दरी बिछाई गई. रस्म के मुताबिक सुरेश को सिर्फ चायबिस्कुट खिलाने थे.

सुबह 11 बजे मैं घर पहुंची तो देखा, बाबूजी उसी पलंग पर लेटे हुए थे जिस पर माताजी लेटा करती थीं. मैं ने उन्हें उठाया, कहा कि पलंग की चादरें भी नहीं बदलवाईं अभी किसी ने.

यह सुनते ही सुरेश चिल्लाए, ‘‘तेरा अब यहां कोई काम नहीं, निकल जा. होली की छुट्टी लेनी जरूरी थी. मार डाला न मेरी मां को. अब 4 दिन की नागा काट कर हिसाब कर ले और दफा हो.’’

‘‘माताजी को किस ने मारा, यह इस परिवार के लोगों को अच्छी तरह पता है. मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा हिसाब.’’

मैं चिल्ला पड़ी थी. मेरा रोना निकल गया पर मैं रुकी नहीं. लंबेलंबे डग भर कर लौट पड़ी.

बाबूजी मेरे पीछेपीछे आए. मेरे कंधे पर हाथ रखा. उन की आंखों में आंसू थे, भर्राए गले से बोले, ‘‘अब मेरी बारी है, अनीता.’’

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बकरा: भाग 3- क्या हुआ था डिंपल और कांता के साथ

लेखक- कृष्ण चंद्र महादेविया

सब से पहले गुर ने पिंडी की पूजा की, फिर दूसरे खास लोगों को पूजा करने को कहा गया. चेला और मौहता व दूसरे कारदार जोरजोर से जयकारा लगाते थे. ढोलनगाड़ातुरही बजने लगे थे. गुर खालटू कनखियों से चारों ओर भी देख लेता था और गंभीर चेहरा बनाए खास दिखने की पूरी कोशिश करता था. माधो डिंपल के साथ मंदिर से थोड़ी दूर अपराधी की तरह खड़ा था. कांता भी अपनी दादी के साथ एक पेड़ के नीचे खड़ी थी. माधो के बकरे को पिंडी के पास लाया गया था. उस की पीठ पर गुर ने पानी डाला, तो बकरे ने जोर से पीठ हिलाई. चारों ओर से लटूरी देवता की जयजयकार गूंज गई.

छांगू चेले ने सींगों से बकरे को पकड़ा था. एक मोटे गांव वाले ने दराट तेज कर पालकी के पास रखा था. उसे बकरा काटने के लिए गुर के आदेश का इंतजार था. अचानक कांता जोरजोर से चीखने. गरदन हिलाते हुए उछलने भी लगी. उस के बाल बिखर गए. दुपट्टा गिर गया था. सभी लोग उस की ओर हैरानी से देखने लगे थे. कांता की दादी बड़े जोर से बोली, ‘‘लड़की में कोई देवी या फिर कोई देवता आ गया है. अरे, कोई पूछो तो सही कि कौन लड़की में प्रवेश कर गया है?’’ गुर, चेला और दूसरे कारदार बड़ी हैरानी और कुछ डरे से कांता की ओर देखने लग गए. गुर पूजापाठ भूल गया था.

एक बूढ़े ने डरतेडरते पूछा, ‘‘आप कौन हैं जो इस लड़की में आ गए हैं? कहिए महाराज…’’

‘‘मैं काली हूं. कलकत्ते वाली. लटूरी देवता से बड़ी. सारे मेरी बात ध्यान से सुनो. आदमी के चलने से रास्ते कभी अपवित्र नहीं होते, न कोई देवता नाराज होता है. मैं काली हूं काली. आज में झूठों को दंड दूंगी. माधो और उस की बेटी पर झूठा इलजाम लगाया गया है. सुनो, लटूरी देवता कोई बलि नहीं ले सकता. अभी मेरी बहन महाकाली भी आने वाली है. आज सब के सामने सच और झूठ का फैसला होगा,’’ कांता उछलतीकूदती चीखतीचिल्लाती पिंडी के पास पहुंच गई.

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अचानक तभी डिंपल भी जोर से चीखने और हंसने लगी. उस के बाल खुल कर बिखर गए. अब तो गांव वाले और हैरानपरेशान हो गए. इस गांव के ही नहीं, बल्कि आसपास के बीसियों गांवों में कभी ऐसा नहीं हुआ था कि किसी औरत में देवी आई हो. डिंपल की आवाज में फर्क आ गया था. एक बुढि़या ने डरतेडरते पूछा, ‘‘आप कौन हैं, जो इस सीधीसादी लड़की में प्रवेश कर गए हो? हे महाराज, आप देव हैं या देवी?’’ डिंपल भी चीखतीउछलती लटूरी देवता की पिंडी के पास पहुंच गई थी. वह जोर से बोली, ‘‘मैं महाकाली हूं. आज मैं पाखंडियों को सजा दूंगी. अब काली और महाकाली आ गई हैं, अब दुष्टों को दंड जरूर मिलेगा,’’ कह कर उस ने पिंडी के पास से दराट उठाया और बकरे का सींग पकड़े छांगू के हाथ पर दे मारा.

छांगू चेले की उंगलियों की 2 पोरें कट कर नीचे गिर गईं. वह दर्द के मारे चिल्लाने और तड़पने लगा. ‘‘बकरे, जा अपने घर, तुझे कोई नहीं काट सकता. जा, घर जा,’’ डिंपल ने उछलतेकूदते कहा.

बकरा भी माधो के घर की तरफ दौड़ गया. यह सब देख कर लोग जयकार करने लगे. अब तक तो सभी ने हाथ भी जोड़ लिए थे. बच्चे तो अपने मांओं से चिपक गए थे.

डिंपल ने दराट लहराया फिर चीखते और उछलते बोली, ‘‘बहन काली, गुर और उस के झूठे साथियों से पूछ सच क्या है, वरना इन्हें काट कर मैं इन का खून पीऊंगी.’’ ‘‘जो आज्ञा. खालटू गुर, जो पूछूंगी सच कहना. अगर झूठ कहा, तो खाल खींच लूंगी. आज सारे गांव के सामने सच बोल.’’

