‘अनुपमा’ से Cold War की खबरों पर Sudhanshu Pandey ने कही ये बात

 सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की कहानी में जहां धमाकेदार ट्विस्ट फैंस को एंटरटेन कर रहे हैं. तो वहीं बीते दिनों अनुपमा के सेट पर कोल्ड वौर की खबरों ने फैंस को बैचेन कर दिया है. हालांकि शो के कलाकारों ने इसे अफवाह बताया है. लेकिन हाल ही में वनराज के रोल में नजर आ रहे एक्टर सुधांशू पांडे ने इस मामले में अपनी बात सामने रखी है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर….

कोल्ड की खबरों से शो आया सुर्खियों में

पिछले दिनों खबरें थी कि शो के लीड कलाकार रूपाली गांगुली और सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) के बीच जमकर कोल्ड वॉर चल रही है, जिसके चलते शो की स्टारकास्ट दो गुटों में बंट चुकी है. दरअसल, मामले ने तब तूल पकड़ा जब सुधांशु पांडे ने एक पोस्ट में बाकी सभी लोगों को टैग करके रूपाली को नजरअंदाज किया. हालांकि रूपाली गांगुली (Rupali Ganguly) ने भी एक पोस्ट शेयर करके लिखा था कि जिसे जो सोचना है सोचे…हर बात की सफाई नहीं दी जा सकती है. वहीं अब सुधांशू पांडे में इस मामले में बाते साफ की हैं.

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बताई पूरी वजह

 

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हाल ही में इस मामले में एक इंटरव्यू देते हुए सुधांशु पांडे ने कहा है, ‘ये काफी छोटी बातें हैं…और किसी को टैग ना करके किसी को अपने करियर में क्या फायदा होगा? ये बात लाजमी है कि फोटो से जुड़े लोगों को टैग किया जाता है और कई बार तो मैं सोशल मीडिया से दूसरे की ही पोस्ट उठाता हूं और कॉपी पेस्ट कर देता हूं. जब ये शो शुरु हुआ था तो मैंने और रूपाली ने साथ में कई वीडियो शेयर किए थे क्योंकि शो में हम शादीशुदा थे. लेकिन अब शो में मैंने काव्या से शादी कर ली है तो ये भी लाजमी है कि अब हम साथ में ही वीडियो डालेंगे.’

सेट पर होती है बहस

इंटरव्यू के दौरान सुधांशु ने ये बात कबूली है कि अनुपमा (Anupamaa) के सेट पर कई बार उनकी और रूपाली गांगुली के बीच बहस हुई है. हालांकि इस पर उनका कहना है कि, ‘दो कलाकारों के बीच ये कॉमन बात है. ये नॉर्मल है कि दो लोग एक बात पर ना सहमत हो. नाराज होते हैं हम लेकिन बात जल्द ही खत्म भी हो जाती है. ऐसा तो घर में भी होता है ना.’

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सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो काव्या और अनुपमा के बीच तकरार की सिलसिला जारी है, जिसके चलते काव्या पूरी कोशिश कर रही है कि अनुपमा को वनराज की जिंदगी और शाह हाउस से कैसे बाहर किया जा सके.

जानें कैसा हो आपका मैटरनिटी वार्डरोब

आप गर्भकाल के दौरान अपनी मनपसंद पोशाक पहन सकें. इस से बढि़या क्या हो सकता है. जब समय ने करवट ली है, तो हमारे यहां भी बहुत से फैशन डिजाइनर केवल मां और शिशु के लिए विशेष तौर पर ड्रैसेज बनाते हैं.

स्टाइल, फैशन, ट्रैंड चलन के लिए विश्वविख्यात चंडीगढ़ भी मैटरनिटी वार्डरोब के लिए काफी प्रसिद्ध है. ‘‘मदरहुड ब्रांड की अच्छीखासी वैरायटी यहां मिलती है. यहां महिलाएं चाहे वे संभ्रांत परिवार से हों या मध्यवर्गीयकामकाजी या नवविवाहित युवतियां, वे ब्रांड के नाम पर खरीदारी करना खूब समझती हैं. फैशन और स्टाइल में जीना उन की पहली पसंद है. पैसे का मूल्य वे जानती हैं और पैसे की कीमत वसूल करना भी,’’ ऐसा कहा मन्नत मान ने, जो अपने मातृत्व काल में सैक्टर-9 के मम्स मौल तथा सैक्टर-8 के मौम ऐंड मी से शौर्ट स्लीव प्लीटेड ड्रैस, पेट का उभार छिपाने के लिए फौक्स रैप ड्रैस तथा रफल्ड मैटरनिटी ड्रैस लाना नहीं भूली थीं. वहां पोशाकों की विविधता तो देखते ही बनती थी. साथ में, योगा सीडीज, किताबें तथा और भी बहुत कुछ उपलब्ध हो जाता था.

 

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आरामदेह व स्टाइलिश भी

पिछले 18-19 बरसों से इसी शहर में फैशन बुटीक चला रहीं डौली गर्ग का मानना है, कि आजकल की युवा पीढ़ी यदि वैडिंग ड्रैस, वैडिंग गाउन में लाखों रुपए खर्च करना जानती है, तो प्रैग्नैंसी के समय आरामदेह, स्टाइलिश कपड़ों पर खर्च करने में भी संकोच नहीं करती. उन्होंने बताया, ‘‘समय के साथ सोच बदली है. पुरुष भी साथ आते हैं. मेरे पास जो भी महिला आती है, सब से पहले कहती है, ‘मैडम, ऐसी ड्रैस सिल दो, जिस में सांस भी आए, पेट न दिखे और मैं आकर्षक लगूं.’ इस में किसी को लूज कुरता चाहिए, किसी को एथनिक वियर तो किसी को घेरेदार ड्रैस जो टौप फिटेड हो यानी जो चिपकी न हो, हवादार भी रहे, भले ही अम्ब्रेला कट हो. कुछ ग्राहक ऐसी भी हैं, जो सिर्फ गाउन चाहती हैं. वे काफ्तान मांगती हैं. बाकी रहे युवा पीढ़ी के लोग, जो सिलनेसिलाने के झंझट में नहीं पड़ते, वे मौम ऐंड मी जैसे नामीगिरामी स्टोर्स से अपना मैटरनिटी वार्डरोब तैयार कर लेते हैं.’’

