Monsoon Special: इन 6 टिप्स से करें बालों की केयर

डर्मालिंक्स, गाजियाबाद की ट्राइकोलौजिस्ट डाक्टर विदूषी जैन का कहना है कि लगभग 90% महिलाओं में मौनसून के मौसम में बालों की समस्या 30 से 40% तक बढ़ जाती है. वैसे तो 100 बालों तक गिरना आम बात है, लेकिन मौनसून के मौसम में यह संख्या 250 तक पहुंच जाती है, जिस का मुख्य कारण मौसम में उमस के कारण स्कैल्प में पसीने का रिसना, रूसी और ऐसिडिक बारिश का पानी भी हो सकता है.

बहुत ज्यादा नमी के अलावा इन दिनों फंगल इन्फैक्शन का खतरा सब से ज्यादा होता है. वैसे तो फंगल इन्फैक्शन जानलेवा नहीं होता है, लेकिन अगर उस का उपचार ठीक समय पर ढंग से न किया जाए तो गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है.

सौंदर्य विशेषज्ञा भारती तनेजा बालों की देखभाल के संदर्भ में बताते हुए कहती हैं कि बरसात के मौसम में तैलीय ग्रंथियां ज्यादा सक्रिय होती हैं, जिस के कारण सीबम के सिर की स्किन पर जमने से बाल चिपचिपे हो जाते हैं. इस से सिर में खुजली और बालों में डैंड्रफ होना आम समस्या है. इसलिए सिर की सफाई पर विशेष ध्यान दें और हर दूसरे दिन ऐंटीडैंड्रफ शैंपू करती रहें. बाल धोने से कम से कम 1 घंटा पहले तेल की मालिश करनी चाहिए. इस से बालों में चमक बनी रहेगी साथ ही बारिश के मौसम में बाल चिपचिपे भी नहीं होंगे.

मौनसून में चाय तथा नीबू का हर्बल हेयर रिंस काफी लाभदायक साबित हो सकता है. इस के लिए प्रयोग की गई चायपत्ती को खुले पानी में फिर से उबाल कर ठंडा कर लें और इसे शैंपू के बाद बालों को धोने में उपयोग में लाएं. अंत में 1 मग पानी में नीबू रस मिला कर इस से बालों को धोएं. बालों की मजबूती बनाए रखने के लिए हफ्ते में 3-4 बार बालों को प्रोटीन ट्रीटमैंट दें. इस के लिए फेंटे हुए 1 अंडे को गीले बालों पर लगाएं. 15 मिनट तक इसे लगा रहने दें और फिर पानी से धो लें.

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मौनसून में बालों की देखभाल के टिप्स

मौनसून के मौसम में बालों को हैल्दी और आकर्षक बनाए रखने के लिए निम्नलिखित बातों का खयाल रखें:

तेल की मालिश:

बालों में तेल लगा कर मालिश करने से इन को पोषण मिलता है. बालों की जड़ों तक अच्छी तरह से मालिश करनी चाहिए. इस से बालों का टूटना और रूखापन चला जाता है. हफ्ते में 2-3 बार तेल से मालिश की जा सकती है. तेल लगाने के कुछ घंटे बाद शैंपू करें. मौनसून में बारिश के कारण बालों में गंदगी जल्दी जमा हो जाती है. इसे साफ करने के लिए हफ्ते में 2 बार बालों की हौट औयल से भी मालिश की जा सकती है.

बालों को बांध कर रखें:

बारिश के मौसम में बालों को बांध कर रखना उचित होता है ताकि उन की नमी को बरकरार रखा जा सके. यही नहीं बारिश के मौसम में बालों में पोषण की भी कमी होती है, जिस से वे अधिक झड़ने लगते हैं. अगर आप ऐसे कमजोर बालों पर किसी तरह की स्टाइलिंग वाली चीज का उपयोग करती हैं, तो आप के बाल और कमजोर हो जाएंगे और ज्यादा झड़ने लगेंगे. इसलिए बालों को अच्छी तरह बांध कर रखें.

कंडीशनर का उपयोग:

बरसात के मौसम में बालों के फ्रिजी होने की समस्या अधिक हो सकती है. इस मौसम में हवा में नमी का स्तर बालों को शुष्क बना देता है, जिस से स्पिलिट ऐंड्स होने के साथसाथ हेयर डैमेज और हेयर फौल की समस्या भी शुरू हो जाती है. इसलिए मौनसून में जब भी आप बालों को धोएं तो उस के बाद कंडीशनर जरूर लगाएं. इस से बाल स्मूथ, हैल्दी और फ्रिजी फ्री हो जाएंगे.

बालों को सूखा रखें:

बारिश में भीगना सभी को पसंद है लेकिन अकसर बारिश का पानी अशुद्ध और अम्लीय होता है, जिस से बाल खराब होने का खतरा रहता है. बरसात में जब बाल अधिक समय तक गीले रहते हैं तो स्कैल्प से जुड़ी कई परेशानियां हो सकती हैं. इसलिए बारिश में बाल गीले हों तो इन्हें तुरंत सुखा लें. सूखाने के लिए हेयर ड्रायर के बजाय टौवेल का इस्तेमाल करें.

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बाहर निकलते समय बालों को कवर करें:

बरसात के मौसम में घर से बाहर निकलने से पहले बालों को अच्छी तरह स्कार्फ से ढक कर रखें. साथ में छाता भी ले कर निकलें. ऐसा करने से बालों के साथसाथ स्कैल्प की भी देखभाल होगी.

हैल्दी डाइट:

इस मौसम में बालों को झड़ने से रोकने के लिए बाहर का तलाभुना खाना कम से कम खाएं. औयली फूड ब्लड सर्कुलेशन को धीमा कर देता  है. इसलिए बालों को पोषण देने वाला ही भोजन करें. विटामिन ई, विटामिन के और प्रोटीन का उपयोग ज्यादा करें, संतुलित भोजन करें.

पतझड़ में वसंत- भाग 1 : सुषमा और राधा के बनते बिगड़ते हालात

लेखिका- मृदुला नरुला

‘प्रिय राधा,

‘स्नेह, मैं सुषमा, तेरी सहेली, तेरी पड़ोसिन, तेरी कलीग. शायद तू मुझे भूल गई होगी पर इन 10 बरसों में कोई दिन ऐसा न था जब तेरा हंसताखिलखिलाता चेहरा जेहन में न उभरा हो. बहुत याद आती है इंडिया की, इंडिया के लोगों की. मुझे तुझ से एक फेवर चाहिए. मैं यूएस से इंडिया आना चाहती हूं. क्या मैं कुछ दिन तेरे पास रह सकती हूं? मेरा आना न आना, तेरी हां या न पर है. ईमेल का जवाब फौरन देना. मैं अगले महीने की 20 तारीख तक चलने का प्रोग्राम बना रही हूं. मेरी बात हो सकता है तुझे अजीब लगे, उस के लिए माफी चाहती हूं. सबकुछ आ कर बताऊंगी.

‘तेरी सुषमा.’

ईमेल सुषमा का था. 10 बरस पहले यूएस में अपने बेटों के पास जा बसी थी. आज इतने लंबे समय के बाद वापस आ रही है. पर क्यों? लोग तो वहां जा कर वापस आना ही नहीं चाहते. फिर यह

तो बेटों के बुलाने पर ही गई थी. सोचतेसोचते बरामदे में पड़ी कुरसी पर आ बैठी. अतीत सामने आ कर खड़ा हो गया.

सामने वाली दीवार के पीछे सुषमा का परिवार रहता था. लंबीचौड़ी कोठी थी, 10-15 लोग रहते थे. ठीक, राधा के परिवार की तरह. दोनों की छतें इस तरह जुड़ी थीं कि गरमी में रात को जब परिवार के बच्चेबूढ़े सोने आते तो पता ही नहीं लगता कि घरों का आदि कहां, अंत कहां है. वैसे भी दोनों परिवार में बहुत अपनापन था. बच्चे भी बहुत हिलमिल कर रहते थे. उसे आज भी याद है, जब भी दोनों घरों में कोई खुशी आती, सब मिलजुल कर बांटते. चाहे किसी बच्चे का जन्मदिन हो या किसी को कंपीटिशन में जबरदस्त कामयाबी मिली हो.

राधा और सुषमा एक ही स्कूल में नौकरी करती थीं. दोनों ने अपने और बच्चों से जुड़े किसी भी फैसले को कभी अकेला नहीं लिया. स्कूल से रिटायर होने के बाद भी वे एकदूसरे की सलाह लेने में कोताही नहीं करती थीं.