डिंपल ने एक जोर की लात खालटू को दे मारी. दूसरी लात कांता ने मारी, तो वह गिरतेगिरते बचा. गलत आदमी भीतर से डराडरा ही रहता है. डर के चलते ही खालटू ने सीधीसादी लड़कियों में काली और महाकाली का प्रवेश मान लिया था. छांगू की कटी उंगलियों से बहते खून ने उसे और ज्यादा डरा दिया था, जबकि वह खुद में तो झूठमूठ का देवता ला देता था. लातें खा कर मारे डर के वह उन के पैर पड़ गया और गिड़गिड़ाया ‘‘मुझे माफ कर दीजिए माता कालीमहाकाली, मुझे माफ कर दीजिए.’’

दर्द से तड़पते छांगू चेले ने अपनी उंगलियों पर रुमाल कस कर बांध लिया था. गुर को लंबा पड़ देख कर डर और दर्द के मारे वह भी रोते हुए उन के पैर पड़ गया, ‘‘मुझे भी माफी दे दो माता.’’ डिंपल ने गुर की पीठ पर कस कर लात मारी, ‘‘मैं महाकाली खप्पर वाली हूं. सच बता रे खालटू या तेरी गरदन काट कर तेरा सारा खून पी जाऊं,’’ डिंपल ने हाथ में पकड़ा दराट लहराया, तो वह डर के मारे कांप गया.

‘‘बताता हूं माता, सच बताता हूं. गांव वालो, माधो का बकरा खाने के लिए हम ने झूठमूठ की अफवाहें फैला कर माधो और डिंपल पर झूठा आरोप लगाया था. मुझ में कोई देवता नहीं आता है. मैं, चेला छांगू, मौहता भागू, कारदार सब से ठग कर माल ऐंठते थे. हम सारे दूसरों की औरतों पर बुरी नजर रखते थे. मुझे माफ कर दीजिए. आज के बाद मैं कभी बुरे काम नहीं करूंगा. मुझे माफ कर दीजिए.’’

डिंपल और कांता की 2-4 लातें और खाने से वह रो पड़ा. अब तो कारदार भी उन दोनों के पैरों में लौटने लगे थे.

‘‘तू सच बता ओ छांगू चेले, नहीं तो तेरा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा,’’ कांता ने जोर की ठोकर मारी तो वह नीचे गिर पड़ा, फिर उठ कर उस के पैर पकड़ लिए.

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‘‘गांव के भाईबहनो, मैं तो चेला बन कर तुम सब को ठगता था. कई लड़कियों और औरतों को अंधविश्वास में डाल कर मैं ने उन से कुकर्म किया, उन से रुपएपैसे ऐंठे. मुझे माफ कर दीजिए माता महाकाली. आज के बाद मैं कभी बुरे काम नहीं करूंगा.’’

गुर, चेले, मौहता और कारदारों ने सब के सामने सच उगल दिया. डिंपल और कांता ने उछलतेचीखते उन्हें लातें मारमार कर वहां से भागने पर मजबूर कर दिया.

एक नौजवान ने पेड़ से एक टहनी तोड़ कर कारदार और मौहता भागू को पीट दिया. डिंपल और जोर से चीखी, ‘‘जाओ दुष्टो, भाग जाओ, अब कभी गांव मत आना.’’ वे सिर पर पैर रख कर भाग गए और 2 मील नीचे लंबा डग नदी के तट पर जीभ निकाले लंबे पड़ गए. उन की पूरे गांव के सामने पोल खुल गई थी. वे एकदूसरे से भी नजरें नहीं मिला पा रहे थे.

कांता ने उछलतेचीखते जोर की किलकारी मारते हुए गुस्से से कहा, ‘‘गांव वालो, ध्यान से सुनो. खशलोहार के नाम पर रास्ते मत बांटो, वरना मैं अभी तुम सब को शाप दे दूंगी.’’ ‘माफी काली माता, शांत हो जाइए. आप की जय हो. हम रास्ते नहीं बांटेंगे. माफीमाफी,’ सैकड़ों मर्दऔरत एक आवाज में बोल उठे. बच्चे तो पहले ही डर के मारे रोने लगे थे.

काली और महाकाली के डर से अब खशखश न थे और लोहार लोहार न थे, लेकिन वे सारे गुर खालटू, चेले, मौहता व कारदारों से ठगे जाने पर दुखी थे. ‘माफी दे दो महाकाली माता. आप दोनों देवियां शांत हो जाइए. हमारे मन का मैल खत्म हो गया है. शांत हो जाइए माता,’ कई औरतें हाथ जोड़े एकसाथ बोलीं.

‘‘क्या माफ कर दें बहन काली?’’

‘‘हां बहन, इन्हें माफ कर दो. पर ये सारे भविष्य में झूठे और पाखंडी लोगों से सावधान रहें.’’

‘हम सावधान रहेंगे.’ कई आवाजें एकसाथ गूंजी. कुछ देर उछलनीचीखने और दराट लहराने के बाद डिंपल ने कहा, ‘‘काली बहन, अब लौट चलें अपने धाम. हमारा काम खत्म.’’

‘‘हां दीदी, अब लौट चलें.’’

डिंपल और कांता कुछ देर उछलींचीखीं, फिर ‘धड़ाम’ से धरती पर गिर पड़ीं. काफी देर तक चारों ओर सन्नाटा छाया रहा. सब की जैसे बोलती बंद हो गई थी.

जब काफी देर डिंपल और कांता बिना हिलेडुले पड़ी रहीं, तो कांता की दादी ने मंदिर के पास से पानी भरा लोटा उठाया और उन के चेहरे पर पानी के छींटे मारे. वे दोनों धीरेधीरे आंखें मलती उठ बैठीं. वे हैरानी से चारों ओर देखने लगी थीं. फिर कांता ने बड़ी मासूमियत से अपनी दादी से पूछा, ‘‘दादी, मुझे क्या हुआ था?’’ ‘‘और मुझे दादी?’’ भोलेपन से डिंपल ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं. आज सच और झूठ का पता चल गया है. लूट और पाखंड का पता लग गया है. जाओ भाइयो, सब अपनेअपने घर जाओ.’’

