मेरी कमाई, मेरा हक

सोमी के ऑफिस में आज सभी के चेहरे गुलाब की तरह खिले हुए थे.हो भी क्यों ना आज सब कर्मचारियों को 10 प्रतिशत इन्क्रीमेंट मिला था.सोमी पर बुझी बुझी सी लग रही थी. जब कायरा ने पूछा तो सोमी फट पड़ीमेरी सैलरी पर मेरा नही ,बल्कि पूरे परिवार का हक हैं

इन्क्रीमेंट का मतलब हैं ज़्यादा काम ,पर मुझे क्या मिलेगा कुछ नही.हर महीने एक बच्चे की तरह मेरे पति मुझे चंद हज़ार पकड़ा देते हैं. पूछने पर बोलते हैंसब कुछ तो मिल रहा हैं क्या करोगी तुम इन पैसों का ,फिजूलखर्ची करने के अलावा

सोमी अकेली महिला नही हैं. सोमी जैसी महिलाएं हर घर मे मौजूद हैं जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने पर भी पराधीन हैं.वो बस अपने पति और परिवार के लिए एक कमाई की मशीन हैं.उनके पैसों को कैसे ख़र्च करना हैं और कहाँ निवेश करना हैं ये पति महोदय का मौलिक अधिकार होता हैं.

  रितिका की कहानी भी सोमी से कुछ अलग नही हैं.रितिका की सैलरी आते ही,पूरा पैसा विभाजित हो जाता हैं.बच्चों के स्कूल की फ़ीस, घर की लोन की किस्तें और घर ख़र्च सब रितिका की सैलरी पर होता हैं.परन्तु रितिका के पति प्रदीप की सैलरी कैसे ख़र्च होती हैं ये प्रदीप के अलावा कोई नही जानता हैं.

हर छुट्टियों में घूमने की प्लानिंग करना, दूर पास के रिश्तेदारों के लिए तोहफ़े खरीदना ,पत्नी बच्चो के लिए कपड़े इत्यादि खरीदना प्रदीप अपनी सैलरी से करता हैं और सबकी आंखों का तारा हैं.वहीं रितिका के बारे में प्रदीप कहता हैंअरे औरतों की लाली लिपस्टिक पर ख़र्च रोकना का ये नायाब तरीका हैं कि उनकी सैलरी पर लोन इत्यादि ले लो

रितिका जो 80 हज़ार मासिक कमा रही हैं ना अपनी पसंद के कपड़े पहन सकती हैं और ना ही अपनी पसंद के तोहफ़े किसी को दे सकती हैं.इतना कमाने के बाद भी वो पूरी तरह से अपने पति पर निर्भर हैं.

  अगर ऊपर की दोनो घटनाओं को देखे तो एक बात दोनो में समान हैं कि सोमी और रितिका अभी भी गुलामी की बेड़ियों में मानसिक रूप से कैद हैं.दोनो ही महिलाओं में एक समानता हैं कि दोनों ही मानसिक रूप से स्वतंत्र नही हैं. दोनो को ये भी नही मालूम हैं कि उन्हें अपने गाढ़े पसीने की कमाई कैसे ख़र्च करनी हैं.

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ये कहना गलत ना होगा कि सोमी और रितिका जैसी महिलाओं की दशा उन महिलाओं से भी बदतर हैं जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नही हैं.कभी प्यार में तो कभी डर के कारण वो अपनी आर्थिक स्वतंत्रता की कुंजी अपने पति के हाथों में थमा देती हैं जो बिल्कुल भी सही नही हैं.

आज के समय मे ज़िन्दगी की गाड़ी तभी सुचारू रूप से चल सकती जब दोनों जीवनसाथी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो.जैसे गाड़ी के दोनो पहिए यदि समान नही होते तो गाड़ी नही चल सकती हैं, उसी तरह से पति और पत्नी में भी समानता होनी चाहिए ताकि ज़िन्दगी सुचारू रूप से चल सके.

अगर आप इन छोटी छोटी बातों का ध्यान रखेगी तो अपनी कमाई को अपने हिसाब से ख़र्च कर पाएगी.

1.प्यार का मतलब नही हैं ग़ुलामी-

महिलाएं स्वभाव से ही कोमल और भावुक होती हैं.प्यार की डोर में बंधी हुई वो अपने वेतन का पूरा ब्यौरा अपने पति को दे देती हैं.पति अपने वेतन के साथ साथ अपनी पत्नी के वेतन को भी अपने हिसाब से ख़र्च करने लगते हैं.शुरू शुरू में तो पत्नियों को ये सब बड़ा प्यारा लगता हैं पर शादी के एक दो वर्ष के बाद उन्हें कोफ़्त होने लगती हैं.पति के हाथों में अपने वेतन या एटीएम कार्ड को पकड़ना प्यार या वफ़ा का नही ,गुलामी का परिचायक हैं.

2.अपने ऊपर ख़र्च करना हैं आपका मौलिक अधिकार-

बहुत से मामलों में देखने को मिलता हैं कि विवाह के पश्चात लड़कियां अपने ऊपर ख़र्च करने में हिचकिचाने लगती हैं.उन्हें लगता हैं कि अब घर की ज़िम्मेदारी ही उनकी सर्वपरिता हो जाता हैं. पार्लर जाना या खुद के ऊपर ख़र्च करना, सहेलियों के साथ बाहर जाना ,सब कुछ उन्हें बेमानी लगने लगता हैं जो सही नही हैं.आपका सबसे पहला रिश्ता अपने साथ हैं तो इसलिए उसे खुश रखना आपका मौलिक अधिकार हैं.

3.अपने भविष्य को सुरक्षित करे-

ज़िन्दगी आपकी हैं तो उसकी बागड़ोर अपने हाथों में ही रखे. विवाह का मतलब ये नही होता कि सबकुछ पति के भरोसे छोड़ कर हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाए.अपने भविष्य को सुरक्षित रखना ,आपकी ज़िम्मेदारी हैं.अपनी कमाई को सही जगह पर लगाकर अपने भविष्य को सुनिश्चित कर ले.

4.लेन देन करे अपनी हैसियत के हिसाब से-

बहुत बार देखने मे  आता हैं कि पत्नी के वेतन के कारण ,पति अपनी झूठी शान दिखाते हुए बहुत महँगे महँगे तोहफे शादी और फंक्शन में दे देते हैं.अगर आपकी पति की भी ये आदत हैं तो आप उन पहले ही अवसर पर टोक दे.मायके और ससुराल दोनो ही जगह समान  रूप से और अपनी हैसियत के अनुरूप ही लेन देन करे.

5.निवेश करे सोच समझ कर-

अपने पैसों को सोच समझ कर निवेश करे क्योंकि ये आपकी मेहनत की कमाई हैं. आपको अपने पैसे शेयर मार्केट में लगाने हैं या उन पैसों से कोई बांड खरीदना हैं या फिर किसी प्रोपेर्टी में लगाना हैं आपका ही फैसला होना चाहिए.अपने पति से आप सलाह अवश्य ले सकती हैं पर उन्हें अपने पैसों का कर्ता धर्ता मत बनाइए.

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6.धन हैं बड़ा बलवान-

ये बात हालांकि कड़वी हैं पर सत्य हैं.धन में बहुत ताकत होती हैं.जब तक आपके पास अपने पैसे हैं तब तक आपकी ससुराल में इज़्ज़त बनी रहेगी.आपके पति भी कुछ उल्टा सीधा करने से पहले सौ बार सोचेंगे क्योंकि उन्हें पता होगा कि आपकी ज़िंदगी की लगाम आपके ही हाथों में हैं.वो अगर कुछ ग़लत करेंगे तो आप उनको छोड़ने में जरा भी हिचकिचायेगी नही. पति महोदय को ये भी अच्छे से मालूम होगा कि आपके द्वारा भविष्य के लिए संचित किया हुआ धन आपके साथसाथ उनके बुढ़ापे की भी लाठी हैं

शादी निभाने की जिम्मेदारी पत्नी की ही क्यों

गौतम बुद्ध की शादी 16 वर्ष की आयु में यशोधरा नाम की एक कन्या से होती है और 29 वर्ष की आयु में उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होने के बाद यानी शादी के 13 वर्ष बाद उन्हें यह ध्यान आता है कि उन्हें संन्यास लेना है और तभी वे अचानक एक दिन आधी रात को बिना अपनी पत्नी को बताए अपनी पत्नी और नवजात शिशु को सोता छोड़ घर से चुपचाप निकल जाते हैं.

सांसारिक दुख उन्मूलन की तथा ज्ञान के खोज की ऐसी उत्कट अभिलाषा कि पत्नी और बेटे की जिम्मेदारी तक भूल गए, उन के पीछे उन के कष्टों का भी ज्ञान न रहा.

गौतम बुद्ध के विषय में यह कहा जाता है कि वे बचपन से ही बेहद करुण हृदय वाले थे किसी का भी दुख नहीं देख सकते थे और ऐसे करुण हृदय वाले बुद्ध को अपनी पत्नी का ही दुख नजर नहीं आया.

अपनी पत्नी की ऐसी उपेक्षा करने वाले करुण हृदय बुद्ध के अनुसार, दुख होने के अनेक कारण हैं और सभी कारणों का मूल है तृष्णा अर्थात पिपासा अथवा लालसा.

तो क्या ज्ञानप्राप्ति की उन की पिपासा ने उन के पीछे उन की पत्नी और उन के नवजात की जिंदगी को असंख्य दुखों की ओर नहीं धकेला था? बुद्ध के अष्टांगिक मार्गों में एक सम्यक संकल्प अथवा इच्छा तथा हिंसा से रहित संकल्प करना तथा दूसरा सम्यक स्मृति अर्थात् अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधानी का स्मरण भी है.

मानसिक कष्ट देना भी हिंसा

इच्छा तथा हिंसा से रहित संकल्प… तो क्या, जब गौतम बुद्ध ने अपनी पत्नी का त्याग किया तो उन के इस कृत्य से उन की पत्नी को जिस प्रकार की मानसिक वेदना  झेलना पड़ी थी वह क्या हिंसा नहीं थी? किसी को शारीरिक आघात पहुंचाना ही हिंसा नहीं होता, बल्कि मानसिक कष्ट देना भी एक तरह की हिंसा ही तो है. अब यदि उन के अष्ट मार्ग में से सातवें मार्ग पर भी नजर डालें तो इन के अनुसार, ‘अपने कर्मों के प्रति सावधानी तथा विवेक का स्मरण.’