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राधा के 2 बेटे हैं तो सुषमा 3 बच्चों की मां है. कोईर् वक्त था जब पढ़ाई में दोनों के बच्चों में होड़ सी लगी होती. जिन्हें देख कर दोनों परिवारों के दूसरे बच्चे भी इस होड़ में शामिल हो जाते. दोनों सहेलियों ने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे थे. वक्त के साथ सपनों में रंग भरने लगे. वैसे भी टीचर्स के बच्चों की सोच में सिर्फ और सिर्फ कैरियर होता है.

राधा के दोनों बेटों ने इंजीनियरिंग की और बाहर का रुख किया. सुषमा के तीनों बेटे भी मैडिकल की पढ़ाई कर के अमेरिका चले गए. कुछ वर्षों बाद तीनों भाइयों ने मिल कर एक हौस्पिटल का शुभारंभ किया. बेटों की तरक्की से दोनों माएं खुश थीं. यही नहीं, दोनों के परिवारों के बाकी बच्चे भी अच्छी नौकरी ले कर दूसरे शहरों में जा बसे थे. इतने बड़े घर में केवल राधा व राधा के पति कमलेश्वर थे. उधर, सुषमा व उस के पति रमेश रह गए थे. दोनों को रिटायर होने में समय था. सब के दिमाग में यही प्रश्न था, रिटायर हो कर वे कहां, क्या करेंगे?

बच्चों ने नए देश व माहौल में अपने को ढालने में देर न लगाई. दोनों दंपती जानते थे कि अब बच्चे वहीं बसेंगे, कोईर् यहां बसने नहीं आएगा.

राधा के बेटों ने मम्मीपापा को अमेरिका आ कर बसने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने पहले तो इस प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया पर जब बेटों ने बारबार कहा तो कमलेश्वर ने पत्नी से कहा, ‘बच्चों की भावनाओं को मैं समझता हूं, पर यह समझ लो, हम कहीं नहीं जाएंगे. जहां हम रह रहे हैं वही ठिकाना ही हमारा सम्मान है. साधु अपनी कुटिया में रहता है, तो चार लोग उस से मिलने आते हैं. कुटिया छोड़ कर घरघर भीख मांगने जाएगा तो लोग दुत्कार भी सकते हैं.

‘सो, हम अपनी इस कुटिया में ही भले. जिस को मिलना है, यहां आ कर मिल जाए. और फिर हम बूढ़े पेड़ की तरह हैं, एक जगह से उखड़ कर दूसरी जगह की मिट्टी में नहीं जम सकते. चिडि़या अपने बच्चों को उड़ना सिखाती है, सदा उन के साथ नहीं उड़ती. यह देख कर कि उन्होंने उड़ना सीख लिया है, वह उन्हें आजाद छोड़ देती है. हम ने भी बच्चों को अच्छी शिक्षा व संस्कारों के मजबूत पंख दिए हैं. उन्हें अब हमारी जरूरत नहीं है. हम दोनों ही अपने तरीके से जीने के लिए आजाद हैं.’

बच्चे इस बात को नहीं मानते. उन का कहना था, ‘आप दोनों का शरीर इस उम्र में आने वाली तकलीफोें को कैसे झेलेगा? कोई तो साथ होना चाहिए. यहां हमारे पास होगे तो किसी अनहोनी का डर तो न होगा.’

बच्चों की मजबूरी और कमलेश्वर का स्वाभिमानी तर्क, दोनों अपनी जगह ठीक थे. पतिपत्नी के हठ के आगे बच्चों को घुटने टेकने पड़े.

सुषमा व उस के पति रमेश की सोच इन से अलग है. उन के बच्चों ने दोनों को जब अमेरिका आने का निमंत्रण दिया, तो वे मना न कर सके. ‘राधा, मेरे तीनों बेटों ने एक हौस्पिटल खोला है. बड़े हौस्पिटल के मालिक होने के साथ एक होटल भी खरीदा है. होटल का उद्घाटन हमारे हाथ से कराना चाहते हैं. हम दोनों के न जाने पर बच्चे नाराज हो जाएंगे. सो, हम ने भी सोचा है कि हम सबकुछ बेच कर वहीं बच्चों के पास क्यों न रहें.’

जाने से पहले सुषमा, सहेली से मिलने आईर् थी. बहुत खुश थी. अमेरिका जाने की खुशी से चमकती आंखों में न जाने कितने ही सपने थे.

‘मुझे भूल तो न जाएगी?’ सुषमा ने पूछा.

‘नहीं, कभी नहीं. जब जी करे, फोन कर लेना. मैं यहीं हूं, यहीं रहूंगी. यह तेरी सहेली, तेरे वापस आने का इंतजार करेगी,’ राधा ने उसे गले लगाते हुए कहा.

जाने के बाद राधा सोच रही थी, क्यों उस ने सुषमा से कहा, ‘तेरे वापस आने का इंतजार करूंगी. कहीं बुरा न मान गई हो. इस बात को 10 साल हो गए, लगता है सुषमा से मिले सदियां गुजर गईं. क्या उसे आज भी वे पुरानी बातें याद होंगी? आएगी, तो पूछूंगी. वैसे उस की खनकती हंसी और मुसकराती आंखें आज भी उस की उपस्थिति का उसे एहसास कराती हैं.

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वक्त कभीकभी कितने सितम ढाता है, कौन जानता है? एक ऐक्सिडैंट में राधा के पति की अचानक मृत्यु हो गई. उस की तो दुनिया ही लुट गई. बच्चों ने एक बार फिर दोहराया, ‘मम्मी, यहां कैसे अकेली रहोगी, हमारे साथ अमेरिका में रहना ठीक होगा.’

‘नहीं, तुम्हारे पापा मुझे यहीं बैठा गए हैं. इस घर में आज भी तुम्हारे पापा हैं, उन के साथ जुड़ी यादें है. मुझे अभी यहीं रहने दो.’

‘बेटे अनिल और सुनील मां के मन की दशा को समझते थे. सो, चुप रहे. हां, एक पुरानी कामवाली व उस के बेटे से कहा, ‘आज से, तुम दोनों हमारे घर में ही रहोगे. कोई तो हो जो मां के साथ हो.’ कामवाली कमला और उस के बेटे बौबी को, अनिल और सुनील अच्छी तरह जानते थे, सो, तसल्ली थी.

ऐसे समय पर राधा को सुषमा की बड़ी याद आई. वक्त से बढ़ कर मरहम भी कोई नहीं है. फिर भी बच्चों ने सलाह दी कि मम्मी को कोई काम पकड़ना चाहिए. काम में व्यस्त रहेंगी तो मन लगा रहेगा.

राधा ने एक एनजीओ जौइन कर लिया. वक्त आसानी से कट जाता. लेकिन कई बार उसे लगता, 5 कमरों के इस दोमंजिले घर का ऊपरी हिस्सा तो बंद ही रहता है. साफसफाई के साथ आएदिन मरम्मत की जरूरत भी मुंहबाए खड़ी रहती है. कई लोगों ने बच्चों को सलाह दी, ‘इस मकान को बेच दो, अच्छे पैसे मिल जाएंगे? बदले में मां को एक छोटा फ्लैट खरीद दो. आधे दाम में एवन सोसायटी में बड़ा अच्छा फ्लैट मिल सकता है.’

‘वक्त की दौड़ में शामिल होना समझदारी हो सकती है. पर मेरे घर को ले कर ऐसा कुछ सोचना, समझदारी न होगी. नहीं, इस घर में हमारा बचपन बीता है, हमारे बचपन की मीठी यादें इस से जुड़ी हैं. यह घर हमारे दादीदादा की धरोहर है. इस का कोई मोल नहीं है.’ बेटों के मुंह से पति की भाषा सुन कर राधा को बड़ी खुशी हुई.

‘क्यों न हम ऊपर की मंजिल को किराए पर चढ़ा दें?’ बेटों ने प्रस्ताव रखा.

‘यह ठीक रहेगा, चहलपहल भी रहेगी और आमदनी भी होगी,’ राधा को बात पसंद आई. ऊपर की मंजिल में एक लाइब्रेरी है जिसे एक ट्रस्ट चलाता है. किराया भी अच्छा मिल जाता है. यह बच्चों की सूझबूझ से हुआ है. इस बीच, आसमान में बदलों के गरजने की जोरदार आवाज आई तो राधा के विचारों का सफर खत्म हुआ.