धीरेधीरे लोग अपने घरों को लौटने लगे. दादी कांता का हाथ पकड़ कर बच्ची की तरह उसे घर ले गईं. डिंपल को उस की मां और बापू घर ले आए. शाम गहराने लगी थी और हवा खुशबू लिए सरसर बहने लगी थी. एक बार फिर डिंपल और कांता सुनसान मंदिर के पास बैठ कर ठहाके लगने लगी थीं.

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‘‘बहन महाकाली.’’

‘‘बोलो बहन काली.’’

‘‘आज कैसा रहा सब?’’

‘‘बहुत अच्छा. बस, अब कदम रुकेंगे नहीं. पहली कामयाबी की तुम्हें बधाई हो कांता.’’

‘‘तुम्हें भी.’’

दोनों ने ताली मारी, फिर वे अपने गांव और आसपास के इलाकों को खुशहाल बनाने के लिए योजनाएं बनाने लगीं. आकाश में चांद आज कुछ ज्यादा ही चांदनी बिखेरने लगा था.

प्यार का विसर्जन : भाग 3- क्यों दीपक से रिश्ता तोड़ना चाहती थी स्वाति

मैं पागलों सी सड़क पर जा पहुंची. चारों तरफ जगमगाते ढेर सारे मौल्स और दुकानें थीं. आते समय ये सब कितने अच्छे लग रहे थे, लेकिन अब लग रहा था कि ये सब जहरीले सांपबिच्छू बन कर काटने को दौड़ रहे हों. पागलों की तरह भागती हुई घर वापस आ गई और दरवाजा बंद कर के बहुत देर तक रोती रही. तो यह था फोन न आने का कारण.

मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी रह गई कि दीपक ने इतना बड़ा धोखा दिया. मैं भी एक होनहार स्टूडैंट थी. मगर दीपक के लिए अपना कैरियर अधूरा ही छोड़ दिया. मैं ने अपनेआप को संभाला. दूसरे दिन दीपक के जाने के बाद मैं ने उस बिल्ंिडग और कालेज में खोजबीन शुरू की. इतना तो मैं तुरंत समझ गई कि ये दोनों साथ में रहते हैं. इन की शादी हो गई या रिलेशनशिप में हैं, यह पता लगाना था. कालेज में जा कर पता चला कि यह लड़की दीपक की पेंटिंग्स में काफी हैल्प करती है और इसी की वजह से दीपक की पेंटिंग्स इंटरनैशनल लैवल में सलैक्ट हुई हैं. दीपक की प्रदर्शनी अगले महीने फ्रांस में है. उस के पहले ये दोनों शादी कर लेंगे क्योंकि बिना शादी के यह लड़की उस के साथ फ्रांस नहीं जा सकती.

तभी एक प्यारी सी आवाज आई, लगा जैसे हजारों सितार एकसाथ बज उठे हों. मेरी तंद्रा भंग हुई तो देखा, एक लड़की सामने खड़ी थी.

‘‘आप को कई दिनों से यहां भटकते हुए देख रही हूं. क्या मैं आप की कुछ मदद कर सकती हूं.’’  मैं ने सिर उठा कर देखा तो उस की मीठी आवाज के सामने मेरी सुंदरता फीकी थी. मैं ने देखा सांवली, मोटी और सामान्य सी दिखने वाली लड़की थी. पता नहीं दीपक को इस में क्या अच्छा लगा. जरूर दीपक इस से अपना काम ही निकलवा रहा होगा.

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‘‘नो थैंक्स,’’ मैं ने बड़ी शालीनता से कहा.

मगर वह तो पीछे ही पड़ गई, ‘‘चलो, चाय पीते हैं. सामने ही कैंटीन है.’’ उस ने प्यार से कहा तो मुझ से रहा नहीं गया. मैं चुपचाप उस के पीछेपीछे चल दी. उस ने अपना नाम नीलम बताया. मु?ो बड़ी भली लगी. इस थोड़ी देर की मुलाकात में उस ने अपने बारे में सबकुछ बता दिया और अपने होने वाले पति का फोटो भी दिखाया. पर उस समय मेरे दिल का क्या हाल था, कोई नहीं समझ सकता था. मानो जिस्म में खून की एक बूंद भी न बची हो. पासपास घर होने की वजह से हम अकसर मिल जाते. वह पता नहीं क्यों मुझ से दोस्ती करने पर तुली हुई थी. शायद, यहां विदेश में मुझ जैसे इंडियंस में अपनापन पा कर वह सारी खुशियां समेटना चाहती थी.

एक दिन मैं दोपहर को अपने कमरे में आराम कर रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने ही दरवाजा खोला. सामने वह लड़की दीपक के साथ खड़ी थी. ‘‘स्वाति, मैं अपने होने वाले पति से आप को मिलाने लाई हूं. मैं ने आप की इतनी बातें और तारीफ की तो इन्होंने कहा कि अब तो मु?ो तुम्हारी इस फ्रैंड से मिलना ही पड़ेगा. हम दोनों वैलेंटाइन डे के दिन शादी करने जा रहे हैं. आप को इनवाइट करने भी आए हैं. आप को हमारी शादी में जरूर आना है.’’

दीपक ने जैसे ही मुझे देखा, छिटक कर पीछे हट गया. मानो पांव जल से गए हों. मगर मैं वैसे ही शांत और निश्च्छल खड़ी रही. फिर हाथ का इशारा कर बोली, ‘‘अच्छा, ये मिस्टर दीपक हैं.’’ जैसे वह मेरे लिए अपरिचित हो. मैं ने दीपक को इतनी इंटैलिजैंट और सुंदर बीवी पाने की बधाई दी.

दीपक के मुंह पर हवाइयां उड़ रही थीं. लज्जा और ग्लानि से उस के चेहरे पर कईर् रंग आजा रहे थे. यह बात वह जानता था कि एक दिन सारी बातें स्वाति को बतानी पड़ेंगी. मगर वह इस तरह अचानक मिल जाएगी, उस का उसे सपने में भी गुमान न था. उस ने सब सोच रखा था कि स्वाति से कैसेकैसे बात करनी है. आरोपों का उत्तर भी सोच रखा था. पर सारी तैयारी धरी की धरी रह गईर्.