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अच्छी फिटिंग वाले कपड़े

कोटक महेंद्रा ग्रुप की ओर से चंडीगढ़ के सैक्टर-8 में चलाए जा रहे मौम ऐंड मी शोरूम में सारे डिजाइंस मदरहुड चेन से लिए जाते हैं. शोरूम के एक कार्यकर्ता ने बताया, ‘‘हमारे अपने डिजाइन एथनिक और कृति नाम से मशहूर हैं. एथनिक की कुरती का काफी चलन है. यहां इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मां को गर्भ के दौरान आरामदेह, ढीलेढाले लेकिन अच्छी फिटिंग वाले कपड़े मिलें. वेस्ट बैंड वाली जींस युवतियों की पहली पसंद है. हमारे यहां मैक्सी विद प्लीट्स, स्कर्ट, काफ्तान, पोंचू, टौप्स और वेस्ट बैंड वाली सलवारकमीज ही ग्राहकों की पहली पसंद रहे हैं. वैस्टर्न और इंडियन दोनों तरह की पसंद रखने वाली ग्राहकों को हम मैटरनिटी वार्डरोब की लिस्ट देते हैं महिलाए जींस, ड्रैस, स्कर्ट, टौप, स्लैक केपरी, स्विमसूट, स्वैटर या गाउन क्याक्या लेना पसंद करें. इस की उन्हे चौइस रहती है हम उन्हें यह भी सलाह देते हैं, एक साइज लूज लें, ताकि आने वाले समय में यह पूरा आ सके.’’

पसंद के अनुकूल डिजाइन

निकेत ऐंड जैनी की फैशन डिजाइनर जोड़ी के निकेत मिश्रा से जब बात हुई तो उन्होंने बताया, ‘‘हम कई नामीगिरामी हस्तियों के लिए ड्रैसेज डिजाइन कर चुके हैं. रही बात मैटरनिटी वार्डरोब की तो उस के लिए, ग्राहक की पसंद के अनुकूल हम डिजाइन तैयार कर देते हैं. मलमल, वायल, सूती कपड़ा या फिर नए टैक्स्चर से नए प्रयोग करना हमें अच्छा लगता है. बस शर्त है कि ड्रैस कूल और सैक्सी लगे.’’ यदि हम कहें कि अमेरिका की ओप्रा विन फ्रे के टौक शोज ने इसे मैटरनिटी इंडस्ट्री बना दिया है, तो इस कथन में कोई अतिशयोक्ति न होगी.

पंजाब में पटियाला शहर के ‘नजाकत’ बैं्रड के डिजाइनर जैसमीन का कहना है, ‘‘मैं ओपरा विन फ्रे की बात को मानती हूं. गर्भावस्था में इनरवेयर यानी लांजरी की बहुत अहमिय होती है. ये बौडी को शेप देते हैं. वहीं, कट, ड्रेप और फौल ये 3 वे मुख्य चीजें हैं, जो परिधान को अमली रूप देती हैं. यदि कट सही हो, कपड़े का फौल अच्छा आता हो तो यकीनन शरीर के उभार को जहां दिखाया जा सकता है वहीं छिपाया भी जा सकता है. यहां प्लीट्स भी महत्त्वपूर्ण हैं. पटियाला सलवार बहुत भारी लगती है, इस की प्लीट्स इस की जान होती हैं, लेकिन गर्भकाल के दौरान यह सलवार नीचे न सरकती जाए, इसलिए इस पर विशेष बैंड सपोर्ट दिया जाता है.’’

 

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प्रैग्नैंसी के दौरान, सलवारसूट की तरह पैंट्स पहनने में भी दिक्कत होती है. इसलिए बैला बैंड ब्रैंड  के परिधानों में विविधता के साथ आराम का प्रावधान है. पैंट विद ऐडजस्टेबल वेस्ट, जींस विद इलास्टिक वेस्ट अच्छी रहती हैं. ओवर बंप हों ये तो ऐडजस्ट हो जाती हैं और लो राइज हों तो गिरती नहीं. इलास्टिक इसे पेट के उभार के अनुसार फिटिंग प्रदान करने का काम करता है. टौप और शर्ट भी स्ट्रैची मैटीरियल की मिलती हैं. यहां तक कि यदि जुड़वां या 3 बच्चे हैं तो भी ऐसे स्ट्रैची टौप्स और स्कर्ट्स को पसंद के अनुरूप पहना जा सकता है. ये कपड़े आप औनलाइन भी खरीद सकती हैं.

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मैटरनिटी वार्डरोब के लिए डै्रैसेज खरीदते समय ध्यान रखें:

ड्रैस ढीली हो.

लंबी अधिक न हो, गिरने का खतरा रहता है.

एड़ी से ऊंची हो.

जहां तक हो सके कौटन ड्रैस लें.

जूते आरामदेह हों, पैर में फिट हों, फिसलने वाले न हों.

बहुत स्टाइलिश ड्रैस के पीछे न भागें. पारंपरिक परिधान फ्राक, बंगाली कुरता आरामदायक रहता है.

एंपायर स्टाइल शर्ट्स/ड्रैस. ये ऊपर से फिट और बस्ट से नीचे एकदम खुली लहराती रहती हैं.

स्कर्ट, पैंट, वेस्ट बैंड या इलास्टिक बैंड वाला बड़ा साइज लें.

बहन, भाभी, सहेली द्वारा इस्तेमाल की गई ड्रैस रखने में भी कोई हरज नहीं.

यदि खुद सिल सकती हैं तो अवश्य सिलें या मनपसंद कपड़ा ले कर सिलवाएं.

पहनने से पूर्व धो लें.

कुछ कपड़े ऐसे रखें, जिन्हें जरूरत के अनुसार सिलवा सकें. जैसे, यदि जुड़वा हों या उभार ज्यादा हो तो उन के अनुकूल.

ये सब बातें ध्यान में रखें तो आप की पोशाक आरामदेह, स्टाइलिश, सस्ती और शरीर के उभारों को सामान्य आकार देती हुई आप की पोशाक यकीनन अच्छी लगेगी.