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कमिटमेंट का मतलब गुलामी नहीं

‘‘शादी से पहले तो बड़े वादे किए थे कि तुम्हें पलकों पर बैठा कर रखूंगा, तुम्हें दुनिया भर की खुशियां दूंगा, तुम सिर्फ मेरी रानी बन कर रहोगी. कहां गए वे वादे? तुम्हें तो मेरी फीलिंग्स की कोई परवाह ही नहीं है. तुम आखिरी बार मुझे कब किस हिलस्टेशन घुमाने ले कर गए थे? अब तुम्हें मेरी कोई परवाह नहीं है. अब तुम मुझ से प्यार नहीं करते.’’

‘‘तुम तो जब देखो सिर्फ शिकायतें ही करती रहती हो, कोशिश करता तो हूं हर वादा पूरा करने की. तुम समझती क्यों नहीं? पहले हालात और थे अब कुछ और हैं. अब हमारी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. हमें अपने भविष्य की प्लानिंग भी तो करनी है. तुम क्या चाहती हो नौकरी छोड़ कर तुम्हारे साथ घूमता रहूं? तुम भी तो कितनी बदल गई हो. तुम ने भी तो शादी के समय वादा किया था कि कभी कोई शिकायत नहीं करोगी. मेरे साथ हर हाल में खुश रहोगी. फिर आए दिन की ये शिकायतें क्यों? मैं तो तुम से कमिटमैंट कर के फंस गया. इस से अच्छा तो मैं शादी से पहले था. तुम तो हर समय मुझे अपने हिसाब से चलाना चाहती हो. हमारा रिश्ता बराबरी का है. हम लाइफपार्टनर हैं. मैं तुम्हारा कोई गुलाम नहीं हूं.’’

विवाह के 1-2 साल बाद हर पतिपत्नी के बीच कमिटमैंट का यह सीन आम देखने को मिलता है. दरअसल, विवाह के समय फेरों के वक्त वरवधू द्वारा लिए गए वचनों से ही कमिटमैंट की शुरुआत हो जाती है. अगर आप विवाह का शाब्दिक अर्थ जानेंगे तो पाएंगे कि इस का अर्थ है विशेष रूप से उत्तरदायित्व यानी जिम्मेदारियों का वहन करना. जबकि विवाह का बेसिक कौन्सैप्ट होता है एकदूसरे की योग्यताओं और भावनाओं को समझते हुए गाड़ी के 2 पहियों की तरह प्रगतिपथ पर अग्रसर होते जाना. एकदूसरे का पूरक होना. लेकिन कई बार विवाह के समय एकदूसरे से किए गए कमिटमैंट्स बाद में दोनों के बीच विवाद का कारण बन जाते हैं, जिस का परिणाम हत्या, आत्महत्या या फिर तलाक के रूप में निकलता है.

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कमिटमैंट का अर्थ समर्पण नहीं

जब 2 लोग वैवाहिक बंधन में बंधते हैं, तो वे एकदूसरे से अनेक वादे करते हैं जैसे हम एकदूसरे को हर हाल में खुश रखेंगे, सारी जिम्मेदारियां मिलबांट कर निभाएंगे, एकदूसरे के साथ प्यार और विश्वास से रहेंगे, कभी एकदूसरे का विश्वास नहीं तोड़ेंगे आदिआदि. लेकिन जैसेजैसे वैवाहिक जीवन के साल गुजरने लगते हैं और जीवन वास्तविकता की पटरी पर चलने लगता है, सारे वादे हवा होने लगते हैं और दोनों एकदूसरे को टेकन फौर ग्रांटेड लेने लगते हैं. उन के साथ उन के अलावा अन्य रिश्ते जुड़ने लगते हैं और शुरू हो जाती हैं शिकायतें और एकदूसरे पर कमिटमैंट्स न पूरा करने के आरोप.

दरअसल, आज वैवाहिक रिश्तों का रूप बदल रहा है. आज इस रिश्ते में पर्सनल स्पेस, प्राइवेसी, सैल्फ रिसपैक्ट जैसे शब्द ऐंटर कर रहे हैं. अब इन शब्दों को आधार बना कर हर हाल में रिश्ता निभाना जरूरी नहीं रह गया. आज की वाइफ टिपिकल वाइफ नहीं रही. आज पतिपत्नी की जिम्मेदारियों की अदलाबदली हो रही है. जहां पत्नी ‘का’ बन कर घर की चारदीवारी लांघ कर आर्थिक जिम्मेदारियां संभाल रही है, वहीं पति भी ‘की’ बन कर घर की जिम्मेदारियां संभाल रहा है. आज वैवाहिक रिश्ते का कौन्सैप्ट पार्टनरशिप वाला यानी साझेदारी वाला हो गया है और दोनों में से कोईर् एक भी कमिटमैंट कर के समर्पण नहीं करना चाहता. आज की इन बदली परिस्थितियों में पार्टनरशिप यानी साझेदारी वाले इस रिश्ते में कमिटमैंट करना गलत नहीं है और हम यह भी नहीं कह रहे कि आप कमिटमैंट करने से बचें, लेकिन दोनों पार्टनर में से अगर कोई एक कमिटमैंट करता है, तो दूसरे को समझना होगा कि ऐसा कर के उस ने समर्पण नहीं किया है और न ही वह आप का गुलाम बन गया है.

क्यों ब्रेक होते हैं कमिटमैंट

शादी के समय चूंकि सब बहुत खुशनुमा होता है, सब कुछ अच्छा होता है, हालात फेवरेबल होते हैं, इसलिए पतिपत्नी एकदूसरे से ढेर सारे वादे कर लेते हैं, लेकिन उस समय वे यह नहीं जानते कि आने वाले समय में परिस्थितियां बदल सकती हैं. हो सकता है आज आप के पास एक बड़ी कंपनी में एक अच्छी नौकरी है, लेकिन आप नहीं जानते कल हो या न हो. आज आप का बिजनैस बहुत अच्छा चल रहा है, कल ऐसा चले या न चले. आज आप जौइंट फैमिली में हैं जहां आज भले ही आप को वैस्टर्न परिधान पहनने की आजादी न हो पर कल को हो सकता है आप की नौकरी विदेश में लग जाए जहां आप को सिर्फ वैस्टर्न परिधान ही पहनने को मिलें. दरअसल, परिस्थितियों के हिसाब से कमिटमैंट्स बदल जाते हैं. लेकिन परिस्थितियां बदल जाने से अगर आप अपने कमिटमैंट्स पूरे नहीं कर पाए, तो इस का अर्थ यह नहीं कि आप ने कमिटमैंट तोड़ दिया यानी आप ने गुनाह कर दिया और पार्टनर इस बात के लिए आप को दोषी ठहराए. इसलिए दोनों पार्टनर की इसी में भलाई है कि वे पुराने कमिटमैंट्स को भूल कर वर्तमान जिंदगी में जीएं.

रिश्ता बराबर की साझेदारी का

पति ने पत्नी से कमिटमैंट किया कि वह उसे हर साल कहीं घुमाने ले जाया करेगा. लेकिन 1 साल वह अपनी फाइनैंशियल प्रौब्लम के चलते ऐसा नहीं कर पाया, तो पत्नी को इसे कमिटमैंट तोड़ना नहीं समझना चाहिए वरन पति की स्थिति को समझ कर यह कहना चाहिए कि कोई नहीं जब हमारी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी तब चले जाएंगे. विवाह प्रकृति की देन नहीं, मनुष्य की अपनी बनाई संस्था है, जो 2 लोगों को एकदूसरे का साथ, सुरक्षा और हमदर्द देती है. यह सुख का मामला है और सुख पाना है, तो पतिपत्नी को अपने कमिटमैंट्स खुद तय करने होंगे, दोनों को एकदूसरे का वजूद स्वीकारना होगा, क्योंकि मामला बराबरी का है. कमिटमैंट का अर्थ बंधन या अपनी आजादी खोना हरगिज नहीं है.