अब यदि देखा जाए तो अपनी पत्नी और पुत्र का त्याग करते वक्त क्या बुद्ध ने विवेकपूर्ण दृष्टि से उन के प्रति अपने दायित्वों के विषय में विचार किया नहीं न…

उन की पत्नी ने यह दायित्व अकेले ही निभाया होगा और उन्हें भी उस समय के समाज ने पतिव्रता नारी के गुण पति धर्म आदि का पाठ पढ़ा कर उन्हें चुप करा दिया होगा…

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बुद्ध तो अपनी पत्नी का त्याग कर महान ज्ञानी बन गए परंतु उन की पत्नी का क्या? उस पत्नी के अनजानेअनचाहे कष्टों का क्या जिसे बुद्ध सांसारिक दुखों के उन्मूलन हेतु छोड़ कर अकेले निकल गए?

इस समाज ने नारी को ही पत्नी धर्म के पाठ पढ़ाए. पुरुषों को कभी उन के उत्तरदायित्व से मुंह मोड़ने पर कुसूरवार नहीं ठहराया.

आश्चर्य है इस दलील पर

मर्यादापुरुषोत्तम राम तथा भारतीय संस्कृति के भाव नायक राम ने तो सीता जैसी परम पवित्र और आदर्श नारी का त्याग सिर्फ समाज द्वारा सवाल उठाए जाने पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए किया था क्योंकि समाज के किसी वर्ग में यह संदेह उत्पन्न हुआ कि सीता पहले की तरह ही पवित्र और सती नहीं हैं क्योंकि उन्हें रावण हरण कर के ले गया था.

वैसे दलील तो यह दी जाती है कि सीता ने खुद वन जाने की इच्छा जताई थी क्योंकि पति को बदनामी का दुख  झेलना न पड़े और राम ने इसे होनी सम झ कर मान लिया था.

आश्चर्य है ऐसी दलील पर कि जिन्हें अपनी पत्नी के सतीत्व पर पूर्ण विश्वास है वे समाज के किसी वर्ग के कहने पर बदनामी के दुख से दुखी या आहत हो जाएं और पत्नी उन के दुख से दुखी हो कर स्वयं ही गृह का त्याग कर दे और वह भी तब जबकि वह गर्भवती थी.

मर्यादापुरुषोत्तम राम उस समाज पर क्रोधित होने की जगह अपनी पत्नी के साथ खड़े होने की जगह, दुखी हो गए और उसे होनी सम झ लिया. यह दलील कुछ अजीब नहीं है?

जब राम ने रावण के द्वारा सीता के हरण को होनी नहीं सम झा अर्थात् यही किस्मत में लिखा था. तब यह नहीं सम झा और रावण का सर्वनाश कर दिया. वे अपनी पत्नी के सतीत्व पर उठे इस सवाल पर दुखी हो कर चुप रह जाते हैं और अपनी पत्नी को जंगल में भटकने के लिए छोड़ देते हैं.

यह किस प्रकार का आदर्श है जो समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया गया. क्या यह तर्क इसलिए नहीं दिया जाता ताकि समाज में नारियों को सीता का उदाहरण दे कर अन्याय के खिलाफ खड़े होने की जगह त्याग का पाठ पढ़ाया जा सके ताकि कभी कोई स्त्री अपने हक के लिए सवाल उठाए तो उसे सीता का उदाहरण दे कर पतिव्रता बने रहने की सलाह दे कर आदर्श नारी बनने का पाठ पढ़ा कर उस का मुंह बंद किया जा सके.

मर्यादापुरुषोत्तम राम ने यह किस प्रकार का उदाहरण भारतीय पुरुषों के समक्ष पेश किया कि यदि पत्नी के सतीत्व पर सवाल उठे तो पति को बदनामी का दुख हो तो पत्नी के साथ खड़े होने की जगह अपनी प्रतिष्ठा की वे चिंता करें और उसे भाग्य का लिखा सम झ लें और अपनी पत्नी की प्रतिष्ठा की रक्षा करने की जगह उसे घर त्याग कर चुपचाप जाने दें जबकि उस का कोई कसूर ही न था. क्या यह अन्याय नहीं था?

त्याग स्त्री ही क्यों करे

राजा दुष्यंत जो कि पूरू वंशी राजा थे, एक बार मृग का शिकार करते हुए महर्षि कण्व के आश्रम में पहुंचे और शकुंतला पर आसक्त हो कर गंधर्व विवाह कर लिया और कुछ समय उस के साथ व्यतीत कर अपने नगर लौट गए. आश्रम में शकुंतला उन के पुत्र को जन्म देती है परंतु बाद में शकुंतला जब राजा दुष्यंत के पास जाती है तो राजा उन्हें पहचानने से इनकार कर देते हैं.

दलील यह दी जाता है कि राजा किसी श्राप के कारण शकुंतला को भूल गए थे. खैर, शकुंतला वापस अकेले ही अपने पुत्र का पालनपोषण करती है और एक दिन राजा दुष्यंत वापस कण्व ऋ षि के घर पहुंचते हैं और उन का अपने पुत्र के प्रति प्यार भी अचानक उमड़ पड़ता है साथ ही खोई हुई अंगूठी भी मिल जाती है जिस से उन की खोई हुई याददाश्त वापस आ जाती है.

लेकिन इतने समय तक शकुंतला वन में अकेले ही दुख उठाती हुई अपने पुत्र का भरणपोषण करती है.

यहां भी बड़ी आसानी से समाज के ठेकेदारों ने पत्नी के लिए त्याग का उदाहरण पेश कर दिया कि एक पुरुष अपनी पत्नी का त्याग कर सकता है और वह भी बड़ी आसानी से तथा पत्नी उस की याददाश्त के वापस आने तक उस का इंतजार करती है. यहां भी त्याग की कहानी सिर्फ एक स्त्री के लिए. पुरुष चाहे तो कैसे भी अपनी पत्नी का त्याग कर दे परंतु पत्नी को पतिव्रता बने रहना है. यहां भी पति के कृत्य पर कोई सवाल नहीं. पत्नी और बेटे का त्याग कर पुरुष फिर भी महान बना रह जाता है.

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यह कैसा क्रोध

राजा उत्तम ने तो क्रोध में ही अपनी पत्नी का त्याग कर दिया. उसे राजमहल से निकाल दिया उन्हें अपनी पत्नी का त्याग करने के लिए किसी ठोस कारण की जरूरत भी नहीं पड़ी बस पत्नी पर क्रोध आना ही काफी था. लेकिन बाद में निंदा और तिरस्कार के डर से अपनी पत्नी को वापस अपना लेते हैं परंतु सिर्फ क्रोध आया और पत्नी को घर से निकाल दिया यह उदाहरण भी समाज के लिए निंदनीय ही है.

ऋ षि गौतम ‘अक्षपाद गौतम’ के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हैं और न्याय दर्शन के प्रथम प्रवक्ता भी माने जाते हैं. महर्षि गौतम को परम तपस्वी और बेहद संयमी भी बताया जाता है. महाराज वृद्धाश्रव की पुत्री अहिल्या उन की पत्नी थी जोकि बहुत ही सुंदर और आकर्षक थी. एक दिन ऋ षि स्नान के लिए आश्रम से बाहर गए तभी इंद्र ने गौतम ऋ षि का रूप ले कर उन के साथ छल किया और बिना किसी अपराध के ही अहिल्या को दंड भोगना पड़ा. ऋ षि गौतम ने आश्रम से इंद्र को निकलते देख लिया था और पत्नी के चरित्र पर ही शक कर बैठे और अपनी पत्नी को श्राप दे दिया और वह हजारों वर्षों तक पत्थर बनी रही.??

छल इंद्र का दंड पत्नी को

यहां सम झने वाली बात यह है कि न्याय दर्शन के प्रवक्ता परम तपस्वी बेहद संयमित ऋ षि अपनी पत्नी के साथ ही घोर अन्याय कर जाते हैं. वे इंद्र के छल के लिए दंड अपनी पत्नी को दे देते हैं जो उस ने किया ही नहीं था. उस कृत्य का दंड पा कर वह हजारों वर्षों तक पत्थर बनी रहती है. यहां एक ऋ षि का संयम जवाब दे देता है. इतने क्रोधित हो उठते हैं कि अपनी पत्नी को ही पत्थर बनाने का श्राम दे देते हैं.

यह कहानी पुरुषों की उस मानसिकता का उदाहरण है जहां एक पत्नी को मात्र उपभोग की वस्तु सम झा जाता रहा है और कभी भी अर्थहीन पा कर उस का त्याग करने में उसे दंडित करने में थोड़ा भी विलंब नहीं होता.

उन्होंने भी एक ऐसा दृष्टिकोण पत्नी को देखने का, सम झने का ऐसा ही नजरिया समाज के समक्ष प्र्रस्तुत किया था और फिर भी उन्हें महानता के शिखर पर बैठा कर यह समाज उन्हें पूजता रहा है. क्या अहिल्या के प्रति उन का अपराध क्षमा करने योग्य था?

पत्नी की अवहेलना

सम्राट अशोक ने भी अपनी पहली पत्नी जिस का नाम देवी था जोकि एक बौद्ध व्यापारी की पुत्री थी जिस से अशोक को पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा प्राप्त हुई थी को छोड़ कर एक मछुआरे की पुत्री करुणावकि से विवाह कर लेते हैं और उन के शिलालेखों में कहीं भी उन की पहली पत्नी का नाम तक नहीं होता है. सम्राट अशोक भले ही एक महान शासक के रूप में प्रसिद्धि पाए हों परंतु अपनी पत्नी की अवहेलना उन्होंने भी की.

और फिर संत कवि तुलसीदास जिन का विवाह रत्नावली नाम की अति सुंदर कन्या से हुआ था. ये पहले तो पत्नी प्रेम में इतना डूब जाते हैं कि लोकमर्यादा का होश तक नहीं रहता और फिर एक दिन अचानक पत्नी का त्याग कर देते हैं और संत कवि बन जाते हैं.