नीलम ने बड़ी शालीनता से मेरा परिचय दीपक से कराया, बोली, ‘‘दीपक, ये हैं स्वाति. इन का पति इन्हें छोड़ कर कहीं चला गया है. बेचारी उसी को ढूंढ़ती हुई यहां आ पहुंची. दीपक, मैं तुम्हें इसलिए भी यहां लाई हूं ताकि तुम इन की कुछ मदद कर सको.’’ दीपक तो वहां ज्यादा देर रुक न पाया और वापस घर चला गया. मगर नींद तो उस से कोसों दूर थी. उधर, नीलम कपड़े चेंज कर के सोने चली गई. दीपक को बहुत बेचैनी हो रही थी. उसे लगा था कि स्वाति अपने प्यार की दुहाई देगी, उसे मनाएगी, अपने बिगड़ते हुए रिश्ते को बनाने की कोशिश करेगी. मगर उस ने ऐसा कुछ नहीं किया. मगर क्यों…?

स्वाति इतनी समझदार कब से हो गई. उसे बारबार उस का शांत चेहरा याद आ रहा था. जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. आज उसे स्वाति पर बहुत प्यार आ रहा था. और अपने किए पर पछता रहा था. उस ने पास सो रही नीलम को देखा, फिर सोचने लगा कि क्यों मैं बेकार प्यारमोहब्बत के जज्बातों में बह रहा हूं. जिस मुकाम पर मु?ो नीलम पहुंचा सकती है वहां स्वाति कहां. फिर तेजी से उठा और एक चादर ले कर ड्राइंगरूम में जा कर लेट गया.

दिन में 12 बजे के आसपास नीलम ने उसे जगाया. ‘‘क्या बात है दीपक, तबीयत तो ठीक है? तुम कभी इतनी देर तक सोते नहीं हो.’’ दीपक ने उठते ही घड़ी की तरफ देखा. घड़ी 12 बजा रही थी. वह तुरंत उठा और जूते पहन कर बाहर निकल पड़ा. नीलम बोली, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो?’’

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‘‘प्रोफैसर साहब का रात में फोन आया था. उन्हीं से मिलने जा रहा हूं.’’

दीपक सारे दिन बेचैन रहा. स्वाति उस की आंखों के आगे घूमती रही. उस की बातें कानों में गूंजती रहीं. उसी के प्यार में वह यहां आई थी. स्वाति ने यहां पर कितनी तकलीफें ?ोली होंगी. मु?ो कोई परेशानी न हो, इसलिए उस ने अपने आने तक का मैसेज भी नहीं दिया. क्या वह मु?ो कभी माफ कर पाएगी.

मन में उठते सवालों के साथ दीपक स्वाति के घर पहुंचा. मगर दरवाजा आंटी ने खोला. दीपक ने डरते हुए पूछा, ‘‘स्वाति कहां है?’’

आंटी बोलीं, ‘‘वह तो कल रात 8 बजे की फ्लाइट से इंडिया वापस चली गई. तुम कौन हो?’’

‘‘मैं दीपक हूं, नीलम का होने वाला पति.’’

‘‘स्वाति नीलम के लिए एक पैकेट छोड़ गई है. कह रही थी कि जब भी नीलम आए, उसे दे देना.’’

दीपक ने कहा, ‘‘वह पैकेट मुझे दे दीजिए, मैं नीलम को जरूर दे दूंगा.’’

दीपक ने वह पैकेट लिया और सामने बने पार्क में बैठ कर कांपते हाथों से पैकेट खोला. उस में उस के और स्वाति के प्यार की निशानियां थीं. उन दोनों की शादी की तसवीरें. वह फोन जिस ने उन दोनों को मिलाया था. सिंदूर की डब्बी और एक पीली साड़ी थी. उस में एक छोटा सा पत्र भी था, जिस में लिखा था कि 2 दिनों बाद वैलेंटाइन डे है. ये मेरे प्यार की निशानियां हैं जिन के अब मेरे लिए कोई माने नहीं हैं. तुम दोनों वैलेंटाइन डे के दिन ही थेम्स नदी में जा कर मेरे प्यार का विसर्जन कर देना…स्वाति.

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वक्त की अदालत में: भाग 4- मेहर ने शौहर मुकीम के खिलाफ क्या फैसला लिया

मेहर ने क्या चाहा था. बस, शादी के बाद एक सुकूनभरी जिंदगी. वह भी न मिल सकी उसे. पति ऐसा मिला जिस ने उसे पैर की जूती से ज्यादा कुछ न समझा. लेकिन वक्त की धारा में स्थितियां बदलती हैं और वह ऐसी बदली कि…

एक लंबी जद्दोजेहद के बावजूद कामांध मुकीम बारबार मुंह से  फुंफकार निकालते हुए सहर को अपनी तरफ खींचने के लिए जोर लगा रहा था. तभी मैं ने एक जोरदार लात उस के कूल्हे पर दे मारी. वह पलट कर चित हो गया. गुस्से से बिफर कर मैं ने दूसरी लात उस के ऊपर दे मारी. दर्द से चीखने लगा. मारे दहशत के मैं ने जल्दी से सहर का हाथ खींच कर उठाया और तेजी से उसे कमरे से बाहर खींच कर दरवाजे की कुंडी चढ़ा दी. और धड़धड़ करती सीढि़यां उतर कर संकरे आंगन के दूध मोगरे के पेड़ के साए तले धम्म से बैठ कर बुरी तरह हांफने लगी.

रात का तीसरा पहर, साफ खुले आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे. नीचे के कमरों में देवरदेवरानी और सास के खर्राटों की आवाजें गूंज रही थीं. दोनों बहनें दम साधे चौथे पहर तक एकदूसरे से लिपटी, गीली जमीन पर बैठी अपनी बेकसी पर रोती रहीं. ऊपर के कमरे में पूरी तरह खामोशी पसरी पड़ी थी. नशे में धुत मुकीम शायद सुधबुध खो कर सो गया था.