म्युकर माइकोसिस देश में अधिक होने की खास वजह क्या है? जाने यहां

म्युकरमायकोसिस यानी ब्लैक फंगस के बारें बहुत कम लोगों ने पता है, यही वजह है कि अधिकतर लोग इसके शिकार हुए है. दरअसल ये फंगस, मिट्टी, फफूंदी आदि के नजदीक रहने वाले को होती है और ऐसे रोगी बहुत कम होते है, लेकिन कोविड 19 की वजह से इसकी संख्या में अचानक बढ़ जाना,एक मर्डर मिस्ट्री से कम नहीं. डॉक्टर से लेकर पीड़ित परिजन के लिए इस बीमारी को समझना मुश्किल हो चुका है, ब्लैक, व्हाइट , ग्रीन आदि न जाने कितने रंगों में ये फंगस कोविड रोगी को कोविड के साथ और कोविड से ठीक होने के बाद भी हो रहा है.

इस अंजान बीमारी को लेकर लोगों में भय और दहशत का माहौल है, क्योंकि ये बीमारी जल्दी फैलती है. इसलिए इसका इलाज जल्दी करवाना पड़ता है, ऐसे में इस खर्चीले इलाज के पैसे की जुगाड़ करते-करतेकई परिवारों के मरीजों कीबीमारी बढ़ गयी औरकिसी की एक आँख निकालनी पड़ी, तो किसी का जबड़ा निकलना पड़ा, जबकि कुछ ने अपने प्रियजनों को खोया भी है. कोविड 19 की डेल्टा वेरिएंट में म्युकरमायकोसिस की बीमारी भारत में अधिक होने की वजह क्या है? इस बारेंमें मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के कान, नाक, गला (ENT) विभाग के प्रमुख डॉ. संजीव बधवार कहते है कि इस बीमारी को ब्लैक फंगस नहीं, ये म्युकरमायकोसिस है, ब्लैक फंगस इतना घातक नहीं होता. इस फंगस के होने की वजह निम्न है,

  • कोविड की वजह से कोशिकाओं में खून की सप्लाई में असर करती है. ये टिश्यु कोविड की वजह से डेड हो जाते है. इससे फंगस के लिए उचित वातावरण होता है और वह अंदर जाकर पनपता और मरीज को एटैक करता है.
  • कोविड से कुछ बीटा सेल्स आक्रांत होने पर, शरीर में शुगर का कंट्रोल नहीं हो पाता और कोविड युक्त बीटा सेल्स सीधे पेनक्रियाज पर एटैक करती है, ऐसे में बिना डायबिटीज वाले को भी डायबिटीज हो सकता है और अगर मरीज पहले से मधुमेह का शिकार है तो उसकी मात्रा अधिक बढ़ सकती है.
  • कोविड में भारी मात्रा में स्टेरॉयडदिया जाता है.स्टेरॉयडएक ऐसी दवा है, जो जान बचाती औरशरीर को हानि भी पहुंचाती है. स्टेरॉयडसही मात्रा में, सही समय पर और जरूरतमंद रोगी को हीदेना चाहिए.

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हमारे देश में स्टेरॉयड का प्रयोग जरुरत से अधिक हुआ है. इसके अलावा जिन्हें स्टेरॉयडकी जरुरत नहीं है, उन्हें भी दिया गया है. जबकि कमरे के रियल तापमान में मरीज की ऑक्सीजन लेवल ठीक होने पर स्टेरॉयडनहीं दिया जाता. किसी ने इस बारें में जानकारी नहीं ली औरहमारे देश में अधिक मात्रा में अधिक समय तक स्टेरॉयडदिया गया है. जिसका नतीजा म्युकरमायकोसिस की रोगी का बढ़ना है.

सही मात्रा में करें स्टेरॉयड का प्रयोग

भारत में डायबिटीज के मरीज विश्व की तुलना अधिक है. किसी भी प्रकार के फंगल इन्फेक्शन से मधुमेह के रोगी जल्दी पीड़ित होते है. ऐसे मरीज की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है. इसलिए ज्यादातर मधुमेह रोगी में कोविड के साथ म्युकरमायकोसिस देखा गया.डॉक्टर संजीव का आगे कहना है कि कोविड की पहली लहर में म्युकरमायकोसिस के कुछ मरीज आये है, पर कोविड की दूसरी लहर में अधिक आये है. इसके अलावा डेल्टा वरिएंट की कुछ खास चीजों की वजह से ये अधिक दिख रहा है. विदेश में भी फंगस की बीमारी होती है, लेकिन ऐसे मरीजों की संख्या हमारे देश में अधिक है, क्योंकि विदेशों में इस बीमारी में स्टेरॉयडकी मात्रा सही पेशेंट को सही समय पर दी गयी है औरविदेश में मेडिकल सेटअप कोविड की मरीजों के लिए अलग है. वे अधिकतर विशेषज्ञ होते है. हमारे यहाँ नॉन- क्वालिफाइड लोग और जनरल प्रैक्टिशनर भी मरीज का इलाज कर रहे है, ऐसे में सही मात्रा,और सही दिनों तक स्टेरॉयडदेने की गलती कर रहे है. ऑक्सीजन के गलत प्रयोग या उसे जोड़ने वाले बोतल मेंसुरक्षित पानी न होने की वजह से, ये बीमारी नहीं होती और ये कहना गलत होगा,क्योंकि रिसर्च में भी अबतक कोई ठोस बात सामने नहीं आई है.

जाने कोविड को

डॉक्टर संजीव कहते है कि कोविड को एंग्लो इनवेसिव फंगस कहा जाता है, येवो फंगस है, जो ब्लड वेसल्सको क्लोटिंग और थम्बोसिस करती है,जिससे उनटिश्यु में खून की सप्लाई न होने से वे टिश्यु डेड और नेक्रोसिस हो जाती है. ये बीमारी अधिकतर आँख, नाक, साइनस से होकर मस्तिष्क में जाता है, जिसे राइनो ऑर्बिटल सेरिब्रेल म्युकरमाइकोसिस कहते है. ज्यादातर ये बीमारी शरीर के सेंट्रल नर्वस सिस्टम में होता है और कभी-कभी लंग्स, किडनी और पूरे शरीर में भी दिखाई पड़ता है.