अटपटी दलील

ठीक इन्हीं की तरह कालिदास ने भी पारिवारिक जीवन का त्याग कर दिया और दुनिया के महान कवि बन गए. इन दोनों कवियों में एक बात की समानता है जिस में इन के त्याग के पीछे पत्नी की फटकार को ही कारण बताया गया. यहां यह दलील थोड़ी अटपटी सी लगती है कि दोनों कवियों ने अपनीअपनी पत्नी को त्यागने के पीछे का कारण अपनी पत्नी की फटकार या उस के उपदेश को ही बताया और अपनी महानता को भी बनाए रखने की चेष्टा करते हैं.

कोईर् भी पत्नी यह बिलकुल नहीं चाहेगी कि उस का पति उस का त्याग कर दे परंतु यहां पत्नियों के कारण का एक अलग ही उदाहरण पेश कर दिया गया और अकसर उदाहरण के तौर पर पेश भी किया जाता है.

समाज के ठेकेदारों ने इन्हें अपनीअपनी पत्नी को त्यागने में भी इन की महानता को ही ढूंढ़ निकाला. अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने के बावजूद इन की महानता पर कोई आंच नहीं आने दी और पत्नियों को त्याग का पाठ पढ़ाने के लिए एक नया फौर्मूला भी तैयार कर लिया, जिस का सहारा आज भी किसी न किसी रूप में लिया जाता है.

औरत क्या सजावटी वस्तु

अकसर ऐसा कहते हुए सुना जाता है कि स्त्रियां घरों की शोभा होती हैं. शोभा यानी सजावट. सजावट शब्द ने एक औरत को वस्तु शब्द का पर्याय बना दिया और फिर सजावट जैसे शब्द को गढ़ने वाले अपनी सोच की परिधि में एक औरत रूपी चेतना को घुटघुट कर दम तोड़ने पर मजबूर कर देते हैं. इस मानसिकता की शुरुआत संभवत: उन कथित दरबारी कवियों ने ही की थी जो शृंगार रस में डूब कर नखशिख वर्णन यानी किसी औरत के नाखूनों से ले कर उस के सिर तक की सुंदरता का वर्णन राज दरबारों में राजाओं के मनोरंजन के लिए किया करते थे. तब से ले कर लगभग आज तक औरतों को देखने का एक ही दृष्टिकोण लगभग तय सा हो गया. यह समाज औरत को बस एक खूबसूरत वस्तु के पैमाने में ही मापता आ रहा है.

आज भी औरतों को अपनी इसी सोच के दायरे में रख कर देखने वाले पुरुषों की कमी नहीं है विवाह के बाद पत्नियों को त्याग कर किसी खूबसूरत युवती से शादी कर लेना भी एक चलन बन गया है गांव में ऐसी पत्नी आज भी हैं, जिन्हें जिन के पतियों ने शादी के काफी साल बाद त्याग कर अकेले ही जिंदगी जीने के लिए छोड़ दिया और वे पतिव्रता नारी धर्म का पालन किए जी रही हैं. वे किन कष्टों का सामना कर रही हैं. उन की जिंदगी कैसीकैसी कठिनाइयों से भरी हुई है इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता.

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औरतों की आजादी पर अंकुश

सदियों पहले मनु ने एक फतवा जारी किया. मनु के अनुसार स्त्री का बचपन में पिता के अधीन, युवा अवस्था में पति के आधिपत्य में तथा पति की मृत्यु के उपरांत पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए. मनु का ऐसा कहना एक स्त्री के लिए फतवा नहीं है? स्त्रियों की आजादी को क्या ऐसा कह कर छीन नहीं लिया गया? क्या उन की आजादी पर अंकुश नहीं लगा दिया गया? क्या इस फतवे ने नारी के प्रति पुरुषों के अत्याचार के सिलसिले को और भी बढ़ावा नहीं दे दिया?

तमाम तरह की बंदिशें इस समाज में एक नारी के ऊपर ही लगानी शुरू कर दीं जैसे परदे में रहना, पुरुषों की आज्ञा का पालन करना, पुरुषों को पलट कर उत्तर न देना, चुपचाप उन के अत्याचारों को सहन करना इस सोच ने नारी को एक तरह से पुरुषों के अधीन बना दिया जैसे वे कोई संपत्ति हों जिन पर पहले पिता का, फिर पति का और फिर बाद में पुत्र का अधिकार हो गया और फिर स्त्री को सारे सुखों और अधिकारों से वंचित कर दिया गया.

इन सभी वजहों से वह एक वस्तु पर्याय बना दी गई, पुरुषों के अधीन हो गई. पुरुष जब चाहे उस का त्याग कर दे और वह मुंह तक न खोले, पलट कर जवाब तक न दे जैसे वह कोई वस्तु है जिस का त्याग पुरुष अपनी मरजी के हिसाब से कर सकता है.

पुरुषों के लिए कोई बंदिश नहीं

मनु और याज्ञवल्क्य जैसे स्मृतिकारों ने एक पत्नी के क्या कर्तव्य होते हैं जैसे निर्देश देते हुए पत्नी धर्म का पालन करना, पति को परमेश्वर मानना आदि फतवे जारी कर उन्हें पूर्णतया पति के उपभोग की वस्तु बना दिया, एक मानदंड तैयार कर दिया गया जिस के आधार पर उन्हें या तो देवी या तो फिर कुलक्षिणी करार दिया जाने लगा परंतु उसी समाज ने पुरुषों के लिए कभी कोई बंदिश क्यों नहीं लगाई?

पुरुष चाहे तो अपनी मरजी से पत्नी का साथ निभाए या फिर उस का अपनी मरजी से त्याग कर दे परंतु स्त्री के लिए सतीत्व का पालन करना, उस का देवी बने रहना क्यों अनिवार्य कर दिया गया? हमारा समाज आज भी नहीं बदला है. आज भी ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां पति अपनी पत्नी का त्याग कर महान बने बैठे हुए हैं. शादी की और उसे अकेला छोड़ दिया. खुद अपनी जिंदगी मजे में जी रहे हैं परंतु पत्नी को कोई पूछता नहीं. उस की हालत पर कहीं कोई चर्चा नहीं होती. बस पत्नियों को त्याग का पाठ पढ़ा दिया जाता है और वे देवी बने रहने के दायरे से कभी भी बाहर नहीं निकल पातीं.

दयनीय स्थिति

आज भी हमारे समाज में एक औरत पर ही हजारों पाबंदियां ज्यों की त्यों बनी हुई हैं. पुरुष चाहे तो कितने भी प्रेम करे. वह चाहे तो अपनी पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी रचा ले. उसे समाज बहिष्कृत नहीं करता. उस के चरित्र पर सवाल उठाने की जगह उसे महान बना दिया जाता है. उसे कोई कुलटा नहीं कहता क्योंकि वह पुरुष है. त्याग का पाठ बस पत्नियों को ही पढ़ाई जाने की चीज है.

आज भी इस समाज में कईर् ऐसी पत्नियां हैं जिन के पति स्वयं तो समाज के कई प्रतिष्ठित स्थानों पर विराजमान हैं. उन में कोईर् अभिनेता है, फिल्म अभिनेता है, महान गायक है या फिर कोई राजनेता है और ये सब बिना किसी ठोस कारण अपनीअपनी पत्नी का त्याग कर महान बन बैठे हैं और फिर भी यह समाज उन्हें पूरी इज्जत व प्रतिष्ठा दे रहा है या देता आ रहा है. परंतु उन पत्नियों का जीवन कैसा है, वे किस प्रकार जी रही हैं, किसी को कोई चिंता नहीं है.

गांवों में तो ऐसी स्थिति और भी दयनीय है. जिस का पति बिना तलाक दिए मजे में अपनी जिंदगी बिता रहा है क्या वह पत्नी न्याय की हकदार नहीं है? क्यों उस के कष्टों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता? तीन तलाक बेशक निंदनीय अपराध है परंतु उन हिंदू औरतों, उन पत्नियों का क्या अपराध जिन के पतियों ने बिना तलाक दिए उन्हें अकेले जिंदगी जीने को लाचार कर रखा है.

आज ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो शादी कर अपनी पत्नी को छोड़ के विदेशों में भाग गए हैं. हाल के ही एक ताजा समाचार के अनुसार ऐसी 15 हजार महिलाओं की शिकायतें मिली हैं जिन के पति उन्हें छोड़ कर विदेश भाग गए हैं. हम हिंदू औरतों पर हो रहे खुले अत्याचार को भाग्य की देन कैसे मान सकते हैं. यदि साथ नहीं रख सकते तो तलाक दे कर उन्हें सम्मान के साथ जीने का हक तो दें.

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कामयाबियां कहां से मिलती हैं किताबों से या किरदारों से?

दुनिया के इन्वेस्टिंग गुरु माने जाने वाले वारेन बफे का मानना है कि किसी मैनेजमेंट छात्र को चार साल में उसके जो प्रोफेसर, टीचर नहीं सिखा पाते, वह कोई बिजनेस गुरु उन्हें एक मिनट में या अपने आधा घंटे के लैक्चर में सिखा जाता है. वारेन बफे के मुताबिक मैनेजमेंट के छात्र अपने काॅलेजों में ज्यादा कुछ नहीं सीखते. काॅलेज में यह पूरे साल जितना सीखते हैं, उससे कहीं ज्यादा किसी विजिटिंग बिजनेस गुरु के एक लैक्चर में सीख लेते हैं. बफे के मुताबिक काॅलेज फिर चाहे वो मैनेजमेंट के काॅलेज ही क्यों न हों, वहां हमेशा कुशलता न तो विकसित होती है और न ही निखरती है. इसे विकसित करने में और निखारने में सबसे बड़ी भूमिका उन लोगों की होती है, जिन्होंने व्यवहारिक दुनिया में कामयाबियां हासिल की होती हैं.

गौरतलब है कि वारेन बफे खुद कभी बिजनेस की कोई तरकीब काॅलेज से नहीं सीखी. खबरों के मुताबिक वारेन बफे ने साल 2012 में वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के आईवे बिजनेस स्कूल के छात्रों के साथ अपनी इस विचार को साझा करते हुए कि आखिरकार बिजनेस गुरु मैनेजमेंट के छात्रों को क्या सिखाते हैं, एक अच्छा खासा लैक्चर दिया था. तब उन्होंने बड़े दार्शनिक अंदाज में कहा था, कामयाबी के महज 2 से 4 फीसदी फार्मूले बड़े बड़े शिक्षालयों में निर्मित होते हैं, वरना सब कुछ बाहर ही विकसित होता है. हालांकि बफे यह भी मानते हैं कि अध्यात्म की तरह बिजनेस की तरकीबें भी सबसे ज्यादा आप अपने आब्र्जवेशन और अनुभव से विकसित करते हैं.