अलसुबह मैं छोटी बहन को उंगली के इशारे से यों ही चुप बैठे रहने को कह कर दबे कदमों से ऊपर पहुंची. बिना आवाज किए कुंडी खोली. हलके धुंधलके में मुकीम का नंगा शरीर देखते ही मुंह में कड़वाहट भर गई. थूक दिया उस के गुप्तांग पर. वह कसमसाया, लेकिन उठ नहीं सका. मैं ने पर्स में पैसे ठूंसे और दोनों नींद से बो िझल बच्चों को बारीबारी कर के नीचे ले आई और दबेपांव सीढि़यां उतर गई. दोनों बहनें मेनगेट खोल कर पुलिस थाने की तरफ जाने वाली सड़क की ओर दौड़ने लगीं.

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दिन का उजाला शहर के चेहरे पर खींची सड़कों पर फैलने लगा था. ठंडी हवा के  झोंके राहत देने लगे थे. चलते हुए हांफने लगी थीं हम दोनों बहनें. पुलिस थाने से पहले एक पुलिया पर बैठ धौंकती सांसों पर काबू पाने का निरर्थक प्रयास करने लगीं. सड़क पर मौर्निंग वाक करते इक्कादुक्का लोग दिखाई देने लगे थे. बच्चों की आंखें भी खुल गई थीं. मम्मी और खाला को सड़क के किनारे बैठा देख कर वे हैरानी से पूछने लगे, ‘क्या हुआ मम्मी, आप रो क्यों रही हैं?’ ‘कुछ नहीं बेटे’, कह कर मैं ने रुलाई दबाते हुए दोनों बच्चों को सीने से चिपका लिया.

इस घटना ने मेरे दिलोदिमाग को  झक झोर दिया. क्या गजब कर रही हो मेहर? कुंआरी बहन को पुलिस थाने में खड़ा कर के अपने शौहर की करतूतों का बखान करते हुए क्या बदनामी के छीटों से उस के सुनहरे भविष्य पर कालिमा पोत दोगी. तुम्हारी कमजोरी के कारण पहले ही वह मर्द तुम पर इतना हावी है, और अब भी उस का क्या बिगाड़ लोगी. वह मर्द है, सुबूतों के अभाव में बेदाग बरी हो जाएगा. लेकिन तुम्हारी बहन के साथ बलात्कार की तोहमत लगते ही वह कानून और समाज दोनों के हाथों बुरी तरह रुसवा कर दी जाएगी. तुम्हारा सदमा क्या कम है अम्मीअब्बू के लिए जो अब अपने पति के अक्षम्य अपराध की खातिर उन की जिंदगी को नारकीय बनाने जा रही हो. तुम्हारी अबोध बहन जिंदगीभर मीठे खवाबों की लाश ढोतेढोते खुद एक जिंदा लाश बन जाएगी. क्यों बरबाद कर रही हो बहन की जिंदगी? यह तुम्हारी जंग है, तुम लड़ो और जीतो. मैं जैसे डरावने खवाब से जागी.

नहीं, नहीं, मैं अपनी चरमराती जिंदगी की काली छाया अपनी छोटी बहन के उजले भविष्य पर कतई नहीं पड़ने दूंगी. धीरेधीरे मेरा चेहरा कठोर होने लगा. एक ठोस फैसला लिया, ‘सहर, तुम अभी इसी वक्त स्टेशन के लिए रवाना हो जाओ. एन्क्वायरी से पूछ कर रायपुर जाने वाली पहली ट्रेन की जनरल बोगी में बैठ जाना. सामने से गुजरते रिकशे को रोक लिया मैं ने. सहर रात के हादसे से बेहद डर गई थी. दिल से बहन को उस गिद्ध के नुकीले पंजों के बीच अकेले छोड़ना नहीं चाह रही थी लेकिन मेरे बारबार इसरार करने पर रिकशे पर बैठ गई.

सूरज अपनी सुनहरी किरणों के कंधों पर सवार धीरेधीरे  आसमान पर चढ़ने लगा था. पूरा शहर, गलीकूचे, घर उजाले से दमकने लगे थे, लेकिन मेरी ब्याहता जिंदगी का सूरज आज हमेशाहमेशा के लिए डूबने वाला है, यह जानते हुए भी मैं दोनों बच्चों की उंगली पकड़े पुलिस थाने के मुख्यद्वार तक पहुंच गई.

रात की ड्यूटी वाले पुलिसकर्मी खाकी पैंट पर सिर्फ सफेद बनियान पहने दोनों हाथ ऊपर कर के अंगड़ाइयां ले कर मुंह से लंबीलंबी उबासियां लेते हुए रात की खुमारी उतार रहे थे.

‘मु झे रिपोर्ट लिखवानी है,’ मेरा चेहरा सख्त और आवाज में पुख्तगी थी. 2 बच्चों के साथ मैक्सी पहने सामने खड़ी महिला को देख कर भांपते देर नहीं लगी. वे समझ गए कि नारी उत्पीड़न और घरेलू मारपीट का मामला लगता है.

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सिपाही ने बीड़ी सुलगाते हुए पूछा, ‘क्या हुआ?’

मैं ने बहन के साथ बलात्कार की कोशिश वाली घटना को छिपा कर बाकी सारी दास्तान आंसूभरी आंखों और लरजती आवाज से सुना दी.

‘पढ़ीलिखी लगती है’, सिपाही दूसरे की तरफ देख कर फुसफुसाया. फिर बोला, ‘रिपोर्ट तो हम लिख लेंगे मैडम, मगर यहां आएदिन ही औरतमर्द का  झगड़ा भांगड़ का तमाशा देखते हैं हम.’

‘मु झ पर जुल्म हो रहा है. मैं अपनी सुरक्षा के लिए आप के पास रिपोर्ट लिखवाने आई हूं. और आप इसे तमाशा कह रहे हैं?’

‘अरे मैडम, हम तो रोेजिच ये भांगड़ देखते हैं न. औरत बड़े गुस्से में आ कर रिपोर्ट लिखवाती है अपने मरद और ससुराल वालों के खिलाफ. फिर पता  नहीं कहां से उस के भीतर हिंदुस्तानी औरत का मोरल सिर उठाने लगता है और वह पति को ले कर कंप्रोमाइज करने आ जाती है. ऐसे में हमारी पोजिशन बड़ी खराब हो जाती है. न तो हम कोई ऐक्शन ले सकते हैं, न ही थाने का मजाक बनते देख सकते हैं. आप बुरा नहीं मानने का,’ होंठ टेढ़े कर के बीड़ी के आखिरी सिरे की आग को टेबल पर रगड़ता हुआ बोला सिपाही.