असल में नेजोलेक्राईमल डक्ट के द्वारा आँख से पानी नाक में जाती है, जहाँ टीयर्स बनती है, वहां ये टीयर्स को एटैक करती है और वही से इसकी एंट्री होती है,फिर नाक और कान के पार्टीशन में जाकर फैलने लगता है. उस समय टिश्युज में आयरन होने की वजह से ये जल्दी फैलता है.

दे ध्यान लक्षणों को

डॉक्टर संजीव कहते है कि इस बीमारी में प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर को याद रखना पड़ता है. म्युकरमायकोसिस अचानक नहीं फैलता, इसकी चेतावनी को पहले से समझने की जरुरत है. अगर किसी की आँख में दर्द , दृष्टि कम होना, नाक बंद होना, सिरदर्द, कान में दर्द, दांत का ढीला महसूस हो, तो तुरंत कान, नाक, गला (ENT) डॉक्टर की सलाह ले.

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सही जांच का होना जरुरी

ये सही है कि भारत में बहुत कम शहरों में सही जांच के प्रावधान है, बड़े शहरों को छोड़कर किसी भी कस्बे, छोटे शहर में म्युकरमायकोसिस की जांच न हो पाने की वजह से रोगी को शहर लाना पड़ता है, जिससे देर होने पर रोग अधिक फ़ैल जाती है और रोगी की मृत्यु हो जाती है.

डॉक्टर का कहना है कि सही और जल्दी रिपोर्ट मिलने पर ही इलाज़ जल्दी शुरू किया जाता है. जिसमें एंडोस्कोपी कर डिस्चार्ज या काले टिश्यु को देखने के बाद स्वाब लेकर परीक्षण करना, स्कैन करना आदि कई प्रक्रियां से गुजर कर देखना पडता है कि ये सायनस या म्युकरमायकोसिस है. इसके अलावा पीसीआर टेस्ट भी किया जाता है. रोगी को कोविड होने के बाद एक डायग्नोस्टिक चेकअप करवा लेना चाहिए, ताकि सायनसको साफ़ कर टिश्यु की जांचकी जाय.इसके अलावा कोविड से ठीक हुए रोगी को फोलोअप 15 दिन में एक बार करने के अलावा म्युकरमायकोसिस के लक्षण पर ध्यान देना चाहिए, ताकि समय रहते रोगी का इलाज कम खर्च में हो सकें.

देर होने से बढती है मृत्युदर

असल में म्युकरमायकोसिस की मृत्यु दर 40 प्रतिशत है. इसमें एक दिन की देरी से 40 से 66 मृत्यु दर हो जाती है, इसलिए ऐसे रोगी को एमेर्जेंची बीमारी कहते है और जल्दी रोग को पकड़ने पर इलाज संभव होता है, क्योंकि कई बार ये शरीर के उन भागों पर भी फ़ैल जाता है, जहाँ ऑपरेशन करना संभव नहीं होता. इसलिए सही जानकारी से ही इस रोग को कम किया जा सकता है. पहले इस बीमारी के मरीज काफी कम था, लेकिन इस बार अधिक बढ़ने की वजह से टीम बनायीं गयी है, जो केवल म्युकरमायकोसिस की इलाज़ करती है, क्योंकि रोग के हिसाब से इलाज करना पड़ता है, बार-बार ऑपरेट करना ठीक नहीं. पिछले 2 से 3 महीने में 40 से अधिक मरीजों का इलाज किया गया है, जिसमें करीब 8 लोगों की आँख भी ऑपरेट करने पड़े.

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सही है सरकारी अस्पताल मुंबई की

इसके आगे डॉक्टर कहते है कि गरीब व्यक्ति मुंबई की सरकारी अस्पतालों में जा सकते है, वहां भी अच्छे ट्रेंड डॉक्टर और सर्जन के अलावा दवाइयां उपलब्ध है, जो ऐसे मरीजों का अच्छा इलाज कर रहे है. बाकी अस्पतालों में दवाई की कमी होने की वजह से सरकारी अस्पताल में 3 से 4 घंटे लाइन में खड़े होने परएक दिन की दवामिलती है, जिससे मरीज को ऑपरेशन के बाद दवा देने में देर हो जाती है. इसलिए ब्यूरोक्रेट्स को इस बात का ध्यान देना आवश्यक है, ताकि मेडिकल फील्ड में काम करने वालों को इलाज के लिए दवा आसानी से मिले और समय की बर्बादी न हो.

जरुरत है जागरूकता बढ़ाना

म्युकरमायकोसिस के बारें में अभी डॉक्टर्स लोगों को जानकारी देने की लगातार कोशिश कर रहे है, क्योंकिम्युकरमायकोसिसआम वातावरण में घर के बाहर और अंदर रहता है. इसमें खासकर फार्म्स, खेत, खलिहानों में जहाँ नमी, टनल्स की खुदाई, मिट्टी या खाद जैसे पदार्थ वाले जगहों परम्युकरमायकोसिस हमेशा रहती है. काम करते हुए कई बार चोट लगने या गंदे लकड़ी के टुकड़ों के लगने से ये बीमारी होती है, लेकिन आम लोगों को इससे कुछ परेशानी नहीं होती. अंत में डॉक्टर संजीव का कहना है कि हमारे देश को मेडिकल पर अधिक खर्च करने जरुरी है, जिससे फिर से कोविड महामारी जैसा भयावह चेहरा किसी को न देखनी पड़े.ये एक अलार्म है और सरकार से लेकर सभी को इसपर विचार करना आवश्यक है.

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शरशय्या- भाग 1 : त्याग और धोखे के बीच फंसी एक अनाम रिश्ते की कहानी

लेखक- ज्योत्स्ना प्रवाह

स्त्रियां अधिक यथार्थवादी होती हैं. जमीन व आसमान के संबंध में सब के विचार भिन्नभिन्न होते हैं परंतु इस संदर्भ में पुरुषों के और स्त्रियों के विचार में बड़ा अंतर होता है. जब कुछ नहीं सूझता तो किसी सशक्त और धैर्य देने वाले विचार को पाने के लिए पुरुष नीले आकाश की ओर देखता है, परंतु ऐसे समय में स्त्रियां सिर झुका कर धरती की ओर देखती हैं, विचारों में यह मूल अंतर है. पुरुष सदैव अव्यक्त की ओर, स्त्री सदैव व्यक्त की ओर आकर्षित होती है. पुरुष का आदर्श है आकाश, स्त्री का धरती. शायद इला को भी यथार्थ का बोध हो गया था. जीवन में जब जीवन को देखने या जीवन को समझने के लिए कुछ भी न बचा हो और जीवन की सांसें चल रही हों, ऐसे व्यक्ति की वेदना कितनी असह्य होगी, महज यह अनुमान लगाया जा सकता है. शायद इसीलिए उस ने आग और इलाज कराने से साफ मना कर दिया था. कैंसर की आखिरी स्टेज थी.