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इसके बावजूद पारंपरिक बिजनेस अध्यापकों के मुकाबले कभी-कभार आकर बिजनेस के बारे में अपनी राय देने वाले बिजनेस गुरु ज्यादा प्रभावशाली होते हैं. शायद इसकी वजह यह है कि रोज रोज की नियमित पढ़ाई एक ऊबाऊ उपक्रम की तरह होती है, जबकि कभी कभी बिजनेस गुरुओं का फार्मूला या उनकी कोई सीख ताजी हवा की तरह होती है जिसे हर छात्र बहुत ही रूचि से ग्रहण करता है. करीब 25 साल पहले बर्कशायर हाथवे की सालाना शेयर होल्डर्स मीटिंग में, जब एक शेयर होल्डर ने उनसे सवाल किया, ‘आपके पास जितना उम्दा बिजनेस नाॅलेज है, उसकी रोशनी में क्या आप भविष्य में अपना कोई बिजनेस काॅलेज खोलने की योजना बना रहे हैं?’ इस पर बफे ने एक बार अपने पार्टनर चार्ली मुंगेर की तरफ देखा और फिर दोनो ने लगभग हंसते हुए इस सवाल को मजाक में उड़ा दिया.

उनके मुताबिक, ‘हम लोगों ने (यानी वारेन बफे और उनके पार्टनर चार्ली मंुगेर) अपने बीसियों साल के बिजनेस अनुभव के दौरान पाया है कि बिजनेस की समझ और उससे संबंधित जो कुशलता व्यवहारिक रूप से इसे कर या संभाल रहे लोगों में होती है, वैसी समझ और कुशलता किसी भी ज्ञानी, सिद्धांतकार या किताबी विशेषज्ञों में नहीं होती. इसलिए हम यह मानने को तैयार नहीं हैं कि बिजनेस काॅलेज के जरिये हम किसी को बिजनेस मास्टर बना सकते हैं. हम दर्जनों बिजनेस काॅलेज में गये हैं और उनके एक भी पाठ्यक्रमों में कोई एक भी ऐसा पाठ नहीं पाया, जिसमें वे किसी को असली और अविश्वसनीय सफलता के बारे में पढ़ा सकें. बिजनेस की कामयाबी में हमेशा नये आइडिया काम आते हैं और नये आइडिया कोई दूसरा नहीं ढूंढ़ सकता. हर कारोबारी को खुद ढूंढ़ने पड़ते हैं.’

बफे के मुताबिक दुनिया के जितने कामयाब लोग हैं उनमें से कोई भी बिजनेस स्कूल नहीं गया और जितने भी लोग बिजनेस स्कूल जाकर कामयाब हुए है, उन्होंने अविश्वसनीय कामयाबी नहीं हासिल की. उनकी कामयाबी में बड़ा रोल पूंजी और तकनीक का रहा है. लेकिन शायद यांत्रिक कामयाबी की यही सीमा है. वारेन बफे शायद इसीलिए मानते हैं कि बिजनेस स्कूलों को ऐसे अनगढ़ और अविश्वसनीय ढंग से कामयाब लोगों की सिर्फ जीवनियां पढ़ानी चाहिए बल्कि वे तो यहां तक कहते हैं कि जीवनियां पढ़ाई नहीं जानी चाहिए बल्कि सलाहभर दी जानी चाहिए.

..तो क्या किताबी पढ़ाई का कामयाबी की दुनिया से कोई रिश्ता नहीं है? नहीं, ऐसा नहीं है. वारेन बफे और खुद दुनिया में सबसे कामयाब माने गये कारोबारी कंप्यूटर कारोबार के बेताज बादशाह बिलगेट्स ने भी पाया है कि किताबें वह तो नहीं देतीं जो पाने के लिए आप उनके पास जाते हैं, लेकिन वह बहुत कुछ अद्भुत और अविश्वसनीय देती हैं, जो लोग नहीं दे सकते. वारेन बफे भी कहते हैं, ‘मैंने जीवन में जो कुछ सीखा है, उसमें किताबों की रोशनी में अपनी जोखिम, अपनी कल्पनाशक्ति के मिश्रण से सीखा है.’ बिलगेट्स भी मानते हैं कि किताबें आपको कल्पनाओं की एक ऐसी दुनिया में ले जाती हैं, जहां वह नहीं होता जिसे आप ढूंढ़ रहे होते हैं बल्कि उससे बड़ा, उससे अविश्वसनीय होता है, जिसकी आपने कल्पना नहीं की होती है. शायद यही वजह है कि हर कामयाब बिजनेस मैन आज के इस डिजिटल युग में भी नियमित रूप से किताबें पढ़ते हैं. शायद इसकी वजह यह भी है कि किताबें इंसान को रचनात्मक बनाती हैं, जबकि सोशल मीडिया और डिजिटल कंटेंट लोगों को उबाते हैं.

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कुछ साल पहले दुनिया के कई बड़े बिजनेस गुरुओं ने अपने अलग अलग व्याख्यानों और अपने भाषणों में ऐसी छह किताबों को चिन्हित किया था, जो कामयाबी के रास्ते में ले जाने के लिए बड़ा सकारात्मक माहौल बनाती हैं. हालांकि इन सब बातों के साथ एक इस बात को भी किसी कसौटी की तरह हमें लगातार समझना चाहिए कि कामयाबी का कोई इंस्टेंट या तुरत फुरत का फार्मूला नहीं होता और यह भी कि सिर्फ मेहनत से कोई व्यक्ति अमीर नहीं बनता. अमीर बनने में मेहनत के अलावा कई दूसरे कारक भी बड़ी भूमिका निभाते हैं. जिन छह किताबों को कामयाबी का रास्ता दिखाने वाला माना जाता है, उनमें एक किताब है ‘द लिटिल बुक आफ कौमनसेंस फार इन्वेस्टिंग’ इसे जौन सी गोगले ने लिखा और यह किताब बार बार इसी बात को साबित करती है कि कोई भी लकीर और नियम के चलते लिये गये बिजनेस के निर्णय आपको कामयाबी तक नहीं पहुंचाते इसके लिए कल्पना और जोखिम की अंगुली पकड़कर ही आगे बढ़ना होता है.

Family Story In Hindi: स्वस्थ दृष्टिकोण- भाग 2- क्या हुआ था नंदा के साथ

ऐसे ही 2-3 दिन बीत गए. हम समझ नहीं पा रहे थे कि सचाई कैसे जानें.

दरवाजे की घंटी बजी और हम पतिपत्नी हक्के- बक्के रह गए. सामने वही लड़की खड़ी थी. हमारी नन्ही पड़ोसिन जो अब मानसी के तलाकशुदा पति की पत्नी है.

कुछ पल को तो हम समझ ही नहीं पाए कि हम क्या कहें और क्या नहीं. स्वर निकला ही नहीं. वह भी चुपचाप हमारे सामने इस तरह खड़ी थी जैसे कोई अपराध कर के आई हो और अब दया चाहती हो.

‘‘आओ…, आओ बेटी, आओ न…’’ मैं बोला.

पता नहीं क्यों स्नेह सा उमड़ आया उस के प्रति. कई बार होता है न, कोई इनसान बड़ा प्यारा लगता है, निर्दोष लगता है.

‘‘आओ बच्ची, आ जाओ न,’’ कहते हुए मैं ने पत्नी को इशारा किया कि वह उसे हाथ पकड़ कर अंदर बुला ले.

इस से पहले कि मेरी पत्नी उसे पुकारती, वह स्वयं ही अंदर चली आई.

‘‘आप…आप से मुझे कुछ बात करनी है,’’ वह डरीडरी सी बोली.

बहुत कुछ था उस के इतने से वाक्य में. बिना कहे ही वह बहुत कुछ कह गई थी. समझ गया था मैं कि वह अवश्य अपने पति के ही विषय में कुछ साफ करना चाहती होगी.

पत्नी चुपचाप उसे देखती रही. हमारे पास भला क्या शब्द होते बात शुरू करने के लिए.

‘‘आप लोग…आप लोगों की वजह से चंदन बहुत परेशान हैं. बहुत मेहनत से मैं ने उन्हें ठीक किया था. मगर जब से उन्होंने आप को देखा है वह फिर से वही हो गए हैं, पहले जैसे बीमार और परेशान.’’

‘‘लेकिन हम ने उस से क्या कहा है? बात भी नहीं हुई हमारी तो. वह मुझे पहचान गया होगा. बेटी, अब जब तुम ने बात शुरू कर ही दी है तो जाहिर है सब जानती होगी. हमारी बच्ची का क्या दोष था जरा समझाओ हमें? चंदन ने उसे दरबदर कर दिया, आखिर क्यों?’’

‘‘दरबदर सिर्फ मानसी ही तो नहीं हुई न, चंदन भी तो 4 साल से दरबदर हो रहे हैं. यह तो संयोग था न जिस ने मानसी और चंदन दोनों को दरबदर…’’

‘‘क्या कार का लालच संयोग ने किया था? हर रोज नई मांग क्या संयोग करता था?’’

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‘‘यह तो कहानी है जो मानसी के मातापिता ने सब को सुनाई थी. चंदन के घर पर तो सबकुछ था. उन्हें कार का क्या करना था? आज भी वह सब छोड़छाड़ कर अपने घर से इतनी दूर यहां राजस्थान में चले आए हैं सिर्फ इसलिए कि उन्हें मात्र चैन चाहिए. यहां भी आप मिल गए. आप मानसी के चाचा हैं न, जब से आप को देखा है उन का खानापीना छूट गया है. सब याद करकर के वह फिर से पहले जैसे हो गए हैं,’’ कहती हुई रोने लगी वह लड़की, ‘‘एक टूटे हुए इनसान पर मैं ने बहुत मेहनत की थी कि वह जीवन की ओर लौट आए. मेरा जीवन अब चंदन के साथ जुड़ा है. वह आप से मिल कर सारी सचाई बताना चाहते हैं. आखिर, कोई तो समझे उन्हें. कोई तो कहे कि वह निर्दोष हैं.