‘नहीं, मैं रिपोर्ट वापस नहीं लूंगी. थक गई हूं मैं 12 सालों से रोजरोज गालियां सुनते और मार खाते हुए’, कह कर मैं ने गले पर लिपटा दुपट्टा नीचे खिसका दिया. गले और कंधे पर जमे खून के धब्बे और नीले निशान देख कर थाना इंचार्ज ने सारी स्थिति सम झ कर रिपोर्ट लिख दी. महाराष्ट्र पुलिस हमेशा से अपनी मुस्तैदी के कारण शाबाशी की हकदार रही है. तुरंत हरकत में आ गई. मु झे लेडी पुलिस के साथ मेओ अस्पताल मैडिकल के लिए भेजा और दूसरी तरफ नंगे पड़े मुकीम को थाने ले आई.

दूसरे दिन लोकल अखबारों में मर्दाना वहशत को महिला समाज में दशहत बना कर सुर्खियों में खबर छपी, ‘सरकारी शिक्षिका घरेलू हिंसा की शिकार, पति पुलिस कस्टडी में.’ पुलिस ने मु झे बच्चों के साथ घर पहुंचा दिया और वायरलैस से खबर दे कर अब्बू को नागपुर बुलवा लिया. तीसरे दिन शाम को ट्रक में भर कर बेटी का सामान स्कूल क्वार्टर में पहुंचा दिया. अब्बू एक हफ्ते तक साथ रहे. मेरे सिर पर हाथ रख कर सम झाते रहे, ‘सब्र करो, बेटा. सब ठीक हो जाएगा.’

घर के टूटने के मानसिक आघात से उबरने में लंबा वक्त लगा मु झे. अब्बू वापस चले गए. मैं बच्चों के साथ करोड़ों की आबादी वाले देश में तनहा रह गई.

स्कूल में सहकर्मियों के साथसाथ विद्यार्थियों से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी. बचपन से ही मैं अंतर्मुखी, अल्पभाषी, कभी भी किसी से अपना दुखदर्द बांटने के लिए शब्द नहीं बटोर पाती थी. रात की भयावहता मेरे अंदर के सुलगते ज्वालामुखी के लावे को आंखों के रास्ते निकालने में मदद करती. होंठों पर गहरी खामोशी और आंखों के नीचे काले दायरे मेरी बेबसी की कहानी के लफ्ज बन जाते. हर रात आंसुओं से तकिया भीगता. मेरा खंडित परिवार मिलिट्री एरिया के स्कूल में महफूज तो था लेकिन डाक टिकट के परों पर बैठ कर कागजी यमदूतों को मु झ तक पहुंचने से रोकने के लिए कोई कानून नहीं बना था.

2 महीने बाद ही कोर्ट का नोटिस मिला, ‘घर से चोरी कर के चुपचाप भागने का इलजाम…’ चीजों की लिस्ट में आधुनिक घरेलू चीजों के अलावा इतने जेवरात और रुपयों का जिक्र था जिन्हें मुकीम ने कभी देखा भी नहीं होगा. एक हफ्ते बाद फिर दूसरा नोटिस मिला, ‘बच्चों पर पिता का मालिकाना हक जताने का दावा.’

वकील ने तसल्ली दी थी, ‘दुहानी गाय हाथ से निकल गई. बस, इस की तिलमिलाहट है. जो शख्स अच्छा शौहर नहीं बन सका वह अच्छा बाप कैसे बन सकता है.’

प्राथमिक शिक्षिका की सीमित तनख्वाह, उस पर सरकारी क्वार्टर का किराया, फैस्टिवल एडवांस की कटौती, बच्चों की किताबों और घर का खर्च. महीने के आखिरी हफ्ते में एक वक्त की रोटी से ही गुजर करनी पड़ती.

तीसरे महीने प्राचार्य ने मेरे सारे ओरिजिनल सर्टिफिकेट मंगवाए तो मुकीम की बिजबिजाती बदलेभरी सोच का एक और घिनौना सुबूत सामने आया, ‘जाली सर्टिफिकेट से हासिल नौकरी की एन्क्वायरी.’ 12 साल साथ रह कर भी मेरी एक भी खूबी मुकीम का दिल नहीं जीत सकी. बेरहम को अपने बच्चों पर भी रहम नहीं आया.

आधी रात को घर की खटकती कुंडी की कर्कश आवाज ने मु झे नींद से जगा दिया. दरवाजा खोला तो 3 कलीग, एक महिला 2 पुरुष, मुझे निर्विकार और उपेक्षित भाव से घूर रहे थे. ‘सर, इस वक्त?’ शब्द गले में अटकने लगे मेरे.

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सौरी मैडम, फौर डिस्टर्बिंग यू इन दिस औड टाइम. मिसेस ने बतलाया कि आप की तबीयत खराब है, इसलिए खबर लेने आए हैं. अंदर आने के लिए नहीं कहेंगी? सहज बनने का अभिनय करते हुए दरवाजे से मेरे थोड़ा हटते ही तीनों घर में घुस आए. मेरे माथे पर हथौड़े पड़ने लगे. मेरी बीमारी की  झूठी खबर किस दुश्मन ने उड़ाई होगी. और मेरी खैरियत जानने के लिए आधी रात का ही वक्त चुनने की गरज क्यों आन पड़ी मेरे कलीग्स को? लेकिन प्रत्यक्ष में ठहरी हुई  झील की तरह मैं शांत रही.

‘आप ने बरसात में छत के टपकने की कंपलेंट की थी न. कौन सा कमरा है?’ कहते हुए रस्तोगीजी घड़घड़ाते हुए बैडरूम में पहुंच गए, ‘एक्चुअली बिल्ंिडग मेंटिनैंस का चार्ज पिछले हफ्ते ही दिया गया है न मु झे.’

‘बच्चे सो गए क्या?’ महिला सहकर्मी ने बनावटी हमदर्दी दिखलाई और आंखें घुमाघुमा कर खूंटी पर टंगे कपड़ों और रैक पर रखे जूतों के साइज नापने लगी.