‘‘नहीं, अब और नहीं, मुझे यहीं घर पर तुम सब के बीच चैन से मरने दो. इतनी तकलीफें झेल कर अब मैं इस शरीर की और छीछालेदर नहीं कराना चाहती,’’ इला ने अपना निर्णय सुना दिया. जिद्दी तो वह थी ही, मेरी तो वैसे भी उस के सामने कभी नहीं चली. अब तो शिबू की भी उस ने नहीं सुनी. ‘‘नहीं बेटा, अब मुझे इसी घर में अपने बिस्तर पर ही पड़ा रहने दो. जीवन जैसेतैसे कट गया, अब आराम से मरने दो बेटा. सब सुख देख लिया, नातीपोता, तुम सब का पारिवारिक सुख…बस, अब तो यही इच्छा है कि सब भरापूरा देखतेदेखते आंखें मूंद लूं,’’ इला ने शिबू का गाल सहलाते हुए कहा और मुसकरा दी. कहीं कोई शिकायत, कोई क्षोभ नहीं. पूर्णत्वबोध भरे आनंदित क्षण को नापा नहीं जा सकता. वह परमाणु सा हो कर भी अनंत विस्तारवान है. पूरी तरह संतुष्टि और पारदर्शिता झलक रही थी उस के कथन में. मौत सिरहाने खड़ी हो तो इंसान बहुत उदार दिलवाला हो जाता है क्या? क्या चलाचली की बेला में वह सब को माफ करता जाता है? पता नहीं. शिखा भी पिछले एक हफ्ते से मां को मनाने की बहुत कोशिश करती रही, फिर हार कर वापस पति व बच्चों के पास कानपुर लौट गई. शिबू की छुट्टियां खत्म हो रही थीं. आंखों में आंसू लिए वह भी मां का माथा चूम कर वापस जाने लगा.

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‘‘बस बेटा, पापा का फोन जाए तो फौरन आ जाना. मैं तुम्हारे और पापा के कंधों पर ही श्मशान जाना चाहती हूं.’’ एअरपोर्ट के रास्ते में शिबू बेहद खामोश रहा. उस की आंखें बारबार भर आती थीं. वह मां का दुलारा था. शिखा से 5 साल छोटा. मां की जरूरत से ज्यादा देखभाल और लाड़प्यार ने उसे बेहद नाजुक और भावनात्मक रूप से कमजोर बना दिया था. शिखा जितनी मुखर और आत्मविश्वासी थी वह उतना ही दब्बू और मासूम था. जब भी इला से कोई बात मनवानी होती थी, तो मैं शिबू को ही हथियार बनाता. वह कहीं न कहीं इस बात से भी आहत था कि मां ने उस की भी बात नहीं मानी या शायद मां के दूर होने का गम उसे ज्यादा साल रहा था.

आजकल के बच्चे काफी संवेदनशील हो चुके हैं, इस सामान्य सोच से मैं भी इत्तफाक रखता था. हमारी पीढ़ी ज्यादा भावुक थी लेकिन अपने बच्चों को देख कर लगता है कि शायद मैं गलत हूं. ऐसा नहीं कि उम्र के साथ परिपक्व हो कर भी मैं पक्का घाघ हो गया हूं. जब अम्मा खत्म हुई थीं तो शायद मैं भी शिबू की ही उम्र का रहा होऊंगा. मैं तो उन की मृत्यु के 2 दिन बाद ही घर पहुंच पाया था. घर में बाबूजी व बड़े भैया ने सब संभाल लिया था. दोनों बहनें भी पहुंच गई थीं. सिर्फ मैं ही अम्मा को कंधा न दे सका. पर इतने संवेदनशील मुद्दे को भी मैं ने बहुत सहज और सामान्य रूप से लिया. बस, रात में ट्रेन की बर्थ पर लेटे हुए अम्मा के साथ बिताए तमाम पल छनछन कर दिमाग में घुमड़ते रहे. आंखें छलछला जाती थीं, इस से ज्यादा कुछ नहीं. फिर भी आज बच्चों की अपनी मां के प्रति इतनी तड़प और दर्द देख कर मैं अपनी प्रतिक्रियाओं को अपने तरीके से सही ठहरा कर लेता हूं. असल में अम्मा के 4 बच्चों में से मेरे हिस्से में उन के प्यार व परवरिश का चौथा हिस्सा ही तो आया होगा. इसी अनुपात में मेरा भी उन के प्रति प्यार व परवा का अनुपात एकचौथाई रहा होगा, और क्या. लगभग एक हफ्ते से मैं शिबू को बराबर देख रहा था. वह पूरे समय इला के आसपास ही बना रहता था. यही तो इला जीवनभर चाहती रही थी. शिबू की पत्नी सीमा जब सालभर के बच्चे से परेशान हो कर उस की गोद में उसे डालना चाहती तो वह खीझ उठता, ‘प्लीज सीमा, इसे अभी संभालो, मां को दवा देनी है, उन की कीमो की रिपोर्ट पर डाक्टर से बात करनी है.’