‘‘कार की मांग भला वह क्या करते जो अपने जीवन से ही निराश हो चुके थे. आजकल दहेज मांगने का आरोप लगा देना तो फैशन बन गया है. पतिपत्नी में जरा अलगाव हो जाए, समाज के रखवाले झट से दहेज विरोधी नारे लगाने लगते हैं. ऐसा कुछ नहीं था जिस का इतना प्रचार किया गया था.’’

‘‘तुम्हारा मतलब…मानसी झूठ बोलती है? उस ने चंदन के साथ जानबूझ कर निभाना नहीं चाहा? इतने महीने वह तो इसी आस पर साथ रही थी न कि शायद एक दिन चंदन सुधर जाएगा,’’ नंदा ने चीख कर कहा. तब उस बच्ची का रोना जरा सा थम गया.

‘‘वह बिगड़े ही कब थे जो सुधर जाते? मैं आप से कह रही हूं न, सचाई वह नहीं है जो आप समझते हैं. दहेज का लालच वहां था ही नहीं, वहां तो कुछ और ही समस्या थी.’’

‘‘क्या समस्या थी? तुम्हीं बताओ.’’

‘‘आप चंदन से मिल लीजिए, अपनी समस्या वह स्वयं ही समझाएंगे आप को.’’

‘‘मैं क्यों जाऊं उस के पास?’’

‘‘तो क्या मैं उन्हें भेज दूं आप के पास? देखिए, आज की तारीख में आप अगर उन की बात सुन लेंगे तो उस से मानसी का तो कुछ नहीं बदलेगा लेकिन मेरा जीवन अवश्य बच जाएगा. मैं आप की बेटी जैसी हूं. आप एक बार उन के मुंह से सच जान लें तो उन का भी मन हलका हो जाएगा.’’

‘‘वह सच तुम्हीं क्यों नहीं बता देतीं?’’

‘‘मैं…मैं आप से कैसे कह दूं वह सब. मेरी और आप की गरिमा ऐसी अनुमति नहीं देती,’’ धीरे से होंठ खोले उस ने. आंखें झुका ली थीं.

नंदा कभी मुझे देखती और कभी उसे. मेरे सोच का प्रवाह एकाएक रुक गया कि आखिर ऐसा क्या है जिस से गरिमा का हनन होने वाला है? मेरी बेटी की उम्र की बच्ची है यह, इस का चेहरा परेशानी से ओतप्रोत है. आज की तारीख में जब मानसी का तलाक हो चुका है, उस का कुछ भी बननेबिगड़ने वाला नहीं है, मैं क्यों किसी पचड़े में पड़ूं? क्यों राख टटोलूं जब जानता हूं कि सब स्वाहा हो चुका है.

अपने मन को मना नहीं पा रहा था मैं. इस चंदन की वजह से मेरे भाई

का बुढ़ापा दुखदायी हो गया, जवान बेटी न विधवा हुई न सधवा रही. वक्त की मार तो कोई भी रोतेहंसते सह ले लेकिन मानसी ने तो एक मनुष्य की मार

सही थी.

‘‘कृपया आप ही बताइए मैं क्या करूं? मैं सारे संसार के आगे गुहार नहीं लगा रही, सिर्फ आप के सामने विनती कर रही हूं क्योंकि मानसी आप की भतीजी है. इत्तिफाकन जो घट गया वह आप से भी जुड़ा है.’’

‘‘तुम जाओ, मैं तुम्हारे साथ नहीं आ सकता.’’

‘‘चंदन कुछ कर बैठे तो मेरा तो घर ही उजड़ जाएगा.’’

‘‘जब हमारी ही बच्ची का घर उजड़ गया तो चंदन के घर से मुझे क्या लेनादेना?’’

‘‘चंदन समाप्त हो जाएंगे तो उन का नहीं मेरा जीवन बरबाद…’’

‘‘तुम उस की इतनी वकालत कर रही हो, कहीं मानसी की बरबादी

का कारण तुम्हीं तो नहीं हो? इस जानवर का साथ देने का भला क्या

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मतलब है?’’

‘‘चंदन जानवर नहीं हैं, चाचाजी. आप सच नहीं जानते इसीलिए कुछ समझना नहीं चाहते.’’

‘‘अब सच जान कर हमारा कुछ भी बदलने वाला नहीं है.’’

‘‘वह तो मैं पहले ही विनती कर चुकी हूं न. जो बीत गया वह बदल नहीं सकता. लेकिन मेरा घर तो बच जाएगा न. बचाखुचा कुछ अगर मेरी झोली में प्रकृति ने डाल ही दिया है तो क्या इंसानियत के नाते…’’

‘‘हम आएंगे तुम्हारे घर पर,’’ नंदा बीच में ही बोल पड़ी.

मुझे ऐसी ही उम्मीद थी नंदा से. कहीं कुछ अनचाहा घट रहा हो और नंदा चुप रह जाए, भला कैसे मुमकिन था. जहां बस न चले वहां अपना दिल जलाती है और जहां पूरी तरह अपना वश हो वहां भला पीछे कैसे रह जाती.

‘‘तुम जाओ, नाम क्या है तुम्हारा?’’

‘‘संयोगिता,’’ नाम बताते हुए हर्षातिरेक में वह बच्ची पुन: रो पड़ी थी.

‘‘मैं तुम्हारे घर आऊंगी. तुम्हारे चाचा भी आएंगे. तुम जाओ, चंदन को संभालो,’’ पत्नी ने उसे यकीन दिलाया.

उसे भेज कर चुपचाप बैठ गई नंदा. मैं अनमना सा था. सच है, जब मानसी का रिश्ता हुआ भैया बहुत तारीफ करते थे. चंदन बहुत पसंद आया था उन्हें. सगाई होने के 4-5 महीने बाद ही शादी हुई थी. इस दौरान मानसी और चंदन मिलते भी थे. फोन भी करते थे. सब ठीक था, पर शादी के बाद ही ऐसा क्या हो गया? अच्छे इनसान 2-4 दिन में ही जानवर कैसे बन गए?

भाभी भी पहले तारीफ ही करती रही थीं फिर अचानक कहने लगीं कि चंदन तो शादी वाले दिन से ही उन्हें पसंद नहीं आया था. जो इतने दिन सही था वह अचानक गलत कैसे हो गया. हम भी हैरान थे.

तब मेरी दोनों बेटियां अविवाहित थीं. मानसी की दुखद अवस्था से हम पतिपत्नी परेशान हो गए थे कि कैसे हम अपनी बच्चियों की शादी करेंगे? इनसान की पहचान करना कितना मुश्किल है, कैसे अच्छा रिश्ता ढूंढ़ पाएंगे उन के लिए? ठीक चलतेचलते कब कोई क्यों गलत हो जाता है पता ही नहीं चलता.

‘मैं ने तो मानसी से शादी के हफ्ते बाद ही कह दिया था, वापस आ जा, लड़कों की कमी नहीं है. तेरी यहां नहीं निभने वाली…’ एक बार भाभी ने सारी बात सुनातेसुनाते कहा था, ‘फोन तक तो करने नहीं देते थे, ससुराल वाले. बड़ी वाली हमें घंटाघंटा फोन करती रहती है, यह तो बस 5 मिनट बाद ही कहने लगती थी, बस, मम्मी, अब रखती हूं. फोन पर ज्यादा बातें करना ससुरजी को पसंद नहीं है.’

मानसी शिला सी बैठी रहती थी. एक दिन मैं ने स्नेह से उस के सिर पर हाथ रखा तो मेरे गले से लिपट कर रो पड़ी थी, ‘पता नहीं क्यों सब बिखरता ही चला गया, चाचाजी. मैं ने निभाने की बहुत कोशिश की थी.’

‘तो फिर चूक कहां हो गई, मानसी?’

‘उन्हें मेरा कुछ भी पसंद नहीं आया. अनपढ़ गंवार बना दिया मुझे. सब से कहते थे. मैं पागल हूं. लड़की वाले तो दहेज में 10-10 लाख देते हैं, तुम्हारे घर वालों ने तो बस 2-4 लाख ही लगा कर तुम्हारा निबटारा कर दिया.’

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हैरानपरेशान था मैं तब. मैं भी तब अपनी बच्चियों के लिए रिश्तों की तलाश में था. सोचता था, मैं तो शायद इतना भी न लगा पाऊं. क्या मेरी बेटियां भी इसी तरह वापस लौट आएंगी? क्या होगा उन का?

‘देखो भैया, उन लोगों ने इस की नस काट कर इसे मार डालने की कोशिश की है. यह देखो भैया,’ भाभी ने मानसी की कलाई मेरे सामने फैला कर कहा था. यह देखसुन कर काटो तो खून नहीं रहा था मुझ में. जिस मानसी को भैयाभाभी ने इतने लाड़प्यार से पाला था उसी की हत्या का प्रयास किया गया था, और भाभी आगे बोलती गई थीं, ‘उन्होंने तो इसे शादी के महीने भर बाद ही अलग कर दिया था.

‘जब से हम ने महिला संघ में उन की शिकायत की थी तभी से वे लोग इसे अलग रखते थे. चंदन तो इस के पास भी नहीं आता था. वहीं अपनी मां के पास रहता था. राशनपानी, रुपयापैसा सब मैं ही पहुंचा कर आती थी. इस के बाद तो मुझे फोन करने के लिए पास में 10 रुपए भी नहीं होते थे.’

आगे पढ़ें- मैं चुपचाप सुनता रहा. यह सच है कि…

औयली स्किन के लिए लोशन और क्रीम के बारे में बताएं?

सवाल-

मेरी स्किन औयली है, मैं सभी तरह की सनस्क्रीन यूज कर चुकी हूं लेकिन मेरी स्किन पर उन का कोई फायदा नहीं होता. कृपया मुझे इस संबंध में सलाह दीजिए?

जवाब

गरमी के इस मौसम में सब से ज्यादा समस्या तैलीय त्वचा की ही होती है. अगर आप की स्किन भी कुछ इस तरह की है तथा आप पुराना सनस्क्रीन लगा कर परेशान हो चुकी हैं तो आप औयली त्वचा के लिए जैल या अक्वा बेस्ड एसपीएफ फौर्मुलेशन वाला सनस्क्रीन को चुन सकती हैं. यह सनस्क्रीन आप की स्किन को यूवी किरणों से बचाने का काम करेगा और आप की स्किन को लाइटवेट भी फील करवाएगा. यह आप के रोमछिद्रों को बंद नहीं करेगा और त्वचा औयली भी नहीं होगी.