कमिटमैंट प्यार है पत्थर की लकीर नहीं

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट प्रांजलि मल्होत्रा का मानना है कि पतिपत्नी जब नएनए विवाह बंधन में बंधते हैं, तो उन के लिए एकदूसरे से कमिटमैंट करना आसान होता है, क्योंकि उस समय सारे हालात फेवरेबल होते हैं, लेकिन जैसेजैसे समय बीतता जाता है दोनों के लिए उन कमिटमैंट्स को निभाना मुश्किल होता चला जाता है और दोनों को लगता है कि वे वादे से मुकर रहे हैं या कहें दोनों एकदूसरे पर वादाखिलाफी का आरोप लगाने लगते हैं. परिणामस्वरूप रिश्तों में तूतू, मैंमैं यानी कड़वाहट बढ़ने लगती है. अगर पतिपत्नी के बीच विश्वास की बात की जाए तो भी समय के साथ दोनों के बीच विश्वास की जगह शक घर करने लगता है. पतिपत्नी दोनों में से कोई भी एक अगर किसी अपोजिट सैक्स से बात करता है, तो दूसरे को लगता है कि उस के पार्टनर ने अपना लौयल रहने का कमिटमैंट तोड़ दिया. जबकि वह चैटिंग या मीटिंग, प्रोफैशनल भी तो हो सकती है. मगर इस ओर दोनों का ध्यान नहीं जाता. पति अगर देर रात घर आए तो पत्नी को लगता है उस का किसी के साथ चक्कर है जबकि इस का कारण औफिस की जिम्मेदारियां भी तो हो सकती हैं. इसीलिए पतिपत्नी को विवाह के समय में एकदूसरे से कमिटमैंट करते समय यह भी कह देना चाहिए कि मैं जो भी वचन तुम्हें दे रहा हूं या दे रही हूं उसे निभाना उस समय के हालात पर डिपैंड करेगा. हां, समय के साथ भले ही मेरा कमिटमैंट, मेरी प्राथमिकताएं बदल जाएं पर मेरा तुम्हारे प्रति प्यार हमेशा बना रहेगा. हम मिल कर सारी जिम्मेदारियां निभाएंगे.

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प्रांजलि मल्होत्रा के अनुसार, पतिपत्नी के रिश्ते में जहां तक कमिटमैंट और सबमिटमैंट की बात है कई बार दोनों पार्टनर में से एक के नेचर में होता है सबमिसिव होना. उस के परिवार की परिस्थितियां, उस का पालनपोषण का तरीका जहां उसे हर बात के लिए दबाव डाला जाता रहा हो तो वह विवाह के बाद भी अपने उस स्वभाव को बदल नहीं पाता और अपने रिश्ते में लड़ाईझगड़े से बचने के लिए खुद का समर्पण करता चला जाता है, हर कमिटमैंट को पूरा करने की कोशिश में शोषित फ्रस्ट्रेटेड होता रहता है.

ऐसा नहीं कि कमिटमैंट में सिर्फ पत्नी को ही खुद को सबमिट करना पड़ता है. कई बार पति के स्वभाव में भी सबमिसिव नेचर होता है और वह हर बात को मानता चला जाता है, लेकिन कमिटमैंट का अर्थ यह कदापि नहीं कि आप ने कमिटमैंट कर के कोई डील साइन कर दी, जिसे हर हाल में फुलफिल करना होगा. कमिटमैंट पतिपत्नी के बीच आपसी प्यार है, खुशहाल जिंदगी के लिए कोई पत्थर की लकीर नहीं. कुछ लोग इसे समझौते का नाम देते हैं, जो सही नहीं है. ऐडजस्टमैंट सही शब्द है, जहां दोनों एकदूसरे की स्थिति को समझते हैं, समय के साथ खुद को बदल लेते हैं और एकदूसरे के वजूद का सम्मान करते हैं.

प्रांजलि मल्होत्रा का यह भी कहना है कि पतिपत्नी एकदूसरे से कमिटमैंट करने से डरें नहीं, क्योंकि यह किसी भी तरह से गलत नहीं है. लेकिन ध्यान रहे कमिटमैंट का अर्थ गुलामी बिलकुल नहीं है, क्योंकि यह रिश्ता बराबरी का है, साझेदारी का है.

Monsoon Special: बच्चों के लिए बनाएं पनीर टिक्का सैंडविच

मानसून में चटपटा खाने का शौक कई लोगों को करता है. वहीं अगर कोई टेस्टी और आसान रेसिपी घर पर बनाने का मौका मिल जाए तो वह दिन बना देती है. आज हम आपको  पनीर टिक्का सैंडविच की आसान रेसिपी बताएंगे, जिसका मजा आप बरसात के मौसम में उठा सकती हैं.

सामग्री

–  30 ग्राम पनीर

–  1 छोटा चम्मच कश्मीरी मिर्च

–  1 बड़ा चम्मच हंग कर्ड

–  1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

–  1 बड़ा चम्मच मस्टर्ड औयल

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–  1 छोटा चम्मच नीबू का रस

–  1 बड़ा चम्मच तंदूरी मेयोनीज

–  1/2 प्याज कटा

–  1/2 शिमलामिर्च कटी

–  1 छोटा टमाटर कटा

–  2 पीस सैंडविच ब्रैड

–  1 बड़ा चम्मच बटर

–  साल्ट पैपर सीजनिंग स्वादानुसार.

मैरीनेशन की विधि

एक बाउल में पनीर, अदरकलहसुन का पेस्ट, नीबू का रस, हंग कर्ड, मस्टर्ड औयल, साल्ट पैपर सीजनिंग, कश्मीरी मिर्च, प्याज, टमाटर व शिमलामिर्च डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर इसे 2 घंटों तक मैरीनेट होने दें.

ग्रिल करने की विधि

ग्रिल तवा या फिर नौनस्टिक पैन में पनीर के टुकड़ों को ग्रिल करें. अब इस पर तंदूरी मेयोनीज डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. अब इस पर चाटमसाला डालें. इस के बाद ब्रैडस्लाइसेज पर बटर लगा कर उस में अच्छी तरह पनीर टिक्का मसाला लगाएं. अब पैन को बचे हुए बटर से ग्रीस कर के उस में सैंडविच को रख कर तब तक ग्रिल करें, जब तक ब्रैड गोल्डन व क्रिस्पी न हो जाए. अब सैंडविच को बीच से काट कर कैचअप, मेयोनीज व पोटैटो चिप्स के साथ सर्व करें.

पीरियड्स पर आधारित फिल्मों को लोग गंभीरता से नहीं लेते- सुशील जांगीरा

अभिनेत्री, ऐंकर, लेखक और निर्देशक सुशील जांगीरा किसी परिचय की मुहताज नहीं हैं. वे ‘खाकी’ और ‘स्पर्श द टच’ सहित कई फिल्मों में अभिनय कर चुकी हैं. 2 साल पहले जब उन्होंने पहली बार लेखक व निर्देशक की हैसियत से लघु फिल्म ‘मेरी रौक स्टार वाली जींस’ बनाई, तो उन्हें ‘दादा साहेब फालके अवार्ड’ कई पुरस्कारों से नवाजा गया.

इन दिनों वे अपनी दूसरी लघु फिल्म ‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ को ले कर सुर्खियों में हैं, जोकि सड़क व फुटपाथ पर रहने वाली उन गरीब व भीख मांगने वाली औरतों की मासिकधर्म की परेशानी के साथ यह सवाल उठाती है कि इन की प्राथमिकता भूख को शांत करना है अथवा सैनिटरी पैड को खरीदना. कोरोनाकाल में भी इस फिल्म को करीब 15 राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.

पेश है, सुशील जांगीरा से हुई ऐक्सक्लूसिव बातचीत:

आप की पिछली फिल्म ‘मेरी रौक स्टार वाली जींस’ को किस तरह के रिस्पौंस मिले?

यह एक लघु फिल्म है, जिसे काफी बेहतरीन रिस्पौंस मिला. यह कईर् मल्टी प्लेटफौर्म पर देखी जा सकती है. इसे दादा साहेब फालके अवार्ड सहित कई पुरस्कार मिले थे. बंगलुरु, पुणे व नासिक के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहो में इसे पुरस्कृत किया गया. वास्तव में मैं अपनी पहली फिल्म से ही कंटैंट प्रधान फिल्में बनाती आई हूं. इसी वजह से औरतों से संबंधित ज्वलंत मुद्दे पर यह दूसरी लघु फिल्म ‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ ले कर आई हूं.

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फिल्म ‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ की विषयवस्तु का खयाल आप के दिमाग में  कैसे आया?