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वाकई इला है बहुत अच्छी. वह अकसर फूलती भी रहती, ‘मैं तो राजरानी हूं. राजयोग ले कर जन्मी हूं.’ मैं उस के बचकानेपन पर हंसता. अगर मैं उस की दबंगई और दादागीरी इतनी शराफत और शालीनता से बरदाश्त न करता तो उस का राजयोग जाता पानी भरने. जैसे वही एक प्रज्ञावती है, बाकी सारी दुनिया तो घास खाती है. ठीक है कि घरपरिवार और बच्चों की जिम्मेदारी उस ने बहुत ईमानदारी और मेहनत से निभाई है, ससुराल में भी सब से अच्छा व्यवहार रखा लेकिन इन सब के पीछे यदि मेरा मौरल सपोर्ट न होता तो क्या कुछ खाक कर पाती वह? मौरल सपोर्ट शायद उपयुक्त शब्द नहीं है. फिर भी अगर मैं हमेशा उस की तानाशाही के आगे समर्पण न करता रहता और दूसरे पतियों की तरह उस पर हुक्म गांठता, उसे सताता तो निकल गई होती उस की सारी हेकड़ी. लगभग 45 वर्ष के वैवाहिक जीवन में ऐसे कई मौके आए जब वह महीनों बिसूरती रही, ‘मेरा तो भविष्य बरबाद हो गया जो तुम्हारे पल्ले बांध दी गई, कभी विचार नहीं मिले, कोई सुख नहीं मिला, बच्चों की खातिर घर में पड़ी हूं वरना कब का जहर खा लेती.’ बीच में तो वह 3-4 बार महीनों के लिए गहरे अवसाद में जा चुकी है. हालांकि इधर जब से उस ने कीमोथैरेपी न कराने का निश्चय कर लिया था, और आराम से घर पर रह कर मृत्यु का स्वागत करना तय किया था, तब से वह मुझे बेहद फिट दिखाई दे रही थी. उस की  की धाकड़ काया जरूर सिकुड़ के बच्चों जैसी हो गई थी लेकिन उस के दिमाग और जबान में उतनी ही तेजी थी. उस की याददाश्त तो वैसे भी गजब की थी, इस समय वह कुछ ज्यादा ही अतीतजीवी हो गई थी. उम्र और समय की भारीभरकम शिलाओं को ढकेलती अपनी यादों के तहखाने में से वह न जाने कौनकौन सी तसवीरें निकाल कर अकसर बच्चों को दिखलाने लगती थी.

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Anupamaa की सौतन और नंदिनी पर आया समर को गुस्सा! वायरल हुआ Funny Video

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ इन दिनों सुर्खियों में हैं. जहां खबरे हैं कि सेट पर गुटबाजी का माहौल बना हुआ है तो वहीं शो के सितारे इन खबरों को नकारते नजर आ रहे हैं. इसी बीच सीरियल के सेट से एक फनी वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें अनुपमा का बेटा समर काव्या पर हाथ उठाता नजर आ रहा है. आइए आपको दिखाते हैं फनी वीडियो की झलक…

समर और काव्या दिखे साथ

हाल ही में काव्या यानी मदालसा शर्मा ने एक फनी वीडियो शेयर किया है, जिसमें रूपाली गांगुली (Rupali Ganguly) के ऑनस्क्रीन बेटे समर यानी पारस कलनावत एक्ट्रेस मदालसा शर्मा (Madalsha Sharma) और अनघा भोंसले के साथ मस्ती करते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं सोशल मीडिया पर ये वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. इसी वीडियो के साथ पारस कलनावत ने नया हैशटैग #sanka शेयर किया है, जो फैंस को काफी पसंद आ रहा है.

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पति के साथ मस्ती करती आईं थीं नजर

मस्ती करने की बात आती है तो मदालसा शर्मा अनुपमा के सेट से अक्सर मजेदार वीडियो शेयर करके फैंस को एंटरटेन करती रहती हैं. वहीं हाल ही में उन्होंने एक वीडियो शेयर किया था जिसमें वे अपने पति मिमोह चक्रवर्ती, अनघा भोसले यानी की नंदनी और समर के साथ ‘माई बेस्टी’ सॉन्ग पर डांस करते हुए नजर आईं थीं. वहीं मिमोह और मदालसा की जोड़ी का तारीफें फैंस करते नहीं थकते हैं.

नंदिनी संग है औफस्क्रीन कैमेस्ट्री

भले ही अनुपमा में काव्या की किसी से नहीं बनती. लेकिन औफस्क्रीन बौंडिग की बात की जाए तो वह अक्सर नंदिनी यानी अनघा भोसले संग रील बनाती हुई नजर आती हैं. फैंस भी दोनों की जोड़ी काफी पसंद करते हैं, जिसके चलते फैंस ने दोनों को #navya नाम दिया है.

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कुंडली भाग्य फेम एक्ट्रेस ईशा आनंद शर्मा की Wedding Photos हुई वायरल

कुछ लोग सच्चे प्यार को पाने के लिए हमेशा इंतजार करते हैं, लेकिन ‘‘कुंडली भाग्य’’ और ‘‘छोटी सरदारिनी’’जैसे कई सफलतम टीवी सीरियल की अभिनेत्री ईशा आनंद शर्मा कामदेव से प्रभावित हो गईं और उन्होंने अपनी आत्मा अपने मित्र तथा एअर इंडिया इंटरनेशन में कैप्टन के रूप में कार्यरत कैप्टन वासदेव सिंह जसरोटिया को दे दिया.

दोनों ने चट मंगनी पट व्याह की तर्ज पर 2 फरवरी, 2021 को कोर्ट में जाकर शादी के बंधन में बंध गए थे. फिर 2 मई को राजस्थान में 50 लोगों की मौजूदगी में सभी रीतिरिवाजों संग शादी की. इस अवसर पर दूल्हा और दुल्हन ने परिवार और करीबी दोस्तों की मौजूदगी में रस्में निभाईं.

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‘कोरोना’ के चलते हालात अच्छे नही थे,इसलिए ईशा आनंद शर्मा और वासदेव सिंह जरोटिया ने शादी के बहुत बड़े समारोह का आयोजन कर जश्न नही मनाया. मेहमानों का परीक्षण करने, सामाजिक दूरी बनाए रखने, स्वच्छता बनाए रखने, मास्क पहनने आदि से हर संभव सावधानी बरती थी. अनुष्ठानों ने दूल्हा और दुल्हन को सभी परंपराओं के साथ एक अत्यंत शुद्ध पवित्र संबंध में बांध दिया.