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औयली (तैलीय) त्वचा वाली महिलाओं को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है. त्वचा पर मौजूद अधिक तेल चेहरे को चिपचिपा बना देता हे, जिस से चेहरे पर कीलमुंहासे होने का डर बना रहता है, लेकिन अब इस डर को घर में बनाए जाने वाले फेस पैक, जिन्हें घरेलू फेस पैक के नाम से भी जानते हैं, का इस्तेमाल कर दूर किया जा सकता है.

डा. दीपाली भारद्वाज, त्वचा रोग विशेषज्ञा बताती हैं कि तैलीय त्वचा से परेशान बहुत सी महिलाएं उन के पास आती हैं, जो विभिन्न क्रीमों व अन्य चिकित्सीय उपचार ले चुकी होती हैं, लेकिन डा. दीपाली के मुताबिक घरेलू उपचार से बेहतर कोई इलाज नहीं.

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इन 5 घरेलू उपचारों का प्रयोग कर आप औयली त्वचा की परेशानियों से छुटकारा पा सकती हैं:

1 केला, शहद और लैमन फेस पैक: केला सेहत के लिए तो फायदेमंद होता ही है, साथ ही यह त्वचा से अतिरिक्त तेल निकालने में भी मदद करता है. केले के साथ शहद और नीबू भी कमाल के गुणों से भरपूर होते हैं. आप को अपने लिए फेस पैक बनाने के लिए बस इतना करना है कि एक केले को मैश कर उस में 1 चम्मच शहद और नीबू का रस मिला कर इस मिश्रण को चेहरे पर तब तक लगाए रखना है जब तक कि यह सूख न जाए. फिर चेहरे को कुनकुने पानी से धो लें.

2 पपीता व लैमन फेस पैक: पपीता एक ऐसा फल है, जो कहीं भी आसानी से मिल जाता है. तैलीय त्वचा के लिए यह अद्भुत विकल्प है. पपीते का फेस पैक बनाने के लिए इसे अच्छी तरह मैश कर के इस में नीबू का रस मिलाएं और फिर करीब 20 मिनट तक चेहरे पर लगाए रखने के बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें.

उमस के मौसम में घूमें तमिलनाडू का यरकौड, जानिए क्या है खासियत

गरमियों में लोग ठंडी जगहों पर घूमना बहुत पसंद आता है. जिसके लिए वह भारत से बाहर दूसरे देशों में जाते हैं, लेकिन भारत में भी हिल स्टेशन्स की कमी नहीं है. जैसे तमिलनाडु के छोटे और अनगिनत नज़ारों को समेटे यरकौड, जो फैमिली वेकेशन के लिए बेहतरीन जगह है. मसालों के बगीचे से आती खुशबू और दूर-दूर तक फैले संतरे के पेड़ इस जगह को और भी खास बनाते हैं.

हरियाली से ढका है यरकौड लेक

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शहर के बीचों-बीच में यरकौड लेक को एमरल्ड लेक और बिग लेक के नाम से भी जाना जाता है. चारों ओर फैली हरियाली यरकौड की इस लेक को और ज्यादा ब्यूटीफुल बनाती है. अगर आप पहाड़ों पर घूमकर थक जाएं या फिर धूप से परेशान हो तो यहां बोटिंग का औप्शन भी है. लेक के आसपास बहुत सारी दुकानें हैं जिनमें आप यहां के ट्रैडिशनल और टेस्टी फूड को खाने के साथ ही गिफ्ट आइटम्स की भी खरीददारी कर सकते हैं.

पैगोडा प्वाइंट के बिना अधूरा है यरकौड का सफर

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अगर आप सोशल मीडिया पर कोई ऐसी फोटो पोस्ट करने की सोच रहे हैं जिससे आपके फौलोअर्स तुरंत बढ़ जाए तो पैगोड़ा प्वाइंट है बेस्ट प्लेस. यरकौड का सफर पेगोडा प्वाइंट को देखे बिना अधूरा है. यरकौड पहाड़ी के पूर्व में बसे इस प्वाइंट से पूरे शहर का नज़ारा बड़ा ही सुंदर नज़र आता है. इस जगह के ऐसे नाम के पीछे वजह यहां पत्थरों से बनी एक ऐसी संरचना है जो देखने में बिल्कुल पेगोडा लगता है.

यरकौड़ के नज़ारों जितना ही पौप्युलर है बियर केव

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नज़ारों के जितना ही पौपुलर है यरकौड की ये जगह. बियर केव बहुत ही अच्छी जगह है जहां जाकर अपना अच्छा टाइम बिता सकते हैं. एक जमाने में ये गुफा भालुओं का घर था. इतना ही नहीं ये गुफा 18वीं शताब्दी में महाराजा टीपू सुल्तान का गुप्त जगहों में शामिल थी. जिसे बाद में आम लोगों के लिए खोल दिया गया था.

लेडीज़ सीट में अग्रेजों की पत्नियां करती थीं किटी पार्टी

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ये यरकौड की ऐसी जगह है जो ब्रिटिश काल से जुड़ी हुई है और इस नाम के पीछे की कहानी भी बड़ी मज़ेदार है. दरअसल अंग्रेज शासकों की पत्नियां इस जगह का इस्तेमाल अपनी किटी पार्टीज़ के लिए किया करती थी. यहां से ढ़लते सूरज का नज़ारा बड़ा ही खूबसूरत होता है. जहां टूरिस्टों सुकून के पल बिताने आते हैं.

Beauty Tips: नीम फेस पैक से बनाए स्किन को साफ और बेदाग

आप यह जानते हैं कि नीम आपकी त्वचा के लिए कितना असरदार है तो चलिए हर्बल नीम मास्क के बारे में जानते हैं. मास्क अच्छी तरह काम करे इसके लिए जरूरी है कि पहले बेसिक त्वचा के रख रखाव के नियम का पालन किया जाये.

चेहरे को दिन में दो बार क्लिन्जर से साफ करें, मेकअप के साथ कभी न सोएं. अपनी त्वचा को बार बार न छुएं और चाहे कितने भी व्यस्त हों सनस्क्रीन लगाना कभी न भूलें. यहां पर आसान तरीके दिए गए हैं जिससे घर पर बने नीम मास्क को चेहरे पर लगाकर आकर्षक त्वचा पायी जा सकती है.

नीम और गुलाबजल

इस मास्क में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं जिससे चेहरे पर पड़े दाग धब्बे मिट जाते हैं.

कैसे काम करता है

मुट्ठी भर नीम के पत्तों को लेकर पाउडर बना लें. इस पाउडर में गुलाबजल मिलाकर पेस्ट बना लें. अब इसे चेहरे और गर्दन पर लगा लें. 15 मिनट बाद धो लें.

नीम, बेसन और दही

इस मास्क से कील मुहांसे कम होते हैं, दाग धब्बे मिटते हैं और चेहरे पर चमक आती है.

कैसे काम करता है

एक बड़े चम्मच बेसन में एक छोटा चम्मच नीम का पाउडर दही की मदद से मिला कर पेस्ट बना लें. चेहरे को धोने के बाद यह मास्क लगा लें. इसे 15 मिनट तक रहने दें और उसके बाद धो लें. इस मास्क को हफ्ते में दो बार लगाएं और असरदार परिणाम पाएं.

नीम, चन्दन और दूध

इस मास्क से चहरे पर निखार आता है, यह चेहरे को साफ करता है जिससे त्वचा साफ और कोमल हो जाती है.

कैसे काम करता है

एक छोटे चम्मच चन्दन पाउडर में आधा चम्मच नीम पाउडर, दूध के साथ मिलाकर पेस्ट बना लें. अब इसे चेहरे और गर्दन पर लगा लें. आधे घंटे बाद चेहरे को पानी से धो कर स्क्रब कर लें.

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नीम और शहद

इस घर पर बने मास्क से थकी हुई त्वचा में जान आती है और चेहरे पर तेल को बनने से रोकता है.

कैसे काम करता है

कुछ नीम के पत्तों को निचोड़कर पेस्ट बना लें और इसमें एक बड़ा चम्मच शहद मिला दें. अच्छे से चला लें और चेहरे और गर्दन पर लगा लें. आधे घंटे बाद धो लें. नीम और पपीता

इस मास्क में मौजूद एंटी बैक्टीरियल क्षमता चेहरे पर से धूल हटाती है और चेहरे पर चमक लाती है.

कैसे काम करता है

एक पके हुए पपीते को निचोड़कर उसका पल्प निकाल लें और इसमें एक छोटा चमच नीम का पाउडर मिला लें. इन्हें अच्छी तरह मिला लें. अब चेहरे और गर्दन पर अच्छी तरह लगा लें. आधे घंटे तक रहने दें और उसके बाद धो लें.

नीम और टमाटर

इस मास्क में बीटा कैरोटीन और लयकोपीन होता है जो त्वचा को फ्री रेडिकल से बचाता है, त्वचा को कोमल बनाता है और टेन से मुक्ति दिलाता है.

कैसे काम करता है

टमाटर को निचोड़कर उसका पल्प निकाल लें और इसमें नीम पाउडर मिला लें. इसे चहरे पर लगा लें. चेहरे पर इस मास्क को 15 मिनट तक लगा रहने दें और उसके बाद धो लें.

नीम, तुलसी और शहद

इस हर्बल मास्क से चेहरे की धूल हटती है, कील मुहांसे बनांने वाले बैक्टीरिया मरते हैं और त्वचा स्वस्थ रहती है.

कैसे काम करता है

मुट्ठी भर तुलसी और नीम के पत्तों को सूखने के लिए रख दें. सूख जाने के बाद इसका पाउडर बना लें. इस पाउडर में एक बड़ा चम्मच शहद मिला लें. इस पेस्ट को चेहरे और गर्दन पर अच्छी तरह लगा लें. इसे सूखने दें. गोल गोल स्क्रब करें और धो लें.

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नीम,दही और हल्दी

इस मास्क में जिसमें चेहरे पर ज़्यादा तेल न बनने देने की क्षमता है, इसमें लैक्टिक एसिड और हल्दी भी है जिससे चेहरे पर पड़े दाग धब्बे मिट जाएंगे और चेहरा मुलायम रहेगा.