यह फिल्म औरतों की माहवारी, उन की निजी सुरक्षा, सैनिटरी पैड व दो वक्त की रोटी के इर्दगिर्द घूमती है. यों तो औरतों की माहवारी व सैनिटरी पैड पर कईर् फीचर, लघु व डौक्यूमैंट्री फिल्में हमारे देश सहित विदेशों में भी बन चुकी हैं, मगर किसी ने इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया कि एक ऐसी औरत जिस के पास अपना सिर छिपाने के लिए छत नहीं है, जोकि फुटपाथ के किनारे बैठी हुई भिखारी औरत है, उस की प्राथमिकता अपनी भूख मिटाना है अथवा निजी स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए सैनिटरी पैड खरीदना है.

मेरे मन में बारबार यह सवाल उठता था कि हम ने इन औरतों को क्यों पीछे छोड़ दिया है. माहवारी को ले कर मु झे या किसी भी अन्य आम औरत को जो समस्याएं हैं, उन से ये गरीब, भिखारी व फुटपाथ पर रह रही औरतें भी गुजरती हैं. उन की जरूरतें अन्य औरतों के समान ही हैं. पर हम सभी ऐसी औरतों को क्यों नजरअंदाज कर देते हैं?

ये महिलाएं भी उतने ही सम्मान की अधिकारी हैं, जितनी छोटेबड़े घरों या महलों में रह रही औरतें हैं. इस के अलावा मैं सोचती थी कि ये सड़क पर बैठ कर किस तरह खुद की व्यवस्था करती हैं? ये किस तरह और कैसे स्नान करती हैं? माहवारी के दिनों में किस तरह खुद को सुरक्षित रखने के उपाय अपनाती हैं? इसी तरह के कई सवालों के जवाब खोजने के मकसद से हम एक दिन अपने 2 सहयोगियों के साथ कैमरा ले कर निकल पड़े. कई दिनों की लगातार जद्दोजहद के बाद जो कुछ फुटेज हम ने इकट्ठे किए थे, उन्हें एक कहानी का रूप दे कर ‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ बना डाली.

कैमरा ले कर इन औरतों के पास जाने से पहले आप ने इस विषय पर कोई शोध कार्य किया था या नहीं?

मैं ने इस विषय पर चिंतन किया था, पर इन के संबंध में शोध करने के लिए ही हम कैमरा ले कर इन के पास गए. लेकिन घर से निकलने के पहले मैं ने कईर् सवाल कागज पर लिखे थे और उन सवालों के जवाब ढूंढ़ने के लिए मैं सड़क पर निकली थी. ये सवाल मेरे अंतर्मन से निकले थे कि जिस तरह की समस्याएं मु झे हो रही हैं, उसी तरह की समस्याएं इन औरतों को जब होती हैं, तो ये कैसे संभालती हैं.

इन के पास पेट की भूख को मिटाने के लिए रोटी नहीं है, जबकि हम तो एक सुविधा वाली जिंदगी जी रहे हैं. हमारे पास अच्छी हाईजीन, अच्छी दवाएं व स्वस्थ भोजन सहित सबकुछ उपलब्ध है. पर इन महिलाओं के पास ये सब नहीं है. तो ये महिलाएं कैसे सबकुछ करती हैं. ये सारे सवाल मेरे अंदर की जो कशमकश थी, उस से पैदा हुए थे.

आप किन इलाकों में गए और किस तरह की औरतों से बात की?

मैं ने अपनी इस फिल्म को मुंबई, दिल्ली और अमृतसर में एक साल में फिल्माया है. हम ने यह फिल्मांकन सर्दी, गरमी और बारिश के मौसम में किया है, क्योंकि हर मौसम में समस्याओं के रूप कुछ बदल जाते हैं. मैं ने हर गलीमहल्ले में गए. हम किसी भी गली के फुटपाथ पर चले जाते थे. वहां मौजूद औरतों से बात करते थे.

कई बार जानकारी मिलती तो कई बार नहीं. कई औरतें कुछ भी कहने को तैयार ही नहीं होती थीं. सड़क,  झुग्गी झोंपड़ी, रेलवे पुल आदि हर जगह जगह गए. हम मुंबई में हाजी अली के आसपास, अमृतसर में गोल्डन टैंपल के आसपास, दिल्ली में कनाट प्लेस, मंदिरों के आसपास सभी इलाकों में गए. देखिए अलगअलग मौसम में इन औरतों से जा कर हम ने बात की, क्योंकि गरमी के मौसम में हालात अलग होते हैं, तो सर्दी और बरसात में अलग.

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आप ने काफी काम किया, पर कभी सोचा कि हमारे देश में ऐसे हालात क्यों बने हुए हैं कि आज भी औरतों को अपनी सुरक्षा या सैनिटरी पैड से कहीं अधिक भूख मिटाने को तवज्जो देनी पड़ रही है?

देखिए, एक बहुत पुरानी कहावत है कि भूखे पेट भजन न होय गोपाला… भूख की समस्या मुंह बाए खड़ी है. इस के लिए हमारा सिस्टम ही दोषी है. हमारे यहां आय का विभाजन समान नहीं है. हमारे देश में अमीरी व गरीबी के बीच एक बहुत बड़ी खाई है.

कुछ लोगों के पास इतना भोजन है कि वे हर दिन काफी बचा भोजन फेंक देते हैं तो कुछ लोगों को भरपेट भोजन भी मुहैया नहीं होता. हमारा सिस्टम ही गड़बड़ है. यदि सरकार कुछ सुविधाएं देती है, तो वे नीचे तक नहीं पहुंच पातीं. इस के अलावा इन्हें शिक्षा नहीं मिल रही. यदि इन्हें शिक्षा मिलेगी, तो इन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता चलेगा और ये अपने अंदर कुछ स्किल पैदा कर सकेंगी.

कहा जाता है कि भिखारियों का भी रैकेट है?

मैं ने भी सुना है, पर यह अपराध है. इस तरह के रैकेटबाजों को पकड़ने के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए और इन के चंगुल में फंसे छोटे बच्चों को छुड़ा कर उन्हें बेसिक स्किल की शिक्षा दी जाए ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सके.

क्या हमारे देश के एनजीओ भी औरतों की समस्याओं की अनदेखी कर रहे हैं?

मु झे नहीं पता. लेकिन मैं तो ‘सवेरा’ नामक एनजीओ के साथ जुड़ी हुई हूं. वे तो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. वे तो ह्यूमन हाईजीन, चाइल्ड वैलफेयर, सैनिटरी नैपकिन सहित हर क्षेत्र में काफी काम कर रहे हैं. मैं इस एनजीओ के साथ मिल कर काम कर रही हूं.

मेरी सम झ से सभी एनजीओ औरतों की समस्याओं से वाकिफ होने के साथसाथ उन समस्याओं को ले कर आवाज भी उठा रहे हैं. मैं यह मानती हूं कि सभी के कुछ सकारात्मक व कुछ नकारात्मक पहलू होते हैं. सोशल मीडिया के भी कुछ पौजीटिव व कुछ नैगेटिव पौइंट्स हैं, जिन के पास धन की ताकत नहीं है, जो उच्च श्रेणी के हैं, वे अपनी आवाज आराम से उठा सकते हैं. उन की आवाज सुनी जा सकती है मगर निचले तबके, गरीब, लाचार की आवाज कोई नहीं सुनता. इन की आवाज को सरकार तक पहुंचाने का काम तो मीडिया ही कर सकता है.

सोशल मीडिया में यदि एक आम इंसान कुछ ट्वीट कर दे, तो उसे भी ढेर सारे लोग पढ़ सकते हैं. वह भी आग की तरह फैल सकता है. मीडिया भी अच्छी चीजों को आग की तरह फैला सकता है. पर गरीब, अनपढ़ तो अपनी बात को ट्वीट भी नहीं कर पाते. मैं यह नहीं कहती कि एनजीओ में कोई नकारात्मकता नहीं है. ढेर सारे एनजीओ काफी बेहतरीन काम कर रहे हैं. मैं हर एनजीओ के साथ नहीं जुड़ी हुई हूं.

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एनजीओ ‘सवेरा’ के माध्यम से आप क्याक्या कर रही हैं?

यह एनजीओ नारी उत्थान, बाल उत्थान, ह्यूमन हाईजीन, पर्यावरण के क्षेत्र में काफी अच्छा काम कर रहा. यह संस्था अलगअलग शहरों में कार्यरत है. यह संस्था सैनिटरी नैपकिन के मुद्दे को ले कर जो मैं ने लघु फिल्म बनाई है, उस के लिए भी काम कर रही है.