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ईशा आनंद शर्मा अब श्रीमती जसरोटिया कहती हैं-‘‘वासदेव जम्मू से हैं.  हम एक आम दोस्त के माध्यम से ढाई वर्ष पहले मिले थे. लगभग डेढ़ वर्ष बाद हम अच्छे दोस्त बन गए. जैसा कि यह लगता है,मैं एक भाग्यशाली लड़की हूं.  वह एक महान व्यक्ति है, जो कुछ भी मैं कभी भी मांग सकती थी. तो हमने शादी का फैसला कर लिया,पर कोरोना की वजह से हम बड़ा आयोजन नहीं कर पाए. ‘‘

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ईशा आनंद शर्मा ने अब तक अपनी शादी को गुप्त ही रखा था. लेकिन अब इनकी शादी की तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हो रही हैं.

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रोजगार देने में देश में नंबर वन साबित हुईं यूपी की एमएसएमई योजना

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मिशन रोजगार सरकारी नौकरियों से लेकर निजी क्षेत्र में भी कारगर साबित हो रहा है. कोरोना काल के बावजूद पिछले एक साल में देश में प्रदेश की सूक्ष्म, लघु, और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) इकाईयों ने प्रदेश में सबसे ज्यादा रोजगार दिया है. सरकार ने इन इकाईयों को 140 करोड़ रुपए की सब्सिडी भी दी है.

सीएम योगी ने कोरोना काल में मानवता को बचाने के लिए जीवन और जीविका दोनों को प्राथमिकता दी थी. इसके लिए पिछले साल प्रदेश के इतिहास में सबसे ज्यादा लोन उद्योगों को दिए गए थे. इससे पहले भी पूर्व की सरकारों की तुलना में योगी सरकार ने उद्योगों को प्राथमिकता पर रखकर लोन उपलब्ध कराया था. प्रदेश सरकार के समन्वय से बैंकों ने पिछले चार साल में 55 लाख 45 हजार 147 एमएसएमई को लोन दिया था, जिसमें तीन लाख आठ हजार 331 इकाइयों के सैंपल सर्वे में नौ लाख 51 हजार 800 लोगों को रोजगार देने की भौतिक रूप से पुष्टि हुई थी. जबकि 55 लाख 45 हजार 147 इकाइयों में औसतन डेढ़ करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मिला है.

ऐसे ही इकाईयों को विभिन्न योजनाओं में प्रदेश सरकार की ओर से सब्सिडी भी दी गई है. प्रदेश में पिछले साल 4571 इकाईयों में 45,166 लोगों को रोजगार दिया गया है. इन इकाईयों को सरकार की ओर से 140 करोड़ रुपए की सब्सिडी दी है. देश में दूसरे नंबर पर गुजरात की 1437 इकाईयों ने 32,409 लोगों को रोजगार दिया है और उन्हें सौ करोड़ रुपए सब्सिडी दी गई है. तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश की 3362 इकाईयों ने 30,565 लोगों को रोजगार दिया है और 88 करोड़ की सब्सिडी दी गई है.

चार साल में दिए 55 लाख 45 हजार एमएसएमई को लोन

वित्त वर्ष 2016-17 में सपा सरकार के दौरान 6,35,583 एमएसएमई को लोन दिया गया था. जबकि 2017 में सत्ता परिवर्तन होते ही योगी सरकार में वित्त वर्ष 2017-18 में 7,87,572 एमएसएमई को लोन दिया गया. वित्त वर्ष 2018-19 में 10,24,265 उद्यमियों और 2019-20 में 17,45,472 लोन दिए गए हैं. वित्त वर्ष 2020-21 में एक अप्रैल 2020 से 18 मार्च 2021 तक 13 लाख 52 हजार 255 उद्यमियों को लोन दिए गए हैं. इसमें नौ लाख 13 हजार 292 एमएसएमई को 32 हजार 321 करोड़ 31 लाख रुपए लोन दिए हैं. इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस) में चार लाख 39 हजार 310 इकाइयों को 12 हजार 69 करोड़ 57 लाख रुपए का लोन दिया गया है. ऐसे में कुल 55 लाख 45 हजार 147 एमएसएमई को लोन दिया गया है.

Divya Drishti स्टार Sana Sayyad की हल्दी में पहुंचे सितारे, देखें फोटोज

बीते दिनों कोरोना में कई सितारों ने शादी करने का फैसला लिया. वहीं अब इस लिस्ट में एक और स्टार का नाम शामिल होने जा रहा है. दरअसल, सीरियल दिव्य दृष्टि स्टार सना सैयद भी जल्द ही शादी करने वाली हैं. वहीं उनकी शादी की रस्में भी शुरु हो चुकी हैं, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं सना सैयद की हल्दी सेरेमनी की फोटोज…

शादी की रस्में हुईं शुरु

 

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दिव्य दृष्टि स्टार सना सैयद की शादी की रस्मों शुरु हो चुकी हैं. वहीं इस खास मौके पर उनके औनस्क्रीन को स्टार्स ने भी महफिल में चार चांद लगाए. , जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर छा गई हैं. वहीं फैंस उन्हें बधाइयां देते नजर आ रहे हैं.

 

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पीले रंग में दिखीं सना सैयद

 

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हल्दी की रस्म के दौरान सना सैयद (Sana Sayyad) पीले रंग में नजर आईं. इस दौरान सना सैयद ने पीले रंग का सूट और मैचिंग फूलों से बना दुपट्टा सिर पर ओढ़ा. वहीं उनके होने वाले पति भी मैचिंग लुक में नजर आए.

 

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स्टार्स आए नजर

सना सैयद की हल्दी में सीरियल दिव्य दृष्टि के कई स्टार भी पहुंचे, जिसमें आद्विक महाजन और उनकी रियल वाइफ भी शामिल हैं. वहीं इस रस्म में सभी सितारों ने जमकर मस्ती भी की, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं सना सैयद की हल्दी की रस्म की फोटोज देखने के बाद फैंस उन्हें बधाईयां दे रहे हैं.

बता दें, सना सैयद (Sana Sayyad) के होने वाले पति इमाद शम्सी (Imaad Shamsi) एक बिजनेसमैन हैं. दोनों एक साथ पढ़ाई कर चुके हैं औक एक दूसरे को  जानते थे. हालांकि बीते साल से ही दोनों ने एक दूसरे को डेट करना शुरू किया था, जिसके बाद इस कपल ने शादी का फैसला किया है.