‘मैडम, क्या मैं आप का टौयलेट यूज कर सकता हूं?’ निगमजी ने औपचारिकता निभाई.

‘ओह, श्योर सर.’

तीनों अध्यापक घर के किचन, बैडरूम और बाथरूम का निरीक्षण करने लगे. मैं हैरानपरेशान, बस, चुपचाप उन्हें अपने ही घर में बेहिचक चहलकदमी करते देखती रही. दूसरे दिन दहकता शोला अंतरंग कलीग ने सीने में डाल दिया. ‘मुकीम ने हायर अथौरिटी से कंपलेंट की है कि यू आर लिविंग विद समबडी एल्स.’ सुन कर मेरे बरदाश्त का बांध तिलमिलाहट के तूफानी वेग में बुरी तरह से टूट गया.

मर्द समाज के पास औरत को बदनाम करने के लिए सब से सिद्धहस्त बाण, उस के चरित्र को  झूठमूठ ही आरोपित करना है, बस. औरत अपनी सचाई का सुबूत किसे बनाएगी? कौन कोयले की दलाली में हाथ काले करेगा? कोई सुबूत नहीं. चश्मदीद गवाह नहीं. अपराध और मढ़े गए ग्लानिबोध से टूटी, अपनेआप ही केंचुए की तरह अपने दामन के व्यास को समेट लेगी. सदियों से बड़ी ही कामयाबी से इस नुस्खे को आजमा कर मर्द समाज अपनी मर्दाना कामयाबी पर ठहाके लगाते हुए जश्म मना रहा है.

3 केसों की तारीखें पड़ने लगीं. कोर्ट के नोटिस आने लगे. वकील साहब ने मेरी नौकरी की मजबूरी को देख कर पेशी पर अपना मुंशी खड़ा करने का वादा किया. ‘मैडम, मेरी फीस कम कर दीजिए मगर मुंशी तो छोटी तनख्वाह वाला बालबच्चेदार आदमी है.’

अगले भाग में पढ़ें- ‘उन्होंने क्या दूसरा निकाह कर लिया है?

अंधेरी रात का जुगनू: भाग 3- रेशमा की जिंदगी में कौन आया

पलभर के लिए रेशमा का आत्मविश्वास भी डगमगाने लगा था. कहीं किसी ग्राहक को जल्दबाजी में ज्यादा पैसे तो नहीं दे दिए मैं ने, कहीं किसी से कम पैसे तो नहीं लिए? लेकिन दूसरे ही पल उस ने खुद को धिक्कारा. अपनी सतर्कता और हिसाब पर पूरा यकीन था उसे. तभी सेठ की आवाज का चाबुक उस की कोमल और ईमानदार भावना पर पड़ा, ‘रेशमा, अगर तुम मेरे दोस्त की बेटी न होतीं तो अभी, इसी समय पुलिस को फोन कर देता. शर्म नहीं आती चोरी करते हुए. पैसों की जरूरत थी तो मुझ से कहतीं. मैं तनख्वाह बढ़ा देता. लेकिन तुम ने तो ईमानदार बाप का नाम ही मिट्टी में मिला दिया.’

सुन कर तिलमिला गई रेशमा. क्या सफाई देती उन्हें जो उस की विवशता को उस का गुनाह समझ रहे हैं. मेहनत और वफादारी के बदले में मिला उसे जलालत का तोहफा. तभी खुद्दारी सिर उठा कर खड़ी हो गई और 28 दिन की तनख्वाह का हिसाब मांगे बगैर वह दुकान से बाहर निकल गई. अंदर का आक्रोश उफनउफन कर बाहर आने के लिए जोर मार रहा था. मगर रेशमा ने पूरी शिद्दत के साथ उसे भीतर ही दबाए रखा. असमय घर पहुंचती तो अम्मी को सच बतलाना पड़ता. रेशमा पर चोरी का इलजाम लगने और नौकरी हाथ से चले जाने का सदमा अम्मी बरदाश्त नहीं कर पाएंगी. अगर उन्हें कुछ हो गया तो वह कैसे दोनों भाइयों और घर को संभाल पाएगी, यह सोचते हुए रेशमा के कदम अनायास ही मजार की तरफ बढ़ गए.

मजार के अहाते का पुरसुकून, इत्र और फूलों की मनमोहक खुशबू भी उस के रिसते जख्म पर मरहम न लगा सकी. घुटनों पर सिर रख कर फफक कर रो पड़ी. रात 10 बजे मजार का गेट बंद करने आए खादिम ने आवाज लगाई, ‘घर नहीं जाना है क्या, बेटी?’ सुन कर जैसे नींद से जागी. धीमेधीमे मायूस कदम उठाते हुए घर पहुंची. अम्मी का चिंतित चेहरा दोनों भाइयों की छटपटाहट देख कर उसे यकीन हो गया कि मेरे घर के लोग मुझे कभी गलत नहीं समझेंगे.

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‘कहां चली गई थीं?’

‘दुकान में ज्यादा काम था आज,’ संक्षिप्त सा जवाब दे कर पानी के साथ रोटी का निवाला गटकते हुए बिना कोई सफाई दिए बिस्तर पर पहुंचते ही मुंह में कपड़ा ठूंस कर बिलखबिलख कर रो पड़ी. उस रात अब्बू बहुत याद आए थे. कमसिन कंधों पर उन की भरीपूरी गृहस्थी का बोझ तो उठा लिया रेशमा ने, मगर उन के नाम को कलंकित करने का झूठा इल्जाम वह बरदाश्त नहीं कर पा रही थी.

दूसरे दिन रोज की तरह लंच बाक्स ले कर रेशमा के कदम अनजाने में अब्बू की दुकान की तरफ मुड़ गए. बरसों बाद जंग लगे ताले को खुलता देख अगलबगल वाले दुकानदार हैरान रह गए.

धूल से अटे कमरे में अब्बू का बनाया हुआ मार्बल का लैंपस्टैंड, सूखा एक्वेरियम और कभी तैरती, मचलती खूबसूरत मछलियों के स्केलटन. दुकान के कोने में बना प्लास्टर औफ पेरिस का फाउंटेन, सबकुछ जैसा का तैसा पड़ा था. अगर कुछ नहीं था तो अब्बू का वजूद. बस, उन की आवाज की प्रतिध्वनि रेशमा के कानों में गूंजने लगी, ‘बेटा, खूब दिल लगा कर पढ़ना. आप को चार्टर्ड अकाउंटैंट और दोनों बेटों को डाक्टर, इंजीनियर बनाऊंगा,’ ऐसे ही गुमसुम बैठे हुए सुबह से शाम गुजर गई.