शाह परिवार में फूट डालेगी ‘काव्या’, ‘अनुपमा’ के खिलाफ होगी ‘किंजल’

औफस्क्रीन हो या औनस्क्रीन स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा इन दिनों सुर्खियों में है. हालांकि शो के मेकर्स पूरा जोर लगा रहे हैं कि अनुपमा की टीआरपी कम ना हो, जिसके चलते सीरियल की कहानी में जबरदस्त मोड़ आने वाला है. दरअसल, मेकर्स ने नया प्रोमो रिलीज कर दिया है, जिसमें किंजल, अनुपमा के खिलाफ होती हुई नजर आने वाली है. आइए आपको दिखाते हैं अनुपमा का लेटेस्ट प्रोमो…

काव्या ने चली नई चाल

 

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सीरियल अनुपमा में काव्या, अनुपमा के खिलाफ घर वालों को करने का एक भी मौका नही छोड़ रही है. वहीं आने वाले एपिसोड में काव्या का ये दांव पूरा होने वाला है. दरअसल, मेकर्स के रिलीज किए गए प्रोमो में दिखाया गया है कि अनुपमा रसोई का सारा खाना बनाकर किंजल को केवल रोटी बनाने के लिए कहती है. वहीं काव्या किंजल को भड़काती है कि शाह हाउस को दूसरी अनुपमा मिल गई है, जिसके चलते आने वाले एपिसोड में शाह हाउस में हंगामा देखने को मिलेगा.

 

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वनराज की होगी अनुपमा पर नजर

अपकमिंग एपिसोड में आपको काव्या की जलन देखने को मिलेगी. दरअसल, शो में वट सावित्री के व्रत की पूजा होगी, जिसमें पहली बार काव्या भी हिस्सा लेती नजर आएगी. वहीं वनराज भी इस पूजा में नजर आएगा. हालांकि उसकी नजर काव्या पर नहीं बल्कि अनुपमा पर होगी, जिसे देखकर काव्या का गुस्सा सांतवे आसमान पर होगा.

बता दें, इन दिनों शो में नई एंट्री हुई है, जिसके चलते घर में बवाल देखने को मिल रहा है. वहीं इसके चलते काव्या अनुपमा से बदला लेने का भी प्लान करती नजर आ रही है, जिसकी शुरुआत उसने किंजल को अपने जाल में फंसाकर की है. अब देखना है कि क्या अनुपमा और किंजल के बीच फूट डलेगी.

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REVIEW: लिखावट में बिखराव के बावजूद पीरियड कहानी का बेहतरीन चित्रण ‘ग्रहण’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः जार पिक्चर्स

निर्देशकः राजन चांदेल

लेखकः सत्य व्यास के उपन्यास ‘‘चैरासी’’से प्रेरित

क्रिएटरः शैलेंद्र झा

कलाकारः पवन मल्होत्रा, जोया हुसैन, अंशुमन पुष्कर, वामिका गब्बी, टीकम जोशी, सहिदुर रहमान व अन्य.

अवधिः 45 से 55 मिनट के आठ एपीसोड,कुल अवधि छह घ्ंाटे 48 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉट स्टार डिज्नी

लेखक सत्यव्यास ने 1984 के सिख विरोधी दंगों की पृष्ठभूमि में  एक प्रेम कहानी के साथ कुत्सित राजनीति,जांच आदि की भावनात्मक उथल पुथल वाला काल्पनिक उपन्यास ‘‘चैरासी’’ लिखा था,जिस पर निर्देशक राजन चंदेल लगभग सात घंटे की अवधि की आठ एपीसोड वाली वेब सीरीज ‘‘ग्रहण’’लेकर आए हैं.

‘ग्रहण’एक भावनात्मक रूप से आहत करने वाली कहानी है,जो 1984 के सिख विरोधी दंगों की भयानक तबाही के बीच नाटकीय रूप से चलती हुई मानवता के उत्कर्ष को छूती है,जहां अब 1984 के दंगो को राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते हवा देने वाला इंसान ही उस गंदगी को खत्मकर राजनीति को भी साफ करने पर आमादा है.

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कहानीः

कहानी 2016 में रांची से शुरू होती है और बार बार 1984 के बोकारो आती जाती रहती है. कहानी 2016 में रांची से शुरू होती है,जहां गुरूसेवक(पवन मल्होत्रा ) अपनी बेटी व एसपी अमृता सिंह (जोया हुसेन ) के साथ रह रहे हैं. अम्रता सिंह का प्रेमी कार्तिक (नंदिश संधू ) कनाडा से आया हुआ है, दोनों के बीच प्रेम कीड़ा शुरू होते ही पत्रकार संतोष जायसवाल का फोन आता है. अमृता तुरंत कार्तिक को वैसे ही छोड़कर भागती है,मगर संतोष मारा जाता है.

शक के तौर पर अमृता सिंह दो लोगों को गिरफ्तार करती है,जिन्हे बाद में डीआईजी केशर छोड़ देते हैं. उधर मुख्यमंत्री केदार भगत( सत्यकाम आनंद  )अपने प्रतिद्वंदी संजय सिंह उर्फ चुन्नू (टीकम जोशी )को फंसाने के लिए डीआईजी केशर को आदेश देते हंै कि वह 1984 के बोकारो कांड की जांच के लिए एआईटी बनाएं. केशर एसआईटी बनाकर जांच अधिकारी डीएसपी विकास मंडल(सहिदुर रहमान  ) को बना देते हैं. फिर डीआई केशर,अमृता सिंह को एसआईटी का प्रमुख बना देते हैं.

विकास मंडल,अमृता को 1984 के बोकारो दंगे के दौरान लोगों के घरो में आग लगा रहे रिषि रंजन की एक तस्वीर देता है. तस्वीर देखकर अमृता परेशान हो जाती है. क्यांेकि यह तस्वीर तो उनके पिता गुरूसेवक की है और उसने अपने पिता को लोगों की मदद करते हुए देखती आयी है. वह अपने पिता से सवाल करती है,पर पिता चुप रहते हैं. लेकिन अब अमृता भी सच जानना चाहती है कि अगर  दंगे के समय उसके पिता थे,तो क्या वजह थी.

इसी के साथ अब कहानी तीन स्तर पर 2016 के रांची व 1984 के बोकारो में चलती रहती है. एक तरफ 1984 में रिषि रंजन(अंशुमन पुष्कर) और मंजीत कौर छाबड़ा उर्फ मनु(वामिका गब्बी )की प्रेम कहानी चलती है,जो कि संजय सिंह की नफरत भरी महत्वाकांक्षा से घिरी हुई है. जबकि रिषि रंजन का दोस्त झंडू भी मनू से प्यार करता है. तो दूसरी तरफ अमृता व विकास मंडल बोकारो में जब लोगों से मिलते हैं,तो वह 31 अक्टूबर व एक नवंबर 1984 की घटना व उससे जुड़े लोगों के बारे में बताते हैं.

31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के बाद बोकारो की स्टील फैक्टरी के प्रबंधक द्वारा ही कत्लेआम की साजिश रची गयी थी,जिसमें रिषि रंजन,झंडू सहित कई युवक शामिल हुए थे. तीसरे स्तर पर वर्तमान समय में 1984 के दंगो से जुड़े रहे राजनेेताओं की एसआईटी जांच की आड़ में एक दूसरे को पटकनी देने की राजनीतिक शतरंजी चालें चली जाती रहती हंै.

लेखन व निर्देशनः

कुछ जख्म कभी नही भरते. वह सतह के नीचे सदैव फड़फड़ाते रहते हैं. और इन जख्मों की छाप उसकी अगली पीढ़ी पर भी पड़ती ही है. ऐसे ही जख्म और मानव द्वारा रचे गए प्रलय के घटनाक्रम पर यह वेब सीरीज बनायी गयी है,जो कि इंसानों के अलावा सदैव राजनीतिक हलकों में भी गर्म रहती है,तो वहीं महज राजनीतिक स्वार्थ की रोटी सेंकने के लिए कुछ नेताओं ने जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिलाया था,वह सब कुछ बहुत से लोगों के दिलों में जिंदा है.

कुछ दिन पहले ही एक सिख फिल्मकार से हमारी बात हुई,तो उसने कबूला कि उनके माता पिता को किस तरह से पंजाब मंे सब कुछ छोड़कर गुजरात में शरण लेनी पड़ी थी और गुजरात में भी उन्हे आतंकवादी कहा जाता था. पर वेब सीरीज में वह दर्द उसी वेग के साथ नही उभरता. जबकि मानवता का चरमोत्कर्ष जरुर है. कुत्सित राजनीति पर भी खुलकरकुछ भी कहने से फिल्मकार बचते हुए नजर आए हैं,यानीकि वह पलायनवादी हो गए हैं. परिणामतः कुछ बातें अस्पष्ट रह जाती हैं. प्रेम कहानी में भी ऐसा कुछ नही है,जो कि लोगों के दिलों को दू सके.