कैसे काम करता है

एक छोटे चम्मच नीम पाउडर में एक बड़ा चम्मच दही और चुटकी भर हल्दी मिला लें. इसे चेहरे पर लगा लें. इसे सूखने दें और उसके बाद धो लें.

फैशन ट्रांसफौर्मेशन से माधुरी दीक्षित ने जीता फैंस का दिल, दिखाई लहंगा कलेक्शन की झलक

बौलीवुड एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित की खूबसूरती का हर कोई कायल है. 54 साल की उम्र में भी माधुरी बेहद खूबसूरत और फिट हैं. वहीं डांसिग रियलिटी शो में उनके नए-नए लुक्स को देखकर तारीफें करते नहीं थक रहे. इसी बीच वाइट लहंगे में माधुरी दीक्षित की लेटेस्ट फोटोज वायरल हो रही है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं उनके फिटनेस को लेकर कई सवाल करते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं माधुरी दीक्षित की वायरल फोटोज…

लहंगे में बिखेरे जलवे

 

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एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित ने हाल ही में एक फोटोशूट करवाया था, जिसमें वह व्हाइट कलर के लहंगे में नजर आईं थीं. सिल्क और शिफॉन के फ्रेबिक से बना ये व्हाइट लहंगा पहने माधुरी दीक्षित बौलीवुड हसीनाओं को टक्कर देती नजर आईं.

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फैशन कलेक्शन देख फैंस पूछ रहे सवाल

 

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रियलिटी शोज में एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित नए-नए आउटफिट्स कैरी करते हुए नजर आती हैं. वहीं आसमानी नीले कलर के पैटर्न वाले लहंगे में जब माधुरी सामने आईं तो फैंस तारीफें करते नहीं थक रहे थे. वहीं उनका हेयर स्टाइल और इनकी लिपस्टिक का रंग माधुरी के लुक पर चार चांद लगा रहा था. साथ ही मैचिंग ज्वैलरी उनके लुक पर चार चांद लगा रही थी.

 

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लंहगे को दिया अलग लुक

 

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डिफरेंट कलर और पेटर्न वाले लहंगे को अलग लुक देने के लिए नया तरीका अपनाया. साड़ी के अंदाज में दुपट्टा कैरी करते हुए पर्पल कलर के लहंगे में माधुरी बेहद खूबसूरत लग रही हैं. इस लहंगे के साथ मैचिंग ज्वैलरी उनके लुक को और भी खूबसूरत बना रही थी.

 

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बैकलेस लुक में दिखाए जलवे

 

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एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित बीते दिनों फिशटेल स्कर्ट पहनें नजर आईं थीं, जिसके साथ बैकलेस डिजाइनर ब्लाउज उनके लुक को स्टाइलिश बना रहा था. वहीं खूबसूरत एंब्रौयडरी लुक में माधुरी दीक्षित का ट्रांसफौर्मेशन साफ देखने को मिल रहा था.

Monsoon Special: आलू की हैं शौकीन तो आज बनाएं तवा आलू मसाला

आलू से बनी सब्जी किसे पसंद नहीं होती. इसलिए आज हम आपको तवा आलू मसाला बनाने की रेसिपी बता रहे हैं. इसे बनाने में ज्यादा समय भी नहीं लगता है और न ही ज्यादा सामग्री की जरूरत होती है.

आप आसानी से इसे लंच या डिनर में बना सकती हैं. आइए जानते हैं इसे बनाने की विधि.

हमें चाहिए

तेल – जरूरत अनुसार

उबले आलू – 500 ग्राम

नमक – 1 टीस्पून

हल्दी – 1/4 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर – 1/2 टीस्पून

धनिया पाउडर – 1 टीस्पून

चाट मसाला पाउडर – 1/2 टीस्पून

जीरा – 1/2 टीस्पून

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प्याज – 70 ग्राम

अदरक पेस्ट – 1/2 टीस्पून

लहसुन पेस्ट – 1/2 टीस्पून

टमाटर पूरी – 180 ग्राम

गर्म मसाला पाउडर – 1/2 टीस्पून

मेथी – 1/2 टीस्पून

धनिया – गार्निशिंग के लिए

बनाने का तरीका

सबसे पहले एक कड़ाई में तेल डालकर मध्यम आंच पर गर्म करें. इसके बाद इसमें उबले हुए आलू, हल्दी, धनिया मसाला, चाट मसाला, नमक और लाल मिर्च पाउडर डालकर अच्छे से पकाएं.

जब आलू का रंग सुनहरा हो जाए तो इसे आंच से हटा लें. अब एक पैन में तेल डालकर मध्यम आंच पर गर्म होने दें. फिर इसमें जीरा, लहसुन, अदरक और प्याज डालकर फ्राई कर लें.

इसके बाद इसमें टमाटर प्यूरी डालकर 2 मिनट तक पकाएं. अब इसमें फ्राई किए हुए आलू, मेथी और गर्म मसाला डालकर कुछ मिनट तक कम आंच में पकाते रहें.

आपका तवा आलू मसाला बनकर तैयार है. इसे धनिये के साथ गार्निश कर सर्व करें.

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Family Story In Hindi: सितारों से आगे- भाग 4- कैसे विद्या की राहों में रोड़ा बना अमित

लेखिका- डा. सरस्वती अय्यर

 अवसर मिलते ही उन्होंने विजय से विद्या के साथ शादी की बात की. विजय ने धैर्यपूर्वक उन की बातें सुनीं, फिर एक गहरी सांस ले कर बड़ी ही शांति से जवाब दिया, ‘‘मां किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले अच्छी तरह से सोचविचार कर लो. मैं पहले ही गलत निर्णय ले कर पछता चुका हूं. अब तुम जैसा ठीक समझे. तुम्हारी हर बात मुझे स्वीकार है पर एक बार विद्या के मन की भी थाह ले लो. अगर उसे कोई विरोध नहीं है तो मेरी तरफ से भी समझे हां ही है.’’

बेटे की तरफ से हरी झंडी मिलते ही लक्ष्मी देवी विद्या के मातापिता से मिलीं. लक्ष्मी देवी का प्रस्ताव सुन कर उन की खुशी से आंखें भर आईं. उन की सहमति पा कर लक्ष्मी देवी का उत्साह दोगुना हो गया. अब वे देर नहीं करना चाहती थीं. शाम को विद्या के मातापिता को विद्या और वृंदा सहित घर आने का निमंत्रण दे कर वे बाजार की ओर निकल पड़ीं. टैलीफोन पर विजय को इस सहमति की सूचना देना वे न भूलीं.

मगर विजय एक बार जीवन में धोखा खा चुके थे. इस बार वे जल्दीबाजी नहीं करना चाहते थे. वे विद्या से मिल कर इस बारे में बात करना चाहते थे. कुछ भी निर्णय लेने से पहले विद्या से मिलना जरूरी था. कुछ सोच कर उन्होंने अपने सैक्रेटरी को बुलाया. उसे कुछ निर्देश दे कर वे बाहर निकले और विद्या को मोबाइल पर फोन किया, पर उस का फोन औफ था. उन्होंने विद्या के औफिस नंबर पर फोन किया तो पता चला कि आज विद्या का टूरनामैंट है. आज वे शिवाजी इंडोर स्टेडियम में हैं.

विजय कार ले कर स्टेडियम जा पहुंचे और दर्शकों की पंक्ति में बैठ गए. इंटरस्टेट बैडमिंटन का महिला फाइनल एकल मैच चल रहा था. विद्या की सर्विस चल रही थी. कोर्ट पर आत्मविश्वास से लबरेज विद्या की चुस्तीफुरती देखने लायक थी. उस के हर शौट पर तालियां बज रही थीं.

अपनी प्रतिद्वंद्वी को सीधे सैटों में पराजित कर के जब विजेता का कप ले कर वह स्टेज से उतरी तो विद्या के समर्थकों ने उसे कंधों पर उठा लिया. विजय के लिए विद्या का यह रूप नया था. प्रभावित तो वे उस से थे ही, अब उस के प्रशंसक भी बन चुके थे. जल्दी से स्टेडियम के बाहर जा कर फूलों की दुकान से उन्होंने एक बुके लिया और विद्या को देने वे जब मेन गेट पर पहुंचे तो देखा वहां भारी भीड़ खड़ी थी.

लोग अपने प्रिय खिलाडि़यों से मिलना चाहते थे. 1-1 कर के खिलाड़ी निकल रहे थे, मगर उन में विद्या कहीं नहीं दिख रही थी. परेशान हो कर विजय ने आसपास खोजा तो देखा, दूर अपना बैग ले कर थकीहारी विद्या स्टेडियम के छोटे वाले गेट से लगभग दौड़ती हुई सी निकल रही थी.

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विजय को याद आया कल ही शाम विद्या ने उसे बताया था कि बेटी के स्कूल में पेरैंट्सटीचर मीटिंग है और आज 2 बजे उसे स्कूल जाना है. विजय का मन विद्या के लिए करुणा से भर आया. सच औरत के कितने रूप होते हैं और इन अलगअलग रूपों को जीते हुए वह अपनेआप को इस कदर व्यस्त रखती है कि वह स्वयं अपनेआप को भुला देती है. क्या उस को उस के हिस्से की खुशियां पाने का हक नहीं है? जरूर है और यह हक उस को मैं दूंगा. अब विद्या और वृंदा को मैं सहारा दूंगा. सोचतेसोचते उन की कार कब विद्या के पास पहुंची वे समझ ही न सके.

कार का दरवाजा खोल कर हाथ में गुलदस्ता ले कर वे विद्या के सामने पहुंच गए, ‘‘क्या मैं स्टेट लैवल चैंपियन विद्याजी को अपनी छोटी सी कार में लिफ्ट दे सकता हूं?’’ विद्या के हाथों में बुके देते हुए विजय मुसकराते हुए बोले.

सामने विजय को देख कर विद्या पहले तो चौंक गई, फिर उस के चेहरे पर एक शर्मीली मुसकराहट आ गई. विजय से बुके ले कर विद्या कार में बैठ गई. अब उस की थकान काफूर हो चुकी थी. कार सीधे वृंदा के स्कूल के बाहर रुकी.

विद्या सुखद आश्चर्य से भर उठी, ‘‘आप को कैसे मालूम है कि मुझे यहां आना था?’’