भरा हुआ टिफिन वापस बैग में डाल कर घर वापस जाने के लिए उठ ही रही थी कि मोबाइल बज उठा, ‘रेशमा, आई एम सौरी. मुझे माफ करना बेटा. मैं गुस्से में तुम को पता नहीं क्याक्या कह गया,’ दूसरी ओर से सेठ की आवाज गूंजी, ‘सुन रही हो न, रेशमा. दरअसल, 8 हजार रुपए मेरे बेटे ने गल्ले से निकाले थे. कल शाम को ही वह जुआ खेलता हुआ पकड़ा गया तो पता चला.’

सुन कर रेशमा स्थिर खड़ी अब्बू की धूल जमी तसवीर को एकटक देखती रही.

‘बेटे, अपने अब्बू के दोस्त को माफ कर दो तो कुछ कहूं.’

इधर से कोई प्रतिउत्तर नहीं.

‘कोई बात नहीं, तुम अगर दुकान पर काम नहीं करना चाहती हो तो कोई बात नहीं, तुम मेरा बुटीक सैंटर संभाल लो. तुम्हारी जैसी मेहनती और ईमानदार इंसान की ही जरूरत है मेरे बुटीक सेंटर को.’

रेशमा ने कोई जवाब नहीं दिया. अपमान और तिरस्कार का आघात,

सेठ की आत्मविवेचना व पछतावे पर भारी रहा.

रास्ते भर ‘बुटीक…बुटीक…बुटीक’ शब्द मखमली दूब की तरह कानों में उगते रहे. स्कूल के दिनों में शौकिया तौर पर एंब्रायडरी सीखी थी रेशमा ने. कुरतों, सलवारों, चादरों, नाइटीज पर खूबसूरत रेशमी धागों से बनी डिजाइनों ने उसे अब्बू और रिश्तेदारों की शाबाशियां भी दिलवाई थीं. थोड़ाबहुत कटे हुए कपड़े भी सिलना सीख गई थी. अनजाने में ही सेठ ने रेशमा की अमावस की अंधेरी रात को पूर्णिमा का उजाला दिखला दिया, स्वाभिमान और आत्मविश्वास से जीने का रास्ता बतला दिया.

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पापा की दुकान और रेशमा का शौकिया हुनर, अपना निजी और स्वतंत्र कारोबार, जहां अपना आधिपत्य होगा जहां उसे कोई चोर कह कर जलील नहीं करेगा. जहां वह अपने परिवार के साथसाथ हुनरमंद कारीगरों और उन के परिवारों का पेट पालने का जरिया बन सकेगी. पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलती रही रेशमा. उस दिन आसमां पर चांद की रफ्तार धीमी लगने लगी उसे.

पौ फटते ही रेशमा दोनों भाइयों के साथ पापा की दुकान में खड़ी अनुपयोगी वस्तुओं को ठेले पर लदवा रही थी. लघु उद्योग प्रोत्साहन योजना के तहत बैंक से लोन लेने के लिए आवेदन दे दिया. 1 महीने बाद दुकान के सामने बोर्ड लग गया, ‘जास्मीन बुटीक सैंटर’. दूसरे ही दिन दुकान के शुभारंभ का दावतनामा ले कर बांटने के लिए निकल पड़ी रेशमा. कार्ड देख कर किसी ने हौसला बढ़ाया, तो किसी ने नाउम्मीद और नाकामयाबी के डर से डराया. लेकिन रेशमा कान और मुंह बंद किए हुए पूरे हौसले के साथ जिस रास्ते पर चल पड़ी उस से पलट कर पीछे नहीं देखा.

रेशमा के भीतर का कलाकार धीरेधीरे उभरने लगा, वह कपड़ों की डिजाइन केटलौग्स के अलावा कंप्यूटर स्क्रीन पर ग्राहकों को दिखलाने लगी. धीरेधीरे आकर्षक डिजाइनों व काम की नियमितता देख कर महिला ग्राहकों की भीड़ बढ़ने लगी. शादीब्याह, तीजत्योहारों के मौकों पर तो रेशमा को दम लेने की फुरसत नहीं होती.

कड़ी मेहनत, समझदारी से मृदुभाषी रेशमा के बैंक के बचत खाते में बढ़ोतरी होने लगी. 1 साल के बाद 30×60 स्क्वैर फुट का प्लौट खरीदते समय खालेदा बेगम ने अपने बचेखुचे जेवर भी रेशमा को थमा दिए.

हाउस लोन ले कर रेशमा ने तनहा ही धूप, बरसात, ठंड के थपेड़े सह कर नींव खुदवाने से ले कर मकान बनने तक दिनरात एक कर दिए. दोनों छोटे भाइयों और अम्मी के संबल ने रेशमा का हौसला मजबूत किया. अब कतराने वाले रिश्तेदार, अब्बू के करीबी दोस्त, मकान की मुबारकबाद देने बुटीक सैंटर पर ही आने लगे.

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चौक पर लगी घड़ी ने रात के 4 बजाए. रेशमा की अम्मी दर्द की चादर ओढ़े नींद के आगोश में समा गईं लेकिन रेशमा छत की ग्रिल से टिक कर खड़ी, एकटक कोने पर लगी ग्रिल की तरफ देख रही थी. लगा, अब्बू सफेद कुरतापाजामा पहने दीवार से टिक कर खड़े हैं. ‘रेशमा, मेरी बच्ची, मेरा ख्वाब पूरा कर दिया. शाबाश बेटा. मैं जानता हूं तुम दोनों भाइयों को इसी तरह जुगनू बन कर राह दिखलाती रहोगी.’ धीरेधीरे पापा की परछाईं अंधेरे में कहीं खो गई और रेशमा बिस्तर पर आ कर लेट गई. दूर कहीं भोर होने की घंटी बजी. पूर्व दिशा में आसमान का रंग लाल हो चला था.

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