हर एपीसोड का अलग नामकरण भी किया है. अफसोस पहला एपीसोड जितना कसा हुआ है,वैसी कसावट बाद के एपीसोडो में नही हैं. विखरी हुई लिखावट के चलते कहानी यानी कि कथा कथन में प्रवाह नही रहता. आठवें एपीसोड में जिस तरह से अदालत के अंदर के दृश्य फिल्माए गए हैं,वह तो काफी हास्यास्पद हैं. क्लायमेक्स भी जंचा नही.

लेखक व निर्देशक ने बहुत कुछ सत्य निरूपित किया है. इसमें गुरसेवक यानी कि पवन मल्होत्रा का एक संवाद है-‘‘उस वक्त हालात ऐसे थे कि हम या तो उनके साथ थे या उनके ख्लिाफ. ’’पर तीन एपीसोड बाद चुन्नू उर्फ संजय सिंह यानी कि अभिनेता टीकम जोशी,गुरूसेवक यानी कि अभिनेता पवन मल्होत्रा से कहते हैं-‘‘आज भी वही हालात है, या तो हम उनके साथ हो सकते हैं या उनके खिलाफ. ’’यह संवाद आज भी सच्चाई का आईना हैं. यानी कि वर्तमान मंे जो हालात हैं,उसमें आप या तो ‘बाएं‘ या ‘दाएं‘ हो सकते हैं,बीच का कोई रास्ता नहीं है.

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इसके कुछ दूसरे संवाद मसलन-‘‘हम दूसरे घाव दिखाकर अपने घाव छिपाना चाहते हैं. ’

आठ एपीसोडों को अनु सिंह चैधरी, नवजोत गुलाटी, प्रतीक पयोढ़ी, विभा सिंह, रंजन चंदेल, शैलेंद्र कुमार झा और सलाहकार लेखक करण अंशुमान और अनन्या मोदी ने गढ़ा है. सूक्ष्मता से लिखी गयी इस कहानी में एक मार्मिक और विचलित करने वाली तस्वीर भी है तो वहीं काफी कुछ मेलोड्ामा भी है. कहानी में दोहराव काफी है. यदिल लेखकीय टीम व निर्देशक ने थोड़ी मेहनत की होती तो यह एक क्लासिंक वेब सीरीज बन सकती थी,जिसकी जरुरत भी है.

इतना ही तकनीक रूप से भी यह वेब सीरीज काफी कमजोर है. निर्देशन के साथ साथ एडीटिंग में भी कमियां हैं. दो तीन दृश्यों में तो दृश्य बाद में शुरू होता है और संवाद पहले आ जाते हैं. मसलन- कनाडा में कार्तिक ,मंजीत कौर से मिलने उनके घर जाता है. कार्तिक घर के बाहर ही रहता है,मगर कार्तिक व मंजीत के बीच बातचीत के संवाद शुरू हो जाते हैं.

प्रोडक्शन डिजाइनर वसीक खान अस्सी के दशक व उस काल के बोकारो को सटीक ढंग से उभारा है. कैमरामैन कमलजीत नेगी बधाई के पात्र हैं. अमित त्रिवेदी के गाने गति के साथ तालमेल बिठाते हैं.

अभिनयः

गुरूसेवक के किरदार में पवन मल्होत्रा ने शानदार परफार्मेंस देते हुए एक बार फिर हर किसी को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल रहे हैं. जोया हुसेन की परफार्मेंस जानदार है. कुछ दृश्यों में तो वह बेहतरीन काम कर गयी,पर कुछ जगह मात खा गयी.

रिषि रंजन के किरदार में अस्सी के दशक के हालात से मजबूर,गुस्सैल पर प्यार के लिए किसी भी हद तक जाने वाले रिषि रंजन के किरदार को अंशुमान पुष्कर ने एकदम सही ढंग से परदे पर उकेरा है.

मंजीत कौर उर्फ मनु के किरदार में वामिका गब्बी आकर्षक हैं. कुछ दृश्यों में उन्होने इंगित किया है कि उनके अंदर अभिनय क्षमता है,उसे निखारने वाले निर्देशक की जरुरत है.

तेज तर्रार, कपटी व चालाक लोमड़ी चुन्नू के किरदार को टीकम जोशी ने अपने शानदार अभिनय से जीवंतता प्रदान की है.

डीएसपी विकास मंडल के रूप में सहिदुर रहमान अद्भुत यथार्थवादी हैं. कई दृश्यों में उनकी आंखे व उनके चेहरे के भाव काफी कुछ कह जाते हैं.

नौकरी के पीछे भागना छोड़, नौकरी देने वाला बन रहा यूपी का युवा : सीएम योगी

महामारी का दौर थमने की आहट के साथ ही योगी सरकार ने एक बार फिर रोजगार-स्वरोजगार के कार्यों को तेजी देनी शुरू कर दी है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक साथ 31,542 सूक्ष्म, छोटे और मंझोले उद्योगों को विस्तार के लिए 2505.58 करोड़ का ऋण प्रदान किया. साथ ही, एक जनपद-एक उत्पाद योजना के तहत चिन्हित उत्पादों के उत्पादन से लेकर विपणन तक की सभी जरूरतों में मदद के लिए विशेष पोर्टल की शुरुआत करते हुए 09 जिलों में कॉमन फैसिलिटी सेंटर की आधारशिला भी रखी.

ऑनलाइन स्वरोजगार संगम के इस खास मौके पर सीएम ने कहा कि ऐसे ही ऋण मेले अगले एक माह में सभी 75 जिलों में आयोजित किए जाने चाहिए.

मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के विकास में एमएसएमई इकाइयों की सराहना करते हुए कहा कि आज प्रदेश में युवा वर्ग नौकरी के पीछे भागने की बजाय नौकरी देने की सोच के साथ अपने लक्ष्य तय कर रहा है. प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना, एक जनपद-एक उत्पाद जैसी योजनाओं ने युवाओं को बड़ा सहारा दिया है. स्वरोजगार के कार्यक्रमों में महिलाओं-बेटियों ने खूब उत्साह दिखाया है. वैसे भी, लखनऊ की चिकनकारी जैसे परंपरागत शिल्प को महिलाओं की भूमिका हमेशा से ही रही है. प्रधानमंत्री जी ने जिस “आत्मनिर्भर भारत” की परिकल्पना की है, युवाओं की यही सोच, ऐसे प्रयास ही उसका आधार हैं.

सीएम योगी ने कहा कि बीते साल कोरोना की पहली लहर के दौरान हमारे सामने 40 लाख प्रवासी श्रमिकों के जीवन और जीविका को सुरक्षित करने की चुनौती थी. एमएसएमई इकाइयों ने इस दिशा में बहुत सराहनीय कार्य किया. बीते वर्ष भी कोविड काल में करीब 34 हजार एमएसएमई इकाइयों को वित्तीय सहायता दी गई थी, तो कोविड की दूसरी लहर के नियंत्रण में आते ही फिर से उद्योगों को ऋण उपलब्ध कराने का कार्यक्रम हो रहा है. मुख्यमंत्री ने एमएसएमई विभाग के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह, अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल सहित पूरी विभागीय टीम के साथ-साथ स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी के सहयोग को भी सराहां सीएम ने जनपदीय अधिकारियों को जिला स्तरीय बैंकर्स कमेटी के साथ समन्वय बनाकर युवाओं को स्वरोजगार के लिए वित्तीय संसाधन मुहैया कराने के भी निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि उत्पादों की मैपिंग कराई जाए, हमारे यहां प्रतिभा का अभाव नहीं, मंच देने भर की देर है. उत्तर प्रदेश आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने में सबसे अहम भूमिका निभाएगा.

विश्वकर्माओं को मिला टूल-किट का उपहार: मुख्यमंत्री ने विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजनांतर्गत कविता साहू और मंजू कश्यप को सिलाई, राहुल को बढ़ई , अमित कुमार को सुनार तथा रिजवान को नाई से जुड़े व्यवसाय के लिए जरूरी टूल-किट का उपहार भी दिया.