मुसकराते हुए विजय बोले, ‘‘अरे हम अंतर्यामी जो ठहरे. अब जाइए जल्दी से वरना मीटिंग के लिए देर हो जाएगी. मैं यहीं आप का इंतजार करता हूं. पर जरा जल्दी कीजिएगा क्योंकि मैं ने तय किया है कि आज मैं बैडमिंटन चैंपियन विद्याजी के साथ ही लंच करूंगा वरना भूखा रहूंगा.’’

विद्या हंस पड़ी, ‘‘बस 10 मिनट में आई,’’ बोल कर वह स्कूल के अंदर चली गई.

मीटिंग में 10 के बजाय 20 मिनट लग गए. मीटिंग के बाद और 3 पीरियड थे, इसलिए वृंदा को छुट्टी नहीं मिली. उसे कक्षा में छोड़ कर विद्या स्कूल के बाहर आई. देखा, कार में एक बढि़या सा किशोर कुमार का गाना बज रहा था और विजय साहब आंखें बंद कर गुनगुनाते हुए गाने का मजा ले रहे थे. विद्या कार का दरवाजा खोल कर सीट पर बैठ गई और कार का हौर्न बताया.

विजय चौंक कर उठ बैठे और पास में मुसकराती विद्या को देख कर उस की शरारत समझ गए. मंदमंद मुसकरा कर गाड़ी स्टार्ट की और सीधे होटल पहुंच कर ही गाड़ी रुकी. इतने बड़े फाइवस्टार होटल में विद्या पहली बार आई थी. अपने सादे कपड़ों की ओर जब उस का ध्यान गया तो वह संकोच से भर उठी. होटल के दरवाजे पर विद्या को सकुचाते हुए देख उस की मनोदशा को विजय समझ गए. उन्होंने विद्या का हाथ मजबूती से थामा और रेस्तरां की तरफ बढ़ गए.

भूख दोनों को ही जोर से लगी थी. खाने का और्डर दे कर वेटर को जल्दी खाना  लाने को बोल कर विजय विद्या को देख कर मुसकरा उठे. बिना कुछ बोले उसे कुछ देर देखते रहे.

उन्हें इस प्रकार देखते पा कर विद्या और भी असहज हो गई. खैर, तब तक खाना आ गया. विद्या ने राहत की सांस ली. दोनों ने शांति से बिना कुछ बोले खाना खाया.

आइसक्रीम का और्डर दे कर विजय ने विद्या से पूछा, ‘‘जानती हो मैं तुम्हें आज यहां ले कर क्यों आया हूं?’’

विद्या ने इनकार में सिर हिलाया तो विजय बोले, ‘‘तो सुनिए मैडम, आज शाम को मेरी मां हमारी शादी की तारीख पक्की करने वाली है और उस के पहले मैं तुम्हारी हां सुनना चाहता हूं,’’ विजय ने बड़े ही सीधेसादे शब्दों में बिना किसी भूमिका के कहा.

‘‘क्या?’’ विद्या भौकचक्की रह गई. एक पल को तो विजय की बात सुन कर विद्या को विश्वास ही नहीं हुआ. फिर बोली, ‘‘पर विजयजी ऐसा कैसे हो सकता है? आप जानते हैं न कि मैं एक बच्ची की मां हूं?’’

‘‘हां मैं जानता हूं और उस प्यारी सी बच्ची को मैं अपनाना चाहता हूं. उसे अपना नाम देना चाहता हूं. इस केअलावा मुझे इनकार करने का और कोई कारण है आप के पास?’’

विजय के इस सवाल का विद्या के पास कोई जवाब नहीं था और उन के प्रस्ताव को मना करने के लिए उस के पास कोई ठोस कारण भी नहीं था. पर सबकुछ इतना अचानक हो रहा था कि वह कुछ कह भी नहीं पा रही थी.

तभी कुछ आगे झक कर मुसकराते हुए विजय धीरे से फुसफुसाए, ‘‘तो मैं यह रिश्ता पक्का समझं?’’

विद्या ने शरमाते हुए हां में सिर हिला दिया. विजय ने अपना हाथ उस के हाथ पर रख दिया.

इस के बाद तो जैसे चट मंगनी और पट ब्याह. बड़ी ही सादगी से दोनों के परिवारजनों के सामने विवाह समारोह संपन्न हो गया और विद्या विजय की पत्नी बन कर उन के घर आ गई. सब से ज्यादा आश्चर्य तो विद्या को वृंदा के व्यवहार से हुआ. वृंदा ने बड़ी ही समझदारी का परिचय देते हुए विजय को पिता के रूप में स्वीकार कर लिया और विजय तो उस की हर इच्छा पूरी करने के लिए जैसे हर पल तैयार रहते थे. दोनों को देख कर कोई कह नहीं सकता था कि इन का रिश्ता कुछ ही दिनों पहले का है. विद्या को तो जैसे भरोसा ही नहीं हो रहा था.

सच है सितारों से आगे जहां और भी है. विजय के कहने पर उस ने 6 माह की लंबी छुट्टी ली थी. अब वह इस सुनहरे समय को अपने हाथों से नहीं निकलने देना चाहती थी. इस के हर पल, हर घड़ी को वह यादगार बना देना चाहती थी. खैर, हंसतेखेलते 5 माह निकल गए. विजय औफिस जातेजाते वृंदा को स्कूल छोड़ कर चले गए थे. सुबह के कामों को निबटा कर बालकनी में बैठ कर दैनिक अखबार पढ़ते हुए विद्या कौफी की चुसकियां ले रही थी. यह उस की रोज की दिनचर्या थी.

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ट्रिंगट्रिंग फोन की आवाज सुन कर विद्या उठी. विजय फोन पर थे. बोले कि विद्या मैं अपनी एक जरूरी फाइल घर पर भूल गया हूं. देखो अलमारी के पास की टेबल की दराज में हरे रंग की जो फाइल है, उसे निकाल कर रखो. मैं अपने एक आदमी को भेज रहा हूं, उसे दे देना. 12 बजे एक मीटिंग है. शाम को मिलते हैं. बाद में फोन करता हूं और विजय ने फोन रख दिया. विद्या ने फाइल निकाल कर सामने टेबल रख दी और अखबार में डूब गई.

कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी बज उठी. विद्या ने उठ कर दरवाजा खोला. सामने विजय के दफ्तर से आया आदमी खड़ा था. उस ने विद्या को नमस्कार किया. विद्या ने उस के अभिवादन का जवाब देते हुए फाइल दे दी.

फाइल ले कर जातेजाते वह आदमी रुका, ‘‘मैडम आप ने मुझे पहचाना नहीं क्या?’’

‘‘नहीं,’’ कहते हुए विद्या ने उस अधेड़ से आदमी को पहचानाने की कोशिश की. अचानक उसे झटका लगा. उफ, इस आदमी की शक्ल को वह कैसे भूल सकती है? सामने अमित खड़ा था. खिचड़ी बाल, सफेद दाढ़ी, मोटा चश्मा, साधारण सी शर्ट पहने हुए यह आदमी पहले के स्मार्ट, हैंडसम, आत्मविश्वासी अमित से कितना अलग है. विद्या जैसे कहीं खो सी गई.

अमित ने आगे कहा, ‘‘विद्या मैं तो तुम्हें विजय सर की शादी के रिसैप्शन में ही पहचान गया था. पर तुम से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. मैं ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया, शायद इसलिए कुदरत ने मुझे मेरे कर्मों की सजा दी. तुम्हारे जाने के बाद परिवार में और औफिस में मेरे और शबनम के रिश्ते के बारे में सभी लोग जान गए थे. मैं चाहता था जल्दी से तुम से तलाक ले कर अपने और शबनम के रिश्ते को नाम दे दूं, पर तब तक हमारी काफी बदनामी हो चुकी थी. शबनम भी मेरे मांपिता की उस के प्रति नफरत को समझ चुकी थी. वह जानती थी कि मेरी मां उसे कभी माफ नहीं करेंगी.

‘‘इन सब से बचना ही उस ने बेहतर समझ और एक दिन किसी को बताए बिना दिल्ली हैड औफिस अपना ट्रांसफर करवा लिया और अपने पिता के साथ दिल्ली चली गई. तुम्हें कंप्रोमाइज में पैसा देना था तो जमापूंजी भी खर्च हो गई थी. शबनम उस से भी नाराज थी. मांबाबूजी ने मुझ से बात तक करना बंद कर दिया और अपनी पोती से मिलने की आस लिए दोनों एक के बाद एक इस दुनिया से चले गए.

तब से मैं अकेला ही रहता हूं. दिमागी हालत खराब हो जाने के कारण कंपनी में इंजीनियरिंग का काम ठीक से नहीं कर पाया, इस कारण मुझे औफिस से निकाल दिया गया. अब मैं विजय सर की कंपनी में क्लर्क हूं. मुझे माफ कर दो विद्या, शायद यही मेरे किए की सजा है. मैं अपने ही कर्मों का फल भुगत रहा हूं,’’ अमित लगातार बोलते जा रहा था.

विद्या जैसे सपने से जागी, सामने सिर झकाए खड़े विजय को उपेक्षा से देखते हुए पूरे आत्मविश्वास से कहा, ‘‘आप गड़े मुरदे उखाड़ना बंद कीजिए. अब मैं पुरानी विद्या नहीं, आपकी कंपनी के मैनेजर विजय कुमार की पत्नी हूं और याद रखिए यह आप से मेरी आखिरी मुलाकात है. मैं नहीं चाहती भूल कर भी आप की जबां पर अब कभी भी मेरा नाम आए और उस के बाद आप मेरे घर आने की जुर्रत भी न करें. यही आप के लिए और आप की नौकरी के लिए अच्छा रहेगा,’’ और विद्या ने उस के सामने ही दरवाजा जोर से बंद कर दिया.

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नहीं, अब बहुत हो गया. अब वह कमजोर नहीं पड़ेगी. विजय की दी हुई इस दूसरी जिंदगी के बीच अपने अतीत की काली परछाईं को कभी नहीं आने देगी.

विद्या का चेहरा दृढ़ निश्चय से चमक रहा था और क्यों न हो ऐसा? अब उस के सारे दुख और तकलीफें छंट चुकी थीं और सुनहरी धूप उस के स्वागत में बांहें पसारे तैयार खड़ी थी.

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