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Karan Mehra संग विवाद के बाद Nisha Rawal के फेस पर दिखी हंसी, देखें फोटोज

टीवी के पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) फेम करण मेहरा और उनकी वाइफ निशा रावल की लड़ाई पिछले दिनों सुर्खियों में रही, जिसके बाद निशा रावल ने करण मेहरा के बिना बेटे काविश का बर्थडे सेलिब्रेट किया. हालांकि करण मेहरा ने सोशलमीडिया पर बेटे के लिए एक पोस्ट भी किया. हालांकि अब भी करण मेहरा बेटे से दूर हैं, लेकिन निशा मेहरा बेटे के साथ क्वालिटी टाइम बिताती नजर आ रही हैं, जिसमें उनकी खुशी देखने लायक है.

बेटे के साथ शेयर की फोटोज

शादीशुदा जिंदगी में आए तूफान के असर से बेटे काविश को बचाने के लिए निशा रावल  (Nisha Rawal) काफी कोशिशे कर रही हैं, जिसका अंदाजा इन फोटोज से लगाया जा सकता है. दरअसल, हाल ही में निशा बेटे को लेकर बाहर घूमने गई थी और इस दौरान वह बेटे संग वक्त बिताती हुई नजर आईं.

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बेटे कविश के संग मस्ती करती दिखीं निशा रावल

निशा रावल (Nisha Rawal) ने हाल ही में सोशलमीडिया पर कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह बेटे काविश के साथ कॉफी डेट पर नजर आ रही हैं. इस दौरान दोनों ने मिलकर खूब मस्ती की और खूब फोटोज क्लिक करवाईं, जो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं.

निशा रावल के चेहरे पर आई हंसी

फोटोज की बात करें तो निजी जिंदगी में मची उथल-पुथल के बाद निशा रावल के चेहरे पर महीनों बाद हंसी देखने को मिली. वहीं बेटे का साथ पाकर निशा रावल हर गम भूल जाती हैं, जो फोटो में साफ देखकर लग रहा है.


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बता दें, बीते दिनों निशा रावल ने एक्टर करण मेहरा पर घरेलू हिंसा का केस कर दिया था, जिसके बाद उन्हें अरेस्ट कर लिया गया था. हालांकि जमानत मिलने के बाद करण मेहरा ने अपना पक्ष सामने रखते हुए निशा और उनके भाई में पर मारपीट का आरोप लगाया था. लेकिन निशा रावल ने भी इसका जवाब दिया था.

तीसरी लहर से बचाव के लिए प्रो-एक्टिव नीति

प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पाने के बाद योगी सरकार ने तीसरी लहर से निपटने के लिए चक्रव्यूह तैयार कर लिया है. राज्यस्तरीय स्वास्थ्य परामर्श समिति ने तीसरी लहर को ध्यान में रख्रते हुए अपनी रिर्पोट यूपी सरकार को सौंप दी है. प्रदेशवासियों को कोरोना की तीसरी लहर से बचाने के लिए सरकार ने हर जिले की सुरक्षा के लिए चक्रव्यूह तैयार कर लिया है. मुख्यमंत्री यागी आदित्यनाथ ने महामारी से बचाव और इलाज के संबंध में राज्यस्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ परामर्श समिति की संस्तुतियों पर गंभीरता से काम करने के निर्देश दिए हैं.

कोरोना संक्रमण की संभावित तीसरी लहर और संचारी रोगों पर नियंत्रण के लिए सभी जिलों में पूरी सक्रियता से सरकार ने प्रयास शुरू कर दिए हैं. तीसरी लहर से निपटने के लिए प्रदेश सरकार ने स्वच्छता, सैनिटाइजेशन, पीकू नीकू और मेडिकल मेडिसिन किट इस चक्रव्यूह का हिस्सा बनाया है. प्रदेश में युद्ध्स्तर पर पीकू नीकू की स्थापना और मेडिकल मेडिसिन किट के वितरण की व्यव्स्थाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है. जून के अंत तक प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज में 100 बेड वाले पीकू नीकू और सीएचसी और पीएचसी में 50 नए बेड की व्यवस्था कर दी जाएगी.

27 जून से घर-घर वितरित की जाएंगी दवाएं

कोरोना की तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने बच्चों की स्वास्थ्य, सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से घर-घर मेडिकल किट वितरण का विशेष अभियान शुरू किया है. जिसके तहत 27 जून से दवाएं घर-घर वितरित की जाएंगी. गांव से लेकर शहर तक प्रत्येक गली-कूचे और घर-घर तक पहुंच बनाने वाली निगरानी समितियों ने सरकार की योजनाओं का लाभ प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाने का बड़ा काम किया है. यही कारण भी है कि सरकार ने मेडिकल किट वितरण की जिम्मेदारी भी निगरानी समिति के सदस्यों को सौंपी है. तीसरी लहर का डट कर मुकाबला करने के लिए प्रदेश की 3011 पीएचसी और 855 सीएचसी को सभी अत्याधुनिक संसाधनों से लैस किया गया है. मेडिकल-किट में उपलब्ध दवाईयां कोविड-19 के लक्षणों से बचाव के साथ 18 साल से कम उम्र के बच्चों का मौसमी बीमारियों से भी बचाएंगी. तीसरी लहर से बचाव के लिए सरकार ने प्रदेश में 75000 निगरानी समितियों को जिम्मेदारी सौंपी हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल मेडिसिन किट के वितरण को गति देने के लिए 60 हजार से अधिक निगरानी समितियों के चार लाख से अधिक सदस्यों को लगाया गया है.

प्रत्येक जरूरतमंद तक पहुंचेगी योगी सरकार की मदद

कोरोना प्रबंधन में निगरानी समितियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है. ऐसे में अब तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने इन समितियों को विशेष जिम्मेदारी सौंपी है. गांवों में भ्रमण करते समय निगरानी समितियां यह भी सुनिश्चित करेंगी कि कोई जरूरतममंद राशन से वंचित न रहे.

तीसरी लहर से बचाव के लिए अपनाई जा रही प्रो-एक्टिव नीति

प्रदेश में विशेषज्ञों के आंकलन के अनुसार कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के संबंध में योगी सरकार प्रो-एक्टिव नीति अपना रही है. सभी मेडिकल कॉलेजों में पीआईसीयू और एनआईसीयू की स्थापना को तेजी से पूरा किया जा रहा है.

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