उत्पादन से मार्केटिंग तब सबके लिए मिलेगी मदद:

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को गाजियाबाद, मैनपुरी, मऊ, मीरजापुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, आगरा, मुरादाबाद और भदोही में प्रस्तावित कॉमन फैसिलिटी सेंटर का शिलान्यास किया. 79 करोड़ 54 लाख के खर्च से तैयार होने वाले इन केंद्रों पर उद्यमियों को ओडीओपी योजनांतर्गत जनपद के चिन्हित उत्पादों के उत्पादन से लेकर विपणन तक के समस्त अवयवों जैसे कच्चा माल, डिजाइन, उत्पादन प्रक्रिया, गुणवत्ता सुधार, अनुसंधान एवं विकास, पर्यावरण एवं ऊर्जा संरक्षण तथा पैकेजिंग आदि की सुविधाएं मिल सकेंगी.इसके अलावा, सीएम ने https://diupmsme.upsdc.gov.in/en पोर्टल का भी शुभारंभ किया.

विश्व में हो ओडीओपी की चर्चा: सिद्धार्थ नाथ

एमएसएमई विभाग के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि बीते चार वर्षों में प्रदेश के एमएसएमई सेक्टर ने बड़ी ऊंचाइयां हासिल की हैं. सीएम योगी के अभिनव प्रयोग ओडीओपी की चर्चा न केवल देश, बल्कि विदेशों में भी हो रही है. सरकार ने परंपरागत शिल्प, उद्योगों को विकास के लिए बड़ा संबल दिया है. इससे पहले, एसीएस नवनीत सहगल ने विभागीय गतिविधियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी भी दी.

योगी सरकार ने शिल्पियों के हुनर दी अंतर्राष्ट्रीय पहचान

योगी सरकार ने देश के शिल्पियों के हुनर को जीआई उत्पाद के रूप में विश्व में पहचान दिलाई है. जिससे कोरोना काल में भी जीआई उत्पादों पर लोगों का भरोसा रहा और मांग बनी रही. लॉकडाउन में जब दुकानें बंद रही तब भी इस उत्पाद की बिक्री देश और विदेशों में ऑनलाइन माध्यम से होती रही. वाराणसी के एक उद्यमी ने योगी सरकार के स्टार्टअप योजना का लाभ उठाते हुए कोविड काल में जीआई उत्पादों का लाखों का क़ारोबार कर लिया है. आप को जानकर ताज़्जुब होगा की ये कोराबार सिर्फ़ ऑनलाइन हुआ है. प्रतीक बी सिंह नाम के इस युवा उद्यमी के वेब साइट पर सिर्फ जीआई उत्पाद ही बिकते है. लेकिन अब प्रतीक ने कुछ ओडीओपी उत्पादों को भी ऑनलाइन प्लेटफार्म देना शुरू किया है.

आईएएस बनने की चाह रखने वाले इस युवा को स्टार्टअप योजना ने आसमान में उड़ने की राह दिखा दी है. अब प्रतीक उन हुनरमंद लोगों को भी प्लेटफार्म दे रहे हैं, जिन्होंने अपने हुनर का लोहा पूरी दुनिया से मनवाया है. 370 जीआई उत्पादों में से देश के 299 जीआई उत्पादों (जिनमे से उत्तर प्रदेश से अकेले 27 जीआई उत्पाद है) को एक जग़ह शॉपिंगकार्ट 24 नामक इ -कॉमर्स की साईट पर लाकर भारत के हस्तकला शिल्पियों की हुनर को पूरे विश्व में पहुँचा रहे है. खाने, सजाने, संगीत, खिलौने, पहनने से लेकर हर रोज़ इस्तेमाल होने वाली जीआई उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री देश और विदेशो में खूब हो रही है. वाराणसी का लकड़ी का ख़िलौना, बनारसी साड़ी, गुलाबी मीनाकारी , पंजादारी, ज़री जरदोजी , सिद्धार्थ नगर का काला नमक चावल, गोरखपुर का टेराकोटा, गाज़ीपुर की वाल हैंगिंग आदि उत्पादों की अमेरिका समेत कई देशों में भारी मांग है. जीआई उत्पाद की ख़ास बात ये होती कि ये सभी उत्पाद हैंडलूम व हैंडीक्राफ्ट उत्पाद होते हैं.

प्रतीक ने बताया कि उन्होंने 2016 में अपनी स्टार्टअप कंपनी शुरु की थी. उसके बाद जीआई उत्पादों को धीरे-धीरे ऑनलाइन प्लेटफार्म पर लाना शुरू किया. कोरोना काल में लॉकडाउन ने जब दुकानें खुलना बंद हुई तो प्रतीक ने ऑनलाइन बाज़ार का दरवाजा दुनिया के लिए खोल दिया. प्रतीक अप्रैल से अब तक करीब 7 लाख का जीआई उत्पाद देश और विदेशों में बेच चुके हैं. प्रतीक ने बताया कि पहले काशी के जीआई टैगिंग प्राप्त उत्पादों को ऑनलाइन बेचना शुरू किया. फिर वो यूपी के 27 प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर लेकर आए. इनकी कंपनी से डिपार्टमेंट ऑफ़ प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ एंड इंटरनल ट्रेड( DPIIT ) से मान्यता प्राप्त है. जिससे ई-कॉमर्स में मदद मिलती है. अपने कस्टमर के लिए ये कंपनी हुनरमंद कलाकारों के लाइव प्रदर्शन भी करवाती है. जिसे बाद में सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी कला को और लोगों तक पहुंचने में भी मदद मिलती है. शिल्पियों को ट्रिपल “ई” एजुकेट ,एम्पॉवर,एनरिच के फॉर्मूले से समृद्ध करते है. जीआई ( जियोग्राफिकल इंडिकेशन) जीआई उत्पाद यानी भौगोलिक संकेतक या जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऐसे उत्पादों होते है जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है. इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का एहसास देता है.

कैंसर से जूझ रहे हैं ‘Taarak Mehta…’  के ‘नट्टू काका’, पढ़ें खबर

सब टीवी का कौमेडी सीरियल तारक मेहता का उल्टा चश्मा (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) फैंस के दिलों में सालों से जगह बनाकर बैठा है. वहीं टीआरपी चार्ट्स में भी वह अपनी जगह बनाए हुए हैं. वहीं शो के सितारे अपने औनस्क्रीन किरदार के चलते घर-घर में फेमस है. हालांकि इस शो का एक किरदार मुश्किलों से जूझ रहे हैं, जिसके बारे में फैंस बेखबर हैं. दरअसल, नट्टू काका के रोल में नजर आने वाले एक्टर घनश्याम नायक कैंसर से जूझ रहे हैं, जिसकी जानकारी उनके बेटे ने शेयर की है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

अप्रैल में पता चला था कैंसर

तारक मेहता का उल्टा चश्मा (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) में सालों से नट्टू काका का किरदार निभा रहे एक्टर घनश्याम नायक को कैंसर से जूझ रहे हैं, जिसका उन्हें अप्रैल में पता चला और अब वह इलाज करवा रहे हैं. वहीं अपने पिताघनश्याम नायक की गंभीर बीमारी के बारे में उनके बेटे ने फैंस से जानकारी शेयर की है.

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जारी है इलाज

घनश्याम नायक के बेटे ने एक इंटरव्यू में बताया कि, ‘मेरे पिता को लगभग 3 महीने पहले गले में दिक्कत हुई, जिसके बाद उनका इलाज शुरू हुआ. अप्रैल के महीने में हमने उनकी पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी स्कैनिंग कराई जिसके बाद पता चला कि उन्हें कैंसर है, जिसके तुरंत बाद उनका इलाज शुरु किया गया है. वहीं घनश्याम नायक ने भी अपनी बीमारी के चलते बताया है कि उनकी कीमोथेरेपी लगातार चल रही है, जिस कारण वो पहले से अच्छा महसूस कर रहे हैं. नट्टू काका यानी घनश्याम नायक का कहना है कि वह जल्द से जल्द ठीक होकर दोबारा काम शुरू करना चाहते हैं. वहीं डॉक्टर्स ने उन्हें काम करने की इजाजत देते हुए कहा है कि कीमोथेरेपी की वजह से शूटिंग में कोई दिक्कत नहीं आएगी.

बता दें, बीते दिनों शो की बबीता जी भी सुर्खियों में थी, जिसका कारण उनका एक जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करना था. वहीं इस मामले में उनके खिलाफ एफआईआर भी की गई थी. हालांकि कोर्ट से उन्हें इस मामले में राहत मिली है.

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